Wednesday, September 10, 2025
Home Blog Page 742

बिहार का चुनावी रण, इस बार बदल सकते हैं समीकरण

देश के बड़े दलित नेताओं में एक रामविलास पासवान के न रहने और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के एनडीए का कुनबा छोड़ अलग से ताल ठोकने ने बिहार विधानसभा के चुनाव को बहुत दिलचस्प बना दिया है। राज्य में पर्दे के सामने के गठबंधनों की तस्वीर साफ हो गयी है, लेकिन चुनाव के नतीजे और नतीजों के बाद की स्थिति पर्दे के पीछे के गठबंधन तय करेंगे। मुख्य मुकाबला महागठबंधन (राजद+कांग्रेस+अन्य) और गठबंधन (भाजपा+जदयू+अन्य) के बीच होगा, लेकिन चिराग पासवान की लोजपा कितनी सीटें जीतती है और कितनी सीटों पर गठबंधन का नुकसान करती है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण होगा। एक तीसरा मोर्चा भी मैदान में है, जो चुनाव जीतने की दौड़ में तो नहीं दिखता, लेकिन जो भी सीटें जीतेगा, उसका दोनों मुख्य गठबंधनों को नुकसान होगा। दिवंगत रघुवंश प्रसाद सिंह के बेटे सत्यप्रकाश सिंह को जदयू में शामिल करके नीतीश कुमार ने अपना बज़न बढ़ाने की कोशिश की तो वैशाली के पूर्व सांसद रामा सिंह, जिनकी राजद से बढ़ती पींगों ने रघुवंश को खफा किया था; को तेजस्वी यादव अपने खेमे में ले आये। अब चुनाव प्रचार ज़ोर पकड़ चुका है और बिहार देश के राजनीतिक पन्नों पर दिलचस्प इबारत लिखने को तैयार है।

इस चुनाव में भाजपा के गठबंधन की भूमिका को लेकर कई सवाल उठे हैं; कुछ सम्भावनाएँ उभरी हैं। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्व यह है कि भाजपा ने एक रणनीति के तहत चिराग पासवान की लोजपा को अलग से चुनाव लडऩे दिया है। दिखावे के लिए लोजपा को कोसा है; लेकिन अंदरखाने प्रेम बना हुआ है। इसका कारण नतीजों के बाद खुद का मुख्यमंत्री बनाने की भाजपा की वर्षों की चाहत है। दूसरा यह कि बड़े पासवान के दिवंगत होने के बाद चिराग पासवान नतीजों के हक में आने के बाद अपनी पार्टी लोजपा का भाजपा में विलय कर सकते हैं या उसे समर्थन दे सकते हैं। भाजपा के नेतृत्व में बिना जदयू के सहयोग वाली सरकार बन सकती है और चिराग को केंद्र में मंत्री और उनकी पार्टी के किसी नेता को राज्य में उप मुख्यमंत्री का पद दिया जा सकता है।  नीतीश और उनकी पार्टी जदयू इस सारे घटनाक्रम के बाद फिलहाल तो भाजपा के साथ सहज दिखने का नाटक कर रही है, वास्तविकता यह है कि नीतीश भीतर से चिन्तित हैं। उन्हें साफ महसूस हो रहा है कि लोजपा का गठबंधन से बाहर जाकर सिर्फ उसके उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लडऩा चिराग की उनके प्रति नाराज़गी भर नहीं है। जदयू के बहुत-से नेता मानते हैं कि इसके पीछे भाजपा की वह बड़ी महत्त्वाकांक्षा है, जिसमें वह अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। नीतीश के लिए चिन्ता यह भी है कि पिछले काफी समय से वह मुख्यमंत्री हैं और विरोधी लहर भी उन्हें ही झेलनी है।

इसके अलावा एक और पेच है। खुद चिराग पासवान बिहार की राजनीति में मज़बूती से स्थापित होना चाहते हैं। वह अपने पिता की तरह सिर्फ केंद्र की राजनीति नहीं करना चाहते। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, चिराग पासवान की पार्टी की चुनाव रणनीति मशहूर और सफल रणनीतिकार प्रशांत किशोर बुन रहे हैं। प्रशांत कुछ महीने पहले तक नीतीश की पार्टी में थे और उनकी रणनीति तैयार करते थे; लेकिन उन्हें नीतीश ने रुसवा करके बाहर का रास्ता दिखा दिया था। प्रशांत ने खुद को इससे अपमानित महसूस किया था।

चिराग की राजद नेता और कांग्रेस वाले गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव की तारीफ और उन्हें अपना छोटा भाई कहने की रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर की ही सोच थी। इसकी बजह एक भ्रम बनाये रखना था। इस कोण से देखें तो चिराग राजद-कांग्रेस गठबंधन से भी दूरी कम करने की कोशिश करते दिखे हैं। इसके पीछे निश्चित ही उनकी कोई रणनीति हो सकती है। ऐसे में नतीजों के बाद कुछ दिलचस्प गठबंधन आकार ले सकते हैं। हाल में जदयू नेता और प्रशांत के करीबी माने जाने वाले भगवान सिंह कुशवाहा ने एलजीपी का दामन थामा है। सन् 2019 की शुरुआत में जब प्रशांत किशोर जदयू के उपाध्यक्ष हुआ करते थे, तभी भगवान सिंह कुशवाहा को उनके काफी समर्थकों के साथ जदयू वाइन करवाया था। उस समय कुशवाहा को काराकट लोकसभा सीट से टिकट देने का वादा किया गया था।

अभी तक के सर्वे से ज़ाहिर होता है कि इस चुनाव में नीतीश कुमार के सामने बड़ी चुनौती है। चुनौती भाजपा के सामने भी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जानते हैं चुनाव में खराब गत हुई, तो उनके राजनीतिक करियर पर ही सवालिया निशान लग जाएगा। ऐसे में अपनी पार्टी जदयू को सँभालना मुश्किल होगा, क्योंकि बड़े गिद्द नज़र जमाये बैठे हैं। नीतीश लोजपा को लेकर शुरू से चौकन्ने थे; क्योंकि चिराग पासवान ने डेढ़ महीने पहले ही नीतीश और जदयू पर निशाना साधना शुरू कर दिया था।

चिराग भले लोजपा को बहुत नापतौल कर एक रणनीति के तहत चला रहे हों, नीतीश भी कम घाघ नहीं हैं। वह राजनीति को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। चुनाव से बहुत पहले वह वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को अपने पाले में लाने की कोशिश में सफल हो गये थे। रघुवंश अस्पताल से एक पत्र के ज़रिये यह बता चुके थे कि वह राजद छोड़ रहे हैं; क्योंकि वह राजद की उनके विरोधी रामा सिंह को पार्टी में लानी की कोशिशों से बहुत रुष्ट थे। हालाँकि इसी दौरान रघुवंश प्रसाद का निधन हो गया। अब नीतीश उनके बेटे सत्यप्रकाश सिंह को जदयू में ले आये हैं। जदयू के अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं कि उनके साथ आने से पार्टी को लाभ मिलेगा।

उधर पिता के जाने से चिराग अकेले पार्टी और उसकी रणनीति को पूरी तरह पिछले एक साल से देख रहे हैं। चिराग ने पिता रामविलास पासवान के निधन पर जैसा भावुक ट्वीट किया, उससे यह भी ज़ाहिर है कि उन्हें और लोजपा को सहानुभूति के वोट चुनाव में मिल सकते हैं। पिता की सेहत को लेकर चिराग उनकी मौत से कुछ समय पहले से ही चिन्तित थे और मानसिक रूप से इस नुकसान के लिए खुद को तैयार कर चुके थे। उनके एक-दो ट्वीट इसे ज़ाहिर करते हैं। खुद रामविलास कह चुके थे कि चिराग की पार्टी के सभी फैसले करेगा और तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें ही मानना होगा। चिराग की कोशिश अब लोजपा को बिहार में सहयोगी नहीं, बल्कि केंद्र वाली पार्टी बनाने की है। चिराग की लोजपा चुनाव में दूसरे दलों के मज़बूत लोगों को साथ लेने में कोई शर्म-लिहाज़ नहीं कर रही। यहाँ तक की भाजपा के नेता, जिन्हें सीटें जदयू में जाने से टिकट नहीं मिला; लोजपा में आ रहे हैं। इनमें भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राजेंद्र सिंह और पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी और रामेश्वर चौरसिया तक शामिल हैं। चिराग की कोशिश लोजपा को बिहार की ‘आप पार्टी’ बनाने की है।

चुनौती राजद नेता तेजस्वी यादव के सामने भी है। वह पहली बार किसी चुनाव में मज़बूती से मुख्यमंत्री पद के दावेदार बने हैं। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी ने सबसे ज़्यादा सीटें जीती थीं। उनके पिता लालू प्रसाद यादव जेल में हैं। भले जेल से उनकी राजनीतिक गतिविधियाँ चल रही हैं और उनकी जमानत मंज़ूर भी हो गयी है, लेकिन इससे उनके प्रत्यक्ष मैदान में होने जैसा लाभ नहीं मिल सकेगा। ऐसे में तेजस्वी खूब सक्रिय हैं। वह इसी 28 अक्टूबर को पहले चरण के मतदान से पहले कमर कस लेना चाहते हैं। नीतीश कुमार पर सीधे हमले करने के अलावा वह हाल के सैलून में नीतीश सरकार की नाकामियों, खासकर लॉकडाउन के दौरान बेरोज़गार होने वाले लोगों, को बड़ा मुद्दा बना रहे हैं। राज्य में किसानों की हालत और कृषि बिलों को भी किसानों के खिलाफ बताकर भाजपा पर चोट कर रहे हैं।

बीच में जब राजद नेता तेजस्वी यादव का नाम पूर्णिया के शक्ति मलिक हत्याकांड में उछला तो महागठबंधन के खेमे में चिन्ता पसर गयी हालाँकि जल्द ही पुलिस ने उन्हें क्लीन चिट दे दी, तो उसकी जान-में-जान आयी। क्लीन चिट के बाद जदयू और  भाजपा नेतृत्व पर करारा हमला करते हुए तेजस्वी ने इसे उनकी डर्टी पॉलिटिक्स करार दिया। क्लीन चिट मिलने से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उन्होंने सीबीआई से जाँच करवाने की माँग की थी। तेजस्वी ने कहा कि उन पर झूठा इल्ज़ाम लगाया गया।

तेजस्वी यादव ने जदयू पर सीधा आरोप लगाया कि पार्टी ने दलित कार्ड का इस्तेमाल करने की कोशिश की। उनका राजनीतिक मकसद तेजस्वी-तेजप्रताप को फँसाना था। उन्होंने कहा- ‘मैं साफ-सुथरी राजनीति करना चाहता हूँ, पर राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है। हताशा में डर से मुझ पर और मेरे भाई पर झूठा इल्जाम लगाया गया।’ वैसे तेजस्वी के खिलाफ चुनाव में भाजपा और जदयू के पास कहने के लिए कुछ है नहीं। कांग्रेस को लेकर भी भाजपा को राष्ट्रीय स्तर के हिसाब से ही हमला करना होगा, जबकि राजद और कांग्रेस के पास भाजपा-जदयू के खिलाफ कहने के लिए बहुत कुछ है।

रघुवंश प्रसाद सिंह के न रहने और उनके बेटे के जदयू में चले जाने से पैदा हुई कमी को तेजस्वी ने वैशाली के पूर्व सांसद रामा सिंह को साथ जोडक़र की है। राजद ने उनके पत्नी वीणा देवी को महनार से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। बता दें रामा सिंह की राजद से बढ़ती नज़दीकियों के चलते ही, रघुवंश तेजस्वी से खफा हुए थे। रामा सिंह वह नेता हैं, जो चुनाव में रघुवंश जैसे दिग्गज को हरा चुके हैं। यहाँ यह भी दिलचस्प है कि वैशाली की राजनीति में 2014 के लोकसभा चुनाव में रामा सिंह ने लोजपा के टिकट पर रघुवंश प्रसाद सिंह को शिकस्त दी थी। यही नहीं, 2019 के चुनाव में उन्हें वीणा देवी ने ही हराया था। ऐसे में उनका राजद से जुडऩा मायने तो रखता ही है।

उधर हम अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की प्रतिष्ठा पहले ही चरण के चुनाव में दाव पर लगी है। एनडीए के तहत हम सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है, इनमें छ: पर पहले चरण में ही चुनाव होने हैं। पार्टी के सभी वीआईपी प्रत्याशी भी पहले चरण में ही मैदान में हैं। इनमें एक इमामगंज से जीतनराम माँझी स्वयं मैदान में हैं। वहीं, पूर्व मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल कुमार टेकारी से लड़ रहे हैं। मांझी की समधिन ज्योति देवी बाराचट्टी से और दामाद देवेंद्र मांझी मखदुमपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।

भाजपा के सामने चुनौती

यह चुनाव भाजपा के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। वह पिछले छ: विधानसभा चुनाव हार चुकी है और जहाँ सबसे बड़ा दल बनी भी, वहाँ दूसरे दलों के साथ उसे सत्ता साझी करनी पड़ी है, या उसने चुनाव के बाद जोड़-तोड़ से सरकार बनायी है जैसे हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश। महाराष्ट्र जैसा बड़ा राज्य उसके हाथ से निकल चुका है। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में उसे आने वाले समय में विधानसभा के चुनाव झेलने हैं; ऐसे में बिहार में उसकी हार भाजपा को बड़ा नुकसान और जनता में उसके प्रति नकारात्मक संदेश दे सकती है; लिहाज़ा भाजपा बिहार में यह चुनाव हर हाल में जीतना चाहती है।

