Home Blog Page 543

भाजपा उत्तर प्रदेश की तर्ज पर लडेगी, राजस्थान और छत्तीसगढ का चुनाव

उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में मिली भाजपा को जीत को लेकर भाजपा के नेताओं का मानना है कि अगर  उत्तर प्रदेश की तर्ज पर और रणनीति के तहत चुनाव अन्य राज्यों में लड़ा जायेगा। तो भाजपा को लगातार जीत मिलती रहेगी और जनाधार भी बढ़ता रहेगा।

भाजपा के नेताओं ने तहलका को बताया कि भाजपा  2018 में राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य में चुनाव हार गई थी। वजह चुनाव का प्रबंधन सही नहीं था और न ही जो भाजपा का परम्परागत वोट  बैंक है। उसको सही तरीके से  भाजपा मैनेज नहीं कर पायी थी। लेकिन पार्टी अब भली-भाँति जान गई है कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करेगी। क्योंकि कांग्रेस का इन दोनों राज्य मेंं सत्ता-शासन है। और कांग्रेस का जनाधार दिन व दिन गिरता जा रहा है। अन्य कोई राजनीतिक दल वहां पर भाजपा के मुकाबले में नहीं है।

भाजपा आलाकमान से लेकर स्थानीय स्तर के नेता ये मानते है। अगर अभी से चुनाव की तैयारी कर ली जाये तो चुनाव में जीत हासिल की जा सकती है।बताते चलें उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशियों के समर्थन में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कई जनसभाएं की है। तो वहीं छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता रमन सिंह ने भाजपा के प्रत्याशियों के लिए वोट मांगे।

जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ का उत्तर प्रदेश से पुराना नाता है । चाहे व कामगार के रूप में हो या व्यापारिक गतिविधियों के लिये हो। इस लिहाज  दोनों प्रदेशों की राजनीति का मिला जुला असर चुनाव में देखने को मिलता है। वहीं राजस्थान में यह कहावत है जो एक टर्म सरकार बना लेता है। उसको दूसरे टर्म वहां की जनता आसानी से मौका नहीं देती है। इस लिहाज से राजस्थान में कांग्रेस की जगह जनता भाजपा को मौका दे सकती है।  

ओमिक्रॉन वेरिएंट भारत ने दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर तरीके से निपटा : स्वास्थ्य मंत्रालय

केंद्र सरकार ने गुरुवार को कहा कि कोरोनावायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट को भारत ने दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर तरीके से निपटा। सरकार ने कहा कि   संक्रमण के मामले पिछली लहरों के मुकाबले छह गुना अधिक थे लेकिन भारत इसके प्रसार को रोकने में सफल रहा।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह दावा करते हुए कहा कि भारत की इस कोशिश का यह नतीजा निकला कि ‘इससे अस्पतालों में कम संख्या में मरीज भर्ती हुए और पहले के मुकाबले कम मौतें हुईं। अभी 15 मार्च को खत्म हुए हफ्ते में औसतन 3,536 मामले आए और संक्रमण के वैश्विक मामलों में भारत का योगदान केवल 0.21 फीसदी रहा।’ मंत्रालय के मुताबिक कई देशों में अब भी मामले बढ़ रहे हैं जो पिछली लहरों के मुकाबले अधिक हैं।

एक वेबिनार में मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा – ‘भारत में न केवल मामले बहुत कम आए बल्कि निरंतर प्रयासों से जल्द ही मामलों में गिरावट आनी शुरू हो गयी। भारत अन्य देशों के मुकाबले ओमीक्रोन से अच्छी तरह से निपटा। भारत में तेजी से चल रहे टीकाकरण अभियान के साथ ही रोकथाम के प्रभावी उपायों और मामलों की जल्द पहचान किए जाने के कारण कोरोना वायरस की तीसरी लहर के दौरान अस्पतालों में कम संख्या में मरीज भर्ती हुए और कम मौतें हुईं।’

उन्होंने बताया कि 31 दिसंबर 2021 तक भारत में 90.8 फीसदी आबादी को कोरोना वायरस रोधी टीके की पहली खुराक दे दी गयी और 65.4 प्रतिशत को दूसरी खुराक दे दी गयी जो जिंदगियों को बचाने में अहम साबित हुई।

