Home Blog Page 703

साड़ी के धागों के बीच उलझती ज़िन्दगी

होल्कर वंश की महान् शासक देवी अहिल्याबाई होल्कर ने सन् 1767 में आज के मध्य प्रदेश राज्य के महेश्वर में कुटीर उद्योग स्थापित किया था। इसके लिए उन्होंने भारत के अन्य राज्यों से बुनकरों को बुलाकर यहाँ बसाया था और उन्हें घर, व्यापार के साथ अन्य सुविधाएँ भी मुहैया करवायी थीं। इन बुनकरों ने बिखरे-उलझे धागों से ऐसी-ऐसी नायाब साडिय़ाँ बुनीं कि वो जग-प्रसिद्ध होने लगीं और महेश्वर का नाम दुनिया भर में रोशन हो गया। लेकिन जिन बुनकरों ने महेश्वर का नाम रोशन करवाया, अब उनके वंशज बुनकरों की ज़िन्दगी ही हथकरघों की गति धीमी होने से आजीविका की चिन्ता के ताने-बाने में धागों-सी उलझ गयी है। इसकी जानकारी उस अध्ययन से मिली है, जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा ने किया था। इस अध्ययन का नाम सस्टेनेबल लाइवलीहुड्स इन नर्मदा वैली था।

अनोखी कलाकृति और हाथों की जादुई कलाकारी से बुनी हुई साडिय़ों के जानने-समझने के लिए जब महेश्वर के बुनकरों से मिलने का और उनकी जीवन शैली को पास से देखने का मौका अध्ययन यात्रा के दौरान मिला, तो उनकी दर्द भरी दास्ताँ ने अंतर्मन को झकझोरकर रख दिया। नर्मदा के किनारे बसे हुए इस शहर में माहेश्वरी साडिय़ों की बुनाई ही इन बुनकरों के जीवनयापन का मुख्य स्रोत है।

अध्ययन के दौरान महेश्वर में स्थित बुनकरों की घनी आबादी वाले इलाके केरियाखेड़ी और मोमिनपुरा, जहाँ ये माहेश्वरी साडिय़ाँ तैयार की जाती हैं; में अनेक बुनकरों से मिलने-जुलने और उनकी दयनीय हालत को जानने का बहुत नज़दीक से मौका मिला। ये लोग जितनी सुन्दर साडिय़ाँ बुनते हैं, उनमें उतनी ही अधिक मेहनत लगती है। अफसोस यह है कि कड़ी मेहनत के बावजूद इन बुनकरों का जीवन कष्टमय बना हुआ है।

यहाँ की साडिय़ाँ बाहर से जितनी सुन्दर दिखती हैं, इनको तैयार करने की प्रक्रिया उतनी ही ज़्यादा मुश्किल भरी है। केरियाखेड़ी एक छोटा और परम्परागत रूप से कृषि प्रधान गाँव रहा है, जहाँ वर्षों से खेती ही जीवनयापन का साधन रहा है। परन्तु अधिकतर लोगों के पास छोटे रकबे के खेत और संसाधनों की कमी के चलते उन्होंने आजीविका के दूसरे अवसर ढूँढते हुए बुनकरी की ओर कदम बढ़ाया। इस तरह धीरे-धीरे केरियाखेड़ी में साडिय़ों की बुनाई के काम की शुरुआत हुई। इसमें लोगों की मदद करने के लिए सरकार ने गाँव में एक प्रशिक्षण केंद्र बनाने और लोगों को छ: महीने की नि:शुल्क ट्रेनिंग देने की घोषणा भी की।

इसके अलावा सरकार ने वादा किया था कि प्रशिक्षण की अवधि पूरी होने पर कारीगरों को हथकरघा दिया जाएगा। ज़ाहिर तौर पर उन्हें यह अहसास हुआ कि प्रशिक्षण लेकर साडिय़ाँ बुनेंगे, जिन्हें प्रशिक्षण केंद्र पर ही उचित दामों में बेचकर अच्छी और निश्चित आमदनी होगी, जिससे उनकी आजीविका खुशहाल और आसान होगी। परन्तु कुछ ही दिनों बाद उनके सपने तार-तार होने लगे, जब प्रशिक्षण केंद्र उन्हें नि:शुल्क प्रशिक्षण देने से मुकर गया। जिन्हें नि:शुल्क प्रशिक्षण मिला भी, उनसे हर रोज़ 12 से 15 घंटों तक काम लिया गया, जो कि कानूनन जुर्म है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि ट्रेनिंग में भी मुख्यत: पुरुषों को ही अवसर मिला। पहले यह आभास दिया गया था कि ट्रेनिंग के बाद इन्हें हथकरघे दिये जाएँगे, परन्तु प्रशिक्षण के बाद यह शर्त लगा दी गयी कि हथकरघों के एवज़ में बुनकरों को तैयार उत्पाद सिर्फ सरकारी सेंटर पर उनकी द्वारा तय कीमत पर ही बेचने होंगे। उन पर स्वतन्त्र रूप से साड़ी बुनने और बेचने पर भी बंदिश लगा दी गयी, जिसके चलते उन्हें प्रति साड़ी बुनाई से महज़ 200 से 250 रुपये ही मिलते थे।

बड़ी बात यह कि एक साड़ी बनाने में उसे एक से दो दिन का समय लग जाता था। यह आमदनी इतनी कम थी कि एक किसान अगर इतनी मेहनत करे तो महज़ डेढ़-दो बीघा ज़मीन में इससे ज़्यादा कमा सकता हैं। कुछ समय बीतने के बाद कारीगरों से 300 रुपये प्रतिमाह हाथकरघा का किराया भी वसूला जाने लगा। इससे जो कारीगर पहले से ही न्यूनतम मूल्य पर काम करके परिवार चला रहे थे, उनकी समस्याएँ इतनी बढ़ गयीं कि वे व्यथित रहने लगे। इस परिस्थिति में बहुत-से पुरुष कारीगरों ने एक बार फिर खेती का सहारा लिया और औरतें जो पहले ही घर-परिवार और पशुओं की देखभाल में दिनभर लगी रहती थीं, उन पर बुनाई का भी बोझ आ गया। ऐसे में उन्हें घर का काम निपटाकर बुनाई में लगना पड़ता। कई परिवारों में बच्चों समेत परिवार के सभी लोग समय मिलते ही बुनाई में लग जाते, बावजूद इसके उन्हें अपना भरण-पोषण मुश्किल हो गया।

