जम्मू कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने दो ट्रक ड्राइवर की गोली मारकर हत्या कर दी।
कश्मीर में आतंकियों ने दो ट्रक ड्राइवर की हत्या की
रघुराम राजन ने की मोदी सरकार की प्रशंसा लेकिन अर्थव्यवस्था में गिरावट पर चेताया
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और वर्तमान में शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में वित्त के प्रतिष्ठित प्रोफेसर, रघुराम राजन ने कृषि क्षेत्र में हुए सुधारों जैसे – फसल बीमा, बिचैलियों को हटाना और सीधा लाभ हस्तांतरण जो कि मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए थे उनकी प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि मोदी 1 जो सबसे अच्छा हासिल किया।
‘‘भारत की अर्थव्यवस्था: हम यहां कैसे पहुंचे?‘‘ विषय पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था में मंदी के कारणों को समझाया, लेकिन साथ ही बिजली क्षेत्र में सुधारों की भी सराहना की, जैसे बिजली वितरण कंपनियों में सुधार करना।
मोदी 1 ने जो अच्छा हासिल किया
रघुराम राजन की तरफ से अप्रत्याशित प्रशंसा तब आई जब उन्होंने मोदी 1 ने क्या ‘‘सर्वश्रेष्ठ हासिल किया है‘‘, पर बातचीत की, उन्होंने जन धन, आधार, सब्सिडी के प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण, पेंशन और छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने स्वच्छ भारत: स्वच्छ भारत कार्यक्रम, सभी के लिए शौचालय, प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना, गरीबों के लिए रसोई गैस कनेक्शन, आयुष्मान भारत और गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा जैसे प्रमुख कार्यक्रमों का उल्लेख किया, जहां मोदी 1 ने ‘‘सबसे अच्छा‘‘ हासिल किया।
राजन ने वर्ष 1999-2004 से अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान हुए सुधारों के लिए एनडीए 1 को श्रेय दिया, हालांकि, राजन ने कहा कि महत्वपूर्ण सुधारों के बावजूद, बाद में ‘‘इंडिया राइजिंग‘‘ अभियान ने 2004 के चुनावों में मतदाताओं को आश्वस्त नहीं किया।
एनडीए के काम पर यूपीए की सवारी
उन्होंने देखा कि इस अवधि के दौरान एनडीए 1 के कार्यकाल में सुधारों के बावजूद मजबूत वृद्धि नहीं देखी गई, लेकिन यूपीए 1 वास्तव में एनडीए सुधारों के प्रभावित प्रभावों से लाभान्वित हुआ। हालाँकि, गठबंधन भागीदारों ने और सुधारों को सीमित कर दिया। उन्होंने एक और दिलचस्प अवलोकन किया और कहा कि यूपीए दूसरी बार भाग्यशाली था जब वह 2009 में आर्थिक विकास के बजाय कृषि ऋण माफी की सफलता पर सवार हो गया। बुनियादी ढांचे सहित निवेश में एक विस्फोट हुआ लेकिन मजबूत विकास ने संसाधन आबंटन के लिए मौजूदा संस्थानों पर भी दबाव डाला। यूपीए 2 के दौरान अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ा, वह यह था कि विपक्षी और नौकरशाही ने जीएसटी जैसी नीतियों पर असहयोग किया था, जबकि इस अवधि के दौरान भ्रष्टाचार घोटालों ने अर्थव्यवस्था में गतिरोध में ला दिया, मुद्रास्फीति ने दोहरे अंक को छू लिया और भूमि अधिग्रहण बिल ने आर्थिक विकास में एक अवरोध पैदा कर दिया। तत्कालीन सरकार ने वेक-अप कॉल के बाद 2012-13 के दौरान मैक्रो-स्थिरता पर सुधार शुरू किया और कुछ राजकोषीय एकत्रीकरण शुरू किया।
इसके बाद मोदी 1 बड़ी उम्मीदों जैसे कि पारदर्शिता और नौकरियों का वादा के साथ आए। इसने कुछ महत्वपूर्ण मैक्रो, सेक्टोरल और लोकलुभावन सुधारों को लागू करना शुरू कर दिया, लेकिन इस प्रदर्शन को मिश्रित प्रदर्शन के रूप में सर्वश्रेष्ठ दर्जा दिया जा सकता है।
मोदी द्वितीय के दौरान विमुद्रीकरण और जीएसटी जैसे विषयों पर स्पर्श करते हुए, राजन ने कहा कि विमुद्रीकरण ‘‘गलत धारणा थी, जो पर्याप्त तैयारी के बिना शुरू किया गया था और इसने अनौपचारिक क्षेत्र और निर्माण और अचल संपत्ति को नुकसान पहुंचाया‘‘। क्षति इतनी बड़ी थी कि इसको ‘‘मापना मुश्किल‘‘ था। इसके बाद गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स आया, जो ‘‘कॉन्सेप्ट में मज़बूत था, लेकिन पर्याप्त तैयारी के बिना शुरू किया गया था और इस तरह के कम अनुपालन और निरंतर निरर्थकता ने अनिश्चितता पैदा की‘‘। उन्होंने मुद्रास्फीति नियंत्रण की सराहना की लेकिन कहा कि इसका परीक्षण किया जाना बाकी है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का बढ़ता एनपीए चिंता का विषय था।
धीमी होती अर्थव्यवस्था
अपने विषय पर आते हुए, उन्होंने देखा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास धीमा हो रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में एक गहरी अस्वस्थता के संकेत देने के बारे में बताते हुए, विख्यात वित्तीय विश्लेषक ने कहा कि यह न केवल वृद्धि काफी धीमी है, वित्तीय स्थान भी तेजी से संकीर्ण हो रहा है जबकि ऋण और संकट बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि “निर्यात जीडीपी के एक अंश के रूप में सिकुड़ गया है। इसी तरह, कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती से बोझ बढ़ रहा है और ऑफ-बैलेंस शीट उधार आसमान छू रही है जबकि आकस्मिक देनदारियां बढ़ रही हैं। वित्त और आरबीआई मंत्रालय से उद्धृत करते हुए, उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की उधार की आवश्यकता जीडीपी के 9 से 10 प्रतिशत के बीच बढ़ रही थी और इसलिए निजी ऋण और संकट था।
बैंकिंग क्षेत्र के सुधारों के बारे में, उन्होंने कहा कि पीएसयू नियुक्तियां करने के लिए बैंक बोर्ड ब्यूरो के निर्माण सहित सीमित प्रयास थे। फिर पीएसबी बैंक बोर्डों में बहुत कम शक्ति है और उनका राजनीतिकरण जारी है। इसके अलावा, निजी बैंक, सहकारी समितियां और एनबीएफसी गलत प्रशासन से ग्रस्त हैं। एफडीआई स्थिर था। हालांकि चीन की हिस्सेदारी में गिरावट के बावजूद भी टेक्सटाइल क्षेत्र में बढ़ोतरी कम थी।
अकेले वैश्विक कारण नहीं
उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि वैश्विक कारकों को दोष देना गलत होगा क्योंकि आईएमएफ की वैश्विक वृद्धि 2013-16 में 2.7 फीसद थी, लेकिन यह वास्तव में 2017-19 में बढक़र 3 फीसद हो गई। 2013-16 में वैश्विक व्यापार की वृद्धि दर 3.1 फीसद थी और यह भी 2017-19 में 4.2 फीसद हो गई। इसी तरह, 2013-16 के दौरान तेल की कीमत 73.5 डॉनर प्रति बैरल थी। 2017-19 में यह घटकर 60.1 डॉलर प्रति बैरल हो गया। उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या यह सिर्फ वैश्विक कारक हैं?‘‘ आर्थिक वृद्धि में गिरावट का जि़क्र करते हुए और कहा कि वैश्विक कारक अनुमानित अपराधी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वैकल्पिक संदिग्धों में एनडीएफसी संकट था, गिरती घरेलू बचत अर्थात कम खपत और नौकरी में वृद्धि। नतीजतन, निवेश घट रहा था और इसलिए विकास कम हो रहा था। हालांकि, केंद्र द्वारा करों के प्रत्यक्ष संग्रह में वृद्धि हुई थी।
बुद्धिजीवियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द पर बढ़ती असहिष्णुता पर सवाल बरकरार
अंतत: बिहार में मुज़फ्फरपुर जि़ले में पुलिस ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए प्रधानमंत्री को एक खुला पत्र भेजने के लिए बुद्दिजीवियों के खिलाफ दर्ज मामले को बंद करके अच्छा काम किया है। हालांकि सवाल बरकरार है कि विचारों को व्यक्ति करने के लिए व्यक्ति कब तक रूढि़वादिता के निशाने पर रहेगा।
फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल और मणिरत्नम और गयिका शुभा मुदगल सहित 49 बुद्धिजीवियों जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘मॉब लिचिंग’ और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते घृणा के अपराध पर चिंता व्यक्त करते हुए खुला पत्र लिखा था। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना एक धमकी से कम नहीं है। हालांकि बाद में किन्ही कारणों से इस एफआईआर को रद्द कर दिया गया पर जो नुकसान होना था वह तो हो चुका। इससे देश में अभिव्यक्ति के अधिकार पर तो एक प्रश्न चिन्ह लग ही गया। इस तरह यह देश में बढ़ती असहिष्णुता की गंभीर याद दिलाता है। समाज को इस तरह से ध्रुवीकृत किया गया है इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि जैसे ही यह पत्र मीडिया में जारी किया गया उसके तुरंत बाद ही शास्त्रीय नर्तकी और राज्यसभा सांसद सोनल मानसिंह, अभिनेत्री कंगना रानौत, गीतकार प्रसुन जोशी सहित 61 हस्तियों ने संप्रदायवादी धारा के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए। अब बिहार के मुज़फ्फरपुर पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज होने के साथ ही वे सब कटघरे में है जिन्होंने याद दिलाया कि असहमति के बिना लोकतंत्र संभव नहीं है। ये सभी बुद्धिजीवी अपने अपने क्षेत्र में बहुत सम्मानित हैं। उन पर लगाए राजद्रोह के आरोप, एक सार्वजनिक उपद्रव उत्पन्न कर रहे हंै और धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहे हैं।
