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हदें लाँघते निजी अस्पताल

 ऑक्सीजन, बेड और रेमडेसिविर के बाद अब टीकाकरण में मचा रहे लूट

एक दौर वो था, जब देश मेडिकल टूरिज्म और मेडिकल हब बनता जा रहा था। विदेश तक से मरीज़ इलाज कराने भारत आते थे। लेकिन गत वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि मेडिकल सेवा, ख़ासकर सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था संसाधनों के अभाव में लचर और धवस्त होती गयी और कार्पोरेट (निजी) हॉस्पिटलों का तेज़ी से विस्तार होता गया। अगर दिल्ली सरकार के अस्पतालों को छोड़ दें, तो देश भर के अधिकतर केंद्रीय और राज्य अस्पतालों की दशा बेहद ख़राब है। वैसे सरकारी और कार्पोरेट अस्पतालों की पोल तो कोरोना-काल में मरीज़ों को उचित इलाज न मिलने पर ही खुल गयी। लेकिन कुछ सरकारी अस्पतालों और अधिकतर कार्पोरेट अस्पतालों के डॉक्टरों ने साँठगाँठ करके कोरोना-काल में मौत से जूझते मरीज़ों को जमकर लूटा है।
मौज़ूदा समय में एक सुनियोजित तरीक़े से अन्य बीमारियों, जैसे- हृदय रोग, लकवा, टीबी, कैंसर, जेंगू, मलेरिया, दिमाग़ी बुखार, न्यूरो, अस्थमा और अन्य बीमारियों के मरीज़ों को नदारद दिखाया गया है। जहाँ देखो, वहीं कोरोना वायरस के ही मरीज़ दिख रहे हैं। इसकी मूल वजह पैसा है। अस्पतालों ने जिस तरह से इलाज के लिए पहुँचे हर व्यक्ति को कोरोना संक्रमित साबित किया, उसके चलते आज भी लोग कोरोना वायरस के नाम भयभीत हैं। सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा का आलम यह है कि जिनके पास भी धन है, वे निजी अस्पतालों में जाकर इलाज करा रहे हैं। यही वजह है कि कार्पोरेट अस्पताल उन्हें जमकर लूट रहे हैं। दिल्ली, एनसीआर (गुडग़ाँव, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद), मुम्बई, लखनऊ और अन्य बड़े शहरों के नामी कार्पोरेट अस्पतालों में पैसा वसूली का मामला सर्वविदित है। इन अस्पतालों में बेहतर इलाज के नाम पर मोटा पैसा वसूला जाता है; क्योंकि शासन-प्रशासन से जुड़े ऊँची पहुँच वाले लोगों का इन अस्पतालों में पैसा लगा है। हाल यह है कि इन अस्पतालों में मरीज़ों की मौत होने पर बिना पैसा वसूले शव तक परिजनों के सुपुर्द नहीं किये जाते। अगर कोई आसानी से पैसा नहीं देता या देने में असमर्थ होता है, तो उससे दबंगई से वसूली की जाती है।
देश के अस्पतालों में पहले ही डॉक्टरों की कमी है। कोरोना-काल में यह कमी और जगज़ाहिर हो गयी। ऐसे में कार्पोरेट अस्पताल वालों ने अन्य पैथियों के डॉक्टरों को भी कम पैसे पर मेडिकल अफ़सर नियुक्त कर रखे हैं। जाँच अधिकारी कार्पोरेट अस्पतालों में पड़ताल करते भी हैं, तो वे भी व्यवस्था का हिस्सा बनकर ओके (ठीक है) की रिपोर्ट तैयार कर देते हैं।
कार्पोरेट अस्पतालों में पहले कोरोना-काल में प्लाज्मा थैरेपी के नाम पर मरीज़ों को गुमराह करके लूटा गया। इसके बाद दूसरी लहर में ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन के नाम लूट मची। और अब टीकाकरण (वैक्सीनेशन) के नाम पर सरकारी और कार्पोरेट अस्पतालों सहित नर्सिंग होम वाले मरीज़ों को लूट रहे हैं, उनकी ज़िन्दगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।
गुडग़ाँव के चिरंजीवी अस्पताल में यही हुआ, जो पूरी तरह से अपराध है। ‘तहलका’ को चिरंजीवी अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अस्पाताल में चल रही धाँधली की शिकायत हरियाणा सरकार से लेकर ज़िला स्तर के सम्बन्धित अधिकारियों की कई बार की गयी; लेकिन ऊँची पहुँच के चलते कहीं कुछ नहीं हुआ। मगर इस बार टीकाकरण के नाम पर कथित ठगी का मामला सामने आया। यहाँ के एक निवासी ने इसकी शिकायत भी कर दी। मीडिया, सोशल मीडिया में भी अस्पताल की धाँधली की पोल खुल गयी। आख़िरकार ज़िला स्वास्थ्य विभाग ने झारसा स्थित चिंरजीवी अस्पताल के ख़िलाफ़ एफआरआई दर्ज करायी। उप सिविल सर्जन डॉक्टर एम.पी. सिंह ने पुलिस थाने में दी शिकायत में कहा है कि 30 अप्रैल तक स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पतालों को वैक्सीन स्टॉक (कोरोना टीका भण्डार) उपलब्ध कराया था। स्वास्थ्य विभाग ने एक आदेश जारी कहा था कि जिन निजी अस्पतालों के पास टीके बचे हैं, वो सरकारी अस्पताल में जमा करा दें। लेकिन चिरंजीवी अस्पताल में सरकारी आदेश का उल्लघंन किया गया और मनमर्ज़ी करते हुए 26 और 30 जून के बाद फिर 01 और 03 जुलाई को कोविन पोर्टल लाभार्थियों के लिए कम-से-कम 53 स्लॉट खोले। 03 जुलाई को स्वास्थ्य विभाग को एक टीका-लाभार्थी की शिकायत मिली, जिसने तथ्यों सहित शिकायत की और आरोप लगाया कि उक्त अस्पताल में कोविन पोर्टल पर वैक्सीन स्लॉट की उपलब्धता है। चौंकाने वाली बात यह है कि शिकायतकर्ता को भी यहाँ टीकाकरण के लिए कहा गया। इस मामले में स्वास्थ्य महकमा सकते में आया और मामला पुलिस को सौंपा गया। गुडग़ाँव में स्वास्थ्य सेवाएँ दे रहे वरिष्ठ डॉक्टर अनिल कुमार का कहना है कि यहाँ के निजी अस्पतालों में धाँधली की सारी हदें पार कर दी हैं। इसकी मूल वजह किसी के नाम अस्पताल की ज़मीन है, किसी के नाम अस्पताल का प्रबन्धन, तो किसी के नाम अस्पताल का लाइसेंस; जो किसी भी लापरवाही में बचने का सबसे सस्ता तरीक़ा है।
इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि टीकाकरण के लिए अगर पैसे लेकर निजी अस्पताल वाले सरकारी अस्पतालों में मरीज़ों को भेज रहे हैं या घपला कर रहे हैं, तो यह घिनौना काम है। इसमें सरकार को तुरन्त कार्रवाई करनी चाहिए और दोषी डॉक्टरों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि चिरंजीवी अस्पताल का तो मामला खुल गया है; लेकिन देश के बड़े निजी अस्पतालों में यह काम सालोंसाल से चल रहा है। सरकार की कई मामलों लापरवाही इसकी वजह है। जैसे देश में झोलाछाप डॉक्टरों का नैक्सिस बड़ा आकार लेता जा रहा है। फिर भी उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं हो रही है। गली-गली में नर्सिंग होम खुलते जा रहे हैं, जो सही मायने में नर्सिंग होम नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। ग़ैर-मेडिकल प्रोफेशनल वाले लोग पैसों के दम पर अस्पताल खुलवा रहे हैं। असल में इनका उद्देश्य मरीज़ों की सेवा नहीं, पैसा कमाना है। यही वजह है कि इन अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट मचती है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर कहते हैं कि कोरोना-काल में स्वास्थ्य सेवाएँ ध्वस्त हो गयी थीं। जब जनाक्रोश को सरकार ने भाँपा, तो उसने बाबा बनाम आयुर्वेद, एलोपैथ और न जाने क्या-क्या तमाशा किया। इसका मूल उद्देश्य जनता का ध्यान भटकाना था, ताकि जनता इन्हीं मामलों में उलझी रहे कि कौन-सी पैथी सही है, और कौन-सी कमज़ोर? जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल यह सोची-समझी साज़िश और सियासत का हिस्सा रही है, जिसके तहत देश में मौज़ूदा सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को जान-बूझकर तोड़ा गया; ताकि अस्पतालों के नाम पर कार्पोरेट घरानों की दुकानें चलती रहें।
डॉक्टर आलोक का कहना है कि मौज़ूदा व्यवस्था में टीकाकरण के नाम पर एक सियासी अखाड़ा बनता जा रहा है। जो काम डॉक्टरों का है, वह काम सियासी लोग चौराहे पर कर रहे हैं। जहाँ भी सियासत होगी, वहाँ पर अपने-पराये में भेद किया जाएगा, जो हो भी रहा है। इन दिनों कोरोना टीकों को लेकर अफ़रा-तफ़री का माहौल है। कई स्वास्थ्य संस्थानों में कोरोना टीके नहीं हैं, जिसके चलते चिरंजीवी जैसे कार्पोरेट अस्पताल सरकारी नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर सरकार को चूना लगा रहे हैं और मरीज़ों को ठग रहे हैं। डॉक्टर आलोक का कहना है कि अगर सरकार सही मायने में देश को एक स्वस्थ स्वास्थ्य व्यवस्था देना चाहती है, तो उसे स्वास्थ्य बजट बढ़ाने के साथ-साथ अस्पतालों का प्रबन्धन दुरुस्त करना होगा। देश के महानगरों से लेकर ज़िला स्तर के नामी अस्पतालों के काग़ज़ात देखेंगे, तो बहुत ही कम निजी अस्पताल ऐसे मिलेंगे, जो सारे दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हों। निजी अस्पताल वाले अपनी पहुँच के दम पर यह सोचते हैं कि अगर कोई जान चली भी जाती है या अस्पताल की कोई ख़ामी सामने आती है, तो भी उनको कोई दिक़्कत नहीं आएगी। वैसे भी मेडिकल से जुड़े लोगों पर बहुत ही कम क़ानूनी कार्रवाई होती है, जिसके चलते मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े लोग निर्भीकता से जाने-अनजाने में अपराध कर जाते हैं। ऐसे में सरकार को विदेशों की तर्ज पर मेडिकल के दौरान लापरवाही करने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि किसी मरीज़ के साथ अन्याय न हो और इलाज में लापरवाही या अन्य कारणों से किसी मरीज़ की मौत न हो। डॉक्टर आलोक ने कहा कि कोरोना-काल के पूर्व और कोरोना-काल में किडनी, लीवर सहित अन्य अंगों के सौदेबाज़ी, तस्करी के मामले भी कथित तौर पर उभरे हैं। ऐसे मामलों में कोई ठोस क़ानूनी कार्रवाई न होने और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग अपनी राजनीतिक पहुँच के दम पर मनमानी कर रहे हैं और इसका ख़ामियाज़ा लाचार और बेबस मरीज़ों व उनके स्वजनों को भुगतना पड़ रहा है।

