जलती जमीन पर जीने की जद्दोजहद

826001 के पिन कोड से इसकी ऑनलाइन पहचान है. झारखंड का दूसरा बड़ा शहर, आबादी करीब 24 लाख. कोयले की खदानें, इंडियन स्कूल ऑफ माइंस और गैंग्स के सिनेमाई शहर के रूप में इसकी पहचान है. यह शहर नई दिल्ली और कोलकाता के बीच एनएच-2 जिसे ग्रैंड ट्रंक (जीटी) रोड भी कहते हैं, के किनारे बसा है. रेलवे के नेटवर्क पर गैंड कॉर्ड का सबसे ज्यादा कमाई करनेवाला रेलवे स्टेशन धनबाद ही है. यह झारखंड का सीमावर्ती जिला है, जो एक ओर  से पश्चिम बंगाल को छूता है. झारखंड के दूसरे शहरों से बिल्कुल अलग मिजाज और मिलावट का शहर है धनबाद. बंगाल से सटा होने के कारण बांग्ला और रोजगार के लिए बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के यहां आ बसने से बांग्ला औैर भोजपुरी की दो भाषाएं हैं, जो धनबाद में ज्यादातर लोगों की जुबान है. जो झारखंडी संस्कृति आप रांची में देख सकेंगे वह आप धनबाद में खोज नहीं पाएंगे. इसलिए यह अलग मिजाज का शहर है. मजदूरों का शहर धनबाद. मजदूर की मूर्ति यहीं चौराहे पर सजती है. एशिया की सबसे बड़ी श्रमिक कॉलोनी बीसीसीएल की भूली टाउनशिप भी यहीं हैं. धनबाद का रात-भर गुलजार रहनेवाला स्टेशन की एक खास पहचान है जो यहां आनेवाले हर इंसान को अपनी ओर जरूर खींचता है. स्टेशन रोड की ज्यादातर दुकानों में शटर नहीं हैं, क्योंकि ये दुकानें रात-दिन खुली रहती हैं. होली और कर्फ्यू में ही इन दुकानों को बंद करने की नौबत आती है, तो परदा गिरा दिया जाता है, दुकान बंद हो गई. यहां के स्टेशन के रात में गुलजार रहने का वाजिब तर्क है भौगोलिक स्थिति. ग्रैंड कॉर्ड पर है धनबाद जंक्शन. 250 किलोमीटर दूर हावड़ा से तो 1100 किलोमीटर दूर नई दिल्ली से. हावड़ा से शाम में खुलनेवाली ट्रेनें यहां से आठ बजे रात के बाद गुजरने लगती हैं. इस तरह आधी रात तक हावड़ा से आनेवाली ट्रेनें गुजरती हैं. वहीं नई दिल्ली व अन्य जगहों से खुलकर सुबह तक हावड़ा पहुंचनेवाली ट्रेनें आधी रात के बाद भोर तक धनबाद जंक्शन पर पहुंचती रहती हैं. इस तरह पूरी रात ट्रेनों का आना-जाना लगा रहता है. स्वाभाविक है रातभर यात्री स्टेशन पहुंचते रहते हैं. इन्हीं यात्रियों का समूह स्टेशन की दुकानों का मुख्य ग्राहक होता है और दुकानें रातभर खुली रहती हैं. शहर से सात किलोमीटर दूर है झरिया. वही झरिया जहां कभी राजा का महल था और यहीं से झरिया रियासत की कमान संभाली जाती थी. आज वही झरिया जलती हुई जमीन को लेकर पूरी दुनिया में चर्चित है. चार लाख लोगों की आबादी उस जलती जमीन पर जीने की जद्दोजहद कर रही है. करीब 95 साल पहले पहली बार झरिया के कोयले में आग देखी गई. लोगों ने इसे महज एक चिंगारी समझा था, आज वही आग पूरे झरिया का वजूद खत्म कर रही है. खतरनाक ढंग से खोखली हो चुकी जमीन के ऊपर से लोगों का हटाने का पूरा सरकारी प्रयास हो रहा है. काफी लोग झरिया छोड़कर जा चुके हैं लेकिन बहुत से ऐसे हैं जो पुरखों की जमीन को छोड़कर कहीं जाने को तैयार नहीं है. आज भी झरिया एक पुराने समय का घना बसा हुआ बाजार है, जहां आपको हर चीज मिल जाएगी. अब धनबाद आनेवाले लोग झरिया की आग देखने की तमन्ना के साथ आते हैं. कुल मिलाकर जलती हुई झरिया भी कोल टूरिज्म को बढ़ा ही रही है. 1971 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण किए जाने के बाद यहां भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की स्थापना हुई. इसी जिले में सेल, टाटा आदि कंपनियों की भी कोयला खदानें हैं. इस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड की कुछ खदानें भी धनबाद जिले में आती हैं. पहले कोयला खदानों में दबदबा रखने के लिए खदान मालिक लठैतों को रखते थे. बाद में उन्हीं लठैतों ने मालिक के बजाए अपने लिए लाठी भांजनी शुरू कर दी. बीसीसीएल की स्थापना के बाद मजदूरों का नेता बनने की होड़ में कई लाशें गिरीं, कितने लापता हुए. कुछ का पता चला और कई आज भी गुमशुदा हैं. चूंकी पुलिस प्रशासन का माफिया पर कभी कोई प्रभाव नहीं रहा. तो लोग ठिकाना तलाशने लगे. यह बचाएगा या वह बचाएगा. इस तरह कोई इस गुट में गया तो कोई उस गुट में गया. इन्हीं गुटों (गैंग्स) की लड़ाई को अनुराग कश्यप परदे पर लेकर आते हैं, तो पूरी दुनिया में धनबाद का एक मोहल्ला वासेपुर कुख्यात हो जाता है.