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‍खतरे में निजता

‘तहलका’ के इस अंक की आवरण कथा साइबर स्पेस में संकट में पड़ी निजता को लेकर है। इ‍ाराइली समूह के स्पाइवेयर पेगासस के ज़रिये भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की जासूसी एक गम्भीर मामला है। संयोग कहिए या कुछ और, लगभग इसी दौरान तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयन्त्र पर संक्रमित उपकरण के माध्यम से मॉलवेयर के ‍ारिये हमले का भी ‍खुलासा हुआ। इससे यह साबित होता है कि निजी डाटा चुराने के लिए पेशेवर हैकर्स कोई बड़ा नुकसान करने की ‍िफरा‍क में हैं।

पेगासस एक इ‍ाराइली स्पाइवेयर है, जो आपके मोबाइल पर एक मिस्ड कॉल से इंस्टॉल होकर फोन के ऑपरेॄटग सिस्टम में पहुुँच जाता है और सारी गोपनीय जानकारी व सुरक्षा ‍खतरे में डाल देता है। व्हाट्सएप जो पहले से ही फेक न्यूज फैलाने को लेकर बदनाम है, इस मामले में भी दोषी है। तथ्य यह है कि पेगासस ने देश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अन्य लोगों की जासूसी किसी के कहने पर ही करायी।

सरकार और उनकी एजेंसियों पर आरोप लगता रहा है कि वह पेगासस का जासूसी के लिए इस्तेमाल करती हैं, इसलिए अब यह मामला और गम्भीर बन जाता है। फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप के इस जासूसी के ‍खुलासे के बाद सरकार का कहना है कि वह कम्पनी पर मु‍कदमा कर रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। जनता के मन में उठ रहे कई सवालों और संदेह को दूर करने की ‍िजम्मेदारी भी सरकार की है। इसलिए सरकार को सार्वजनिक रूप से यह बताना चाहिए कि भारतीय नागरिकों की जासूसी किसके निर्देश पर की गयी?

सरकार ने सि‍र्फ व्हाट्एस पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है; लेकिन यह समझने की ज़रूरत है कि पेगासस के लिए मह‍ज व्हाट्सएप ही औज़ार नहीं है। एनएसओ उपयोगकर्ताओं के पास कई तकनीक हैं, जिनके ‍ारिये वे गूगल प्ले स्टोर के कई एप के माध्यम से यूजर की निजी जानकारी हासिल करने के साथ-साथ उस पर निगरानी रख सकते हैं। एनएसओ जैसी कम्पनियाँ आसानी से यूजर के नेटवर्क के माध्यम से भी निजी जानकारियाँ हासिल कर सकती हैं। पेगासस एक अत्याधुनिक स्पाइवेयर है और अपनी सेवाओं व उत्पादों के लिए बड़ी राशि शुल्क के रूप में लेता है।

सरकार को इसकी गहन जाँच कराने की ‍ारूरत है कि भारत में एनएसओ को कौन काम का ‍िजम्मा दे सकता है? जिसकी दिलचस्पी चुनिंदा कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों की जासूसी कराने में हो। यहाँ ‍गौर करने वाली बात यह है कि एनएसओ ‍खुद दावा कर चुका है कि वह सॉफ्टवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि लोगों के मन में गम्भीर सवाल उठेंगे ही।

सरकार को यह भी बताना चाहिए कि निजता के अधिकार की रक्षा के लिए क्या ‍कदम उठाने जा रही है। विडम्बना है कि इ‍ाराइली कम्पनी एनएसओ वेबसाइट पर कहती है- ‘एनएसओ उत्पादों का उपयोग केवल सरकारी ‍खुफिया एजेंसियों और ‍कानूनी एजेंसियों के लिए ही किया जाता है।’ इससे इस जासूसी मामले में सरकार की भूमिका संदिग्ध न‍जर आ रही है। देश में निजता के ‍खतरे को देखते हुए हमें डाटा संरक्षण से जुड़े स‍ख्त ‍कानून की ज़रूरत है।

फडणवीस का भी इस्तीफा

शनिवार तड़के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस ने मंगलवार शाम एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि अजित पवार के सरकार में शामिल होने से असमर्थता जताने के बाद हमारे पास बहुमत नहीं है। हम खरीद फरोख्त में भरोसा नहीं रखते। ”कुछ देर में मैं राज्यपाल से मिलकर इस्तीफा देने जा रहा हूँ।”
उन्होंने कहा कि नई सरकार ‘तीन दिशाओं में चलने वाली सरकार” होगी और इससे महाराष्ट्र का नुक्सान होगा। फडणवीस ने कहा कि जनता ने भाजपा-शिव सेना महायुति को समर्थन दिया था हमारा स्ट्राइक रेट ज्यादा था। वो जनादेश गठबंधन को था। लेकिन हमने एक सरकार बनाने का प्रयास किया लेकिन शिव सेना ने देखा कि वो बार्गेनिंग कर सकती है। हमारा ढाई-ढाई साल के सीएम का कोइ समझौता नहीं हुआ था। उन्होंने हमें धमकी दी कि सीएम बनाओ नहीं तो हम किसी के भी साथ जा सकते हैं।
कहा कि शिव सेना वाले दूसरों से बात कर रहे थे। हम सबसे बड़े दल थे तो राज्यपाल ने हमें बुलाया। हमने नंबर नहीं होने के कारण मना कर दिया। फिर शिव सेना को बुलाया उन्होंने भी सरकार नहीं बना पाए। तीन अलग-अलग विचारधारा की पार्टियां एक छत के नीचे आ गईं ताकि भाजपा को सत्ता से बाहर रखा जा सके। वे कोइ निर्णय  फिर भी नहीं ले पाए।
कहा कि हमने देखा कि कब तक राष्ट्रपति शासन रहेगा। हमें एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार से समर्थन का पत्र मिला आमने राज्यपाल को दिया और सरकार बनाने का दावा किया। उसके बाद कुछ घटनायें हुईं। अजित पवार ने आज कहा वे सरकार में शामिल नहीं हो सकते। हमारे पास अब बहुमत नहीं है। मैं राज्यपाल के पास जा रहा हूँ ताकि इस्तीफा दे सकूँ। नई सरकार जो बने उसको हमारी शुभकामनायें।
इससे दो घंटे पहले बड़े घटनाक्रम में भाजपा को बड़ा झटका देते हुए तीन दिन पहले उप मुख्यमनत्री पद की शपथ लेने वाले एनसीपी के बागी अजित पवार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। यह शिव सेना-कांग्रेस-एनसीपी खेमे की बड़ी जीत थी। अब संभवता कल होने वाला फ्लोर टेस्ट नहीं होगा। देखना होगा कि राज्यपाल अब क्या फैसला लेते हैं। चर्चा है की वे शिव सेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाएँगे। यदि कुछ उलटफेर हुआ तो वे राष्ट्रपति शासन या विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं हालांकि इससे देश भर में बबाल मच जाएगा। पहले ही सुप्रीम कोर्ट में मामला गया थाआज सुबह सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद शरद पवार, सुप्रिय सुले और अन्य वरिष्ठ एनसीपी नेता अजित पवार से मिले थे। सूत्रों के मुताबिक इसमें शरद पवार ने अजित पवार से साफ़ कह दिया था कि वे अकेले पड़ चुके हैं और और इस्तीफे के अलावा उनके पास कोइ चारा नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक शरद पवार ने कहा कि अजित पवार इस्तीफा दे देते हैं तो वे उन्हें माफ़ कर देंगे। इसके एक घंटे बाद ही अजित पवार के इस्तीफे की खबर आ गयी।  इससे पहले राजनीतिक हलकों में बहुत उच्च स्तर पर यह चर्चा भी रही कि यह सारा तमाशा भाजपा को ‘एक्सपोस” करने के लिए गड़ा गया था। हालाँकि ऐसा पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।
अजित पवार के बड़े समर्थक धनंजय मूंदे पहले ही शरद पवार से आ मिले थे। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह ही महाराष्ट्र में सरकार के मसले पर शिव सेना-कांग्रेस-एनसीपी की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस एनवी रमना, अशोक भूषण और संजीव खन्ना की बेंच ने आदेश दिया था कि २७ नवंबर को शाम ५ बजे से पहले फ्लोर टेस्ट किया जाये। प्रो-टीम स्पीकर विधायकों की शपथ करवाएं और फिर फ्लोर टेस्ट हो जिसका लाइव टेलेकास्ट हो। सीक्रेट बैलट नहीं होगा। पूरी कार्यवाही की वीडियो रेकार्डिंग के भी निर्देश सर्वोच्च अदालत ने दिए हैं।

