गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के लिये दो मुख्यमंत्रियों ने कसी कमर
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट पहुंचा अविश्वास प्रस्ताव का मामला, सुनवाई कल के लिए टली
अविश्वास प्रस्ताव रद्द करने के डिप्टी स्पीकर कासिम कसूरी के फैसले के बाद राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के प्रधानमंत्री इमरान खान के संसद (नैशनल असेंब्ली) को भंग करने की सिफारिश स्वीकार करने के बीच यह मामला पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है, जहाँ इस मामले की सुनवाई के लिए विशेष बेंच गठित कर दी गयी है। अब इस मसले पर सोमवार को (कल) सुनवाई होगी। विपक्ष, जिसने अपना स्पीकर चुनकर संसद में 192 सदस्यों के अपने साथ होने का दावा किया है, ने डिप्टी स्पीकर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है ।
इस बीच सेना ने इसे राजनीतिक घटनाक्रम बताते हुए कहा है कि इसका पाक सेना से कुछ लेना देना नहीं है। विपक्ष की एक नेता मरियम शरीफ ने आज के घटनाक्रम को संविधान के खिलाफ बताया है। बता दें आज डिप्टी स्पीकर के फैसले, राष्ट्रपति के इमरान खान की संसद भंग करने की सिफारिश को स्वीकार करने और इमरान के देश को संबोधन के बीच 30 मिनट से भी कम वक्त लगा।
लगता है कि इमरान खान ने अपना ‘मास्टर स्ट्रोक’ चलने की फुल प्रूफ तैयारी की हुई थी और विपक्ष के बड़े-बड़े महारथी भी इसका अनुमान नहीं लगा पाए। इमरान ने अमेरिका को भी आड़े हाथ लिया है, जिससे उन्होंने जनता का समर्थन जीतने की कोशिश की है। इमरान के आज के मूव को राजनीतिक जानकार ‘चतुर चाल’ बता रहे हैं।
उधर विपक्ष के नेता शाहबाज शरीफ ने कहा – ‘आज मोशन पर वोटिंग होनी थी। यह कहीं साबित नहीं हुआ कि इस मोशन के पीछे विदेशी ताकतें हैं। वोटिंग क्यों नहीं करवाई गयी। देश के साथ गद्दारी हुई है और यह खतरे की घंटी है। हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है।’
पीपीपी नेता बिलावल भुट्टो ने भी इसे संविधान के खिलाफ बताया है।’ उधर पाकिस्तान के डिप्टी अटार्नी जनरल ने भी इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने आज की कार्यवाही को गैर-आईनी बताया है।
इससे पहले आज दोपहर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया। पाक पीएम के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग न करते हुए डिप्टी स्पीकर ने विदेशी साजिश का आरोप लगाकर अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके बाद संसद की कार्यवाही को 25 अप्रैल तक स्थगित कर दिया गया।
प्रस्ताव खारिज होने के बाद खान ने राष्ट्र को संबोधित किया और इसके लिए डिप्टी स्पीकर को मुबारकबाद दी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी अवाम से कहा कि कौम चुनावों के लिए तैयार रहे। इसके बाद उनकी सरकार के एक मंत्री ने 90 दिन के भीतर चुनाव कराने का ऐलान किया। याद रहे पीटीआई की सहयोगी पार्टी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) ने इमरान सरकार से समर्थन वापस ले लिया था जिसके बाद नेशनल असेंबली में इमरान सरकार का बहुमत ख़त्म हो गया था।
बता दें पाकिस्तान की 342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सीटें चाहिए होती हैं। अविश्वास प्रस्ताव से पहले नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम नवाज़ भी काफी सक्रिय दिखीं। उन्होंने दावा किया कि विपक्ष के पास 174 सांसदों का समर्थन है।
इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज: संसद भंग करने की राष्ट्रपति से की सिफारिश
पाकिस्तान में इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है। साथ ही डिप्टी स्पीकर ने सदन की कार्यवाही को 25 अप्रैल तक स्थगित कर दिया गया है। संविधान का हवाला देते हुए इमरान खान पहले ही उनके खिलाफ विदेशी साजिश का हवाला दे चुके हैं। इमरान खान ने इसके बाद देश को सम्बोधित करते हुए कहा कि संसद सहित देश की सभी असेम्ब्लीज़ भंग कर दी जाएंगी। इमरान ने इसकी सलाह राष्ट्रपति को की है, जिससे नए चुनाव का रास्ता साफ़ हो जाएगा। सेना की तरफ से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। विपक्ष ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है।
पाकिस्तान की 342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सीटें चाहिए होती हैं। अविश्वास प्रस्ताव से पहले नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम नवाज़ भी काफी सक्रिय दिखीं। उन्होंने दावा किया कि विपक्ष के पास 174 सांसदों का समर्थन है। अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले आज सुबह पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में हुई विपक्ष की मीटिंग में 177 सांसदों ने हिस्सा लिया था। बता दें सरकार में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की प्रमुख सहयोगी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट-पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) ने उनसे किनारा कर लिया था। दो दर्जन के करीब सांसद पहले ही इमरान के खिलाफ वोट का संकेत दे चुके थे।