लोजपा बिहार में उसके साथ नहीं लड़ रही। वहाँ भाजपा को मुकेश सहनी की विकासशील इंसाफ पार्टी (वीआईपी) को 11 सीटें देनी पड़ी हैं, जो आज तक कोई चुनाव नहीं जीती है। यही नहीं, भाजपा ने कहा है कि अपनी सरकार आने पर सहनी को विधानपरिषद् की सीट भी दी जाएगी। करीब 20 उपजातियों वाली निषाद जाति को ध्यान में रखकर भाजपा ने यह फैसला किया है। वीआईपी अभी तक कोई सीट नहीं जीत सकी है, लेकिन भाजपा को लगता है कि उसका, जदयू और वीआईपी का वोट मिलकर फायदा दे सकता है। जदयू के साथ समझौते में भाजपा के हिस्से 121 सीटें आयी हैं। इनमें से 11 वीआईपी ले गयी है, जिसके बाद भाजपा 110 सीटों पर लड़ेगी, जो जदयू की अपने बूते लड़ी जाने वाली 115 सीटों से पाँच कम हैं। जदयू को बँटबारे में 122 सीटें मिली हैं, जिनमें से 7 उसने सहयोगी हम पार्टी को दी हैं। कुल 243 विधानसभा सीटों में सरकार बनाने के लिए 122 सीटें जीतना ज़रूरी है। निश्चित ही इस बार के मुकाबले में यह चुनौती भरा काम किसी भी गठबंधन के लिए है।

भाजपा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर ही पूरी तरह निर्भर है। उसने अलग से लड़ रही लोजपा को मोदी की फोटो अपने पोस्टरों में इस्तेमाल न करने की चेतावनी दी है; लेकिन ऐसा होता दिखा नहीं है। इस बार चुनाव का ज़िम्मा अध्यक्ष जेपी नड्डा ही सँभाल रहे हैं। सीटों का बँटवारा भी उन्होंने ही किया है। गृह मंत्री अमित शाह, जो हाल तक भाजपा के चुनाव प्रबन्धों में गहरी रुचि दिखाते रहे हैं, इस बार बहुत सक्रिय नहीं दिखे हैं। इसका कारण उनका स्वास्थ्य बताया जा रहा है।

मुस्लिम वोट

बिहार विधानसभा चुनावों में जातीय समीकरण के साथ मुस्लिम वोट भी बहुत महत्त्व रखते हैं। इस बार मुस्लिम मतों के विभिन्न दलों के बीच विभाजित होने की बहुत ज़्यादा सम्भावना नहीं दिख रही है। करीब 17 फीसदी मुस्लिम वोट बिहार की पाँच दर्ज़न से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं। सूबे में अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के करीब 26 फीसदी मत के बाद सबसे ज़्यादा मत मुस्लिमों के ही हैं। ईबीसी मत जहाँ कई पार्टियों के बीच बँटते हैं, वहीं मुस्लिम आमतौर पर एकजुट होकर भाजपा के कारण एनडीए के खिलाफ वोट करते हैं।

पिछले चुनाव की बात करें, तो मुस्लिम मतों के एकजुट होने से महागठबंधन के उस समय सहयोगी नीतीश के जदयू, लालू के राजद और कांग्रेस, तीनों को अपने-अपने हिस्से की सीटों पर फायदा मिला था। इस बार नीतीश भाजपा के साथ हैं, तो मुस्लिम मत एकजुट होकर महागठबंधन की तरफ जाने से राजद और कांग्रेस दोनों को बड़ा फायदा मिलेगा; जबकि नीतीश को नुकसान झेलना पड़ेगा। मुस्लिम मत प्रभाव वाली सीटों पर एनडीए के समीकरण इससे गड़बड़ा सकते हैं।

बिहार में करीब 64 सीटें ऐसी हैं, जहाँ मुस्लिम वोटर की तादाद 20-70 फीसदी के आसपास है। यदि मुस्लिम इन सीटों पर किसी एक तरफ जाते हैं, तो उसका असर पड़ेगा ही। कोचधमन, आमौर, जोखीहाट, बलरामपुर, मनिहारी, सिकटा आदि ऐसी सीटें हैं, जो मुस्लिम बहुतायत वाली हैं। चुनाव में मंदिर, नागरिकता कानून जैसे मुद्दे कांग्रेस, राजद बहुत मज़बूती से उठा रहे हैं; लिहाज़ा यह ध्रुवीकरण मुस्लिम मतों की एकजुट बन सकता है, जिसका सबसे ज़्यादा लाभ निश्चित भी राजद-कांग्रेस को मिलेगा। असदुद्दीन ओवैसी भले चुनाव में उम्मीदवार उतार रहे हैं और विपक्ष आरोप लगा रहा है कि वह भाजपा को फायदा देने के लिए आये हैं; ऐसे में देखन दिलचस्प होगा कि मुस्लिम किस हद तक उनका समर्थन करते हैं। हालाँकि इसकी सम्भावना ज़्यादा नहीं दिखती।

नीतीश ने मुस्लिम वोटों के लिए राजद के माई समीकरण को ध्वस्त करने की पूरी कोशिश की है। जदयू ने 115 उम्मीदवारों में से 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिये हैं। यही नहीं, उन्होंने 19 यादव जाति के लोगों को भी टिकट दिया है। नीतीश जानते हैं कि उनके भाजपा के साथ जाने से मुस्लिम वोट उन्हें नहीं मिलेगा; लिहाज़ा उन्होंने 11 टिकट मुस्लिमों को देकर इसकी काट निकाली है। नीतीश ने इसी कारण से हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। सवर्ण, अति-पिछड़ों और अल्पसंख्यक वोटरों में सेंधमारी की कोशिश में उन्होंने अपने वोटों का बिखराव रोकने की कोशिश की है; लेकिन क्या इसका फायदा हो पायेगा? यह तो नतीजों से ही पता चलेगा।

तीसरा मोर्चा

बिहार में ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन, बसपा, उपेंद्र कुशवाहा की रालोजपा और जनवादी पार्टी (समाजवादी) आदि ने तीसरा मोर्चा बनाया है। बिहार चुनाव में सत्ताधारी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस और विपक्षी महागठबंधन को टक्कर देने के लिए पहले से बने तीसरे मोर्चे ने तैयारी की है। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा साथ लाये हैं। ओवैसी पिछले कुछ चुनावों से बिहार में अपनी िकस्मत आजमा रहे हैं और थोड़ा बहुत जनाधार सीमांचल इलाके में बनाने में सफल रहे हैं। हालाँकि इसके बावजूद उनका रोल वोट कटुवा का ही रहेगा। कुशवाहा की पहल पर ही तीसरा मोर्चा बना; क्योंकि राजद से उनकी बात नहीं बनी। उसके बाद नीतीश कुमार से बात चली; लेकिन वहाँभी मामला नहीं जमा। ओवैसी का मानना है कि बिहार की जनता दोनों प्रमुख गठबंधनों के बाहर भी धर्मनिरपेक्ष विकल्प की तलाश रही है। हालाँकि विपक्षी दल उन पर आरोप लगाते हैं कि वह जो भी करते हैं, उससे धर्मनिरपेक्ष वोट का बँटबारा होता है और फायदा भाजपा का। कुशवाहा का वोट बैंक भी है; लेकिन कितनी सीटें यह तीसरा मोर्चा जीत पायेगा? कहना मुश्किल है। इन दलों की कोशिश तो यही दिखती है कि कुछ सीटें जीतकर नतीजों के बाद पेच फँसने की स्थिति में सौदेबाज़ी की जाए।

चिराग जदयू के विरोधी क्यों

चिराग पासवान ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने बताया है कि क्यों वह नीतीश कुमार से नाराज़ हैं। सार्वजनिक हो चुके इस पत्र में उन्होंने नीतीश कुमार के प्रति नाराज़गी जतायी है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की प्रशंसा। चिराग ने मुख्यमंत्री नीतीश के व्यवहार, कार्यशैली और बिहार में अफसरशाही के रोल को अपने आक्रोश की बजह बताया है। चिराग के मुताबिक, राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी के संस्थापक और नेता रामविलास पासवान के प्रति मुख्यमंत्री नीतीश का व्यवहार बेहद खराब था। चिराग के मुताबिक, मुख्यमंत्री नीतीश ने रामविलास पासवान का अपमान किया। लोकसभा चुनाव के दौरान सीटों के बँटवारे में मुख्यमंत्री ने लोजपा को एक राज्यसभा सीट देने की घोषणा की थी;  लेकिन फिर उन्होंने समर्थन नहीं दिया। मुख्यमंत्री उनके (पासवान के) नामांकन के समय नहीं पहुँचे और बाद में विधानसभा आये। इस वजह पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं में आक्रोश था। जदयू नेता मुझे कालिदास और दलाल कहते हैं; जिससे मेरी पार्टी के कार्यकर्ता बहुत खफा हैं। हमारा प्रधानमंत्री मोदी के प्रति पूर्ण विश्वास है; इसके बावजूद एनडीए के सहयोगी नेताओं की बातें लोजपा-भाजपा के रिश्तों में दरार लाने का काम करेंगी।

चुनाव कार्यक्रम

बिहार में इस बार कुल 243 सीटों के लिए तीन चरणों में विधानसभा चुनाव कराये जाने हैं। पहले दौर में 28 अक्टूबर को 71 सीटों पर, दूसरे दौर में 3 नवंबर को 94 सीटों पर और आखरी यानी तीसरे दौर में 7 नवंबर को 78 सीटों पर मतदान होगा। चुनाव नतीजे 10 नवंबर को आएँगे। वैसे बिहार विधानसभा का मौज़ूदा कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है।

एनडीए (गठबंधन)

पार्टी का नाम      सीटें

जदयू     115

भाजपा 110

वीआईपी            11

हम       07

महागठबंधन

पार्टी का नाम      सीटें

राजद    144

कांग्रेस   70

सीपीआई माले    19

सीपीआई           06

सीपीएम             04

मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार

नीतीश कुमार (69 वर्ष)

तेजस्वी यादव (30 वर्ष)

चिराग पासवान (39 वर्ष)

झारखण्ड से भी तय हो रही चुनावी रणनीति

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने बिहार चुनाव का बिगुल झारखंड से फूँक दिया है। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद ट्विटर पर लिखा है- ‘उठो बिहारी, करो तैयारी, जनता का शासन अबकी बारी।’ बिहार चुनाव के लिए चौसर बिछ गयी है। इसकी कुछ मोहरों की चाल झारखंड से भी चली जा रही हैं। इसकी मुख्य वजह राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का रांची (झारखंड) में होना है। वहाँ वह चारा घोटाला मामले में सज़ायाफ्ता हैं। हालाँकि उन्हें जमानत मिल गयी है, मगर वह चुनाव होने तक बाहर नहीं आ सकते। बिहार में चुनावी दाँव खेले जाने की तैयारी चल रही है। सभी प्रमुख पार्टियों के अलावा झामुमो भी बिहार चुनाव में ताल ठोक रहा है। उसने भी 15 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। बिहार में भी राजद, कांग्रेस, झामुमो गठबंधन में चुनाव लडऩे की उम्मीद है, जिसकी योजना रांची में भी तैयार हो रही है।

लालू को मिला है बंगला

अस्वस्थ होने के कारण लालू जेल की बजाय अस्पताल में कैदी बने हैं। पहले उन्हें होटवार जेल की जगह रिम्स में रखा गया था। राज्य में गठबंधन की सरकार है। इसमें झामुमो व कांग्रेस के साथ राजद भी शामिल है। नतीजतन लालू प्रसाद को थोड़ी और सहूलियत मिल गयी। उन्हें कोरोना बचाव के नाम पर रिम्स से रिम्स निदेशक के बंगले में भेज दिया गया। अब लालू बंगले में कैदी के रूप में रह रहे हैं।

कैदी होते हुए लगता रहा दरबार

रिम्स के पेइंग वार्ड में लालू प्रसाद का दरबार लगता रहा है। हाल में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता कोरोना का इलाज के लिए यहीं भर्ती थे। एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें लालू प्रसाद के अलावा बन्ना गुप्ता व कुछ अन्य लोग पेइंग वार्ड की लॉबी में बैठे हुए हैं। इससे पहले भी कई बार रिम्स में लालू के दरबार लगने की तस्वीरें वायरल हो चुकी हैं। अगस्त में लालू यादव को केली बंगले यानी रिम्स निदेशक के बंगले में शिफ्ट कर दिया गया। बंगले में प्रवेश के लिए दो गेट हैं, जो सभी के लिए नहीं खुलते। चर्चा है कि अब यहाँ दरबार लग रहा है, जिसकी तस्वीरें बाहर नहीं पहुँच रहीं।

चुनाव घोषणा के बाद लग रही भीड़

बिहार में चुनाव की घोषणा के बाद लालू दरबार में भीड़ लगने लगी है। बंगले के बाहर लालू से मिलने वाले राजद नेता व कार्यकर्ता सुबह से देर रात तक डटे हुए दिखते हैं। हालाँकि इनमें कितने लोग मिल पाते हैं, यह बता पाना असम्भव है। बंगले के बाहर खड़े राधो यादव ने बताया कि वह राजद के कार्यकर्ता हैं और चुनाव को लेकर लालू प्रसाद से मिलने आये हैं। जेल प्रशासन ने अनुमति नहीं दी है, वह प्रयास कर रहे हैं। बंगले के दोनों गेट भीतर से बन्द है और सुरक्षाकर्मी तैनात दिखते हैं। यहां लोगों की भीड़ अक्सर दिखती है। लेकिन बिहार के विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद भीड़ कुछ ज़्यादा ही दिखने लगी है। हाल में बंगले का निरीक्षण करने के नाम पर स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के लालू यादव से मिलने का मामला सामने आया। इस पर सत्ता पक्ष व विपक्ष में बयाबाज़ी भी हुई, फिर मामला दब गया।

आरोप-प्रत्यारोप है जारी

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। भाजपा नेताओं का कहना है कि राज्य सरकार ने सज़ायाफ्ता लालू प्रसाद के लिए रेड कारपेट बिछा रखा है। स्वास्थ्य के नाम पर उन्हें बंगला दे दिया गया है। यह राजद का चुनावी कार्यालय बन गया है। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता की तरह कई नेता गुपचुप तरीके से लालू से मिल रहे हैं। झारखंड और बिहार के नेता आ-जा रहे हैं। इन्हें राज्य सरकार का संरक्षण प्राप्त है। जेल मैन्युअल की धज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं। इन सभी बातों को राज्य सरकार नज़रअंदाज़ कर रही है। विपक्ष के इस आरोप के जवाब में राजद नेताओं का कहना है कि भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है। लालू प्रसाद जनता के प्रतिनिधि हैं। आज भी लोग उन्हें चाहते हैं। चुनाव में अपनी हार को देखते हुए भाजपा फिज़ूल के आरोप लगा रही है; जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। लालू प्रसाद जेल प्रशासन से अनुमति लेकर नियम के तहत ही मिला जा सकता है। यह सही है कि कुछ लोग नियम के तहत कभी-कभी उनसे मिलने जाते हैं; लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बंगला चुनावी कार्यालय बन गया है।

राज्य सरकार ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद के लिए रेड कारपेट बिछा रखा है। रिम्स निदेशक का बंगला राजद का चुनावी कार्यालय बन गया है। बंगले के अन्दर से बिहार चुनाव का संचालन हो रहा है। लालू प्रसाद से छुप-छुपकर कौन मिल रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। किस तरह से बिहार के लोग यहाँ लगातार पहुँच रहे, यह सभी को दिख रहा है।

प्रतुल शाहदेव

प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा

लालू प्रसाद यादव जन-नेता हैं। उनके अस्वस्थ्य होने और कोरोना वायरस का खतरा होने के भय के कारण उन्हें रिम्स निदेशक के बंगले में शिफ्ट किया गया है। लालू प्रसाद  यादव लोकप्रिय भी हैं, इसलिए उन्हें सभी चाहते हैं। उनके चाहने वाले मिलने के प्रयास में आते हैं। उनके बंगले के बाहर घंटो खड़े रहते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि सब लालू से मिलकर जाते हैं।  अनीता यादव

प्रदेश प्रवक्ता, राजद

चुनावी धुन में व्यस्त हुए नीतीश, कई योजनाएँ रह गयीं अधूरी

अक्सर यह होता है कि जब किसी पार्टी की सरकार बन जाती है, तो उस पार्टी के कर्ता-धर्ता चुनावी वादों को भूल जाते हैं। और जब अगले चुनाव आते हैं, तब वे फिर से नये वादे करके मैदान में उतरते हैं। जनता की भूल यह होती है कि विकास की जिस आस के चलते वह जिस पार्टी को चुनकर सत्ता में लाती है, सरकार बनते ही वह जिस तरह अपने वादे भूल जाती है, जनता भी उसी तरह उनके वादे भूल जाती है। बिहार की भी हालत कुछ ऐसी ही है। यहाँ जदयू और एनडीए गठबंधन वाली वर्तमान राज्य सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्फ सुशासन बाबू के अनेक वादे आधे-अधूरे पड़े हैं और अब वह सब कुछ भूल-भालकर चुनावी तैयारियों में इस तरह मशगूल हो चुके हैं कि उन्हें पुराने अधूरे पड़े कार्यों को पूरा कराने की भी सुध नहीं है। वह अब जनता से फिर से नये वादे कर रहे हैं और नयी-नयी लुभावनी योजनाओं के सपने दिखाने की कोशिशें कर रहे हैं। वर्तमान सरकार में उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को तो जैसे बिहार के विकास कार्यों से कोई मतलब ही नहीं है, अतएव वह चुपचाप राज्य की सत्ता की दूसरे नंबर की कुर्सी पर बैठे आनंद से अपना समय गुज़ारते रहे और अब वह भी चुनावी रण में व्यस्त होने लगे हैं। हालाँकि उन्हें पार्टी की जीत के लिए बहुत अधिक मेहनत-मशक्कत करने की ज़रूरत शायद नहीं है। क्योंकि भाजपा बिहार के विधानसभा चुनाव को इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से लड़ सकती है, जिसके वाहक अमित शाह होंगे; ऐसा अनुमान है। हालाँकि पिछले दिनों उनके बीमार होने पर इसमें संदेह जताया जा रहा था और माना जा रहा था कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी बिहार के चुनाव प्रचार की कमान सँभालेंगे। लेकिन हाल ही में सीटों के बँटवारे में अमित शाह की दखल से मालूम होता है कि बिहार में भाजपा चुनाव भले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़े, पर उसके मुख्य प्रचारक अमित शाह ही हैं। वैसे अब तो उन्हें बहुत ज़्यादा दौडऩे और धूप में कई किलोमीटर की रैली करके खड़े होकर हाथ हिलाते रहने की भी ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अब केवल वर्चुअल रैली ही हो सकेगी। क्योंकि यह विश्व में महामारी के बीच पहला बड़ा चुनाव है, इसलिए इसमें पूरा अहतियात बरतने के दिशा-निर्देश चुनाव आयोग द्वारा जारी किये जा चुके हैं। इन दिशा-निर्देशों में पहला रैलियों पर रोक है। दूसरा निर्देश है कि किसी भी पार्टी के पाँच से अधिक कार्यकर्ता एक साथ घूमकर वोट नहीं माँगेंगे।

बिहार की जनता की नाराज़गी की बात करें, तो वर्तमान सरकार से राज्य के अधिकतर लोग खुश नहीं हैं। हाल ही में एक सर्वे में भी यह बात सामने आ चुकी है। सवाल यह है कि आखिर बिहार के अधिकतर लोग वर्तमान सरकार से क्यों खुश नहीं हैं? इसके कई कारण गिनाये जा सकते हैं; लेकिन प्रमुख कारण है- बिहार का विकास नहीं होना। आज भी बिहार में बाढ़ में उसी तरह गाँव-के-गाँव डूब जाते हैं, जिस तरह दशकों पहले डूब जाया करते थे। हालाँकि इसका दोष किसी एक सरकार को नहीं दिया जा सकता; लेकिन चूँकि अधिकतर सरकारें इस बात का वादा करती हैं कि बिहार में बाढ़ से अब कोई गाँव नहीं डूबेगा, इसलिए बाढ़ खत्म होने के साथ-साथ लोग भी भूल जाते हैं और सरकार भी। लेकिन इसके अलावा अगर नीतीश के मुख्यमंत्रित्वकाल के अन्य विकास के वादों पर गौर करें, तो पता चलता है कि उनकी सात निश्चय योजना भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गयी और कुछ आधी-अधूरी रह गयी। पहले बता दें कि नीतीश कुमार की इसमें पूरी गलती नहीं है। दरअसल प्रशासनिक और ग्राम पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचर इस हद तक हावी है कि अगर किसी योजना का पैसा ऊपर से रिलीज कर भी दिया जाता है, तो नीचे ज़रूरतमंद तक मदद आते-आते उस पैसे का बंदरबाँट हो जाता है। इसके कई उदाहरण हैं। इससे पहले यह जानना ज़रूरी है कि बिहार सरकार की सात निश्चय योजना क्या थी? इस योजना में सात कार्यों को पूरा करने का वादा था। इसमें नल-जल योजना थी, जिसके अंतर्गत हर घर में नल लगाने का नीतीश कुमार की मिली-जुली सरकार का वादा था। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है। समस्तीपुर के रहने वाले दीपेश कुमार बताते हैं कि नल गरीबों के यहाँ नहीं लगे, अमीरों के यहाँ लग गये। गरीबों को थोड़ा-बहुत पैसा देकर टाल दिया गया। वहीं कई लोगों को अभी भी नल लगने का इंतज़ार है। इसी तरह अररिया में तो नल-जल योजना ज़ीरो पर है। यहाँ कोई नल ही नहीं लगा, ऐसा वहाँ के एक निवासी ने बताया। सात निश्चय योजना के ही अंतर्गत मुख्यमंत्री सडक़ योजना भी थी, जिसकी हकीकत तब खुल गयी, जब उद्घाटन होने के कुछ ही दिन बाद एक पुल ढह गया। बिहार के विपक्षी दलों के लोगों की बात अगर न भी मानें, तो भी जनता में जाकर इस बात का साफ पता चलता है कि नीतीश सरकार में बनने वाली कई सडक़ों की तो शुरुआत भी नहीं हो सकी है और पाँच साल बीत गये। इसके अलावा जननी योजना, कबीर अंत्येष्टि योजना भी इसी में हैं, जिनमें पहली में महिलाओं के माँ बनने के दौरान उन्हें सरकारी सुविधाएँ मुहैया कराये जाने के वादे को पलीता लगता दिखा। वहीं कबीर अंत्येष्टि योजना उन लोगों के लिए थी, जिनके मरने पर उनके परिवार की अंतिम संस्कार की सामथ्र्य नहीं है; लेकिन बहुत-से गरीबों के मरने पर उनके परिजनों को इसका लाभ नहीं मिला। इसी तरह हमारा गाँव हमारी योजना भी ठंडे बस्ते में पड़ी है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत बिहार के लाखों घरों में अभी तक शौचालय नहीं बने हैं। सबसे मज़े की बात तो यह है कि बहुत-से घरों में शौचालय पहले से थे। उन्होंने अधिकारियों-कर्मचारियों से साठ-गांठ करके रिश्वत देकर शौचालय का पैसा ले लिया। अररिया के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मिलीभगत और भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से एक ही शौचालय के अलग-अलग एंगल से फोटो खींचकर जमा करके तीन-तीन परिवारों ने पैसे लिये हैं। ज़रूरतमंदों को 8,000 रुपये मिलने पर सौदा तय होता है और उसके नाम पर पैसा लिया जाता है। वहीं कई लोगों ने दो-दो शौचालय भी बनवा लिये हैं और किसी-किसी को कुछ भी नहीं मिल सका है। यही हाल प्रधानमंत्री आवास योजना का है। अररिया के इस व्यक्ति ने बताया कि यहाँ जिनके पास ठीक-ठाक ज़मीन है, अच्छा मकान है, उन्हें भी मकान का पैसा दिलाया गया है और जो वाकई गरीब हैं, जिनके पास न ज़मीन है और न मकान, उन्हें कुछ नहीं मिल सका है।

इस बार नीतीश ने वादा किया है कि जिन लोगों को पहले इंदिरा आवास अलॉट हो चुके हैं और उनका कार्य अधूरा पड़ा है, उनको पूरा करवाने के लिए 50-50 हजार रुपये दिये जाएँगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि 1 अप्रैल, 2010 के पहले इंदिरा आवास योजना के उन लाभार्थियों को जिनका आवास अधूरा रह गया है, राज्य सरकार 50-50 हजार रुपये देगी; ताकि आवास का निर्माण पूरा हो सके। इसके साथ-साथ मुख्यमंत्री ने कुछ कार्यों में तेज़ी लाने की भी बात कही है। सवाल यह है कि अब जब चुनाव में एक महीना भी नहीं बचा है, इतने कम समय में कितना काम हो सकेगा? किसे लाभ मिलेगा और किसे नहीं?

लघु उद्योग लगाने में हो रही देरी

विदित हो कि मौज़ूदा सरकार ने नव प्रवर्तन योजना के तहत राज्य के 38 ज़िलों में 189 लघु उद्योग लगाने को कहा था। चुनाव सिर पर आ गये, लेकिन यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी। हालाँकि सरकार ने इसका खाका खींच रखा है और लघु उद्योग की इस योजना को लेकर तमाम बड़ी-बड़ी बातें, बड़े-बड़े वादे भी कर डाले या कहें कि काम की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने वाले लोगों को एक प्रकार का सपना दिखा दिया। वैसे नीतीश कुमार की गठबंधन वाली सरकार की पिछले दिनों की रिपोर्ट देखें, तो उसमें साफ कहा गया है कि बिहार के हर ज़िले में छोटे उद्योग खोले जाने का सिलसिला शुरू हो गया है। इन्हें ज़िला औद्योगिक नव प्रवर्तन योजना के तहत खोला जा रहा है। इसके लिए सरकार ने सभी ज़िलों को 50-50 लाख रुपये दिये थे। पिछले दिनों सामने आयी एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, सभी 38 ज़िलों में अभी तक 189 छोटे उद्योग चिह्नित हो चुके हैं। बेगूसराय और कैमूर में तो चार जगह काम शुरू होने का दावा भी उद्योग विभाग ने किया था। लेकिन अगर ज़मीनी हकीकत यानी लोगों से पता किया जाए, तो पता चलता है कि कुछेक जगह उद्योग लगने की बात हुई थी; हो सकता है कि कुछ जगह काम भी शुरू हुआ हो, पर उनमें अधिकतर जगह काम अधूरे पड़े हैं और कई जगहों पर तो कोई भी काम नहीं हो सका है। हालाँकि फिलहाल सरकार इस योजना पर चुप्पी साधे हुए है। सरकार ने पिछले दिनों यह भी दावा किया था कि इस योजना के तहत हर ज़िला पदाधिकारी को सूक्ष्म इकाइयाँ स्थापित कराने को 50 लाख की नव प्रवर्तन निधि दी गयी है। इसके लिए ज़िला स्तर पर प्रवासी श्रमिकों या कुशल कारीगरों के समूह भी बनाये गये थे। बताया जा रहा है कि लघु उद्योग योजना के तहत सिलाई केंद्र, पेपर ब्लॉक उपकरण, हस्तकरघा बुनाई केंद्र, बढ़ईगीरी केंद्र, मशरूम प्रसंस्करण केंद्र, शहद निर्माण, बेकरी, स्टील फर्नीचर, खेल का सामान, जैकेट और बैग निर्माण, बांस उत्पादों पर आधारित उद्योग, लाउंड्री, लकड़ी का फर्नीचर, रेडीमेड गारमेंट, पेवर ब्लॉक, ज़री का कार्य, एम्ब्राइडरी, अचार बनाना, हैंडीक्रॉफ्ट, बनाना फाइबर (केले का रेशा निकालना), फुटवियर, पीवीसी बोर्ड, अगरबत्ती निर्माण आदि उद्योग खोले जाने हैं। हालाँकि इसमें कोई दो-राय नहीं कि अगर बिहार में इतनी संख्या में लघु उद्योग खोले गये, तो वहाँ के लाखों लोगों को रोज़गार मिलेगा।

