मदद की दरकार, कुछ करो सरकार

कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि देश-दुनिया में एक दिन ऐसा भी आयेगा कि एक वायरस इतनी दहशत फैला देगा। एक ऐसी छूत की बीमारी फैलेगी, जो चन्द दिनों में हज़ारों ज़िन्दगियाँ निगल लेगी और लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लेगी। इस दिनों पूरी दुनिया का जीना मुहाल है। सब घरों में कैद हैं। प्रधानमंत्री की पहले एक सप्ताह की और फिर 21 दिन की जनता कफ्र्यू की अपील और भय से लोग घरों में कैद हैं।

पूरे भारत में यही हाल है। मगर अगर राज्यों की बात करें, तो कुछ राज्य सरकारें लोगों की सुरक्षा और दैनिक आवश्यकताओं पर ध्यान दे रही हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री घंटा तो बजाने आ गये, मगर लोगों की मदद के उनके हाथ अभी तक नहीं उठे हैं। उत्तर प्रदेश के शहरों और गाँवों में लोगों के बीच एक ही चर्चा है कि बचाव के तौर पर वे डॉक्टरों और सरकार द्वारा बताये नियमों का पालन करें, जिससे वे सुरक्षित रह सकें। ‘तहलका’ के विशेष संवाददाता ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड में लोगों की अपनी-अपनी समस्याएँ और सरकारी सुविधाएँ-असुविधाएँ देखीं। उत्तर प्रदेश के लोगों ने बताया कि अभी उत्तर प्रदेश सरकार लोगों को कोई सुविधा नहीं दे रही है। अस्पतालों में कोरोना से निपटने के लिए पूरे संसाधन नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 22 मार्च को घंटा तो बजाया, पर अस्पतालों की दशा वही है। इस पर उन्हें ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर कोई किसी बहुत ज़रूरी काम से भी बाहर निकल रहा है, तो भी पुलिस बिना कुछ पूछे, परेशान व्यक्ति की समस्या का समाधान किये बिना ही उस पर लाठियाँ भाँजने लगती है। गाँवों में कोरोना का प्रकोप नहीं है, लेकिन भय ज़्यादा है। शहरों में कुछेक मामले सामने आये हैं, लेकिन कोरोना के भय के चलते दूसरी बीमारियों से पीडि़त मरीज़ घरों में मर रहे हैं। उनके बारे में सरकार को सोचना चाहिए। अस्पतालों में भी डॉक्टरों की सुरक्षा तक के पूरे इंतज़ाम नहीं हैं।

वहीं मध्य प्रदेश में नयी सरकार सत्ता की खुशी में इतनी मस्त है कि उसे जनता से कोई सरोकार ही जैसे नहीं रह गया है। मध्य प्रदेश में पुलिस अपने तरीके से हालात सँभाले हुए है। शिवराज सरकार को जश्न मनाने से फुरसत नहीं है। अगर दिल्ली की बात करें, तो यहाँ कोरोना से 25 मार्च तक सिर्फ एक मौत की पुष्टि हुई थी।  लेकिन यहाँ दिल्ली सरकार ने बेघरों के साथ-साथ अन्य लोगों को भी दोनों वक्त के फ्री खाने का इंतज़ाम किया है। राशनकार्ड धारकों को डेढ़ गुना राशन बिना फ्री में देने का फैसला किया है और कोरोना से निपटने के लिए 50 करोड़ का आपात बजट भी पास किया है। केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी जनता की मदद को हाथ आगे बढ़ाया है। बताते चलें कि दिल्ली में कोरोना का पहला मामला जनवरी में आ गया था, तब दिल्ली विधानसभा चुनाव के शोर में  और शाहीन बाग के धरने के कारण किसी का कोई ध्यान कोरोना जैसी घातक बीमारी पर नहीं गया। तहलका ने उस समय भी कोरोना जैसी महामारी की ओर सरकार और लोगों का ध्यान खींचा था। लेकिन सियासतदाँ सत्ता के लालच में अपनी सियासी रोटियाँ सेंक रहे थे और इसे हल्के में ले रहे थे। उन्हें लगता था कि डॉक्टर इसे आसानी से सँभाल लेंगे। पर इस बार मामला जब यह महामारी भयानक रूप से फैलनी शुरू हुई, तब सरकारों में खलबली मची और प्रधानमंत्री तक को जनता कफ्र्यू की अपील करनी पड़ी। दु:खद यह भी है कि विदेशों में जहाँ सरकारों और उद्योगपतियों ने मदद के पिटारे जनता के लिए खोल दिये हैं, वहीं भारत में केंद्र सरकार से लेकर कई राज्यों की सरकारें और बड़े-बड़े उद्योगपति जनता से मुँह फेरे बैठे हैं। कुछ छोटे उद्योगपति और व्यापारी अपने स्तर पर जनता की मदद को आगे आ रहे हैं। सभी समुदाय के सहृदयी लोग आम लोगों की मदद कर रहे हैं। क्या केवल चंद लोगों की मदद से हम यह जंग जीत सकते हैं? क्या आज भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों और केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश सरकार की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?

