दरबार के दागी रतन

जिस हल्ले के साथ अखिलेश की सत्ता में वापसी हुई थी, वह मंद पड़ रहा है. जिस नई राजनीति की चर्चा थी, उस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. ऐसा व्यक्ति जो चौतरफा आरोपितों, दागियों और भ्रष्टों से घिरा है, क्या वह ईमानदार फैसले ले सकता है? आखिर क्या मजबूरी रही अखिलेश यादव की जो उन्होंने चुन-चुन कर ऐसे अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया जिनके ऊपर तरह-तरह के आरोप हैं. जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट.

 


 

अनिता सिंह

पद: सचिव, मुख्यमंत्री 

मामला: गोमतीनगर भूमि घोटाला

मौजूदा स्थितिः सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन

अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही 15 मार्च की दोपहर आईएएस अधिकारी अनीता सिंह को मुख्यमंत्री के सचिव पद का तोहफा दिया. 2005 में सपा सरकार के कुछ करीबी नेताओं व अधिकारियों को नियम-कानूनों को दरकिनार कर गोमतीनगर जैसे पॉश इलाके में प्लाट आवंटित करने का आरोप सिंह पर है. खुद उनके नाम भी एक प्लॉट आवंटित हुआ था. मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के बावजूद अखिलेश यादव ने उन्हें इतना महत्वपूर्ण ओहदा दिया. दबी जुबान से यह भी कहा जा रहा है कि अनीता सिंह को मुलायम सिंह के पिछले कार्यकाल में सपाइयों के प्रति दिखाई गई हमदर्दी का इनाम दिया गया है.

 

 

 

राजीव कुमार, प्रमुख सचिव

राजीव कुमार

पद: प्रमुख सचिव 

मामला: नोएडा प्लॉट आवंटन घोटाला

मौजूदा स्थितिः सीबीआई चार्जशीट दाखिल हो चुकी है

राजीव कुमार सचिवालय के सबसे महत्वपूर्ण ओहदे पर हैं. इनके ऊपर नोएडा के प्लाट आवंटन घोटाले में सीबीआई की चार्जशीट है. मुलायम सिंह के पिछले कार्यकाल में मुख्य सचिव रही नीरा यादव के साथ राजीव कुमार पर नोएडा भूमि आवंटन घोटाले के छींटे पड़े थे. सीबीआई ने उन्हें आरोपित बनाया था. मामला अभी गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट में चल रहा है. मई, 2012 में सीबीआई कोर्ट ने बयान दर्ज करवाने के लिए राजीव कुमार को तलब किया था. 

 

 

पंधारी यादव

पद : विशेष सचिव, मुख्यमंत्री 

मामला : सोनभद्र में तैनाती के दौरान मनरेगा में करोड़ों रुपये का गबन हुआ  

मौजूदा स्थितिः मामला रफा-दफा कर दिया गया है

मुख्यमंत्री सचिवालय में तैनात आईएएस पंधारी यादव आज जितना सपा के करीब हैं मार्च, 2012 से पहले तक उतना ही बसपा सरकार के भी करीब थे. दो साल से अधिक समय तक यादव सोनभद्र जिले के डीएम रहे और उनके कार्यकाल में करोड़ों के घपले मनरेगा में होते रहे. केंद्र व राज्य सरकार की जांच टीमों ने दौरा करके इस घोटाले को उजागर किया. बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने सीबीआई जांच को टालने के लिए निचले स्तर के कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया और यादव को डीएम के पद से हटा कर यमुना एक्सप्रेसवे अथारिटी में भेज दिया.

 

 

 

राकेश बहादुर

पद: चेयरमैन, नोएडा अथॉरिटी 

मामला: नोएडा में पांच सितारा होटलों के प्लॉट आवंटन में घोटाला. प्रवर्तन निदेशालय में मनी लॉन्डरिंग मामला

मौजूदा स्थितिः प्रवर्तन निदेशालय को उनके जवाब का इंतजार है

नोएडा अथारिटी के चेयरमैन राकेश बहादुर पिछली सपा सरकार में भी इसी पद पर तैनात थे. 2006 में नोएडा में थ्री, फोर व फाइव स्टार होटलों के लिए प्लॉट आवंटन हुए थे. इसमें कथित घोटाले को देखते हुए बसपा सरकार ने 2007 में इन आवंटनों को रद्द कर दिया था. साल 2009 में राकेश बहादुर को मायावती ने निलंबित भी कर दिया था. 2010 में प्रवर्तन निदेशालय ने इनके खिलाफ मनी लॉन्डरिंग का केस दर्ज करके नोटिस जारी किया है.

 

 

संजीव सरन

पद: सीईओ, नोएडा

मामला: नोएडा प्लॉट आवंटन घोटाला

मौजूदा स्थितिः मामला आर्थिक अपराध शाखा के हवाले कर दिया गया

संजीव सरन मुलायम सिंह की सरकार में नोएडा के सीईओ थे और अखिलेश सरकार में फिर से उसी पद पर भेजे गए हैं. 2006 में नोएडा में हुए 4,000 करोड़ से भी अधिक के कथित भूमि घोटाले में पूर्ववर्ती बीएसपी सरकार के कार्यकाल में इन्हें निलंबित कर दिया गया था. नोएडा के सेक्टर 20 थाने में इनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हुई थी. बाद में यह मामला आर्थिक अपराध शाखा की मेरठ ब्रांच को सौंप दिया गया. विडंबना है कि जिस पद पर रहते हुए सरन भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे और फिलहाल जांच का सामना कर रहे हैं उसी पद पर सपा सरकार ने उन्हें फिर से विराजमान कर दिया है. 

 

सदाकांत

पद: आयुक्त, समाज कल्याण विभाग 

मामला: प्रतिनियुक्ति के दौरान लेह लद्दाख में 200 करोड़ रु.का सड़क घोटाला

मौजूदा स्थितिः सीबीआई जांच जारी है.

सदाकांत इस समय  समाज कल्याण विभाग के आयुक्त हैं. वे दो साल पहले केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गृह मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत थे. उस समय लेह-लद्दाख में 200 करोड़ रुपये का सड़क घोटाला हुआ. सीबीआई ने 2010 में केस दर्ज करते हुए सदाकांत को भी आरोपित बनाया. उनके दिल्ली स्थित घर की तलाशी भी हुई थी. इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार ने घोटाले का सूत्रधार मानते हुए सदाकांत की प्रतिनियुक्ति बीच में रद्द करके उन्हें बीच में ही उनके मूल काडर उत्तर प्रदेश वापस भेज दिया. 

 

 

 

 

महेश गुप्ता

पद: आबकारी आयुक्त  

मामला: 1998 में कर्मचारी भर्ती घोटाला

मौजूदा स्थितिः सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया है

आबकारी जैसे महत्वपूर्ण विभाग में आयुक्त का पद संभाल रहे महेश गुप्ता का दामन भी सीबीआई जांच से दागदार है. 1998 में सूचना विभाग में कर्मचारियों की हुई भर्ती में घोटाले की जांच सरकार ने सीबीआई से करवाई. भर्ती घोटाले के समय गुप्ता सूचना विभाग में निदेशक थे. सीबीआई ने 2008 में महेश गुप्ता सहित कई अन्य अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी.