क्लाइमेट एक्शन प्लान पर योजना जारी करे राज्य सरकार

देश के हिमाचली प्रदेश पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए खासे मशहूर है। खासतौर उत्तराखंड इसके लिए मशहूर है। इसकी राजधानी देहरादून को देश के प्रमुख संस्थान हैं, जो मौसम, वन्य संरक्षण वन और वनोपज आदि पर महत्त्वपूर्ण शोध और पठन पाठन भी करते हैं। एक अर्से से उत्तराखंड में भी और राज्यों में ही तरह अच्छे पर्यावरण, पारिस्थितिकी को और विकसित करने की चेतना जगाने के लिए देहरादून के भी युवा सचेत हुए। उन्होंने तय किया कि यदि प्रदेश सरकार मौसम परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) पर स्टेट एक्शन प्लॉन जारी नहीं करती। वे हर सप्ताह शुक्रवार को धरना-प्रदर्शन करेंगे।

देहरादून के युवाओं ने यह फैसला भले ही स्वीडेन की किशोरी ग्रेटा टर्मबर्ग की सक्रियता को देखकर लिया हो। उसने प्रमुख राष्ट्रसंघ मे तमाम राष्ट्रों के प्रमुखों के सामने अपनी बात रखी और उन पर अपना बचपन छीन लेने की वजह पूछी। ग्रेटा को तात्कालिक तौर पर जवाब नहीं मिला। लेकिन भारत जैसे तमाम विकासशील देशों के प्रमुखों और इनके प्रशासनिक अधिकारियों सामने ग्रेटा का चेहरा और उसके सवाल अलबत्ता उठते रहे।

उत्तराखंड के किशोरों ने हर शुक्रवार को देहरादून में रैली निकालकर राज्य सरकार से स्टेट एक्शन प्लॉन जारी करने की माँग का स्वागत पूरे राज्य में किया गया है। यह भी अच्छा है कि अपनी सादगी और पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर स्वीडन के राजा कार्ल सोलह गुस्ताफ फोक हसू वाट्र्स पत्नी और रानी सिलिवया के साथ उत्तराखंड में है। वे गंगा की सफाई के अभियान में खास योगदान करेंगे। मुम्बई में वरसोवा तट पर सफाई अभियान का जायज़ा भी वे ले चुके हैं। वे दूसरे तटों की सफाई भी तकनीक और विशेषज्ञों के ज़रिये पूरी मदद करते बने है। सारी दुनिया मे स्वीडन की विभिन्न कम्पनियों ने पर्यावरण  और पारिस्थितिकी को सँजोये रखने में खासी कलाकारी छायी है। ब्राजील के अमेजन जंगलों में आग से बचाने, अफ्रीका में विभिन्न छोटे-बड़े देशों के गाँवों में नदियों तालाबों के पानी को ठीक कहने में इनके का सवाल और विशेषज्ञ लगे हैं। इस देश में 1070 में पर्यावरण सम्मेलन में ही वैज्ञानिक तरीके से पर्यावरण और पारिस्थितिकी को सँभालने का निश्चय किया और इसकी मुहिम जारी है।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी चलाने की मुहिम में देहरादून के कई कॉलेज के छात्र हैं। इनकी माँग है कि उत्तराखंड रैली करने वाले युवाओं में जो अपना मेमोरेंडम केन्द्र के राज्य कार्यालय और राज्य के मुख्यमंत्री को दिया है, उसमें चार मुख्य माँगों में है ग्लैशियरों का पिघलना और झरने का पानी का कम होना, राज्य में तेज़ी से कम हो रहा वन क्षेत्र और प्राकृतिक जैविक सम्पदा को सोजाने और संरक्षण और बढ़ रहा वायु और ध्वनि प्रदूषण। इसके साथ ही देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और दूसरे छोटे-बड़े शहरों में कूड़े का बढ़ता अम्बार और उसके निस्तारण की वैज्ञानिक प्रक्रिया का अभाव, विभिन्न नदियों, झरने और सोतों के प्राकृतिक उद्गम स्रोतों का संरक्षण, वन्य जीवों का संरक्षण और उनके लिए नियत क्षेत्र में कटौती करने पर रोक, ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण जो राज्य में औद्यौगिकीकरण के चलते हुआ है, उसे रोका जाए। आवागमन की सुविधा हो और सभी जगह विद्युुतीकरण हो।

हिमालयी राज्य के नागरिक राज्य बनने के दो दशक बाद भी आज नहीं जानते कि देहरादून के युवा लोगों मेें जो माँगें उठायी हैं, उन पर सरकारी सोच और सरकारी कायदे-कानून क्या हैं? इसी कारण भवन निर्माता मनमानी कर रहे हैं और राज्य में हर कहीं जनता और पुलिस प्रशासन के स्तर पर भी मनमर्ज़ी है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संरक्षण की आवाज़ दे रहे युवाओं का विचार है कि स्थानीय स्तर पर पर्यावरण और पारिस्थितिकी के मुद्दे उठाने और उन पर अमल होने पर ही वैश्विक स्तर पर क्लाइमेंट चेंज के खतरों के प्रति जनता को आगाह किया जा सकेगा। हम तो अपने मौलिक अधिकार ही माँग रहे हैं। एक और किशोर कार्यकर्ता मनीष सबरवाल ने कहा कि हम राज्य सरकार और परिवार से सिर्फ शुद्ध, शान्ति, मिट्टी, शुद्ध भोजन और वनों की कटाई रोकने, साफ गंगा ही तो माँग रहे हैं।

स्वीडेन की अकेली किशोरी ग्रंटा टर्नबर्ग भी पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्रसंघ मे काफी समय से जलवायु परिवर्तन और जनता में जागरूकता पैदा करती रही हैं। उनकी पहल से सारी दुनिया में पर्यावरण के प्रति एक जागरूकता बढ़ी है। विभिन्न देशों में योजनाकारों और राजनीतिकों में भी पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर विचार करते हुए फैसला लेने की चेतना भी और बढ़ी है।

ग्रेटा ने संयुक्त राष्ट्रसंघ से माँग की थी कि आप मेरा बचपन लौटा दो जिसे आपने छीन लिया। यही देहरादून के कॉलेजों के किशोर और किशोरियाँ माँग रहे हैं। केन्द्रीय पर्यावरण, वन, क्लाइमेट चेंज, मंत्रालय देख रहे मंत्री प्रकाश जावाडेकर ने कहा कि क्लाइमेट एक्शन समिट अभी हाल न्यूयॉर्क में हुई। वहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की भारत नॉन-फॉसिल ईधन का उपयोग कर ऊर्जा का उत्पाद 175 जीडब्ल्यू 2022 तक कर देगा। यह सिलसिला जारी रखेंगे और जल्दी ही 450 जी डब्ल्यू तक पहुँचेंगे। उन्होंने उसी समिट में ग्लोबल कोलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर भी शुरू किया।

प्रकाश जावड़ेकर ने बताया घरेलू मोर्चे पर भारत कम्पसेटरी एफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड लैनिंग अथॉरिटी (सी.ए.एम.पी.ए.) गठित की है। इसके ज़रिये देश के 26 राज्यों और केन्द्रशासित क्षेत्रों को वनीकरण अभियान के लिए रुपये 47,436 करोड़ मात्र का कोष बना रखा है। देश में आदिवासियों को पूरे अधिकार दिये गये हैं। उनका वनीकरण बढ़ाने में खासा योगदान है।

पिछले एक दशक में सारी दुनिया में यानी बहासा से जापान और मोजंबीक तक उष्ण कटिबंधीय तूफान उठे। जंगलों में आग से ब्राजील से आर्कटिक और ऑस्ट्रेलिया तक भयावह असर रहा। भारत में मौसमी विपदाओं के चलते ही बारिश का तौर-तरीका बदल गया। इसके कारण विभिन्न प्रदेशों में लोगों को जानमाल का खासा नुकसान हुआ। मौसमी बदलाव का प्रकोप मध्य अमेरिका, उत्तरी रूस और विभिन्न देशों में दिखा। समुद्र में भी हलचल रही। समुद्र के अंदर तापमान बढ़ा। इसके चलते समुद्र के अंदर मछलियाँ, पौधे आदि काफी बर्बाद हुए।

पूरे वातावरण में जहाँ कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा पिछले साल 2018 में जहाँ विभिन्न हिस्सों मे हर 10 साल लाख पर 407.8 थी। वह भी 2019 में लगाताार बढ़ रही है। वल्र्ड मेटेओरोलॉॢजकल ऑग्रेनाइजेशन के अनुसार, जो आँकड़े तापमान कॉलेकर आये हैं, वे खासे भयावह हैं। पहले पाँच साल में औसतन तापमान (2015-2019 तक) काफी बढ़ा हुआ था और अब बहुत साफ है कि 10 साल की अवधि में पृथ्वी पर बढ़ते तापमान ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। वर्ष 2019 को दूसरा या तीसरा ऐसा साल माना जाएगा, जिसने गर्माहट के सारे रिकॉर्ड तोड़े हैं। आर्कटिक समुद्र की बर्फ जो सितंबर-अक्टूबर में कुछ कम होती थी वह इस साल कई कम हुई। समुद्री के अन्दर की पारिस्थितिकी तक को चौपट कर गया। जलवायु परिवर्तन के कारण अभी हाल यह देखा जा सका कि एक दशक की गिरावट के बाढ़ पूरी दुनिया में भारत 8 करोड़ 20 लाख से ज़्यादा लोग भुखमरी के शिकार हैं।

मौसम के फेरबदल के चलते करोड़ों लोगों को बेघर बार होना पड़ा। भूख का सामना करना पड़ा। भारत पाकिस्तान और एशियाई देशों में मौसमी बदलाव के चलते कहीं सूखा, कहीं बाढ़ की स्थिति बनी लोगों को भूखे भी सोना पड़ा।

पूरी दुनिया की जलवायु का अध्ययन करके जो सालाना रिपोर्ट बनायी जाती है उसमें फिर एक-एक दशक की खासियत देखते हैं और सभी देशों को प्रतिनिधियों की बैठक में पूरा जायज़ा लिया जाता है। सभी को खतरे और सावधानियाँ बरतने की चेतावनी दी जाती है। उसी रिपोर्ट के आधार पर यह जानकारी हुई है कि धरती का तापमान बेहद गर्म रहा। बल्कि कहा जाए कि पूरा दशक (2010-2019) ही बेहद गर्म रहा।

अब दुनिया भर में राष्ट्र प्रमुख, अफसरशाही और जनता जलवायु परिवर्तन के चलते धरती की लगातार गर्माहट से होने वाले शहरों का अनुमान लगाने लगे हैं। इसमें सबसे ज़्यादा प्रभावी काम बच्चे और किशोरों ने किया है। वे लगातार कर रहे हैं। हर सप्ताह में शुक्रवार को प्लेकॉई हाथों में लिए अपने शहरों की कचहरी, पर्यावरण विभाागों, मंत्रालयों पर धरना-प्रदर्शन करते हुए अपील कर रहे हैं, हमें इस सुन्दर दुनिया में जीने दो।