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अलविदा त्रासदी वर्ष 2020

साल 2020 बीतने को है। हर आदमी इस साल की जल्द-से-जल्द विदाई चाहता है और आने वाले नव वर्ष 2021 के सुखद रहने की कामना के साथ उसका इंतज़ार कर रहा है। साल 2020 को त्रासदी का साल कहा जा सकता है। इस एक साल में जो भी हुआ है, उससे मानव जाति खुद को भयभीत और असुरक्षित पा रही है। आज भी लोगों में कोरोना वायरस का जो डर समाया हुआ है, वह किसी और बीमारी से मरने तक को मजबूर कर रहा है; लेकिन अस्पताल जाने की हिम्मत नहीं दे पा रहा है। 2020 की इस पूरे साल में जो भी हुआ, उस पर एक नज़र अच्छे-बुरे अनुभवों के तौर पर हर कोई रखना चाहेगा; क्योंकि यह साल किसी को भी जीवन भर भुलाये नहीं भुलाया जाएगा।

जिन हस्तियों ने कहा अलविदा

बीत रहे इस साल में कई बड़ी हस्तियों ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, जिनमें कई हस्तियाँ कोरोना की वजह से परलोक सिधार गयीं। इनमें भारतीय राजनेता, पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी ने भी इस साल दुनिया से विदाई ले ली। वह कोमा में थे। भारतीय नेता पूर्व राज्यसभा साँसद 67 वर्षीय देवी प्रसाद त्रिपाठी ने भी इस साल दुनिया को अलविदा कहा। भारतीय नेता, पूर्व लोकसभा साँसद और पंजाब केसरी ग्रुप के चेयरपर्सन अश्विनी कुमार चोपड़ा ने भी कैंसर से जूझते हुए इस साल दुनिया छोड़ दी। अभी हाल ही में भारतीय राजनेता और वर्तमान केंद्र सरकार में मंत्री रहे रामविलास पासवान ने भी नश्वर शरीर इसी साल छोड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे जसवंत सिंह ने भी

82 वर्ष की उम्र में शरीर छोड़ दिया। वह पिछले छ: साल से कोमा में थे।

असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी कोविड-19 और कई अंगों के काम न करने के चलते गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में इसी साल नवंबर में अंतिम साँस ली। वह 84 वर्ष के थे। गुजरात के कांग्रेस नेता और पूर्व साँसद अहमद पटेल ने भी नवंबर में मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम में अंतिम साँस ली। वह कोरोना वायरस से संक्रमित थे। कांग्रेस के ही नेता 72 वर्षीय भंवरलाल मेघवाल ने भी मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम में अंतिम साँस पिछले दिनों ली। भारतीय राजनीतिज्ञ कर्नाटक और केरल के पूर्व राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने भी 82 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।

इसके अलावा आधुनिक गद्य के लेखक कृष्ण बलदेव वैद ने 93 वर्ष की उम्र में अपना चोला छोड़ दिया। पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ हिन्दी साहित्कार गिरिराज किशोर का भी हृदयगति रुकने से इसी साल देहांत हो गया। भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी और प्रबन्धक रहे प्रदीप कुमार बनर्जी का देहांत भी इसी साल दिल का दौरा पडऩे से हो गया। भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक देसाई भी नहीं रहे। भारतीय रंगकर्मी और समाजसेवी ऊषा गांगुली ने भी लम्बी बीमारी के बाद शरीर छोड़ दिया। फिल्म अभिनेता इरफान खान ने भी महज़ 53 साल की आयु में दुनिया इसी साल छोड़ी थी। फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर ने भी 67 साल की आयु में नश्वर शरीर छोड़ दिया। वह कैंसर से पीडि़त थे। धारावाहिकों से फिल्मों में पैर जमाने वाले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने भी इसी साल शरीर छोड़ दिया। सुशांत महज़ 34 साल के थे और उनकी मौत हत्या-आत्महत्या के विवादों में बहुत दिनों तक उलझी रही। शायर राहत इंदौरी ने भी 70 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। हाल ही में मसालों के बड़े कारोबारी एमडीएच के मालिक महाशय धर्मपाल ने भी अस्पताल में अन्तिम साँस ली।

इसके अलावा विदेशी लोगों में डेविड स्टर्न, जो 77 वर्ष के थे। सन् 1984 से सन् 2014 तक नेशनल बास्केटबॉल असोसिएशन के आयुक्त रहे अमेरिकी व्यवसायी डेविड स्टर्न का निधन ब्रेन हेम्ब्रेज की वजह से हुआ। ईरानी मेजर जनरल, कुद्स फोर्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी की एक हवाई हमले में मौत हो गयी। वह 62 साल के थे। ओमान के सुल्तान कबूस बिन सईद अल सईद की पेट के कैंसर के चलते इसी साल मौत हुई। एक हवाई दुर्घटना में अमेरिकी पेशेवर और बास्केटबॉल खिलाड़ी कोबी ब्रायंट की महज़ 42 वर्ष की आयु में मौत हो गयी। अमेरिकी गायक, संगीतकार और लेखक केनी रोजर्स ने भी 81 साल की उम्र में दम तोड़ दिया। फ्रांसीसी अभिनेता मैक्स वॉन सिडो ने भी 90 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ब्रितानी भाषाविद्जॉन लियोन ने भी इस साल दुनिया छोड़ दी। पाकिस्तानी राजनेता और खैबर पख्तूनख्वा के पूर्व राज्यपाल इिफ्तखार हुसैन शाह ने भी इसी साल दुनिया छोड़ी। उत्तरी आयरलैंड की राजनेता और नोबेल पुरस्कार विजेता 76 वर्षीय बेट्टी विलियम्स ने इसी साल अन्तिम साँस ली।

