Wednesday, September 10, 2025
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ग्लैमर के पीछे का दर्द -सब्ज़ियाँ बेच रहे बालिका वधू के निर्देशक

राजस्थान के लोकजीवन की मुकम्मल जानकारी लेनी हो और समाज की विडंबनाओं तथा विद्रूपताओं को निकट से देखना हो, तो सोप ओपेरा की तर्ज पर निर्मित धारावाहिक ‘बालिका वधू’ ज़रूर देखना चाहिए। बालिका वधू राजस्थान के आंचलिक क्षेत्रों के सामाजिक जीवन में रची-बसी बाल विवाह की त्रासद परम्परा का सशक्त दस्तावेज़ है। एक सच्चे वाकये पर बने इस धारावाहिक में चुभन पैदा करने वाले अनेक ऐसे दृश्य हैं, जो आँख में किरच की तरह अटक जाते हैं। सवाल है कि यह धारावाहिक फितरती रूढ़ परम्पराओं को धिक्कारने के बावजूद समाज को नयी दिशा देने का वाहक क्यों नहीं बन पा रहा है? सदी के शुरुआती दशक में टीवी पर दो हज़ार एपीसोड्स के प्रदर्शन के साथ धमाल मचा चुका यह धारावाहिक एक बार फिर दर्शकों की ज़बरदस्त भीड़ जुटा रहा है। लेकिन इस बार इस धारावाहिक ने सिने उद्योग का काला पक्ष भी उजागर कर दिया कि शोमैनशिप के लिए प्रख्यात यह उद्योग संवेदना के नाम पर तो बिल्कुल रीत चुका है। ग्लैमर के पीछे के दर्द की नमी देखनी है, तो इस लोकप्रिय धारावाहिक के निर्देशक रामवृक्ष गौर की आँखों में ज़रूर दिख जाएगी; जो इन दिनों फाकाकशी की हालत में है और अपने गृह क्षेत्र आजमगढ़ में सब्ज़ियाँ बेचकर दिन गुज़ार रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि रामवृक्ष गौर होली के दौरान अपने गाँव पहँुचे थे। फिर कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के कारण वहीं अटक गये। क्योंकि आर्थिक तंगी के चलते उनका वापस मुम्बई लौटना तो दूभर हुआ ही, घर-परिवार का गुज़ारा करना भी मुश्किल हो गया। नतीजतन सब्ज़ी का ठेला लगाना पड़ रहा है।

रामवृक्ष सन् 2002 में मुम्बई पहुँचे थे। उन्होंने विभिन्न धारावाहिकों का निर्देशन किया। यहाँ तक कि यूनिट डायरेक्टर तक बनकर अनेक सीरियलों का सफल निर्देशन किया। हालाँकि रामवृक्ष अपनी बेबसी पर आँखों की कोर भीगने से बचा लेते हैं। रामवृक्ष कहते हैं- ‘मेरी नज़रों में कोई भी काम छोटा नहीं होता। मुम्बई जाने से पहले भी मैं सब्ज़ी बेचा करता था। हालात सुधरेंगे तो वापस मुम्बई जाऊँगा।’ उधर अनूप सोनी ने सोशल मीडिया पर कमेंट लिखा है और उनकी मदद भी करना चाह रहे हैं। सोनी ने मीडिया रिपोर्ट को शेयर करते हुए लिखा है-‘हमारी बालिका वधू की टीम को पता चला है। उनकी मदद के लिए उनसे सम्पर्क कर रहे हैं।’

बालिका वधू का कथानक मुख्य रूप से आनंदी और जगिया के इर्द-गिर्द घूमता है, जो बाल विवाह के साथ बड़े होते हैं। बालिका वधू का पहला भाग कच्ची उमर के पक्के रिश्तों पर आधारित है। इसका दूसरा भाग लम्हे प्यार के पर केंद्रित है। इसका केंद्र है- आनंदी की बेटी नंदिनी। इस धारावाहिक के मुख्य पात्रों में प्रत्यूशा बनर्जी, तोरल रासपुत्रा, शशांक व्यास, अविका गौर, अविनाश मुखर्जी, अनूप सोनी तथा सिद्धार्थ शुक्ला हैं। लेकिन इस धारावाहिक का सबसे सशक्त पात्र हैं- ‘दादी सा’। सुरेखा सीकरी ने इस केंद्रीय पात्र में ज़बरदस्त जान फूँक दी है। ब्रेन स्ट्रोक (पक्षाघात) की वजह से वह भी इन दिनों चर्चा में हैं। दादी सा यानी सीकरी कहती हैं- ‘मैंने सन् 1965 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ज्वाइन किया, तभी से अभिनय में सक्रिय हूँ। पिछले साल ब्रेन स्ट्रोक के कारण शरीर का आधा हिस्सा आंशिक रूप से पेरालाइज्ड (लकवाग्रस्त) हो गया। इसके बावजूद सक्रिय हूँ.., अच्छा अभिनय अभी आना बाकी है।’

