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नहीं रुकी मिलावट, तो बढ़ती रहेंगी बीमारियाँ

हाल ही में उत्तर प्रदेश में मसालों में गधे की लीद, भूसा और केमिकल मिलाने का मामला उजागर होने से मिलावटखोरों की पोल एक बार फिर खुल गयी है। हालाँकि इस मामले में हिन्दू युवा वाहिनी के एक नेता, जिसकी मिलावटी मसालों की फैक्ट्री थी; को गिरफ्तार कर लिया गया है और फैक्ट्री सील कर दी गयी है। सवाल यह है कि क्या इस तरह एकाध मिलावटखोर के पकड़े जाने से देश में मिलावट का खेल खत्म हो सकेगा? इससे पहले खबरें आयी थीं कि पतंजलि के शहद में 80 फीसदी चीनी मिली हुई है। ता•ज़ुब की बात यह है कि बड़े मिलावटखोरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। आज विभिन्न कम्पनियों में तैयार होने वाला शायद ही ऐसा कोई खाद्य पदार्थ हमारे देश में हो, जिसमें मिलावट न हो। कम-से-कम आम लोगों को परोसे जाने वाले कम्पनी के खाद्य उत्पादों के बारे में तो यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि उनकी गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई गारंटी नहीं।

इस मिलावट की वजह से आज तकरीबन हर आदमी किसी-न-किसी बीमारी से पीडि़त है। आज अगर देश में बिना मिलावट के उत्पाद बनते भी हैं, तो वो सिर्फ एक खास वर्ग के लिए ही बनते हैं। ये उत्पाद महँगे होने और बड़े स्टोर्स पर मिलने के कारण आम आदमी की पहुँच से काफी दूर होते हैं।

मुनाफाखोरी और सस्ते ब्रांड को बाज़ार में उतारने की होड़ में मिलावट का यह खेल पूरे देश में बेधड़क चल रहा है। आज सब्ज़ियों से लेकर, आटा, चावल, दाल, दूध, मावा, घी, तेल, मसाले, फल, पानी, बच्चों के खाने की चीज़ें, दवा और मादक पदार्थों से लेकर अन्य तकरीबन सभी चीज़ों में मिलावट की जा रही है। मिलावटी कम्पनियों के उत्पाद गुणवत्ता के पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे हैं। सन् 2015 में जब मैगी जैसी मिलावटी कम्पनी का पर्दाफाश हुआ था, तब देशवासियों को एक उम्मीद जगी थी कि नयी सरकार मिलावटखोरों की अच्छी तरह खबर लेगी और देश के लोगों को शुद्ध खाद्यान्न मिलेंगे। लेकिन कुछ दिन बाद न जाने ऐसा क्या हुआ कि वही मैगी अब धड़ल्ले से बिक रही है और दूसरे उत्पादों की जाँच तक की नंबर नहीं आया। अक्सर देखा गया है कि जब-जब कोई खाद्य पदार्थ गुणवत्ता के अनुरूप नहीं पाया गया है, तो भी उस पर हमेशा के लिए बैन लगाने की वजाय थोड़े हंगामे के बाद उसे बाज़ार में बिकने दिया जाता है। लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों को किस वजह से अधिकारी छोड़ देते हैं? यह बात समझना कोई मुश्किल नहीं। हद तो यह है कि मिलावटखोर खाद्य पदार्थों में ऐसे-ऐसे केमिकल तक मिला देते हैं, जो जानलेवा होते हैं। ऐसे मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन करने के चलते लोग बीमार तो पड़ते ही पड़ते हैं, कई बार जान से हाथ धो बैठते हैं।

मिलावट रोकने के लिए कानून और सज़ा का प्रावधान

खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने और उच्च स्तरीय गुणवत्ता बनाये रखने के लिए हमारे देश में कानून है, जिसे खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 के नाम से जाना जाता है। इस कानून के तहत मिलावटखोरों को सज़ा और ज़ुर्माना, दोनों का ही प्रावधान है। लेकिन इसके बावजूद मिलावटखोरी का धन्धा दिन-रात फल-फूल रहा है। त्योहारों के समय में तो मिलावट का धन्धा और भी ज़ोरों पर चलता है। इस मामले में एक हलवाई ने डरते-डरते बताया कि आप हमारे बारे में किसी को न बताएँ तो सच्ची बात बता दें। आश्वासन देने पर उसने कहा कि अगर देश में मिलावट नहीं होगी, तो चीज़ों की पूर्ति नहीं पड़ेगी। शुद्ध मावा बनाने पर उसे कम-से-कम 600 रुपये किलो बेचना पड़ेगा, जबकि उसे मावे से बनी बर्फी 200 से 250 रुपये किलो बेचनी पड़ती है। अगर वह मिलावट नहीं करेगा, तो घर चलाना तो दूर, उसका घर भी बिक जाएगा। केमिकल मिलाने की बात पर उसने कहा कि नहीं, हम केमिकल मिलाकर किसी की ज़िन्दगी से खिलवाड़ नहीं करते। मैदा आदि मिलाते हैं।

2018-19 में सार्वजनिक प्रयोगशाला में 94,288 विश्लेषित नमूनों की जाँच करने पर पाया गया कि उनमें से 26,077 नमूने गुणवत्ता में खरे नहीं हैं, उनमें मिलावट है। आश्चर्य इस बात का है कि इनमें से कई तो नकली पाये गये।