इसके अलावा भारत समेत पूरी दुनिया के लाखों लोगों ने इस साल कोरोना वायरस या दूसरी बीमारियों की चपेट में आकर या उम्र पूरी होने के चलते इस साल इस दुनिया को छोड़ा।

वीभत्स घटनाएँ

अगर इस साल की वीभत्स घटनाओं पर नज़र डालें तो दिल दहल जाता है। अगर केवल कोरोना-काल की बात करें, तो मध्य प्रदेश में मासूम की सामूहिक बलात्कार करने के बाद आँखें निकाल लेने और उत्तर प्रदेश के हाथ में युवती से सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसकी हड्डियाँ तोडऩे और उसकी जीभ काट लेने की घटनाओं ने रूह तक को दहला दिया। इसके अलावा हरियाणा में कई साल तक अपनी पत्नी को टॉयलेट में बन्द रखने की घटना, बिहार की ज्योति की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, कासगंज में जुलाई में हुए तिहरे हत्याकांड, नागपुर में साधुओं की हत्या, उत्तर प्रदेश में दो साधुओं की हत्या, पत्रकारों की हत्या, पत्रकारों पर झूठे मुकदमे दर्ज करना, बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने जाने पर पीडि़ता और उसकी माँ की रास्ते में वाहन से कुचलकर हत्या, उन्नाव गैंगरेप के बाद पीडि़ता की जलाकर हत्या, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पुलिस अधिकारी की हत्या, जलगाँव चार नाबालिगों की निर्मम हत्या, बाराबंकी में युवती की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, हाल ही में मिर्ज़ापुर में तीन मासूमों की हत्या, राजस्थान का पुजारी हत्याकांड, मध्य प्रदेश में सरकार द्वारा किसान की ज़मीन छीनने की कोशिश के बाद उसका परिवार समेत ज़हर पी लेने जैसी घटनाओं ने भी लोगों को काफी विचलित किया। वैसे उत्तर प्रदेश की बात करें, तो यहाँ अपराधीकरण साल 2020 में बहुत बढ़ा है।

मौत का सिलसिला

इस साल कोरोना वायरस फैलने से मौत ने तकरीबन मोहल्ले, हर गाँव, हर कस्बे में तांडव किया है। अगर केवल भारत की बात करें, तो कोरोना-काल के शुरू से ही अनेक लोगों की मौत होने लगी थी। अचानक लगे लॉकडाउन ने जहाँ पैदल चल रहे सैकड़ों लोगों की भूख और थकान से जान चली गयी, वहीं इस महामारी और दूसरी बीमारियों से मरने वालों की संख्या भी हज़ारों में रही। अगर 2020 में हुई मौतों के आँकड़े इकट्ठे किये जाएँ, तो पता चलेगा कि इस साल इलाज के बगैर हज़ारों लोगों ने दम तोड़ा होगा। यही नहीं, इस साल आत्महत्या करने वालों और भूख से मरने वालों की संख्या भी बहुतायत में निकलेगी। इसके अलावा पुलिस की पिटाई और मॉब लिंचिंग के अलावा हत्याओं के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुईं। कह सकते हैं कि कोरोना वायरस नाम की इस महामारी के बीच और भी बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसके चलते पूरे देश में मौत का खुला तांडव हुआ।

चर्चित मामले

इस साल के घटी घटनाओं में कई मामले बहुत चर्चित रहे। इनमें कोरोना-काल में श्रमिकों का पैदल ही अपने-अपने घर लौटना, रेल यात्रा पर चली राजनीति, अधिकतर ट्रेनों का भटकना और उनमें हुई करीब एक दर्ज़न लोगों की मौतें, केरल में एक गर्भवती हथिनी की हत्या, हाथरस में युवती की निर्मम हत्या और पुलिस के द्वारा आधी रात को उसका अन्तिम संस्कार, दिल्ली के दंगे, शाहीन बाग का धरना-प्रदर्शन, जेएनयू में छात्रों की पिटाई, पुलिस और वकीलों के बीच मारपीट, चीन द्वारा भारत की सीमा में अतिक्रमण करना, जम्मू-कश्मीर में उथल-पुथल, नेपाल द्वारा पहली बार सीज़फायर करके चार भारतीयों पर गोली चलाना, उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों के हत्यारे विकास दुबे और उसके साथियों का एनकाउंटर, यौन शोषण के आरोपी चिन्मयानंद की जमानत, सुशांत सिंह मौत मामला, कांग्रेस में उथल-पुथल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा का सरकार बनाना, ज्योतिरादित्य सिंधिया का करीब दो दर्ज़न विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना, डॉ. कफील खान रिहाई मामला, राजस्थान में विधायकों की खरीद-फरोख्त मामला, मुम्बई में रिपब्लिक टीवी के प्रबन्ध सम्पादक अर्णब गोस्वामी का गिरफ्तार होना, अयोध्या में रामजन्मभूमि का मन्दिर के लिए शिलान्यास होना, कोरोना-काल में फिल्म अभिनेता सोनू सूद, प्रकाश राज द्वारा जी-जान से लोगों की मदद करना, अर्थ-व्यवस्था का रसातल में चले जाना, बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा प्रदेशवासियों को मुफ्त वैक्सीन देने की बात कहना, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य कई राज्यों में धर्म-परिवर्तन, जिसे कथित तौर पर लव जिहाद का नाम दिया जा रहा है; पर हंगामा, मुम्बई स्थित एक बैंक घोटाले में लाखों लोगों का पैसा मारा जाना, यस बैंक घोटाला, तेज़ी से कोरोना फैलने से पहले गुजरात में दीवार द्वारा झुग्गी-झोपडिय़ों को मोदी द्वारा आड़ देना, नमस्ते ट्रंप, इलाज के लिए अस्पतालों की बदहाली, कोरोना-काल में प्रधानमंत्री द्वारा लोगों से ताली-थाली बजवाना, बत्ती गुल करवाना आदि के अलावा भारत का भुखमरी देशों की लिस्ट में बुरी हालत में जाना, गरीब देशों की सूची में भी अपना स्तर गँवाना, प्रधानमंत्री का यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर विरोध बढऩा, तबलीगी जमात पर कोरोना फैलाने का आरोप लगना, महामारी में भारत का अमेरिका को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दिया जाना, फेसबुक का रिलायंस जियो में 9.99 फीसदी भागीदारी खरीदना, केंद्र सरकार द्वारा महामारी कानून में बदलाव करते हुए डॉक्टरों, स्वाथ्यकर्मियों या पुलिस पर हमला करने वालों पर कड़ी सज़ा के प्रावधान करना, प्रधानमंत्री द्वारा आपदा में अवसर की बात कहना, आत्मनिर्भरता की बात कहना, आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम स्थित एक कम्पनी के संयंत्र से गैस लीक होने से कई लोगों की मौत हो जाना, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी बोर्ड का निदेशक चुना जाना, लॉकडाउन के दौरान अर्थ-व्यवस्था की टूटती कमर को सीधा करने की कोशिश में शराब के ठेकों को खोलने की अनुमति देना, शराब पर मोटी जीएसटी लगाने के बावजूद ठेकों के बाहर मयखोरों की लम्बी-लम्बी लाइनें लगना, फिल्म उद्योग का बन्द हो जाना, फिल्म अभिनेता सलमान खान का खेती करना, टीवी चैनलों द्वारा टीआरपी का खेल करना, उद्धव ठाकरे के सख्त तेवर खासे चर्चा के विषय रहे। और अब सरकार द्वारा जबरन लाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर के किसानों द्वारा किया जा रहा आन्दोलन खासी चर्चा में है।

