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दिल्ली में कांग्रेस-आप गठबंधन नहीं

दिल्ली में कांग्रेस ने सभी सीटों पर खुद चुनाव लड़ने और आप से कोइ समझौता न करने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस ने शुक्रवार कहा कि आम आदमी पार्टी की ओर से गठबंधन के लिए मना किए जाने के बाद वह अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इस तरह पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बात मान्य होने  बन गए हैं जो आप से किसी तरह का सम्झौटा नहीं चाहती थीं। वे खुद चुनाव में उतर सकती हैं।
कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) की बैठक गुरुवार को हुई थी जिसमें आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन न करने का फैसला हुआ है। कांग्रेस की बैठक मे दिल्ली की सात सीटों में से चार सीटों के उम्मीदवारों के नाम पर सहमति बनी है।  इनमें नई दिल्ली से अजय माकन, चांदनी चौंक से कपिल सिब्बल, उत्तर पूर्वी दिल्ली से जेपी अग्रवाल और उत्तर पश्चिमी दिल्ली से राजकुमार चौहान को टिकट की लगभग पक्की संभावना है। जबकि पूर्वी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट पर उम्मीदवारों को लेकर पेंच फंसा है।
पार्टी के दिल्ली प्रभारी पीसी चाको ने कहा है कि जल्द ही दिल्ली की सभी सात सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जाएगी। उन्होंने कहा – ”हम सहमति बनाने की कोशिश कर रहे थे। हमारी नीति है कि भाजपा को हराने के लिए अलग-अलग राज्यों में गठबंधन किय जाए। दिल्ली में भी यह सुझाव आया कि आप के साथ गठबंधन किया जाए और वह (कांग्रेस) तैयार भी है।”
चाको ने कहा कि निगम चुनाव में कांग्रेस और आप का कुल वोट ४७ प्रतिशत था। ”हम चाहते थे कि आप चार और कांग्रेस तीन सीटों पर लड़े। इस पर सहमति भी बन गयी थी। लेकिन आप की तरफ से यह बात आई कि हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों में गठबंधन के लिए बात हो। दिल्ली की स्थिति और दूसरे राज्यों की स्थिति अलग है। परसों आप की तरफ से बयान आया कि गठबंधन नहीं हो रहा है। हम सिर्फ दिल्ली में गठबंधन के लिए तैयार हैं।”

रायबरेली में सोनिया ने किया नामांकन दाखिल

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुरूवार को रायबरेली सीट से लोक सभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। इससे पहले उनके समर्थकों ने रोड शो निकाला जिसमें भारी भीड़ दिखी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक नामांकन  दाखिल करने से पहले सोनिया गांधी ने पूजा की।    कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उनके साथ मौजूद थीं। सोनिया गांधी रायबरेली में रोड शो किया। उनका मुकाबला रायबरेली में  दिनेश प्रताप सिंह से है, जो कांग्रेस छोडकर हाल में भाजपा में शामिल हुए हैं। सपा और बसपा ने रायबरेली से उम्मीदवार नहीं उतारा है और कांग्रेस के समर्थन का ऐलान कर रखा है।
उधर केंद्रीय मंत्री और भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने भी अमेठी लोकसभा सीट  से अपना नामांकन दाखिल किया। अमेठी में पांचवे चरण में छह मई को मतदान होना है। ईरानी का अमेठी सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से सीधा मुकाबला है।  राहुल ने बुधवार को ही नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। इससे पहले २०१४ के लोकसभा चुनाव में ईरानी को राहुल के हाथ एक लाख से ज्यादा मतों से पराजय का सामना करना पड़ा था।

