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धुरंधर धोनी का संन्यास- क्या अब राजनीतिक पारी की शुरुआत करेंगे कैप्टन कूल?

बल्लेबाज़ी में हेलीकॉप्टर शॉट की खोज करने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने स्वतंत्रता दिवस पर जिस तरह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा करके देश में क्रिकेट प्रेमियों को चकित कर दिया, वैसे ही वह मैदान में डेढ़ दशक के अपने शानदार करियर में अपनी खेल-प्रतिभा से भी करते रहे हैं। अभी वह आईपीएल में खेलते रहेंगे। लेकिन क्या क्रिकेट के बाद भी माही देश में अपने प्रशंसकों को चकित करने की तैयारी में हैं? अपुष्ट खबर है कि झारखण्ड की राजनीति भूमिका निभाने की बात वह स्वीकार कर सकते हैं।

धोनी को भले बहुत-से क्रिकेट विशेषज्ञ भारत का अब तक का सबसे बेहतरीन विकेट कीपर मानने को लेकर अलग-अलग राय रखते हों, पर यह सभी मानते हैं कि वह देश के अब तक के सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपर-बल्लेबाज़ रहे हैं। उनकी कप्तानी को भी देश के अब तक के बड़े कप्तानों की श्रेणी में रखा जाता है।

मैदान में कप्तानी करते हुए उनका शान्त रहना, उनकी सबसे बेहतर आदत रही; जिसके कारण उनका नाम ही कैप्टन कूल पड़ गया। धोनी के एक अलग ही क्लास के क्रिकेटर होने को लेकर पूर्व दिग्गज बल्लेबाज़ वीवीएस लक्ष्मण की टिप्पणी दिलचस्प है, जो यह दर्शाती है कि धोनी दबावों से कितने ऊपर थे। लक्ष्मण कहते हैं – धोनी कभी भी मैच के नतीजों से भावनात्वक तौर पर जुड़े नहीं रहे। इसी खूबी के कारण शायद धोनी मैच में हमेशा कूल बने रहते थे और इसी कारण वे अपना सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट को दे पाये।

सौरव गांगुली की ही तरह धोनी भी टीम बनाने में विश्वास रखने वाले कप्तान रहे। इसमें कोई दो राय नहीं कि सौरव से धोनी को विरासत में एक बहुत मज़बूत टीम मिली, जिसका धोनी को एक कप्तान के नाते बहुत लाभ मिला। बतौर कप्तान उनकी सफलता की एक बड़ी वजह यह भी रही। सौरव ने धोनी के संन्यास के बाद जो टिप्पणी की वह भी गौरतलब है। सौरव गांगुली, जो अब भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष हैं; ने बहुत सारगर्भित बात कही कि धोनी के संन्यास से भारतीय क्रिकेट के एक युग का अन्त हो गया है। निश्चित ही धोनी की भारतीय टीम में कमी हमेशा खलेगी। उनकी 7 नम्बर की जर्सी को आँखें हर उस मौके पर मैदान में ढूँढती रहेंगी, जब भारत की टीम को उन जैसी फिनिशिंग की ज़रूरत होगी। भले ही आखरी वर्षों में धोनी फिनिशिंग को लेकर उतने संतुष्ट नहीं रहे; लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि वह एक बेहतरीन फिनिशर रहे और कई मैचों में उन्होंने अपने इस हुनर के बूते देश को जीत दिलवायी। खासकर एक दिवसीय और टी-20 में फिनिशिंग मैचों का रुख पलटने में बहुत बड़ा रोल अदा करती है, और माही इस फन के माहिर थे।

धोनी कितने भरोसेमंद खिलाड़ी थे, यह सन् 2011 में वल्र्ड कप जीतने के समय भारतीय क्रिकेट टीम के कोच रहे गैरी कस्र्टन की बात से साबित हो जाता है। धोनी की तारीफ में कस्र्टन ने कहा था- सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक के साथ काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। यदि मेरे साथ धोनी हों, तो मुझे युद्ध में भी जाने में कोई परेशानी नहीं होगी। धोनी वास्तव में एक सम्पूर्ण खिलाड़ी रहे और उनकी इसी खूबी के कारण दुनिया भर में उनका नाम हुआ।

धोनी ने सेना के जवानों से मिलते हुए खुलासा किया था कि वह बचपन से ही सेना में जाना चाहते थे और वह अक्सर रांची के आर्मी एरिया में चले जाते थे और वहाँ जवानों को देखकर सोचते थे कि एक दिन वह भी ऐसे की सैनिक बनेंगे। धोनी फौज में तो नहीं गये, लेकिन एक क्रिकेटर के नाते उन्होंने इस खेल को एक फौजी की ही तरह जीया। वैसे धोनी ने टेरीटोरियल आर्मी में शामिल होकर एक तरह से सेना में शामिल होने का अपना शौक भी पूरा कर ही लिया। धोनी टेरीटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल हैं। उनका सेना के हेलीकॉप्टर से पैराशूट से कूदने का एक वीडियो बहुत ही मशहूर हुआ था और उनके बिना खौफ के नीचे कूदने पर उनकी बहादुरी की लोगों ने बहुत तारीफ की थी।

बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि नागपुर में एक बार धोनी टेस्ट मैच के दौरान स्टेडियम से होटल तक खिलाडिय़ों से भरी बस खुद चलाकर ले गये थे। घटना यह है कि मैच खत्म होने के बाद जब खिलाड़ी बस में बैठे, तो धोनी ने अचानक बस चालक से पीछे बैठने के लिए कहा और बोले- ‘वह खुद बस चलाकर होटल ले जाएँगे।’ बस में बैठे खिलाड़ी धोनी के इस ऐलान से हैरान रह गये। भारतीय खिलाड़ी वीवीएस लक्ष्मण के मुताबिक, भारतीय टीम के कप्तान ने बस चलायी और उन्हें होटल पहुँचाया। लक्ष्मण कहते हैं कि धोनी कुछ इस तरह ही जीवन का आनन्द लेते थे और मैदान से बाहर वह एक बहुत सामान्य इंसान की तरह थे। निश्चित की धोनी ने भारतीय क्रिकेट टीम को भी इसी तरह बहुत बेहतरीन तरीके से चलाया और ऊँचे मकाम तक पहुँचाया। जहाँ बड़े खिलाडिय़ों की तामझाम के साथ विदाई की तमन्ना रहती है, वहीं धोनी ने चुपचाप संन्यास लिया। यह बहुत दिलचस्प है कि धोनी ने अपने संन्यास की घोषणा इंस्टाग्राम पोस्ट के ज़रिये की। धोनी ने अपने इंस्टाग्राम पर लिखा- ‘अब तक आपके प्यार और सहयोग के लिए धयवाद। शाम 7:29 बजे से मुझे रिटायर्ड समझिए।’ इससे एक दिन पहले ही वह यूएई में होने वाली इंडियन प्रीमियर लीग के लिए चेन्नई सुपर किंग्स टीम से जुडऩे चेन्नई पहुँचे थे। बीसीसीआई ने एक बयान में उनके करियर की ऐतिहासिक उपलब्धियों का पूरा ब्यौरा दिया और कहा- ‘इस शानदार विरासत को दोहरा पाना मुश्किल होगा।’

धोनी उन खिलाडिय़ों में शामिल हैं, जिन्होंने छोटे शहर से निकलकर ऊँचा मकाम हासिल किया और देश के हज़ारों युवा खिलाडिय़ों के सपनों को पंख दिये। धोनी उन चंद खिलाडिय़ों में शामिल हैं, जो इतनी चकाचौंध के बावजूद ज़मीन पर रहे और कभी किसी विवाद में नहीं उलझे। खिलाडिय़ों के चयन में भले हमेशा विवाद रहते हैं और धोनी भी इससे अछूते नहीं रहे। लेकिन यह हमेशा होता है, और हर कप्तान पर इस तरह की छींटाकशी होती ही है, भले वो कितना ही निष्पक्ष रहा हो।

माही के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास से निश्चित ही भारतीय टीम एक अनुभवी विकेटकीपर की सेवा से वंचित हो गयी है। साथ ही धोनी के रूप में मार्गदर्शन करने वाला एक खिलाड़ी भी अब उसे शायद ही उपलब्ध होगा। सभी जानते हैं कि विराट कोहली मैदान में हमेशा धोनी की सलाह लिया करते थे। वैसे तो किसी खिलाड़ी के जाने से टीम नये विकल्प तलाश लेती है; लेकिन कई बार ऐसा नहीं भी होता है। इसका एक बड़ा उदाहरण कपिल देव हैं। भारत को आज तक कपिल देव जैसा ऑल राउंडर नहीं मिल पाया।

धोनी के विकल्प

धोनी के संन्यास के बाद अब इस बात पर चर्चा है कि उनकी जगह कौन लेगा? इस बारे में वरिष्ठ खिलाडिय़ों की अलग-अलग राय है। हालाँकि ज़्यादातर मानते हैं कि लम्बी रेस के घोड़े के लिहाज़ से ऋषभ पंत सबसे उपयुक्त चुनाव हो सकता है। वैसे भारत के तीन पूर्व विकेटकीपर कहते हैं कि भविष्य में लोकेश राहुल भी धोनी के एक बेहतर  विकल्प के रूप में सामने हैं। नयन मोंगिया, एमएसके प्रसाद और दीप दासगुप्ता मानते हैं कि माही की खाली की गयी जगह के लिए राहुल और पंत के बीच मुकाबला होगा; जबकि तीसरा विकल्प संजू सैमसन हैं। यह माना जाता है कि बार-बार धोनी से तुलना ने ऋषभ पंत पर अनावश्यक दबाव बना दिया था, जिसका असर उनके प्रदर्शन पर पड़ा। हालाँकि अब धोनी के संन्यास से यह दबाव कम होगा और वह बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे। बहुत से खिलाड़ी मानते हैं कि पंत भारतीय क्रिकेट में एक बेहतर निवेश की तरह हैं।

पूर्व मुख्य चयनकर्ता और विकेटकीपर नयन मोंगिया को लगता है कि राहुल 50 ओवरों के प्रारूप के लिए सबसे बेहतर हैं। उनकी बल्लेबाज़ी में भी हाल में सुधार हुआ है। राहुल के नाकाम होने पर ऋषभ पंत श्रेष्ठ विकल्प हैं। हालाँकि उन्हें एक विकेटकीपर के रूप में ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत है। उधर दास गुप्ता मानते हैं कि राहुल और पंत को इस्तेमाल करने के मामले में टीम को ज़रूरत और परफॉर्म के लिहाज़ से देखना होगा। राहुल फिलहाल बेहतर हैं; लेकिन टी20 में दोनों में से कोई भी इलेवन में हो सकता है।

वैसे राहुल इस समय 28 साल के हैं; जबकि ऋषभ 22 साल के। पूर्व तेज़ गेंदबाज़ आशीष नेहरा कहते हैं कि अगर कोई उनसे पूछे तो वह कहेंगे कि मुझ पर भरोसा करिए कि 22 साल के पंत में उस 23 साल के धोनी से ज़्यादा स्वाभाविक प्रतिभा है, जिन्होंने 2004 में पहली बार भारत के लिए खेला था। मैंने ऋषभ पंत को सोनेट (टूर्नामेंट) में देखा है; जब वह 14 साल के चुलबुले बच्चे थे।

माही का करियर

धोनी का जन्म झारखण्ड के रांची में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। वैसे बचपन में धोनी की रुचि बैडमिंटन और फुटबॉल में ज़्यादा थी। इंटर-स्कूल प्रतियोगिता में धोनी ने इन दोनों खेलों में स्कूल का प्रतिनिधित्व किया था, जहाँ उन्होंने बैडमिंटन और फुटबॉल में अच्छा प्रदर्शन दिखाया और वह ज़िला और क्लब स्तर पर चुने गये। क्रिकेट के माहिर धोनी अपनी फुटबॉल टीम के गोलकीपर रहे हैं।

यहाँ यह भी दिलचस्प है कि उनमें क्रिकेट की सम्भावना उनके फुटबॉल कोच ने देखी। जब उनके कोच ने उन्हें क्रिकेट खेलने भेजा, तो उन्होंने विकेट-कीपिंग से वहाँ सभी लोगों को प्रभावित किया। वह कमांडो क्रिकेट क्लब के नियमित विकेटकीपर बना लिये गये। क्रिकेट क्लब में धोनी ने बेहतर प्रदर्शन किया। इतना बेहतर कि उन्हें सन् 1997-1998 के सीज़न में वीनू मांकड़ ट्राफी (अंडर-16) के लिए चुन लिया गया। मैट्रिक पास करते ही धोनी ने तय कर लिया था कि क्रिकेट पर ही पूरा ध्यान देंगे। यहाँ यह भी बता दें कि धोनी बचपन से ही ऑस्ट्रेलिया के विकेटकीपर एडम गिलक्रिस्ट के प्रशंसक थे।

