लोकसभा मतदान के ऐन पहले राफेल पर मोदी सरकार को बड़ा झटका

सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों को सबूत न मानने की उसकी याचिका खारिज की

लोक सभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान से महज एक दिन पहले मोदी सरकार को राफेल लड़ाकू विमान डील मामले में बहुत बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को मोदी सरकार की उन प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया है जिसमें सरकार ने याचिका के साथ लगाए दस्तावेजों पर विशेषाधिकार  बताया था। इस मामले पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीनों जजों की पीठ ने आजका फैसला दिया है।
गौरतलब है इस मामले में वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा, वाजपेयी सरकार में ही मंत्री रहे पूर्व भाजपा नेता अरुण शौरी और सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण की तरफ से याचिका दायर की गयी है। सरकार ने इस याचिका को खारिज करने की मांग की थी, जिसे आज सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि तीनों याचिकाकर्ताओं ने अपनी समीक्षा याचिका में जिन दस्तावेजों का इस्तेमाल किया है, उनपर उसका विशेषाधिकार है और उन दस्तावेजों को याचिका से हटा देना चाहिए। लेकिन सरकार की दलील को न मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इन दस्तावेजों को सबूत के तौर पर मानने का एक तरह से फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि राफेल मामले में रक्षा मंत्रालय से फोटोकॉपी किए गोपनीय दस्तावेजों का परीक्षण करेगा। केंद्र ने कहा था कि गोपनीय दस्तावेजों की फोटोकॉपी या चोरी के कॉपी पर कोर्ट भरोसा नहीं कर सकता।
आजका फैसला सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बैंच ने सहमति से सुनाया है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि दस्तावेज याचिका के साथ दिए गए हैं, वो गलत तरीके से रक्षा मंत्रालय से लिए गए हैं, इन दस्तावेजों पर कोर्ट भरोसा नहीं कर सकता।
याद रहे सरकार ने दावा किया था कि  १४ दिसंबर, २०१८ के कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दिए गए दस्तावेजों पर उसका विशेषाधिकार है। सरकार ने कहा था कि याचिका की सुनवाई के लिए इन दस्तावेजों पर कोर्ट संज्ञान न ले। सरकार का कहना था कि मूल दस्तावेजों की फोटोकॉपी अनधिकृत रूप से तैयार की गईं और इसकी जांच की जा रही है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि प्रस्तुत दस्तावेज विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेज हैं, जिन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा १२३ के अनुसार सबूत नहीं माना जा सकता है।
हालाँकि, याचिकाकर्ताओं में से एक प्रशांत भूषण ने एजी के दावों को गलत बताते हुए कहा कि विशेषाधिकार का दावा उन दस्तावेजों पर नहीं किया जा सकता जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में हैं।