राजनीति के हिजाब

क्या उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में सियासी हथियार बन रहा है हिजाब विवाद?

पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने 11 फरवरी को एक ट्वीट करके कहा कि लड़कियों को हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है। यह महिलाओं का हक है कि वह कम या ज़्यादा कपड़े पहनें। कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहीं प्रियंका गाँधी ने कही, जो अपने चुनाव अभियान में महिलाओं को केंद्र में रखे हुए हैं। प्रियंका गाँधी ने कहा कि लड़कियाँ क्या पहनें? इसका चयन करने का अधिकार उन्हें ही है। हालाँकि भाजपा और उससे जुड़े छात्र संगठन स्कूलों में हिजाब पहनने को ग़लत बताते हुए विरोध स्वरूप गले में भगवा पट्टी पहनकर आ रहे हैं।

कुल मिलाकर यह राजनीति का मुद्दा बन गया है। भाजपा उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में नैरेटिव के बिना ख़ुद को असहज महसूस कर रही है। लिहाज़ा उसने इस मुद्दे को हाथों-हाथ उठाकर चुनाव में इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस का आरोप है कि चूँकि भाजपा इन चुनावों में हार के डर से बेचैन है, इसलिए वह इस मुद्दे को साम्प्रदायिक रंग दे रही है; जो बहुत $खतरनाक है। दूसरे विपक्षी दलों को भी लगता है कि भाजपा असली मुद्दों के उठने से डरी हुई है; लिहाज़ा इस तरह के मुद्दे सामने लाकर वह जनता का ध्यान भटकाने की नाकाम कोशिश कर रही है।

यह मुद्दा कितना गम्भीर रुख़ अख़्तियार कर रहा है, इसका अंदाज़ इससे लगाया जा सकता है कि अब दूसरे प्रदेशों में भी मुस्लिम छात्राओं ने स्कूल-कॉलेजों में हिसाब पहनकर आना शुरू कर दिया है। जबकि भाजपा के छात्र संगठनों के कार्यकर्ता भगवा पट्टी बाँधकर आ रहे हैं, जिससे तनाव बन रहा है। कर्नाटक में तो सरकार को दो बार स्कूल-कॉलेज तक बन्द करने पड़े हैं।

न्यायालय में है मामला

यह मसला कर्नाटक के उडुप्पी कॉलेज से शुरू हुआ। कॉलेज प्रशासन ने जब छात्राओं के हिजाब पहनकर कॉलेज आने पर प्रतिबंध लगा दिया, तो इसका जबरदस्त विरोध हुआ। मुस्लिम छात्रों-छात्राओं ने इसे संविधान से मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए न्यायालय (कर्नाटक उच्च न्यायालय) की शरण ली। उच्च न्यायालय की इस मसले पर स$ख्त टिप्पणी तब आयी, जब मद्रास उच्च न्यायालय ने हिजाब से जुड़े विवाद को लेकर देश में धार्मिक सौहार्द को नु$कसान पहुँचाने की बढ़ती प्रवृत्ति को गम्भीर बताते हुए चिन्ता जतायी। न्यायालय ने हैरानी जताते हुए सवाल किया कि राष्ट्र सर्वोपरि है या धर्म?

मद्रास उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम.एन. भंडारी और न्यायमूर्ति डी. भरत चक्रवर्ती की पीठ ने कहा- ‘कुछ ता$कतों ने ड्रेस कोड को लेकर विवाद उत्पन्न किया है और यह पूरे भारत में फैल रहा है। यह निश्चित ही स्तब्ध करने वाली बात है। कोई व्यक्ति हिजाब के पक्ष में है, कुछ अन्य टोपी के पक्ष में हैं और कुछ अन्य दूसरी चीज़ें के पक्ष में। यह एक देश है या यह धर्म अथवा इस तरह की कुछ चीज़ें के आधार पर बँटा हुआ है? यह आश्चर्य की बात है।’

न्यायमूर्ति भंडारी ने भारत के पंथनिरपेक्ष देश होने का ज़िक्र करते हुए कहा कि मौज़ूदा विवाद से कुछ नहीं मिलने जा रहा है। लेकिन धर्म के नाम पर देश को बाँटने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कुछ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियाँ कीं। उच्च न्यायालय ने अपने फ़ैसले में स्कूल कॉलेजों में छात्राओं के हिजाब पहनने पर अंतरिम रोक लगा दी। इसके बाद इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी।

बाद में यह मसला सर्वोच्च न्यायालय में पहुँच गया। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने फ़िलहाल इसमें दख़ल देने से मना कर दिया। याचिकर्ताओं ने मद्रास उच्च न्यायालय के स्कूलों-कॉलेजों में छात्राओं के हिजाब पहनने पर अंतरिम रोक के फ़ैसले को चुनौती देते हुए इस पर रोक की माँग की थी। मुख्य न्यायाधीश ने एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह साफ़ कर दिया कि फ़िलहाल वह सुनवाई उच्च न्यायालय में ही चलाये जाने के पक्ष में हैं। न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को यह सलाह भी दी कि वह एक स्थानीय मामले को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश न करें।

कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि वह स्कूल कॉलेजों को खोलने का आदेश देगी; लेकिन फ़िलहाल सभी विद्यार्थी स्कूल-कॉलेज में धार्मिक वस्त्र पहनने पर ज़ोर न दें। उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय गये याचिकाकर्ताओं ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दख़ल बताते हुए सुनवाई की माँग की थी। वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने तीन न्यायाधीशों की पीठ के सामने कहा कि उच्च न्यायालय ने जो अंतरिम आदेश दिया है। वह संविधान के अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा हनन है। एक तरह से न्यायालय यह कह रहा है कि मुस्लिम छात्राएँ हिजाब न पहने, सिख छात्र पगड़ी न पहनें और दूसरे धर्मों के छात्र भी कोई धार्मिक वस्त्र न पहनें।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हमारी पूरे घटनाक्रम पर नज़र है। फ़िलहाल उच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा है। इसमें दख़ल देने की हम ज़रूरत नहीं समझते। उच्च न्यायालय का लिखित आदेश भी नहीं आया है। अगर ज़रूरी हुआ, तो सर्वोच्च न्यायालय लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सुनवाई करेगा।

राजनीतिक दल भी कूदे

कर्नाटक में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं। देश में पाँच राज्यों में इस समय विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में आरोप लग रहे हैं कि भाजपा इस मुद्दे को तूल देकर साम्प्रदायिक रंग दे रही है। क्योंकि वह लोगों से किये वादे पूरे करने में नाकाम साबित हुई है। कांग्रेस मुस्लिम लड़कियों का यह कहकर समर्थन कर रही है कि यह लड़कियों का अधिकार है कि वह क्या पहनें? भाजपा कहती है कि यह (हिजाब) धार्मिक प्रतीक है। भाजपा शिक्षण संस्‍थानों और कॉलेजों में ड्रेस कोड लागू करने पर भी ज़ोर दे रही है।

निश्चित ही इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग ले लिया है। यह विवाद जनवरी में जब उडुप्पी के एक सरकारी कॉलेज से शुरू हुआ, तो प्रशासन ने हिजाब पहनने पर रोक लगा दी। उस समय कुंडापुर और बिंदूर के कुछ अन्य कॉलेजों में भी छात्राएँ हिसाब पहन रही थीं। लेकिन इसके बाद मुस्लिम छात्राओं को हिजाब में कॉलेजों या कक्षाओं में जाने की अनुमति से मना कर दिया। उधर भाजपा के छात्र संगठन से जुड़े छात्र भी मैदान कूद पड़े और भगवा गमछा पहनने लगे। बेलगावी, हासन, चिक्कमंगलूरु और शिवमोगा में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब और भगवा गमछा के चलते छात्रों के बीच तनाव भी पनपा। एक मुस्लिम छात्रा का वह वीडियो $खूब वायरल हुआ, जिसमें उसके हिजाब में कॉलेज आने पर कुछ भगवाधारी छात्रों ने भगवे झण्डे लहराये, तो छात्रा ने इसका कुछ नारा लगाकर विरोध किया।

यह मसला जल्दी ही राजनीतिक दलों के पाले में चला गया। हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति शुरू हो गयी और उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में नेता खुलेआम अपने भाषणों में इस मसले का ज़िक्र करते दिखे। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने भाजपा और आरएसएस पर हिजाब के मसले को नाम पर राज्य में साम्प्रदायिक विद्वेष पैदा करने की कोशिश का आरोप लगाया। सिद्धारमैया ने दावा किया है कि संघ परिवार का मुख्य एजेंडा हिजाब के नाम पर मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा से वंचित करना है। उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी पर भी हमला किया और कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के बारे में बोलते हैं। क्या उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं है? कांग्रेस कह रही है कि संविधान किसी भी धर्म को मानने का अधिकार देता है, जिसमें वह अपने धर्म के अनुसार कपड़े पहन सकता है। हिजाब पहनने वाली छात्राओं को स्कूल में एंट्री करने से रोकना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।

उधर भाजपा कह रही कि स्कूल-कॉलेजों में धर्म को शामिल करना सही नहीं है; क्योंकि बच्चों को सिर्फ़ शिक्षा की ज़रूरत है। भाजपा सिद्धारमैया पर भी हमला कर रही है और आरोप लगा रही है कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते कथित तौर पर समुदायों के बीच दरार पैदा की और ‘टीपू जयंती’ मनाने के अलावा ‘शादी भाग्य’ जैसी योजनाएँ लाये।

“भाजपा इसको राजनीति का मुद्दा बना बना रही है, यह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव प्रचार के अपने एक भाषण में साबित कर दिया, जब उन्होंने कहा कि भाजपा राज्य में दोबारा सरकार बनते ही समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए ड्राफ्ट लेकर आएगी।

 

“स्टूडेंट के हिजाब को उनकी शिक्षा में आड़े आने देकर हम भारत की बेटियों का भविष्य लूट रहे हैं। माँ सरस्वती सभी को ज्ञान देती हैं। वह भेद नहीं करती हैं।“

राहुल गाँधी

कांग्रेस नेता

 

“इस तरह की चीज़ें (कॉलेज में हिजाब पहनना) की कोई गुंजाइश नहीं है। हमारी सरकार कठोर कार्रवाई करेगी। लोगों को कॉलेज के नियमों का पालन करना होगा। हम (शिक्षा व्यवस्था के) तालिबानीकरण की अनुमति नहीं देंगे।“

नलिन कुमार कटील

कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष

 

“सिख युवक पगड़ी पहन सकते हैं, तो मुस्लिम महिला हिजाब क्यों नहीं?”

सोनम कपूर

अभिनेत्री