यह बहुत दिलचस्प है कि धोनी के 16 साल के करियर का अन्त रन आउट से हुआ; जबकि वह अपने पहले मैच में भी रन आउट ही हुए थे। धोनी के करियर की शुरुआत 23 दिसंबर, 2004 को हुई थी; जबकि सन् 2019 के क्रिकेट विश्व कप सेमीफाइनल में उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ आखरी अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला था। उनके इस मैच में रन आउट होने से भारत के तीसरी बार विश्व कप सम्भावना भी खत्म हो गयी थी। वैसे धोनी ने अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू 23 दिसंबर, 2004 को बांग्लादेश के खिलाफ किया था और बिना खाता खोले रन आउट हो गये थे। तब धोनी सातवें नम्बर पर बल्लेबाज़ी करने उतरे थे। सन् 1998 में एमएस धोनी को सेंट्रल कोल फील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) टीम ने अपने लिए चुन लिया। सन् 1998 तक उन्होंने स्कूल क्रिकेट टीम और क्लब क्रिकेट के लिए खेला। शीश महल टूर्नामेंट क्रिकेट मैचों में धोनी ने जब भी छक्का लगाया, तो उन्हें देवल सहाय ने 50 रुपये का उपहार दिया। अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन की मदद से सीसीएल ए-डिवीजन में उनका चयन हो गया। देवल सहाय उनके समर्पण और क्रिकेट कौशल से प्रभावित हुए और बिहार टीम में चयन के लिए प्रेरित किया। सीज़न 1999-2000 के लिए उन्हें 18 साल की उम्र में बिहार की सीनियर रणजी टीम में चुना गया। बिहार अंडर-19 टीम फाइनल तक पहुँची; लेकिन ट्रॉफी नहीं जीत पायी। उन्हें सीके नायडू ट्रॉफी के लिए पूर्वी क्षेत्र अंडर-19 टीम के भी लिए चुना गया। सन् 2001 सो सन् 2003 के दौरान, धोनी पश्चिम बंगाल में दक्षिण-पूर्वी रेलवे के तहत खडग़पुर रेलवे स्टेशन पर टीटीई की नौकरी में चले गये।

धोनी ने सन् 2002 से सन् 2003 के दौरान रणजी ट्रॉफी और देवधर ट्रॉफी के लिए झारखण्ड टीम में खेलते हुए निचले क्रम के योगदान और धुरंधर बल्लेबाज़ी की शैली से अलग पहचान बनायी। दिलीप ट्रॉफी फाइनल में धोनी को पूर्वी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर दीप दासगुप्ता की जगह चुना गया था। बाद में धोनी को जिम्बाब्वे और केन्या के दौरे के लिए इंडिया ए टीम के लिए चुना गया।

हरारे स्पोर्ट्स क्लब में, जिम्बाब्वे के खिलाफ धोनी ने 7 कैंच और 4 स्टंप लिये। केन्या, भारत-ए और पाकिस्तान-ए के साथ त्रिकोणीय राष्ट्र टूर्नामेंट में धोनी ने पाकिस्तानी टीम के खिलाफ अद्र्धशतक के साथ 223 रनों के लक्ष्य का पीछा करने में भारतीय टीम की मदद की। उन्होंने 6 पारियों में 72.40 की औसत से 362 रन बनाये। उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन ने भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कप्तान सौरव गांगुली और रवि शास्त्री का ध्यान आकर्षित किया। इंडिया-ए टीम में चयन के बाद धोनी को 2004-05 में बांग्लादेश दौरे के लिए वन-डे टीम में चुना गया था। अपने पहले ही मैच में धोनी रन आउट हुए। बांग्लादेश के खिलाफ औसतन खेलने के बावजूद धोनी को पाकिस्तान के खिलाफ एक दिवसीय शृंखला के लिए चुना गया था। शृंखला के दूसरे मैच में धोनी ने 123 गेंदों में 148 रन बनाये और एक भारतीय विकेटकीपर का सर्वाधिक स्कोर का रिकॉर्ड बनाया।

धोनी ने श्रीलंका द्विपक्षीय वन-डे शृंखला में अक्टूबर-नवंबर, 2005 में तीसरे वन-डे में नम्बर-3 पर बल्लेबाज़ी करते हुए 145 गेंदों में नाबाद 183 रन बनाये। उन्हें मैन ऑफ द सीरीज चुना गया। दिसंबर, 2015 में धोनी को बीसीसीआई से बी-ग्रेड अनुबन्ध मिला। पाकिस्तान के खिलाफ एक शृंखला में धोनी ने तीसरे मैच में 46 गेंदों पर 72 रन बनाये, जिससे भारत 2-1 से आगे रहा। अंतिम मैच में धोनी ने 56 गेंदों पर 77 रन बनाये, जिससे भारत 4-1 से शृंखला जीतने में सफल रहा। 20 अप्रैल, 2006 को उन्होंने रिकी पोंटिंग को दरकिनार करते हुए आईसीसी ओडीआई रैंकिंग में नम्बर-1 बल्लेबाज़ के रूप में स्थान दिया गया।

भारत 2007 क्रिकेट विश्व कप से जल्दी ही बाहर हो गया और धोनी बांग्लादेश और श्रीलंका के खिलाफ मैचों में बाहर हो गये। उनके घर को जेएमएम के कार्यकर्ताओं ने तोड़ दिया। पहले दौर में भारत के विश्व कप से बाहर होने के बाद धोनी के परिवार को पुलिस सुरक्षा प्रदान की गयी। धोनी को दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के खिलाफ शृंखला के लिए एक दिवसीय टीम का उप-कप्तान नामित किया गया था। जून, 2007 में, धोनी को बीसीसीआई से ‘ए ग्रेड’ अनुबन्ध मिला। सितंबर, 2007 में विश्व ट्वेंटी-20 मैचों के लिए धोनी को भारतीय टीम के कप्तान के रूप में चुना गया था। सितंबर, 2007 में धोनी ने अपने आदर्श एडम गिलक्रिस्ट के साथ एक रिकॉर्ड साझा किया, जो एक दिवसीय में एक पारी में सबसे अधिक विकेट लेने का था। सन् 2009 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुई सीरीज के दौरान धोनी ने दूसरे वन-डे में 107 गेंदों पर 124 रन और तीसरे वन-डे में 95 गेंदों पर 71 रन बनाये। 30 सितंबर, 2009 को धोनी ने चैंपियंस ट्रॉफी में वेस्टइंडीज के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपना पहला विकेट लिया। सन् 2009 में उन्होंने आईसीसी ओडीआई बल्लेबाज़ रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया।

सन् 2011 में धोनी ने क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया पर जीत और फाइनल में पाकिस्तान पर जीत दर्ज कर भारत को फाइनल में पहुँचाया था। धोनी ने गौतम गम्भीर और युवराज सिंह के साथ फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ 275 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत को जीत दिलायी। धोनी ने 91 नाबाद के स्कोर के साथ एक ऐतिहासिक छक्के के साथ मैच समाप्त किया। 2011 क्रिकेट विश्व कप में शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें मैन ऑफ द मैच पुरस्कार मिला। सन् 2012 में विश्व कप जीतने के बाद पाकिस्तान ने पाँच साल में पहली बार द्विपक्षीय शृंखला के लिए भारत का दौरा किया, जिसे भारत 1-2 से सीरीज हार गया। सन् 2013 में भारत ने आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी जीती और धोनी आईसीसी ट्रॉफी का दावा करने वाले क्रिकेट के इतिहास में पहले और एकमात्र कप्तान बन गये। इसी साल वह सचिन तेंदुलकर के बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1,000 या उससे अधिक वन-डे रन बनाने वाले दूसरे भारतीय बल्लेबाज़ बन गये।

सन् 2013-14 के दौरान भारत ने दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड का दौरा किया; लेकिन दोनों सीरीज हार गये। सन् 2014 में भारत ने इंग्लैंड में 3-1 से और वेस्टइंडीज के खिलाफ 2-1 से भारत में एक दिवसीय शृंखला जीती। सन् 2015 क्रिकेट विश्व कप के दौरान धोनी इस तरह के टूर्नामेंट में सभी रूप स्टेज मैच जीतने वाले पहले भारतीय कप्तान बने। सन् 2015 के क्रिकेट विश्व कप में शानदार शुरुआत के बावजूद भारत उस वर्ष के चैंपियंस ऑस्ट्रेलिया से मैच हार गया।

जनवरी, 2017 में धोनी ने सीमित ओवरों के सभी प्रारूपों में भारतीय टीम के कप्तान के पद से इस्तीफा दे दिया। इंग्लैंड के खिलाफ एक दिवसीय घरेलू शृंखला में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया और सन् 2017 की चैंपियंस ट्रॉफी में टीम ऑफ द टूर्नामेंट के विकेटकीपर के रूप में नामित किया गया। अगस्त, 2017 में श्रीलंका के खिलाफ वन-डे के दौरान वह 100 स्टंपिंग करने वाले पहले विकेटकीपर बने।

श्रीलंका के खिलाफ एक दिवसीय मैच में उनके शानदार प्रदर्शन के बाद धोनी ने दिनेश कार्तिक को भारतीय टीम के टेस्ट विकेट कीपर के रूप में प्रतिस्थापित किया। अपने डेब्यू मैच में, जो बारिश से प्रभावित था, धोनी ने 30 रन बनाये। जनवरी-फरवरी, 2006 के दौरान, भारत ने पाकिस्तान का दौरा किया और धोनी ने फैसलाबाद में 93 गेंदों पर अपना पहला शतक बनाया। सन् 2006 में वेस्टइंडीज दौरे पर उन्होंने पहले मैच में आक्रामक रूप से 69 रन बनाये; जबकि उन्होंने अपने विकेट कीपिंग कौशल में सुधार किया और 13 कैंच और 4 स्टंपिंग के साथ सीरीज समाप्त की। सन् 2009 में धोनी ने श्रीलंका के खिलाफ दो शतक बनाये और भारत को 2-0 से जीत दिलायी। इस जीत के साथ भारत ने इतिहास में पहली बार टेस्ट क्रिकेट में नम्बर-1 स्थान हासिल किया। सन् 2014-15 के सीज़न में धोनी ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपनी आखरी टेस्ट शृंखला खेली और दूसरे और तीसरे टेस्ट मैच में कप्तानी की। मेलबर्न में तीसरे टेस्ट के बाद धोनी ने टेस्ट प्रारूप से संन्यास की घोषणा की। अपने आखरी टेस्ट मैच में धोनी ने नौ विकेट झटके और सभी प्रारूपों में 134 के साथ स्टंपिंग के लिए कुमार संगकारा के रिकॉर्ड को तोड़ा। सन् 2006 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ धोनी भारत के पहले ट्वेंटी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैच का हिस्सा थे। अपने डेब्यू मैच में वह डक के लिए आउट हुए; लेकिन दो विकेट झटके। 12 फरवरी, 2012 को उन्होंने 44 रन बनाये, जिसके बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया पर अपनी पहली जीत हासिल की। सन् 2014 में आईसीसी ने उन्हें टी20 विश्व कप के लिए टीम ऑफ द टूर्नामेंट के कप्तान और विकेटकीपर के रूप में नामित किया।

सन् 2007 में एमएस धोनी ने अपने पहले विश्व टी20 मैच में भारत का नेतृत्व किया। उन्होंने स्कॉटलैंड के खिलाफ अपनी कप्तानी की शुरुआत की; लेकिन बारिश की वजह से मैच नहीं हो पाया। सितंबर, 2007 में उन्होंने फाइनल में पाकिस्तान पर जीत का नेतृत्व किया। सन् 2019 क्रिकेट विश्व कप में धोनी को भारतीय टीम में चुना गया था। धोनी ने दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के खिलाफ अच्छा खेला; लेकिन अफगानिस्तान और इंग्लैंड के खिलाफ स्ट्राइक रेट के लिए उनकी आलोचना की गयी। न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में धोनी ने दूसरी पारी में अद्र्धशतक बनाया; लेकिन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चरण में रन आउट हो गये। उनके आउट होने के साथ ही भारत का विश्व कप दौड़ से बाहर हो गया।

आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) के पहले सीज़न में धोनी को चेन्नई सुपर किंग्स द्वारा यूएस डॉलर 1.5 मिलियन के लिए अनुबन्धित किया गया था, जो पहले सीज़न की नीलामी में सबसे महँगा खिलाड़ी साबित हुए। उनकी कप्तानी में टीम ने सन् 2010, 2011 और 2018 में आईपीएल खिताब जीते। टीम ने सन् 2010 और सन् 2014 चैंपियंस लीग टी20 खिताब भी जीते। सन् 2016 में चेन्नई सुपर किंग्स को दो साल के लिए निलंबित कर दिया गया था और धोनी को अपनी टीम का नेतृत्व करने के लिए राइजिंग पुणे सुपरजाइंट ने अनुबन्धित किया था। हालाँकि टीम 7वें स्थान पर रही। सन् 2017 में उनकी टीम फाइनल में पहुँची; लेकिन मुम्बई इंडियंस के सामने खिताबी मैच हार गयी। सन् 2018 में चेन्नई सुपर किंग्स पर से प्रतिबन्ध हटा दिया गया और टीम आईपीएल खेलने के लिए वापस आ गयी। धोनी को फिर से इस टीम ने अनुबन्धित किया और धोनी ने टीम को तीसरा आईपीएल खिताब दिलाने के लिए नेतृत्व किया। सन् 2019 में उन्होंने फिर से सीएसके के लिए कप्तानी की और यह टीम सीज़न में सबसे मज़बूत टीमों में से एक बनकर उभरी; हालाँकि खिताब मुम्बई इंडियंस ने जीता।

बिजनेसमैन धोनी

धोनी सहारा इंडिया परिवार के साथ रांची रेज (रांची स्थित हॉकी क्लब) के सह-मालिक हैं। रांची रेज  हॉकी इंडिया लीग की एक फ्रैंचाइजी है। अभिषेक बच्चन और वीता दानी के साथ धोनी चेन्नईयिन एफसी (चेन्नई स्थित फुटबॉल क्लब) के सह-मालिक हैं। यह भारतीय सुपर लीग की एक फ्रैंचाइजी है। वह अक्किनेनी नागार्जुन के साथ सुपरस्पोर्ट वल्र्ड चैम्पियनशिप टीम माही रेसिंग टीम इंडिया के सह-मालिक हैं। इसके अलावा फरवरी, 2016 में धोनी ने अपना ब्रांड सेवेन लॉन्च किया। यह ब्रांड जूते बनाता है। धोनी इसके ब्रांड एंबेसडर भी हैं। यही नहीं, धोनी का एक प्रोडक्शन हाउस भी है, जिसका नाम धोनी एंटरटेनमेंट है। इस बैनर के तहत पहला शो एक वृत्तचित्र वेब शृंखला थी, जिसका प्रीमियर हॉटस्टार पर द रोर ऑफ द लायन के साथ किया गया था। सीरीज में एमएस धोनी मुख्य भूमिका में थे। इसके अलावा धोनी बहुत-से प्रॉडक्ट्स के लिए विज्ञापन भी करते हैं।

होगा विदाई मैच!