निजी जीवन की वेदना

इसे संयोग ही कहा जाएगा कि धारावहिक बालिका वधू के केंद्रीय िकरदार में आनंदी की भूमिका का निर्वाह करते हुए प्रत्यूशा बनर्जी ने जैसी वेदना भोगी, उनकी निजी ज़िन्दगी भी वैसी ही त्रासद रही। 01 अप्रैल, 2016 को उनकी रहस्यमय मौत पूरे संवेदन तंत्र को झकझोर देती है। उसकी हत्या के आरोप में पुलिस ने उसके बॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह को हिरासत में लिया था। लेकिन बाद में जमानत पर छोड़ दिया। प्रत्यूशा 01 अप्रैल, 2016 को गुडग़ाँव स्थित अपने फ्लैट में मृत पायी गयी थीं। उनकी मौत की चौथी बरसी पर उसके पिता शंकर बनर्जी यह कहते हुए फफक पड़े कि ‘कोराना वायरस के कारण बेटी की तस्वीर पर चढ़ाने के लिए फूल तक नहीं ला सका। बनर्जी की आँखेंयह कहते हुए भीग जाती है कि मामले की पड़ताल को चलते हुए चार बरस बीत गये, लेकिन मामला आज भी जस-का-तस है। धारावाहिक बालिका वधू में जगिया की भूमिका का निर्वाह करने वाले शशांक व्यास ने इंस्टाग्राम पर लिखा है कि हम जिन लोगों को प्यार करते हैं, वे हमसे दूर नहीं जाते…, वे हमेशा हमारे आस-पास रहते हैं। बेशक वे दिखायी नहीं देते, उनकी आवाज़ सुनायी नहीं देती; लेकिन इससे उनके प्रति हमारा प्यार कम नहीं हो जाता।’ प्रत्यूशा के पिता बनर्जी कहते हैं- ‘मुम्बई आने के बाद मेरी बेटी राहुल के साथ रिलेशनशिप में नहीं थी। राहुल हमारे साथ ही रहता था। अलबत्ता उसने अफवाहों को हवा देने की कोशिश की थी कि प्रत्यूशा उसके साथ लिव-इन रिलेशन में है। उसने षड्यंत्र रचकर मेरी बेटी पर दबाव बनाया और बाद में उसकी हत्या कर दी।’

शशांक व्यास कहते हैं- ‘राहुल राज सिंह के साथ रिलेशनशिप में जाने के बाद प्रत्यूशा अपने दोस्तों से दूर हो गयी थीं। उनकी मौत का समाचार 01 अप्रैल को मिला, तो मैंने इसे अप्रैल फूल वाली खबर समझा। लेकिन बाद में तस्दीक हुई, तो हतप्रभ रह गया। जिस समय मुझे यह दु:खद खबर मिली, मैं जिम में था। मेरी उससे आखरी मुलाकात मार्च, 2016 में हुई थी। असल में दोस्तों से मेल-मिलाप से तो उसी ने किनारा कर लिया था। लेकिन बावजूद इसके उसका शिकायती लहज़ा था कि तू तो भूल गया है। अपनी ज़िन्दगी में मस्त है…, ऐसा क्या हो गया है भाई?’ दरअसल धारावाहिक की तरह यहाँ भी तीसरा कोण थी- सलोनी शर्मा। सूत्रों का कहना है कि प्रत्यूशा मृत्यु के दौरान गर्भवती थी।

भेदभाव और नफरत पर पछतावा

संसार में सभी प्राणियों से ज़्यादा समझदार माना जाने वाले इंसान सदियों से आपस में भिड़ता रहा है, आपस में खून-खराबा करता रहा है। यह तब है, जब तकरीबन हर इंसान यह मानता है कि सभी एक ईश्वर की संतान हैं। दरअसल इंसानों के आपसी टकराव की वजह भाषा, क्षेत्र, मज़हब आदि का बँटवारा, आपसी मतभेद, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़, अधिकतर लोगों द्वारा खुद को बड़ा और ऊँचा दिखाने की कोशिश, नफरत और धन-बल की हैसियत आदि है। कुल मिलाकर सभी एक-दूसरे से जीतने में लगे हुए हैं। जो जिस स्तर का है, वह उसी स्तर पर जीतना चाहता है। दूसरे लोगों से जीतने की यही ज़िद बहुत-से इंसानों को अपराधी तक बना देती है और जब इंसान आपराधिक प्रवृत्ति अिख्तयार कर लेता है, तो उसे न मज़हब की सीख याद रहती है और न यह याद रहता है कि एक दिन उसे सब कुछ छोड़-छाडक़र इस नश्वर संसार से विदा होना है।

