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ज़ोर का झटका, धीरे से

अगर आप यह सोचते हों कि शायद हमारे देश में दक्षिण पंथी ताकतें मसलन आरएसएस और दूसरी ताकतें घुसपैठ कर रही हैं तो आप एक बड़ा झटका धीरे से खाने के लिए तैयार रहिए। आज का समय फासीवादी है। तकरीबन हर सुबह अखबारों में हिंसा प्रतिहिंसा की खबरें भरी रहती हैं। दिन व दिन हमलों को होना बहुत ही नाजुक और पेचीदा भी है। ऐसे में हिंदुत्व ब्रिगेड केवल जिंदगियों पर ही नहीं बल्कि लोगों की जीवनशैली तक पर काबू रखती है।

इस संदर्भ में संयुक्त राज्य अमेरिका से भी कोई बड़ी खबर नहीं आ रही है। अभी हाल कहीं से भी ऐसे संकेत मिले हैं कि वहां भी बड़े पैमाने पर बसे हुए भारतीय अब दक्षिणपंथी हो रहें हैं। अलबत्ता उनके अपने झुकाव और तरीके हैं।

अमेरिका में रह रहे एक विद्वान राजीव मल्होत्रा के ट्वीट्स को भूला नहीं जा सकता जो उन्होंने केरल में आई बाढ़ के दौरान हिंदुओं के लिए दान की अपील करते हुए किए थे। ईसाई और मुसलमान सारी दुनिया में ढेर सारा पैसा इक_ा कर रहे हैं जिससे अपने लोगों और अपने एजेंडा को पूरा कर सकें। इस तथ्य को नजऱअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि अमेरिका में ही रह रहे शलभकुमार ने वहां ‘रिपब्लिक हिंदू कोएलिशन अमेरिका’ नाम की संस्था बना रखी है। छोटे बुद्धू बक्से पर जब भी वे आते हैं तो अपने नाम के साथ ‘इंडियन’ उप नाम जोडऩा नहीं भूलते।

दरअसल जो कुछ वे कहते हैं उससे यही भ्रम होता है कि हिंदुस्तान में सिर्फ हिंदू ही रहते हैं। वे इस तरह खास तौर पर केवल पश्चिम के लोगों को नहीं बल्कि इस उप महाद्वीप के लोगों को भी भ्रम में रखते हैं। वे यह तथ्य नहीं बताते कि सिख, पारसी, मुस्लिम, दलित और नास्तिक लोग भी इस हिंदुस्तान में रहते हैं। वे इस ओर ध्यान ही नहीं देते। आखिर वे नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीब जो हंै। वे अपने संपर्कों को दक्षिणपंथ के जरिए भुना रहे हैं।

भारतीय समुदाय में दक्षिणपंथी घुसपैठ की थाह पाना सहज नहीं है जब तक कि आप अजय रैना की डाक्यूमेंटरी फिल्म ‘डाइस्पोरा’ न देखें। यह फिल्म अमेरिका में ही बनाई गई है। पुरस्कारों से नवाजी गई इस फिल्म में ढेरों दृश्य हैं और फिर वे टिप्पणीकार भी हैं। रैना इस फिल्म के जरिए कई प्रासंगिक सवाल उठाते हैं। विदेशों में बसे भारतीय समुदाय के लोगों के किस तरह के संबंध हैं भारतीयों, अश्वेतों और श्वेतों से और दूसरे लोगों से। वे दूसरे भारतीयों के साथ कुछ भारतीयों की प्रतिकृति भी बनाते हैं युगों पुरानी जातिवादी, आंचलिक और धार्मिक संबंधों और जातिवादी रूझानों की एक नई ज़मीन पर।

यह एक तरह से ‘ऑफबीट’ फिल्म हैं। जो दर्शक को ट्रंप के देश में आकार बसे कई-एक भारतीयों की मनस्थिति बताती है। कहीं यह फिल्मकार हिंदुत्व को उचित ठहराने लगता है। बल्कि कहें कि कहीं जोरदार तरीके से या बड़ी ही चतुराई से यह कहलाता है। मैंने यह फिल्म अभी हाल एक शाम देखी। मैं अंर्तमन से चकित होती रही कि आखिर किस ओर हम जा रहे हैं। किस तरह का यह अलगाववाद है जो हमारी सोच और सोचने की ताकत तक को प्रभावित कर रहा है।

हां, इस फिल्म को अलबत्ता एक ऐसी फिल्म बताया जाएगा जो बदल रहे राजनीतिक तौर-तरीकों और दीर्धकालिक प्रभावों के लिहाज से हमारी आंखे खोलती है। फिल्म का आखिरी हिस्सा हो सकता है आपकी नाराजगी बढ़ाए क्योंकि फिर बेहद अलग विचार दिखते हैं।