कोरोना महामारी में आँकड़ों की तिकड़मबाज़ी

देश में कोरोना मरीज़ों की संख्या घटी है, लेकिन नये मामले लगातार सामने आ रहे हैं

कोरोना महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप अब धीरे-धीरे काफ़ी कम हो गया है, लेकिन इसका डर लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ दोनों से निकलने का नाम नहीं ले रहा है। इसकी वजह कोरोना महामारी के नये मामले आने के अलावा तीसरी लहर का ख़तरा भी है, जिसे लेकर चिकित्सा विशेषज्ञ बार-बार चेतावनी भी दे रहे हैं। यह अलग बात है कि अब लोग घरों से निकलने लगे हैं और लापरवाही भी बरत रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि कोरोना महामारी जड़ से ख़त्म हो गयी है।
हाल ही में एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि कोरोना महामारी कभी भी पलट सकती है। देश भर में तेज़ी से कोरोना टीकाकरण करने को लेकर कई प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन इसकी सुस्त रफ़्तारी के चलते सभी को टीकाकरण के मिशन में सरकार को अभी पूरी तरह कामयाबी हासिल नहीं हो सकी है। हालाँकि इसमें केवल सरकारों की ही कमी नहीं है, लोगों की भी कमी है; क्योंकि बहुत-से लोग अभी तक कोरोना टीके पर भरोसा नहीं कर रहे हैं और टीका लगवाने से क़तरा रहे हैं। इस मामले में भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों के लोग आगे हैं। अभी हाल ही में एक ख़बर पढ़ी, जिसमें लिखा था कि थाईलैंड और अमेरिका में कोरोना टीका लगवाने के लिए सरकार को लोगों के लिए प्रलोभन देना पड़ रहा है। कहा जा रहा है कि वहाँ टीका लगवाने वालों को लॉटरी जीतने की घोषणा की गयी है। इधर भारत सरकार कोरोना टीकों का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास कर रही है। भारत सरकार अब तक देश की तीन प्रामाणिक कोरोना वैक्सीन- कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक वी की 35.12 करोड़ देशवासियों को ख़ुराकें (कोरोना वैक्सीन) दी जा चुकी हैं।
लेकिन दूसरी ओर एक और अच्छी ख़बर यह भी आ रही है कि कोरोना वायरस के मामले पिछले दो सप्ताह में तेज़ी से घटे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों की मानें, तो जुलाई के शुरुआती चार दिनों में कोरोना महामारी के मामले लगातार कम हुए। हालाँकि मौतें कभी कम, तो कभी ज़्यादा हो रही हैं। 9 जुलाई तक के आँकड़े बताते हैं कि देश में अब तक कुल 3.08 करोड़ से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हुए, जिनमें से तीन करोड़ से अधिक लोग ठीक हो गये, जबकि क़रीब 4.08 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी। इस समय देश में कोरोना वायरस का रिकवरी रेट (ठीक होने वालों का फ़ीसद) क़रीब 97.2 फ़ीसदी से ज़्यादा था, जो पहले की अपेक्षा काफ़ी अच्छा है। 11 जुलाई को पूरे देश में कोरोना संक्रमण के एक दिन में औसतन 41,506 नये मामले सामने आये। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 11 जुलाई, 2021 की सुबह 8:00 बजे तक जारी आँकड़ों के मुताबिक, देश में कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर 3,08,37,222 हो चुकी थी। जबकि 408,040 लोगों की मौत हो चुकी है और 299,75,064 मरीज़ ठीक हो चुके थे।
रिपोर्ट कहती है कि देश में 41,82,54,953 से अधिक नमूनों की जाँच की जा चुकी है, जो कि प्रति 10 लाख लोगों पर क़रीब 3,09,130 है। जबकि तक़रीबन 37,60,32,586 लोगों का टीकाकरण हो चुका है। वहीं देश में मृत्यु-दर बढ़ी है। इस समय यह मृत्यु-दर 1.32 फ़ीसदी से कम है। मंत्रालय की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले 24 घंटे में उपचाराधीन मामलों की संख्या में 10,183 की कमी आयी है।
बता दें कि देश में पिछले साल 7 अगस्त को संक्रमितों की संख्या 20 लाख, 23 अगस्त को 30 लाख, 5 सितंबर को 40 लाख से अधिक हो गयी थी। कोरोना महामारी के संक्रमितों की संख्या इतनी तेज़ी से बढ़ी कि 19 दिसंबर तक एक करोड़ के अधिक लोग संक्रमित हो चुके थे। लेकिन इसके बाद कोरोना मामले घटे और अनुमान लगाया गया कि अब कोरोना वायरस थम गया है। भारत सरकार की ओर से इस जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पीठ भी थपथपा दी गयी और इस कामयाबी के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुद भी ख़ुशी जतायी। लेकिन इसके ठीक डेढ़-दो महीने बाद कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने दस्तक दी और तेज़ी से महामारी फैलने लगी। इस बार संक्रिमतों की संख्या के साथ-साथ मौतों की संख्या बहुत तेज़ी से बड़ी और दो महीने में ही पिछले साल की अपेक्षा आँकड़ा तक़रीबन तीन गुना हो गया। कोरोना महामारी की दूसरी लहर अभी थमी भी नहीं है कि तीसरी लहर की हलचल शुरू हो गयी है, जिसके लिए डब्ल्यूएचओ से लेकर एम्स के डॉक्टर तक चेतावनी दे रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने पिछले साल कहा था कि लोगों को कोरोना वायरस के साथ रहना सीखना होगा, यह बीमारी अब जाने वाली नहीं है। कई विशेषज्ञों ने इस बात की पुष्टि की और कहा कि कोरोना अधिकतर लोगों को हो चुका है और लगभग सभी को होगा। तब दिल्ली सरकार द्वारा संचालित लोकनायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने कहा था कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कुछ-कुछ मामले लगातार आते रहेंगे। इसमें शून्य एक असम्भव आँकड़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि वायरस का स्वरूप बदल रहा है और भविष्य में इसके व्यवहार का अनुमान लगाना मुश्किल है। एक और चिकित्सा विशेषज्ञ ने कहा कि कोरोना वायरस जीने के लिए स्वरूप में बदलता रहेगा।

