आंकड़ों से आत्मविश्वास!

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पिछले दिनों सोशल नेटवर्किंग साइटों पर राजनीतिक चुटकलों की श्रंखला में एक और चुटकुला आया. इसका लब्बोलुआब यह था कि भाजपा में चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगनेवालों के बीच मारामारी मची है. आम आदमी पार्टी (आप) की टिकट उम्मीदवार वापस कर रहे हैं. और कांग्रेस में तो जैसे टिकटों की सेल लगी है लेकिन कोई लेनेवाला नहीं. यह चुटकुला कुछ सच्ची घटनाओं से उपजा था, लेकिन छत्तीसगढ़ को छोड़ दें तो देश में बाकी आम जनता की नजर से यह बिल्कुल सटीक था. छत्तीसगढ़ की बात इसलिए कि यहां भाजपा और आप के लिए टिकट चाहने वालों की संख्या में कमी नहीं थी तो कांग्रेस के लिए भी यही हाल था. सबसे हैरानी की बात है कि इस समय जब तकरीबन सभी हिंदीभाषी राज्यों में कांग्रेस का मनोबल टूटा हुआ लग रहा है वहीं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस इतनी उत्साहित है कि वह अभी से राज्य की आधे से ज्यादा सीटें अपनी झोली में मानकर चल रही है.

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि राज्य की कम से कम छह सीटों पर उसकी जीत पक्की है. पार्टी के पास इस दावे के पीछे अपने तर्क भी हैं. कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि उसकी स्थिति उन सीटों पर मजबूत है जहां विधानसभा चुनाव में उसके भाजपा से ज्यादा विधायक चुन कर आए हैं या फिर पार्टी के कुल मत प्रतिशत में इजाफा हुआ है. इन सीटों में बस्तर, कांकेर, सरगुजा, कोरबा और बिलासपुर शामिल हैं. पार्टी महासमुंद सीट पर भी जीत तय मान रही है. इसका एक मात्र कारण यहां से पार्टी के उम्मीदवार अजीत जोगी का कुशल चुनाव प्रबंधन है. अब यह कांग्रेस का मुगालता है या सचमुच ही पार्टी इन छह सीटों पर जीत रही है, यह समझने के लिए इन छह सीटों का मिजाज समझना जरूरी है.

प्रदेश में सबसे पहले बस्तर लोकसभा सीट पर मतदान होना है. कांग्रेस इस सीट को लेकर अत्यधिक उत्साहित है. दरअसल 2013 के अंत में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में बस्तर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति डावांडोल हो गई है. बस्तर लोकसभा सीट के तहत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से पांच सीटों – कोंडागांव, बस्तर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा और कोंटा में कांग्रेस का कब्जा है. जबकि केवल तीन सीटें, नारायणपुर, जगदलपुर और बीजापुर में भाजपा जीत पाई है. इतना ही नहीं बस्तर लोकसभा के तहत आने वाली आठों विधानसभा सीटों के कुल वोट जोड़ें तो कांग्रेस को करीब नौ हजार मतों की बढ़त भी मिली है. यही दो बातें कांग्रेस का उत्साह बढ़ा रही हैं. लेकिन जरूरत से ज्यादा उत्साहित कांग्रेस इस तथ्य की अनदेखी कर रही है कि बस्तर सीट पर उसे केवल भाजपा से ही नहीं, बल्कि ‘आप’ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) से भी चुनौती मिल रही है. ‘आप’ ने इस सीट से सोनी सोरी को मैदान में उतारा है. वहीं सीपीआई की विमला सोरी भी मैदान में हैं. विमला रिश्ते में सोनी सोरी की बहन लगती हैं. ये दोनों उम्मीदवार भाजपा के किले में कम, कांग्रेस के गढ़ में ज्यादा सेंध लगाएंगे. कांग्रेस ने यहां से झीरम घाटी नक्सल हमले में मारे गए महेंद्र कर्मा के बेटे दीपक कर्मा पर भरोसा जताया है.