राहुल गांधी लेज़र गन के निशाने पर थे?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को अमेठी में रैली के दौरान लेज़र गन के निशाने पर थे? एक वीडियो में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी के चेहरे पर हरे रंग के बिंदु जैसी लाइट पड़ती दिख रही है। कांग्रेस ने वीडियो के आधार पर गृह मंत्रालय से  इसकी शिकायत करते हुए राहुल की सुरक्षा को खतरा बताया है। खबर है कि गृह मंत्रालय ने इसे ”कांग्रेस के कैमरामैन के मोबाइल कैमरा की लाइट” बताया है। गृहमंत्रालय के मुताबिक इसके बारे में एसपीजी से भी बात हुई है जिसके बाद यह सामने आया है कि यह ”मोबाइल कैमरा की लाइट” थी। वैसे कुछ कांग्रेस नेताओं ने इसके बाद यह सवाल उठाया है कि ऐसा कौन सा मोबाइल कैमरा होता है जिससे इस तरह की ”हरे रंग की बिंदुनूमा लाइट” निकलती है। उनके मुताबिक ऐसी लाइट लैज़र गन की होती है। राहुल गांधी को ”जेड प्लस” सुरक्षा मिली  हुई है।
इससे पहले वीडियो जारी करके कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि जब अमेठी से परचा भरने के बाद राहुल गांधी पत्रकारों से बात कर रहे थे तभी बहुत कम समय में कम से कम सात बार उनके सिर/चेहरे के आसपास लेज़र दिखती रही। कांग्रेस के मुताबिक दो बार तो सीधे उनकी कनपटी पर लेजर की लाइट पड़ी। ऐसा उस वीडियो में भी साफ़ दिख रहा है।
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि अमेठी में रोड शो के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान राहुल गांधी के चेहरे और कनपटी पर लेजर लाइट पड़ी। इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद हड़कंप मच गया है। कांग्रेस ने इस सिलसिले में गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखी और इस घटना के बारे में अवगत कराया। कांग्रेस ने गृह मंत्रालय को लिखी अपनी चिट्ठी में याद दिलाया है कि पार्टी अपने दो-दो प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को ऐसे हमलों में खो चुकी है। पार्टी ने कहा है कि राहुल को एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है, इसलिए सुरक्षा में इस लापरवाही की जांच की जाए।
गृह मंत्रालय का कहना है कि हमें राहुल गांधी की सुरक्षा में चूक से संबंधित कोई पत्र अभी तक नहीं मिला है। मामला जानकारी में आने के बाद एसपीजी के निदेशक से रिपोर्ट मांगी गई। एसपीजी के निदेशक का कहना है कि ”लाइट कांग्रेस के फोटोग्राफर के मोबाइल फोन की थी” जो राहुल गांधी का वीडियो बना रहा था।

मुद्दों पर लौटता चुनाव !

