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कोरोना के साथ मरकज की लापरवाही से दशहत

देश दुनिया में बस एक ही रोग कोरोना वायरस से होने वाले मौतों पर चर्चा हो रही है और दुख जताया जा रहा है और कोरोना न हो उसके उपायों पर काम किया जा रहा है। चिकित्सक अपनी मेहनत से कोरोना से पीडि़त मरीजों के इलाज में लगें है। भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है और मौतें भी हो रही है। ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकारें युद्व स्तर पर कोरोना से बचाव पर काम पर लगी है, ताकि कोरोना को हराया जा सके। पर आज कल दिल्ली में एक दम नया मामला सामने आया है, जिसमें निजामुद्दीन में मस्जिद में जिसमें  एक जमात पर अप्रत्यक्ष रूप से ये आरोप लगाया जा रहा है कि इसमें हजारों की संख्या में देश-विदेश के हजारों लोग लॉक डाउन के दौरान कैसे एकत्रित रहे है। अब इसमें सीधे तौर पर कोरोना के नाम पर राजनीति हो रही है। एक पक्ष दूसरे पर आरोप लगा रहा है कि लगभग 20 दिनों से यहां पर सैकडों की संख्या में एकत्रित रहे हैं पर अभी तक कैसे रहे हैं। ऐसे में तबलीगी समाज पर सीधे तौर को जिम्मेदार ठहराने के साथ भाजपा के नेताओं का कहना है कि इसमें आप पार्टी पर भी इस मामले जिम्मेदार है क्योंकि इस मामले आप पार्टी चुप्पी साधी रही जो आज इतने बड़े बवाल का कारण बना है। आप पार्टी के नेता व प्रवक्ता संजीव झा का कहना है कि तबलीगी समाज ने बहुत ही बडी गलती की है जिसके कारण देश में हडकंप मचा हुआ है। वहीं दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सत्येन्द्र जैन का कहना है कि तबलीगी के समाज ने भी किया है उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। तबलीगी समाज की लापरवाही माफ करने वाली नहीं है। उन्होंने दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से सिफारिश की है कि इस मामले में कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। तबलीगी समाज के सफदर अली  का कहना है कि  किसी ने जान समझ कर ऐसा नहीं किया है। कोरोना के कहर से आज सारी दुनिया जूझ रही है। रहा सवाल तो ये भूल हो गयी है।

भाजपा के प्रवक्ता रोहित चहल का कहना है कि कोरोना के कहर से दुनिया जूझ रही है और भारत युद्ध स्तर पर काम कर रही है जिसकी दुनिया में तारीफ हो रही है। पर दिल्ली में एक जमात की लापरवाही के कारण दिल्ली में ही नहीं पूरे भारत में दहसत का माहौल है। क्योंकि यहां पर सैकड़ों की संख्या में एकत्रित लोग पूरे देश में कहां कहां गये है जो ना जाने कितने लोगों को संक्रमित कर ना जाने कितने लोगों की जिन्दगी से खेल रहे है। क्योंकि यहां के 24 लोगों में कोरोना की पुष्टि हुई है। उन्होंने तबलीकी समाज के गैर जिम्मेदाराना रवैया माफ करने वाला नहीं है। इसलिए कड़ी से कार्रवाई की बात की है। तबलीगी समाज के लोगों का कहना है कि यहां पर लोग आते रहते है, पर अचानक लॉकडाउन हो गया तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है।

 दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने  कहा कि 13 मार्च के बाद जो भी निजामुद्दीन मरकज में हुआ है वो बहुत ही दुखद है। इस मामले में जो भी दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि मरकज से जो लोग जहां-जहां पर गये है। वो वहां के लोगों के लिये मुशीबत बन सकते है। उन्होंने कहा कि इस मामलें में जो भी दोषी है उसके खिलाफ एफआरआई दर्ज होनी चाहिए।

कोरोना वायरस: क्या छिपा रहा है चीन?