उधर अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले असेंबली स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव विपक्ष की तरफ से पेश किया गया। इस बीच इमरान खान ने पंजाब के राज्यपाल चौधरी मोहम्मद सरवर को उनके पद से हटा दिया। राज्यपाल को हटाने की घोषणा इमरान खान की सरकार में सूचना मंत्री फवाद खान ने ट्विटर के जरिए की। हालाँकि, राज्यपाल को हटाने के उन्होंने कोई कारण नहीं बताया, लेकिन माना जा रहा है कि पंजाब विधानसभा में भी बहुमत साबित करने की प्रक्रिया चल रही है और इसी प्रभावित करने की उन्होंने कोशिश की है।
इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से पहले संसद के आसपास के रेड जोन वाले इलाकों को सील कर हजारों सैनिकों की तैनाती कर दी गयी। आज सुबह इस्लामाबाद में एहतियातन धारा 144 भी लागू कर दी गयी।
याद रहे पाकिस्तान के 73 साल से ज्यादा के इतिहास में आधे से ज्यादा समय तक ताकतवर सेना हुकमूत पर काबिज रही है। यहाँ तक कि सेना के सत्ता में न होते हुए भी उसका देश की सुरक्षा और विदेश नीतियों में दखल रहता है।
इमरान खान ने शनिवार को देश के युवाओं से अपील की थी कि वे उनकी सरकार के खिलाफ कथित ‘विदेशी षड्यंत्र’ के खिलाफ ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शन’ करें, लेकिन सेना के खिलाफ न बोलें। हालांकि, सड़कों पर उनकी अपील का कोई असर नहीं दिखा था। खान ने वर्तमान घटनाओं को देश के ‘भविष्य के लिए युद्ध’ करार देते हुए कहा था कि पाकिस्तान ‘निर्णायक मोड़’ पर खड़ा है और दश की सेना को फैसला करना होगा।
प्राइवेट स्कूल वालों की मनमानी
श्रीलंका में आपातकाल के बाद भी हिंसा और तोड़फोड़ जारी
श्रीलंका में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी है, लेकिन इसके बावजूद वहां हिंसा जारी है। खाद्य पदार्थों के गंभीर संकट के बाद वहां लोगों में जबरदस्त नाराजगी है और वे हिंसा पर उत्तर आये हैं। देश में कई जगह प्रदर्शन, सरकारी संपत्तियों में तोड़ फोड़ की गई है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक लगातार बिजली कट और ईंधन की कमी ने लोगों में जावबर्दस्त गुस्सा भर दिया है क्योंकि वे गंभीर दिक्कतें झेल रहे हैं। देश में बिगड़ रहे हालात देखते राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने शनिवार को आपातकाल लागू करने की घोषणा की।
देश के आर्थिक संकट से उपजी लोगों की दिक्क्तों के बाद वहां आगजनी, हिंसा, प्रदर्शन, सरकारी संपत्तियों में तोड़ फोड़ शुरू हो गयी है। पावर कट, खाने-पीने की चीजों समेत श्रीलंका कई दिक्कतों से जूझ रहा है। आपातकाल को पहली अप्रैल से लागू किया गया है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति कार्यालय से जारी आदेश में कहा गया है कि देश में कानून व्यवस्था कायम रखने, आवश्यक चीजों की सप्लाई को जारी रखने के लिए ये फैसला लिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस ने 50 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। कोलंबो और उसके आसपास के इलाकों में शुक्रवार को कर्फ्यू लगा दिया गया था, ताकि छिटपुट विरोध प्रदर्शनों को रोका जा सके।
नवरात्र के अवसर पर आज मंदिरों मेंं धूम
रूसी विदेश मंत्री लावरोव से मिले जयशंकर, बोले भारत कूटनीति का पक्षधर
जयशंकर का यह ब्यान उन चर्चाओं के बीच आया है जिनमें कहा जा रहा है कि रूस के खिलाफ भारत का रुख ‘कड़ा नहीं है’। अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी भारत पर आरोप लगा रहे हैं कि भारत रूस के निकट चला गया है। आलोचनाओं को लेकर जयशंकर ने कहा – ‘यूरोप रूस से युद्ध के पहले की तुलना में ज्यादा तेल खरीद रहा है। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो ये स्वाभाविक है कि कोई भी देश बाजार में जाकर देखेगा कि उनके लोगों के लिए क्या अच्छा सौदा हैं।’
याद रहे अमेरिका ने कल ही धमकी दी है कि रूस पर प्रतिबंधों से बचने के लिए भारत को परिणाम भुगतना होगा। हालांकि, इन सबसे बेपरवाह विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा – ‘मुझे पूरा यकीन है कि अगर हम दो या तीन महीने तक प्रतीक्षा करें और वास्तव में देखें कि रूसी तेल और गैस के बड़े खरीदार कौन हैं, तो मुझे संदेह है कि सूची पहले की तुलना में बहुत अलग नहीं होगी। हम उस सूची में शीर्ष 10 में भी नहीं होंगे।”
इस बीच जयशंकर ने दो दिन के भारत दौरे पर आये रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ शुक्रवार को मुलाकात की। उन्होंने इस दौरान कहा कि ‘भारत ने अपने एजेंडे का विस्तार करते हुए सहयोग में विविधता लाने की कोशिश की है। हमारी आज की बैठक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनावपूर्ण हो रही स्थिति पर हुई। भारत हमेशा से मतभेदों या विवादों को बातचीत और कूटनीति के जरिये सुलझाने का पक्षधर रहा है।’
युवाओं के आदर्श भगत सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को जब कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में विप्लवी भारत गैलरी का उद्घाटन किया, तो यह स्वतंत्रता सेनानियों की याद में आयोजित एक कार्यक्रम भर नहीं था, बल्कि इसका महत्त्व कहीं अधिक था। एक कृतज्ञ राष्ट्र के रूप में सरकार ने आज़ादी के 75 साल पर अमृत महोत्सव के रूप में अपने स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के साहस और सर्वोच्च बलिदान को सम्मानित किया। इसके लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, महाराष्ट्र, गुजरात, मणिपुर और पुडुचेरी में एक साथ कार्यक्रम आयोजित किये गये। शहीदी दिवस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान की कहानियाँ हम सभी को देश के लिए अथक परिश्रम करने को प्रेरित करती हैं, जबकि हमारे अतीत की विरासत हमारे वर्तमान का मार्गदर्शन करती है और हमें एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करती है।
यह थोड़ा अलग हो सकता है कि जबसे आम आदमी पार्टी ने शहीद भगत सिंह के दृष्टिकोण को अपनाया है और पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल के दिनों में विभिन्न कार्यक्रमों में इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाने शुरू किये हैं, राजनीतिक दलों में किंवदंती के नाम पर शपथ लेने की होड़-सी है। ऐसा भी लगता है कि आम आदमी पार्टी महान् शहीद से जुड़े देशभक्ति के बसंती रंग को भाजपा के भगवा रंग मुक़ाबले उभारने की कोशिश कर रही है। पंजाब में सत्ता में नयी आयी आम आदमी पार्टी ने सरकारी कार्यालयों में भगत सिंह के चित्र लगाये हैं और उनके शहीदी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। पंजाब विधानसभा में उनकी प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव भी रखा है। भगत सिंह की तस्वीरों वाली टी-शर्ट पहने युवाओं को शहीद के चित्रों वाले वाहनों के साथ उत्साह में भरा देखा जा सकता है, जो स्पष्ट रूप से युवा आदर्श और पोस्टर बॉय बन गये हैं। भगत सिंह के नाम के स्टीकर ‘लगदा, फेर औना पउ’ (लगता है, फिर आना होगा) के नारे के साथ युवाओं के बीच क्रेज जैसा बन गया है।
‘तहलका’ के इस अंक में विशेष रिपोर्ट ‘भगत सिंह : भारत के शाश्वत् शहीद’ के लेखक 91 वर्षीय वयोवृद्ध पत्रकार राज कँवर हैं, जो बताते हैं कि उनका जन्म उसी दिन हुआ था, जब भगत सिंह शहीद हुए थे और लाहौर में पूरी तरह से हड़ताल हुई थी। गोपाल मिश्रा की लिखी हमारी आवरण कथा ‘तबाही की ज़िद’ पश्चिमी गठबंधन के बारे में है, जो चीन की महत्त्वाकांक्षाओं पर नज़र रखता है; भले ही यह रूस को यूक्रेन युद्ध से बाहर निकलने का भी अवसर देता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर पहले ही चीन को एक स्पष्ट सन्देश भेज चुके हैं कि भारत के साथ सम्बन्ध सामान्य बनाने की ज़िम्मेदारी बीजिंग की है।
यह उल्लेखनीय है कि कैसे भारत ने रूस पर अमेरिकी दबाव का विरोध किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफ़सोस जताया है कि भारत ‘कुछ हद तक अस्थिर’ रहा है; लेकिन वास्तव में उसने अमेरिका और उसके सहयोगियों के लगातार दबाव के बावजूद एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करते हुए गरिमा के साथ अपनी पकड़ बनायी है। इतिहास गवाह है कि सन् 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान रूस भारत के साथ खड़ा था। एक समय आजमाये हुए भरोसेमंद सहयोगी के साथ खड़े होकर और अपनी पकड़ बनाकर भारत ने बेहतर सन्तुलन दिखाया है।
चरणजीत आहुजा
जलवायु परिवर्तन से खेती हो रही ख़राब
देश की कृषि पर जलवायु परिवर्तन का सीधा असर पड़ रहा है। कृषि (खेती) करने वाले जलवायु परिवर्तन से कैसे निपटें? इसको लेकर कृषि विशेषज्ञों, किसानों और व्यापारियों ने ‘तहलका’ संवाददाता को बताया कि एक तो जलवायु वायु परिवर्तन है, दूसरा हमारी व्यवस्था में तमाम दोष हैं। भारत कृषि प्रधान देश होने के बावजूद किसानों की समस्याओं का समाधान यहाँ ठीक से नहीं होता। इससे किसानों की समस्याएँ लगातार बनी और बढ़ती रहती हैं।
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र चंद्रावरकर का कहना है कि किसानों के पास कृषि उत्पादन बढ़ाने के संसाधनों की कमी है, ऊपर से सुविधाएँ किसानों को सरकार से मिलनी चाहिए, वो मिलती नहीं हैं। इसके अलावा जलवायु परिर्वतन के कारण कभी ज़्यादा वर्षा, तो कभी ज़्यादा गर्मी और सूखा पड़ता है, जिसका सीधा असर कृषि पर पड़ता है। एक दौर में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों की फ़सलों की अपनी अलग पहचान होती थी। पंजाब में मक्का, गेहूँ, चावल और सब्ज़ियों में पत्ता गोभी, टमाटर, आलू और हरी मिर्च आदि अधिक होती हैं। वहीं मध्य प्रदेश में गेहूँ, चना और धान अधिक होते हैं। जलवायु परिवर्तन से यह पहचान धूमिल हुई है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं फ़सल ज़्यादा हो रही, तो कहीं कम हो रही है। यह जलवायु परिवर्तन का ही तो असर है, जो मार्च के महीने में मई जैसी गर्मी पड़ रही है। इसका असर कृषि पर पड़ रहा है। यह फ़सल पकने का समय है, इस समय खेतों में नमी की ज़रूरत है। इस गर्मी से गेहूँ की हज़ारों कुन्तल पैदावार कम होगी।
कृषि मामलों के जानकार किशन पाल का कहना है कि भारत में अधिकतर किसान मौसम के सहारे खेती करते हैं। लेकिन अब कई अमानवीय कृत्यों के कारण पिछले कुछ वर्षों से खेती पर विपरीत असर पड़ रहा है, जिसका ख़ामियाज़ा पूरी मानव जाति को भुगतना पड़ रहा है। भारत में लगभग 70 $फीसदी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है, जो कई समस्याओं से जूझ रही है। एक दौर में पंजाब को लेकर देश के बाक़ी राज्यों के किसानों में एक उत्साह रहता था कि वे भी पंजाब की तर्ज पर खेती करके उत्पादन क्षमता बढ़ाएँगे। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पंजाब में भी काफ़ी अन्तर देखा जा रहा है।
किसान भूपेन्द्र सिंह का कहना है कि एक तरफ़ किसानों को महँगाई मार रही है, दूसरी तरफ़ प्राकृतिक आपदाएँ। फ़सलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए उसके पास संसाधन नहीं हैं। हाल यह है कि किसानों का पूरा परिवार खेती के अलावा कोई दूसरा काम तक नहीं कर पाता। अब डीजल, बीज, खाद, बिजली-पानी सब महँगे होते जा रहे हैं। उस पर हर मौसम में मौसम की मार अलग। ऐसे हालात में पैदावार को बढ़ाना मुश्किल हो रहा है। कृषि वैज्ञानिक खेतों में आकर कृषि उत्पादन बढ़ाने के नये-नये फार्मूले तो बताते हैं; लेकिन संसाधनों के अभाव में उनका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टमाटर, हरी मिर्ची और अन्य हरी सब्ज़ियों की पैदावार ज़्यादा होती है, जिसकी सप्लाई दिल्ली सहित अन्य राज्यों में होती है। लेकिन इसी मार्च में अचानक पड़ी गर्मी से सभी सब्ज़ियों की पैदावार पर असर पड़ रहा है।
पूसा कृषि अनुसंधान से जुड़े एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट और उससे निपटने के लिए तमाम शोध हो रहे हैं। बड़े-बड़े सेमिनार हो रहे हैं। लेकिन उसका सीधा लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है, न ही उन्हें सही जानकारी दी जा रही है। इसकी वजह यह है कि जिन कृषि वैज्ञानिकों की तैनाती ज़िला और तहसील स्तर पर की गयी है, उनका किसानों से और फ़सल से कोई लेना-देना नहीं है।
आज़ादपुर मंडी के व्यापारी प्रमोद कुमार का कहना है कि सरकार सहित तमाम अर्थशास्त्री खेती को लेकर तर्क तो देते हैं; समय-समय पर आँकड़े भी पेश करते हैं; लेकिन किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। बड़े किसानों तो बेहतर उत्पादन ले लेते हैं; लेकिन छोटे किसानों को हमेशा घाटा होता है। पिछले दो-तीन साल से छोटे और मझौले किसानों की फ़सल मंडी में कम बिकने को आ रही है। खेती के लिए समय पर पानी की ज़रूरत होती है। लेकिन जल स्तर के लगातार गिरने से वे फ़सलों की पर्याप्त सिंचाई नहीं कर पाते। मौसम के इंतज़ार में समय पर बुबाई नहीं कर पाते। कई बार तो समय पर बीज और खाद भी नहीं मिलते। अभी दो साल से खाद की क़िल्लत से किसान परेशान रहे हैं। ऊपर से महँगाई। बड़े किसानों की वजह से कोरोना महामारी के दौर में मक्का निर्यात बढ़ा है। लेकिन छोटे और मझौले किसानों का मक्का उत्पादन न के बराबर रहा है। मक्का भारत में गेहूँ और चावल के बाद तीसरी फ़सल है।
कृषि वैज्ञानिक ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है कि जलवायु संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। इससे निपटने के लिए सरकार को ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है; ताकि किसानों को सीधा लाभ मिल सके। इसके लिए किसानों के लिए अलग से आयोग का गठन होना चाहिए, जहाँ किसानों की समस्याओं का निराकरण हो। उन्हें डीजल, बीज, खाद और बिजली सस्ते मूल्य पर मिलें। सब्सिडी मिले। अगर हम जलवायु परिवर्तन का रोना रोते रहे, तो कृषि पर गहरा संकट आ सकता है। इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी फ़सलों की अच्छी पैदावार के लिए समाधान खोजना होगा, अन्यथा छोटे-मझोले किसानों की दशा और ख़राब होगी। इससे किसानों का खेती से और भी मोहभंग होगा और पलायन बढ़ेगा।
विपणन सत्र 2021-22 के बाद पिछले साल देश में सरकार द्वारा $करीब 433.32 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की ख़रीद की गयी थी, जो एक बेहतरीन रिकॉर्ड है। क्योंकि उससे पिछले साल यानी विपणन सत्र 2020-21 के बाद 389.92 लाख मीट्रिक टन गेहूँ सरकार द्वारा ख़रीदा गया था। लेकिन इस साल पैदावार कम होने पर फिर से सरकारी ख़रीद घट सकती है। इस पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी न मिलने का भी असर पड़ सकता है। हालाँकि वित्त वर्ष 2022-23 के लिए आम बजट पेश करते समय केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने ख़रीद लक्ष्य को बढ़ाने की बात कही थी। लेकिन फ़सल उत्पादन ही कम होगा, तो ख़रीद कहाँ से होगी?