मैं रैना से पूछना चाहती थी कि आखिर अपने महत्वपूर्ण ‘क्यों’ की पृष्ठभूमि में ही उसे क्यों बढऩा था और यह वास्तविकता क्यों दिखानी थी- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2014 में स्क्वायर गार्डेऩ में ‘भारतीय -अमेरिकी समुदाय के बीच भाषण क्यों लपेटना था। ‘डाइस्पोरा’ एक ऐसा सजग अध्ययन है जो अमेरिका में बसे भारतीयों की पहचान करता है और उनकी राजनीति को पीछे जाकर हिंदुओं की बहुलतावाद और पहचान के आधार पर दक्षिणपंथी आंदोलन की घर वापिसी पर ज़ोर देता है।

यह राजनीति बहुतेरे भारतीय-अमेरिकी समुदायों को अमेरिका के कई हिस्सों में ‘छोटे-छोटे भारत’ बनाने के लिए प्रेरित करती है जहां से वे अपनी मातृभूमि से भी अपना संबंध बनाए रख सकते हैं। यह मानते हुए कि वे भी हिस्सेदार हैं पुरानी हिंदू सांस्कृतिक विरासत के और इनकी खासी मज़बूत हिस्सेदारी है राजनीतिक जि़ंदगी में भी।

दरअसल रैना महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि भी बताते हैं, दक्षिण एशियाई अमेरिकी लोगों ने अपने घरों में राजनीति में रूचि ली। साथ ही ढेरों मुद्दे उठाए। उनकी प्रकृति और मातृभूमि से उनके जुड़ाव की गुणवत्ता पर सवाल भी उठाए हैं।

अगर 1913 में क्रांतिकारी पार्टी गदर की स्थापना कैलिफोर्निया में हुई जो भारत में ब्रिटिश उपनिवेश के खिलाफ थी, तो आज विदेशों में बसे कुछ भारतीयों का राजनीतिक ?? अब अपनी भूमि में अखिल भारतीयता से हट कर ज़्यादा क्षेत्रीय संकीर्ण और अलगाववादी रुचियों में बदल गया है। यह इस बहुल भारत में सिखों के अलगाववादी खालिस्तानी आंदोलनों के समर्थन में दिखता है। हम इस ‘छोटे भारत’ को विदेश में बसे सिखों में देखते हैं फिर अमेरिकी ‘डाइस्पोरा’ में हिंदुओं को अपने धर्म, राजनीतिक संगठनों से कहीं ज़्यादा धार्मिक तौर पर समर्थन देना ‘मातृभूमि’ के नागरिकों की तुलना में ज़्यादा ज़रूरी जान पड़ता है। यह स्थिति कैसे बनी? भारत से विदेश में आ कर बसे लोगों की यह ‘डाइस्पोरिक’ उप संस्कृति इसलिए शायद विकसित हुई क्योंकि अमेरिका में वे जातिवादी भेदभाव के शिकार होते हैं या वे ज़रूरी मानते हैं कि अमेरिका में उन्हें कुछ ज़्यादा आदर-सम्मान हासिल हो।

यह एक महत्वपूर्ण फिल्म है राजनीतिक तौर पर उस अंधेरे समय की जिसमें हम रह रहे हैं। अजय रैना ने इस बात को बड़े ही संवेदनशील तरीके से उस बात को गहराई से भांप लिया और हमें वह सब बताने की कोशिश की। रैना की इस फिल्म को देखने के पहले मैंने उनके लंबे और कुछ छोटे लेख भी ऐसे ही एक महत्वपूर्ण विषय-कश्मीर के हालात पर पढ़े। मैं उन्हें उनके विचारों को कश्मीरी संकट के बरक्स न केवल ईमानदार और साफ प्रयास मानती हंू। रैना एफटीआईआई पुणे के छात्र रहे हैं। उन्हें मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (2002) का पुरस्कार उनकी फिल्म -‘टेल देम, द ट्री दे हैड प्लांटेड हैज नॉउ ग्रोन’ (उन्हें बता दो, जो पौध उन्होंने लगाई थी वह अब बड़ी हो गई है।) काफी भावनात्मक और मार्मिक है। कई साल बाद कश्मीर घाटी की उनकी अपनी यात्रा पर यह फिल्म भी है। हालांकि वे कश्मीर में नहीं रहते लेकिन उससे उनका जुड़ाव रहा है। वे आखिर संस्थापक भी है

वे चलते-फिरते फिल्म फेस्टिवल कश्मीर बिफोर अवर आइज’ के ऑर्गेनाइजर भी है।

मूर्ख कौन?