वहीं दूसरी ओर मोमिनपुरा एक बड़ा गाँव है, जहाँ वर्षों से लोग बुनाई का काम करते आ रहे हैं। यह काम यहाँ बड़े-बड़े बुनाई केंद्रों में होता है, जहाँ उच्च वर्ग के चुनिंदा लोगों का एकाधिकार है। पुरुष इन केंद्रों में जाकर बुनाई करते हैं, जबकि महिलाएँ घर पर रहकर हथकरघे से बुनाई करती हैं। पुरुषों को आमतौर पर प्रति साड़ी 400 से 500 रुपये तक मिल जाते हैं। काम की बारीकी के अनुसार पैसे बढ़ते भी हैं। उसी काम के लिए महिलाओं को केवल 200-300 रुपये ही मिलते हैं। कई महिलाओं ने बताया कि उन्हें घर से बाहर बुनाई केंद्रों में काम करने की इजाज़त नहीं है, जिसकी वजह से वे घरों के अन्दर कम रोशनी में और कम पैसों के लिए काम करने पर मजबूर हैं। वहीं प्रवासी मज़दूरों की स्थिति सामान्य से भी बदतर है।

एक प्रवासी परिवार से बातचीत करने पर पता चला कि यह परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले का निवासी है। गाँव में उसके पास खेती लायक ज़मीन न होने के कारण मज़दूरी करके आजीविका चलानी पड़ती थी। तंग आकर यह परिवार रोज़गार की तलाश में मोमिनपुरा आ गया। शुरुआत के कई महीनों तक कई कोशिशों के बाद भी बुनाई का प्रशिक्षण नहीं मिला और प्रवासी होने एवं जातिवाद के चलते परिवार को काफी भेदभाव का भी सामना करना पड़ा। जब काम मिला भी तो बिचौलियों के माध्यम से, जो उनसे बहुत-ही कम दाम (200 से  250 रुपये प्रति साड़ी) में काम कराते थे। उन्हें यह भी नहीं बताया जाता था कि कच्चा माल कहाँ से आता है और तैयार माल कहाँ बेचा जाता है। स्थानीय लोगों में प्रवासी मज़दूरों को लेकर यह भी डर था कि वे कम दाम में काम करके बाज़ार में उनकी हिस्सेदरी छीन न लें। जबकि असल में कम दाम में काम करने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प ही नहीं था।

एक कारीगर ने बातचीत के दौरान बताया की उसकी बुनी हुई एक साड़ी को अपनी अनोखी कारीगरी के लिए सरकार से 20 हज़ार रुपये का इनाम मिला, लेकिन वो पैसे बुनाई केंद्र के मालिक और बिचौलियों ने बाँट लिये और उसे कुछ भी नहीं मिला। केरियाखेड़ी और मोमीनपुरा, दोनों ही गाँव में बुनकरों की स्थिति यह सोचने पर मजबूर करती है कि होल्कर वंश द्वारा स्थापित और अब वर्तमान सरकार द्वारा पोषित इतना पुराना और विश्व प्रसिद्ध कारीगरी का बाज़ार बेहतर होते हुए भी लोगों की स्थिति पहले से बदतर स्थिति में क्यों है? इस व्यवसाय में लगे कारीगरों के जीवन में कोई सुधार क्यों नहीं आया? जैसे-जैसे माहेश्वरी साडिय़ों का बाज़ार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे उनका जीवन का ताना-बाना उलझता क्यों जा रहा है।

(लेखक जेंडर, कलर्स और भारतीय समाज पर शोध कर रही हैं।)

पुलिस अत्याचार से बचा सकती हैं 10 जानकारियाँ

कहावत है कि पुलिस वालों से न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि सभी पुलिस वाले खराब या गलत होते हैं। पुलिस वाले भी सामाजिक होते हैं और उससे पहले इंसान। लेकिन अमूमन देखा जाता है कि कुछ पुलिसकर्मी लोगों को बिना मतलब तंग करते हैं और लोग हाथ-पैर जोड़कर, यहाँ तक कि कई बार रिश्वत देकर उनसे अपनी जान छुड़ाते हैं। यही वजह है कि आम समाज की नज़रों में आज तक पुलिस अपनी बहुत अच्छी छवि नहीं बना पायी। कई मामलों में बेकुसूर भी पुलिस अत्याचार की भेंट चढ़ जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि पुलिस वाले किसी मामले में अचानक किसी को भी घर से उठा लेते हैं या लॉकअप में बन्द कर देते हैं या फिर जो खता व्यक्ति ने की ही नहीं होती है, उसमें उसे फँसा देते हैं या फिर उस थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करते हैं। दरअसल यह सब लोगों को कानून की जानकारी न होने की वजह से होता है। अगर देश के हर नागरिक को कानून की सही जानकारी की जानकारी हो, तो उसे कोई भी पुलिसकर्मी बिना किसी जुर्म के प्रताडि़त नहीं कर सकता। पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए है और देश के हर नागरिक का यह मानवाधिकार है कि वह ज़रूरत पडऩे पर पुलिस की सुरक्षा की माँग कर सकता है। लेकिन अधिकतर लोगों में पुलिस का एक डर बना रहता है, जो कानून की समझ न होने के चलते बना हुआ है। कुछ कानूनों की जानकारी रखने पर लोगों को पुलिस से डर नहीं सुरक्षा मिलेगी। इन कानूनों में निम्नलिखित प्रमुख हैं :-