दलित मसीहा राम विलास पासवान नहीं रहे

रामविलास पासवान 50 साल की सक्रिय राजनीति में नौ बार लोकसभा, दो बार राज्यसभा और एक बार विधानसभा के सदस्य रहे। करीब 25 साल तक वह छ: प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में मंत्री पद से नवाज़े गये या कहें उनकी ज़रूरत बने रहे। बिहार से ताल्लुक रखने वाले दिग्गज दलित नेता पासवान की सन् 2000 में बनायी लोक जनशक्ति पार्टी सम्भवत: दुनिया की एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसकी विधानसभा के मुकाबले लोकसभा में उपस्थिति ज़्यादा रही। पिछले ढाई दशक से गठबंधन सरकारों के दौर में छोटी क्षेत्रीय पार्टी होने के बावजूद केंद्र सरकार में हमेशा प्रतिनिधित्व और अहमियत साबित करके बता दिया कि वह वर्तमान दौर के सियासी वैज्ञानिक थे। दिल की बीमारी से 74 वर्षीय रामविलास पासवान के जाने के साथ बिहार ही नहीं, बल्कि देश में दलित राजनीति के एक युग का अन्त हो गया। उनकी दलित समाज में पहुँच और उनके राजनीतिक कद का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि सन् 1996 में प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा की केंद्र सरकार से लेकर वर्तमान में मोदी नीत केंद्र सरकार तक सभी सरकारों में मुख्य दलित चेहरा बने रहे। हालाँकि इससे पहले सन् 1989 में वी.पी. सिंह की सरकार से ही केंद्र सरकार में बतौर मंत्री दलित चेहरा बनकर उभर चुके थे। बिहार में भले ही उनकी पार्टी कभी टॉप-3 में न रही हो, लेकिन केंद्र में हिस्सेदार रही। उनका मिलनसार अंदाज़ पक्ष-विपक्ष के साथ पत्रकारों को भी खूब भाता था। पासवान सबको साधने और सबसे सधने वाले नेता के तौर पर हमेशा याद किये जाएँगे।

पासवान के सियासत में आने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। बिहार के खगडिय़ा में दलित परिवार में जन्मे रामविलास पासवान ने एमए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी। शुरुआत में उनका रुझान पुलिस फोर्स में जाने का था, उनका चयन डीएसपी के पद पर हो भी गया था। मगर इस बीच एक वाकये ने उनके करियर का अलग ही रास्ता खोल दिया। दरअसल एक बार घर लौटने के दौरान रामविलास ने देखा कि उनके गाँव के पास कुछ लोग एक दलित शख्स की पिटाई कर रहे हैं। शख्स पर 150 रुपये न लौटाने का आरोप था। तभी पासवान ने मामले में हस्तक्षेप किया और पुलिस वालों को जमकर खरी-खोटी सुनायी। इतना ही नहीं, इस घटना से वह इतने आहत हुए कि उन्होंने डीएसपी की नौकरी छोड़ दी। उन्होंने सियासत की ओर रुख किया। उसी दौरान वह जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन से जुड़े। इसे महज़ संयोग कहें या कुछ और कि जे.पी. ने 41 साल पहले 8 अक्टूबर को अंतिम साँस ली थी और रामविलास ने भी इसी तारीख को अपना नश्वर शरीर त्यागा। पासवान को राजनीति में लाने का श्रेय समाजवादी नेता राम सजीवन को जाता है। उनके सम्पर्क में आने के बाद ही पासवान की सियासत में दिलचस्पी जगी। इसके बाद उन्होंने जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर जैसे सियासतदाँ से गुर सीखे। पासवान ने पहला चुनाव 1969 में लड़ा। अलौली विधानसभा से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर उनको मौका मिला और चुनकर विधानसभा पहुँचे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। सन् 1977 में वह जनता पार्टी के टिकट पर हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़े और सबसे अधिक 4.24 लाख वोटों के अन्तर से चुनाव जीतने का विश्व रिकॉर्ड बना लिया। सन् 1989 में रामविलास ने इसी सीट से अपना ही रिकॉर्ड तोडक़र नया कीर्तिमान स्थापित किया। हालाँकि बाद में यह रिकॉर्ड दूसरे नेताओं ने तोड़ दिया। दिलचस्प है कि जिस हाजीपुर सीट से जीत का रिकॉर्ड बनाया था, उसी सीट से सन् 1984 में पासवान हार भी गये थे।

सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में भी पासवान को राम सुंदर दास जैसे बुजुर्ग समाजवादी से हार का सामना करना पड़ा था। सन् 2014 में लोकसभा में पासवान ने हाजीपुर से चुनाव जीता और संसद पहुँचे। हालाँकि 17वीं यानी पिछली लोकसभा का चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा, बल्कि राज्यसभा के रास्ते से संसद परिसर में अपनी सीट सुरक्षित की। अपनी पूरी राजनीतिक यात्रा में पासवान नौ बार लोकसभा, दो बार राज्यसभा, तो एक बार विधानसभा के सदस्य रहे। उनके लिए सुखद अहसास यह रहा है कि उनको सत्ता के लिए नाक नहीं रगडऩी पड़ी; बल्कि सत्ता खुद उनके पास चलकर आती रही। सन् 2004 में पासवान को साधने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पैदल ही उनके निवास पर पहुँचीं, तो सन् 1989 में वी.पी. सिंह ने उन्हें मंत्री ही नहीं, लोकसभा में सदन का नेता भी बनाया। फिर जबसे गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ, तो मानो पासवान की लॉटरी ही लग गयी। सन् 1996 से लेकर अब तक वह हर सरकार का हिस्सा या कहें कि ज़रूरत बने रहे। खास बात यह रही कि दलित राजनीति में चाहे बाबू जगजीवन राम का दौर हो या कांशीराम का या अब मायावती का, मात्र बिहार में क्षेत्रीय पार्टी या स्थानीय नेता होने के बावजूद पासवान का िकला दलित राजनीति के मोर्चे पर मज़बूत रहा।

बिहार से ज़्यादा दिल्ली में अहमियत

20 साल पहले पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी बनायी लम्बे समय तक इसके अध्यक्ष रहे। पासवान ने सन् 1981 में अनुसूचित जाति के लोगों को इंसाफ और हक दिलाने के लिए दलित सेना संगठन की भी स्थापना की थी। पासवान के सियासी वैज्ञानिक होने का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दी पट्टी के बिहार की सबसे छोटी पार्टियों में शामिल होने के बावजूद उनकी सत्ता में भागीदारी हमेशा रही। पर उनकी यह भागीदारी उनके अपने राज्य बिहार में नहीं, बल्कि केंद्र सरकार में ज़्यादा रही।

सरकार कोई भी, पर मंत्री ज़रूर रहे

पासवान की ज़िन्दगी तमाम उतार-चढ़ाव वाली रही। इसके बावजूद वह सन् 1969 से लेकर आधी सदी तक ‘माननीय’ के तौर जीये। सन् 1996 से लेकर वर्तमान मोदी नीत केंद्र सरकार तक सभी सरकारों में मंत्री रहना भी असाधारण योग्यता को दर्शाता है। पासवान सन् 1989 में वी.पी. सिंह सरकार से लेकर एच.डी. देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की कैबिनेट का अहम हिस्सा रहे। पासवान सन् 1989 से 90 के बीच वी.पी. सिंह सरकार में केंद्रीय श्रम और कल्याण मंत्री, सन् 1996 से सन् 1997 तक देवगौड़ा सरकार में रेलमंत्री, सन् 1997 से सन् 1998 तक गुजराल सरकार में रेलमंत्री, सन् 1998 से सन् 2001 तक वाजपेयी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री, सन् 2001 से सन् 2002 तक वाजपेयी सरकार में ही कोयला मंत्री, सन् 2004 से सन् 2009 तक मनमोहन सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री और सन् 2014 से सन् 2019 में मोदी सरकार में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री और सन् 2019 से 8 अक्टूबर, 2020 तक वर्तमान केंद्र सरकार में उपभोक्ता मामलों के मंत्री रहे।

सन् 1990 में संसद में अंबेडकर का चित्र लगवाया

पासवान के प्रयासों का ही परिणाम था कि सन् 1990 में संसद के सेंट्रल हॉल में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का चित्र लगाया गया। यह पासवान ही थे, जिन्होंने सरकार को इस बात के लिए राज़ी किया कि जो दलित बुद्ध धर्म अपना रहे हैं, उन्हें भी आरक्षण का फायदा मिले। पासवान की यह माँग भी चर्चा का विषय रही थी कि सीवर की सफाई करने वाले कर्मचारियों का वेतन एक आईएएस अफसर जितना हो।

हाजीपुर को बनाया रेलवे का क्षेत्रीय मुख्यालय

निजी ज़िन्दगी में तमाम किन्तु-परन्तु के बावजूद पासवान ने अपने लम्बे सियासी करियर में कार्यकर्ताओं का भी पूरा खयाल रखा। कभी भी उनके कार्यकर्ताओं या समर्थकों की बड़ी नाराज़गी का उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। यह उनके चाहने वालों का ही नतीजा रहा कि जब रामविलास रेल मंत्री बने, तो अपने निर्वाचन क्षेत्र हाजीपुर में रेलवे का क्षेत्रीय मुख्यालय खुलवा दिया। इतना ही नहीं, पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी-शाह की अटूट जोड़ी से भी अपना सियासी नफा तय कर लिया। बिहार में लोकसभा की छ: सीटों पर अपनी पार्टी सदस्यों के लडऩे का समझौता करने के साथ ही असम से खुद राज्यसभा पहुँचने का इंतज़ाम कर लिया।

कोरोना के बाद नयी बीमारियाँ दे रहीं दस्तक

हमारा वातावरण इतना दूषित हो चुका है कि आने वाले समय में लोगों का जीना और भी मुश्किल होने वाला है। यह बात मैं नहीं, बल्कि कई वैज्ञानिक, अनुभवी लोग और चिकित्सा विशेषज्ञ कह चुके हैं। पिछले दिनों मैं एक रिसर्च पढ़ रही थी, जिसमें लिखा था कि हवा में हर समय सूक्ष्म कीटाणु तैरते रहते हैं, जिनमें कई विषाणु और रोगाणु होते हैं। ये रोगाणु और विषाणु मौसम दर मौसम पनपते रहते हैं और हमें प्रभावित करते रहते हैं। इनमें सैकड़ों रोगाणु और विषाणु ऐसे हैं, जो किसी भी मौसम में नहीं मरते और हम इंसानों पर हमेशा हमला करते रहते हैं। इनसे बचने का सबसे अच्छा तरीका स्वस्थ्य रहना है।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धवल कहते हैं कि कोरोना वायरस ने हमारी सबकी मास्क पहनने की आदत डाल दी। कुछ लोग इसे मुसीबत की जड़ या झंझट समझते हैं; लेकिन उन्हें यह बात नहीं मालूम कि केवल मास्क से वे कई बीमारियों से बच रहे हैं। यहाँ तक कि अगर वे लगातार मास्क का इस्तेमाल करते हैं, तो उनमें खाँसी-जुकाम और दमा के साथ-साथ श्वास के अन्य रोगों के होने की सम्भावना कम हो जाएगी। यह तो बीमारियों के फैलने और उनसे बचने का आम  तरीका है; लेकिन इस समय की बात करें, तो हर कोई इन दिनों महामारी की तरह फैली कोरोना वायरस नाम की खतरनाक बीमारी से घबराया हुआ है। अब एक और बुरी खबर यह है कि जबसे कोरोना वायरस की महामारी फैली है, तबसे अब तक कई नयी बीमारियों की भी पुष्टि हो चुकी है।

हालाँकि इन नयी बीमारियों पर उतना हो-हल्ला नहीं हुआ है, क्योंकि यह कोरोना वायरस की तरह खतरनाक नहीं पायी गयी हैं। लेकिन अगर चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें, तो अभी और भी नयी बीमारियाँ पनप सकती हैं, जिनमें कुछ कोरोना वायरस की तरह जानलेवा और खतरनाक हो सकती हैं। वैसे पिछले दिनों इस तरह की कई अफवाहें भी फैली थीं कि अब कोरोना से भी खतरनाक बीमारी आने वाली है, जिससे गाँव के गाँव और शहर के शहर समाप्त हो जाएँगे। डॉक्टर धवल कहते हैं कि हमें अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए; लेकिन अपनी सुरक्षा पर पूरा ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि आने वाला समय नाज़ुक तो है ही। डॉक्टर धवल कहते हैं कि कोई बीमारी भले ही वह कितनी भी छोटी हो, अगर उसका समय पर इलाज नहीं कराया जाए, तो वह बड़ी चुनौती हो सकती है और जान भी ले सकती है। इसलिए हर बीमारी को जानलेवा ही मानना चाहिए और शुरुआत में ही बीमारी के लक्षण पता चलते ही सही डॉक्टर से उसकी जाँच कराकर इलाज कराना चाहिए।