कहाँ गया पैसा

जब पैसे की बात आती है, तो मन में सबसे पहले सवाल यही उठता है कि आखिर पीएम केयर्स फंड में जमा हुए अरबों रुपये का क्या हुआ? केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री ने इस पैसे का हिसाब देने से साफ मना कर दिया था, उसके बाद लोगों ने उनसे सवाल पूछने शुरू कर दिये थे। लेकिन इस पैसे का क्या हुआ? सिवाय केंद्र सरकार के और कोई नहीं जानता।

कहाँ-कहाँ हाहाकार

इस साल कोरोना वायरस फैलने के साथ ही घटते-छिनते रोज़गार, ठप हुए व्यापार, बन्द हुए उद्योग धन्धों, अधिकतर राज्यों की सरकारों, खासकर केंद्र सरकार द्वारा प्रवासियों की मदद न करने, महामारी की उचित इलाज व्यवस्था न होने, अर्थ-व्यवस्था के माइनस (-)23.9 फीसदी खिसक जाने, हाथरस कांड, तीन नये कृषि कानूनों पर किसानों के विरोध, बढ़ती महँगाई पर खूब हाहाकार मचा रहा है।

क्या करती रही सरकार

एक अहम सवाल यह है कि इस साल जब लोगों को त्रासदी ने घेरे रखा और तमाम परेशानियाँ हरेक आदमी को पेश आयीं, तब सरकार क्या करती रही? इसके जवाब की ठीक-ठीक पड़ताल तो हम नहीं कर सकते, लेकिन अगर सरकार के कामों पर मोटा-मोटी नज़र डालें, तो पता चलेगा कि इस साल सरकार ने प्रदेशों में अपनी साख मज़बूत करने, सरकारी संस्थानों के निजीकरण करने, अपने हक में फैसले कराने, लोगों को मुसीबत में छोडऩे और महामारी से निपटने की जगह उसे प्राकृतिक आपदा कहकर हाथ बाँधकर बैठने में अधिक समय बिताया। कोरोना-काल में केंद्रीय मंत्रियों द्वारा खूब राजनीति हुई। इस दौरान केंद्र सरकार ने कई कानून बना डाले, जिसमें तीन कृषि कानूनों का लगभग पूरे देश में विरोध हो रहा है। देश के अधिकतर बच्चों की पढ़ाई भी अभी तक ठप पड़ी है; लेकिन सरकार डिजिटल पढ़ाई के नाम पर अपना पल्ला झाडऩे में लगी रही है।

प्राकृतिक आपदाएँ

इस साल कोरोना वायरस के भय और संक्रमण से बचाव की कोशिश में लोगों ने इस बात पर गौर ही नहीं किया कि और भी प्राकृतिक आपदाएँ इस साल बहुतायत में आयीं। इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण है, इस साल के ही शुरू में करीब दो दर्ज़न बार भूकम्प का आना। इसके अलावा कई नयी बीमारियों ने भी इस साल दस्तक दी है।

जन-सामान्य की समस्याएँ

वैसे तो देश की हर समस्या देश के हर नागरिक की है; लेकिन कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जो लोगों को सीधे-सीधे प्रभावित करती हैं। इन समस्याओं में निजी जीवन में आने वाली हर वह परेशानी आती है, जिसका सामना व्यक्ति खुद करता है। इसमें बीमारी से लेकर दैनिक जीवन की अनेक समस्याएँ हैं। लेकिन इस साल आम लोग जिन प्रमुख समस्याओं से दो-चार हुए, उनमें बेरोज़गारी, महँगाई और कोरोना नाम की महामारी ही थी।

क्या रहा अच्छा

ऐसा नहीं है कि इस साल सब कुछ बुरा ही बुरा रहा। इस साल भी कुछ बेहतर चीज़ें भी हुईं। इनमें अगर प्रमुखता से ध्यान दिया जाए, तो लोगों में साफ-सफाई की आदत का बढऩा, वातावरण का स्वच्छ होना, जीवन के महत्त्व को समझना, देश को राफेल विमानों का मिलना, लोगों द्वारा घरों में बन्द रहकर कोरोना वायरस पर बहुत हद तक काबू पा लेना काफी बड़ी बातें हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने लोगों की मदद के लिए 20 लाख करोड़ से अधिक के पैकेज की घोषणा की। हालाँकि इस पैकेज से कितने लोगों को क्या फायदा हुआ या हो रहा है, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता। इसी साल प्रधानमंत्री ने देश की सबसे लम्बी सुरक्षा सुरंग चेनानी-नाशरी का उद्घाटन किया।

