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महेंद्र सिंह राठौड़

 

अवैज्ञानिक खनन और सरकारी नियमों की धज्जियाँ उड़ाना मौत को न्यौता देने जैसा है। हरियाणा के ज़िला भिवानी में पत्थर की डाडम खान में यही सब कुछ हो रहा था। सरकारी विभागों की अनदेखी का नतीजा यह रहा कि खनन कम्पनी गोवर्धन माइंस ऐंड मिनरल्स कम्पनी मनमाने तरीक़े से काम कर रही थी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की टीम ने अपनी जाँच रिपोर्ट में कम्पनी पर अवैज्ञानिक तरीक़े से खनन, बल्कि अरावली वन क्षेत्र में घुसपैठ जैसे गम्भीर आरोप दर्ज किये थे।

अब तो जाँच में बहुत-सी गम्भीर ख़ामियाँ सामने आ रही हैं। पर्यावरण से लेकर तय अनुमति से ज़्यादा गहराई में खनन करने जैसी बात सामने आ रही है। यह कोई बहुत ज़्यादा पुरानी बात नहीं, बल्कि अक्टूबर वर्ष 2021 में एनजीटी टीम की औचक जाँच में गम्भीर ख़ामियाँ मिलीं।

सवाल यह कि कम्पनी को काम करने की अनुमति किस आधार पर दी गयी। खान में दिहाड़ी पर काम करने वाले कामगारों की राय में खान मौत के कुएँ जैसी थी। कभी भी हादसा होने का ख़तरा हरदम बना रहता था। बावजूद इसके पेट के लिए काम करने को मजबूरी थी। दिहाड़ीदारों की तो मजबूरी हो सकती है, लेकिन सरकारी विभागों की मजबूरी समझ से बाहर है, जिन्होंने गम्भीर आरोपों के बावजूद कम्पनी को फिर से काम करने की अनुमति दी।

नये साल की शुरुआत में डाडम की पत्थर खान ने पाँच लोगों को लील लिया। हादसा बहुत बड़ा हो सकता था। लेकिन काफ़ी समय तक रुका काम कुछ समय पहले ही शुरू हुआ था, लिहाज़ा कामगारों की संख्या कम थी।

भिवानी ज़िले में तौशाम पहाड़ी क्षेत्र में पत्थर की कई खानें हैं। खानक, रिवासा, निगाना, दुल्हेड़ी, धारण और खरकड़ी मखवा में भी डाडम हादसे के बाद सरकार को अहतियाती क़दम उठा लेने चाहिए, वरना ऐसे हादसे होते रहेंगे। वरना हादसे के बाद जाँच, मृतकों को मुआवज़ा, कम्पनी पर कार्रवाई जैसी औपचारिकताएँ होती रहेंगी। डाडम खनन क्षेत्र अरावली की पहाडिय़ों वाला है, यहाँ वन क्षेत्र है, जहाँ किसी तरह का निर्माण कार्य प्रतिबन्धित है।

कहा जाए तो यह खनन प्रतिबन्धित इलाक़ा होता है। लेकिन औचक जाँच में जाँच ऐसे क्षेत्र में खनन में काम आने वाली मशीनें और औज़ार आदि मिले। अरावली क्षेत्र में पर्यावरण से छेड़छाड़ के मद्देनज़र सर्वोच्च न्यायालय के कड़े आदेश हैं, जिनकी अनदेखी कई बार होती दिखी है। जबकि पिछले वर्ष राज्य के फ़रीदाबाद ज़िले के खोरी गाँव में अरावली क्षेत्र में दशकों से बने सैकड़ों घर तोड़ दिये गये थे। पूरे क्षेत्र में अवैध निर्माण गिराने से एक लाख से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए थे, जबकि वहाँ रहने वालों के बिजली और पानी के कनेक्शन तक थे। सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की पालना करते कार्रवाई को अंजाम दिया। लेकिन डाडम में अवैज्ञानिक और अवैध खनन के आरोपों पर काम करने वाली कम्पनी पर कार्रवाई को अंजाम नहीं दिया गया। शुरुआती जाँच में पाया गया है कि डाडम खान में बैच बनाकर खनन नहीं हो रहा था। बैच एक तरह से पहाड़ों के बीच रास्ते बनाकर खनन क्षेत्र तक पहुँचने का सुरक्षित माध्यम होता है। अगर पहाड़़ दरकता है, तो उसका ज़्यादा हिस्सा उस रास्ते (बैच) पर गिरता है, जिससे जन हानि बच सके। जाँच में पाया गया है कि खनन क्षेत्र के कुछ पहाड़ों में दरारें आयी हुई हैं। बारूद के विस्फोट से दरार वाले इन पहाड़ों के दरकने का ख़तरा बना हुआ है। इस हादसे की वजह भी दरार वाले पहाड़ का गिरना ही रहा, जिसमें वहाँ काम करने वाले लोग दब गये। खनन के काम में जुटी बड़ी मशीनें ट्रैक्टर आदि उससे बुरी तरह से पिचक गये।

राहत कार्य के बाद बचे लोग ख़ुशक़िस्मत ही कहे जाएँगे। खनन के काम में अवैध और अवैज्ञानिक जैसी बातें नयी नहीं है। लेकिन गहराई में ये बातें जानलेवा साबित होती हैं। जाँच टीम ने पाया कि डाडम खान में 109 मीटर तक की गहराई हो गयी है, जबकि सरकारी अनुमति 78 मीटर तक की है। तय सीमा से ज़्यादा गहराई में खनन क्यों हो रहा था। 31 मीटर ज़्यादा गहराई कोई एक-दो महीने में तो नहीं हो गयी थी।

यह राज्य सरकार की अनदेखी का एक उदाहरण है। खनन करोड़ों का कारोबार है और लाख्रों रुपये की भेंट इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। बिना इसके करोड़ों का काम चल ही नहीं सकता। इसे एक उदाहरण के तौर पर समझा जा सकता है। सन् 2013 में खनन और भूभर्ग विभाग ने डाडम खान की नीलामी की तो इसके लिए कर्मजीत सिंह ऐंड कम्पनी (केजेएसएल) और सुन्दर मार्केटिंग एसोसिएट (एसएमए) को सबसे ज़्यादा बोली देने पर योग्य पाया गया।

सन् 2015 में कर्मजीत सिंह ऐंड कम्पनी ने सरकार से आग्रह किया कि वह डाडम खान ठेके पर आगे काम नही करना चाहती। मई, 2015 में कर्मजीत सिंह ऐंड कम्पनी के 51 फ़ीसदी शेयर (हिस्सा) सुन्दर मार्केटिंग एसोसिएट को दे दिये गये। यह सब कुछ हो गया। लेकिन बाद में पता चला कि सुन्दर मार्केटिंग एसोसएशन नामक कम्पनी के पास खनन का पर्याप्त अनुभव नहीं है। एक तरह से वह डाडम खान में खनन काम के लिए सक्षम नहीं है। बिना पर्याप्त अनुभव के उसे कर्मजीत सिंह ऐंड कम्पनी के साथ सयुक्त रुप से ठेका किस आधार पर दिया गया?