सरकार ने छिपाये आँकड़े?
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि देश में कोरोना महामारी से मरने वालों की संख्या हज़ारों में नहीं, बल्कि लाखों में है। सरकार ने भी मरने वालों की संख्या लाखों में ही बतायी है। लेकिन फिर भी इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि केंद्र सरकार मरने वालों के आँकड़े छिपा रही है। जानकारों का कहना है कि जिस प्रकार श्मशानों, क़ब्रिस्तानों में लाइन से लाशें बिछी पड़ी थीं; लेकिन अस्पतालों में बहुत कम लोगों के मरने की पुष्टि की गयी।
उत्तर प्रदेश में तो गंगा में प्रवाहित करने के अलावा रेत में लाशें दबाने तक की ख़बरें सामने आयीं, जिन्हें छिपाने की योगी सरकार ने ख़ुब कोशिश की। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार पर मौतों के आँकड़े छिपाने के आरोप लगने के बाद भाजपा ने केजरीवाल सरकार पर भी कोरोना से हो रही मौतों के आँकड़े छिपाने के आरोप लगाने शुरू कर दिये थे। केंद्र सरकार पर भी कोरोना महामारी से संक्रमितों और इससे मरने वालों की संख्या घटाकर बताने का आरोप कई राजनीतिक पार्टियों और लोगों द्वारा लगाये गये। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने केंद्र सरकार पर कोरोना वायरस से हुई मौतों के आँकड़े छिपाने का आरोप लगाते हुए कहा कि एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ने अपने लेख में यहाँ तक दावा किया है कि भारत में जो आधिकारिक आँकड़े बताये जा रहे हैं, मौतों की संख्या उससे पाँच से सात गुना अधिक है। इसके बाद पीआईबी ने लिखा कि एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ने अपने एक लेख में भारत में कोरोना वायरस से हुई मौतों का अनुमान जारी आधिकारिक संख्या से पाँच से सात गुना अधिक होने का लगाया है। लेकिन यह पूरी तरह अनुमानों पर आधारित और बेबुनियाद है। ऐसा लगता है कि इसमें ग़लत सूचनाएँ दी गयी हैं।
वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि कोरोना के सही आँकड़े कोई भी राज्य नहीं दे रहा है। स्टेट आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों का कोई पालन ही नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय कहता है कि उसने बिहार सरकार को सही आँकड़े बताने को कहा। लेकिन बिहार सरकार की जब अदालत ने खिंचाई की, तो उसने रातोंरात बिहार सरकार ने आँकड़ों में तीन हज़ार मौतों का इज़ाफ़ा कर दिया। जितने भी विशेषज्ञ हैं, लगभग सभी कह रहे हैं कि जो आँकड़े सरकार दिखा रही है, उससे पाँच से छ: गुना ज़्यादा मौतें देश में हुई हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि विशेषज्ञ बिल्कुल सही कह रहे हैं, सरकार मौतों के आँकड़ों को सही नहीं बता रही है; उन्हें छिपा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार को हिन्दुस्तान के लोगों से कोई हमदर्दी नहीं है। इसीलिए वह इस तरह की ग़लत बातें कर रही है।

सरकार ने उठाया क़दम
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में देश में संक्रमितों और मरने वालों के आँकड़े छिपाने के आरोप के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने नियमित रूप से ज़िलेवार कोरोना वायरस के मामलों और मौतों की दैनिक आधार पर निगरानी के लिए एक मज़बूत रिपोर्टिंग तंत्र की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। स्वास्थ्य मंत्रालय की इस पहल में राज्यों को सलाह दी गयी कि वो निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार कोरोना महामरी से होने वाली मौतों को रिपोर्ट करें। मंत्रालय ने कहा है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश आईसीएमआर द्वारा जारी ‘भारत में कोविड से सम्बन्धित मौतों की रिकॉर्डिंग के लिए गाइडेंस’ के अनुसार मौतों के आँकड़े पेश करें। बता दें कि आईसीएमआर ने मृत्यु-दर कोडिंग के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा बताये गये आईसीडी-10 कोड के अनुसार मौतों की रिकॉर्डिंग करने के लिए कहा था। हालाँकि स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आदेश देने के बावजूद कोरोना महामारी के संक्रमण और मौतों के आँकड़ों में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा है।