धीरे-धीरे लोक सभा का चुनाव मुद्दों पर लौट रहा है। लम्बे चरण का चुनाव है लिहाजा पहले चरण के बाद मुद्दे अपना असर दिखाते चले जायेंगे। सर्वोच्च न्यायालय के राफेल दस्तावेजों पर बुधवार को दोबारा सुनवाई के फैसले से पहले चरण के मतदान से महज एक दिन पहले इन मुद्दों में एक और बड़ा मुद्दा जुड़ गया है।
दो बड़े दलों भाजपा और कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिए हैं। भाजपा ”राष्ट्रवाद” पर निर्भर रहना चाहती है जबकि कांग्रेस ”न्याय” की अपनी योजना पर। बाकी क्षेत्रीय दल हैं जिनके अपने मुद्दे हैं। पिछले दिनों के तमाम सर्वे यह बता रहे हैं कि इस चुनाव में आम जनता के बीच बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। मुद्दों से किसी भी दल को गैर मुद्दों के जरिये भागना आसान नहीं होगा। किसान दूसरा बड़ा मुद्दा हैं।
अब राफेल को भी कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल बड़ा मुद्दा बनाएंगे। भले सरकार के खिलाफ राफेल खरीद को लेकर कोर्ट से कोइ विपरीत फैसला नहीं आया है लेकिन ”द हिन्दू” में छपे दस्तावेजों को कोर्ट ने खारिज नहीं किया जिससे मोदी सरकार को बड़ा झटका लगा है। खासकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, जो इस मुद्दे पर सीधे-सीधे पीएम मोदी पर निशाना साधते रहे हैं, अब राफेल डील में भ्रष्टाचार के अपने आरोपों  के साथ और मुखर होंगे।
”एयर स्ट्राइक” के बाद कुछ टीवी चैनलों ने जो सर्वे किये हैं उनमें से एक भी इस चुनाव में अकेली भाजपा को बहुमत नहीं दे रहा जो उसने २०१४ की मोदी की प्रचंड लहर में हासिल किया था। यानि ”एयर स्ट्राइक” नहीं होता तो भाजपा की स्थिति संभवता और खराब होती। एयर स्ट्राइक से पहले बेरोजगारी, किसान, विकास ही साफ़ तौर पर चुनावी मुद्दे बन चुके थे। क्या जनता इतनी जल्दी इन मुद्दों को अपने मन से निकाल देगी?
”एयर स्ट्राइक” का जहाज पकड़कर भाजपा चुनाव में जीत की उड़ान की उम्मीद कर रही है। क्या मतदाता बेरोजगारी, किसान और अन्य जन सरोकार के मुद्दे भूलकर सिर्फ एयर स्ट्राइक (राष्ट्रवाद) पर वोट करेंगे ? देखना  दिलचस्प होगा।
अगर गौर करें तो भाजपा पिछले तीन महीने में अपने ”नारे” को लेकर बहुत ”कन्फ्यूज” रही है। यह चुनाव को लेकर उसकी अपनी स्थिति के कमजोर आत्मविश्वास की कहानी कहता है। ”मोदी है तो मुमकिन है”, ”मैं भी चौकीदार”से होते हुए कहानी ”फिर एक बार मोदी सरकार” पर आ टिकी है। दूसरे भाजपा अपने चुनाव घोषणा पत्र और चुनाव प्रचार में २०१४ के बाद अपनी उपलब्धियों को लेकर बहुत उम्मीद क्यों नहीं कर रही। क्या उसे लगता है कि इसपर वोट मांगना ”चुनावी सेल्फ गोल” होगा ? ”अच्छे दिन” के उसके नारे के २००४ में ”इण्डिया शाइनिंग” के नारे जैसा ”बेबफा” होने का खतरा खुद भाजपा को है।