सरकार ने इसे गम्भीरता से लिया और सुन्दर एसोसिएट नामक कम्पनी का ठेका रद्द कर दिया और खान क्षेत्र हरियाणा स्टेट इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट कारपोरेशन (एचएसआईडीसी) के सुपर्द कर दिया। काफ़ी महीनों तक खान बन्द रही। मामला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में पहुँचा। आख़िर नवंबर, 2017 में डाडम खान का ठेका गोवर्धन माइंस ऐंड मिनरल्स कम्पनी को मिला, जो अब तक उसी के पास है। काम मिलने के बाद कम्पनी विवादों में घिरी रही है। खनन के लिए विभाग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन और पर्यावरण के दूषित होने जैसे आरोप बराबर लगते रहे हैं। सन् 2020 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की छ: सदस्यीय टीम ने शिकायतों के बाद खान क्षेत्र का औचक दौरा किया, तो वहाँ बहुत-सी ख़ामियाँ पायी गयीं। इन्हें गम्भीरता से लिया गया होता और ठोस कार्रवाई को अंजाम दिया गया होता, तो डाडम हादसा नहीं होता। खनन के ठेकेदार जहाँ आर्थिक रूप से मज़बूत होते हैं। वहीं राजनीतिक तौर पर भी बहुत प्रभावी भूमिका निभाते हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने राजनीतिक संरक्षण के आरोपों को ख़ारिज़ करते हुए कहा है कि हादसे की विस्तृत जाँच होगी और दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकार के आदेश पर अतिरिक्त ज़िला उपायुक्त (एडीसी) राहुल नरवाल की अध्यक्षता में समिति गठित कर हादसे की विस्तृत जाँच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा है। डाडम खान पर्यावरण के लिए क्षेत्र में एक ख़तरनाक संकेत है। सरकार के दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर मोटी कमायी करने वाले ठेकेदारों को शायद पर्यावरण जैसे अहम मुद्दों से जैसे कोई सरोकार नहीं होता।

मामले की गम्भीरता को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने स्वत: संज्ञान लेते हुए आठ सदस्यीय समिति गठित कर दी है। इसमें राज्य सरकार के अलावा केंद्र से जुड़े कई विभागों के उच्चाधिकारियों को शामिल कर आठ सदस्यीय समिति गठित की गयी है। इस समिति की जाँच रिपोर्ट काफ़ी महत्त्वपूर्ण साबित होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि तय समय में जाँच रिपोर्ट आये और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की संस्तुति की जाए, वरना डाडम जैसे हादसे होते रहेंगे। कम्पनियाँ और मालिक बदलते रहेंगे और पहले की तरह सरकारी नियमों की अवहेलना होती रहेगी। यह सिलसिला रुकना चाहिए वरना कामगार केवल 500 रुपये की दिहाड़ी पर जान हथेली पर लेकर जाते रहेंगे।

हादसे में बचे एक कामगार के मुताबिक, डाडम खान में काम पर जाते समय मौत की आशंका बनी रहती है। यहाँ के कई पहाड़ों में दरारें आयी हुई हैं, जो विस्फोट के बाद भरभराकर गिर सकते हैं। मजबूरी यह कि हम लोग खनन के काम शुरू से कर रहे हैं। इसके अलावा कोई दूसरा काम नहीं कर सकते। यह हमारी रोज़ी-रोटी है। लेकिन इसके बदले मौत मिलती है, तो फिर कुछ सोचना पड़ेगा। मौत के कुएँ में आख़िर कब तक उतरते रहेंगे। किसी दिन उसी में समा जाएँगे। सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकारों की होती है। ठेकेदार या उसके लोग तो ज़्यादा-से-ज़्यादा खनन करने में लगे रहते हैं। ये खाने उनके लिए सोना उगलती हैं। लेकिन हमारे पास तो पेट भरने लायक पर्याप्त पैसा ही नहीं मिल पाता है।

 

 

शिकायतें आती रही हैं

डाडम खान क्षेत्र भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र में आता है और यहाँ के भाजपा सांसद धर्मवीर सिंह हैं। सन् 2014 से लगातार दूसरी बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनके मुताबिक, शिकायतों के बाद वह सम्बन्धित विभागों और सरकार को यहाँ होने वाले बेक़ायदा काम के बारे में बताते रहे हैं। डाडम खान क्षेत्र के चार स्थानों पर खनन के सरकारी दिशा-निर्देशों की उल्लंघना हो रही है, यह उनकी जानकारी में है और इसके बार में स्पष्ट तौर पर बताया जा चुका है। यही वजह है कि बार-बार जाँच और मामला उच्च न्यायालय में जाता रहा है। हादसे को दुर्भाग्यशाली बताते हुए उन्होंने जाँच में दोषी पाये जाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की माँग की है।

व्यापार में फिर रोड़ा बनेगी जीएसटी!

एक ओर तो सरकार देश के व्यापारियों को आगे बढ़ाने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर व्यापारियों को किसी-न-किसी तरह से परेशान भी करती रहती है। देश के छोटे-बड़े व्यापारियों का कहना है कि कोरोना वायरस के चलते मौज़ूदा समय में व्यापारियों का कारोबार काफ़ी कमज़ोर हालत में है। लेकिन केंद्र सरकार अब आगामी 1 जनवरी, 2022 से 5 से 12 फ़ीसदी जीएसटी बढ़ा रही है। इससे व्यापारियों का कारोबार तो प्रभावित होगा, साथ ही कालाबाज़ारी और कर (टैक्स) चोरी के मामले बढ़ेंगे।

भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय प्रकाश जैन ने बताया कि 17 सितंबर, 2021 को लखनऊ में जीएसटी परिषद् की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि 1 जनवरी, 2022 से टेक्सटाइल, फुटवियर और स्टेशनरी पर जीएसटी 5 फ़ीसदी से बढ़ाकर 12 फ़ीसदी कर दी जाएगी। विजय प्रकाश जैन कहते हैं कि देश का छोटा-बड़ा व्यापारी सरकार की व्यापार नीतियों के विरोध में आवाज उठा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तक पत्र लिखकर बढ़ायी गयी जीएसटी को वापस लेने की माँग कर रहा है। यदि बढ़ायी गयी जीएसटी को वापस नहीं लिया गया, तो सामान और महँगा बिकेगा, जिससे महँगाई भी बढ़ेगी। मौज़ूदा दौर में महँगाई के चलते वैसे ही जनता काफ़ी परेशान है। भारतीय उद्योग मंडल के चेयरमैन बाबू लाल गुप्ता का कहना है कि सरकार अपने तर्क दे रही है। कुछ बड़े व्यापारी की इनपुट अधिक है और आउटपुट कम है। इसलिए बड़े व्यापारियों को देखते हुए जीएसटी बढ़ाया गया है। बाबू लाल गुप्ता का कहना है कि देश में 15 फ़ीसदी बड़े व्यापारियों के चलते छोटे 85 फ़ीसदी व्यापारियों पर जीएसटी थोपना पूरी तरह से ग़लत है। इससे छोटे व्यापारियों के कारोबार पर विपरीत असर पड़ेगा। भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और कालाबाज़ारी भी बढ़ेगी। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह जीएसटी न बढ़ाए, अन्यथा देश का व्यापारी सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगा।