आपको हैरत होगी कि 2018-19 में खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों से 32 करोड़ 75 लाख 73 हज़ार 587 रुपये का ज़ुर्माना वसूला गया था। एफएसएसएआई की जानकारी कहती है कि सार्वजनिक प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्ट (2018-19) के अनुसार, सबसे ज़्यादा मिलावट के नमूने 22,583 में से 11,817 उत्तर प्रदेश में पाये गये। इसके अलावा पंजाब में 11,920 में से 3,403, तमिलनाडु में 5,730 में से 2,601, मध्य प्रदेश 7,063 में से 1,352, महाराष्ट्र में 4,742 में से 1,089, गुजरात में 9,884 मे से 822, केरल में 4,378 में से 781, जम्मू-कश्मीर में 3,600 में से 701, आंध्र प्रदेश में 4,269 में से 608 और हरियाणा में 2,929 में से 569 नमूने मिलावटी पाये गये। इसी तरह नेशनल मिल्क सेफ्टी एंड क्वालिटी सर्वे 2018 के अनुसार, दूध के 9.9 फीसदी नमूने असुरक्षित पाये गये। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में मिलावटी चीज़ों के सेवन की वजह से हर साल तकरीबन सवा चार लाख लोगों की मौत हो जाती है, जबकि पूरी दुनिया में तकरीबन 60 करोड़ लोग हर साल मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से बीमार पड़ते हैं। हमारे देश में खाद्य पदार्थों की शुद्धता और गुणवत्ता का ध्यान रखने और उनमें मिलावट को रोकने की ज़िम्मेदारी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) यानी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया की है। लेकिन जिस धड़ल्ले से बाज़ारों में मिलावटी खाद्य पदार्थों की भरमार है, उससे लगता है कि एफएसएसएआई के अधिकारी, कर्मचारी अपनी भूमिका निभाने में कहीं-न-कहीं कमज़ोर हैं। ताज़ुब की बात यह है कि एफएसएसएआई के अलावा देश में खाद्य सामग्रियों की जाँच के लिए अच्छी या बहुत ईमानदार प्रयोगशालाएँ नहीं हैं, जिसके चलते देश भर में मिलावट का खेल खूब धड़ल्ले से चलता है।

मिलावटी खाद्य पदार्थों की बाज़ारों में भरमार

आज ऐसे खाद्य पदार्थों से बाज़ार पटे पड़े हैं, जो मिलावटी हैं। इन बाज़ारों में अगर ईमानदारी से छापेमारी की जाए, तो अनेक मिलावटखोरों की पोल खुल जाए। लेकिन ऐसा होना सम्भव नहीं लगता, क्योंकि ये मिलावटखोर बिना शासन-प्रशासन की मिलीभगत के कर ही नहीं सकते। कितनी ही बीमारियाँ मिलावटी खाद्यान्न के चलते फैल रही हैं। डॉ. मनीष कहते हैं कि अगर इंसान को शुद्ध खाना मिले, तो न केवल उसकी उम्र में इज़ाफा होगा, बल्कि वह जल्दी बीमार नहीं पड़ेगा। डॉ. मनीष बीमारी के तीन ही कारण मानते हैं, मिलावटी खानपान, प्रदूषण और लोगों की गलत आदतें। गलत आदतों के बारे में पूछने पर डॉ. मनीष कहते हैं कि नशाखोरी, आलस, असमय सोना, देर से उठना, सुबह की जगह दोपहर को खाना, देर रात को खाना खाना, मोबाइल का अधिक इस्तेमाल, व्यायाम न करना, नकारात्मक सोचना, गुस्सा करना, पानी कम पीना आदि इंसान की बुरी आदतें ही तो हैं; जो आजकल करीब 90 फीसदी लोगों में पायी जाती हैं।

सब्जियाँ भी नहीं शुद्ध

आजकल सब्ज़ियाँ भी शुद्ध नहीं मिलतीं। पहले के समय में हर सब्ज़ी इतनी शुद्ध होती थी कि उसके बनने पर खुशबू आती थी; लेकिन अब सब्ज़ियों से खुशबू और स्वाद दोनों गायब हो चले हैं। आजकल कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से सब्ज़ियों को बेधड़क बीमारी की जड़ बनाया जा रहा है। फलों में भी अब दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। कई तरह के फलों को प्राकृतिक रंग देने के लिए तो केमिकल वाले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। सब्ज़ियों को बेमौसम उगाने के लिए भी लोग केमिकल वाली दवाओं का उपयोग करते हैं, जिनके इस्तेमाल से बीमारियाँ बढ़ रही हैं।

अधिकतर लोगों को नहीं मिलता अच्छा खाना

यह विडंबना ही है कि देश के अधिकतर लोग आज भी पौष्टिक आहार से वंचित हैं। भारत में कितने ही ऐसे लोग हैं, जिन्हें अच्छा खाना नहीं मिलता और एक बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिन्हें कभी भी भरपेट खाना नहीं मिलता। कह सकते हैं कि देश में पोषण की स्थिति बहुत गम्भीर है। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और झारखण्ड जैसे राज्यों में 40 फीसदी से भी ज़्यादा बच्चे कुपोषित हैं। इन दिनों सरकारी स्कूलों के बन्द होने से उनमें बँटने वाला मिड-डे मील भी अब बच्चों को नहीं मिल पा रहा है, जिससे गरीब परिवारों के बच्चों में कुपोषण के आँकड़े बढऩे की आशंका है। इसके अलावा झारखण्ड में तो करीब 65 फीसदी से अधिक महिलाएँ एनेमिक हैं।

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2020 में कहा गया है कि भारत में कुपोषण तेज़ी से बढ़ रहा है और इसके हिसाब से 2025 तक भारत अपने न्यूट्रिशन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पायेगा।

रोकी जा सकती है मिलावट

अगर केंद्र और राज्य सरकारें चाहें, तो खाद्यान्नों में होने वाली मिलावटखोरी को रोक सकती हैं। इसके लिए सरकारों के साथ-साथ पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और एफएसएसएआई के अधिकारियों और कर्मचारियों को ईमानदारी और सतर्कता से मिलावटखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए कमर कसनी होगी। कोई देश तभी मज़बूत और विकसित हो सकता है, जब उसके सभी नागरिकों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होगा और लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की पहली प्राथमिकता उसका खानपान है। इसलिए खाने-पीने की चीज़ों की शुद्धता पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।

