प्रशांत भूषण पर फैसला सुरक्षित

वरिष्ठ वकील ने सुप्रीम कोर्ट में माफी माँगने से किया इन्कार, कहा- 'मेरा बयान सद्भावनापूर्ण’

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने के बाद सर्वोच्च अदालत की जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। प्रशांत भूषण ने 27 जून को न्यायपालिका के छ: वर्ष के कामकाज को लेकर एक टिप्पणी की थी, जबकि 22 जून को शीर्ष अदालत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे और चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर दूसरी टिप्पणी की थी। प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायधीश और चार अन्य पूर्व मुख्य न्यायधीशों को लेकर दो ट्वीट किये थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय पर अभद्र हमला बताते हुए भूषण को कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराया था।

इन ट्वीट् पर स्वत: संज्ञान लेते हुए अदालत ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। अदालत ने उन्हें नोटिस भेजा था, जिसके जवाब में भूषण ने कहा था कि सीजेआई की आलोचना करना उच्चतम न्यायालय की गरिमा को कम नहीं करता है। उन्होंने कहा था कि पूर्व सीजेआई को लेकर किये गये ट्वीट के पीछे मेरी एक सोच है, जो बेशक अप्रिय लगे लेकिन अवमानना नहीं है। प्रशांत भूषण ने कहा था कि विचारों की ऐसी अभिव्यक्ति स्पष्टवादी, अप्रिय और कड़वी हो सकती है, लेकिन इसे अदालत की अवमानना नहीं कहा जा सकता।

प्रशांत भूषण को जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 14 अगस्त, 2020 को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। सुनवाई के दौर के बाद जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भूषण को 24 अगस्त तक बिना शर्त माफी माँगने का समय दिया और मामले की सुनवाई 25 अगस्त को रखी। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इस धरती पर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो गलती नहीं कर सकता है। आप 100 अच्छे काम कर सकते हैं, लेकिन वो आपको 10 अपराध करने की इजाज़त नहीं देते। जो हुआ, सो हुआ। लेकिन हम लोग चाहते हैं कि व्यक्ति विशेष (प्रशांत भूषण) को इसका कुछ पछतावा तो हो।

हालाँकि 24 अगस्त को प्रशांत भूषण ने माफी माँगने से इन्कार किया। भूषण ने कोर्ट के समक्ष पेश किये गये अपने बयान में कहा- ‘मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए आशा का अन्तिम केंद्र है। ट्वीट उनके विश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं और अपने बयानों को वापस लेना निष्ठाहीन माफी होगी।’  भूषण ने कहा- ‘मेरा बयान सद्भावनापूर्ण था। अगर मैं इस कोर्ट के समक्ष अपने बयान वापस लेता हूँ, तो मेरा मानना है कि अगर मैं एक ईमानदार माफी की पेशकश करता हूँ, तो मेरी नजर में मेरी अंतरात्मा और उस संस्थान की अवमानना होगी, जिसमें मैं सर्वोच्च विश्वास रखता हूँ। अदालत ने उन्हें फैसले से पहले 30 मिनट का समय दिया, ताकि वे अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकें।’

दिलचस्प यह रहा कि बहस के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण को सज़ा न देने की अपील की। वेणुगाोपाल ने कहा कि प्रशांत भूषण को पहले ही दोषी करार दिया गया है, इसलिए उन्हें सज़ा न दी जाए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की लिस्ट है, जो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को फेल किया है। वेणुगोपाल ने कहा कि उनके पास पूर्व जजों के बयान का अंश है, जिसमें वो कहते हैं कि ऊपरी अदालतों में बहुत भ्रष्टाचार है, लेकिन जस्टिस अरुण मिश्रा ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा कि अदालत मेरिट पर सुनवाई नहीं कर रही है। अदालत ने कहा कि प्रशांत भूषण का बयान और उनका लहज़ा उसे और भी खराब बना देता है।

बताते चलें कि पिछली सुनवाई में प्रशांत भूषण ने 2009 में दिये अपने बयान पर खेद जताया था, लेकिन बिना शर्त माफी नहीं माँगी थी। उन्होंने कहा था कि तब मेरे कहने का तात्पर्य भ्रष्टाचार कहना नहीं था, बल्कि सही तरीके से कर्तव्य न निभाने की बात थी। बता दें कि 2009 में एक साक्षात्कार में वकील भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के 8 पूर्व चीफ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था।

अब 2009 के साक्षात्कार में अदालत की अवमानना मामले में चल रही सुनवाई फिलहाल टल गयी है। सुप्रीम कोर्ट की नयी बेंच मामले की सुनवाई करेगी। जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने इसे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पास भेजा है। अब सीजेआई नयी बेंच का गठन करेंगे। सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्रा ने कहा वह रिटायर हो रहे हैं अब अगली सुनवाई करने वाली उचित बेंच ये तय करेगी कि इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा जा सकता है या नहीं। यह मामला तहलका पत्रिका में प्रशांत भूषण के छपे एक साक्षात्कार से जुड़ा है। इस साक्षात्कार में भूषण ने भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में न्यायपालिका पर टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा कि राजीव धवन की ओर से उठाये गये सवालों पर लम्बी सुनवाई की ज़रूरत है। अभी समय कम है।

