बेहद खूबसूरत लेकिन कुछ-कुछ अकल्पनीय जैसा है यह. ईश्वर, अल्लाह एक है. हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई सब आपस में भाई-भाई, सबका मालिक एक… होश संभालने के बाद से ही मिलने वाली ऐसी घुट्टियों के बावजूद बचरा के बीच दिखने वाला वह नजारा आश्चर्यचकित करता है. एकबारगी विश्वास नहीं होता लेकिन सच यही है कि झारखंड में माओवादियों का गढ़ माने जाने वाले चतरा जिले के बचरा में सद्भावना, एकता के लिए इंसानी कोशिश का बेमिसाल नमूना मौजूद है. यहां लगभग 500 मीटर के दायरे में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर बने हैं.
सांप्रदायिक सौहार्द्र के इस मॉडल की बुनियाद 4-5 दशक पहले सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) के अधिकारी केके पिल्लई ने रखी. पिल्लई ने बुनियाद रखी थी, पर लोगों ने उसे एक अभियान की शक्ल दी. वही अभियान अब मजबूत परंपरा के रूप में स्थापित हो गया है.
पिपरवार की आबादी लगभग 62,000 है. इनमें 21, 000 मुसलिम, 30,000 हिंदू, 10,000 ईसाई व 1,000 सिख हैं. लेकिन इन समुदायों के बीच न तो कभी कोई मनमुटाव हुआ और न ही कोई विवाद. जिस गेट से मंदिर में प्रवेश किया जाता है उसी गेट से सिख भी गुरुद्वारे में जाते हैं. गुरुद्वारे से लगभग 100 मीटर की दूरी पर चर्च है. इससे थोड़ी ही दूर पर उलटे भाग में मस्जिद. पहले इन सब धर्मस्थलों में प्रवेश का एक ही स्थान था पर अब चर्च और मसजिद के लिए रोड की तरफ अलग से भी गेट बना दिया गया है.
लोगों में इतनी समझदारी है कि जब किसी एक की प्रार्थना का समय होता है तो दूसरा शांत रहता है
मंदिर के पुजारी सिद्धेश्वर पांडे कहते हैं, ‘हमें कभी भी किसी समुदाय के लोगों से कोई परेशानी नहीं होती. हम भाईचारे के साथ रहते हैं. जब तक मस्जिद से अजान होती है तब तक हम मंदिर बंद रखते हैं. उसके बाद ही हम लाउडस्पीकर बजाते हैं. हममें आपसी सामंजस्य है और किसी की किसी के साथ कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है.’ मौलवी मोहम्मद मुमताज के शब्दों में, ‘कभी किसी वजह से कोई परेशानी नहीं हुई. सबलोग त्योहारों में एक-दूसरे की मदद करते हैं, जिससे त्योहारों का मजा दोगुना हो जाता है. ईद, होली, दीवाली, गुरुपर्व, क्रिसमस आदि में सभी लोगों का बढ़-चढ़कर सहयोग होता है.’
अजान कराने वाले मो. शमसुद्दीन अंसारी, सीसीएल के रिटायर्ड अधिकारी रहे हैं. वे बताते हैं कि वे 30-40 वर्षों से यहां हैं पर उन्होंने कभी भी किसी का किसी के साथ मनमुटाव होते नहीं देखा. वे कहते हैं, ‘वैसे भी सुविधा के लिए हमने लाउडस्पीकर का मुंह सड़क की तरफ कर दिया है.’ चर्च के पादरी रूमानुस केरकेट्टा भी इसी बात से इत्तेफाक रखते हैं. वे कहते हैं, ‘एक जगह सब धर्मस्थल का होना गौरव की बात है. इससे परेशानी क्यों होगी. हमें तो यह बहुत ही अच्छा लगता है.’
लोगों में इतनी समझदारी है कि जब किसी एक की प्रार्थना का समय होता है तो दूसरा शांत रहता है. इसकी पुष्टि गुरुद्वारा प्रमुख कुलदीप सिंह भी करते हैं. यहां के निवासी व शिक्षक अर्पण चक्रवर्ती के अनुसार यहां के लोगों का आपसी सहयोग देश के लिए उदाहरण की तरह है. वे बताते हैं, ‘देश में कहीं से दंगा भड़कने की खबर आए तो यहां के लोगों का रुख और भी ज्यादा सहयोगात्मक हो जाता है. ‘
ये सभी धर्मस्थल एक जगह कैसे बने, इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. दरअसल, सीसीएल कर्मियों ने जब यहां काम करना शुरू किया तो सीसीएल के अधिकारियों से धर्मस्थल बनाने की मांग की. उस वक्त केके पिल्लई ने अनेकता में एकता के साथ काम करने वाले कर्मचारियों के रवैए को और भी अधिक पुख्ता और मजबूत करने की दृष्टि से एक ही चारदीवारी के अंदर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर बनाने की पेशकश की. नतीजा यह है कि आज यह स्थल अमन, भाईचारे, सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बन गया है.
अनुपमा