नयी बीमारी का भारत में पहला केस

अगर नयी बीमारियों की बात करें, तो इन दिनों अमेरिका और यूरोपीय देशों के बच्चों में एक अजीब तरह की बीमारी, जिसमें बच्चे के दोनों पैरों पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं और पूरे शरीर में सूजन आ जाती है; तेज़ी से पनप रही है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में पनपी यह बीमारी कोरोना वायरस से जुड़ी है, जिसमें कोरोना वायरस के जुड़े हाइपर इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम पाये गये हैं। चिकित्सा रिपोट्र्स की मानें तो इस रहस्यमयी बीमारी ने अब तक कई बच्चों की जान ले ली है। अब इस बीमारी ने भारत में भी दस्तक दे दी है। पिछले दिनों चेन्नई के एक 8 वर्षीय बच्चे में कोरोना वायरस से जुड़े हाइपर-इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम के लक्षण पाये गये। भारत में इस सिंड्रोम का यह पहला मामला है। माना जा रहा है कि इस नयी बामारी से बच्चों की जान जाने का खतरा रहता है।

पिछले दिनों कोरोना वायरस से संक्रमित इस बच्चे को चेन्नई के कांची कामकोटि चाइल्डस ट्रस्ट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहाँ बीमार बच्चे को आईसीयू में रखा गया। इस बच्चे के शरीर में उत्पन्न होने वाले विषाक्त पदार्थों के अलावा कावासाकी बीमारी के लक्षण मिले थे। डॉक्टर धवल से इस बीमारी के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि इस बीमारी में बच्चों की रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाती है, जिससे उसके शरीर में सूजन आ जाती है और बच्चे धीरे-धीरे निढाल हो जाते हैं।

डॉ. धवल ने कहा कि जिस नयी बीमारी के बारे में आप बात कर रही हैं, उसके बारे में अभी मैं भी ठीक से नहीं जान पाया हूँ; लेकिन ज़रूरी है कि बच्चों की हर बीमारी के बारे में मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा जान सकूँ और उसका सही इलाज कर सकूँ। इस बीमारी के बारे में मैं जहाँ तक जान पाया हूँ, तो यह कि यह कोरोना वायरस के लक्षण वाली बीमारी है, जिसमें बच्चे के अन्दर सेप्टिक शॉक के साथ निमोनिया, कोविड-19 पेनुमोनिटिस, कावासाकी रोग और विषाक्त शॉक सिंड्रोम के लक्षण पाये जा सकते हैं। डॉक्टर धवल की बात सही पायी गयी, चेन्नई के बीमार बच्चे के शरीर में बीमारी के यही लक्षण मिले थे। हालाँकि अच्छी बात यह है कि इस बच्चे को कुछ दवाओं की मदद से काफी हद तक ठीक कर दिया गया। लेकिन बच्चे को कोई दिक्कत होने पर उसकी स्वास्थ्य जाँचें अभी भी की जा सकती हैं; यह सलाह चिकित्सकों द्वारा बच्चे के परिजनों को दी जा चुकी है।

चीन में मिला फिर नयी बीमारी का केस

कोरोना वायरस फैलने की शुरुआत में कुछ रिपोट्र्स ऐसी आयी थीं, जिनमें कहा गया था कि कोरोना वायरस चीन से फैला। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कुछ अन्य देशों के नेताओं ने भी यह बात कही थी।

ट्रंप ने तो कई बार दावे किये थे कि कोरोना वायरस चीन ने ही फैलाया, क्योंकि उसके वुहान शहर की लैबोरेट्री में इस वायरस को पैदा किया गया और वह लीक होने से दुनिया भर में तबाही मचा रहा है। कई प्रमाण भी ऐसे मिले, जिसमें चीन पर संदेह भी गया; लेकिन चीन ने इसे सिरे से नकार दिया और जाँच नहीं होने दी। लेकिन अब फिर पिछले दिनों चीन के इनर मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र के शहर में नये तरह के बुखार ब्यूबॉनिक प्लेग का एक मामला सामने आया है।

खबरों के मुताबिक, बायानूर शहर में मिला इस बीमारी से पीडि़त मरीज़ एक चरवाहा है और उसे क्वारंटीन में रखा गया है। हालाँकि मरीज़ की हालात स्थिर बतायी जा रही है। लेकिन चीन के अधिकारियों ने लेवल तीन की वॉर्निंग जारी की है; जबकि वॉर्निंग लेवल चार पर मरीज़ की जान पर बन सकती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक, ब्यूबॉनिक प्लेग वायरस के संक्रमण से होता है। ये वायरस काफी खतरनाक हो सकते हैं; लेकिन आमतौर पर एंटी बायोटिक दवाइयों से इनका इलाज सम्भव है। चीन में पाये गये मरीज़ में यह संक्रमण कैसे फैला? इसकी पुष्टि खबर आने तक नहीं हो सकी थी।

क्या दुनिया में फैल चुकी हैं 15 और नयी बीमारियाँ?

अगर नवीनतम लैंसेट सर्वेक्षण की रिपोट्र्स की मानें तो हाल के दिनों में 15 नयी बीमारियाँ फैल चुकी हैं। लैंसेट सर्वेक्षण में ही इन बीमारियों की पहचान की है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ये सभी बीमारियाँ कोरोना वायरस से भी अधिक घातक हैं। इनमें से प्रत्येक की सालाना मृत्यु दर 10 लाख बतायी जा रही है। यानी अगर ये बीमारियाँ पूरी दुनिया में फैलती हैं, तो हरेक बीमारी हर साल तकरीबन 10 लाख लोगों की जान ले सकती है। अंतर्राष्ट्रीय चिकित्कों ने इन बीमारियों को काफी घातक बताया है। चिकित्सा रिपोट्र्स की मानें, तो यह साल यानी 2020 अब तक सबसे ज़्यादा बीमारियाँ देने वाला साल बन चुका है।

इसके अलावा पहले से ही अनेक पुरानी बीमारियों से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा दिलाने वाली कोई बेहतरीन दवा ऐलोपैथ में नहीं बन सकी है, जिनमें शुगर, थायराइड, हृदय रोग, कैंसर, एड्स, किडनी, फेफड़ों और हड्डी से सम्बन्धित बीमारियाँ हैं। इन बीमारियों के चलते हर साल लाखों लोगों की मौत होती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, कैंसर, वृक्क रोगों और तपेदिक से हर साल करीब 4.43 करोड़ लोगों की मौत हो रही है। इसकी वजह ज़्यादातर जगहों पर चिकित्सा सुविधाओं का घटिया होना बताया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण इस साल 16.6 लाख लोग तपेदिक के शिकार हो सकते हैं। सवाल यह है कि क्या आने वाले समय में पुरानी और नयी बीमारियों से धरती की स्थिति बदल जाएगी? क्या आने वाले समय में धरती पर इंसानों की संख्या तेज़ी से कम होगी?

भारत में इस समय लगभग 9 करोड़ में थैलेसीमिया और मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की जनगणना के अनुसार, देश भर (भारत) में लाखों बच्चों को मार्च, 2020 में निर्धारित समय पर टीका नहीं लग सका है। इसके अलावा अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त में भी लाखों बच्चे टीके से वंचित रहे हैं। अभी भी गाँवों, यहाँ तक कि कस्बों और शहरों में भी बच्चों और गर्भवती महिलाओं को ठीक से टीके नहीं लग पा रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि अधिकतर लोग अब भी कोरोना वायरस से डरे हुए हैं। इसके चलते नवजात मृत्युदर में बढ़ोतरी होने की आशंका भी जतायी गयी है।

88वें वायुसेना दिवस पर दिखाया दम

मैदान में धूल चटाना, भारतीय सेनाएँ बहादुरी दिखाने से पीछे नहीं हटतीं।  8 अक्टूबर को 88वें वायुसेना दिवस के अवसर हिंडन (गाज़ियाबाद) में वायुसेना के लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों ने जो अनोखे करतब दिखाये, वह भारत के लिए गौरव की बात है, तो दुश्मन देशों के लिए संदेश कि भारत से उलझने में उन्हें बड़ा नुकसान उठाना होगा। इस अवसर पर पुलवामा हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना की बालाकोट एयर स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाने वाली स्क्वाड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल को युद्ध सेवा पदक से सम्मानित किया गया। वह पहली महिला हैं जिन्हें युद्ध सेवा पदक मिला है। इस अवसर एयर चीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया ने कहा कि भारतीय वायु सेना ने अपने इरादों, संकल्प, अभियान क्षमता और कभी भी ज़रूरत पडऩे पर अपने दुश्मन से आक्रामक और प्रभावी रूप से निपटने के लिए स्पष्ट रूप से तैयार है, जिसका प्रदर्शन किया गया है। इस अवसर पर वायुसेना प्रमुख ने देशवासियों को आश्वस्त करते कहा कि सभी परिस्थितियों में राष्ट्र की सम्प्रभुता और हितों की रक्षा के लिए बल हमेशा तैयार रहेगा और स्वंय को विकसित करता रहेगा।

मौज़ूदा दौर में भारत और चीन सीमा पर चल रहे तनाव को लेकर इस बार जो अनोखे करतब वायुसेना द्वारा दिखाये गये हैं, उससे चीन ज़रूर सहमा होगा। भदौरिया ने कहा कि हम उत्तरी सीमाओं पर हाल के गतिरोध में तनाव बढऩे पर तुरन्त प्रतिक्रिया देने के लिए हम वायुसेना के योद्धाओं की सराहना करते हैं। उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच गत 5 महीनों से तनावपूर्ण गतिरोध की स्थिति बनी हुई है। ऐसे हालात में वायुसेना ने किसी भी स्थिति से निपटने के लिए क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपकरणों के साथ-साथ आधुनिक लड़ाकू विमान तैनात किये हुए हैं। क्योंकि पड़ोसी देशों की हरकतों के चलते हालात और जटिल होते जा रहे हैं और सुरक्षा परिदृश्य की दृष्टि से युद्ध में वायुसेना की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भदौरिया ने कहा कि आतंकवाद और साइबर जगत से पैदा होने वाले खतरे भी क्षेत्र में हैं। ऐसे में विनाशकारी टेक्नोलॉजी और ड्रोन जैसे सस्ते विकल्पों तक सुगम पहुँच को देखते हुए खतरों पर बहुत अधिक सावधान रहने की ज़रूरत है।

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चल रहे तनाव पर उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना हर स्तर पर निपटने में समक्ष है। भदौरिया ने कहा कि वायुसेना दोनों मोर्चो पर लडऩे को तैयार है। भारत के सामने चीनी हवाई ताकत बेहतर नहीं है; क्योंकि राफेल लड़ाकू विमानों के आने से वायुसेना की ताकत में इज़ाफा हुआ है। भविष्य में ज़रूरत पडऩे पर और भी फ्रांस से लड़ाकू विमानों को खरीदा जा सकता है।

राफेल विमानों की पहली खेप से हमारी युद्धक क्षमताओं में बढ़ोतरी हुई है, जिससे हम हवा में और मज़बूत हुए हैं, जिसके बल पर हम दुश्मनों की किसी भी हरकत का मुँहतोड़ जबाव दे सकते हैं। पड़ोसी दुश्मन देशों के उभरते खतरे के परिदृश्य में पूरे क्षेत्र में युद्ध लडऩे के लिए मज़बूत क्षमता ज़रूरी है। भदौरिया ने कहा कि लद्दाख एक छोटा हिस्सा है। पूर्वोत्तर में कार्रवाई की योजना तैयार है और वहाँ भी हम मज़बूत हैं। हमने कई ऑपरेशनल इलाकों में तैयारी कर रखी है, ताकि किसी भी विषम परिस्थिति व आपात स्थिति में हम उस पर कार्रवाई कर सकें। चीन को हम किसी भी स्थिति में चुनौती दे सकते हैं। हिंडन क्षेत्र में आकाश में प्रदर्शन करते वायुसेना के सूर्याकिरण विमान, राफेल विमान, एंटी एयरगन ने अनोखे अंदाज़ में जो करतब दिखाये और चिनूक ने जिस तरह कंटेनर उठाये उससे लोग आश्चर्यचकित रह गये।

बताते चले कि इन दिनों दुनिया कोरोना वायरस जैसी महामारी से जूझ रही है, तो वहीं पड़ोसी मुल्कों के कायराना रवैये के कारण आये दिन भारत की सीमाओं पर तनाव भरा माहौल है, जिसकी वजह से सम्भावित विश्व युद्ध की आहट सुनायी देने लगती है। ऐसे हालात में हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है। भले ही कूटनीतिक स्तर पर माहौल को शान्त करने के प्रयास किये जाते रहे हों, लेकिन मौज़ूदा समय में जो भी हो रहा है, उसमें हमें शान्तिवार्ता से लेकर युद्ध स्तर तक हर मौर्चे पर चौकस रहने की ज़रूरत है। ऐसे माहौल में वायुसेना की अपार उपलब्धियों पर देश को गर्व है। वायुसेना वीरता और क्षमताओं के बल पर देश सुरक्षित है, क्योंकि वह दुश्मनों के छक्के छुड़ाने में सक्षम है।