आमतौर पर क्रिकेट खिलाड़ी जब संन्यास लेने वाले होते हैं, तो इसका फैसला पहले ही हो जाता है। ऐसे में बीसीसीआई उनके लिए विदाई मैच का आयोजन करता है, जो उनका आखरी मैच होता है। लेकिन पूर्व कप्तान धोनी इंस्ट्राग्राम पर संदेश डालकर  अपने संन्यास का ऐलान किया, इसलिए उनका कोई विदाई मैच नहीं हो पाया। तहलका की जानकारी के मुताबिक, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड अब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने वाले पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के लिए एक फेयरवेल मैच का आयोजन करने की सोच रहा है। बोर्ड आने वाले आईपीएल के दौरान धोनी से इसके लिए बात कर सकता है, जिसके बाद इसका कार्यक्रम बनाया जाएगा। अभी फिलहाल कोई अंतर्राष्ट्रीय सीरीज नहीं है। बीसीसीआई का कहना है कि धोनी ने देश के लिए बहुत कुछ किया है और वह इस सम्मान के हकदार हैं। जब उन्होंने अपने संन्यास की घोषणा की, तो किसी ने भी इसके बारे में सोचा नहीं था। बीसीसीआई के एक अधिकारी ने हाल में कहा था कि आईपीएल के दौरान उनसे बात करेंगे और मैच या सीरीज के बारे में उनकी राय लेने के लिए यह सही जगह होगी। वैसे आईपीएल इस बार यूएई में हो रहा है।

रिकॉड्र्स के अद्भुत साल

सन् 2004 : बांग्लादेश के खिलाफ चटगाँव में दिसंबर में वन-डे सीरीज से धोनी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया।

सन् 2005 : उनके धुआँधार रन बनाने के हुनर को देखते हुए उनकी बल्लेबाज़ी क्रम में तरक्की की गयी। दूसरी पारी में उन्होंने 145 गेंद में 183 रन बनाकर इस फैसले को सही साबित कर दिया। पाँच मैचों की सीरीज में धोनी मैन ऑफ द सीरिज चुने गये।

सन् 2005 : दिसंबर में चेन्नई में श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया।

सन् 2007 : धोनी को सितंबर में राहुल द्रविड़ की जगह वन-डे क्रिकेट का कप्तान बना दिया गया।

सन् 2007 : इसी महीने धोनी ने वन-डे क्रिकेट में एक पारी में सबसे ज़्यादा शिकार के एडम गिलक्रिस्ट के अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड की बराबरी की। वह दक्षिण अफ्रीका में पहले टी20 विश्व कप में भारत के कप्तान बने। भारत ने फाइनल में धोनी के आखरी ओवर जोगिंदर शर्मा जैसे कम अनुभव वाले गेंदबाज़ को दे दिया जिनके प्रदर्शन के कारण भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया।

सन् 2008 : धोनी ने श्रीलंका में भारत को पहली द्विपक्षीय सीरीज में जीत दिलायी।

सन् 2008 : अगस्त में धोनी को राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार  मिला।

सन् 2008 : धोनी भारत के टेस्ट कप्तान बने। नागपुर में आस्ट्रेलिया के खिलाफ चौथे टेस्ट में अनिल कुंबले से कप्तानी सँभाली।

सन् 2008 : धोनी आईसीसी वर्ष के सर्वश्रेष्ठ वन-डे क्रिकेटर चुने गये।

सन् 2009 : धोनी को अप्रैल में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

सन् 2009 : धोनी आईसीसी वर्ष के सर्वश्रेष्ठ वन-डे क्रिकेटर का पुरस्कार लगातार दो बार जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन गये।

सन् 2010 : धोनी की कप्तानी में चेन्नई सुपर किंग्स ने आईपीएल जीता।

सन् 2010 : धोनी ने 4 जुलाई को साक्षी सिंह रावत से शादी की। अपनी शादी के समय साक्षी प्रशिक्षु के रूप में कोलकाता के ताज में एक होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही थीं। साक्षी से उनकी एक बेटी ज़ीवा (जन्म 6 फरवरी, 2015) है।

सन् 2011 : धोनी ने श्रीलंका के खिलाफ विश्व कप फाइनल में 91 रन की नाबाद पारी खेलकर 28 साल बाद भारत की झोली में विश्व कप डाला।

सन् 2011 : धोनी को क्रिकेट में उनके योगदान के लिए भारतीय प्रादेशिक सेना में लेफ्टिनेंट-कर्नल की मानद रैंक प्रदान की गयी थी। अगस्त, 2019 में उन्होंने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में सेना के साथ दो सप्ताह का कार्यकाल पूरा किया।

सन् 2013 : धोनी ने  बतौर कप्तान 49 टेस्ट में 21वीं जीत दर्ज करके सौरव गांगुली का रिकॉर्ड तोड़कर भारत के सफल टेस्ट कप्तान बन गये।

सन् 2013 : भारत ने धोनी की कप्तानी में आईसीसी चैम्पियंस ट्राफी जीती।

सन् 2013 : धोनी ने टेस्ट क्रिकेट में पहला और इकलौता दोहरा शतक बनाया।

सन् 2018 : धोनी को पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।

धोनी के रिकॉर्ड

टेस्ट मैच : महेंद्र सिंह धोनी ने 90 टेस्ट मैचों में 4876 रन बनाये हैं; जिसमें उन्होंने 6 शतक के अलावा एक दोहरा शतक बनाने साथ-साथ 33 अद्र्धशतक भी बनाये। टेस्ट मैच में उनका उच्चतम स्कोर 224 रन है। संन्यास।

वन-डे : वन-डे करियर की बात करें, तो धोनी ने 350 वन-डे मैच खेले और 10,773 रन बनाये। इसमें उनके 10 शतक और 73 अद्र्धशतक हैं। वन-डे में उनका उच्चतम स्कोर 183 रन है।

टी-20 : टी-20 में धोनी ने 98 मैच खेले। इनमें उन्होंने 1617 रन बनाये। टी-20 करियर में उन्होंने सिर्फ अद्र्धशतक ही बनाये हैं। उनका उच्चतम स्कोर 56 रन है।

आईपीएल : आईपीएल में धोनी ने अब तक 190 मैच खेले हैं और 4432 रन बनाये हैं। उन्होंने 23 अद्र्धशतक बनाये हैं। आईपीएल में उनका अब तक उच्चतम स्कोर 84 रन है। धोनी अभी आईपीएल में खेलते रहेंगे।

बतौर कप्तान : धोनी की कप्तानी में भारत ने 2007 में पहला टी-20 वल्र्ड कप जीता था। इसके बाद 2011 में 50 ओवर वल्र्ड कप और 2013 में चैम्पियंस ट्रॉफी जीती थी। भारत ने साथ ही 2010 और 2016 का एशिया कप भी धोनी की कप्तानी में जीता था।

क्या राजनीति में आएँगे धोनी!

धोनी ने कभी यह संकेत नहीं किया कि राजनीति में उनकी कोई भी दिलचस्पी है। हाँ, वह यह ज़रूर कहते हैं कि उन्हें अपने राज्य झारखण्ड से बहुत प्यार है और वह इसके विकास और खुशहाली की हमेशा कामना करते हैं। तो फिर धोनी के राजनीति में आने का सवाल ही कहाँ उठता है। लेकिन इसके बावजूद धोनी के राजनीति में आने की सम्भावना को खारिज भी नहीं किया जा सकता। इस सोच के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उन्हें उनके संन्यास के बाद लिखा पत्र है। यह पत्र बहुत आत्मीय होते हुए भी राजनीतिक है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता। वैसे प्रधानमंत्री ने सुरेश रैना को भी ऐसा ही पत्र लिखा; लेकिन बहुत-से जानकार धोनी को लिखे उनके पत्र को संकेतात्मक देखते हैं।

बहुत-से क्रिकेटर राजनीति में आये हैं, जिनमें दिवंगत चेतन चौहान (भाजपा), कीर्ति आज़ाद (कांग्रेस), मोहम्मद अजहरुद्दीन (कांग्रेस), नवजोत सिंह सिद्धू (कांग्रेस), गौतम गम्भीर (भाजपा) शामिल हैं। यही नहीं, सचिन तेंदुलकर को भी उनके संन्यास के बाद राहुल गाँधी के सुझाव पर कांग्रेस ने राज्य सभा के लिए मनोनीत किया था। उनके अलावा रायवर्धन सिंह राठौड़ (भाजपा), लक्ष्मी रतन शुक्ल (टीएमसी), एस श्रीसंथ (भाजपा), मोहम्मद कैफ (कांग्रेस),  पूर्व हॉकी कप्तान दिलीप टिर्की ओडिशा से राज्यसभा सदस्य रहे, छ: बार की विश्व चैम्पियन एमसी मेरीकॉम भी राज्यसभा सदस्य रही हैं। क्रिकेटर रविंद्र जडेजा की पत्नी रीवा सोलंकी ने भाजपा की सदस्यता ली है। मशहूर फुटबॉलर बाईचुंग भूटिया 2014 में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार रहे। पूर्व राष्ट्रीय तैराकी चैम्पियन और अभिनेत्री नफीसा अली 2004 में कांग्रेस और 2009 में सपा की उम्मीदवार रहीं; हालाँकि दोनों बार हार गयीं। वैसे अभी यह मालूम ही नहीं कि धोनी राजनीतिक रूप से किस विचारधारा के करीब हैं; लेकिन इसके बावजूद बहुत-से ऐसे लोग हैं, जो मानते हैं कि थिंकर होने के कारण धोनी राजनीति में जम सकते हैं। यदि प्रधानमंत्री की धोनी को लिखी चिट्ठी को कोई संकेत माना जाए, तो झारखण्ड में वैसे तो भाजपा के पास धुरंधर नेता हैं; लेकिन यदि युवा धोनी राजनीति में आने की सोचते हैं, तो भाजपा के लिए बड़ा चेहरा हो सकते हैं। क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी का उन्हें लिखा पत्र संकेतों से भरा लगता है।   प्रधानमंत्री की चिट्ठी में लिखा कि धोनी के नाम को सिर्फ क्रिकेट में उनके आँकड़ों या फिर मैच जिताने वाली पारियों के लिए ही याद रखना सही नहीं है। धोनी को सिर्फ एक खिलाड़ी के तौर पर याद करना, उनके साथ अयाय है। धोनी को सही तरीके से तभी समझा जा सकता है, जब देश पर उनके असर को समझा जाए; क्योंकि यह असर बहुत ही असाधारण है। प्रधानमंत्री ने लिखा कि धोनी एक छोटे से शहर के साधारण परिवार में पले-बढ़े और वहाँ से उठकर राष्ट्रीय स्तर पर चमके। उन्होंने अपने दम पर अपना नाम किया और देश को गर्व महसूस कराया। धोनी की कामयाबी और व्यवहार, देश के उन करोड़ों युवाओं को ताकत और प्रेरणा देता है, जो धोनी की तरह ही, न तो बड़े-बड़े स्कूलों या कॉलेजों में पढ़े, और न ही किसी बड़े परिवार में उन्होंने जन्म लिया। इन युवाओं में इतनी प्रतिभा है कि वे सर्वोच स्तर तक अपनी पहचान बना सकें यानी अब देश के युवा को परिवारवाद से घबराने की ज़रूरत नहीं है। मोदी ने यह भी लिखा कि धोनी नये भारत के ज•बे का प्रतीक हैं। नया भारत मोदी का ही स्लोगन का नारा है। प्रधानमंत्री ने यह भी लिखा कि धोनी मैच के दौरान खतरे उठाते थे, कभी हिम्मत नहीं हारते थे, धोनी खुद पर कभी नियंत्रण नहीं खोते, निजी ज़िन्दगी और अपने काम के बीच संतुलन बनाने की कला में माहिर, देशभक्ति और सेना के प्रति उनका लगाव एक बेहतर उदाहरण हैं। धोनी ने भी प्रधानमंत्री को उनके पत्र के लिए धन्यवाद किया। प्रधानमंत्री मोदी के इस पत्र को यूँ ही खारिज नहीं किया जा सकता। इसमें राजनीति से संदर्भ सीधे न कहते हुए भी बहुत खूबी से जोड़े गये हैं। हालाँकि देखना होगा कि भविष्य में क्या धोनी सचमुच राजनीति का रास्ता चुनते हैं, या नहीं!

