फिल्म खिचड़ी
निर्देशक आतिश कपाड़िया
अभिनेता राजीव मेहता, सुप्रिया पाठक, जेडी मजेठिया
भारत में यह पहली बार हुआ है कि किसी धारावाहिक पर फिल्म बनाई जाए, वह भी उन्हीं अभिनेताओं को लेकर. फिल्म सीरियल से कुछ कदम आगे ही है. हां, उसमें ऐसी कोई कहानी नहीं है कि आप बूझते रहें कि आगे क्या होगा. कहीं कहीं उसमें ठहराव वही कायम है जो धारावाहिकों में होता है लेकिन फिर भी उतना नहीं. महत्वपूर्ण यह है कि वह कहीं सीरियल की खूबियां नहीं खोती, उल्टा दो घंटे की एक कहानी में उन्हें दिखाने में कामयाब होती है. आमतौर पर टीवी पर आने वाले सिचुएशनल कॉमेडी वाले धारावाहिक मुख्य रूप से अपने किरदारों के इर्द-गिर्द घूमते हैं. वह जितना स्वाभाविक और विश्वसनीय ढंग से होता है, धारावाहिक उतना अच्छा लगता है. उनमें कहानी केन्द्र नहीं होती लेकिन केन्द्र से इतना बाहर भी नहीं होती कि वह ऊपर से थोपी हुई लगे. खिचड़ी भी ऐसा ही रहा है. उसकी जान उसके मुख्य पात्र हैं और उन्हें जीने वाले कमाल के एक्टर. फिर वे अपनी कहानी अपने आप भी रच सकते हैं. राजीव मेहता और सुप्रिया पाठक बड़े परदे के किसी भी हास्य अभिनेता से कम नहीं लगते.
यह एक ऐसा परिवार है, जिसके अधिकांश बड़े, अविश्वास करने की हद तक भोले (या बेवकूफ) हैं और बाकी बड़े उनसे कुछ कम. दो बच्चे हैं, जो समझदार हैं और फिल्म के सूत्रधार भी. खिचड़ी इस मायने में महत्वपूर्ण धारावाहिक और फिल्म है कि उसके कैरेक्टर बहुत मजबूत हैं. आप उन्हें बिल्कुल अलग अलग पहचान सकते हैं और यह जान सकते हैं कि इनमें से कौन किस बात पर कैसे रिएक्ट करेगा. फिल्म या धारावाहिक लिखने के स्तर पर यह आतिश कपाड़िया का प्रशंसनीय काम है. जैसे परिवार के मुखिया तुलसीदास थोड़े ज्यादा समझदार हैं और इसीलिए अपने परिवार की हरकतों पर नाराज रहते हैं. उनका बेटा प्रफुल्ल (जिसे वे ‘प्रफुल्ल गधा’ कहते हैं) खुद को बहुत होशियार समझता है लेकिन सबसे बेवकूफ है. वह अक्सर अपनी अंग्रेजी न जानने वाली पत्नी हंसा को अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी अर्थ समझाता है जैसे ऑर्डर का अर्थ ‘और डर’. हंसा आदर्श टीवी सीरियल बहू की तरह सज धज कर रहती है, कुछ काम नहीं करती और बार-बार कहती है कि वह थक गई है. इस तरह यह टीवी धारावाहिकों का भी मजाक है और इसी कड़ी में आतिश फिल्म को ‘डीडीएलजे’ और ‘पापी गुड़िया’ जैसी अमर प्रेम कहानियों की तरह अमर बनाते हुए बॉलीवुड की ज्यादातर प्रेम-कहानियों पर शानदार व्यंग्य करते हैं. फिल्म में हंसा के भाई हिमांशु का किरदार बढ़ाकर उसे नायक बना दिया गया है. वह जब आखिर में अपनी पंजाबी मंगेतर को पाने निकलता है तो सड़क पर लगा मील का पत्थर मास्को की दूरी भी बता रहा है क्योंकि वह बॉलीवुड के नायक की हदें जानता है. इसी तरह स्विट्जरलैंड और समुद्र के किनारों को छोड़कर सब्जी मंडी में फिल्माए गए प्यार के गाने ‘भोंसले मार्केट चल’ का जिक्र किए बिना यह समीक्षा अधूरी है.
गौरव सोलंकी