Home Blog Page 513

पंजाब में राजनीतिक रंजिश के नये दाँव-पेच

सरकारी जाँच एजेंसियों और पुलिस के बेजा इस्तेमाल के आरोप सत्ता पक्ष पर लगते हैं और उनके खण्डन भी आते रहते हैं। राजनीतिक दुश्मनी पर दर्ज होते मामलों पर सम्बन्धित सरकारें इसे सही ठहराने का प्रयास करती है, वहीं विपक्षी दलों के नेता इसे राजनीतिक रंजिश बताते हैं।

केंद्र और राज्यों में ऐेसा होता रहता है, इसमें कोई नयी बात नहीं है। केंद्र पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी जाँच एजेंसियों पर सरकार के इशारे पर कार्रवाई के आरोप लगते रहे हैं। कांग्रेस के दौर में विपक्षी दल यही रोना रोते थे। अब भाजपा सरकार पर विपक्षी दल कमोबेश वैसे ही आरोप लगा रहे हैं। चाहे सीबीआई या एनआईए स्वतंत्र एजेंसियाँ हैं, सत्तापक्ष का कहीं-न-कहीं असर ज़रूर होता है। यह अलग बात है कि कोई सरकार राजनीतिक रंजिश के लिए इसका बेजा इस्तेमाल कर लेती है, तो कोई सीमित; लेकिन इन पर सरकारी स्वार्थ हावी ज़रूर रहता है। हरियाणा और पंजाब तो राजनीतिक रंजिश के लिए वैसे ही जाने जाते रहे हैं। सत्ता में आने पर विरोधियों को जेल में डालने, सबक़ सिखाने और उन्हें छठी का दूध दिलाने जैसे आक्रामक तेवर देखने को मिलते हैं।

बाक़ायदा इसके लिए मामले गढ़े जाते हैं, सुबूत जुटाये जाते हैं और कुछ हद तक राजनीतिक दुश्मनी निकाली भी जाती है। लोकतंत्र में यह परम्परा घातक है। अगर सरकारें अपने तंत्र का बेजा इस्तेमाल करेंगी, तो सही मायने में वह लोकतंत्र न होकर निजतंत्र माना जाएगा। पंजाब पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तो चुनावी सभाओं में सत्ता में आने पर अपने समकक्ष रहे प्रकाश सिंह बादल को सलाख़ों के पीछे डालने की बातें कहते रहे हैं। सत्ता में आने के बाद हालाँकि वह कुछ ऐसा नहीं कर सके; लेकिन राजनीतिक रंजिश की भावना बहुत कुछ साबित करती है। हरियाणा में राजनीतिक रंजिश का बड़ा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के जेबीटी घोटाले में 10 साल की सज़ा का है। आरोप तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर लगे थे। हालाँकि हुड्डा ने कभी सार्वजनिक तौर पर चौटाला को जेल में डालने की बात कभी नहीं कही थी। वह एक बड़ा घोटाला था और सब क़ानून के हिसाब से हुआ। मानने वाले इसे राजनीतिक दुश्मनी निकालने वाली कार्रवाई बता रहे हैं। राज्य में सत्ता में आने पर विरोधी नेताओं को सबक़ सिखाने की धमकियाँ तो सार्वजनिक सभाओं में दी जाती रही हैं। इससे राष्ट्रीय पार्टियाँ अछूती नहीं हैं। कम-से-कम हरियाणा और पंजाब में तो यह क़वायद चलती रहती है।

पंजाब में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आयी आम आदमी पार्टी के एजेंडे में राजनीतिक दुश्मनी को बिल्कुल जगह नहीं दी गयी है। 16 अप्रैल को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शपथ ग्रहण समारोह में इस बात की सार्वजनिक घोषणा की थी कि पंजाब में पूर्व की सरकारें राजनीतिक रंजिश के लिए झूठे मुक़दमे दर्ज करती रही हैं; लेकिन वह ऐसा कभी नहीं होने देंगे। वह पंजाब में एक नये अध्याय की शुरुआत करेंगे, जिसमें राजनीतिक रंजिश की कोई जगह नहीं होगी। क़रीब एक माह के बाद पंजाब में इसकी शुरुआत हो गयी है। इसे नये अध्याय के तौर पर तो नहीं, बल्कि पुरानी परम्परा को न टूटने देने की क़वायद ही माना जा सकता है।

कभी आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे कुमार विश्वास और इसी पार्टी की दिल्ली के चाँदनी चौक की विधायक रही अलका लांबा पर पंजाब के रूपनगर (रोपड़) में संगीन धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी है। वैचारिक मतभेद होने के बाद कुमार विश्वास ने आम आदमी पार्टी से किनारा कर लिया था। वह किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं और गाहे-ब-गाहे दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाते रहते हैं; लेकिन अभी तक उन पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई थी। लेकिन पंजाब में पार्टी के सत्ता में आने के बाद कार्रवाई को अंजाम दे दिया गया है।

अलका लांबा सन् 2014 में कांग्रेस छोडक़र आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं और चाँदनी चौक से पार्टी की विधायक बनीं। सितंबर, 2019 में उन्होंने आम आदमी पार्टी छोड़ दी और फिर से कांग्रेस में शामिल हो गयीं। कुमार विश्वास ने पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर ख़ालिस्तानी सम्पर्क होने जैसा संगीन आरोप लगाया था। उस दौरान केजरीवाल ने ख़ुद इतने गम्भीर आरोप पर चुटकी लेते हुए कहा था कि क्या वह शक्ल से कोई आतंकवादी लगते हैं? अगर कोई कहता है, तो वह मासूम आतंकवादी हैं, जो लोगों के लिए काम करता हैं।

क़रीब दो माह अब उसी आरोप पर कुमार विश्वास फँस गये हैं। उन्हें साज़िश रचने, शान्ति भंग करने और केजरीवाल की छवि कलंकित करने जैसी संगीन धाराओं का आरोपी बनाया गया है। मामला पंजाब की बजाय दिल्ली में दर्ज होता और दिल्ली पुलिस कार्रवाई करती, तो सीधा आरोप केजरीवाल पर लगता; लेकिन घटना का सम्बन्ध सीधे पंजाब से है। इसके बावजूद केजरीवाल पर बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप क्यों लग रहा है? पंजाब में मामले दर्ज होने पर प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री भगवंत मान की आनी चाहिए, क्योंकि गृह विभाग भी उनके पास है। आरोप लग रहा है कि मान पंजाब के मुख्यमंत्री ज़रूर हैं; लेकिन नियंत्रण एक तरह से केजरीवाल का है। दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते अरविंद केजरीवाल के मन में पुलिस विभाग का नियंत्रण केंद्र के पास होने की कसक हमेशा से रही है। दिल्ली में जब कोई क़ानून व्यवस्था का मसला उठता है, वह सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय पर ज़िम्मेदारी डाल देते हैं, क्योंकि पुलिस उसके अधीन है। दिल्ली में कई दंगों में भी उन्होंने यही बात कही। अब पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार है और वह अपरोक्ष रूप से पुलिस का इस्तेमाल कर सकते हैं।