बेहतर के हकदार थे सुरेश रैना

सुरेश रैना पिछले कुछ महीनों से जैसी तैयारी कर रहे थे, उससे साफ लगता था कि वह भारतीय टीम में वापसी के लिए प्रतिबद्ध थे। अपने ट्वीट् और सोशल मीडिया पोस्ट्स में भी वह अभ्यास की तस्वीरें लगातार पोस्ट कर रहे थे। लेकिन 15 अगस्त को पूर्व कप्तान एमएस धोनी की संन्यास की घोषणा के कुछ ही देर बाद रैना ने भी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का ऐलान कर दिया। संन्यास का रैना का फैसला निश्चित ही उनका व्यक्तिगत फैसला है, लेकिन यह भी सच है रैना को जो मिला, संभवत: वह उससे बेहतर के हकदार थे।

यदि भारत के बायें हाथ के खिलाडिय़ों की बात की जाए तो इसमें कोई शक नहीं कि वह सबसे बेहतरीन में से एक थे। यह भी एक संयोग ही कहा जाएगा कि रैना ने जिस कप्तान के साथ अपनी ज़्यादा क्रिकेट खेली, उसी कप्तान (धोनी) के साथ उन्होंने संन्यास घोषणा की। यह दोनों ऑफ फील्ड भी गहरे दोस्त हैं। सुरेश रैना अभी महज़ 33 साल के हैं, और निश्चित ही भारतीय टीम में वापसी का अभी उनके पास समय था। क्रिकेट के तीनों फार्मेट में शतक उनकी प्रतिभा को साबित करता है।

रैना के करियर पर नज़र डालें, तो साफ होता है कि वह एक बेहतरीन खिलाड़ी थे। उन्होंने अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर की शुरुआत साल, 2005 में श्रीलंका के खिलाफ की थी। उन्होंने भारत के लिए 16 ही टेस्ट खेले, जो उनकी प्रतिभा से मेल नहीं खाते। हालाँकि रैना ने 226 वन-डे खेले। यही नहीं उन्होंने 78 टी20 मैचों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।

करीब 15 साल चले करियर में  रैना ने भारत को कई मौकों पर अपनी क्रिकेट से संबल प्रदान किया। करियर के दौरान रैना ने कई ऐसी पारियाँ खेली जो काफी रोमांचित करने वाली रहीं। इस अंतराल में उन्होंने कुछ शानदार रिकॉड्र्स अपने नाम किये जिनकी वजह से वो हमेशा याद किये जाएँगे।

बता दें सुरेश रैना भारत की तरफ से क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज़ थे। उन्होंने वन-डे में अपना पहला शतक हांगकांग के खिलाफ लगाया था, तो वहीं उन्होंने अपना पहला टेस्ट शतक श्रीलंका के खिलाफ बनाया। उन्होंने 2010 के टी20 वल्र्ड कप के दौरान क्रिकेट के सबसे छोटे प्रारूप में अपना पहला शतक साउथ अफ्रीका के खिलाफ लगाया था। वह भारत की तरफ से टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट में शतक लगाने वाले पहले खिलाड़ी बने थे, जबकि दुनिया में वह ऐसा करने वाले सिर्फ तीसरे खिलाड़ी थे।

रैना ने टेस्ट मैच सिर्फ 16 ही खेले।  हालाँकि उनकी टेस्ट की शुरुआत बहुत धमाकेदार रही थी। उनकी बल्लेबाज़ी से लगता था कि वह टेस्ट टीम में स्थायी जगह बना लेंगे; लेकिन ऐसा हुआ नहीं। रैना ने अपने डेब्यू टेस्ट मैच में ही शतक लगाया था और वह भारत की तरफ से 12वें ऐसे खिलाड़ी बने, जिन्होंने डेब्यू टेस्ट में ही शतक लगाया था। रैना ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत तो काफी शानदार की थी; लेकिन वो ज़्यादा टेस्ट मैच भारत के लिए नहीं खेल पाये थे। उन्होंने अपने पूरे टेस्ट करियर में 768 रन ही बनाये।

यदि रैना के कुछ और रिकॉर्ड्स पर नज़र डालें तो वह टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट में नम्बर तीन की पोजीशन पर बल्लेबाज़ी करते हुए शतक लगाने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी बने थे। यही नहीं वो टी20 वल्र्ड कप के इतिहास में ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी बने थे। रैना भारत की तरफ से एकमात्र ऐसे बल्लेबाज़ हैं, जिन्होंने टी20 वल्र्ड कप और वन-डे वल्र्ड कप दोनों में शतकीय पारी खेली थी। रैना के बाद अब तक कोई भारतीय बल्लेबाज़ यह कमाल नहीं कर पाया है।

वन-डे में रैना बहुत उपयोगी गेंदबाज़ भी थे। बहुत-से अहम मौकों पर उन्होंने भारत के लिए विकेट निकालकर जीत का रास्ता प्रशस्त किया। बतौर फील्डर भी रैना मैदान पर बेहद मुस्तैद रहते थे। आईपीएल में सबसे ज़्यादा कैंच लपकने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम दर्ज है। रैना ने आईपीएल के सभी सीज़न खेले हैं और कुल 102 कैंच पकड़े हैं। वन-डे में उन्होंने भारत के लिए खेलते हुए कई ज़रूरी मौकों पर लाजवाब कैंच लपके।

सुरेश रैना कितने अहम खिलाड़ी थे, यह पूर्व कप्तान और दिग्गज बल्लेबाज़ राहुल द्रविड़ के कथन से होता है। रैना द्रविड़ के शिष्य भी रहे हैं। द्रविड़ ने कहा कि डेढ़ दशक तक रैना ने भारत के सीमित ओवरों के क्रिकेट में अभूतपूर्व योगदान दिया है। द्रविड़ की कप्तानी में ही रैना ने जुलाई, 2005 में श्रीलंका के खिलाफ खेले गये वन-डे मैच से अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। बीसीसीआई ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें द्रविड़ ने कहा- ‘सुरेश रैना उन युवा प्रतिभाओं में से एक थे, जो 2004 या 2005 के आसपास प्रभावशाली तरीके से उभर रहे थे।’

गाज़ियाबाद के मुरादनगर के रहने वाले सुरेश रैना को सोनू के नाम से भी जाना जाता है। लखनऊ के गुरु गोविंद सिंह स्पोट्र्स कॉलेज और स्पोट्र्स हॉस्टल लखनऊ में अपने खेल को उन्होंने निखारा और क्रिकेट के शीर्ष पर पहुँचे। प्रथम श्रेणी और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट जगत में पदार्पण करने वाले बायें हाथ के इस बल्लेबाज़ ने अपनी शानदार पारियों ने टीम इंडिया के मध्यक्रम में अपनी जगह पक्की कर ली थी।

प्रधानमंत्री ने भी की तारीफ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को संन्यास की घोषणा करने वाले क्रिकेटर धोनी की तरह सुरेश रैना को भी चिट्ठी लिखी। इसमें रैना को बेहतर भविष्य की शुभकामनाएँ दी गयी हैं। प्रधानमंत्री ने रैना के खेल की तारीफ करते हुए उन्हें एक शानदार क्रिकेटर बताया। इसमें रैना की फील्डिग, बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी की खूब तारीफ की। मोदी ने उन्हें भावी क्रिकेटरों का प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने बताया कि अपनी प्रतिभा व कड़ी मेहनत के बूते उन्होंने मुरादनगर जैसे कस्बे से निकलकर टीम इंडिया तक सफर किया। उनका टी-20, वन-डे और टेस्ट तीनों प्रारूपों में प्रदर्शन शानदार रहा।

क्रिकेट करियर

अपने क्रिकेट करियर में सुरेश रैना ने 18 टेस्ट मैच खेले। इसमें उन्होंने एक शतक के साथ 768 रन बनाये। इसके अलावा उन्होंने टीम इंडिया के लिए 226 एक दिवसीय मैच खेले, जिनमें रैना के नाम 5 शतक दर्ज हैं। रैना ने ओडीआई क्रिकेट में 5615 रन बनाये। इसके अलावा रैना ने 78 टी-20 मुकाबलों में भारत के लिए 1604 रन बनाये, जिनमें एक शतक शामिल है।

हिन्दी दिवस विशेष: भारतीय संस्कृति के हितों की रक्षा करेगी हिन्दी की गौरवपूर्ण तरक्की

आज हमें गर्व होना चाहिए कि भारत में बोली जाने वाली अनेक भाषाओं में से निकलकर हिन्दी आज पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रही है। हालाँकि इसे पहला स्थान भले ही नहीं मिला है, लेकिन यह भी कम नहीं कि हिन्दी पूरे विश्व में एक गौरवपूर्ण स्थान पा चुकी है और गूगल पर पढ़ी जाने वाली दुनिया की पाँच सबसे खास भाषाओं में गिनी जाती है। इतना ही नहीं आज पूरे विश्व में हिन्दी पढऩे-सीखने वालों की एक बड़ी संख्या है। 14 सितंबर, 1949 को संवैधानिक रूप से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया और संविधान के अनुच्छेद-343 में यह प्रावधान किया गया है कि देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। यही वजह है कि 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मान्यता मिली है। दुनिया भर के हिन्दी प्रेमी 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते हैं। लेकिन दुख इस बात का होता है कि कुछ भारतीय लोगों ने ही इसे आज तक राजभाषा के रूप में भी स्वीकार नहीं किया है। यहाँ तक कि अनेक सरकारी कामकाजों में आज भी अंग्रेजी का इस्तेमाल अपनी ही मातृभाषा की उपेक्षा करता है।

खुशी इस बात की है कि इसके बावजूद हिन्दी लगातार समृद्ध हो रही है। इंटरनेट पर भी लगातार हिन्दी का विस्तार हो रहा है। हाल ही में किये गये एक सर्वे में पाया गया है कि भारत की 10 प्रमुख भाषाओं में केवल हिन्दी बोलने वालों की संख्या बढ़ी है और बीते चार दशक में हिन्दी बोलने वालों की संख्या में 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में करीब 46 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलने, लिखने-पढऩे या समझने में सक्षम हैं। 2011 की जनगणना में पाया गया था कि उस समय की भारत के 120 करोड़ में से करीब 41.03 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिन्दी थी। हाल के कुछ सर्वे बताते हैं कि इसमें पहले से काफी इज़ाफा हुआ है। हाल ही एक सर्वे में सामने आया है कि पिछले 10 साल में 10 करोड़ हिन्दी भाषी बढ़े हैं। वहीं इन वर्षों में बाकी भारतीय भाषाओं के बोलने वालों की संख्या कम होती दिखी है। इसके अतिरिक्त पिछले 20 वर्षों में हिन्दी निदेशालय के सरकारी हिन्दी शब्दकोष में हिन्दी के शब्दों की संख्या साढ़े सात गुना बढ़ गये हैं, जिससे इस शब्दकोष में 1.5 लाख शब्द हो गये हैं, जो पहले 20000 थे। इसी अगस्त महीने में वेबसाइट वेबदुनिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हिन्दी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा का गौरव प्राप्त कर चुकी है। यह इसलिए भी गौरव की बात है कि हिन्दी भारत की अनेक भाषाओं में बोली जाने वाली भाषा है और अपने शुद्ध व्याकरण के कारण इसकी लोकप्रियता बढ़ी है। हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए, तो देश के लगभग 75 फीसदी लोग हिन्दी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 फीसदी हिन्दी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो इसे बोल या समझ सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार बढ़ते वैश्वीकरण और विश्व में भारत की बढ़ती पहचान और बढ़ते व्यापारिक रिश्तों के कारण पिछले कुछ वर्षों में विश्व के लोगों में हिन्दी के प्रति काफी रुचि बढ़ी है।

दक्षिण भारत में बढ़े हिन्दी भाषी

दक्षिण भारतीयों के बारे में कहा जाता रहा है कि वे हिन्दी और हिन्दी भाषियों से नफरत करते हैं। वहाँ कुछ साल पहले तक हिन्दी भाषियों से अभद्र व्यवहार करने की कई घटनाएँ भी सामने आयीं। लेकिन हिन्दी की व्याकरण क्षमता और हिन्दी की आवश्यकता ने अधिकतर दक्षिण भारतीयों को हिन्दी सीखने की ओर अग्रसर किया। आज दक्षिण भारत में हिन्दी सीखने वालों की ही नहीं, हिन्दी बोलने वालों की, यहाँ तक कि हिन्दी की परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। 2019 में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा द्वारा आयोजित हिन्दी परीक्षा में बैठने वाले लोगों की संख्या करीब छ: लाख थी। पिछले पाँच वर्षों में दक्षिण भारत में हिन्दी परीक्षा में शामिल होने वालों की संख्या करीब 22 फीसदी बढ़ी है।