अजित पवार का इस्तीफा, भाजपा की फ़ज़ीहत

एक बहुत बड़े घटनाक्रम में भाजपा को बड़ा झटका देते हुए तीन दिन पहले उप मुख्यमनत्री पद की शपथ लेने वाले एनसीपी के बागी अजित पवार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह शिव सेना-कांग्रेस-एनसीपी खेमे की बड़ी जीत है। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस भी शाम ३.३० प्रेस कांफ्रेंस करने वाले हैं और  संभावना है कि वे भी इस्तीफा देने की घोषणा कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो कल होने वाला फ्लोर टेस्ट संभवता नहीं होगा।

आज सुबह सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद शरद पवार, सुप्रिय सुले और अन्य वरिष्ठ एनसीपी नेता अजित पवार से मिले थे। सूत्रों के मुताबिक इसमें शरद पवार ने अजित पवार से साफ़ कह दिया था कि वे अकेले पड़ चुके हैं और और इस्तीफे के अलावा उनके पास कोइ चारा नहीं है।

सूत्रों के मुताबिक शरद पवार ने कहा कि अजित पवार इस्तीफा दे देते हैं तो वे उन्हें माफ़ कर देंगे। इसके एक घंटे बाद ही अजित पवार के इस्तीफे की खबर आ गयी।  इससे पहले राजनीतिक हलकों में बहुत उच्च स्तर पर यह चर्चा भी रही कि यह सारा तमाशा भाजपा को ‘एक्सपोस” करने के लिए गड़ा गया था। हालाँकि ऐसा पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।

पता चला है कि अजित पवार ने अपना इस्तीफा सीएम फडणवीस को सौंप दिया है। उनके बड़े समर्थक धनंजय मूंदे पहले ही शरद पवार से आ मिले थे। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह ही महाराष्ट्र में सरकार के मसले पर शिव सेना-कांग्रेस-एनसीपी की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस एनवी रमना, अशोक भूषण और संजीव खन्ना की बेंच ने आदेश दिया था कि २७ नवंबर को शाम ५ बजे से पहले फ्लोर टेस्ट किया जाये। प्रो-टीम स्पीकर विधायकों की शपथ करवाएं और फिर फ्लोर टेस्ट हो जिसका लाइव टेलेकास्ट हो। सीक्रेट बैलट नहीं होगा। पूरी कार्यवाही की वीडियो रेकार्डिंग के भी निर्देश सर्वोच्च अदालत ने दिए हैं।

अच्छी पहल: शादी में कार्ड की बजाय पौधे लगे 400 गमलों से निमंत्रण भेजा

पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के यूं तो कई किस्से सुने होंगे। लेकिन पिछले दिनों मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक शख्स ने अपनी शादी के निमंत्रण कार्ड में पर्यावरण का संदेश देने के लिए जो तरीका अपनाया उसकी खूब वाहवाही की जा रही है।

भोपाल के एक परिवार ने शादी के निमंत्रण पत्र की जगह पौधे लगे गमलों पर वर-वधू का नाम और कार्यक्रम स्थल लिखकर 400 लोगों को भेजा। इन गमलों में विभिन्न किस्म के पौधे लगे हुए थे। जिन्हें करीब आठ महीने पहले लगाया गया था।

भोपाल के तुलसी नगर में रहने वाले राजकुमार कनकने के बेटे प्रांशु की शादी 20 नवंबर को तय थी। घर में पहले शादी के कार्ड बांटने की ही बात हो रही थी। इसी बीच, बड़े बेटे प्रतीक ने कहा कि क्यों न हम शादी के निमंत्रण में कुछ ऐसा करें, जिससे लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सके। यह बात परिवार वालों को अच्छी लगी।

तभी परिवार ने फैसला कर लिया। इसके लिए बाकायदा 8 महीने पहले से ही पौधे लगे गमलों में वर-वधु और कार्यक्रम स्थल का नाम छपवाकर लोगों को निमंत्रित किया जाएगा। इससे सभी परिवार वालों की हामी रही।
दिमाग में यह भी आया कि लोग कार्ड लेकर भूल जाते हैं, और कुछ दिनों बाद वह खत्म हो जाता है। लेकिन यदि ये गमले उनके घरों में रहेंगे तो हमारे परिवार के इस खासपल को हमेशा याद रखेंगे।

प्रतीक ने बताया कि कार्ड न छपवाकर परिचितों और रिश्तेदारों को 400 गमले देकर निमंत्रित किया। वहीं बाहर के रिश्तेदारों को वॉट्सएप कर शादी में आने का अनुरोध किया। यह प्रयोग काफी सफल रहा और लोगों ने इसे सराहा भी। सोशल मीडिया में भी इस पहल की भरपूर सराहना की जा रही है।

विरोध की फ़िज़ा और गहलोत के सवाल

जुलाई, 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कैबिनेट में फेरबदल करने जा रहे थे, तो उनका कहना था- ‘मेरे लिए सफलता का अर्थ है कि लोग बदलाव महसूस करें। यदि उपलब्धियों का दावा करना पड़े, तो मैं इसे सफलता नहीं मानूँगा।’ लेकिन क्या मोदी सरकार ऐसा कुछ कर सकी कि लोग बदलाव महसूस कर सकें?’ राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी राजनीति में जितने चतुर सुजान साबित हुए, क्या नीतियों की कसौटी पर भी उतने ही खरे साबित हुए? लेकिन मौजूदा स्थितियों पर वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन की यह टिप्पणी बहुत कुछ कह देती है, जो उन्होंने मोदी के पदारूढ़ होने से पहले कर दी थी, कि ‘अगर वे चाहेंगे कि उनका प्रधानमंत्रित्वकाल दीर्घजीवी हो, तो उन्हें अपनी विचारधारा में भी ज़रूरी फेरबदल करने होंगे। आिखर जिस देश के वे प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं, वो बहुत बड़ा और बड़ी अपेक्षाएँ रखने वाला देश है। लेकिन इन अपेक्षाओं के पंख जैसे भी हों, इनके पाँव कहाँ हैं?’ खेल जगत में बेशक यादें धुँधली पड़ जाती हैं; लेकिन सियासी दंगल में ऐसा नहीं होता। बल्कि ये यादें शूल की तरह चुभने लग जाती हैं। सफलता के आवरण और गुणगान के पीछे जो मुद्दे कुलबुला रहे थे, उनको लेकर सरकार क्यों लोगों को मुतमईन नहीं कर सकी? अब अगर विपक्ष मंदी की नब्ज़टटोल रहा है, टूटती अर्थ-व्यवस्था को विस्मय से झाँक रहा है; रोज़गार, महँगाई और खेती-किसानी को लेकर सरकार को आईना दिखाने पर तुला है, तो क्या भावनाओं की हवाबाज़ी से अहम मुद्दों को दरकिनार करने से काम चल जाएगा?

बहरहाल, ताकत और अवसरों के केन्द्रीकरण ने विपक्ष को उठापटक का मौका दे दिया है । हालाँकि इस ऊर्जा और उत्साह के पीछे हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा के उतरते खुमार की छौंक भी है। मोदी सरकार की नेकनामी पर जिस तरह गरम हवा के थपेड़े लग रहे हैं। उसके मद्देनज़र विपक्ष में बदलाव की कोशिशों की जुस्तज़ू उठनी ही थी। विरोध का यह दायरा दिल्ली की सरहदों को लाँघते हुए पूरे देश में फैलना-पसरना है। यह कोशिश कितनी कामयाब होती है? बेशक यह देखना दिलचस्प होगा। बहरहाल कांग्रेस की अगुआई में 13 राजनीतिक दलों ने मोदी सरकार को सडक़ से संसद तक घेरने का खाँचा गढ़ लिया है। मोदी सरकार के िखलाफ घिर रहा तूफान कितना मज़बूत है, यह समझने के लिए यही तथ्य काफी है कि देश-भर के जि़ला मुख्यालयों पर सत्ता का भ्रम तोडऩे के लिए धरना-प्रदर्शन का लम्बा सिलसिला चलेगा।

जिस समय कांग्रेस की रहनुमाई में विपक्षी दल मोदी सरकार को उनके किये पर गौर करने को मजबूर कर रहे हैं, कांग्रेस के कद्दावर नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सवालों की झड़ी लगा दी है, जो यह बताने को काफी है कि ‘आिखर दर्द कहाँ पर है और इसका इलाज कहाँ है? बेशक गहलोत का पत्रकारों के साथ संवाद ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के ‘आइडिया एक्सचेंज’ कार्यक्रम में था; लेकिन पूरी तरह मोदी सरकार की नीतियों, योजनाओं और प्रयोगों को कटघरे में खड़ा कर रहा था। मोदी सरकार की घेराबंदी को लेकर गहलोत ने कहा- ‘मंदी की चुभन में पूरा देश कराह रहा है। दरकती अर्थ-व्यवस्था को लेकर हरेक शख़्स में छटपटाहट है और यह बढ़ती जा रही है। इसलिए कांग्रेस के लिए यही मुनासिब वक्त है कि आगे आकर जनमत को सक्रिय करे। उन्होंने कहा लोग साफ महसूस कर रहे हैं कि मोदी सरकार के वादे हवा में टँग गये हैं। तबाही के इलाके से बाहर निकलने की कोई राह मोदी सरकार को सूझ तक नहीं रही है। जनता इसकी पूरी तरह नाप-जोख कर रही है।’ गहलोत ने कहा- ‘देश का मूड बदल रहा है। लोग गुस्से से बिफर रहे हैं। हर रोज़उनकी तादाद में इज़ाफा हो रहा है। जनता की इस नाराज़गी को अभियान में बदलने की ज़रूरत है। सडक़ पर उतरने और राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेडऩे का यही सही वक्त है।’

अपने ज़ेहन में छायी एक तस्वीर को गहलोत ने शब्दों में उकेरते हुए कहा- ‘जब आंदोलन ज़ोर पकड़ेगा, तो ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसमें शामिल होंगे। जैसे-जैसे यह सिलसिला आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे लोगों का डर ख़त्म होने लगेगा कि इस लड़ाई में वे सिर्फ अकेले नहीं हैं। उनमें हौसला पैदा होगा।’ गहलोत ने सवाल किया कि न्यायपालिका जिस ढंग से काम कर रही है, क्या इससे पहले किसी ने ऐसी उम्मीद भी की थी? गहलोत का कहना था कि न्यायपालिका, आयकर महकमा, सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय अथवा नौकरशाह और एजेंसियाँ सभी एक ही दिशा में काम कर रही हैं। लोगों को बेमतलब डरा रहे हैं; जबकि डर के आगे जीत है। जब विपक्षी दल एक मकसद के साथ आगे बढ़ेंगे, तो क्या लोगों के सोच में तब्दीली नहीं आएगी? अगर आप पुख़्ता सोच के साथ आगे बढ़ेंगे, तो नौकरशाह और एजेंसियाँ बदलाव की दस्तक अनसुनी नहीं कर पाएँगी।

गहलोत ने बड़ी बेबाकी से कहा- ‘अर्थ-व्यवस्था पूरी तरह ढलान पर जा चुकी है। जीडीपी के फार्मूले ने तो अर्थ-व्यवस्था दरकने के दर्द को भी अनसुना कर दिया। रोज़गार के दावे जड़ नहीं पकड़ पा रहे हैं। रोज़गार के अवसर हैं भी, तो गिने-चुने इलाकों में। ऑटोमोबाइल सेक्टर हो या रियल एस्टेट कारोबार, ये रोज़गार के चुम्बक हैं। लेकिन जब ये क्षेत्र खुद ही डूब रहे हैं, तो किसे रोज़गार देंगे? छोटे कारोबारियों का गुस्सा बुरी तरह खदबदा रहा है।’

गहलोत ने हैरानी जतायी कि मीडिया किस कदर दबाव में है? उन्होंने यहाँ तक कहा- ‘चुनाव आयोग एक सनक को लेकर काम कर रहा है। उस पर कोई उँगली उठाने वाला तक नहीं है।’ उन्होंने झारखंड में पाँच चरणों में चुनाव कराने के औचित्य पर सवालों की झड़ी लगा दी। चुनाव के दौरान सरकारी मशीनरी और फण्ड्स के बेजा इस्तेमाल की आशंका जताने से भी गहलोत पीछे नहीं रहे।

उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी आलोचना करते हुए कहा- ‘संघ एक प्रकार से अतिरिक्त संवैधानिक अथॉरिटी के रूप में काम कर रहा है। क्यों इस बाबत मीडिया ने कभी नहीं लिखा? राज्यपाल या मुख्यमंत्री, हर नियुक्ति में आरएसएस की सलाह लेने का क्या मतलब हुआ? क्या आरएसएस एक एक्स्ट्रा संवैधानिक अथॉरिटी के रूप में काम नहीं कर रहा है? संघ के चयन के बाद ही मुख्यमंत्री और राज्यपाल नियुक्त होते हैं। यहाँ तक कि अफसर ऑन स्पेशल ड्यूटी पर भी संघ की मजऱ्ी पर तैनात होते हैं। आिखर संघ की इतनी घुसपैठ क्यों? मीडिया इस पर खामोशी अख़्ितयार किये हुए है। क्या इसलिए कि उस पर प्रवर्तन निदेशालय महकमे के छापों की तलवार लटक रही है?’

गहलोत ने एक गहन रहस्य की ओर इशारा करते हुए सांकेतिक भाषा में कहा- ‘आप यह कभी नहीं जान सकते कि जनता का मूड कब बदल जाएगा? परिवर्तन की कहानी बहुत आहिस्ता से चलती है। अब जिस तरह एकाधिकारों का पोषण किया जा रहा है, परिवर्तन के संकेत साफ नज़र आने लगे हैं। इंदिरा गाँधी के मामले में भी जनता का मूड नाटकीय तरीके से बदला था। 1977 में सत्ता से बाहर किये जाने के बाद वे फिर से सत्ता पर काबिज़ हुई थी।’

गहलोत ने बड़ी बेबाकी से कहा- ‘इसी प्रकार नरेन्द्र मोदी के मामले में भी परिवर्तन हो सकता है।’ उन्होंने कहा कि यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि हार और जीत प्रजातंत्र के हिस्से हैं। लेकिन कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को हौसला तो दिखाना चाहिए। आगे बढक़र वार तो करना चाहिए?

न शुद्ध हवा, न पानी ये है देश की राजधानी

राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का कहर अभी थमा भी नहीं है कि पानी की शुद्धता को लेकर केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने भारतीय मानक ब्यूरो वीआरएस की जाँच द्वारा  आँकड़े पेश किये कि दिल्ली का पानी सबसे दूषित है और पीने योग्य नहीं है। इसके बाद दिल्ली की सियायत पानी-पानी हो रही है। आलम यह है कि एक ओर दिल्ली में पानी की शुद्धता को लेकर लोगों में भय है, वहीं दूसरी ओर आरो का बाज़ार गरम होने की सम्भावनाएँ बढ़ गयी हैं। अब तक जो लोग पीने के पानी लेकर बेिफक्र थे, अब वे भी दिल्ली के बाज़ारों से आरो को खरीदकर घरों में लगवाने में लगे हैं। इसी मामले में दिल्ली के लोगों से और बाज़ार में ‘तहलका’ संवाददाता ने पड़ताल की, तो लोगों ने कहा कि सरकार की लचर व्यवस्था का खामियाज़ा जनता ने सदैव उठाया है। ऐसे में सरकारी आँकड़े और दावे कर जनता को संशय में डाल देते हैं। ऐसे में क्या किया जाए? जनता बस इसी उधेड़बुन में है और स्वस्थ जीवन के लिए प्रयासरत है। मौजूदा वक्त में पानी की शुद्धता को लेकर जो आँकड़े और दावे किये जा रहे हैं उससे दिल्ली की सियासत में उबाल है।

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि भारतीय मानक ब्यूरो बीआरएस ने जो दिल्ली से 11 जगहों से नमूने लिये थे, उससे यह बात सामने आयी है कि दिल्ली के पानी सबसे गन्दा है और पीने योग्य नहीं है। पासवान ने कहा कि दिल्ली में गरीब जनता दूषित पानी पीने के कारण बीमार हो रही है; जबकि अमीर और मध्यम वर्ग का आदमी तो अपने घरों में आरो लगवा लेता है। ऐसे में गरीब आदमी ही नलों का पानी पीने को मजबूर है।

इसके जवाब में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि केंद्रीय मंत्री पासवान जनता को गुमराह कर रहे हैं। क्योंकि दिल्ली के कुल 11 जगहों से लिये गये नमूनों के आधार पर यह कैसे साबित किया जा सकता है कि दिल्ली के दो करोड़ लोग दूषित पानी पी रहे हैं। उन्होंने कहा कि पानी के नाम पर राजनीति हो रही है। केजरीवाल ने बताया कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री शेखावत ने गत 26 सितंबर, 2019 को दिल्ली के पानी पर खुद कहा है कि दिल्ली का पानी यूरोपीय शहरों से बेहतर है; जिसका खुद दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी भी समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली का पानी डब्ल्यूएचओ मानक पर खरा उतरा हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली के प्रत्येक वार्ड से 5-5 सैम्पल लिये जाएँगे, जिसकी गुणवत्ता की जाँच करवाएँगे जिसके लिए केंद्रीय मंत्री पासवान को निमंत्रण भेजा गया है।

 अब बात करते हैं कि दिल्ली के उन इलाकों की जहाँ पर पानी की किल्लत के साथ शुद्धता को लेकर दशकों से सवाल उठाते रहे हैं। जनता और सरकार के बीच पानी को लेकर हंगामा और प्रदर्शन भी होते रहे हैं। लेकिन अचानक केंद्रीय मंत्री पासवान ने 16 नवंबर को संवाददाता सम्मेलन कर बताया कि दिल्ली का पानी सबसे दूषित है और पीने योग्य नहीं है। इस मामले दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर लोगों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि दिल्ली में जो भी पानी आ रहा है, उसी को पी रहे हैं। बदरपुर के वीर सिंह का कहना है कि पानी की किल्लत और दूषित पानी का सिलसिला आज का नहीं है, यह दुर्भाग्य है कि देश की राजधानी में कभी भी साफ पानी लोगों को पीने को नहीं मिला है। लक्ष्मीनगर निवासी सुनील कुमार ने बताया कि पानी को लेकर जो भी हो-हल्ला मचा है, वो लोगों को भटकाने के लिए है। इन नेताओं को कुछ नहीं करना है, बस ये तो आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर भटकाने वाली सियासी चाल है। पांडव नगर निवासी अध्यापिका गीता ने बताया कि अब तक जो भी दावे पानी की शुद्धता को लेकर किये जा रहे हैं, वे सब बकवास है। क्योंकि सितंबर माह में घरों में दूषित पानी की शिकायत दिल्ली जल बोर्ड में की थी, तो कोई कार्यवाही नहीं हुई और न ही सुनवाई।  दिल्ली सरकारी अस्पतालों में मरीज़ो और डॉक्टरों ने बताया कि अगर केंद्र सरकार सही मायने में पानी की शुद्धता को लेकर चिन्तित है, तो अस्पतालों में ही बेहतर पानी की व्यवस्था कर दें तो ठीक है। पर सरकारी अस्पतालों में अभी तक पानी की उचित व्यवस्था नहीं हैं। दिल्ली के स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे भी जल बोर्ड का ही पानी पीते हैं। कुछ बच्चे तो घरों से पानी ले जाने को मजबूर हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के विधानसभा क्षेत्र में लोगों से बातचीत पर उन्होंने कहा कि जो पानी दिल्ली जल बोर्ड का वर्षों से आ रहा है, वो ठीक है पर ज़्यादातर लोगों ने तो अपनों घरों में आरो लगवा रखे हैं। एनडीएमसी दिल्ली का पॉश इलाका है यहाँ के निवासी रवीन्द्र कुमार ने बताया कि जो दिल्ली जल बोर्ड का जल है, वह कभी-कभार दूषित और बदबूदार आता है। ऐसे में पानी को उबालकर पीना पड़ता है।

वहीं दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष दिनेश मोहनिया का कहना है कि दिल्ली जल बोर्ड का पानी साफ है; पीने योग्य है; लोग पी रहे हैं। समय-समय पर पानी की शुद्धता को लेकर जाँच होती रहती है। ऐसे में पानी को लेकर कोई चिन्ता की बात नहीं है।

दिल्ली पानी दूषित को लेकर दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने दिल्ली के तुर्कमान गेट पर मटमैली पानी बोतलों को गले में लटकाकर सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ प्रदर्शन किया और दूषित पानी के लिए आपराधिक मामला दर्ज कराने की बात की है। वहीं भाजपा के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के विभिन्न इलाकों से 400 जगहों से पानी का सैम्पल लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के पास पहुँचाया है। दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि केजरीवाल हर मोर्चे पर असफल हैं। न दिल्ली में हवा शुद्ध है और न पानी शुद्ध है। केजरीवाल ने जनता के साथ धोखा किया है। इस बारे में इंडियन हार्ट फाउण्डेशन के अध्यक्ष डॉक्टर आर.एन. कालरा ने बताया कि दिल्ली में दूषित पानी के पीने से शरीर के अंग डैमेज होते हैं। हैजा और डायरिया कई बार जानलेवा तक साबित हो जाता है। ऐसे पानी की शुद्धता को लेकर सजगता की ज़रूरत है। इस बारे में पशु चिकित्सक डॉक्टर नरोत्तम वर्मा ने बताया कि पानी का असर मानव जीवन पर तो पड़ता ही है, वह इलाज भी करवा लेता है; लेकिन बेजुबान जानवर को अगर पीने के लिए साफ पानी नहीं मिलता है, तो वह संक्रमण की चपेट में आ जाता है। कई बार संक्रमण से ग्रस्त जानवरों का समय पर उपचार न होने से वे समय से पहले ही मौत के शिकार हो जाते हैं। दिल्ली के बाज़ारों में आरो की बिक्री जोरों पर है। आरो विक्रेता पवन कुमार ने बताया कि ग्राहक अपनी ज़रूरत के मुताबिक पानी आरो और वाटर प्यूरीफाई खरीद रहे हैं। उन्होंने बताया कि जबसे पानी के दूषित होने की बात सरकार सामने लायी है, तबसे आरो की बिक्री बढ़ी है।

दिल्ली में पानी की शुद्धता को लेकर केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बीच जुबानी जंग तेज हो गयी है। केन्द्रीय मंत्री पासवान कहा कि पानी की जाँच के लिए मुख्यमंत्री ने जाँच कमेटी गठित की है, वह पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। क्योंकि जाँच कमेटी में दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष दिनेश मोहनिया को लिया है, वे दिल्ली के संगम बिहार से विधायक हैं और सदस्य के तौर पर शलभ कुमार लिया गया है। उन्होंने कहा कि जाँच कमेटी में गैर राजनीतिक दल से होना चाहिए ताकि साफ पानी की कहानी साफ हो सकें।

रामविलास पासवान

केंद्रीय मंत्री, एनडीए सरकार

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में पानी के नाम पर केन्द्रीय मंत्री राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में जो पानी की जाँच के नाम पर जो नमूने लिये गये उनके घर से तो नमूने तो लिया नहीं है। ऐसे में दिल्ली के पानी को पीने लायक न बताना केन्द्रीय मंत्री पासवान की ओछी राजनीति  है।

अरविंद केजरीवाल

मुख्यमंत्री, दिल्ली

आप पार्टी से राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान से इस्तीफा माँगते हुए कहा कि केन्द्रीय मंत्री की ये हरकतश शोभा नहीं देती है। दिल्ली का पानी पूरी तरह से शुद्ध है। क्योंकि दिल्ली सरकार दिल्ली वालों के हितों को लेकर पानी की जाँच समय-समय पर करवाती रहती है।

संजय सिंह

सांसद, आप

दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी नेे कहा कि दिल्ली के लोग पानी को लेकर भय में है। जब भारतीय मानक ब्यूरो ने दिल्ली के पानी को दूषित बताया है, तो ऐसे में ये कहना मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली का पानी पूरी तरह से शुद्ध है इसके कारण दिल्ली के लोगों में भय है कि कही दूषित पानी के पीने से किसी बीमारी की चपेट में ना आ जाएँ।

मनोज तिवारी

दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री न जानें क्यों अपनी गलती छिपा रहे हैं। जब पानी को भारतीय मानक ब्यूरो ने पीने योग्य नहीं माना है, तो ऐसे में केजरीवाल का ये कहना है कि उनके घर से पानी का नमूना नहीं लिया गया, तो इस लिए पूरी जाँच गलत है। ये दुर्भाग्यपूर्ण बातें कर रहे हैं केजरीवाल।

डा. हर्षवर्धन

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री

अयोध्या पर ऐतिहासिक फैसले के लिए जाने जाएँगे जस्टिस गोगोई

जीवन में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो शख्स से शिख्सयत बन जाते हैं और हमेशा याद रहते हैं। यह भी कह सकते हैं कि कुछ लोग अपने जीवन में काम ही ऐसे कर जाते हैं कि इतिहास उन्हें दर्ज करने को मजबूर हो जाता है। ऐसी ही एक शिख्सयत हैं पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई। ऐतिहासिक अयोध्या समेत कई अहम फैसले देने वाले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) यानी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर, 2019 को सेवानिवृत्त हो गये। मुख्य न्यायाधीश के तौर पर उनका कार्यकाल एक साल 46 दिन यानी 411 दिन का रहा। 15 नवंबर, 2019 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में आिखरी दिन भी काम किया और वहीं से उन्हें विदाई भी दी गयी। इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि वकीलों को बोलन ेकी आज़ादी है और यह होनी चाहिए। मगर, जजों को अपनी आज़ादी का इस्तेमाल मौन रहकर करना चाहिए। हालाँकि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि उन्हें चुप रहना चाहिए, बल्कि अपने दायित्वों के निर्वाह के दौरान बोलना चाहिए; बाकी समय मौन रहना चाहिए। जस्टिस गोगोई अपनी विदाई से पहले राजधानी में राजघाट स्थित महात्मा गाँधी की समाधि स्थल पर गये और राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अॢपत की।

बता दें कि जस्टिस रंजन गोगोई 23 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए और 3 अक्टूबर, 2018 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 46वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद ग्रहण किया था। इस दौरान जस्टिस रंजन गोगोई ने एनआरसी, अयोध्या, सबरीमाला, तीन तलाक, सीजेआई दफ्तर आरटीआई के दायरे में जैसे अनेक मामलों पर ऐतिहासिक फैसले दिये, जिससे उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया।

पिता रह चुके असम के सीएम

जस्टिस गोगोई का जन्म 18 नवंबर, 1954 को ड्रिबूगढ़, असम में हुआ। इनके पिता केशब चंद्र गोगोई 1982 में असम के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे वकील भी थे। रंजन की पढ़ाई की शुरुआत ड्रिबूगढ़ के डॉन बोस्को स्कूल से हुई। इसके आगे की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली में की। गोगोई ने वकालत का पेशा अपनाया और 1978 में गुवाहाटी हाई कोर्ट में रजिस्ट्रेशन कराया। यहाँ उन्होंने वकालत की और 28 फरवरी, 2001 को यहीं जज नियुक्त हुए। 2010 को जस्टिस गोगोई  का पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में उनका जज के रूप में तबादला हुआ और 12 फरवरी, 2011 को यहीं पर मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए। 23 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने।

सीजेआई दफ्तर आरटीआई के दायरे में

सीजेआई के रूप में जस्टिस रंजन गोगोई ने कई बेहद अहम फैसले दिये। 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या मामले पर पाँच जजों की संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता करते हुए सीजेआई रंजन गागोई ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जस्टिस रंजन गोगोई एक ऐसे न्यायाधीश रहे हैं, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कार्यालय को भी सूचना का अधिकार कानून यानी आरटीआई एक्ट के दायरे में लाने का फैसला दिया। उन्होंने यह फैसला 13 नवंबर, 2019 को  सुनाया। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सार्वजनिक कार्यालय है; इसलिए यह भी सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आएगा। इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर फैसला दिया कि तय समय-सीमा में इसे लागू किया जाए, ताकि गैर-कानूनी तरीके से असम में रह रहे लोगों की पहचान की जा सके।  राफेल मामले पर 14 नवंबर, 2019 को जस्टिस गोगोई ने फैसला सुनाया। अमिताभ बच्चन की आय के मामले में भी जस्टिस रंजन गोगोई ने 2016 में टैक्स रिटर्न पर फैसला दिया था और अमिताभ बच्चन की आय व टैक्स रिटर्न की दोबारा जाँच करने का आदेश दिया था। उन्होंने 2016 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू को अवमानना का नोटिस भेज दिया था। अवमानना नोटिस के बाद जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने फेसबुक पोस्ट के लिए माफी माँगी। यही नहीं, पहली बार ऐसा हुआ कि कोर्ट की अवमानना के लिए कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायाधीश सी.एस. कन्नन को भी उन्होंने जेल में डाल दिया। जस्टिस गोगोई उस पीठ का हिस्सा भी रहे, जिसने लोकपाल अधिनियम को कमज़ोर करने के सरकार के प्रयासों को विफल कर दिया। जस्टिस रंजन गोगोई हमेशा ऐसे जस्टिस के तौर पर याद किये जाएँगे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की पवित्रता की रक्षा करने के लिए अपनों के िखलाफ भी आवाज़उठायी। इसके साथ ही जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के 25 जजों में से 11 में शामिल रहे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपनी सम्पत्ति का सार्वजनिक विवरण दिया।

विवादों में भी घिरे

संभवत: पहली बार हुआ कि सीजेआई रहते हुए सुप्रीम कोर्ट की ही एक पूर्व महिला कर्मचारी ने अक्टूबर, 2018 में यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया। सीजेआई ने मामले की सुनवाई की, जिसमें पहले वे खुद ही जज रहे। हालाँकि बाद में दूसरी तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और मामले को सिरे से खारिज करके उन्हें निर्दोष पाते हुए क्लीन चिट दे दी थी।

जस्टिस एस.ए. बोबडे बने सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई

17 नवंबर को जस्टिस गोगोई की सेवानिवृत्ति के अगले दिन 18 नवंबर को न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे ने देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें सीजेआई पद की शपथ दिलायी और बधाई दी। बता दें कि महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे जस्टिस बोबडे कई ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभा चुके हैं और अयोध्या के विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने के फैसले में भी शामिल रहे हैं।

इंसाफ तक आम आदमी की पहुँच हो

मैंने ऐसे संस्थान से जुडऩे फैसला किया जिसकी ताकत ही जनमानस का भरोसा और विश्वास है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इंसाफ तक आम आदमी की पहुँच हो और उसको यह लगे कि इंसाफ से कोई जुदा नहीं कर सकता। न्यायालय की ताकत आम जनता में कमाई उसकी साख से बनती है। मैं अब अति प्रतिष्ठित संस्थान का औपचारिक हिस्सा तो नहीं रहूँगा, परन्तु मेरा एक हिस्सा हमेशा इसके साथ रहेगा और इसके श्रेष्ठ की कामना करेगा।

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई

कश्मीर यूनिवर्सिटी के पास ग्रेनेड विस्फोट, ३ लोग घायल

कश्मीर यूनिवर्सिटी के कुछ देर पहले हुए आतंकी हमले में कम से कम तीन लोगों के घायल होने की खबर है।

जानकारी के मुताबिक आतंकियों ने कश्मीर यूनिवर्सिटी के गेट पर ग्रेनेड हमला किया है। इस विस्फोट में वहां मौजूद कमसे कम तीन लोग घायल हो गए हैं। अभी तक की जानकारी के मुताबिक ग्रिनेड फेंकने के बाद आतंकी वहां से भाग गए। उनकी तलाश बड़े पैमाने पर शुरू की गयी है।

यह धमाका कश्मीर यूनिवर्सिटी के गेट के पास हुआ। किसी ने वहां ग्रिनेड रखा था या उसी समय फेंका गया जो फैट गया। इसमें तीन लोग घायल हो गए जिनकी हालत गंभीर है। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है।

राम मंदिर पर पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेंगे, सुन्नी बोर्ड का बड़ा ऐलान

एक बड़े फैसले में मंगलवार को ६ सदस्यों के विरोध के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक बैठक करके ऐलान किया है कि बोर्ड अयोध्या विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के केंद्र सरकार को मुस्लिम पक्ष को ५ एकड़ ज़मीन देने के आदेश के मामले में बोर्ड ने आज की बैठक में मामला आगे के लिए टाल दिया है।

गौरतलब है कि बोर्ड के जफर फारुकी पहले भी इस बात के हामी रहे थे कि सर्वोच्च  न्यायालय से अंतिम फैसला आ गया है और बोर्ड को पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करनी चाहिए। उनके मुताबिक इससे हिन्दू-मुस्लिम एकता भी मजबूत होगी।
उधर आज की बैठक में इस फैसले को तब तक के लिए टाल दिया गया है जब तक सरकार ५ एकड़ ज़मीन का प्रस्ताव नहीं लाती।  बैठक में कहा गया कि ज़मीन  नहीं इस बात का फैसला उस वक्त ही किया जाएगा जब केंद्र ज़मीन का ऑफर लेकर आयेगा।

जफर फारुकी ने पहले भी कहा था कि बोर्ड अयोध्या विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करना चाहिए। बोर्ड की ओर से फैसले का स्वागत किया गया है और उन्होंने कहा कि हम पहले से कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा उसे दिल से माना जाएगा। फारुकी ने कहा कि सभी को भाईचारे के साथ इस फैसले का सम्मान करना चाहिए।

भारत में आर्थिक मंदी और तेज़ी का विरोधाभास!

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) भारत की वित्तीय वर्ष 2019 की विकास दर को कम दिखाने के मामले में एडीबी, विश्व बैंक, ओईसीडी, आरबीआई, आईएमएफ और अन्य वैश्विक एजेंसियों में शामिल हो गया है। एसबीआई की 12 नवंबर, 2019 को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे समग्र अग्रणी संकेतक बताते हैं कि वित्त वर्ष 20 की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि 5.0 प्रतिशत से भी कमज़ोर होकर 4.2 प्रतिशत रह सकती है और इसका आधार कमज़ोर ऑटोमोबाइल बिक्री, एयर ट्रैफिक मूवमेंट में कमी, कोर सेक्टर की ग्रोथ का सपाट रहना और कंस्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश में गिरावट है।

एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि इन सब कारणों के चलते 4.2 प्रतिशत तक गिर सकती है, जबकि वित्त वर्ष 20 के लिए विकास दर का अनुमान अब 6.1 से घटकर 5 प्रतिशत हो गया है। पहली तिमाही में भारत की जीडीपी पहले ही छ: साल के न्यूनतम 5 प्रतिशत पर थी। एसबीआई ने कहा कि मौसम विभाग के अनुसार, मध्य भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप में क्रमश: 129 प्रतिशत और 116 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई। मानसून की अधिक वर्षा और इसके कारण आयी बाढ़ ने कई राज्यों में खरीफ की फसलों को प्रभावित किया था, जिनमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और पंजाब शामिल हैं। मध्य प्रदेश में 40 से 50 प्रतिशत सोयाबीन की फसल भी प्रभावित हुई है, जो कि तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। गुजरात में भी मूंगफली का 30 से 40 प्रतिशत और कपास की 30 फसलें प्रभावित हुई हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है- ‘चूँकि ये राज्य प्रमुख कृषि प्रधान राज्य हैं, इसलिए इससे कृषि विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। वैश्विक मंदी के साथ-साथ इन सभी घरेलू मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 5 प्रतिशत पर आधारित है। हमें लगता है कि क्वार्टर-2 में वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत रहेगी। अक्टूबर 2018 में 33 प्रमुख संकेतकों के लिए हमारी 85 प्रतिशत की त्वरण दर सितंबर, 2019 में घटकर सिर्फ 17 प्रतिशत रह गई है। यह गिरावट मार्च 2019 से आ रही है।’

यहाँ तक कि सरकार भी यह कह रही है कि आर्थिक मंदी प्रकृति के चक्र के चलते है और जल्द ही इसमें सुधार दिखाई देगा। हालाँकि उच्च आवृत्ति डाटा कुछ और ही कहानी कहता है। दिलचस्प बात यह है कि एसबीआई रिपोर्ट जारी होने के कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड में आदित्य बिड़ला समूह की स्वर्ण जयंती के दौरान कहा था कि वह पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि यह भारत में होने का सबसे अच्छा समय है।

उन्होंने दावा किया था कि आज के भारत में, कई चीज़े बढ़ रही हैं और कई गिर रही हैं। ‘ईज़ऑफ डूइंग बिजनेस’ बढ़ रहा है और इसलिए ‘ईज़ऑफ लिविंग’ भी। एफडीआई बढ़ रहा है। हमारा फॉरेस्ट कवर बढ़ रहा है। पेटेंट और ट्रेडमार्क की संख्या बढ़ रही है। उत्पादकता और दक्षता बढ़ रही है। आधारभूत संरचना निर्माण की गति बढ़ रही है। शीर्ष गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने वालों की संख्या बढ़ रही है। इसी समय में करों की दरें गिर रही हैं। लालफीताशाही कमज़ोर हो रही है। पक्षपात खत्म हो रहा है। भ्रष्टाचार खत्म हो रहा है। भ्रष्टाचारी बचाव के लिए भाग रहे हैं। सत्ता के गलियारों में बिचौलिये अब इतिहास की बात हो गये हैं।

भारत को पिछले पाँच वर्षों में 286 बिलियन डॉलर का एफडीआई प्राप्त हुआ। यह पिछले 20 वर्षों में भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लगभग आधा है। इसका 90 प्रतिशत स्वत: अनुमोदन के माध्यम से आया और इसमें से 40 प्रतिशत ग्रीन फील्ड इन्वेस्टमेंट है। इससे पता चलता है कि निवेशक भारत में एक दीर्घकालिक निवेश की सोच के साथ आ रहे हैं। यूएनसीटीएडी के अनुसार, ‘भारत एफडीआई के मामले में शीर्ष 10 गंतव्यों में एक है।’ मैं दो चीजों के बारे में विशेष रूप से बात करना चाहता हूँ। भारत ने पाँच वर्षों में विश्व बैंक की ‘ईज़ऑफ डूइंग बिजनेस’  रैंकिंग में 79 स्थानों की छलाँग लगायी है। 2014 में हम 142 पार्थज, जबकि 2019 में 63 पर आ पहुँचे हैं। यह एक बड़ी उपलब्धि है। लगातार तीसरे वर्ष में, हम शीर्ष दस सुधारकों में एक हैं।

दूसरा विश्व आर्थिक मंच की यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक में भारत की बेहतर रैंकिंग है। 2013 में 65 से हम 2019 में 34वें स्थान पर हैं। यह सबसे बड़ी छलाँग है। विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत अब पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनने का सपना देख रहा है। जब मेरी सरकार ने 2014 में कार्यभार सँभाला था, तब भारत की जीडीपी लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर थी। 65 वर्षों में 2 ट्रिलियन। लेकिन केवल 5 वर्षों में, हमने इसे लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया। प्रधानमंत्री ने कहा- ’इससे मुझे विश्वास है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था का सपना जल्द ही सच हो जाएगा। हम अगली पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे के लिए 1.5 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने जा रहे हैं।’

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने पिछले पाँच वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के कई पड़ाव देखे हैं। इसका कारण केवल सरकारें ही नहीं हैं। भारत ने एक नियमित नौकरशाही तरीके से काम करना बंद कर दिया है। महत्त्वाकांक्षी मिशनों के कारण क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहे हैं। जब ये महत्त्वाकांक्षी मिशन लोगों की साझेदारी से सक्रिय होते हैं, तो वे जीवंत जन-आंदोलन बन जाते हैं। और, ये जन आंदोलन चमत्कार प्राप्त करते हैं। जिन चीज़ो को पहले असम्भव माना जाता था, वे अब सम्भव हो गयी हैं। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए कवरेज लगभग सौ प्रतिशत तक पहुँच गया है। इसके अच्छे उदाहरण हैं- ’जन धन योजना, जो कुल वित्तीय समावेशन के पास सुनिश्चित की गयी है और स्वच्छ भारत मिशन, जहाँ स्वच्छता कवरेज लगभग सभी घरों तक पहुँच गया है।’

उन्होंने कहा कि भारत में हमें एक बड़ी समस्या का सामना सेवा वितरण में कमज़ोरियों की वजह से है। इसके कारण गरीबों को सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा। आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्षों से गरीबों पर पैसा खर्च किया जाता था, जो वास्तव में गरीबों तक नहीं पहुँचता था। हमारी सरकार ने डीबीटी (सीधा लाभ ट्रांसफर) के ज़रिये इस संस्कृति को खत्म कर दिया। डीबीटी ने बिचौलियों और अक्षमता की संस्कृति को खत्म कर दिया है। इसमें त्रुटि की बहुत कम गुंजाइश बची है।

प्रधानमंत्री ने बताया कि डीबीटी ने अब तक 20 अरब डॉलर से अधिक की बचत की है। आपने घरों में एलईडी लाइट देखी होगी। आप जानते हैं कि यह अधिक कुशल हैं और ऊर्जा संरक्षण कर रहे हैं। लेकिन क्या आप भारत में इसके प्रभाव को जानते हैं? हमने पिछले कुछ वर्षों में 360 मिलियन से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किये हैं। हमने 10 मिलियन स्ट्रीट लाइट्स को एलईडी लाइट्स में बदल दिया है। इसके माध्यम से हमने लगभग 3.5 बिलियन डॉलर की बचत की है। कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आयी है। मेरा दृढ़ विश्वास है- बचा हुआ धन अर्जित किया धन होता है। इस पैसे का उपयोग अब लाखों लोगों को समान रूप से प्रभावी कार्यक्रमों के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए किया जा रहा है।

निश्चित ही एक विरोधाभास है कि धरातल की कठिन सच्चाई क्या संकेत देती है और  सरकार क्या दावा करती है। भारत के लिए एकमात्र तात्कालिक समाधान लोगों को सीधे दिये गये प्रोत्साहन के माध्यम से खपत को बढ़ावा देना प्रतीत होता है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए

प्रभावित क्षेत्रों में नीतिगत हस्तक्षेप की तुरन्ंत आवश्यकता है।