कुमार विश्वास, अलका लांबा और पीटीसी चैनल के प्रबंध निदेशक रविंद्र नारायण और अन्य स्टाफ पर दर्ज मामले राजनीति के परिप्रेक्ष्य से देखे जा रहे हैं। पीटीसी चैनल बादल परिवार का है इसलिए आरोपी के संगीन आरोपों पर पुलिस कार्रवाई कर रही है। नारायण समेत 25 से ज़्यादा लोगों पर कार्रवाई हो रही है। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) इसे राजनीतिक रंजिश निकालने की कार्रवाई बता रहा है, वहीं पुलिस इसे क़ानून सम्मत रुटीन का मामला बता रही है। तो क्या माना जाए कि आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब में पुरानी रवायत पर चल पड़ी है, जिसमें विरोधियों को सबक़ सिखाने के लिए पुलिस या अन्य जाँच एजेंसियों क बेजा इस्तेमाल हो रहा है। ऐसा है, तो यह चलन आप सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है।

पंजाब विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिद्धू अलका लांबा पर दर्ज मामले को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। बाजवा और सिद्धू के मुताबिक, केजरीवाल के इशारे पर पंजाब में पुलिस विरोधियों पर कार्रवाई कर रही है। भगवंत मान को आम आदमी पार्टी में लाने वालों में कुमार विश्वास की अहम भूमिका रही है। यह उस दौर की बात है, जब मान की आम आदमी पार्टी में कोई ख़ास पहचान नहीं थी, जबकि कुमार विश्वास आम आदमी पार्टी के आधार स्तम्भ हुआ करते थे। विश्वास पार्टी में अपनी उपेक्षा से केजरीवाल से नाराज़ रहने लगे थे। बाद में स्थिति ऐसी आ गयी कि विश्वास पर केजरीवाल अविश्वास करने लगे थे। बाद में दोनों के रास्ते अलग-अलग होते गये। आम आदमी पार्टी को खड़ा करने में केजरीवाल के साथ मनीष सिसोदिया के अलावा प्रमुख रूप से कुमार विश्वास भी थे।

जब दोनों में 36 का आँकड़ा हो गया, तो अनौपचारिक बातचीत में कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर ख़ालिस्तान समर्थकों के साथ सम्पर्क होने जैसे गम्भीर आरोप लगाये। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार न होती, तो विश्वास पर प्राथमिकी ही दर्ज नहीं होती। अब चूँकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है भगवंत मान को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे लाने वालों में केजरीवाल ही है, तो उनका अच्छा-ख़ासा असर राज्य सरकार पर रहेगा ही।

दिल्ली का मुख्यमंत्री एक पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री पर भारी पडऩे लगे, तो इसके नतीजों के बारे में अनुमान लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है। भगवंत मान केजरीवाल से बाहर नहीं जा सकते। वह चाहे मुख्यमंत्री के नाते राज्य में राजनीतिक रंजिश निकालने की न सोचते हो पर पार्टी प्रमुख अगर इस दिशा में कुछ करना चाहे, तो वह बहुत कुछ नहीं कर सकते। पंजाब पुलिस के बेजा इस्तेमाल के आरोपों में कुछ दम तो ज़रूर है, वरना पार्टी कार्यकर्ताओं की शिकायत पर कुमार विश्वास और अलका लांबा पर प्राथमिकी दर्ज होकर त्वरित कार्रवाई नहीं होती।

उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों जाँच में सहयोग करेंगे, वरना पुलिस दोनों को गिर$फ्तार भी कर सकती है। आने वाले दिनों में लोकप्रिय हो रही आप-सरकार पर राजनीतिक रंजिश निकालने के लिए अपरोक्ष तौर पर पंजाब पुलिस के बेजा इस्तेमाल के आरोप लगेंगे। इससे मुख्यमंत्री भगवंत मान की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी रहेगी। राज्य में जल्द ही किसी राजनीतिक तू$फान की आहट होने लगी है।

गुड टच-बेड टच समझाने के लिए महिलाओं को ही प्रशिक्षण क्यों?

हाल में हिन्दी के एक अख़बार में छपी ख़बर के एक शीर्षक- ‘12,109 बच्चियों, 1,295 शिक्षिकाओं को गुड टच और बेड टच की ट्रेनिंग दी, एक भी लडक़े को नहीं’ ने अपनी ओर मेरा ध्यान खींचा।

यह ख़बर राजस्थान के सन्दर्भ में थी। राजस्थान में बच्चियों से छेड़छाड़-दुष्कर्म की घटनाएँ बढ़ रही हैं और इसके मद्देनज़र राज्य बाल आयोग गुड टच और बेड टच (अच्छा स्पर्श और बुरा स्पर्श) में अन्तर को समझाने के लिए जागरूकता अभियान में जुट गया है। गुड टच और बेड टच के बारे में जानकारी सभी को चाहे वह लडक़ी हो या लडक़ा दोनों को होनी चाहिए। सम्बन्धित क़ानून भी कहता है कि यह लिंग निरपेक्ष है। लेकिन राजस्थान का बाल आयोग अधिक फोकस महिलाओं पर ही कर रहा है। इसका प्रशिक्षण सिर्फ़ महिला शिक्षकों और बालिकाओं को ही दिया जा रहा है। पुरुष शिक्षकों और लडक़ों (बालकों) को नहीं। राज्य के विभिन्न ज़िलों में आयोग अब तक कुल 13,434 लोगों को प्रशिक्षण दे चुका है, इसमें 12,109 बालिकाएँ व 1,295 शिक्षिकाएँ शामिल हैं। पुरुष शिक्षकों की संख्या महज़ 60 हैं और बालक एक भी नहीं।

दरअसल राजस्थान में बच्चों व महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध ने सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार की मुश्किलें भी बढ़ायी हैं। सम्भवत: इसी के मद्देनज़र राज्य में तीन विभाग, जिसमें शिक्षा विभाग और महिला व बाल विकास विभाग भी शामिल है; अलग-अलग योजनाओं के तहत जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इन सभी का ध्यान महिलाओं और बालिकाओं पर केंद्रित है। दरअसल बच्चों के प्रति यौन शोषण / उत्पीडऩ की घटनाएँ केवल राजस्थान की ही समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की एक गम्भीर समस्या है। सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि भारत बहुत-ही जल्द विश्व शक्ति बन जाएगा। लेकिन जहाँ तक समाज का सवाल है, अभी भी बच्चों, किशोरों के साथ उनके शारीरिक अंगों के बारे में खुलकर बात करने से हिचकते हैं। ऐसा करना वर्जित माना गया है। बात करने वालों को समाज अच्छी नज़र से नहीं देखता। बाल यौन शोषण जन-विमर्श का विषय ही नहीं बन सका है।

देश में  क़रीब 44 करोड़ बच्चे हैं और युवाओं की तादाद भी उल्लेखनीय है। सरकार द्वारा प्रायोजित एक सर्वे से सामने आया कि देश में 53फ़ीसदी बच्चों ने यौन शोषण / उत्पीडऩ का कभी-न-कभी सामना किया था। शोषण करने वाले बच्चों के जानकार, रिश्तेदार और वे लोग थे, जिन पर बच्चे, उनके माता-पिता भरोसा करते थे। अधिकतर बच्चों ने इस सन्दर्भ में शिकायत दर्ज नहीं करायी। ऐसे मामले केवल महानगरों, नगरों में ही सामने नहीं आते, बल्कि गाँव भी इनसे अछूते नहीं हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बाल यौन शोषण से अभिप्राय किसी बच्चे का इस तरह की यौन गतिविधि में शामिल होना है, जिसकी उसे (बालक / बालिका) पूरी तरह से समझ नहीं है, उस यौन गतिविधि के लिए अपनी सूचित सहमति देने में अयोग्य है, या बच्चा उस गतिविधि के बारे में विकासात्मक रूप से तैयार नहीं है और अपनी सहमति नहीं देता अथवा जो क़ानून का उल्लंघन करने वाली गतिविधि हो। अब सवाल यह है कि कितने अभिभावकों, शिक्षकों और अन्य लोगों को इस परिभाषा या भारत में बने बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम यानी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 (पॉस्को अधिनियम-2012) की जानकारी है। इस सन्दर्भ में दिल्ली के एक न्यायालय में एक मामले की सुनवाई के दौरान पता चला कि दिल्ली सरकार ने पॉक्सो क़ानून के सन्दर्भ में जागरूकता अभियान के तहत जो पोस्टर लगाये थे, वो पूरी जानकारी नहीं बता रहे थे।