किसी भी तर्कसंगत बात को दबाने के लिए किया गया कोई भी प्रयास लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखने को लेकर केस दर्ज होने से नाराजग़ी हुई है। श्याम बेनेगल, अदूर गोपालकृष्णन, कोंकणा सेन शर्मा, अपर्णा सेन और रामचंद्र गुहा जैसी हस्तियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई सार्वजनिक चिंता के मामले में पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए असहिष्णुता का बदसूरत चेहरा दिखाती है।
जनमत के लिए अपराधिक उपेक्षा और राजद्रोह के प्रावधान का स्पष्ट उपयोग अनेकवाद और सहिष्णुता के साथ नही है।
विवाद में एक और मोड आया जब इतिहासकार रोमिला थापर, लेखक के सच्चिदानंदन, अभिनेता नसीरूद्दीन शाह और लेखक सबा दीवान सहित 185 हस्तियों ने उन 40 बुद्धिजीवियों को अपना समर्थन दिया जिन्होंने भारत में बढ़ती असहिष्णुता पर चिंता व्यक्त करते और लोकतंत्र की रक्षा के लिए मतभेद व्यक्त करने की इज़ाज़त मांगते हुए पत्र लिखा था। यह पत्र याद दिलाता है कि प्रधानमंत्री संसद में मॉब लिंचिंग की आलोचना करते हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इस तरह के अपराधों को गैर-जमानती घोषित करने की आवश्यकता है, और कठोर सज़ा तेजी से और निश्चित रूप से दी जानी चाहिए। पत्र को आपत्तिजनक पाते हुए एक वकील सुधीर कुमार ओझा ने धारा 124ए (देशद्रोह) 153बी और आईपीसी की धारा 160,190, 290, 297 और 504 के तहत सदर पुलिस स्टेशन में 49 बुद्धिजीवियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। पिछले दिनों ओझा ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी अरविंद केजरीवाल आदि नेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। एफआईआर तर्कपूर्ण आवाज को दबाने की कोशिश है और सभी समझदार लोगों को इस पर नाराजग़ी होनी चाहिए, क्योंकि विचार व्यक्त करने के अधिकार के बिना लोकतंत्र संभव नहीं हो सकता ।
खाताधारकों की जान पर भारी पीएमसी बैंक घोटाला
करीब तीन साल पहले देश में अचानक जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि लोगों को अपने ही पैसे लेने के लिए कतारों में खड़ा होने पड़ेगा और राशि भी एक निश्चित मात्रा में ही मिलेगी। कमोवेश कुछ वैसी ही स्थिति आज पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) के खाताधारक झेल रहे हैं। उनपर अपने ही पैसे निकलने के लिए पाबंदियां लगा दी गयी हैं। इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि यह रिपोर्ट फाइल करने तक तीन लोगों की जान पैसे न निकाल पाने के कारण पैड हुए दबाव से जा चुकी है।
क्या है मामला
पीएमसी बैंक की कुल जमा 137 शाखाएं हैं। बात यह है की पीएमसी बैंक देश के टॉप-10 को-ऑपरेटिव बैंकों में शुमार है। आरोप है कि पीएमसी बैंक के मैनेजमेंट ने अपने नॉन परफॉर्मिंग एसेट और लोन वितरण के बारे में आरबीआई को गलत जानकारी दी। इसके बाद आरबीआई ने बैंक पर कई तरह की पाबंदी लगा दी। इन पाबंदियों के तहत लोग बैंक में अपनी जमा राशि सीमित दायरे में ही निकाल सकते हैं। आरोप है कि बैंक के कुछ अधिकारियों ने फर्जी तरीके से ऋण वितरित करने के लिए निजी कंपनी एचडीआईएल के साथ साठगांठ की जिससे बैंक को 4355 करोड़ रुपये का चूना लगा। हजारों निवेशक पैसे निकाल पाने में असमर्थ हो गये और उनका पैसा खतरे में पड़ गया।
मामला सामने आने के बाद 24 सितंबर को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नोटिस जारी कर बैंक पर छह महीनों के लिए लेनदेन समेत कई तरह का प्रतिबंध लगा दिया। इसके मुताबिक न तो बैंक कोई नया लोन जारी कर सकता है और न ही इसका कोई ग्राहक 25 हजार रुपये से अधिक की निकासी कर सकता था। इस मामले में कई गिरफ्तारियां हुईं हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) से संबंधित अन्य कंपनियों के बारे में जांच कर रहा है। रिजर्व बैंक ने 3 अक्टूबर को पीएमसी बैंक के ग्राहकों के लिए कैश निकालने की सीमा 10 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दी थी लेकिन बाद में इसमें फिर तब्दीली की गई और विथड्रॉल रकम की सीमा बढ़ाकर 40 हजार कर दिया गया। बैंक अधिकारियों का कहना है कि खाता धारकों के हित और बैंक का रिवाइवल उनकी पहली प्राथमिकता है।
लेकिन इस मामले का सबसे दर्नाक पहलु यह है कि पैसे न निकाल पाने से फ्रस्ट्रेशन में आये खाताधारकों के बीच जो तनाव पनपा है उसके चलते यह रिपोर्ट फाइल करने तक तीन लोगों की जान जा चुकी है। इनमें से दो की जान दिल का दौरा पडऩे से हुई जबकि एक ने तो आत्महत्या ही कर ली। सबसे पहला मामला 14 अक्टूबर को सामने आया जब एक खाताधारक संजय गुलाटी की दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गई। उनकी एक बेटी विशेष बच्ची (स्पेशल चाइल्ड) है और परिवार के सामने बहुत दिक्कत वाली स्थिति पैदा हो गयी है। गुलाटी को खाना खाने के दौरान की चक्कर आने के बाद अस्पताल ले जाय गया था लेकिन उन्हें डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था। इसके बाद से उनका परिवार गहरे सदमे में है। गुलाटी के साल के शुरू में नौकरी भी चली गयी थी। वे जेट एयरवेज में काम करते थे। संजय गुलाटी के बैंक में 90 लाख रुपये जमा हैं। गुलाटी के बाद 15 अक्टूबर को एक और खाताधारक मुलुंड के रहने वाले फत्तोमल पंजाबी (59) की दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गयी। फत्तोमल पंजाबी मुलुंड में हार्डवेयर और इलेक्ट्रिकल स्टोर चलाते थे और उन्होंने भी पीएमसी बैंक में पैसे जमा कराए हुए थे। उनकी मौत मंगलवार दोपहर साढ़े 12 बजे हुई।
मामला यहीं नहीं थमा। अब मुंबई के वरसोवा इलाके में रहने वाली 39 वर्षीय एक डॉक्टर जो कि पीएमसी में खाताधारक भी थीं की आत्महत्या कर ली। डॉक्टर योगिता बिजलानी (39) ने मंगलवार रात नींद की गोलियों की ओवरडोज के जरिए आत्महत्या कर ली। बताया जा रहा है कि योगिता पहले से ही डिप्रेशन में थीं और उनके भी एक करोड़ से ज्यादा रुपए पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक में जमा थे। हालांकि वरसोवा पुलिस ने इस आत्महत्या का संबंध पीएमसी बैंक घोटाले से होने से इनकार कर दिया। पुलिस का कहना है कि उन्होंने शुरुआती जांच में पाया गया है कि योगिता ने बीते साल अमेरिका में भी सुसाइड करने की असफल कोशिश की थी। आरबीआई की तरफ से एक निश्चित मात्रा में ही पैसे निकालने की पाबंदी के चलते इस बैंक के खाताधारक आंदोलन भी कर रहे हैं। कुछ दिन पहले जब वित्त मंत्री मुम्बई में थीं तो खाताधारकों ने भाजपा दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया था। इसके बाद सीतारमण आरबीआई के गवर्नर से भी मिलीं थीं।
भाजपा नेताओं के विरूद्ध मामलों में विपक्ष ने घेरा योगी सरकार को
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार और राज्य पुलिस ने जिस तरह से अपने उच्च प्रोफ़ाइल प्रमुख नेताओं- कुलदीप सिंह सेंगर (विधायक) और स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ बलात्कार के मामले दर्ज किए हैं, उसके बाद विपक्षी दलों ने सरकार पर गंभीर हमले किए हैं। दोनों मामलों में, जघन्य अपराध के पीडि़तों को न्याय मांगने के लिए आगे आने की कीमत चुकानी पड़ी।
सेंगर मामले में स्थानीय पुलिस ने पीडि़त के पिता को मनगढ़ंत मामले में फंसाया और पुलिस हिरासत में उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी और पीडि़त एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में जीवन यापन के लिए संघर्ष करती रही।साक्ष्य नष्ट करने के एक कथित प्रयास के बाद मामले में एक गवाह की मौत हो गई। दुर्घटना में मौके पर पीडि़त और उसके अधिवक्ता को भी जानलेवा चोटें आईं और अभी भी एम्स में भर्ती हैं।
चिन्मयानंद मामले में पीडि़त को आईजी रैंक के अधिकारी नवीन अरोड़ा की अध्यक्षता वाली एसआईटी (विशेष जांच दल) द्वारा उसके दोस्तों के साथ जबरन वसूली और ब्लैकमेल करने के आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के पूरे प्रयासों से आरोपों की गंभीरता पर पानी फिरता दिख रहा है क्योंकि उन्होंने बलात्कार की गंभीर (धारा 376) को आईपीसी की धारा 376-सी में बदल दिया है, जिसका मतलब है कि संभोग में किसी व्यक्ति द्वारा बलात्कार की धारा नहीं है।
28 अगस्त को, भाजपा के पूर्व सांसद स्वामी चिन्मयानंद को 23 वर्षीय कानून की छात्रा के अपहरण और आपराधिक धमकी के लिए बुक किया गया था, जिसने एक वायरल वीडियो में नेता पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया था, चिन्मयानंद को राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के काफी हंगामे के बाद, 20 सितंबर 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया था।
विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि पूरी सरकारी मशीनरी चिन्मयानंद को ढालने की कोशिश कर रही थी क्योंकि वह आरएसएस परिवार के करीबी सहयोगी हैं जो तीन बार भाजपा एम.पी. और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में आंतरिक सुरक्षा राज्य मंत्री का कार्यभार संभाल रहे थे। वह इस अवधि के दौरान उत्तर प्रदेश में जौनपुर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य थे। वह राम मंदिर आंदोलन के स्तंभों में से एक थे और उमा भारती, महंत अवैद्यनाथ, जी.एम. लोदा और अशोक सिंघल के साथ 25 अक्टूबर 1990 को गोंडा में गिरफ्तार हुए थे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के समक्ष आक्रामक तरीके से विहिप के प्रतिनिधिमंडल का भी नेतृत्व किया था।