सिंगापुर के प्रधानमंत्री हुए सिखों के मुरीद

 सिर पर पगड़ी बाँध सत् श्री अकाल बोलकर किया गुरुद्वारे का उद्घाटन, सिख समुदाय को दी बधाई

सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने जब 3 जुलाई को एक ट्वीट किया- ‘महामारी के दौरान लम्बे समय तक चले जीर्णोद्धार के बाद सिलाट रोड पर सिख मंदिर (गुरुद्वारा) के उद्घाटन में भाग लेकर बहुत प्रसन्न हूँ।’ उन्होंने दुनिया भर में एक बहुत-ही मज़बूत संदेश भेजा कि सिख कैसे मानव सेवा का कार्य कर रहे हैं। पवित्र पगड़ी पहनकर सिंगापुर के प्रधानमंत्री ने सिख समुदाय को ‘सत् श्री अकाल’ कहकर बधाई दी। सत् श्री अकाल एक ‘जयकारा’ या विजय का आह्वान है, जिसे अब पंजाबी सिखों द्वारा अभिवादन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह द्वारा दिये गये सिख आह्वान का दूसरा भाग है, जिसमें कहा गया है- ‘बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल’ (हर्षोन्माद में आवाज़ बुलंद करो)।
लूंग के ट्वीट में कहा गया है- ‘अन्य धार्मिक समूहों की तरह सिख नेताओं ने अपने उपासकों को महामारी के कारण होने वाले व्यवधानों को समायोजित करने में मदद की है। महामारी के कारण उत्पन्न तनावों को दूर करने के लिए सिख संस्थानों की समन्वय परिषद् ने सिख समुदाय से लोगों को स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिए ‘प्रोजेक्ट अकाल’ नामक एक कार्यबल का गठन किया। गुरुद्वारों ने जाति, धर्म या पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना इस कठिन दौर में ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए सिख समुदाय को एकजुट किया। इन पहलों ने बड़े समुदाय के लिए एक अच्छा उदाहरण स्थापित किया है; क्योंकि हम एक जानलेवा वायरस (कोरोना महामारी) के साथ जीने की एक नयी शुरुआत की तरफ़ बढ़े हैं। सिलाट रोड सिख गुरुद्वारा न केवल पूजा का एक पवित्र स्थान है, बल्कि सिंगापुर के बहु-धार्मिक और बहु-नस्लीय परिदृश्य में एक चमकता हुआ प्रतीक है। इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर एक बार फिर सिख समुदाय को बधाई।
महामारी के दौरान गुरुद्वारे का जीर्णोद्धार किया गया था, जब सिख नेताओं ने उपासकों को नयी परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए नवाचार और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके महामारी के कारण होने वाले व्यवधानों को समायोजित करने में मदद की। गुरुद्वारा ने भक्तों के लिए सभाओं की लाइव-स्ट्रीमिंग (सीधी) सेवाएँ शुरू कीं।
प्रधानमंत्री ली ने अपने भाषण का एक हिस्सा और गुरुद्वारे की अपनी यात्रा की कुछ तस्वीरें भी अपने फेसबुक पेज के साथ-साथ ट्विटर अकाउंट पर भी साझा कीं, दुनिया भर में फैले सिख समुदाय की ओर लोगों ध्यान आकर्षित हुआ। मीडियाकॉर्प प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य वाणिज्यिक और डिजिटल अधिकारी परमिंदर सिंह ने ट्विटर पर पगड़ी पहने ली सीन लूंग का एक वीडियो साझा किया। उन्होंने कहा- ‘सिंगापुर के प्रधानमंत्री @leehsienloong ने पवित्र पगड़ी पहनकर एक नये पुनर्निर्मित गुरुद्वारे का उद्घाटन किया और बहुत सही उच्चारण
के साथ सत् श्री अकाल कहकर सभी का अभिवादन किया।’
बता दें कि वर्तमान में सिंगापुर में तक़रीबन 12 से 15 हज़ार के बीच सिख हैं। सिंगापुर में सिखों द्वारा स्थापित एक कल्याणकारी समाज दो युवा संगठनों और दो स्पोट्र्स क्लबों के अलावा सात गुरुद्वारों के साथ लोगों की सेवा में जुटा है। सिख फाउंडेशन और द पंजाबी फाउंडेशन ऑफ सिंगापुर प्रमुख संघ हैं, जो सिख विरासत को पंजाबी भाषा में बढ़ावा दे रहे हैं। सार्वजनिक जीवन में नाम कमाने वाले कुछ प्रमुख सिखों में सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट के पहले जज जस्टिस चूड़ सिंह सिद्धू और कंवलजीत सोइन, संसद की पहली महिला मनोनीत सदस्य, ऑर्थोपेडिक सर्जन और एसोसिएशन ऑफ वीमेन फॉर एक्शन एंड रिसर्च के सह-संस्थापक शामिल हैं।
सिंगापुर के अन्य प्रमुख सिखों में शामिल हैं- नई दिल्ली में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू, सिंगापुर नौसेना के पहले कमांडर जसवंत सिंह गिल, सिंगापुर संसद में पहले दो सिख सांसद इंद्रजीत सिंह और दविंदर सिंह, बीबीसी वल्र्ड न्यूज प्रेजेंटर शरणजीत लेल, ठकराल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के संस्थापक करतार सिंह ठकराल, अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलिंग लेखक और वक्ता बल्ली कौर जसवाल, सिंगापुर के सेना प्रमुख मेजर जनरल रविंदर सिंह, एंग एमओ किओ जीआरसी के लिए पीएपी के सांसद इंद्रजीत सिंह और डब्ल्यूपी जीआरसी के लिए सांसद और प्रीतम सिंह। ब्रिटिश शासन के तहत सिंगापुर मलाया का हिस्सा था और अधिकांश सिख पुलिस अधिकारियों के रूप में वहाँ चले गये, जबकि भारत के अन्य सिख प्रवासी मुख्य रूप से पंजाब के जाट समुदाय से हैं।