व्यापारी मुकंद मिश्रा का कहना है कि सरकार स्टेशनरी तक में जीएसटी थोप रही है, जिससे पढ़ाई-लिखाई का सामान महँगा हो जाएगा। उनका कहना है कि वैसे ही शिक्षा से जुड़ी सामग्री महँगी है। अगर अब जीएसटी के दायरे में स्टेशनरी आ गयी, तो ग़रीब और मध्यम वर्ग के छात्रों को स्टेशनरी ख़रीदना आसान नहीं होगा। सरोजनी नगर मार्केट एसोसिशन दिल्ली के अध्यक्ष अशोक रंधावा कहते हैं कि करेला, और नीम चढ़ा। यानी महँगाई पर महँगाई लाकर ग़रीब जनता को सरकार परेशान करना चाहती है। क्योंकि पहले ही जीएसटी पाँच फ़ीसदी के चलते व्यापारियों को काफ़ी दिक़्क़त का सामना करना पड़ रहा था। अब सात फ़ीसदी का इज़ाफ़ा करने से महँगाई का बढऩा स्वाभाविक है। अशोक रंधावा कहते हैं कि जब होलसेल में माल 12 फ़ीसदी के साथ छोटे व्यापारियों तक आएगा, फिर छोटा व्यापारी अपने मुनाफ़े के साथ बेचेगा, तो जो वस्तु 100 रुपये की होगी, वह 140-150 रुपये की ग्राहक को मिलेगी। इससे व्यापार में तो कमी आएगी, साथ ही ख़रीदार भी काफ़ी कम बाज़ार में आएँगे। यानी एक बार फिर बाज़ार में सन्नाटा छा आएगा। उनका कहना है जिस अंदाज़ में मौज़ूदा सरकार अपनी तानाशाही कर रही है, वो पूरी तरह से ग़लत है। व्यापारी नेता व कपड़ा व्यापारी अशोक कालरा का कहना है कि मौज़ूदा समय में सरकार को न तो जीएसटी थोपना चाहिए, बल्कि व्यापारियों को जो घाटा हुआ है। कोरोना-काल में उनके उबारने पर कार्य करना चाहिए। लेकिन केंद्र की सरकार अपने ख़ज़ाने भरने के लिए टैक्स पर टैक्स बढ़ा रही है। चाँदनी चौक के फुटवियर का काम करने वाले प्रदीप कुमार का कहना है कि कपड़ा और जूता-चप्पल आम लोगों से लेकर अमीरों तक की बुनियादी ज़रूरतें हैं। उनका कहना है कि जबसे कोरोना आया है, तबसे व्यापारिक गतिविधियाँ काफ़ी कमज़ोर हुई हैं। लोगों का रोज़गार गये हैं, जिससे पहले ही बाज़ार में ग्राहक कम हैं। मुरझाये हुए व्यापार पर बढ़ाकर जीएसटी को थोपाना व्यापार को ख़त्म करना है। उनका कहना है कि अगर कोरोना का नया स्वरूप ओमिक्रॉन बढ़ता है, तो स्वाभाविक है कि लोगों में भय बढ़ेगा, जिससे ख़रीदारी न के बराबर होगी। देश के व्यापारियों का कहना है कि जब देश के किसान अपने कृषि क़ानून को वापस करवा सकते हैं, तो देश के व्यापारी क्यों नहीं बढ़े हुए जीएसटी को वापस करवा सकते हैं? देश को सरकार चलाती है; लेकिन व्यापारी भी तो टैक्स देता है। व्यापारियों का कहना है कि सही मायने में अगर सरकार देश का व्यापार नम्बर एक में कराना चाहती है, तो बढ़ाये गये जीएसटी को वापस ले। आर्थिक मामलों के जानकार जयकुमार का कहना है कि सरकार कोरोना-काल में ख़ाली हुए ख़ज़ाने को भरने का प्रयास कर रही है।

Farmers suspend 378 days stir against three contentious farm laws, vacate Delhi borders on December 11

Farmers suspend 378 days stir against three contentious farm laws, vacate Delhi borders on December 11

After 378 days, farmers suspended stir against three contentious farm laws on Delhi borders. They have announced that they will end their protest and vacate Delhi borders on December 11.

Kisans have been protesting for over 15 months against the three farm laws and Minimum Support Price (MSP). Now, the agitation has been suspended and they are ready to go back to their homes. The decision came after the central government accepted all the demands of farmers.

Farmers’ unions announced that they have planned Fateh Ardas (victory prayer) at Singhu and Tikri borders today at 5:30pm.

On December 13, leaders of all farmers’ organizations will be visiting Shri Darbar Sahib (Golden Temple), Amritsar.

Farmer leaders said that a consensus has been reached between all of us regarding the proposal that has come from the government. Balveer Singh Rajewal said that again on January 15, there will be a review meeting to be held by the Samyukt Kisan Morcha (SKM).

“The fight is not yet over. Our farmers are still protesting for justice against the violence done by the BJP government. Farmers demand justice#Justice4LakhimpurFarmers” Kisan Ekta Morcha tweeted.

पुलवामा जिले के कस्बा यार में मुठभेड़, 2 आतंकी ढेर

कश्मीर में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में दो आतंकी मारे गए हैं। यह आतंकी पुलवामा जिले में एक मुठभेड़ में ढेर किये गए। इनमें एक जैश-ए- मोहम्मद (जेईएम) का कमांडर भी बताया गया है।

जानकारी के मुताबिक पुलवामा जिले के कस्बा यार इलाके में यह मुठभेड़ हुई। सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच हुई इस मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए। कश्मीर पुलिस के मुताबिक जो आतंकी मुठभेड़ में मारे गए हैं उनमें से एक की पहचान जैश-ए- मोहम्मद का कमांडर यासिर परे भी शामिल है।

पुलिस  मुताबिक मारा गया दूसरा आतंकी फुरकान है जिसकी पहचान एक विदेशी आतंकी के तौर पर की गयी है। यासिर परे को विस्फोटक बनाने में माहिर माना जाता था। पुलिस के मताबिक इससे पहले भी यह दोनों आतंकी कुछ घटनाओं में शामिल थे।

मुठभेड़ तब शुरू हुई जब पुलिस को पुलवामा के कस्बा यार इलाके में आतंकियों की मौजूदगी की जानकारी मिली। इसके बाद जेके पुलिस, सेना और सीआरपीएफ की साझा टुकड़ी उस इलाके में पहुँची। सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया। बाद में घिरने पर आतंकियों की तरफ से गोलीबारी शुरू कर दी गयी जो मुठभेड़ में तब्दील हो गयी और 2 आतंकी ढेर कर दिए गए।

एमसीडी चुनाव में बदलाव की उम्मीद

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव को लेकर दिल्ली की सियासत में हलचल तेज हो गयी है। दिल्ली में भले ही आप पार्टी और भाजपा के बीच मुकाबला होने की संभावना है। लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी भी दमखम के साथ चुनाव लड़ेगी और खोये हुये जनाधार को वापस पाने का प्रयास करेगी।

बताते चलें, दिल्ली में आप पार्टी की जनविरोधी नीतियों के विरोध में भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी भी जमकर विरोध –प्रदर्शन कर रही है। दिल्ली की सियासत के जानकार कृष्ण देव का कहना है कि, दिल्ली के लोगों का अपना नजरिया और मिजाज है। जो चुनाव के समय ही निर्णय करता है कि किस पार्टी ने विकास किया है और कौन सही मायने में कर सकती है।

साथ ही दिल्ली की जनता इस बात पर गौर करती है। कि मौजूदा सरकार किस हद तक जनता के साथ है। क्योंकि दिल्ली  एमसीडी में भाजपा काबिज है। तो दिल्ली सरकार में आप पार्टी की सरकार है। ऐसे में दिल्ली की सियासत का जो तालमेल है। उस पर अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इतना जरूर है। इस बार अगर कांग्रेस अपने खोये हुये जनाधार को पाने के लिये प्रयास करती है। तो निश्चित ही चुनाव परिणाम चौंकाने वाले साबित होगे।

जानकारों का कहना है कि, दिल्ली की सियासत में बदलाव आता रहा है। क्योंकि दिल्ली सरकार में आप पार्टी की आबकारी नीतियों का राजनीति दल ही विरोध नहीं कर रहे है। बल्कि जनता भी विरोध कर रही है। जगह –जगह धरना प्रदर्शन हो रहे है। मौजूदा समय में जिस तरह से दिल्ली में सियासत हो रही है। उससे बड़े बदलाव की राजनीतिक उम्मीद की जा रही है।

 

 

पद्म सम्मान -2021 ग्रामीण विभूतियों ने रचा इतिहास

ईमानदार, मेहनती और परिस्थितियों से लडऩे वालों के प्रेरणास्रोत है पद्मश्री मंजम्मा जोगतन का संघर्ष