दिल्ली सरकार की तरफ़ से बताया गया कि सरकार ने मेट्रो स्टेशनों, बस स्टॉप पर पोस्टर और होर्डिंग लगाये हैं। सरकार अपनी तरफ़ से पूरे प्रयास कर रही है कि आमजन इस क़ानून के बारे में जाने। लेकिन एक वरिष्ठ वकील ने न्यायालय को बताया कि वह जानकारी अधूरी है; क्योंकि उस सामग्री में अपराध करने पर क्या सज़ा हो सकती है? इसका ज़िक्र नहीं है। इसलिए यह समाज में कोई डर नहीं पैदा करती। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में वृद्धि की एक वजह यह कि लोगों को इस क़ानून के बारे में कोई जानकारी नहीं होना तथा क़ानूनी कार्रवाई का कोई भय नहीं होना भी बताया। न्यायालय ने दिल्ली सरकार को इस सन्दर्भ में प्रयासों को ज़मीनी स्तर पर उतारने के निर्देश दिये।

ग़ौरतलब है कि बाल अधिकारों के कड़े संघर्ष के बाद बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम-2012 बनाया गया, ताकि बच्चों को यौन अपराधों, यौन शोषण और अश्लील सामग्री से संरक्षण प्रदान किया जा सके। हालाँकि इस अधिनियम में संशोधन करते हुए 2019 में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2019 लाया गया, जो फ़िलहाल लागू है। यह अधिनियम यह स्वीकार करता है कि बच्चों को विषेश तौर पर निशाना बनाया जा सकता है। लिहाज़ा जब पीडि़त कोई बच्चा हो, तो उसके संरक्षण के लिए विशेष क़दम इंडियन पीनल कोड से परे क़ानून की ज़रूरत होती है। इसमें बच्चे को अनुचित तरीक़े से तथा ग़लत मंशा से छूने वाला बिन्दु भी कवर होता है। यह 18 साल तक के बच्चों पर लागू होता है, यह क़ानून लिंग निरपेक्ष है यानी पीडि़त लडक़ा व लडक़ी दोनों हो सकते हैं और आरोपी महिला या पुरुष कोई भी हो सकता है।

लिंग निरपेक्ष होने से समाज में यह भी सन्देश गया कि बालक (लडक़ों) का भी यौन शोषण होता है, यह अलग बात है कि समाज इस कड़वी हक़ीक़त को खुले में स्वीकार करने से भागता है। इसी साल जनवरी में केरल की एक फास्ट ट्रेक न्यायालय में गुड टच बनाम बेड टच मामले की सुनवाई के दौरान नौ साल के पीडि़त बालक ने न्यायालय को बताया कि उसे इसकी समझ है कि उसे गुड टच और बेड टच में क्या अन्तर है? उस बालक ने न्यायालय को बताया कि उसे आरोपी ने बुरी मंशा से छुआ। न्यायाधीश ने बालक के बयान को महत्त्व दिया और 50 वर्षीय आरोपी को पॉक्सो के तहत सज़ा सुनायी और 25,000 रुपये का आर्थिक दण्ड भी सुनाया। यही नहीं, न्यायालय ने यह भी कहा कि यह आर्थिक दण्ड वाली रक़म पीडि़त बालक को दी जाए। इस बालक ने न्यायालय में बताया कि उसे गुड टच और बेड टच के बारे में जानकारी विद्यालय से हासिल हुई थी। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ बच्चों से बात करने पर पता चलता है कि इस बाबत उन्हें जानकारी मुहैया कराने वाला प्रमुख स्रोत विद्यालय है।

विद्यालयों के ऊपर यह ज़िम्मेदारी है कि वहाँ इस संवेदनशील विषय पर पेशेवर सलाहकार (प्रोफेशनल काउंसलर) रखें, बच्चे विद्यालय में बतायी गयी जानकारी पर अधिक भरोसा करते हैं। विद्यालयों में बालिकाओं, बालकों, अध्यापिकाओं और अध्यापकों को इस बाबत प्रशिक्षित करना चाहिए। अन्य स्टाफ को भी। विद्यालय इस सन्दर्भ में अहम भूमिका निभा सकते हैं; क्योंकि देश में विद्यालय जाने वाले बच्चों काफ़ीसद बढ़ रहा है। प्राइमरी स्तर पर तो कोरोना महामारी से पहले यहफ़ीसद  क़रीब 95फ़ीसदी तक पहुँच गया था। दरअसल क़ानून बनाना व उस पर अमल की भावना को चरितार्थ करने के वास्ते सरकार को बजट भी आवंटित करना होता है, निगरानी के लिए प्रतिबद्धता की भी दरकार होती है। भारत के संविधान का अनुच्छेद-15(3) राज्य को बच्चों के हित की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित बाल अधिकार कन्वेंशन के मानकों को ध्यान में रखते हुए पॉक्सो अधिनियम बनाया गया था और इस बाल अधिकार कन्वेंशन पर भारत सरकार ने अपनी सहमति भी दर्ज करायी हुई है। इस बाल अधिकार कन्वेंशन के अनुच्छेद-3 के अनुसार परिवार, विद्यालय, स्वास्थ्य संस्थाओं और सरकार पर बच्चों के हितों को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी डाली गयी है।

बाल यौन शोषण, छेड़छाड़ के मामलों के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए बच्चों का भरोसा जीतना बहुत ज़रूरी है। उन्हें निडर बनाना होगा कि ग़लत, अनुचित होने पर चुप नहीं रहना, बल्कि घर, विद्यालय या भरोसेमंद इंसान को बताना है।

न्यायालय इस सन्दर्भ में क्या कर सकता है? इसकी मिसाल पेश करनी चाहिए। बीते साल मुम्बई की एक विशेष पॉक्सो न्यायालय ने एक पाँच साल की बेड टच की पीडि़त बालिका के मामले में बालिका के हक़ में फ़ैसला सुनाते हुए आरोपी की जमानत याचिका ख़ारिज कर दी। न्यायाधीश ने साफ़ कहा कि पीडि़ता की उम्र चाहे पाँच साल है; लेकिन आरोपी ने उसे ग़लत नीयत से छुआ, तो वह वही बता रही है, जो उसने उस समय महसूस किया होगा। यह नहीं माना जा सकता कि पाँच साल की बच्ची गुड टच व बेड टच के अन्तर को महसूस नहीं कर सकती। बच्चे भविष्य हैं, उनकी बेहतरी के लिए परिवार, विद्यालय, समाज, सरकारी मशीनरी सभी को संजीदगी से काम करना होगा।

