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नागरिकता कानून : क्या विपक्ष को मिलेगी संजीवनी?

देश की घटनाएँ क्या अचानक ऐसी दिशा में मुड़ रही हैं, जो लगभग मृत-सी कांग्रेस और विपक्ष को भाजपा के सामने एक ताकत के रूप में खत्म कर देंगी। ऐसा अतीत में भी हुआ है, जब सरकार के िखलाफ देशव्यापी आन्दोलन विपक्ष के लिए संजीवनी बन गये। इमरजेंसी में जब कांग्रेस सत्ता में थी, तो एकजुट विपक्ष ने इंदिरा गाँधी जैसी ताकतवर और बेहतरीन रणनीतिकार प्रधानमंत्री के पाँव उखाड़ दिये थे। अभी भले देश में इमरजेंसी नहीं, अलग-थलग पड़ा विपक्ष यह संदेश देने की कोशिश तो कर ही रहा है कि जो कुछ हो रहा है और जिस तरह देश पर संविधान की धज्जियाँ उड़ाकर कानून थोपे जा रहे हैं, यह स्थिति इमरजेंसी से किसी तरह कम नहीं।

भाजपा का एक वर्ग भले यह मानकर चल रहा हो कि नागरिकता संशोधन कानून और सम्भावित एनआरसी के विरोध में घट रही तमाम घटनाएँ, एक साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का रूप लेकर राजनीतिक रूप से उसे लाभ देंगी, देश में युवाओं और छात्रों का बड़ा वर्ग मोदी सरकार के प्रति अपनी सोच बदल रहा है। इनमें से एक बड़ा वर्ग वह है, जिसने हाल के साल में पीएम के रूप में नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था। उनकी चिन्ता के दायरे में नौकरियाँ और खराब होती अर्थ-व्यवस्था से उभर रही समस्याएँ हैं, जिनसे उनके परिवार दो-चार हैं।

मोदी सरकार ने जिस तरह देश के गम्भीर मुद्दों के प्रति कमोवेश चुप्पी ही साध ली है। वह उन लोगों को बेचैन कर रही है, जिन्हें मोदी सरकार से अपनी नौकरियों, रोज़गार और किसानों-युवाओं के लिए कुछ अलग ही तरह की नीतियों की उम्मीद थी। मोदी ने जब 2014 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के िखलाफ बुलंद रूप से गुजरात मॉडल जैसा विकासशील देश देने वाला स्वप्न जगाया था। तब किसी ने सोचा ही नहीं था कि आने वाले साल में भाजपा का एजेंडा ही बदल जाएगा।

ऐसा नहीं था कि इंदिरा गाँधी लोकप्रिय नहीं थीं। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले ने जिस तरह उनकी तमाम राजनीति को अपनी सत्ता के इर्द-गिर्द समेट दिया, उसने उन्हें 1977 के चुनाव में सत्ता से बाहर कर दिया। देश में बहुत-से लोग अब सोचने लगे हैं कि सिस्टम और विकास से ज़्यादा भाजपा अब सिर्फ सत्ता की सोच की आसपास सिमटने लगी है।

नागरिकता संशोधन कानून के िखलाफ देश में जो माहौल बना है, उसने पिछले कुछ साल में भाजपा के लाड़ले रहे दलों को भी मुँह मोडऩे के लिए मज़बूर कर दिया है। बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) इनमें एक है, जो सीएए का संसद के भीतर समर्थन करने के बावजूद, जनांदोलन के रुख से दबाव महसूस कर एनआरसी के बहाने भाजपा से अब दूरी दिखा रहा है। सुदूर ओडिशा में नवीन पटनायक और बीजू जनता दल सरकार ने एनआरसी राज्य में लागू करने से साफ मना कर दिया है।

हाल के महीनों में शिव सेना जैसा हिन्दूवादी दल भाजपा से छिटककर धुर विरोधी कांग्रेस से हाथ मिला चुका है। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव नतीजों में भाजपा की सीटें घटी हैं। झारखंड के चुनाव ने भी भाजपा के समक्ष बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से बड़ी चिन्ता की बात यह है कि यह सभी चुनाव जम्मू-कश्मीर में धारा-370 खत्म करने और अब नागरिकता संशोधन कानून बनाने के दौरान हुए हैं।

तो क्या देश में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और विपक्ष की दूसरी पार्टियाँ देश में अचानक उभरे इस विरोध को अपने लिए भुना पाएँगी। यह तो नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टी नेपथ्य में जा चुकी है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के करीब 21 करोड़ वोटों के मुकाबले 11 करोड़ वोट हासिल किये थे; जिन्हें काम नहीं कहा। कांग्रेस अभी भी देश की जनता के लिए एक विकल्प के रूप में तो है ही।

यह बहुत दिलचस्प तथ्य है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सबसे पहले राजनीतिक रूप से संवेदनशील नागरिकता मसले पर मुखर हुए, जिनका साथ वामपंथी दलों ने दिया। इसके बाद क्षेत्रीय क्षत्रप और दल विरोध में सामने आये। संसद के भीतर प्रियंका गाँधी जहाँ इंडिया गेट पर दो बार धरने पर बैठ चुकी हैं, वहीं अध्यक्ष सोनिया गाँधी विपक्षी दलों का प्रनिधिमंडल लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलीं।

लेकिन भाजपा के लिए बड़ी चिन्ता की बात छात्रों का बड़े पैमाने पर इस कानून के िखलाफ सामने आना है। यह सिर्फ मुस्लिम छात्रों तक सीमित नहीं रहा है। दूसरे धर्मों से जुड़े छात्र भी आन्दोलन का बड़े पैमाने पर हिस्सा बने हैं। उनका चिन्तन नागरिकता कानून के विरोध से आगे मोदी सरकार के रोज़गार जैसे मुद्दों पर चुप बैठने से है।

भाजपा के लिए चिन्ता का एक और कारण इस आन्दोलन में बड़े पैमाने पर दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों का जुडऩा है। इसका कारण उनके मन में यह भय है कि भाजपा का अंतत: लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना है। इसे यह वर्ग मनुवादी दौर के लौटने के खतरे के रूप में देखता है।

कांग्रेस अपने शासित राज्यों में इस कानून को लागू करने से मना कर चुकी है। कांग्रेस की ही तरह तृणमूल कांग्रेस की शक्तिशाली नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी नागरिकता कानून का मुखर विरोध कर रही हैं।

तहलका संवाददाता से बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा- ‘यह बहुत बड़ा और संवेनशील मुद्दा है। मोदी सरकार संविधान की मूल भावना का उल्लंघन कर रही है। कानून बनाते समय वह राज्यों (सन्दर्भ जम्मू कश्मीर में कश्मीर धारा-370 खत्म करना) को तो नजर अंदाज़ कर ही रही है। अब संविधान की भी धज्जियाँ (सन्दर्भ नागरिकता संशोधन कानून) उड़ाने लगी है।

भाजपा की चिन्ता यह भी है कि जिस नागरिकता कानून को लेकर वो सिर्फ असम को लेकर विरोध की सोच रही थी; वह आन्दोलन कमोवेश पूरी देश में फैल गया है। आज की तारीख में 11 राज्य खुले तौर पर मोदी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि नागरिकता कानून ने विपक्ष को सरकार के िखलाफ एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। जैसे-जैसे आन्दोलन तेज़ हो रहा है, भाजपा इसके राजनीतिक खतरे महसूस करने लगी है। यही कारण है कि वह अब एनआरसी के लागू करने को लेकर बयान देने में सावधानी बरतने लगी है। यही नहीं नागरिकता कानून के अंतिम ड्राफ्ट के लिए जनता से सुझाव माँगने की बात भी कह रही है।

कानून के विरोध के बहाने कांग्रेस विपक्षी दलों को एकजुट कर सरकार और भाजपा के िखलाफ खुद की राजनीति को धार देने के कोशिश कर रही है। कांग्रेस और विपक्ष की 22 दिसंबर की भारत बचाओ रैली को इसी रूप में देखा जा सकता है।

भाजपा जिस तरह ढके-छिपे तरीके से अपने हिन्दू वोट बैंक को गोलबन्द करने में जुटी है, उसमें बहुत खतरे भी निहित हैं। पूर्वोत्तर में जिस तरह उसने अपनी सरकारें बनायी थीं, उससे इन राज्यों में उसकी शक्ति बढ़ी थी और भाजपा का राष्ट्रव्यापी विस्तार भी हुआ। यदि ऋण राज्यों में जनता भाजपा के िखलाफ हो जाती है, तो उसे वहाँ बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। परम्परागत रूप से यह राज्य कांग्रेस के साथ रहे हैं या बाद में क्षेत्रीय दल भी उसकी पसन्द बने हैं। भाजपा से छिटके तो उनका कांग्रेस की तरफ जाना सम्भव हो जाएगा।

गोवा, मेघालय में तो भाजपा को बहुमत भी नहीं मिला था, जबकि अरुणाचल प्रदेश में एक तरह से पूरी कांग्रेस सरकार को ही हाईजैक करके भाजपा ने बाद में चुनाव जीतकर अपनी सरकार बना ली। ऐसी में इन राज्यों में भाजपा बहुत िफसलन भरी  राजनीतिक पिच पर खड़ी है। कांग्रेस मौका मिलते ही भाजपा पर हावी ओने की कोशिश करेगी।