ऐसी बहुत-सी घटनाएँ हैं, जिनमें लोगों ने इस बात की सीख अन्तिम समय में ली है कि ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा, दुनिया भर की हाय-हाय, भेदभाव, एक-दूसरे से नफरत और मज़हबों तथा ज़ात-पात का बँटवारा, सब कुछ व्यर्थ है। ऐसी ही एक कहानी शाहजहाँपुर के एक गाँव की है। इस गाँव में एक ठाकुर परिवार रहता था, किसी ज़माने में इस गाँव की ज़मींदारी इसी ठाकुर परिवार के पास थी। जब देश आज़ाद हुआ, तो ज़मींदारी भी चली गयी; पर ठाकुर परिवार की अकड़ और भेदभाव की सोच नहीं गयी। ठाकुर परिवार का उसूल था कि गाँव का कोई भी आदमी इस परिवार की दहलीज़ नहीं लाँघ सकता था। अगर उनके मज़हब का न हो, तब तो और भी नहीं। न ही ठाकुर परिवार का कोई सदस्य किसी दूसरों के घर जाता था, जिसकी अटकती वह हाथ जोडक़र ठाकुर साहब के पास आकर गुहार लगाता। इस परिवार में तीन ही प्राणी थे- ठाकुर साहब, उनकी पत्नी और एक बेटा। बेटा बाहर पढ़ता था। घर में कई नौकर-चाकर थे, जिन्हें ठीक से कभी भी मेहनताना नहीं मिला; लेकिन मजाल क्या कि कोई ठाकुर साहब से कुछ कह दे। क्योंकि बड़े-बड़े रसूखदारों और थाने के बड़े अफसरों से ठाकुर साहब के अच्छे ताल्लुक थे। लेकिन दौलत अगर गलत तरीके से कमायी गयी हो, तो वह कभी-न-कभी घर से विदा हो ही जाती है। यही इस परिवार के साथ हुआ। ठाकुर साहब का इकलौता बेटा, जो कि बाहर पढ़ाई करता था, न जाने कब और कैसे नशे की गिरफ्त में आ गया। बस यहीं से ठाकुर साहब के घर में बर्बादी का घुन लग गया। बेटा जब-तब घर से पढ़ाई और अन्य खर्चों के नाम पर पैसे मँगाने लगा। अगर ठाकुर साहब मना करते, तो मरने की धमकियाँ मिलतीं। इकलौती संतान, सो ठाकुर साहब मजबूर होकर रकम देते जाते। इसकी वसूली वह अपने नौकरों से ज़्यादा काम कराकर और कम मेहनताना देकर करना चाहते; लेकिन कहा जाता है कि यदि घड़े की तली टूटी हो, तो उसमें कितना भी पानी भरो, वह कभी नहीं भर सकता। फिर बेटे द्वारा लुटायी जा रही रकम के आगे मज़दूरों की मज़दूरी भला थी ही क्या? धीरे-धीरे समय बीतता गया और ठाकुर साहब के लाडले के बिगडऩे के साथ-साथ उनका धन भी बुरी तरह खत्म होता जा रहा था।

यह वह दौर था, जब गाँव के कुछ लोग परदेश निकलने लगे थे और कुछ अपना कारोबार करके ठीकठाक पैसा कमाने लगे थे। बेटे के बढ़ते खर्च को देखते ठाकुर साहब ने भी सोचा कि कोई नया व्यवसाय किया जाए, ताकि बेटे की डॉक्टरी की पढ़ाई में बाधा न पड़े; जिस दिन बेटा डॉक्टर बनकर लौटेगा, सब वसूल हो जाएगा। यही सोचकर ठाकुर साहब ने अनाज खरीदने का धंधा शुरू किया, पहली धान की छमाही में उन्हें ठीक-ठाक मुनाफा भी हुआ। वह खुश थे कि अब उनके जिगर के टुकड़े को कभी खर्चे की कमी नहीं पड़ेगी। अगली गेहूँ छमाही में उन्होंने और अधिकतर पैसा लगाकर गेहूँ खरीदा, ताकि मोटा मुनाफा कमा सकें। कई टन गेहूँ उनके भण्डारगृह में बन्द था कि एक दिन अचानक खबर मिली कि उनका बेटा वाहन दुर्घटना का शिकार हो गया है। ठाकुर साहब के पास नकदी बहुत कम थी, जिसे लेकर एक नौकर के साथ वह शहर की ओर दौड़े। वहाँ जाकर पता चला कि उनके जिगर का टुकड़ा अधमरी हालत में अस्पताल की शय्या पर है। ठाकुर साहब डॉक्टर के पैरों पड़ गये, रोते हुए बोले- डॉक्टर साहब! मेरे बेटे को बचा लो, यह भी आप ही की तरह डॉक्टर बनने की तैयारी कर रहा है; इसे बचा लो, अपने छोटे भाई को बचा लो। उस रात ठाकुर साहब ने कुछ नहीं खाया और न ही सोये, बेटे के पास कभी सिर की तरफ, तो कभी पैरों की तरफ बैठे रहे। कभी-कभी रोने लगते, तो कभी-कभी बड़बड़ाते मैंने ही तुम्हें शहर क्यों भेज दिया, मेरी मति मारी गयी थी। घर में किस चीज़ की कमी थी। सुबह हो गयी, बेटे की स्थिति नहीं सुधरी। नौकर भी भूखा-प्यासा था, सो बोला मालिक छोटे मालिक ठीक हो जाएँगे, आपने कल से कुछ नहीं खाया है, कुछ खा लीजिए। ठाकुर साहब ने जेब से दो रुपये उसे देते हुए बोले- जा तू खा ले। नौकर पैसे लेकर चाय, बिस्किट ले आया। ठाकुर साहब उसके हाथ का पानी तक नहीं पीते, लेकिन उस दिन उसके हाथ से लायी हुई चाय पी ली। एक कंपाउंडर आया और बोला, इनका ऑप्रेशन होगा 50 हज़ार रुपये जमा कराइये। ठाकुर साहब तो घर से चार-पाँच हज़ार लेकर ही चले थे, वह भी खर्च हो गये। अब क्या करें? बेटे का इलाज ज़रूरी है और पैसे का बंदोबस्त नहीं है। सो नौकर को वहीं छोडक़र घर चल दिये और औने-पौने दामों में गोदाम में भरा गेहूँ बेच डाला, लेकिन पूरी रकम नहीं जुटा सके। पूरे 12,000 कम थे। रिश्तेदारों से माँगते, मगर वे दूर-दूर बसे हुए थे। गाँव में इतनी रकम किस पर होती। फिर याद आया हाजी जी के पास काम हो सकता है, उनका बेटा परदेश में है। हाजी जी से डरते-डरते मुँह डाला; पैसे मिल गये। ठाकुर साहब का बेटा ठीक हो गया। लेकिन ठाकुर साहब का जीने का नज़रिया बदल गया। अब वह सबके साथ उठते-बैठते, किसी से भेदभाव नहीं करते और नौकरों से भी विनम्रता से पेश आते। उन्हें अपने पुराने बर्ताव पर पछतावा होता। सबसे हाथ जोडक़र कहते कि इंसान बनकर जीने में जो सुख है, वो सुख नफरत, घृणा में नहीं है, चाहे घर में कितनी भी दौलत गढ़ी हो।