  1. अगर पुलिस किसी को गिरफ्तार करने आयी है, तो उसे यह जानने का अधिकार है कि उसे किस जुर्म में उसे गिरफ्तार किया जा रहा है। इस पर पुलिस वाला उसे उसका जुर्म बतायेगा और गिरफ्तारी वारंट भी दिखायेगा। अगर किसी ने कोई गम्भीर अपराध किया है, तभी पुलिस धारा-41 और धारा-151 का उपयोग करते हुए उसे बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है; लेकिन धारा-43 के हिसाब से इसका उल्लेख करना होगा। अगर पुलिस के पास गिरफ्तारी वारंट नहीं है, तो पुलिस को मौके पर अरेस्ट मेमो बनाना पड़ेगा, जिसमें पुलिस को गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति का नाम-पता और गिरफ्तारी का कारण लिखने के साथ-साथ अपना नाम, पद और पोस्टिंग थाना, गिरफ्तारी का स्थान, समय और तारीख आदि सब कुछ लिखना होता है। अधिकतर पुलिसकर्मी थाने में यह मेमो तैयार करते हैं, लेकिन कानूनन यह मेमो गिरफ्तारी की जगह पर ही बनाया जाना चाहिए। अगर बिना जुर्म के, बिना किसी कारण के पुलिस किसी को गिरफ्तार करती है, तो वह व्यक्ति पुलिस से अदालत के ज़रिये हर्ज़ाना वसूल सकता है।
  2. पुलिस जब किसी को गिरफ्तार करती है, तो उसे बताना होगा कि उसका जुर्म क्या है? क्या वह जमानती है या गैर-जमानती? अमूमन यह सब पुलिसकर्मियों से पीडि़त या मुल्जिम (जिस पर आरोप तो हो, पर अदालत ने आरोप तय न किया हो या आरोप सिद्ध न हुआ हो) पूछते नहीं हैं और पुलिस उन्हें बताती नहीं है। लेकिन पुलिस अरेस्ट मेमो में लिखती है कि उसने गिरफ्तार व्यक्ति को पहले ही सब कुछ बता दिया था।
  3. पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने पर धारा-41 (डी) में पीडि़त या मुल्जिम को वकील से मिलने का अधिकार है।
  4. गिरफ्तारी के 12 घंटे के अन्दर गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार को सूचना देना भी पुलिस की ज़िम्मेदारी होगी।
  5. धारा-51 के हिसाब से पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अन्दर कोर्ट में पेश करना ही करना है। अगर न्यायालय की छुट्टी है, तो पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के घर पर पेश करे। अगर एक मजिस्ट्रेट नहीं है, तो किसी अन्य न्यायाधिकारी के समक्ष पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति को पेश करना ही करना पड़ेगा। यदि पुलिस ऐसा नहीं करती है, तो वह कानूनी तौर पर गलत मानी जाएगी। और अगर पुलिस बिना न्यायिक अधिकारी के समक्ष किसी को 24 घंटे से अधिक रिमांड पर रखती है, तो पीडि़त या मुल्जिम के परिजन एसपी या अन्य उच्चाधिकारी के पास जाकर इसकी शिकायत कर सकते हैं।
  6. धारा-46 के अनुसार, पुलिस किसी पर बल प्रयोग तभी कर सकती है, जब वह काबू में नहीं आ रहा हो या उसे पकडऩे या रोकने आदि के लिए। अगर व्यक्ति यह कह देता है कि वह अब पुलिस को पूरी तरह से सहयोग करेगा और वह भागेगा नहीं, वह उसके साथ है; तो धारा-49 के अनुसार, पुलिस उस पर बल प्रयोग नहीं करेगी।
  7. धारा-53 के अनुसार, पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति का मेडिकल करायेगी। इसमें भी अलग-अलग तरह के मेडिकल होते हैं। मसलन अगर किसी व्यक्ति ने मारपीट की है, तो उसका मेडिकल धारा-53 के तहत होगा। अगर उसने बलात्कार किया है, तो उसका मेडिकल धारा-53 (ए) के तहत होगा। मान लिया कि ऐसा कुछ नहीं है, तो भी गिरफ्तार व्यक्ति खुद माँग कर सकता है कि उसका मेडिकल कराया जाए। क्योंकि अगर पुलिस ने बाद में उसकी पिटायी की, तो वह मजिस्ट्रेट के सामने दोबारा मेडिकल की माँग करके इसे सिद्ध कर सकता है। इसके अलावा अगर पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति का मेडिकल नहीं कराती है, तो धारा-54 में उसे अधिकार है कि वह मजिस्ट्रेड के सामने मेडिकल की गुहार लगा सकता है।
  8. अगर किसी महिला को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस आती है, तो केवल महिला पुलिसकर्मी ही उसे गिरफ्तार कर सकती है। इसके अलावा सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किसी महिला की गिरफ्तारी पुलिस नहीं कर सकती। अगर यह बहुत ज़रूरी हुआ, तो भी महिला पुलिस ही किसी महिला को गिरफ्तार कर सकती है।
  9. अगर किसी नाबालिग को पुलिस गिरफ्तार करने जाती है, तो पुलिस उस पर बल प्रयोग नहीं कर सकती। उसे उसके साथ नरमी और प्यार से ही पेश आना पड़ेगा।
  10. किसी भी गिरफ्तार नागरिक को पुलिस भूखा नहीं रख सकती, उसे लघु शंका और दीर्घ शंका जाने से नहीं रोक सकती। अगर पुलिस ऐसा करती है, तो वह कानून तौर पर जवाबदेह मानी जाएगी, जिसके लिए दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है।

पढ़ाया जाए संविधान

किसी भी देश का कोई भी नागरिक तभी एक सभ्य नागरिक हो सकता है, जब वह अपने अधिकारों से पहले अपने कर्तव्यों के प्रति तत्पर होगा। लेकिन हम देखते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हमारे देश में 99 फीसदी नागरिकों को या तो अपने कर्तव्यों और अधिकारों की सही जानकारी नहीं है, या फिर वे अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते। यही वजह है कि आज हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ आपसी टकराहट, कड़ुवाहट और बर्बादी के कितने ही रास्ते, कितने ही गड्ढे स्वत: तैयार होते जा रहे हैं।

हम दिन भर में कितनी गलतियाँ करते हैं, इस बात की जानकारी हमें भी नहीं होती। मसलन, अगर गन्दगी करने को ही ले लें, तो हममें से हर दूसरा आदमी गन्दगी करने का आदी हो चुका है। इसकी मूल वजह क्या है? इसकी मूल वजह हमारी शिक्षा में नैतिकता और कर्तव्यों का विकट अभाव है। इसके लिए हमें नैतिक होना पड़ेगा और नैतिक होने के लिए हमें मानव धर्म को अच्छी तरह समझना होगा, ताकि हम किसी के लिए नुकसान या कष्टकारक न बन सकें। सवाल यह है कि क्या इसके लिए धर्म पर चलना पर्याप्त नहीं है? इसका जवाब यही हो सकता है कि धर्म भी किसी को तभी सही रास्ता दिखा सकता है, जब उस इंसान में इंसानियत हो, धर्म के सही मर्म का ज्ञान हो और उसके संस्कार अच्छे हों। अन्यथा वह धर्मांध हो सकता है। भारत जैसे देश में, जहाँ कई-कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं; धर्मांधता का पनपना इसका एक सटीक उदाहरण है। लेकिन एक ऐसा ग्रन्थ भी हमारे देश में है, जो सभी धर्मों के लोगों को एकसूत्र में बाँधे हुए है, और वह है- संविधान।

यह संविधान की ही ताकत है, जो आज भारत अखण्डता के सूत्र में बाँधे हुए है। लेकिन दु:खद यह है कि 99 फीसदी लोगों को अपने ही संविधान की सही-सही जानकारी नहीं है। इनमें 80 फीसदी तो ऐसे हैं, जिन्हें संविधान के बारे में कुछ भी नहीं मालूम।