दिल्ली में एक ओर सरकार लोगों को जागरूक कर रही है, तो वहीं दिल्ली पुलिस भी ऐसी हर सम्भव कोशिश कर रही है, जिससे दिल्ली के लोग इस जानलेवा महामारी कोरोना से बचे रह सकें। कोविड-19 के कहर से रक्षा के लिए पुलिस के जवान, डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी और मीडियाकर्मी दिन-रात एक किये हुए हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टर स्वास्थ्यकर्मी लगातार स्वास्थ्य सेवाएँ दे रहे हैं। वह भी तब, जब डॉक्टरों और स्वास्थ्यकॢमयों को अच्छी तरह मालूम है कि संक्रमित मरीज़ों का इलाज करते समय वे भी कोरोना की चपेट में आकर प्राण गँवा सकते हैं। इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आईसीएमआर द्वारा गठित नेशनल टास्क फोर्स फॉर कोविड-19 ने दावा किया है कि कोरोना से बचाव के लिए हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कारगर साबित हो सकती है। आईसीएमआर के डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि इस बीमारी से बचाव के तौर पर इलाज के साथ-साथ जागरूकता और साफ-सफाई के साथ-साथ आपसी दूरी बनाये रखना बहुत ज़रूरी है।

एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना का कहर कब तक थमेगा, यह अलग बात है। अभी सभी को साफ-सफाई रखने, एक-दूसरे की मदद करने और आपसी दूरी बनाकर रहने की ज़रूरत है; ताकि यह छुआछूत की बीमारी न फैल सके अन्यथा काफी घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। एम्स के डॉक्टर आलोक कुमार ने बताया कि कोरोना पर अभी तक उपलब्ध इलाज के साथ-साथ साफ-सफाई के ज़रिये जल्दी काबू पाया जा सकता है। कालरा अस्पताल के डॉ. आर.एन. कालरा ने बताया कि कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए मुँह पर मास्क लगाकर रखें और सेंनेटाइजर्स का उपयोग करें। साबुन से बार-बार हाथ धोयें। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डॉ. विवेका कुमार ने बताया कि खाँसी सर्दी और बुखार हो, तो नज़रअंदाज़ न करें। क्योंकि ज़रा-सी लापरवाही काफी घातक हो सकती है।

वहीं दिल्ली के तमाम व्यापारियों ने कारोना वायरस के निपटने में सहयोग के लिए कारोबार बन्द करके यह संदेश दिया है कि इस विपदा की घड़ी में वे निजी नफा-नुकसान देखे बिना देशहित में कन्धे से कन्धा मिलाकर चलेंगे। व्यापारी नेता प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि कोराना को हराने में दिल्ली के सभी व्यापारी सरकार के साथ हैं और घर में ही रहेंगे। अब बात करते हैं मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड की, जहाँ पर इस बीमारी से बचाव के लिए लोग पूरा एहतिहात बरत रहे हैं। हालाँकि, यहाँ पर कोरोना के सम्भावित मरीज़ों की चर्चा तो रही है, पर कोरोना पॉजिटिव मामले सामने नहीं आये हैं। फिर भी लोगों में एक दशहत और भय का माहौल है। यहाँ पर लोग मीडिया और सोशल मीडिया पर जानकारी हासिल कर सुरक्षित रहने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा यहाँ लोग घरेलू उपचार के तौर पर लोवान और गुग्गल घरों में जलाकर रख रहे हैं। एक-दूसरे दूरी बनाकर रहने की प्रधानमंत्री की सलाह भी मान रहे हैं। मास्क भी लगाकर रह रहे हैं। यहाँ पर बहुत ही कम लोगों का विदेशों में आना-जाना हैं। शायद यही वजह है कि यहाँ कोरोना दस्तक नहीं दे पाया है। लेकिन कोरोना के असर से बुन्देलखंड जैसा पिछड़ा क्षेत्र अब और पिछड़ गया है; क्योंकि यातायात बन्द होने के कारण लोगों का रोज़गार ठप पड़ा है। यहां के मशहूर पर्यटन स्थल खजुराहो पर अब पर्यटक नहीं आ रहे हैं। विदित हो कि खजुराहो से यहाँ के अधिकतर लोगों का रोज़गार जुड़ा है। बुन्देलखण्ड निवासी रतन पटेल ने बताया कि विदेशों से लोगों का आवागवन पूरी तरह से ठप्प हो गया है। इसके कारण यहाँ पर मार्केट में सन्नााटा पसरा है।

यही हाल मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ ज़िले के ओरछा का है। यहाँ रामलला के मंदिर में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन अब मंदिर बन्द है और श्रद्धालु भी नहीं आ रहे हैं। इसके कारण यहाँ के छोटे-बड़े व्यापारियों, नौकरी करने वालों की परेशानी बढऩे लगी है। मंदिर के पुजारी पंडित दीनदयाल पांडेय ने बताया कि अब तक के इतिहास में ओरछा में कभी ऐसा नहीं देखा गया। भगवान सब सही करेंगे। वह कहते हैं कि अगर मानवजाति  अब भी नहीं सुधरी, तो और भयानक हालात पैदा होंगे और इस सबके लिए मानव ही ज़िम्मेदार होगा। मदिर के पास पूजन-साम्रगी विक्रेता रमण तिवारी ने बताया कि कोरोना के डर से नवरात्रि में भी घरों से निकलने से लोग घबरा रहे हैं। ऐसा ही रहा, तो उनका छोटा-सा कारोबार भी ठप हो जाएगा। चित्रकूट का भी यही हाल है। यहाँ पर हर अमावस्या को 50 हज़ार से अधिक लोग कामदगिरी पहाड़ की परिक्रमा लगाने जाते हैं। हर लोग पर्यटक भी यहाँ खूब आते थे। पर अब कोरोना के भय से कोई नहीं जा रहा है, जिससे यहाँ के लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट मँडराने लगा है। यहाँ के छोटे-बड़े दुकानदारों ने नवरात्रि की तैयारी के मद्देनज़र थोक में नारियल और पूजन साम्रगी खरीदकर रख ली थी, लेकिन अब उसे खरीदने वाले लोग नहीं हैं, जिससे ये दुकानदार परेशान हैं। रवीन्द्र गुप्ता कहते हैं कि कभी किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसी बीमारी आयेगी, जो  ज़िन्दगी की रफ्तार रोक देगी।

दु:खद है कि प्राकृतिक आपदाओं की मार और पिछड़ेपन से उभरने के लिए बुन्देलखण्डवासी काफी मेहनत कर रहे थे; सरकार भी साथ लगी थी, लेकिन इस महामारी ने एक बार फिर बुन्देलखण्ड की आॢथकी को करारी चोट पहुँचायी है।