20 सितंबर को कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने तीखा हमला करते हुए कहा, “सरकार ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ कार्रवाई पीडि़त महिला के आत्मदाह की धमकी के बाद की।” “यह जनता और पत्रकारिता की ताकत थी, जिसने चिन्मयानंद को गिरफ्तार करवाया।”
“भाजपा सरकार इतनी मोटी चमड़ी वाली है कि उसने तब तक कार्रवाई नहीं की जब तक कि बलात्कार पीडि़ता ने यह नहीं कहा कि वह खुद आत्महत्या कर लेगी। यह जनता की और पत्रकारिता की ताकत है कि एसआईटी को चिन्मयानंद को गिरफ्तार करना पड़ा।”
भाजपा नेता को उत्तर प्रदेश पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने 20 सितंबर 2019 को शाहजहांपुर में उनके आवास से गिरफ्तार किया था।एक महीने तक चलने वाले मोड़ और ट्विस्ट के बाद राष्ट्रीय सुर्खियों में आए 72 साल के चिन्मयानंद और 23 वर्षीय महिला लॉ स्टूडेंट दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
यह सब तब शुरू हुआ जब 23 अगस्त को फेसबुक पर एक वीडियो वायरल होने के बाद, शाहजहाँपुर कॉलेज की एक लॉ स्टूडेंट ने आरोप लगाया कि उसका शक्तिशाली लोगों द्वारा शोषण किया जा रहा है। इस वीडियो को सोशल मीडिया पर खूब प्रचारित किया गया, जिसमें महिला ने पीएम नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से उनके साथ न्याय करने के लिए मदद मांगी।
“संत समाज का एक बड़ा नेता जिसने कई अन्य लड़कियों के जीवन को नष्ट कर दिया है और मुझे मारने की धमकी भी दी हैज् मैं योगी जी और मोदी जी से मेरी मदद करने का अनुरोध कर रही हूं। उसने मेरे परिवार को मारने की धमकी दी है। कृपया मेरी मदद करें, ” पीडि़त ने 24 अगस्त को शाम 4 बजे अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किए गए वीडियो में कहा। उसने यह भी दावा किया कि उसके पास प्रभावशाली स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ सबूत हैं और उसने आरोप लगाया कि जो जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक को अपनी जेब में रखने का दावा करता है। उसने वीडियो में चिन्मयनाद का स्पष्ट रूप से नाम नहीं लिया था। वह अगले दिन लापता हो गई।
चिन्मयानंद शाहजहाँपुर के स्वामी शुकदेवानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय की प्रबंध समिति के अध्यक्ष हैं, जहाँ महिला ने कानून की पढ़ाई की और काम में लगी रहीं। चिन्मयानंद का शाहजहाँपुर में एक आश्रम है और शहर में पाँच कॉलेज हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश में भी उनके आश्रम हैं। 2011 में, चिन्मयानंद पर उनके आश्रम के एक सहवासी ने बलात्कार का आरोप लगाया था।
फेसबुक पर वीडियो पोस्ट करने के ठीक बाद महिला भूमिगत हो गईं और उनके पिता ने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ उनके अपहरण की शिकायत दर्ज कराई। पिता ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी बेटी का चिन्मयानंद द्वारा यौन शोषण किया गया था। अपहरण और आपराधिक धमकी के लिए धारा 364 और 506 के तहत एक मामला दर्ज किया गया था, लेकिन उनकी शिकायत से पहले, पुलिस ने चिन्मयानंद के वकील ओम सिंह द्वारा दर्ज कराई गई एक शिकायत की अनुमति दी, “चिन्मयानंद ने 22 अगस्त को मैसेजिंग ऐप व्हाट्सएप पर एक अज्ञात नंबर से एक टेक्स्ट संदेश प्राप्त किया, जिसमें कथित तौर पर धमकी दी गई थी कि अगर वह 5 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करता है तो उसे नग्न और अश्लील परिस्थितियों में दिखाने वाले वीडियो ऑनलाइन लीक हो जाएंगे। पुलिस।”
बाद में स्थानीय मीडिया से बात करते हुए चिन्मयानंद ने कहा कि उन्हें फंसाया जा रहा है और आरोप लगाया कि महिला उनके खिलाफ साजिश का हिस्सा थी।उन्होंने दावा किया कि यह पूर्व सांसद से पैसे निकलवाने की कोशिश थी।”मामला योगी आदित्यनाथ सरकार को बदनाम करने का था। पहले कुलदीप सिंह सेंगर को फंसाया गया और अब मुझे निशाना बनाया जा रहा है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर चिन्मयानंद के बयान पर विश्वास किया जाए कि यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक साजिश है, तो उन्हें अस्थिर करने से राजनीतिक रूप से कौन लाभान्वित हो सकता है? उनके बीच निकटता एक छिपी हुई बात नहीं है क्योंकि योगी आदित्यनाथ उनके पूर्व सहवासी द्वारा दायर चिन्मयानंद के खिलाफ लंबित एक और बलात्कार के मामले को वापस लेने के रास्ते की कोशिश की। पीडि़त ने इसका विरोध किया और भारत के मुख्य न्यायाधीश और यूपी के मुख्य न्यायाधीश को लिखा। अदालत ने भी वापसी के आदेशों को नहीं माना और मुकदमे को आगे बढ़ाया।
इस बीच जब इस मामले पर राष्ट्रीय ध्यान जाना शुरू हुआ, तो सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक समूह ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से लापता कानून के छात्र की मीडिया रिपोर्टों के बारे में संज्ञान लेने के लिए कहा। वकीलों ने कहा कि वे उन्नाव बलात्कार मामले को दोहराना नहीं चाहते हैं। वकीलों की दलील ने इस मामले की उन्नाव बलात्कार मामले में समानता की बात नोट की जिसमें कुलदीप सिंह सेंगर मुख्य आरोपी हैं। उन्नाव बलात्कार मामले ने गवाहों की मौत की एक श्रृंखला देखी है।
पुलिस ने कहा कि शाहजहाँपुर की लडक़ी को नई दिल्ली ले जाया गया, साथ में एक लडक़ा था जिसने चिन्मयानंद से 5 करोड़ रुपये की मांग की थी। इस बीच, पुलिस ने छेड़छाड़ और सबूतों से छेड़छाड़ से बचने के लिए शाहजहाँपुर में महिला छात्रावास के कमरे को सील कर दिया। लापता होने के चार दिन बाद, महिला को 30 अगस्त को एक दोस्त के साथ राजस्थान में पाया गया था। पुलिस ने कहा कि महिला का अपहरण नहीं हुआ था, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अदालत में पेश करने के लिए कहा।
इसके बाद कानून के छात्र के साथ सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों की एक बंद दरवाजे की बैठक हुई। बैठक में, न्यायाधीशों ने दिल्ली में महिला के लिए सुरक्षित और आरामदायक आवास के लिए कहा। उसके माता-पिता को राजधानी लाने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया। न्यायाधीशों ने कहा कि जब तक वह अपने माता-पिता को नहीं देखती, तब तक किसी को भी उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने शाहजहाँपुर की महिला को अन्य कॉलेजों में स्थानांतरित करने की अनुमति देते हुए कहा कि उसका “भविष्य महत्वपूर्ण है”
2 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच का आदेश दिया और एक विशेष जांच दल (स्ढ्ढञ्ज) का गठन किया। एसआईटी ने कॉलेज का दौरा किया और शिक्षकों और छात्रों से बात की। टीम ने आश्रम का भी दौरा किया, लेकिन चिन्मयानंद गायब रहे।
8 सितंबर को, कानून की छात्रा ने आगे आकर दिल्ली में चिन्मयानंद के खिलाफ बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई। महिला ने आरोप लगाया कि स्वामी चिन्मयानंद ने मेरे साथ बलात्कार किया और एक साल तक मेरा शारीरिक शोषण भी किया। कानून की छात्रा ने आरोप लगाया कि वह पहले बलात्कार की शिकायत दर्ज कराना चाहती थी, लेकिन यूपी पुलिस ने उसे ठुकरा दिया, इसलिए उसने दिल्ली में मामला दर्ज कराया।
पीडि़ता ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया जहां उसने खुलासा किया कि चिन्मयानंद ने एक साल तक उसका शारीरिक शोषण किया। उसके परिवार को आरोपियों से धमकी मिल रही थी। उसके छात्रावास के सभी साक्ष्य, मीडिया के सामने खोलने को कहा। एक दिन बाद, एसआईटी ने महिला के छात्रावास के कमरे को खोला और सबूत एकत्र किए। छात्र ने दिल्ली पुलिस और मजिस्ट्रेट को एक बयान दिया।
पीडि़ता ने आरोप लगाया कि उसे चिन्मयानंद द्वारा बार-बार फिल्माया गया और बलात्कार किया गया। वह अपने कॉलेज में प्रवेश के लिए चिन्मयानंद से मिलीं जिसके बाद उन्होंने उनके प्रवेश की व्यवस्था की। “उसने मुझे भर्ती कराया, मुझे लाइब्रेरी में नौकरी दी और फिर उसे हॉस्टल में स्थानांतरित करने के लिए कहा,” उसने आरोप लगाया कि उसे शॉवर लेते समय फिल्माया गया था, जिसका वीडियो उसे ब्लैकमेल करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
पीडि़ता ने एक महिला रिपोर्टर के साथ एक साक्षात्कार में आरोप लगाया कि सुबह 6 बजे अनियंत्रित मालिश और 2.30 बजे “जबरन सेक्स” के लिए आरक्षित किया गया था। उसे चिन्मयानंद के कमरे में उसके बंदूकधारियों द्वारा ले जाया जाता, जो बाद में उसे वापस छोड़ देते।
पेन ड्राइव में पुलिस को विस्फोटक वीडियो साक्ष्य सौंपे गए। महिला ने कहा कि उसने चिन्मयानंद को उजागर करने के लिए अपने चश्मे में जासूसी कैमरे का उपयोग करके फिल्म बनाना शुरू कर दिया।
12 सितंबर को, एसआईटी ने आखिरकार चिन्मयानंद से पूछताछ की, जिसके बाद चिन्मयानंद के आश्रम के दो कमरे, जहां कथित मामला हुआ था, को सील कर दिया गया था।
आगे क्या हुआ?