‘द कश्मीर फाइल्स’ के बहाने पुराने घाव कुरेदने की हो रही है कोशिश: महबूबा

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गुरुवार को आरोप लगाया कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म के बहाने सूबे में पुराने घावों को भरने और दोनों समुदायों के बीच माहौल खुशगवार करने की जगह केंद्र जानबूझकर दोनों के बीच दूरियां बनाने की कोशिश कर रहा है।’

जम्मू कश्मीर की वरिष्ठ नेता ने कहा – ‘केंद्र जिस आक्रामक तरीके से द कश्मीर फाइल्स फिल्म का प्रचार कर रहा है और कश्मीरी पंडितों के दर्द को हथियार बना रहा है, उससे उसकी गलत मंशा सामने आती है।’

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पुराने घावों को भरने और दोनों समुदायों के बीच अनुकूल माहौल बनाने के बजाय केंद्र जानबूझकर उन्हें अलग करने की साजिश हो रही है।’  एक ट्वीट में महबूबा मुफ्ती ने कहा – ‘जिस तरह भारत सरकार आक्रामक रूप से कश्मीर फाइल्स को बढ़ावा दे रही है और कश्मीरी पंडितों के दर्द को हथियार बना रही है, इससे उनकी मंशा स्पष्ट होती है।’

विवेक अग्निहोत्री द्वारा लिखित और निर्देशित तथा जी स्टूडियो द्वारा निर्मित यह फिल्म 1990 के दशक में घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन को दर्शाती है. इसमें अनुपम खेर, दर्शन कुमार, मिथुन चक्रवर्ती और पल्लवी जोशी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.

महबूबा मुफ्ती का ट्वीट –

@MehboobaMufti
The manner in which GOI is aggressively promoting Kashmir Files & is weaponising  pain of Kashmiri Pandits makes their ill intention obvious. Instead of healing old wounds  & creating a conducive atmosphere between the two communities, they are deliberately tearing them apart.

सियासी आरोप चल रहा है, बुरा न मानों होली है

जैसे-जैसे गर्मी का पारा दिल्ली में बढ़ता जा रहा है। वैसे-वैसे दिल्ली में सियासी पारा तेजी से कम होता जा रहा है। वजह साफ है कि दिल्ली में एमसीडी के चुनाव को फिलहाल टाला जा चुका है। जब तक चुनाव को लेकर नई तारीख का ऐलान नहीं होता है। तब तक सियासी दल यहीं कयास लगाते रहेंगे, देखो कब चुनाव का ऐलान होता है।
चुनाव की तारीख को टाले जाने के बाद से सबसे ज्यादा दिक्कत उन प्रत्याशियों को है। जिनका टिकट लगभग तय हो चुका था। अब नये सिरे से टिकट की कवायद होगी। इसमें अब किसको टिकट मिलता है और किसको नहीं मिलता इस बात को लेकर काफी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।ऐसे में आरोप -प्रत्यारोप की राजनीति दिल्ली में बहुत ही कम हो रही है।दिल्ली की सियासत के जानकार अमन सेठ का कहना है कि जो उम्मीद थी कि चुनाव होली के आस -पास एमसीडी के चुनावी रंगा होगा। लेकिन ऐसा न हो सका।
जिसके कारण स्थानीय नेताओं के चेहरे पर उदासी और मायूसी आसानी से देखी जा सकती है।उनका कहना है कि कई बार चुनाव स्थगित होने या चुनाव की तारीख को आगे बढ़ाये जाने से नये-नये समीकरण बनने -बिगड़ने लगते है। जिसका नतीजा ये होता है। कि फिर से चुनावी माहौल नेताओं के साथ जनता के बीच बनाना मुश्किल होता है।क्योंकि जाने टाले जाने को लेकर सियासी दल एक -दूसरे पर आरोप लगाते रहेगे। इसलिये इन दिनों तो होली मिलन की बहार है। होली मिलन में जो भी आरोप बाजी हो रही है। उसको नेता ये कह कर टाल रहे है कि बुरा न मानों होली है।

निर्णायक मोड़ पर कांग्रेस !

