‘विकास के फायदे में सबकी भागीदारी हो’

आंदोलन से कैसे जुड़े ?

70 के दशक के आखिर की बात है. तब नर्मदा घाटी में बांधों का विरोध शुरुआती दौर में ही था. मैं एक दिन बाजार से सामान लेकर साइकिल पर अपने गांव लौट रहा था. रास्ते में चाय पीने के लिए एक छोटी-सी दुकान पर रुके. वहां पर पांच-छह जने और थे. उनके साथ एक लड़की भी थी. बातों के दौरान अचानक ही उस लड़की ने मुझसे पूछा कि आप कौन-से गांव के हैं. मैंने अपने गांव का नाम बताया. उसने पूछा कि यह तो डूब क्षेत्र में आ रहा है, आपके घर, खेत, खलिहान डूब रहे हैं. क्या आपको पता है कि इसके बदले में आपको क्या मिल रहा है. मैं क्या बताता. कुछ पता ही नहीं था. उस लड़की ने पूछा कि सरकार को पूछो तो सही. यही वह दिन था जब मैं नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ा और उस लड़की को आज आप लोग मेधा पाटकर के नाम से जानते हैं.

आंदोलन से क्या बदलाव हुआ?
बदलाव तो हुआ. जो लोग आंदोलन के जरिए डटे रहे, उनकी बात कुछ हद तक सुनी भी गई. उनके लिए मुआवजा बढ़ाया भी गया. सरकार बांध की ऊंचाई न बढ़ाने पर सहमत भी हुई. लेकिन जिन्होंने कुछ नहीं किया उनके साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ.

आपका विरोध किस बात को लेकर है?
हम विकास के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन जिस तरीके से यह विकास किया जा रहा है हम उसका विरोध करते हैं. बिजली पैदा करने के लिए हमारे घर और खेत-खलिहान डुबाए जा रहे हैं, लेकिन हमें ही बिजली नहीं मिल रही. जो इस विकास के लिए सबसे बड़ा बलिदान दे रहा है, उसी की सबसे ज्यादा उपेक्षा भी हो रही है. ऐसा नहीं चलेगा.