14 सितंबर को छात्रा ने अपने आरोपों का समर्थन करने के लिए एसआईटी को 43 वीडियो युक्त एक पेन ड्राइव दिया। महिला ने जांच टीम को बीए-एलएलबी के छात्र के बारे में बताया, जिसे भी प्रताडि़त किया जा रहा था और उत्पीडऩ के बारे में उससे बात की थी।
इस बीच, और वीडियो टम्बल आउट हुए। एक में, चिन्मयानंद को महिला से मालिश करवाते हुए देखा गया था, लेकिन दूसरे ने ‘जबरन वसूली’ संबंधी बातें दिखाईं। वीडियो की सत्यता स्थापित रूप से स्थापित हो गई। अदालत ने एसआईटी को वीडियो क्लिप में दिखाई देने वाले लोगों के आवाज के नमूने लेने की अनुमति दी।
एसआईटी अभी भी जांच कर रही है और मुकदमे में आरोपों को प्रमाणित करने के लिए सबूत हासिल कर रही है। अदालत ने दोनों मामलों में आरोपी व्यक्तियों को जमानत नहीं दी है।
पंजाब में हथियार भेजने के लिए पाकिस्तान ने किये ड्रोन इस्तेमाल
पंजाब पुलिस ने तरनतारन जिले के खलरा गांव के पास गिराए गए हथियारों में ड्रोन के इस्तेमाल से जुड़े एक आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया है। हथियार स्पष्ट रूप से पंजाब और कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने के लिए थे, जो कि वर्तमान में धारा 370 के निरस्त होने के बाद गंभीर स्थिति में है । पंजाब में पिछले कुछ समय से आतंकी गतिविधियां देखी गई हैं, कुछ समय पहले पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हमला हुआ था। पठानकोट की घटना साल 2016 में हुई थी और उससे एक साल पहले 2015 में पंजाब के दीनानगर में आतंकवादी गतिविधियां देखी गई थीं।
पंजाब पुलिस ने राज्य में हथियारों को गिराने के लिए ड्रोन का उपयोग करने की घटना को दो कारणों से बहुत गंभीरता से लिया है-एक तो पंजाब की पाकिस्तान से निकटता और दूसरा पंजाब के पिछले इतिहास, जहां तक आतंकवादी गतिविधियों का संबंध है। वर्तमान मामले में, पुलिस को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की करतूत पर शक है। पाकिस्तान के साथ पंजाब की 550 किलोमीटर लंबी सीमा है और आतंकवादियों की घुसपैठ एक नियमित मामला है। पंजाब राज्य, हथियारों और ड्रग्स की सप्लाई करने के लिए आतंकी संगठनों के लिए एक ज्ञात लक्ष्य है। जम्मू और कश्मीर के साथ पंजाब की सीमा आतंकी समूहों के लिए लॉन्च पैड के रूप में उपयोग करने और शांति को भंग करने के लिए असुरक्षित बनाती है।
खुफिया एजेंसियों ने इस संबंध में गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कहा गया है कि सितंबर में पंजाब के अमृतसर में बड़ी संख्या में ऐके -47 असॉल्ट राइफल और ग्रेनेड को ड्रोन द्वारा गिराया गया था। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, अब तक आठ घटनाओं का पता चला है और ये हथियार उन आतंकवादियों के लिए थे, जो अनुच्छेद 370 के उल्लंघन के बाद जम्मू-कश्मीर में परेशानी पैदा करने के लिए इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। रिपोर्ट में सीमा सुरक्षा बल द्वारा सतर्कता पर सवाल उठाया गया है कि बल अपने ऑपरेशन के क्षेत्र में किसी भी ड्रोन गतिविधि की उपस्थिति का पता लगाने में सक्षम क्यों नहीं था। पिछले सप्ताह पंजाब के दो और स्थानों पर, हज़ारसिंह वाला और तेंडिवाला गाँव में ड्रोन का पता चला था।
पंजाब सरकार के एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि उसने पिछले दो महीनों के दौरान सीमा पार से हथियार गिराने में इस्तेमाल किए गए दो ड्रोन बरामद किए हैं। एक आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि एक ड्रोन अगस्त में बरामद किया गया था और दूसरा सितंबर में तरनतारन के झब्बल शहर से जली हुई स्थिति में जब्त किया गया था।
पंजाब पुलिस ने राज्य के सीमावर्ती इलाकों में हथियारों और गोला-बारूद का इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तानी ड्रोन बरामद करने के बाद, हुसैनीवाला सेक्टर में बीएसएफ ने दो उच्च-उड़ान वाले ड्रोन देखे । बीएसएफ के एक अधिकारी ने कहा कि बीएसएफ के जवानों ने चार बार पाकिस्तानी ड्रोन को देखा, जबकि एक बार इसे भारतीय सीमा के अंदर लगभग एक किलोमीटर तक देखा गया।
आधिकारिक सूत्रों ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के उन्मूलन के बाद पंजाब में हथियारों और गोला-बारूद को गिराने के प्रयासों के अलावा आतंकवादियों को भारत में धकेलने पर आमादा है। भारत-पाक सीमा पर बढ़ी हुई सुरक्षा के बाद, पाकिस्तान स्थित आतंकी समूह अब पंजाब का इस्तेमाल हथियारों, गोला-बारूद, नशीले पदार्थों और नकली मुद्रा को डंप करने के लिए कर रहे हैं।
इन मामलों में, भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने के तुरंत बाद, ड्रोन, जल्द ही पाकिस्तान लौट आए।
बीएसएफ अधिकारियों ने पंजाब पुलिस को एक तीसरे ड्रोन के बारे में भी बताया था जिसे पिछले सप्ताह भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करते देखा गया था। हालांकि, पुलिस किसी भी ड्रोन का पता लगाने में विफल रही। 1 अक्टूबर, 2019 को फाजिल्का सेक्टर में एक पाकिस्तानी ड्रोन भी देखा गया था। 13 अगस्त, 2019 को भी अमृतसर के मुहावा गांव में एक पाकिस्तानी ड्रोन धान के खेत के अंदर दुर्घटनाग्रस्त पाया गया था। 25 सितंबर को पुलिस ने तरनतारन में झबल इलाके से एक पाकिस्तानी ड्रोन के अवशेष बरामद किए थे। पुलिस जांच में पाया गया है कि खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (्र्यंस्न) और खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (्यरुस्न) के आतंकवादियों ने नकली मुद्रा के अलावा हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति भेजने के लिए कम से कम चार ड्रोन का इस्तेमाल किया था। इन घटनाओं के मद्देनजर सुरक्षा एजेंसियां, सीमा सुरक्षा बल, पुलिस और सैन्य खुफिया पाकिस्तानी ड्रोनों की आवाजाही पर नजर बनाए हुए हैं। पुलिस और सेना के अधिकारियों ने कहा है कि भारतीय क्षेत्र में घुसने वाले किसी भी संदिग्ध ड्रोन को मार गिराया जाएगा।
किसी भी मिश्रण से बचने के लिए, लोगों को सीमावर्ती गांवों में शादियों के दौरान ड्रोन का उपयोग नहीं करने की चेतावनी दी गई है। पुलिस ने सैन्य और वायु सेना स्टेशनों के पास ड्रोन उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बीएसएफ ने सीमा क्षेत्र के निवासियों को पुलिस या बीएसएफ अधिकारियों को सूचित करने के लिए भी संवेदनशील बनाना शुरू कर दिया है यदि वे शून्य रेखा के पास कुछ भी असामान्य देखते हैं।
इस बीच, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि यह घटना अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पाकिस्तान के भयावह डिजाइन के लिए एक नया और गंभीर आयाम है। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री से जल्द से जल्द समस्या से निपटने का आग्रह किया। अपने आधिकारिक हैंडल से एक ट्वीट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को टैग करते हुए, कैप्टन अमरिंदर ने लिखा, ”अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के बाद हथियारों और गोला-बारूद की खेपों को छोडऩे वाले पाकिस्तान मूल के ड्रोन की हाल की घटनाएं पाकिस्तान के भयावह डिजाइन पर एक नया और गंभीर आयाम है। ञ्च्रद्वद्बह्लस्द्धड्डद्ध जी से अनुरोध हैं कि वह सुनिश्चित करें कि यह ड्रोन समस्या जल्द से जल्द निपटाई जाए।” केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री श्रीपाद येसो नाइक ने कहा कि “भारत इससे निपटने में सक्षम है और चिंता का कोई मुद्दा नहीं है।” सेना और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने भी ड्रोन की रिपोर्ट के बाद पूरी भारत-पाक सीमा और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर अलर्ट जारी कर दिया था। पूछताछ के दौरान एकत्रित जानकारी के अनुसार, ड्रोन की ऊंचाई और वजन के परिणामस्वरूप ड्रोन उतरा, जिसके बाद आतंकवादियों ने वाहक को नष्ट कर दिया या उन्हें छिपा दिया। पंजाब पुलिस की जांच के अनुसार, पंजाब के तरनतारन जिले में जब्त किए गए हथियारों, गोला-बारूद और नकली मुद्रा को जब्त करने के लिए 10 किलोग्राम तक वजन उठाने में सक्षम जीपीएस-फिट ड्रोन पाकिस्तान से सात से आठ बार उड़ान भर चुके हैं।
राज्य के पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता ने बताया कि प्रारंभिक जांच में पता चला है कि हाल ही में पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा लॉन्च किए गए ड्रोन और राज्य प्रायोजित जिहादी और खालिस्तान समर्थक आतंकवादी संगठनों को पाकिस्तान से लगी सीमा पर हथियारों को पहुंचाया गया था।
डीजीपी ने कहा कि ‘बड़े पैमाने पर घुसपैठ जम्मू और कश्मीर, पंजाब और भारतीय भीतरी इलाकों में आतंकवाद और उग्रवाद को बढ़ाने के उद्देश्य से की जा रही है, जो घाटी में हाल के घटनाक्रमों के मद्देनजर है।’
सुविधाजनक आवाजाही के लिए नई एकीकृत टोलिंग व्यवस्था
ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया टीसीआई और आईआईएम कोलकाता की एक रिपोर्ट कहती है कि ‘‘राजमार्गों पर धीमी गति और टोल प्लाजा पर देरी से देश में प्रति वर्ष लगभग 60,000 करोड़ रुपये खर्च होते हैं।’’
वास्तव में, चीजें एक ऐसे चरण में पहुंच गई थीं, जहां परिवहन उद्योग ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को बताया था कि वे इस टोल प्रणाली को रोकने के लिए प्रति वर्ष 14,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने को तैयार हैं।
अब केंद्रीय सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने वन नेशन वन टैग – फास्टैग में एक समाधान निकाला है, ताकि देश भर में एक एकीकृत इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली के लिए प्रक्रिया को रोल आउट किया जा सके। फास्टैग का उपयोग करने के लिए एक सरल है, पुन: लोड करने योग्य टैग जो टोल शुल्क कटौती को सक्षम करता है और वाहनों को नकदी लेनदेन के लिए बिना रुके टोल प्लाजा से गुजरने देता है। यह एक प्रीपेड खाते से जुड़ा हुआ है जिसमें से लागू टोल राशि में कटौती की जाती है।