चुनाव आ गए और अचानक हमारी मांग बढऩे लगी। राजनैतिक दलों को न केवल हमारे जैसे मतदाता चाहिए बल्कि वे अपने प्रत्याशी भी हमारे जैसे ही चाहते हैं। इसका सीधा सा कारण है हम कभी सवाल नहीं उठाते। वैसे भी सवाल उठा कर हमें अपनी जान आफत में थोड़ा डालनी है। पता नहीं हमें ‘द्रोही’ मान लिया जाए। अंग्रेजों ने पहली अप्रैल का दिन हम लोगों के लिए रखा है। जब उन्होंने इस दिन की इज़ाद की होगी उन दिनों शायद वहां लोकतंत्र नहीं होगा। यदि होता तो वहां राजनैतिक दल होते और राजनीति तो बिना दूसरे को उल्लू बनाए चलती ही नहीं। अर्थ यह कि लोग रोज़ मूर्ख बनते तो फिर उन्हें मूर्ख दिवस अलग से निश्चित करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। हमारी बिरादरी में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो इस बात से खफ़ा हैं कि हम अंग्रेजों की बात क्यों मानते हैं और साल में केवल एक ही दिन क्यों मूर्ख बनते और बनाते है,जबकि हमारी संस्कृति में तो अब रोज़ लोगों को मूर्ख बनाने की होड़ चल रही है। जो जितना मूर्ख बना दे वह उतना बड़ा नेता। फिर जनता इस बात की तारीफ भी करती है, कि फलां नेता ने कितनी कामयाबी के साथ हमारा मूर्ख बना कर वोट हासिल कर लिए। आज देश में चोरी की निंदा नहीं तारीफ होती है कि चोर ने कितनी सफाई से हाथ साफ किया। किसी को कानों-कान खबर ही नहीं होने दी। फिर चाहे वह चोरों के विदेश भाग जाने का मामला हो या फिर ट्रेक्टर के साथ पूरा एटीएम उखाड़ ले जाने की बात।

हमारी गर्दभ बिरादरी खंूटे से बंधी नेताओं को खूंटे उखाड़ते देखती है। नेता आज एक दल में तो कल दूसरे के पाले में। इतनी लंबी छलांगे लगाते हैं कि मेंढक भी हैरान रह जाए। जिसे कल तक चिल्ला-चिल्ला का कोस रहे थे आज उसी की गोद में बैठ कर उस का स्तुति गान कर रहे हैं पर जनता सवाल नहीं पूछती। नेता बड़ी सफाई से पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लगभग पौने दो लाख करोड़ के लाभ दे देता है तो किसी ओर कोई हलचल नहीं होती, पर जब किसान के 60 हज़ार करोड़ के कजऱ् माफी की बात आती है तो वही नेता और मीडिया ऐसे चीत्कार मचाता है जैसे देश की पूरी अर्थव्यवस्था इन किसानों ने ही ध्वस्त की हो। तब सोशल मीडिया पर वह करदाता भी अपने पैसे का हवाला दे देता है जिसने टैक्स बचाने के लिए सारे ग़ैर कानूनी हथकंडे अपनाए हों। पर आम जनता तो खामोश रहती है। उसे क्या लेना देना। इस तरह हम तो रोज़ मूर्ख बनते हैं। खासतौर पर उन दिनों जब चुनावी मौसम हो। चुनाव के दिनों में कुछ खास घटनाएं होती हैं। उन्हें मीडिया पर उछाला जाता है । हर आदमी जानता है कि यह घटना चुनाव की वजह से घटी है पर सवाल नहीं उठाया जाता। इससे बड़ी मूर्खता और क्या होगी कि लोग नेताओं और राजनैतिक दलों के नारों पर विश्वास करते हैं, उनके कामों की समीक्षा नहीं करते। फिर चाहे वह 15 लाख आने का मामला हो या दो करोड़ नौकरियों का। चाहे वह ‘गऱीबी हटाओ’ का नारा हो या बात काले धन की वापसी की। कोई सवाल नहीं।

यह सब तो उस मानव की बात है जिसके पास बुद्धि होने का प्रमाण-पत्र है। कुछ के पास जाली प्रमाणपत्र भी हो सकते हैं, कुछ प्रमाणपत्र रविवार को जारी किए भी हो सकते है। पर हमें क्या? तो पर उनकी बाद में। हमारी बिरादरी तो वैसे भी मूर्ख ही समझी जाती है। किसी को मूर्ख कहना हो तो उसे ‘गधा’ कह दिया। हमारी पीठ पर बिठा दिया। पर हम सभी इसी बात पर हंसते हैं। सोचते हैं कि जो इंसान, इंसान को इंसान न समझ कर हिंदू-मुसलमान, सिख, इसाई समझता है वह हमें मूर्ख कहता है। इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है। वैसे भी मूर्ख की सबसे बड़ी पहचान होती है कि वह खुद को सबसे ज़्यादा समझदार समझता है। अपने दिमाग के दरवाज़े बंद रखता है। उसे लगता है कि जितना ज्ञान उसके पास है उतना किसी और का नहीं।