लोहा भी भस्म कर देने वाली साँस बचाइए

हम गहरी साँस लेते हैं और धीरे-धीरे छोड़ते हैं। हर पल, चाहे दिन हो या रात हमारे फेफड़े वायु ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। इस पूरी क्रिया का लक्ष्य होता है- शरीर के अंगों-प्रत्यंगों को ऑक्सीजन पहुँचाकर उन्हें सक्रिय रखना। शरीर में जो कोशिकाएँ होती हैं, वे ऑक्सीजन से ऊर्जा का निर्माण करती हैं। यह पूरी प्रक्रिया शरीर के विकास के लिए ज़रूरी होती है, जो जीवन रहने तक अनवरत चलती रहती है। ऑक्सीजन जब फेफड़ों में पहुँचती है, तो वो छोटे गुब्बारे की तरह फूल जाते हैं। वायु न पहुँचने पर  सिकुड़ जाते हैं, फिर पानी और ग्लूकोज से कोशिकाएँ सक्रिय होती हैं और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।

इंसान को ताज़ा हवा के लिए खिड़कियों को खुला रखने और बाहर जाकर टहलने की सलाह दी जाती है। उसे पानी पीते रहने को कहा जाता है, ताकि शरीर को ऑक्सीजन मिलती रहे और कार्बन डाइऑक्साइड निकलती रहे। शरीर में पर्याप्त पानी होने से ऑक्सीजन का स्तर दुरुस्त रहता है। उसे आयरन युक्त भोजन लेने और व्यायाम करते रहने, योग करने की राय दी जाती है। ऑक्सीजन को उपलब्ध कराने मेें पेड़-पौधों की भी भारी उपयोगिता है। इनसे सुबह से शाम तक शुद्ध वायु मिलती है। ये दिन में कार्बनडाई ऑक्साइड वातावरण से लेते हैं और ऑक्सीजन देते हैं। लेकिन विकास के चलते हरीतिमा अब घट गयी है। इस कारण तरह-तरह की व्याधियों में बढ़ोतरी हुई है।

ऐसी ही भयावह व्याधि कोरोना वायरस है, जिसकी चपेट में आज पूरी दुनिया है। मानव शरीर में ऑक्सीजन की कमी न केवल कोरोना वायरस, बल्कि बदलते मौसम और खेतों मेें पराली जलाये जाने से अब ज़्यादा महसूस होने लगी है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद कारखानों से दूषित वायु से पूरे वातावरण में प्रदूषण फैलता है। साथ ही कचरा जलाने का सिलसिला अभी थमा नहीं है। मानसून के समापन के बाद वायु की गति भी 10 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा हो गयी है। इसमें घटाव अभी रहेगा। हवा में विषैले तत्त्व वायुमंडल में घुलमिल जाते हैं। जब आकाश में बादल होते हैं। तब तापमान कम होता है और शान्त वायु अपनी गति से बहती है, तो विषैले तत्त्व भी ज़मीन की ओर आने लगते हैं। लेकिन जब हवा की गति तेज़ होती है और तापमान ज़्यादा होता है, तो हवा से विषैले पदार्थ इधर-उधर हो जाते हैं। एअर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च के अनुसार, तापमान में कमी और हवा की गति में घटाव इधर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में दिख रहा है। इस बार की सर्दियों में न केवल कोराना वायरस, बल्कि मौसम परिवर्तनों के चलते सारी दुनिया में पड़ रहे प्रभावों का भारत पर भी असर पड़ सकता है। दिल्ली और आसपास के राज्यों में खेतों में पराली जलाने के कारण और कारखानों से दूषित वायु साफ करके वायुमंडल में छोडऩे की प्रक्रिया के अभाव में बढ़ रहे खतरों के प्रति मौसम वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं। देश में ऑक्सीजन बनाने वाले कारखाने पूरे देश में खासे कम हैं, इस कारण हर प्रदेश में सहज़ व्याकुलता है। कर्नाटक में तो प्रदूषण के चलते ऑक्सीजन के छोटे-छोटे कैफे भी खुले थे, जो लॉकडाउन में बन्द हो गये, जो अब भी बन्द हैं; क्योंकि उन्हें पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कोराना वायरस के मरीज़ों तक को अब तय मात्रा में ऑक्सीजन दी जा रही है। ऑक्सीजन खास तौर पर अस्पतालों और कुछ आद्यौगिक कारखानों को ही अमूमन दी जाती रही है; लेकिन अब खपत बढऩे के साथ उत्पादन नहीं होने से परेशानी बढ़ी है। फिलहाल राज्य सरकारें अस्पतालों को  ऑक्सीजन देने में प्राथमिकता दे रही हैं। लेकिन अभी बढ़ी माँग के अनुरूप ऑक्सीजन का उत्पादन देश में नहीं है। मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन की माँग 120 मीट्रिक टन प्रतिदिन की है; लेकिन बमुश्किल 65 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उपलब्ध हो पाती है। उत्तर प्रदेश और गुजरात से लिक्विफाइड ऑक्सीजन की व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसे सिलिंडर में भरकर अस्पतालों में भेज जाता है। इस प्राथमिकता से उन औद्योगिक इकाइयों की मुसीबत बढ़ गयी है, जिन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है। ज़्यादातर फाम्र्यास्यूटिकल और फ्रैब्रिकेशन कम्पनियों के कारखानों में ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है। प्रदेश में लॉकडाउन के चलते छ: संयंत्र बन्द हो गये जहाँ ऑक्सीजन बनती थी। ऑक्सीजन बनाने वाले कुछ कारखाने माँग के अभाव में पिछले पाँच साल से बन्द पड़े हैं। मध्य प्रदेश के राज्य के उद्योग सचिव एसके शुक्ल के अनुसार, ऑक्सीजन प्लांट के लगाने और उसके मेंटिनेंस मेें काफी खर्च आता है, इसलिए यह काम चंद लोग ही हाथ में लेते हैं।

ऑक्सीजन की बढ़ती िकल्लत को देखते हुए तमाम अस्पतालों में आईसीएमआर का ताज़ा निर्देश है कि कोविड मरीज़ों में ऐसे मरीज़, जिनके सिम्टम मॉडरेट हों उन्हें 7.14 लीटर प्रति मिनट और जो गम्भीर हों उन्हें 11.9 लीटर प्रति मिनट के आधार पर ऑक्सीजन दी जाए। इसके लिए वार्ड ब्वायज को प्रशिक्षित भी किया गया है। पूरे देश में आईसीएमआर के इस निर्देश का पालन हो रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का परामर्श है कि इस बार की सर्दियों में कोराना वायरस से संक्रमित रोगियों की तादाद में और बढ़ोतरी हो सकती है। इसको ध्यान में रखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कोरोना वायरस टेस्ंिटग, अस्पताल आदि पर व्यापक दिशा-निर्देश विभिन्न राज्यों को जारी किये हैं। राज्य सरकारें भी ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था करने में अब अपनी ओर से पहल कर रही हैं। ऑक्सीजन निर्माण करने के कारखाने सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र और गुजरात में हैं। उनकी प्राथमिकता पहले अपने राज्य में पूर्ति की है फिर दूसरे प्रदेशों को भेजने की। आपात ज़रूरतों को ध्यान में रखकर कई राज्य सरकारों ने ऑक्सीजन प्लांट लगाने और पुराने प्लांट्स की उत्पादकता बढ़ाने पर अपना ध्यान लगाया है। उधर दिल्ली में वायु प्रदूषण को थामने के लिए दिल्ली सरकार ने भी कई कदम उठाये हैं। इसकी वजह यह है कि तापमान में कमी और हवा की गति घटने के साथ ही फिर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हवा का स्तर खराब पाया गया। अक्टूबर से इसे देखा-समझा गया। यह प्रायोगिक पड़ताल केंद्र सरकार के संस्थान एअर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एक्यूआई) ने की है। रिपोर्ट के अनुसार, शहर का औसतन वायु गुणात्मक सूची (एक्यूआई) में एक सप्ताह से खासी बढ़ोतरी देखी जा रही। इसी साल दो अक्टूबर को से मॉडरेट पाया गया। क्योंकि जाँच सुई ने 180 की संख्या हुई। यह जानकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आँकड़ों में मिली। एसएएफआर की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की वायु में लीड का प्रदूषण ज़्यादा मात्रा में है, जो खतरनाक है। दिल्ली सरकार ने यह तय किया है कि पाँच साल में यह वायु प्रदूषण काफी हद तक थाम लेगी। इसके लिए सडक़ यातायात दुरुस्त करने, कचरा जलाना रोकने के साथ-साथ कारखानों और बिजली संयंत्रों की साज-सँभाल करनी होगी। वायु प्रदूषण के लिहाज़ से दिल्ली की तुलना में मुम्बई और कोलकाता दूसरे ऐसे शहर हैं, जो वायु प्रदूषण के लिए भी जाने जाते हैं। इस शहरों में वायु प्रदूषण पर ध्यान नहीं दिया गया तो देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा साँस की तरह की बीमारियों का शिकार होगा। कोरोना वायरस ने सारी दुनिया में एक महामारी का रूप ले लिया है। इस कारण राज्यों और केंद्र सरकार और नागरिकों को प्रदूषण पर ध्यान देने का एक सुअवसर मिला है।

वंचित वर्ग के युवाओं के लिए आईआईटी में अवसर

युवाओं के विभिन्न वर्गों के लिए उम्मीद की एक किरण जगी है। फतेहाबाद के इंदाछोई गाँव की काजल ने ओबीसी श्रेणी में 293 वीं रैंक हासिल की। वह एक सीमांत किसान की बेटी हैं और कम्प्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में कुछ बड़ा करना चाहती हैं।

काजल ने कहा कि हमारे पास आईआईटी की कोचिंग लेने लायक संसाधन नहीं थे। सुपर-100 कार्यक्रम मेरे लिए आशीर्वाद के रूप में आया है। सिरसा के मुन्नावाली गाँव के सीमांत किसान के बेटे प्रवीण ने एससी वर्ग में 434वीं रैंक हासिल की। प्रवीण ने कहा कि सुपर-100 कार्यक्रम से पहले वह आईआईटी के बारे में नहीं जानते थे। उन्होंने कहा कि मेरी योजना कम्प्यूटर साइंस या सिविल इंजीनियरिंग में आगे बढऩे की है।

हिसार के मुवनपुरा गाँव के रहने वाले एक दलित छात्र साहिल ने एससी वर्ग में 871वीं रैंक हासिल की है। उन्होंने कहा कि मैं कंप्यूटर विज्ञान में आगे जाना चाहता हूँ। मैं उन लोगों का शुक्रगुज़ार हँू, जिन्होंने मुझे सुपर-100 कार्यक्रम के बारे में बताया। हरियाणा के स्कूल शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव महावीर सिंह ने कहा कि यह एक सपने के सच होने जैसा है। दलित वर्गों के छात्र आईआईटी में प्रवेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम सुपर-100 कार्यक्रम के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं और इसमें कटऑफ 80 फीसदी है। हम उन्हें रेवाड़ी और पंचकुला में प्रशिक्षित करते हैं।

सुपर-100 योजना की योजना हरियाणा सरकार ने बनायी है। इस योजना का मुख्य लक्ष्य ऐसे मेधावी छात्र हैं, जिन्होंने 10वीं कक्षा उत्तीर्ण की है। योजना का मुख्य उद्देश्य छात्रों को मुफ्त कोचिंग कार्यक्रम प्रदान करना है, ताकि वे जेईई, आईआईटी और एनईईटी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकें। इसके अलावा यह योजना छात्रों को एक बोर्डिंग सुविधा भी प्रदान करेगी।

क्या है सुपर-100

वर्ष 2018 में विकास फाउण्डेशन के संस्थापक नवीन मिश्रा (रेवाड़ी) ने माध्यमिक शिक्षा निदेशालय, हरियाणा को सुपर-100 योजना के विचार का प्रस्ताव दिया। डीएसई के तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा निदेशक राजीव रतन ने इस योजना की सराहना की; क्योंकि यह योजना सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए लाभकारी लगी और योग्य छात्रों को अवसर दे सकने में सक्षम दिखी। लिहाज़ा इसे तुरन्त हरी झंडी दे दी गयी। फिर 10 जून, 2018 को इसके लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित की गयी, जिसमें 10वीं बोर्ड में 80 फीसदी से ज़्यादा स्कोर करने वाले 5000 छात्रों ने हिस्सा लिया। इस परीक्षण का दूसरा दौर जुलाई में आयोजित किया गया था, जिसमें उन 5000 छात्रों में से 500 को अन्तिम दौर के लिए छाँटा गया। इसके बाद पाँच बैच गठित किये गये, जिसमें 100 छात्रों को शामिल किया गया, जो लगातार पाँच दिन तक विकास फाउंडेशन के मार्गदर्शन में अन्तिम परीक्षा के लिए तैयारी करते रहे।

आखिर में 200 छात्रों ने अन्तिम परीक्षा उत्तीर्ण की और सुपर-100 के हरियाणा के पहले बैच का गठन किया, जिसने अगस्त, 2018 में उड़ान भरी थी। उन्हें पंचकूला और रेवाड़ी के दो अलग-अलग केंद्र आवंटित किये गये, जहाँ न केवल ट्यूशन नि:शुल्क थी, बल्कि उनके भोजन और आवास भी सुविधा भी थी। डाइट केंद्र में सरकार ने उनका ध्यान रखा। किसी भी अन्य शैक्षणिक योजना की तरह सुपर-100 को भी शुरुआत में कुछ अड़चनों का सामना करना पड़ा; क्योंकि ये छात्र हिन्दी माध्यम की पृष्ठभूमि से आये थे; जबकि आईआईटी / नीट परीक्षा अंग्रेजी आधारित थी। अब ये छात्र अन्य अंग्रेजी बोलने वाले निजी कोचिंग केंद्रों के छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हैं। हाल के नतीजे इसे मज़बूती प्रदान करते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि सुपर-100 कार्यक्रम उन वंचित छात्रों के लिए एक वरदान साबित हुआ है, जो निजी संस्थानों की महँगी कोचिंग फीस नहीं दे सकते थे और अपने सपनों को अधूरा छोड़ देते थे। इस योजना से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का भी लाभ मिला है; क्योंकि आईआईटी के शीर्ष दो स्कोरर लड़कियाँ हैं। सिमरन, जिन्होंने 99.47 फीसदी स्कोर किया और काजल, जिन्होंने 99.31 फीसदी  स्कोर किया। दोनों लड़कियाँ गरीब परिवारों से हैं जहाँ एक लडक़ी के पिता लकवाग्रस्त हैं और उन्हें अपने भविष्य को लेकर बहुत कम उम्मीद थी।