टैग रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन तकनीक को काम में लेता है और टैग अकाउंट के सक्रिय होने के बाद वाहन की विंडस्क्रीन पर चिपका दिया जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्गों पर परेशानी मुक्त यात्रा के लिए एक सही समाधान है।
मंत्रालय के राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह कार्यक्रम के तहत, राष्ट्रीय राजमार्गों के टोल प्लाजा पर टोल संग्रह फास्टैग के माध्यम से किया जाता है। हालांकि, राज्य राजमार्गों टोल प्लाजा पर संग्रह मैन्युअल रूप से या अन्य टैग के माध्यम से किया जाता है। इससे सडक़ उपयोगकर्ताओं को असुविधा होती है। इसीलिए, मंत्रालय राज्यों को फस्टैग में आने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, ताकि पूरे देश में परिवहन का निर्बाध आवागमन सुनिश्चित हो सके। इसके लिए, एनईटीसी कार्यक्रम (फास्टैग) के तहत राज्य और सिटी टोल प्लाजा को शामिल करने के लिए योजना दिशानिर्देश भारतीय राजमार्ग प्रबंधन निगम लिमिटेड द्वारा सभी राज्यों को जारी किए गए थे। योजना में भाग लेने वाले राज्य अधिकारियों और एजेंसियों को छोटे बदलाव का समय प्रदान किया गया है, जो उन्हें मजबूत फास्टैग समाधान का हिस्सा बनने की अनुमति देता है जो पहले से ही हर रोज लगभग 10 लाख लेनदेन के साथ 6 मिलियन टैग का समर्थन करता है। । योजना के तहत भारतीय राजमार्ग प्रबंधन निगम लिमिटेड प्रत्येक टोल प्लाजा पर दो लेन पर ईटीसी संरचना की स्थापना के 50 फीसद के लिए अधिकतम 20 लाख रुपये के अधीन वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है ।
आईएचएमसीएल ने फास्टैग के साथ एकीकरण के लिए कई राज्यों और प्राधिकरणों के साथ समझौता ज्ञापनों का आदान-प्रदान किया। इस तथ्य के कारण यह कदम विशेष महत्व रखता है कि इस साल 1 दिसंबर से सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल संग्रह अनिवार्य रूप से केवल फास्टैग के माध्यम से किया जाएगा।
फास्टैग के साथ ई-वे बिल प्रणाली को एकीकृत करने के लिए आईएचएमसीएल और जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) के बीच एक और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं। यह जीएसटी ई-वे बिल (ईडब्ल्यूबी) प्रणाली के लिए ट्रैक और ट्रेस तंत्र में मौजूदा चुनौती पर काबू पाने और इसकी निगरानी में दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है। यह एकीकरण अप्रैल 2020 से अखिल भारतीय आधार पर अनिवार्य हो जाएगा। यह जीएसटी ई-वे बिल सिस्टम के लिए अधिक कुशल ट्रैक और ट्रेस सिस्टम की अनुमति देगा, और टोल प्लाजा पर राजस्व के रिसाव की जांच करेगा। इस एकीकरण के साथ राजस्व अधिकारी माल वाहनों को ट्रैक करने में सक्षम होंगे कि वे वास्तव में निधार्रित रास्ते पर यात्रा कर रहे हैं या नहीं। ट्रांसपोर्टर प्रत्येक टोल प्लाजा पर उत्पन्न एसएमएस अलर्ट के माध्यम से अपने वाहनों को ट्रैक करने में भी सक्षम होंगे।
केंद्रीय सडक़ परिवहन और राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री नितिन गडकरी ने टिप्पणी की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़े पैमाने पर परिवहन सुधारों पर बहुत ज़ोर दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि वाहनों के लिए एकीकृत और देशव्यापी इंटर-ऑपरेटिव आरएफआईडी आधारित टैग इस दिशा में एक बड़ा कदम है। इस प्रणाली के तहत किसी वाहन के विंडस्क्रीन पर चिपकाए गए उसी फास्टैग का उपयोग देश के सभी टोल प्लाजा पर टोल का भुगतान करने के लिए किया जा सकता है। यह पहल बाधाओं को दूर करेगी और यातायात के निर्बाध आवागमन और उपयोगकर्ता शुल्क के कुशल संग्रह को सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा, इससे टोल प्लाजा पर इंतजार करते समय ईंधन के नुकसान को कम करके देश की जीडीपी हानि को कम किया जा सकता है। यह उपाय समय की बचत है, और प्रदूषण को काफी हद तक नियंत्रित करता है। मंत्री ने घोषणा की कि बहुत जल्द, किसी को भी देश में कहीं भी टोल प्लाजा पर इंतजार करने की आवश्यकता नहीं होगी।
मंत्री ने आगे कहा कि टोल भुगतान, जैसे कि ईंधन भुगतान, पार्किंग शुल्क, आदि के अलावा विभिन्न वाहन संबंधी भुगतान करने के लिए फास्टैग के उपयोग को सक्षम करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि फास्टैग को बाहन के ‘आधार‘ के रूप में लागू किया जा रहा है। सडक़ परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री (सेवानिवृत्त) वीके सिंह ने वन नेशन वन टैग – फास्टैग ’योजना के लाभों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, टोल प्लाजा पर निर्बाध यात्रा करने से यात्रा में आसानी होगी। उन्होंने इस क्रांतिकारी विचार को शुरू करने के लिए सभी हितधारकों की सराहना की, जो कि समग्र राष्ट्रीय राजमार्ग विकास योजना में बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाला है।
वर्तमान में, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) सेंट्रल क्लियरिंग हाउस के रूप में कार्य कर रहा है और 23 सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक फास्टैग जारी कर रहे हैं। फास्टैग के उपयोग के लिए सडक़ उपयोगकर्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 2.5 फीसद का कैशबैक दिया जा रहा है। फास्टैग 490 से अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग टोल प्लाजा और चयनित 39़ राज्य राजमार्ग टोल प्लाजा पर स्वीकार्य है। पिछले महीने तक 6 मिलियन से अधिक फास्टैग जारी किए गए थे, जिसकी स्थापना के बाद से 12,850 करोड़ रुपये से अधिक का कुल ईटीसी संग्रह है। सितंबर 2019 तक सफल ईटीसी लेनदेन की कुल संचयी संख्या 5540.67 लाख से अधिक है।
आईएचएमसीएल और एनएचएआई ने फास्टैग ग्राहकों को समाधान प्रदान करने के लिए माई फास्टैग मोबाइल ऐप विकसित किया है। ऐप फास्टैग को ग्राहक की पसंद के बैंक खाते से जोडऩे में मदद करता है। आज एनएचएआई ने प्रीपेड वॉलेट भी लॉन्च किया गया, जिसमें ग्राहकों को अपने फास्टैग को अपने बैंक खातों से लिंक नहीं करने का विकल्प दिया गया। ऐप की अन्य विशेषताओं में बैंक विशिष्ट फास्टैग रिचार्ज शामिल है – जारी किए गए 80 फीसद से अधिक फास्टैग को इस सुविधा के साथ रिचार्ज किया जा सकता है, जारीकर्ता बैंकों के लिए ग्राहक लॉगिन पृष्ठ के लिए एकल पोर्टल, विभिन्न बैंकों द्वारा पॉइंट-ऑफ-सेल स्थान के लिए खोजें, एनईटीसी कार्यक्रम के तहत ऑपरेशनल टोल प्लाजा की सूची, और ग्राहक सहायता टोल-फ्री नंबर।
भारत में एक करोड़ से अधिक ट्रक और बसें पंजीकृत हैं और टोल प्लाजा केवल बेहतर सडक़ों के बावजूद यातायात को धीमा करते हैं। आरोप हैं कि टोल का भुगतान करने वाले वाहनों की अधिक संख्या के कारण टोल इक_ा करने और लागत वसूलने में लंबा समय लगता हेै। तथ्य बताते हैं कि प्रति वर्ष भारत में पंजीकृत वाहनों की संख्या में 10 फीसद की वृद्धि हुई है लेकिन राजमार्गों पर टोल का भुगतान करने वाले वाहनों की संख्या वास्तव में कुछ कम हो गई है। टोल प्लाजा पर वेटिंग टाइम को कम करते हुए वन नेेशन वन टैग – फास्टैग भी पारदर्शिता भी लाएगा।
धारा ३७० दो देशों के बीच एक संधि: मसूदी
प्रधानमंत्री ने हमे बताया कि धारा 370 को रद्द करने जैसा कुछ नहीं होने जा रहा है।
कश्मीर में हाल ही में हुए संसद चुनावों में हसनैन मसूदी सबसे बड़े घातक सिद्ध हुए हैं। उन्होंने महबूबा मुती को उनके ही राजनीतिक गढ़ दक्षिण कश्मीर में हराया। तहलका के साथ साक्षात्कार में मसूदी ने रियाज वानी को बताया कि प्रधानमंत्री ने धारा 370 को निरस्त करने से तीन दिन पहले नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं के साथ अपनी बैठक में उन्हें आश्वासन दिया था कि केंद्र सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है। मसूदी ने कहा कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति पर राजनीतिक और कानूनी रूप से हमला करेगी।
क्या धारा 370 का खण्डन निर्विवादित तथ्य है?
नहीं यह नही है। सबसे पहले धारा 370 और यह कश्मीर को कैसे मिला इसके बारे में बहुत कुछ दुष्प्रचार है। इसे कश्मीर को अनुदत्त नहीं किया गया और न यह उपहार है। यह एक हिंदू शासक और हिंदू प्रधानमंत्री के बीच का समझौता था। तब कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने कुछ शर्तों पर भारत में शामिल होने का फैसला किया और उन शर्तों को दूसरे पक्ष ने स्वीकार कर लिया और यह एक समझौता हुआ। परिग्रहण की शर्तें धारा 370 में परिलक्षित हुई। यह उस समय दो स्वतंत्र देशों के बीच एक संधि के रूप में था क्योंकि तब जम्मू और कश्मीर स्वतंत्र था इसलिए इसे एक तरफा वापिस नहीं लिया जा सकता। महाराजा ने सब कुछ समर्पण नहीं किया था। उन्होंने नई दिल्ली को केवल तीन विषयों – मुद्रा, रक्षा और संचार पर कानून बनाने की शक्ति दी थी। यह एक और समझौते द्वार पूरक था – 1952 का दिल्ली समझौता। दिल्ली समझौता फिर से दो राज्यों के प्रमुखों के बीच एक ड्राइंग रूम समझौता नहीं था। यह दो सरकारों के बीच समझौता था। यह मंत्रिपरिषद द्वारा सहायता प्राप्त कश्मीर के राष्ट्रपति और भारत के राष्ट्रपति के बीच था। समझौते को संसद में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री और जम्मू कश्मीर सविधानसभा में जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा पेश किया गया था। भारत के अधिकांश लोग इस बात से अवगत नहीं हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोग 1952 तक भारत का हिस्सा नहीं थे। वे जम्मू-कश्मीर के नागरिक थे। हमारा नागरिकता कानून अभी भी 1928 में कश्मीर के महाराजा द्वारा बनाया गया कानून है इसलिए आप हितधारकों के साथ किसी तरह का संवाद किए बिना इसे वापस नहीं ले सकते।
यदि हम सरकार के कथन से गुजरते हैं, कि उसने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को वापस लेने के लिए एक संवैधानिक मार्ग का अनुसरण किया है?