दायरों से निकलकर तो देखें

यह साल बीतने वाला है। शुभकामनाओं के साथ नये साल का स्वागत करने को हम सभी उत्सुक हैं। यह बदलाव प्राकृतिक है। अगर हम इंसान पल-दर-पल, सेकेंड-दर-सेकेंड, मिनट-दर-मिनट, दिन-रात, हफ्ता-दर-हफ्ता, महीने-दर-महीने, साल-दर-साल और सदी-दर-सदी इसकी गणना-गिनती न भी करें, तो भी समय इसी तरह बीतता जाएगा। समय का बीतना, ऋतुओं का आना-जाना, वनस्पति का उगना और नष्ट होना, नये जीवों का पैदा होना तथा जीवन जीकर मर जाना, हमारी उम्र का बढऩा बदलाव की ही निशानी है। इसी बदलाव की वजह से अरबों-खरबों साल पुरानी प्रकृति आज भी नूतन लगती है। लेकिन क्या हम खुद में ऐसा कोई बदलाव लाते हैं, जिससे हम इंसान भी हमेशा नूतन बने रह सकें? शायद नहीं! क्यों? क्योंकि हम इंसानों ने खुद को अहं, घृणा, ईष्र्या, वैमनस्य, भेद-भाव, अलगाव, दुराव, संताप, प्रलाप, उल्लास, उपहास, उन्माद, परिहास, प्रमाद, अवसाद, आह्लाद, विवादों, जाति-धर्म-वर्ण आदि के खोलों और जीवन की ज़रूरतों वाली कुछ सीमाओं में कैद कर रखा है। यह स्वाभाविक है; लेकिन हम अगर चाहें, तो इस सबसे बाहर निकल सकते हैं। हालाँकि यह भी सच है कि इन सबसे बाहर निकलना इंसान के लिए इतना आसान भी नहीं है; लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं।

इंसानी फितरत ढालने के ऊपर है। कह सकते हैं कि इंसान का स्वभाव पानी की तरह होता है, उसे जैसा साँचा यानी वातावरण मिलता है, या कहें कि वह जैसा वातावरण अपने लिए चुनता है, उसकी आदतें, उसके कर्म उसी तरह के होते चले जाते हैं। यही वजह है कि हम सबकी सोच, व्यवहार और जीवन जीने के तरीके एक-दूसरे से काफी भिन्न होते हैं। जबकि जीवन सबका एक ही तरह का है। सब एक ही तरह पैदा हुए हैं, जीवन जीने की प्रक्रिया भी एक जैसी ही है और सभी को एक ही तरह मर भी जाना है; लेकिन फिर भी जीने के तरीकों में विविधता और आपसी मतभेद हमें एक-दूसरे से अलग करते हैं। हमें आपस में जोड़े रखने की अगर कोई कड़ी है, तो वह है- प्रेम, रिश्तों और स्वार्थ की कड़ी। एक ईश्वर की संतान होते हुए भी हम एक नहीं हैं; क्यों? क्योंकि सब खुद को सही समझते हैं। कोई भी दूसरे के अस्तित्व को बिना स्वार्थ के स्वीकारने को तैयार ही नहीं है। यही वजह है कि हम एक होकर भी अलग-अलग दायरों में बँधे और बँटे हुए हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि हम न तो ईश्वर को बाँट सकते हैं और न उसकी नश्वर संरचना को। नश्वर संरचना! यह समझने की ज़रूरत है। अगर इसे समझ लिया, तो हम इंसानों में भेद करना बन्द कर देंगे। हमें पूरी प्रकृति अपनी लगने लगेगी और स्वार्थ, स्वहित तथा स्वत्व के भाव से स्वयं को निकालकर हम अपनत्व या कहें कि सर्वस्व के भाव में चले जाएँगे; जहाँ न कोई अपना है और न कोई पराया। तब हम निश्छल, निर्भीक, नि:स्वार्थ, निरपराध, निष्काम, निर्मोही और निमग्न हो जाएँगे। उस एक परमात्मा में निमग्न, निश्छल प्रेम में निमग्न और नि:स्वार्थ परसेवा में निमग्न। तब हम भी प्रकृति की तरह ही नित नूतन, नित आनन्दित और नित प्रसन्नचित रहेंगे। लेकिन यह अवस्था प्राप्त करना आसान नहीं है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए बड़े-बड़े योगी, वैरागी सदियों तक लगे रहते हैं। लेकिन यह अवस्था गृहस्थों में भी कभी-कभी आ जाती है; क्योंकि इसके लिए तन से अधिक मन के वैराग की ज़रूरत होती है। शिशु अवस्था की ज़रूरत होती है, जो मन के चञ्चल होने के बाद वापस पाना असम्भव जैसा हो जाता है।

