पुस्तक खुदाई में हिंसा (कविता संग्रह)
लेखक बद्री नारायण
कीमत 200 रुपए
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन
ऐसे समय में जब समकालीन हिंदी कविता से कवि की निजी काव्यात्मक पहचान तेजी से गायब हो रही है, उसी समय में बद्री की कविताएं अपने विशिष्ट तेवर और अंतर्वस्तु की वजह से अलग से ही पहचानी जा सकती हैं. ‘खुदाई में हिंसा’ बद्री का तीसरा कविता संग्रह है.
बद्री इस किताब की पहली ही कविता में लिखते हैं कि ‘मैं भूख के कलापक्ष से अभिभूत होने से बचते हुए उसके राजनीतिक पक्ष पर बात करना चाहता हूं.’ इन्हीं अर्थों में बद्री की कविताएं राजनीतिक कविताएं हैं. इस किताब की कविताओं का बुनियादी स्वर संवेदनहीन अभिजन के खिलाफ लोक के संघर्ष या तनाव को रचने का है. इन कविताओं में लोक स्वर की अनगिन अनुगूंजें हैं पर बद्री का लोक वह लोक नहींे है जो सत्ता की चाकरी करता है बल्कि बद्री का लोक वह है जो सत्ता के खिलाफ विद्रोह की योजनाएं बनाता रहता है. बद्री के कवि के पास एक वैकल्पिक सौंदर्य दृिष्ट है जो श्रम की संस्कृति से जुड़ती है, जो एक वैकल्पिक जनपक्षधर व्यवस्था के सपने से जुड़ती है इसलिए बद्री के लोकनायक सिर्फ संघर्ष ही नहीं करते निर्माण भी करते हैं.
‘सुभाषनगर’ जैसी कविता में बद्री इस बात को रखते हैं कि कैसे सारी सुंदरता, सभ्यता, कला, संगीत, संस्कृति सबको अपनी मेहनत और रचनात्मकता के दम पर पैदा करने वाला ही इस सबसे दूर कहीं हाशिए पर ढकेल दिया जाता है. उसके समूचे निर्माण पर अभिजन व्यवस्था कब्जा कर लेती है और उसे भदेस या पिछड़ा हुआ कहकर दूर फेंक देती है. पर जो लोक इस पूरी सभ्यता को खड़ा कर सकता है, उसे निखार-संवार कर इस काबिल बना सकता है कि अभिजन उस पर इतरा सकें वह उसमें अपनी वाजिब जगह छीन भी सकता है. बद्री इस लोक-ताकत को बखूबी पहचानते हैं, उस पर भरोसा करते हैं.
बद्री वहां भी ताकतवर साबित होते हैं जहां वह लोक की पीड़ा, उसकी निरीहता या उदासी को तो स्वर देते ही हैं साथ-साथ उसकी कमियों और उसके आपसी अंतर्विरोधों को भी रेखांकित करते चलते हैं जिनसे उबरे बिना उसे कोई निर्णायक कामयाबी नहीं मिलने वाली है. बद्री लोक के गुमनाम नायकों की पहचान करते हैं जिनके बारे में अभिजन जानता सब-कुछ है पर वह उन्हें उनकी असली जगह देने को तैयार नहीं है. उन्हें पहचान देने और दिलाने की इसी काव्यात्मक संघर्ष के परिणामस्वरूप ‘समुद्र-गाथा’, ‘बच्चे का गीत’, ‘मछली’, ‘सब चुप थे’, ‘आप उसे फोन करें तो’, ‘बीच आकाश में’, ‘यही हो तुम, ‘नई दुनिया में लोक’, ‘नगाड़े’, ‘मदन गोपाल सर्वहारा’ या ‘दलित बस्ती में रग्घू मेहतर’ जैसी अनेक श्रेष्ठ कविताएं रचते हैं.
बद्री नारायण का सामाजिक इतिहास के क्षेत्र में जो अन्य परंतु बहुत महत्वपूर्ण काम है वह बहुत तेजी से उनकी कविताओं मंे अपना विस्तार कर रहा है. बद्री को यह ध्यान में रखना होगा कि उनका वह काम उनकी ताकत ही बना रहे, सीमा न बने.
मनोज कुमार पाण्डेय