कोरोना वायरस (कोविड-19) को लेकर बहुत-सी बातें सामने हैं। इनमें सबसे चिन्ताजनक यह है कि यह वायरस कथित रूप से चीन की एक प्रयोगशाला से लीक हुआ। यह प्रयोगशाला चीन के जिस वुहान में स्थित है, वहीं से वायरस निकला, जिसने दुनिया में महामारी का रूप ले लिया। यहाँ बड़ा सवाल यह है आिखर चीन लॉकडाउन के बहाने दूसरे देशों के विशेषज्ञों, यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम को भी कोरोना की उत्पत्ति वाले शहर वुहान में जाँच के लिए क्यों नहीं आने देना चाहता? क्या चीन कोरोना नोवेल (कोविड-19) वायरस को लेकर कुछ छिपा रहा है और कोरोना उसका कोई जैविक हथियार है? हालात बताते हैं, ऐसा कुछ ज़रूर है, जो आशंका पैदा करता है। क्या विश्व समुदाय कोरोना के दानव द्वारा दुनिया भर में इतनी इंसानी ज़िन्दगियाँ लील लेने के बाद चीन पर ऐसा दबाव बना पाएगा कि वह कोरोना का सच बता दे? शायद नहीं।

यहाँ एक और बड़ा सवाल है। चीन ने इस वायरस को कुछ समय के बाद ही कंट्रोल कर लिया। वहाँ 3200 मौतों के बाद जिस तरह अचानक मौतों का सिलसिला कमोवेश थम-सा गया, उससे यह सवाल उभर रहा है कि क्या चीन के पास पहले से कोई एंटी कोरोना दवाई उपलब्ध थी? जबकि इसी चीन से दुनिया भर में फैला यही कोरोना तबाही मचा रहा है। इटली जैसे देश में तो मरने वालों की संख्या चीन से दोगुनी से भी ज़्यादा हो गयी है। हालत यह कि लाशें दफनाने के लिए कब्रें कम पड़ गयी हैं। चीन ने भले कोरोना को लेकर उस पर उठ रहे सवालों को झूठ, उसे बदनाम करने और एशिया को अलग-थलग करने की यूरोप की साज़िश बताया है, लेकिन सवाल उठना स्वाभाविक है कि चीन विशेषज्ञों को जाँच के लिए क्यों वुहान नहीं आने देना चाहता। ऐसा नहीं कि चीन अकेला जैविक हथियार बनाने के आरोपों से घिरा है। अमेरिका से लेकर रूस और अन्य कई देशों को लेकर भी ऐसे सवाल उठते रहे हैं। लेकिन चीन का मामला इसलिए बहुत गम्भीर है कि कोरोना नोवेल उसके यहाँ से शुरू हुआ, जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेकर हज़ारों-हज़ार लोगों की ज़िन्दगी खत्म कर दी। चीन पर आशंका की कई वजहें हैं। इनमें एक जियोपॉलिटिर्क एंड इंटरनेशनल रिलेशंस पर ग्रेट गेम इंडिया पत्रिका में टायलर डरडेन की एक खोजपूर्ण रिपोर्ट है, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या चीन ने कनाडा से कोरोना वायरस को एक हथियार बनाने के लिए चुराया है? दिलचस्प यह है कि चीन ने कभी खुले रूप से इस रिपोर्ट के दावे का खण्डन नहीं किया। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने 21 मार्च को कोरोना को लेकर चीन पर सीधे-सीधे कई आरोप लगाये। पोंपियो ने न केवल कोरोना वायरस को ‘वुहान वायरस’ बताया, बल्कि एक और बहुत गम्भीर बात कही। पोंपियो ने कहा कि हमने चीन को यह प्रस्‍ताव दिया था कि हमारे विशेषज्ञ उनकी और डब्ल्यूएचओ की मदद के लिए चीन जाएँगे; लेकिन हमें इसकी अनुमति नहीं दी गयी। इस तरह की चीज़ें चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने कीं, जिससे दुनिया और विश्‍वभर के लोग खतरे में आ गये हैं।

चीन पर शंका की एक और वजह है। चीनी सरकार ने उन डॉक्टरों और व्हिसल ब्लोअरों (जासूसों) को सेंसर किया और यहाँ तक कि हिरासत में भी लिया, जिन्होंने कोरोना को लेकर लोगों को अलार्म करने की कोशिश की। चीन के मशहूर डॉक्टर ली वेनलियान्ग (34) ने सबसे पहले कोरोना वायरस और उसके गम्भीर खतरों को लेकर लोगों को जागरूक करने की कोशिश की। वही कोरोना की जानकारी दुनिया के सामने लेकर आये और कई लोगों को इस संक्रमण से बचाया। फिर अचानक चीन के सरकारी मीडिया और फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने उनकी मौत की खबर दी। सवाल ये उठे हैं कि क्या ली वेनलियांग किसी साज़िश का शिकार हुए हैं या फिर उनकी जान भी उसी वायरस ने ले ली, जिसके खतरों को लेकर उन्होंने दुनिया को जागरूक किया!  इन सब घटनाओं और आरोपों के बीच यह आशंका गहरा रही है कि कोरोना किसी चमगादड़ या अन्य जीव से नहीं आया, बल्कि वुहान में चीन की किसी गुुप्त प्रयोगशाला से किसी गम्भीर लापरवाही के चलते लीकेज से कोरोना वायरस फैला। चीन इसे छिपाना चाहता है।