विदेशियों का बढ़ता हिन्दी प्रेम

एक समय था जब भारत के ही अहिन्दी भाषी राज्यों में ही हिन्दी का जमकर विरोध हो रहा था। लेकिन अब हिन्दी भारत के अधिकतर राज्यों में बोली जाती है। जहाँ के लोग अभी भी हिन्दी नहीं बोल पाते, वे इसे समझने लगे हैं और उनमें काफी लोग हिन्दी सीखने में रुचि दिखाने लगे हैं। इससे भी अच्छी बात यह है कि हिन्दी को अब न केवल भारत के पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, मॉरिशस, श्रीलंका, पाकिस्तान, चीन में काफी संख्या में लोग बोलते हैं, बल्कि इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, फीजी, यूगांडा, रूस, जर्मनी, जापान, मध्य एशिया, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और दुबई आदि में बोलने वालों की संख्या अच्छी-खासी है। एक और गौरव की बात यह है कि यूनेस्को की सात भाषाओं में हिन्दी भी शामिल है। हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन अभी भारत सरकार को इस ओर और अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है। दुनिया भर के लोगों में हिन्दी के प्रति बढ़ती रुचि का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में दुनिया के 176 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ायी जा रही है और विभिन्न देशों के 91 विश्वविद्यालयों में हिन्दी चेयर हैं।

कुछ साल पहले किये गये एक सर्वे के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में 8,63,077 लोग, दक्षिण अफ्रीका में 8,90,292 लोग, यमन में 2,32,760 लोग, युगांडा में 1,47,000 लोग, जर्मनी में 30,000 लोग, सिंगापुर में 5,000 लोग हिन्दी बोल-समझ सकते हैं। वहीं भारत के पड़ोसी देशों- मॉरीशस में 6,85,170 और नेपाल में 8,00000 लोगों को हिन्दी आती है। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, बर्मा, म्यांमार, श्रीलंका में भी हिन्दी बोलने वालों की काफी संख्या है।

दुनिया भर में बोली और पढ़ी जाने वाली भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित होने वाले एथनोलॉग के 2017 के संस्करण में पाँच करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली-पढ़ी जाने वाली 28 भाषाओं पर सर्वे किया गया था। इस सर्वे में पाया गया कि 2017 में विश्व में हिन्दी भाषी 70 करोड़ से अधिक थे। तब यह दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा थी, लेकिन अब दूसरे स्थान की ओर बढ़ रही है। वहीं उस समय अंग्रेजी 112 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने के कारण पहले स्थान पर थी, जो अब भी पहले ही स्थान पर है। इसके अलावा चीन की भाषा मेंडरिन करीब 110 करोड़ लोगों के बीच बोली-पढ़ी जाने वाली दूसरे नम्बर की भाषा थी। अब हिन्दी इसका मुकाबला कर रही है। इस सर्वे के अनुसार उस समय स्पैनिश को 51.29 करोड़ और अरबी को 42.2 करोड़ लोगों द्वारा बोला-पढ़ा जा रहा था। हिन्दी बोलने, पढऩे, जानने और समझने में रुचि रखने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दुनिया भर की वेबसाइट्स भी हिन्दी को प्राथमिकता दे रही हैं। इन साइट्स में गूगल पहले स्थान पर है। इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल व आईबीएम जैसी कंपनियाँ अत्यंत व्यापक बाज़ार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिन्दी के उपयोग को बढ़ावा दे रही हैं। इसके अलावा फेसबुक, ट्विटर और इंटरटेनमेंट वाली साइट्स पर हिन्दी को जमकर बढ़ावा मिल रहा है। इन दिनों विदेशों में हिन्दी में प्रकाशित होने वाले 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ हैं, जिनमें बीबीसी लंदन, जर्मनी के डायचे वेले, जापान के एनएचके वल्र्ड हैं। यही नहीं पूरी दुनिया में अनेक हिन्दी के टीवी-रेडियो चैनल भी हैं। यूएई के हम एफ-एम और चीन के चाइना इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा विशेष इनमें उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा अमेरिका के 32 विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में आज हिन्दी पढ़ायी जाती है। ब्रिटेन की लंदन यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और यॉर्क यूनिवर्सिटी में हिन्दी पढ़ायी जाती है। पिछले समय में ही जर्मनी के 15 शिक्षण संस्थानों ने हिन्दी भाषा और साहित्य के अध्ययन अपनाया है। यहाँ के कई संगठन हिन्दी का प्रचार भी करते हैं। चीन में 1942 में हिन्दी अध्ययन शुरू हुआ और 1957 में हिन्दी रचनाओं का चीन की भाषा में अनुवाद शुरू हुआ। इतना ही नहीं, दुनिया की अन्य भाषाओं के शब्दकोषों में हिन्दी भाषा के शब्दों को शामिल किया जा रहा है, जिसमें ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हिन्दी के हज़ारों शब्दों को शामिल किया जाना गौरव की बात है। बड़ी बात यह है कि दक्षिण प्रशान्त फिजी में हिन्दी को आधाकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। इसे फिजियन हिन्दी या फिजियन हिन्दुस्तानी भी कहते हैं, जिसमें अवधी, भोजपुरी व अन्य भारतीय भाषाओं के समावेश वाली हिन्दी है।

तकनीकी प्रयोग में बढ़ी हिन्दी

एक सर्वे के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी की अध्ययन सामग्री की माँग लगभग 94 फीसदी बढ़ गयी है। आज हर पाँचवें व्यक्ति में से एक हिन्दी में इंटरनेट का उपयोग करता है। यह तकनीक के कारण संभव हो पाया है। यहाँ तक कि दुनिया के अधिकतर एप हिन्दी में लिखने-पढऩे की सुविधा दे रहे हैं, जिनमें फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर और अन्य कई लोकप्रिय एप शामिल हैं। इसके अलावा आज गूगल हिन्दी इनपुट, लिपिक डॉट इन जैसे अनेक सॉफ्टवेयर और स्मार्टफोन एप्लीकेशन्स मौजूद हैं। हिन्दी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद ने भी हिन्दी सीखने में रुचि रखने वालों की काफी मदद की है। इसके अलावा यू-ट्यूब ने हिन्दी सीखने वालों को काफी फायदा पहुँचाया है।

इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होगी हिन्दी

हाल फिहलाल में किये गये एक सर्वे में पाया गया कि इंटरनेट में हिन्दी का इस्तेमाल करने वालों की संख्या सबसे तेज़ गति (94 फीसदी की दर) से बढ़ रही है। वहीं अंग्रेजी का इस्तेमाल करने वालों की संख्या केवल 19 फीसदी की गति से बढ़ रही है। इंटरनेट पर पाया गया है कि हर पाँचवां व्यक्ति हिन्दी में सर्च करता है या हिन्दी सामग्र ढूंढता है। इससे माना जा रहा है कि 2021 तक इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा (करीब 35 करोड़) लोग हिन्दी सामग्री सर्च करने वाले लोग होंगे, जबकि अंग्रेजी सामग्री सर्च करने वाले केवल 21 करोड़ लोग ही होंगे। इस हिसाब से अगले साल तक हिन्दी इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा बन जाएगी।

बॉलीवुड और हिन्दी साहित्य का बड़ा योगदान

दुनिया भर के लोगों की रुचि हिन्दी में बढ़ाने में बॉलीवुड का बड़ा योगदान है। आज पूरी दुनिया में बॉलीवुड फिल्मों का अपना एक विशेष स्थान है। एक सर्वे में पाया गया है कि हिन्दी फिल्मों के अलावा हिन्दी गानों के शौकीनों की दुनिया में बहुत बड़ी संख्या है। वर्षों से विदेशों में हिन्दी गानों की महफिलें खूब सजती रही हैं, जिनमें पुराने गानों की बेहद माँग रहती है। इसके अलावा हिन्दी साहित्य का भी विदेशियों की हिन्दी में रुचि बढ़ाने में विशेष योगदान रहा है। कई पुराने लेखकों की लिखी कृतियों का अनुवाद दुनिया की अनेक भाषाओं में हो चुका है।

कुछ भारतीयों ने ही किया हिन्दी का नुकसान

आज के आज़ाद भारत में भी बहुत से भारतीय अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं। जिस समय भारत को अंग्रेजी शासन से आज़ादी मिली थी, उस समय सभी सरकारी कार्य अंग्रेजी में होते थे। अदालतों, थानों आदि में कुछ हद तक अरबी, फारसी और उर्दू का इस्तेमाल होता था, लेकिन मुख्य रूप से अंग्रेजी ही हावी थी। हिन्दी को राष्ट्रभाषा दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे राजेन्द्र सिंहा के 50वें जन्मदिन पर इसे राजभाषा का दर्जा देने पर सहमित बनी। जब संविधान लागू हुआ, तो उसके अनुच्छेद-343 (1) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। वहीं अनुच्छेद-343 (2) में यह व्यवस्था की गयी कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि मतलब 1965 तक हर सरकारी कामकाज अंग्रेजी में ही होगा और उसके बाद हिन्दी भाषा का इस्तेमाल प्रशासनिक कार्यों के लिए किया जा सकेगा। अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान लागू होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्षों के बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे, जिसमें संघ आयोग सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाये जाने के बारे में राष्ट्रपति से सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खंड-4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गयी। संविधान के अनुच्छेद 120 में कहा गया है कि संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है।

लेकिन 1965 के बाद जब सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग की बात छिड़ी, तो कुछ अंग्रेजीदाँ लोग अड़ गये और उन्होंने हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा नहीं बनने दिया। इसकी वजह यह भी रही कि अनुच्छेद-334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। फिलहाल अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भारत में सरकारी कामकाज में इस्तेमाल होती हैं, लेकिन अंग्रेजी के पक्षधर हिन्दी को पूर्णत: लागू नहीं होने देते। हालाँकि 26 जनवरी 1965 को संसद में जब सभी सरकारी कार्यों में हिन्दी का उपयोग किये जाने का जब विरोध हुआ, तो अंग्रेजी का भी पुरज़ोर विरोध हुआ। लेकिन कुछ राज्यों में हिन्दी न जानने वालों की असमर्थता का बहाना बनाकर अंग्रेजी को लागू रहने दिया गया, जो आज भी जारी है। फिर 1967 में संसद में भाषा संशोधन विधेयक लाया गया, जिसमें अंग्रेजी को अनिवार्य कर दिया गया। दु:खद यह रहा कि इस विधेयक में धारा-3(1) में हिन्दी की चर्चा तक नहीं की गयी।

हिन्दी में बिगाड़

कुछ भारतीय ही अब हिन्दी में बिगाड़ करने पर आमादा हैं। ऐसे लोगों में या तो वे हैं, जिन्हें हिन्दी ठीक से नहीं आती, या वे जो आधुनिक हिन्दी के पक्षधर हैं या फिर वे जो रोमन लिपि को हिन्दी की लेखनी में शामिल करने के पक्षधर हैं और हिंग्लिश को प्राथमिकता देने पर तुले हैं। पर यह लोग यह नहीं जानते कि किसी भी भाषा का अपना एक व्याकरण होता है, उससे तनिक भी इधर-उधर होने से भाषा में सुधार नहीं, बल्कि बिगाड़ ही पैदा होता है। एक सर्वे में पाया गया है कि हिन्दी भाषी भारतीयों में 80 फीसदी की हिन्दी ठीक नहीं है। इतना ही नहीं, हिन्दी भाषी राज्यों के अधिकतर विद्यार्थी हिन्दी को रुचि से नहीं पढ़ते, उन्हें लगता है कि यह तो आसान भाषा है, इसे क्या पढऩा, जबकि हिन्दी दुनिया की सबसे कठिन 23 भाषाओं में से एक है। वहीं, अधिकतर भारतीय यह सोचकर हिन्दी को व्याकरण के आधार पर नहीं सीखते, क्योंकि वे इसे आसानी से बोल, पढ़ और लिख लेते हैं। इससे उनकी भाषा हमेशा अशुद्ध रहती है।

क्या कहते हैं विद्वान

हिन्दी के विद्वानों का कहना है कि हिन्दी व्याकरण की दृष्टि से बहुत शुद्ध है। इसके अक्षरों को भी उच्चारण के हिसाब से स्थान दिया गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर श्रीराम शर्मा कहते हैं कि हिन्दी को जितना सरल मानकर लोग इसकी अवहेलना करते हैं, यह उतनी सरल है नहीं। इस भाषा के पास अपने शब्दों का बड़ा भण्डार है और अपनी एक विशुद्ध पहचान। आज हिन्दी अपने दम पर दुनिया भर में परचम लहरा रही है। महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में नियुक्त हिन्दी प्राध्यापक डॉ. उपाध्याय कहते हैं कि हिन्दी एक भाषा ही नहीं, एक संस्कृति है, जिसमें प्रवेश करने के बाद रुचिकर ज्ञान का पूरा का पूरा समुद्र है। हिन्दी को जितना अधिक पढ़ा जाए, इसमें उतनी ही अधिक रुचि पैदा होती जाती है। हिन्दी के शोध छात्र लवकुश कहते हैं कि हिन्दी में गणित और विज्ञान से कम मेहनत नहीं है। यहाँ के लोगों को हिन्दी इसलिए सरल लगती है, क्योंकि वे इसे पढऩा और बोलना जानते हैं। जो इसका अध्ययन करना शुरू करता है, उसे इसके कठिन होने का अनुमान सहज ही हो जाता है।

कुल मिलाकर व्याकरण की शुद्धि से परिपूर्ण हिन्दी अपने में तमाम सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्त्व को समेटे हुए है, जिसके चलते अब विश्व में लगातार हिन्दी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। देश-विदेश में इसे जानने-समझने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इंटरनेट के इस आधुनिक युग में हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने में नयी ऊँचाइयाँ प्रदान की हैं और दूसरी भाषाओं के लोगों तक इसे आसानी से पहुँचाया है। इसके आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले 50 वर्षों में हिन्दी विश्व की सबसे लोकप्रिय भाषाओं में अधिकतर लोगों की प्रिय भाषा हो सकती है।

भारत में मोबाइल फोन क्रान्ति का लोगों के जीवन पर प्रभाव

उत्तर आधुनिक युग की मुख्य पूँजी संचार क्रान्ति है। इससे न केवल मोबाइल फोन पर बात करने में सहायता मिली, बल्कि इसने व्यक्ति के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। एक ओर जहाँ यह सिलसिला 1995 में सूचना तंत्र द्वारा शुरू हुआ था, वहीं दूसरी तरफ इसमें दिन-प्रतिदिन नये फीचर्स वाले बदलाव होने से व्यक्ति के दृष्टिकोण में भी विकास हुआ।

भारत में पहली मोबाइल फोन कॉल को पूरे 25 साल हो गये हैं। 31 जुलाई, 1995 में शुरू हुई यह सेवा पीसीओ से लेकर आज भारत में करोड़ों लोगों तक पहुँच गयी है। सर्वप्रथम इसका उपयोग पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने किया; उन्हें दिल्ली स्थित टेलिकम्युनिकेशंस विभाग में उस समय के केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम से पहली बार मोबाइल फोन कॉल कर बात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

यह कॉल कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से दिल्ली स्थित संचार भवन में कनेक्ट की गयी थी और इस कॉल को मोदी टेलस्ट्रा मोबाइल नेट सर्विस के द्वारा किया गया था। इस पहली कॉल की उपलब्धि को तब एक क्रान्ति के रूप में देखा गया था।

मोबाइल फोन पर बात करने का सिलसिला इन दो नेताओं के बीच से शुरू होकर आज भारत में प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँच चुका है। आज के समय में मोबाइल हर व्यक्ति के जीवन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है, अर्थात् कई व्यक्ति तो अपने पास एक से अधिक फोन रखते हैं।

आज भारत में टेलीकॉम सेक्टर की स्थिति बहुत मज़बूत है। भारत की 70 फीसदी आबादी मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रही है। लोगों के बीच मोबाइल फॉनस ने तेज़ी से जगह बनायी है। अर्थात् लोगों का बातचीत करने का तरीका भी पूरी तरह से बदल गया है।

मोबाइल नेटवर्क के शुरुआती दौर में आउट गोइंग कॉल्स के साथ-साथ इनकमिंग कॉल्स के भी पैसे लगा करते थे। इसके बावजूद भी मोबाइल सब्सक्राइबर्स की संख्या 10 साल के भीतर 687.71 मिलियन हो गयी थी। इस सर्विस को लोगों तक पहुँचाने में नोकिया हैंडसेट की मदद ली गयी थी। वहीं आज तक यह संख्या तेज़ी से बढ़ती ही जा रही है।

सर्वप्रथम शुरू की गयी सर्विस तथा विभिन्न चरण

भारत में पहली बार मोबाइल सेवा सर्विस प्रदान करने वाली कम्पनी मोदी टेल्स्ट्रा ने शुरू की थीं। अर्थात् इसकी सर्विस को मोबाइल नेट नाम से जाना जाता था। पहली कॉल इसी नेटवर्क पर की गयी थी।

मोदी टेल्स्ट्रा और ऑस्ट्रेलिया की एक टेलिकॉम कम्पनी का यह एक ज्वाइंट वैंचर था।

भारत में मोदी टेल्स्ट्रा के साथ-साथ 7 ऐसी और कंपनियाँ  थीं, जिन्हें मोबाइल फोन सेवा का लाइसेंस प्रदान किया गया था।

लोगों को इस सर्विस से जोडऩे में लगने वाला अत्यधिक समय का कारण महँगे फोन कॉल टैरिफ थे। 1995-2003 इस शुरुआती दौर में प्रत्येक आउटगोइंग कॉल के लिए 16 रुपये प्रति मिनट शुल्क लगा करता था।

2004-2007 यह दूर-संचार क्रान्ति का दूसरा दौर था, जिसमें सुनने के पैसे नहीं देने पड़ते थे। लैंडलाइन पर कॉल करने की दर घटाकर 1.20 रुपये मिनट कर दी गयी थी। इस दर के बाद से ग्राहक तेज़ी से बढऩे लगे।

शुरुआत में ऑपरेटर जीएसएस तकनीक इस्तेमाल किया करते थे।

रिलायंस, टाटा टेलीसर्विसेज और इन्फोकॉम ने सीडीएमए तकनीक आधारित सेवाएँ जारी की थीं। रिलायंस इन्फोकॉम ने 2003 में सस्ते कॉल रेट्स देकर बाज़ार हलचल की थी।

इस बदलते दौर में मोबाइल फोन ने यकीनन लोगों के सोचने का नज़रिया बदल दिया है। संचार क्रांति ने आमूलचूल परिवर्तन पैदा किये है। इसने मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा, समाचार के विकेंद्रीकरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इसके द्वारा लोग विभिन्न सूचनाओं को इकट्ठा कर तार्किक पद्धति द्वारा सूचना को ज्ञान में तब्दील कर अपने दृष्टिकोण क्षमता को विकसित कर सकते हैं।

मोबाइल फोन में इंटरनेट अहम भूमिका निभा रहे हैं। आने वाले समय में और भी कई बड़े बदलाव होंगे, जिसमें लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन तकनीक के तहत 5जी संस्करण व और उन्नत संस्करण आएँगे, जो कि मोबाइल कम्युनिकेशन में इंटरनेट कॉलिंग के साथ बेहद अहम भूमिका निभाएँगे।

नुकसान पहुँचा सकता है ज़्यादा काढ़ा

आजकल कोरोना वायरस के संक्रमण बचने के लिए अधिकतर लोगों को एक ही राय रास आ रही है कि वे हर रोज़ काढ़ा बनाकर पीएँ, ताकि उन्हें संक्रमण न हो। जबसे विशेषज्ञों ने काढ़ा पीने पर सहमति जतायी है, लाखों लोग रोज़ काढ़ा पीने लगे हैं। इसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का एक अच्छा माध्यम माना जा रहा है। कुछ तो काढ़ा बनाने के मामले खुद को ही डॉक्टर समझने लगे हैं और लोगों को बिन माँगे राय दे रहे हैं। आपको ऐसे लोग आस-पड़ोस और सोशल मीडिया पर खूब मिल जाएँगे। कुछ लोग खुद को मज़बूत करने के लिए यानी रोगों से लडऩे के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जमकर काढ़ा पी रहे हैं। लेकिन हाल ही में कुछ खबरें सामने आयी हैं, जिनमें पाया गया कि अधिक काढ़ा पीने से कुछ लोग बीमार भी पड़े हैं। हाल ही में एक अखबार में प्रकाशित एक खबर में कहा गया है कि एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिक मात्रा में काढ़ा पीने से लीवर कमज़ोर होने के साथ-साथ पेट की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। लोग डॉक्टरों के पास पेट में दर्द, ऐंठन, कब्ज़ आदि की शिकायतें लेकर आ रहे हैं, इनमें बहुत से काढ़े के उपयोग के बाद ऐसी शिकायतें बता रहे हैं। आयुर्वेद में बताया गया है कि काढ़ा औषधीय गुणों वाली चीज़ों, खासकर मसालेदार चीज़ों से बनाया जाता है, जिसके अधिक उपयोग से छाती में जलन और पेट में विकार हो सकते हैं।

सोशल मीडिया पर डॉक्टरी

आजकल सोशल मीडिया हर मर्ज़ की दवा बना हुआ है। यूँ कहें कि अच्छी और सही जानकारियों के साथ-साथ यहाँ आधे-अधूरे और उल्टे-सीधे ज्ञान का भण्डार है। इसलिए सोशल मीडिया को अधकचरा ज्ञान का विश्वविद्यालय भी कहा जाने लगा है। सोशल मीडिया पर हर दूसरा आदमी ज्ञानी हो गया है या यूँ कहें कि ज्ञान दे रहा है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए बनाये जाने वाले काढ़े को लेकर भी व्हाट्स एप और फेसबुक पर ऐसी ही बहुत-सी आधे-अधूरे ज्ञान को बाँटने वाले लोगों का हुज़ूम है, बिना सोचे-समझे लोगों को काढ़ा बनाने की विधियों और उसके जमकर उपयोग की हिदायत दे रहा है। सोशल मीडिया पर काढ़ा बनाने में कुछ आम गिनीचुनी चीज़ों को पानी में डालकर गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है। जैसे- काली मिर्च, लौंग, गिलोय, नींम पत्ती, तुलसी पत्ती, दालचीनी, लहसुन और एलोवेरा आदि-आदि। लेकिन लोगों को शायद नहीं मालूम कि काढ़े भी रोगों के हिसाब से कई तरह के होते हैं, जैसे- खाँसी का काढ़ा, जुकाम का काढ़ा, बुखार का काढ़ा आदि। कोरोना वायरस के संक्रमण से लडऩे के लिए जिस काढ़े की विधि तैयार की गयी है, उसमें खाँसी, छाती की जकडऩ और बुखार में इस्तेमाल काढ़ों में उपयोग की जाने वाली चीज़ों का इस्तेमाल बताया गया है। लेकिन यह भी पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। माना जा रहा है कि इसके उपयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकती है। इसमें तुलसी पत्ते (चार से पाँच), दालचीनी (आधा इंच लम्बा और एक सेंटीमीटर चौड़ा टुकड़ा), हल्दी (दो-तीन चुटकी), लौंग (एक), अदरक (5 ग्राम), नींम पत्ते (चार-पाँच, यदि चाहें तो), गिलोय (एक इंच टुकड़ा), नमक (एक चुटकी) एक गिलास (100 से 150 ग्राम) पानी में डालकर पानी को तब तक उबालें, जब तक वह आधा न हो जाए। आधा हो जाने पर इस काढ़े को गर्म (पीने सकने के लायक) छोटे-छोटे घूँटों में सुबह पीएँ। यह एक व्यक्ति के लायक मात्रा है। इस तरह किसी को भी केवल एक बार काढ़ा पीना है। अगर कोई कोरोना संक्रमितों के बीच काम करता है, तो वह दो बार पी सकता है। याद रखें काढ़ा तभी पीएँ, जब छाती, पेट के गम्भीर रोग न हों, अथवा डॉक्टर की सलाह लें।

ऐसे ही नहीं बढ़ जाती रोग प्रतिरोधक क्षमता

लोगों को लगता है कि काढ़ा पीने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाएगी। लेकिन यह उनकी भूल है। रोग प्रतिरोधक क्षमता एक स्वस्थ व्यक्ति की ही बेहतर होती है। इसलिए अगर कोई कमज़ोर व्यक्ति यह सोचता है कि काढ़ा पीने से उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाएगी, तो यह उसकी भूल है। हो सकता है कि काढ़ा पीने से वह कोरोना या दूसरे वायरसों से कुछ देर के लिए बच सके, पर शरीर में इससे ताक़त नहीं बढ़ती। इसलिए हर रोज़ सही मात्रा में उपयोगी आहार लेते रहें। काढ़ा भी इसमें उपयोगी हो सकता है; लेकिन ताक़त के लिए अलग प्रकार के काढ़े तैयार किये जाते हैं, जो शरीर की बनावट, शरीर में लगे रोगों और शरीर की पाचन क्षमता के आधार पर तैयार किये जाते हैं। इसलिए मात्र इस काढ़े को रोग प्रतिरोधक क्षमता का सर्वोत्तम साधन न मानें, सिर्फ एक सामान्य दवा मानें।

इन दीवारों का मतलब क्या

करीब 20-25 साल पहले सॢदयों में देर शाम के समय  एक सन्त बरेली के एक गाँव में पहुँचे। सन्त क्या थे, हड्डियों का ढाँचा थे। भरी सॢदयों में शरीर पर एक पतला-सा कपड़ा, एक लँगोट और कन्धे पर लटक रही एक छोटी-सी पोटली। न पाँव में चप्पल अथवा खड़ाऊँ, न साथ में ओढऩे-बिछाने की व्यवस्था। इस गाँव में एक छोटी-सी चाय की दुकान पर एक बुज़ुर्ग थे, जो शायद दुकान बढ़ाने की तैयारी में थे और कुछ लावारिस कुत्ते, जो चाय की भट्टी से निकली गर्म कोयले की आग के चारों ओर बैठे थे। सन्त काफी बुज़ुर्ग थे और शायद थके हुए भी, सो दूर से चमकती आग देखकर वहीं पहुँच गये। उन्हें वहाँ देखते ही कुत्ते अपने स्वभाव के अनुसार भौंकने लगे; लेकिन जैसे ही दुकानदार ने उन्हें चुप रहने को कहा, सब एक साथ शान्त हो गये और सन्त को बारी-बारी सूँघ-सूँघकर फिर आग के पास बैठ गये। चाय वाले दुकानदार ने जब सन्त को देखा, तो उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया।

सन्त ने दुकान वाले बुज़ुर्ग को दोनों हाथों से आशीर्वाद दिया और वहीं आग के पास बैठते हुए बोले- ‘बच्चा थोड़ा पानी मिलेगा?’ दुकानदार ने उन्हें एक मग में नल से भरकर साफ पानी दिया और कहा- ‘महाराज चाय तो अब नहीं मिल सकेगी, पर कुछ खाने का प्रबन्ध हो सकता है।’ बाबा ने कहा- ‘उसकी कोई ज़रूरत नहीं बेटा, मेरा काम बन गया’  और यह कहते-कहते अपनी झोली से एक पोटली निकाली, एक टूटी हुई-सी तवानुमा काली प्लेट और एक कटोरा निकालकर उसमें पोटली से आटा निकालकर पानी से गँूथने लगे और उस टूटे तवे को कोयले की तपती आग पर रख दिया। दुकानदार ने कहा भी कि बाबा! आप परेशान न हों, मैं आपके खाने की व्यवस्था करता हूँ; पर सन्त ने कहा कि अपना तो यही भोजन है बेटा। थोड़ी देर में दो मोटी-मोटी रोटियाँ सन्त ने बना लीं और एक रोटी कुत्तों को तोड़कर डालकर एक खुद पानी से खाने लगे। सूखी रोटी खाने से पहले उन्होंने दुकान वाले बुज़ुर्ग से भी खाने को कहा; लेकिन दुकानदार ने मना कर दिया; मगर कुछ और लाकर देने की गुज़ारिश ज़रूर करते रहे और सन्त हर बार मुस्कुराकर मना कर देते। आिखर जब दुकान वाले बुज़ुर्ग से नहीं रुका गया, तो उन्होंने सन्त से कहा- ‘बाबा इस रूखी रोटी से क्या पेट भरा होगा? मैं घर जाकर आपके लिए भोजन की व्यवस्था करता हूँ।’ पर सन्त ने मना कर दिया। दुकानदार दु:ख और अफसोस भरे सकते में था कि सन्त को क्या और कैसे खिलायें कि वह भूखे न रहें। पर कुछ कह नहीं पा रहे थे और चुपचाप वहीं बैठे लाचार-से देखते रहे। सन्त ने जब देखा कि समय ज़्यादा हो गया और दुकानदार वहीं पास में बैठा है, तो बोले बच्चा आज घर नहीं जाओगे? देर हो गयी।

सन्त की बात सुनकर दुकानदार ने आश्चर्य भरी दृष्टि से सन्त को देखा और बोले बाबा! आपकी क्या सेवा करूँ? सन्त ने कहा- ‘नहीं बेटा! बहुत सेवा की आपने, अब घर जाओ’ और अपने शरीर पर पड़ा कपड़ा उतारकर हरि-हरि कहते हुए ज़मीन पर ही लेट गये और उस कपड़े को ओढ़ लिया। बुज़ुर्ग दुकानदार को काफी ठंड लग रही थी, पर घर नहीं जा पा रहे थे। लेकिन घर जाना मजबूरी सो चल दिये। रास्ते में अनगिनत खयाल, सवाल मन में उठने लगे- ‘बहुत पहुँचे हुए सन्त लगते हैं। वरना एक रूखी रोटी खाकर कौन जीवित रह सकता है? इतनी ठंड में तो कोई पहुँचा हुआ सिद्ध ही बिना ओढ़े-बिछाये रह सकता है। आग भी तो ऐसी नहीं थी, वह भी जल्द ही बुझ जाएगी।’ यह सब सोचते-सोचते बुज़ुर्ग के मन में एक दया-भाव जाग गया कि लेकिन वह तो समझ सकता है, तो उन्हें ऐसी कड़क सर्दी में भला क्यों पड़ा रहने दे? वह सन्त है, पर हम तो नहीं, हम उन्हें कष्ट क्यों सहने दें? कौन-सा वे रोज़-रोज़ उसकी दुकान पर आते हैं? इतना सोचते-सोचते बुज़ुर्ग के कदम गाँव में बने मन्दिर की ओर मुड़ गये और वहाँ पहुँचकर मन्दिर के पुजारी को उठाया। इतनी सर्दी में पुजारी की गर्म बिस्तर से निकलने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी; लेकिन कोई परेशानी में न हो, यह सोचकर कम्बल लपेटकर दरवाज़ा खोला। सामने चाय वाले बुज़ुर्ग को देखकर बोले- ‘क्या भीमसेन! कोई परेशानी?’ बुज़ुर्ग ने राम-राम करते हुए सारी बात बतायी। पुजारी बोले- ‘तो उनसे मन्दिर में आने को क्यों नहीं कहा?’ बुज़ुर्ग बोले- ‘महाराज! कोशिश की, पर वह आये नहीं। वहीं ज़मीन पर लेट गये नंगे बदन।’ इतना सुनकर पुजारी बुज़ुर्ग के साथ दुकान की ओर चल दिये। वहाँ पहुँचकर देख कि सन्त हरि-हरि जप रहे हैं और कुत्ते बुझ चुकी आग की गर्म राख पर सिमटे बैठे हैं। लोगों की आहट पाकर कुत्ते कुछ चौकन्ने हुए, पर मानो पहचानकर चुपचाप पड़े रहे। दुकानदार ने पास जाकर धीरे से कहा-‘बाबा!’ सन्त उठ बैठे, बोले- ‘अरे तुम इन्हें भी ले आये। क्यों परेशान हो बेटा? मैं ठीक हूँ।’ पुजारी ने राम-राम करके कहा- ‘बाबा! आप मन्दिर में चलें, बहुत ठंड है।’ सन्त ने कहा- ‘बेटा! मुझे सर्दी-गर्मी क्या? हरि रखवाले हैं। आप लोग जाओ।’ इतने में पास से गुज़र रहे एक सज्जन और आ गये, उन्होंने भी यही विनती की; पर सन्त वही बात कहकर शान्त हो गये। पुजारी बोले- ‘बाबा! यहाँ ज़मीन गन्दी है, मन्दिर में चलो, ईश्वर का घर है; प्रसाद पा लेना और आराम से रहना।’

सन्त ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा- ‘बेटा! क्या यह जगह ईश्वर की नहीं है? ऐसी जगह बताओ, जहाँ ईश्वर न हो। मुझे सुख-सम्पदा और अच्छे भोजन से क्या लेना-देना। मेरे लिए अब पूरा संसार ही उसी ईश्वर का घर है, तो मुझे इन दीवारों में बन्द तुम्हारे बनाये हुए ईश्वर से क्या काम? और इन दीवारों से क्या मतलब?’ इतना सुनते ही सब खामोश हो गये और चुपचाप वहाँ से चले गये। सन्त फिर वहीं लेट गये। जब सुबह लोग आये, तो सन्त वहाँ नहीं थे; सब कुछ वैसा ही था।

प्रशांत भूषण पर फैसला सुरक्षित

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने के बाद सर्वोच्च अदालत की जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। प्रशांत भूषण ने 27 जून को न्यायपालिका के छ: वर्ष के कामकाज को लेकर एक टिप्पणी की थी, जबकि 22 जून को शीर्ष अदालत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे और चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर दूसरी टिप्पणी की थी। प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायधीश और चार अन्य पूर्व मुख्य न्यायधीशों को लेकर दो ट्वीट किये थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय पर अभद्र हमला बताते हुए भूषण को कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराया था।

इन ट्वीट् पर स्वत: संज्ञान लेते हुए अदालत ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। अदालत ने उन्हें नोटिस भेजा था, जिसके जवाब में भूषण ने कहा था कि सीजेआई की आलोचना करना उच्चतम न्यायालय की गरिमा को कम नहीं करता है। उन्होंने कहा था कि पूर्व सीजेआई को लेकर किये गये ट्वीट के पीछे मेरी एक सोच है, जो बेशक अप्रिय लगे लेकिन अवमानना नहीं है। प्रशांत भूषण ने कहा था कि विचारों की ऐसी अभिव्यक्ति स्पष्टवादी, अप्रिय और कड़वी हो सकती है, लेकिन इसे अदालत की अवमानना नहीं कहा जा सकता।

प्रशांत भूषण को जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 14 अगस्त, 2020 को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। सुनवाई के दौर के बाद जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भूषण को 24 अगस्त तक बिना शर्त माफी माँगने का समय दिया और मामले की सुनवाई 25 अगस्त को रखी। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इस धरती पर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो गलती नहीं कर सकता है। आप 100 अच्छे काम कर सकते हैं, लेकिन वो आपको 10 अपराध करने की इजाज़त नहीं देते। जो हुआ, सो हुआ। लेकिन हम लोग चाहते हैं कि व्यक्ति विशेष (प्रशांत भूषण) को इसका कुछ पछतावा तो हो।

हालाँकि 24 अगस्त को प्रशांत भूषण ने माफी माँगने से इन्कार किया। भूषण ने कोर्ट के समक्ष पेश किये गये अपने बयान में कहा- ‘मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए आशा का अन्तिम केंद्र है। ट्वीट उनके विश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं और अपने बयानों को वापस लेना निष्ठाहीन माफी होगी।’  भूषण ने कहा- ‘मेरा बयान सद्भावनापूर्ण था। अगर मैं इस कोर्ट के समक्ष अपने बयान वापस लेता हूँ, तो मेरा मानना है कि अगर मैं एक ईमानदार माफी की पेशकश करता हूँ, तो मेरी नजर में मेरी अंतरात्मा और उस संस्थान की अवमानना होगी, जिसमें मैं सर्वोच्च विश्वास रखता हूँ। अदालत ने उन्हें फैसले से पहले 30 मिनट का समय दिया, ताकि वे अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकें।’

दिलचस्प यह रहा कि बहस के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण को सज़ा न देने की अपील की। वेणुगाोपाल ने कहा कि प्रशांत भूषण को पहले ही दोषी करार दिया गया है, इसलिए उन्हें सज़ा न दी जाए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की लिस्ट है, जो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को फेल किया है। वेणुगोपाल ने कहा कि उनके पास पूर्व जजों के बयान का अंश है, जिसमें वो कहते हैं कि ऊपरी अदालतों में बहुत भ्रष्टाचार है, लेकिन जस्टिस अरुण मिश्रा ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा कि अदालत मेरिट पर सुनवाई नहीं कर रही है। अदालत ने कहा कि प्रशांत भूषण का बयान और उनका लहज़ा उसे और भी खराब बना देता है।

बताते चलें कि पिछली सुनवाई में प्रशांत भूषण ने 2009 में दिये अपने बयान पर खेद जताया था, लेकिन बिना शर्त माफी नहीं माँगी थी। उन्होंने कहा था कि तब मेरे कहने का तात्पर्य भ्रष्टाचार कहना नहीं था, बल्कि सही तरीके से कर्तव्य न निभाने की बात थी। बता दें कि 2009 में एक साक्षात्कार में वकील भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के 8 पूर्व चीफ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था।

अब 2009 के साक्षात्कार में अदालत की अवमानना मामले में चल रही सुनवाई फिलहाल टल गयी है। सुप्रीम कोर्ट की नयी बेंच मामले की सुनवाई करेगी। जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने इसे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पास भेजा है। अब सीजेआई नयी बेंच का गठन करेंगे। सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्रा ने कहा वह रिटायर हो रहे हैं अब अगली सुनवाई करने वाली उचित बेंच ये तय करेगी कि इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा जा सकता है या नहीं। यह मामला तहलका पत्रिका में प्रशांत भूषण के छपे एक साक्षात्कार से जुड़ा है। इस साक्षात्कार में भूषण ने भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में न्यायपालिका पर टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा कि राजीव धवन की ओर से उठाये गये सवालों पर लम्बी सुनवाई की ज़रूरत है। अभी समय कम है।

मुद्दे उठाते रहे हैं भूषण

प्रशांत भूषण पिछले दो दशक से देश के गम्भीर मसलों पर पूरी ताकत के साथ सवाल उठाते रहे हैं। हाल की बात करें तो सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से प्रशांत भूषण ने जनहित याचिक दाखिल करके कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने में राहत कार्यों के लिए पीएम केयर फंड से एनडीआरएफ को फंड ट्रांसफर करने की माँग की थी। याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) का उपयोग अधिकारियों द्वारा स्वास्थ्य संकट के बावजूद नहीं किया जा रहा है और पीएम केयर फंड आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के दायरे से बाहर है। केंद्र सरकार ने इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि पीएम केयर फंड के बनाने पर कोई रोक नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से स्वतंत्र और अलग है जो आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत निर्धारित है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि पीएम केयर फंड भी एक चैरिटी फंड है इसलिए उसके पैसे को कहीं और ट्रांसफर करने की ज़रूरत नहीं है। यही नहीं प्रशांत भूषण के माध्यम से लॉकडाउन के दौरान एक याचिका अप्रैल, 2020 के दौरान दाखिल की गयी, जिसमें कहा गया था कि प्रवासी मज़दूर, लॉकडाउन के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित तबका है। जब महानगरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों की ओर पैदल जाने को मजबूर थे, तब इस याचिका में देश भर में फँसे लाखों प्रवासी मज़दूरों को उनके घरों तक सुरक्षित भेजने की माँग की गयी थी। याचिका के जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार वास्तव में प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अपने स्तर पर अच्छा कर रही है।

