देखने में अलीगढ़ का राजपुर गांव आपको किसी दूसरे गांव जैसा ही लगेगा. दूर-दूर तक फैले खेत, कच्चे-पक्के रास्ते और मकान और इस सबके बीच शहर की आपाधापी से दूर मंथर चाल से चलती जिंदगी. मगर जब आप इसके बारे में जानने की कोशिश करेंगे तो पता चलेगा कि एक खासियत है जो इसे दूसरे गांवों से जुदा करती है. दरअसल राजपुर हिंदू-मुसलिम एकता की असाधारण मिसाल है. अलीगढ़ शहर से 55 किलोमीटर दूर टप्पल रोड पर बसे इस गांव में एक खानदान ऐसा है जिसमें कई लोग हिंदू हैं और कई मुसलमान. मजहब भले ही अलग हो गए हों मगर इससे खून के रिश्तों की गर्माहट कम होने की बजाय बढ़ी ही है. इतनी कि इस खानदान की एकता की मिसाल सारा इलाका देता है.
दरअसल, ये सभी लोग हिंदू राजपूत ठाकुरों के नामचीन खानदान जरतौली के राव उदय सिंह के वंशज हैं. खानदान में तकरीबन 700 से ज्यादा लोग हैं. ये सभी अपने-अपने भगवान और अल्लाह के साथ खुश हैं. धर्म को लेकर इनमें आज तक कोई मनमुटाव नहीं हुआ.
6,000 की आबादी वाला राजपुर खैर तहसील का सबसे बड़ा गांव है. कुछ लोग हिंदू और कुछ मुसलमान कैसे हो गए, इस बारे में एक दिलचस्प कहानी सुनने को मिलती है. बताते हैं कि जरतौली के राव उदय सिंह की कभी यहां 52 हजार बीघा जमीन की जमींदारी हुआ करती थी. यह मुगलों के जमाने की बात है. दिल्ली दरबार से उनके लिए दावतनामा आया तो राव साहब बादशाह के दरबार में हाजिर हुए. वहां दस्तरखान सजा तो शहंशाह की शान में उनके साथ खाना भी खाया. मगर दिल्ली से वापस आए तो इलाके में शोर मच गया कि उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया है. राव साहब किस-किस को समझाते. उसी दौरान खिली रेवाड़ी के नवाब साहब ने राव साहब की लड़की के लिए अपने लड़के का रिश्ता भेजा. रेवाड़ी के नवाब साहब भी मूल रूप से हिंदू थे इसलिये यह रिश्ता हो गया. इन्हीं हालात में इस खानदान के कुछ लोग हिंदू रह गए तो कुछ धर्म बदलकर मुसलमान हो गये.
मजहब भले ही अलग हो गए हों मगर इससे खून के रिश्तों की गर्माहट कम होने की बजाय बढ़ी ही है
हिंदू कुनबे में राव उदय सिंह की नौ संतानों में से एक कान सिंह हुए. उनके बेटे फतेह सिंह थे जिनके नाम पर पास का गांव फतेहपुर बसा. फतेह सिंह की छह संतानों में बलवंत सिंह और फूल सिंह भी थे. बलवंत सिंह के बेटे शिव सिंह की संतानें आज भी यहां हैं.
शिव सिंह के पोते श्यौदान से हमारी मुलाकात होती है. वे कहते हैं, ‘हम लोगों ने काफी प्रयास किया कि सभी भाई-बंधु एक होकर एक ही धर्म में रहें परंतु ऐसा संभव नहीं हो पाया. लेकिन इसके बावजूद हमारा पूरा खानदान एक होकर रहता है. धर्म को लेकर कोई मतभेद नहीं. सारे भाई एक दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते हैं. सारे त्यौहार एक साथ मनाते हैं. ईद पर हम हिंदू भाई मस्जिद की सफाई करते हैं, मिठाइयां बनाते हैं और दीवाली पर मुसलमान भाई मंदिर की सजावट से लेकर पकवान की व्यवस्था तक सारे काम करते हैं.’
इसी गांव में थोड़ा दूर चलने पर मसजिद में हमारी मुलाकात शान मोहम्मद से होती है. शान, श्यौदान सिंह के चचेरे भाई हैं. वे बताते हैं कि उनके वालिद जान मोहम्मद खां थे जिनके वालिद छिपेदार सिंह उर्फ शिव सिंह थे. शान मोहम्मद कहते हैं, ‘इससे पहले हम सभी मूल रूप से हिंदू थे. बलवंत सिंह और फूल सिंह हमारे पूर्वज हैं. हम सभी भाई एक-दूसरे के प्रति आदर सम्मान रखते हैं. हमारे बीच में धर्म कभी दीवार नहीं बन सका. तारीख गवाह है कि हम लोगों में कोई झगड़ा तक नहीं हुआ. सभी प्यार से रहते हैं और सभी भाई हमेशा एक दूसरे के सुख-दुख में हमेशा साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं.’
भारत में जहां सांप्रदायिकता के नाम पर कुछ चुनिंदा स्वार्थी तत्व लोगों को बांटने का प्रयास कर रहे हैं वहीं इस गांव का यह खानदान हिंदू-मुसलिम सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है. मुसलमान कुनबे से ताल्लुक रखने वाले हाशिम बताते हैं कि इस खानदान की नींव मजबूत होने की मुख्य वजह यह है कि वे कभी अपने परिवार के मामले में किसी तरह का राजनीतिक दखल नहीं होने देते. इसी खानदान के राजपाल सिंह चौहान कहते हैं कि वे अपने बच्चों को भी एकता का यह सबक देंगे. वे बताते हैं, ‘हम सब एक दूसरे के बच्चों की शादियों में हाथ बंटाते हैं. हम अपने बच्चों को भी प्रेरित करते रहते हैं जिससे वे आगे चल कर हमारी ही तरह इस खानदान में सभी के साथ मिलजुल कर रहें.’
गांव के लोगों को भी इस अनूठे खानदान पर गर्व है. गांव में रहने वाले संजय कहते हैं, ‘गंगा-जमुनी तहजीब के इस खानदान ने हमारे गांव का नाम रोशन किया है. इस युग में जहां भाई भाई का गला काट रहा है वहां ये हिंदू और मुसलमान भाई एक साथ खड़े नजर आते हैं.’ संजय यह भी बताते हैं कि उनके परिवार में जब कोई विवाद हो जाता है तो वे इस खानदान की मिसाल देते हैं.
उनका ऐसा करना वाजिब भी है.
मनीष शर्मा