औघट घाट
घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।
औघट घाट कबीर का भरे सो निर्मल होय।।
साधो तुम तो सर झुकाए ऐसे चल रहे हो जैसे उस पर कोई कलंक लगा हो और उसे छुपाए बिना रह नहीं सकते हो। और वे लोग जो तुम कहते हो कि यह कलंक लगाए हैं बड़ी शान से घूम रहे हैं। कल विएना गए थे और आज श्रीलंका से लौटने वाले हैं। विएना में जीत गए और श्रीलंका में पाकिस्तान को काबुल विस्फोट के लिए दबा आए। उनका तो सिर उजला है और चमक रहा है। उस पर कलंक क्या कोई सल तक नहीं दिखाई देता। विजय का राजतिलक अब तक दिपदिपा रहा है। उनके चलने, उठने और करने-धरने में कोई हिचक-झिझक नहीं है। जैसे कुछ हुआ ही न हो। उन्हें तो जीतना था सो जीत गए। और अब वे अपने सामने कोई कंकर-पत्थर रोड़ा फोड़ा नहीं देखना चाहते। तेज़ी में हैं। सारे काम आठ महीने में निपटा लेने हैं।
उन्हें तो जीतना था सो जीत गए। और अब वे अपने सामने कोई कंकर-पत्थर रोड़ा फोड़ा नहीं देखना चाहते। तेज़ी में हैं। सारे काम आठ महीने में निपटा लेने हैं।
तो साधो शरम खाने की तमीज क्या तुम्ही में बची है जो बाइस जुलाई को याद कर कर के शून्य में गुम हो जाते हो। लगता है तुम्हारे पास कोई काम नहीं है। ठाले बैठे हो इसलिए खरीदे गए बहुमत की ही जुगाली कर रहे हो। आओ, हमारे पास आओ। कोने में जो कपास पड़ा है उसे यहां हमारे सामने आकर ओटो। जब तुम्हारी तरह कोई महसूस नहीं करता हो और कोई तुम्हारी सुनने को तैयार भी न हो तो चुपचाप बैठकर कपास ओटना चाहिए। और कुछ नहीं तो कातने के लिए पूनी बन जाएगा और ढोरो को चबाने के लिए बिनौले मिल जाएंगे। कपास ओटते हुए यह भी समझ आएगा जो जान बूझ कर और सोच विचार कर के धतकरम करते हैं उन्हें कोई लाज शरम और पछतावा नहीं होता। वे जानते हैं कि उनने शुभ किया है क्योंकि किए बिना दुनिया नहीं चलती। और जिससे दुनिया चलती है उसमें कोई खराबी नहीं होती। खराबी का हल्ला वही मचाते हैं जिन्हें या तो कुछ करना नहीं है या जिनका किया अब अनकिया हो गया हो। तुमने तो न कुछ किया न करने में विफल हुए। बस अपनी कसौटियां लिए बैठे हो। उन पर कोई खरा नहीं उतरता तो बैठे सिर धुनते रहते हो।
तुम चिंता में मरे जा रहे हो साधो कि जैसा बहुमत अभी खरीदा गया वैसा बेचा और खरीदा जाएगा तो एक दिन पैसे से ही सरकार बनाई और गिराई जाएगी। तब करोड़ो लोगों के वोट दे कर जनादेश देने का कोई मतलब रह नहीं जाएगा। जिसके पास ज्यादा धन होगा और जिसका दांव लग जाएगा वो सरकार बना लेगा और उसे अपने काम करने में लगा लेगा। जब दूसरे धनपति को लगेगा कि उसका उद्योग धंधा तो चौपट हुआ जा रहा है तो वह कुछ सांसदों को खरीदेगा, सरकार गिरवाएगा। अस्थिरता समाप्त करने के नाम पर दल बदलुओं की सरकार बनाएगा और उससे अपने नुकसान की भरपाई करवाएगा और फिर पहले वाले धनपति को कंगाल करने में लग जाएगा। इस तरह दो सरकारें दो धनपतियों के लिए देश चलाएंगी। उनके काम हमारे विकास और उन्नति के लिए होंगे। उनके नफे नुकसान से देश का नफा और नुकसान तय होगा। तुम हल्ला करोगे तो वे कहेंगे कि यह हमारे पिछड़ेपन के कारण हो रहा है। चालीस-पचास बड़े धनपति होते तो ये एकाधिकार या दो की होड़ नहीं होती। बहुत से होते तो संतुलन आता और हमारा लोकतंत्र मजबूत होता।
साधो, तुम गरीब देश के पिछड़े साधु हो। जिनके पास धन होता है वो लक्ष्मी की साधना करते हैं। लोकतंत्र की चिंता नहीं।
प्रभाष जोशी