घट रहा पशुपालन का चलन

चारे की कमी और बढ़ती महँगाई से पशुओं को पालना होता जा रहा महँगा

एक दौर था, जब गाँवों में ज़्यादातर लोग, ख़ासकर किसान पशुपालन करते थे। तब हर गाँव में चारागाह भी होते थे और खेतों में भी हरा चारा व गेहूँ-धान कटने पर भूसा-पुआल जैसा सूखा चारा भी भरपूर होता था। क्योंकि पशुपालक और किसान इस चारे को साल भर के लिए संचित करके रखते हैं। समय बदला, सोच बदली और आधुनिक खेती होने से सूखे चारे की कमी होती गयी। चारागाह भी ख़त्म होते गये। हार्वेस्टर से फ़सलों की कटाई होने के चलते भूसा और पुआल खेतों में ही छोड़ा जाने लगा। इससे चारे के लिए सूखे चारे में कमी होने लगी और वह महँगा होने लगा। पहले दुधारू पशुओं के अलावा खेतीबाड़ी के लिए भी नर पशु पाले जाते थे। लेकिन मशीनों से खेती होने से धीरे-धीरे इन पशुओं को पालने वाले कम होते गये। चारे की महँगाई और पशुओं पर बढ़ी महँगाई ने भी पशुपालकों का इस काम से मोहभंग किया है। गाँवों में पशुपालन से वे लोग ख़ासकर दूर हुए हैं, जिनके पास खेत नहीं हैं।

किसान रामतीरथ मिश्रा का कहना है कि डीजल-पेट्रोल और बढ़ती महँगाई के साथ-साथ जबसे देश में गौशालाओं में चारे की  आपूर्ति (सप्लाई) ठेकेदारी प्रथा से होने लगी है, तबसे भूसा के दामों में धीरे-धीरे उछाल आया है। इसकी वजह है ठेकेदारी में दाम कुछ तय होते हैं और सप्लाई के दाम कुछ और होते हैं। इसके कारण गुणवत्ता विहीन भूसा गौशालाओं में पहुँचता है। इस तरह बड़ा घोटाला होता है। अब सूखे चारे की जमाख़ोरी सिर्फ़ उससे पैसे कमाने के लिए होने लगी है, जिसमें सूखे चारे की कमी ने और इज़ाफ़ा किया है। चार-पाँच साल पहले जमाख़ोरी नहीं होती थी। तब पशु पालने वाले कम दाम में सूखा चारा खेतों से ही ख़रीद लेते थे। लेकिन कुछ व्यापारिक मानसिकता वाले लोगों ने पैकिंग में भी भूसा और दूसरे चारे बेचने शुरू कर दिये हैं, जिससे चारे, ख़ासकर भूसे के भाव हर रोज़ बढ़ रहे हैं।

किसान विनीत कुमार का कहना है कि भूसा को लेकर सरकार की ओर से कोई रेट तय तो हैं नहीं। इसलिए इसके दाम कहीं कुछ, तो कहीं कुछ हैं। जो गाँव क़स्बे या शहर से जुड़ा है, वहाँ पर इन दिनों 600 से 800 रुपये प्रति कुंतल भूसा बिक रहा है। वहीं जो गाँव पिछड़े हैं, वहाँ 500 से 600 रुपये प्रति कुंतल भूसा बिक रहा है।

उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले के किसान गोविन्द दास का कहना है कि हज़ारों की संख्या में आवारा जानवर खेतों में इधर-से-उधर घूमते रहते हैं और फ़सलों का नुक़सान करते हैं या फ़सल के कटने बाद खेतों में पड़ा भूसा खाकर जीवन-यापन करते हैं। अब भूसा महँगा होने और कम होने से अवारा पशुओं को पेट भरने में दिक़्क़त हो सकती है।

झांसी ज़िले के पशु पालन करने वाले लक्ष्मण दास का कहना है कि वह 30 साल से भैसें पालकर उनका दूध बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते आ रहे हैं। लेकिन कुछ वर्षों से महँगा चारा, महँगा चोकर ख़रीदना पड़ रहा है, जबकि दूध के दाम उतनी तेज़ी से बढ़ नहीं रहे हैं; इससे हमें परेशानी हो रही है। इसलिए अब हम अपनी भैंसों को बेचना चाहते हैं। क्योंकि हमारे पास ख़ुद के खेत नहीं हैं, जिनमें चारा उगाया जा सके। अभी हमें काफ़ी महँगा भूसा ख़रीदना पड़ रहा है। ऐसे में पशु-पालन करना बेहद महँगा होता जा रहा है। अब या तो हम कम पशु रखें या दूध महँगा करें, जो कि कोई लेगा नहीं या फिर पशुओं का पालन बन्द करके कोई और काम करें। लेकिन यह हमारा बहुत पुराना काम है, जो कि छोडऩे पर बहुत दु:ख होगा।

भूसा महँगा होने की जड़ में दो बातें मुख्य रूप से सामने आ रही हैं। एक तो बड़े किसान हार्वेस्टर से अपनी फ़सल कटवाते हैं, जिससे उन्हें गेहूँ तो पूरा मिल जाता है, पर भूसा काफ़ी कम मिल पाता है। दूसरी यह कि कॉरपोरेट जगत तेज़ी से चारा संग्रहण में लग गया है। वहीं निजी और सरकारी गौशालाओं में ठेकेदारी प्रथा के चलन से भूसा समेत अन्य तरह के चारे की सप्लाई होती है। इससे भूसा सप्लाई को कारोबारियों और ठेकेदारों ने धंधा बना लिया है। जैसे-जैसे समय बीतेगा सूखे चारे की कमी होगी और स्वाभाविक रूप से भूसा और महँगा होगा, जिसके चलते ऐसे लोग अभी से जमाख़ोरी करने लगे हैं।

गौशाला जुड़े एक कर्मचारी ने बताया कि गौशालाओं में भूसा की सप्लाई ठेकेदारों के हाथ में होती है। वे जानते हैं कि सरकारी और निजी गौशालाओं में भूसे की हर हाल में सप्लाई होनी है। इसलिए वे पहले से ही गाँव-गाँव जाकर भूसा औने-पौने दामों में ख़रीदकर जमाख़ोरी कर लेते हैं। ऐसे में जो लोग छोटे स्तर पर पशुपालन करते हैं, क़स्बों और शहरों में दूध की डेयरी चलाते हैं और उनके पास खेत आदि नहीं हैं या सूखा चारा उनके पास नहीं होता है, तो मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए जमाख़ोर उन्हें महँगा करके सूखा चारा बेचते हैं। चारे की कमी के दौर में यह लोग भूसा तो 1,000 रुपये प्रति कुंतल से भी अधिक महँगा तक बेच देते हैं।

भूसे की बढ़ती क़िल्लत को लेकर मध्य प्रदेश के किसान प्रमोद कटारे का कहना है कि कारोबारी भूसे का कारोबार सुनियोजित तरीक़े से करने लगे हैं। वे अब भूसा मंडी स्थापित कर रहे हैं। भूसा से जुड़े जो कारोबारी हैं, उनका अपना एक नैक्सिस पनप रहा है, जो पशु पालन करने वालों के लिए काफ़ी महँगा साबित होगा।

