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सीक्वल-रीमेक का बढ़ता मायाजाल

पिछले दिनों कार्तिक आर्यन, भूमि पेडणेकर, अनन्या पांडे की मुख्य भूमिका से सजी एक छोटी-सी फिल्म ‘पति-पत्नी ओर वो’ की सफलता तो यही दर्शाती है कि हमारे फिल्म निर्माता रीमेक और सीक्वल फिल्मों को लेकर अब कुछ ज़्यादा ही उत्साहित हो उठे हैं। मात्र 10 करोड़ में बनी इस फिल्म की 80 करोड़ की कमायी ने फिर एक बार यह साबित कर दिया है कि यदि फिल्म का सब्जेक्ट ठीकठाक होता है, तो एक छोटी-सी फिल्म भी बड़ी बन जाती है। यही वजह है कि इस समय हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में दो दर्जन से ज़्यादा ऐसी फिल्में बन रही हैं, जो या तो किसी फिल्म का हिट सीक्वल है, या फिर रीमेक। आइए, उनकी एक रोचक पड़ताल करें-

फिल्म निर्माताओं की असुरक्षा

2019 में डबल धमाल, हाउसफुल-4, दबंग-3, मर्दानी-2,  स्टूडेंट ऑफ ईयर-2, पति पत्नी और वो जैसी कई-कई सीक्वल फिल्में आयीं, पर पति-पत्नी और वो ने ही सबसे ज़्यादा झंडे गाड़े। असल में जिस निर्माता की भी पिछली फिल्म हिट होती है, वह उसकी फिल्म को फॉलो करता है। उसे लगता है कि इसे फॉलो करना ही ठीक होगा। अब ज़रा देखेें- 2020 में कितनी सीक्वल और रीमेक फिल्में आएँगी। इस साल छोटी-सी बात, सत्ते में सत्ता, शुभ मंगल सावधान, बागी-3, कुली-1, सड़क-2, भूल-भुलैया-2, हंगामा-2, सत्यमेव जयते-2 जैसी कई फिल्मों के सीक्वल या रीमेक आएँगी। आलम यह है कि दीपक तिजोरी जैसे बी ग्रेट के निर्देशक भी 14 साल बाद अपने 2006 की फिल्म टॉम डिक हैरी का सीक्वल बना रहे हैं। ट्रेड विश्लेषक आमोद मेहरा कहते हैं कि आप कह सकते हैं कि निर्माता इसे एक सेफ साइड गेम समझ रहे हैं। उन्हें लगता है कि पिछली हिट के सहारे सीक्वल फिल्म को आसानी से दर्शकों को परोसा जा सकता है। दर्शक इस भ्रम में हैं कि पिछली फिल्म की तरह यह भी मनोरंजक होगी। इसलिए वे सीक्वल या रीमेक फिल्म को लेकर भी उत्सुक हैं।

क्या वे मुगालते में हैं?

कई मौकों पर तो ऐसा ही हो रहा है। ज़्यादातर निर्माता सिर्फ फिल्म मार्केट को ध्यान में रखकर इस तरह के प्रोजेक्ट की घोषणा कर रहे हैं। इस वजह से यह हो रहा है कि उन्हें प्रोजेक्ट को समझाने के लिए ज़्यादा समय की ज़रूरत नहीं पड़ रही है। फिल्म के सीक्वल की घोषणा होते ही ट्रेड इस मुगालते में आ जाता है कि हिट फिल्म का सीक्वल है, अच्छा ही बनेगा। मुदस्सर अज़ीज़ जैसे एक साधारण से निर्देशक 1976 की एक सुपरहिट फिल्म छोटी-सी बात का रीमेक बना रहे हैं। इसके हीरो आयुष्मान खुराना होंगे। यह रीमेक फिल्म कैसी होगी, अभी यह बताना मुमकिन नहीं है। पर यह तो सभी जानते हैं मूल फिल्म छोटी-सी बात ने सत्तर के दशक में तहलका मचा दिया था।

सत्ते पे सत्ता का क्रेज

1982 की अमिताभ बच्चन की एक सुपरहिट फिल्म सत्ते पे सत्ता का भी अपना अलग क्रेज रहा है। पिछले वर्षों में संजय दत्त से लेकर ऋतिक रोशन तक कई बड़े सितारों ने इसके रीमेक में काम करने की इच्छा व्यक्त की है, पर हर बार यह प्रोजेक्ट कहीं न कहीं आकर रुक जाती है। अब ऐसा कहा जा रहा है कि फराह खान और रोहित शेट्टी ने इस पर फिल्म बनाने का पूरा मन बना लिया है। इन दिनों फराह अपने इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी गम्भीर हैं। खबर है कि वह इसके मुख्य रोल में दीपिका और ऋतिक को चाहती हैं। वैसे सितारों के साथ फराह के जो रिश्ते हैं, उसे देखते हुए स्टारकास्ट उनके लिए कभी बड़ी समस्या नहीं थी। ऐसे में उम्मीद यही की जा सकती है कि इस साल उनकी यह फिल्म जीवंत रूप ले सकती है।

उतरा नहीं हाउसफुल का बुखार

हाल के वर्षों में हाउसफुल का भूत निर्माता साजिद नाडियादवाला का पीछा नहीं छोड़ रहा है। और यह कब उनका पीछा छोड़ेगा, किसी को भी पता नहीं। पहली हाउसफुल ने 100 करोड़ का बिजनेस किया, तो साजिद काफी उत्साहित थे। फिर साजिद खान के निर्देशन में ही हाउसफुल-2 ने 100 करोड़ की तो नहीं, पर ठीकठाक कमायी की। इससे साजिद का सीक्वल बनाने का उत्साह बदस्तूर बना रहा। हाउसफुल-3 में उन्होंने अक्षय के प्रिय लेखक, निर्देशक साजिद फरहाद को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी, लेकिन इस बार अक्षय की मौज़ूदगी के बावजूद 50 करोड़ की इस फिल्म ने मात्र 80 करोड़ का व्यवसाय किया। इससे भी साजिद घबराये नहीं। यही नहीं पिछले दिनों इस फ्रेंचाइची की अगली फिल्म हाउसफुल-4 की बकवास से भी वह ज़रा भी हताश नहीं हुए हैं। अब यूनिट मेंबर्स का कहना है कि हाउसफुल-5 में फिर अक्षय कुमार मुख्य अभिनेता होंगे।

अरसे बाद आँखें और कुली

यदि एक ताज़ा सर्वे पर गौर करें, तो इस समय 25 से ज़्यादा छोटी-बड़ी सीक्वल-रीमेक फिल्मों पर काम चल रहा है। यहाँ तक कि डेविड धवन जैसे हिट निर्देशक भी इस अन्धी दौड़ में शामिल हो चुके हैं। जुड़वाँ के बाद वह अपने बेटे वरुण और सारा अली खान को लेकर कुली नम्बर-1 के रिलीज की तैयारी कर रहे हैं। जुड़वा के बाद वरुण अब अपने इस रीमेक फिल्म को लेकर भी उत्साहित हैं। पिछली बार उन्होंने सलमान की नकल उतारी थी। इस बार गोविंंदा के हिट फिल्म का उन्होंने सहारा लिया है। वह कहते हैं कि मुझे पापा की कई फिल्में बहुत पसंद हैं। आज इनका रीमेक आसानी से बन भी सकता है। इसलिए पापा से विशेष आग्रह कर मैं इन्हें बनवा रहा हूँ। कुछ यही हाल है निर्माता गौरांग दोशी का है। वह अरसे बाद अपने 2002 की हिट फिल्म आँखें का सीक्वल बना रहे हैं।

मुन्नाभाई को भूल गये हैं हिरानी

दिग्गज निर्देशक राजकुमार हिरानी इन दिनों शाहरुख को लेकर एक फिल्म का प्रोजेक्ट बना रहे हैं। इन वर्षों में अपनी सबसे उम्दा क्रिएशन मुन्नाभाई को वह एकदम भूल गये हैं। सच तो यह है कि एकमात्र मुन्नाभाई ऐसी फिल्म है, जिसका सीक्वल हर दृष्टि से जेनुइन लगता है। मगर हिरानी इन दिनों मुन्नाभाई को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। वह कहते हैं कि मुन्नाभाई एमबीबीएस की लोकप्रियता के बाद मेरे ज़ेहन में यह खयाल आया था कि यह वह फिल्म है, जिसका सही सीक्वल बन सकता है।

नहीं होना चाहिए सीक्वल

इसमें कोई दो राय नहीं है कि अपने सीक्वल फिल्म की कहानी को लेकर भी हिरानी काफी ईमानदार और मेहनती है। उतना दमखम बहुत कम निर्देशकों में देखने को मिलता है। मुश्किल यह है कि दूसरे फिल्मकार कई परिवर्तन करके भी एक नयी कहानी पेश नहीं कर पाते हैं। इस साल की अहम फिल्मों बागी-3, कुली-1, सड़क-2,  हंगामा-2, सत्यमेव जयते-2 आदि फिल्मों से दर्शक कुछ ऐसी उम्मीद कर रहे हैं। ट्रेड विश्लेषक आमोद मेहरा बताते हैं कि एक हिट फिल्म का पीछा निर्माता आसानी से छोडऩा नहीं चाहते हैं, इसलिए सीक्वल के बहाने वह कुछ भी बना डालते हैं। यदि हिट फ्रेंचाइची का सहारा ही लेना है, तो हर बार कुछ नया बनाइए। वरना हाउसफुल-4 जैसी हालत होती है। यह काम अच्छी स्क्रिप्ट की मदद से सहज किया जा सकता है, पर हमारे ज़्यादातर फिल्मकार इसी मेहनत से काफी दूर हैं। इसके लिए फिल्मकार राकेश रोशन का उदाहरण देना ठीक होगा। वह इन दिनों कृष-4 की स्क्रिप्ट की तैयारी कर रहे हैं। इससे अलग हटकर देखें, तो बागी फ्रेंचाइची की फिल्में बिल्कुल अच्छा नहीं लिखा जा रहा है। इस बार बागी-3 में ऐसी कोई गलती नही होगी, इसकी उम्मीद सभी कर रहे हैं।

सड़क-2 का चक्कर

इन दिनों तेज़ी से पूरी हो रही महेश भट्ट की सड़क के खूब चर्चे चल रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि महेश भट्ट ने इस फिल्म के स्क्रिप्ट का सामना कैसे किया होगा? क्योंकि उनके ज़्यादातर स्क्रिप्ट राइटर बहुत पिट चुके हैं। उनकी मूल फिल्म सड़क की सफलता को फिर से दोहराने की ज़रूरत नहीं है। मगर उनकी इस फिल्म की सफलता में संगीत का बड़ा योगदान रहा है। अब यह भी चैलेंज सड़क-2 के लिए सबसे बड़ा होगा।

 असीम चक्रवर्ती कहते हैं कि वैसे ज़्यादातर ट्रेड पंडित मानते हैं कि दूसरे अन्य फिल्मी बुखार की तरह सीक्वल का बुखार भी फिल्मवालों पर ज़्यादा दिन तक नहीं रहेगा। क्रिएशन की कमी के चलते इसमें भी बहुत सारी लिबर्टी ली जाएगी। कहानी में अपने मन मन मुताबिक बहुत बदलाव किये जाएँगे और बहाना सिर्फ सीक्वल का होगा और यही हमारी सीक्वल और रीमेक फिल्में दम तोड़ देंगी। तब क्यों न कुछ नया सोचा जाए?

ईश्वर की कृपा से आज मैं काम में व्यस्त हूँ : सिकंदर खेर

सिकंदर खेर की पिछली फिल्म रॉ ने इतना अच्छा नहीं किया बॉक्स ऑफिस पर किन्तु सिकंदर खेर के काम की भरपूर तारीफ हुई। अब उनकी अगली फिल्म अक्षय कुमार स्टारर रोहित शेट्टी निर्देशित फिल्म सूर्यवंशी, जो जल्द रिलीज होगी; पर सभी की नज़रें टिकी हैं। साथ ही वह वेब सीरीज चार्ज शीट-5 अमेजन पर दिखायी देंगे। पेश है सिकंदर खेर के साथ लिपिका वर्मा की बातचीत की। लिपिका ने पूछा कि आपका काम फिल्म रॉ में सराहा गया। हालाँकि फिल्म कुछ अच्छे नतीजे नहीं ला पायी बॉक्स ऑफिस पर? इस पर खेर ने कहा कि मुझे इस बात की खुशी है कि कम से कम लोगों ने मेरा काम सराहा तो सही। इसमें पाकिस्तानी पुलिस वाले का िकरदार कर रहा था तो मैंने थोड़ी-सी उधर की भाषा का इस्तेमाल भी किया; ताकि कैरेक्टर में कुछ अलगपन ला पाऊँ। तारीफ से थोड़ा सा आत्मविश्वास बढ़ जाता है। उत्साहजनक भी महसूस होता है और हम बेहतर काम करने की कोशिश में लग जाते हैं।

साक्षात्कार भाग-1 — नेशनल चैनल का बन्द होना दुर्भाग्यपूर्ण

आप आकाशवाणी में उप महा निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए। वर्षों आकाशवाणी में सेवाएँ दी हैं। पहले लोगों की रेडियो में जितनी दिलचस्पी थी, अब उतनी नहीं रह गयी है। ऐसा लगता है कि रेडियो पतन की ओर जा रहा है। क्या कारण हैं इसके?

देखो ऐसा है न! यह मामला थोड़ा पेंचीदा है। अब का तो मालूम नहीं, लेकिन मैं जब सेवानिवृत्त हुआ था- 2015 में, तो उस समय एफएम गोल्ड नंबर-1 पर था।  और लगातार 16 साल तक नंबर-1 पर रहा। कोई एकाध मामले को छोड़ दें तो। जैसे एक बार क्या हुआ हमारा ट्रांसमीटर जल गया, तो तीन महीने लगे और एफएम गोल्ड दूसरी पोजीशन पर पहुँच गया था। यह तो अलग बात है कि कभी कोई कमी-बेसी आती रहती है। असल में क्या है कि पहले ज़माने में लोग पूरी तरह से रेडियो से जुड़े हुए थे। क्योंकि और संसाधन नहीं थे, वो दौर चला गया।

पहले हवामहल चलता था, जिसके करोड़ों श्रोता थे। तो वह दौर तो चला गया अब देखिए; अभी का तो मुझे पता नहीं, लेकिन 2015 तक तो मुझे मालूम है, जब मैं वहाँ सेवा में था। रेडियो को करीब 50 करोड़ लोग सुनते थे। बल्कि अब तो मोबाइल आ गया; तो लोग उसके ज़रिये रेडियो सुनते हैं। कई एप आ गये हैं। मैं भी मोबाइल पर रेडियो सुनता हूँ। तो अगर हम सारे चैनलों को मिला लें, श्रोताओं की जनसंख्या ज़्यादा ही निकलेगी शायद। इसके कोई ठोस आँकड़े तो नहीं हैं मेरे पास; लेकिन अब कोई न कोई साधन तो है मनोरंजन का। अब क्या है, वह मुस्तकबिल तौर पर तो बैठकर कोई रेडियो कभी सुनता नहीं है; यूँ ही चलते-फिरते गाडिय़ों में लोग सुनते हैं; मोबाइल पर सुनते हैं। तो कहने का मतलब यह है कि श्रोता तो हैं, लेकिन अब वह फोकस नहीं है। एक ज़माना था कि मोनोपोली वैसी थी, इतने संसाधन भी नहीं थे; टेक्नोलॉजी इतनी ज़्यादा विकसित नहीं थी; क्योंकि आकाशवाणी ने भी अपने आपको समय के हिसाब से परिवर्तित किया है। बहुत सारे प्लेटफार्म पर, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ग्लोबल तरीके से आकाशवाणी रेडियो प्रसारण कर रहा है। विदेशों में रहने वाले भारतवंशी लोग भी रेडियो सुन रहे होंगे। तो उसके कोई आँकड़े तो नहीं हैं हमारे पास। बाकी निर्भर करता है कि कौन-सा चैनल नंबर-1 पर है? कौन-से चैनल का ग्राफ नीचे है? यह तो सब चलता रहता है; बदलता रहता है।

अच्छा विविध भारती को भी लोगों ने काफी पसन्द किया और दूसरा यह जो हमारे मीडियम वेब वाले चैनल होते हैं, जैसे- इंद्रप्रस्थ चैनल; उसके स्रोता  महानगरों में बहुत कम हो गये हैं। अब लोग एफएम सुनते हैं। लेकिन कस्बों और छोटे शहरों में, जैसे- मेरठ में, और हापुड़ में या गाज़ियाबाद जैसे बड़े शहरों में भी हमारे कृषि कार्यक्रम लोग खूब सुनते थे। अब जैसे हम गाँव जाते थे, कार्यक्रम रिकॉर्ड करने के लिए, तो लोग उमड़ पड़ते थे; पूरा गाँव का गाँव टूट पड़ता था। अब इस बात पर भी निर्भर हो गया है कि कौन-सा चैनल बेहतर कर पा रहा है और कौन-सा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है। तो मेरे खयाल से, पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता कि रेडियो पतन की ओर जा रहा है; क्योंकि हमारे पास आँकड़े भी नहीं हैं इसके। लेकिन यह है कि रेडियो आज भी चल रहा है और चलता रहेगा।

सुनने में आया है कि इस सरकार ने बाहरी कलाकारों या कहें फ्रीलांसरों के प्रोग्राम कम करने को कहा है। किसी ने बताया कि सरकारी कर्मचारियों से कहा गया है कि खुद अधिक-से-अधिक कार्यक्रम करें। यह भी कहा जा रहा है कि पहले से कम कार्यक्रम कराये जा रहे हैं आकाशवाणी में?

नहीं; देखिए इस समय तो हम कह नहीं सकते कि आकाशवाणी में क्या चल रहा है? क्योंकि 2015 में ही मैं सेवानिवृत्त हो चुका था। यह तो मैं आपके मुँह से सुन रहा हूँ कि वहाँ ऐसा कुछ है। मैं इस बारे में कुछ कह नहीं सकता। मुझे तो जब कभी बुलाते हैं, तो मैं चला जाता हूँ। अभी 26 जनवरी को कमेंट्री के लिए बुलाया था, तो चला गया था। बाकी तो मुझे कुछ ज़्यादा मालूम नहीं है।

शेष अगले अंक में…

कश्मीर पर दुविधा!

यह अप्रैल, 2019 की बात है। भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा मुफ्ती की सरकार गिरे कुछ महीने हो चुके थे। विधानसभा के लिए चुनाव की चर्चा हो रही थी। अनंतनाग के खानबल में एक जनसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जनता से वादा कर रहे थे कि चुनाव के बाद सत्ता में आते ही वे पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) को खत्म कर देंगे और इसके तहत दर्ज सभी मामले भी हम वापस ले लेंगे। हालाँकि, तब उनका यह वादा पथरबाज़ों के लिए था। लेकिन 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा-370 को मोदी सरकार ने खत्म कर दिया और सारा परिदृश्य ही बदल गया। अब इन्हीं उमर अब्दुल्ला पर यही कानून लगाकर उनकी नज़रबन्दी बढ़ा दी गयी है। उमर ही नहीं उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला पर दो महीने पहले ही यही कानून लागू किया जा चुका है। एक और पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती पर भी यही कानून लगाया गया है। महबूबा मुफ्ती वही नेता हैं, जो जून, 2018 तक भाजपा के सहयोग से साझा सरकार बनाकर मुख्यमंत्री बनी थीं।

