इन दिनों क्या लिख-पढ़ रही हैं?
दस कहानियों की एक सीरीज पर काम कर रही हूं, जिसका नाम है- बशीर की कहानियां. हर्टा म्यूलर का उपन्यास द लैंड ऑफ ग्रीन प्लम्स और मनीषा कुलश्रेष्ठ का शिगाफ अभी-अभी पढ़ा.
आपकी मनपसंद लेखन शैली क्या है?
कथ्य और भाषा का मानीखेज संतुलन मुझे बहुत आकर्षित करता है. जैसे यशपाल के झूठा सच, राही मासूम रजा के आधा गांव, शानी के काला जल, मंजूर एहतेशाम के बशारत मंजिल और भीष्म साहनी के तमस में.
रचना या लेखक, जो आपके बेहद करीब हों?
मंटो व इस्मत चुगताई. निर्मल वर्मा व उदय प्रकाश की कुछ कहानियां. संजीव की कुछ चीजें. ममता कालिया की भाषा का प्रवाह. ज्ञानरंजन पसंद हैं, कृष्णा सोबती और चित्रा मुद्गल भी.
ऐसी कोई महत्वपूर्ण रचना जो अलक्षित रह गई हो?
भुवनेश्वर की एक कहानी भेड़िए थी. हिंदी में शायद सबसे पहले उन्होंने फंतासी और यथार्थ का समन्वय रचा. हम आजकल जब जादुई यथार्थवाद की इतनी बातें करते हैं तब उनका जिक्र नहीं होता.
ऐसी कोई रचना जिसे बेमतलब की शोहरत मिली?
मैत्नेयी पुष्पा का गुड़िया भीतर गुड़िया.
हाल-फिलहाल खरीदी गई कोई किताब?
बोर्खेज का समग्र, बद्री नारायण का कविता संग्रह और ममता कालिया की दुक्खम सुक्खम.
क्या किया जा सकता है कि किताबें पढ़ने की परंपरा, जो धीरे धीरे कम होती जा रही है, बनी रहे?
हमें हिंदी की किताबों को कंप्यूटर पर उपलब्ध करवाना होगा. साथ ही मार्केटिंग पर भी ध्यान देना होगा. दिल्ली में ही ऐसा कोई एक बुक स्टोर नहीं है, जिसमें हिन्दी की सब किताबें मिल जाएं. सोचिए कि दूसरे शहरों में क्या हाल होगा? लैंडमार्क जैसे बड़े स्टोर्स में हिंदी की किताबों का भी डिस्प्ले होना चाहिए. इस बात पर लोग मुझे उपभोक्तावादी कहकर खारिज करने की कोशिश करेंगे मगर और कोई उपाय नहीं है.
गौरव सोलंकी