अब अनेक माता-पिता सुपर-100 योजना का हिस्सा बनने के लिए अपनी बेटियों को भेजने के लिए तैयार हैं। देश के कई राज्य युवाओं की क्षमता को पूरा करने के लिए इसी तरह की योजनाएँ शुरू करने की तैयारी में हैं; जो क्षमता के होते हुए भी मोटी फीस और महँगे बोर्डिंग की वजह से शीर्ष संस्थानों में नहीं जा पाते।

सुपर-100 गणित रामानुजन स्कूल ऑफ गणित, पटना के बैनर तले शुरू किये गये सुपर-30 कार्यक्रम से ऊँचाइयों पर आया। इसकी स्थापना गणित के शिक्षक आनंद कुमार ने की थी। समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों से प्रत्येक वर्ष 30 प्रतिभाशाली उम्मीदवारों का चयन करने के लिए कार्यक्रम शुरू किया गया था और उन्हें जेईई के लिए प्रशिक्षित किया गया था। सन् 2002 में आनंद कुमार ने आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों से 30 प्रतिभाशाली छात्रों को चुनने की योजना के साथ सुपर-30 की शुरुआत की, जो आईआईटी कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकते थे। आनंद कुमार की माँ जयंती देवी ने छात्रों के लिए स्वेच्छा से खाना पकाने का फैसला किया, जबकि आनंद कुमार और अन्य शिक्षकों ने पढ़ाने का ज़िम्मा उठाया। छात्रों को अध्ययन सामग्री और आवास भी एक वर्ष के लिए नि:शुल्क प्रदान किये गये।

कोचिंग के पहले वर्ष में 30 छात्रों में से 18 ने आईआईटी में प्रवेश किया। अगले वर्ष कार्यक्रम की लोकप्रियता के कारण आवेदन संख्या बढ़ गयी और 30 छात्रों का चयन करने के लिए एक लिखित परीक्षा आयोजित की गयी। सन् 2004 में 30 में से 22 छात्रों ने आईआईटी-जेईई के लिए अर्हता प्राप्त की, जिससे कार्यक्रम की लोकप्रियता बढ़ गयी। इसने और अधिक अनुप्रयोगों का रास्ता खोला। सन् 2005 में 30 में से 26 छात्रों ने आईआईटी / जेईई की मुख्य परीक्षा पास की; जबकि सन् 2006 में 28 सफल रहे। अगले साल 28 और छात्रों और 2008 में सुपर-30 के सभी छात्रों ने आईआईटी / जेईई की परीक्षा पास की।

कुमार के कुछ पूर्व छात्र सुपर-30 शिक्षकों के रूप में शामिल हुए और 2009 और 2010 में सभी 30 छात्रों ने फिर से आईआईटी / जेईई परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद के वर्षों में 30 छात्रों की सफलता की दर इस तरह थी- सन् 2011 (24 उत्तीर्ण), सन् 2012 (27 उत्तीर्ण), सन् 2013 (28 उत्तीर्ण), सन् 2014 (27 उत्तीर्ण), सन् 2015 (25 उत्तीर्ण) और सन् 2016 में (28 उत्तीर्ण), जबकि सन् 2017 में सभी सुपर 30 उम्मीदवारों ने आईआईटी / जेईई में प्रवेश किया। सन् 2018 में, 30 छात्रों में से 26 ने परीक्षा पास की और आईआईटी का सफर तय किया। उसी वर्ष सुपर-100 अवधारणा को हरियाणा में एक व्यावहारिक आकार दिया गया। परिणाम यह कि हाशिये पर रहने वाले परिवारों और उनके बच्चों के सपनों को साकार करने के लिए यह आशा की एक चमकदार लौ है।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के खिलाफ चला नया दाँव

पाकिस्तान की पुरानी आदत रही है कि वह भारत की तरफ कोई-न-कोई बहाना बनाकर निशाना लगाता रहता है। पाकिस्तान कभी आतंकवादियों के सहारे घुसपैठ की कोशिश करता है, तो कभी संयुक्त राष्ट्र में भारत पर छींटाकसी करके नये-नये आरोप मढ़ता रहता है। अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के खास सलाहकार शाहबाज़ गिल ने दावा किया है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भारत से मिले हुए हैं। गिल ने दावा करते हुए कहा है कि वह यह नहीं कहते कि उनके पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ मुल्क (पाकिस्तान) के विरोधी हैं, लेकिन वह एक छोटी सोच वाले बिजनेसमैन हैं, जो कि भारत से मिले हुए हैं। गिल ने सवाल किया कि क्या एक पाकिस्तानी ट्रेडर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से मिलेगा? इसके जवाब में उन्होंने खुद ही दावा करते हुए कहा है कि लेकिन नवाज़ शरीफ ने मुल्क के प्रधानमंत्री के ज़िम्मेदार औहदे पर रहते हुए नेपाल की राजधानी काठमांडू में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुपचुप मुलाकात की थी। गिल का दावा है कि तब नवाज़ शरीफ ने इसकी जानकारी विदेश मंत्रालय (पाकिस्तान के गृह मंत्रालय) तक को नहीं दी।

अगर इस बात पर गौर करें, तो साफ पता चलता है कि इमरान खान भी पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह ही अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई का बहाना ढूँढ रहे हैं। शायद यह पाकिस्तान की एक रीति बन चुकी है कि वहाँ जो भी नया प्रधानमंत्री बनता है, वह अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई के रास्ते तलाश करता है। वही अब हो रहा है। इन दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का अपने पूर्ववर्ती नवाज़ शरीफ पर हमला जारी है। एक पाकिस्तानी अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि इमरान खान ने अपने पूर्ववर्ती नवाज़ शरीफ और भारत पर मिलीभगत का आरोप लगाकर पाकिस्तान और पाकिस्तानी संस्थाओं को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है। इस अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री इमरान खान ने नवाज़ शरीफ पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बोली बोलने का आरोप लगाते हुए, उनके भारत से रिश्ते को बेनकाब करने की बात कही है। अक्टूबर के शुरू में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के कार्यकर्ताओं और प्रवक्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियों ने मिलकर हमारी सरकार के खिलाफ एक आंदोलन शुरू कर दिया है। इस साज़िश में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, मुस्लिम लीग (नून) और फज़लुर्रहमान की जमीयत-उल-उलेमा इस्लाम भी शामिल हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 20 सितंबर को मुल्क की राजधानी इस्लामाबाद में इन सभी पार्टियों ने एक रैली निकाली थी, जिसे नवाज़ शरीफ ने लंदन से सम्बोधित किया था। उन्होंने दावा किया कि इस रैली के बाद इन विपक्षी पार्टियों ने मिलकर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) का गठन किया है। उन्होंने यह भी कहा कि पहले एक-दूसरे की विरोधी रहीं ये पार्टियाँ इमरान खान के खिलाफ लामबंद हो चुकी हैं। इमरान ने इसके पीछे भारत का हाथ भी बताया। हालाँकि यह आरोप सरासर गलत है; क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नवाज़ शरीफ से मिले थे, तब वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और अपने समकक्ष होने के नाते दो देशों में शान्ति समझौते के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मिल सकते थे। सवाल यह है कि अगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री से कोई रिश्ता रखते, तो वह अब भी नवाज़ शरीफ से मिल सकते थे। पड़ोसी मुल्कों से अच्छे सम्बन्ध रखने की भारत ने हमेशा कोशिश की है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बखूबी निभाया है। लेकिन किसी देश की सत्ता से अलग हुए लोगों से वह नहीं मिले, चाहे वह व्यक्ति उनका कितना भी करीबी रहा हो। इस बात का एक ठोस उदाहरण भारत और अमेरिका के बीच के सम्बन्धों का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अच्छे रिश्ते रहे हैं, वहाँ के राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की नियुक्ति के बाद वह डोनाल्ड ट्रंप से ही मिले हैं। इससे साफ है कि भारत व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि राष्ट्रों से अच्छे सम्बन्ध रखने के पक्ष में रहा है और आज भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी परम्परा का पालन कर रहे हैं, जो कि नीति-संगत है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने मुल्क के चाहे जिस व्यक्ति, चाहे जिस पार्टी और चाहे जिस गठबंधन पर आरोप लगाएँ; लेकिन भारत पर बिना किसी वजह के आरोप लगाना ठीक नहीं है। बताया जा रहा है कि इमरान खान इसलिए नवाज़ शरीफ को निशाना साध रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भाषण में पाकिस्तानी सेना की आलोचना की थी। इस बात को लेकर इमरान खान ने कहा है कि नवाज़ शरीफ की सेना के खिलाफ भाषण की खुशियाँ भारत में मनायी गयी हैं।

हैरत की बात यह है कि भारत में इन दिनों पाकिस्तान के खिलाफ या उसमें हो रही गतिविधियों को लेकर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं हुई है। लेकिन इतने पर भी इमरान खान ने कहा है कि उनकी सरकार पूरी कौम (पाकिस्तानी लोग) एक साथ मिलकर भारतीय साज़िश को नाकाम करेगी। उन्होंने कहा कि जो मुल्क की सेना का दुश्मन है, वह पाकिस्तान का दुश्मन है। उनका इशारा नवाज़ शरीफ की तरफ था। उन्होंने नवाज़ शरीफ को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह कैसा इंकलाब है मियाँ साहब कि अपने बच्चों को लंदन में बैठाकर आप पाकिस्तानी अवाम को सडक़ों पर लाना चाहते हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान के केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री गुलाम सरवर खान ने तो नवाज़ शरीफ को एक सज़ायाफ्ता मुजरिम तक कहा।

इमरान की बौखलाहट का असली कारण

पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ हमेशा साज़िशें करता रहा है; लेकिन पाकिस्तान में यह दस्तूर रहा है कि वहाँ के लगभग हर प्रधानमंत्री ने भारत पर ऊल-जुलूल आरोप लगाये हैं। इमरान खान भी चाहें जितना झूठ बोल लें, लेकिन इसके पीछे की बौखलाहट साफ ज़ाहिर करती है कि वह अपने निजी मामले में भारत को क्यों घसीटना चाहते हैं? इसके पीछे तीन बड़ी वजहें हैं- पहली यह है कि भारत ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू-कश्मीर, गिलगित, बाल्टिस्तान आदि पर अपना दावा कर दिया है। दूसरी यह कि भारत ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटा दी है, जिससे पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में सियासत नहीं चल पा रही है। तीसरी भारत सीमा विवाद मामले में चीन से किसी प्रकार से दबने को तैयार नहीं है और उसकी साज़िशों का पर्दाफाश कर रहा है।

भारत को कमज़ोर देखना चाहता है पाक

पाकिस्तान की पहले से ही यह सोच रही है कि वह भारत का मुकाबला स्वयं नहीं कर सकता, लेकिन कैसे भी भारत कमज़ोर पड़े। यही वजह है कि बँटवारे के समय से ही पाकिस्तान भारत के खिलाफ न केवल ज़हर उगलता रहा है, बल्कि आतंकवादियों के द्वारा तो कभी दूसरे तरीकों से हमले की साज़िशें करता रहा है। आज वहाँ के प्रधानमंत्री इमरान खान भी उसी राह पर चल रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान हर बार अपने द्वारा बुने साज़िशों के जाल में फँसता रहा है और अन्त में वह जवाब तक नहीं दे सका है।

अफगानिस्तान को अपने पाले में लाना चाहता पाकिस्तान

यह बात सर्वविदित है कि अफगानिस्तान का रिश्ता पाकिस्तान से बहुत अच्छा नहीं रहा है; लेकिन फिलहाल अफगानिस्तान के रिश्ते भारत से अच्छे हैं। पाकिस्तान अफगानिस्तान को अपने पाले में लाने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रहा है। इस बात को समझने के लिए अक्टूबर के पहले हफ्ते अफगानिस्तान शान्ति प्रक्रिया पर नज़र डालना ही काफी होगा। खबर है कि जब अफगानिस्तान सरकार के प्रमुख वार्ताकार अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह पाकिस्तान के दौरे पर पहँुचे, तब पाकिस्तान में उनका ज़ोरदार स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री इमरान खान समेत सभी महत्त्वपूर्ण लोगों ने उनसे मुलाकात की। इतना ही नहीं, पाकिस्तान के उनके दौरे को लेकर वहाँ के एक अखबार में पाकिस्तान के एक वरिष्ठ पत्रकार ने संपादकीय भी लिखा। उन्होंने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सम्बन्धों में मधुरता भरने के लिए लिखा कि 9/11 हमलों के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में बिगाड़ की वजह अमेरिका ही था। उन्होंने लिखा कि लगभग 20 साल तक अफगानिस्तान को युद्ध की आग में झोंकने और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान को लड़वाने के बाद अमेरिका ने तालिबान से समझौता कर लिया है।