दूसरे चरण यानि 17 अप्रैल को महासमुंद और कांकेर लोकसभा सीट पर मतदान होना है. इन दोनों सीटों को लेकर भी कांग्रेस में गजब का आत्मविश्वास है. महासमुंद में पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के बगावती तेवर में आने के बाद भी कांग्रेस यहां से निश्चिंत है. इस सीट से पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को उम्मीदवार बनाया है. लेकिन 2009 में इसी सीट से कांग्रेस की टिकट में चुनाव लड़कर हार चुके मोतीलाल साहू ने नाराज होकर पार्टी छोड़ दी है. साहू कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष भी थे. वहीं दिवंगत नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल की बेटी प्रतिभा पांडे भी महासमुंद से टिकट की दावेदारी कर रही थीं. उनके समर्थक भी पूरी तरह पार्टी के साथ नहीं िदख रहे हैं.

कांकेर लोकसभा सीट की बात करें तो 2009 में यहां से भाजपा उम्मीदवार सोहन पोटाई चुनाव जीते थे. नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को मदद करने के आरोपों का सामना कर रहे पोटाई को बैकफुट पर करते हुए भाजपा ने यहां से विक्रम उसेंडी को टिकट दिया है. उसेंडी पूर्व वन मंत्री तो हैं ही साथ ही अंतागढ़ सीट से विधायक भी हैं. कांग्रेस ने यहां से जोगी समर्थक फूलोदेवी नेताम को टिकट दिया है. कांकेर सीट को लेकर कांग्रेस की निश्चिंतता का कारण हाल के विधानसभा चुनाव में उसे मिला जनसमर्थन है. इस लोकसभा सीट के तहत आने वाली 8 में से 6 विधानसभा सीटों को जीतकर कांग्रेस ने भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश की है. कांग्रेस को कांकेर लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में उसे 87 हजार वोट की बढ़त भी मिली है. यही कारण है कि उसे ये सीट आसान नजर आ रही है.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं, ‘ हम सभी सीटों पर जीतने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस की जीत साफ दिखाई दे रही है. विधानसभा के जनादेश में जिन सीटों पर जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताया था, लोकसभा चुनाव में उसका फायदा तो मिलेगा ही.’

2009 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 11 सीटों में से केवल कोरबा (सामान्य सीट) ही कांग्रेस के खाते में गई थी. पार्टी ने इस सीट से एक बार फिर वर्तमान सांसद चरणदास महंत को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस इस सीट को लेकर आश्वस्त दिख रही है. वैसे 2013 के विधानसभा चुनाव में कोरबा लोकसभा के तहत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से कांग्रेस-भाजपा दोनों को चार-चार सीटें मिली थीं लेकिन कांग्रेस कोरबा लोकसभा क्षेत्र में करीब 86 हजार वोट की बढ़त हासिल करने में कामयाब रही. इसके साथ ही पाली-तानीखार नाम की एक विधानसभा सीट पर भाजपा तीसरे नंबर पर चली गई थी. यहां से जीत का सेहरा कांग्रेस के रामदयाल उइके के सिर बंधा था. वहीं दूसरे नंबर पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने आमद दर्ज करवाई थी. इन समीकरणों को देखते हुए कांग्रेस के नेता कोरबा को भले ही पूरी तरह सुरक्षित सीट ना मान रहे हों लेकिन उन्हें लगता है कि इस सीट पर कम मशक्कत में ही फतह हासिल की जा सकती है. हालांकि कांग्रेस के अंदरखाने बात ये भी है कि बगैर अजीत जोगी की मदद के महंत के लिए कोरबा सीट निकालना मुश्किल है. दरअसल कोरबा में मरवाही और पाली तालाखार विधानसभा सीट पर जोगी गुट का कब्जा है. मरवाही से जोगी के पुत्र अमित जोगी और पाली तानाखार से कट्टर जोगी समर्थक रामदयाल उइके विधायक हैं. इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस जबर्दस्त तरीके से बढ़त हासिल की थी. यही कारण है कि महंत इन दिनों जोगी के बंगले के चक्कर काटते देखे जा सकते हैं.  हाल ही में महंत से जब इन मुलाकातों के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, ‘ जोगी मेरे बड़े भाई हैं. इसलिए मैं उनसे मिलते रहता हूं. इन मुलाकातों में केवल पारिवारिक बातें हुई हैं, राजनीतिक बातें नहीं.’