भाजपा को भी डर है कि नागरिकता संशोधन कानून के बाद पूर्वोत्तर में भाजपा की बढ़त रुक जाएगी। ज़ाहिर है राजनीतिक तौर पर इसका लाभ कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को मिलेगा। यह सभी दल इन राज्यों में अभी से सक्रिय हो चुके हैं। नागरिकता कानून के िखलाफ कांग्रेस खुलकर असम में लोगों के साथ खड़ी दिख रही है।

वैसे कांग्रेस बहुत सोच समझकर नागरिकता कानून  को लेकर चल रही है। वह छात्रों के साथ एकजुटता तो दिखाना चाहती है, साथ ही वोटों के लिहाज़ से मज़बूत हिन्दी बेल्ट में इस बात का भी खयाल रखना चाहती है कि यह संदेश न जाए कि वह हिन्दू विरोधी है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण हुआ, तो हिन्दी भाषी राज्यों में कानून को भाजपा अपने पक्ष में करने के लिए ज़मीन-आसमान एक कर देगी। ऐसे में कांग्रेस एक सावधान रणनीति से ही आगे बढऩे की कोशिश कर रही है। ऐसा ही विपक्ष के अन्य दल भी कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर में धारा-370 को लेकर सम्भावित विरोध किया, जो तैयारी मोदी सरकार ने की थी; वैसी वह नागरिकता कानून को लेकर नहीं कर पायी। हालाँकि जानकार कहते हैं कि जम्मू कश्मीर में 9 लाख के करीब सैनिक तैनात हैं। लिहाज़ा यह सुरक्षा बंदोबस्त बहुत मज़बूत हो जाता है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर की सही स्थिति अभी आने वाले महीनों में ही पता चलेगी। वहाँ अभी भी इंटरनेट जैसी कई पाबंदियाँ हैं।

पूर्वोत्तर में नागरिकता कानून के िखलाफ जो हुआ वह राजनीतिक रूप से भाजपा के िखलाफ गया है और लोग उसे लेकर परहेज करने लगे हैं। भाजपा के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह कि असम का विरोध हिन्दुओं की तरफ से ज़्यादा आया है, न कि मुसलमानों की तरफ से।

विपक्ष इस सारे हालात में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकता कानून के प्रभावों को लेकर भी मोदी सरकार पर सवाल उठा रहा है। अमेरिका सहित उच्च देशों के संगठनों, जिनमें मानवाधिकार संगठन भी हैं; ने भारत के नागरिकता कानून को लेकर सवाल उठाये हैं। दक्षिण एशिया में हमारा मित्र माने जाने वाला बांग्लादेश भी इस कानून के बाद सरकार के नुमाइंदों की टिप्पणियों से नाराज़ दिखा है। कई देशों में भारतीयों और मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इस कानून के िखलाफ प्रदर्शन किये।

नागरिकता कानून पास होने के बाद जब असम में नाराज़गी दिखी और प्रदर्शन होने शुरू हुए, तो भी सरकार ने गुवाहाटी में होने वाला अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन रद्द नहीं किया और इसे आयोजित करने की बात कही। लेकिन जब वहाँ के हालात के मद्देनज़र जापान के प्रधानमंत्री सिंजो आबे ने अपना दौरा रद्द कर दिया, तो भारत को शॄमदगी झेलनी पड़ी। बांग्लादेश ने भी अपने मंत्रियों को भेजने से मना कर दिया।

निश्चित ही इससे भारत के लिए असहज स्थिति बनी। बाद में कूटनीतिक और आंतरिक स्तर पर क्राइसिस मैनेजमेंट की कोशिश विभिन्न स्तरों पर हुई। लेकिन जो होना था, वह तो हो ही गया था। यहाँ यह उस सरकार के प्रबंधन की नाकामी थी, जिसे जाना ही बेहतर प्रबंधन के लिए जाता है। कानून के बाद उपजने वाली स्थितियों का पूर्व आकलन करने में सरकार फेल रही। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया। कांग्रेस ने कहा कि कि ऐसा कानून मोदी सरकार ले आयी है, जिसका असर देश के बाहर भी दिख रहा है।

लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस और विपक्ष सच में सरकार विरोधी इन आन्दोलनों के ज़रिये खुद की खोयी ताकत हासिल कर पाएँगे? क्या जनता देश के अन्य मुद्दों के मुकाबले इस कानून को तरज़ीह देगी या फिर सरकार के साथ चलेगी? यह बड़े सवाल हैं; लेकिन आन्दोलन के बाद सरकार की बेचैनी बताती है कि सब कुछ वैसा नहीं हुआ है, जैसी उसने कल्पना की थी।

नागरिकता कानून पर उपजी स्थिति से भाजपा कितनी चिन्तित है यह इस बात से ज़ाहिर हो जाता है कि उसने देश भर में 10 दिन तक व्यापक अभियान चलाने का फैसला किया। इसमें पार्टी ने देश के तीन करोड़ लोगों को कानून के बारे में सही जानकारी देने का फैसला किया। घर-घर पहुँचने के इस अभियान में भाजपा ने 250 के करीब प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का फैसला किया।

देश के हर ज़िाले में नागरिकता संशोधन कानून के पक्ष में रैली और कार्यक्रमों का भी आयोजन भी भाजपा की रणनीति का हिस्सा है, ताकि विपक्ष की इस कानून के िखलाफ धार को कमज़ोर किया जा सके। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम नेता कांग्रेस और विपक्ष पर लगातार आरोप लगा रहे हैं कि वह जनता को गुमराह कर रहा है। लेकिन तकनीकी के इस जमाने में क्या सचमुच यह कहा जा सकता है कि एक बड़ी आबादी को कानून के विभिन्न पहलुओं की जानकारी ही न हो, वह भी छात्रों को?

क्या निरंकुश हो रही भाजपा!

भाजपा की छवि धीरे-धीरे एक अहंकारी राजनीतिक दल की बनती जा रही है। यह वैसी ही स्थिति है, जैसी कांग्रेस की 2009 में सत्ता के दोबारा आने के बाद बननी शुरू हो गयी थी। देश भर से दर्जनों लेखकों, िफल्मकारों, बुद्धिजीवियों और अन्य ने हाल के साल में अपने पुरस्कार इसलिए लौटा दिये; क्योंकि उनका केन्द्र की भाजपा सरकार की नीतियों के प्रति विरोध था।

भाजपा में सबसे तेज़ी से जो चलन बढ़ा है और जिसके चलते लोगों में उसके प्रति नाराज़गी पैदा हुई है, वह यह है कि उसका विरोध करने वाले व्यक्ति या राजनीतिक दल को वह सीधे देश विरोधी या पाकिस्तान परस्त करार दे देती है। इस मामले में कांग्रेस उसके निशाने पर सबसे ज़्यादा रही है। यह चलन इतना ज़्यादा है कि उसके मंडल स्तर तक के नेता भी इसी भाषा में बात करते हैं।

लोकतंत्र में इसे किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता; क्योंकि भाजपा विरोध का अर्थ देश विरोध भला कैसा हो सकता है। क्या कोई मान सकता है कि देश को आज़ादी दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाली या 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाली कांग्रेस पाकिस्तान परस्त है।

कांग्रेस सहित विरोधी दल भाजपा को एक निरंकुश दल कहने लगे हैं। उनका कहना है कि केन्द्र में भाजपा की सरकार जनमत और संविधान की धज्जियाँ उड़ाकर मनमर्ज़ी कर रही है और वह निरंकुश हो गयी है।

तहलका संवाददाता से बातचीत में वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पाँच बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कहते हैं- ‘भाजपा देश में एक ऐसा वातावरण बना रही है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र में दूसरों को खारिज कर देना खतरनाक संकेत है। भाजपा ने जब कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया, तो उससे ही पता चल गया कि लोकतंत्र में उसका कितना विश्वास है।’

लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता और दो बार के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल कहते हैं कि कांग्रेस धर्म और जातियों की राजनीति करती रही है। लेकिन मोदी के पीएम बनने के बाद विकास की राजनीति की शुरुआत हुई है, जिससे कांग्रेस बेचैन है और उसकी दाल नहीं गाल रही। आज जब दुनिया भर में भारत की चर्चा है, तो कांग्रेस अलग-थलग पड़ी है। उसे इसके कारणों का आकलन करना चाहिए।

नेता भले जो कहें, कांग्रेस और विपक्ष अब भाजपा पर निरंकुश होने का आरोप चस्पा कर रहा है। उसका कहना है कि स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज़ को दबाना लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है।

कांग्रेस ने महाराष्ट्र में शिव सेना जैसे विचारधारा के स्तर पर धुर विरोधी दल के साथ समझौता एक रणनीति के तहत ही किया है। एक तो कांग्रेस-एनसीपी ने मिलकर भाजपा से उसका एक बड़ा सहयोगी छीन लिया, दूसरा यह संकेत देने की कोशिश की कि शिवसेना का उनके साथ इस बात का सबूत है कि वे हिन्दू विरोधी नहीं हैं। होते तो शिवसेना जैसी पार्टी उनके साथ क्यों आती?