यही वजह है कि लोग कानून से डरते तो हैं, पर कानून के बारे में कुछ नहीं जानते। जबकि कानून सभी के जानने-समझने की चीज़ है। क्योंकि कानून नहीं जानने वाले लोग उस अनपढ़ व्यक्ति की तरह हैं, जो समझदार तो हो सकता है, लेकिन जानकार नहीं। हमारी समझ में कोई देश तभी सबसे बेहतर दिशा में जा सकता है, जब उसके नागरिक बेहतर दिशा में चलें, और यह तभी सम्भव है, जब देश का हर नागरिक अपने कर्तव्यों और अधिकारों से बखूबी परिचित हो; सांस्कृतिक होने के साथ-साथ नैतिक और कानूनी दायरों में रहकर हर काम करता हो। लेकिन सवाल यह है कि इतने बड़े देश के सवा सौ करोड़ से भी अधिक लोगों को इसके लिए कैसे तैयार किया जाए? और यह ज़िम्मेदारी किसकी है? इसका सीधा-सा जवाब है- सरकार यह कर सकती है और यह उसी की नैतिक ज़िम्मेदारी है। सरकार को चाहिए कि वह देश के हर नागरिक तक संविधान की वो जानकारियाँ पहुँचाए, जो उनके लिए ज़रूरी हैं। माना कि यह काम एक-दो दिन या एक-दो महीने में नहीं हो सकता; लेकिन अगर सरकार कम-से-कम स्कूलों और कॉलेजों में संविधान पढ़ाने को अनिवार्य कर दे, तो आने वाले 10-12 साल में लोगों, कम-से-कम नयी पीढ़ी को अपने सभी कर्तव्यों, अधिकारों और स्वहित के साथ-साथ परहित तथा देशहित में काम करने की नैतिकता का भान हो जाएगा। इससे उनका दृष्टिकोण बदलेगा और वे सही मायने में देश के अच्छे नागरिक बनेंगे।

अहंकार या कुछ और? आला अफसरों की शादियाँ क्यों हो रहीं नाकाम

आईएएस अफसर टीना डाबी और अतहर खान मार्च, 2018 में शादी के बन्धन में बँधे और राजस्थान कैडर में अपनी सेवाएँ देने लगे। उनके रिश्ते में खटपट की बात तब सामने आयी, जब टीना ने सोशल मीडिया पर अपने उपनाम से खान टाइटल हटा दिया, जबकि अतहर ने उसी समय इंस्टाग्राम पर टीना को अनफॉलो कर दिया था। अतहर, जो कश्मीर से आते हैं; ने यूपीएससी परीक्षाओं में दूसरा स्थान हासिल किया था; जबकि भोपाल की रहने वाली टीना डाबी प्रथम प्रयास में ही सिविल सेवा परीक्षा में टॉप करने वाली पहली दलित लड़की बनी थीं। मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान दोनों करीब आ गये थे और बाद में शादी जैसे पवित्र बन्धन में बँधे।

उनकी प्रेम कहानी को साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में देखा गया था, लेकिन अब जो खबरें आ रही हैं, उसकी मानें तो अतहर खान ने राजस्थान से जम्मू और कश्मीर में स्थानांतरण की माँग की है और केंद्रीय गृह मंत्रालय के कर्मियों के संघ राज्य क्षेत्र कैडर में प्रतिनियुक्ति के लिए संपर्क किया है। नियमानुसार, एक आईएएस अधिकारी को प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन करने से पहले न्यूनतम पाँच साल की सेवा की आवश्यकता होती है। उनकी शादी ने राष्ट्रीय सुिर्खयाँ बटोरी थीं और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया था।

कई लोगों ने दोनों की शादी को साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में देखा। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने आईएएस दम्पति को बधाई दी थी और ट्वीट किया था- ‘आपका प्यार मज़बूती से मज़बूती की ओर बढ़ सकता है और बढ़ती असहिष्णुता और साम्प्रदायिक घृणा के इस युग में आप सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। भगवान आपका भला करे।’ वेंकैया नायडू, सुमित्रा महाजन, रविशंकर प्रसाद दिल्ली में उनके विवाह समारोह में शामिल हुए थे। शादी के तीन रिसेप्शन थे- पहला जयपुर में, जो कि साधारण कोर्ट समारोह था; दूसरा पहलगाम में और तीसरा दिल्ली में। डाबी और अतहर दोनों को आईएएस के राजस्थान कैडर में आवंटित किया गया था। व्यक्तिगत रूप से भी, दोनों ही उपलब्धि की ऊँचाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं; क्योंकि टीना डाबी यूपीएससी परीक्षाओं में टॉप करने वाली पहली दलित महिला थीं। अतहर, जो टीना से एक साल बड़े हैं, वह आतंक प्रभावित दक्षिण कश्मीर से हैं। टीना डाबी भोपाल की रहने वाली हैं और उनके माता-पिता दोनों इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज में हैं। उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज में राजनीति विज्ञान में पढ़ाई की है। अतहर हिमाचल प्रदेश के मंडी में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से बीटेक हैं। प्रारम्भ में दोनों एक ही शहर में थे; लेकिन बाद में टीना डाबी को ज़िला परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में श्रीगंगानगर में तैनात किया गया था। अतहर ज़िला परिषद् के सीईओ के रूप में जयपुर में तैनात थे।

दिलचस्प यह भी है कि यूपीएससी के 2015 बैच के बीच 14 अधिकारियों ने अपने बैचमेट से शादी की थी, एक साल बाद 156 आईएएस अधिकारियों के 2016 बैच ने भी एक रिकॉर्ड बनाया और उनके बीच छ: जोड़े शादी के बन्धन में बँधे। इसके अलावा एक अधिकारी ने 2017 बैच के एक जूनियर से शादी की और दूसरे ने एक वरिष्ठ से। इस साल के शुरू में मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान छ: जोड़ों ने शादी कर ली। हालाँकि आईएएस अधिकारियों के लिए बैचमेट या जीवन-साथी के रूप में दूसरे बैच के एक अधिकारी को चुनने के बारे में कुछ भी नया नहीं है, पिछले तीन बैचों में सिविल सेवकों की संख्या में अड़चन आ रही है। 2017 में, 2017 बैच के ही छ: अधिकारियों ने पहले ही एक साथी-आईएएस अधिकारी से शादी कर ली है; जबकि 2015 बैच के 14 अधिकारियों ने एक बैचमेट से शादी की।