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने देउबा को प्रधानमंत्री बनाने का दिया आदेश

नेपाल की सर्वोच्च अदालत ने दो दिन के भीतर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बनाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने भंग पड़ी संसद को बहाल करने का आदेश भी दिया है। इस आदेश के साथ ही चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने हफ्तेभर से जारी सुनवाई खत्म कर दी।

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पांच महीने में दूसरी बार संसद के निचले सदन को भंग कर मध्यावधि चुनाव कराने का एलान किया था। विद्या देवी भंडारी के इस फैसल के विरोध में 30 अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सोमवार को राष्ट्रपति विद्या भंडारी का फैसला पलट दिया। कोर्ट ने संसद को दोबारा बहाल कर दिया।

राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर 22 मई को संसद भंग कर दी थी। नेपाली संसद पिछले 5 महीने में दूसरी बार भंग की गई थी। इसके साथ ही उन्होंने 12 और 19 नवंबर को चुनाव कराने का ऐलान भी किया था।

राष्ट्रपति के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विपक्षी पार्टियों की तरफ से कई याचिकाएं दायर की गई थीं। ऐसी ही एक याचिका में संसद को बहाल करने और कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बनाने की मांग की गई थी।

नेपाल पिछले साल दिसंबर से सियासी संकट से जूझ रहा है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में आंतरिक कलह के चलते 20 दिसंबर को प्रधानमंत्री ओली की सलाह पर राष्ट्रपति ने संसद भंग करके 30 अप्रैल और 10 मई को ताजा चुनाव कराने का ऐलान किया था। इसके बाद फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने संसद को बहाल कर दिया था।

 विनय प्रकाश को ट्विटर का रेजिडेंट ग्रीवांस ऑफिसर नियुक्त किया गया

भारत में  केंद्र सरकार और माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर के बीच काफी लंबे समय से टकराव चल रहा था। जिसमें केंद्र सरकार ने तीन प्रमुख कर्मियों की नियुक्ति को अनिवार्य करार किया था।

आईटी नियमों के अनुसार इन तीन नियुक्तियों में मुख्य अनुपालन अधिकारी, नोडल अधिकारी और शिकायत अधिकारी सम्मिलित है। साथ ही यह तीनों कर्मियों को भारत का निवासी होना अनिवार्य किया गया था।

अपनी वेबसाइट के अनुसार, केंद्र सरकार के नए नियमों पर ध्यान देते हुए ट्विटर ने विनय प्रकाश को भारत के लिए अपना रेजिडेंट ग्रीवांस ऑफिसर नियुक्त कर दिया है। साथ ही ‘शिकायत-अधिकारी-इन@twitter.com संपर्क ईमेल आ व पता भी साझा किया है। जिससे उपयोगकर्ता उनसे संपर्क कर सकते है।

नए आईटी नियम लागू होने के बाद ट्विटर ने पहले 26 मई को भारत के लिए अपना अंतरिम निवासी शिकायत अधिकारी धर्मेंद्र चतुर को नियुक्त किया था। लेकिन कुछ कारणवश चतुर ने बीते महीने इस पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद अब विनय प्रकाश को आरटीओ नियुक्त किया गया है।

आपको बता दें, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी के नए मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार को एक बैठक कर आईटी नियमों के संबंध में समीक्षा की और नए नियमों में पहली पारदर्शिता भी जारी की है।

ईंधन के दामों के बाद अब दूध दो रुपये लीटर महंगा

पेट्रोल डीजल और एलपीसी व अन्य गैस के दामों में बढ़ोतरी के बाद आम लोगों की जेब पर एक और तगड़ा झटका लगा है। अब हर घर की जरूरत दूध के दाम में दो रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया गया है।
अमूल के बाद अब मदर डेयरी ने दिल्ली-एनसीआर में दूध के दाम बढ़ा दिए हैं। इसमें दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई है। नई कीमत 11 जुलाई 2021 यानी कल से लागू होंगी।
कोरोना के संकट काल में महंगाई से जनता पहले ही त्रस्त है। अब लोगों की रोजमर्रा और खाने-पीने के सामान भी दिन ब दिन महंगा होता जा रहा है। पहले से खस्ताहाल आम लोगों को लगता है जल्द परेशानी से मुक्ति नहीं मिलने वाली है।मदर डेयरी ने इससे पहले दिसंबर 2019 में दूध की कीमतें बढ़ाई थीं। कंपनी की ओर से कहा गया कि नई कीमतें दूध के सभी प्रकार पर लागू होंगी। कंपनी कुल इनपुट लागत पर मुद्रास्फीति के दबाव का सामना कर रही है, जो पिछले एक साल में कई गुना बढ़ गई है, साथ ही महामारी के कारण दूध उत्पादन पर भी असर पड़ा है।