नीट-2020 में शोएब ने 100 फीसदी अंक लाकर रचा इतिहास

नीट-2020 के लिए इंतजार खत्म हो गया। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने नीट-2020 का परिणाम शुक्रवार को जारी कर दिया। इस बार ओडिशा के शोएब आफताब ने नीट में 100 फीसदी अंक लाकर इतिहास रच दिया है।

शोएब ने नीट में 720 में से 720 अंक हासिल किए हैं यानी उन्होंने सभी सवालों के सही जवाब दिए हैं। इतना ही नहीं, पहली बार ओडिशा से किसी ने ओवरआॅल टाॅप किया है। इस ऐतिहासिक मुकाम को हासिल करने वाले शोएब ने कोटा से कोचिंग ली है और उनके परिजन भी बेहद खुश हैं।

नीट का परिणाम जारी करने में एक वजह यह रही कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। आखिर में शीर्ष अदालत ने जिन परीक्षार्थियों की परीक्षा छूट गई थी, उनको 14 अक्टूबर को दोबारा मौका दिया। इसलिए रिजल्ट को रोक दिया गया था। अब यह परिणम शुक्रवार को जारी किया गया है।

नीट का रिजल्ट देखने के लिए उम्मीदवारों को अपने रोल नंबर, जन्मतिथि और सिक्योरिटी पिन की जरूरत पड़ेगी। नीट का रिजल्ट 13 सितंबर और 14 अक्टूबर को आयोजित हुई दोनों चरण की परीक्षाओं के लिए जारी किया गया है। एनटीए ने आधिकारिक वेबसाइट पर नीट की फाइनल आंसर की भी जारी कर दी गई है।

ऑनलाइन होगी काउंसलिंग

नीट काउंसलिंग 2020 पूरी तरह से ऑनलाइन आयोजित होगी। नीट कटऑफ 2020 वाले उम्मीदवार 80,005 अभ्यर्थी एमबीबीएस में दाखिला ले सकेंगे। 26,949 बीडीएस, 52,720 आयुष और भारत में मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में 525 बीवीएससी और एएच सीटें हैं।

तीन साल तक मिलेगा मौका

नीट 2020 का परिणाम तीन साल की अवधि के लिए मान्य होगा। नीट रिजल्ट वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगा जिसे अभ्यर्थी आसानी से डाउनलोग कर सकते हैं, ताकि आगे इसकी जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करने में आसानी हो।

अस्थमा और हार्ट रोगी वायु प्रदूषण से बचें

वायु प्रदूषण से अस्थमा और हार्ट रोगियों को सतर्क रहने की जरूरत है। एक ओर सर्दी ने दस्तक दें दी है। वहीं कोरोना व वायु प्रदूषण का कहर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है और लोगों की जिदंगी को भी लील रहा है।  वायु प्रदूषण का प्रकोप लोगों को अपने आगोश में ले रहा है और बीमार भी कर रहा है।