क्या देश वास्तव में पड़ोसी मुल्कों से किसी ऐसे ”खतरे” में घिरा है कि इसका हव्वा खड़ा करके भाजपा सिर्फ ”राष्ट्रवाद” के नारे के सहारे पूरे देश का चुनाव जीत जाए और जनता बेरोजगारी, भूख, बिजली-पानी, सड़क-अस्पताल सब कुछ भूल कर भाजपा के पीछे खड़ी हो जाए? जनता ही तय करेगी और नतीजे ही बताएँगे ! ज़मीन पर तो देश को ऐसा कोइ खतरा नहीं दिखता।
सवाल यह भी है कि भाजपा ने आखिर घोषणा पत्र में जन मुद्दों को तरजीह पर क्यों नहीं रखा? उसने क्यों धारा ३७०, राम मंदिर आदि-आदि को सबसे ऊपर रखा ? क्या भाजपा ”अति राष्ट्रवाद” और हिंदुत्व का घोल फिर चुनाव में सामने रखकर अपने समर्थक वर्ग को गोलबंद करना चाहती है? लेकिन यह मुद्दे तो २०१४ के उसके घोषणा पत्र में भी थे और पिछले पांच साल के शासनकाल में उसके पास अपना ही बहुमत भी था, तो फिर उसने इनपर ज़मीनी स्तर पर कुछ क्यों नहीं किया? क्या जनता के दिमाग में यह सवाल नहीं आएंगे ? जनता ही तय करेगी और नतीजे ही बताएँगे !
भाजपा ने कांग्रेस के घोषणा पत्र की निंदा भी अपने एजेंडे के ही हिसाब से की। मसलन कांग्रेस के कश्मीर से जुड़े आफ्सपा जैसे मुद्दों पर। और इसे ”देशविरोधी” और ”पाकिस्तान समर्थक” बताने में देर नहीं की। भाजपा ने कांग्रेस के पूरे घोषणा पत्र को ही ” देशविरोधी” बताकर गंभीर मुद्दों को पल भर में धो डाला। क्या सचमुच कांग्रेस का घोषणापत्र ”ढकोसला” है जिसे की पीएम मोदी ने कहा और उसमें जनता के लिए कुछ नहीं है ? या भाजपा ने ऐसा करके सीधे मुद्दों पर खुद को खड़ा करने से बचने की कोशिश की ? जनता ही तय करेगी और नतीजे ही बताएँगे !
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ”न्याय” योजना पर फोकस रखा है। यानी देश के २५ करोड़ अति गरीबों को हर साल ७२,००० रूपये देना। इसके आलावा राहुल गांधी ने सत्ता में आने की स्थिति में मार्च २०२० तक खाली पड़े २२ लाख सरकारी पद भरने का वायदा किया है। यह बहुत बड़ा और डेडलाइन के साथ किया वादा है जो राहुल के लिए बड़ी चुनौती रहेगा, भले बेरोजगारों को यह बहुत ज्यादा आकर्षित करने वाला वादा है।
भाजपा ७२,००० रूपये देने की राहुल की योजना को ”ढकोसला” बता चुकी है। उसके समर्थक आर्थिक विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं कि राहुल इसके लिए पैसा कहाँ से लाएंगे। हालांकि जाने माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन का कहना कि राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाए तो ”न्याय” योजना सफल हो सकती है और पैसे का  इंतजाम भी किया जा सकता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि इससे बाज़ार में लोगों के खरीद करने का दायरा (क्रय शक्ति) बढ़ेगा जिसका बाज़ार को भी लाभ होगा।
राहुल ने तीन राज्यों में चुनाव जीतकर किसान कर्जमाफी के अपने वादे को १० दिन के भीतर लागू करके अपनी छवि ”वादा पूरा करने वाला नेता” की बनाई है। कांग्रेस का भी यही दावा है कि राहुल जो कहते हैं करके दिखाते हैं। भाजपा इसे नहीं मानती और वो तो उन तीन राज्यों में कर्जमाफी पर ही सवाल उठाकर इसे ”फेल” बता रही है। खुद पीएम मोदी कांग्रेस के कर्जमाफी की सफलता का उपहास उड़ा चुके हैं।