दिल्ली-एनसीआर में एक लीटर फुल क्रीम मिल्क अब 55 रुपये के बजाय 57 रुपये में मिलेगा। टोन्ड मिल्क की कीमत 45 रुपये से बढ़कर 47 रुपये प्रति लीटर हो गई है। कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि यह ध्यान देना होगा कि पिछले तीन-चार हफ्तों में अकेले दूध की कृषि कीमतों में लगभग चार फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। कंपनी ने दावा किया कि पिछले एक साल में दूध की खरीद के लिए ज्यादा कीमतें चुकाने के बावजूद, उपभोक्ताओं के लिए कीमत नहीं बढ़ाई गई थी। बता दें कि अकेले दिल्ली-एनसीआर में मदर डेयरी का रोजाना 30 लाख लीटर से ज्यादा दूध की खपत होती है।

पेट्रोल-डीजल के साथ सीएनजी और पीएनजी के दामों ने भड़काई महंगाई की आग

यूं तो जिस दिन धर्मेंद्र प्रधान से पेट्रोलियम मंत्रालय छीना गया था, उसी दिन देश की राजधानी में पेट्रोल के दाम में बढ़ोतरी के साथ 100 रुपये प्रति लीटर के आंकड़े को छू लिया था। इसके साथ ही अगले दिन यानी वीरवार को नए पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी का इस्तकबाल भी पेट्रोल के दामों में इजाफे के साथ हुआ। इतना ही नहीं, आज तो पेट्रोल-डीजल के साथ ही सीएनजी और पीएनजी के दामों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसके साथ ही महंगाई के और बढ़ने के आसार हो गए हैं।

महंगाई अपने उच्चतम स्तर 12 फीसदी पर चल रही है, पर आम लोगों को किसी भी तरह से सरकार राहत देती नजर नहीं आ रही है। न तो उत्पाद शुल्क में और न ही राज्यों द्वारा वैट में किसी भी तरह की रियायत मिलने जा रही है। इससे आने वाले दिनों में महंगाई की मार से जूझने के लिए लोगों को तैयार रहना होगा। सरकार के भरोसे रहने से लोगों को कोई राहत नहीं िमलने वाली है। महज पोर्टफोलियो बदल देने से राहत की उम्मीद पालना भी बेईमानी ही है।

वीरवार को जहां पेट्रोल के दाम में 35 पैसे प्रति लीटर और डीजल के दाम नौ पैसे प्रति लीटर बढ़ाए गए तो लंबे समय के बाद सीएनजी की कीमतों में 90 पैसे प्रति किलो की बढ़ोतरी की गई है।

दिल्ली में अब पेट्रोल की कीमत 100.56 रुपये और डीजल 89.62 रुपये प्रति लीटर हो गई है। इसकी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार इजाफा होना बताया जा रहा है। हालांकि जब कच्चा तेल सस्ता होता है तो लोगों को पूरी राहत नहीं प्रदान की जाती है। ऐसे में सरकार को राहत देने के लिए केंद्रीय शुल्कों में बढ़ाए गए दामों में से कुछ राहत तो प्रदान करनी ही चाहिए।
राजधानी नई दिल्ली में पीएनजी की कीमत 29.55 रुपये प्रति घन मीटर पहुंच गई है। वहीं, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में पीएनजी की घरेलू कीमत 29.61 रुपये प्रति एससीएम हो गई है।

प्रधानमंत्री की युवा कैबिनेट: कैबिनेट में सबसे युवा मंत्री की उम्र 35 वर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने बुधवार को अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार कैबिनेट में फेरबदल कर कैबिनेट का विस्तार किया है। पिछली परिषद में कैबिनेट परिषद की संख्या 21 व राज्य मंत्री की संख्या 32 थी। जिसे बढ़ाकर अब वर्तमान परिषद में 30 कैबिनेट व 47 राज्य मंत्री नियुक्त किए गए है। प्रधानमंत्री के नए मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की कुल संख्या 53 से बढ़कर 77 हो गई है।

कैबिनेट में विस्तार के साथ युवाओं को जगह दी गई है। वर्तमान में मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आयु 70 वर्ष है। कैबिनेट में सबसे उम्रदराज़ मंत्री सोमप्रकाश है। जिनकी आयु 72 वर्ष है। व मंत्रिपरिषद में सबसे कम उम्र के मंत्री भाजपा के पश्चिम बंगाल से कूचबिहार पहुंचे सांसद निशीथ प्रमाणिक है जो कि केवल 35 वर्ष के है।

मंत्रिमंडल में अन्य मंत्रियों की आयु का आंकड़ा इस प्रकार है। तीन मंत्रियों की उम्र 70 से अधिक, 40 से कम उम्र के दो मंत्री, 40 से 50 के अंतर्गत उम्र के 10 मंत्री, 50 से 60 उम्र के 26 मंत्री और 36 मंत्री ऐसे है जिनकी उम्र 60 से 70 की है व मंत्रियों की औसत उम्र 58 वर्ष है।