चीन का पूरा मीडिया सरकार के अधीन है और वहाँ से जो भी रिपोर्ट आती हैं, वह सरकार की मंज़ूरी के बाद ही आती है, या चीन सरकार की तरफ से ही उपलब्ध करवायी गयी जानकारी पर आधारित होती हैं। कोरोना को लेकर तो कोई भी रिपोर्ट वुहान (चीन) से स्वतंत्र रूप से बाकी दुनिया में नहीं गयी। कोरोना जिस वुहान से शुरू हुआ, वहीं चीन की प्रयोगशालाएँ हैं। इसलिए आशंका लगातार और भी गहरा रही है। डब्ल्यूएचओ की एक विशेषज्ञ टीम ने वुहान का दौरा करके कुछ पीडि़तों वाले अस्पतालों का दौरा किया था। लेकिन उनका दौरा वहीं हो पाया, जहाँ चीन अधिकारी उन्हें ले गये थे। इससे यह ज़ाहिर नहीं हुआ कि कोरोना की उत्पत्ति कहाँ से और कैसी हुई? न ही इसकी कोई जाँच हुई।

चिन्ता की बात यह है कि जैव हथियारों के इस्तेमाल को प्रतिबन्धित करने के लिए जिनेवा में अंतर्राष्ट्रीय सन्धि तो हुई है, लेकिन उसमें यह प्रावधान नहीं है कि कोई दूसरा देश या विशेषज्ञ किसी देश में जाकर यह जाँच कि सन्धि के नियमों की ईमानदारी से पालना हो रही है या नहीं। इसका कारण यह कि इस तरह की जाँच करने के लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय जाँच व्यवस्था पर देशों में कोई सहमति सन्धि में नहीं हुई है। समझा जा सकता है कि इसके पीछे बड़ा कारण उन सभी देशों का अपने जैविक हथियार कार्यक्रम को गुप्त रखना चाहता है। आज जबकि कोरोना के वायरस को लेकर चीन पर आरोप लग रहे हैं, जाँच व्यवस्था पर सहमति के अभाव में चीन के खिलाफ आरोपों की जाँच नहीं हो सकती। चीन ही नहीं, अमेरिका और रूस जैसे देशों पर भी जैविक हथियारों के विकास और भण्डारण को लेकर आरोप लगते रहे हैं। यह सभी देश जिनेवा सन्धि के पालन के लिए किसी तरह की जाँच व्यवस्था स्वीकार नहीं करना चाहते।

कोरोना की जैसी वैश्विक व्यापकता रही है और जितनी बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं, उससे इस आशंका को और अधिक बल मिलता है। चीन से लेकर इटली, ईरान और अमेरिका जैसी शक्ति तक पर इस वायरस का असर रहा है, उससे आशंकाएँ बड़ा आकार ले रही हैं। यह आरोप हैं कि चीन के वुहान शहर में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में घातक विषाणुओं से लडऩे के लिए विषाणु वैज्ञानिक काम करते हैं। यही नहीं, यह इंस्टीट्यूट लाल सेना (चीन की सेना) के लिए जैव युद्ध कार्यक्रम में भी योगदान करता है। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इस संस्थान को लेकर उसे इज़राइल के एक जैव-वैज्ञानिक और जैव युद्ध विशेषज्ञ डैनी शोहम ने बताया कि यह संस्थान चीन की सबसे अत्याधुनिक जैव शोध प्रयोगशाला है। दिलचस्प यह भी है कि यह विषाणु शोध चीन का एकमात्र शोध संस्थान है, जिसकी मौज़ूदगी के बारे में चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है।

साल 2017 के आिखर में एक खुफिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि पाकिस्तान के एक दर्जन से ज़्यादा सेना अधिकारी, जिनमें पाक सेना प्रमुख और कैप्टेन रैंक के अधिकारी भी थे, चीन में जैविक युद्ध के प्रशिक्षण के लिये गये थे।

चीन के जैविक युद्ध की तैयारी कहाँ तक पहुँची और कितने या कैसे जैविक हथियार चीन में तैयार हो चुके हैं या हो रहे हैं, अभी कहना मुश्किल है। वैसे अस्सी के दशक के आिखरी साल में चीन के एक जैविक हथियार संयन्त्र में गम्भीर दुर्घटना हुई थी, जिसकी व्यापक चर्चा हुई। इसके बाद जैविक युद्ध के खतरे ने दुनिया भर को चिन्ता में डाल दिया था।

कोरोना वायरस (कोविड-19) एक साधारण वायरस तक सीमित रहता और कुछ समय में ही नियंत्रण में आ गया होता, तो शायद इतने गहरे संदेह नहीं उभरते। लेकिन पूरी दुनिया में हज़ारों मौतों के बीच इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियों अमेरिका और चीन ने जिस तरह एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किये हैं, उसने एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। सवाल यह उठ रहे हैं कि कहीं कोरोना का यह हमला किसी जैविक युद्ध का पूर्वाभ्यास तो नहीं था। आज जो सवाल खड़ा किया जा रहा है, वह यह है कि कोरोना वास्तव में प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव निर्मित आपदा है। अर्थात् वैज्ञानिकों ने इसे किसी खास मकसद के लिए तैयार किया है। यह मकसद जैविक युद्ध का पूर्वाभ्यास भी हो सकता है और जैविक हथियार के निर्माण के दौरान वायरस के लीक हो जाने की चूक भी हो सकती है। फिलहाल यह तो साफ है कि इसे लेकर अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं कि यह वायरस क्या बला है? कैसे आया? और कहाँ से आया? बहुत से विशेषज्ञ इसे लेकर सावधानी भरे बयान दे रहे हैं और आरोपों से बचने की बात कह रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि दुनिया भर में कोरोना के कहर के बाद रिसर्चर, वैज्ञानिक और जासूस इस बात की खोज में जुट गये हैं कि क्या कोरोना किसी जैविक युद्ध की तैयारी जैसा खतरा है?

आरोप-प्रत्यारोप

अब ज़रा अमेरिका और चीन के एक-दूसरे पर कोरोना को लेकर आरोपों की भी बात कर लेते हैं। दोनों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाये। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कंग श्वांग ने कहा कि ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि कोरोना वायरस शायद चीन के जैविक युद्ध का एक हिस्सा है और इसे एक प्रयोगशाला से निकला जैविक हथियार बताया गया है। याद रहे चीन की तरफ से कहा गया था कि अमेरिकी सैनिकों के ज़रिये चीन के वुहान में कोरोना वायरस आया। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि वुहान में अमेरिकी सैनिकों के ज़रिये कोरोना वायरस आया और यह एक अमेरिकी साज़िश थी। दरअसल, यहाँ एक दूसरा पहलू भी है, जो चीन और उसके समर्थक देश पेश करते हैं। उनका दावा है कि कोरोना चीन के खिलाफ एक षड्यंत्र है; क्योंकि कुछ ताकतें (अमेरिका और अन्य) उसकी आर्थिक शक्ति से चिन्तित हैं और वे उसे ऐसी मार देना चाहते थे, जिससे उसकी आर्थिकी तबाह हो जाए और वह कंगाल बन जाए। उनकी इस थ्योरी के पीछे तर्क है कि कोरोना चीन, पाकिस्तान आदि में पहुँचा; लेकिन उसके पड़ोसी अफगानिस्तान में नहीं, जहाँ अमेरिका के सैनिक हैं। चीन का विदेश मंत्रालय आरोप लगा चुका है कि अमेरिकी सैनिक कोरोना को चीन में लाये।

पेइचिंग के चाइना रेडियो इंटरनेशनल के माध्यम से फरवरी में ही चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कंग श्वांग ने कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के ज़िम्मेदार व्यक्ति ने फिलहाल बताया है कि कोई भी प्रमाण नहीं है कि नया कोरोना वायरस प्रयोगशाला से बना है या जैविक हथियार बनाने से पैदा हुआ है। कंग श्वांग ने कहा कि चीन को आशा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक साथ कोरोना वायरस का मुकाबला करने के साथ षड्यंत्र की राय जैसे राजनीतिक वायरस का भी विरोध करेगा। कंग श्वांग ने कहा कि वर्तमान में चीनी जनता महामारी के मुकाबले की पूरी कोशिश कर रही है। इस वक्त ऐसी सनसनीखेज़ बात करना बदनीयत और बेतुकापन है।

उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप कोरोना वायरस को लगातार चीनी वायरस कह रहे हैं। वैसे इसके लिए ट्रंप की आलोचना भी हुई है। उनके विरोधी कोरोना को चीनी वायरस कहने को ट्रंप की नस्लवादी और चीन विरोधी सोच बता रहे हैं। इसके बावजूद ट्रंप अपनी बात पर दृढ़ हैं और उन्हें लगता है कि कोरोना को चीनी वायरस कहने में कुछ भी गलत नहीं है; क्योंकि यह वायरस वहीं से आया है। चीन ट्रंप की इस बात का कड़ा विरोध कर रहा है। कड़ी आपत्ति के बीच चीन के विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई कमज़ोर होगी और दोनों देशों के बीच कड़ुवाहट आयेगी। चीन का यह भी कहना है कि इससे दुनिया में एशिया के लोगों के प्रति नफरत पैदा हो सकती है।

यहाँ तक कि भारतीय शोधकर्ताओं के एक समूह ने भी जनवरी के आिखर में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया कि सम्भव है कि कोरोना वायरस जानबूझकर पैदा किया गया हो। रिपोर्ट में कोरोना वायरस (कोविड-19) को चीन के जैविक हथियार होने की आशंका जतायी गयी थी। रिपोर्ट को लेकर काफी विवाद हुआ, जिसके बाद फरवरी के शुरू में ही इस रिपोर्ट को वापस ले लिया गया। वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि इसमें कोई ठोस आधार नहीं है, जिसकी बुनियाद पर कहा जा सके कि चीन ने कोरोना को जानबूझकर पैदा किया है।

अमेरिका अब चीन पर आरोप लगा रहा है कि उसने कोरोना वायरस के संक्रमण को ठीक से नहीं सँभाला, जिससे दुनिया भर में यह फैला। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन भी इस थ्योरी पर चर्चा करता रहा है कि कोरोना वायरस चीन में वुहान के फूड मार्केट से नहीं फैला है, बल्कि चीन की सरकार की वुहान स्थित लैब से फैला है, जहाँ जैविक हथियार को लेकर रिसर्च का काम चल रहा है। अब इसके क्या मायने हैं? यही कि अमेरिका चीन पर सीधे-सीधे यह आरोप कि यह जैविक हथियार हो सकता है।

फॉक्स न्यूज के एक टॉक शो में अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कॉटन ने कहा था कि कोरोना वायरस कैसे आया? इसका अभी कोई सुबूत नहीं। यह वुहान के फूड मार्केट से आया, इसे भी हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते। चीन के बारे में हम जानते हैं कि वह नकल करने और बेईमानी के लिए मशहूर है। हमें इसे लेकर शक करना चाहिए और कड़े सवाल भी करने चाहिए।

टॉम कॉटन ने एक अलग साक्षात्कार में कहा कि वुहान के जिस फूड मार्केट से कोरोना फैलने की बात कही जा रही है, वहीं पर चीनी लैब स्थित है। हमें नहीं पता है कि यह कहाँ से पैदा हुआ। हमें यह पता है कि फूड मार्केट से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही चीन का इकलौता बायोसेफ्टी