पांच राज्यों में हार के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया है। हार की समीक्षा के लिए जहाँ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पांच नेताओं को जिम्मा सौंपा है, वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद की आज एक बहुत महत्वपूर्ण बैठक पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ हो रही है जिसमें वे पार्टी नेताओं (जी-23) की बैठक में सामने आई ‘भावनाओं’ के बारे में उन्हें बताएँगे। इन नेताओं ने कहा है कि पार्टी नहीं टूटने दी जाएगी, हालांकि, यह काफी कमजोर हो गयी है।

पिछले कई साल से जिस तरह कांग्रेस ने चुनाव हारे हैं, उससे कार्यकर्ताओं में निराशा है। साल 2019  में लोकसभा चुनाव लगातार दूसरी बार हारने के बाद अध्यक्ष पद से राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पार्टी का जिम्मा खराब स्वास्थ्य के बावजूद ढो रही हैं। यह गंभीरता से महसूस किया जा रहा है कि पार्टी कायापलट करने का समय आ गया है। और उसे एक और  ‘कामराज योजना’ की सख्त ज़रुरत है।

आज आज़ाद की सोनिया गांधी से बैठक बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह पहली बार है जब जी-23 के नेताओं की भावनाओं को आधिकारिक रूप से आज़ाद पार्टी नेता (सोनिया गांधी) के सामने रखेंगे। अभी तक यह नेता अपनी बैठकों की जानकारी मीडिया के  जरिये ही सामने लाते रहे हैं। जाहिर है आर-पार की लड़ाई शुरू हो गयी है।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक जी-23 के नेताओं के निशाने पर वास्तव में गांधी परिवार नहीं अपितु परिवार के करीबी नेता हैं। जी-23 नेता चाहते हैं कि इन नेताओं से मुक्ति पाई जाए क्योंकि कांग्रेस की वर्तमान हालत के लिए यही जिम्मेवार हैं। इन नेताओं का मानना है कि गांधी परिवार पार्टी के लिए ज़रूरी है क्योंकि उसकी देशव्यापी अपील है, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नजदीकी कुछ नेता उन्हें सही सलाह नहीं दे रहे। इससे पार्टी का बंटाधार हो रहा है, क्योंकि आज पार्टी में उनके फैसले ही निर्णायक हैं।

सोनिया गांधी ने जिन नेताओं को पांच राज्यों में हार की समीक्षा का जिम्मा सौंपा है, जी-23 नेताओं का मानना कि इस कवायद से पार्टी को संकट से बाहर निकालने में कोई मदद नहीं मिलेगी। पार्टी की रणनीति बड़े पैमाने पर तय किये जाने की ज़रुरत है। इन नेताओं को राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने पर भी कोई ऐतराज नहीं लेकिन वे उनके आसपास के नेताओं से उन्हें मुक्ति दिलाने की मांग कर रहे हैं। जैसा कि इस गुट के नेता  सिब्बल कहते हैं – ‘मुझे सबकी कांग्रेस चाहिए, एक परिवार की नहीं।’

पांच राज्य के नतीजों पर पिछली रात जी -23 नेताओं की बैठक में पार्टी को विभाजित करने से साफ़ इनकार किया गया और कहा कि गांधी परिवार के वफादारों को प्रमुख पदों से हटाने की उनकी प्रमुख मांग है। बैठक में महसूस किया गया कि ‘पार्टी बहुत कमजोर हो गई है’ और विभाजन अपरिहार्य लगता है। अब इन भावनाओं को सोनिया गांधी से साझा करने के लिए गुलाम नबी आजाद उनसे मिलने वाले हैं।

इससे पहले सोनिया गांधी ने पिछले कल पांच राज्यों में हार के बाद स्थिति की समीक्षा के लिए पांच वरिष्ठ नेताओं राज्यसभा सदस्य रजनी पाटिल, जयराम रमेश, अजय माकन, जितेंद्र सिंह और अविनाश पांडे को जिम्‍मेदारी सौंपी थी। गांधी इसके बाद मिलने वाली रिपोर्ट के आधार पर आगे पार्टी के कोई फैसला करेंगी लेकिन आज गुलाम नबी आज़ाद के साथ उनकी बैठक कहीं ज्यादा अहम है जिसमें कुछ ठोस अगर सामने आता है तो सामूहिक रूप से पार्टी को पुनर्जीवित करने की गंभीर कोशिश शुरू की जा सकती है।

होली पर हुड़दंग न मचाये, आँखों और त्वचा का रखें ध्यान

होली का पर्व खुशियों और रंगों का त्यौहार है। होली खेलते समय कैमिकल रंगो से बचने के लिये अपनी त्वचा और आँखों का विशेष ध्यान रखें। अन्यथा ये कैमिकल युक्त रंग आपके स्वास्थ्य के लिये घातक हो सकते है।
एम्स के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ जयदीप का कहना है कि होली पर लोग नशा (भांग) का सेवन करते है। उस दौरान लोग होली के रंग में इस कदर मस्त होते है। कि उनको ये भी पता नहीं होता है कि कैमिकल युक्त रंग उनकी आँखों में जा रहा है या चोटिल शरीर के हिस्से में कहीं रंग लग रहा है।जिससे उनको काफी नुकसान होता है। डॉ जयदीप का कहना है कि होली के पर्व पर हुडदंग न मचाये बल्कि गुलाल लगाकर होली मनाये।
नैत्र रोग विशेषज्ञ डॉ जतिन वर्मा का कहना है कि अगर आंकडों पर गौर किया जाये जो कोरोना काल के पहले के है। तो उससे ये पता चलता है कि होली खेलते समय कैमिकल युक्त रंग का आँखों में जाने से आँखों में लालिमा, सूजन और संक्रमण के मामलें सबसे ज्यादा सामने आये है। कई लोगों को तो आँखों के माइनर ऑपरेशन तक हुये है। ऐसे में बचाव के तौर पर हमें सावधान रहना चाहिये। डॉ जतिन का कहना है कि होली के दौरान कुछ लोग गुब्बारे में पानी भर कर फेंकते जो आँखों से साथ सिर पर लग सकता है। ऐसे  में हमें बचना चाहिये।
बताते चलें होली का पर्व वर्ष-वर्ष का पर्व है। सो बच्चों से लेकर युवा और महिलायें इस पर्व को बढ़े हर्षोल्लास के साथ मनाते है। हार्ट रोग विशेषज्ञ डाँ आर एन कालरा का कहना है कि हार्ट रोगी भांग का सेवन न करें क्योंकि भांग के सेवन से उनका उच्च रक्त चाप बढ़ जाता है। जिससे हार्ट अटैक का खतरा रहता है।

ममता बोलीं, राष्ट्रपति चुनाव भाजपा के लिए होगा टेढ़ी खीर, विपक्ष ज्यादा मजबूत

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अब राजनितिक दलों का ध्यान राष्ट्रपति के चुनाव पर चला गया है। भाजपा भले चार राज्यों में जीत गयी है, उसकी सीटें कुछ जगह पिछली बार से कम हो गयी हैं। इस मसले पर बुधवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि
‘खेल अभी खत्‍म नहीं हुआ है’।

ममता बनर्जी ने एक बयान में कहा – ‘चार राज्‍यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा जीत के बावजूद आने वाले राष्‍ट्रपति पद के चुनाव को आसानी से न ले। यह जीत आसान नहीं होगी क्‍योंकि उस (भाजपा) के पास देशभर में मनोनीत प्रतिनिधियों की कुल संख्या का आधा भी नहीं है।’

टीएमसी नेता ने कहा कि ‘खेल अभी खत्‍म नहीं हुआ है’ और जोड़ा कि ‘जिनके पास देश में कुल विधायकों के आधे भी नहीं, उन्‍हें बड़ी बड़ी बातें करने से बचना चाहिए।’ ममता ने कहा कि विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियां, पिछली बार की तुलना में मजबूत हुई हैं।

ममता ने कहा – ‘राष्‍ट्रपति चुनाव इस बार भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। विपक्षी पार्टियों के पास देशभर में उस (भाजपा) से ज्‍यादा विधायक हैं। ममता आने वाले समय में विपक्षी दलों को एकजुट कर सकती हैं, इस तरह  के कयास पहले से लगाए जा रहे हैं।

बुलडोजर को लेकर शंका और आशंका का माहौल बनने लगा है 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुल्डोजर बाबा के नाम से इस बार के  चुनाव प्रचार जो प्रसिद्धि मिली है।उससे जरूर विपक्ष में सुगबुगाहट है ।बताते चलें 2022 चुनाव के पहले कई विधायकों और अपराधियों के अवैध  मकान , होटल सहित अनेक निर्माण कार्यों पर बुलडोजर चलवा कर निर्माण कार्यो को ध्वस्त करवाया था।
तभी से उत्तर प्रदेश की जनता योगी आदित्य नाथ को बुल्डोजर बाबा के नाम से जानने लगे थे।2022 में दोबारा मिली जीत से भाजपा गदगद है और उसके जीते हुए विधायक भी काफी खुश है। वे अपने अब विजय जुलूस के दौरान मीडिया में कह रहे है। कि उनके क्षेत्र में जो भी अवैध निर्माण कार्य हुआ है। उस पर बुलडोजर चल सकता है।
ऐसे में अवैध निर्माण कार्य करने वालों के बीच इस बात की दहशत है। कि कहीं सियासी चालों में वे फंस न जाये और उनके निर्माण कार्य को ध्वस्त न करवा दिया जाये। लेकिन वहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार संतोष पाल का कहना है कि कई बार कुछ चुने हुए नेता अपने पावर का दुरुपयोग अपने  राजनीतिक प्रतिशोध के लिये कर सकते है। या फिर बुलडोजर चलाने के नाम पर कोई समझौता कर सकते है।
अगर इस तरह की राजनीति चली तो आने वाले दिनों में  प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में नये तरह की राजनीति का चलन सामने आ सकता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा पहले भी कई बार गैर भाजपा पार्टी पर अवैध कब्जा  करने वाली पार्टी का आरोप लगा चुके है। ऐसे में ये निश्चित तौर ये नहीं कहा जा सकता है । कि विधायक की शिकायत पर कई बड़े नेताओं की अवैध इमारतों पर बुलडोजर चलता है। शंका और आशंका का जरूर माहौल बन रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, केंद्र की ‘एक रैंक – एक पेंशन’ नीति बिलकुल सही

सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों के लिए एक बड़े फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को   ‘वन रैंक वन पेंशन’ की वर्तमान नीति को उचित ठहराया। सुप्रीम अदालत ने केंद्र सरकार की नीति को सही ठहराते हुए कहा कि नीति में कोई संवैधानिक खामी नहीं है और इसे बरकरार रखना चाहिए।

मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि नीति में पांच साल में पेंशन की समीक्षा का प्रावधान है, लिहाजा सरकार पहली जुलाई, 2019 से पेंशन की समीक्षा करे और तीन महीने में बकाया राशि का भुगतान लाभार्थियों को करे। अदालत ने साथ ही इस फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया।

याद रहे याचिकाकर्ता भारतीय पूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) ने सरकार के साल 2015 के वन रैंक वन पेंशन नीति के फैसले को चुनौती दी थी। उन्होंने दलील दी थी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि यह वर्ग के भीतर वर्ग बनाता है, और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग-अलग पेंशन देता है।

बता दें केंद्र सरकार ने 7 नवंबर, 2015 को वन रैंक वन पेंशन योजना(ओरोप) की अधिसूचना जारी की थी। इसमें कहा गया था कि इस योजना की समीक्षा पांच वर्षों में की जाएगी लेकिन भूतपूर्व सैनिक संघ की मांग थी कि इसकी समीक्षा एक साल के बाद हो। इसी बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच मतभेद चल रहा था।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वन रैंक वन पेंशन पर केंद्र के फैसले में कोई दोष नहीं है और सरकार के नीतिगत मामलों में हम दखल नहीं देना चाहते हैं। अदालत ने निर्देश दिया कि सरकार पहली जुलाई 2019 की तारीख से पेंशन की समीक्षा करे। 3 महीने में बकाया का भुगतान करे।

पूर्व सैनिक संघ की तरफ से दायर इस याचिका में भगत सिंह कोश्यारी समिति ने  पांच साल में एक बार आवधिक समीक्षा की। वर्तमान नीति के बजाय एक स्वचालित वार्षिक संशोधन के साथ एक रैंक-एक पेंशन को लागू करने की मांग की गई थी। केंद्र सरकार ने 7 नवंबर, 2015 को वन रैंक वन पेंशन योजना(ओरोप) की अधिसूचना जारी की थी। इसमें बताया गया था कि योजना एक जुलाई 2014 से प्रभावी मानी जाएगी।

याद रहे इससे पहले 16 फरवरी की सुनवाई में अदालत ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए थे। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि केंद्र की अतिश्योक्ति ओरोप नीति पर आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करती है जबकि इतना कुछ सशस्त्र बलों के पेंशनरों को मिला नहीं है। इस पर केंद्र ने अपना बचाव करते हुए कहा था कि यह मंत्रिमंडल का लिया गया फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि ओरोप की अभी तक कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है।

कांग्रेस का अस्तित्व और लोकतंत्र

चुनाव-दर-चुनाव कांग्रेस का लगातार पतन होता जा रहा है। सन् 2014 में जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने केंद्र में सत्ता हासिल की, तो कांग्रेस का देश के नौ राज्यों में शासन था। अब पंजाब की हार के साथ जिन राज्यों में वह सत्ता में है, उनकी संख्या घटकर सिर्फ़ दो रह गयी है। सन् 2014 के बाद से पिछले आठ साल में कांग्रेस ने देश में हुए 45 चुनावों में से सिर्फ़ पाँच में जीत हासिल की है। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि पंजाब में उसकी हार हुई है, जबकि एक साल से भी कम समय पहले वह वहाँ जीत की स्थिति में दिखती थी। इसे पार्टी आलाकमान की अंदरूनी लड़ाई कहें या लापरवाही, वह बुरी तरह हार गयी और पंजाब में उसके मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी उन दोनों सीटों पर हार गये, जहाँ से वह लड़े थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी हार गये। इसी तरह उत्तराखण्ड में भी जीत की उसकी उम्मीद पर बर्फ़ पड़ गयी और उसके पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तक लालकुआँ सीट से चुनाव हार गये। उत्तर प्रदेश से जहाँ पार्टी नेता, प्रियंका गाँधी वाड्रा ने ‘लडक़ी हूँ, लड़ सकती हूँ’ के आकर्षक नारे पर चुनाव लड़ा और पूरे राज्य में धुआँधार प्रचार किया, वहाँ उसे दो ही सीटें मिलीं, जबकि  गोवा और मणिपुर जैसे छोटे राज्यों में भी पार्टी को कोई राहत नहीं मिली। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि नेहरू और गाँधी के करिश्मे के नाम पर वोट हासिल करने के दिन लद गये हैं और यह भी कि गाँधी परिवार वंशवाद के अन्तिम दरवाज़े पर खड़ा है।

कांग्रेस की हार पार्टी और एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है। देश को एक मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत है। हाल के चुनाव 2024 के संसदीय चुनाव के ‘सेमी-फाइनल’ के रूप में लड़े गये थे। विधानसभा चुनावों के नवीनतम परिणाम बताते हैं कि भाजपा 2024 में फिर से जीतने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। अब इसमें कोई सन्देह नहीं है कि 2024 में भाजपा को मुख्यत: कांग्रेस नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दलों के गठबंधन के ख़िलाफ़ लडऩा होगा। आम चुनाव से पहले गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल के अन्त में, जबकि कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और मिजोरम में 2023 के नवंबर और राजस्थान में दिसंबर में विधानभा चुनाव विभिन्न दलों के भविष्य को पूरी तरह तय कर देंगे। छ: बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह, जिनका पिछले साल निधन हो गया था; की अनुपस्थिति में इस साल के अन्त में हिमाचल प्रदेश को भाजपा से वापस छीनने की कांग्रेस की उम्मीद बहुत कमज़ोर है। दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अभी भी शासन में है। वहाँ भी अगले साल चुनाव होने हैं। यह सबसे पुरानी पार्टी के लिए सुधार करने का सुनहरा अवसर होगा या फिर यह होगा कि 2024 के आम चुनाव तक, वह किसी भी राज्य में सत्ता में नहीं रहेगी।

निश्चित ही लोकतंत्र में सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए एक मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत है। वास्तव में क्षेत्रीय दल कमर कस रहे हैं और आम आदमी पार्टी भी; लेकिन उनकी नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ज़्यादा है, जिसे स्वस्थ लोकतंत्र के सर्वोत्तम हितों के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। एक दशक से भी कम पुरानी आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के अलावा एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है, जो दो राज्यों में सत्ता में है और इसे उस राजनीतिक समूह का एक महत्त्वपूर्ण घटक होना चाहिए, जो 2024 में भाजपा का मुक़ाबला करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। कांग्रेस के लिए समय आ गया है कि वह अस्तित्व के संकट को रोकने के लिए तेज़ी से कार्य करे और तदर्थवाद को समाप्त करके अपना घर सुधारे। उदाहरण के लिए, सन् 2019 में राहुल गाँधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद सोनिया गाँधी अंतरिम अध्यक्ष रही हैं और वह अभी भी हैं। पाँच राज्यों में पूरी तरह से हार के बावजूद कांग्रेस के पास अभी भी देश में क़रीब 692 विधायक हैं, जबकि भाजपा के 1,373 विधायक इस बात की पुष्टि करते हैं कि उसने सब कुछ अभी नहीं खोया है। लेकिन लोकतंत्र के सर्वोत्तम हित में कांग्रेस को पुनर्जीवित करना होगा।