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के रिकॉर्ड से पता चला है कि विभिन्न बैचों के 52 आईएएस अधिकारियों ने 2017 के बाद से एक साथी अधिकारी से शादी की। शायद मसूरी में हवा में कुछ ऐसा है जो रोमांस को खिलने और विवाह में परिणत होने में मदद करता है। यह भी सच है कि जब आपस में बहुत ज़्यादा बातचीत होती है और आप खुलकर बातें करते हैं, तो प्यार में पडऩा स्वाभाविक है। लेकिन आगे भी क्या हालात बनतें हैं? इसे कोई नहीं जानता। दबाव अक्सर समझ के बजाय तनाव पैदा कर सकता है, और इसी तरह के अनुभव और करियर की सम्भावनाएँ अहंकार की लड़ाई में बदल सकती हैं। फिर उन्हीं ज़िलों में पोस्टिंग मिलने की बात है, जो हर समय सम्भव नहीं है। अशोक यादव हरियाणा के एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं। वह कहते हैं कि लोग 28-30 वर्ष की आयु में लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में आते हैं। यह औसतन वह उम्र है, जब अधिकांश जोड़े साथी चुनने की चाहत में होते हैं। जब उनका करियर का रास्ता साफ होता है, पेशेवर रूप से सेट होते हैं। साथ ही यह ऐसी उम्र होती है, जिसमें अकादमी के भीतर ही लोग अपने जीवन-साथी को तलाश की चाहत रखते हैं। हालाँकि ये विवाह सरकार के लिए भी सिरदर्द हैं, जिन्हें कैडर आवंटन के श्रमसाध्य कार्य को फिर से करने की आवश्यकता है। जब आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारी एक-दूसरे से शादी करने का चयन करते हैं; ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह युगल एक साथ एक राज्य में ही तैनात रह सके।

हालाँकि इस बीच जो चिन्ता का कारण है वह यह है कि अधिकारियों के बीच तलाक की दर बहुत अधिक होना। इनमें से ज़्यादातर शादियाँ लम्बे समय तक नहीं चल पाती हैं। इसके कई कारण हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने टिप्पणी की- ‘आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के बीच अहंकार बहुत अधिक हो जाता है। समस्या तब और ज़्यादा हो जाती है, जब पति आईपीएस हो और पत्नी आईएएस। हो सकता है कि पति-पत्नी के बढ़ते करियर और आगे बढऩे को बर्दाश्त नहीं कर पाते और हालात तलाक तक पहुँच जाते हैं। इसके अलावा यह भी तथ्य है कि पति-पत्नी आर्थिक और पेशेवर रूप से आज़ाद होते हैं, जिससे एक ज़रूरतमंद रिश्ते के साथ जुडऩे की आवश्यकता कम हो जाती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि तलाक के मामले पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़े हैं; क्योंकि समाज में इसे अब सामान्य माना जाने लगा है। भारत में शादी न करना के मामले बेहद कम होते हैं। भारत में 45-49 साल तक आयु वर्ग की सभी महिलाओं में से एक फीसदी से कम ऐसी हैं, जिन्होंने शादी नहीं की है। हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‌एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों के आँकड़ों पर नज़र डालें तो तलाक के मामले दोगुने हो गये हैं।

‘दुनिया में महिलाओं की प्रगति 2019-2020  : एक बदलती दुनिया में परिवार’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि तलाक के बढ़ते मामलों के बावजूद, केवल 1.1 फीसदी महिलाएँ तलाकशुदा हैं, जिनकी सबसे ज़्यादा तादाद शहरी क्षेत्र से है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशकों में महिलाओं के अधिकारों में इज़ाफा दर्ज किया गया है। दुनिया भर में परिवार प्रेम और कुटुम्ब का स्‍थान सीमित हो रहा है; लेकिन यह भी एक ऐसा स्थान है, जहाँ मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन और लैंगिक असमानताएँ बनी हुई हैं। रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि शादी की उम्र सभी क्षेत्रों में बढ़ी है, जबकि जन्म दर में गिरावट आयी है और महिलाओं ने आर्थिक स्वायत्तता में वृद्धि की है। रिपोर्ट में नीति निर्माताओं, कार्यकर्ताओं और लोगों को जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता और न्याय के स्थानों में बदलने के लिए प्रेरित किया गया है। ये वो क्षेत्र हो सकते हैं, जहाँ महिलाएँ अपनी पसन्द और आवाज़ निर्भीकता से रख सकती हैं और ऐसा वहीं सम्भव हो सकता है, जहाँ आर्थिक सुरक्षा के साथ उनकी शारीरिक सुरक्षा की गारंटी हो। रिपोर्ट में बतायी गयी कुछ सिफारिशों में परिवार के कानूनों में संशोधन और सुधार शामिल हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाएँ खुद तय कर सकें कि शादी कब और किससे की जाए? आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, यदि आवश्यक हो तो तलाक की सम्भावना प्रदान करें और परिवार के संसाधनों तक महिलाओं की पहुँच को सक्षम बनाएँ। पिछले एक दशक में प्रति हज़ार जोड़ों पर तलाक लेने वालों की संख्या एक से बढ़कर 13 हो गयी है। इस पर वाकई गम्भीरता से विचार करना ज़रूरी है।

देशवासियों में जगे किसानों जैसी एकता

भले ही कृषि कानूनों के बहाने सही, लेकिन किसान जिस तरह से एकजुट हुए हैं, उसकी सराहना हमें करनी चाहिए। सराहना इसलिए करनी चाहिए, क्योंकि आन्दोलन पर बैठे किसानों में न तो मज़हबों की दीवारें खड़ी हैं, न क्षेत्रवाद को लेकर भेदभाव है, न गरीबी-अमीरी को लेकर किसी तरह का ईष्र्या का भाव है और न ही ज़ात-पात को लेकर कोई वैमनस्य की भावना। ऐसी ही एकता की ज़रूरत हम सभी देशवासियों को सदियों से रही है। अगर ऐसी एकता पूरे देश के हर वर्ग के लोगों में कामय हो जाए, तो हम भारतीयों की न सिर्फ तकदीर बदल जाएगी, बल्कि इस देश का नक्शा कुछ और ही होगा।