नहीं। यह नहीं है सरकार ने संवैधानिक मार्ग का पालन नहीं किया है। एक राष्ट्रपति शासन में, भारत के राष्ट्रपति मंत्रियों कीे परिषद के सहयोग और सलाह के साथ राज्य के मामलों को चलाते हैं। अब यहाँ राष्ट्रपति शासन में, राष्ट्रपति का कहना है कि उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए राज्यपाल से सहमति मांगी है, जब कि वे स्वयं राज्य का संचालन कर रहे हैं। वह खुद से परामर्श नहीं कर सकते। अनुच्छेद 370 के संदर्भ में, यदि संसद जम्मू या राष्ट्रपति कश्मीर राज्य में एक प्रावधान शुरू करने का फैसला करती है या राष्ट्रपति करता है और यह संवैधानिक प्रावधान रक्षा, विदेशी मामलों और संचार की चार दीवारों के भीतर आता है, तो वह उसे जम्मू और कश्मीर की सरकार के साथ परामर्श करके ही कर सकते हैं।
संघ सरकार आगे बढ़ी और उसने इसे पूरा भी किया है?
हां, उन्होंने ऐसा किया है। मैंने संसद में कहा कि कानून मंत्रालय यहां बैठा है और मैं उनसे पूछता हूं कि क्या इस तरह से चीजें होनी चाहिए। और क्या यह संवैधानिक तरीका था? कोई जवाब नहीं था। धारा 370 पर राष्ट्रपति ने खुद की सहमति मांगी है। यह ऐसी चीज है जो संविधान से अलग है। यह नहीं किया जा सकता। प्रारंभ में जब संविधान बनाया गया था, तो संविधान सभा ने अनुच्छेद 370 को संसद की संशोधन शक्ति के अधीन बनाने के लिए इसे उचित नहीं ठहराया था। उन्होंने कहा कि संसद की तुलना में यह अधिक पवित्र है, यहां तक कि संसद भी इसमें संशोधन नहीं कर सकती है।
ये अब केवल शब्द मात्र हैं?
नहीं नहीं। चूंकि मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि धारा 370 का हनन नहीं होगा। हमारे लिए, कानूनी मोर्चे पर, यह सवाल अभी भी बचा हुआ है। अब राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बारे में, आप यह कैसे कर सकते हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 3 आपको दो केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर एक नया राज्य बनाने, किसी राज्य की सीमाएँ खींचने या एक नया राज्य बनाने की शक्ति देता है। शक्ति एक नए राज्य का निर्माण करना है, न कि किसी राज्य का विघटन करना और उसे केंद्र शासित प्रदेश में बदलना। यहां केंद्र ने ऐसा किया है और राज्य विधानसभा के परामर्श के बिना। इसने गंभीर संवैधानिक मुद्दे पैदा किए हैं और यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी आधा दर्जन याचिकाएं खारिज नहीं की हैं। इसने इन्हें सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है, इन्हें एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया है और पूरे अभ्यास से संवैधानिक वैधता की जांच करने का निर्णय लिया है। इससे पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट हमारे मामले की विशेषताओं से संतुष्ट है।
केस दशकों तक खींच सकता है। अस्सी के दशक से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित जेएंडके पुनर्वास विधेयक का उदाहरण लें।
यह सच है। लेकिन हमें सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा रखना होगा। और हम उम्मीद करते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय मामले की संवेदनशीलता के प्रति सजग रहेगा। हम यह भी उम्मीद करते हैं कि सरकार संवैधानिक औचित्य के कारण अपना फैसला रोक देगी। जब देश की शीर्ष अदालत सरकार के कदम की संवैधानिक वैधता की जांच करने का निर्णय लेती है, तो सरकार को अदालत के निर्णय लेने तक अपने इस कदम के कार्यान्वयन पर रोक लगानी चाहिए।
नेशनल कांफ्रेंस क्या करेगा? क्या आप धारा 970 की बहाली के लिए संघर्ष शुरू करेंगे?
हमने 70 साल के अपने इतिहास में कुछ अजीब देखा। लोगों ने खुद ही अपना कारोबार बंद कर दिया। उन्होंने शांतिपूर्ण प्रतिरोध किया है। सार्वजनिक परिवहन सडक़ों से हट गया है। इसके लिए किसी ने आह्वान नहीं किया। किसी ने विरोध कैलेंडर नहीं दिया। सभी नेतृत्व को हिरासत में लिया गया है। इस तरह से लोगों ने केंद्र द्वारा किए गए उनके अस्वीकरण को आवाज दी है। हमारी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस लोगों के साथ एक है। हम विशेष दर्जे की बहाली चाहते हैं। हम चाहते हैं कि सरकार ने जो किया है, उसे चुनावों में रद्द किया जाए। हम लैंगिक न्याय, पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों, प्रवासियों आदि जैसे सभी मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं। हम किसी भी गलत जगह पर सुधार कर सकते हैं। लेकिन हम इस बड़े हमले को स्वीकार नहीं कर सकते हैं, उन्होंने इमारत को इसकी नींव तक जला दिया है।
आपके संघर्ष की प्रकृति क्या होगी?
बेशक, हमारा संघर्ष शांतिपूर्ण होगा। हमारा मामला नैतिक, संवैधानिक और ऐतिहासिक है। कानून के ढांचे के भीतर, संविधान के ढांचे के भीतर सभी विकल्पों का उपयोग किया जाएगा। हम जो अनिवार्य रूप से मांग करते हैं वह भारतीय संविधान की सर्वोच्चता है। हम संविधान से परे कुछ भी नहीं पूछते हैं। कश्मीर मुद्दे के बाहरी आयाम भी हैं, जो अलग है। लेकिन हमारा संघर्ष संविधान के दायरे में है। हम सभी हितधारकों से पूछते हैं कि कृपया अपने स्वयं के संविधान के वर्चस्व को बनाए रखें। इसने न तो राज्य के लोगों का भला किया है, न ही देश का।
राजनीतिक संघर्ष के अलावा, हमारे संघर्ष का एक और पहलू कानूनी चुनौती है जिसे हम अनुच्छेद 370 को रद्द करने के खिलाफ रख रहे हैं। हर क्षेत्र, धर्म और समुदाय के लोगों द्वारा याचिका दायर की गई है।
डॉ. अब्दुल्ला की अध्यक्षता में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए मुलाकात की थी। पीएम ने तब आपको क्या बताया था?
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से ठीक तीन दिन पहले हम प्रधानमंत्री से मिले थे। हमने उनसे अनुरोध किया कि कृपया जम्मू-कश्मीर को परेशान करने के लिए कुछ न करें। हमने उन्हें बताया कि कश्मीर एक अच्छे पर्यटन सीजन का आनंद ले रहा है और अमरनाथ यात्रा इतनी अच्छी चल रही है।
पीएम ने आपको क्या कहा?
उन्होंने कहा कि कुछ भी नहीं होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम अनावश्यक रूप से इसके बारे में चिंतित थे। जब हमने भारत सरकार द्वारा कश्मीर में किए जा रहे कुछ उपायों की ओर इशारा किया, जैसे कि अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती, तो पीएम ने जवाब दिया कि यह एक नियमित अभ्यास है। उन्होंने कहा कि चूंकि सुरक्षा बल जम्मू-कश्मीर में नौ महीने से पंचायत, शहरी स्थानीय निकायों और संसद चुनावों को आयोजित करने में मदद कर रहे थे, इसलिए उनके लिए फिर से तैयार होने का समय आ गया था। पीएम ने हमें बताया कि सुरक्षा बलों को 23 मई तक ही चले जाना था, लेकिन सरकार ने अमरनाथ यात्रा के लिए सेना को वापस रहने के लिए मना लिया था, और इसीलिए अब उनकी दोबारा तैनाती हो रही है।
डॉ़ साहब और उमर साहब ने पीएम से चुनाव के लिए जाने का आग्रह किया। इसलिए नहीं कि नेशनल कांफ्रेंस सत्ता में रहना चाहता था लेकिन हम चिंतित थे कि राज्यपाल प्रशासन द्वारा कुछ नीतिगत निर्णय लिए जा रहे थे जो लोकतंत्र की अनिवार्यता के अनुरूप नहीं थे। इसलिए, हमने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वे एक निर्वाचित सरकार को जगह दें और ये निर्णय लें। ये सटीक शब्द थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार अक्तूबर में ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव करा रही थी। उन्होंने कहा कि यह केवल उन खानाबदोशों की वजह से था जिन्हें कश्मीर घाटी से जम्मू जाना था, क्योंकि चुनाव टाल दिए गए थे। प्रधानमंत्री ने बताया कि संसद चुनाव के दौरान सरकार के पास जो सुरक्षा बल उपलब्ध थे, और अगर विधानसभा चुनाव भी साथ होते तो उम्मीदवारों को उचित सुरक्षा नहीं दी जा सकती थी।
क्या आप मानते हैं कि धारा 370 को निरस्त किया जा सकता है?
देखिए, हमारा काम राष्ट्रहित और कश्मीर हित में सब कुछ करना है। हमारा मानना है कि सरकार ने कश्मीर को एक अप्रिय स्थिति में धकेल दिया है। वे जो भी करने की कोशिश कर रहे हैं, वह झूठ के आधार पर अपने निर्णय का विपणन करना है। वे बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर देश में सबसे पिछड़ा राज्य है। और यह सभी अन्य राज्यों के बीच विकास में पिछड़ गया। लेकिन तथ्य अन्यथा हैं। वे आँकड़ों से विश्वास करते हैं। हम आधे दूसरे राज्यों से बहुत आगे हैं। हमारे विकास संकेतक बेहतर हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर हमारा प्रति व्यक्ति खर्च बहुत अधिक है। हमारी प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक है। हमें जीवन की तीन अनिवार्यताओं के साथ समस्या नहीं है: आश्रय, भोजन और पहनने के लिए कपड़े। जम्मू-कश्मीर में एक भी किसान आत्महत्या नहीं करता है। महाराष्ट्र में ऐसी हजारों आत्महत्याएं हुई हैं। हमारा संविधान एकमात्र ऐसा था जिसने खुशहाल बचपन के अधिकार की गारंटी दी। और भाजपा देश के बाकी हिस्सों को बताती है कि जम्मू-कश्मीर में कोई चाइल्डकेयर नहीं था। हमारे यहां किशोर न्याय अधिनियम था। हमारे पास महिला विकास आयोग है। जम्मू और कश्मीर में सबसे कम लिंग पक्षपात हैं। हमारे पास अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में 12 फीसद आरक्षण है, अनुसूचित जातियों के पक्ष में 10 फीसद आरक्षण है और आरक्षित पिछड़े क्षेत्रों और अन्य श्रेणियों के मामले में 20 फीसद है। वे कहते हैं कि हमारे पास सूचना का अधिकार कानून नहीं है। हमारे पास है। और किसी भी अन्य राज्य के विपरीत हमारे पास एक दशक से अधिक समय तक जवाबदेही आयोग है। अन्य राज्य अभी भी लोकपाल के लिए लड़ रहे हैं। वे क्षेत्रीय असंतुलन का रोना रोते हैं। जम्मू और कश्मीर में कोई क्षेत्रीय असंतुलन नहीं है। हमने लद्दाख क्षेत्र को राजकोषीय और राजनीतिक स्वायत्तता दी। हमारे पास वहां एक स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद थी। हमारे पास पांच लाख से कम लोगों के लिए लद्दाख में एक विश्वविद्यालय है। और हमारा संविधान मुसलमानों का नहीं था। हमारे पास इसके एक निर्माता के रूप में कौशक बकुला, के डी सेठी और गिरधारी लाल डोगरा अन्य थे।
लेकिन इन तथ्यों को बताते हुए सरकार को इस निर्णय को रद्द करने के लिए राजी नहीं किया गया?
मुझे एक मौका दिखता है। क्या आप लोगों द्वारा किए जा रहे प्रतिरोध को नहीं देखते हैं। अब दो महीने से अधिक समय से, लोगों ने अपने कारोबार को बंद कर दिया है। घाटी के आठ मिलियन लोग शांतिपूर्वक विरोध कर रहे हैं। विश्वविद्यालय, कॉलेज और स्कूल बंद हैं। सूचना नाकाबंदी है। किसी ने लोगों को विरोध करने के लिए नहीं कहा है लेकिन वे अभी भी कर रहे हैं। भाजपा इसके बारे में क्या कर रही है। वे झूठ बोल रहे हैं और इसे कम कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि कश्मीर में एक भी गोली नहीं चलाई गई और कोई भी मारा नहीं गया। इस दावे की संदिग्ध प्रकृति के अलावा, वे यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जब तक गोलियां नहीं चलाई जाती और लोग नहीं मर जाते, तब तक कोई भी प्रतिरोध वैध नहीं है। और जब तक वहां पथराव न हो। जो लोग कहते हैं कि वे गांधी से प्रेरित हैं, जो गांधी की वकालत करते थे। वे हिंसा का सहारा लेने के लिए लोगों को संदेश देना चाहते हैं।
डॉ़ फारूक अब्दुल्ला ने अपनी गिरफ्तारी के दौरान आपसे पहली बार मुलाकात के दौरान क्या कहा था?
मैं उनके आत्मविश्वास के स्तर को देखकर हैरान था। वह अनजान थे। इसमें कोई शक नहीं, वह आहत महसूस करते थे। वह हैरान थे कि केंद्र सरकार इस हद तक कैसे जा सकती है। वह वह व्यक्ति थे जो केंद्रीय मंत्री, तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके थे, और जिन्हें 1994 में नरसिंह राव सरकार द्वारा वाजपेयी के साथ जिनेवा में कश्मीर में देश के मानवाधिकार रिकॉर्ड की रक्षा करने का अनुरोध किया गया था। और वह अब नजरबंदी में है क्योंकि वह सार्वजनिक रूप से अशांति पैदा करता है।
कश्मीर में ऐसी अफवाहें हैं कि उन्होंने आपसे कहा कि कश्मीर में संघर्ष 1931 से फिर से शुरू होना है?
मुझे याद नहीं है कि क्या उन्होंने ऐसा कहा है लेकिन अनिवार्य रूप से हमें लगता है कि हमें 1931 में धकेल दिया गया है। अचानक, बिना किसी कारण या औचित्य के, बिना किसी तर्क के हमें अपनी पहचान से अलग कर दिया गया, हमारी स्वायत्तता छीन ली गई। हमारी क्षेत्रीय अखंडता खत्म हो गई है। हमने अपना संविधान खो दिया है। हमने अपना झंडा गाड़ दिया है। हमने अपना इतिहास खो दिया है। 5000 साल पुराना इतिहास वाला कश्मीर एक नगरपालिका में सिमट गया है। देखिए हमारे साथ क्या किया गया है। यह हमला कितना गंभीर है।
यहां के लोग अब जनसांख्यिकीय परिवर्तन के बारे में पागल हैं। क्या आप भी भयभीत हैं?
उन्होंने अपने वास्तविक उद्देश्य का कोई रहस्य नहीं बनाया है। उन्होंने समाधान के बारे में बात की है। इसलिए, यहां के लोग वास्तव में चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि यह एक भयानक अंत की शुरुआत हो सकती है। कश्मीर विवाद का अंत धारा 370 के निरस्तीकरण से हो जाएगा, लोगों को ऐसा नहीं लगता।
दलित बच्चों की हत्या ‘स्वच्छ भारत अभियान’ पर कलंक
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाल ही में उनकी सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान के लिए न्यूयॉर्क में बिल गेट्स द्वारा ‘ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड’ से सम्मानित किया जा रहा था, उसी समय एमपी के शिवपुरी जिले के भावखेड़ी में ग्राम पंचायत भवन के पास शौच करने के कारण दो दलित बच्चों को उच्च जाति के पुरुषों ने मौत के घाट उतार दिया गया था । स्वाभाविक रूप से, यह ‘स्वच्छ भारत अभियान’ नाम के स्वच्छता अभियान पर एक धब्बा है।
न्यूयॉर्क में बिल गेट्स ने बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से पीएम मोदी को पुरस्कार प्रदान किया। स्वच्छ भारत अभियान, या स्वच्छ भारत मिशन जो उन कुछ महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक था, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने दो अक्टूबर 2014 को अपने पहले कार्यकाल में शुरू किया था। पीएम मोदी ने एक ट्वीट में कहा कि ‘‘महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के वर्ष में पुरस्कार मिलना व्यक्तिगत रूप से है मेरे लिए महत्वपूर्ण है। जब 130 करोड़ लोग प्रतिज्ञा लेते हैं, तो किसी भी चुनौती को दूर किया जा सकता है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने अपने देशवासियों के साथ सम्मान सांझा किया और उन भारतीयों को पुरस्कार समर्पित किया, जिन्होंने स्वच्छ भारत अभियान को ‘‘लोगों के आंदोलन’’ में बदल दिया।
मोदी ने कहा, ‘‘इस तरह के अभियान को पूर्व में किसी अन्य देश में देखा या सुना नहीं गया था। यह हमारी सरकार द्वारा शुरू किया गया है, लेकिन लोगों ने इसे नियंत्रित कर लिया है।’’ यह कहते हुए कि अभियान की सफलता को संख्याओं में नहीं मापा जा सकता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीब लोगों और भारत की महिलाओं को इससे सबसे अधिक फायदा हुआ है। ‘‘शौचालय की कमी के कारण कई लड़कियों को स्कूल छोडऩा पड़ा। हमारी बेटियां पढ़ाई करना चाहती हैं, लेकिन शौचालय की कमी के कारण, उन्हें अपनी शिक्षा को बीच में ही छोडऩा पड़ा और घर पर बैठना पड़ा’’ पीएम मोदी ने कहा।
मोदी ने कहा कि उन्हें बताया गया कि बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने भी रिपोर्ट दी थी कि भारत में ग्रामीण स्वच्छता में सुधार हुआ था, इससे बच्चों में दिल की समस्याओं में कमी आई और महिलाओं में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) में सुधार हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा कि गांधी जी कहते थे कि एक गाँव एक मॉडल बन सकता है जब वह पूरी तरह से स्वच्छ हो। आज हम पूरे देश को एक मॉडल बनाने की ओर अग्रसर हैं प्रधानमंत्री ने कहा। ‘‘अभियान ने न केवल करोड़ों भारतीयों के जीवन में सुधार किया है, बल्कि इसने संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है’’ प्रधानमंत्री मोदी ने कहा।
हालाँकि, पीएम मोदी को स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए न्यूयॉर्क में ग्लोबल गोलकीपर का अवार्ड मिलने के कुछ ही घंटे बाद, एमपी के शिवपुरी जिले के भदखेड़ी में ग्राम पंचायत भवन के पास शौच करने के लिए दो दलित बच्चों को सवर्णों ने मार डाला। इस मामले में मुख्य आरोपी हाकिम यादव और उसके भाई रामेश्वर यादव को गिरफ्तार किया गया है, सिरसोद पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर आरएस धाकड़ ने बताया। पुलिस के अनुसार, आरोपी ने बच्चों पर उस समय हमला किया जब बाद वे करीब 6.30 बजे पंचायत भवन के सामने एक सडक़ पर शौच कर रहे थे, पुलिस ने मृतक के माता-पिता द्वारा दर्ज शिकायत के हवाले से कहा। पुलिस ने कहा कि दोनों बच्चों -12 साल की रोशनी बाल्मीकि और अविनाश बाल्मीकि को गंभीर चोटें आईं और उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
यह रिकॉर्ड में है कि इस गांव को पिछले साल अप्रैल में खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था, लेकिन बच्चों के परिवार के पास अभी भी घर में शौचालय नहीं है। दोहरे हत्याकांड ने स्वच्छ भारत पहल के क्रियान्वयन में कमी को उजागर किया है,
एक मजदूर मनोज, जिसकी सबसे छोटी बहन और इकलौते बेटे का भीषण अंत हुआ, ने आरोप लगाया है कि पंचायत ने उसके लिए शौचालय के साथ एक घर मंजूर किया था, लेकिन आरोपी के एक प्रभावशाली रिश्तेदार ने काम में बाधा डाली। मनोज के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता है अनगिनत अन्य लोगों भी इसी तरह के परिणाम भुगत रहे होंगे।
रिकॉर्ड के लिए, देश भर में लगभग 11 करोड़ शौचालय मेगा स्वच्छता मिशन के तहत बनाए गए हैं, जिसे 2 अक्टूबर 2014 को धूमधाम के साथ लॉन्च किया गया था। गौरतलब है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर दो अक्टूबर 2019 को देश को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया था। राष्ट्रपिता स्वच्छता के पक्षधर और जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ धर्मयुद्ध करने वाले थे।
इस बीच, बच्चों की हत्या को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण‘‘ करार देते हुए, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने मध्य प्रदेश में लगातार भाजपा और कांग्रेस की सरकारों को ‘‘उचित शौचालय की सुविधा प्रदान करने में विफल‘‘ रहने के लिए नारेबाजी की। ‘‘लाखों दलितों, पिछड़ों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को सरकारी सुविधाओं से वंचित रखने के अलावा, उन्हें सभी प्रकार के दुर्भावनापूर्ण अत्याचारों का शिकार भी बनाया गया है और ऐसी स्थिति में मध्य प्रदेश के शिवपुरी में दो दलित बच्चों की नृशंस हिंसा सबसे दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है’’ उन्होंने में एक ट्वीट में कहा।
एक अन्य ट्वीट में, मायावती ने कहा, ‘‘कांग्रेस और भाजपा सरकारों को यह बताना चाहिए कि गरीब दलितों और पिछड़े समुदायों के घरों में उचित शौचालय की सुविधा क्यों नहीं दी गई है? अगर यह सच्चाई बहुत कड़वी है, तो खुले में शौच करने वालों दलितों को मारने वालों को फांसी दी जानी चाहिए।
कहां जाएं ये बेघर बेचारे ?
महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा से सटे एक गांव में दिलीप (नाम असली नहीं) का जन्म हुआ। उसके पिता महाराष्ट्र के उस गांव में छोटे-छोटे सामान बेचने की फेरी लगाते थे। तीन भाई बहनों में वह मझला है। पढ़ाई में मन नहीं लगता था और सारा दिन गलियों में बिताता था। पढ़ाई में कमज़ोर होने के चलते घर से डांट-मार पड़ती और वह घर से भाग जाता। दो-तीन बार भागा। एक बार गुजरात के एक रेलवे स्टेशन पर पुलिस की नजऱ उस पर पड़ी और उसे पकड़ कर नज़दीक की एक संस्था में उसे छोड़ आए। उस समय दिलीप की आयु 9-10 साल की रही होगी। अनाथ, घर से भागे और बेसहारा बच्चों की देखरेख करने वाली यह संस्था गैर सरकारी संगठन है। ऐसे घर को इस संस्था ने नाम दिया है-स्नेहालय। यहां दिलीप को जब स्कूल में जाने के लिए कहा गया तो उसने पढऩे से साफ मना कर दिया। लेकिन वहां के मुखिया ने समझाया कि अगर पढ़ाई नहीं करोगे तो इसी तरह जि़ंदगी भर इधर-उधर भागते रहोगे। जि़ंदगी में पढ़ाई बहुत ज़रूरी है। दिलीप ने जब देखा कि वहां रहने वाले और बच्चे भी पढ़ाई करते हैं तो उसने स्कूल जाना शुरू कर दिया। अब वह व्यस्क हो गया है, स्नातक कर लिया है और नौकरी भी। दिलीप के माता-पिता, भाई-बहन कहां है, इसके बारे में उसे कुछ नहीं पता। वह उदासी भरे लहजे में बताता है कि उसका गरीब परिवार किराए के कमरे में रहता था, उसने पता लगाने की कोशिश की लेकिन कुछ नहीं पता चला। दिलीप कहता है कि जब कोई भी बच्चा ऐसे बाल देखभाल केंद्र से बाहर जाता है तो उसके पास ऐसा हुनर होना चाहिए कि वह बाहर सरवाइव कर सके। ध्यान देने वाली बात यह है कि 18 साल का होते ही ऐसे बच्चों को संस्था के हॉस्टल से बाहर आना पड़ता है क्योंकि कानून के अनुसार चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूट/बाल देखभाल संस्थान में बच्चे 18 साल तक की आयु तक ही रह सकते हैं। दरअसल मुल्क में सैंकड़ो युवा-युवतियों को ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है। एक बात और महत्वपूर्ण है कि मुल्क में ऐसे बच्चों के लिए आफ्टरकेयर की भी व्यवस्था है लेकिन ऐसे 67 फीसद बच्चों को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। बाल देखभाल संस्थानों में रहने वाले बच्चे जब ये संस्थान छोड़ते हैं तब उन्हें किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, इस पर हाल ही में जारी एक सर्वे रिपोर्ट उनके संघर्ष को नीति-निर्माताओं के सामने रखती है। ‘बियॉन्ड
18: लीविंग चाइल्ड केयर इन्स्टिटूशन्स-स्पोटिंग यूथ लीविंग केयर’ नामक सर्वे यूनिसेफ और टाटा ट्रस्ट के सहयोग से बाल देखभाल संस्थान चलाने वाली संस्था उदयन ने तैयार किया है। इस सर्वे में मुल्क के पांच राज्य दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान को शमिल किया गया है। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 18 साल पूरा होने के बाद बाल देखभाल संस्थानों से बाहर निकलने वाले युवाओं में से तकरीबन 50 फीसद को बाहरी दुनिया में कठोर हकीकत का सामना करना पड़ता है। उनमें से तकरीबन 50 फीसद तादाद ऐसे युवाओं की है जिनके पास नौकरी पाने लायक कोई भी योग्यता व क्षमता नहीं होती। बाल देखभाल संस्थानों के अनुभव बावत यह सर्वे बताता है कि 44 फीसद बच्चों के साथ उनकी देखभाल और पुनर्वासन के बारे में विचार विनिमय नहीं किया गया था। 40 फीसद केयर लीवर्स ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की थी। 30 फीसद केयर लीवर्स को अपने अपने बाल देखभाल संस्थानों में व्यस्क मैंटर नहीं मिले थे। जिन बच्चों के बाल देखभाल संस्थानों में प्रवास के दौरान सकारात्मक अनुभव रहे, उनकी आफ्टरकेयर वाले क्षेत्र में अच्छा करने की संभावना होती है। उनके सामाजिक व भावात्मक रिश्ते बेहतर होते हैं और कॅरियर के अवसर भी बेहतर होते हैं। इस सर्वेक्षण में केयर लीवर्स के पुनर्वासन के वर्तमान दृष्टिकोण में लैंगिक विषमता को भी दर्शाया गया है। 63 फीसद लड़कियों और 36 फीसद लडक़ों की शैक्षिक पात्रता एक समान होने के बावजूद लड़कियों को आमदनी के स्वतंत्र स्त्रोत नहीं मिले पाते। पांच में से केवल दिल्ली और महाराष्ट्र इन दो राज्यों में ही लड़कियों के रहने के लिए आफ्टरकेयर होम की सुविधा है। उन्हें वित्तीय रूप से स्वावलंबी बनाने के विशेष प्रयास नहीं किए जाते। इन लड़कियों की एक तो शादी की जाती है या उन्हें स्वाधार गृह में भेजा जाता है। सर्वेक्षण के नतीजे यह भी बताते हैं कि ऐसे 67 फीसद बच्चों को आफ्टरकेयर प्रावधानों और उनके लिए बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।
सरकारी और गैर सरकारी बाल देखभाल संस्थानों में ऐसे बच्चों को 18 साल तक की आयु तक रखा जाता है, जो अनाथ, बेसहारा, आदि होते हैं। लडक़ों व लड़कियों दोनों के लिए अलग-अलग संस्थान हैं। ये संस्थान उनके रहने, खाने व पढ़ाई का बंदोबस्त करते हैं। भारत सरकार के महिला व बाल विकास मंत्रालय ने देश में बाल देखभाल संस्थानों की कुल संख्या जानने के लिए जैना समिति का गठन किया व 2018 में प्रकाशित जैना समिति रिपोर्ट के मुताबिक देश में मार्च 2017 तक बाल देखभाल संस्थानों की कुल संख्या 9,589 थी। इन संस्थानों में 3,70,227 बच्चे हैं। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक मुल्क में कुल बाल आबादी की पांच फीसद आबादी अनाथ है। 21 लाख अनाथ बच्चे 15-17 आयु वर्ग के हैं और इस आयु वर्ग को जो व्यस्क ग्रुप की ओर बढ़ रहा है, उसे विशेष ज़रूरतों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन की दरकार होती है। जैसा कि यह सर्वे बताता है कि देश में ज़रूरतमंद बच्चों में से 67 फीसद को आफ्टरकेयर होम्स के बारे में जानकारी ही नहीं है। आफ्टरकेयर अर्थात बाल न्याय (बच्चों की देखभाल और रक्षण) अधिनियम 2015, 2016 में यह कानूनी प्रावधान है कि ऐसे बच्चे जो 18 साल की आयु के बाद बाल देखभाल संस्थान छोड़ रहे हैं, वे और तीन साल के लिए राज्य की जि़म्मेदारी हैं व विशेष परिस्थितियों में दो साल और भी सरकार अपनी जि़म्मेदारी का निर्वाह बढ़ा सकती है। पर दिक्कत यह है कि इसका पालन गंभीरता से नहीं हो रहा है। देश के लगभग सभी राज्यों में बाल देखभाल संस्थानों को छोड़ कर जाने वाले 50 फीसद केयर लीवर्स के लिए रहने की कोई सुविधा नहीं है। और अंदाजन इतने ही बच्चों के पास कोई रैंजीडेंस पू्रफ नहीं है। उनके पास पहचान का संकट बराबर बना रहता है। केयर लीवर्स में से 48 फीसद बच्चे वित्तीय रूप से स्वावलंबी नहीं हैं। जीवन जीने का हुनर और व्यावसायिक हुनर केयर लीवर्स की आम बच्चों की तरह ही एक अहम ज़रूरत तो है पर अधिकांश इससे वंचित हैं। भारत विश्व में युवा आबादी वाले देश के रूप में जाना जाता है और सरकार युवा शक्ति को हुनरमंद बनाकर देश को नई ऊचांइया पर पहुंचाना चाहती है। युवा शक्ति को हुनरमंद बनाने की बात करते हैं तो चाइल्ड लीवर्स जोकि एक संवेदनशील श्रेणी है, पर भी सरकार को ध्यान देना होगा।
नेशनल यूथ पॉलिसी 2014, नेशनल पॉलिसी ऑन स्किल डेवलपमेंट एंड एंटरप्नियूरशिप 2015 और युवाओं के लिए बनाई जाने वाली अन्य नीतियों में इन केयर लीवर्स को संवेदनशील समूह माना जाना चाहिए। गौरतलब है कि नीति आयोग ने बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ के साथ गतवर्ष 2018 में भारत की युवा जनसंख्या, खासतौर पर हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए सामाजिक-आर्थिक अवसरों के विस्तार हेतु एक राष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम शुरू किया है जिसे ‘युवा’ नाम दिया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस कार्यक्रम से आफ्टरकेयर के युवा भी लाभान्वित होंगे।