आने वाले समय में कांग्रेस, टीएमसी, माकपा, सपा, बसपा, शिव सेना और तमाम क्षेत्रीय दलों के साथ आने की कितनी सम्भावना बनती है, यह अभी कहना मुश्किल है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि विपक्ष और कांग्रेस लोगों में अपनी पैठ बनाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। कुछ सहयोगी दल ही अब भाजपा पर संदेह करने लगे हैं। नागरिकता कानून के िखलाफ उपजे सरकार विरोधी माहौल को यह दल कितना भुना पाएँगे, यह वक्त ही बताएगा।

जेडीयू दिखा रहा आँखें

एनआरसी का खुला विरोध करके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एनआरसी पर जवाब माँगकर बिहार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने कई संकेत दिये हैं, जो भाजपा के हक में नहीं जाते। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पलटी मार सकते हैं? नीतीश यूपीए से पलटी मारकर ही एनडीए में गये थे। हाल के कुछ उप चुनाव नतीजों ने नीतीश की चिन्ता बढ़ायी है। ऐसे में उन्हें भाजपा के साथ को लेकर असुरक्षा महसूस हो रही है। भाजपा के लिए यह चिन्ता की बात कही जाएगी।

विरोध की ताकत

देश में 11 राज्य (सरकारें) खुलकर नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं। ज़ाहिर है यह सब एनआरसी के भी िखलाफ होंगे। बल्कि इनकी संख्या ज़्यादा हो सकती है। यदि गुणा-भाग किया जाए, तो यह देश की कुल आबादी का 52 करोड़ है, अर्थात् आधे से कुछ ही कम लगभग 42 फीसदी। इन राज्यों का कुल क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग मीटर बनता है और लोक सभा की 226 और राज्य सभा की 95 सीटें इन राज्यों के तहत पड़ती हैं। लोगों की चिन्ता का बड़ा कारण यह भी है कि असम में ही जब एनआरसी लागू किया गया, तो अंतिम सूची में कम नहीं पूरी 19 लाख लोग साबित नहीं कर सके, जिनमें हिन्दू ही बड़ी संख्या में हैं। ऐसे में देश हर में एनआरसी लागू होने पर क्या स्थिति बनेगी? यह कल्पना करना मुश्किल नहीं। राजनीतिक रूप से यह बात भाजपा के िखलाफ जा रही है और कांग्रेस सहित विपक्ष इसे भुनाने की कोशिश कर रहा है।

भाजपा अभी भी सबसे बड़ी पार्टी

आँकड़ों की बात करें, तो झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले मई में भाजपा ने लोक सभा की 543 में से 303 सीटें जीती थीं। यह देश की कुल लोकसभा सीटों का 56 बैठता है। यदि इस जन-समर्थन को विधानसभा सीटों में तब्दील करें, तो यह देश की कुल 4120 सीटों में 2089 (देश की 51 फीसदी सीटें) बनता है, जहाँ भाजपा को बढ़त मिली थी। इस लिहाज़ से भाजपा अभी भी देश की सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव तक भाजपा की वास्तविक विधायक संख्या जहाज़ 1326 थी, जो कुल ताकत का सिर्फ 32 फीसदी ही है। झारखंड चुनाव के बाद इसमें और कमी आयी है। भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की बात करें, तो वह भाजपा से पीछे ज़रूर है, लेकिन उसके पास भी 846 विधायकों की ताकत है, जिसका बहुत कुछ श्रेय दिसंबर, 2018 के राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव को जाता है, जहाँ उसने सरकार बनायी थी। इस लिहाज़ से कांग्रेस भाजपा के बाद 20 फीसदी ताकत के साथ महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद दूसरे स्थान पर है। हालाँकि, क्षेत्रीय दलों का भी बड़ा हिस्सा है। लेकिन चूँकि वे राज्यों में बँटे हुए हैं, कांग्रेस सहज ही दूसरे नम्बर पर आ जाती है। आज विधानसभा में सत्ता के लिहाज़ से भाजपा का राज देश के 40 फीसदी हिस्से पर है। भाजपा के लिए चिन्ता की बात यह है कि 24 महीने पहले तक यह आँकड़ा करीब 70 फीसदी का था। झारखंड के बाद आने वाले समय में बिहार (243 सीटें), दिल्ली (82 सीटें) में अगले साल और उसके बाद पश्चिम बंगाल (295) में 2021 में चुनाव हैं। इन बड़े राज्यों में चुनाव में भाजपा को अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए बहुत मेहनत की दरकार रहेगी।

भाजपा खो रही राज्य

क्या भाजपा भी कांग्रेस की तरह ही केन्द्र की पार्टी बनती जा रही है और राज्यों में उसकी पकड़ कमज़ोर पड़ रही है। यह बहुत दिलचस्प बात है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 300 सीटों के भी पार निकल जाने वाली भाजपा देश के बड़े राज्य माने जाने वाले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में सत्ता में नहीं है। यह सब राज्य हाल के महीनों में उसके पास थे। राजनीतिक रूप से देखें, तो भाजपा ने अपनी बड़ी ताकत खो दी है। अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चमक या लोकप्रियता खो दी है। लेकिन भाजपा के लिए यह चिन्ता की बात ज़रूर है कि राज्यों में जनता ने मोदी के करिश्मे से इतर अपने मुद्दों पर वोट डालना शुरू किया है। देश में अभी भी अन्य किसी नेता के मुकाबले मोदी सबसे कद्दावर नेता हैं। लोगों का उन पर विश्वास ही है कि महज़ छ: महीने पहले जनता ने भाजपा को 300 से ज़्यादा लोकसभा सीटें दीं। हालाँकि, सच यह भी है कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। ऐसे में भाजपा के लिए चिन्ता के कई क्षेत्र इन महीनों में उभरे हैं। नहीं उभरे होते तो राज्यों में भाजपा के लिए जनता आँख मूँदकर वोट कर रही होती और विपक्ष और ज़्यादा सिमट गया होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। भाजपा की ताकत की बात करें, तो मार्च, 2018 में भाजपा के पास 21 राज्यों में सत्ता थी, जिसमें कुछ सहयोगी दलों के साथ थी। दिसंबर 2018 में जब भाजपा ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे बड़े और हिन्दी भाषी राज्यों में कांग्रेस को सत्ता खोने के बाद भाजपा के लिए स्थितियाँ दूभर होती दिखती हैं। जम्मू-कश्मीर में िफलहाल किसी की सरकार नहीं और आंध्र प्रदेश और तमिलनाड में भाजपा का ज़्यादा वजूद नहीं है। बड़े राज्यों के नाम पर उत्तर प्रदेश राज्य ही अब भाजपा के पास बचा है, जिसमें उसकी अपने दम पर सरकार है। मार्च 2018 के 21 राज्यों से भाजपा दिसंबर 2019 तक 16 राज्यों तक आ गयी है। इनमें से भाजपा के अपने दम पर राज्य तो महज 11 ही हैं। अन्य पाँच पर वह सहयोगियों के साथ सत्ता में है। हाल के विधानसभा चुनाव नतीजे बताते हैं कि अनुच्छेद-370, राम मंदिर, ट्रिपल तलाक और नागरिकता संशोधन कानून के बजाय जनता स्थानीय मुद्दों को अधिक तरजीह दे रही है। महाराष्ट्र और हरियाणा में सीटें खोने के बाद झारखंड के नतीजे भी यही संकेत करते हैं। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि वह वोटों के लिए पूरी तरह पीएम मोदी पर निर्भर हो चुकी है। उसके क्षेत्रीय क्षत्रप अर्थात्  मुख्यमंत्री सके लिए वोट ले सकने वाले नेता साबित नहीं हुए हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर इसके उदहारण हैं। झारखंड में रघुबर दास सबसे नया उदहारण हैं।

सीएए पर प्रधानमंत्री ने दिया स्पष्टीकरण

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में दिल्ली के राम लीला मैदान से भाजपा की धन्यवाद रैली में एक तीर से निशाना साधते हुए कांग्रेस और विपक्षी पाटियों पर ज़ोरदार हमला किया। उन्होंने कहा कि विपक्षी वोट बैंक राजनीति न करें; अराजकता और हिंसा को बढ़ावा न दें।

रैली में प्रधानमंत्री मोदी के 99 मिनट के भाषण में एक साथ कई बातों का ज़िाक्र किया। उन्होंने कहा कि जो भी देश में नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद अराजकता, हिंसा और आगजनी हुई है। उसके लिए सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी और विपक्षी पार्टियाँ ज़िाम्मेदार हैं। हालाँकि, उन्होंने इस मंच से 130 करोड़ देशवासियों और खासकर मुस्लिमों से साफतौर पर कहा कि इस नागरिकता संशोधन कानून से किसी को कोई नुकसान नहीं है और न ही अभी एनआरसी कानून को लेकर सरकार के पास रूपरेखा तैयार है, तो फिर एनसीआर के नाम पर डरने और भय को लेकर अशान्ति क्यों है? रैली में लगभग एक लाख की भीड़ मेें प्रधानमंत्री ने दिल्लीवासियों को, खासकर जो अनधिकृत कॉलोनियों में भय और चिन्ता के साथ रह रहे हैं, उनसे कहा कि अब वे अपने मकान की रजिस्टी करवाये और अपने मकान में रहे। जो मध्यम और गरीब लोगों के लिए सबसे ज़रूरी है।

नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उन्होंने इसी साल मार्च में अनधिकृत कॉलोनियों के काम को खुद सँभाला था। जिसकी प्रक्रिया अक्टूबर-नवम्बर में पूरी हुई थी फिर लोकसभा और राज्यसभा मेंं अनधिकृत कॉलोनियों को लेकर  बिल पास करवाया। जो भी दिक्कत थी उस समस्या का समाधान कर दिया। उन्होंने अनधिकृत कॉलोनियों के लिए दिल्ली सरकार और कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि ये दोनों पाटियाँ चुनाव आते ही कॉलोनियों को पक्का करने जैसे वादा करती आ रही है। परन्तु भाजपा सरकार ने मामले को न तो लटकाया और अटकाया सीधा काम कर दिया, जिससे गरीब अब अपने मकान में निश्चिंता के साथ मामूली से दामों में रजिस्ट्री करा कर रह सकें। 17,00 से अधिक कॉलोनियों को नियमित किये जाने का काम  पूरा किया जा चुका है, जिसमें 12,00 कॉलोनियों के नक्शे जो पास हो चुके हैं जो पोर्टल में है। भाजपा ने कॉलोनियों के नाम पर राजनीति नहीं की है। जो कांग्रेस सालोंसाल से करती आ रही थी।

दिल्ली सरकार के रवैया और उनकी ओछी राजनीति पर मोदी ने कहा कि दिल्ली में दूषित पानी की वजह से दिल्ली वालों को बाज़ार से महँगा पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है। वाटर प्यूरीफाई लगवाना पड़ रहा है। दिल्ली में विकास कार्य ठप्प पड़े है और आयुष्मान योजना को लागू नहीं किया है, जबकि अन्य राज्यों ने लागू कर गरीबों को इलाज में काफी लाभ मिला है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि धर्म, आस्था के साथ-साथ किसी की भी जाति जाने बिना काम किया है। उन्होंने कहा कि उज्ज्वला योजना, पक्के मकान और आयुष्मान योजना का लाभ सभी देशवासियों को मिला तो फिर ऐसे में बँटवारा करने वालों की राजनीति करने वाले को शर्म आनी चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर किसी की धर्म और जाति के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है; क्योंकि ये नागरिकता संशोधन कानून नागरिकता देने वाला है, न कि छीनने वाला है।  उन्होंने राज्य सभा और लोकसभा के सभी सांसदों को सलाम करते हुए कहा कि इस कानून को बनाने में उनको धन्यवाद करता हूं। लेकिन कांग्रेस व विरोधी दल अफवाह फैलाकर लोगों की भावनाएँ भडक़ा रहे हैं और कह रहे हैं कि मुस्लिमों को अब कागज़ दिखाने होगे और भारतीय होने का सबूत देना होगा। पर वो भारतीय मुस्लिमों को आश्वासन देते हैं कि जिनके पुरखे यहाँ रह रहे हैं, उनको कोई दिक्कत ना होगी।

पुलिस को सलाम किया

पुलिस वालों का हौसला अफजाई करते हुए कहा कि जब भी समाज और देश की आंतरिक सुरक्षा पर कोई दिक्कत आती है, तो पुलिस अपनी जान पर खेलकर लोगों की सुरक्षा करती है। लेकिन आज देश में अराजक तत्त्व और भडक़े लोग पुलिस पर हमला कर रहे हैं, जो शर्मनाक है। क्योंकि 33 हज़ार पुलिसकर्मी लोगों की सुरक्षा करते हुए शहीद हो चुके हैं। देश की सुरक्षा में पुलिस दिन-रात सर्दी और बरसात को बिना देखा काम करते हैं। लेकिन आज कुछ राजनीतिक दल अपने वोट बैंक लिए परदे के पीछे बैठकर लोगों को भडक़ा रहे हैं, जिसके कारण पुलिस वालों पर पत्थरों से हमले किये जा रहे हैं। पुलिस लहूलुहान हो रही है।

एनआरसी पर फैलाया जा रहा झूठ

नरेन्द्र मोदी ने कहा कि एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं है। न तो कैबिनेट में और न ही संसद में इसकी कोई रूपरेखा तैयार है। तो ऐसे में लोगों को भडक़ाकर कांग्रेस पार्टी भय का माहौल बना रही है। उन्होंने कहा कि असम में एनआरसी कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया गया है। अरवन नक्सलियों को आड़े हाथों लिया और कहा कि ये लोग  बुद्विमान और पढ़े लिखे लोगों में शामिल हैं, जो डराने और भय का माहौल बनाने में लगे है और कह रहे कि डिटेंशन सेंटरों में एन आरसीलागू होने के बाद रखा जाएगा, जब कि डिटेंशन सेन्टर नाम का कोई सेन्टर नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन लोगों से कहना चाहते हैं कि पहले पढ़े तब जानकारी हासिल करें, जिससे लोगों को सही जानकारी मिल सकें।

नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर दलित नेता भी अपनी राजनीति कर रहे हैं, जबकि उनको समझना और जानना चाहिए कि पाकिस्तान से जो दलित लोग वर्षों पहले प्रताडि़त होकर आये थे, उनको यहाँ की नागरिकता मिलेगी। पाकिस्तान में दलित बँधुआ मज़दूर थे ऐसे में दलित नेता जो राजनीति कर रहे हैं।

घुसपैठिया और शरणार्थी के बीच अन्तर को बताते हुए कहा कि पड़ोसी देश से प्रताडि़त होकर जो भी आया है या आ रहा है वो सबसे पहले सरकारी कार्यालय में जाकर बताता है कि वो भारत में शरण लेने आया है; उसकी मदद करो। जबकि घुसपैठिया चुपचाप किसी कोने में छिपकर रहता है और अपनी जानकारी को छिपाकर रखता और किसी एजेंट के माध्यम से काम करता है और उसकी एवज़ में कुछ कमाई का हिस्सा देता है। ऐसे में घुयपैठियों को भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि महात्मा गाँधी का देश है। हम उनको मानते हैं। माहात्मा गाँधी ने कहा था कि जब भी कोई हिन्दू या सिख भारत देश में वापस आना चाहे, तो उसका स्वागत होना चाहिए। गाँधी जी ने देश के विभाजन के समय जो कहा था, उसको भाजपा और एनडीए सरकार पूरा कर रही है। ऐसे में कांग्रेस को न जाने क्यों दिक्कत हो रही है?

प्रधानमंत्री ने क्रमश: उन नेताओं को बातें याद करायी, जिन्होंने कभी संसद में कहीं थी। कांग्रेस पार्टी के नेता व पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, असम के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के नेता तरुण गोगोई और राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी और वांमपंथी पार्टी का ज़िाक्र किया, जो समाप्त होती जा रही है। उन्होंने कम्युनिस्ट नेता प्रकाश करात की ओर इशारा करते हुए कहा कि एक दौर था, जब ये नेता संसद में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात करते थे। लेकिन आज ऐसा क्या हो गया कि उनको मोदी द्वारा किये जा रहे काम और नागरिकता संशोधन कानून से दिक्कत आ रही है। ये समझ से बाहर है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री ये कह रहे हैं कि वे इस कानून को नहीं मानने वाले हैं; मैं उनसे कहना चाहूँगा कि वे अपने वकीलों से और अटार्नी जनरल से कानून की जानकारी हासिल कर लें। नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनको हर हाल में कानून को मानना होगा।

इस मौके पर दिल्ली के सातों सांसदों और तीन केन्द्रीय मंत्रियों ने रैली को सम्बोधित किया। जिसमें केन्द्रीय शहरीय विकास मंत्री हरदीप पुरी ने कहा कि अनधिकृत कॉलोनियों के नाम पर दिल्ली सरकार और कांग्रेस ने लोगों को ठगा है। पर भाजपा की केन्द्र सरकार ने अनधिकृत कॉलोनियों का पक्का कर मालिकाना हक देने का काम किया है। केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि दिल्ली में विधानसभा के चुनाव में भाजपा की सरकार बनने के बाद जो विकास कार्य अधूरे हैं, उनको पूरा किया जाएगा। उन्होंने दिल्ली में भाजपा की सरकार बनवाने के लिए लोगों से अपील की है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षबर्धन ने कहा कि भाजपा जो वादा करती है उसको हर हाल में पूरा करती है। रैली में पहुचे भाजपा नेता डॉ. एम.सी. शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नीति और नीयत पर किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए; क्योंकि नरेन्द्र मोदी देश के लिए काम कर रहे हैं। उनका नारा ही सबका साथ सबका विकास उसी का सबको लाभ मिल रहा है। भाजपा नेता व िफल्म बोर्ड के सदस्य राजकुमार सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर जो भी हिंसा की जा रही है, उस पर साफ कर दिया है कि यह कानून से किसी भी धर्म के लोगों को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं है।

नागरिकता संशोधन कानून सीएए को लेकर जो देश में आगजनी और हिंसा जैसी वारदात सामने आयी हैं, उसके पीछे जो तंज कसे गये हैं, उसका रंज हिंसा के रूप में देखने को मिला। जैसे संसद में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि घुसपैठिये देश में दीमक की तरह फैल गये हैं, उनको भगाना होगा और फिर कहा कि एनआरसी कानून को हर हाल में लागू किया जाए जैसा असम किया गया है, वैसा भी पूरे देश में होगा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चुनावी सभा झारखंड में कहा कि विरोधी दल तो पाकिस्तानी लोगों को नागरिकता देने चाहते हैं। ऐसी बातों से देश के मुस्लिमों यह मैसेज गया कि नागरिकता संशोधन कानून में गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने की बात कहीं गयी है। इन बातों से गुस्सा में आकर विरोध-प्रदर्शन किया गया। अगर सीएए और एनआरसी को लेकर लोगों को बीच जो भी भ्रांतियाँ हैं, उनको आसानी से समझाने में सफल हो जाती, तो देश में जो भी हंगामा हुआ है, वह शायद नहीं होता। देश में सीएए और एनआरसी को लेकर विरोध और समर्थन को लेकर आमने सामने की स्थिति जो स्थिति बन रही है या बनायी जा रही है अगर इसको समय रहते काबू नहीं पाया गया, तो भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं; क्योंकि देश के कई हिस्सों में ये नज़ारे देखे गये हैं।