नहीं बनी बात, तो उठाया जम्मू-कश्मीर का मुद्दा

पाकिस्तान ने इस महीने के शुरू में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिर से जम्मू और कश्मीर का मुद्दा उठा दिया। हालाँकि भारत ने इस पर पलटवार करते हुए करारा जवाब दिया है। भारत ने कहा कि पिछले 70 साल से भारत पर आतंकी हमले कराते रहने वाले पाकिस्तान का एकमात्र गौरव आतंकवाद है। भारत ने कहा कि इस्लामाबाद ने एक बार फिर झूठ दोहराया और व्यर्थ के आरोप लगाये हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भारत की ओर से दिये गये एक जवाब में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर एकमात्र विवाद बचा है; वह उस हिस्से से सम्बन्धित है, जो अभी भी पाकिस्तान के अवैध कब्ज़े में है। भारत पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के सभी क्षेत्रों को खाली करने का आह्वान करता है।

नवाज़ के खिलाफ जारी नहीं हुआ गिरफ्तारी समन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की बौखलाहट इन दिनों शायद इसलिए भी बढ़ी हुई है, क्योंकि ब्रिटेन में नवाज़ शरीफ के खिलाफ नॉन-बेलेबल अरेस्ट वॉरंट (गैर-जमानती गिरफ्तारी समन) जारी नहीं किया गया। पाकिस्तान इस समन को जारी करवाने की काफी समय से कोशिशें कर रहा था। ब्रिटेन सरकार ने इस मामले को लेकर पाकिस्तानी अधिकारियों से स्पष्ट कहा है कि वह (ब्रिटेन) पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति से जुड़े मामलों में दखल नहीं दे सकता। बता दें कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री (70 वर्षीय) नवाज़ शरीफ का लंदन में करीब एक साल से इलाज चल रहा है। हालाँकि उनके खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में मुकदमा चल रहा है और कोर्ट ने उन्हें सिर्फ चार हफ्ते के लिए देश से बाहर जाने की इजाज़त दी थी; लेकिन वह उसके बाद पाकिस्तान नहीं लौटे।

दिखावे का प्यार, हवस और धोखा

साइबर ब्लेकमेलिंग, शारीरिक सम्बन्धों से जुड़ी वसूली और प्रतिशोधात्मक नग्नता की कोई भी घटना प्रख्यात नारीवादी माया एंजेलों के सुर्ख अल्फाज़ को ताज़ा कर देती है कि हर बार जब स्त्रियों की अस्मिता पर हमला होने के समाचार सुिर्खयाँ बनकर चमकने लगते हैं, तुम मुझे अपनी चाल से अपने तीखे और विकृत झूठों के साथ इतिहास में शामिल कर सकते हो।

मुझे गन्दगी में धकेल सकते हो, फिर भी मैं धूल की तरह उड़ती हुई आऊँगी। प्रख्यात साहित्यकार शरद सिंह कहने से परहेज़ नहीं करती कि दुर्भाग्य से हिंसा और प्रतिशोध का शिकार स्त्रियाँ ही बनती है। ऐसी रक्तरंजित लकीरें पुरुष सदियों से खींचते चले आ रहे हैं। लेकिन कई घटनाएँ ऐसी भी हैं, जो इन नाज़ुक मुद्दों से भिड़ती हुई इस मिथक को खंड-खंड करती नज़र आती हैं। ऐसी घटनाओं की चपेट में आकर खबरों में खुलासा करने वाले भी किस तरह तिलमिला उठते हैं? राजस्थान के एक प्रतिष्ठित अखबार के नामचीन खबरनवीस इसकी ताज़ा मिसाल है, जो महिला मित्र से पींगें बढ़ाने की लालसा में अपना सब कुछ गँवा बैठे। उसकी सुख यात्रा की कामना का िकस्सा रक्तचाप बढ़ा सकता है। इस कहानी की परतें खोली जाएँ तो पता चलता है कि जटिलता, कुटिलता, प्रेमलता, प्रतिशोध और समझौते की चाशनी में दैहिक स्पर्शों के अनेक रहस्य खुलते चले जाएँगे।

खबरनवीस और उसकी महिला मित्र के जिस्मानी रिश्तों की शुरुआत 2001 में हुई। लेकिन प्रतिशोध का अध्याय 19 साल बाद लिखा गया। आखिर क्यों महिला मित्र दु:ख-दर्द, अन्याय और शोषण को 19 साल तक बर्दाश्त करती रही? आखिर क्या बेबसी थी कि वह खबरनवीस के मनोरंजन का साधन बनी रही?

दर्ज प्राथमिकी में शोषित के िकरदार में युवती का बहुआयामी चरित्र नज़र आता  है कि उसने ज़बरदस्ती उसे पलंग पर डाल दिया और मुँह में कपड़ा ठूँसकर दुष्कर्म कर डाला। वर्ष 2001 में दुष्कर्म की यह शुरुआत थी। उसी दौरान नग्नावस्था में मोबाइल से उसके फोटो भी खींच लिए गये। बताते चलें कि डिजिटल दुनिया के तौर-तरीके वर्ष 2002 में शुरू हुए थे। प्रतिशोध पोर्न का मामला पहली दफा वर्ष 2004 में डीपीएस के एसएमएस कांड में सामने आया था, तो फिर 2001 में डिजिटल फोटो भी कैसे खींचे गये? शोषिता की प्राथमिकी के मुताबिक, वह बड़े अखबार का बड़ा रिपोर्टर था। काफी रसूखदार और ऊँचे सम्पर्कों वाला था। उसने करियर बनाने में हर तरह के सहयोग की पेशकश भी की। उसने रिश्तों में बने रहने की धमकी देते हुए कहा कि तुम्हारे अश्लील वीडियो वायरल कर दूँगा। बहरहाल मामला करीबी रिश्तों का था; लिहाज़ा बिरादरी में भद्द उड़ी, तो आनन-फानन में समझौता हुआ; लेकिन जिस्म की उगाही की तर्ज पर लडक़ी ने लाखों का मकान कुबूला। आखिर क्यों इस सौदेबाज़ी में संस्कारजनित पश्चाताप ने सिर नहीं उठाया? खबरनवीस ने प्रतिष्ठा गँवायी, सम्पत्ति गँवायी और प्रतिष्ठित नौकरी भी गँवायी। कुल मिलाकर विवाहेत्तर यौन सुख की कामना का जिन्न खबरनवीस का अतीत, वर्तमान और भविष्य सब कुछ निगल गया।

समाजशास्त्री अर्जुन अहीरवाल कहते हैं- ‘यह घटना एक तरह से प्रतिशोध पोर्न से जुड़ी है। जब कोई व्यक्ति अपनी संगिनी को बदनाम करने के इरादे से अतरंग पलों को सार्वजनिक करने की धमकी देता है, तो यह प्रतिशोध ही होता है।’ अहीरवाल यह भी कहते हैं- ‘आखिर तो स्त्री मधुरकंठी शिकारी के प्रलोभन में फँसकर ही उसकी हबस का शिकार बनती है। हालिया एक घटना अजमेर की कॉलेज छात्रा से जुड़ी है। आठ माह की गर्भवती इस छात्रा ने एक युवक पर शादी का झाँसा देकर दुष्कर्म का आरोप लगाया। पीडि़ता का कहना है कि दो साल पहले स्नेपचेट पर युवक से मुलाकात हुई थी। लम्बे समय तक दोनों का सोशल मीडिया पर बातचीत का सिलसिला बना रहा। बाद में एक शादी समारोह में दोनों का मिलाप हो गया। युवक ने प्रेमजाल में फाँसकर शादी का झाँसा दिया।

युवक के आग्रह पर होटल प्रवास की संगिनी बनने को तैयार हो गयी, जहाँ उसे कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाकर देह शोषण के साथ अंतरंग पलों के फोटो खींच लिये। जब गर्भ ठहरा, तो युवती ने युवक पर शादी का दबाव बनाया। लेकिन शादी की बजाय युवक ने अंतरंग पलों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे डाली। युवक पुलिस की गिरफ्त में है। लेखक अरविंद जैन कहते हैं- ‘शादी का झाँसा देकर किसी लडक़ी के साथ रिश्ते बनाना और बाद में शादी के लिए मना करना दुष्कर्म के दायरे में आता है। वह भी तब, जब लडक़े का शुरू से ही लडक़ी से शादी करने का इरादा न हो। इसे शादी की आड़ में यौन शोषण भी कहा जा सकता है। अधिकतर लडक़े शादी का झाँसा देकर रिश्ते बनाते हैं और तब तक बनाये रखते हैं, जब तक लडक़ी गर्भवती नहीं हो जाती। कुछ समय बाद गर्भपात कराना मुश्किल हो जाता है। नतीजतन मामले का विस्फोट हो जाता है। भारतीय अदालतों ने कई बार इस मुद्दे पर सवाल उठाये है कि किसी लडक़ी से शादी का झूठा वादा करके, शारीरिक रिश्ते बनाना, सहमति है या नहीं? यदि यह दुष्कर्म है, तो यह धोखेबाज़ी है या नहीं?’ एक प्रकरण में कलकत्ता उच्च न्यायालय का मानना था कि अगर कोई बालिग लडक़ी शादी के वादे के आधार पर शारीरिक रिश्तों पर रज़ामंद हो जाती है और तब तक लिप्त रहती है, जब तक गर्भवती नहीं हो जाती, तो यह उसकी ओर से स्वच्छंद सम्बन्धों की श्रेणी में आयेगा। ऐसे में तथ्यों को गलत इरादे से प्रेरित नहीं किया जा सकता। ऐसे मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा-90 के तहत अदालत द्वारा कुछ नहीं किया जा सकता।

दिखावे के प्यार में हबस हावी होती है, जिसमें अंतत: किसी एक (लडक़ी या लडक़े) को धोखा ही मिलता है। ऐसी कहानियाँ महामारी की तरह हमारे समाज की रग-रग में पैठ गयी है। अधिकतर कहानियों में नायिका (लडक़ी) संताप और स्यापा करती नज़र आती है कि शादी का झाँसा देकर उसका यौन शोषण किया गया और अब प्रतिशोध पर उतारू है। इसे फितरत की संज्ञा देना ज़्यादा बेहतर होगा। क्योंकि शारीरिक सम्बन्धों के बाद जब संस्कार जनित पश्चाताप सिर उठाता है, तभी यह भाव जागता है।

समाजशास्त्री धीरेन्द्र अटवाल कहते हैं- ‘अव्वल तो स्त्री क्योंकर इतनी आसानी से बहकावे में आ जाती है कि दो-चार मुलाकातों के बाद ही साहचर्य के लिए देह सौंप देती है। फिर कैसे अंतरंग पलों की रिकार्डिंग पर सहमति भी जता दी जाए?’ धीरेन्द्र कहते हैं कि अपने लिए प्रतिशोध की खाई तो शोषिता खुद ही खोद लेती है। ऐसे मामले में मुम्बई हाई कोर्ट का 21 जनवरी, 2017 का फैसला बहुत कुछ कह देता है। विद्वान न्यायाधीश का कहना था कि जब लडक़ी वयस्क और पढ़ी-लिखी हो, तो उसे शादी से पहले बनाये जाने वाले यौन सम्बन्धों का अंजाम पता होना चाहिए। दुष्कर्म से जुड़े मामलों को लेकर अहम फैसला देते हुए उन्होंने कहा कि शादी करने का वादा दुष्कर्म के हर मामले में प्रलोभन की तरह नहीं देखा जा सकता। दिल्ली हाईकोर्ट के 9 जुलाई, 2019 के फैसले में भी विद्वान न्यायाधीश ने यही बात दोहरायी है कि अगर कोई लडक़ा शादी का झाँसा देकर किसी लडक़ी से सम्बन्ध बनाता है, तो इसे दुष्कर्म नहीं कहा जाएगा। क्योंकि इसमें लडक़ी की सहमति भी शामिल होती है।

जस्टिस मृदुला भटकर ने कहा कि एक पढ़ी-लिखी लडक़ी जो अपनी मर्ज़ी से शादी से पहले लडक़े से सम्बन्ध बनाती है, उसे अपने फैसले की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। जस्टिस भटकर ने कहा कि अगर कोई धोखा देकर लडक़ी की सहमति हासिल कर,े तो वहाँ प्रलोभन की बात समझ में आती है। प्रथम दृष्टया यह मानने के लिए कुछ सुबूत तो होने चाहिए कि लडक़ी को इस हद तक झाँसा दिया गया कि वह शारीरिक सम्बन्ध बनाने को राज़ी हो गयी। इस तरह के मामलों में शादी का वादा प्रलोभन नहीं माना जा सकता। सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि हालाँकि समाज बदल रहा है फिर भी उस पर नैतिकता हावी है। उन्होंने कहा कि कई पीढिय़ों से यह नैतिक तौर पर माना जाता है कि शादी के समय तक वरजिन रहने की ज़िम्मेदारी लडक़ी की है।

हालाँकि आजकल की युवा पीढ़ी के पास सेक्स से जुड़ी सारी जानकारी होती है और युवा कई तरह के लोगों से मिलते-जुलते हैं। समाज उदार होने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जहाँ शादी से पहले सेक्स का सवाल आता है; समाज नैतिकता की बात करता नज़र आता है। ऐसे हालात में एक लडक़ी, जो लडक़े से प्यार करती है; यह भूल जाती है कि सम्बन्ध बनाने में लडक़े साथ उसकी मर्ज़ी भी शामिल थी। वह बाद में अपने फैसले की ज़िम्मेदारी लेने से बचती है। कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि सम्बन्ध खत्म होने के बाद रेप के आरोप लगाने का चलन आजकल काफी बढ़ रहा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में अदालत को एक निष्पक्ष नज़रिये से दोनों पक्षों की बात सुननी पड़ती है; जिसमें आरोपी के अधिकार भी शामिल हैं और पीडि़त का दर्द भी।