डकैती…

  

8 अगस्त, 2012 को चित्रकूट की एक अदालत से लौटते हुए 13 खूंखार डकैत उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत से फरार हो गए. अभी राज्य सरकार का पुलिसिया महकमा इस घटना से इलाके में बढ़ने वाले डकैतों के आतंक का आकलन भी नहीं कर पाया था कि 9 अगस्त, 2012 को चित्रकूट के एक गांव में सुदेश पटेल उर्फ बालखड़िया के गैंग ने पांच लोगों की निर्मम हत्या कर दी. मारकुंडी पुलिस थाना क्षेत्र में हुई इस घटना में जिन लोगों की हत्या हुई उनमें दो महिलाएं सहित एक आठ वर्षीया बच्ची भी शामिल थी.

फरार कैदियों में ठोकिया का बहनोई और 75 हजार का इनामी डकैत चुन्नी लाल पटेल प्रमुख है. साथ ही शिवमूरत कोल, रम्मो कोल, सिनेश नाई, हरी कोल और काली कोल जैसे ददुआ गैंग के पुराने सदस्य भी शामिल हैं. पिछले पांच साल में अंबिका प्रसाद पटेल उर्फ ठोकिया और सुंदर पटेल उर्फ रागिया जैसे दुर्दांत डकैतों के एनकाउंटर के बाद से माना जाने लगा था कि बुंदेलखंड क्षेत्र की डकैती समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है. चूंकि फरार हुए सभी डकैत और तराई में सक्रिय बालखड़िया गैंग की जड़ें ददुआ की पुरानी गैंग से जुड़ती हैं,  इसलिए जानकारों का कहना है कि कैद से फरार डकैतों का समूह अब बालखड़िया गैंग के साथ मिलकर तराई में बड़ी वारदातों को अंजाम देने की योजना बना रहा है.

बांदा रेंज के पुलिस उप-महानिरीक्षक  पीके श्रीवास्तव तहलका से बातचीत में यह स्वीकार करते हैं कि बांदा जेल से फरार हुए कैदी और बालखड़िया गैंग के सदस्य चित्रकूट के जंगलों में एक नया गैंग बना सकते हैं. इससे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे दस्यु-प्रभावित क्षेत्र के लगभग 80 गांवों पर डकैती की बड़ी वारदातों का खतरा बढ़ गया है. वे विवरण देते हुए कहते हैं, ‘हमारे सूत्र बता रहे हैं कि उन लोगों ने जंगल में मिलकर एक नई गैंग बना ली है, पर अभी उसकी आधिकारिक पुष्टि होना बाकी है. अभी हम डकैतों की गतिविधियों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं और हमने बालखड़िया गैंग के तीन सदस्यों को गिरफ्तार भी कर लिया है. पर फिलहाल मैं अपनी फोर्स को ठीक करने पर ध्यान दे रहा हूं. हमारी टीम में ऐसे लोग हैं जो डकैतों को हमारी सूचनाएं पहुंचा रहे हैं. इसलिए हम बार-बार उन्हें पकड़ने से चूक जाते हैं. सबसे पहले मैं इन लोगों को ढूंढ़ कर अपनी रेंज से बाहर करना चाहता हूं.’

एक फरार डकैत की गिरफ्तारी के बाद हुई पुलिस पूछताछ में पता चला कि बांदा में डकैतों के पुलिस हिरासत से फरार होने की पूरी योजना में खुद पुलिसवाले ही शामिल थे.

बांदा जेल से 13 डकैतों के फरार होते ही घटना को समाजवादी पार्टी (सपा) की नई सरकार और लचर कानून-व्यवस्था के प्रभाव के तौर पर भी देखा जाने लगा. सपा पर डकैतों को संरक्षण देकर उनका राजनीतिक इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं. दुर्दांत डकैत ददुआ के बेटे वीर सिंह आज चित्रकूट जिले से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल मिजपुर से सपा के सांसद हैं और उनके बेटे रामसिंह प्रतापगड़ से सपा के विधायक. उत्तर प्रदेश पुलिस की दस्यु-विरोधी सेल से जुड़े एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताते हैं कि राज्य में सरकार के बदलते ही डकैतों का मनोबल बढ़ गया है. वे आगे जोड़ते हैं, ‘नई सरकार आने के बाद से हमारे लिए चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं. जंगल में घूम रहे डकैतों के बढ़ते आतंक के साथ-साथ पुलिसिया अमले में भी अपराध और डकैतों से सहानुभूति रखने वाला वर्ग सामने आ रहा है.’  

तमाम अटकलों के बीच फरार कैदियों में से एक का सुराग मिलते ही इस घटना में उत्तर प्रदेश पुलिस की भूमिका साफ होने लगी. 16 अगस्त को बांदा पुलिस ने काली कोल नामक एक फरार डकैत को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के दौरान पता चला कि डकैतों को भगाने की इस पूरी योजना में उत्तर प्रदेश पुलिस बराबर की भागीदार थी. इसलिए स्थानीय पुलिस ने भागने की इस योजना में उसका शुरू से साथ दिया. यहां तक कि जिन चार डकैतों की पेशी घटना वाले दिन नहीं थी उन्हें फरार करवाने के लिए पुलिस ने उनके फर्जी कागजात भी बनवाए. श्रीवास्तव बताते हैं, ‘यह पुलिस के लिए बहुत ही शर्म की बात है. यह पूरी घटना हमारे सिपाहियों की मूक सहमति से हुई. पुलिस वैन की खिडकियों के शीशे तोड़ने और जालियों को काटने का नाटक भी सिर्फ हमें गुमराह करने के लिए किया गया था और डकैतों को फरार करने की योजना एक महीने पहले ही बंद जेल में बनाई जा चुकी थी. मैंने सभी आरोपी पुलिस अफसरों को निलंबित करके उन्हें जेल भेज दिया है. अब उन पर भी दस्यु अधिनियम के तहत धाराएं लगाई जाएंगी.’