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित लोकसभा सीट सरगुजा भी कांग्रेस को जीती हुई ही प्रतीत हो रही है. सरगुजा की आठ विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने सात सीटों पर फतह हासिल की है. भाजपा केवल प्रतापपुर सीट ही जीत पाई. यहां से रामसेवक पैकरा विधायक चुनकर आए. वे इस समय प्रदेश के गृहमंत्री हैं. सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में प्रतापपुर को छोड़कर बाकी  सातों विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का परचम लहराया. यदि सरगुजा लोकसभा में आने वाली सभी आठ विधानसभा इलाकों के मतों को जोड़ दें तो यहां कांग्रेस को पांच लाख पचहत्तर हजार से ज्यादा वोट मिले हैं. जबकि भाजपा को चार लाख अड़सठ हजार वोट मिले. इस तरह आठ विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को करीब एक लाख वोट से अधिक की बढ़त मिली है. पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सबसे अच्छा प्रदर्शन सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में ही रहा है. कांग्रेस ने यहां से पूर्व विधायक रामदेव राम को अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि पिछली बार निर्वाचित मुरारी लाल सिंह के निधन के कारण भाजपा ने नए उम्मीदवार के रूप में कमलभान सिंह को उतारा है.  सरगुजा इलाके में गोंड़ समाज के आदिवासियों की आबादी अधिक है. लेकिन इसे कांग्रेस का अति आत्मविश्वास ही कहेंगे कि कांग्रेस ने गोंड बहुल इस सीट पर उरांव समुदाय के रामदेव राम को मैदान में उतारा. छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का कहना है, ‘सरगुजा सीट पर कांग्रेस आलाकमान की भी निगाह है. आखिर हमने यहां की आठ विधानसभा सीटों में से सात पर फतह हासिल की है.’

सामान्य सीट बिलासपुर को लेकर भी कांग्रेस को काफी उम्मीद है. पार्टी ने यहां से करुणा शुक्ला को मैदान में उतारा है. करुणा पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की भतीजी हैं. वे 32 साल भाजपा में रहने के बाद हाल ही में पार्टी में शामिल हुई हैं. ब्राह्मण और साहू बहुल सीट बिलासपुर में ब्राह्मण उम्मीदवार उतारकर कांग्रेस को लग रहा है कि वह मैदान मार लेगी. हालांकि इसका दूसरा कारण ये भी है कि विधानसभा चुनाव में यहां से दिलचस्प तस्वीर उभरकर सामने आई है. भले ही बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से पांच भाजपा के खाते में गई और कांग्रेस को तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा. लेकिन आठ विधानसभा क्षेत्रों में मिले कुल वोट का हिसाब देखें तो कांग्रेस को करीब नौ हजार से अधिक वोट की बढ़त मिली है. 2009 में बिलासपुर सीट से भाजपा के दिलीप सिंह जूदेव जीते थे. कार्यकाल पूरा करने के पहले उनके निधन के बाद भाजपा ने इस सीट से नए चेहरे लखन साहू पर दांव खेला है. अब नई पार्टी में आई करुणा शुक्ला कांग्रेस को कितना फायदा दिला पाती हैं ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन इतना जरूर है कि बिलासपुर में जब कांग्रेस ने लोकसभा टिकट के लिए उनकी उम्मीदवारी पर गंभीर चर्चा शुरू की थी तब ही कुछ बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी. इस नुकसान की भरपायी पार्टी कैसे करेगी इसका जवाब उसके पास नहीं है.

बहरहाल 2009 में केवल एक सीट जीतने वाली कांग्रेस इस बार आंकड़ों के गणित पर भरोसा करते हुए राज्य की आधी से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रही है. लेकिन आम लोगों से लेकर खास लोग तक जानते हैं कि राजनीति ‘कला’ का विषय है न कि गणित का.