इस बारे में मैक्स अस्पताल के हार्ट रोग के विशेषज्ञ डाँ विवेका कुमार का कहना है कि गत सालों से दिल्ली –एनसीआर में सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण कहर बनकर टूट रहा है जो लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। जिससे हार्ट रोगियों को सांस लेने में दिक्कत होती है। उन्होंने बताया कि इस समय कोरोना और वायु प्रदूषण होने के कारण हार्ट रोगियों को सावधान रहने की जरूरत है। अगर सांस लेनें में दिक्कत हो और घबराहट हो तो नजर अंदाज ना करें। इंडियन हार्ट फाउंडेशन के चेयरमैन डाँ आर एन कालरा का कहना है कि सर्दी का मौसम तो कहने को तो हेल्दी मौसम माना जाता है। लेकिन जरा सी लापरवाही होने पर घातक भी हो जाता है। डाँ कालरा का कहना है कि आती और जाती सर्दी  अस्थमा रोगियों  के लिये खतरनाक होती है। इस समय कोरोना महामारी और वायु प्रदूषण से लोगो को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों होती है। उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चों को सांस लेने में काफी परेशानी होती है, जिसके कारण अब बच्चों को नेबुलाईजर लेना जरूरी हो रहा है। डाँ कालरा का कहना है कि अगर वायु प्रदूषण का ऐसा ही मामला चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब युवा, बुजुर्ग और बच्चें लंग इंफेक्शन की चपेट में होगें।

उत्तर प्रदेश में एसडीएम, सीओ की मौजूदगी में भाजपा विधायक के गुर्गे ने हत्या की, कई अधिकारी निलंबित  

उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। हाल की घटनाओं, जिन्होंने देश का भी ध्यान अपनी तरफ खींचा है, के बीच अब अपराधी इतने बेख़ौफ़ हो गए हैं कि बलिया जिले में एसडीएम और सीओ के सामने ही गुंडे ने एक व्यक्ति को गोलियों से भून दिया। इस गोलीबारी में 6 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। यह गुंडा स्थानीय भाजपा विधायक का गुर्गा बताया गया है और खुद भी भाजपा का कार्यकर्ता है। घटना के बाद अब सीओ और एसडीएम के अलावा कुछ अन्य को निलंबित कर दिया गया है।

घटना तब हुई जब वहां दुकानों के आवंटन का काम चल रहा था। बलिया के बैरिया थाना क्षेत्र में दुर्जनपुर में कोटे के दुकान के आवंटन की बैठक के दौरान अधिकारी के पहचान पत्र मांगने के बाद विवाद हो गया जिसमें मारपीट शुरू हो गयी और इस दौरान गोली चल गई। गोली एक व्यक्ति जयप्रकाश पाल को लगी जिसने अस्पताल ले जाते हुए दम तोड़ दिया। हैरानी की बात यह है कि जब इस व्यक्ति की हत्या हुई उस समय एसडीएम और सीईओ वहां उपस्थित थे। आरोपी धीरेंद्र सिंह फरार बताया गया है।

जिस व्यक्ति ने गोली चलाकर हत्या की वह स्थानीय भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह का करीबी है और खुद भाजपा का कार्यकर्ता है। हत्याकांड को लेकर मृतक के भाई ने वहां मौजूद पुलिसकर्मियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। भाई का आरोप है कि जब धीरेंद्र प्रताप और उसके लोग पत्थरबाजी और फायरिंग कर रहे थे तो पुलिस उनको बचाने का प्रयास कर रही थी और मृतक पक्ष के लोगों को पीटकर भगा रही थी।

मृतक के भाई ने यह भी आरोप लगाया है कि वारदात के बाद पुलिस ने हत्याकांड को अंजाम देने वाले आरोपी को पकड़ लिया था लेकिन बाद में उसे भीड़ से बाहर ले जाकर छोड़ दिया।

घटना तब हुई जब कोटे की दुकान के लिए एसडीएम और सीओ की मौजूदगी में गांव में खुली बैठक चल रही थी। मामले का मुख्य आरोपी धीरेंद्र प्रताप सिंह है जो अभी तक फरार है। धीरेंद्र प्रताप सिंह बलिया के बेरिया से भाजपा के विवादित रहे विधायक सुरेंद्र सिंह का करीबी है। गोली लगने के बाद दुर्जनपुर पुरानी बस्ती के  के जयप्रकाश (46) उर्फ गामा पाल की अस्पताल ले जाते वक्त मौत हो गई। घटना में ईंट पत्थर और लाठी डंडे चलने से तीन महिलाओं सहित आधा दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। घायलों को इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सोनबरसा भेजा गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है।

युवक को गोली लगते ही मौके पर भगदड़ मच गई। इसके बाद लोग इधर-उधर भागने लगे। भगदड़ का फायदा उठाकर आरोपी धीरेंद्र सिंह भी मौके से फरार हो गया। पुलिस ने उसके खिलाफ बलिया के रेवती थाने में हत्या का केस दर्ज किया है।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने संज्ञान लेते हुए घटनास्थल पर मौजूद एसडीएम, सीओ सहित सभी पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर एसडीएम सुरेश कुमार पाल, सीओ चंद्रकेश सिंह के साथ ही घटना के दौरान मौजूद रहे सभी आठ पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। पूरे मामले की जांच डीएम श्रीहरि प्रताप शाही करेंगे। मुख्यमंत्री ने आरोपितों के विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए हैं।

हाथरस कांड: सुप्रीम कोर्ट ने कहा – मामले की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट करेगा

बहुचर्चित हाथरस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जांच की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट करेगा। दलित युवती के साथ हैवानियत के बाद हत्या मामले की सीबीआई जांच शुरू हो चुकी है। हाथरस की युवती के साथ ही हैवानियत के दो हफ्ते बाद वह जिंदगी की जंग हार गई थी, जिसके बाद देशभर में सियासी बवाल हो गया था। बावजूद इसके यूपी की पुलिस का रवैया पीड़िताओं के साथ नाइंसाफी भरा ही दिखा।

इसके बवाल बढ़ने पर योगी सरकार ने खुद ही मामले की जांच की सिफारिश सीबीआई से कराने की कर दी। पर पीड़ित परिवार इससे सहमत नहीं था, वह चाहता था कि मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निरानी में हो इसका ट्रायल दिल्ली में हो यानी यूपी से बाहर। परिवार को यूपी पुलिस और प्रशासन पर रत्ती भर भरोसा नहीं है, शायद इसका अंदाजा यूपी सरकार को भी है, इसीलिए उसने पहले ही सर्वोच्च अदालत में हलफनामा देकर कहा था कि वह अपनी निगरानी में जांच करवाए।
सुप्रीम कोर्ट में कई संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर वीरवार को सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उत्तर प्रदेश में फेयर ट्रायल मुमकिन नहीं है क्योंकि जांच में कथित तौर पर लीपापोती की गई है। इन चिंताओं को दूर करते हुए चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे की अगुआई वाली पीठ ने कहा, हाईकोर्ट को इसे देखने देते हैं। अगर कोई समस्या हुई तो हम यहां हैं।

देश की सर्वोच्च अदालत में हुई सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अलावा हरीश साल्वे, इंदिरा जय सिंह और सिद्धार्थ लूथरा जैसे दिग्गज वकीलों की फौज अलग-अलग पक्षों की तरफ से पेश हुई। इनके अलावा भी कई वकील थे जो बहस करना चाहते थे, पर कोर्ट ने कहा कि हमें पूरी दुनिया की मदद की जरूरत नहीं है।

पीड़िता की ओर से वकील इंदिरा जयसिंह ने यूपी में निष्पक्ष जांच और ट्रायल नहीं हो पाने की दलील दी। उन्होंन परिवार के साथ ही गवाहों की सुरक्षा की भी मांग की। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यूपी सरकार की तरफ से कल दाखिल किए गए हलफनामे का जिक्र किया जिसमें पीड़ित परिवार और गवाहों को दी गई सुरक्षा के बारे में जानकारी दी गई है।

इस बीच, सीबीआई की जांच भी तेजी से हाथरस में बढ़ गई है। बुूधवार को जहां जांच एजेंसी ने हाथरस में पीड़िता के पिता और दोनों भाइयों से पूछताछ की थी तो वीरवार को आरोपियों के परिजनों से भी लंबी पूछताछ की है। यूपी के डीजीपी की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि पीठ से यह गुजारिश की गई है कि गवाहों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को तैनात किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत जिसे भी सुरक्षा देना चाहती है, उसे सुरक्षा दी जा सकती है। साल्वे ने कहा कि इसे यूपी पुलिस पर टिप्पणी न माना जाए, बल्कि राज्य मामले में पूरी तरह निष्पक्ष है।

बिटिया की परिवार की तरफ से वकील सीमा कुशवाहा ने मांग की कि जांच के बाद मुकदमे की कार्यवाही दिल्ली की अदालत में की जाए। उन्होंने कहा कि सीबीआई को कहा जाना चाहिए कि वह अपनी जांच पर स्टेटस रिपोर्ट को सीधे सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करे।

नेपाल का भारत के प्रति रुख नरम, अपने रक्षा मंत्री को बदला

चीन से तनातनी के बीच और भारत की तीन जगहों को अपना बताकर नक्शा पेश करने वाला नेपाल अब अपना रुख बदल रहा है। शायद उसे अहसास होने लगा है कि असली दोस्त कौन है-चीन या भारत। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का भारत के प्रति नरम रुख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय सेना प्रमुख एमएम नरवणे की नेपाल यात्रा से ठीक पहले उन्होंने अपने रक्षामंत्री को बदल दिया है।

पीएम ओली ने देश के उपप्रधानमंत्री ईश्‍वर पोखरियाल से रक्षा मंत्री का प्रभार वापस ले लिया है। इसे भारत के साथ रिश्ते सुधारने की ओर का कदम माना जा रहा है। नवंबर में भारतीय सेना प्रमुख को नेपाल की राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी सम्मानित करने जा रही हैं। यह दोनों देशों की सेनाओं के मजबूत रिश्तों की परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रतीक माना जाता है। पहले यह सम्मान इसी साल फरवरी में ही दिया जाना था, लेकिन कुछ कारणों के चलते इसे टाल लिदया गया था।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल के उपप्रधानमंत्री ईश्‍वर पोखरियाल ओली कैबिनेट में भारत के सबसे मुखर विरोधी माने जाते हैं। अब रक्षा मंत्रालय का पदभार खुद पीएम ओली ने अपने पास रखा है। ओली ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है जब भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे 3 नवंबर को नेपाल की यात्रा पर जाने वाले हैं। नेपाल सेना प्रमुख नरवणे को नेपाली सेना के जनरल का मानद दर्जा प्रदान करेगा।