देश में जब लोग धर्म और जाति के नाम पर खून बहाते हैं तो उससे बड़ी मूर्खता क्या होगी? यह बात हर रोज़ 300 करोड़ से ज़्यादा का मुनाफा कमाने बवालों को तो मुफीद होगी पर आम जनता के हक में नहीं। यह बात हम और हमारी गर्दभ बिरादरी समझती है तो पहली अप्रैल को दूसरों को मूर्ख बनाने वाले क्यों नहीं? ‘मूर्ख’ होते हुए भी हम अपना वोट मानवहित को ध्यान में रखकर डालते हैं, किसी धर्म, जाति, भाषा के आधार पर नहीं और न ही राष्ट्रवाद जैसे नारों को जहन में रखते हुए। ज़रा ध्यान से सोचो कि आखिर मूर्ख कौन है?

नोटबंदी वाले साल रिटर्न फाइल करने वाले ८८ लाख कम हुए

जिस नोटबंदी को लेकर पीएम मोदी और उनकी सरकार के लोग अपनी पीठ थपथपाते रहे हैं उसे लेकर अब जो खुलासा हुआ है वह होश उड़ा देने वाला है। नोटबंदी वाले साल के बाद देश में टैक्स नहीं भरने वालों की संख्या में दस गुणा बढ़ौतरी हो गयी। यही नहीं, इससे भी बड़ा चिंताजनक सवाल यह है कि जिन लाखों लोगों ने टैक्स नहीं भरा उनकी नौकरी वास्तव में चली गयी।
 गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी की सफलता का दावा करते हुए कहा था कि नोटबंदी से २-१६-१७ के वित्तीय वर्ष में १.०६ करोड़ नए करदाता जुड़े थे जो कि उससे पहले के वित्तीय वर्ष के मुकाबले २५ प्रतिशत ज्यादा थे। लेकिन उसी साल टैक्स रिटर्न नहीं देने वालों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ था। यह खुलासा अंग्रेजी   अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट में सामने आया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक २०१५-१६ के वित्तीय वर्ष में आय कर रिटर्न नहीं भरने वाले लोगों की संख्या ८.५६ लाख थी लेकिन २०१६-१७, जब देश में पीएम की घोषणा के बाद नोटबंदी लागू हुई, के वित्तीय वर्ष में यह संख्या दस गुना बढ़ कर ८८.०४ लाख हो गई।
इस रिपोर्ट से जाहिर होता है कि टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करने वाले लोग वे हैं जिन्होंने पिछले वित्तीय वर्षों में आय कर रिटर्न भरा था। नोटबंदी के बाद ऐसा करना बंद कर दिया और इनमें एक भी ऐसा करदाता नहीं जिनकी मृत्यु हो चुकी, जिनके पैन कार्ड रद्द हो गए या जब्त कर लिए गए।
एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कर अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि २०००-०१ के बाद  यह टैक्स नहीं भरने वालों की सबसे बड़ी संख्या है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे लोगों की संख्या २०१३ में ३७.५४ लाख थी जो अगले सालों में घटती रही। साल २०१४ में २७.०२   लाख, २०१५ में १६.३२ लाख और २०१६ में ८.५६ लाख लोगों ने टैक्स नहीं भरा। जाहिर है नोटबंदी से पहले कर न भरने वाले कम हो रहे थे, जो एक सकारात्मक परिवर्तन था।
रिपोर्ट के मुताबिक इस बढ़ती संख्या की वजह नोटबंदी हो सकती है जिसके चलते बड़ी संख्या में नौकरियां कम हुई थीं या छूट गई थीं। अखबार को नाम न छापने की शर्त पर एक कर अधिकारी ने बताया कि करदाताओं का कम होना आम तौर पर तब होता है जब कर प्रशासन लोगों से इसका अनुपालन करवाने में असफल रहता है। हालांकि, २०१६-१७ में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी होने के लिए अनुपालन संबंधी व्यवहार में अचानक आए परिवर्तन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। ”बढ़ोतरी उस साल आय या नौकरी खत्म होने की वजह से हो सकती है”।
यही नहीं २०१६-१७ के वित्तीय वर्ष के टैक्स आंकड़े जाहिर करते हैं कि उस साल टीडीएस (आय के स्रोत पर काटा गया कर) भरने वालों की संख्या में भी ३३ लाख से ज्यादा की गिरावट हुई। एक अन्य कर अधिकारी के मुताबिक इससे यह अर्थ भी निकलता है कि जिन लोगों ने पिछले साल विशिष्ट ब्यौरेवार लेन-देन किए, उन्होंने उस साल (नोटबंदी वाले) ऐसा नहीं किया। अर्थात देश की आर्थिक गतिविधि में गिरावट आई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने इस संबंध में किए गए सवाल पर कहा कि ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा (१.७५ करोड़ से ज्यादा) है जिनके टीडीएस/टीसीएस कटे होते हैं, लेकिन वे रिटर्न नहीं भरते। इन लोगों की आय रिटर्न भरने योग्य नहीं होती। ”इस तरह के करदाताओं का विश्लेषण और उनकी संख्या में आए बदलाव के कारणों का पता लगाने में थोड़ा समय लगेगा”।