तबाही की ज़िद
रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध थमा भी, तो स्थायी शान्ति नहीं होगी
रूस-यूक्रेन युद्ध ख़तरनाक मोड़ पर पहुँच चुका है। भाड़े के सैनिकों ने यूक्रेन में शान्ति की सम्भावनाओं में देरी की, जिसका नतीजा सबके सामने है। यूक्रेन ने जिस तरह रूसी आक्रमण के आगे हथियार नहीं डाले, उसे देखते हुए वर्तमान हालात में चीन ताइवान के अधिग्रहण में देरी कर सकता है। युद्ध और उससे पैदा हो रहे हालात पर बता रहे हैं गोपाल मिश्रा :-
रूसी-यूक्रेनी संघर्ष में हज़ारों भाड़े के सैनिकों की उपस्थिति और रूस के ख़िलाफ़ कभी न ख़त्म होने वाले एंग्लो-अमेरिकन जुनून ने न केवल पूर्वी यूरोप में शान्ति को मायावी बना दिया है। और अगर चीन भी ताइवान पर क़ब्ज़ा करने का फ़ैसला करता है, तो यह दुनिया के अन्य हिस्सों में शान्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इस जटिल युद्ध में अपनी तटस्थता बनाये रखने के भारतीय रूख़ को मार्च के तीसरे सप्ताह में जापानी प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा की नई दिल्ली यात्रा के दौरान दोहराया गया था कि ‘संघर्ष के समाधान के लिए संवाद और कूटनीति के मार्ग के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।’
रूस के ख़िलाफ़ ब्रिटिश-अमेरिकी जुनून का पता ज़ार हुकूमत के दौरान मध्य एशिया में रूसी विस्तारवाद के पिछले इतिहास और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ियों को इसके प्रारम्भिक समर्थन से लगाया जा सकता है। रूस-यूक्रेन संघर्ष के दोनों पक्षों में बड़े पैमाने पर भाड़े के सैनिकों के शामिल होने से, शान्ति के मायावी बने रहने की सम्भावना है। नतीजतन त्वरित युद्धविराम भी इस युद्ध में स्थायी शान्ति सुनिश्चित नहीं कर सकता, जिसे टाला जा सकता था।
यदि कोई रूसी संगठन संघर्ष क्षेत्र में निजी सैनिकों को लुभाने के लिए यूक्रेन की एक लोकप्रिय पोर्क वसा ‘सैलो’ की पेशकश करता है, तो विपरीत पक्ष, जिसे उदारतापूर्वक पश्चिमी शक्तियों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है; कथित तौर पर इन सशस्त्र स्वयंसेवकों को कहीं भी लडऩे के लिए तैयार करने के लिए प्रतिदिन 2,000 अमरीकी डॉलर (1.40 लाख रुपये) तक की पेशकश कर रहा है। वैगनर समूह, जिसने कथित तौर पर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की हत्या करने की कोशिश की थी; अब दो बार कथित तौर पर डोनबास क्षेत्र में सक्रिय हो गया है, जिसे हाल ही में रूस द्वारा एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी गयी है। इस बीच चेचन मुसलमान दोनों तर$फ से लड़ रहे हैं। जबकि रमज़ान कादिरोव के लड़ाकों के नेतृत्व में पुतिन समर्थक समूह ने कथित तौर पर कीव के उत्तर में एक हवाई क्षेत्र ले लिया है और रूसी सेना का एक हिस्सा राजधानी की ओर बढ़ रहा है। रूस विरोधी चेचेन भी कथित तौर पर युद्ध में शामिल हो गये हैं। सन् 1994 से 1996 और सन् 1999 से 2009 तक रूस के ख़िलाफ़ दो चेचेन युद्धों के दिग्गज अब कथित तौर पर यूक्रेन में रूस के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। इससे पहले शेख मंसूर और द्जोखर दुदायेव बटालियन के नाम से जाने वाले दो चेचन स्वयंसेवक 2014 से डोनबास में रूसी समर्थित अलगाववादियों और नियमित रूसी सेनाओं के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं।
इससे पहले 27 फरवरी को द्जोखर दुदायेव बटालियन के कमांडर एडम ओस्मायेव, यूक्रेन को जीतने में मदद करने की क़सम खायी थी। उन्होंने एक वीडियो सन्देश में घोषणा की कि ‘मैं यूक्रेनियन को बताना चाहता हूँ कि असली चेचेन आज यूक्रेन की रक्षा कर रहे हैं।’
ओसमायेव ने कहा- ‘हमने यूक्रेन के लिए लड़ाई लड़ी है और अन्त तक लड़ते रहेंगे।’ उन्होंने रूसी नेशनल गार्ड में लड़ रहे चेचेन से भी पक्ष बदलने की अपील की, और कहा- ‘क्योंकि पूरी सभ्य दुनिया यूक्रेन की मदद करती है। इसलिए मैं उनसे यूक्रेन की तरफ़ जाने का भी आग्रह करता हूँ, यहाँ कमांड स्टाफ, जनरलों के बीच भी, चेचेन राष्ट्रीयता के लोग हैं, और वे आपकी देखभाल करेंगे। मैं इन लोगों के सभी रिश्तेदारों और दोस्तों से भी आग्रह करता हूँ कि वे जल्द-से-जल्द अपने बच्चों को यहाँ से ले जाएँ।’
निजी कम्पनियों का बढ़ता कारोबार
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अशान्ति, संघर्ष और युद्धों ने निजी सैन्य कम्पनियों के लिए बड़ी व्यावसायिक सम्भावनाओं को जन्म दिया है। वे ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठी करते हैं, अमीर और शक्तिशाली को सुरक्षा प्रदान करते हैं और दुनिया भर में भाड़े के सैनिकों की आपूर्ति भी करते हैं। ऐसा अनुमान है कि उनका कारोबार साल 2030 तक 475 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में मुख्यालय वाली कई निजी सुरक्षा कम्पनियाँ हैं; जैसे साइलेंट प्रोफेशनल, मोज़ेक, सैंडलाइन इंटरनेशनल युद्धग्रस्त यूक्रेन में सक्रिय हो गये हैं। यह 90 के दशक के दौरान अंगोला और सिएरा लियोन की ओर से सक्रिय रहे हैं। अमेरिका स्थित ख़ुफ़िया कम्पनी मोज़ेक, 2014 से यूक्रेन में पहले से ही काम कर रही है। यह ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठी करने और राजनीतिक रूप से उजागर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर मदद करने में बेहतरीन संगठनों में से एक के रूप में जाना जाता है।