सिनेमा घरों में आज ‘पीएम नरेंद्र मोदी’

‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी फिल्म ‘’पीएम नरेंद्र मोदी’’  लॉकडाउन के बाद सिनेमा घरों में पहली फिल्म बन गई है। इस फिल्म में प्रधानमंत्री के संपूर्ण जीवन काल को दर्शाया गया है, यह फिल्म 2 घंटा 10 मिनट की है। खास बात यह है कि फिल्म में नरेंद्र मोदी का किरदार निभा रहे विवेक ओबेरॉय फिल्म मे नौ अलग-अलग लुक में दिखार्इ दे रहे है।

फिल्म के निर्माता आचार्य मनीष ने आज दिल्ली में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहा, ‘आज भारतीय सिनेमा के लिए एक ऐतिहासिक दिन है, जब एक मौजूदा प्रधानमंत्री पर बनी पहली बायोपिक लॉकडाउन के बाद सिनेमाघरों में दिखायी जाने वाली पहली फिल्म बन गर्इ है।‘

पीएम नरेंद्र मोदी को फिर से उन सिनेमा घरों में रिलीज किया जा रहा है जिन्हें कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन किया गया था। और आज अनलॉक होने के साथ ही सिनेमा घर भी खुल रहे है और सिनेमा घरों मे लॉकडाउन के बाद पहली फिल्म ‘’पीएम नरेंद्र मोदी’’ है।

आज नई दिल्ली के ली मेरिडियन में फिल्म के लेखक आचार्य मनीष और क्रिएटिव डायरेक्टर संदीप सिंह ने प्रेसवार्ता को संबोधित किया जिसमें उन्होंने बताया, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक विवाद के कारण फिल्म को पहले बड़े पैमाने पर रिलीज नहीं किया जा सका था, लेकिन इस फिल्म को अब बड़े पर्दे पर रिलीज़ किया जा रहा है। हांलाकि हमें इस फिल्म को दुबारा रिलीज़ करने में तमाम तरह कि धमकियां मिल रही है जिससे की हम इस फिल्म को बड़े पैमाने पर रिलीज ना कर सके। इस फिल्म में ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ अभिनीत विवेक ओबोरॉय और बायोपिक की टीम के एक वरिष्ठ सदस्य अमित बी वाधवानी ने हाल हीं में उन्हें मिल रही धमकियों को बाद मुंबई की साइबर सेल में शिकायत भी दर्ज कराई है। लेकिन हम अपनी टीम को मिल रही खतरनाक धमकियों से तनिक भी भयभीत नही है।

इस फिल्म का विवरण साझा करते हुए, लेखक व रचनात्मक निर्देशक, संदीप सिंह ने कहा, ‘फिल्म में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की गुजरात में विनम्र शुरूआत से लेकर मुख्यमंत्री बनने और 2014 के चुनाव में शानदार जीत की यात्रा तक को दर्शाया गया है, जो आखिरकार भारत के प्रधानमंत्री बन गये।’ व मैं इस अद्भुत बायोपिक का हिस्सा बनने को अपना सौभाग्य मानता हुं, जिसे ओमंग कुमार ने बड़ी खूबसूरती से निर्देशित किया है। माननीय प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा अपनें आप में बहुत प्रेरणादायक है और फिल्म निश्चित रुप से देश के युवाओं के मनोबल को बढ़ाएगी, क्योंकि कोरोना महामारी से उत्पन्न परिस्थितियां अभी भी बेरोकटोक जारी है।

फिल्म के डायरेक्टर संदीप सिंह ने फिल्म के बारे में बात करते हुए कहा, यह मनोरंजन उद्योग के लिए एक महान क्षण है, क्योंकि कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में किए गए लॉकडाउन के बाद आज फिर से सिनेमा घरों को खोला जा रहा है इस मौके का जश्न मनाने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है कि भारत के एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरक कथा को देखा जाए। हमारी पूरी टीम इस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा होने पर गर्व महसूस कर रही है। व हमारी योजना के अनुसार परले फिल्म को रिलीज नहीं किया जा सका था, लेकिन अब हम उम्मीद कर रहे है कि फिल्म को सिनेमागरों में एक नया जीवन मिलेगा और देशवासियों के लिए यह एक महान घड़ी होगी।’

आपको बता दें, बिहार में विधानसभा चुनाव 28 अक्टूबर से होने वाले है। और इस फिल्म के बिहार चुनाव से पहले दुबारा रिलीज करने पर सवाल भी उठ रहे है। और इस सवाल पर फिल्म निर्माता आचार्य मनीष ने कहा, ‘यह आरोप ठीक नहीं है हम बहुत लंबे समय से इसे फिर से रिलीज करने की तारीख का इंतजार कर रहे थे। लंबे समय तक लॉकडाउन रहने के बाद, सौभाग्य से सिनेमाघरों के दोबारा खुलने के पहले ही दिन 15 अक्टूबर को हमें इसे फिर से रिलीज करने का मौका मिला। बिहार चुनाव महज एक संयोग है।’