मिलावटी खानपान से होने वाली बीमारियाँ

मिलावटी खानपान से शरीर पर अनेक तरह के दुष्प्रभाव पडऩे के साथ-साथ आयु भी कम होती है। डॉ. मनीष कहते हैं कि मिलावटी भोजन लोगों में गम्भीर बीमारियाँ पैदा करता है। क्योंकि मिलावटी भोजन से लिवर, किडनी खराब होते हैं, जिससे हृदयाघात, पक्षाघात, पेट की बीमारियाँ, दिल की बीमारियाँ तो होती ही हैं, इसके साथ-साथ खून में भी अनेक संक्रमण फैलते हैं, जिससे कई रोग होते हैं। खून में संक्रमण से त्वचा से लेकर कैंसर तक के रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। डॉ. मनीष के अनुसार, आज लगभग हर आदमी पेट का मरीज़ है, जिसका कारण दूषित, तेलीय और मिलावटी खानपान है।

कौन समझेगा बेघर घुमंतू जातियों का दर्द

आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ बढ़-चढ़़कर हिस्सा लेने वाले घुमंतू (घुमक्कड़) लोग आज भी बेघर हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी 193 लड़ाका जनजातियों के लोगों को अंग्रेजों ने ही क्रिमिनल ट्राइब यानी अपराधी समूह का दर्जा दिया था। सन् 1871 में इन लड़ाकू 193 जातियों को अंग्रेजों ने आपराधिक जातियाँ घोषित कर दिया था, जिन्हें देखते ही मार देने तक के आदेश पास हुए थे। कथित तौर पर अपराधी घोषित इन जातियों में बंजारा, बाजीगर, सिकलीगर, नालबंध, साँसी, भेदकूट, छड़ा, भांतु, भाट, नट, डोम, बावरिया, राबरी, गंडीला, गाडियालोहार, जंगमजोगी, नाथ, पाल, गड़रिया, बघेल, मल्लाह, केवट, निषाद, बिन्द, धीवर, डलेराकहार, रायसिख, महातम, लोहार,  बंगाली, अहेरिया, बहेलिया, नायक, सपेला, सपेरा, पारधी, लोध, गूजर, सिंघिकाट, कुचबन्ध,  गिहार, कंजड़ आदि सम्मिलित थीं। अंग्रेज इन जातियों के गुरिल्ला युद्ध और हमलों से परेशान थे।

आज देश में बहुत-से लोगों को आज़ादी का श्रेय जाता है। लेकिन देश के तथाकथित पूँजीवादी और सत्ताधारी उन लोगों को आज़ादी का सिपाही नहीं मानते, जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई में अपने परिवार तक तबाह कर डाले। ऐसे लोगों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और वन्य जातियों के अलावा घुमंतू जातियों के लोग भी शामिल रहे हैं। यह दुर्भाग्य ही है कि जिन लोगों ने देश की आज़ादी में चुपचाप अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ीं, खुद के साथ-साथ अपने परिवार, कुनबे की बलि दे दी; लेकिन उन्हीं लोगों की पीढिय़ों को सम्मान तो दूर की बात आज तक जीने का हक भी नहीं मिल सका है। हमारा देश 15 अगस्त, 1947 को आज़ाद ज़रूर हो गया, मगर विमुक्त घुमंतू जातियों के चार करोड़ लोगों आज भी अपने ही वतन में गैर-मुल्कियों जैसा ही जीवन जी रहे हैं। यह अलग बात है कि इनमें से कई को नौकरियाँ भी मिली हैं, बहुत-से बस्तियों में रहते भी हैं; लेकिन अधिकतर आज भी बेघर ही हैं। हालाँकि केंद्र सरकार ने 31 अगस्त, 1952 को एक कानून बनाकर इन्हें स्वतंत्र घोषित किया था, लेकिन इनमें अधिकतर जातियाँ सामाजिक भेदभाव और तिरस्कार की शिकार हैं। यही वजह है कि अंग्रेजों की आँखों की किरकिरी बनने वाली ये जातियाँ आज भी दर-ब-दर हैं और जंगलों में भटकती हैं। स्वतंत्रता की लड़ाई में क्रान्तिकारियों के संदेशवाहक की भूमिका अगर किसी ने सबसे ज़्यादा निभायी, तो वे भी घुमंतू लोग ही थे। अपनी युद्ध कला, बलिष्ठता, बुद्धि, लड़ाकेपन, आपराधिक बुद्धि और भेष बदलने में माहिर होने का भरपूर उपयोग इस समाज के लोगों ने अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने में किया था। जंगलों में रहने के कारण ये लोग अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आते थे। लेकिन फिर भी इनके कई दलों को अंग्रेजों ने पकड़-पकड़कर मौत की नींद सुला दिया था।

सन् 1857 के बाद से ही इनकी निगरानी के लिए अंग्रेजों ने देश भर में 50 से अधिक अलग बस्तियाँ बना दी थीं, जिनका काम घुमंतुओं की गतिबिधियों पर नज़र रखना होता था। दुर्भाग्य यह है कि आज भी खुद को सभ्य मानने वाले समाज ने इन्हें नहीं अपनाया है। देश के लिए जान देने वाले और अपने नागरिक अधिकारों को खो देने वाले इन लोगों को समाज के लोगों से घृणा और तुच्छता के अलावा कुछ नहीं मिला। हाँ, एक समय में इन्हें भीख की तरह खाने-पीने की चीज़ें ज़रूर मिलती थीं; लेकिन वो भी किसी काम या किसी चीज़ के बदले। हालाँकि अब इन जातियों के कुछ लोग भिक्षावृत्ति में भी उतर गये हैं।

आज विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों की कुल आबादी करीब 12 से 13 करोड़ है। एक अनुमान के मुताबिक, इनमें से 78 फीसदी के पास न तो रहने को घर है और न ज़िन्दगी को सँवारने के अन्य मूलभूत संसाधन, जिनमें शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण अंग है। संविधान के लागू होने के बावजूद आज भी इन्हें सभी नागरिक अधिकार नहीं मिले हैं, जिससे इन्हें दस्तावेज़ बनवाने, बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने और सरकारी नौकरियाँ पाने में बहुत दिक्कतें आती हैं। अलग-अलग राज्यों में इन्हें अलग-अलग जाति-वर्ग में रखा गया है, जिससे कई राज्यों में इन्हें वो फायदे भी नहीं मिल पाते, जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को मिलते हैं; जबकि इनका जीवन उनसे भी निम्न स्तर का है।

कला में माहिर और दयालु

कोई व्यक्ति तभी बेघर होता है, जब वह बहुत ईमानदार होता है या काम नहीं करता है या अपना सब कुछ छोड़कर खुद कष्ट सहने के लिए तैयार होता है। कला में माहिर घुमंतू लोग समाज के लिए त्यागी प्रवृत्ति के थे। कहा जाता है कि बाल काढऩे की कंघी, पाँव की महावर और महिलाओं के साज-सज्जा की कई अन्य चीज़ें इन्हीं घुमंतू जातियों की महिलाओं की देन हैं। हालाँकि इन चीज़ों का इतिहास कोई नहीं जानता, लेकिन घुमंतू लोगों का यही कहना है कि यह सब उन्हीं के पूर्वजों की देन है। इसी तरह नृत्य कला को भी ये लोग अपने पूर्वजों की देन मानते हैं। इसके पीछे इनका तर्क यह है कि जब हमारे पूर्वज बस्तियों में रहने वाले लोगों से खान-पान की चीज़ें तभी लेते थे, जब नृत्य करके या कला दिखाकर बस्ती वालों का मनोरंजन करते थे। इसी तरह इनका मानना है कि इन्होंने समाज से कभी भी मुफ्त में कुछ नहीं लिया। यह लोग कुछ-न-कुछ देने के बदले ही किसानों से अनाज या दूसरी वस्तुएँ लेते थे। आज की घुमंतू जातियाँ इस बात को बड़े ही फख्र से कहती हैं कि उनके पूर्वज दयालु प्रवृत्ति के होते थे, जो समाज के लोगों को बड़ी-बड़ी कीमती चीज़ें ऐसे ही दे दिया करते थे। कुछ घुमंतू आल्हा, ऊदल, मलखान और महाराणा प्रताप को अपना पूर्वज मानते हैं। उनका कहना है कि किसी दौर में हमारे पूर्वज राजा थे; लेकिन स्वाभिमान और देश की खातिर अपना राजपाट गँवाकर जंगलों में रहे और उन्हीं की राह पर हम आज भी चल रहे हैं और अपना घर नहीं बसाया। इनका मानना है कि जब हमारे पूर्वज बेघर होकर रहे, तो हमें घर बसाने की क्या ज़रूरत?

आजीविका के लिए करते हैं व्यापार

घुमंतू जातियों को लूटपाट करने वाला, अपराधियों की तरह से सभ्य समाज में देखा जाता रहा है। लोग इन्हें बहुत ही नीचे का मानते हैं और इनके पास आने को भी गुनाह जैसा समझते हैं। लेकिन यह बहुत बड़ी बात है कि इन जातियों की आजीविका व्यापार पर चलती रही है। इन जातियों का काम लोहे के हथियार, हींग, मसाले, जंगली जड़ी-बूटियाँ, गोंद, पालतू जानवर, मोर पंख, फल-फूल आदि बेचना रहा है। इन जातियों के लोग पहले से ही बहुत-सी बहुमूल्य बेचकर अपनी आजीविका चलाने वाले स्वाभिमानी लोग रहे हैं। लेकिन सभ्य कहे जाने वाले समाज ने इन्हें कभी भी अच्छा नहीं माना। आज भी इन्हें जिस दृष्टि से समाज में देखा जाता है, वह इनका अपमान ही कहा जाएगा।

मूल रूप से हैं भारतीय

मानव इतिहास सदियों पुराना है। अगर भारत के इतिहास को गौर से देखें, तो पता चलता है कि किसी दौर में यहाँ राज्य करने वाले लोगों को विदेशी आक्रमणकारियों ने हराकर दर-ब-दर कर दिया या फिर गुलाम बनाया। ऐसे बहुत-से उदाहरण हैं। जैसे चमड़े का काम करने वाली जाति के लोगों का इतिहास अगर उठाकर देखें, तो पता चलता है कि इस जाति के लोगों के पूर्वज कभी भारत में शासक हुआ करते थे। लेकिन विदेशी ताकतों ने उन्हें युद्ध में हराकर उनसे निम्न स्तर के काम कराये और उन्हें गुलाम बनाकर रखा; ताकि वे निकृष्ट बने रहें। इसी तरह दूसरी अनुसूचित जातियों के पूर्वज भी इस देश के मूल निवासी और अलग-अलग दौर के शासक रहे हैं। घुमंतू जाति के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने विदेशी ताकतों का गुलाम बनने से ज़्यादा बेहतर घरवार छोड़कर खानाबदोश यानी खानाबर्बादी की ज़िन्दगी को चुना और खुद जंगलों में जाकर रहने लगे। यही वजह है कि हम लोग आज भी दर-ब-दर हैं।

किताबों में दर्ज है घुमंतू जातियों की सच्ची दास्ताँ

घुमंतू जातियों की दास्तान किताबों में भी दर्ज है। अफसोस यह है कि इन जातियों पर किताबें तो लिखी गयीं, लेकिन इनके दर्द को समझने की किसी ने कोशिश नहीं की। जाने-माने पूर्व अधिकारी एम. सुब्बाराव खुद एक घुमंतू जाति से आते हैं। उनका कहना है कि घुमंतू जातियों के साथ सबसे बड़ा अन्याय तो यही हुआ है कि उनको संविधान तक में जगह नहीं मिल सकी। एम. सुब्बाराव ने कई जगह घुमंतू जातियों के बारे में काफी कुछ लिखा है। इसके अलावा लक्ष्मण माने ने अपनी किताब ‘बहिष्कृत’ और लक्ष्मण गायकवाड़ ने अपनी किताब ‘उचल्या-उचक्का’, जो कि मराठी में है; में घुमंतू जातियों का दर्द उकेरा है। इसी तरह अन्य कई लेखकों ने भी घुमंतू जातियों की जीवन सम्बन्धी परेशानियों, उनके दर्द को समझा और लिखा है। इन जातियों के लोग जिन राजाओं को अपना पूर्वज बताते हैं, उनके िकस्से-कहानियाँ भी इतिहास में मौज़ूद हैं और उनके राज्यों के उजडऩे की कहानियाँ भी।