उम्र के साथ ही वित्त राज्य मंत्री और बीसीसीआई के अध्यक्ष, हिमाचल के हमीरपुर सीट से सांसद अनुराग ठाकुर 46 वर्ष के है। इनका प्रमोशन कर कैबिनेट में मंत्री बनाया गया है।

खेल मंत्री किरेन रिजिजू जिनकी आयु 49 वर्ष है। इनका भी प्रमोशन कर उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

 

आम आदमी पार्टी ने 3 लाख 50 हजार स्कूली बच्चों को राशन मौहय्या कराने में नाकाम भाजपा सरकार पर निशाना साधा

आम आदमी पार्टी ने बुधवार को भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम शासित भारतीय जनता पार्टी करीब 700 स्कूलों में 3 लाख 50 हजार बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत राशन वितरण में विफल रही है।

आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि, “यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के 700 स्कूलों में पढ़ने वाले 3.5 लाख बच्चों को मिड-डे मील योजना के अंतर्गत मिलने वाले राशन को बच्चों तक पहुंचाने में भाजपा सरकार विफल रही है। मिड-डे मील योजना के तहत वितरण करने वाला राशन करीब 2 हजार 934.49 क्विंटल है। जिसे भाजपा ने बच्चों में वितरित नहीं किया है।”

दिल्ली के सभी स्कूल जो कि दिल्ली सरकार व एमसीडी के तहत संचालित किए जाते है उनमें मध्याह्न भोजन बच्चों को परोसा जाता है। किंतु पिछले वर्ष से चल रही कोरोना महामारी के चलते सभी स्कूलों को बंद किया गया है, और सरकार द्वारा बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत मिलने वाला मध्याह्न भोजन का सूखा राशन बच्चों में वितरित किया जा रहा है।

दिल्ली भाजपा ने कहा है कि, नगर निकाय ने पहले ही अपने अधिकांश स्कूलों में सूखा राशन भेज दिया है और छात्रों को चार-पांच दिनों के अंतर्गत राशन मिलना शुरू हो जाएगा।

 

छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह का निधन, राजकीय शोक घोषित

दिग्गज कांग्रेस नेता और हिमाचल के छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह का निधन हो गया है। चार बार केंद्रीय मंत्री भी रहे वीरभद्र सिंह ने आज तड़के 3.40 पर अंतिम सांस ली। उन्हें जवाहर लाल नेहरू राजनीति में लाये थे। उनके निधन पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी से लेकर तमाम राजनीतिक दलों के नेत्ताओं ने शोक जताया है। बहुत लोकप्रिय वीरभद्र सिंह के निधन से हिमाचल में शोक की लहर है और प्रदेश सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है।
हिमाचल के विकास में वीरभद्र सिंह बड़ा रोल रहा और उन्हें प्रदेश की आज तक की राजनीति का सबसे कद्दावर नेता माना जाता है। कांग्रेस ही नहीं पूरे प्रदेश की राजनीति में उनका बड़ा स्थान था और विपक्ष के नेता भी उन्हें सम्मान से देखते थे।
पिछले दो महीने से वीरभद्र सिंह का स्वास्थ्य गड़बड़ चल रहा था। वे दो बार कोविड पॉजिटिव भी हुए लेकिन दोनों बार ठीक हो गए थे। हालांकि, उनके फेफड़ों में संक्रमण के चलते उनकी तबीयत लगातार खराब चल रही थी और सोमवार को वे आईजीएमसी शिमला में लगभग अचेत हो गए थे। इसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। अब आज उनका निधन हो गया जिसके बाद प्रदेश भर में शोक की लहार फ़ैल गयी।
वीरभद्र सिंह बुशहर रियासत के पूर्व राजा भी थे और हिमाचल में उनकी लोकप्रियता किसी भी नेता के मुकाबले सबसे ज्यादा मानी जाती थी। उनके निधन की खबर के बाद शिमला जिला के कई इलाकों में बाज़ार बंद रखे गए हैं।
वीरभद्र सिंह की पार्थिव देह आज उनके निजी आवास होलिलॉज में रखी गयी है। कल सुबह 9 से 12 बजे उनका शव लोगों के दर्शन के लिए रिज मैदान पर रखा जाएगा जबकि उसके बाद 12 से 1 बजे तक कांग्रेस मुख्यालय – राजीव भवन में रखा जाएगा। फिर पार्टीःव देह को उनके गृह क्षेत्र रामपुर बुशहर ले जाय जाएगा। अंतिम दर्शन के बाद 10 जुलाई को 3 बजे रामपुर बुशहर में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होगा।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पूर्व मुख्यमंत्रियों प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, कई केंद्रीय नेताओं और अन्य गणमान्य लोगों ने उनके निधन पर शोक जताया है। याद रहे वीरभद्र सिंह को राजनीति में जवाहर लाल नेहरू लेकर आए थे। खुद वीरभद्र सिंह अपने भाषणों में इस बात को याद करते थे। वीरभद्र सिंह नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक की सरकारों में मंत्री रहे। वीरभद्र सिंह अर्की से विधायक थे।
वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून, 1934 को बुशहर रियासत के राजा पदम सिंह के घर में हुआ। लोकसभा के लिए वह पहली बार 1962 में चुने गए। उसके बाद 1967, 1971, 1980 और 2009 में भी चुने गए। वीरभद्र वर्ष 1983 से 1990, 1993 से 1998, 1998 में कुछ दिन तक तीसरी बार, फिर 2003 से 2007 और 2012 से 2017 में हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे।