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राज्य सरकारों का बजट 2022-23

केंद्र सरकार के बजट के बाद हमारे देश में राज्य सरकारें अपना-अपना बजट पेश करती हैं। इस साल के केंद्रीय बजट से मध्यम और निम्न वर्ग ख़ुश नहीं हुआ; क्योंकि उसे सरकार ने कोई राहत नहीं दी।

हालाँकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बजट को 25 साल आगे का अमृत-काल का बजट बताया, जो कि किसी के गले नहीं उतरता। लेकिन सरकार का कहना है कि इस बजट में आधारभूत संरचना और आर्थिक विकास पर ज़ोर दिया गया है। इस साल के कुल 39.45 लाख करोड़ रुपये के बजट में सरकार ने क्रिप्टो करेंसी की बात भी कही। हालाँकि यह एक बीती हुई बात हो गयी है और लोगों का ध्यान अब इस बजट पर से तक़रीबन हट चुका है। लेकिन ख़ास बात यह है कि केंद्र सरकार के वित्तीय वजट के बाद राज्य सरकारें भी अपना-अपना बजट पेश करती हैं, जो कि केंद्रीय बजट से काफ़ी प्रभावित होता है। लेकिन इस बार पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने के चलते, कई राज्य सरकारों ने अपने बजट में जनता को उतना नज़रअंदाज़ नहीं किया है, जितना कि केंद्र सरकार ने अपने बजट में किया। अब तक देश की कई राज्य सरकारें अपना बजट पेश कर चुकी हैं और 31 मार्च तक कई राज्य सरकारें अपना बजट पेश भी करेंगी।

चुनावी राज्यों में चुनाव बाद बजट

1 फरवरी से लेकर अब तक कई राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों का बजट पेश कर चुकी हैं। लेकिन इनमें एक भी राज्य ऐसा नहीं है, जहाँ विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। ख़ास बात यह है कि इन पाँच राज्यों में से चार में भाजपा की सरकार है। वहीं एक में कांग्रेस की सरकार है। जिन राज्यों में अभी चुनाव नहीं हैं, उनमें से राजस्थान, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, हरियाणा आदि राज्यों में बजट पेश कर दिया गया है। ख़ास बात यह है कि केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों का इस वित्त वर्ष का बजट कोरोना महामारी की तीसरी लहर के बीच का बजट है, जिसे लेकर केंद्र सरकार तो लोगों को हताश कर चुकी है। लेकिन राज्यों के लोगों में अपनी-अपनी सरकारों से काफ़ी उम्मीदें हैं। उन्हें क्या मिलेगा और बजट पेश करने वाली सरकारों ने क्या दिया? यह देखने वाली बात है।

उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना 2022-23 का बजट पेश नहीं किया है। हालाँकि इस बजट को पेश करने की तैयारी सरकार ने कर ली है। उत्तर प्रदेश सरकार 01 अप्रैल से सभी तरह की वित्तीय स्वीकृतियाँ ऑनलाइन जारी करने का विचार कर चुकी है। लागू करने जा रही है। वित्त विभाग की सहमति से जारी होने वाली इन स्वीकृतियों के प्रस्ताव वित्त विभाग को ई-ऑफिस से ऑनलाइन भेजे जा रहे हैं। हालाँकि इन वित्तीय स्वीकृतियों के लिए आलेख प्रस्ताव के साथ न भेजकर पीडीएफ के रूप में भेजे जा रहे हैं। इनका वित्तीय प्रबन्धन भी ठीक नहीं बताया जा रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 से बजट पुनर्विनियोग (विभाग के अन्दर एक मद का बजट दूसरे मद में हस्तांतरण) के प्रस्ताव भी ऑनलाइन बजट एलॉटमेंट सिस्टम के ज़रिये वित्त विभाग को भेजे जाएँगे। बजट प्रबन्धन प्रणाली का प्रशिक्षण 21 फरवरी से शुरू हो चुका है।

उत्तराखण्ड : उत्तराखण्ड की सरकार ने भी बजट पेश नहीं किया है। वहाँ भी विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद ही बजट पेश किया जाएगा।

गोवा : गोवा सरकार ने भी इस वित्त वर्ष 2022-23 का बजट पेश नहीं किया है। वहाँ भी चुनावों के परिणाम घोषित होने के बाद बजट पेश किया जाएगा।

मणिपुर : मणिपुर सरकार ने भी अभी अपना बजट पेश नहीं किया है। ज़ाहिर है वहाँ भी नयी सरकार बनने के बाद ही बजट पेश होगा।

पंजाब : पंजाब सरकार भी मार्च के अन्त में बजट पेश करेगी। हालाँकि पंजाब अकेला ऐसे राज्य है, जहाँ दो बजट पेश किये जाते हैं। एक बजट सरकार पेश करती है और एक बजट शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी पेश करती है। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से भी 31 मार्च तक एसजीपीसी के जनरल हाउस में बजट पेश किया जाएगा। इसके लिए एसजीपीसी कार्यकारिणी कमेटी की ओर से बैठक 8 मार्च को हो चुकी है। अनुमान है कि वर्ष 2022-23 के लिए गोलक आमदनी 715 करोड़ रुपये और बजट 970 करोड़ रुपये रखे जाने की सम्भावना है। यह बजट गुरुद्वारों की देखरेख, लंगर, लोगों की सेवा आदि के लिए पेश किया जाता है।

दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिल्ली सरकार इसी महीने के आख़िर में अपना बजट पेश करेगी। इसके लिए दिल्ली सरकार ने आम जनता से सुझाव भी माँगे हैं, जिसके लिए रिपोर्ट लिखे जाने तक क़रीब 6,000 सुझाव आ चुके थे। बता दें कि दिल्ली सरकार पहली ऐसी सरकार है, जो बजट में आम लोगों की राय को शुमार करती है और उस पर काम भी करती है। इसी साल अप्रैल में दिल्ली नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं।

चुनावी राज्यों को केंद्र ने क्या दिया?

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र जीत के लिए केंद्र सरकार ने चुनावी राज्यों के लिए कुछ ख़ास घोषणाएँ इस बार अपने बजट में कीं। ख़ास बात यह है कि इन पाँचों राज्यों में से चार राज्यों, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा, मणिपुर में भाजपा की सरकार पिछले पाँच साल रही है और पंजाब में कांग्रेस की। ऐसे में यह देखना चाहिए कि इस चुनावी दौर के मद्देनज़र किस राज्य पर केंद्र सरकार कितनी मेहरबान रही है?

केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश में अतिरिक्त 30,000 करोड़ ख़र्च करेगी। केंद्र सरकार ने अपने बजट में 1 फरवरी को पेश अपने बजट में उत्तर प्रदेश के लिए कई घोषणाएँ कीं, जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश को कर (टैक्स) के रूप में 146,498.76 करोड़ रुपये की प्राप्ति होगी। इसमें से वित्त आयोग द्वारा अनुदान के रूप में 15,003 करोड़ रुपये, स्वच्छ भारत मिशन के तहत गाँवों के लिए 1,900 करोड़ रुपये, जल जीवन मिशन के लिए 12,000 करोड़ रुपये, शिक्षा अभियान के लिए 6,241.06 करोड़ रुपये, नदी विकास और गंगा कायाकल्प के कार्यक्रमों के लिए 957 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय राजमार्ग की योजनाओं के लिए 16,350 करोड़ रुपये का आवंटन किये जाने की बात कही गयी। इसके अलावा किसानों को एमएसपी सीधे खातों में दी जाएगी, जो कि सभी राज्यों में लागू होगी।

उत्तराखण्ड में रोपवे विकास और रेल कनेक्टिविटी बढ़ाने की बात इस बजट में कही गयी है। बजट में 60 किमी की आठ रोपवे परियोजनाओं के अलावा रेलवे विस्तार और सीमांत प्रदेश में नये एक्सप्रेस-वे के निर्माण करने को कहा गया है। तीन प्रमुख रोपवे में रुद्रप्रयाग ज़िले में सोनप्रयाग-गौरीकुठ से केदारनाथ मन्दिर तक, चमोली ज़िले में गोविंदघाट-घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक और नैनीताल में रानीबाग़ से हनुमान मन्दिर तक रोपवे लिंक शामिल हैं।

वहीं गोवा, मणिपुर और पंजाब के लिए केंद्रीय बजट में कुछ ख़ास नहीं दिखा। इन राज्यों के हिस्से मिले-जुले विकास की योजनाएँ आएँगी, जिसमें सडक़ों का विकास, किसानों के लिए एमएसपी आदि कॉमन है। वैसे पूर्वोत्तर राज्यों, जिनमें मणिपुर शामिल है; के विकास के लिए केंद्र सरकार ने 2022 में हर घर में जल का लक्ष्य पूरा करने की बात कही है।

बजट पेश करने वाले राज्य

अभी तक कई राज्य बजट पेश कर चुके हैं, इनमें से कुछ के चुनाव इस साल के अन्त में और अगले साल के शुरू में होंगे। देखते हैं, इन राज्यों ने किस तरह का बजट पेश किया है।

हिमाचल प्रदेश : हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपना पाँचवाँ बजट में कई बार नयी योजनाएँ शुरू करने का जोखिम उठाया है। उन्होंने पहला बजट 41,440 करोड़ रुपये का, दूसरा बजट 36,089 करोड़ रुपये का, तीसरा बजट 49,131 करोड़ रुपये का, चौथा बजट 50,192 करोड़ रुपये का और अब साल 2022-23 का पाँचवाँ अनुमानित बजट 51,365 करोड़ रुपये का पेश किया। नये बजट में उन्होंने प्रदेश में सभी वर्गों के लिए कुछ-न-कुछ देने की घोषणा की, जिसमें 30,000 से अधिक नौकरियाँ, मेडिकल डिवाइस पार्क का निर्माण, न्यूनतम दिहाड़ी 350 रुपये करने, क़रीब डेढ़ लाख कर्मियों, श्रमिकों, पैरा वर्करों आदि का मानदेय बढ़ाने और 60 साल के बाद सभी ज़रूरतमंदों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन दिलाने जैसी घोषणाएँ शामिल हैं। इस बजट में आउटसोर्स कर्मचारियों की दिहाड़ी न्यूनतम 4,200 रुपये प्रति माह बढ़ाकर 10,500 रुपये महीना करने, पंचायत चौकीदारों को 6,500 रुपये महीना देने, आँगनबाड़ी कार्यकताओं का मानदेय 9,000 रुपये महीना, आँगनबाड़ी कार्यकताओं का मानदेय 6,100 रुपये महीना, आँगनबाड़ी सहायिकाओं और आशा वर्कर्स का मानदेय 4,700 रुपये महीना, सिलाई अध्यापिकाओं का मानदेय 7,950 रुपये महीना और मिड-डे मील वर्कर्स का मानदेय 3,500 रुपये महीना करने का निर्णय लिया गया है।

राजस्थान  : राजस्थान सरकार ने भी अपना 2022-23 का बजट पेश कर दिया है। 23 फरवरी, 2022 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा में पेश किये बजट 2,38,465.79 करोड़ रुपये के राजस्व के व्यय का अनुमान जताया। राजस्थान में 2022-23 के बजट अनुमानों में राजस्व घाटा 23,488.56 करोड़ रुपये है। वहीं राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.36 फ़ीसदी यानी 58,211.56 करोड़ रुपये है। लेकिन सरकार ने शहरी क्षेत्र में रोज़गार हेतु इंदिरा गाँधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना लागू करने, पुरानी पेंशन योजना लागू करने, घरेलू उपभोक्ताओं को 100 यूनिट प्रति माह मुफ़्त उपभोग करने पर 50 यूनिट बिजली मुफ़्त देने, चिरंजीवी योजना में प्रति परिवार का सालाना चिकित्सा बीमा पाँच लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने, मुख्यमंत्री चिरंजीवी दुर्घटना बीमा योजना के तहत पाँच लाख रुपये का कवर लागू करने, रोड सेफ्टी अधिनियम लाने, राजस्थान पब्लिक ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का गठन करने, जयपुर में स्टेट रोड सेफ्टी इंस्टीट्यूट स्थापित करने, कृषि बजट के तहत समेकित निधि, राज्य की स्वायत्तशाषी, सहकारी एवं अन्य संस्थाओं के स्वयं के संसाधनों सहित कुल राशि 78,938.68 करोड़ रुपये का कृषि विकास एवं किसानों के कल्याण हेतु योजनाओं को परवान चढ़ाने, मुख्यमंत्री कृषक साथी योजना की राशि 2,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 5,000 करोड़ रुपये करने, 100 करोड़ रुपये का ईडब्लूएस कोष बनाने को कहा है।

झारखण्ड : झारखण्ड सरकार ने अपने 2022-23 के बजट में 1.01 लाख करोड़ रुपये की राशि राज्य के विकास कार्यों के लिए निर्धारित की है। झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने इसके तहत 59 फ़ीसदी पूँजीगत व्यय की वृद्धि करने का प्रस्ताव रखा है। सरकार का कहना है कि आगामी वित्त वर्ष में झारखण्ड के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए गुरुजी क्रेडिट कार्ड स्कीम, ग़रीब और किसानों पर बिजली का बोझ कम करने के लिए ऐसे प्रत्येक परिवारों को मासिक 100 यूनिट बिजली मुफ़्त देने, स्टेट फंड से एक अतिरिक्त कमरे के निर्माण के लिए 50,000 रुपये प्रति आवास उपलब्ध कराने, शिक्षकों के मानदेय मद में 600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान करने, कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र में 4,091.37 करोड़ रुपये ख़र्च करने का प्रावधान है। इसके अलावा राज्य में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा में शिक्षकों के रिक्त पड़े 1,363 पदों पर नियुक्तियाँ करने, कुल 33 नये डिग्री कॉलेजों / महिला कॉलेजों में सभी प्रकार के पदों के सृजन करने गोला में डिग्री कॉलेज के निर्माण करने की बात भी कही गयी है।

गुजरात : गुजरात सरकार ने भी 2022-23 के लिए 2,43,965 करोड़ रुपये का बजट पेश कर दिया है। इस वित्त वर्ष में गुजरात सरकार ने तीन नये मेडिकल कॉलेज खोलने, कोई नया टैक्स नहीं लगाये जाने, 80 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए 1,250 और 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए 1,000 रुपये पेंशन दिये जाने, 4,000 गाँवों को मुफ़्त वाईफाई देने, सुरेंद्रनगर में आयुर्वेदिक कॉलेज, नवसारी ज़िले के बिलिमोरा में सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल की स्थापना करने, मोरबी में 400 करोड़ रुपये की लागत से विश्व स्तरीय अंतरराष्ट्रीय सिरेमिक पार्क स्थापित करने, पीएचडी छात्रों को एक लाख रुपये की सहायता देने, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को 1,000 दिनों तक हर महीने एक किलो तुअरदाल, दो किलो चना और एक किलो खाद्य तेल मुफ़्त देने, मुख्यमंत्री गोमाता पोषण योजना के लिए 500 करोड़ रुपये के आवंटन करने, उत्कृष्ट विद्यालय का शुभारम्भ करने के लिए 10,000 करोड़ रुपये का आवंटन करने, कच्छ में बड़े चेक डैम के निर्माण के लिए 65 करोड़ रुपये का आवंटन करने, बनासकांठा में सिंचाई के लाभ के लिए 70 करोड़ रुपये का आवंटन करने, धरोई बाड़े को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए 200 करोड़ रुपये का आवंटन करने, अहमदाबाद ज़िले के नलकांठा क्षेत्र के गाँवों की सिंचाई के लिए 25 करोड़ रुपये का आवंटन करने, कृषि विभाग के लिए 7,737 करोड़ रुपये का आवंटन करने, प्रदेश में प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड का गठन करने, जल संसाधन विभाग के लिए 5,339 करोड़ रुपये का आवंटन करने, जलापूर्ति विभाग के लिए 5451 करोड़ रुपये का आवंटन करने, स्वास्थ्य विभाग के लिए 12,240 करोड़ रुपये का आवंटन करने की बात कही है।

बिहार : बिहार सरकार ने भी 2022-23 के लिए बजट पेश कर दिया है। बिहार के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद ने कुल 2,37,691.19 करोड़ रुपये का बजट पेश किया है, जिसमें स्कीम मद में 1,00,230.25 व स्थापना मद में 1,37,460.94 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस बजट में वेतन-भत्ता भुगतान के लिए 79.10 करोड़ रुपये, 25 नयी इलेक्ट्रिक बसों का परिचालन करने, रोज़गार सृजन करने, ग़रीबों का कल्याण करने जैसी योजनाएँ हैं।

मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश सरकार ने इस वित्त वर्ष का बजट काफ़ी हंगामे के बीच पेश किया। राज्य के वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा ने 2 लाख 79,237 करोड़ रुपये के इस बजट में कई घोषणाएँ कीं, जिनमें लाडली लक्ष्मी योजना का विस्तार, साढ़े सात लाख सरकारी कर्मचारियों का महँगाई भत्ता 20 फ़ीसदी से बढ़ाकर 31 फ़ीसदी करने, पीपीपी मॉडल के तहत 217 इलेक्ट्रॉनिक व्हिकल चार्जिंग स्टेशन बनाने, उच्च शिक्षा के लिए भी वित्तीय सहायता देने, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना फिर से शुरू करने जैसी योजनाओं की घोषणा की। इसी तरह तेंदुपत्ता संग्रह करने वालों को पारिक्षमिक 70 फ़ीसदी से बढ़ाकर 75 फ़ीसदी करने, 4,000 किलोमीटर सडक़ें बनाने जैसी घोषणाएँ भी की हैं।

हरियाणा : हरियाणा सरकार ने 8 फरवरी को अपना बजट 2022-23 1.77 लाख करोड़ रुपए का रखा है। यह वित्त वर्ष 2021-22 से 0.24 लाख करोड़ रुपये ज़्यादा रहा।

हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में मनोहर लाल खट्टर ने अपना इस कार्यकाल का तीसरा बजट हरियाणा विधानसभा में पेश करते हुए महिलाओं के लिए सुषमा स्वराज पुरस्कार की घोषणा की। यह पुरस्कार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए दिया जाएगा। इसी तरह उद्यमी बनने में सहायता देने के लिए हरियाणा मातृशक्ति उद्यमिता योजना शुरू की जाने की बात भी इस बजट में की गयी है।

 

मानवता पर मँडराता ख़तरा

मौज़ूदा वक़्त में सभी की निगाहें रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग और उससे होने वाले नुक़सान का अनुमान लगाने पर टिकी हुई हैं। लेकिन इसी दरमियान विश्व में जलवायु परिवर्तन के प्रति आगाह करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट जारी हुई है। यह रिपोर्ट धरती, मानव, खेती आदि पर मँडरा रहे ख़तरों को हमारे सामने विस्तार से रखती है। जलवायु परिवर्तन पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा हाल ही में जारी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के दूसरे भाग में साफ़ कहा गया है कि अगर कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं हुई, तो निकट भविष्य में गर्मी व उमस इंसान की सहनशीलता की सीमा को पार कर जाएगी। यह ख़तरा भारत समेत कई देशों पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन स्थानों में से एक होगा, जो इन असहनीय परिस्थितियों का अनुभव करेगा। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के वर्किंग ग्रुप की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के मानकों को हासिल करना तो दूर रहा, वातावरण को नष्ट करने वाली गैसों के उत्सर्जन में 14 फ़ीसदी बढ़ोतरी होने जा रही है। कम-से-कम आधी मानवता ख़तरे की ज़द में आ चुकी है।

दरअसल इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित विज्ञान का आकलन करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है। आईपीसी की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम विज्ञानी संगठन द्वारा सन् 1988 में की गयी थी। यह पैनल जलवायु पर परिवर्तन नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य में सम्भावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है। इस पैनल में विभिन्न देशों के वैज्ञानिक शामिल होते हैं। आईपीसीसी क़रीब हर सात वर्षों में एक आकलन रिपोर्ट तैयार करता है। अब तक पाँच ऐसी मूल्यांकन आकलन रिपोर्ट जारी हो चुकी हैं। पाँचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट 2014 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए तैयार की गयी थी। फरवरी, 2015 के 41वें सत्र में यह तय किया गया था कि जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के प्रभावों को शामिल करते हुए नयी आकलन रिपोर्ट 2022 में जारी की जाएगी। ग़ौरतलब है कि आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट का पहला भाग ‘रिपोर्ट ऑन द फिजिकल साइंस बेसिस’ अगस्त, 2021 में जारी किया गया।

इसी का दूसरा भाग ‘इम्पैक्ट्स, अडॉप्टेशन ऑर वल्नेरेबिलिटी’ शीर्षक से 28 फरवरी, 2022 को जारी किया गया है। इस छठी आकलन रिपोर्ट की अन्तिम व तीसरी $िकस्त भी इसी साल जारी की जाएगी। यह रिपोर्ट 67 देशों के 270 वैज्ञानिकों ने तैयार की है और 195 देशों की सरकारों ने इसे मंज़ूरी दी है। छठी आकलन रिपोर्ट के पहले भाग में भी दुनिया के देशों को आगाह किया गया था, अगले 20 सालों में वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा। यदि वर्तमान की तरह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रहा तो 21वीं सदी के मध्य में ही वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा। कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 20 लाख वर्षों में सबसे अधिक है।

समुद्री जलस्तर में वृद्धि 3,000 वर्षों में सबसे तेज़ है। तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि भारी से भारी बारिश की घटनाओं की तीव्रता को और बढ़ा देगी। महासागरों का गर्म होना जारी रहेगा। इसी रिपोर्ट का दूसरा भाग हाल ही मे जारी हुआ है। इसके मुताबिक, प्रदूषण के लिए सबसे बड़े ज़िम्मेदार माने जाने वाले देश भी ख़ुद को तबाह करने पर तुले हुए हैं। इसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि जलवायु परिवर्तन के नुक़सान इंसानों,जानवरों, कृषि, पौधों और पूरी परिस्थितिकी को इस क़दर प्रभावित कर रहे हैं कि उन्हें वापस बहाल करना सम्भव नहीं रह गया है। बेक़ाबू कार्बन प्रदूषण से जोखिम वाले क्षेत्रों को सबसे अधिक ख़तरा होना तय माना गया है। यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन विश्व के सभी हिस्सों को प्रभावित करता है; लेकिन सभी हिस्से समान रूप से प्रभावित नहीं होते। कहीं पर यह प्रतिकूल असर ज़्यादा, तो कहीं उससे कम पड़ता है। पर यह निश्चित है कि इससे हर कोई प्रभावित हो रहा है। इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक पीटर अलेक्जेंडर ने कहा कि इस वजह से हम सब असुरक्षित हैं। वैज्ञानिकों ने किस महाद्वीप में जलवायु परिवर्तन का क्या असर पड़ेगा? इसका अनुमान लगाया है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से चट्टान के पीछे जमा हो सकता है। यह झील के ज़रिये जब चट्टान से होकर तीव्र वेग से आगे बढ़ेगा, तो पर्वतीय समुदाय को अपनी चपेट में ले लेगा। उनकी जान जोखिम में पड़ सकती है। साथ ही मच्छरों की वजह से डेंगू और मलेरिया पूरे एशिया में फैल जाएगा।

यूरोप में बीते कई वर्षों में गर्मी बढ़ रही है। अगर महाद्वीप में ग्लोबल वार्मिंग 3 डिग्री सेल्सियस तक पहुँची, तो यहाँ हालात बहुत ख़तरनाक होंगे। गर्मी से होने वाली मौतों में बहुत वृद्धि होगी। यही नहीं बाढ़ भी अपना कहर ढायेगी। इटली के $खूबसूरत शहर वेनिस के डूबने की आशंका भी व्यक्त की गयी है। उत्तरी अमेरिका की बात करें, तो यहाँ बड़े जगंल की आग जंगलों को और जलाती रहेगी। पश्चिमी अमेरिका व कनाडा में भारी बारिश होगी। इससे बड़े पैमाने पर तबाही होने का अनुमान है। दक्षिण और मध्य अमेरिका के बाबत बताया गया है कि अमेजन के वर्षावन और इसके द्वारा समर्थित हज़ारों विविध पौधे और जानवरों के सूखे के चपेट में आने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन की ज़द में ऑस्ट्रेलिया भी आता है। यहाँ के ग्रेट बैरियर रीफ और केल्प के जंगल भी गर्मी में झुलसेंगे। लू और गर्मी की वजह से पर्यटन राजस्व पर काफ़ी असर पड़ेगा।

विश्व का सबसे गर्म महाद्वीप अफ्रीका में गर्मी में और अधिक इज़ाफ़ा हो सकता है। इससे वहाँ के लोगों के तनाव में आने का ख़तरा बढ़ सकता है। अगर ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाती है, तो यहाँ प्रति एक लाख में कम-से-कम 15 अतिरिक्त लोग भीषण गर्मी की वजह से मारे जाएँगे। भारत को लेकर भी आईसीपीपी की यह आकलन रिपोर्ट कई स्तर पर सचेत करती है। अगर तापमान में वृद्धि जारी रहती है, तो $फसल उत्पादन में तेज़ी से कमी आएगी। जलवायु परिवर्तन और बढ़ती माँग का मतलब है कि भारत में 2050 तक क़रीब 40 फ़ीसदी लोग पानी की कमी के साथ जीएँगे, जो कि इस समय यह संख्या 33 फ़ीसदी है। भारत के कुछ हिस्सों में चावल का उत्पादन 30 और मक्का का 70 फ़ीसदी गिर सकता है। अगर उत्सर्जन में कटौती की जाती है, तो यह आँकड़ा 10 फ़ीसदी हो जाएगा। भारत में जलवायु परिवर्तन का जो असर समुद्र स्तर पर पड़ेगा, वह चौंकाने वाला है। समुद्र स्तर व नदी की बाढ़ से आर्थिक लागत दुनिया में सबसे अधिक होगी। अकेले मुम्बई में समुद्र स्तर में वृद्धि से 2050 तक प्रतिवर्ष 162 अरब डॉलर के नुक़सान की आशंका जतायी गयी है। यही नहीं, भारत दूसरे देशों में जलवायु परिवर्तन की से होने वाले परिणामों से भी प्रभावित होगा। आईपीसीसी की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शहर और शहरी केंद्र वैश्विक तापमान को बढ़ाने में बराबर अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

सिटीस व सेटलमेंट अध्याय की लेखिका अंजलि प्रकाश ने लिखा है कि शहरी भारत पर अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक ख़तरा मँडरा रहा है। क्योंकि एक अनुमान है कि 2050 तक यानी अगले 28 वर्षों में शहरवासियों की आबादी क़रीब 88 करोड़ हो जाएगी, जो कि वर्ष 2020 तक क़रीब 48 करोड़ थी। रिपोर्ट में यह भी ख़ुलासा किया गया है कि आद्र्र्रता व तापमान का संयुक्त पैमाना (वेट बल्ब तापमान) 31 डिग्री तक पहुँच जाएगा, जो मानव जीवन के लिए ख़तरनाक होता है। अगर यह 35 डिग्री तक पहुँच जाए, तो बहुत घातक होता है। भारत में अभी यह 25-30 डिग्री रहता है और शायद ही कभी 31 डिग्री से अधिक होता है।

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है और इसने 2070 तक नेट जीरो के स्तर तक पहुँचने का वादा किया है। बेशक भारत सरकार ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती वाले इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कुछ नीतियाँ बनायी हैं; लेकिन अभी इस दिशा में सरकार को बहुत अधिक काम करने की ज़रूरत है। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुक़सानों पर कभी चुनावी रैलियों में चर्चा नहीं होतीं। राजनीतिक प्रतिबद्धता का अभाव साफ़ दिखायी देता है। जलवायु परिवर्तन सरीखे गम्भीर मुद्दे पर सरकारी नीतियों व कार्यक्रमों की समीक्षा समय-समय पर बहुत ज़रूरी है।

हत्याओं-आत्महत्याओं के दौर में बीएसएफ

व्यक्तिगत समस्याएँ या सीमा पर काम करने की स्थिति से पैदा हो रहा तनाव!

अपनी तरह के पहले  क़दम में देश के सबसे बड़े सीमा-रक्षा बल बीएसएफ ने अपने जवानों के बीच आत्महत्या और अवसाद पर अंकुश लगाने के लिए दो महत्त्वाकांक्षी परियोजना शुरू की और लगभग 2.65 लाख कर्मियों के शक्तिशाली बल का अपनी वार्षिक चिकित्सा परीक्षण (डब्ल्यूक्यूए) शुरू किया। बीएसएफ के ज़िम्मे पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ दो सबसे महत्त्वपूर्ण भारतीय सीमाओं को सुरक्षित करना है। हालाँकि पिछले हफ़्ते अमृतसर में एक सहयोगी द्वारा बीएसएफ के पाँच जवानों की हत्या और एक दिन बाद पश्चिम बंगाल में एक जवान ने अपने सहयोगी की गोली मारकर हत्या कर दी और बाद में ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। यह दर्शाता है कि या तो जवान बहुत तनाव में हैं या उन्हें मानसिक रूप से गहन परामर्श की ज़रूरत है।

पिछले हफ़्ते पंजाब के अमृतसर में पाकिस्तान सीमा के पास एक बटालियन मुख्यालय में बीएसएफ के पाँच जवानों की जान चली गयी। यह तब हुआ जब उनमें से एक ने कथित तौर पर अपने सर्विस हथियार से अपने सहयोगियों पर गोली चला दी और ख़ुद को भी गोली मारकर ख़त्म कर लिया। बीएसएफ ने खासा में 144 बटालियन मुख्यालय में हुई घटना को भाई-भतीजावाद का मामला बताया और न्यायिक जाँच (कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी) के आदेश दिये, जबकि स्थानीय पुलिस ने इसे लेकर मामला दर्ज किया है। बीएसएफ के आईजी (पंजाब) आसिफ़ जलाल ने कहा कि घटना की जाँच की जा रही है। हमने घटना के बाद पुलिस को बुलाया, जो इसकी जाँच करेगी।

इस घटना के एक दिन बाद सीमा सुरक्षा बल के एक जवान ने मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) में एक सीमा चौकी (बीओपी) पर सर्विस राइफल से ख़ुद को मारने से पहले अपने सहयोगी की गोली मारकर हत्या कर दी। बल में इन घटनाओं से कर्मियों में बड़े स्तर पर तनाव का संकेत मिलता है कि इससे निश्चित ही निपटना जरूरी है। यह घटना कोलकाता से क़रीब 230 किलोमीटर दूर भारत-बांग्लादेश मोर्चे पर काकमारीचर बीएसएफ कैंप में हुई। बीएसएफ के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में क़रीब 6:30 बजे 117वीं बटालियन के हेड कांस्टेबल जॉनसन टोप्पो ने हेड कांस्टेबल एच.जी. शेखरन को गोली मार दी और बाद में काकमारीचर सीमा चौकी पर अपनी सर्विस राइफल से ख़ुद को गोली मार ली।

बीएसएफ ने दोनों घटनाओं की जाँच के आदेश दिये हैं। लेकिन व्यावसायिक तनाव, काम करने के विपरीत माहौल की स्थिति, अपर्याप्त अवकाश और सामाजिक जीवन के लिए कम वक़्त के कारण तनाव, आत्महत्या और नौकरी छोडऩे का मुद्दा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ), बीएसएफ, रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) पिछले कुछ समय से इनके नेतृत्व को परेशान कर रहा है। याद रहे सीएपीएफ में जवानों की कुल संख्या एक लाख के क़रीब हैं। तथ्य यह है कि बल के जवानों को भारत-पाक और भारत-बांग्लादेश सीमाओं के साथ दुर्गम और कठोर जलवायु क्षेत्रों में लम्बे समय तक तैनात किया जाता है, जहाँ वे अपने परिवारों से महीनों दूर रहते हैं; क्योंकि उन्हें साथ नहीं रखा जा सकता।

गृह मंत्रालय के आँकड़े

दिसंबर, 2021 में संसद में गृह मंत्रालय द्वारा साझा किये गये आँकड़ों में कहा गया है कि सीएपीएफ में तीन साल (2019 से 2021 तक) में साथियों की हत्या की 25 घटनाएँ दर्ज की गयीं। इनमें से नौ बीएसएफ में रिपोर्ट किये गये थे, जो पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत की सीमाओं की रक्षा करते हैं। सबसे अधिक 12 घटनाएँ सीआरपीएफ में हुईं, जो संख्या के हिसाब से सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल है, जिसमें लगभग 3.25 लाख जवान हैं। सन् 2015 से 2020 के बीच हत्या के अलावा 680 सीएपीएफ कर्मियों ने आत्महत्या की। सीआरपीएफ, जिसकी क़ानून और व्यवस्था और उग्रवाद विरोधी कर्तव्यों में विविध भूमिका है; के बारे में बात करते हुए राज्यसभा की एक विभाग से सम्बन्धित संसदीय समिति ने दिसंबर, 2019 में कहा कि बल में उच्च स्तर का तनाव उच्च दबाव वाले क्षेत्रों में निरंतर तैनाती के कारण था। संघर्ष वाले इस क्षेत्र में वे दयनीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।

समिति ने कहा कि यह स्थिति देश के सबसे बड़े बल सीएपीएफ में जवानों को मानसिक और भावनात्मक तनाव से पीडि़त होने के लिए मजबूर कर रही है। सीआईएसएफ का उदाहरण देते हुए संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि विमानन और मेट्रो सुरक्षा बल में एक कांस्टेबल को 5 साल की पात्रता अवधि के विपरीत 22 साल में हेड-कांस्टेबल के पद पर पदोन्नत किया जाता है, जो मनोबल गिराने का एक बहुत बड़ा कारक है। क्या यह पदोन्नति के अवसरों में कमी या सीमा चौकियों पर काम करने की स्थिति या परिवार से मिलने के लिए अपर्याप्त अवकाश होने के कारण है; यह एक बड़ा सवाल है।

संसदीय पैनल की रिपोर्ट

दिसंबर, 2021 में संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारियों के रैंक (पीबीओआर) से नीचे की बटालियनों में रक्षा बलों के कर्मी 30 दिनों के आकस्मिक अवकाश के हक़दार हैं। और सभी बलों अर्थात् बीएसएफ, एसएसबी, सीआरपीएफ व आईटीबीपपी के सभी रैंक की बटालियनों के कर्मी इसके हक़दार हैं। वे लगभग 15 दिन समान परिचालन चुनौतियों, कठिनाइयों का सामना करते हैं और समान तनाव स्तर रखते हैं। हालाँकि बीएसएफ के महानिदेशक पंकज कुमार सिंह ने कहा- ‘बल में छुट्टी की कोई समस्या नहीं है। वास्तव में जब भी मैं बीएसएफ इकाई का दौरा करता हूँ, तो यह पहला सवाल होता है, जो मैं जवानों से पूछता हूँ। लेकिन किसी ने शिकायत नहीं की है। मैंने उन इकाइयों में मित्र प्रणाली का पालन करने पर ज़ोर दिया है, जहाँ जवान एक-दूसरे के साथ अपनी समस्याएँ साझा कर सकते हैं, ताकि इसे समय पर हल किया जा सके। हाँ, व्यावसायिक तनाव है। लेकिन यह व्यक्तिगत समस्याओं और काम के दबाव दोनों से बनता है।’

एक अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया कि गृह मंत्रालय (एमएचए) ने पिछले साल घोषणा की थी कि वह सीएपीएफ कर्मियों को उनके परिवारों के साथ प्रति वर्ष 100 दिन रहने की सुविधा प्रदान करेगा; लेकिन इसके बारे में कुछ भी नहीं किया गया है। बीएसएफ ने कर्मियों के स्वास्थ्य के लिए एक मूल्यांकन परीक्षण शुरू किया गया है। यह एक बहु-बिन्दु प्रश्नावली है, जिसे जवानों और अधिकारियों के वार्षिक चिकित्सा परीक्षण से जोड़ा गया है। इस प्रश्नावली में कर्मियों को विभिन्न जीवन स्थितियों, चुनौतियों और शर्तों से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर देना होता है। इन सवालों को विशेषज्ञ मानसिक परामर्शदाताओं और डॉक्टरों द्वारा तैयार किया गया है। परीक्षण का उद्देश्य उन सैनिकों की पहचान करना है, जिन्हें सहायता या परामर्श की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में बीएसएफ में शुरू किये गये दूसरे पायलट प्रोजेक्ट को मेंटर-मेंटी सिस्टम कहा जाता है। कुछ मामलों में योग ने पुराने शारीरिक प्रशिक्षण का स्थान ले लिया है।

पिछली घटनाएँ

उच्च तनाव वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने सैनिकों की सेवा के साथ, बीएसएफ ने पहले भी इसी तरह की घटनाएँ देखी हैं। याद रहे 23 सितंबर, 2021 को, दक्षिण त्रिपुरा के गोमती ज़िले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर एक स्थान पर एक विवाद के बीच गोलीबारी में बीएसएफ के दो जवानों की मौत हो गयी थी और एक अन्य घायल हो गया था। अप्रैल, 2019 में उत्तरी त्रिपुरा के पानी सागर में एक बीएसएफ कांस्टेबल ने अपनी जान लेने से पहले दो सहयोगियों को गोली मार दी और घायल कर दिया।

मई, 2018 में बीएसएफ के एक जवान ने ख़ुद को गोली मारने से पहले उत्तरी त्रिपुरा के उनाकोटी ज़िले में अपने तीन सहयोगियों की हत्या कर दी थी। उस महीने के अन्त में बीएसएफ ने अपने सभी सुरक्षा कर्मियों के लिए एक वार्षिक मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण करना अनिवार्य कर दिया। इसके अलावा शारीरिक परीक्षण किये गये थे। बल ने सैनिकों के लिए मनोरंजक समय आवंटित करने और समय-समय पर बैठकें और परामर्श सत्र शुरू करने का भी निर्णय किया।

शिक्षा में सुधार की ज़रूरत

रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में इन दोनों देशों में रह रहे भारतीय नागरिकों और मेडिकल विद्यार्थियों की चर्चा देश भर में ख़ूब रही। ये लोग एक ओर मुसीबत वतन वापसी की चिन्ता में रहे, तो वहीं दोनों युद्धरत देशों के पड़ोसी देशों द्वारा भारतीयों को शरण देकर सुरक्षित निकालने जैसी राहत भरी ख़ूबरें सामने आयीं। इसके साथ ही दोनों देशों में रह रहे भारतीय नागरिकों व विद्यार्थियों को निकालने के लिए रूस और यूक्रेन में सुरक्षित गलियारे पर सहमति बनी है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. ए.के. सिंह ने बताया कि 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के पहले ही वहाँ पर रहे भारतीयों को यूक्रेन छोडऩे के सरकार ने दिशा-निर्देश जारी किये थे। इसके बावजूद 15,000 से ज़्यादा भारतीय नागरिक और विद्यार्थी वहाँ फँसे रह गये थे, तब भारत में हाहाकार की स्थिति बनी थी।

जेएनयू के पूर्व छात्र नेता व रूस और यूक्रेन के मामलों के जानकार कुमार पंकज का कहना है कि जब देश के पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे थे, तब ऑपरेशन गंगा के तहत सरकारी ख़र्च पर भारतीय नागरिकों को लाया गया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि यूक्रेन और रूस के युद्ध को लेकर हमारे देश के नागरिकों और सरकार को सचेत होने की ज़रूरत है। साथ ही इस बात पर ग़ौर करने की भी कि सरकार को धरातल पर काम करने की ज़रूरत है। भारत में मेडिकल कॉलेजों की संख्या और बढ़ाने की ज़रूरत है, ताकि हमारे देश के होनहार विद्यार्थी अपने ही देश में रहकर अपने डॉक्टर बनने के सपने को पूरा कर सकें। क्योंकि जो बच्चे यूक्रेन से मेडिकल की पढ़ाई छोडक़र आ रहे हैं, अब उनकी पढ़ाई का क्या होगा? यह आने वाले दिनों में विकट समस्या का विषय बन सकती है। क़रीब 20,000 से अधिक मेडिकल विद्यार्थियों की पढ़ाई युद्ध के चलते बाधित हुई है; जो कब तक बाधित रहेगी? इसे लेकर कुछ नहीं कह सकते। ऐसे में इन विद्यार्थियों के हित में भारत सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को कुछ सार्थक क़दम उठाने होंगे, ताकि इन बच्चों का भविष्य बर्बाद न हो। फॉरेन मेडिकल एसोसिएशन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि एक तो हमारी सरकारें, चाहे वो राज्य सरकारें हों या फिर केंद्र सरकार; जानबूझकर देश में कम-से-कम मेडिकल कॉलेज खोलने में विश्वास करती रही है। इसके पीछे देश में निजी शिक्षा माफिया का बड़ा खेला दशकों से चल रहा है, जो सुनियोजित तरीक़े से अपने लाभ के लिए कई देशों में भारतीय पैसों वालों के बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजते हैं। इसके पीछे कुछ सियासी लोगों का हाथ भी होता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कई बार यह माँग रख चुका है कि मेडिकल कॉलेजों में सीटें बढ़ायी जाएँ।

डॉ. दिव्यांग देव गोस्वामी ने भारत सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय से माँग की है कि युद्ध के चलते जो विद्यार्थी अधर में पढ़ाई छोडक़र मजबूरन देश वापस आ रहे हैं, उनकी पढ़ाई सुचारू रखने के लिए कारगर क़दम उठाए। इन बच्चों की पढ़ाई का रास्ता भारत सरकार, राज्य सरकारों और मेडिकल प्रशासन को निकालना होगा। अगर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इन विद्यार्थियों को दाख़िला देने की क्षमता नहीं है, तो अन्य विकल्पों को निकालना चाहिए। यूक्रेन से मेडिकल की पढ़ाई छोडक़र आये विद्यार्थियों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बात की करके मेडिकल की सीटें बढ़ाने का भरोसा दिलाया है, तो यह सन्तोष करने वाली बात है। लेकिन सवाल यह है कि सीटें कब तक बढ़ेगी? विदेशों में पढ़ाई करने वालों की संख्या हर साल तीन से चार गुना बढ़ रही है। अगर भारत सरकार अपने ही देश में शिक्षा संसाधनों को बढ़ाएगी, तो देश की अर्थ-व्यवस्था मज़बूत हो सकती है। आर्थिक मामलों के जानकार सचिन सिंह का कहना है कि ऑपरेशन गंगा की तरह सरकार को देश में शिक्षा में सुधार करना चाहिए। आख़िर सरकार कब तक पिछली सरकारों को दोष देकर बचती रहेगी। देश में हर साल लगभग आठ लाख विद्यार्थी ही मेडिकल शिक्षा के लिए नीट परीक्षा पास करते हैं। उनमें से 90,000 ही सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में दाख़िला ले पाते हैं। बाक़ी विद्यार्थी देशी-विदेशी कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में दाख़िला लेने के लिए मोटा पैसा देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं, जिसका फ़ायदा शिक्षा माफिया उठाते हैं। केंद्र व राज्य सरकारें इस दिशा में कोई काम करें, ताकि देश में डॉक्टरों की कमी को भी पूरा करने के साथ-साथ देश की अर्थ-व्यवस्था को भी मज़बूत किया जा सके और देश बच्चों की पढ़ाई देश में हो सके।

हिमाचल में भाजपा धूमल को देगी बड़ी भूमिका!

पाँच राज्यों के चुनाव नतीजों से कांग्रेस ख़ेमे में घबराहट है। इन चुनावों विशेषकर पंजाब, जहाँ कांग्रेस सत्ता में थी; में हार ने पड़ोसी हिमाचल प्रदेश में पार्टी के नेताओं को चिन्तित कर दिया है। उनका मानना है कि इन नतीजों का असर पहाड़ी राज्य के मतदाता पर भी पड़ेगा। भाजपा के शीर्ष सूत्रों के अनुसार, पार्टी 2022 के अन्त तक होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी सम्भावनाओं को बेहतर बनाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की वापसी करवा सकती है। बता रहे हैं अनिल मनोचा :-

पिछले साल अक्टूबर में जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक बड़े झटके के रूप में कांग्रेस ने हिमाचल में हुए उप चुनाव में तीनों विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर ली, तो ऐसा सन्देश गया कि विपक्षी कांग्रेस 2022 के आख़िर में होने वाले पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए पूरी तरह तैयार है। हालाँकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर सहित चार राज्यों में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन ने कांग्रेस को परेशान किया है और सबसे ज़्यादा हिमाचल में जहाँ वह आने वाले महीनों में अच्छी ख़बर की उम्मीद कर रही थी।

कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा के ख़िलाफ़ कथित सत्ता विरोधी लहर के मद्देनज़र उत्तराखण्ड में सत्ता हासिल करने की उम्मीद कर रही थी; लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। भाजपा ने न केवल उत्तराखण्ड में इस सिलसिले को तोड़ा, बल्कि एक बेहतरीन प्रदर्शन के साथ उत्तर प्रदेश को बरक़रार रखते हुए एक तरह का इतिहास भी रचा। पंजाब में कांग्रेस का प्रदर्शन और भी ख़राब था; क्योंकि उसे आम आदमी पार्टी से हार का सामना करना पड़ा और यहाँ तक कि वहाँ उसके मुख्यमंत्री भी दोनों सीटों से हार गये, जिन पर वह चुनाव लड़े थे।

इन नतीजों पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि डबल इंजन सरकार के लिए भारतीय जनता पार्टी बहुत महत्त्वपूर्ण है। धूमल ने कहा कि जब यहाँ (हिमाचल) चुनाव होंगे, तो भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगी। यह याद दिलाने पर कि भाजपा अक्टूबर, 2021 में हुए उप चुनाव में मंडी लोकसभा और सभी तीन विधानसभा सीटों- फतेहपुर, अर्की, जुब्बल-कोटखाई में हार गयी थी। उन्होंने कहा कि यह छ: बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, जिनका उस समय निधन हुआ था; के लिए मतदाताओं की सहानुभूति के कारण था।

दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह ने 8 जुलाई को कोरोना महामारी की जटिलताओं के बाद अन्तिम साँस ली थी। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के नाम पर ‘वोट नहीं, श्रद्धांजलि है’; का नारा देकर जनता से वोट माँगा था और जनता ने उसे स्वीकार करते हुए कांग्रेस को सभी सीटों पर जीता दिया था। मंडी संसदीय उप चुनाव में कांग्रेस ने दिवंगत मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारा था। उन्हें कारगिल युद्ध के नायक भाजपा के ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) खुशाल ठाकुर के ख़िलाफ़ खड़ा किया गया था। उत्साहित राज्य कांग्रेस प्रमुख कुलदीप सिंह राठौर ने दावा किया कि कांग्रेस ने सेमीफाइनल जीता लिया और दिसंबर, 2022 में विधानसभा चुनाव में भी पार्टी विजयी होगी।

उधर वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि हिमाचल में अगले विधानसभा चुनाव में दिवंगत कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह के प्रति सहानुभूति कांग्रेस के काम नहीं आएगी। धूमल, जो प्रदेश में एक लोकप्रिय नेता हैं; के नेतृत्व में भाजपा ने पहले सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलवायी थी और इसके बाद उनके नेतृत्व के रहते भाजपा ने लगातार राज्य में सभी चुनाव जीते।

धूमल सन् 2017 के प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुख्य चेहरा और मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार थे। लेकिन सुजानपुर हलक़े से अपनी सीट हारने के बाद पार्टी में ही विरोधी गुट ने उन्हें मुख्यधारा की राजनीति से दूर रखने के लिए सब कुछ किया। धूमल ने भी ख़ुद को समीरपुर तक सीमित कर लिया। लेकिन एक लोकसभा और तीन विधानसभा उप चुनावों में हार ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप की नेतृत्व क्षमताओं पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। अब यह चर्चा है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा धूमल के लिए पार्टी में कोई बड़ी भूमिका पर विचार कर रही है।

लुप्त हो रहा पंजाब का इनले हस्तशिल्प

पंजाब के होशियारपुर में इनले हस्तशिल्प की कभी धूम हुआ करती थी। इसकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि विदेशों में भी इसकी ख़ूब माँग थी। लेकिन समय के साथ होशियारपुर की यह कला हस्तशिल्प (हैंडीक्राफ्ट) सूची से ही बाहर होकर महज़ चित्रकौशल (ड्राइंग क्राफ्ट) की सूची में पहुँच गयी है या कहें कि डाल दी गयी है। इन दिनों होशियारपुर में इसका कितना काम है? बता रही हैं आशा अर्पित :-

पंजाब के ज़िला होशियारपुर का डब्बी बाज़ार कभी लकड़ी पर हाथी दाँत की कारीगरी के लिए देश-विदेश में ख़ूब मशहूर था। बच्चों के लकड़ी के खिलौनों से लेकर हाथी दाँत की नक़्क़ाशी से बने चकला-बेलन, चाय की ट्रे, फोटो फ्रेम, शीशा फ्रेम आदि से लेकर भारी फर्नीचर तक देश विदेश में निर्यात किया जाता था। लेकिन आज स्थिति यह है कि डब्बी बाज़ार में इस हैंडीक्राफ्ट की कुछ ही दुकानें बची हैं। यह पच्चीकारी यानी इनले होशियारपुर के हस्तशिल्प (हैंडीक्राफ्ट्स) की सूची से अब ग़ायब होने के कगार पर है।

हाथी दाँत पर बैन लगने से पुराने कुशल कारीगरों के अभाव में और नयी पीढ़ी के आगे न आने के कारण इनले क्राफ्ट सरकारी स्तर पर डाइंग क्राफ्ट की सूची में डाल दिया गया है। हालाँकि हक़ीक़त यह है कि आज भी पंजाबी एनआरआई बच्चों के लिए लकड़ी के खिलौनों की माँग करते हैं। कई देशों में इनले क्राफ्ट आज भी पसन्द किया जाता है और लोग ख़रीदते भी हैं, ऐसा इनले हैंडीक्राफ्ट के स्थानीय कुशल शिल्पकार मानते हैं।

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शहर के कुशल शिल्पी रूपन मठारू को इस हस्तशिल्प में काम करते हुए 40 वर्ष हो चुके हैं। मठारू ने बताया कि हमारे समय में 5,000 से लेकर 6,000 तक कारीगर थे, जो आज की तारीख़ में 70 के क़रीब रह गये हैं। यह काम काफ़ी मेहनत वाला है। इसलिए नयी पीढ़ी के बच्चे और युवक इसमें रुचि नहीं ले रहे और पढ़े-लिखे युवक यह काम करना नहीं चाहते। वे सरकारी नौकरी चाहते हैं। रूपन का कहना है कि पच्चीकारी यानी इनले क्राफ्ट बढ़ईगीरी (कारपेंटरी) से मिलता-जुलता है।

बढ़ईगीरी में युवक दो-तीन महीने में काम सीख लेता है और जिसके साथ काम सीखता है, वह उसे दो या तीन हज़ार रुपये दिहाड़ी दे देता है। लेकिन इस क्राफ्ट में उत्पाद महँगा होता है। हस्तशिल्प का काम कम होने की बड़ी वजह यह भी है कि इसको लेकर राज्य सरकार की तरफ़ से कोई सहयोग नहीं मिलता है।

पहले स्टेट अवॉर्ड मिलता था; लेकिन वर्ष 1991 से वह भी बन्द हो गया। सम्मान (अवॉर्ड) से शिल्पकारों को बड़ा उत्साह मिलता था। वस्त्र मंत्रालय की तरफ़ से 60 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले शिल्पकार को पेंशन की सुविधा भी दी गयी है; लेकिन यह उसी को मिलती थी, जिसे स्टेट अवॉर्ड मिला हुआ हो। शहर में ऐसे चार शिल्पकार हैं, जिन्हें पेंशन मिलती है। इस हस्तशिल्प के शिल्पकारों की आज ऐसी हालत है कि कोई रेहड़ी लगा रहा है, तो कोई पेंट का काम कर रहा है; क्योंकि उन्हें इस काम में पैसे नहीं मिले।

रूपम मठारू आगे बताते हैं कि पहले दो तरह से काम होता था। शिल्पी अपने घर में काम करता था, उसका अपना यूनिट होता था और कच्चा माल भी वह अपना ही लेता था। इसके बाद वह उत्पाद (प्रोडक्ट) बनाकर बेच देता था। दूसरे तरीक़े से शिल्पकार किसी दुकान से कच्चा माल लेकर और प्रोडक्ट बनाकर दुकानदार को ही दे देता था। इसके बदले में जितने पैसे मिलते थे, ले लेता था। अब ये दोनों काम बन्द हो गये हैं। दुकानदारों ने कारीगर को अपने पास रख लिये। रोज़ाना 300 रुपये की दिहाड़ी पर; जो वर्षों से वही चली आ रही है। इसलिए वे घर का गुज़ारा कैसे करेंगे? बच्चों को क्यों इस काम में लाएँगे। बल्कि एक आम मज़दूर को भी अब 500 रुपये दिहाड़ी मिलती है।

नयी पीढ़ी के कारीगर कमलजीत

इस हस्तशिल्प में कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके शिल्पी रूपम मठारू के पुत्र कमलजीत छठी पीढ़ी का काम आगे बढ़ा रहे हैं। परिवार में काम होता देखकर और स्कूल से आने के बाद पिता की मदद करते हुए उनकी पच्चीकारी यानी इनले क्राफ्ट में रुचि पैदा हो गयी। पिता को पुरस्कार मिलते देख उन्होंने 12वीं के बाद पूरा समय इस काम को देना शुरू कर दिया। वर्ष 2009 में उसे भी नेशनल मेरिट अवॉर्ड मिला, उस टेबल पर जो उन्होंने अपने पिता और पुरहीरा गाँव के कुशल शिल्पी बलदेव किशन की मदद से बनाया था।

कमलजीत का कहना है कि इस पुरस्कार ने उसका हौसला बढ़ाया और आगे का उनका रास्ता खुल गया। कमलजीत दावे के साथ कहते हैं कि यह हस्तशिल्प व्यक्ति को करोड़पति बना सकता है; अगर मेहनत, कौशल के साथ-साथ उच्च शिक्षा भी हासिल कर ली जाए। उन्होंने बताया कि इस हस्तशिल्प की विदेशों में आज भी अच्छी माँग है। लेकिन इस काम में सिर्फ़ वे ही बच्चे आते हैं, जो पढ़े-लिखे नहीं हैं। समस्या यह है कि वे नये डिजाइन नहीं बना सकते, विपणन (मार्केटिंग) नहीं कर सकते। युवा कमलजीत  तीन बार सरकारी ख़र्च पर विदेश गये और उनके हस्तशिल्प उत्पादों की अच्छी बिक्री भी हुई।

कमलजीत ने बताया कि उसकी 12वीं तक की पढ़ाई वहाँ काम नहीं आयी। बर्मिंघम (यूके) में उसका सामान तो बिक रहा था, पर उसे अंग्रेजी में बात करनी नहीं आती थी। साओ पौलो (ब्राजील) में पहले ही दिन ऑर्डर मिल गया था। उसके उत्पाद के दाम भी भारत से चार गुना ज़्यादा थे; लेकिन फिर भी वहाँ के लोगों ने उसी क़ीमत पर प्रोडक्ट ख़रीदे, कोई सौदेबाज़ी नहीं की। वैसे इस बार वह अंग्रेजी सीख कर गये थे, उन्हें ग्राहक से संवाद करने में दिक़्क़त पेश नहीं आयी।

कैसे हो कायाकल्प?

पंजाब के ज़िला होशियारपुर की विरासत की पहचान इनले क्राफ्ट का कायाकल्प करने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास करने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। मार्केटिंग के साथ-साथ बच्चों में ख़ासकर नयी पीढ़ी के युवकों में इस शिल्प (क्राफ्ट) के प्रति रुझान पैदा करने के लिए इनोवेशन के साथ गुणवत्ता वाला प्रशिक्षण कार्यशाला (ट्रेनिंग वर्कशॉप) आयोजित की जानी चाहिए। भारी फर्नीचर की बजाय रोज़ाना काम में आने वाली चीज़े तैयार की जानी चाहिए।

रूपम का कहना है कि इस हस्तशिल्प में बनाये जाने वाले बनावट (डिजाइन) और रचना (मोटिफ) बदले जाएँ। इनले के लिए बोन यानी हड्डी की बजाय सिल्वर, ताँबा, पीतल आदि धातुओं का उपयोग भी किया जा सकता है, जो प्रोडक्ट को अलग लुक दे सकता है। लेजर कटिंग और सीएमसी मशीनें सरकारी स्तर पर मुहैया करायी जानी चाहिए; क्योंकि लेजर कटिंग की मशीन चार से पाँच लाख तक और सीएमसी मशीनों की क़ीमत 40 से 45 लाख तक है, जो कि एक आम कारीगर या  शिल्पकार वहन नहीं कर सकता।

वह कहते हैं कि सरकारी स्तर पर ये मशीनें ऐसी जगह लगायी जाएँ, जहाँ से आसपास के शिल्पी आकर सामूहिक रूप से अपना काम कर सकें। इसके अलावा इस क्राफ्ट की अच्छी मार्केटिंग भी बहुत ज़रूरी है। भारी फर्नीचर की बजाय छोटे-छोटे आइटम तैयार होने चाहिए, जैसे- चाय की ट्रे, पेन बॉक्स, फोटो फ्रेम, मोबाइल स्टैंड, शीशा फ्रेम आदि।

 

कई बार सम्मानित हो चुके हैं रूपम

वर्ष 1989 में स्टेट अवार्ड, वर्ष 1994 में नेशनल मेरिट अवार्ड, 1997 में नेशनल अवार्ड और वर्ष 2016 में शिल्प गुरु सम्मान पाने वाले शिल्पकार रूपम मठारू मेहनत से अपने काम को आगे बढ़ाते रहे हैं। उनके मुताबिक, लेटिन अमेरिका, नॉर्थ अमेरिका, ब्राजील, पेरू और अर्जेंटीना जैसे देशों में इनले हैंडीक्राफ्ट की आज भी ख़ूब माँग है।

याद आएँगे शेन वार्न

वार्न निश्चित ही सर्वकालिक महान् लेग स्पिनर थे

शेन वार्न क्रिकेट इतिहास की सबसे घातक गेंद फेंके जाने के लिए ही नहीं जाने जाते थे। वार्न की एक और ख़ूबी थी कि वह शीशे के ऊपर भी गेंद को स्पिन करा सकते थे। वार्न को इसीलिए दुनिया के सबसे बेहतर स्पिन्नर होने का ख़िताब दिया जाता है। उनके नाम क्रिकेट के असंख्य रिकॉर्ड बने तो विवाद भी कम नहीं जुड़े। क्रिकेट और ज़िन्दगी को पूरी तरह जीने वाले यही शेन वार्न दुनिया से अचानक चले गये। रिकॉर्ड बोर्ड पर 145 टेस्ट में दर्ज उनके 708 विकेट इस बात के गवाह हैं कि वार्न कितने आला दर्जे के स्पिनर थे। एक ऐसा जादूगर, जिसने लेग स्पिन जैसे मरती हुई कला को अचानक ही संजीवनी दी, उसे दूसरा जन्म दे दिया।

वार्न निश्चित ही सर्वकालिक महान् लेग स्पिनर थे। वॉर्न को साल 2000 में जब 20वीं शताब्दी के पाँच महानतम क्रिकेटर में शामिल किया गया, सबने इसका स्वागत किया था, क्योंकि वे इस सामान के हक़दार थे। सन् 1993 में ‘बॉल ऑफ द सेंचुरी’ फेंकने वाले वॉर्न ने सन् 1992 में भारत के ख़िलाफ़ सिडनी टेस्ट में अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत की। हालाँकि यह शुरुआत बेहद फीकी रही, क्योंकि 150 रन देकर सिर्फ़ एक विकेट उनके हिस्से आयी। कुछ विशेषज्ञों ने उन्हें ख़ारिज करने की की कोशिश की। हालाँकि कुछ का कहना था कि वार्न में एक बड़ा स्पिनर बनने की क़ाबिलियत है और उन्हें इसके लिए वक्त की ज़रूरत है।

वार्न ने उनकी इस उम्मीद को मरने नहीं दिया और करियर आगे बढऩे के साथ अपनी घूमती गेंदों के साथ बल्लेबाज़ों में ख़ौफ़ भरना शुरू कर दिया। वॉर्न 2006 में टेस्ट क्रिकेट में सबसे पहले 700 विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने थे। इसके अलावा उनके नाम बिना शतक के सर्वाधिक रनों का रिकॉर्ड भी दर्ज है। वॉर्न ने अपने टेस्ट करियर में 145 मैच खेले थे। इस दौरान 3154 रन बनाये थे। उनका उच्चतम स्कोर रहा 99 रन।

इस महान् स्पिनर का करियर कोई 16 साल चला, जिसमें वार्न ने कुल 339 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 1,001 विकेट लिए। वह कितने महान् स्पिनर थे, यह इस बात से ज़ाहिर हो जाता है कि इनमें 38 बार पारी में पाँच या उससे ज़्यादा विकेट और 10 बार मैच में 10 या उससे ज़्यादा विकेट उन्होंने लिए। वार्न के नाम 708 टेस्ट विकेट हैं जो सबसे ज़्यादा विकटों के मामले में श्रीलंका के ऑफ स्पिनर

मुथैया मुरलीधरन के बाद दूसरे सबसे ज़्यादा हैं। मुरलीधरन ने पूरे 800 विकेट लिये थे।

जीवन के विवादों को लेकर एक बार वार्न ने कहा था- ‘मैंने ज़िन्दगी के हर पल को जीया है और नतीजों की परवाह नहीं की। इस लिहाज़ से मुझे बहुत फ़ायदा भी हुआ और साथ ही काफ़ी पीड़ा भी  मिली। यह उस पर निर्भर करता है कि वो पल कैसे थे। मैं उस लीजेंड की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करता रहा, जो लोगों ने मुझे समझा। हालाँकि मुझे निजी तौर पर लगता है कि मुझे लेकर वह एक काल्पनिक छवि थी। और शायद यही ग़लती रही, क्योंकि मैंने मैदान के बाहर की अपनी ज़िन्दगी को सार्वजनिक बनने दिया। अपने बचाव में मैं सिर्फ़ यह कहना चाहता हूँ कि मैं कभी दूसरों की तरह होने का ढोंग नहीं कर सकता था, क्योंकि मैं वैसा था ही नहीं।’ बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मेरे जीवन पर एक दर्ज़न से ज़्यादा किताबें लिखी जा चुकी हैं। हरेक में उनके जीवन के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाया गया है। एक पुस्तक की प्रस्तावना में तो वार्न ने स्वीकार किया था कि जीवन में उनसे कुछ बेवक़ूफ़ियाँ ज़रूर हुईं; लेकिन क्रिकेट में उन्होंने अपनी प्रतिभा के साथ कभी अन्याय नहीं होने दिया। ऐसे में अफ़सोस किस बात का?

शेन वॉर्न की मौत के बाद महान् लेग स्पिनर के सम्मान में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने बड़ा क़दम उठाया। मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड की गिनती दुनिया के सबसे बेहतरीन मैदानों में होती है। अब इस स्टेडियम का ‘द ग्रेट साउथ स्टैंड’ शेन वॉर्न के नाम से पहचाना जाएगा। विक्टोरिया के खेल मंत्री विक्टर पकोला ने इसकी घोषणा की। उन्होंने सन् 1993 में 24 वर्ष की उम्र में ओल्ड ट्रैफर्ड में जिस गेंद पर इंग्लैंड के माइक गैटिंग को आउट किया था, उसे ‘बॉल ऑफ द सेंचुरी’ माना जाता है। गैटिंग उस लेग ब्रेक पर हैरान रह गये। यह गेंद 90 डिग्री की दिशा में घूम गयी थी। वॉर्न को सन् 1992 से 2007 के बीच उनकी अतुल्य उपलब्धियों के लिए विजडन ने शताब्दी के पाँच क्रिकेटरों में चुना गया था। क्रिकेट या दुनिया जब शेन वॉर्न का ज़िक्र करेगी, तो उनका आकलन एक करिश्माई खिलाड़ी के तौर पर ही होगा।

कैसे हुई मौत?

वार्न की मौत लेकर अभी रहस्य बना हुआ है। जब 4 मार्च को थाईलैंड में उनकी मौत हुई, सभी हैरान रह गये। सिर्फ़ 52 साल में उनका जाना सबको दु:ख से भर गया। थाईलैंड पुलिस ने शेन वॉर्न की मौत के मामले में जो बड़ा ख़ुलासा किया है, उसके मुताबिक उसके थाईलैंड पुलिस को विला की तलाशी के समय शेन वॉर्न के कमरे के फ़र्श और तौलियों पर कथित तौर पर ख़ून के धब्बे मिले थे। बता दें कि वार्न कोह समुई द्वीप पर छुट्टियाँ मनाने गये थे। थाई इंटरनेशनल अस्पताल में 4 मार्च की रात डॉक्टरों ने वॉर्न को मृत घोषित किया था। उनके दोस्तों ने लग्जरी विला में उन्हें सीपीआर दिया था। एक मीडिया रिपोर्ट में स्थानीय प्रांतीय पुलिस के कमांडर सतीत पोलपिनित को यह कहते हुए दिखाया गया कि कमरे में काफ़ी ख़ून फैला था। जब सीपीआर (कार्डियो पल्मनरी रिससिटेशन) शुरू हुआ था, तो वॉर्न की खाँसी से कुछ तरल पदार्थ निकाला था और ख़ून निकल रहा था। रिपोट्र्स में यह भी दावा किया गया है कि वॉर्न कुछ समय पहले एक हृदय रोग विशेषज्ञ से मिले थे। वैसे अभी तक वार्न की मौत को संदिग्ध नज़र से नहीं देखा गया है।

पुलिस को वार्न के एक दोस्त ने बताया था कि पूर्व क्रिकेटर शाम 5:00 बजे कोई जवाब नहीं दे रहा था। एम्बुलेंस का इंतज़ार करते हुए दोस्तों के ग्रुप ने वॉर्न का सीपीआर किया। वॉर्न के प्रबन्धन ने बाद में एक संक्षिप्त बयान जारी कर उनके निधन की पुष्टि की। अब इंतज़ार है कि जाँच का नतीजा सामने आये, ताकि उनकी मौत के सही कारण का पता चल सके।

शेन वॉर्न का करियर

टेस्ट 145, 708 विकेट, श्रेष्ठ 8/71

वनडे 194, 293 विकेट, श्रेष्ठ 5/33

 

विवादों में भी आगे

शेन वॉर्न जितने महान् गेंदबाज़ रहे, उतने ही विवादों ने उन्हें सुर्ख़ियों में रखा। सन् 1994 में शेन वॉर्न सट्टेबाज़ी को लेकर विवाद में फँस गये थे। श्रीलंका दौरे के दौरान वॉर्न और मार्क वॉ पर एक भारतीय सट्टेबाज़ के साथ साँठगाँठ करने और पिच और मौसम के बारे में जानकारी देने का आरोप लगा। इसके बाद सन् 2003 में शेन वॉर्न तब एक और बड़े विवाद में घिरे, जब उन पर क्रिकेट खेलने का एक साल का प्रतिबंध लग गया। उन पर प्रतिबंधित पदार्थ का सेवन करने का आरोप था। विश्व कप के दौरान पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मैच से पूर्व वार्न का डोप टेस्ट हुआ, जिसमें पॉजिटिव आने के बाद उन्हें वल्र्ड कप से बाहर कर दिया गया। उन पर एक साल तक क्रिकेट खेलने का प्रतिबंध लगा। सन् 2000 में वे एक और विवाद में फँस गये, जब एक ब्रिटिश नर्स ने शेन वॉर्न पर अश्लील हरकत करने का आरोप लगाया। नर्स का दावा था कि वॉर्न ने उनके साथ फोन पर अश्लील बातें कीं और उन्हें गंदे सन्देश भेजे। इसकी वार्न को यह सज़ा मिली कि उन्हें ऑस्ट्रेलिया टीम की उप कप्तानी से हाथ धोना पड़ा। वार्न मोहब्बत के मामले में भी ख़ूब सुर्ख़ियों में रहे। उन्होंने सन् 1995 में सिमोन कैलाहन से विवाह किया। कुछ साल के बाद दोनों अलग हो गये। इन दोनों के तीन बच्चे हैं। वॉर्न का मशहूर हॉलीवुड एक्ट्रेस लिज़ हर्ले के साथ सम्बन्ध काफ़ी सुर्ख़ियों में रहा। दोनों की सगाई तक हुई; लेकिन वार्न के अन्य महिलाओं से  सम्बन्ध की बात सामने आने के बाद उन्होंने वार्न से किनारा कर लिया। सन् 2017 में शेन वॉर्न पोर्न स्टार वैलेरी फॉक्स के साथ हाथापाई करने के आरोप के बाद फिर चर्चा में आये। क्लेरी फॉक्स ने एक फोटो अपने सोशल मीडिया पर शेयर की थी, जिसमें उनकी आँखों पर चोट दिख रही थी। कैप्शन में फॉक्स ने लिखा था- ‘आप मशहूर हस्ती हैं, इसका मतलब यह क़तई नहीं कि किसी औरत पर हाथ उठाया जा सकता है।’

प्रमाण पत्र नहीं मज़हब

मज़हबों (धर्मों) को लोगों ने ईश्वर तक पहुँचने का प्रमाण-पत्र मान लिया है। यह बात लोगों की अपने-अपने मज़हबों में गहन आस्था से साबित होती है। मज़हबों में फँसे लोग इतने डरे हुए होते हैं कि उन्हें इस दायरे से बाहर झाँकने की हिम्मत तक नहीं होती, उन्हें पतन का डर सताता है। उन्हें लगता है कि अगर वे अपने मज़हब के दायरे से बाहर गये, तो उन्हें ईश्वर तो मिलेगा ही नहीं, उल्टा नरक (जहन्नुम) में ज़रूर जाना पड़ेगा। यह बात अधिकतर लोगों को उनके धर्मगुरु बताते हैं, अथवा इस तरह की कहानियाँ-कथाएँ सुनाकर डरा देते हैं। धर्म का रास्ता दिखाने वालों की बात मानें, तो ऐसा लगता है मानो धर्म से बाहर जाते ही आप इतने नीचे गिर जाएँगे कि फिर कोई आपको उठाने वाला मानो होगा ही नहीं। यहाँ तक कि ईश्वर भी नहीं; क्योंकि वह आपसे नाराज़ हो जाएगा। यही वे लोग हैं, जो आपको दूसरे मज़हब के लोगों के विचारों को आसपास भी नहीं भटकने देना चाहते। जो लोग इनके इशारों पर चलने लगते हैं, उन पर धीरे-धीरे कट्टरता हावी होने लगती है। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने अपने मज़हब को छोड़ा या उसकी बग़ावत की, तो वे कहीं के नहीं रहेंगे।