महान् क्रान्तिकारी और मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने कहा है कि मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हमवतन हैं हिन्दोस्ताँ हमारा। यह तो उन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था। सही मायने में देखा जाए, तो पूरी दुनिया ही एक परिवार है। इसीलिए तो वेदों में कहा गया है- ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् पूरा विश्व ही एक परिवार है। देवतुल्य साईं बाबा ने हमेशा सीख दी कि सबका मालिक एक है। सन्त कबीरदास, सन्त गुरुनानक देव, सन्त तुकाराम जैसे दुनिया के अनेक महान् सन्तों ने भी यही सीख दी कि ईश्वर एक है और हम सब उसकी सन्तानें हैं। लेकिन यह दुर्भाग्य की बात ही है कि हम एक ईश्वर की सन्तान होते हुए भी कभी एक नहीं हो पाये। हमने ऐसे सन्तों को पूजना तो शुरू कर दिया, जिन्होंने हमें सबसे पहले इंसान बनने की सीख दी; लेकिन उनकी बातों पर आज तक अमल नहीं किया। मज़हबों को तो मानना शुरू कर दिया; लेकिन मज़हबी शिक्षाओं पर कभी अमल नहीं किया। सही मायने में हम उस विद्यार्थी की तरह हैं, जो किताबों का मोटा बस्ता लेकर स्कूल ड्रेस में सज-धजकर हर रोज़ स्कूल तो जाता हो, परन्तु पढ़ाई बिल्कुल नहीं करता हो। दूसरी और सीधी भाषा में कहा जाए, तो हम उस गधे की तरह हैं, जिसकी पीठ पर किताबें लदी हैं; लेकिन उसे उन कीमती किताबों का महत्त्व नहीं पता है। सच पूछिए तो अब हम मज़हबी दायरों में कैद हैं। िकरदार और मज़हब की सीखों से हमें बहुत कम लेना-देना रह गया है। कहा गया है कि इंसान का सबसे बड़ा मज़हब इंसानियत है। इंसानियत की राह पर चलने के लिए आपस में प्यार होना ज़रूरी है और आपसी प्यार तभी रह सकता है, जब हममें भाईचारा होगा; जब हम सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलेंगे और हमारी नीयत साफ होगी। ऐसा करने पर हमारे दिल में दया, करुणा और दूसरों की मदद की भावना जागेगी। एकता की भावना पैदा होगी और हम एक-दूसरे के साथ हर सुख-दु:ख में ठीक वैसे ही खड़े हो जाएँगे, जैसे हम अपने परिवार के साथ हर सुख-दु:ख में खड़े होते हैं। तब हमें किसी का भी दु:ख अपना ही दु:ख लगने लगेगा।

लेकिन अफसोस की बात है कि हम बिना स्वार्थ के दूसरों की बात तो दूर अपनों के भी काम नहीं आना चाहते। यही वजह है कि जब हम पर विपत्ति आती है, तो हम भी तन्हा दिखायी देते हैं। तब हमें दूसरों से शिकायत रहती है। आज के दौर में ऐसे बहुत-से उदाहरण हैं। लेकिन कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जिनमें हम पाएँगे कि किसी ऐसे व्यक्ति पर पूरी दुनिया के लोग मर-मिटने को तैयार हो जाती है, जिनका अपने खून के रिश्ते का कोई भी व्यक्ति दुनिया में नहीं होता। ऐसे भाग्यशाली लोग वही होते हैं, जो पूरी दुनिया को अपना कुटुम्ब मान लेते हैं। आज हम आपस में इतने बिखर गये हैं कि हमें एकजुट करने को अगर ईश्वर भी आ जाए, तो भी शायद हम सभी एकजुट न हो सकें। हम एकजुट कब होते हैं? हम एकजुट तब होते हैं, जब हम सब पर कोई सामूहिक आपदा आन पड़ती है। कोई प्राकृतिक या अप्राकृतिक मार पड़ रही होती है और हम अकेले-अकेले होकर उस मुसीबत से निपटने में नाकाम होते हैं। अगर हम सब हमेशा मिलजुलकर रहें, सभी तरह के भेदभाव भुलाकर मज़हबी और जातिवादी होने से पहले इंसान बन जाएँ, तो धरती पर हम इंसानों का जीवन स्वर्ग जैसा आनन्दमय और सुखमय हो सकता है।

एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस बैलगाड़ी पर सवार होकर किसी गाँव की ओर जा रहे थे। यह वह समय था, जब लोग उन्हें एक सन्त से ज़्यादा माता काली का पुजारी मानते थे। इस गाँव के एक ज़मीदार ने उन्हें निमंत्रण दिया था। गाँव काफी दूर था और बैल तो धीरे चलते ही हैं, इसलिए गाड़ीवान ने बैलों को मार-मारकर तेज़ी से हाँकना शुरू किया। लेकिन जैसे-जैसे गाड़ीवान बैलों की पीठ पर डंडे मारता गया, वैसे-वैसे रामकृष्ण परमहंस की पीठ पर डंडे की चोट के निशान पड़ते गये। आखिरकार वे अपनी जगह से अचानक नीचे गिर पड़े और कराहने लगे। रामकृष्ण परमहंस की अचानक हुई इस हालत को देखकर गाड़ीवान घबरा गया। उसने जल्दी से बैलगाड़ी रोकी और उनकी पीठ पर डंडों के निशान देखे, तो वह भौचक्का रह गया। परमहंस एकटक दयाभाव से बैलों को देखे जा रहे थे। यह देख गाड़ीवान उनके पैरों में गिर गया और उनसे क्षमा माँगी। जब यह बात गाँव वालों को पता चली, तो परमहंस को देखने वालों का तांता लग गया। लोगों ने इस बात पर उनकी भक्ति करनी चाही, लेकिन रामकृष्ण परमहंस ने कहा- ‘मैं भी आप लोगों की तरह ही साधारण इंसान हूँ। इसलिए आप लोग मेरी भक्ति न करें। हाँ, मुझे दूसरों पर आये कष्ट से पीड़ा होती है, क्योंकि दूसरे प्राणियों में भी मेरी तरह ही वही आत्मा है, तो मेरे शरीर में है। इसीलिए दुनिया के सभी प्राणी मेरे अपने सगे हैं।’ आज हममें से कितने लोग हैं, जो दूसरों के दु:ख-दर्द को अपना दु:ख-दर्द समझते हैं? कितने लोग हैं, जो सभी को अपना हैं? तो फिर हममें एकता की भावना कैसे रह सकती है? और अगर हममें एकता की भावना नहीं होगी, तो हम सुरक्षित कैसे रह सकते हैं?

राहुल गांधी ने कृषि कानूनों की कमियां उजागर करने वाली पुस्तिका जारी की, कहा यह कृषि व्यवस्था बर्बाद कर देंगे

किसान आंदोलन के उफान के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को कृषि कानूनों की कमियां उजागर करने वाली एक पुस्तिका जारी की। राहुल ने कहा कि नए कृषि कानून देश की कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए तैयार किए गए हैं। राहुल ने कहा कृषि क़ानून वापस लेना ही मसले का हल है।

एक प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने मोदी सरकार के कृषि कानूनों पर बड़ा हमला करते हुए कहा – ‘नए कृषि कानूनों के चलते पूरा कृषि क्षेत्र 3-4 घोर पूंजीवादियों के हाथों में चला जाएगा। मैं किसान आंदोलन का समर्थन करता हूं। हर व्यक्ति को किसानों का समर्थन करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे लिए लड़ रहे हैं।’

बता दें विपक्ष में राहुल गांधी ऐसे नेता हैं जो लगातार किसानों के हक़ में मोदी सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं। आज गांधी ने फिर सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस नेता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कृषि कानूनों की कमियां उजागर करने वाली एक पुस्तिका जारी की। उन्होंने कहा कि नए कृषि कानून देश की कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए तैयार किए गए हैं।