प्रशांत भूषण राफेल खरीद मामले में भी अग्रणी रहे। सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने भारत सरकार की ओर से फ्रांसीसी कम्पनी डैसो एविएशन से 36 रफाल जट खरीदने के सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच को फिर से करने के लिए पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। हालाँकि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और के.एम. जोसेफ की पीठ ने 14 नवंबर, 2019 को इनकी पुनर्विचार याचिकाओं को सुनवाई के योग्य नहीं माना था। केंद्र और राज्य सूचना आयोगों में सचूना आयुक्तों के रिक्त पदों को भरने के लिए अंजलि भारद्वाज ने याचिका दायर की थी। भारद्वाज के वकील प्रशांत भूषण ही थे। अपने तर्क में प्रशांत ने कहा था कि जो भ्रष्ट हैं सिर्फ वो ही इस कानून से डरते हैं। तब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबड़े ने कहा था कि हर कोई अवैध काम नहीं कर रहा है।

प्रशांत भूषण ने गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री हरेन पांड्या की हत्या के मामले में भी अदालत की निगरानी में जाँच की माँग वाली जनहित याचिका अपनी संस्था सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटीगेशन (सीपीआईएल) के ज़रिये डाली थी।

भूषण का समर्थन/विरोध

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ जब अवमानना की कार्यवाही कोर्ट में चल रही थी उस समय देश भर में कई लोगों ने उन्हें सज़ा नहीं देने का समर्थन किया था। वैसे अदालत की अवमानना के इस मामले पर लोगों के विचार अलग-अलग रहे। बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) ने इस मामले में कहा है कि शीर्ष अदालत की प्रतिष्ठा को दो ट्वीट् से धूमिल नहीं किया जा सकता। ऐसे समय में जब नागरिक बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, तो आलोचनाओं से नाराज़ होने की बजाय उनकी जगह बनाये रखने से उच्चतम न्यायालय का कद बढ़ेगा। वहीं 15 पूर्व जजों समेत सौ से अधिक बुद्धिजीवियों ने सुप्रीम कोर्ट के पक्ष में पत्र जारी किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर आपत्ति ज़ाहिर करना सही नहीं है। जबकि इस मामले में प्रशांत भूषण के समर्थन वाले पक्ष का कहना था कि कानूनी पेशे से जुड़े एक सदस्य के खिलाफ भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस तरह स्वत: अवमानना की कार्यवाही करने का यह तरीका निराशाजनक और चिंतित करने वाला है। कांग्रेस सहित अलग-अलग राजनीतिक दलों ने भूषण का समर्थन किया। भूषण को अवमानना केस में दोषी करार दिये जाने के बाद उनके समर्थन में तीन हजार से ज़्यादा लोग सामने आये। इन लोगों में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों के आलावा रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स, शिक्षाविद् और वकील  शामिल थे। इन लोगों ने बयान भी जारी किये। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 13 रिटायर्ड जजों ने अपने हस्ताक्षर भी किये। अपने बयान में इन लोगों ने लिखा कि जज और वकील दोनों, एक स्वतंत्र न्यायपालिका का हिस्सा हैं, जो संवैधानिक लोकतंत्र में कानून के शासन का आधार है और जो पारस्परिक सम्मान और जजों और बेंच के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध की पहचान है। पत्र में लिखा गया कि दोनों के बीच संतुलन का कोई भी झुकाव एक तरफा होना हानिकारक है।

अवमानना मामले में प्रशांत भूषण को एक रूपये सजा, 15 सितंबर तक भरने होंगे नहीं तो तीन महीने सजा

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक रूपये जुर्माने की सजा सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को 15 सितंबर तक एक रुपये का जुर्माना जमा कराने को कहा है और ऐसा नहीं करने की सूरत में उन्हें तीन महीने की सजा हो सकती है और तीन साल तक वकालत पर रोक लग जाएगी।

सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा कि भूषण ने अपने बयान को पब्लिसिटी दिलाई उसके बाद कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया। कोर्ट ने फैसले में भूषण के कदम को सही नहीं माना। याद रहे 24 अगस्त को भूषण  ने माफी मांगने से इंकार किया था।

अब बेंच ने वरिष्ठ वकील भूषण को अवमानना के मामले में एक रूपये जुर्माने की सजा सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सजा में भूषण को 15 सितंबर तक एक रुपये का जुर्माना जमा कराने को कहा है और ऐसा नहीं करने की सूरत में उन्हें तीन महीने की सजा हो सकती है और तीन साल तक वकालत पर रोक लग जाएगी।

प्रशांत भूषण ने अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा था कि वह अपने ट्वीट के लिए माफी नहीं मांगेगे। अगले दिन बेंच ने फैसले से पहले प्रशांत को अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए 30 मिनट का समय दिया था।

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कोर्ट से भूषण को भविष्य के लिए चेतावनी देकर छोड़ने का सुझाव दिया था। दूसरी तरफ भूषण का पक्ष रख रहे राजीव धवन ने अपने मुवक्किल का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने कोई मर्डर या चोरी नहीं की है, लिहाजा उन्हें शहीद न बनाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 14 अगस्त को भूषण को न्यायापालिका के खिलाफ उनके दो ट्वीट को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रशांत भूषण ने पूरे सुप्रीम कोर्ट के कार्यप्रणाली पर हमला किया है और अगर इस तरह के हमले को सख्त तरीके से डील नहीं किया जाता है तो इससे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और ख्याति प्रभावित होगा।
इसके बाद देश भर में प्रशांत के पक्ष और खिलाफ लोगों और समूहों ने अपने विचार  व्यक्त किये थे। बहुत से लोगों ने प्रशांत को लेकर कोर्ट के फैसले परसवाल उठाये थे जबकि अन्य ने कोर्ट का समर्थन किया था।

भारत और चीन की सेना के बीच पेंगोंग त्सो झील क्षेत्र में एक और झड़प, सैनिकों ने विफल की घुसपैठ

जून में हुई खूनी भिड़ंत के बाद 29-30 अगस्त की रात भारत और चीन के बीच पेंगोंग त्सो झील क्षेत्र में एक और झड़प हुई है। भारतीय सेना के मुताबिक पेंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे पर चीनी सेना (पीएलए) की इस कायराना हरकत को नाकाम कर दिया गया। आज मामले को निपटाने के लिए दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की  ब्रिगेड कमांडर स्तर की बातचीत चल रही है।

सेना के मुताबिक चीनी सेना ने पैंगों और पैंगोंग झील क्षेत्र में पहले की सहमति का उल्लंघन करने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय जवानों ने विफल कर दिया। भारतीय सेना ने चीन सेने के जवानों को वहां से खदेड़ दिया है। सेना के मुताबिक  चीन के सैनिक हथियारों के साथ आगे बढ़ रहे थे और जब उन्हें रुकने को कहा गया लेकिन भारतीय जवानों ने बाद में उन्हें वहीं रोक लिया।

भारतीय सेना के पीआरओ कर्नल अमन आनंद ने इसकी जानकारी देते हुए कहा – ”पीएलए के जवानों ने 29-30 अगस्त की रात पूर्वी लद्दाख में चल रहे तनाव के बीच  शांति के लिए हुई सैन्य और राजनयिक बातचीत के फैसले का उल्लंघन किया। उसके सैनिकों ने वहां यथास्थिति बदलने की कोशिश के लिए घुसपैठ की जिसे नाकाम कर दिया गया। इसमें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं है। बाकी जानकारी सेना ने साझा नहीं की है।

सेना के मुताबिक इलाके में भारतीय सैनिकों ने अपनी स्थिति को मजबूत किया है। पीआरओ ने कहा – भारतीय सेना बातचीत के माध्यम से शांति और एकता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए भी समान रूप से दृढ़ है। सीमा मुद्दों को हल करने के लिए चुशुल में एक ब्रिगेड कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग चल रही है।”

आने वाले दिनों में वायु प्रदूषण और कोरोना हार्ट रोगियों के लिये घातक होगा

इंडियन हार्ट फांउडेशन ने शोध के आधार पर दावा किया है कोरोना हार्ट पर भी हमला कर रहा है, कोरोना का कहर जिस रफ्तार से बढ रहा है और आने वाले दिनों में अगर यही हाल रहा ,तो अन्य रोगों के साथ -साथ ये हार्ट रोगियों के लिये काफी घातक हो सकता है। जाने –माने हार्ट रोग विशेषज्ञ डाँ अनिल ढल का कहना है, कि कोरोना से सारी दुनिया जूझ रही है। और आने वाले दिन-महीनों में सर्दी का सितम शुरू होने वाला है ।

उत्तर भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या रही है। गत सालों में पराली के जलने के कारण वायु प्रदूषण का कहर  सर्दियों के मौसम में रहा है । जिसके कारण दिल्ली सहित कई राज्यों ने स्वास्थ्य आपातकाल लगा दिया था। डाँ अनिल ढल ने तमाम हार्ट रोग पर हो रहे शोधों का हवाला देते हुये कहा है कि वायु प्रदूषण के कारण मधुमेह , उच्च- रक्तचाप, मोटापा और मानसिक तनाव बच्चे, युवा और बुजुर्गो को अपनी चपेट में लेता है।जिसके कारण हार्ट रोग पनपता है । डाँ अनिल ढल का कहना है कि सांस लेने की दिक्कत में वायु प्रदूषण भी एक कारण है।

उन्होंने शोधों का हवाला देते हुये कहा कि जिन लोगों में मोटापा, मधुमेह , मानसिक तनाव के साथ उच्च –रक्तचाप की शिकायत है उनको हार्ट अटैक होने का खतरा ज्यादा रहता है। वैसे तो सर्दियों के मौसम को हेल्दी माना जाता है। लेकिन इस मौसम में ही जागरूकता के अभाव में हार्ट रोग से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा पायी जाती है। इस बार कोरोना और वायु प्रदूषण सर्दियों के मौसम में घातक साबित हो सकता है । इसलिये बचाव के तौर पर घर से तब ही निकलें जब बहुत जरूरी हो और मास्क मुंह में लगाकर ही निकलें संक्रमण वाले क्षेत्रों में जाने से बचें । लगातार आ रहे बुखार और सर्दी , जुकाम और घबराहट को नजरअंदाज ना करें। अगर ये लक्षण है तो कोरोना की जांच जरूर करवाये। इंडियन हार्ट फांउडेशन के अध्यक्ष व हार्ट रोग विशेषज्ञ डाँ आर एन कालरा का कहना है कि देश के लोगों की इम्युनिटी पावर ठीक है जिसके कारण कोरोना का कहर धीरे –धीरे अपनी गिरफ्त में अन्य देशों की तुलना में कम अनुपात में ले रहा है। लेकिन वायु प्रदूषण और मधुमेह, उच्च-रक्तचाप मोटापा के साथ मानसिक तनाव हार्ट रोग को बढा रहा है जिसकी चपेट में सभी वर्ग के लोग के आ रहे है। बचाव के तौर पर तलीय प्रदार्थो का  कम सेवन करें। व्यायाम और योग को अपनाकर तमाम रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

कोरोना संक्रमण से बचने को लता मंगेशकर की इमारत सील

कोरोना संक्रमण का कहर जारी है। कोरोना की वजह से महाराष्ट्र में स्थिति लगातार चिंताजनक बनी हुई है। कोविड-19 से बुजुर्गों को सबसे ज्यादा खतरा बताया जा रहा है। इन सबके बीच बीएमसी ने 90 वर्षीया स्वर कोकिला लता मंगेशकर की बिल्डिंग को सील कर दिया है।
दक्षिण मुम्बई की इस इमारत में रहने वालों में बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है। एहतियातन बीएमसी ने ये फैसला लिया कि बिल्डिंग को सील कर दिया जाए। लता मंगेशकर के परिवार ने एक बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है कि ‘हम लोगों को शाम से ही कॉल आ रही है कि प्रभुकुंज बिल्डिंग सील कर दी गई है। बिल्डिंग की सोसायटी और बीएमसी ने मिलकर ये फैसला लिया है।
संदेश में कहा गया है कि कोरोना महामारी को देखते हुए सोसायटी में गणेश चतुर्थी का सेलिब्रेशन बहुत सादगी से किया जा रहा है। आप सभी से मेरा निवेदन है कि हमारे परिवार वालों की सेहत को लेकर किसी प्रकार की अफवाहें न फैलाएं।
दरअसल, ऐसी खबरें आई थीं कि प्रभुकुंज में कुछ बुजुर्ग कोरोना पॉजिटिव आये हैं, इसके बाद बिल्डिंग सील करने की कार्रवाई की गई। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं कि गई है। इसके बाद ही बिल्डिंग और सोसायटी की ओर से संदेश जारी किया गया है।
मीडिया को जारी संदेश में कहा गया, हमारी सोसायटी के सभी लोग एक परिवार के तौर पर कोरोना को लेकर काफी सतर्क हैं। कड़ाई के साथ सभी अनुशासन का पालन कर रहे हैं। इस बात का खासतौर पर ध्यान रखा जा रहा है कि सोसायटी का हर एक बुजुर्ग पूरी तरह से सुरक्षित रहे। भगवान की कृपा और दुआओं से पूरा परिवार सुरक्षित है।