क्लाइमेट एक्शन प्लान पर योजना जारी करे राज्य सरकार

देश के हिमाचली प्रदेश पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए खासे मशहूर है। खासतौर उत्तराखंड इसके लिए मशहूर है। इसकी राजधानी देहरादून को देश के प्रमुख संस्थान हैं, जो मौसम, वन्य संरक्षण वन और वनोपज आदि पर महत्त्वपूर्ण शोध और पठन पाठन भी करते हैं। एक अर्से से उत्तराखंड में भी और राज्यों में ही तरह अच्छे पर्यावरण, पारिस्थितिकी को और विकसित करने की चेतना जगाने के लिए देहरादून के भी युवा सचेत हुए। उन्होंने तय किया कि यदि प्रदेश सरकार मौसम परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) पर स्टेट एक्शन प्लॉन जारी नहीं करती। वे हर सप्ताह शुक्रवार को धरना-प्रदर्शन करेंगे।

देहरादून के युवाओं ने यह फैसला भले ही स्वीडेन की किशोरी ग्रेटा टर्मबर्ग की सक्रियता को देखकर लिया हो। उसने प्रमुख राष्ट्रसंघ मे तमाम राष्ट्रों के प्रमुखों के सामने अपनी बात रखी और उन पर अपना बचपन छीन लेने की वजह पूछी। ग्रेटा को तात्कालिक तौर पर जवाब नहीं मिला। लेकिन भारत जैसे तमाम विकासशील देशों के प्रमुखों और इनके प्रशासनिक अधिकारियों सामने ग्रेटा का चेहरा और उसके सवाल अलबत्ता उठते रहे।

उत्तराखंड के किशोरों ने हर शुक्रवार को देहरादून में रैली निकालकर राज्य सरकार से स्टेट एक्शन प्लॉन जारी करने की माँग का स्वागत पूरे राज्य में किया गया है। यह भी अच्छा है कि अपनी सादगी और पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर स्वीडन के राजा कार्ल सोलह गुस्ताफ फोक हसू वाट्र्स पत्नी और रानी सिलिवया के साथ उत्तराखंड में है। वे गंगा की सफाई के अभियान में खास योगदान करेंगे। मुम्बई में वरसोवा तट पर सफाई अभियान का जायज़ा भी वे ले चुके हैं। वे दूसरे तटों की सफाई भी तकनीक और विशेषज्ञों के ज़रिये पूरी मदद करते बने है। सारी दुनिया मे स्वीडन की विभिन्न कम्पनियों ने पर्यावरण  और पारिस्थितिकी को सँजोये रखने में खासी कलाकारी छायी है। ब्राजील के अमेजन जंगलों में आग से बचाने, अफ्रीका में विभिन्न छोटे-बड़े देशों के गाँवों में नदियों तालाबों के पानी को ठीक कहने में इनके का सवाल और विशेषज्ञ लगे हैं। इस देश में 1070 में पर्यावरण सम्मेलन में ही वैज्ञानिक तरीके से पर्यावरण और पारिस्थितिकी को सँभालने का निश्चय किया और इसकी मुहिम जारी है।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी चलाने की मुहिम में देहरादून के कई कॉलेज के छात्र हैं। इनकी माँग है कि उत्तराखंड रैली करने वाले युवाओं में जो अपना मेमोरेंडम केन्द्र के राज्य कार्यालय और राज्य के मुख्यमंत्री को दिया है, उसमें चार मुख्य माँगों में है ग्लैशियरों का पिघलना और झरने का पानी का कम होना, राज्य में तेज़ी से कम हो रहा वन क्षेत्र और प्राकृतिक जैविक सम्पदा को सोजाने और संरक्षण और बढ़ रहा वायु और ध्वनि प्रदूषण। इसके साथ ही देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और दूसरे छोटे-बड़े शहरों में कूड़े का बढ़ता अम्बार और उसके निस्तारण की वैज्ञानिक प्रक्रिया का अभाव, विभिन्न नदियों, झरने और सोतों के प्राकृतिक उद्गम स्रोतों का संरक्षण, वन्य जीवों का संरक्षण और उनके लिए नियत क्षेत्र में कटौती करने पर रोक, ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण जो राज्य में औद्यौगिकीकरण के चलते हुआ है, उसे रोका जाए। आवागमन की सुविधा हो और सभी जगह विद्युुतीकरण हो।

हिमालयी राज्य के नागरिक राज्य बनने के दो दशक बाद भी आज नहीं जानते कि देहरादून के युवा लोगों मेें जो माँगें उठायी हैं, उन पर सरकारी सोच और सरकारी कायदे-कानून क्या हैं? इसी कारण भवन निर्माता मनमानी कर रहे हैं और राज्य में हर कहीं जनता और पुलिस प्रशासन के स्तर पर भी मनमर्ज़ी है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संरक्षण की आवाज़ दे रहे युवाओं का विचार है कि स्थानीय स्तर पर पर्यावरण और पारिस्थितिकी के मुद्दे उठाने और उन पर अमल होने पर ही वैश्विक स्तर पर क्लाइमेंट चेंज के खतरों के प्रति जनता को आगाह किया जा सकेगा। हम तो अपने मौलिक अधिकार ही माँग रहे हैं। एक और किशोर कार्यकर्ता मनीष सबरवाल ने कहा कि हम राज्य सरकार और परिवार से सिर्फ शुद्ध, शान्ति, मिट्टी, शुद्ध भोजन और वनों की कटाई रोकने, साफ गंगा ही तो माँग रहे हैं।

स्वीडेन की अकेली किशोरी ग्रंटा टर्नबर्ग भी पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्रसंघ मे काफी समय से जलवायु परिवर्तन और जनता में जागरूकता पैदा करती रही हैं। उनकी पहल से सारी दुनिया में पर्यावरण के प्रति एक जागरूकता बढ़ी है। विभिन्न देशों में योजनाकारों और राजनीतिकों में भी पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर विचार करते हुए फैसला लेने की चेतना भी और बढ़ी है।

ग्रेटा ने संयुक्त राष्ट्रसंघ से माँग की थी कि आप मेरा बचपन लौटा दो जिसे आपने छीन लिया। यही देहरादून के कॉलेजों के किशोर और किशोरियाँ माँग रहे हैं। केन्द्रीय पर्यावरण, वन, क्लाइमेट चेंज, मंत्रालय देख रहे मंत्री प्रकाश जावाडेकर ने कहा कि क्लाइमेट एक्शन समिट अभी हाल न्यूयॉर्क में हुई। वहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की भारत नॉन-फॉसिल ईधन का उपयोग कर ऊर्जा का उत्पाद 175 जीडब्ल्यू 2022 तक कर देगा। यह सिलसिला जारी रखेंगे और जल्दी ही 450 जी डब्ल्यू तक पहुँचेंगे। उन्होंने उसी समिट में ग्लोबल कोलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर भी शुरू किया।

प्रकाश जावड़ेकर ने बताया घरेलू मोर्चे पर भारत कम्पसेटरी एफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड लैनिंग अथॉरिटी (सी.ए.एम.पी.ए.) गठित की है। इसके ज़रिये देश के 26 राज्यों और केन्द्रशासित क्षेत्रों को वनीकरण अभियान के लिए रुपये 47,436 करोड़ मात्र का कोष बना रखा है। देश में आदिवासियों को पूरे अधिकार दिये गये हैं। उनका वनीकरण बढ़ाने में खासा योगदान है।

पिछले एक दशक में सारी दुनिया में यानी बहासा से जापान और मोजंबीक तक उष्ण कटिबंधीय तूफान उठे। जंगलों में आग से ब्राजील से आर्कटिक और ऑस्ट्रेलिया तक भयावह असर रहा। भारत में मौसमी विपदाओं के चलते ही बारिश का तौर-तरीका बदल गया। इसके कारण विभिन्न प्रदेशों में लोगों को जानमाल का खासा नुकसान हुआ। मौसमी बदलाव का प्रकोप मध्य अमेरिका, उत्तरी रूस और विभिन्न देशों में दिखा। समुद्र में भी हलचल रही। समुद्र के अंदर तापमान बढ़ा। इसके चलते समुद्र के अंदर मछलियाँ, पौधे आदि काफी बर्बाद हुए।

पूरे वातावरण में जहाँ कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा पिछले साल 2018 में जहाँ विभिन्न हिस्सों मे हर 10 साल लाख पर 407.8 थी। वह भी 2019 में लगाताार बढ़ रही है। वल्र्ड मेटेओरोलॉॢजकल ऑग्रेनाइजेशन के अनुसार, जो आँकड़े तापमान कॉलेकर आये हैं, वे खासे भयावह हैं। पहले पाँच साल में औसतन तापमान (2015-2019 तक) काफी बढ़ा हुआ था और अब बहुत साफ है कि 10 साल की अवधि में पृथ्वी पर बढ़ते तापमान ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। वर्ष 2019 को दूसरा या तीसरा ऐसा साल माना जाएगा, जिसने गर्माहट के सारे रिकॉर्ड तोड़े हैं। आर्कटिक समुद्र की बर्फ जो सितंबर-अक्टूबर में कुछ कम होती थी वह इस साल कई कम हुई। समुद्री के अन्दर की पारिस्थितिकी तक को चौपट कर गया। जलवायु परिवर्तन के कारण अभी हाल यह देखा जा सका कि एक दशक की गिरावट के बाढ़ पूरी दुनिया में भारत 8 करोड़ 20 लाख से ज़्यादा लोग भुखमरी के शिकार हैं।