घुमंतुओं को नहीं अपनाते धर्मावलंबी

यह भी एक अनोखी और दुर्भाग्यपूर्ण बात ही कही जानी चाहिए कि घुमंतू जाति के लोग तकरीबन हर धर्म में हैं। अनेक घुमंतू खुद को हिन्दू मानते हैं, अनेक खुद को मुस्लिम मानते हैं, अनेक घुमंतु खुद को सिख मानते हैं, तो अनेक बौद्ध और जैन सम्प्रदायों से भी अपने को जोड़ते हैं। लेकिन इन्हें किसी भी धर्म में वह सम्मान, वह अपनापन नहीं मिला, जो एक सामान्य व्यक्ति को भी मिलता है। इससे इस जाति के अनेक लोग काफी दु:खी भी होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ईसाई धर्म को घुमंतू जाति के लोगों ने कभी नहीं अपनाया, जबकि भारत की अधितकर जातियों और धर्मों के लोगों में से बहुतों ने ईसाई धर्म को अपनाया है। घुमंतू लोगों का कहना है कि भारतीय संस्कृति और धर्म की नींव रखने वाले उनके ही पूर्वज थे और आज उन्हें ही धर्मावलंबी लोग धर्मों में स्थान नहीं देते हैं। प्रकृति की उपासना में विश्वास करने वाले घुमंतू लोग आज भी भारत को अपनी पुण्यभूमि मानते हैं।

अब बेघर नहीं रहना चाहते…

सदियों दर-दर की ठोंकरे खाने वाले घुमंतू लोग अब घर की चाह रखते हैं। कई घुमंतू जातियों ने बस्तियाँ भी बसा ली हैं। कई घुमंतू लोग पढ़-लिखकर देश की सेवा में अपना योगदान भी दे रहे हैं। लेकिन अभी भी इन जातियों की तकरीबन 78 फीसदी आबादी बेघर है। हालाँकि कुछ ने खानाबदोशी को अपना नसीब मान लिया है, लेकिन अब अधिकतर घुमंतू अपना घर बनाना चाहते हैं। कुछ तो सड़कों के किनारे सड़कों, पोखरों के किनारे पन्नी-टीन तानकर बस भी गये हैं। हालाँकि सरकारों ने आज तक इन जातियों को बसाने में कोई खास भूमिका नहीं निभायी है। लेकिन इस वर्ग के लोगों को यकीन है कि उनके दर्द को समझने वाली कोई तो सरकार कभी आयेगी।

किसकी मानें, किसकी सुनें

दुनिया में हर खयाल और हर बर्ताव के लोग हैं। अगर कोई दुनिया के हिसाब से जीना चाहे, तो कभी नहीं जी सकता। क्योंकि उसे हर कोई अपने हिसाब से जीने की राह बतायेगा। अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करेगा। अपने मतानुसार चलाने की कोशिश करेगा। अपने मज़हब के हिसाब से ज्ञान बाँटेगा। अपनी समझ के हिसाब से हर बात के मानी बतायेगा और अपनी आदतों को सामने वाले व्यक्ति में देखना चाहेगा। दुनिया में ऐसा कौन है, जो खुद को सही न ठहराता हो? कौन है ऐसा, जो यह मानता हो कि वह कुछ भी नहीं है? कौन है ऐसा, जो स्वार्थी न हो? कौन है ऐसा, जो प्रपञ्ची न हो? छल-कपट से रहित हो और परहित की चिन्ता करता हो? शायद ही कोई हो, लेकिन फिर भी कोई खुद को गलत कोई नहीं मानता और चाहता है कि हर व्यक्ति उसके हिसाब से चले, उसकी प्रशंसा करे, उसके पद-चिह्नों पर चले, उसकी श्रद्धा करे, उसका सम्मान करे, उसे नमन करे, उसे सिर पर बैठाये, उसे हर तरह से सुख प्रदान करे। भले ही वह दुनिया का एक सबसे नाकारा व्यक्ति क्यों न हो, उसकी भी यही चाह रहती है। लेकिन इसे प्राकृतिक नियम कहिए या मानव-विकास की प्रक्रिया कि इंसान को दूसरे इंसानों से सीखना तो पड़ता ही है, किसी-न-किसी की श्रद्धा तो करनी ही पड़ती है और एकाध बिरले को छोड़कर सभी को किसी-न-किसी के पद-चिह्नों पर तो चलना ही पड़ता है। तभी हर व्यक्ति का कल्याण सम्भव है। तभी कोई व्यक्ति अपने मन मुताबिक एक रास्ता चुन पाता है। यह अलग बात है कि कोई योग्य बन जाता है और सफल हो जाता है, जबकि कोई अयोग्य रह जाता है और असफल हो जाता है। दोनों ही स्थितियाँ व्यक्ति के आसपास के माहौल, परिवरिश, अपने साथियों और गुरुओं के चुनाव तथा व्यक्ति की मेहनत और उसके कर्म पर ही निर्भर करती हैं।