एक अन्य निजी संगठन ब्लैकवाटर ने यूगोस्लाविया में गृहयुद्ध के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने के अलावा इसने बोस्नियाई और निर्माण बलों को अपने लोगों को सुरक्षित स्थानों पर निकालने में मदद की थी। इससे पहले जब रूसी सेना ने फरवरी के अन्तिम सप्ताह में यूक्रेन में मार्च किया था, तो यह अनुमान लगाया गया था कि यूक्रेन रूसी आक्रमण का कोई प्रभावी प्रतिरोध करने में सक्षम नहीं हो सकता है। हालाँकि चार सप्ताह के सैन्य अभियानों के बाद भी यूक्रेनियन ने आत्मसमर्पण नहीं किया। इस प्रकार युद्ध यूरोप में एक लम्बे समय तक चलने वाला संघर्ष बन गया है। यह क्षेत्र विशेष रूप से यूक्रेनियन, पहले के युद्धों में हमेशा अग्रणी राज्य रहा है।
आठ दशक बाद वे फिर से एक युद्ध में हैं, जो कोई नहीं चाहता था। इससे पहले यूएसएसआर और नाज़ी जर्मनी ने मोलोटोव-रिबेंट्रोप के बीच समझौते के रूप में जाने जाने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जब इसका सामना करना पड़ा था। इसने जर्मनी और यूएसएसआर के बीच पूर्वी यूरोप के विभाजन को जन्म दिया था।
चीन-रूस शिखर सम्मेलन
अमेरिकी राष्ट्रपति, जो बिडेन और चीनी राष्ट्रपति के बीच महत्त्वपूर्ण शिखर सम्मेलन से कुछ दिन पहले चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने ज़ोर देकर कहा था कि रूसी-यूक्रेनी संघर्ष पर चीन की स्थिति हमेशा सुसंगत रही है। और इस प्रेक्षण को ख़ारिज कर दिया कि इसमें कोई असंगति है। उनका बयान काफ़ी सार्थक था, जब उन्होंने कहा- ‘यह वे देश हैं, जो यह सोचकर ख़ुद को भ्रमित करते हैं कि वे शीत युद्ध जीतने के बाद इसे दुनिया पर हावी कर सकते हैं, जो अन्य देशों की सुरक्षा की अवहेलना में नाटो के पूर्व की ओर विस्तार को पाँच बार चलाते रहते हैं। चिन्ताओं, और जो दुनिया भर में युद्ध छेड़ते हैं, जबकि अन्य देशों पर जुझारू होने का आरोप लगाते हैं, उन्हें वास्तव में असुविधाजनक महसूस करना चाहिए।’
चीनी बयान और गरमा गया, जब रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पश्चिमी शक्तियों को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि रूस ने पश्चिम पर भरोसा करने के बारे में भ्रम ख़त्म कर दिया है और मॉस्को कभी भी संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था को स्वीकार नहीं करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी नेता शी जिनपिंग की वार्ता सामान्य अमेरिकी बयानबाज़ी से भरी हुई दिखायी दी। इस महत्त्वपूर्ण शिखर वार्ता से पहले चीन के केंद्रीय विदेश मामलों के आयोग के निदेशक यांग जीची और रोम में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जेक सुलिवन के बीच गुप्त वार्ता ने उच्च स्तरीय वार्ता का मार्ग प्रशस्त किया था। चीनी पक्ष ने चर्चा के विवरण का ख़ुलासा नहीं किया। हालाँकि यह स्वीकार किया कि वार्ता स्पष्ट, गहन और रचनात्मक थी और इसमें ताइवान पर चर्चा शामिल थी।
माना जाता है कि अमेरिका ने चीन को आश्वासन दिया है कि ताइवान को एक स्वतंत्र और सम्प्रभु देश के रूप में मान्यता देने का उसका कोई इरादा नहीं है। तत्कालीन विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ, जो मार्च में ताइवान में थे; ने माँग की कि संयुक्त राज्य अमेरिका को ताइवान को एक सम्प्रभु देश के रूप में मान्यता देनी चाहिए। फ़िलहाल अमेरिका 1979 में बने ताइवान रिलेशन एक्ट के तहत ताइवान के साथ अपने सम्बन्ध बनाये हुए है। माना यह भी जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका ने चीनी सामानों पर लगाये गये भारी शुल्क को वापस लेने का भी आश्वासन दिया है। अपनी ओर से चीन ने कथित तौर पर आश्वासन दिया है कि वह क्रीमिया के रूसी क़ब्ज़े की दिशा में अपनी नीति जारी रखेगा। इसी तरह यह यूक्रेन के दो क्षेत्रों को स्वतंत्र देशों के रूप में वैध नहीं करेगा। बाइडेन की चीन को चेतावनी कि रूस की मदद करने पर उसे इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी; इसे ज़्यादातर अमेरिकी बयानबाज़ी का हिस्सा माना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सुलिवन और यांग जिएची के बीच वार्ता, जिसे व्हाइट हाउस ने रोम में सात घंटे की बैठक कहा था; ने शिखर सम्मेलन के लिए एजेंडा निर्धारित किया था। यह देखा जाना बाक़ी है कि वार्ता चल रहे यूरोपीय युद्ध को कितना प्रभावित करेगी।
अमेरिकी पक्ष का दावा है कि बाइडेन ने चीन को पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव से रूस को बाहर निकालने या यहाँ तक कि पड़ोसी यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के हमले के लिए सैन्य सहायता भेजने के किसी भी विचार को छोडऩे के लिए स्पष्ट सन्देश दिया है। चीनी टेलीविजन चैनल ने कहा है कि शी जिनपिंग ने कहा कि वीडियो कॉल के दौरान राज्यों के बीच संघर्ष किसी के हित में नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि शान्ति और सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सबसे मूल्यवान ख़ज़ाना है।
दो सम्भावनाएँ
यह अभी तक पता नहीं चल पाया है कि क्या उप विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन का बयान आधिकारिक लाइन को दर्शाता है कि चीन को मैदान में उतरना चाहिए और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के ख़िलाफ़ पश्चिम के साथ सेना में शामिल होना चाहिए। उसने कहा कि चीन को यह समझना चाहिए कि उनका भविष्य संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ यूरोप के साथ, दुनिया भर के अन्य विकसित और विकासशील देशों के साथ है। उनका भविष्य व्लादिमीर पुतिन के साथ खड़े होने का नहीं है। इन आक्रामक अमेरिकी तेवरों के बीच बीजिंग ने रूस की निंदा करने से इन्कार कर दिया है। अमेरिकी नीति निर्माताओं के सामने एजेंडा यह प्रतीत होता है कि चीन को रूस को पूर्ण वित्तीय और सैन्य सहायता न देने से कैसे रोका जाए?
अगर चीनी रूसियों का समर्थन करते हैं, तो यह कहा जाता है कि यह एक पूर्ण युद्ध बन सकता है। आशंका यह है कि अगर रूसियों को चीनी समर्थन मिलता है, तो रूस प्रतिबंधों का सामना करने और अपना युद्ध जारी रखने में सक्षम होगा। इससे पश्चिमी सरकारों को भी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था पर वापस हमला करने के दर्दनाक फ़ैसले का सामना करना पड़ेगा, जिससे बाज़ार में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल हो सकती है। राज्य के सचिव एंटनी ब्लिंकन ने केवल यह आशा व्यक्त की कि चीन रूस की आक्रामकता का समर्थन करने के लिए किसी भी कार्रवाई के लिए ज़िम्मेदार होगा और हम जतवाब में संकोच नहीं करेंगे। उन्होंने आग्रह किया कि इस युद्ध को समाप्त करने के लिए मास्को को मजबूर करने के लिए उनसे जो भी होगा करेंगे। लेकिन उन्होंने कहा कि वह चिन्तित थे कि वे सीधे सैन्य सहायता के साथ रूस की सहायता करने पर विचार कर रहे हैं।
अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी शक्तियों की आशंकाओं के बावजूद, जिनपिंग और पुतिन ने फरवरी, 2022 में बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक में मुलाक़ात के दौरान पुतिन ने यूक्रेन पर हमला शुरू करने से पहले अपनी क़रीबी साझेदारी को फाइनल कर दिया था। तबसे बीजिंग ने आक्रमण पर अंतरराष्ट्रीय शोर में शामिल होने से इन्कार कर दिया, जबकि यूरोपीय तनाव के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो को दोषी ठहराते हुए रूसी लाइन का समर्थन किया। क्रेमलिन के वार्ता बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए चीनी अधिकारियों ने फिर से आक्रमण को युद्ध के रूप में सन्दर्भित करने से इन्कार कर दिया। हालाँकि चीन ने यूक्रेन की सम्प्रभुता को बार-बार अपने समर्थन की घोषणा करके बचने का रास्ता बनाये रखा है। यह दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक चीन को पूर्वी यूरोप में शान्ति को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में मदद कर सकता है, जो अमेरिका और अन्य पश्चिमी अर्थ-व्यवस्थाओं से मज़बूती से जुड़ा हुआ है।
चूँकि जिनपिंग ख़ुद को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के पुनर्निर्माण और सुधार के लिए एक वास्तुकार के रूप में मानते हैं, वह युद्ध को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वह जल्द ही प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताओं को सन्तुलित करने की कोशिश करते नजर आएँगे कि रूस के साथ चीन की साझेदारी को बनाये रखना चाहेंगे। साथ ही वह पश्चिम में चीन के सम्बन्धों को कमज़ोर नहीं करना चाहेंगे।
व्यापक समझौता
वर्तमान स्थिति में चीन द्वारा रूस की सुरक्षा चिन्ताओं को दूर करने के लिए पश्चिमी शक्तियों पर प्रभाव डालने की सम्भावना है। न तो नाटो का और विस्तार किया जाना चाहिए और न ही यूक्रेनी प्रयोगशालाओं को ऐसे शोधों में लगाया जाना चाहिए, जिनका उपयोग जैव-हथियार विकसित करने के लिए किया जा सकता है। इसने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि रूस के पास वैध सुरक्षा चिन्ताएँ हैं, जिन्हें सम्बोधित करने और रूसी दावों को प्रतिध्वनित करने की आवश्यकता है कि अमेरिका यूक्रेन में जैविक हथियारों पर गुप्त रूप से काम कर रहा है, बेशक आरोपों को अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र द्वारा ख़ारिज कर दिया गया है। हालाँकि चीन का कहना है कि अगर पश्चिमी शक्तियाँ जाँच के लिए सहमत होती हैं, तो वह इस क्षेत्र में शान्ति स्थापित कर सकती है।
बीजिंग की तटस्थता कीव और मॉस्को के बीच संघर्ष को समाप्त करने में मदद कर सकती है। चीन का यह कथन कि वह रूस के साथ अपनी मित्रता को बनाये रखने का इरादा रखता है, जिसे वह असीमित और बहुत मज़बूत कहता है, इस आश्वासन के रूप में माना जाता है कि चीन रूस को अपमानित किये बिना शान्ति बहाल करने में मदद करेगा। शायद यही कारण था कि नियमित रूप से गुरुवार को चीन के विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग में प्रवक्ता झाओ लिजियन ने ज़ोर देकर कहा कि चीन की स्थिति सुसंगत है और उन लोगों पर गोल है, जो किसी भी असंगति का सुझाव देते हैं।
ये वो देश हैं, जो यह सोचकर ख़ुद को भ्रमित करते हैं कि वे शीत युद्ध जीतने के बाद इसे दुनिया पर हावी कर सकते हैं, जो अन्य देशों की सुरक्षा चिन्ताओं की अवहेलना में नाटो के पूर्व की ओर विस्तार को पाँच बार चलाते रहते हैं, और जो दुनिया भर में युद्ध छेड़ते हैं। दोनों देशों ने 2021 के अन्त में संयुक्त सैन्य और नौसैनिक अभ्यास किया था और 4 फरवरी को युद्ध से कुछ हफ़्ते पहले 5,000 शब्दों का एक बयान जारी किया था, जिसमें नाटो के विस्तार के ख़िलाफ़ सुरक्षा ब्लॉक को शीत युद्ध का अवशेष बताया गया था।