मौसम के फेरबदल के चलते करोड़ों लोगों को बेघर बार होना पड़ा। भूख का सामना करना पड़ा। भारत पाकिस्तान और एशियाई देशों में मौसमी बदलाव के चलते कहीं सूखा, कहीं बाढ़ की स्थिति बनी लोगों को भूखे भी सोना पड़ा।

पूरी दुनिया की जलवायु का अध्ययन करके जो सालाना रिपोर्ट बनायी जाती है उसमें फिर एक-एक दशक की खासियत देखते हैं और सभी देशों को प्रतिनिधियों की बैठक में पूरा जायज़ा लिया जाता है। सभी को खतरे और सावधानियाँ बरतने की चेतावनी दी जाती है। उसी रिपोर्ट के आधार पर यह जानकारी हुई है कि धरती का तापमान बेहद गर्म रहा। बल्कि कहा जाए कि पूरा दशक (2010-2019) ही बेहद गर्म रहा।

अब दुनिया भर में राष्ट्र प्रमुख, अफसरशाही और जनता जलवायु परिवर्तन के चलते धरती की लगातार गर्माहट से होने वाले शहरों का अनुमान लगाने लगे हैं। इसमें सबसे ज़्यादा प्रभावी काम बच्चे और किशोरों ने किया है। वे लगातार कर रहे हैं। हर सप्ताह में शुक्रवार को प्लेकॉई हाथों में लिए अपने शहरों की कचहरी, पर्यावरण विभाागों, मंत्रालयों पर धरना-प्रदर्शन करते हुए अपील कर रहे हैं, हमें इस सुन्दर दुनिया में जीने दो।

आॢथक स्थिति का बहाना न बनाए सरकार : फडणवीस

क्या वाकई महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई है?

उन्होंने कहा है कि बिलकुल नहीं, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि राज्य की आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई नहीं है। वर्तमान राज्य सरकार सिर्फ शोर-शराबा करके लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। राज्य की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह बात साबित हो गयी है कि राज्य की आर्थिक स्थिति उत्तम है।

तो फिर यह आरोप क्यों?

दरअसल, यह एक कवर फायङ्क्षरग की कोशिश है। शिवसेना यह क्यों भूल रही है कि पूर्व सरकार में, जिसमें हमारे साथ शिवसेना भी थी; उस समय जितने भी निर्णय लिए गये, उन सबके आधार पर योजनाएँ बनायी गयीं। उसमें शिवसेना भी साथ में थी यह सब कांग्रेस और एनसीपी के कहने पर के इशारे पर हो रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट कहती है कि हर मामले में महाराष्ट्र की स्थिति हमारे से पहले वाली सरकार से बेहतर स्थिति में।

हमारी सरकार के दौरान यानी पिछले पाँच साल में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग क्षेत्र में 59 लाख रोज़गार का निर्माण हुआ, जो पूरे देश में सबसे ज़्यादा है। इसके अलावा सबसे ज़्यादा निवेश महाराष्ट्र में हुआ है। मुम्बई में हर प्रकार की आवश्यक मूलभूत सुविधाओं को लेकर प्रोजेक्ट शुरू किये गये समृद्धि महामार्ग का काम शुरू हुआ। आप कैसे भूल सकते हैं कि हमारी सरकार ने मराठा आरक्षण को मूर्त रूप दिया। धनगर समाज को न्याय दिया और उन्हें 1000 करोड़ रुपये प्रावधान रखा मैं विनती करूँगा कि इस प्रावधान को स्थगित न करें।

आपकी सरकार ने कर्ज़ तो लिया ही था?

यह बात सच है कि हमारी सरकार ने कर्ज़ लिया; लेकिन उसका इस्तेमाल महाराष्ट्र के विकास के लिए किया और इस बात का विशेष ध्यान रखा उस कर्ज़ के चलते राज्य के आर्थिक हालात न गड़बड़ाये। लेकिन नयी सरकार अब कर्ज़ का रोना रो रही है और ग्राम विकास और नगर विकास के कई कामों को स्थगित कर रही है। इतने सारे स्थगन आदेशों को देखते हुए लोगों में इस सरकार की इमेज एक स्थगन आदेश देने वाली सरकार यानी स्थगन सरकार बनकर रह गयी है, जो सरकार के खतरनाक है।

आप किसानों की बात कर रहे हैं। आपकी सरकार पर भी किसानों के लिए कुछ न करने का आरोप है?

हमारी सरकार ने किसानों के लिए सबसे ज़्यादा काम किया। याद कीजिए हमारी केयरटेकर सरकार ने 10 हज़ार करोड़ रुपये किसानों के लिए मंज़ूर किया था।

माननीय मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जी ने 25 हज़ार प्रति हेक्टर मदद का वादा किया था, उन्हें अब अपना वादा पूरा करना चाहिए। मेरा मानना है कि हमें आश्वासन खुद पर भरोसा कर देना चाहिए। आश्वासन देने के लिए दूसरों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। आज भी हम किसानों के हित के लिए बातें कर रहे हैं। संविधान के अनुसार सरकार में कम-से-कम 12 मंत्री होने चाहिए। लेकिन यहाँ पर सिर्फ छ: मंत्रियों पर सरकार चल रही है। हमने इस पर आपत्ति नहीं उठायी; क्यों? वह इसलिए कि हम चाह रहे थे कि हमारी वजह से देर न हो, …किसानों को समय पर मदद मिले। लेकिन अफसोस कि ऐसा कहीं नहीं दिखाई दे रहा कि इस सरकार को किसानों की चिन्ता है।

आपने तो त्रिशंकु सरकार की परिभाषा बदल दी?

मैं इस सरकार की…, इस सरकार की बात कर रहा हूं। यहाँ पर त्रिशंकु की परिभाषा है कि तीनों दल एक-दूसरे पर शंका कर रहे हैं।

आप कुछ ज़्यादा शायर तबीयत के हो गये हैं अपने सभागृह में कुछ कहा था! कुछ पन्ने…?

हाँ! इस तरह कहा था-

कुछ पन्ने क्या फटे, ज़िान्दगी की किताब के,

ज़माने ने समझा, दौर हमारा खत्म हो गया।

नौवीं पास पंजाबी लेखक को साहित्य अकादमी सम्मान

कहते हैं कि कला किताबी तालीम की मोहताज नहीं होती, इसका बड़ा उदाहरण कबीर हैं। आज के दौर की बात करें, तो इसका एक उदारहण पंजाबी लेखक कृपाल कज़क हैं। पंजाब के ‘वेरियर एलविन’ के नाम से मशहूर कृपाल कज़क की रचनाएँ इतनी उत्कृष्ट हैं कि उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार-2019’ के लिए चुना गया है। साहित्यकार कृपाल कज़क शशि थरूर जैसी उन 23 साहित्यकार हस्तियों की सफ में शामिल हो गये हैं, जो भारत की 23 प्रमुख भाषाओं की नुमाइंदगी कर रही हैं। बड़ी बात यह है कि नौवीं पास कृपाल कज़क ने राज मिस्त्री के पेशे में रहकर भी पंजाबी साहित्य को बुलंदियों पर पहुँचाने का काम किया है। 76 वर्षीय कज़क की पंजाबी में लिखी छ: लघु कथाओं के संकलन ‘अंतहीन’ को साहित्य के सर्वोच्च सम्मान के लिए चुना गया है।

शेखपुरा ज़िाले के गाँव बंदोक (जो अब पाकिस्तान में है) में जन्मे कज़क जब चार साल के थे, तभी उनका परिवार शेखपुरा से पटियाला आ गया था। शुरुआत में परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी, जिसके चलते कृपाल कज़क को पढ़ाई छोडक़र राज मिस्त्री का पेशा अपनाना पड़ा। लेकिन रोज़ी-रोटी के लिए अपनाये गये इस पेशे में रहकर और दिन-रात मेहनत करके भी उनके अंदर का साहित्यकार मरा नहीं, बल्कि उन्होंने उसे और निखारा। राज मिस्त्री के पेशे के दौरान वे खानाबदोश जनजातियों के निकट कई साल तक रहे और खानाबदोशों के जीवन पर गहन शोध किया। बड़ी बात यह थी कि कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद उन्होंने महज़ 19 साल की उम्र में पहली लघु कथा लिखी। यहाँ से लिखने का सिलसिला ऐसा चला कि तंगहाली में भी कज़क ने लेखन जारी रखा।