महाराष्ट्र में मेट्रो सेवाएं कल से, स्कूल और मंदिर बंद रहेंगे

कोरोना काल में अनलॉक-5 के नियमों की समीक्षा के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने 15 अक्टूबर से मेट्रो रेल सेवाएं शुरू करने की अनुमति दे दी है। अब वीरवार से मुंबई मेट्रो समेत कई अन्य सेवाएं शुरू हो जाएंगी। लेकिन इस बीच, 31 अक्टूबर तक स्कूल और मंदिर नहीं खोलने का फैसला किया गया है। मेट्रो समेत तमाम सर्विसेज को शुरू कराया जा सकता है। राज्य में सभी पब्लिक लाइब्रेरी भी खुल जाएंगी।
राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि मुंबई मेट्रो समेत अन्य सेवाएं फिर से शुरू करने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि महाराष्ट्र में भी दिल्ली की तर्ज पर ही मेट्रो रेल के संचालन के तमाम नियमों का पालन किया जाएगा। इस संबंध में जल्द दिशा-निर्देश भी जारी किए जाएंगे, जिनका अनुपालन अनिवार्य होगा।

राजनीतिक-धार्मिक कार्यक्रम की इजाजत नहीं
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार की ओर से जारी नए नियमों के बावजूद महाराष्ट्र में फिलहाल राजनीतिक कार्यक्रमों और जलसों की इजाजत नहीं दी जाएगी। इसके अलावा वैवाहिक समारोहों या अंतिम यात्राओं में 50 लोगों की सीमा जारी रहेगी। 15 अक्टूबर के बाद महाराष्ट्र में स्थानीय बाजारों को भी खोलने की इजाजत दी गई है। हालांकि कंटेनमेंट जोन में बाजार बंद रहेंगे।

कोरोना प्रोटोकॉल का पालन जरूरी
मेट्रो रेल के संचालन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन समेत नियमों का पूरा ध्यान रखना होगा। इसके अलावा मेट्रो का संचालन किस फ्रीक्वेंसी में होगा, इस पर भी तमाम जानकारियों यात्रियों को मुहैया कराई जाएगी। दिल्ली और यूपी में पहले से ही मेट्रो सेवाओं का संचालन शुरू हो चुका है।

कोरोना काल और बीमारियों से जूझती दिल्ली में भी डाक्टरों की हड़ताल , मरीज बेहाल

राजधानी दिल्ली में कोरोना और वायु प्रदूषण से लोगों का हाल बेहाल है। वहीं दिल्ली में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अस्पतालों में डाक्टरों की हड़ताल के कारण मरीजों को पर्याप्त इलाज तक नहीं मिल पा रहा है। बतातें चलें बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल में डाक्टरों को तीन माह से वेतन नहीं मिला है। जिसकी वजह से डाक्टर्स अपनी वेतन की मांग को लेकर हड़ताल पर है। वहीं अब एमसीडी के दूसरे अस्पताल कस्तूरबा गांधी अस्पताल में भी डाक्टरों ने वेतन ना मिलने पर हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी है।

सबसे चौकानें वाली बात ये है कि डाक्टरों की हड़ताल समाप्त कराने को लेकर कोई राजनीति दल आगे नहीं आ रहा है बल्कि हड़ताल के नाम पर सियासत कर रहे है। क्योंकि दिल्ली में आप पार्टी की सरकार है तो एमसीडी भाजपा के पास है। आप पार्टी का कहना है कि एमसीडी से अस्पतालों को नहीं चलाया जा सकता है तो दिल्ली सरकार के अधीन कर दो। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है कि दिल्ली सरकार के अधीन आने पर एमसीडी के अस्पतालों में डाक्टरों को कोई दिक्कत ना होगी। जबकि भाजपा के नेता व मेयर जय प्रकाश का कहना है कि आप पार्टी जनता को गुमराह कर रही है। जो बजट एमसीडी को मिलना था वो नहीं दे रही है। मरीजों के परिजनों का कहना है कि अस्पतालों में अब सियासत हो रही है। मरीज मर- खप रहे है। इससे किसी को कोई लेना –देना नहीं है।क्योंकि इस समय दिल्ली बीमारियों से जूझ रही है। डाक्टरों की कमी है। सरकारी अस्पतालों में जाकर गरीब मरीज अपना इलाज करवा लेता था । लेकिन अब हड़ताल के चलते मरीज इधर –उधर भटक रहा है। हड़ताल को लेकर वीर सिंह गुर्जर का कहना है कि सरकार कितनी अंसवेदनशील हो गयी है कि कोरोना काल और बीमारियों से जूझती दिल्ली के मरीजों का ध्यान तक नहीं दे रही है।