स्वदेशी सुपरहीरो इसलिए शुद्ध अत्याचार : रा. वन

फिल्म  रा.वन
निर्देशक अनुभव सिन्हा               
कलाकार
  शाहरुख खान, करीना कपूर, शाहना गोस्वामी, अर्जुन रामपाल 

देखिए, इसमें अनुभव सिन्हा की कोई गलती नहीं है. आपको पता है कि उन्होंने ‘कैश’ नाम की एक फिल्म बनाई है और तब भी आप उनसे ज्यादा की उम्मीद करते हैं तो इसके लिए आप खुद जिम्मेदार हैं. गलती शाहरुख खान की भी नहीं है. कुछ दिन पहले ही उन्होंने कहा है कि वे देश भर में महिलाओं के लिए पर्याप्त टॉयलेट बनवाना चाहते हैं और अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए उन्हें अपनी आत्मा भी बेचनी पड़े तो बेचेंगे. तो बात बेचने की है, जिसका एक हिस्सा यह फिल्म भी है – वीडियोगेम की फिल्म, जिसका खलनायक उससे निकलकर बाहर आ जाता है.

आपको उठापटक वाले वीडियोगेम खेलना और फिर बस उसी की फिल्म देखना पसंद हो तो रा.वन आपको पसंद आ सकती है. लेकिन तब नहीं, जब आप कोई नयापन, तर्क और आत्मा ढूंढ़ते हों. साइंस फिक्शन इसलिए साइंस फिक्शन नहीं होती कि उसमें बड़ी-सी लैबोरेटरी, तारों का जंजाल, रोबोट और जलती-बुझती लाइटें होती हैं. वह भी बाकी कहानियों की तरह एक कहानी है और उसका सारा बोझ आप बेचारे स्पेशल इफेक्ट्स पर नहीं डाल सकते. स्पेशल इफेक्ट्स और थ्रीडी पर मेहनत की गई है और फिल्म में इन सबकी इतनी भीड़ है कि कई बार आपके सिर पर ये सीन ओलों की तरह गिरते हैं. एकाध जगह वे आपको रोमांचित भी करते हैं लेकिन हॉलीवुड की इससे कहीं ज्यादा कंटेंट और तकनीकी गुणवत्ता की फिल्में आपकी गली के नुक्कड़ की दुकान पर हैं तो आप रा.वन क्यों देखेंगे?  इन मसाला फिल्मों में शाहरुख खान अक्सर एक ही तरह के हाव-भाव लाते हैं लेकिन वे फिर भी एंटरटेनर हैं. करीना सुंदर लगी हैं और वे सिर्फ वही लगना भी चाहती हैं. वे शायद ऐसे ही रोल करना चाहती हैं जिनमें वे पति या प्रेमी के जीवन का हिस्सा बनकर ही मोक्ष-प्राप्ति जैसा अनुभव करें और उनका आईक्यू इतना कम हो कि जो कहानी दर्शकों को आधा घंटा पहले समझ आ गई है, वे उस पर हैरान होती रहें.

फिल्म की शुरुआत के एक सपने के सीन में कहीं-कहीं फिल्म अपने आप पर और सुपरहीरो की अवधारणा पर हंसती है. फिल्म उसी लाइन पर चलती तो एक कामचलाऊ व्यंग्य बन सकती थी, सुपरहीरो फिल्म होते हुए भी, जैसी दबंग कहीं-कहीं होती है- मसाला फिल्म जो कहीं-कहीं मसाला फिल्मों पर हंस देती है. बाकी तो क्या है कि सड़क है, कारें हैं जिन्हें तोड़ा जाना है, ऊंची इमारतें हैं जिन पर हमारा सुपरहीरो अपने सुपरविलेन के साथ कूदता-फांदता है और कहीं-कहीं पारिवारिक आंसूड्रामा है.

रा.वन एक विज्ञान गल्प है और यह देर तक विज्ञान की बातें भी करती है लेकिन सब खोखली. इसके विचार को इसके स्पेशल इफैक्ट्स कच्चा चबा गए हैं. कहानी के स्तर पर यह बच्चों की किसी भी साधारण ऐक्शन कॉमिक से कमतर है. आपकी मानसिक आयु दस साल से अधिक हो तो रा.वन देखने तभी जाएं जब हवा में लड़ रहे शाहरुख खान को देखकर आपको कुछ-कुछ होने की संभावना हो.

– गौरव सोलंकी