सवाल यह उठता है कि हम किसकी मानें, किसकी सुनें? दुनिया में सबके अपने-अपने विचार हैं, अपने-अपने तर्क हैं, और सबकी अपनी-अपनी मानसिकता है। हमारे मनोभाव, हमारे विचार जहाँ, जिससे मिलते हैं, वो हमें सही लगता है; और जहाँ, जिससे नहीं मिलते, वह हमें गलत लगता है। यहाँ दिक्कत यह हो सकती है कि लोग, जिनके हम अनुयायी हैं, हमारा बुरा भी सोच सकते हैं। फिर ऐसे में उन्हें हमें परखना होगा, बिना परखे अगर किसी के पीछे चले, तो हमारा अहित भी सम्भव है। तो क्या कोई ऐसा नहीं, जो सिर्फ और सिर्फ हमारे भले की सोचे, जिसके लिए हमारा कल्याण ही सर्वोपरि हो? है; एक ऐसा भी कोई है, जिसकी बात हम सुनें या न सुनें, लेकिन वह हमारे हित की बात कहता है और कभी भी हमारा अहित नहीं कर सकता। हमें उसकी बात सुननी चाहिए, बल्कि गौर से सुननी चाहिए और उस पर पूरी तरह अमल करना चाहिए। यह एक है कौन? यह हमारा अंतर्मन है। लेकिन अफसोस हम अपने मन की सुनते ही नहीं। लोग कहते हैं कि मन तो भटकाता भी है। हाँ, भटकाता है। और भटकायेगा भी, बिल्कुल भटकायेगा; अगर आपने उसे भटकने के लिए छोड़ दिया है। अगर आपने अपने अंतर्मन की नहीं, बल्कि अपने ऊपरी मन की सुनी है, जो लालची है; आलसी है; बुरी चीज़ों का आदी है; क्षणभंगुर सुखों का कामी है और चालाकियों से भरा है। अगर उसमें इंसानियत नहीं है; दूसरों के प्रति सच्चा और निच्छल प्रेम नहीं है; दूसरों का बुरा करने की प्रवृत्ति है; तो वह निश्चित ही तुम्हें भी भटकायेगा। लेकिन अगर आपने अपने अंतर्मन की सुनी है; खुद को इंसानियत, प्यार और परहित के रास्ते पर चलाने का प्रयास किया है; तो निश्चित ही आपको आपका मन हर बुरे काम, हर बुराई और हर मुसीबत से बचायेगा। इससे बड़ी बात यह होगी कि आपको अन्दर से एक खुशी हमेशा मिलती रहेगी। आप अन्दर से सन्तुष्ट रहेंगे और आपके ज्ञान में बढ़ोतरी होगी। आपके चेहरे पर एक चमक रहेगी; होंठों पर एक मुस्कुराहट रहेगी; सुख-दु:ख, दोनों ही स्थितियों में आप खुश रहेंगे।

एक गाँव की एक छोटी-सी घटना यहाँ मुझे याद आ रही है। एक व्यक्ति जो दूसरे मज़हब के लोगों से, जो पहले ही संख्या में बहुत कम थे; विकट नफरत करता था। उसकी कोशिश रहती थी कि ये लोग कैसे भी इस गाँव को छोड़कर भाग जाएँ। वह उन्हें हर सम्भव नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता, मौका मिलते ही झगड़ा करता। एक बार उसने सर्दियों की रात में दूसरे मज़हब वाले एक व्यक्ति का खोका, जिसमें वह फल बेचा करता था; उठा लिया। खोका तोड़कर उसने जलाने के लिए उसकी लकडिय़ाँ रख लीं और फल खाने के लिए घर में छुपा लिये। सुबह को चारों तरफ शोर हो गया कि शंकर का खोका चोरी हो गया। शंकर  के हिमायतियों ने उससे कहा कि वह थाने में खोका चोरी की रिपोर्ट लिखाये; पर शंकर ने यह कहकर टाल दिया कि उसका खोका ही तो गया है, उसका नसीब नहीं गया है। शंकर हर रोज़ की तरह बाज़ार से फल लाया और उसी जगह ज़मीन पर उन्हें बेचने लगा। धीरे-धीरे समय बीत गया और शंकर ने दूसरा खोका बनवाकर वहाँ लगा लिया। एक दिन चोरी करने वाले व्यक्ति की लड़की को देखने के लिए मेहमान आने वाले थे। वह शंकर के पास फल लेने पहुँचा। शंकर ने उसे फल तौल दिये, पर यह कहकर कि आपकी बेटी का रिश्ता हो रहा है, बेटे का नहीं; जब बेटे का हो, तब महँगे दाम लूँगा, पैसे नहीं लिए। इस बात को सुनकर उस व्यक्ति की आँखें भर आयीं और मन में गहरी पीड़ा और ग्लानि हुई। आत्मगिलानी से उसने शंकर के पैर पकड़ लिये। रुँधे गले से बोला- ‘भैया! मुझे माफ करना, मैंने तुम्हारा…’, शंकर सब समझ चुका था। उसने इतना ही कहा कि मैं जानता हूँ, क्या बात है। पर इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं। जो हुआ, सो हुआ; अब तुमने मन से प्रायश्चित कर लिया है और तुम एक भले इंसान हो चुके हो। वह आदमी शंकर के गले लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगा। शंकर ने उसे जैसे-तैसे समझाकर उसे घर भेजा। उसके बाद वह व्यक्ति इतना ईमानदार और सभी से प्रेम करने वाला हो गया कि उसकी अच्छाई की दूर-दूर तक चर्चा होने लगी।

केरल विधानसभा में केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पास

राजधानी नई दिल्ली की सीमाओं पर 36 दिनों से आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में केरल विधानसभा ने वीरवार को केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया। इसमें तीनों कृषि कानूनों को तत्काल वापस लेने की मांग की गई।

प्रस्ताव में तीनों कृषि कानूनों को किसान विरोधी और कॉरपोरेट हितैषी बताया गया है। इसमें कहा गया कि ये कानून किसानों को और पीछे ले जाएंगे और उनके लिए गंभीर संकट खड़ा होगा। विधानसभा में इस प्रस्ताव को न सिर्फ माकपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने समर्थन दिया, बल्कि सदन में इकलौते भाजपा सदस्य ओ राजागोपाल ने भी इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। राजागोपाल ने इसे लोकतांत्रिक भावना बताया।

हालांकि उन्होंने प्रस्ताव के कुछ पहलुओं का विरोध किया है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस प्रस्ताव को पेश करते हुए कहा, कॉरपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने कृषि कानूनों में संशोधन किए हैं। मोदी सरकारने इन कानूनों को संसद में ऐसे समय में पेश कर पारित कराया है, जब संकट काल चल रहा है। इन कानूनों को प्रवर समिति के पास भी नहीं भेजा गया। उन्होंने कहा कि अगर ये गतिरोध जारी रहा तो एक उपभोक्ता प्रदेश होने के नाते केरल पर इसका गहरा असर होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा, इन कानूनों में किसानों को किसी तरह का कानूनी संरक्षण नहीं दिया गया है। उनके पास कॉरपोरेट के खिलाफ कानूनी लड़ाई का विकल्प नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा, कृषि राज्यों का मुद्दा है और इसका सीधा असर राज्यों पर होगा, केंद्र को इसके लिए राज्य सरकारों से विचार विमर्श करना चाहिए था। केरल विधानसभा केंद्र सरकार से मांग करती है कि किसान विरोधी इन कानूनों को वापस लिया जाए।

केंद्र सरकार ने प्रस्ताव को बताया व्यर्थ
विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि केरल विधानसभा में प्रस्ताव पास करना व्यर्थ का प्रयास है। उन्होंने कहा, ये कानून संसद से पास हुए हैं और इनके खिलाफ प्रस्ताव लाना देश के सामान्य विचार के खिलाफ है। अगर केरल सरकार इस बात को लेकर सच में गंभीर है कि किसान अपनी फसल एपीएमसी कानून के तहत बेचें तो उसे इसके लिए नया कानून बनाया जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि इससे किसानों की आय में इजाफा होगा।

भारत में 2 जनवरी से कोरोना वैक्सीन का ड्राई रन सभी राज्यों में शुरू होगा

देशवासियों के लिए नए साल की बड़ी खबर है। भारत में 2 जनवरी से कोरोना वैक्सीन का ड्राई रन पूरे देश में शुरू हो जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरूवार को अब से कुछ देर पहले एक बैठक में इसका फैसला किया है। यह ड्राई रन सभी राज्यों में चुनिंदा जगहों पर करने की सरकार की योजना है।

इसके मुताबिक देश के सभी राज्यों में 2 जनवरी से कोरोना वैक्सीन का ड्राई रन शुरू  किया जा रहा है। सभी राज्यों में एकसाथ ड्राई रन चलेगा। स्वास्थ्य मंत्रालय की गुरूवार को हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में इसका फैसला किया गया है। देश की आबादी के हिसाब से यहाँ दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान उसके बाद शुरू होगा। यह ड्राई रन सभी राज्यों में चुनिंदा जगहों पर करने की सरकार की योजना है।

याद रहे ब्रिटेन में पिछले कल ही वहां की सरकार ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को कड़े ट्रायल के बाद मंजूरी देने का ऐलान किया था। ड्राई रन कामयाब होने के बाद टीकाकरण का काम भी शुरू होगा जिसके लिए तमाम रूपरेखा बनाई जा रही है। सरकार का दावा है कि इसपर काफी ज्यादा काम हो चुके है।

बुलंदशहर में दसवीं के छात्र ने सहपाठी को मारी गोली, मौत

कोरोना काल में लोगों की जिंदगी जीने और पढ़ाई का तरीका तो बदल ही गया है, तो लोगों में गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। किशोरों में भी इसका असर देखने को मिला है। यूपी के एनसीआर से सटे बुलंशहर में कोतवाली शिकारपुर क्षेत्र स्थित एक स्कूल में वीरवार सुबह हुई सनसनी वारदात से हड़कंप मच गया। कक्षा में सीट पर बैठने को लेकर हुए विवाद में दसवीं के एक छात्र ने अपने चाचा की लाइसेंसी पिस्टल से साथी छात्र पर गोली दाग दी, जिससे उसकी मौत हो गई।

शिकारपुर स्थित सूरजभान सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के छात्र टार्जन (15) पुत्र रवि निवासी गांव आचर कला का दसवीं कक्षा के ही छात्र से सीट पर बैठने को लेकर विवाद हो गया था। आरोप है कि छात्र चाचा की पिस्टल बैग में रखकर लेकर आया था और उसने पिस्टल से क्लास में छात्र टार्जन को दो गोलियां मारीं। एक गोली सीने में और दूसरी गोली उसके सिर में लगी। टार्जन ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।

गोलियां की गूज और हत्या के बाद स्कूल में दहशत फैल गई। स्कूल प्रशासन ने घटना की जानकारी पुलिस को देते हुए छुट्टी घोषित कर दी। पुलिस ने छात्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। हत्या की सूचना पाकर शिकारपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचे पीड़ित परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। एसएसपी संतोष कुमार सिंह ने बताया कि आरोपी छात्र को दबोच लिया गया है। उसके पास से लाइसेंसी पिस्टल बरामद कर ली है।

जब तक कृषि कानून वापस नहीं तब तक आंदोलन जारी रहेगा

किसानों ने कहा कि वार्ता तो वार्ता ही रह गयी। तामाम बातें और आश्वासन सरकार किसानों को दे रही है। पर असल समस्या तो कृषि कानून को लेकर है। उस पर तो किसी प्रकार की कोई बात ही नहीं बनी है।

किसान नेता सूरज पाल ने तहलका संवाददाता को बताया कि सरकार किसानों को गुमराह कर रही है। सियासी आंदोलन किसानों का बना रही है। उन्होंने दो –टूक कहा कि किसानों की बरबादी को वे देख नहीं सकते है। आगामी 4 जनवरी को होने वाली बैठक को लेकर कहा कि तामाम किसान संगठन बैठकों में जा रहे है। पर असल बात तो तब बनेगी जब कृषि कानून वापस नहीं हो जाता है।

सूरजपाल ने सरकार तो चेवावनी देते हुये कहा है कि किसानों को तोड़ने और प्रलोभन देने में सरकार लगी है। पर तब तक बात नही बनेगी जब तक कृषि कानून वापस नहीं हो जाता है। दिल्ली के सिंधू बार्डर, टिकरी बार्डर और गाजीपुर बार्डर मैं किसानों का आज 36 वाँ दिन आंदोलन जारी है। किसान रोष और जोश में है।

राहत : आयकर रिटर्न फाइल करने की तारीख 10 जनवरी तक बढ़ाई

देश में जो किसी कारण से अभी तक वित्‍त वर्ष 2019-20 की इनकम टैक्‍स रिटर्न (आईटीआर) फाइल नहीं कर पाए हैं तो उनके लिए एक अच्छी खबर  है। सरकार ने व्यक्तिगत करदाताओं (इंडिविजुअल टैक्‍सपेयर्स) के लिए आईटीआर फाइल करने की समयसीमा 31 दिसंबर से बढ़ाकर 10 जनवरी, 2021 कर दी है।