एक बार जब उनकी मुलाकात पंजाबी और हिन्दी की जानी-मानी उपन्यासकार, निबंधकार और कवयित्री अमृता प्रीतम से हुई, तो वे कज़क की कहानियाँ पढक़र प्रभावित हुईं और उन्होंने कज़क जी को किताबें लिखने के लिए प्रेेरित किया। कज़क ने अमृता के प्रकाशन ‘नागमणि’ के लिए एक कॉलम लिखना शुरू किया। उनकी पहली पुस्तक ‘काला इल्म’ (काला जादू) 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस कम पढ़े-लिखे साहित्यकार कृपाल कज़क ने अपने साहित्य से साहित्य प्रेमियों, लेखकों, आलोचकों-समालोचकों और शिक्षकों को इतना प्रभावित किया कि उसके बाद पंजाबी विश्वविद्यालय ने उन्हें सहायक शोधकर्ता (असिस्टेंट रिसर्चर) के रूप में निमंत्रित किया, जहाँ उन्होंने खानाबदोश पंजाबी जनजातियों, जैसे कि सिकलीगर और गडी लोहारों की संस्कृति तथा जीवन पर गहन शोध किया और इसी विश्वविद्यालय में ही प्रोफेसर नियुक्त हुए तथा यहीं से सेवानिवृत्त हुए। इस शोध कार्य के बाद से उनकी तुलना ब्रिटिश मूल के मानव विज्ञानी (एंथ्रोपोलॉजिस्ट) वेरियर एल्विन से की जाती है। पंजाबी विश्वविद्यालय ने कज़क की लिखी गयी 12 से अधिक शोध पुस्तकों को प्रकाशित किया है, इनमें से ज़्यादातर शोध सामग्री पर केन्द्रित हैं। इसके अलावा उन्होंने बच्चों के लिए भी किताबें लिखी हैं, जिनमें- ‘खुल जा सिमसिम’, ‘जो दर्द नहीं’, ‘आयो पिंड देखिए’ व अन्य शामिल हैं।

कज़क ने पंजाबी में 24 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उनकी अधिकांश पुस्तकों में भारत के जनजातीय समुदायों के जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है। टेलीिफल्म, डॉक्यूमेंट्री और अन्य क्षेत्र में भी उन्होंने योगदान दिया है। कृपाल कज़क के लेखन की हर कहीं सराहना की जाती है। कज़क के पिता साधु सिंह रामगढिय़ा एक कथावाचक थे और अरबी, फारसी और संस्कृत भाषाओं के अच्छे जानकार थे। वहीं उनकी माता वीर कौर एक गृहणी थीं।

कृपाल कज़क के अलावा 2019 का साहित्य सम्मान पाने वालों में लेखक और राजनेता शशि थरूर शामिल हैं। उन्हें सन् 2016 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘एन एरा ऑफ डार्कनेस : द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया’ के लिए यह सम्मान दिया जाएगा। साहित्य अकादमी सम्मान सभी साहित्यकारों को 25 फरवरी, 2020 को नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में प्रदान किया जाएगा।

वो साथ में बिरयानी खाएँ, आप लड़ो

दिसंबर का आधा महीना भारत के लिए बहुत ही दुर्भाग्य रहा।  या यूँ कहें कि सन् 2019 का अंत हमारे लिए बहुत कड़ुवे और दु:खी कर देने वाले अनुभवों वाला रहा। जनवरी में सब कुछ शान्त रहे, इसकी हम कामना करते हैं। दिसंबर में जिस तरह से पूरे देश  में सीएए और एनआरसी के नाम पर विरोध-प्रदर्शन, ङ्क्षहसा और प्रतिङ्क्षहसा का माहौल बना रहा, वह किसी भी हाल में ठीक नहीं कहा जा सकता। दु:खद यह है कि आम लोग नहीं समझ पाये कि उनके शान्ति से किये जा रहे विरोध-प्रदर्शनों पर सियासी गिद्द नज़रें भी टिकी हुई हैं। यही वजह रही कि सीएए और एनआरसी की इसी मुखालिफत का सियासी जालसाज़ों के इशारे पर काम करने वाले अराजक तत्त्वों ने फायदा उठाया और जगह-जगह आगजनी तथा तोडफ़ोड़ की। इससे पहले एक के बाद एक तकरीबन सात-आठ युवतियों से सामूहिक दुष्कर्म ज़िान्दा जलाया गया। उफ! आिखर किस रास्ते पर जा रहे हैं हम? क्या हमें हमारे बुजुर्गों ने इसी दिन के लिए आज़ाद कराया था? क्या हमारी ज़िम्मेदारियाँ इस देश के प्रति, अपनी नयी तथा आने वाली पीढिय़ों के लिए खत्म हो गयी हैं? क्या हम एक उजड़ा हुआ, गरीब, आपसी टकराव वाला, कमज़ोर और टुकड़ों में बँटा हुआ देश अपनी संतानों को देकर जाना चाहते हैं? अभी तो हमने आज़ादी का शतक भी नहीं बिताया है। अभी तो हमारे उन बुजुर्गों की एकता और दोस्ती की मिसालें भी हमारे स्मृति पटल से विस्मृत नहीं हो सकी हैं, जिनमें उनके द्वारा मिलकर आज़ादी की लड़ाई लडऩे के हज़ारों िकस्से हैं। फिर भी हम एक दूसरे के दुश्मन होने को तैयार हैं। वह भी किसी एक कानून को लेकर और दुर्भाग्यवश उसमें हमने मज़हब की दीवार खड़ी कर दी है।

लेकिन हम लोगों को इतना ध्यान रखना चाहिए कि  अगर हम आपस में लडक़र मर भी जाएँगे, तो भी सियासतदाँ मज़े ही करेंगे, अपने फाइव स्टार होटल टाइप बंगलों में हमारी मूर्खता पर ठहाके लगाएँगे, मिल-बैठकर बिरयानी उड़ाएँगे। शायद ही कम लोग हैं, जो इन सियासी लोगों की चाल को समझ पाते हैं। मेरे दादा जी, जिन्होंने खुद एक अंग्रेज का सिर फोड़ दिया था; कहा करते थे कि 70 प्रतिशत सियासदाँ इंसानियत और देश के असली दुश्मन हैं। ये लोग जनता का खून चूसने के अलावा किसी का भला नहीं करेंगे। इन्हें सिर्फ अपनी रोटियाँ सेंकने से मतलब है।  इस बात में बहुत सच्चाई है। मेरे खुद के कई ऐसे अनुभव हैं, जिससे यह बात शत्-प्रतिशत सच साबित होती है। ऐसा ही एक िकस्सा मुझे खूब याद है। उन दिनों मैं 10वीं का छात्र था।

बरेली के प्रगतिशील कस्बे मीरगंज के एक मोहल्ले में दंगे भडक़ गये। पहले तो यह बात फैली कि मंदिर और मस्जिद में लाउडस्पीकर को लेकर तनाव है। दोनों ही पक्ष लाउडस्पीकर को लेकर एक-दूसरे का विरोध कर रहे थे और अपने-अपने धाॢमक स्थलों पर लाउडस्पीकर लगाने की ज़िाद पर अड़े थे। इसके पीछे दोनों पक्षों के अपने-अपने अनेक तर्क थे। मसलन, हमारे यहाँ लाउडस्पीकर पहले से लगा है। आपके लाउडस्पीकर से हमारी पूजा में या हमारी इबादत में खलल पड़ती है। आप लोग बहुत तेज़ लाउडस्पीकर बजाते हैं। इस मामले में मौलवियों का कहना था कि हम सिर्फ अजान के लिए या किसी खास सूचना के लिए ही लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करते हैं। जबकि पुजारी पूजा करने के अलावा घंटों भजन बजाते रहते हैं। वहीं पण्डितों का आरोप था कि मौलवी बहुत ज़ोर से पूजा के समय ही अजान लगाते हैं, जिससे पूजा में बहुत खलल पड़ती है। जबकि सच्चाई यह थी कि इससे पहले भी मंदिर और मस्जिद दोनों में लाउडस्पीकर लगे थे; हालाँकि, दोनों ही धाॢमक स्थलों पर झगड़े से पाँच-छ: साल पहले ही लाउडस्पीकर लगे थे और कभी भी कोर्ई झगड़ा नहीं हुआ था। फिर अचानक यह झगड़ा कैसे शुरू हो गया? इस बात पर कोर्ई भी विचार नहीं कर रहा था। जब पूरी तरह मोहल्ले के साथ-साथ पूरे कस्बे में तनाव फैल गया। दो मुस्लिम नेता और तीन हिन्दू नेता अपनी-अपनी तरफ लगी आग में लगातार घी डाल रहे थे और एक-दूसरे के मज़हब को भी कोस रहे थे। दोनों ही तरफ के अराजक तत्त्व दंगे करने पर उतारू थे और कई जगह आगजनी, तोडफ़ोड़ जैसी घटनाओं को अंजाम भी दे चुके थे। इस ङ्क्षहसा में कई निर्दोष लोग घायल भी हुए, कई निर्दोषों की सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया गया। सरकारी सम्पत्ति को भी नुकसान पहुँचाया गया। तभी करीब छ: दिन बाद एक दैनिक समाचार पत्र में खबर छपी कि मुस्लिम और हिन्दू नेताओं ने इस दंगे के लिए फंडिंग की है और कल रात दोनों समुदायों के नेताओं ने एक साथ बैठकर बिरयानी और शराब उड़ायी है।