देश के बड़े सम्मानों में गिने जाने वाले पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री मिलना गौरव की बात है। साल 2021 के लिए दिये जाने वाले इन पुरस्कारों में सबसे ख़ास बात यह रही कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने शहर में रहने वालों की तुलना में ज़्यादा पुरस्कार प्राप्त किये। लेकिन दु:खद यह है कि इन सम्मानों पर कुछ नाम वे भी लिख दिये जाते हैं, जो असल में उनके हक़दार नहीं होते। लेकिन कुछ विभूतियाँ वास्तव में ये सम्मान पाने की हक़दार होती हैं। ख़ैर, हम इस समय इस बहस में नहीं पड़ेंगे। हम हाल ही में मिले इन सम्मानों से नवाज़गी गयी विभूतियों का संक्षिप्त परिचय देकर आज उस विभूति का ज़िक्र करेंगे, जिसने अपने जीवन में कला को जीवंत करने की नीयत से जीवन की परेशानियों की परवाह किये बग़ैर दिन-रात मेहनत की, जिसे यह भी पता नहीं था कि जीवन में उसे कोई सम्मान भी मिलेगा।

हाल ही में मिले इन 119 सम्मानों में सात पद्म विभूषण से सम्मानित विभूतियों में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को सार्वजनिक मामलों के लिए, तमिलनाडु के संगीत निदेशक, गायक एस.पी. बालासुब्रमण्यम को मरणोपरांत कला के क्षेत्र में, कर्नाटक डॉक्टर बेले मोनप्पा हेगड़े को चिकित्सा के क्षेत्र में, संयुक्त राज्य अमेरिका के नरिंदर सिंह कपनी को विज्ञान एवं तकनीक में मरणोपरांत क्षेत्र में, दिल्ली के मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान को अध्यात्म के लिए, दिल्ली के बी.बी. लाल को पुरातत्व के क्षेत्र में और ओडिशा के सुदर्शन साहू को मूर्तिकला के क्षेत्र में सम्मान दिया गया।

इसके अलावा 10 पद्म भूषण- केरल की कृष्णन नायर शांताकुमारी को कला (पाश्र्व गायन) के क्षेत्र में, असम के तरुण गोगोई को मरणोपरांत, पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान (बिहार) को मरणोपरांत, गुजरात के केशुभाई पटेल को मरणोपरांत, हरियाणा के तरलोचन सिंह और मध्य प्रदेश की सुमित्रा महाजन को सार्वजनिक मामलों के लिए, कर्नाटक के चंद्रशेखर कंबरा को साहित्य एंव शिक्षा के क्षेत्र में, उत्तर प्रदेश के नृपेंद्र मिश्र को नागरिक सेवाओं के लिए, उत्तर प्रदेश के कल्बे सादिक को मरणोपरांत अध्यात्म के क्षेत्र में एवं महाराष्ट्र के रजनीकांत देवीदास को उद्योग के क्षेत्र में सम्मानपूर्वक महामहिम राष्ट्रपति के हाथों दिये गये।

इसी तरह पद्मश्री पाने वाले 102 लोगों में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कर्नाटक की तुलसी गौड़ा, महाराष्ट्र की राहीबाई सोमा पोपेर और राजस्थान के हिम्मताराम भांभू जी को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में, मंजम्मा जोगतन को कला के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में मंगलोर के हरेकाला हजब्बा, समाज कल्याण के लिए अयोध्या के मोहम्मद शरीफ़, कला के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के गुलफाम अहमद के अलावा करतार पारस राम सिंग, बॉम्बे जयश्री, बालन पुठेरी, अंशु जमसेनपा, श्रीकांत डालर, दुलारी देवी, भूपेंद्र कुमार सिंह संजय, चरन लाल सपरू, मंगल सिंह हाजोवेरी, करतार सिंह, अली मानिकफन, सुब्बु अरुमुगम, क़ाज़ी सज्जाद अली ज़ाहिर, मौमा दास, पी.वी. सिंधु, मेरी कॉम, आनंद महिंद्रा, पंडित छन्नूलाल मिश्र, कंगना रनोट और सिंगर अदनान सामी के अलावा अन्य 75 लोग शामिल रहे।

ग़ौरतलब हो की विभिन्न क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वालों को देश के राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से, असाधारण और प्रतिष्ठित सेवा के लिए पद्म भूषण एवं उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा और किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जाता है।

पद्मश्री मंजम्मा जोगतन का संघर्ष

भारत देश के दक्षिण के 7 तालुका वाले ज़िला बेल्लारी है। कुल 8,461 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल और दो लाख 63 हज़ार से अधिक आबादी वाले इस ज़िले में 13 क़स्बे और 552 गाँव हैं। प्रति 1000 पुरुषों पर 983 महिलाओं वाले इस ज़िले में एक बड़ी आबादी अनपढ़ और पिछड़ी है।

ऐसे ही लोगों में से बेल्लारी ज़िले के कल्लुकम्बा गाँव में हनुमंतैया और जयलक्ष्मी के परिवार में 18 अप्रैल, 1964 में जन्मीं एक जोगतीन (जोगनिया ) मंजम्मा जोगती उर्फ़ मंजुनाथ शेट्टी ने भारतीय कन्नड़ थिएटर अभिनेत्री, गायिका और उत्तरी कर्नाटक के लोकनृत्य जोगती नृत्य में ख़ुद को स्थापित किया। लेकिन उन्होंने जिन परिस्थितियों में ख़ुद को स्थापित किया, वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।  एक भगोड़े भिखारी से लेकर लोक कला के राज्य के शीर्ष संस्थान का नेतृत्व करने तक की मंजम्मा की असाधारण जीवन कहानी अब  स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है।

पद्मश्री मिलने के बाद ख़ुशी के आँसू आँखों में भरकर मंजम्मा बोलीं कि इस प्यार और प्रशंसा ने मुझे अभिभूत कर दिया है। मैंने अपना पूरा जीवन इस स्वीकृति और प्यार के लिए तरसते हुए बिताया है। वह कहती हैं जब मैं पहली बार इस कुर्सी पर (पद्मश्री सम्मान के लिए) बैठी तो मेरे हाथ काँप रहे थे। मैं वहाँ विपरीत दिशा में बैठी थी और तत्कालीन राष्ट्रपति को नमस्ते सर! कहने में भी घबरा जा रही थी। मेरे जैसे किसी ने कभी इस तरह आसमान तक पहुँचने का सपना कैसे देखा होगा?

अकल्पनीय दर्द झेल चुकीं मंजूनाथ ने एक महिला के रूप में पहचान बनानी शुरू की, इससे पहले उनके पास न तो तन ढकने के लिए ठीक से कपड़े थे और न पेट भरने के लिए रोटी का इंतज़ाम था। वह एक तौलिया के बराबर कपड़ा लपेटकर रहती थीं। उन्हें कामों में अपनी माँ की मदद करना, स्कूल की लड़कियों के साथ रहना, नाचना और कपड़े पहनना पसन्द था। उनके जीवन में विकट कष्ट रहे, प्रताडि़त की गयीं और एक समय ऐसा आया जब उन्होंने आत्महत्या तक की कोशिश की। एक समय ऐसा भी आया वह घर छोडक़र चली गयीं और पेट भरने के लिए भीख माँगने लगीं। एक दिन छ: लोगों ने उसके साथ बलात्कार करके लूट लिया। इस बार भी उनके मन में कई विचार कौंधे, कभी सोचा कि बलात्कारियों को मार दें, तो कभी सोचा कि आत्महत्या कर लें। लेकिन फिर दावणगेरे के पास एक बस स्टैंड पर उन्होंने एक पिता-पुत्र को लोकगीत गाते और नाचते देखा। बस यहीं से उन्होंने ठान लिया कि उन्हें नृत्य में कुछ बड़ा करना है। मंजम्मा को तब यह नहीं पता था कि कला उनके जीवन में अधिक परिवर्तनकारी भूमिका निभायेगी। एक साथी जोगप्पा ने उसे हागरिबोम्मनहल्ली के एक लोक कलाकार कलव्वा से मिलवाया। इस पर मंजम्मा का कहती है कि मुझे आज भी वह दिन याद है, जब कलव्वा ने मुझे उसके सामने नृत्य करने के लिए कहा था; जिसे आप लोग ऑडिशन कहते हैं। उसने मेरे चेहरे पर मेकअप करने के लिए किसी को लिया और मुझे याद है कि मैं आईने को देख रही थी और बहुत शर्मिंदगी  महसूस कर रही थी। मैं बहुत साँवली थी और इस मेकअप ने मुझे गोरा और सुन्दर बना दिया था। मैंने कलव्वा गाते हुए नृत्य किया। जल्द ही उसने मुझे नाटकों में छोटी भूमिकाओं के लिए और फिर बड़ी मुख्य भूमिकाओं के लिए भी आमंत्रित करना  शुरू कर दिया। मेरे जीवन को विस्तार देने में मेरे माता-पिता की बड़ी भूमिका रही है।