बता दें व्यक्तिगत करदाताओं की श्रेणी में वे जन आते हैं जिनके खातों को ऑडिट करने की जरूरत नहीं होती। ऐसे लोग आमतौर पर इनकम टैक्‍स रिटर्न फाइल करने के लिए आईटीआर-1 या आईटीआर-4 का इस्‍तेमाल करते हैं, उन्हें अब 10 जनवरी तक का समय मिल गया है।

कोविड-19 और लॉक डाउन के कारण पहले भी दो बार सरकार ने यह तारीख बढ़ाई थी।  पहली बार आयकर विभाग ने इसे 31 जुलाई से आखिरी तारीख को 30 नवंबर तक के लिए बढ़ाया था, फिर इसे 31 दिसंबर तक के लिए बढ़ाया गया और अब इसे फिर से 10 जनवरी तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

उधर ऐसे करदाताओं जिनके अकाउंट्स ऑडिट करने की जरूरत होती है, उनके लिए आयकर रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीख 15 फरवरी तक के लिए बढ़ा दी गई है। आयकर विभाग ने साथ ही टैक्स ऑडिट रिपोर्ट देने की आखिरी तारीख को भी 15 जनवरी तक के लिए बढ़ा दिया है। बता दें कि अभी इसकी आखिरी तारीख 31 दिसंबर थी। ‘विवाद से विश्वास’ योजना के तहत अपना डिक्लेरेशन देने की आखिरी तारीख को भी 31 जनवरी तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

सरकार-किसान बैठक ख़त्म, बिजली विधेयक-पराली पर सहमति, एमएसपी के मुख्य मुद्दे पर तकरार, 4 जनवरी को दोनों के बीच एक और बैठक

सरकार और किसानों के बीच छठे दौर की बातचीत बुधवार शाम पांच घंटे बाद खत्म हो गयी। इस बैठक में कुछ बिंदुओं पर सहमति बनी है, हालांकि मुख्य मुद्दे एमएसपी को लेकर मसला लटका है। अब अगली बैठक 4 जनवरी को होगी। किसानों में एक नेता ने बैठक के बाद कहा कि तीनों क़ानून वापस लेना उनकी मुख्य मांग है और इसे लेकर सरकार ने कुछ नहीं कहा है।

जानकारी के मुताबिक विज्ञान भवन में किसानों ने चार मुद्दे सामने रखे थे जिसमें से काम विवाद वाले दो मुद्दों पर सहमति बन गयी हालांकि दो बड़े मुद्दों पर सहमति बन नहीं पाई। कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने बैठक के बाद कहा कि दो मुद्दों पर सहमति हुई है जिनमें से एक पराली को लेकर और दूसरी बिजली कानून (अभी आया नहीं है) पर भी सहमती बनी है।

बैठक में मंत्रियों ने किसानों को आंदोलन खत्म करने की अपील की और 5 सदस्यीय कमेटी किसानों को बनाने को कहा। किसानों की मांग को मानते हुए सरकार ने बिजली 2020 विधेयक नहीं लाने पर सहमती जता दी। इसके अलावा सरकार का किसानों को भरोसा मिला है कि दिल्ली-एनसीआर के वातावरण को साफ रखने के लिए विधेयक से किसानों को बाहर रखा जाएगा, जिसमें किसानों को पराली जलाने पर एक करोड़ तक का जुर्माना रखने का प्रावधान है।

बैठक में किसान नेताओं ने एक सुर से कहा कि सरकार तीनों कृषि कानून रदद् करे।उन्होंने साफ़ कहा कि हम संशोधन नहीं क़ानून रद्द करवा कर ही वापस जाएंगे।  सरकार ने कहा कि जिन बिंदुओं पर आपत्ति है उसपर सरकार विचार को तैयार है, हालांकि, लेकिन किसान नेता कह रहे हैं हमें संशोधन पर बात नहीं करनी है।

आज केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने किसानों के साथ बैठक के लंच ब्रेक के दौरान लंगर खाया।

नए साल पर किस-किस मोबाइल फोन पर काम नहीं करेगा व्हाट्सएप

व्हाट्सएप नए साल पर हर साल अपडेट करता है और कुछ ऑपरेटिंग सिस्टम में ये काम करना बंद कर देता है। 2021 में भी  कछ पुराने सिस्टम पर व्हाट्सएप काम नहीं करेगा। पिछले साल व्हाट्सएप ने विंडोज और ब्लैकबेरी के लिए सपोर्ट बंद किया था और नए साल 2021 में भी कई पुराने आईफोन और कुछ एंड्रॉयड फोन पर व्हाट्सएप काम नहीं करने वाला है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, नए साल में आईओएस 9 और एंड्रॉयड 4.0.3 पर चलने वाले फोन में व्हाट्सएप नहीं चलेगा। यानी आईफोन 4 और इससे भी पहले के आईफोन में व्हाट्सएप काम नहीं करेगा। इसके ऊपर के सभी वर्जन में काम करेगा, हो सकता है कि इसे अपडेट करना पड़े।
इसी तरह एंड्रॉयड फोन में 4.0.3 वर्जन वाले 2021 में व्हाट्सएप का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। इस कैटेगरी में कई कंपनियों के बहुत से मोबाइल फ़ोन आते हैं।
कैसे चेक करें एंड्रॉयड वर्जन
आपके फोन में कौन-सा ऑपरेटिंग सिस्टम है और उसका वर्जन क्या है? इसे जाने के लिए फोन की सेटिंग में जाकर अबाउट के विकल्प पर क्लिक करें। यहां आपको पूरी जानकारी मिल जाएगी। इसी से पता जाएगा कि आपके फोन में नए साल में व्हाट्सएप सपोर्ट करेगा या नहीं।
नई सुविधा भी मिलेगी
बता दें कि नए साल में व्हाट्सएप में आप एक साथ कई फोटो-वीडियो और कॉपी करके दूसरे चैट में पेस्ट कर सकेंगे। इस फीचर की टेस्टिंग फिलहाल बीटा वर्जन पर हो रही है।