सवाल आता है कि ईश्वर की नश्वर संरचना कौन-सी है? नश्वर संरचना वह है, जो कभी नष्ट नहीं हो सकती। ऋषियों और विद्वानों ने इसमें पञ्च तत्त्वों को शामिल किया है, जिसमें जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश शामिल हैं। यह सच है कि सब कुछ नष्ट हो सकता है, पर यह तत्त्व कभी नष्ट नहीं हो सकते और न ही इंसान इनमें से किसी को बाँट सकता है। इसके अलावा कुछ और भी चीज़ें हैं, जिन्हें इंसान नहीं बाँट सकता, जैसे- धूप, प्रकाश, अन्धकार, दिन-रात, जीवन, शारीरिक कष्ट, भाग्य, मृत्यु, अहसास, दर्द आदि। बल्कि इनमें कई तो ऐसी चीज़ें हैं, जो बाँटने से बढ़ती हैं। कहने का मतलब यह है कि इन सबके टुकड़े नहीं किये जा सकते। इसीलिए कहा है कि इंसान को इंसान से भेदभाव, घृणा, ईष्र्या, वैमनस्य आदि कभी नहीं करने चाहिए। ऐसा करना कहीं-न-कहीं ईश्वर का ही अपमान है। कुछ लोग सवाल करते हैं कि अगर कोई इसके ही लायक हो, तब क्या करें? इसके दो भावों के हिसाब से दो उत्तर हैं। पहला यह कि अगर आप उस परम् अवस्था को जा चुके हैं, जो ब्रह्ममय है, तब आपको इस सबसे मतलब ही नहीं रह जाएगा और अगर आप संसार में हैं और सामान्य हैं, तो यह स्वाभाविक है। लेकिन फिर भी जहाँ तक सम्भव हो सके, आपको इन सबसे बचना चाहिए; ताकि आप भी एक पुण्यात्मा होकर ब्रह्ममय हो सकें, अर्थात् ईश्वर के परम् प्रिय हो सकें। कुछ लोग, जो जातिवाद, धर्मवाद और वर्णवाद को मानते हैं, बल्कि मैं कहूँगा कि इस पागलपन में डूबे हुए हैं, वे समझते हैं कि परम्ब्रह्म की अवस्था को हर कोई नहीं जा सकता, यह केवल एक विशेष जाति का जन्मसिद्ध अधिकार है और यह अवस्था उन्हें तब भी प्राप्त होनी है, जब वे कुछ भी- अच्छा, चाहें बुरा करें। मगर यह उनकी सबसे बड़ी मूर्खता है। अगर ऐसा होता, तो उनकी हर कपोल-कथा सिद्ध हो चुकी होती और दूसरे लोगों को कोई ज्ञान भी नहीं होता। लेकिन ऐसा नहीं है। सवाल यह है कि फिर कैसे उस परम्ब्रह्म को प्राप्त किया जाए? इसका जवाब एक ही है कि पहले मन को शिशु अवस्था तक पहुँचाइए, जिसके लिए सबसे पहले आपको मज़हबी दायरों से निकलना होगा, ज़ात-पात के बन्धनों को तोडऩा होगा।

राजस्थान नगर परिषद और नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत, भाजपा को जबरदस्त झटका, तीसरे नंबर पर रही

पंचायत चुनावों में भाजपा से पिछड़ने वाली कांग्रेस ने राजस्थान के नगर परिषद और नगरपालिका के चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की है। भाजपा इन चुनावों में तीसरे नंबर पर रही जबकि दूसरे नंबर पर निर्दलीय रहे। इस तरह भाजपा को इन चुनावों में जबरदस्त झटका लगा है।

राजस्थान के 50 निकायों के 1775 वार्डों में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 620 सीटें जीती हैं जबकि 595 सीटों के साथ निर्दलीय दूसरे नंबर पर रहे। भाजपा को बड़ा झटका लगा है क्योंकि वह तीसरे नंबर पर रही और उसे 548 जगह जीत हासिल हुई है। उनके अलावा बसपा को महज 7, भाकपा और माकपा को 2-2 जबकि आरएलपी को एक जगह जीत मिली है। हाल में पंचायत समिति चुनाव में भाजपा ने 4371 सीटों में से 1932 सीटें जबकि कांग्रेस ने 1799 जीते थीं।

शहरी निकायों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस सबसे ज्यादा वार्डों में जीत दर्ज करने में सफल रही है। निर्दलीय प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे हैं जबकि भाजपा  पिछली बार के  नंबर एक से तीसरे नंबर पर पहुंच गयी। शहरी इलाका भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है लेकिन इस बार कांग्रेस ने भाजपा का यह गढ़ भेद दिया है। इस बार भाजपा ने अपने कब्जे वाली तीस निकायों में बहुमत गवां दिया है।

याद रहे 2015 के इन 50 निकाय चुनाव में 34 शहरों में भाजपा ने जीत हासिल की थी। अब पांच साल बाद सिर्फ चार स्थानों पर ही बहुमत जुटा पाई है। प्रदेश के तीस ऐसे निकाय हैं, जहां निर्दलीय अहम भूमिका में हैं।

कांग्रेस के पास विपक्ष में रहते हुए इन 50 में से 14 शहरी निकायों में अध्यक्ष थे जबकि  अब 16 में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला है। हालांकि, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने 40 निकायों में अध्यक्ष बनाने का दावा। डोटासरा ने कहा कि भाजपा का तीसरे स्थान पर सरक जाना साफ संकेत देता है कि लोगों के मन से भाजपा दूर होती जा रही है। वैसे पार्टी अपने ही 18 विधायकों और 4 मंत्रियों के क्षेत्रों में बहुमत से दूर रह गई है जहाँ निर्दलीयों ने बाजी मारी है।

श्रीनगर जिले में आतंकियों का पीडीपी नेता के घर हमला, पीएसओ की मौत

कश्मीर के श्रीनगर जिले में सोमवार को आतंकियों ने पीडीपी के एक नेता के घर हमला कर दिया। इस हमले में पीडीपी नेता के पीएसओ की मौत हो गयी है।

जानकारी के मुताबिक आतंकियों ने पीडीपी नेता परवेज अहमद के घर हमला कर दिया और गोलीबारी शुरू कर दी। इसमें नेता का पीएसओ गंभीर रूप से घायल हो  गया। गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन उनकी मौत हो गयी। आतंकियों ने यह हमला आज किया। हमले के बाद पूरे इलाके को सुरक्षा बलों ने घेर लिया है और तलाशी अभियान शुरू किया गया है। घटना श्रीनगर जिले के नाटीपोरा इलाके की है जहां आज सुबह आतंकियों ने पीडीपी नेता हाजी परवेज अहमद के घर पर हमला किया। इस हमले में उनके निजी सुरक्षा गार्ड कांस्टेबल मंज़ूर अहमद घायल हो गए। उन्हें इलाज के लिए एसएमएचएस अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन थोड़ी देर बाद ही उनकी मौत हो गयी।

उधर आतंकियों को पकड़ने के लिए इलाके की घेराबंदी की गई है। पीडीपी नेता परवेज ने घटना को लेकर बताया कि वह, उनके बच्चे, बूढ़ी माँ और अन्य परिजन घर पर थे कि सुबह फिरन पहने दो शख्स मुख्य दरवाजे से दाखिल हुए और वहां तैनात एक पुलिस कर्मी (पीएसओ) पर फायरिंग कर दी। फायरिंग की आवाज सुनकर उनका पीएसओ बाहर निकला और उसने हमलावरों पर जवाबी फायरिंग की। इसके बाद हमलावर भाग गए, लेकिन एक पीएसओ गंभीर रूप से घायल हो गया, जिसकी बाद में मौत हो गयी।

सिंघु बार्डर पर 40 किसान नेता अनशन पर बैठे, कई जगह किसानों का प्रदर्शन

मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दो हफ्ते से राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान संघों के नेता सोमवार को सिंघु बार्डर पर एक दिन के अनशन पर बैठ गए हैं। आज सुबह 8 बजे 40 किसान नेता अनशन पर बैठ गए और वे शाम 5 बजे तक अनशन पर रहेंगे। किसान आज शाम बैठक करेंगे और कल सिंघु बॉर्डर पर सभी संगठन मिलकर अगली रणनीति पर मंथन करेंगे। इस बीच सरकारी स्तर पर सक्रियता जारी है और आज कृषि पर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की बैठक शुरू हो गयी है जिसमें  केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और गृह मंत्री अमित शाह के अलावा अधिकारी भी शामिल हैं।

आज किसान आंदोलन का 19वां दिन भी है और किसानों ने साफ़ कर दिया है कि जब तक तीनों क़ानून मोदी सरकार वापस नहीं लेती है, आंदोलन जारी रहेगा। आज सुबह किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर के एनएच-9 पर जाम लगा दिया। उधर कांग्रेस ने किसानों के आंदोलन और आज के अनशन का समर्थन किया है। पार्टी ने कहा कि सरकार को तुरंत तीन विवादस्पद और जल्दी में पास किये गए कानूनों को वापस लेना चाहिए।

आज दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता भी अनशन कर रहे हैं। सीएम अरविंद केजरीवाल शाम चार बजे पार्टी दफ्तर में अनशन तोड़ेंगे। किसान आंदोलन के समर्थन में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, दिल्ली सरकार में मंत्री सत्येंद्र जैन, गोपाल राय और आम आदमी पार्टी के अन्य नेता भूख हड़ताल पर बैठ हुए हैं।

भारतीय किसान यूनियन दोआबा के अध्यक्ष मनजीत ने कहा – ‘हम सरकार को ये संदेश (भूख हड़ताल से) देना चाहते हैं कि जो अन्नदाता देश का पेट भरता है उसको आज आपकी गलत नीतियों की वजह से भूखा बैठना पड़ रहा है।’

किसान नेताओं ने सोमवार को भी अपना आरोप दोहराया कि सरकार उनके आंदोलन तो ख़त्म करने का षड्यंत्र रच रही है और नेताओं को तोड़ने की कोशिश की जा रही है। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार को इसमें सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि किसान एकजुट हैं। उधर किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि सरकार एमएसपी के मसले पर गुमराह कर रही है।

आज ही कृषि मामलों की जीओएम (ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) की बैठक होनी है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, गृह मंत्री अमित शाह समेत तमाम अधिकारी इस बैठक में मौजूद रहेंगे।

उधर किसान नेताओं ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ अनशन शुरू कर दिया है।  दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे प्रदर्शन से और लोगों के जुड़ने की संभावना है।  किसान नेता बलदेव सिंह ने कहा, ‘किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने सिंघु बॉर्डर पर भूख हड़ताल शुरू कर दी है’। जयसिंहपुर खेड़ा बॉर्डर (राजस्थान-हरियाणा) पर भी किसानों का प्रदर्शन जारी है।

किसान आंदोलन के चलते देश का व्यापारी सरकार से नाराज

कृषि कानून के विरोध में किसानों के आंदोलन के चलते देश के व्यापारियों का गुस्सा सरकार के विरोध में बढ़ता ही जा रहा है। दिल्ली के व्यापारियों ने तहलका संवाददाता को बताया कि वैसे ही देश, अभी कोरोना काल से जूझ रहा है। देश की अर्थ व्यवस्था चरमरायी हुई है। व्यापारियों के व्यापार लड़खड़ाये हुये है। सरकार को ना जाने क्या सूझा, कि वो कृषि कानून बिल लेकर आ गयी जिससे देश का किसान आंदोलन करने को मजबूर है।

चाँदनी चौक और सदर बाजार के व्यापारी राकेश अग्रवाल और संतोष चावला का कहना है कि दिल्ली की सीमाओँ पर एक राज्य से दूसरे राज्य में वाहनों के आवागमन ना हो पाने के कारण उनका व्यापार टूट रहा है। बाजारों में ग्राहकों की कमी है। खरीददारी कम हो रही है। बाजार में पैसे की कमी देखी जा रही है। लोग बाजारों में आने-जाने में कतरा रहे है। पंजाब,हिमाचल, उत्तर –प्रदेश सहित अन्य राज्यों से बड़े वाहन आ –जा नहीं पा रहे है। जिसके कारण गर्म कपड़ो का व्यापार कम हुआ है।

कश्मीरी गेट के आँटो पार्टस के व्यापारी धीर कुमार ने बताया कि आँटो पार्टस का व्यापार यहां से देश भर में होता है। जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है। तब से व्यापार आधा रह गया है। व्यापारियों ने सरकार से अपील की है। किसानों की मांगों पर तुरन्त ध्यान दें ताकि देश में सुचारू और सामान्य काम-काज स्थापित हो सकें।अन्यथा देश की अर्थ व्यवस्था चौपट हो जायेगी।

एक साथ दो मोर्चों पर जंग के लिए सेना तैयार

पिछले सात महीने से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर चीन के साथ जारी तनाव के बीच भारत ने महत्वपूर्ण रणनीतिक फैसला लिया है। इसके तहत अब सुरक्षा बलों को 10 दिन के बजाय 15 दिन की जंग के लिए हथियारों और गोला बारूद रखने का अधिकार दे दिया गया है। इस कदम को चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध की आशंकाओं को देखते हुए तैयारी माना जा रहा है।
हथियारों के भंडारण और आपातकालीन खरीद की वित्तीय शक्तियों का इस्तेमाल कर सुरक्षाबल कुछ महीनों में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि की  खरीदारी करेंगे। इससे देसी और विदेशी कंपनियों से रक्षा उपकरण और गोला बारूद खरीदा जाएगा। रक्षा बलों के लिए भंडारण की सीमा बढ़ाने का निर्णय कुछ समय पहले लिया गया था।
बता दें कि इससे पहले सेनाओं को 40 दिन की लड़ाई के लिए भंडारण की अनुमति थी, लेकिन युद्ध के बदलते तरीकों और भंडारण में दिक्कतों के चलते इसे कम करके 10 दिन कर दिया गया था। पिछली एनडीए सरकार के समय के बदलाव कर सेना को रक्षा खरीद से जुड़े कई अधिकार दिए गए थे। पहले जहां 100 करोड़ तक के हथियारों की खरीद के सेना प्रमुखों को अधिकार थे, उसे बढ़ाकर 500 करोड़ कर दिया था।

…तो क्या देश में घोषित आपातकाल है ? – उद्धव ठाकरे का बीजेपी पर पलटवार

विपक्षी पार्टी बीजेपी द्वारा आघाडी सरकार पर राज्य में अघोषित आपातकाल जैसे हालात बनाए जाने के आरोप पर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पलट कर जवाब देते हुए विपक्ष से सवाल किया कि यदि राज्य में अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति है तो क्या देश में घोषित आपातकाल है ?

उद्धव ने पूछा,’ दिल्ली में किसान ठंड में आंदोलन कर रहे हैं। उन पर ठंडे पानी के फव्वारे बरसाए जा रहे हैं क्या यह सद्भावना है? उन्होंने कहा कि जनता में कोई नाराजगी नहीं है लेकिन विपक्ष के साथ विपक्ष शब्द लगा हुआ है इसलिए उन्हें इस तरह से व्यवहार करना पड़ रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे विरोधी पिछले एक साल से सिर्फ सरकार गिराने का मुहूर्त निकाल रहे हैं लेकिन अब तक वह मुहूर्त नहीं निकला है। वे सिर्फ सरकार गिराने की मुहूर्त निकालने की बात करते हैं इसलिए उन्हें यह नहीं दिखाई देता कि सरकार ने क्या काम किए हैं।

प्रवीण दरेकर के बाबत लगे आरोपों पर ठाकरे ने कहा कि हमारी सरकार में से किसी ने भी विधान परिषद के नेताप्रतिपक्ष प्रवीण दरेकर की गिरफ्तारी की बात नहीं की। क्या देवेंद्र फडणवीस हमें कुछ सुझाने की कोशिश कर रहे हैं? देवेंद्र फडणवीस को यह भी नहीं पता है कि उनकी पार्टी में उन्हें किसकी जरूरत है और किसकी नहीं। उद्धव ठाकरे ने तंज कसते हुए यह भी कहा कि अगर फडणवीस के पास प्रवीण दरेकर की गिरफ्तारी के बारे में कोई सबूत है, तो उन्हें देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि उपमुख्यमंत्री अजीत पवार कह चुके हैं कि यह सरकार करोना संकट, प्रकृति तूफान, बेमौसम बारिश जैसे कई संकटों से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रही है ।

मराठा आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि मराठा आरक्षण या कोई अन्य आरक्षण देते समय किसी के भी अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। उद्धव ठाकरे ने यह भी स्पष्ट किया कि जब ओबीसी के आरक्षण की बात आएगी तब उनके अधिकारों को कोई नहीं छीन पाएगा। उनका अधिकार उन्हें मिलेगा। विपक्ष बेवजह ही इस मुद्दे को तूल दे रही है।

देवेंद्र फडणवीस द्वारा करोना संक्रमण काल में हुए भ्रष्टाचार के आरोप के बारे में बोलते हुए ठाकरे ने कहा कि हम उस संकट से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं। ठाकरे ने कहा कि जब हम करोना से जूझ रहे थे उस दौरान विपक्ष ने सिर्फ आरोपों की राजनीति की है।

उद्धव ने कहा है कि करोना के दौरान राज्य की तिजोरी पर काफी भार पड़ा है और केंद्र ने अभी तक राज्य को 28 हजार करोड़ नहीं दिए हैं।

महाराष्ट्र में अघोषित आपातकाल – फडणविस विपक्ष द्वारा अधिवेशन की पूर्व संध्या पर चाय पार्टी का बहिष्कार

महाविकास आघाड़ी सरकार पर अहंकारी होने का आरोप लगाते हुए महाराष्ट्र विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन की पूर्व संध्या पर विपक्ष ने चाय पान का बहिष्कार किया। सोमवार 13 दिसंबर से दो दिवसीय शीतकालीन अधिवेशन की शुरुआत हो रही है।

नेता प्रतिपक्ष, देवेंद्र फडणवीस ने राज्य सरकार पर चर्चा से घबराने ,दूर भागने और तुगलकी फैसले लेने का आरोप लगाया। फडणवीस का कहना था कि शीतकालीन सत्र कम से कम दो सप्ताह का होना चाहिए था लेकिन सरकार ने सिर्फ दो दिन के अधिवेशन आयोजित किया है। सरकार किसानों, गरीबों, महिलाओं की समस्याओं पर संवाद नहीं करती है। इसलिए हमने सरकार के चाय पान का बहिष्कार किया है।

फडणवीस ने कहा कि राज्य में अघोषित आपातकाल जैसा माहौल है। आप सरकार के खिलाफ बोलेंगे तो आप को जेल में डाल दिया जाएगा या फिर किसी मामले में फंसा दिया जाएगा। अरनब गोस्वामी और कंगना के मामले में सरकार को करारा जवाब मिला है। अरनब गोस्वामी और कंगना से हम भले ही सहमत न हो लेकिन उनके साथ जिस तरह से व्यवहार किया गया वह गलत है। दोनों मामलों में अदालत के फैसले के बावजूद सरकार सरकार सुधरने के बजाय सत्ता का अहंकार दिखा रही ऐसी अहंकारी सरकार दुनिया में कहीं भी नहीं चलती है।

नेताप्रतिपक्ष ने कहा, ‘हम इस अहंकार का सही जवाब देंगे। हम किसी भी संघर्ष के लिए पीछे नहीं हटेंगे। हम लोगों के लिए लोगों और सरकार के सवालों के जवाब देंगे। यह सरकार घमंडी है, इस सरकार का फैसला तुगलकी है।

फडणवीस ने यह भी कहा है कि भले ही अधिवेशन दो दिनों का है और सरकार ने हमें समय कम दिया है बावजूद इसके हम सरकार से जो भी समय मिलेगा उसमें जवाब मांगेंगे।

‘सरकार में जनता की समस्याओं के समाधान के प्रति आत्मीयता नहीं नजरआती। सरकार में शामिल तीनों पार्टियों का व्यवहार अशोभनीय है और सरकार में कोई निर्णय लेने की क्षमता नहीं है।’ फडणवीस का कहना था।

फडणवीस ने आरोप लगाया कि सरकार ने किसानों के साथ छलावा किया है। आपदा के कारण विदर्भ के कुछ इलाकों में हुए फसलों के नुकसान के लिए किसानों की कोई मदद नहीं की गयी। जहां पर पैसे दिए गए हैं वहां बहुत कम मदद दी गयी है। जिसके चलते किसानों में भारी आक्रोश है।

‘देश में सबसे अधिक महाराष्ट्र में लगभग 48 हजार लोगों की कोरोना से मौत हुई है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सरकार विफल रही है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सरकार और मनपा में भ्रष्टाचार हुआ है।’ करोना के बाबत फडणवीस का आरोप था।

मराठा आरक्षण पर फडणवीस ने कहा कि सरकार की ढुलमुल नीति के कारण सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगायी है। अधिवेशन में सरकार को मराठा और ओबीसी आरक्षण पर अपनी भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए।

महिला सुरक्षा के बारे में फडणवीस ने राज्य सरकार को फेल बतायाऔर राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को लचर है। ‘अब सरकार महिला अत्याचार से जुड़ा विधेयक सत्र में पेश करने वाली है। हम अपेक्षा करते हैं कि इस विधेयक पर चर्चा के लिए सरकार पर्याप्त समय देगी।’, उन्होंने कहा।

लॉकडाउन में बढ़े बिजली बिलों में उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए सदन में आवाज उठाने की बात फडणवीस ने कही।

फडणवीस ने कहा,’ हम विधानमंडल के कामकाज सलाहकार समति की बैठक में भी चाह रहे थे कि शीतकालीन सत्र नागपुर में आयोजित हो लेकिन सरकार ने कोरोना का कारण बता दिया। हमने बजट अधिवेशन नागपुर में आयोजित करने की मांग की। उसके लिए भी सरकार तैयार नहीं हुई।’

कृषि कानून वापस हो, नहीं तो गली –गली में होगा आंदोलन: किसान नेता

किसानों का कहना है की अगर सरकार ने कृषि कानून को वापस नहीं लिया तो 14 दिसम्बर के बाद से ये आंदोलन देश की गली –गली में होगा, चाहे इसके लिये कुछ भी करना पड़े। किसान नेता सरदार परम सिंह ने तहलका संवाददाता को बताया कि सरकार किसानों के आंदोलन को सियासी आंदोलन बताकर देश वासियों को गुमराह कर रही है। जबकि सरकार सब कुछ जानती है कि किसानों का ये आंदोलन जायज है। फिर भी सरकार अमीरों और पूंजीपतियों के लिये काम कर रही है। उन्होंने बताया कि सरकार सोच रही है कि किसानों को दिल्ली में नहीं घुसने दिया जायेगा । राज्यों की सीमाओं में ही रोक दिया जायेगा। पर ऐसा नहीं होगा। किसानों की कई योजनायें ऐसी है जिससे सरकार टकराकर चकनाचूर हो जायेगी। अब किसान गांव- गांव , शहर,शहर की गलियों में आंदोलन करेगा जिसमें जनमानस का भी साथ मिलेगा।

किसान हरिश्चन्द्र का कहना है कि जब देश का अन्नदाता जाग जायेगा तो सरकार को उखाड़ फेकेंगा। किसान देश को अन्ऩ देता है, कठिन श्रम करता है। फिर भी सरकार उसके श्रम को नजरअंदाज कर रही है। उनका कहना है कि जब गली-गली में आंदोलन गूंजेगा। तब देश की सरकार कांप ऊठेगी। कृषि कानून बिल वापस लेने को मजबूर होगी।