बता दें कि मंजम्मा को सन् 2010 में राज्योत्सव पुरस्कार से नवाज़ा गया। सन्  2019 में वह लोक कला के लिए मंजम्मा कर्नाटक जनपद अकादमी का नेतृत्व करने वाली पहली ट्रांसवुमन बनीं। जनवरी, 2021 में भारत सरकार ने लोक कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा की।

कंगना का बड़बोलापन

बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने पद्मश्री सम्मान लेने के दौरान जिस तरह का बयान दिया, उसकी हर तरफ़ जमकर निंदा हो रही है। उन्होंने अपने बयान कि ‘1947 में तो भीख में आज़ादी मिली थी, असली आज़ादी तो 2014 में मिली है’ न केवल देश, बल्कि देश की आज़ादी के लिए लडऩे और शहीद होने वाले बलिदानियों का भी अपमान किया है। सबसे ज़्यादा दु:खद उनके इस बयान पर राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक चुप्पी साधे रहे। भला ऐसे बयान देने वाले व्यक्ति को देश के सर्वोच्च लोग सुन कैसे सके? यह सवाल उनसे ही पूछा जाना चाहिए।  हालाँकि जागरूक बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, आम लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें बुरी तरह घेरा है। वहीं भाजपा सांसद वरुण गाँधी ने कंगना को आड़े हाथों लेते हुए लिखा कि यह एक राष्ट्र विरोधी कार्य है और इसे इस तरह से बाहर किया जाना चाहिए। लेकिन कंगना ने उनके इस बयान पर पलटवार करते हुए उन्हें महात्मा गाँधी के कटोरे में भीख मिली जैसी बात कहकर उन्हें बहस के लिए उकसाने का काम किया। सवाल यह है कि आख़िर कंगना रनौत किससे बूते इतना उछल रही हैं कि वह यह तमीज़ भी भूल गयीं कि देश के बलिदानियों का सम्मान करना भी भूल गयीं? कंगना की इस हरकत के लिए आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रीति शर्मा मेनन ने कंगना के बयान को देशद्रोही और भडक़ाऊ करार देते हुए मुम्बई पुलिस को एक आवेदन प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने भारतीय दण्ड संहिता की धारा-504, 505 और 124(ए) के तहत अभिनेत्री के देशद्रोही और भडक़ाऊ बयानों के लिए कार्रवाई का अनुरोध किया है। कंगना के ख़िलाफ़ अन्य कई एफआईआर दर्ज करायी गयी हैं।

समानतावादी सोच पर आस्था भारी

अनहोनी के डर से बोकारो के एक मन्दिर में ख़ुद प्रवेश नहीं करतीं महिलाएँ

केरल के सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचा। न्यायालय ने महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी। देश में केवल सबरीमाला मन्दिर में ही महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी नहीं है, बल्कि ऐसे कई मन्दिर हैं, जहाँ महिलाओं को मन्दिरों में नहीं जाने दिया जाता। इससे इतर देश में कुछ ऐसे भी मन्दिर हैं, जहाँ मन्दिरों या समाज की तरफ़ से महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं है। लेकिन वहाँ मान्यता की वजह से वे ख़ुद ही मन्दिरों में प्रवेश नहीं करतीं। ऐसा ही एक मन्दिर झारखण्ड के बोकारो ज़िले के कसमार प्रखण्ड में है। यहाँ के मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर कोई पाबंदी नहीं है; लेकिन महिलाएँ ख़ुद ही मन्दिर के अन्दर नहीं जातीं। यह प्रथा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और आज 21वीं सदी में भी बनी हुई है, जो कि महिलाओं की समानता पर भारी है।

लिंग भेद कहाँ-कहाँ?

देश के संविधान में हर क्षेत्र में समानता का अधिकार सभी को है। लेकिन अगर धर्मों की बात करें, तो महिलाओं से कई जगहों पर भेदभाव देखने को मिलता है। मसलन इस्लाम धर्म में महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश का अधिकार नहीं है। सनातन धर्म में कई मन्दिरों में उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी है। संविधान इस पर कोई पाबंदी नहीं लगाता; लेकिन धार्मिक मामलों में क़ानूनी रूप से कोई हस्तक्षेप भी नहीं करना चाहता। भारत में कई ऐसे मन्दिर हैं, जहाँ प्रवेश को लेकर लिंग भेद किया जाता है।

केरल के सबरीमाला का मामला इसी के चलते जब सर्वोच्च न्यायालय पहुँचा, तो पूरे देश में चर्चा का विषय बना। इसी तरह केरल के पद्मनाभस्वामी मन्दिर के कक्ष में महिलाएँ प्रवेश नहीं कर सकतीं। इसी तरह राजस्थान के पुष्कर में स्थित कार्तिकेय मन्दिर में, छत्तीसगढ़ के बालौदाबाज़ार ज़िले में माता मावली मन्दिर में, मध्य प्रदेश के गुना में स्थित जैन मन्दिर में, हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर के बाबा बालक नाथ मन्दिर में, उत्तराखण्ड के फ्यूंलानारायण मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। हालाँकि सावन में जब फ्यूंलानारायण मन्दिर के पट (द्वार) खुलते हैं, तो भगवान नारायण का शृंगार पुजारी के साथ एक महिला करती है; लेकिन इसके बाद मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी जाती है।

चंडी मन्दिर में प्रवेश क्यों नहीं?

झारखण्ड के बोकारो ज़िले से 40 किमी दूर कसमार में मंगला चंडी देवी मन्दिर है। यहाँ हर मंगलवार को देवी की पूजा होती है। यहाँ आसपास के लोगों के साथ प्रदेश के अन्य हिस्सों से सैकड़ों श्रद्धालु पहुँचते हैं। यहाँ एक बरगद का पेड़ है, जिसके नीचे वृक्ष और माँ चंडी की पूजा की जाती है। यह सैकड़ों साल पुराना है। पेड़ के नीचे के पूजा स्थल को एक चबूतरे से घेरने के अलावा अन्य कोई निर्माण नहीं किया गया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहाँ के पुजारी को स्वप्न आया था कि पूजा स्थल पर कोई मन्दिर निर्माण नहीं हो। मन्दिर का निर्माण पेड़ के नीचे बने पूजा स्थल से कुछ दूरी पर हो। लिहाज़ा पूजा स्थल से कुछ दूरी पर एक भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया। कहा जाता है कि मंगला चंडी देवी से लोग जो मन्नत माँगते हैं, वह पूरी होती है। इसकी ख्याति दूर-दराज़ के इलाक़ों तक पहुँची और धीरे-धीरे झारखण्ड के अन्य ज़िलों समेत अन्य प्रदेशों से भी श्रद्धालु यहाँ पहुँचने लगे। इसे आकर्षक बनाने के लिए में पूजा स्थल से मुख्य सडक़ को जोडऩे वाली सडक़ पर तोरण द्वार का निर्माण कराया गया।

मंगला चंडी देवी को जीती-जागती देवियों (महिलाओं) ने आज तक नहीं देखा है। दरअसल वे मन्दिर परिसर में नहीं करतीं, बल्कि उससे 100 फुट दूर रहती हैं। महिलाओं के लिए यह लक्ष्मण रेखा है। मान्यता है कि अगर उन्होंने इसे पार किया यानी देवी के दर्शन किये या पूजा की, तो अपशकुन होगा। इसी डर से वे 100 फुट दूर पूजा का थाल लेकर रुक जाती हैं और वहाँ पुजारी आकर उनसे चढ़ावा (प्रसाद, फूल-पत्ती आदि) लेकर मन्दिर में जाते हैं और मन्दिर में चढ़ाकर प्रसाद (चढ़ायी गयी सामग्री) उन्हें वापस कर जाते हैं। पूजा सामग्री लेकर इस सीमा में आने के लिए भी महिलाओं के लिए दोपहर 12 बजे तक का ही समय निर्धारित है। इसके बाद वे यहाँ तक भी नहीं आ सकतीं। इसके बाद विशेष पूजा-अर्चना और बलि क्रिया शुरू हो जाती है। लिहाज़ा अनहोनी की मान्यता के कारण इस समय सीमा के बाद परिसर के आसपास भी महिलाएँ नहीं जातीं। महिलाएँ न तो बलि होते देख सकती हैं और न ही बलि का प्रसाद (मांस) ग्रहण कर सकती हैं। इसे केवल पुरुष ही ग्रहण करते हैं।

गाँव के लोग और पुजारी की मानें, तो महिलाओं के मन्दिर परिसर में प्रवेश पर रोक नहीं है। लेकिन पिछले 100 वर्षों की मान्यता के मुताबिक, महिलाएँ अगर मन्दिर आएँगी, तो उनके साथ कोई अनहोनी हो जाएगी। गाँव के लोग बताते हैं कि वर्षों पहले एक महिला ने इस मान्यता को तोड़ा था। वह पागल हो गयी। चूँकि यह घटना वर्षों पहले की है, इसलिए महिला या उसके परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं दे पाया। क्योंकि यह मान्यता वर्षों से है और लोग चर्चित है, इसलिए इसे तोडऩे का साहस कोई नहीं कर पाता। जो बुज़ुर्ग हैं, उन्होंने भी महिलाओं को न ही प्रवेश करते देखा-सुना नहीं है। इसलिए सटीक रूप से यह कहना कि महिलाओं के प्रवेश पर अनहोनी हो जाएगी, किसी ठोस प्रमाण का बाइस (गारंटी) नहीं है। लेकिन जो बातें वर्षों से सुनी जा रही हैं और मान्यता के रूप में सर्व स्वीकार्य हैं, उनकी बंदिश आस्था के चलते इतनी मज़बूत लगती है कि कोई उसे डर से तोडऩे का साहस नहीं जुटा पाता।

 

मंगला चंडी देवी मन्दिर में प्रशानिक स्तर पर या पुजारियों द्वारा महिलाओं के प्रवेश पर किसी तरह की रोक नहीं है। अगर वे मन्दिर जाना चाहें, तो जा सकती हैं। पर मान्यता की वजह से महिलाएँ ख़ुद ही मन्दिर तक नहीं जातीं। इस मान्यता को केवल गाँव के लोग ही नहीं, राज्य के अन्य ज़िलों या दूसरे राज्यों से आने वाले भी मानते हैं। मान्यता सही है या ग़लत इसे साबित करने के लिए उसे कोई भी तोडऩे का साहस नहीं कर पाता है।

अनुराधा चौबे

मुखिया, कसमार

 

 

मंगला चंडी देवी मन्दिर में महिलाएँ प्रवेश नहीं करती हैं। यह मान्यता वर्षों से चली आ रही है। यहाँ केवल मंगलवार को पूजा होती है। हाल के दिनों में गाँव के किसी भी महिला को प्रवेश करते नहीं देखा-सुना है। बाहर से आने वाले लोग भी इस मान्यता को मानते हैं। आधुनिक समय में इसे अन्धविश्वास या मान्यता जो कहें; लेकिन इसमें सबका इतना विश्वास है कि इस विश्वास को तोडऩे का साहस कोई भी नहीं कर पाता है।

शेखर शरदेंदु

ग्रामीण, कसमार

GST revenue in October 2021 more than at Rs. 1.3 lakh crore, second largest collection after 1st July 2017

Gross GST revenue collected in the month of October 2021 is ₹ 1,30,127 crore of which CGST is ₹ 23,861 crore, SGST is ₹ 30,421 crore, IGST is ₹ 67,361 crore (including ₹ 32,998 crore collected on import of goods) and Cess is ₹ 8,484 crore (including ₹ 699 crore collected on import of goods).

Government has settled ₹27,310 crore to CGST and ₹ 22,394 crore to SGST from IGST as regular settlement. The total revenue of Centre and the States after regular settlements in the month of October 2021 is ₹ 51171 crore for CGST and ₹ 52,815 crore for the SGST.

The revenues for the month of October 2021 are 24% higher than the GST revenues in the same month last year and 36% over 2019-20. During the month, revenues from import of goods was 39% higher and the revenues from domestic transaction (including import of services) are 19% higher than the revenues from these sources during the same month last year.

The GST revenues for October have been the second highest ever since introduction of GST, second only to that in April 2021, which related to year-end revenues. This is very much in line with the trend in economic recovery. This is also evident from the trend in the e-way bills generated every month since the second wave. The revenues would have still been higher if the sales of cars and other products had not been affected on account of disruption in supply of semi-conductorsChart 1 shows the upward trend in number of e-way bills generated during the month and the amount of taxable value clearly indicating the recovery in economic activity.

रक्षकों की असुरक्षा पर सवाल

जिन लोगों की ज़िम्मेदारी रक्षा की हो, अगर उन्हीं की जान जोखिम में पड़ जाए, तो फिर सुरक्षा कौन करेगा। कुछ दिन पहले गोरखपुर के गोरखनाथ मन्दिर में ऐसी ही घटना घटी, जिससे सुरक्षाकर्मियों की सुरक्षा चौकसी पर सवालिया निशान तो लगे ही हैं। साथ ही यह भी आशंकाएँ खड़ी हुई हैं कि हमले की योजनाओं को देश में हवा दी जा रही है।

विदित हो कि कुछ दिन पहले गोरखनाथ मन्दिर की सुरक्षा में तैनात सिपाहियों पर जानलेवा हमला हुआ था। इस मन्दिर पर हमले का अर्थ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सुरक्षा चक्र पर हमले जैसा ही है, क्योंकि गोरखनाथ मन्दिर के महंत योगी आदित्यनाथ ही हैं। हालाँकि इस हमले के बाद गोरखनाथ मन्दिर, योगी आदित्यनाथ और उनके सरकारी आवास की सुरक्षा कड़ी कर दी गयी है। योगी के आवास की सुरक्षा में केंद्रीय सुरक्षा बलों की दो प्लाटून लगे हैं, जिसमें 72 जवान तैनात हैं। इस सुरक्षा चक्र में सीआरपीएफ की 233 बटालियन की अल्फा यूनिट भी है। तैनात जवानों में महिला व पुरुष दोनों हैं।

हमलावर का नाम अहमद मुर्तज़ा अब्बासी है, जो सब जानते ही हैं। मगर यह एक पढ़ा-लिखा भारतीय नागरिक है, जिसके रिश्ते आईएसआईएस से बताये जाते हैं। लखनऊ के सेंट जॉन बॉस्को स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने वाले अहमद मुर्तज़ा अब्बासी ने 12वीं तक की पढ़ाई मुम्बई और फिर उसका आईआईटी मुम्बई में भी चयन हुआ, जहाँ से उसने स्नातक की पढ़ाई की। मुर्तज़ा के तार नेपाल और आईएसआईएस से मिले हैं। वह अंतरराष्ट्रीय सिम कार्ड का इस्तेमाल करता था और उसके बैंक अकाउंट में 20 लाख रुपये की मोटी रक़म के अलावा कई ठिकाने मिले हैं, जहाँ वह जिहाद की गतिविधियाँ चलाता था। एटीएस टीम ने उसके $करीब आधा दर्ज़न ठिकानों पर छापेमारी करके क़रीब एक दर्ज़न संदिग्धों को गिरफ़्तार किया है। पूछताछ और वीडियो की जाँच में पता चला है कि मुर्तज़ा एनआरसी, सीएए, हिजाब और मुस्लिम समुदाय के प्रति चल रहे मसलों को लेकर नाराज़ था।

जिहाद के लिए फंडिंग

गोरखनाथ मन्दिर पर हमले से पहले अहमद मुर्तज़ा अब्बासी ने कई बैंक खातों के ज़रिये फंडिंग की थी। उसने 29 डॉलर से विदेशी सिम ख़रीदकर उसकी मदद से प्रतिबंधित वेबसाइट्स को सर्च करके उन पर जिहादी वीडियो देखता था। मुर्तज़ा का एक मिनट 49 सेकेंड का एक कथित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह हमले का कारण बता रहा है। मगर इस वीडियो को उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने इस वीडियो को सत्यापित नहीं किया गया है। जब पुलिस ने उसे पकडऩे की कोशिश की, तो उसने हमला करने की कोशिश की, जिसमें उसका हाथ भी टूट गया। गिरफ़्तारी वाले दिन ही कोर्ट ने उसके ख़िलाफ़ बी वारंट और रिमांड लैटर एटीएस की टीम को दे दिया, जिसके बाद उसे लखनऊ ले जाया गया। इस मामले की जाँच में उत्तर प्रदेश पुलिस के अलावा एटीएस और एसटीएफ की टीमें लगी हैं। गिरफ़्तारी के बाद मुर्तज़ा के पास से नेपाली करेंसी और डॉलर भी मिले। बताया जाता है कि मुर्तज़ा ने कुछ समय नौकरी भी की थी, जिससे जुटाये गये पैसे उसने अपनी जिहादी गतिविधियों में लगा दिये थे।

कैसे सम्भव हुआ हमला?

सर्वविदित है कि मुख्यमंत्री से मिलने के लिए आम लोग हर रोज़ उनके आवास और गोरखनाथ मठ में आते रहते हैं। ऐसे में पुलिस निश्चिंत रही होगी कि लोग तो आते ही रहते हैं। क्योंकि हमले का जो वीडियो सामने आया है, उसमें मुर्तज़ा बड़े आराम से हमला करता दिख रहा है और एक पुलिसकर्मी पीछे आराम से अपने हाथ बाँधे उसे देख रहा है। एक बार को तो वीडियो देखकर ऐसा लगता है, जैसे किसी फ़िल्म की शूटिंग चल रही हो। मगर सुरक्षा के मामले में इस तरह के विचार ठीक नहीं। क्योंकि यह एक बड़ी चूक है। इसी चूक का फ़ायदा उठाकर मुर्तज़ा मन्दिर प्रांगण में दाख़िल हुआ और उसने बेख़ौफ़ होकर हमला कर दिया। विदित हो कि मुर्तज़ा ने गोरखनाथ मन्दिर की सुरक्षा में तैनात सिपाहियों पर इसी बीती 3 अप्रैल को शाम के क़रीब 7:15 बजे धारदार हथियार से हमला किया था।

अब गोरखनाथ मन्दिर के मुख्य द्वार तक किसी भी गाड़ी के जाने पर पूरी तरह रोक लगी हुई है। मन्दिर और मुख्यमंत्री आवास पर जाने वालों पर पैनी नज़र रखी जा रही है और उनके पहचान पत्र देखे जा रहे हैं। आवास के द्वार पर बुलेट प्रूफ पोस्ट लगायी गयी है।

योगी का सुरक्षा चक्र

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा में जेड प्लस सिक्यूरिटी लगी हुई है। योगी की सुरक्षा में 24 घंटे लगभग 28 एनएसजी कमांडो तैनात रहते हैं। अब मन्दिर पर हमले के बाद इसमें और मज़बूती लाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश में सबसे मज़बूत सुरक्षा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हो गयी है। देखने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा के साथ-साथ उनके आवास से लेकर गोरखनाथ मन्दिर तक की सुरक्षा व्यवस्था बेहद कड़ी है। मन्दिर परिसर पर पुलिस और सैन्य बलों की गिद्ध नज़र तो रहती ही है, सीसीटीवी कैमरों की निगरानी भी बहुत मज़बूत है। इसके बावजूद हमलावर अहमद मुर्तज़ा अब्बासी आराम से हथियार लेकर मन्दिर प्रांगण में उपस्थित हो जाता है, तो इस पर सवाल उठने चाहिए और मामले की निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए। यह तब होता है, जब मन्दिर के द्वार पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था है। हमलावर इतने आराम से सब कुछ करता है, मानो वह किसी के इशारे पर काम कर रहा हो।

इधर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने उसके पिता के बयान के आधार पर मुर्तज़ा के मानसिक रोगी होने की बात को साझा किया है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि हमें इस बारे में भी ध्यान देने की आवश्यकता है। भाजपा मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है। अखिलेश यादव के बयान पर भाजपा नेता उन पर भड़क गये हैं।

जो भी हो, अब मन्दिर के प्रदेश द्वार पर सुरक्षा और भी मज़बूत कर दी गयी है। मन्दिर द्वार पर बुलेट प्रूफ जैकेट पहने जवानों की तैनाती कर दी गयी है। इसके अतिरिक्त प्रवेश द्वार पर अत्याधुनिक स्कैनर लगाया जाएगा, जिसमें से होकर जाने वाला कोई भी व्यक्ति अगर एक सूई भी लेकर मन्दिर में जाने का प्रयास करेगा, तो पकड़ा जाएगा।

फिनलैंड से सीखें ख़ुश रहने के गुर

फिनलैंड में लोग जब सड़क पर निकलते हैं, तो पास से गुज़रने वाले को एक प्यारी-सी मुस्कान देते हैं और उसका अभिवादन यानी स्वागत भी करते हैं। यह बात फिनलैंड के लोगों की ख़ुशहाली के प्रमुख कारणों में से एक है। इसके अलावा ख़ूबसूरत लैंडस्केप, प्राकृतिक सुन्दरता, जंगल, स्वच्छ और साफ़-सुथरी झीलें और सन्तुलित वाइल्ड लाइफ है। वहाँ के लोग शान्तिप्रिय हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण स्वतंत्र और चैन से रहते हैं। इसीलिए वहाँ क्राइम रेट काफ़ी कम है। लोगों में सद्भावना है। उनका स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग काफ़ी ऊँचा है। शिक्षा व्यवस्था अच्छी है। यूनिवर्सल हेल्थ केयर सिस्टम के अलावा वहाँ के लोगों में समानता का भाव है। इसलिए फिनलैंड के लोग अपने को सुरक्षित भी महसूस करते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट के लिए वर्ष 2022 में करवाये गये एक सर्वे में फिनलैंड लगातार पाँचवीं बार विश्व का सबसे ख़ुशहाल देश चुना गया है। वहाँ हैप्पीनेस का ग्राफ दूसरे देशों की तुलना में सबसे ऊँचा है। वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में शामिल होने वाले जो 10 देश हैं, उनमें शीर्ष स्थान फिनलैंड का है। उसके बाद क्रमश: डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीटजरलैंड, नीदरलैंड्स, लक्जमबर्ग, स्वीडन, नॉर्वे, इजरायल और न्यूजीलैंड शामिल है। भारत का स्थान 136वाँ है।

भारत पीछे क्यों?

परम्परागत जीवन शैली और नैतिक मूल्यों से सम्पन्न भारत जैसे देश की हैप्पीनेस रिपोर्ट या कह लें रैंक इतना पीछे होने के कई कारण हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो हमारे देश में लोगों में कथनी और करनी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ है। हम लोग द्वंद्व में जीवन जीते हैं। मन में कुछ और, बाहर कुछ और। ज़िन्दगी जीने का अधिकार तो सबको है। मगर हम ज़िन्दगी को घुट-घुटकर जीते हैं; उसको अभिव्यक्त नहीं कर पाते। इसीलिए हम उसी उलझी हुई ज़िन्दगी जीते रहते हैं।

वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट को लेकर फिनलैंड के सन्दर्भ में जब पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. रोशन लाल दहिया से बातचीत की गयी, तो उन्होंने इसके पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण बताये और कुछ सुझाव भी दिये। ख़ुशी के पैमाने पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें अपने आपको स्वीकार करना आना चाहिए, व्हाट एम आई? (मैं क्या हूँ?)। ‘मैं साइकिल पर जाता हूँ; मैं मारुति 800 में जाता हूँ; मैं पैदल जाता हूँ; इन चीज़ें की परवाह करनी छोडऩी पड़ेगी। अगर ख़ुश रहना है, तो दूसरों के साथ तुलना करना बन्द करना पड़ेगा। डॉ. रोशन लाल कहते हैं कि आज का सबसे बड़ा रोग है कि ‘क्या कहेंगे लोग?’ हमें जीवन की स्वतंत्रता चाहिए। हमारे पास वायुसंचार (वेंटिलेशन) नहीं है। हमें ‘नहीं’ कहना आना चाहिए। हमारे यहाँ सामाजिक समर्थन नहीं है। यह चीज़ अब ख़त्म होती जा रही है। भारत में हम सामाजिक जीवन जीते हैं, व्यक्तिगत जीवन नहीं; जबकि पश्चिमी देशों में लोग व्यक्तिगत जीवन ज़्यादा जीते हैं।

परम्परागत जीवन को छोड़कर हम बनावटी ज़िन्दगी जी रहे हैं। वातानुकूलित (एयर-कंडीशन) जीवन हमें ख़ुशी नहीं दे सकता। पहले ज़माने में जब हम पेड़ों के नीचे बैठकर पढ़ते थे, तो अधिक याद रहता था। अब बच्चों को एसी में बैठकर पढऩे से भी उतना नहीं याद हो पाता। लेकिन अब लोगों की जीवनशैली ऐसी हो गयी है कि एसी उनकी ज़रूरत बन गया है। मेडिकल आधार पर देखें, तो शरीर में पसीना आना ज़रूरी है। लेकिन हमारी मानसिकता ऐसी बन गयी है कि हमें एसी लगाना ऊँची जीवनशैली का मानक (स्टैंडर्ड) लगता है। लेकिन आदमी के स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर हो रहा है। लोग आराम की ज़िन्दगी जीना चाहते हैं।

उनका शरीर गतिशील नहीं हो पाता, जिससे बीमारियाँ घेर रही हैं। आरामतलब ज़िन्दगी का शिकार हुआ आज का आदमी उपकरणों पर आश्रित हो गया है। जितनी तरक़्क़ी हो रही है, उतने ही रोग हमें घेर रहे हैं। शहरों में एक्सेसिबिलिटी (उत्कृष्टता), अवेलेबिलिटी (उपलब्धता) और अफोर्डेबिलिटी (सामथ्र्य) शब्द चलते हैं; लेकिन लोगों की मानसिकता नहीं बदल रही।

डॉ. रोशन लाल बताते हैं कि फिनलैंड में लोगों की जीवन का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण है, जो कि भारत से एकदम अलग है। अगर हमें अपने बच्चों को या ख़ुद को ख़ुश रखना है, तो उन्हें सामाजिक भावनात्मक शिक्षा सिखानी पड़ेगी। सरकार और वैज्ञानिकों को कम-से-कम मानव जोखिम पर खोज करनी होगी।

कुछ तौर-तरीक़े सरकारों को जबरदस्ती लागू करने होंगे। डॉ. रोशन लाल ने बताया कि एक बार जब वह किसी सम्मेलन के लिए कनाडा में थे। उन्होंने देखा कि वहाँ एक रेस्टोरेंट (भोजनालय) बन रहा था, जिसे सरकार ने स्वीकृति नहीं दी। इसका एक बड़ा कारण यह देखने को मिला कि उस रेस्टोरेंट में 90 कुर्सियाँ अन्दर लगी थीं; लेकिन बाहर 90 गाडिय़ों को पार्क करने के लिए जगह नहीं थी। इसलिए सरकार ने उसका लाइसेंस (अनुज्ञप्ति पत्र) रद्द कर दिया। ऐसे मापदण्ड (पैरामीटर) हमारे देश में भी सरकार को ध्यान में रखने चाहिए।

ईष्या कैसी?

दार्शनिक लाओत्से ने कहा है कि जो हम हो सकते हैं, हो नहीं पाते; और जो हम नहीं हो सकते, वह होने में लगे रहते हैं। इसी में सारा जीवन बीत जाता है। सारा अवसर खो जाता है। कहने का भाव यह हुआ कि हम अपनी क्षमताओं और कौशल को जानने की बजाय दूसरों की तरह बनने में जीवन के सुनहरे अवसरों को खो देते हैं। इस चक्कर में दीन-हीन से बने रहते हैं। इससे हीन भावना पैदा होने लगती है। आत्मग्लानि में ऐसा महसूस होने लगती है कि हम दूसरों की तरह क्यों नहीं बन सके। इसी उधेड़बुन में सारा जीवन निकल जाता है और हम हाथ मलते रह जाते हैं।

ख़ुशी क्या है?

आख़िर ख़ुशी क्या है? आदमी ख़ुश क्यों होना चाहता है? इसका सीधा-सा जवाब है कि जब वह ख़ुश होता है, तो स्पष्ट सोचता है, तनाव से दूर होता है। ऐसी अवस्था में वह मुश्किलों में भी सहजता का अनुभव करता है। ख़ुशी एक आंतरिक अवस्था है, जहाँ कोई विचार शेष नहीं रहता। इस अवस्था में एक गहरा मौन होता है, जब सब तनाव ख़त्म हो जाते हैं। लेकिन ख़ुशी की यह अवस्था देश-काल और वातावरण पर निर्भर करती है।

आदमी ख़ुश होने के लिए बड़े और ख़ास मौक़े ढूँढता रहता है और इसी तलाश में उसका जीवन बीत जाता है। आम ज़िन्दगी में रोज़ाना कई पल ऐसे आते हैं, जब ख़ुशी को बटोरा जा सकता है। और उस बटोरी हुई ख़ुशी से ज़िन्दगी के तमाम संघर्षों और दु:खों से पार पाया जा सकता है। ओशो कहते हैं कि एक कलाकार, कवि और संगीतकार अपनी कलाकृति से जितना सुख, आनंद और तृप्ति प्राप्त करता है, उतना एक धनी व्यक्ति नहीं। वास्तविक ख़ुशी अन्तर में है।

कैसे मिले ख़ुशी?

गहन मौन की अवस्था में ही असल ख़ुशी का स्थान है, जहाँ कोई बाहरी परिस्थितियों का प्रभाव नहीं रहता। इस अनुभव को जितना दोहराया जाएगा, उतनी अधिक यह अवस्था प्राप्त होगी। इससे पूरा व्यक्तित्व रूपांतरित हो जाता है।