राहुल ने कहा – ‘देश में आज त्रासदी घट रही है। सरकार सभी मुद्दों की अनदेखी कर देश को गुमराह करना चाहती है। मैं सिर्फ किसानों की बात नहीं कर रहा। यह मुद्दा तो त्रासदी का एक हिस्सा भर है। यह बात युवाओं के लिए अहम है। यह वर्तमान का नहीं, बल्कि आपके भविष्य का सवाल है’।

कांग्रेस नेता ने कहा कि दुनिया के लिए चीन की रणनीति साफ है। राहुल ने कहा – ‘इसमें भारत शामिल नहीं है। भारत ने इस बारे में स्ट्रैटजी नहीं बनाई। चीन को दो बार परख चुके हैं। एक बार डोकलाम में और दूसरी बार लद्दाख में। अगर भारत ने चीन को साफ संदेश नहीं दिया, मिलिट्री और इकोनॉमी से जुड़ी स्ट्रैटजी नहीं बनाई तो चीन चुप नहीं बैठेगा, बल्कि इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाएगा। जिस दिन ऐसा हुआ, उस दिन हमें नुकसान होगा।’

नड्डा के सवाल
राहुल ने आज सुबह ट्वीट करके कहा था कि वे कृषि कानूनों को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे। उनके ट्वीट के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राहुल पर निशाना साधा और   सोशल मीडिया के जरिए उनसे 5 सवाल पूछे। नड्डा ने कहा राहुल, उनका राजवंश और कांग्रेस चीन पर झूठ बोलना कब छोड़ेंगे?, अरुणाचल प्रदेश के एक हिस्से समेत हजारों किमी जमीन चीन को किसी और ने नहीं, बल्कि पंडित नेहरू ने गिफ्ट कर दी थी, क्या राहुल इससे इनकार कर सकते हैं?, कांग्रेस चीन के सामने सरेंडर क्यों कर देती है?, क्या राहुल चीन और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ कांग्रेस के एमओयू  को रद्द करने की मंशा रखते हैं? और क्या राहुल अपने परिवारिक ट्रस्ट को चीन से मिले दान को लौटाना चाहते हैं?

राहुल ने चीन के अरुणाचल प्रदेश में गांव बसाने पर सरकार को घेरा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चीन के अरुणाचल प्रदेश के भीतर भारतीय सीमा में एक पूरा गांव बसा लेने पर मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने ट्वीट करके चीन के गांव बनाने की रिपोर्ट को टैग करते हुए पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए लिखा – ‘उनका वादा याद करो, मैं देश झुकने नहीं दूंगा।’

चीन के अरुणाचल प्रदेश में 101 घरों का पूरा गाँव बसा लेने और वहां चीनी झंडा लगा देने की खबर वायरल हो चुकी है। भारतीय सीमा के भीतर यह इलाका चीन के कब्जे में है। राहुल गांधी पहले भी मोदी सरकार को चीन के भारत के इलाके में घुसने को लेकर घेरते रहे हैं।

आज राहुल गांधी ने ट्वीट के साथ एक हिंदी अखबार की रिपोर्ट शेयर की है जिसमें  बताया गया है कि चीन ने एक साल के भीतर अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के साढ़े चार किलोमीटर के भीतर सौ घरों का एक गांव बना लिया है। इस घटना को लेकर एक अंग्रेजी चैनल ने भी बड़ी रिपोर्ट सैटलाइट तस्वीरें के साथ चलाई थी। एक तस्वीर अगस्त 2019 और दूसरी नवंबर 2020 की है जिससे जाहिर होता है कि वहां चीन ने अब कई इमारतें बना ली हैं, जबकि पहले यह जगह खाली थी।

गांधी से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने भी चीन के अरुणाचल प्रदेश के भीतर विवादास्पद क्षेत्र में सौ घरों के एक गांव का निर्माण की खबर पर मोदी सरकार से जवाब मांगा था। चिदंबरम ने कहा था कि ‘यदि भाजपा सांसद के दावे सही हैं तो क्या सरकार चीन को क्लीन चिट देकर पूर्ववर्ती सरकारों को दोषी ठहराएगी।’

ब्रिसबेन में ऋषभ के बूते भारत का करिश्मा, ऑस्ट्रेलिया से मैच और सीरीज जीती ; पंत 89 नॉट आउट

विकेट कीपर और धाकड़ बल्लेबाज ऋषभ पंत ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चार टेस्ट मैचों की सीरीज के आखिरी मैच में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए भारत की झोली में एक बड़ी जीत और सीरीज (2-1) का तोहफा डाल दिया। मंगलवार को ऋषभ ने पांचवें विकेट के लिए वाशिंगटन सुंदर के साथ अच्छी साझीदारी करके भारत को ऐतिहासिक जीत दिलवा दी, हालांकि, बाड़े के बल्लेबाजों के ऑउट होने से कुछ पल के लिए भारतीय खेमे में चिंता भी पैदा हुई लेकिन ऋषभ एक छोर पर जमे रहे।  पितृत्व अवकाश पर गए कप्तान विराट कोहली ने ट्वीट करके भारत को इस बड़ी जीत पर बधाई दी है। भारत ने तीन विकेट से यह मैच जीता। भारत ने 328 रन के लक्ष्य को 7 विकेट खोकर हासिल कर लिया। ऋषभ ने 139 गेंदों पर शानदार 89 रन बनाये।

तीसरे टेस्ट मैच की तरह ऋषभ ने शुरू से ही जीत के लिए खेल शुरू किया और भारत को जीत तक पहुंचा भी दिया। उन्हें चेतेश्वर पुजारा का भी अच्छा साथ मिला और बाद में सुंदर ने उनका मजबूत साथ निभाया। आख़िरी टेस्ट मैच के चौथे दिन ऋषभ ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। इससे पहले उन्होंने लाजवाब विकेटकीपिंग करके आलोचकों के मुहं पर ताला लगा दिया था। शुभमन गिल ने भी शानदार 91 रन बनाये थे।

ब्रिसबेन में आज ड्रॉ रहता तब भी बॉर्डर-गावसकर ट्रॉफी भारत के पास ही रहती लेकिन भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी जमीन पर धूल चटाकर शानदार जीत हासिल की। यह सब तब हुआ जब कई खिलाड़ियों के चोटिल होने से भारत नए खिलाडियों के साथ ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम के खिलाफ मैदान में था। मोहम्मद सिराज और शार्दुल ठाकुर ने जबरस्दस्त गेंदबाज़ी करके भारत की उम्मीदें ज़िंदा रखीं और ऋषभ ने अपनी बल्लेबाजी से उन्हें परवान चढ़ा दिया।

सिराज ने ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में 19.5 ओवर में 73 रन देकर पाँच विकेट और  शार्दुल ठाकुर ने 19.0 ओवर में 61 रन देकर चार विकेट चटकाए थे।