प्रमोद कटारे का कहना है कि जिस प्रकार दाल-चना और लोहा सहित अन्य वस्तुओं के मंडी के भाव तय होते हैं, उसी तरह देश के सभी राज्यों में भूसे के कारोबारियों द्वारा इसके भाव भी तय होने लगे हैं। व्यापारी भूसे के बंडल बनाकर बेचने लगे हैं।

किसान चारा पैदा करता है। लेकिन इस कारोबार में कोई किसान शामिल नहीं है, बल्कि देश के नेता और बड़े व्यापारी लगे हैं। ये लोग किसानों से खेत में ही अपने मन माफ़िक़ थोक भाव में भूसा ख़रीदने लगे हैं। सरकार को भूसे की जमाख़ोरी और मनमाने भाव पर उसे बेचने की कालाबाज़ारी पर समय रहते समझना होगा, अन्यथा देश में दुधारू पशु पालने वालों के महँगाई से पाँव उखडऩे लगेंगे और वे उनका पालन कम कर देंगे। कृषि प्रधान इस देश में भले ही आज आधुनिक तरीक़े से खेती होने लगी है और बैलों व भैंसों की ज़रूरत उतनी नहीं रही है, लेकिन इन पशुओं के कम होने से इनकी प्रजातियों के लुप्त होने का ख़तरा पनप रहा है। साथ ही देश में दूध का उत्पादन भी घट रहा है, जो कि देशवासियों की सेहत के लिए ठीक नहीं है।

जल संस्थान से जुड़े अमर दीप साहू ने बताया कि देश में अचानक पड़ी गर्मी को देखते हुए जल संस्थान ने नहरों में पानी छोड़ा है, ताकि अवारा पशु प्यासे न भटकें। हमारे कृषि प्रधान देश में आने वाले समय में अगर सबसे ज़्यादा समस्या आने वाली है, तो वो जानवरों के ऊपर आएगी; क्योंकि पशुओं को लेकर फ़िलहाल कोई फ़िक्रमंद नज़र नहीं दिख रहा है, जबकि पशुओं का होना बहुत ज़रूरी है।

 

पशुपालन के आँकड़े

भारत में क़रीब दो करोड़ लोगों की रोज़ी-रोटी पशुपालन से चलती है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में क़रीब चार फ़ीसदी योगदान पशुपालन से होता है। पशुपालन करने वालों में छोटे व सीमांत किसान ज़्यादा हैं, जिनके पास कुल कृषि भूमि की 30 फ़ीसदी खेती है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में क़रीब 19.02 करोड़ गायें, 11.54 करोड़ भैंसें, 14.55 करोड़ बकरियाँ, 7.61 करोड़ भेड़ें, 1.11 करोड़ सूकर हैं। हालाँकि यह आँकड़े पुष्ट नहीं हैं। हो सकता है कि वर्तमान में पशुओं की संख्या इससे अलग हो।

देवघर रोपवे हादसा

सुरक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी?

यह एक सच्चाई है कि हादसों की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ज़्यादातर हादसे किसी की ग़लती या लापरवाही या कमी के चलते होते हैं। देवघर (त्रिकूट) रोपवे हादसे के बाद ये सभी बातें सामने आ रही हैं। अभी तक जो तथ्य सामने आये हैं उनमें अधिक कमायी का लालच, तकनीकी ख़राबी, लापरवाही, अनदेखी सभी बातें प्रथम दृष्टया नज़र आ रही हैं। अहम सवाल यह उठता है कि आख़िर हादसे के लिए ज़िम्मेदार कौन है? क्या ज़िम्मेदारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी? क्या तीन मृतकों को न्याय मिल सकेगा? क्या 48 घंटे ज़िन्दगी और मौत के बीच हवा में झूले 76 लोगों को राहत मिलेगी? ये बातें अभी भविष्य के गर्भ में है। फ़िलहाल सरकार ने जाँच समिति बना दी है, जिसे दो महीने में रिपोर्ट देनी है, तो उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से हादसे पर रिपोर्ट माँगी है। इन सबके बीच एक सुखद बात यह रही कि जिस तरह से आपदा के समय एनडीआरएफ, एयरफोर्स, सेना, इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस, प्रशासन और स्थानीय लोगों ने क़ाबिल-ए-तारीफ़ काम किया, जिसकी सराहना राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक हुई।

अनूठा है देवघर रोपवे

देवघर से 20 किलोमीटर दूरी पर देवघर-दुमका रोड पर मोहनपुर ब्लॉक में स्थित त्रिकूट पर्वत का रोपवे रोमांचक पर्यटन स्थलों में माना जाता है। यहाँ ट्रैकिंग, रोपवे और वाइल्ड लाइफ टूरिज्म के लिए लोग आते हैं। इस रोपवे की सबसे ऊँची चोटी समुद्र तल से 2,470 फीट ऊँची है। ज़मीन से लगभग 1,500 फीट की ऊँचाई तक पर्यटक जा सकते हैं। त्रिकूट पहाड़ की तीन चोटियों में से केवल दो को ही ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित माना जाता है। तीसरी चोटी अत्यधिक खड़ी ढलानों के कारण दुर्गम है। त्रिकूट पहाड़ में रोपवे (केबल कार) देवघर का प्रमुख पर्यटक केंद्र है। त्रिकूट पहाड़ की तलहटी मयूराक्षी नदी से घिरी हुई है। इस रोपवे में पर्यटकों के लिए कुल 25 केबिन उपलब्ध हैं, जिसमें प्रत्येक केबिन में चार लोग बैठ सकते हैं। रोपवे की क्षमता 500 लोग प्रति घंटे है। रोपवे की लम्बाई लगभग 766 मीटर (2,512 फीट) है। चोटी तक पहुँचने के लिए केवल आठ से 10 मिनट लगते हैं और इसका टिकट 130 रुपये है। रोपवे का समय नियमित रूप से सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक है। तेज़ हवा या ख़राब मौसम में रोपवे को बन्द करने का प्रावधान है। देवघर रोपवे हादसा 10 अप्रैल को शाम लगभग 4:30 बजे हुआ। हादसे के समय रोपवे में 76 यात्री सवार थे। रोपवे की दो ट्रालियाँ तार पर झूलकर  पहाड़ से टकरा गयीं, जिससे एक महिला की तुरन्त मौत हो गयी। स्थानीय प्रशासन और वहाँ के लोगों ने किसी तरह कम ऊँचाई पर फँसे 30 लोगों को निकाला। बाक़ी 46 लोगों को एनडीआरएफ, एयरफोर्स, सेना, इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस ने हेलीकॉप्टर से 12 अप्रैल की दोपहर तक निकाला। इस दौरान एक महिला और एक पुरुष की बचाव (रेस्क्यू) करते समय हाथ फिसलने से मौत हो गयी। यानी 76 में से 73 लोग बचाये जा सके।

 रोंगटे खड़े करने वाली घटना

त्रिकूट रोपवे में सवार बूढ़े, जवान, महिला और बच्चे सभी थे। हज़ारों फीट ऊपर हवा में ज़िन्दगी और मौत के बीच भूखे-प्यासे लोगों की तीन दिन साँसें अटकी रहीं। उनके पास भगवान का नाम लेने और बचाव का इंतज़ार करने के अलावा कुछ भी नहीं था। सो नहीं सके। अगर ग़लती से झपकी भी आती, तो नीचे गिर सकते थे। उनके परिजन लगातार तनाव में रहे। स्थानीय लोगों ने बचाव के साथ-साथ फँसे हुए लोगों को रस्सी के ज़रिये खाना और पानी पहुँचाया। ड्रोन की मदद भी ली गयी। कई लोगों ने प्यास बुझाने के लिए बोतल में मूत्र तक जमा किया।