हमारे विरोधी पाकिस्तान में हीरो बन रहे : मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार कहा कि आज दुनिया भर में भारत का डंका बज रहा है और भारत की जय-जयकार हो रही है। यूपी के अमरोहा में एक चुनाव सभा में मोदी ने कहा कि ऐसा देश में एक मजबूत नेतृत्व के (उनके) कारण ही संभव पाया है।
चुनाव सभा में मोदी ने कहा – ”आज दुनिया के देशों में भारत का डंका बज रहा है, दुनिया भर में भारत की जय जयकार हो रही है। इसका कारण मोदी नहीं है। इसका कारण आप लोग हैं। २०१४ में आपने जो वोट दिया उसकी ताकत है। ये पूर्ण बहुमत वाली सरकार की ताकत है।”
मोदी ने अपना यह आरोप दोहराया कि कांग्रेस और विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा पर ढुलमुल है और पाकिस्तान के सामने नंबर बनाने के लिए वे देश की सेना की वीरता पर भी सवाल उठा रहे हैं। पीएम ने कहा – ”जब पाकिस्तान में घुसकर आतंकी मारे जाते हैं तो कुछ लोगों को हिंदुस्तान में रोना आता है, वह पाकिस्तान में हीरो बनने की कोशिश करते हैं।”
पीएम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी का आतंकवाद पर नर्म रवैये की वजह से कुछ लोगों के हौसले बुलंद हुए हैं। ”इन दलों ने सिर्फ आतंक को ही मदद नहीं दी है, इन्होंने आपके जीवन और अस्तित्व को भी संकट में भी डालने का काम किया है”। मोदी ने कहा कि देश की साख रहे, इसके लिए मजबूत सरकार का होना बहुत जरूरी है। ”मजबूत सरकार ही कड़े और बड़े फैसले ले पाती है, देश को आगे बढ़ा पाती है”।
पीएम ने संयुक्त अरब अमीरात में उन्हें अवार्ड मिलने का भी चुनाव सभा में जिक्र किया – ”आपके इस प्रधानसेवक को वहां का सबसे बड़ा सम्मान ‘जायद मैडल’ देकर सम्मानित किया गया है। ये सम्मान मेरा नहीं आप सबका और खाड़ी देशों में काम कर रहे करोड़ों भारतीयों का है”।

चुनाव के बाद राफेल डील की जांच होगी : राहुल

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार कहा कि चुनाव के बाद राफेल लड़ाकू विमान डील मामले की जांच की जाएगी। राहुल ने कहा कि निश्चित ही इस जांच के बाद ”चौकीदार जेल में होगा”।
महाराष्ट्र के नागपुर में एक चुनाव जनसभा में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि अगर चुनाव के बाद उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता में आई तो इस सौदे की जांच की जाएगी। राहुल ने कहा – ”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़ाकू विमान खरीद सौदे में बदलाव किया जिसकी वजह से इसके दाम बढ़ गए। मैं आपको बता रहा हूं चुनाव के बाद जांच शुरू होगी और चौकीदार जेल में होगा।”
राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार की बात पर जोर देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि रक्षा मंत्रालय का दस्तावेज बताता है कि नरेंद्र मोदी ने मूल सौदे में बदलाव किया और एक विमान १६०० करोड़ रुपये में खरीदा। राहुल – ”महंगे विमान खरीदकर उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए राहुल ने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति के पास रक्षा क्षेत्र का कोई तजुर्बा नहीं है। उसे देश का सबसे बड़ा रक्षा सौदा दिया गया।”
गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष अपने इस आरोप पर लगातार कायम रहे हैं कि राफेल लड़ाकू विमान डील में भ्रष्टाचार हुआ है। कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पात्र तक में इस डील की जांच करवाने और दोषी को जेल भेजने का वादा देश से किया है।
राहुल कई प्रेस कॉन्फ्रेंस और अब चुनाव जनसभाओं में राफेल डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। उनका इसी मसले पर ”चौकीदार चोर है”  बहुत चर्चित हुआ है जिसके जवाब में ” मैं भी चौकीदार” का काऊंटर जुमला गढ़ना पड़ा।

नेशनल हेराल्ड मामले में एजेएल को राहत

सर्वोच्च न्यायालय से ”नेशनल हेराल्ड” के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को शुक्रवार बड़ी राहत मिली है। फिलहाल एजेएल को हेराल्ड हाउस को खाली नहीं करना पड़ेगा। एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की याचिका पर शीर्ष अदालत ने दिल्ली के आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस खाली करने के आदेश पर रोक लगाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और उससे चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है।
अपनी याचिका में नेशनल हेराल्ड अखबार की प्रकाशक कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने दिल्ली हाई कोर्ट के हेराल्ड हाउस खाली करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने २८ फरवरी को लीज की शर्तें तोड़ने का दोषी पाते हुए एजेएल को दिल्ली के आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस खाली करने का आदेश दिया था।
वैसे एजेएल ने हेराल्ड हाउस को खाली करने के केंद्र के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की खंडपीठ ने एजेएल की याचिका को खारिज करते हुए उसे आईटीओ के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित इमारत को खाली करने का निर्देश दिया था। शहरी विकास मंत्रालय ने ३० अक्टूबर, २०१८ को कहा था कि एजेएल की ५६ साल पुरानी लीज ख़त्म हो चुकी है लिहाजा उसे परिसर खाली करना होगा।
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर एजेएल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।   सोमवार को एजेएल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने आज एजेएल को राहत प्रदान की है।

ब्लॉग में आडवाणी – ‘हमने कभी राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन या देशविरोधी नहीं माना’

इसे पिछ्ला ब्लॉग देश की राजनीति के सबसे चर्चित नेताओं में से एक – लाल कृष्ण आडवाणी – ने २३ अप्रैल, २०१४ को लिखा था। आज फिर लिखा है और इसमें देश की वर्तमान राजनीति, खासकर उनकी अपनी ही पार्टी के भीतर, से वो आहत दिखते हैं। आडवाणी ने लिखा है – ”हमने कभी भी राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन या देशविरोधी नहीं माना”। अपरोक्ष रूप से यह उस भाजपा पर टिप्पणी लगती है जिसका नेतृत्व मोदी-शाह करते हैं और जिसके बारे में कहा जाता है कि उनके अनुयाई अपने राजनीतिक विरोधियों को हर मुद्दे पर ”देशविरोधी” कहकर बदनाम करते हैं।
इस बार इस दिग्गज नेता को भाजपा ने गांधीनगर से टिकट नहीं दिया। लेकिन माना जाता है कि भाजपा को देश की राजनीति में गहरे से प्रस्थापित करने वाले आडवाणी को पार्टी के भीतर जिस ज़लालत की स्थिति में पहुंचा दिया गया, उससे यह दिग्गज आहत रहा। इस बार टिकट देने के मामले में तो उन्हें ”अपमान जैसी स्थिति” से गुजरना पड़ा।
आजके अपने ब्लॉग में लाल कृष्ण आडवाणी ने लम्बे समय बाद सार्वजनिक टिप्पणी की है। इसमें पार्टी की नीतियों और सिद्धांतों को लेकर कई अहम बातें उन्होंने कही हैं। आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा – ”हमने कभी भी राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन या देशविरोधी नहीं माना।” आडवाणी की इस टिपण्णी को हर व्यक्ति अपने हिसाब से परिभाषित करेगा लेकिन इसके कुछ संकेत तो निकलते ही हैं।
भाजपा का स्थापना दिवस ६ अप्रैल को है और उससे दो दिन पहले ब्लॉग के जरिये आडवाणी ने गांधीनगर की जनता के प्रति आभार जताया है। वह १९९१ के बाद ६  बार वहां से सांसद रहे। इस बार गांधीनगर के उनके प्रिय रण से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मैदान में हैं।
आडवाणी भाजपा के संस्थापक हैं। आज ब्लॉग में उन्होंने लिखा – मेरी जिंदगी का सिद्धांत रहा है – देश सबसे पहले, उसके बाद पार्टी और आखिर में खुद। मैंने हर परिस्थिति में इस सिद्धांत पर अटल रहने की कोशिश की है जो आगे भी जारी रहेगी।”
ब्लॉग में आडवाणी ने अबतक के अपने राजनीतिक सफर को याद किया है कि कैसे वह १४ साल की उम्र में आरएसएस से जुड़े और किस तरह वह पहले जनसंघ और बाद में बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में रहे और पार्टी के साथ करीब सात दशक तक जुड़े रहे। ब्लॉग में आडवाणी ने पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों पर जोर देते हुए सभी राजनैतिक दलों से आत्मनिरीक्षण की अपील भी की।
आडवाणी ने लिखा – ”भारतीय लोकतंत्र का सार उसकी विविधता और अभिव्यक्ति की आजादी है। अपने जन्म के बाद से ही, बीजेपी ने खुद से राजनीतिक तौर पर असहमति रखने वालों को कभी ‘दुश्मन’ नहीं माना, बल्कि उन्हें हमसे अलग विचार वाला माना है। इसी तरह, भारतीय राष्ट्रवाद की हमारी अवधारणा में, हमने राजनीतिक तौर पर असहमत होने वालों को कभी ‘देश-विरोधी’ नहीं माना।”
भारतीय राजनीति के इस दिग्गज ने आगे लिखा – ”पार्टी के भीतर और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य दोनों में ही लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा बीजेपी की गर्वीली पहचान रही है। बीजेपी हमेशा से मीडिया समेत हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता, निष्ठा, निष्पक्षता और मजबूती की रक्षा की मांग में अग्रणी रही है।’ उन्होंने लिखा कि चुनाव सुधार और भ्रष्टाचारमुक्त राजनीति उनकी पार्टी की एक अन्य प्राथमिकता है।”
आखिर में आडवाणी ने लिखा – ”सत्य, राष्ट्र निष्ठा और लोकतंत्र की तिकड़ी ने बीजेपी के विकास की पथप्रदर्शक रही हैं। उन्होंने कहा कि इन मूल्यों की समग्रता से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सुराज (गुड गवर्नेंस) का जन्म होता है, जो उनकी पार्टी का हमेशा से ध्येय रहा है। लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दलों, मीडिया और लोकतांत्रिक संस्थाओं से ईमानदारी से आत्मनिरीक्षण  करना चाहिए। सभी को शुभकामनाएं।”

भारतीय सेना को ”मोदीजी की सेना” कहने वाले देशद्रोही : वीके सिंह

भारतीय सेना को ”मोदीजी की सेना” कहने वालों को पूर्व सेनाध्यक्ष और मोदी सरकार में मंत्री जनरल वीके सिंह ने ”देशद्रोही” बताया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ रोज पहले इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया था जिसपर उन्हें सोशल मीडिया ही पर ही नहीं, विपक्ष के भी वार झेलने पड़े थे।
पूर्व प्रमुख और विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का नाम लिए बगैर ”मोदीजी की सेना” वाले उनके बयान को देशद्रोह करार दिया है। गौरतलब है कि योगी के सार्वजानिक रूप से दिए इस ब्यान पर भारत का चुनाव आयोग पहले ही इसे आचार संहिता का मामला मानते हुए योगी आदित्यनाथ को नोटिस थमा चुका है।
अब जनरल वीके सिंह ने योगी आदित्यनाथ के इस बयान को गलत बताते हुए इसे देशद्रोह करार दिया है। वीके सिंह ने कहा – ”भारत की सेनाएं भारत की हैं, और ये किसी राजनीतिक पार्टी की नहीं हैं”। सिंह ने यह टिप्पणी बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में की है। इसमें जनरल वीके सिंह ने कहा – ”अगर कोई कहता है कि भारत की सेना मोदी की सेना है तो वो गलत भी है और देशद्रोही भी। भारत की सेना भारत की है, किसी पॉलिटिकल पार्टी की नहीं हैं।”
इस इंटरव्यू में जनरल सिंह ने कहा – ”अगर भारत की सेना की बात करते हैं तो सिर्फ भारत की सेना की ही बात हो। मोदीजी की सेना या बीजेपी की सेना और भारत की सेना में काफी फर्क है।” हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि ”उन्होंने कहा कि बीजेपी के प्रचार में सब लोग अपने आप को सेना भी बोलते हैं। लेकिन हम किस सेना की बात कर रहे हैं। इस ध्यान देना हो होगा। हमे चुनाव में देखना होगा कि क्या हम भारत की सेना की बात कर रहे हैं या पॉलिटकल वर्कर्स की।”
सिंह की इस टिप्पणी को काफी सख्त माना जा रहा है। दिलचस्प यह है कि अहमद पटेल सहित कुछ कांग्रेस नेताओं ने सिंह के इस इंटरव्यू को रीट्वीट करते हुए उनका इस ब्यान के लिए समर्थन  और धन्यवाद किया है।