चीन की नयी रणनीति
ऐसा प्रतीत होता है कि चीन क्षेत्र में शान्ति के लिए मदद कर रहा है; क्योंकि लम्बे समय तक संघर्ष उसके महत्त्वपूर्ण आर्थिक हितों को नुक़सान पहुँचा सकता है। यह रूसी आख्यान का समर्थन कर रहा हो सकता है; लेकिन यह जानता है कि चीनी मदद से संघर्ष विराम में देरी होगी। इसे रूस की त्वरित जीत से फ़ायदा हो सकता था; लेकिन यूक्रेन के प्रतिरोध ने ताइवान पर कम-से-कम कुछ समय के लिए बलपूर्वक क़ब्ज़ा करने की उसकी योजना को विफल कर दिया है। पश्चिमी समर्थन के साथ यूक्रेनी अर्थ-व्यवस्था जल्दी या बाद में पश्चिमी यूरोप का हिस्सा बन जाएगी।
ऐसा प्रतीत होता है कि यूक्रेनी देशभक्ति ने चीन को ताइवान के ख़िलाफ़ किसी भी आक्रमण को शुरू करने से रोक दिया है। लम्बे समय तक युद्ध यूरेशिया में अपनी महत्त्वाकांक्षी वित्तीय पहल को परेशान करने वाले ऊर्जा क्षेत्र में मूल्य मुद्रास्फीति का कारण बन सकता है। चीन यह भी जानता है कि चीन के भीतर पुतिन हर गुज़रते दिन के साथ अपनी लोकप्रियता खोते जा रहे हैं, इसलिए यदि पुतिन को गद्दी से हटा दिया जाता है, तो चीनी समर्थन उल्टा हो सकता है।
हालाँकि चीन ख़ुद को पुतिन से दूर कर रहा होगा; लेकिन इस बदलाव में कुछ समय लग सकता है। चूँकि चीन रूस के साथ खुले तौर पर व्यापार करता है- वह अपना कच्चा तेल, अन्य चीज़ों के साथ गैस ख़रीदता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से रूस का समर्थन कर रहा है और लगता है कि यह सोचने की कल्पना की उड़ान है कि चीन रूस के साथ अपने आर्थिक सम्बन्धों से मुँह मोड़ लेगा, भले ही वह ताजा सैन्य सहायता और उपकरण प्रदान करने से क़दम वापस खींच ले।
वार्ताओं का दौर
जापानी प्रधान मंत्री किशिदा की यात्रा के दौरान भारत ने एक अलग बयान जारी किया, जिसमें रेखांकित किया गया कि क्वाड को शान्ति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अपने मूल उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। क्वाड के चार देशों में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूसी सेना के यूक्रेन में तबाही की निंदा करते हुए भाग लिया था। अन्य तीन देशों, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ मतदान किया था।
तेल की धार
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भारतीय बजट में कच्चे तेल की क़ीमत 75 डॉलर प्रति बैरल है। लेकिन महीने भर चले यूक्रेन युद्ध के दौरान क़ीमतें 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गयी हैं। दिलचस्प बात यह है कि रूसी आयात भारत की प्रतिदिन 50 लाख बैरल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। उनका रूस से कच्चे तेल का आयात औसतन 2,03,000 बैरल प्रतिदिन रहा है, जो बढक़र लगभग 3,60,000 बैरल प्रतिदिन हो गया है। हालाँकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक नैतिक रूख़ अपनाया है कि भारत द्वारा कच्चे तेल की ख़रीद से अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं होगा; लेकिन भारत को चेतावनी दी जा रही है कि यह उसे इतिहास के ग़लत पक्ष में डाल सकता है।
मौत के ख़ंजर
यूक्रेनी युद्ध ने रूस और पश्चिमी शक्तियों को अपने अत्याधुनिक हथियारों का परीक्षण करने में सक्षम बनाया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की है कि अमेरिका जल्द ही यूक्रेन को और अधिक घातक हथियार प्रदान करेगा। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि रूसियों ने यूक्रेनी लक्ष्यों पर हाइपरसोनिक मिसाइल हमलों की शुरुआत के साथ पहल की है; ख़ासकर हथियारों के गुप्त ठिकानों से। इसे किंजल के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है ख़ंजर। यह माइकोलाइव के काला सागर बंदरगाह के पास एक यूक्रेनी ईंधन डिपो से टकराया। यह पोलैंड से लगभग 1,500 किलोमीटर दूर है; जो यूएसएसआर युग के दौरान वारसा पैक्ट का सदस्य था। लेकिन हाल ही में नाटो में शामिल हुआ है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि किंजल मिसाइल के लगातार उपयोग के साथ, जिसमें 2,000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने की क्षमता है; जिसकी गति ध्वनि से दस गुना अधिक है। नाटो में पूर्वी यूरोप के नये देशों के लिए चेतावनी संकेत है कि वे क्रोध से बच नहीं सकते हैं।
इस बीच घिरे बंदरगाह शहर मारियुपोल से हज़ारों यूक्रेनियनों को जबरदस्ती रूसी सीमाओं के पार ले जाया गया और उन्हें शिविरों में रखा जा रहा है। ऐसी ख़बरें हैं कि जानकारी हासिल करने के लिए उनके मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की जाँच की जा रही है।