 बचाव कार्य की हुई तारीफ़

बचाव कार्य (रेस्क्यू ऑपरेशन) वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत तमाम लोगों ने बचाव कार्य में शामिल एनडीआरएफ, एयरफोर्स, सेना, इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस और प्रशासन की टीम की तारीफ़ की। स्थानीय लोगों की मदद के लिए साधुवाद किया। राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को पाँच-पाँच लाख रुपये का मुआवज़ा दिया है। रोपवे संचालन करने वाली कम्पनी ने मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये देने को कहा है। रोपवे के एक स्टाफ पन्नालाल पंजियारा ने ट्रॉलियों में फँसे 22 पर्यटकों को बचाया। उनकी सराहना हर ओर हुई। राज्य सरकार की ओर से पन्नालाल को एक लाख रुपये प्रोत्साहन राशि दी गयी। प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बातचीत की।

 कमियों की अनदेखी

रोपवे हादसे के बाद कई तथ्य सामने आये हैं, जिनसे पता चलता है कि अगर अनदेखी नहीं की जाती, तो हादसे को टाला जा सकता था। सूत्रों के मुताबिक, त्रिकूट रोपवे के निर्माण के समय वर्ष 2009 में गठित तकनीकी दल (टैक्निक टीम) ने रोपवे प्रोजेक्ट की वाइबिलिटी (क्षमता) पर सवाल उठाये थे। सदस्यों ने माना था कि रोपवे की केबल ट्रॉली में कम्पन ज़्यादा है। टीम में बीआईटी मेसरा के मैकेनिकल विभाग के प्रोफेसर भी शामिल थे। जाँच में टीम ने पाया था कि ऊपरी हिस्से में जहाँ खड़ी चढ़ाई है, वहाँ केबल तार में कम्पन ज़्यादा हो जाती है। इस वजह से ट्रॉली असन्तुलित हो जाती है। ट्रॉली ऊपर जाने के बाद हिलने-डुलने लगती है। इन बातों पर ध्यान नहीं दिया गया।

राज्य सरकार की पूर्व वित्त सचिव राजबाला वर्मा ने तत्कालीन पर्यटन सचिव अरुण कुमार सिंह को पर्यटन स्थल के विकास सम्बन्धित पत्र लिखा था। इसमें राजबाला वर्मा ने कहा था कि पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए आवंटित पैसों का सदुपयोग नहीं हुआ है। जिन पर्यटन स्थलों को विकसित किये जाने के लिए पैसे रिलीज हुए उनमें देवघर की रोपवे सर्विस सेवा भी शामिल थी। इसमें पैसों की भारी वित्तीय अनियमितता हुई। मामले की एसीबी से जाँच होनी चाहिए। अभी हाल में रोपवे की फिटनेस रिपोर्ट दी गयी थी। धनबाद स्थित सीएसआईआर की प्रयोगशाला सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च (सिंफर) ने 22 मार्च को रोपवे को फिट करार दिया था। इसके 17 दिन बाद ही हादसा हो गया। लिहाज़ा फिटनेस रिपोर्ट पर सवालिया निशान लग रहे हैं। रोपवे संचालन की ज़िम्मेदारी दामोदर रोपवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि कम्पनी सुरक्षा मानकों को अनदेखी करती है। भीड़ बढऩे पर ट्रॉली में क्षमता से अधिक लोगों को बैठाया गया था।

 निष्पक्ष जाँच ज़रूरी

रोपवे हादसे पर झारखण्ड उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेकर रिपोर्ट माँगी है। राज्य सरकार ने भी वित्त विभाग के प्रधान सचिव के नेतृत्व में चार सदस्यीय जाँच समिति बनायी है। इसलिए हादसे की जाँच तो होगी ही, पर जाँच में लीपापोती न हो और दोषियों को सज़ा मिले यह ज़रूरी है। यह भविष्य के लिए मददगार साबित होगी। क्योंकि हादसे के बाद अब तक जो तथ्य सामने आये हैं, वो तो कम-से-कम यही दिखा रहे हैं कि हादसा लापरवाही और अनदेखी का नतीजा है। अगर रिपोर्ट सही आएगा, तो भविष्य में सुधार किया जा सकेगा। दोषियों को सज़ा मिलेगी, तो भविष्य में सम्बन्धित विभाग और कम्पनी इस तरह की लापरवाही करने से डरेंगे। इसलिए हादसे के लिए ज़िम्मेदार कौन है, यह तय किया जाना ज़रूरी है। जिससे भविष्य में ऐसे हादसों को सम्भवत: रोका जा सके।

 

देश में प्रमुख रोपवे

 भेड़ाघाट रोपवे, जबलपुर, मध्य प्रदेश

 ग्लेनमोर्गन रोपवे, ऊटी, तमिलनाडु

 स्काईव्यू पटनीटॉप, जम्मू-कश्मीर

 गुलमर्ग गोंडोला केबल कार, जम्मू-कश्मीर

 मलमपुझा उडऩ खटोला, केरल

 संगीत घाटी केबल कार, दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल

 राजगीर रोपवे, बिहार

 आउली केबल कार, उत्तराखण्ड

 गन हिल केबल कार, मसूरी, उत्तराखण्ड

 महाकाली रोपवे, गुजरात

 सोलांग रोपवे, मनाली, हिमाचल प्रदेश

 गंगटोक रोपवे, सिक्किम

 द्रवि केबल विद बैंक रोपवे, सिक्किम

 गुवाहाटी पैसेंजर रोपवे, असम

अब धर्म पर कौन है?

पिछले छ:-सात साल से जिस तरह जातिवाद और धर्मवाद को लेकर हमारे देश में माहौल बन रहा है, वह चंद स्वार्थी और मज़बूत लोगों को छोडक़र सबके लिए घातक सिद्ध होगा। समस्या यह है कि लोग धर्म से जितने अनभिज्ञ होते जा रहे हैं, उतने ही धर्म-परायण होने का दावा कर रहे हैं। यह भी कह सकते हैं कि धर्म को समझे बिना अपने-अपने धर्म का झण्डा लिये उन्मादी होकर घूम रहे हैं। यह आजकल हर धर्म में हो रहा है। लोग धर्म को बचाने का दम्भ भर रहे हैं और ख़ुद को धर्म के सहारे ऐसे ही छोड़ रहे हैं, जैसे तैरना और नाव चलाना नहीं जानने वाले लोग उस पर सवार होकर समुद्र पार कर रहे हों। ज़ाहिर है सब डूबेंगे। लेकिन धर्म क्या है? धर्म की परिभाषा को अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग तरीक़े से बतायी गयी है।

सनातन धर्म में कहा गया है- ‘धारयति इति धर्म:’ अर्थात् जो धारण योग्य हो, वही धर्म है। सवाल यह है कि क्या कुछ भी, जिसे किसी ने धारण कर लिया हो, वह धर्म है? क्योंकि धारण तो लोग बहुत कुछ करते हैं। कोई अच्छाई धारण करता है, तो कोई बुराई धारण करता है। इसे स्पष्ट करने के लिए गौतम ऋषि ने कहा है- ‘यतो अभ्युदयनिश्रेयस सिद्धि: स धर्म’ अर्थात् जिस काम के करने से अभ्युदय ( उत्तरोत्तर उन्नति अर्थात् कल्याणकारी उत्तरोत्तर उन्नति) और निश्लेयस (मोक्ष) की सिद्धि हो, वह धर्म है। अब सवाल यह है कि धर्म की पहचान क्या है? इसके लिए मनु कहा है-

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम्।।’

अर्थात् धृति (धैर्य), क्षमा, दम (वासनाओं पर नियन्त्रण), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अंत:करण एवं शरीर की स्वच्छता), इन्द्रिय निग्रह: (इन्द्रियों पर विजय), धी (बुद्धिमत्ता का सदुपयोग), विद्या (अधिक-से-अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन, वचन और कर्म से सत्य पर चलना) और क्रोध न करना ही धर्म है। अर्थात् जो इन 10 लक्षणों का पालन करता है, वह धर्म पर है। महाभारत में कहा गया है-

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित:। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।’

अर्थात् जो धर्म को नष्ट करता है, धर्म उसका नाश कर देता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मरा हुआ धर्म कभी आपको मार डालेगा। आज सनातन धर्म को इसी धर्म के लोगों ने मार दिया है। अब तो लोग यह भी भूलते जा रहे हैं कि वे सनातनधर्मी हैं। वेदों से दूर हुए लोग अब अलग-अलग किताबों को अपना धर्मग्रन्थ समझने की भूल कर रहे हैं। उन्हें यह तक ज्ञान नहीं रहा कि वेद ही उनके धर्मग्रन्थ हैं। इस धर्म के अधिकांश लोग अब स्वयं को हिन्दू कहने लगे हैं; जबकि वेदों से लेकर इस धर्म के किसी भी ग्रन्थ में हिन्दू शब्द तक नहीं है। बस कुछ लोग इन्हें धर्मांधता के कुएँ में गिरा रहे हैं और इस धर्म के लोग उसमें गिरते जा रहे हैं।

सनातन धर्म में कहा गया है कि ईश्वर एक है। वह न देवता है। न देवी है। न दृश्य है। न अदृश्य है। न किसी से अनभिज्ञ है। न पैदा हुआ है। न मरेगा। न उसका कोई पिता है, न माता। वह राजा की तरह किसी एक जगह विराजमान भी नहीं है; पर हर जगह विद्यमान है।

इस्लाम में धर्म की कोई परिभाषा तो मुझे कहीं नहीं मिली; लेकिन इस्लाम पर चलने वालों को मुसलमान कहा गया है और मुसलमान होने का सबसे पहला लक्षण बताया गया है कि जो मुसलसल (लगातार) अपने ईमान पर क़ायम हो, वह मुसलमान है। लेकिन केवल ईमान पर रहने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता। उसके लिए इस धर्म में कुछ नियम भी हैं। उदाहरण के तौर पर- पाँच वक़्त की नमाज़ पढऩा। माह-ए-रमज़ान में रोज़ा रखना, अपनी मेहनत और ईमानदारी की कमायी में से ढाई फ़ीसदी ज़कात निकालना अर्थात् दान करना। किसी भी रोज़ बिना पड़ोसियों को पूछे खाना तक नहीं खाना। दहेज़ न लेना। ब्याज नहीं लेना। किसी को बुरा नहीं कहना। अल्लाह (ईश्वर) के सिवाय किसी और की इबादत (ध्यान) न करना। किसी का हक़ नहीं मारना। सच बोलना। पाक (पवित्र) रहना।

इसी तरह ईसाई धर्म में भी धर्म के लक्षण तो नहीं बताये गये हैं; लेकिन कुछ नियम इसमें भी हैं। उदाहरण के तौर पर- शत्रु को क्षमा करना। किसी का हक़ नहीं मारना। सच बोलना। दुखियों की सेवा करना। ईश्वर की प्रार्थना करना। पाप से बचना आदि।

हालाँकि यह सब जानकर एक बात तो साफ़ है कि अब कोई भी व्यक्ति अपने धर्म पर पूरी तरह नहीं है और किसी भी धर्म में नहीं है। क्योंकि कोई भी पूरी तरह अपने धर्म का पालन नहीं करता है। लेकिन इन तीन धर्मों के बारे में इतनी जानकारी के बाद एक बात यह सामने आती है कि सभी धर्मों में चार-पाँच बातें एक समान हैं। पहली यह कि ईश्वर एक है। दूसरी यह कि पाप मत करो। तीसरी यह कि किसी पर अत्याचार मत करो। चौथी यह कि बेईमानी मत करो। पाँचवीं यह कि ईश्वर की उपासना करो (अपने-अपने तरीक़े से ही सही)। सवाल फिर वही कि अब धर्म पर कौन है?

किसी को कोविड वैक्सीन के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को कोविड-19 की वैक्सीन लगाने के लिए वाध्य नहीं किया सकता। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से इस तरह के टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव के आंकड़े सार्वजनिक करने को भी कहा है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि कोविड-19 वैक्सीन नीति को स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित नहीं कहा जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने एक जैकब पुलियेल की याचिका पर यह फैसला सुनाया। याचिका में  कोविड-19 टीकों और टीकाकरण के बाद के मामलों के नैदानिक परीक्षणों पर आंकड़ों के प्रकटीकरण के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कहा कि ‘संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शारीरिक स्वायत्तता और अखंडता की रक्षा की जाती है। संख्या कम होने तक, हम सुझाव देते हैं कि संबंधित आदेशों का पालन किया जाए और टीकाकरण नहीं करवाने वाले व्यक्तियों के सार्वजनिक स्थानों में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाए। यदि पहले से कोई प्रतिबंध लागू हो तो उसे हटाया जाए।’

सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि टीका परीक्षण आंकड़ों को अलग करने के संबंध में, व्यक्तियों की गोपनीयता के अधीन, किए गए सभी परीक्षण और बाद में आयोजित किए जाने वाले सभी परीक्षणों के आंकड़े अविलंब जनता को उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

पीठ ने केंद्र सरकार को लोगों के निजी आंकड़ों से समझौता किए बिना सार्वजनिक रूप से सुलभ प्रणाली पर जनता और डॉक्टरों पर टीकों के प्रतिकूल प्रभावों के मामलों की रिपोर्ट प्रकाशित करने को भी कहा है।