क्या बेरोजगारी जैसे सबसे बड़े और गंभीर मुद्दे के बीच भाजपा के ”राष्ट्रवाद” के मुद्दे पर कांग्रेस की ”न्याय” योजना भारी पड़ेगी ? कुछ राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के घोषणा पत्र को कांग्रेस के घोषणापत्र की तुलना में ”बहुत कमजोर” बता रहे हैं। कुछ का कहना है ऐसा लगता है भाजपा ने घोषणा पत्र ”बेमन” से पेश किया है और वह पूरी  तरह ”एयर स्ट्राइक, बालाकोट, पुलवामा और राष्ट्रवाद” पर निर्भर रहना चाहती है क्योंकि उसे लगता है कि जन मुद्दे नहीं, यह मुद्दे ही उसकी नैया पार लगा सकते हैं।
कुछ जानकारों का मानना है कि भाजपा का जनता से सीधे जुड़े मुद्दों के बजाए ”राष्ट्रवाद” के मुद्दे पर पूरी तरह निर्भर रहना उसके लिए घातक भी साबित हो सकता है क्योंकि आम जनता के सामने समस्यायों का अम्बार है। ”एयर स्ट्राइक” जैसे मुद्दे  जनता के भीतर क्षणिक आवेग तो भर सकते हैं, उसका पेट नहीं भर सकते न बेरोजगार को रोजगार दे सकते हैं।
एयर स्ट्राइक के बाद निश्चित ही जनता में देशभक्ति का ज्वार उछाल मार रहा था। लेकिन धीरे-धीरे यह ठंडा पड़ गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में एयर स्ट्राइक में ३०० आतंकवादियों के मारने के दावे पर सवाल उठाये गए हैं। यहाँ तक कहा गया है कि बालाकोट की एयर स्ट्राइक ”निशाने से दूर” रही। जनता में बहुत से ऐसे लोग हैं जो यह मानते हैं कि भाजपा ने सेना को अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की है। यूपी के सीएम योगी ने तो भारतीय सेना को ”मोदी की सेना” ही बता दिया जिसके बाद उन्हें चुनाव आयोग की फटकार तक सहनी पड़ी।
इस बार का चुनाव २०१४ से बिलकुल विपरीत राजनीतिक माहौल के बीच लड़ा जा रहा है। मोदी की २०१४ वाली लहर ज़मीन पर नदारद है। लेकिन भाजपा मान कर चल रही है कि ”मोदी की सुनामी” है। इसलिए उसका सबकुछ मोदी के इर्दगिर्द सिमट गया है। इसके विपरीत कांग्रेस मुद्दों के साथ चुनाव में उसके सामने है। इन मुद्दों में पहले चरण के मतदान से महज एक दिन पहले राफेल भी ताकत से आ जुड़ा है। ज़मीनी अध्ययन बताता है कि ”असली मुद्दे” (बेरोजगारी, रोटी-पानी और किसान) चुनाव में लौट चुके हैं और पहले-दूसरे चरण के बाद चुनाव का फैसला करने की स्थिति में होंगे।
ज़मीन पर सिर्फ ”एयर स्ट्राइक” ही नहीं है। बेरोजगारी, नौकरी, रोजी-रोटी, किसान भी  भी बहुत ताकत से हैं। सिर्फ ”एयर स्ट्राइक” इतना ताकतवर मुद्दा होती तो अभी तक के सर्वे में भाजपा अकेली ३००-३५० के पार पहुँच चुकी होती। लेकिन बहुमत पर भी  नहीं पहुँच रही तो इसलिए कि जनता के बहुत बड़े वर्ग में बेरोजगारी और रोटी-पानी बहुत जवलंत मुद्दे हैं। यह मुद्दे ”एयर” में नहीं हैं ”ज़मीन” पर हैं। इस चुनाव में जो ज़मीन पर रहेगा वो ही जनता के पास पहुँच पायेगा !

महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में आईईडी ब्लास्ट में कई जवान घायल

महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में एक आईईडी ब्लास्ट होने की खबर है। इसमें सीआरपीएफ के कुछ जवान घायल हुए हैं जिनमें एक जवान की हालत गंभीर होने की सूचना है। ”तहलका” के जानकारी के मुताबिक यह हमला सीआरपीएफ के एक कैम्प के पास किया गया है। यह एक नक्सली हमला बताया गया है।
जानकारी के मुताबिक यह ब्लास्ट शाम करीब साढ़े चार बजे हुआ है जिसमें सीआरपीएफ के एक शिविर को टारगेट किया गया है। इसमें एक जवान के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना है। अभी बाकी ब्योरे की जानकारी का इन्तजार है।
छत्तीसगढ़ में मंगलवार को ही एक नक्सली हमले में भाजपा के विधायक की हत्या कर दी गयी थी। इसके अलावा सुरक्षा बलों के चार जवान भी शहीद हुए थे। इस हमले के बाद नक्सली प्रभाव वाले इलाकों में सुरक्षा कड़ी किये जाने पर जोर दिया जा रहा था।

अब ‘नमो टीवी’ पर भी आयोग की रोक !

बुधवार को भाजपा के लिए एक के बाद बुरी ख़बरें आई हैं। पहले सुप्रीम कोर्ट में राफेल को लेकर सरकार की याचिका खारिज हुई और उसके बाद पीएम मोदी की बायोपिक फिल्म पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी। अब आयोग के ही हवाले से जानकारी आई है कि ”नमो टीवी” पर भी रोक लगाई जा रही है। विपक्ष का आरोप था कि २४ घंटे के इस चैनल में पीएम मोदी और भाजपा का प्रचार किया जा रहा है।
चुनाव आयोग ने दोपहर ही पीएम मोदी पर बन रही बायोपिक की रिलीज पर रोक लगा दी थी। चुनाव आयोग ने अब कहा है कि यह आदेश पीएम मोदी के बायोपिक पर ही नहीं बल्कि नमो टीवी पर भी लागू होगा। नमो टीवी को लेकर टाटा स्काई ने अपने जवाब में कहा था कि नमो टीवी एक हिंदी न्यूज सर्विस है, जो राष्ट्रीय राजनीति पर ताजातरीन ब्रेकिंग न्यूज मुहैया कराती है। इस सर्विस प्रोवाइडर के ट्वीट से केंद्र सरकार के दावे पर सवाल उठे थे। एक प्रकार से टाटा स्काई ने ट्वीट कर सरकार के उस दावे का खंडन किया था, जिसमें नमो टीवी को महज एक विज्ञापन प्लेटफॉर्म बताकर पल्ला झाड़ लिया गया था।
नमो टीवी नाम का यह चैनल मार्च के दूसरे पखबाड़े अचानक लॉन्च हुआ, तब से इसे सत्ताधारी बीजेपी के ट्विटर हैंडल से लगातार प्रमोट भी किया जा रहा है। खुद पीएम मोदी भी चौकीदारों को संबोधित करने से जुड़े प्रोग्राम का इस टीवी पर प्रसारण होने की ३१ मार्च को सूचना दे चुके हैं।
विपक्ष के चुनाव आयोग पर निष्पक्ष न होने के आरोपों के बाद देश के नामी लोगों ने भी आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाये हैं। अब मतदान से पहले चुनाव आयोग सख्त हो गया है। ३१ मार्च को नमो टीवी देश की कुछ डीटीएच सर्विस पर लॉन्च हुआ था, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण, भारतीय जनता पार्टी का चुनावी प्रचार, मोदी सरकार की योजनाओं का बखान किया जा रहा है। इसको लेकर कांग्रेस और कई विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी।

मोदी की बायोपिक पर चुनाव आयोग की रोक

हाल में अपने कुछ फैसलों को लेकर निशाने पर रहे चुनाव आयोग ने बुधवार को एक बड़े आदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक पर चुनाव ख़त्म होने तक रोक लगा दी है। यह फिल्म ११ अप्रैल को रिलीज होने वाली थी।
पीएम की बायोपिक फिल्म ”पीएम नरेंद्र मोदी” को लेकर चुनाव आयोग ने यह एक बड़ा फैसला किया है। आयोग ने लोकसभा चुनाव तक बायोपिक पर रोक लगा दी है। गौरतलब है कि मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने मोदी की बायोपिक की रिलीज पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता की चिंता का हल करने के लिए उचित संस्था निर्वाचन आयोग है, क्योंकि यह एक संवैधानिक निकाय है।
सर्वोच्च अदालत का कहना था कि आयोग को ही यह तय करना चाहिए कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर फिल्म की रिलीज चुनाव के दौरान किसी विशेष राजनीतिक पार्टी को फायदा या उसके लिए झुकाव तो पैदा नहीं करती। फिल्म में अभिनेता विवेक ओबराय पीएम मोदी का किरदार निभा रहे हैं। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का आरोप था कि फिल्म चुनाव में भाजपा को अनुचित लाभ देगी लिहाजा  चुनाव समाप्त होने तक इसके रिलीज को टाल दिया जाना चाहिए।