स्मृति के मुकाबले अमेठी में ज्यादा गए राहुल : रिपोर्ट

भाजपा की अमेठी से उम्मीदवार स्मृति ईरानी भले राहुल गांधी के अमेठी में आने को लेकर उन्हें ”लापता राहुल” कह रही हों, एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच साल में राहुल गांधी अमेठी में स्मृति ईरानी के मुकाबले १४ बार ज्यादा गए हैं। यह उन दावों के विपरीत है जिसमें स्मृति राहुल पर अमेठी को वक्त नहीं देने का आरोप लगाती हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने को लेकर भी स्मृति अमेठी से उनके पलायन की संज्ञा दे रही हैं। गुरूवार को जब राहुल वायनाड से नामांकन भर रहे थे, स्मृति अमेठी में राहुल को ”लापता राहुल” और ”अमेठी से भाग गए राहुल” जैसे संज्ञाएं दे रही थीं।
हालाँकि, भाजपा और कांग्रेस के खेमों से जानकारी जुटाकर ”इंडिया टुडे” ने जानकारी हासिल की उसके मुताबिक स्मृति ईरानी ने पिछले पांच साल में २१ बार अमेठी का दौरा किया जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसी दौरान अमेठी का ३५ बार दौरा किया। स्मृति ईरानी पिछले ५ साल में २६ दिन अमेठी में रहीं और १०६ राजनीतिक कार्यक्रम उन्होंने किये।
स्मृति और उनके समर्थकों का दावा है कि राहुल गांधी उनसे ”डरकर” वायनाड ”भाग” गए हैं। गुरूवार को अमेठी आईं स्मृति ने इस वाक्या को दोहराया। गौरतलब है कि २०१४ के लोक सभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने अमेठी में अपनी मौजूदगी का अहसास तो कराया था लेकिन मोदी की सुनामी के बावजूद वे एक लाख से ज्यादा वोटों से हार गयी थीं। हालांकि हार के बावजूद और इस इलाके से न होने के वाबजूद वे अमेठी जाती रही हैं।
अब सवाल उठता है कि अमेठी के वोटर्स का किसने कितना ख्याल रखा, कौन कितनी बार क्षेत्र में आया और वोटर्स से मुलाकात की। ”इंडिया टुडे” टीवी के मुताबिक, बीते पांच साल में राहुल गांधी स्मृति ईरानी के मुकाबले १४ बार अधिक अमेठी गए। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि स्मृति ने अप्रैल २०१५ से मार्च २०१९ के बीच २०१९ का उल्लेख करते हुए २०२ ट्वीट किए, जबकि राहुल ने केवल २८ ट्वीट किए। साल २०१९ के चुनावी साल में स्मृति ईरानी ने अमेठी को लेकर ३९ ट्वीट पोस्ट किए हैं, जबकि राहुल गांधी ने अमेठी का सिर्फ एक बार उल्लेख किया।

गोरखपुर में योगी को झटका देने वाले निषाद भाजपा में गए

उत्तर प्रदेश के चुनाव भाजपा के लिए कितने अहम हो गए हैं यह गुरूवार को तब साबित हो गया जब सीएम योगी आदित्यनाथी ने सपा-बसपा महागठबंधन में जबरदस्त सेंधमारी करते हुए अपनी तत्कालीन लोकसभा सीट गोरखपुर में उपचुनाव में भाजपा को धूल चटाने वाले प्रवीण निषाद को भाजपा में शामिल करवा लिया। इन्हीं निषाद ने उपचुनाव में भाजपा को योगी की सीट पर हराकर जबरदस्त झटका दिया था।
गोरखपुर सीट योगी आदित्यनाथ के सीएम बनाने के बाद ही खाली हुई थी। उससे पहले वे पांच वार यहाँ से सांसद रहे लेकिन उनके सीएम बनने के बावजूद वे अपने इस गढ़ को बचा नहीं पाए थे। अब निषाद पार्टी के भाजपा के साथ जाने को एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन के लिए झटका माना जा रहा है।
निषाद ने महागठबंधन से अलग होने के बाद योगी से मुलाकात करके राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी थी। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और पार्टी के अन्य नेताओं ने देर रात मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। भाजपा के यूपी प्रभारी जेपी नड्डा ने संकेत दिए हैं कि प्रवीण निषाद भाजपा के गोरखपुर से उम्मीदवार हो सकते हैं।