दरअसल यह डर बचपन से ही हर व्यक्ति के अन्दर उसके परिवार और समाज की तरफ़ से पैदा कर दिया जाता है। यही वजह है कि कोई इंसान बुद्धिमान होकर अपने मज़हब की ख़ामियाँ जानते हुए भी उसका प्रतिकार नहीं कर पाता और दूसरे किसी मज़हब की अच्छाई को स्वीकार नहीं कर पाता। लेकिन जो समझदार हैं, वे अपनी मर्ज़ी से या सोच-विचार करके ही किसी चीज़ को स्वीकार अथवा अस्वीकार करते हैं। भले ही ऐसे लोगों को उनके मज़हब के लोग, परिजन, पड़ोसी या फिर समाज के लोग कुछ भी मानें। या उनका विरोध करें।

सवाल यह है कि जो लोग यह कहते या बताते हैं कि मज़हब के बिना किसी का उद्धार नहीं है। क्या ऐसे लोग बताएँगे कि जो लोग संसार की मोहमाया छोडक़र, मज़हबों का भेदभाव भुलाकर, अच्छे-बुरे और ऊँच-नीच का भेदभाव त्यागकर कहीं दूर पहाड़ों या कंदराओं में ईश्वर की खोज में चले जाते हैं; क्या उन्हें ईश्वर नहीं मिलता होगा? और ऐसे लोग जो मज़हबी दायरों में बँटे हुए हैं। दिन-रात मज़हबों में बताये नियमों का पालन करते हैं; क्या वे आश्वस्त कर सकते हैं कि उन्हें ईश्वर मिलेगा-ही-मिलेगा? ऐसे लोग क्या यह बताएँगे कि अगर कोई पहुँचा हुआ सन्त-महात्मा-पीर-फ़क़ीर उनके सामने आ जाए, तो क्या वे उसका आशीर्वाद पाने के लिए लालायित नहीं होंगे? भले ही वह उनके मज़हब का न हो, तो भी!

कई लोगों के मन में इस समय यह सवाल उठ रहा होगा कि अगर वे अपने मज़हब को छोड़ दें, तो फिर ईश्वर को पाने का क्या उपाय है? इसका सीधा-सा उत्तर यह है- ऐसे लोगों के लिए कर्मयोग का मार्ग है। कर्मयोग अर्थात् मन और नीयत साफ़ रखो। किसी को सताओ मत। किसी का नुक़सान मत करो। ईमानदारी और मेहनत की रोटी खाओ। हो सके, तो दूसरों की मदद करो। किसी का बुरा मत करो। मन में किसी के लिए भी भेदभाव, घृणा, बैर, विद्वेष और ईष्र्या मत रखो। जब भी मन हो या समय हो निर्मल मन से सब कुछ भूलकर ईश्वर का ध्यान करो। भले ही एक सेकेंड उसे याद करो; लेकिन जब उस अनन्त का ध्यान करो, तो बाक़ी सब भुला दो। यहाँ तक कि अपने आप को भी भुला दो। वह निश्चित ही आपकी वृत्ति, ध्यान, मन, चित्त और स्मृति में प्रकाशित होता महसूस होगा और आपका मार्गदर्शन करता नज़र आएगा।

रावण ने मरते समय लक्ष्मण से कहा था कि ईश्वर को अगर पाना है, तो या तो उससे इतना प्रेम करो कि उसके अलावा कोई दूसरा आपको न दिखे। या फिर उससे इतनी नफ़रत करो कि उसे आपका वध करने के लिए स्यवं पृथ्वी पर आना पड़े। इन दोनों ही स्थितियों में तुम्हें निश्चित ही ईश्वर मिलेगा। लेकिन लोग न तो पूरी तरह संसार से मोह त्याग पाते हैं। न स्वजनों से आशक्ति, जिसे वे प्रेम समझते हैं; का त्याग कर पाते हैं। न ही ईश्वर से इतना प्रेम कर पाते हैं कि संसार के बन्धनों से मुक्त हो जाएँ। और न ही कोई इतनी नफ़रत कर पाता है कि ईश्वर स्वयं उसे मारने अवतरित हो जाए। लेकिन जो लोग मज़हबों को नहीं छोडऩा चाहें, वे क्या करें? वे मज़हबों में रहें; लेकिन किसी से घृणा, भेदभाव, ईष्र्या और द्वेष न करें। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि मज़हब ही उद्धार का द्वार हैं। जीव का उद्धार अथवा अनुद्धार तो उसके अंत:करण की शुद्धि-अशुद्धि और कर्मों पर निर्भर है। अगर किसी के कर्म ग़लत हैं और तन, मन व बुद्धि पापों से कलुषित हैं, तो उसे कोई भी मज़हब ईश्वर तक नहीं पहुँचा सकता। अन्त में मेरा एक दोहा है :-

मन के अन्दर ईश्वर, बाहर खोजें लोग।

ढोंग किये वो कब मिले, मिले जगाये जोग।।’ 

भगवंत मान ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, 17वें सीएम बने

आम आदमी पार्टी (आप) को मिली बड़ी जीत के बाद पंजाब में बुधवार को भगवंत सिंह मान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने उन्हें  ओहदे की शपथ दिलाई। उन्हें नतीजे आने के बाद आप विधायक दल का नेता चुना गया था। आज अकेले मान ने ही शपथ ली।

शपथ ग्रहण समारोह में पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी उपस्थित थे।

शपथ ग्रहण के बाद मान ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे जनता की आवाज बनें और किसी तरह का अहंकार न करें। उन्होंने कहा वैसे तो मुर्गे के सिर पर भी ताज होता है लेकिन एक नेता के रूप में उनके सिर पर जनता तो जो ताज रखा है उसकी जिम्मेदारी वे समझते हैं और इसे पूरी मेहनत से निभाएंगे।

शपथ ग्रहण समारोह में हर तरफ पीली पगड़ियाँ दिख रही थीं। इस मौके पर हज़ारों लोग उपस्थित थे। शपथ ग्रहण समारोह खटकड़ कलां में हुआ जो शहीद भगत सिंह की धरती है। मान ने इसे शपथ ग्रहण के लिए खास तौर पर चुना था। अपने भाषण में भी उन्होंने इसका जिक्र किया।

यूपी में पार्टी की हार के बाद प्रियंका के भविष्य के रोल पर सबकी निगाह

कार्यकारी अध्यक्ष के सहारे चल रही कांग्रेस में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हारने के बाद इन राज्यों के अध्यक्षों के इस्तीफे हो गए हैं। सोनिया गांधी ने ही मंगलवार को  को उन्हें इस्तीफे देने के लिए कहा था। जाहिर है इसके बाद वहां तदर्थ आधार पर अध्यक्ष मनोनीत किये जाएंगे क्योंकि सितंबर में संगठन चुनाव में राष्ट्रीय से लेकर राज्यों तक में अध्यक्ष चुने जाने हैं। उत्तर प्रदेश में राज्य अध्यक्ष अजय लल्लू ने भी हार की जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है, लिहाजा देखना है कि राज्य की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी अब किस रोल में दिखती हैं।

संगठन में इन इस्तीफों से शायद ही कोई सक्रियता आये क्योंकि ज्यादातर राज्यों में पार्टी नेताओं में इस कदर लड़ाई है कि वे एक दूसरे से नतीजे आने के बाद भी लड़ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव से पहले राज्यों के नेताओं को आपसी कलह से बचने की सलाह दी थी जिसे कमोवेश किसी ने नहीं माना और नतीजों से जाहिर हो गया कि चुनाव में नेताओं ने एकजुटता से काम नहीं किया।

उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, उत्तराखंड के अध्यक्ष गणेश गोंडियाल, मणिपुर के अध्यक्ष नामेराकपन लोकेन सिंह, पंजाब के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और गोवा के अध्यक्ष गिरीश चोडणकर से सोनिया गांधी ने इस्तीफा माँगा था।  इन सभी के इस्तीफों के बाद पार्टी में अब नए अध्यक्ष मनोनीत किये जाएंगे।

उत्तर प्रदेश पर सबकी निगाह है क्योंकि बतौर प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी ने हार के बाद अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक  प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में डटे रहने की तैयारी कर ली है और उनके भविष्य के लिए कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

प्रियंका यूपी में इसी महीने से सक्रिय हो जाएंगी। यूपी के कुछ नेता चाहते हैं कि राज्य कांग्रेस के कमान प्रियंका गांधी को सौंप दी जाये क्योंकि इससे पार्टी संगठन में गति आएगी। हालांकि, जिस तरह प्रियंका गांधी का बतौर महासचिव राष्ट्रीय मुद्दों और संगठन में हस्तक्षेप रहता है, उसे देखते हुए शायद वे अध्यक्ष की जिम्मेदारी न संभालें।  अहमद पटेल और मोती लाल बोरा जैसे नेताओं के मृत्यु के बाद प्रियंका गांधी को कांग्रेस के बीच ‘संकटमोचक’ की भूमिका में देखा जाता है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष बन जाने की स्थिति में वो एक ही राज्य में बंध जाएंगी।

इस बारे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अभी पार्टी के फैसले का इन्तजार है। प्रियंका गांधी का लक्ष्य 2024 के लोकसभा चुनाव हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार से  मायूस हैं लेकिन कहा जाता है वे विचलित नहीं हैं। लिहाजा पार्टी उनका क्या रोल तय करती है, इसपर सभी की निगाह है। वैसे बतौर अध्यक्ष अजय लल्लू का कार्यकाल बुरा नहीं था क्योंकि वे योगी सरकार के खिलाफ लगातार धरने-प्रदर्शन करते रहे थे। यही नहीं किसी भी विपक्षी नेता के मुकाबले वे सबसे ज्यादा जेल गए। दो बार विधायक बनने वाले लल्लू इस बार चुनाव हार गए।

उत्तराखंड में हरीश रावत जैसे नेताओं का राजनीतिक करियर अब समाप्ति की तरफ है और पार्टी किसी युवा को कमान दे सकती है। पंजाब में दोनों सीटों से चुनाव हारने वाले चरणजीत सिंह चन्नी के लिए भी दिक्कतें हैं, राहुल गांधी का करीबी माना जाता है।   पार्टी  किसी वरिष्ठ नेता को जिम्मा सौंप सकती है। मणिपुर और गोवा में भी युवाओं को आगे लाये जाने की कवायद है।