राहुल ने नामांकन दाखिल किया

वायनाड के बाद अमेठी में भी जबरदस्त भीड़ जुटाकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को अपने नामांकन भरने से पहले शक्ति प्रदर्शन किया। राहुल के  नामांकन भरने के वक्त यूपी अध्यक्ष सोनिया गांधी, पश्चिम यूपी की प्रभारी कांग्रेस  महासचिव प्रियंका गांधी, राहुल के जीजा राबर्ट वाड्रा भी मौजूद रहे।
नामांकन दखिल करने से पहले गांधी ने रोड शो किया जिसमें बहन प्रियंका गांधी, जीजा रॉबर्ट वाड्रा और उनके दोनों बच्चे भी दिखे। रोड शो में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। इसबार यूपी में वैसे ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बॉडी लैंग्वेज काफी बदली-बदली और उत्साह से लबरेज दिख रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसका कारण प्रियंका गांधी की एंट्री है।
सम्भावना है कि उनकी प्रतिद्वंदी उम्मीदवार भाजपा की स्मृति ईरानी गुरूवार को नामांकन दाखिल कर सकती हैं जो २०१४ के लोक सभा चुनाव में उनकी प्रतिद्वंदी उम्मीदवार थीं। हालाँकि, उस चुनाव में मोदी की जबरदस्त लहर के वाबजूद वो राहुल से एक लाख वोटों से कुछ ज्यादा से हार गईं थी।
मुंशीगंज से शुरू हुये राहुल गांधी के रोड शो में सड़क किनारे कांग्रेस समर्थकों की भारी भीड़ जमा थी। कार्यकर्ताओं के हाथों में कांग्रेस के तिरंगे के अलावा ”न्याय का नीला झंडा” भी था। राहुल गांधी की सालाना ७२,००० रूपये देने की योजना की देश भर में चर्चा है जिसे ”न्याय” नाम दिया गया है।
रोड शो के दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं घर से छज्जों से फूलों की बारिश कर रही थी और बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक उत्साहित दिख रहे थे। भारी गर्मी में भी कार्यकर्ताओं का लंबा जुलूस राहुल गांधी के काफिले के साथ चल रहा था। अमेठी को राहुल गांधी और कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। राहुल करीब दो घंटे तक रोड शो करने के बाद लगभग १२ बजे नामांकन दाखिल किया। राहुल अमेठी से २००४, २००९ और २०१४ में बड़े अंतर से विजयी रहे हैं।

इमरान खान चाहते हैं ‘शांति के लिए मोदी जीतें’

बेशक भाजपा पाकिस्तान के विरोध और राष्ट्रवाद को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही हो, उन्हें पाकिस्तान के पीएम इमरान खान का भी ”समर्थन” मिला गया है। इमरान खान का कहना है कि शांति की ज्यादा सम्भावना तभी होगी यदि मोदी फिर भारत के पीएम बनते हैं। इमरान ने यहाँ तक कहा कि पुलवामा हमले और उसपर भारत की प्रतिक्रिया से मोदी और बीजेपी को देशभक्ति की लहर का फायदा मिला है।
इमरान खान ने कहा – ”नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनावों में जीतकर फिर से भारत के पीएम बनते हैं तो फिर शांति वार्ता के बेहतर मौके होंगे।” विदेशी पत्रकारों से बातचीत में इमरान ने यह बात की। इमरान खान को यह भी लगता है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो शायद वह पाकिस्तान से कोइ सुलह या बातचीत नहीं करेगी क्योंकि ”कांग्रेस जनता के दवाब में डरकर ऐसा नहीं करेगी”। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा – ”अगर भारत की अगली सरकार विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेतृत्‍व में बनती है तो शायद यह पार्टी कश्‍मीर पर पाकिस्‍तान के साथ किसी तरह की कोई सुलह करने में डरेगी क्‍योंकि उसे विरोध की आशंका सताएगी। शायद अगर बीजेपी जो कि एक राइट विंग पार्टी है, जीतती है तो फिर कश्‍मीर पर किसी तरह की सुलह संभव है।”
इमरान ने कहा कि भारत में इस समय जो कुछ भी हो रहा है, उसके बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था। इमरान ने कहा कि सरकार पाकिस्‍तान में मौजूद हर आतंकी संगठन को अस्थिर करने के लिए प्रतिबद्ध है और सरकार को देश की ताकतवर सेना का पूरा समर्थन है। ”हर आतंकी संगठन को खत्‍म किया जाएगा जिसमें कश्‍मीर में मौजूद संगठन भी शामिल हैं। कश्मीर में इसलिए राजनीतिक संघर्ष जारी है क्‍योंकि इसका कोई मिलिट्री हल नहीं है”।
खान ने कहा कि भारत में लोकसभा चुनाव से पहले आए सर्वे में साफ नजर आता है कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आत्मघाती आतंकी हमले और उसपर भारत सरकार की तेजी से प्रतिक्रिया के बाद मोदी और बीजेपी को देशभक्ति की लहर से फायदा मिला है।

लोकसभा मतदान के ऐन पहले राफेल पर मोदी सरकार को बड़ा झटका

लोक सभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान से महज एक दिन पहले मोदी सरकार को राफेल लड़ाकू विमान डील मामले में बहुत बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को मोदी सरकार की उन प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया है जिसमें सरकार ने याचिका के साथ लगाए दस्तावेजों पर विशेषाधिकार  बताया था। इस मामले पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीनों जजों की पीठ ने आजका फैसला दिया है।
गौरतलब है इस मामले में वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा, वाजपेयी सरकार में ही मंत्री रहे पूर्व भाजपा नेता अरुण शौरी और सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण की तरफ से याचिका दायर की गयी है। सरकार ने इस याचिका को खारिज करने की मांग की थी, जिसे आज सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि तीनों याचिकाकर्ताओं ने अपनी समीक्षा याचिका में जिन दस्तावेजों का इस्तेमाल किया है, उनपर उसका विशेषाधिकार है और उन दस्तावेजों को याचिका से हटा देना चाहिए। लेकिन सरकार की दलील को न मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इन दस्तावेजों को सबूत के तौर पर मानने का एक तरह से फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि राफेल मामले में रक्षा मंत्रालय से फोटोकॉपी किए गोपनीय दस्तावेजों का परीक्षण करेगा। केंद्र ने कहा था कि गोपनीय दस्तावेजों की फोटोकॉपी या चोरी के कॉपी पर कोर्ट भरोसा नहीं कर सकता।
आजका फैसला सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बैंच ने सहमति से सुनाया है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि दस्तावेज याचिका के साथ दिए गए हैं, वो गलत तरीके से रक्षा मंत्रालय से लिए गए हैं, इन दस्तावेजों पर कोर्ट भरोसा नहीं कर सकता।
याद रहे सरकार ने दावा किया था कि  १४ दिसंबर, २०१८ के कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दिए गए दस्तावेजों पर उसका विशेषाधिकार है। सरकार ने कहा था कि याचिका की सुनवाई के लिए इन दस्तावेजों पर कोर्ट संज्ञान न ले। सरकार का कहना था कि मूल दस्तावेजों की फोटोकॉपी अनधिकृत रूप से तैयार की गईं और इसकी जांच की जा रही है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि प्रस्तुत दस्तावेज विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेज हैं, जिन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा १२३ के अनुसार सबूत नहीं माना जा सकता है।
हालाँकि, याचिकाकर्ताओं में से एक प्रशांत भूषण ने एजी के दावों को गलत बताते हुए कहा कि विशेषाधिकार का दावा उन दस्तावेजों पर नहीं किया जा सकता जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में हैं।