गुजरात में आप किसी दल के साथ तालमेल करती है तो सवालिया निशान लगेगे

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अगर गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले वहां के छोटे दलों से समझौता करते है तो, उन्हें तमाम सियासी सवालों का सामना करना पड़ सकता है।क्योंकि जब अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया था। तब उन्होंने कहा था कि वे किसी भी अन्य राजनीतिक दलों के साथ न तो मिलकर चुनाव लड़ेंगे और न ही किसी के साथ गठबंधन करेगे।
लेकिन 2013 में जब केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। तभी भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों ने केजरीवाल की कथनी और करनी में बड़ा अंतर समझ कर उनकी सियासी मजाक उड़ाया था। लेकिन सियासत में सब चलता ये सोचकर उसकी राजनीति चलती रही है।
लेकिन मौजूदा समय में जिस अंदाज में सियासी मिजाज बदला है उससे तो लगता है कि आने वाले दिनों में अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही आप पार्टी भी अन्य दलों के साथ चुनावी तालमेल कर अपनी पार्टी का विस्तार कर सकती है।ऐसे में आप पार्टी पर ये जरूर सवाल उठेगे कि जिस दल के साथ वे तालमेल कर रहे है कि वे ईमानदार राजनीतिक दल है। गुजरात राजनीति के जानकार सूरज यादव का कहना है कि माना कि प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस से जनता नाराज है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि चुनाव परिणाम भी बदल सकते है।
उनका कहना है कि आप पार्टी जो फ्री की राजनीति कर गुजरात में अपनी सरकार बनाने का सपना देख रही है।उससे गुजरात की जनता कितना महत्व देती है। ये तो आने वाला समय ही बताएगा।उनका कहना है कि बिजली , पानी और बसों में फ्री की सुविधा को यहां की जनता के आप पार्टी का चुनावी मुद्दा कितना कारगर होगा। ये तो चुनाव परिणाम बतलाएगे। वैसे कांग्रेस और भाजपा भी चुनाव समीकरण साधने में लगी है।उनका कहना है कि भाजपा चुनाव के पहले कोई ऐसा घोषणा कर सकती है जिससे चुनाव का माहौल ही बदल सकता है।

देश में बेरोजगारी दर अप्रैल में बढ़ी, सीएमआईई की रिपोर्ट में खुलासा

भारत में महंगाई तो बढ़ ही रही है एक रिपोर्ट से जाहिर होता है कि देश में बेरोजगारी दर अप्रैल में बढ़कर 7.83 फीसदी हो गई है। मार्च में यह 7.60 फीसदी थी। मुम्बई स्थित सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट में यह आंकड़े सामने आये हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अप्रैल में शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 9.22 फीसदी हो गई, जो पिछले महीने 8.28 फीसदी थी। उधर ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.29 फीसदी  से घटकर 7.18 फीसदी हो गई है।

इस रिपोर्ट से जाहिर होता है कि सर्वाधिक बेरोजगारी दर 34.5 फीसदी हरियाणा में दर्ज की गई है जबकि पड़ौसी राजस्थान में यह दर 28.8 फीसदी है। रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने राय जाहिर की है कि बढ़ती कीमतों के बीच आर्थिक सुधार की धीमी गति से रोजगार के अवसर प्रभावित हुए हैं।

रोजगार में लोगों का अनुपात या कामकाजी आबादी के बीच काम की तलाश के बीच  श्रम भागीदारी दर भी गिरी है। मार्च 2022 में यह गिरकर 39.5 फीसदी हो गयी जबकि मार्च 2019 में यह 43.7 फीसदी थी। महामारी के दौरान लाखों लोगों की नौकरियां चली जाना इसका एक बड़ा कारण रहा है।

खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में बढ़कर 17 महीने के उच्च स्तर 6.95 फीसदी पर पहुंच गई और इस साल के आखिर में करीब 7.5 फीसदी तक पहुंचने की संभावना है। उन्हें जून में केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो दर में वृद्धि की उम्मीद है। मुंबई स्थित सीएमआईई के डेटा पर अर्थशास्त्री और नीति निर्माता पैनी नजर रखते हैं क्योंकि यह मासिक आंकड़े जारी करती है।

नई पारी खेलने की तैयारी में प्रशांत किशोर, उनके ट्वीट से मिला संकेत

कांग्रेस से बात नहीं बनने के एक हफ्ते बाद चुनाव रणनीतिकार और आईपैक के सर्वेसर्वा प्रशांत किशोर (पीके) ने सोमवार को एक ट्वीट करके अपने भविष्य की योजना को लेकर कुछ संकेत दिए हैं। इन संकेतों से जाहिर होता है कि वे या तो अपनी पार्टी बना सकते हैं, या विपक्षी गठबंधन के साथ जा सकते हैं। संभवता इसकी शुरुआत वे गृह राज्य बिहार से करेंगे।

अपने ट्वीट में प्रशांत किशोर ने लिखा – ‘अब मुद्दों और जन सुराज के मार्ग को बेहतर ढंग से समझने के लिए असली मास्टर अर्थात जनता के पास जाने का वक्त आ गया है। शुरुआत बिहार से।’

पीके हाल के एक दशक में भाजपा और कांग्रेस सहित कई दलों के लिए चुनाव रणनीति बनाते रहे हैं। एक पखबाड़ा पहले तक उनके कांग्रेस में शामिल होने की जबरदस्त चर्चा मीडिया में थी लेकिन बाद में सामने आया कि उनकी कांग्रेस से बात नहीं बनी। हालांकि, उन्होंने अपनी तरफ से कांग्रेस में सुधार के सुझाव भी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने पेश किये थे।

अब उनके ट्वीट से साफ़ संकेत मिल रहे हैं कि प्रशांत अपने गृह राज्य बिहार पर फोकस कर रहे हैं। वे एक पहले सत्तारूढ़ जेडीयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे हैं और पार्टी को सुझाव देते रहे हैं। लेकिन बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कुछ मतभेदों के चलते वे पार्टी से बाहर चले गए थे।

एयर टर्बुलेंस का शिकार हुआ स्पाइसजेट बोइंग, कई यात्री हुए घायल

मुंबई से बंगाल के दुर्गापुर हवाई अड्डे पर लैंड करने से ऐन पहले एक जहाज के तेज एयर टर्बुलेन्स में फंसने से काफी यात्री घायल हो गए। इसका एक वीडियो काफी वायरल हुआ है जिसमें साफ़ दिख रहा है कि यात्री घबराए हुए हैं और उनका सामान प्लेन में नीचे गिरा पड़ा है।

रिपोर्ट्स में बताया गया है कि यह घटना रविवार की है जब स्पाइसजेट के बोइंग बी737 विमान के यात्रियों को तेज एयर टर्बुलेन्स का सामना करना पड़ा। घटना में 17 लोग, जिनमें 14 यात्री और 3 क्रू मेंबर शामिल हैं, घायल हुए हैं। कुछ यात्रियों के सिर में चोट आई और कुछ के तो टांके लगाने पड़े। एक यात्री ने बताया कि रीढ़ में चोट की शिकायत की है।

नागरिक उड्डयन महानिदेशक (डीजीसीए) ने इस घटना की पुष्टि की है। उधर डीडीसीए ने घटना की नियामक जांच के लिए टीम गठित करने की बात कही है। निदेशक (हवाई सुरक्षा) एचएन मिश्रा को जांच का जिम्मा सौंपा गया है। घायलों की मेडिकल रिपोर्ट देखी जा रही हैं।

कुछ यात्रियों के मुताबिक जहाज के लैंड करते समय तीन बार तेज झटके लगे। यह इतने तेज थे कि यात्रियों का सामान प्लेन के सरफेस पर आ गिरा। कुछ यात्रियों को सामान गिरने के कारण भी चोट आई। उधर स्पाइसजेट के एक प्रवक्ता ने बताया कि यात्रियों को दुर्गापुर लैंड करने के तुरंत बाद मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई गयी। प्रवक्ता ने घटना को लेकर खेद भी जताया।

प्रवक्ता के मुताबिक पहली मई को, स्पाइसजेट बोइंग बी-737 विमान, जो उड़ान संख्या एसजी-945 के तौर पर मुंबई से दुर्गापुर जा रहा था, लैंडिंग के वक्त गंभीर टर्बुलेन्स का शिकार हुआ। इसकी वजह से दुर्भाग्य से कुछ यात्रियों को चोट आई।