भारत ने 78 ओवर ख़त्म होने तक 224 रन बनाए थे। इसी दौरान ब्रिस्बेन में हलकी बारिश शरू हो गई और आशंका जताई जाने लगी कि शायद बारिश के कारण खेल को रोका जाए लेकिन हलकी बौछार के बाद बारिश रुक गई। इसके बाद 80 ओवर के बाद ऑस्ट्रेलिया ने नई गेंद ले ली लेकिन ऋषभ ने इसके बाद खूब कुटाई ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाजों की की।

अरुणाचल प्रदेश में सीमा के भीतर चीन ने बसा लिया कई घरों का गाँव

सरकार भले कुछ दावे कर रही हो, चीन भारतीय सीमा के भीतर अपनी शरारतें जारी रखे है। नई खबर के मुताबिक चीन ने भूटान के बाद अब भारत के अरुणाचल प्रदेश में सीमा के भीतर घुसकर एक पूरा गांव बसा लिया है। कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के ही सांसद सुब्रमण्‍यन स्‍वामी ने भी इस घटना को बहुत गंभीर बताया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सीमा के करीब 4.5 किलीमीटर भीतर एक पूरा गांव बसा लिया है। अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी जिले में इस ‘चीनी गांव’ की सैटलाइट तस्‍वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं।नवंबर 2020 में अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद तापिर गावो ने लोकसभा में एक ब्यान में चेतावनी दी थी कि सूबे में चीन की घुसपैठ बढ़ रही है। उन्‍होंने ऊपरी सुबनसिरी जिले का विशेष रूप से उल्‍लेख किया था। बाद में गावो ने यह भी कहा था कि चीन सुबनसिरी जिले में सीमा में 60 से 70 किलोमीटर भीतर तक घुस आया है।

सैटलाइट तस्‍वीरों में साफ़ दिख रहा है कि चीनी गांव में चौड़ी सड़कें और बहुमंजिला इमारतें बनाई गई हैं। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चीनी गांव में करीब 101 घर बनाए गए हैं। दिलचस्प यह है कि इन घरों में इन लोगों को बसाया गया है वे सभी चीनी हैं। निश्चित ही भारतीय सुरक्षा के लिहाज से यह बड़ी घटना है। घरों के ऊपर बाकायदा चीनी झंडे लगाए गए हैं। एनडीटीवी ने भी इसे लेकर एक रिपोर्ट दिखाई है।

रिपोर्ट्स में बताया गया है कि सैटलाइट तस्वीरें बताती हैं कि चीन ने यह गांव भारत के त्‍सारी चू नदी के किनारे बसाया है। अरुणाचल प्रदेश के इस इलाके पर चीन का  1959 से कब्‍जा है। कुछ साल पहले वहां एक चीनी चौकी भी बनाई गयी है। यही नहीं चीन ने इस इलाके में बड़े पैमाने पर सड़कों का जाल भी बिछा दिया है।

कांग्रेस ने इस घटना के सामने आने के बाद मोदी सरकार के सामने सवाल खड़े किये हैं। पार्टी नेता राहुल गांधी लम्बे समय से यह बात कहते रहे हैं कि चीन भारतीय सीमा के भीतर घुसकर निर्माण कर रहा है। लेकिन सरकार खामोश बैठी है। उधर भाजपा सांसद सुब्रमण्‍यन स्‍वामी ने चीन के भारतीय जमीन पर कब्‍जा करने के सवाल पर कहा है कि वह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से इस बावत बात करेंगे।

सूरत सड़क हादसे में राजस्थान के 15 मजदूरों की कुचल कर मौत

गुजरात के सूरत में सोमवार रात एक बड़े हादसे में 15 मजदूरों की जान चली गयी और 22 घायल हो गए। यह लोग राजस्थान के रहने वाले थे। हादसा तब हुआ जब एक डंपर ने बच्चे समेत 22 लोगों को कुचल दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और गुजरात के सीएम विजय रुपानी ने हादसे पर गहरा दुःख जताया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक सूरत के पालोद गांव में किम रोड पर एक डंपर ने बच्चे समेत 22 लोगों को कुचल दिया जिसमें 15 लोगों की जान चली गई। हादसे में 3 लोग घायल हैं। हादसे में छह महीने की एक बच्ची बच गई लेकिन उसके माता-पिता की मौत हो गयी है। जान गंवाने वाले सभी लोग मजदूर थे और सड़क किनारे सो रहे थे। अचानक वहां से गुजर रहे एक डंपर के चालक ने नियंत्रण खो दिया और वाहन सोते हुए मजदूरों पर जा चढ़ा।

हादसे पर पीएम मोदी, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और गुजरात के सीएम विजय रूपाणी ने गहरा दुख जताया है। पीएम ने जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को सांत्वना दी और घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना की है। पीएमओ के ट्विटर अकाउंट में कहा गया – ‘जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये की सहायता राशि मिलेगी। यह पैसा प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फंड से दिया जाएगा। राजस्थान और गुजरात सरकारों ने भी 2-2 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी है।

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा – ‘राजस्थान के मजदूरों की ट्रक हादसे में हुई मौत पर बेहद दुखी हूं। उनके परिवारों के साथ मेरी संवेदनाएं हैं, जख्मी लोगों के जल्द ठीक होने की कामना करता हूं।’ पुलिस की तरफ से जानकारी दी गई है कि सभी मजदूर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ के रहने वाले थे।

गणतंत्र दिवस : पहली बार महिला लड़ाकू पायलट भावना कंठ भरेंगी उड़ान

गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी को  पहली बार राजधानी नई दिल्ली में राजपथ पर देश की पहली महिला फाइटर पायलट भावना कंठ उड़ान भरेंगी। देश के सबसे गौरवशाली आयोजन में हिस्सा लेने वाली वह वायुसेना की पहली महिला लड़ाकू पायलट होंगी। इस बार की परेड इसलिए भी खास होगी, क्योंकि फ्रांस से पहुंचे लड़ाकू विमान राफेल भी इसमें अपने करतब दिखाते नज़र आएंगे।
भावना कंठ 2018 में देश की पहली लड़ाकू विमान पायलट के तौर पर वायुसेना में शामिल हुईं थीं। 2019 में ही उनकी ट्रेनिंग का पहला चरण पूरा हुआ, जिसके बाद वह दिन के युद्ध में दक्ष हो गईं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2020 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर भावना कंठ को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा था। बिहार से ताल्लुक रखने वाली भावना ने अपनी भावना व्यक्त कर कहा कि अब तक टीवी पर ही गणतंत्र दिवस परेड देखती आई हूं। इस बार खुद उसका हिस्सा होना मेरे लिए बड़े फख्र की बात है। मैं अभी मिग 21 बाइसन उड़ाती हूं, आगे सभी तरह के लड़ाकू विमान उड़ाने की चाहत है।