असल धर्म का पालन लोगों के दिलों के बीच पुल बनाने और जख्मों पर मरहम लगाने का काम करता रहा है. असली धर्म यानी अपनी अंतरात्मा की आवाज का अनुसरण. यहां बिना किसी हानि-लाभ के, अंतरात्मा की आवाज पर, अपने होने के उद्देश्य की पूर्ति करने वालों की कुछ मिसालें दी जा रही हैं जिनसे छोटे-छोटे झगड़ों में बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी करने वाले सबक ले सकते हैं
मेल कराती पाठशाला
किसी स्कूल में मुसलमान बच्चे गायत्री मंत्र का पाठ करते मिल जाएं और हिंदू बच्चे मुसलमानों के साथ मिलकर रोजा रखते दिखें तो किसी का भी चौंकना लाजिमी है. भोपाल शहर के महाराणा प्रताप नगर इलाके में 19 साल से चल रहे ‘आचार्य श्रीराम हाई स्कूल’ में धार्मिक सहिष्णुता का एक ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है जो फसादों की कड़वी सच्चाईमें डूबी इस फिज़ा के बीच जेहन में उम्मीद की एक मासूम झलक छोड़ जाता है.
भोपाल के इस अनूठे स्कूल में आपको मुसलिम बच्चे गायत्री पाठ करते मिल सकते हैं और हिंदू बच्चे रोजा रखते. आज जहां चारों तरफ धर्म के नाम पर अलगाव के उदाहरण देखने को मिल जाते हैं वहीं गायत्री शक्ति पीठ परिसर के एक हिस्से में लगने वाले इस अनोखे स्कूल में सभी धर्मों के 256 गरीब बच्चे कक्षा एक से 10 तक की शिक्षा हासिल करते हैं. इस स्कूल की प्रिंसिपल दुर्गावती गर्ग के मुताबिक उनके स्कूल का मुख्य उद्देश्य गरीब एवं वंचित बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करना और उनमें धार्मिक सहिष्णुता विकसित करना है. वे कहती हैं, ‘कई बार नवरात्रि और रमजान जैसे त्योहार एक साथ पड़ जाते हैं. ऐसे में हमारे बच्चे सभी धर्मो के त्योहार एक साथ मनाते हैं. मुसलमान बच्चे रोजा रखते हैं और यहीं स्कूल के परिसर में ही नमाज पढ़ते हैं. हिंदू बच्चे व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं. कई हिंदू बच्चों ने भी रोजा रखना शुरू कर दिया है. साथ ही , कुछ मुसलमान बच्चे हिन्दुओं के साथ पूजा करने लगे हैं. हमारा मानना है कि इस तरह से बच्चों की एक दूसरे के धर्म और मान्यताओं के बारे में समझ बढ़ती है और वे ज्यादा सहिष्णु बनते हैं.’भोपाल के इस अनूठे स्कूल में आपको मुसलिम बच्चे गायत्री पाठ करते मिल सकते हैं और हिंदू बच्चे रोजा रखते.
उनका कहना गलत नहीं है यह हमें स्कूल के बच्चों के साथ बात करने पर महसूस हो जाता है. पांचवीं में पढ़ने वाले शैलेंद्र को अपने मुस्लिम दोस्तों के साथ रोजा रखना बहुत अच्छा लगता है. वह कहता है, ‘हम हर शाम साथ में रोजा खोलते थे और खूब मजे करते थे’. उधर, कक्षा 10 में पढ़ने वाली अमरीन को गायत्री मंत्र का पाठ करना अच्छा लगता है. अमरीन बताती है, ‘मैं अपनी बहन के साथ हमेशा गायत्री मंत्र का पाठ करती हूं. इससे मुझे सुकून मिलता है और साथ ही पढ़ाई में ध्यान लगाने में मदद मिलती है.’
आठवीं कक्षा में पढने वालीं गायत्री और प्रिया भी हर साल अपने मुसलमान सहपाठियों के साथ रोजा रखती हैं. वह कहती हैं, ‘हम गायत्री मंत्र भी पढ़ते हैं, यज्ञ भी करते हैं और रोजा भी रखते हैं. इससे हमारी एकाग्रता बढ़ती है और हम कई नई चीजें सीखते हैं’. प्रिया के मुताबिक हिन्दू -मुसलमान का ख्याल ही उनके जेहन में नहीं आया. वह कहती है, ‘हम सब साथ पढ़ते हैं और साथ ही सारे त्योहार मानते हैं. रोजा रखने में सबके साथ नमाज पढ़ने में हमें मजा आता है’.
कक्षा छह में पढने वाले मुनव्वर और ज़ेबा को भी अपने हिंदू दोस्तों के साथ यज्ञ और पूजा में भाग लेना पसंद है. जेबा कहती हैं, ‘हम यज्ञ में भी बैठते हैं और तिलक भी लगवाते हैं. इससे हमें अच्छा लगता है और संकल्प शक्ति बढ़ती है.’ स्कूल में पढ़ने वाले दूसरे कई बच्चे भी इसी तरह की बात कहते हैं. लेकिन मेल-मिलाप की यह अनूठी राह ऐसा नहीं है कि आसान रही हो. शुरुआत में कुछ बच्चों के माता पिता ने दूसरे धर्म के त्यौहार मनाने पर आपत्ति जताई थी पर स्कूल ने विशेष प्रयास करके उन्हें समझाया. दुर्गावती गर्ग बताती हैं, ‘हमने एक अभिवावक सम्मेलन आयोजित करके सभी अभिभावकों को समझाया कि गायत्री मंत्र किसी धर्म विशेष का नहीं है. यह तो मानवता की भलाई के लिए बनाया गया मंत्र है जो मन को शांत करता है. हमने यह भी समझाया कि मुसलमान बच्चे यदि यहीं मंदिर में नमाज पढ़ेंगे तो स्कूल का अनुशासन भी बना रहेगा और बच्चों में धार्मिक सहिष्णुता का विकास भी होगा. उस सम्मलेन के बाद से सभी अभिभावकों ने हमारा साथ दिया और तब से सारे बच्चे एक साथ सभी त्योहार मनाते हैं.’
आज यह स्कूल जितना चर्चा का विषय है उतनी ही प्रेरणा का भी. यहां पढ़ने वाले सभी बच्चों को किताबें, कापियां और यूनिफार्म मुफ्त उपलब्ध करायी जाती हैं. मानस पुत्र योजना के तहत हर बच्चे से 50 रु. महीना फीस ली जाती है और स्कूल का बाकी खर्च समाज के विभिन्न वर्गों से मिलने वाली दानराशि से चलता है.
स्कूल श्रीमती गर्ग कहती हैं, ‘हम किताबों से ज्यादा संस्कार पर ज़ोर देते हैं. बच्चों को अच्छा इंसान और व्यापक सोच वाला सहिष्णु भारतीय नागरिक बनाना हमारी पहली प्राथमिकता है.’ इन बच्चों के आपसी प्रेम में भारत की एक नई और उजली तसवीर दिखाई देती है. लगता है जैसे ये बच्चे अपनी मासूम किलकारियों में हमसे कह रहे हैं कि हिंदुस्तान साझी विरासत का देश है. यहां अनेक मजहब के लोग रहते हैं और हमें ऐसे ही साथ रहना है जैसे किसी बगीचे में अलग-अलग किस्म के फूल लहलहाते हैं.
प्रियंका दुबे