बस फिर क्या था, दोनों ही तरफ के लोगों में दोनों समुदायों के नेताओं को कोसना शुरू कर दिया और उन्हें गिरफ्तारी करने की पुलिस से माँग की। हालाँकि, नेताओं की गिरफ्तारी तो नहीं हुई, लेकिन यह मामला सामने आने और पुलिस अधिकारियों के दोनों समुदायों के लोगों को समझाने पर झगड़ा शान्त हो गया। कुछ अराजक तत्त्वों को ज़रूर पकड़ लिया गया, जो ज़रूरी भी था। अब फिर से वही पुराना सद्भाव और भाईचारे का माहौल था। सातवें दिन मंदिर में भी लाउडस्पीकर पर पूजा हुई, भजन भी बजे और मस्जिद में भी लाउडस्पीकर पर अजान भी हुई। न किसी को  किसी से कोर्ई आपत्ति थी और न ही कोर्ई शिकायत। यही धाॢमक एकता और भाईचारा हमारे देश की संस्कृति है। पर किसे समझाया जाए? ज़रा-ज़रा सी बात पर दोनों समुदायों के लोग सडक़ों पर आ जाते हैं। ङ्क्षहसा अराजक तत्त्व करते हैं, जो कि सियासी लोगों के गुर्गे या भाड़े के टट्टू होते हैं और पिटते-मरते आम लोग हैं। सियासतदाँ एक साथ बैठकर बिरयानी खाते हैं और लोग जिस भी सियासतदाँ को पसन्द नहीं करते, उसके िखलाफ ज़हर उगलते हैं, गाली-गलौच करते हैं। आम लोग क्या, अनेक बुद्धिजीवी भी बह जाते हैं इस सियासी माहौल में।

इरफ़ान पठान का सन्यास

एक बेहतरीन ऑल राउंडर इरफ़ान पठान ने शनिवार को क्रिकेट के तीनों फार्मेट से संन्यास का ऐलान कर दिया। अपनी स्विंग गेंदबाजी से दुनिया के किसी भी बल्लेबाज को परेशान करने की क्षमता रखने वाले इरफ़ान को जब टीम से बाहर  किया गया, उनमें तब काफी क्रिकेट बाकी थी। बहुत से जानकारों को लगता कि उन्हें उचित अवसर नहीं दिए गए। आजकल पठान कमेंट्री में व्यस्त दिखते हैं।

इरफ़ान कितने बेहतर और उपयोगी क्रिकेटर थे यह इस बात से साबित हो जाता है कि महज २९ टेस्ट मैचों में उन्होंने ३१.५७ की औसत से एक शतक सहित ११०५ रन बनाए, जबकि गेंदबाजी में १०० विकेट भी लिए। वे कितने बेहतरीन बॉलर थे यह इस बात से साबित हो जाता है कि महज २९ टेस्ट में उन्होंने दो बार १० या उससे अधिक विकेट जबकि ७ बार ५ विकेट लिए।

यही नहीं वनडे में इस बेहतरीन ऑलराउंडर ने १२० मैच खेले और १५४४ रन बनाए जिनमें पांच अर्धशतक हैं। बॉलिंग में इरफ़ान ने १७३ विकेट लिए। रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए इरफान भावुक दिखे और कहा  – ”मैं उस खेल को ऑफिशियली  छोड़ रहा हूं, जो मुझे सबसे अधिक प्यारा है।”

बहुत से क्रिकेट जानकार इरफ़ान को ”किंग आफ स्विंग” कहते थे। उनका कहना था कि अपने दिन में इरफ़ान दुनिया के किसी भी बल्लेबाज की गिल्लियां बिखेरने की क्षमता रखते थे। रिटायरमेंट का ऐलान करते हुए भावुक इरफ़ान पठान ने कहा कि वे  सभी तरह की क्रिकेट से संन्यास ले रहे हैं।

संन्यास का ऐलान करते हुए पठान ने कहा – ”यह मेरे लिए भावुक पल है, लेकिन यह पल हर खिलाड़ी की जिंदगी में आता है। मैं छोटी जगह से हूं और मुझे सचिन तेंडुलकर और सौरभ गांगुली जैसे महान खिलाड़ियों के साथ खेलने का अवसर  मिला, जिसकी हर  खिलाड़ी को तमन्ना होती है।”

पठान ने टीम के तमाम सदस्यों, कोच, स्पोर्ट स्टाफ और प्रशंसकों का आभार जताया। इरफान ने कहा कि जिंदगी का सबसे खास लम्हा था जब भारतीय टीम की कैप मिली। ”मैं क्या कोई भी क्रिकेटर उस लम्हे को नहीं भूल सकता, जब वह अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है।”

इरफ़ान का खराब वक्त २०११-१२ में दिखा। ऑफ फॉर्म इरफ़ान को टीम इंडिया से बाहर कर दिया गया। उन्होंने अपना आखिरी इंटरनैशनल मैच दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अक्टूबर, २०१२ में खेला जो टी-२० मैच था। वे भारतीय टीम के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ियों में  दर्शक उन्हें बहुत पसंद करते रहे। एक मौके पर उनकी बेहतरीन बल्लेबाजी देख उन्हें भारतीय तीन ने ओपनिंग भी करवाई और उन्होंने कप्तान को निराश नहीं किया। उनके संन्यास से देश का एक उम्दा खिलाड़ी परिदृश्य से बाहर हो गया है, हालांकि संभावना है कि वे कमेंट्री करते रहेंगे।

महाराष्ट्र में राज्यमंत्री बनाये जाने से खफा सत्तार का इस्तीफा

जुमा-जुमा दो हफ्ते पुरानी महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी सरकार में मंत्री पदों को लेकर खींचतान शुरू हो गयी है। हालत यह है कि मंत्री पद बंटने से पहले ही राज्य मंत्री बनाये गए अब्दुल सत्तार से शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

सत्तार, शिव सेना से ही ताल्लुक रखते हैं। कांग्रेस में भी मंत्री बनने और विभागों के बंटबारे पर खींचतान दिख रही है। नाराजगी की शुरुआत शनिवार को हुई जब एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन सरकार में हाल में राज्य मंत्री बनाये गए  शिवसेना नेता अब्दुल सत्तार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वह केबिनेट मंत्री बनना चाहते थे लेकिन नहीं बनाए गए। नाराज सत्तार ने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया।

शिव सेना नेता संजय राउत ने इसे मामूली बात कहते हुए कहा कि सब ठीक हो जाएगा। उनके मुताबिक ”यह शिवसेना नहीं, विकास अघाड़ी की सरकार है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की जाएगी, सब ठीक हो जाएगा।”

चर्चा है कि शिवसेना ही नहीं कांग्रेस के कुछ विधायक भी खफा हैं। मुख्यमंत्री रह चुके पृथ्वीराज चह्वाण नाराज नेताओं की पंक्ति में हैं।  ऐसा कहा जा रहा है कि विधायकों को मंत्रालयों में खपाने के लिए कुछ नए विभाग सृजित किये जा सकते हैं और इनपर  हो। यह काम होते ही विभाग बाँट दिए जायेंगे। अभी तक एनसीपी मलाईदार विभाग लेने में आगे दिख रही है।

शिमला, मनाली में हिमपात

शिमला में शनिवार को हिमपात हुआ। फोटो - राकेश रॉकी

नए साल से बर्फ का इन्तजार कर रहे सैलानियों को आखिर शनिवार को बर्फ की सौगात मिल गयी। शिमला में दोपहर करीब दो घंटे ताल चले हिमपात ने पहाड़ों की  रानी में सफ़ेद चादर बिछा दी। कुफरी और नारकंडा के अलावा मनाली में भी जबरदस्त बर्फबारी हुई है। प्रदेश में छह स्थानों पर तापमान जमाव बिंदु से नीचे चल रहा है।

शिमला में सैलानियों का मेला लगा हुआ है। बर्फबारी से राज्‍य में शीतलहर बढ़ गई है। दोपहर के वक्‍त शिमला में बर्फबारी का दौर शुरू हुआ जो दो  चला। इससे पहले बजरी (बर्फ और ओले के बीच की स्थिति) गिरी जो जमनी भी शुरू हो गयी। बाद में बर्फबारी शुरू हो गयी जिससे सैलानी चहक उठे।

सुबह ही रोहतांग, मनाली, पलचान में हिमपात हुआ। सोलंगनाला में नववर्ष पर पहली बर्फबारी हुई और वहां भी काफी सैलानी जुटे हुए हैं। जलोड़ी दर्रे पर बर्फबारी से नैशनल हाईवे ३०५ बंद हो गया है।

कांगड़ा की धौलाधार चोटियों पर भी हिमपात हुआ है। बर्फबारी से समूचा प्रदेश ठंड की चपेट में है। जिला चंबा के कबायली क्षेत्र पांगी में शनिवार दोपहर तक भारी हिमपात दर्ज किया गया हे। इस कारण यहां मार्ग एक बार फ‍िर से ठप हो गए हैं।

उधर मौसम विभाग ने प्रदेश में छह जनवरी को भी कई जगह बर्फबारी की संभावना जताई है। निचले क्षेत्रों में वर्षा की संभावना है।

मुजफ्फरनगर में पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचीं प्रियंका गांधी

लखनऊ में पीड़ित परिवार से मिलने के एक हफ्ते बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी शनिवार को बिना निर्धारित कार्यक्रम के उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर पहुंचीं हैं। वहां पहुंचते ही गांधी सीधे मौलाना असद के घर पहुंचीं और पीड़ित लोगों से बात की। घटना में फायरिंग में एक युवक की मौत हो गयी थी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रियंका के साथ कुछ स्थानीय नेता भी हैं जिनमें वरिष्ठ नेता इमरान मसूद और पूर्व विधायक पंकज मलिक शामिल है। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि प्रियंका नहर की पटरी से होते हुए मुजफ्फरनगर पहुंचीं। उनकी उपद्रव के दौरान जान गंवाने वाले व्यक्ति के परिवार के सदस्यों से मुलाकात हुई है।

सभावना है कि प्रियंका गांधी वापसी में मेरठ जा सकती हैं। याद रहे मुजफ्फरनगर  उपद्रव में एक युवक की मौत हो गई थी। वहां प्रदर्शन के दौरान काफी हिंसा और  तोड़फोड़ हुई थी।