मुद्दे उठाते रहे हैं भूषण

प्रशांत भूषण पिछले दो दशक से देश के गम्भीर मसलों पर पूरी ताकत के साथ सवाल उठाते रहे हैं। हाल की बात करें तो सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से प्रशांत भूषण ने जनहित याचिक दाखिल करके कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने में राहत कार्यों के लिए पीएम केयर फंड से एनडीआरएफ को फंड ट्रांसफर करने की माँग की थी। याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) का उपयोग अधिकारियों द्वारा स्वास्थ्य संकट के बावजूद नहीं किया जा रहा है और पीएम केयर फंड आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के दायरे से बाहर है। केंद्र सरकार ने इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि पीएम केयर फंड के बनाने पर कोई रोक नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से स्वतंत्र और अलग है जो आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत निर्धारित है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि पीएम केयर फंड भी एक चैरिटी फंड है इसलिए उसके पैसे को कहीं और ट्रांसफर करने की ज़रूरत नहीं है। यही नहीं प्रशांत भूषण के माध्यम से लॉकडाउन के दौरान एक याचिका अप्रैल, 2020 के दौरान दाखिल की गयी, जिसमें कहा गया था कि प्रवासी मज़दूर, लॉकडाउन के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित तबका है। जब महानगरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों की ओर पैदल जाने को मजबूर थे, तब इस याचिका में देश भर में फँसे लाखों प्रवासी मज़दूरों को उनके घरों तक सुरक्षित भेजने की माँग की गयी थी। याचिका के जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार वास्तव में प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अपने स्तर पर अच्छा कर रही है।

प्रशांत भूषण राफेल खरीद मामले में भी अग्रणी रहे। सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने भारत सरकार की ओर से फ्रांसीसी कम्पनी डैसो एविएशन से 36 रफाल जट खरीदने के सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच को फिर से करने के लिए पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। हालाँकि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और के.एम. जोसेफ की पीठ ने 14 नवंबर, 2019 को इनकी पुनर्विचार याचिकाओं को सुनवाई के योग्य नहीं माना था। केंद्र और राज्य सूचना आयोगों में सचूना आयुक्तों के रिक्त पदों को भरने के लिए अंजलि भारद्वाज ने याचिका दायर की थी। भारद्वाज के वकील प्रशांत भूषण ही थे। अपने तर्क में प्रशांत ने कहा था कि जो भ्रष्ट हैं सिर्फ वो ही इस कानून से डरते हैं। तब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबड़े ने कहा था कि हर कोई अवैध काम नहीं कर रहा है।

प्रशांत भूषण ने गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री हरेन पांड्या की हत्या के मामले में भी अदालत की निगरानी में जाँच की माँग वाली जनहित याचिका अपनी संस्था सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटीगेशन (सीपीआईएल) के ज़रिये डाली थी।

भूषण का समर्थन/विरोध

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ जब अवमानना की कार्यवाही कोर्ट में चल रही थी उस समय देश भर में कई लोगों ने उन्हें सज़ा नहीं देने का समर्थन किया था। वैसे अदालत की अवमानना के इस मामले पर लोगों के विचार अलग-अलग रहे। बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) ने इस मामले में कहा है कि शीर्ष अदालत की प्रतिष्ठा को दो ट्वीट् से धूमिल नहीं किया जा सकता। ऐसे समय में जब नागरिक बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, तो आलोचनाओं से नाराज़ होने की बजाय उनकी जगह बनाये रखने से उच्चतम न्यायालय का कद बढ़ेगा। वहीं 15 पूर्व जजों समेत सौ से अधिक बुद्धिजीवियों ने सुप्रीम कोर्ट के पक्ष में पत्र जारी किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर आपत्ति ज़ाहिर करना सही नहीं है। जबकि इस मामले में प्रशांत भूषण के समर्थन वाले पक्ष का कहना था कि कानूनी पेशे से जुड़े एक सदस्य के खिलाफ भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस तरह स्वत: अवमानना की कार्यवाही करने का यह तरीका निराशाजनक और चिंतित करने वाला है। कांग्रेस सहित अलग-अलग राजनीतिक दलों ने भूषण का समर्थन किया। भूषण को अवमानना केस में दोषी करार दिये जाने के बाद उनके समर्थन में तीन हजार से ज़्यादा लोग सामने आये। इन लोगों में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों के आलावा रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स, शिक्षाविद् और वकील  शामिल थे। इन लोगों ने बयान भी जारी किये। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 13 रिटायर्ड जजों ने अपने हस्ताक्षर भी किये। अपने बयान में इन लोगों ने लिखा कि जज और वकील दोनों, एक स्वतंत्र न्यायपालिका का हिस्सा हैं, जो संवैधानिक लोकतंत्र में कानून के शासन का आधार है और जो पारस्परिक सम्मान और जजों और बेंच के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध की पहचान है। पत्र में लिखा गया कि दोनों के बीच संतुलन का कोई भी झुकाव एक तरफा होना हानिकारक है।