Home Blog Page 569

हदें लाँघता चीन

भारत और चीन के बीच सीमा पर चीनी सेना की कायराना हरकतों को लेकर विकट तनाव बना हुआ है। डेढ़ साल पहले गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच ख़ूनी संघर्ष के बाद नये साल में 1 जनवरी को गलवान घाटी में कथित रूप से चीनी झण्डा फहराये जाने के बाद दोनों देशों के बीच तल्ख़ी बढ़ी है। चीनी सेना पिछले कई साल से अपनी आपत्तिजनक गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं और भारत की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने के प्रयास कर रही है। कई बार चीन उसकी सीमा से लगे भारत की तमाम क्षेत्रों को अपना बताने का प्रयास कर चुका है। सैटेलाइट से उपलब्ध तस्वीरे बयाँ करती हैं कि चीन ने भारत की ज़मीन पर अपने कई बंकर, एक गाँव और बड़े स्तर पर सेना की तैनाती कर रखी है। लेकिन इस बार उसने अरुणाचल प्रदेश में जो हरकतें की हैं, उनसे लगता है कि वह भारत को चुनौती दे रहा है।

अरुणाचल प्रदेश से सटी भारत चीन अन्तरराष्ट्रीय सीमा से 18 जनवरी को 17 साल के युवक मिराम तारोम का लापता होना और ये ख़बरें आना कि उसका अपहरण चीनी सेना ने किया है, भारत के लिए एक नयी चुनौती रही। चीनी सूत्रों का कहना है कि मिराम तारोम को कथित तौर पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएससी) के पार जाने पर चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने गिरफ़्तार किया। वहीं स्थानीय लोगों व ख़ुद अरुणाचल के भाजपा सांसद ने तापिर गाओ ने इस घटना की निंदा करते हुए चीनी सेना पर मिराम तारोम के अपहरण का आरोप लगाया। इसे लेकर दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों में लम्बी बातचीत हुई। काफ़ी कोशिशों पर 10 दिन बाद किशोर मिराम तारोम को चीनी सेना ने भारतीय सेना को सौंपा। क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ट्वीट कर बताया कि चीनी सीमा के पास से लापता हुए अरुणाचल प्रदेश के एक युवक को चीनी सेना भारतीय सेना को वाचा-दमई सम्पर्क बिन्दु पर सौंप दिया है।

बता दें कि मिराम तारोम अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग ज़िले के जिदो गाँव का रहने वाला है। बताया गया कि मिराम तारोम अपने एक दोस्त के साथ चीन की सीमा से लगे भारतीय क्षेत्र (अरुणाचल) में शिकार के लिए गये थे। मिराम तारोम आदिवासी समुदाय से हैं और सीमावर्ती गाँव में रहते हैं। आमतौर पर यहाँ के लोग शिकार करने भारतीय क्षेत्र में भ्रमण करते हैं। यहाँ भारत सरकार को भारतीय सीमा क्षेत्रों और भारतीय लोगों की सुरक्षा को लेकर चीन पर दबाव बनाने की ज़रूरत है। क्योंकि चीन ने हमेशा झूठ का सहारा लिया है। इससे पहले भी चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबन सिरी जिले से पाँच युवकों का अपहरण कर लिया था। हालाँकि तब भारत सरकार के दख़ल के बाद इन युवकों को उसने रिहा कर दिया था।

बिगड़ते जा रहे हालात

सर्वविदित है कि लद्दाख़ से अरुणाचल प्रदेश तक चीन के साथ 3,400 किलोमीटर लम्बी वास्तविक सीमा रेखा (एसएसी) लगती है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुज़रने वाली एलएसी पश्चिमी क्षेत्र यानी जम्मू-कश्मीर, मध्य क्षेत्र यानी हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड, और पूर्वी क्षेत्र यानी सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं को छूती है। अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाक़ों में टैगिन आदिवासी समुदाय के काफ़ी लोग सीमा के उस पार चीन में रहते हैं और उनके रिश्तेदार अरुणाचल प्रदेश में बसे हैं। कुछ साल पहले तक दोनों तरफ़ के लोगों का आना-जाना होता था। लेकिन जबसे सीमा पर चीन के साथ तनाव बढ़ा है, इन लोगों की आवाजाही का सिलसिला रुक गया है। क्योंकि चीन का रवैया शत्रुता भरा है और वह सीमा पर अराजक गतिविधियाँ चलाता रहता है। उसकी हरकतों का हाल यह है कि अगर भारत भी उसकी तरह सिर उठाता, तो कब का युद्ध छिड़ गया होता।

चीन की हेकड़ी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मिराम तारोम को लेकर भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच 14 दौर से अधिक की बातचीत हुई; तब कहीं जाकर सकारात्मक हल निकल सका है।

चीन द्वारा गलवान घाटी पर झण्डा फहराये जाने और चीनी सैनिकों का भारत की सीमा में अन्दर कथित रूप से घुस जाने के मामले पर केंद्र सरकार पर सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर चीन की आक्रामकता का जवाब मोदी सरकार कड़ाई से क्यों नहीं देती? इस बीच चुनावी माहौल के बीच राजनीतिक हलक़ों में भी चीन की चर्चा हो रही है। कांग्रेस सहित विपक्ष की पार्टियाँ सवाल उठा रही हैं कि चीन वर्ष 2020 के मई महीने से लगातार आक्रामक तेवर अपनाये हुए है; 15-16 जून, 2020 को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया, जिसके बाद संघर्ष में 20 जवान शहीद हो गये।

हालाँकि भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों का डटकर मु$काबला किया और दो दर्ज़न से अधिक को मौत के घाट उतार दिया। फिर 5 मई, 2021 को भी पूर्वी लद्दाख़ के पेंगौंग झील इलाक़े में चीनी सेना ने सीमा सन्धि को तोड़ते हुए हरकतें कीं, जिसके बाद दोनों देशों की सेनाओं में संघर्ष हुआ था। हालाँकि इसके बाद सीमा पर भारत ने गस्त बढ़ा दी है। लेकिन चीन सीमा पर गतिविधियाँ बढ़ाने से बाज़ नहीं आ रहा है।

क्या कहते हैं जानकार?

चाइना रेडियो से लम्बे समय तक जुड़े वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव ने ‘तहलका’ को बताया कि चीन दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त (सुपर पॉवर) बनना चाहता है। इसी विस्तारवादी नीति के कारण वह काम कर रहा है। इतिहास में जाएँ, तो चीन हमेशा से परोक्ष रूप से दूसरे देशों पर आधिपत्य जमाने के लिए जाना जाता है। वह दो क़दम आगे बढ़ाकर एक क़दम पीछे लेने की नीति पर काम करता है। चीन का हमेशा से अपने पड़ोसी देशों के साथ यही रवैया रहा है। इसका ताज़ा उदाहरण दक्षिण चीन सागर में उसके द्वारा धीरे-धीरे क़ब्ज़ा करना है। चीन ने इसी 1 जनवरी से सीमाओं से लगे इलाक़ों के लिए एक नया क़ानून लागू कर दिया है। इस क़ानून के माध्यम से उसने सीमावर्ती गाँवों में हर तरह की सुविधाएँ मुहैया कराने का प्रावधान रखा है। चीन इन सीमावर्ती गाँवों को आदर्श गाँव बनाने की बात करते हुए इनमें रेल और सडक़ों से लेकर यातायात के सभी साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ दूसरी सहूलियतें उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहा है।

बता दें कि भारत ने भी एलएसी पर पिछले कुछ साल से अपनी स्थिति मज़बूत की है। भारत ने भी इन इलाक़ों में सुरंग, पुल, हेलीपैड और सडक़ें बनायी हैं। लेकिन अपनी सीमा में। जबकि चीन अतिक्रमण की नीति अपनाता है, जो कि ग़लत है। रक्षा मंत्रालय की साल 2018-19 की सालाना रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार ने भारत चीन सीमा पर 3812 किलोमीटर इलाक़े को सडक़ निर्माण के लिए चिह्नित किया है, जिसमें से 3418 किलोमीटर सडक़ बनाने का काम सीमा सडक़ संगठन (बीआरओ) को दिया है। इनमें से अधिकतर परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सन् 1982 से सन् 1984 तक तैनात (अब सेवानिवृत्त) लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं कि भारत एलएसी को मानता है और कभी उससे आगे नहीं गया है।

भारत ने एलएसी पर अपनी स्थिति पिछले कुछ समय से मज़बूत की है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर बातचीत रुक-सी गयी है। चीन की तरफ़ से लगातार दबाव बनाया जा रहा है। कुछ वाक़ये हाल ही में हुए, जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के लिए चीनी, तिब्बती और रोमन में नये नामों की सूची जारी की है। इस बारे में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यपत्र ‘अंग्रेजी डेली ग्लोबल टाइम्स’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश को चीनी नाम ‘जांगनान’ देकर अपना बताने का प्रयास किया है।

इस पर विदेश मामलों के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक कहा कि हमने इसे देखा है। ये पहली बार नहीं है, जब चीन ने नाम बदलने की कोशिश की है। चीन ने अप्रैल में भी ऐसे नाम रखना चाहा था। अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और आगे भी रहेगा। महज़ प्रदेश का नाम बदलकर रख देने से तथ्य नहीं बदले जा सकते।

बता दें कि चीन ने अक्टूबर, 2021 में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू के अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर आपत्ति जतायी और कहा कि भारत ऐसा कोई काम न करे, जिससे सीमा विवाद का विस्तार हो। फिर सन् 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अरुणाचल जाने पर भी विरोध किया था। फिर सन् 2020 में गृह मंत्री अमित शाह के अरुणाचल जाने पर आपत्ति जतायी। एक सांसद के तिब्बत के एक कार्यक्रम में शामिल होने पर भी चीन ने उन्हें पत्र लिखकर आपत्ति जतायी। ऐसे में चीन भारत पर लगातार दबाब बनाने की कोशिश में जुटा है।

विदेश और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ और लेखक ब्रहा चेल्लानी ने एक लेख में लिखा है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पहले से ही अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों को ताक पर रखती आ रही है। शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने क़मज़ोर देशों की सम्प्रभुता को प्रभावित करने की कोशिश की है। यहाँ तक कि लिथुआनिया जैसे देशों को चीन में अपने दूतावासों को बन्द करने तक के लिए मजबूर कर दिया। चीन एक मात्र देश है, जिसने व्यापार को भी वेपनाइज यानी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। यहाँ तक जिन देशों ने ताइवान के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाये रखे, चीन ने उन देशों को भी अपने निशाने पर रखा हुआ है।

चीन मामलों के जानकार पंकज श्रीवास्तव कहते हैं कि जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारत के विदेश मंत्री एस. जय शंकर की मुलाक़ात हुई थी, तो उसमें भी बार-बार यही दोहराया गया कि सीमा विवाद को एक तरफ़ रखा जाए और आपसी रिश्तों को सामान्य बनाया जाए। चीन के जितने भी पड़ोसी देश हैं, उनमें भारत ही चीन के ख़िलाफ़ खड़ा होने की क्षमता रखता है। भारत ने यह दिखा दिया है कि अगर चीन देर तक सीमा पर खड़ा रह सकता है, तो भारत भी अपने क्षेत्रों की रक्षा करने में समर्थ है।

कोहली के विराट होने का इंतज़ार

क्या कप्तानी के बोझ से मुक्त होकर फॉर्म में लौटेगा यह दिग्गज बल्लेबाज़?

सात साल की कप्तानी में ढेरों उपलब्धियाँ हासिल करने वाले विराट कोहली अब भारतीय टीम में किसी भी फॉर्मेट (प्रारूप) के कप्तान नहीं। कप्तानी छोडऩे के उनके फ़ैसले पर कुछ विवाद रहे। लेकिन इस तथ्य में कोई विवाद नहीं कि हाल के ढाई साल छोड़ दिये जाएँ, तो विराट कोहली ने भारतीय टीम के लिए कई उम्दा पारियाँ खेलीं; जिनमें शतकों की भी कमी नहीं रही। विराट ने बेहतरीन कप्तानी भी की, अभिलेख (रिकॉर्ड) इसके गवाह हैं। लेकिन विराट के कप्तानी छोड़ते (ऑफ फॉर्म होते) ही आलोचकों ने उनके ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी। देश की क्रिकेट में यह एक परम्परा-सी बन गयी है। वर्षों उच्च कोटि का प्रदर्शन करने वाला खिलाड़ी कुछ समय के लिए फॉर्म से बाहर क्या हो जाए, उसकी आलोचना करने वालों की भीड़ जुट जाती है। अब जबकि विराट कोहली ने ख़ुद को कप्तानी के सभी बोझों से दूर कर लिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि क्रिकेट प्रेमी फिर पुराने विराट कोहली के दर्शन कर पाएँगे।

चार महीने पहले तक विराट कोहली भारतीय क्रिकेट के सभी फार्मेट के कप्तान थे। लेकिन 15 जनवरी को दक्षिण अफ्रीका से टेस्ट सीरीज में हार के बाद विराट ने टेस्ट की कप्तानी भी छोड़ दी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने महान् खिलाड़ी को अपनी कप्तानी एक तरह से विवादास्पद परिस्थितियों में छोडऩी पड़ी, जबकि सच यह है कि विराट कोहली ने भारतीय टीम को हर क्षेत्र में अपना 100 फ़ीसदी दिया। देश भर में क्रिकेट के प्रशंसक कोहली के साथ ऐसे व्यवहार से ख़ुश नहीं और उन्हें पक्का भरोसा है कि अब कप्तानी के दायित्व से मुक्त होकर कोहली बतौर बल्लेबाज़ नये रिकॉर्ड बनाएँगे।

विराट ने अपनी शानदार कप्तानी के बल पर भारत को दुनिया की नंबर एक टेस्ट टीम बनाया। पिछले पाँच साल से भारतीय टीम रैंकिंग में पहले पायदान के इर्दगिर्द घूम रही है और हर साल आईसीसी की टेस्ट मेज हासिल कर रही है। कोहली ने पहले टी-20, फिर वनडे तीन से कप्तान के रूप में इस्तीफ़ा दिया और अब अब टेस्ट की कप्तानी भी उन्होंने छोड़ दी है। सन् 2015 में कोहली ने सबसे पहले टेस्ट की ही कप्तानी सँभाली थी और इन वर्षों में कई नये कीर्तिमान (रिकॉर्ड) बनाते हुए टीम को भी शिखर पर पहुँचाया।

अब टेस्ट से कप्तानी छोडक़र कोहली ने पूरी तरह कप्तानी का ज़िम्मा छोड़ दिया है और टीम में वे एक खिलाड़ी की हैसियत से खेलेंगे। भारतीय क्रिकेट में कई साल तक बहुत ताक़तवर रहे कोहली पिछले दो-तीन महीने से अलग-थलग से दिख रहे थे। $खासकर रवि शास्त्री के बतौर कोच-मैनेजर टीम से विदाई लेने के बाद नये कोच राहुल द्रविड़ के आने के बाद यही चर्चा थी कि शायद कोहली अब टेस्ट की कप्तानी भी ज़्यादा देर तक नहीं करेंगे। परदे के पीछे यह भी चर्चा थी कि टीम में कुछ खिलाड़ी जानबूझकर कोहली को सहयोग नहीं कर रहे। दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर तीन टेस्ट की सीरीज के पहले ही मैच में भारत ने मेजवान टीम को हरा दिया था; लेकिन अगले दो मैच भारत हार गया। इसके बाद कोहली ने कप्तानी छोडऩे का ऐलान कर दिया।

यह सब अचानक हुआ और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी ने भी इस पर आश्चर्य जताया। हालाँकि उन्होंने कहा कि कोहली ने हमेशा टीम को 100 फ़ीसदी दिया और उम्मीद जतायी कि भविष्य में भी टीम को ऐसे ही योगदान देते रहेंगे। कोहली ने सबसे पहले पिछले साल सितंबर में टी20 टीम की कप्तानी छोडऩे का ऐलान किया था। तब कोहली ने कहा था कि वह टी20 विश्व कप के बाद टी-20 की कप्तानी तो छोड़ देंगे; लेकिन एक दिवसीय और टेस्ट की कप्तानी करते रहेंगे। हालाँकि बीसीसीआई ने दिसंबर में कोहली को अचानक वनडे की कप्तानी से हटाकर रोहित शर्मा को कप्तानी सौंप दी।

माना जाता है कि कोहली इस तरीक़े से उन्हें हटाने से काफ़ी आहत हुए। बतौर कप्तानी कोहली बहुत ज़्यादा सफल रहे। टेस्ट में तो उन्होंने भारत को शीर्ष पर पहुँचाया। कोहली से जब वनडे की कप्तानी ली गयी थी, तब मीडिया में बहुत आया कि कोहली और बीसीसीआई के बीच मतभेद हैं। बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने वैसे तो दावा किया कि उन्होंने कोहली से टी20 कप्तानी नहीं छोडऩे को कहा था। लेकिन इसके बाद एक पत्रकार वार्ता (प्रेस कॉन्फ्रेंस) में कोहली ने साफ़तौर पर इसे ग़लत बताया।

उस समय कोहली ने कहा था- ‘मैंने बीसीसीआई को बताया कि मैं टी-20 की कप्तानी छोडऩा चाहता हूँ। जब मैंने ऐसा किया तो बोर्ड ने मेरी इस बात को बहुत अच्छे ढंग से स्वीकार किया। उनके भीतर कोई झिझक नहीं थी। बोर्ड ने मुझसे बोला कि यह एक अच्छा क़दम है। मैंने बोर्ड से उसी वक़्त कहा था कि मैं वनडे और टेस्ट में टीम का नेतृत्व करना चाहता हूँ। मेरी तरफ़ से यह सन्देश स्पष्ट था; लेकिन मैंने अधिकारियों से यह भी कह दिया था कि अगर उन्हें ऐसा नहीं लगता है, तो भी कोई परेशानी नहीं। मैं टेस्ट और वनडे की कप्तानी जारी रखना चाहता था। लेकिन टेस्ट टीम के सिलेक्शन के दौरान मुख्य चयनकर्ता ने उन्हें बताया कि वन-डे की कप्तानी वापस ली जा रही है।’

माना जाता है कि सौरव गांगुली, जो ख़ुद कभी बहुत ही ख़राब तरीक़े से टीम से बाहर किये गये थे; कोहली के बयान से नाराज़ हुए। इसके बाद बतौर एक कप्तान बोर्ड से जो समर्थन मिलना चाहिए, वह कोहली को नहीं मिला। टी-20 आईसीसी ट्रॉफी में भारत की हार के बाद कोहली के ऊपर दवाब बनाया जाने लगा था। बतौर बल्लेबाज़ भी कोहली सफल नहीं हो रहे थे। पिछले क़रीब दो साल में कोहली एक भी शतक नहीं बना पाये हैं। इसे लेकर भी उनकी निंदा करने वाले सक्रिय हो चुके थे। अब दक्षिण अफ्रीका से सीरीज 1-2 से हारने के बाद अचानक कोहली का बतौर टेस्ट कप्तान भी इस्तीफ़ा सामने आ गया।

किसी समय उनके मज़बूत समर्थक रहे पूर्व कोच रवि शास्त्री के भी नहीं होने के बाद कोहली टीम में कमोवेश अकेले से पड़ गये थे। वह अलग बात है कि कोहली और शास्त्री की जोड़ी ने भारतीय टीम को कामयाबी के ऊँचाइयों पर पहुँचाया।

ट्वीट से दी जानकारी

किंग कोहली के नाम के मशहूर विराट कोहली ने भारतीय क्रिकेट की टेस्ट टीम की कप्तानी छोडऩे की सूचना एक भावुक ट्वीट करके दी। उनके इस ऐलान के बाद बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली ने ट्वीट कर विराट कोहली की तारीफ़ की। गांगुली ने लिखा- ‘विराट के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट ने खेल के सभी प्रारूपों में तेज़ी से प्रगति की है। उनका फ़ैसला निजी है और बीसीसीआई इसका बहुत सम्मान करता है। वह भविष्य में इस टीम को नयी ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण सदस्य होंगे। वह एक महान् खिलाड़ी हैं। उन्होंने अच्छा किया।’

टीम इंडिया की कप्तानी छोड़ते हुए विराट ने एमएस धोनी को विशेषतौर पर शुक्रिया कहा। विराट ने लिखा- ‘ये सात साल की कड़ी मेहनत, लगन और कठोर परिश्रम का नतीजा है। मैंने हर रोज़ टीम को सही दिशा में पहुँचाने की कोशिश की। इस दौरान मैंने अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ किया और अपनी तरफ़ से कोई क़सर नहीं छोड़ी। हर सफ़र कहीं-न-कहीं एक दिन ख़त्म होता है। मेरे भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान के रूप में सफ़र यहीं समाप्त होता है। कप्तानी के इस सफ़र में बहुत से उतार-चढ़ाव आये; लेकिन मेरे प्रयास और विश्वास में कहीं कोई कमी नहीं आयी। मैंने इस दौरान जो कुछ किया, उसमें अपनी ओर से 120 फ़ीसदी योगदान देने की कोशिश की। अगर मैं ऐसा नहीं सकता हूँ, तो समझता हूँ कि ये मेरे लिए सही नहीं है। मेरे दिल में पूरी साफ़गोर्इ है और मैं अपनी टीम के लिए बेईमान नहीं हो सकता।’

कोहली ने ट्वीट में कहा- ‘मैं इतने लम्बे समय कर देश का नेतृत्व का मौक़ा देने के लिए बीसीसीआई का शुक्रिया अदा करता हूँ। मैं टीम के साथी खिलाडिय़ों का ख़ासतौर पर शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, जिन्होंने पहले दिन से मेरे विजन को पूरा करने में मदद की। उन्होंने हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया और कभी हथियार नहीं डाले। आप लोगों ने मेरी कप्तानी के सफ़र को ख़ूबसूरत और यादगार बनाया। हमारी गाड़ी को रवि भाई और उनका सपोर्ट स्टाफ (सहकर्मी) इंजन की तरह टेस्ट क्रिकेट में लगातार ऊँचाई पर ले गया। इस सपने को हक़ीक़त में तब्दील करने में आप सभी का बड़ा योगदान रहा। अन्त में एम.एस. धोनी का बहुत-बहुत शुक्रिया, जिन्होंने बतौर कप्तान मुझ पर भरोसा जताया और पाया कि मेरे अन्दर भारतीय क्रिकेट को आगे ले जाने की क्षमता है।’

बतौर कप्तान कोहली का सफ़र

कोहली ने 68 टेस्ट मैचों में भारतीय टीम का नेतृत्व किया, जिसमें 40 में टीम को सफलता मिली। वह टेस्ट में भारत के सबसे सफल कप्तान हैं। सन् 2018 बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी में कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने पहली बार ऑस्ट्रेलिया को 2-1 से सीरीज में हराया। वहीं इंग्लैंड में हुई सीरीज में भी भारत 2-1 से आगे रहा (कोरोना के चलते यह सीरीज स्थगित हो गयी) और इसका एक मैच होना बाक़ी है। अन्य कामयाब कप्तानों की बात करें, तो धोनी की कप्तानी में भारत ने 61 में से 27 टेस्ट जीते, जबकि गांगुली ने 49 टेस्ट में भारत का नेतृत्व किया। इनमें से वह टीम को 21 मैचों में जीत दिला सके। कोहली का बतौर कप्तान टेस्ट में जीत का फ़ीसदी 58.82 फ़ीसदी रहा, जबकि मोहम्मद अजहरुद्दीन और सुनील गावस्कर का जीत का फ़ीसदी क्रमश: 29.78 और 19.14 फ़ीसदी ही था। यही नहीं, विराट कोहली ने बतौर कप्तान 68 मैचों में 54.80 के शानदार औसत से 5,864 रन बनाये। इस दौरान उन्होंने 20 शतक और 18 अद्र्धशतक जड़े। कोहली टेस्ट क्रिकेट में बतौर कप्तान भारत के लिए सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ भी रहे। टेस्ट कप्तान के रूप में उन्होंने सन् 2019 में दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ नाबाद 254 रन की पारी खेली।

भोगनी ही होगी पापों की सज़ा

सभी मज़हबों (धर्मों) में कहा गया है कि अगर पापों से मुक्ति चाहते हो, तो ईश्वर की शरण में चले जाओ। ईश्वर दयालु है और वह बड़े-बड़े पापियों को माफ़ कर देता है। यह एक ऐसा लोक-लुभावन धार्मिक जुमला है, जिसने पापियों के मन से डर को ख़त्म करके उन्हें और पाप करने को प्रोत्साहित किया है।

हद तो यह है कि दुनिया में कुछ लोग पाप करने इल्ज़ाम भी ईश्वर पर डाल देते हैं। वे कहते हैं कि वे जो भी कर रहे हैं उसमें ईश्वर की मर्ज़ी है। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि दूसरे धर्म के लोगों की हत्या करने का हुक्म उन्हें उनके ईश्वर ने दिया है। मेरी समझ में नहीं आता कि किसी की हत्या कर देने, किसी का हक़ मार लेने या किसी पर अत्याचार करने का हुक्म किस ईश्वर ने दिया है? अगर यह किसी धर्म में लिखा है, तो वह धर्म धर्म कैसे हो सकता है? और अगर ईश्वर ने ऐसा कहा है, तो इसके क्या सुबूत हैं? फिर धर्म-ग्रन्थों में पापियों को सज़ा देने की बात क्यों कही गयी है? कई धर्मों में साफ़ कहा गया है कि शैतान या राक्षस बुरे होते हैं या बुरे कर्म के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह बात कहीं भी नहीं कही गयी है कि ईश्वर बुरे कर्म करवाता है; या करने को कहता है। ईश्वर को तो हर धर्म में दयालु, पापनाशक और पतित पावन, सबका जन्मदाता, परम्पिता, जन्म-मरण से मुक्ति देने वाला और परम् दयालु बताया गया है। जो लोग जीव हत्या और दूसरों पर अत्याचार को ईश्वर का हुक्म मानते हैं, क्या वे बताएँगे कि जो दयालु है; जन्मदाता है; वह भला किसी की हत्या को प्रेरित क्यों करेगा? जो मन को पापमुक्त, पवित्र करने वाला है; वह किसलिए किसी के मन में पाप के बीज बोयेगा? जब कोई भी इंसान एक ही तरह का हो सकता है; या तो बुरा या फिर अच्छा। तो ईश्वर दो अच्छा भी और बुरा भी कैसे हो सकता है? हाँ, आदमी में अच्छाई और बुराई दोनों हो सकती हैं। किसी में अच्छाई ज़्यादा होती है और किसी में बुराई। लेकिन ईश्वर तो सिर्फ़ अच्छाई से ही समृद्ध है। अगर ऐसा नहीं होता, तो शैतान और उसमें फ़र्क़ क्यों होता? बड़ी हैरानी होती है, जब कोई यह कहता है कि पाप करने के बाद ईश्वर माफ़ कर देता है। अगर ऐसा होता, तो दुनिया के सारे पापी तर जाते और आज कोई भी अपने पापों का भोग नहीं भोग रहा होता। सभी का भाग्य चमक रहा होता। दुनिया में असमानता और नसीबों का खेल नहीं होता। अलग-अलग दण्ड भुगतने का प्रावधान नहीं होता। लोग अलग-अलग भोग नहीं भोग रहे होते। किसी भी बुरे या अनैतिक काम को बुरा नहीं कहा जाता।

दरअसल ईश्वर पापियों को माफ़ नहीं करता। वह तो ख़ुद निष्पाप और कर्म-अकर्म से परे है। इसीलिए कहा गया है कि जो भी निष्काम और निश्छल होकर ईश्वर की शरण में जाता है, ईश्वर उसके मन को निर्मल और निष्पाप कर देता है। अर्थात् जो ईश्वर के विधान को मानते हुए उसकी भक्ति करता है, उसका मन पाप करने की कल्पना तक नहीं करता। मन निर्मल-पावन हो जाता है; और बुद्धि शुद्ध हो जाती है। इससे इंसान पाप करने से बच जाता है। न कि पापियों को वह माफ़ कर देता है। अगर ऐसा होता, तो बड़े-बड़े पापियों को संसार बुरा नहीं कह रहा होता; न ही कोई पाप करने के बाद पछताता; और न अन्त में किसी की दुर्गति होती। क्योंकि पापी-से-पापी आदमी भी यही सोचता है कि वह जो कर रहा है, उसमें ईश्वर की ही मर्ज़ी है। हो सकता है कि कोई ऐसा न भी सोचे; लेकिन अन्त में हर आदमी ईश्वर को याद ज़रूर करता है। भले ही वह अपने पापों की क्षमा माँगने के लिए ऐसा करे।

इसलिए पाप करने से बचो और ईश्वर की शरण में पाप करने के बाद जाने के बजाय, पाप करने से पहले ही जाओ; ताकि तुम पाप करने से बच सको। अन्यथा आपको अपने किये कर्मों के साथ-साथ पापों का फल भी भोगना ही पड़ेगा। धर्म का रास्ता दिखाने वाले जो लोग यह कहते हैं कि उसकी शरण में गये, तो आपके पाप-कर्मों को ईश्वर माफ़ कर देगा; तो ऐसे लोग आपको गुमराह कर रहे हैं। वे लोग ख़ुद धर्म पर नहीं हैं। क्योंकि उनके मन में भी कहीं-न-कहीं पाप पल रहा है। और जिनका मन ख़ुद निष्पाप नहीं है, वे दूसरों को निष्पाप होने का मार्ग कैसे दिखा सकते हैं? अगर किसी को सत्कर्मों का सुफल मिल सकता है, तो बुरे कर्मों की सज़ा क्यों नहीं मिलेगी? कई लोगों में यह भ्रान्ति फैली है कि अगर उनसे जीवन में कोई पाप हुआ भी है, तो अन्त में वो अपने तीर्थस्थल जाकर या फिर ईश्वर का नाम लेकर उस पाप से बच जाएँगे। अगर ऐसा होता, तो तीर्थ स्थलों या विभिन्न धर्मों के पूजा-स्थलों के पास रहने वालों का तो उद्धार हो गया होता!

दरअसल भ्रांतियाँ और विसंगतियाँ धर्म के वही ठेकेदार फैलाते हैं, जो अपनी प्रभुता बचाये और बनाये रखने के लिए ईश्वर को भी मेरे-तेरे में बाँटने का ढोंग करके लोगों को बाँटे रखते हैं। समझने वाली बात यह है कि जिनको यह भी अक्ल नहीं कि ईश्वर एक ही है; वे भला दूसरों को रास्ता कैसे दिखा सकते हैं? जो ख़ुद ही धर्म से बुरी तरह भटके हुए हैं, उनका बताया धर्म का रास्ता कैसे सही हो सकता है? जो लोग ख़ुद निष्पाप नहीं हैं, वे दूसरों को निष्पाप किसी विधान अथवा पूजा-इबादत आदि से कैसे कर सकते हैं? वैसे भी अगर कोई निष्पाप नहीं है, तो कोई भी पूजा-इबादत, तीर्थ उसे निष्पाप नहीं कर सकता। सोना भी आग में तपने से कुंदन होता है, धोने से नहीं। इसी तरह आदमी भी सत्य, तपस्या, ईमानदारी, अहिंसा और मेहनत की भट्ठी में तपकर ही शुद्ध अर्थात् निष्पाप हो सकता है। और यह वही कर सकता है, जिसके मन में ईश्वर का डर है। अन्त में अपना एक दोहा, आपके लिए-

‘‘अन्धा बन खोजत फिरै, पारब्रह्म को मूढ़।

ब्रह्म ज्ञान से सूक्ष्म है, दीप प्रेम लै ढूँढ।।’’

भाजपा और सपा में गैर यादव वोट बैंक पर सेंध लगाने की होड़

उत्तर प्रदेश की सियासत में अब नये-नये समीकरण ऊभरकर सामने आ रहे है। जो पिछले चुनावों से लेकर  2017 में दांव चले गये थे। वो इस बार नहीं चले जा रहे है। क्योंकि राजनीति में अनुभव का अपना महत्व है। इस बार पुराने अनुभवों को देखते हुये समाजवादी (सपा) पार्टी ने मुस्लिम–यादव (एमबाई) वोटों को साधते हुये गैर यादव पिछड़ी जातियों जिनमें कुर्मी, लोधी, प्रजापति और शाक्य आदि जातियों को महत्व दिया है।

सपा का कहना है, कि भाजपा ने 2017 में गैर यादव पिछड़ी जाति को महत्व दिया था। इस लिहाज से भाजपा को काफी बढ़त उत्तर प्रदेश के चुनाव में मिली थी। उसी रणनीति के तहत सपा ने गैर यादव वाली पिछड़ी जाति को महत्व दिया है। क्योंकि सपा जानती है और मानती भी है। सपा के साथ यादव-मुस्लिम है। यानि का उनका वोट बैंक यादव–मुस्लिम कहीं जाने वाला नहीं है। ऐसे में भाजपा का जो वोट बैंक गैर यादव है। उसमें सेंध लगायी जाये।

जबकि भाजपा का मानना है कि (सपा) में यादव–मुस्लिम ही को महत्व मिलता है। इसलिये गैर यादव वोट बैंक भाजपा के साथ है। सपा की तुलना में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गैर यादव को टिकट दिये है। उत्तर प्रदेश की सियासत के जानकार मिथलेश सिंह का कहना है कि बसपा की राजनीति सोशल इंजीनियरिंग पर चल रही है और दलित वोट बैंक को सांधकर चल रही है।

जबकि कांग्रेस अपने खोये हुये जनाधार को पाने के लिये लगातार संघर्ष कर रही है। इसलिये प्रदेश में असली मुकाबला सपा और भाजपा के बीच है। इन दोनों पार्टियों में पिछड़ी जातियों के वोट बैंक पर सेंध लगाने की होड़ मची हुई है।

आर्थिक सर्वे में 2022-23 में जीडीपी दर 8-8.5 फीसदी रहने का अनुमान

केंद्र सरकार ने अपने आर्थिक सर्वे में 2022-23 के माली साल के दौरान जीडीपी की दर 8 से 8.5 फीसदी के बीच रहने का अनुमान जताया है। यहाँ यह दिलचस्प है कि  वर्तमान वित्त वर्ष के जीडीपी अनुमान 9.2 फीसदी कम है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2021-22 के आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट संसद में पेश की। इसमें वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के 8 से 8.5 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। उधर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुमान के मुताबिक आर्थिक वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत रह सकती है।

रिपोर्ट में 2021-22 में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की वास्तविक स्थिति के अलावा बढ़ौतरी में तेजी लाने के लिए किए ज़रूरी सुधारों का भी ब्योरा दिया गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी।  आर्थिक समीक्षा भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए आपूर्ति-पक्ष के मसलों पर केंद्रित है।

अब सीतारमण मंगलवार को संसद में माली साल 2022-23 के लिए बजट पेश करेंगी। आज आर्थिक सर्वेक्षण संसद में दोनों सदनों के पटल पर रखने के बाद लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई।

अखिलेश, चन्नी, बादल पिता-पुत्र और अमरिंदर ने नामांकन दाखिल किए

उत्तर प्रदश से लेकर पंजाब तक सोमवार को बड़े नेताओं ने अपने-अपने विधानसभा हलकों से नामांकन दाखिल किये। एक तरह से सोमवार का दिन मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्रियों के नामांकन दाखिल करने का दिन रहा।

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश ययादव ने उत्तर प्रदेश में करहल हलके से नामांकन दाखिल किया जबकि पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भदौर से बतौर कांग्रेस उम्मीदवार और सुखबीर सिंह बादल ने जलालाबाद से बतौर शिअद उम्मीदवार नामांकन दाखिल किया। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब के लम्बी और कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने पटियाला शह्र्री सीट से नामांकन दाखिल किया।

सपा के अखिलेश यादव ने मैनपुरी में एसडीएम कार्यालय में परचा दाखिल किया। उनके साथ पार्टी के नेता भी थे। अखिलेश इस समय सांसद भी हैं। नामांकन के बाद अखिलश ने भाजपा पर हमला किया और कहा कि प्रदेश की जनता अब बदलाव चाहती है।

पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भदौर सीट से नामांकन दाखिल किया।  नामंकन के बाद मीडिया के लोगों से बात करते हुए चन्नी ने कहा – ‘मालवा का इलाका  बहुत पिछड़ा हुआ है। हमारी कोशिश उसे ऊपर उठाने की है।’ बता दें चन्नी को कांग्रेस आलाकमान ने दो जगह से चुनाव में उतारा है। उन्हें पार्टी की तरफ से दोबारा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया जा रहा है।

इस बीच पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री और शिअद नेता सुखबीर सिंह बादल ने भी आज जलालाबाद सीट से नामांकन दाखिल किया। बादल भी इस समय लोकसभा के सदस्य हैं।

आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा देश, संसद अभिभाषण में कहा राष्ट्रपति ने

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि देश आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है और सरकार की नीतियां इसमें अहम रोल अदा कर रही हैं। बजट सत्र के पहले दिन संसद के दोनों सदनों के साझे अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में केंद्र सरकार के कार्यों का लेखा जोखा प्रस्तुत किया और भविष्य के लिए सकारात्मक संभावनाओं का भरोसा जताया। उन्होंने सैन्य बलों के आधुनिकीकरण की भी बात की और कहा कि इसमें ‘मेक इन इण्डिया’ रोल अहम होता जा रहा है।

अभिभाषण की शुरुआत में राष्ट्रपति कोविंद ने आज़ादी के इन 75 वर्षों में देश की विकास यात्रा में अपना योगदान देने वाले सभी महानुभावों का स्मरण किया। उन्होंने इस मौके पर यह भी कहा कि भारत में बन रही वैक्सीन्स पूरी दुनिया को महामारी से मुक्त कराने और करोड़ों लोगों का जीवन बचाने में अहम भूमिका निभा रही है।

राष्ट्रपति ने कहा विदशी निर्यात बढ़ा है और देश ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनने की दिशा में बढ़ रहा है। उन्होंने अभिभाषण में ग्रीन एक्सप्रेस वेज और ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट्स का भी जिक्र  किया और कहा कि पिछले साल के आखिर काँप 26 सम्मलेन में भारत ने कार्बन उत्सर्जन कम करने का मन्त्र दुनिया को दिया।

उन्होंने सैन्य बलों के आधुनिकीकरण की भी बात की और कहा कि इसमें ‘मेक इन इण्डिया’ रोल अहम होता जा रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने 209 सैन्य उत्पाद विदेश से नहीं खरीदने और 2800 उत्पाद देश में ही ‘मेक इंडिया’ के तहत बनाने का फैसला किया है।

कोविंद ने कहा कि सरकार और नागरिकों के बीच यह परस्पर विश्वास, समन्वय और सहयोग, लोकतन्त्र की ताकत का अभूतपूर्व उदाहरण है। उन्होंने कहा – इसके लिए, मैं देश के प्रत्येक हेल्थ और फ्रंट लाइन वर्कर का, हर देशवासी का अभिनंदन करता हूं।’

कोविड-19 पर राष्ट्रपति ने कहा के खिलाफ इस लड़ाई में भारत के सामर्थ्य का प्रमाण कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम में नजर आया है. हमने एक साल से भी कम समय में 150 करोड़ से भी ज्यादा वैक्सीन डोज़ लगाने का रेकॉर्ड पार किया। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में बन रही वैक्सीन्स पूरी दुनिया को महामारी से मुक्त कराने और करोड़ों लोगों का जीवन बचाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

अभिभाषण में राष्ट्रपति ने कहा – ‘सरकार ने 8000 से अधिक जन-औषधि केंद्रों के माध्यम से कम कीमत पर दवाइयां उपलब्ध कराकर, इलाज पर होने वाले खर्च को कम किया है।’ उन्होंने कहा कि ‘मेरी सरकार की आस्था, अंत्योदय के मूल मंत्र में है, जिसमें सामाजिक न्याय भी हो, समानता भी हो, सम्मान भी हो और समान अवसर भी हों।’

राष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत मेरी सरकार सभी गरीबों को हर महीने मुफ्त राशन दे रही है। बेटे-बेटी को समानता का दर्जा देते हुए मेरी सरकार ने महिलाओं के विवाह के लिए न्यूनतम आयु को 18 वर्ष से बढ़ाकर पुरूषों के समान 21 वर्ष करने का विधेयक भी संसद में प्रस्तुत किया।’

उन्होंने कहा कि आज भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बनकर उभरा है। राष्ट्रपति ने कहा – ‘मेरी सरकार के निरंतर प्रयासों से, भारत एक बार फिर, विश्व की, सर्वाधिक तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है।’

अभिभाषण में राष्ट्रपति ने टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को बधाई दी। उन्होंने कहा – टोक्यो ओलंपिक के दौरान हम सभी ने भारत की युवा शक्ति की क्षमताओं को देखा है। इस अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में अब तक का बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए भारत ने 7 मेडल जीते। टोक्यो पैरालंपिक में भी भारतीय पैरा एथलीटों ने 19 पदक जीतकर रेकॉर्ड कायम किया।’

देश में कोविड मामलों में 10.4 फीसदी की कमी, 24 घंटे में 959 लोगों की मौत

देश में हाल के दो हफ़्तों में कोविड के मामलों में आई तेजी अब ढलान की तरफ दिख रही है। वैसे पिछले 24 घंटे में देश भर में 959 लोगों की इस महामारी से मौत भी हुई है, हालांकि इनमें केरल में हुई 374 मौतों का बैकलॉग शामिल है। इन घंटों में कोरोना के 2,09,918 नए मामले सामने आए हैं जो एक दिन पहले के मुकाबले 10.4 फीसदी कम हैं जब 2.34 लाख मामले आए थे।

सरकार की तरफ से आज सुबह देश में सक्रिय मामलों में भी कमी दर्ज की गई है। सक्रिय मामले घटकर 18,31,268 रह गए हैं, जबकि एक दिन पहले यह संख्‍या 18.84 लाख थी। कोरोना के चलते पिछले 24 घंटे में 959 मौतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से 374 केरल में हुई मौतों का बैकलॉग जोड़ा गया है।

कोरोना से ठीक होने वाले लोगों की बात करें तो पिछले 24 घंटे के दौरान 2,62,628 लोग ठीक हो चुके हैं, जिसके बाद ठीक होने वाले लोगों की कुल संख्‍या बढ़कर के 3,89,76,122 तक पहुंच गई है। फिलहाल देश में सक्रिय मामले कुल मामलों का 4.43 फीसदी हैं।

उधर देश का रोजाना का पॉजिटिविटी रेट 15.77 फीसदी दर्ज किया है, जबकि साप्ताहिक पॉजिटिविटी रेट 15.75 फीसदी है। साथ ही रिकवरी रेट 94.37 फीसदी है। इस बीच पिछले 24 घंटे में 13,31,198 कोरोना टेस्‍ट किए गए हैं, जिससे देश में अब तक कुल 72.89 करोड़ कोरोना टेस्ट किए जा चुके हैं। अब तक 166.03 करोड़ लोगों को वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है।

बजट सत्र आज से, राष्ट्रपति अभिभाषण होगा और आर्थक सर्वे रिपोर्ट पेश होगी

तहलका ब्यूरो
संसद का बजट सत्र सोमवार (आज) से शुरू हो रहा है। जहाँ विपक्ष विभिन्न मुद्दों के साथ सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है, वहीं सरकार इस दौरान बजट पेश करेगी और कई बिल भी पेश किये जाएंगे। आज बजट सत्र की शुरुआत दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से होगी। आज ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी आर्थिक सर्वेक्षण की प्रति सदन के पटल पर रखेंगी।पहले दिन लोकसभा की कार्यवाही 11 बजे से कुछ पहले जबकि राज्यसभा की कार्यवाही दोपहर ढ़ाई बजे शुरू होगी। सीतारमण वित्त वर्ष 2022-23 का बजट कल (मंगलवार) सुबह 11 बजे लोकसभा में पेश करेंगी। राज्यसभा की कार्यवाही बजट भाषण के एक घंटे बाद शुरू होगी और वहां भी सदन पटल पर बजट की प्रति रखी जाएगी।

आज राष्ट्रपति दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को सेंट्रल हॉल में संबोधित करेंगे। इसमें सरकार की उपलब्धियों का लेखा-जोखा रखेंगे साथ ही सरकार भावी योजनाओं का जिक्र होगा। इसके बाद वित्त मंत्री 2021-22 का आर्थिक सर्वेक्षण सदन में पेश करेंगी। इसमें देश के आर्थिक हालात की झांकी भी मिलेगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन की कार्यवाही से पहले सुबह 10 बजे मीडिया को संबोधित करेंगे। राष्ट्रपति का अभिभाषण सुबह 11 बजे शुरू होगा। उनके अभीभाषण के आधे घंटे बाद लोकसभा की कार्यवाही शुरू होगी। इसके बाद आर्थिक सर्वेक्षण पेश होगा और फिर लोकसभा की कार्यवाही आज के लिए स्थगित हो जाएगी।

राज्यसभा में दोपहर 2.30 बजे कार्यवाही शुरू होगी और वित्त मंत्री आर्थिक सर्वेक्षण पेश करेंगी। इसके बाद राज्यसभा की कार्यवाही भी स्थगित हो जाएगी। शाम पौने चार  बजे मुख्य आर्थिक सलाहकार मीडिया से रू-ब-रू होंगे।

उधर विपक्ष जोर-शोर से सरकार को घेरने की तैयारियां कर रहा है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस पहले ही साफ़ कर चुकी है कि वह महंगाई, बेरोजगारी, देश की सम्पतियों को बेचने, चीन के साथ जारी गतिरोध, एयर इंडिया और दूसरी सरकारी कंपनियों के निजीकरण, किसानों का मसला, पेगासस के जरिये देश के नागरिकों की जासूसी, कोविड प्रभावितों को मदद और अन्य मुद्दों पर सरकार से जवाबतलबी करेगी। दूसरे विरोधी दल भी कह रहे हैं कि सरकार नाकाम साबित हुई है और जनता उससे तंग है। बजट सत्र पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर में विधानसभा चुनावों के बीच हो रहा है लिहाजा इसका राजनीतिक महत्व भी काफी है।

बता दें बजट सत्र के दौरान कुल 29 बैठकें होंगी, जिसमें पहले चरण में 10 बैठक और दूसरे चरण में 19 बैठकें होंगी। बजट सत्र का आयोजन ऐसे समय हो रहा है, जब पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

विधानसभा चुनाव : उत्तर प्रदेश में छोटे दल भी अहम् है

तहलका ब्यूरो
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख ज्यों –ज्यों
नजदीक आती जा रही है। त्यों-त्यों चुनावी माहौल का
मिजाज कुछ और ही बता रहा है। बताते चलें ये कि
चुनाव में जो एक माहौल ऐसा भी बनाया गया है कि सपा
और भाजपा के बीच ही कड़ा मुकाबला है। जबकि छोटे
–छोटे दल के नेताओं का मानना है। कि चुनाव परिणाम
कुछ भी हो, लेकिन वे निर्णायक भूमिका शामिल
होगे।चुनाव में कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा भले ही
बड़ी पार्टियां है। लेकिन जो छोटी –छोटी पार्टियां जो इस
बार उभर कर सामने आयी है। और उन्होंने गठबंधन कर
चुनावी ताल ठोंकी है। उसके सीधे मायने साफ निकालें जा
सकते है। कि सत्ता में भागीदारी चाहती है। महानदल
के नेता केशव देव मोर्य, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी
के नेता ओमप्रकाश राजभर, निषाद पार्टी के अध्यक्ष

संजय निषाद और अपना दल जो दो भांगों में बंट गया
है। जिनमें से एक है पल्लवी पटेल के हाथ में है जिन्होंने
अपना दल (कमेरावादी )का गठन कर समाजवादी के साथ
गठबंधन किया है। जबकि उसकी सगी बहन अनुप्रिया
पटेल ने अपना दल (एस) का गठबंधन भाजपा के साथ
किया है।वहीं अन्य छोटे दल गठबंधन कर चुनावी समर
में हर हाल में जीत का दावा कर रहे है।
उत्तर प्रदेश की सियासत के जानकार सचिन सिंह का
कहना है कि उत्तर प्रदेश चुनाव सदैव से महत्वपूर्ण रहा है।
क्योंकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही गुजरता है।
इसलिहाज से बड़े दलों के साथ जो छोटे दल चुनावी भंवर
में है कड़ी मेहनत कर वे हर हाल में चुनाव जीतना चाहते
है। उनको इस बात का भी अंदाजा है कि कई बार बड़े
दल सरकार बना पाने लायक बहुमत नहीं ला पाते है। तो
ऐसे में दो-चार विधायकों वाली पार्टी भी सरकार बनाने में

अहम् रोल ही नहीं निभाती है। बल्कि सरकार में अपनी
दखल के साथ मनमाफिक मंत्रालय हासिल भी करती है।