अब जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित राज्य है और वहाँ विधानसभा रखने के बावजूद तय नहीं है कि इसके लिए चुनाव कब होंगे? फिलहाल तो यह देखना है कि बार-बार जम्मू-कश्मीर में स्थिति सुधरने का दावा करने वाली मोदी सरकार कब इन नेताओं को नज़रबन्दी (पीएसए) से मुक्त करती है? अभी तक तो केंद्र सरकार इन नेताओं को खतरा मानकर चल रही है। इन नेताओं पर जन सुरक्षा कानून लगाने का एक कारण यह भी है कि दोनों की हिरासत छ: महीने हो  गयी थी। इसे बढ़ाने के लिए सरकार ने पीएसए लगा दिया, जिससे उन्हें और तीन महीने जेल में रखा जा सकता है। उनसे पहले अब्दुल्ला पर पीएसए लगाया गया था, जब उन्होंने अपनी प्रिवेंटिव डिटेंशन को चुनौती दी थी। इस तरह इन दिनों मुख्य धारा के तीन बड़े नेता नज़रबन्द हैं।

हैरानी की बात है कि कश्मीर में मुख्य धारा के इन नेताओं के िखलाफ पाकिस्तान ही नहीं, आतंकवादी भी रहे हैं। वे मुख्य धारा के इन नेताओं को भारत का एजेंट करार देते रहे हैं और आतंकवादियों के तो वे निशाने पर रहे हैं। इसका कारण यह है कि यह सभी भारतीय संविधान के प्रति समर्पित रहे हैं और भारत के चुनाव आयोग के तहत होने वाले चुनावों में हिस्सा लेते रहे हैं।  इनके विपरीत अलगाववादी, जिनमें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस भी शामिल है; के नेता भारतीय संविधान को नहीं मानते और न भारत के चुनाव आयोग के चुनावों में उन्होंने कभी शिरकत की। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि केंद्र जो भी दावे करे, नेताओं को लम्बे समय तक नज़रबन्द रखना कश्मीर की जनता में भारत के प्रति अविश्वास का रास्ता खोल सकता है।

केंद्र ने पिछले दिनों में सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद जनता के लिए इंटरनेट जैसी सुविधाओं पर कुछ ढील तो दी है, लेकिन एक भय उसके मन में ज़रूर है, जो उसे पूरी छूट देने से रोक रहा है। लिहाज़ा केंद्र का यह दावा उतना उचित प्रतीत नहीं होता कि सारी स्थिति उसके नियंत्रण में है। सवाल यह उठता है कि क्या नज़रबन्द नेताओं को जल्दी छोड़ा जाएगा? आतंकियों और अलगाववादियों के अलावा पत्थरबाज़ों के िखलाफ भी पीएसए का इस्तेमाल किया जाता रहा है। सन् 2016 में कश्मीर में सक्रिय आतंकी कमांडर बुरहान वानी को सुरक्षा बलों ने मार गिराया था; तो कश्मीर में इसके विरोध में जो प्रदर्शन हुए थे। तब 567 लोगों को पीएसए के ही तहत हिरासत में लिया गया था। यही नहीं एक और आतंकी कमांडर मर्सरत आलम जब सुरक्षा बलों के चंगुल में फँसा, तो उसे पीएसए के ही तहत जेल में डाला गया। राज्य सभा में हाल में सरकार की तरफ से दी गयी जानकारी के मुताबिक, आज की तारीख में जम्मू-कश्मीर में पीएसए के तहत 389 लोग हिरासत में हैं। गृह राज्य मंत्री जीके रेड्डी ने इस बात की पुष्टि करते हुए राज्यसभा में एक लिखित जवाब में जानकारी दी कि अगस्त, 2019 में अनुच्छेद-370 के ज़्यादातर प्रावधान हटाये जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा कानून के तहत-444 लोगों को हिरासत में लेने के आदेश जारी किये गये थे।

तहलका संवाददाता की जानकारी के मुताबिक, दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के िखलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) लगाये जाने की पीछे नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) की बैठकों के मिनट्स और सोशल मीडिया पर उनके प्रभाव के आधार पर लगाने की सिफारिश की गयी थी, जिसे स्वीकार किया गया।

वहीं उमर के िखलाफ पुलिस डॉजियर में पिछले साल जुलाई में एनसी की एक बैठक में उनके कुछ सुझावों की बात है; जिसमें उन्होंने कथित तौर पर ताकत जुटाने की बात कही थी, ताकि दिल्ली के जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 खत्म करने की कोशिशों को रोका जा सके। दिलचस्प यह है कि इस बैठक से कुछ सप्ताह पहले ही उमर, उनके पिता अब्दुल्ला दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे और उनसे अनुच्छेद-370 और 35(ए) को लेकर चर्चा की थी। दोनों नेता कश्मीर के अन्य नेताओं की ही तरह 370 और 35(ए) को लेकर किसी भी तरह के फैसले के िखलाफ चेताते रहे थे।

उमर, सोशल मीडिया, खासकर ट्वीटर पर बहुत सक्रिय रहे हैं। हालाँकि, डॉजियर में उमर के सोशल मीडिया पोस्ट्स को पीएसए का आधार नहीं बनाया गया है। यहाँ यह बताना बहुत दिलचस्प है कि जिस तरह भाजपा जम्मू-कश्मीर में पीडीपी की भागीदार रही है, उसी तरह एनसी के नेता उमर अब्दुल्ला भी भाजपा के नेतृत्व वाली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विदेश राज्य मंत्री रहे हैं। इसके विपरीत पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा के िखलाफ पीएसए का आधार पार्टी के प्रो एक्सट्रीमिस्ट रुख बनाया गया है। वैसे पीडीपी को पहले से ही एनसी के मुकाबले हार्डलाइन रखने वाली पार्टी माना जाता रहा है। लेकिन पीडीपी का यह स्टैंड तब भी था जब भाजपा उसके साथ जम्मू-कश्मीर की सत्ता में भागीदार थी। वैसे महबूबा ने अनुच्छेद-370 हटाये जाने की स्थिति में जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को लेकर कश्मीर में सवाल उठने की बात कही थी। उनकी टिप्पणी को पीएसए का आधार बनाया गया है। पुलिस डॉजियर में आतंकवादियों को मारने पर उनकी कुछ टिप्पणियों को भी साथ जोड़ा गया है। गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत जम्मू-कश्मीर के केंद्र के जमात-ए-इस्लामिया को प्रतिबंधित करने पर पीडीपी के उसे समर्थन देने का भी ज़िक्र किया है। यदि इतिहास खँगाला जाए तो पीडीपी और एनसी भारत के संविधान के कभी विरोधी नहीं रहे हैं। मुख्यधारा के यह दोनों दल कभी पाकिस्तान समर्थक भी नहीं रहे। हां, कश्मीर मसला हल करने के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत के समर्थक ज़रूर रहे हैं।

भले मोदी सरकार कश्मीर को लेकर अपने फैसलों को उचित ठहराती रही हो, मुख्यधारा के नेताओं को नज़रबन्द रखने के उसके फैसले से बहुत से राजनीतिक जानकार सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि यह नेता वास्तव में कश्मीर की जनता की आवाज़ रहे हैं, लिहाज़ा उन्हें लम्बे समय तक नज़रबन्द रखने से कई पेचीदगियाँ पैदा हो सकती हैं। यहाँ दिलचस्प यह है कि विदेशी प्रतिनिधियों को कश्मीर का दौरा करने की मोदी सरकार ने इजाज़त दे दी, जबकि भारत के विरोधी दलों को कश्मीर जाने की इजाज़त नहीं है।

भाजपा की कश्मीर-रणनीति!

तहलका संवाददाता की जानकारी के मुताबिक, भाजपा दरअसल कश्मीर में अपना एक नेतृत्व उभारना चाहती है। हाल में पद्म भूषण पाने वाले मुजफ्फर हुसैन बेग जैसे नेताओं पर उसकी नज़र है। बेग सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते रहे हैं और पीडीपी के संस्थापकों में से एक हैं। कहते हैं भाजपा की उन पर नज़र है। बेग को पद्म भूषण मिलने से बहुत से लोगों को हैरानी हुई है।

साल 2002 जब पीडीपी ने कांग्रेस से मिलकर सरकार बनायी थी, तब बेग उस सरकार में वित्त मंत्री बने थे। उन्हें इक प्रभावशाली मंत्री माना जाता रहा। हालाँकि, जब तीन साल बाद समझौते के मुताबिक कांग्रेस के नेतृत्व में गुलाम नबी आज़ाद की सरकार बनी, तो पीडीपी ने बेग को अपने कोटे से उप मुख्यमंत्री बनाया। कुछ महीने बाद एक समय ऐसा आया, जब बेग मुख्यमंत्री आज़ाद के काफी करीब हो गये। यह माना जाता है कि बेग आज़ाद के हिसाब से चलने लगे थे।

पीडीपी के तब सर्वेसर्वा और पहले तीन साल में सीएम रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद को जब इसकी भनक लगी, तो वो इससे बहुत विचलित हुए। इसके बाद उच्च महीने में ही बेग को पद छोडऩा पड़ा। बेशक वे उसके बाद भी पीडीपी में ही रहे।

ज़ाहिर है बेग को पद्म भूषण मिलने के बाद राजनीतिक हलकों में इसे भाजपा की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। इसमें संदेह नहीं कि बेग कश्मीर की राजनीति में एक स्वीकार्य नेता रहे हैं, लेकिन उनकी सोच और विचारधारा महबूबा मुफ्ती और पीडीपी से अलग नहीं रही है। ऐसे में यदि, महबूबा को नज़रबंदी मिलती है और बेग को पद्म भूषण, तो इस पर सवाल तो निश्चित ही उठेंगे ही। यह माना जाता है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में डीलिमिटेशन की प्रक्रिया शुरू करेगी। भाजपा-जम्मू की सीटें पहले से ज़्यादा करना चाहती है। इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आने वाले वर्षों में जम्मू-कश्मीर को फिर पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाए।

हम अपने ही दुश्मन क्यों हैं?

भारतएक ऐसा देश है, जहाँ सभी मज़हबों के लोग रहते हैं। यहाँ रहने वाले लोगों के मज़हब ही विभिन्न नहीं हैं, बल्कि नाना प्रकार के संस्कार, त्योहार हैं। अपनी-अपनी बोलियाँ-भाषाएँ हैं। अपनी-अपनी संस्कृति, सभ्यता है। अलग-अलग तरह का खानपान है और अलग-अलग वेशभूषा है। अनेक पहलुओं पर तमाम मतभेद भी रहते हैं। परन्तु सभी भाईचारे के साथ रहते हैं। फिर भी कई बार ऐसी स्थितियाँ आती हैं, जब यह अगल-अलग खाँचों में रखने वाली चीज़ें हमारे बीच खटास पैदा कर देती हैं और यह खटास कई बार झगड़े का कारण तक बन जाती है। हालाँकि समझदार लोग न तो कभी किसी दूसरे व्यक्ति का अपमान करते हैं और न ही किसी दूसरे के मज़हब या उसकी भाषा-भूषा से चिढ़ रखते हैं। मगर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अलगाव फैलाने में, लोगों को आपस में लड़ाने में दिलचस्पी रखते हैं। ऐसे लोग किसी के हितैषी नहीं होते; न राष्ट्र के और न राष्ट्र के लोगों के। इस तरह के लोग सिर्फ भारत में ही नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया में हैं। ये लोग खुले मंचों पर विश्व बन्धुत्व की बात करते हैं और परदे के पीछे हमारी एकता में, हमारी मोहब्बत में ज़हर घोलते हैं। दरअसल, ऐसे लोगों का मकसद सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ साधना होता है। लेकिन दु:ख इस बात का होता है कि आम लोग अनेक बार ऐसे चन्द चालाक लोगों के जाल में फँस जाते हैं और आपस में झगड़ा कर बैठते हैं।

अगर आप गौर करेंगे, तो पाएँगे कि ऐसे कई झगड़े मज़हबी दीवारों की ओट लेकर कराये जाते हैं। हालाँकि किसी के बहकावे में झगड़ा करने वाले आम लोग नुकसान होने के बाद पछताते भी हैं। दरअसल, हम मज़हब के चक्कर में इतने भावुक हो जाते हैं कि यह भी नहीं समझ पाते कि जिस ईश्वर के लिए हम आपस में झगड़ रहे हैं, वह एक ही है और हम सबके अन्दर है। उसका कोई स्वरूप न होते हुए भी, वह सर्वव्यापी है। उसे किसी ने भले ही न देखा हो, पर वह सबको देख रहा है। ज़रा सोचिए, उस एक परम् सत्ता को, उस एक परमेश्वर को अलग-अलग समझने की हमारी मूर्खता से उसको कितना दु:ख होता होगा? उस ईश्वर ने हमें अपनी परम् प्रिय सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ वाहक बनाया है। हमें उस सृष्टि की सत्ता सौंपी है। क्योंकि हम इंसान हैं। सबसे अधिक बुद्धिमान हैं। सृष्टि में सभी जीव-जन्तुओं में सबसे अधिक बलवान हैं। सबसे अधिक मज़बूत हैं। फिर क्यों हम ही सबसे ज़्यादा नादानी का काम कर रहे हैं? हमने ज़मीन से लेकर ऐसी हरेक चीज़ तक बाँट रखी है, जिसे बाँटा ही नहीं जा सकता। सब कुछ बाँटने की मूर्खता में वह तो नहीं बँटा, जो हमने बाँटने की कोशिश की; मगर हम खुद बँट गये। मेरा एक शे’र है-

‘खुदा बाँटा, ज़मीं बाँटी, ज़ुबाँ-मज़हब सभी बाँटे

मगर इंसान खुद ही बँट गया ये ही हकीकत है।’

 मगर हमने इस बात को कभी स्वीकार नहीं किया कि सब कुछ बाँटने के चक्कर में हम खुद ही बँट गये। बँट ही नहीं गये, बल्कि एक-दूसरे से इतने कट गये कि अपना ज़मीर, ईमान सब कुछ बर्बाद कर बैठे। इतने नीचे गिर गये कि आज हमारी तुलना हमारे ही द्वारा जानवरों से की जाने लगी है! ताज्जुब की बात यह है कि हम इस बात पर न तो ज़रा भी शॄमदा होते हैं और न ही परेशान। इतना ही नहीं हम उलटा फख्र करते हैं कि हम सर्वश्रेष्ठ हैं।  सबसे महान् हैं। काहे के सर्वश्रेष्ठ? काहे के महान्? जब हम खुद को ही नहीं पहचान पा रहे हैं। बड़ी मोहब्बत और जतन से बनायी उस परमेश्वर की दुनिया में अराजकता, वैमनस्य, ईश्र्या, घृणा, अपराध, अमानवीयता, भेदभाव की फसल बो रहे हैं। जिसे हमें और हमारी नस्लों को कभी-न-कभी काटना पड़ेगा। फज़ा में ज़हर घोल रहे हैं। जिसका शिकार न केवल मानव जाति, वरन् बेकुसूर प्राणी भी होंगे। एक-न-एक दिन इसका परिणाम घातक ही होना है। किसके लिए? किसलिए? मज़हबों के लिए। और अपने-अपने मज़हबों का परचम लहराने के लिए। क्या बकबास काम है। मज़हब कहते हैं कि इंसान अच्छाइयों से, मोहब्बतों से, ज्ञान से, दूसरों की मदद करने से बड़ा होता है और हम अपने ही मज़हबों के विपरीत चलकर अपने को बड़ा साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। किसलिए? सिर्फ सत्ता के लिए। अपने वर्चस्व के लिए। जबकि हम यह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि यह दुनिया हमेशा के लिए हमारी नहीं है। इस दुनिया पर हमारी सत्ता कब तक रहेगी? शायद हम हैं, तभी तक। फिर किस बात की मारा-मारी? फिर किस बात के लिए दंगे-फसाद, खून-खराबा? क्या हम एक अपराध नहीं कर रहे हैं? जब हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारा कर्म हमारे यश-अपयश का कारण बनेगा; हमारे भविष्य को सुधारने-बिगाडऩे का कारण बनेगा। यहाँ तक कि अगर हम गलत रास्ते पर चलेंगे; उसकी बनायी दुनिया को बर्बाद करेंगे; किसी को सतायेंगे, तो ईश्वर हमें दण्डित करेगा। फिर भी हम बाज़ नहीं आ रहे। किसलिए? सिर्फ चन्द दिनों के सुख हासिल करने के लिए। सिर्फ अपनी चन्द ज़रूरतें पूरी करने के लिए हम अपना भविष्य यानी या कहें कि प्रारब्ध खराब कर रहे हैं। आिखर हम अपने ही दुश्मन क्यों हैं?

हमारे पुरखों, सन्त-महात्माओं ने हम इंसानों को सही रास्ते पर लाने के लिए, मोहब्बत बनाये रखने के लिए, सृष्टि की हिफाज़त के लिए ग्रन्थों को रचा। उन ग्रन्थों को अपनी-अपनी मान्यता, धाॢमकता का ज़रिया बना लिया, और फिर अपनी नाक का सवाल। क्या पागलपन है। जब सभी मज़हब कहते हैं कि ईश्वर एक ही है; तो फिर हम इस बात को क्यों स्वीकार नहीं करते? जब सभी मज़हब कहते हैं कि हमें सभी प्राणियों में प्यार बाँटना चाहिए; तो हम नफरत क्यों फैला रहे हैं? जब सभी मज़हब कहते हैं कि हमें एक-दूसरे से भेदभाव नहीं करना चाहिए; तो हम भेदभाव क्यों करते हैं? क्या हम अपने ही मज़हब के िखलाफ नहीं हैं? क्या हम सही अर्थों में इंसान हैं?

सुप्रीम कोर्ट के नियुक्त वार्ताकार शाहीन बाग़ पहुंचे, बातचीत शुरू

सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से शाहीनबाग के आंदोलनकारियों से बातचीत करने के लिए नियुक्त वार्ताकार वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन शाहीनबाग पहुंच गए हैं। उन्हें आंदोलनकारियों को यह समझाने का जिम्मा दिया गया है कि वे आंदोलन भले जारी रखें लेकिन सड़क खाली कर दें ताकि लोगों को हो रही दिक्कत से मुक्ति मिल सके।

वहां पहुँचने से पहले पुलिस बैरीकेड के पास हेगड़े और रामचंद्रन ने मीडिया के लोगों से बातचीत में कहा कि हम सब से मिलना चाहेंगे। हम सभी नागरिक हैं और सभी की बात सुनना चाहेंगे। मसले का हल निकालने की हमारी कोशिश होगी। दोनों पुलिस के सुरक्षा बंदोबस्त के बीच वहां पहुंचे।

उन्होंने आंदोलनकारियों से पूछा कि क्या मीडिया को यहाँ मौजूद रखना चाहिए, लोगों ने हां में जवाब दिया। उन्हें देखते ही आंदोलनकारियों ने तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। इससे पहले आंदोलनकारियों ने कहा है कि वे किसी भी सूरत में वहां से नहीं हटेंगे।

हेगड़े ने माइक के जरिये आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि वे उनसे बात करने आये हैं और सभी अपनी बात रख सकते हैं। हालांकि यह रिपोर्ट फाइल करते हुए वहां आंदोलनकारियों का काफी शोर था। रामचंद्रन ने आंदोलनकारियों को नमश्कार करते हुए अपनी बात शुरू की।

मोदी पसंद, लेकिन भारत दौरे में बड़ी ट्रेड डील नहीं : ट्रम्प

दौरे से पहले ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ़ कर दिया है कि भारत दौरे के दौरान वे कोइ ट्रेड डील (व्यापारिक समझौता) नहीं करने जा रहे हैं। हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा है कि ”मोदी उन्हें बहुत पसंद हैं”। संभवता यह पहला अवसर है जब किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष ने दौरे से पहले ही इस तरह की बात कही हो। हाँ, उन्होंने इस बात पर खुशी जताई है कि ”भारत दौरे के दौरान उनका स्वागत ७० लाख लोगों की बड़ी भीड़” करेगी।

राष्ट्रपति ट्रम्प २४-२५ फरवरी को दिल्ली और गुजरात की अहमदाबाद यात्रा पर आ रहे हैं। ट्रम्प ने बुधवार को कहा कि कहा है कि वो भारत से बड़ा व्यापार समझौता करना चाहते हैं लेकिन यह डील भविष्य के लिए बचा कर रखी है। उन्होंने आरोप लगाया कि ”भारत अमेरिका के साथ कारोबार के क्षेत्र में अच्छा बर्ताव नहीं करता’। वैसे ट्रम्प ने कहा कि वे ”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी पसंद करते हैं और दोनों अच्छे दोस्त हैं”।

अहमदाबाद दौरे में ”७० लाख लोगों की भीड़ के उनका स्वागत करने” वाला ट्रम्प का आंकड़ा भी दिलचस्प है क्योंकि इतनी भीड़ अहमदाबाद में शायद ही समां अक्ती है। फिर भी खबर यही है कि ट्रम्प ने फिलहाल यह जरूर साफ़ कर दिया है कि इस दौरे के दौरान वे कोइ बड़ी ट्रेड डील नहीं करने जा रहे हैं।

अहमदाबाद के ट्रम्प के दौरे के लिए वहां झुग्गियां हटाने या झुग्गियों के सामने उन्हें छिपाने के लिए दीवार खड़ी कर देने को लेकर भी काफी विवाद हुआ है। झुग्गियों में रहने वाले लोग भी इसका विरोध करते देखे गए हैं। उनका आरोप है कि ट्रम्प को ”सबकुछ बेहतर” दिखाने के लिए उनकी गरीबी को दीवार के पीछे छिपाया जा रहा है।

फिलहाल ट्रम्प के ताजा बयान के बाद माना जा रहा है कि उनके अगले हफ्ते होने वाले भारत दौरे पर दोनों देशों के बीच व्यापार से जुड़ा कोई द्विपक्षीय समझौता शायद नहीं होगा। यह अटकलें जरूर लग रही हैं कि ट्रम्प भारत के साथ छोटे ट्रेड पैकेज पर सहमति बना सकते हैं। अभी तो ट्रम्प ने यही कहा है कि भारत के साथ बड़ा व्यापार समझौता पता नहीं चुनाव से पहले हो पाएगा या नहीं।

उधर उनके आगरा जाने को लेकर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि उनके सुरक्षा अधिकारी चाहते हैं कि ट्रम्प की कार ताजमहल परिसर के भीतर तक जाये जबकि स्थिति यह है कि सर्वोच्च न्यायलय की इस तरह भीतर वाहन ले जाने पर पाबंदी है। देखा है कि इसे लेकर क्या रास्ता निकलता है।

भाजपा और कांग्रेस नहीं निकाल पा रही ‘आप’ का तोड़

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत को लेकर आप पार्टी भले ही गदगद है। पर कांग्रेस और भाजपा ने अभी से दिल्ली नगर निगम के चुनाव को लेकर कमर कस ली है। कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष के नाम को लेकर जोर आजमाइश इस बात को लेकर चल रही है कि दिल्ली में कांग्रेस को ऐसे प्रदेश अध्यक्ष की जरूरत है जो आगामी दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस की डूबती नईयां को पार लगा सकें। क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपडा़ ही साफ ही नहीं हुआ है बल्कि कांग्रेस का वोट  4 प्रतिशत तक आ गया है। और आरोप भी इस बात के लिये लग रहे है कि कांग्रेस ने भाजपा को हराने के लिये आप पार्टी के लिये बरदान दिया है।कांग्रेस पार्टी के अंदर और बाहर भी इस बात को लेकर काफी बहस बाजी चल रही है कि अगर कांग्रेस ने दिल्ली नगर निगम में चुनाव मं अच्छा प्रदर्शन ही नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा सीटें नहीं जीती तो दिल्ली में कांग्रेस को फिर खड़ा करना मुश्किल होगा। मौजूदा हालात में कांग्रेस को अपने खोये हुये हुये जनाधार पाने के लिये और निगम जीत दर्ज कराने के लिये काफी मेहनत करनी होगी।

भाजपा  को दिल्ली में मिली करारी हार से उभरने के लिये बस एक ही अवसर है जो दिल्ली नगर निगम में भाजपा आप पार्टी की तरह ऐतिहासिक जीत दर्ज कर एक कीर्तिमान स्थापित करें। क्योंकि भाजपा के नेताओं का कहना है कि अगर दिल्ली में आप की फ्री स्कीमें चलती रही है तो वो दिन दूर नहीं कि आप पार्टी दिल्ली नगर निगम में झंडे गाड दें। क्योंकि दिल्ली में आप की हवा ही नहीं बल्कि आंधी है। भाजपा के नेताओं ने बताया कि दिल्ली आप पार्टी के पीछे कांग्रेस और भाजपा है। ऐसे मे जनता उसी के साथ है जो उनको ज्यादा से ज्यादा फ्री की सुविधा दें। दिल्ली में विकास को तो होता रहता है। बस जनता को फ्री की सुविधाओं से ही मतलब है। कांग्रेस और भाजपा इस समय आप पार्टी के फ्री वाली सुविधाओं का तोड़ नहीं निकाल पा रहे है। ऐसे में आप पार्टी ही दिल्ली में लोकप्रिय पार्टी बनी हुई है।

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति ने लिया तलाक

दिल्ली महिला आयोग की चेयरमैन स्वाति मालीवाल ने पति नवीन जयहिंद से तलाक हो गया है। मालीवाल ने सोशल मीडिया साइट ट्विटर पर जानकारी साझा करते हुए लिखा- कई बार अच्छे लोग साथ नहीं रह पाते हैं। मैं उन्हें हमेशा मिस करूंगी। नवीन जयहिंद आम आदमी पार्टी (आप) के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष हैं।
मालीवाल ने ट्वीट किया। ‘सबसे दुखद पल तब होता है जब आपकी सुखद कहानी का अंत हो जाता है। मेरी हो गई है। मेरा पति नवीन से तलाक हो गया है। कई बार बहुत अच्छे लोग भी साथ नहीं रह पाते हैं। जिंदगी भर साथ निभाने वाले को मिस करूंगी।’
उन्होंने कहा, ‘मैं हर दिन भगवान से प्रार्थना करूंगी कि वे हमें और हमारे जैसे दूसरे लोगों को ताकत दें ताकि इस तकलीफ दर्द को सहन कर सकें।’ महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों और उनसे जुड़े मामलों को लेकर स्वाति मालीवाल बेहद सक्रिय रहती हैं। पिछले साल के आखिर में स्वाति ने दुष्कर्मियों को छह महीने के अंदर फांसी पर चढ़ाए जाने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की थी। इस दौरान उनकी काफी तबीयत खराब हो गई थी। वह बेहोश तक हो गई थीं, जिसके बाद उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था।
इसी अनशन के दौरान बेहोश होने पर पति नवीन जयहिंद ने उनके बारे में ट्वीट किया था- स्वाति शेरनी है मुर्दा नहीं मर्दानी है। सोये हुए लोगो को जगाया जाता है पर मुर्दो को जगाने चली है, मुर्दे कभी जागते नहीं हैं। इस जंगल मे जंग जिंदा रहके लड़ी जाती है मरके तो जंग नही लड़ी जा सकती। रेपिस्टों को फांसी के लिए 13 दिन से अनशन पर है। मर भी जाएगी तो 13 दिन भी याद नही रखेंगे लोग।’

महिलाओं पर बेतुका बयान देकर घिरे गुजरात के धार्मिक बाबा

महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर विवादित बयान देने वाले गुजरात के धार्मिक बाबा घिर गए हैं। उन पर सोशल मीडिया केे जरिये चौतरफा हमला बोला जा रहा है। दरअसल, गुजरात के एक धार्मिक नेता ने कहा है कि पीरियड के दौरान भोजन पकाने वाली महिलाएं अगले जीवन में कुतिया के रूप में जन्म लेंगी, जबकि उनके हाथ का बना भोजन खाने वाले पुरुष बैल के रूप में पैदा होंगे। स्वामीनारायण मदिर से जुड़े स्वामी कृष्णस्वरूप दासजी ने यह टिप्पणी की है।

इस बेतुके बयान के बाद उनको निशाना बनाया जाने लगा। बॉलीवुड अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने ट्वीट के जरिये निशाना साधते हुए लिखा, इस शख्स ने 9 महीने तक कोख में रहकर पीरियड ब्लड से पोषक तत्व लिए, सब बेकार किया। इसके अलावा कई अन्य मुखर महिलाओं ने सीधे बाबा को निशाना साधते हुए उन्हीं के अंदाज में जवाब दिया है।

धार्मिक बाबा का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें वह गुजराती में कहते हैं कि यदि मासिक धर्म के दौरान महिला पति के लिए खाना बनाती है तो वह अगले जन्म में कुतिया बनेगी। महिलाओं को पता नहीं होता कि पीरियड का समय तपस्या करने जैसा होता है। हालांकि मैं आपको ये सब चीजें बताना नहीं चाहता, लेकिन मैं आगाह कर रहा है।

वीडियो में यह भी कहते हैं कि यह पक्का है कि यदि पुरुष मासिक धर्म के चक्र से गुजर रहीं महिलाओं के हाथ का बना खाना खाते हैं तो वे अगले जन्म में बैल बनेंगे। इतना ही नहीं, आगे बाबा ने कहा, यदि आपको मेरे विचार पसंद नहीं आते तो इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, पर यह सब हमारे शास्त्रों में लिखा है। पुरुषों को खाना बनाना सीखना चाहिए, इससे आपको मदद मिलेगी।

बता दें कि स्वामीनारायण मंदिर भुज स्थित श्री सहजानंद गल्र्स इंस्टीट्यूट (एसएसजीआई) नामक कॉलेज को चलाता है। इसी संस्थान की प्रिंसिपल और अन्य महिला स्टाफ ने हाल ही में हॉस्टल में एक पैड मिलने पर पीरियड के बारे में जानने के 60 से अधिक लड़कियों के कथित तौर पर वस्त्र उतरवाकर जांच करवाई थी कि किस लडक़ी को माहवारी हो रही है।  ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि लड़कियों ने कथित तौर पर हॉस्टल का वह नियम तोड़ा था, जिसमें मासिक धर्म के समय लड़कियों को अन्य लोगों के साथ खाना खाने की मनाही है। मामले में संस्थान की प्रिंसिपल, हॉस्टल रेक्टर और चपरासी को गिरफ्तार कर लिया गया था।

बीमार’ अमर सिंह ने अमिताभ से मांगी माफी

कभी समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता रहे अमर सिंह इन दिनों गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। अपने पुराने और पक्के दोस्त रहे बिग बी यानी अमिताभ बच्चन से उन्होंने सोशल मीडिया के जरिये माफी मांगी है। सिंगापुर में किडनी की बीमारी का इलाज करा रहे राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने वीडियो संदेश के साथ ही ट्वीट के जरिये माफी मांगी है।
सोशल मीडिया साइट उन्‍होंने ट्विटर पर अमर ने लिखा, मेरे पिता की आज पुण्‍यतिथि है और अमिताभ बच्‍चन ने मुझे हमेशा की तरह संदेश भेजा है। जीवन के इस पड़ाव पर जब मैं जीवन और मौत की लड़ाई लड़ रहा हूं, मुझे अमित जी और उनके परिवार के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया के लिए खेद है। ईश्वर उन सभी को आशीर्वाद दे।
वीडियो संदेश में कहा, ‘आज के दिन मेरे पूज्‍य पिताजी का स्‍वर्गवास हुआ था। इस तिथि पिछले एक दशक से लगातार श्री अमिताभ बच्‍चन मुझे संदेश भेजते हैं। संबंध जितना निकट होता है उसके टूट की चुभन भी उतनी तेज होती है। पिछले दस वर्षों से मैं बच्‍चन परिवार से दूर रहा, लेकिन आज फिर अमिताभजी ने मेरे पिताजी का स्‍मरण किया।
इसी सिंगापुर में दस साल पहले किडनी की बीमारी के लिए मैं और अमित जी दो महीने तक साथ रहे थे। उसके बाद से हमारे बीच रिश्ते खत्‍म हो गए, लेकिन दस साल बाद भी उनकी निरंतरता में बाधा नहीं आई। विभिन्‍न अवसरों पर चाहे वह मेरा जन्‍मदिवस हो या पिता की पुण्‍यतिथि अपने कर्तवय का निर्वहन करते रहे। 60 से ऊपर जीवन की संध्‍या होती है। मैं जिंदगी और मौत के बीच से गुजर रहा हूं। वे हमसे उम्र में बड़े हैं मुझे नरमी रखनी चाहिए थी। मुझे लगता है कि मैंने जो कटु वचन बोले हैं उसके प्रति खेद प्रकट कर देना चाहिए। मेरे मन में कटुता और नफरत से ज्‍यादा उनके व्‍यवहार के प्रति निराशा रही, लेकिन उनके मन में न कटुता है न निराशा है, बल्‍कि कोई और भावना है। इसलिए पिताजी को श्रद्धांजलि देते हुए जो श्रद्धासुमन उन्‍होंने व्‍यक्‍त किया है वह देते हुए, हमें सब ईश्‍वर पर छोड़ना चाहिए बजाय उसमें दखल देने के। बहुत-बहुत धन्‍यवाद अमित जी आपके संदेश का।’