लेवल-4 का सुपर लैब है। हालाँकि, हमारे पास कोई सुबूत नहीं है कि कोरोना चीन की उस लैब में पैदा किया गया है। जब टॉम कॉटन ने इस तरह की आशंका की बात कही, तो मशहूर अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने विशेषज्ञों से इस मसले पर उनके विचार जाने। हालाँकि, कमोवेश सभी ने इस थ्योरी का समर्थन नहीं किया। किसी ने भी कोरोना को मानव निर्मित नहीं बताया। रटगर्स यूनिवर्सिटी में केमिकल बायोलॉजी के प्रोफेसर रिचर्ड एब्राइट ने अखबार के माध्यम से कहा कि इस वायरस के जीनोम सीक्वेंस को देखें, तो साफ हो जाता है कि इसे जानबूझकर नहीं तैयार किया गया है। कोरोना के इस विवाद पर न्यूयॉर्क टाइम्स टू सेंटर फोर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में चीन के विशेषज्ञ स्कॉट केनेडी ने कहा कि कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहना चीन को दुनिया भर में किसी डर के रूप में पेश करने की तरह है। यह नफरत न केवल वहाँ की सरकार के प्रति, बल्कि आम चीनी नागिरकों के खिलाफ भी बढ़ेगी। लेकिन ट्रंप ने व्हाइट हाउस में बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह कोरोना के साथ चीन का नाम इसलिए जोड़ रहे हैं, क्योंकि वह लोगों को गलत सूचना दे रहे हैं। ट्रंप ने कहा कि चीन की तरफ से ही कहा गया कि अमेरिकी सैनिकों के ज़रिये चीन के वुहान में कोरोना वायरस आया। वह (चीन सरकार) मेरे सैनिकों को बदनाम कर रही है। ट्रंप ने अपने ट्वीट में लिखा- ‘कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई, इसलिए उसे चीनी वायरस कहने में कोई समस्या नहीं है।’

व्हाइट हाउस का कहना है कि वायरस का नाम पहले भी उसकी उत्पत्ति की जगह के नाम पर दिया जाता रहा है। स्पैनिश फ्लू, वेस्ट नील वायरस, जीका और इबोला। यह सभी नाम जगह के नाम से हैं। वैसे अमेरिका में कोरोना को चीनी वायरस कहने पर विवाद रहा है। मेडिकल और स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि महामारी को किसी नस्ल या समुदाय से नहीं जोडऩा चाहिए; क्योंकि इससे केवल नफरत बढ़ेगी।

वैसे इन आरोपों-प्रत्यारोपों का असर भी दिखा है। चीन ने मार्च में अपने यहाँ से कई अमेरिकी पत्रकारों को जाने के लिए कह दिया। जवाब में ट्रंप प्रशासन ने भी अमेरिका में काम कर रहे कुछ चीनी नागरिकों को जाने के लिए कहा।

क्या है जिनेवा जैविक हथियार सन्धि?

जैव हथियारों के इस्तेमाल को प्रतिबन्धित करने को लेकर 1925 में की जिनेवा अंतर्राष्ट्रीय सन्धि और 1972 में इसमें हुए संशोधन, जिसमें जैविक हथियार के विकास और भण्डारण पर रोक की बात है, के अनुच्छेद एक में कहा गया है- ‘सन्धि पर हस्ताक्षर करने वाला प्रत्येक देश संकृप करता है कि किसी हालत में भी वह जैव हथियारों का विकास, उत्पादन, भंडारण और इस्तेमाल नहीं करेगा। इसके बाद अमेरिकी कांग्रेस ने 1989 में जैव-हथियार को लेकर एक क़ानून बनाया जिसमें जैव हथियार सन्धि के पालन की बात है। इसका मकसद इस तरह के हथियारों को आतंकवादियों के हाथ जाने देने से रोकना है। हमेशा से यह आशंका जतायी जाती रही है कि इस तरह के हथियारों का निर्माण इस लिहाज़ से खतरनाक हो सकता है कि कहीं यह किसी आतंकवादी संगठन के हाथ न लग जाएँ।’

आतंकवादी गुटों का खतरा

अभी तक इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि कोरोना वायरस के फैलने के पीछे किसी आतंकवादी संगठन का हाथ हो सकता है। लेकिन इसके खतरे से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। आतंकवादी गुट हमेशा इस तरह के खतरनाक हथियारों की खोज में रहे हैं। वैसे भी दुनिया के खूँखार आतंकी संगठनों ने खतरनाक हथियार हासिल किये हैं। वे इनका इस्तेमाल करके हज़ारों-हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं। इस बात के दर्ज़नों सुबूत रहे हैं कि कुछ देश आतंकवादियों की मदद करते रहे हैं। उनके पास खतरनाक हथियार इन देशों से ही पहुँचे हैं। ऐसे में जैविक हथियारों की सुरक्षा में भी सेंध का बड़ा खतरा पैदा हो जाता है। यदि ऐसा होता है, तो यह दुनिया की तबाही का संकेत होगा। हाल के दशक में दुनिया में देशों की आपसी दुश्मनियाँ और व्यापारिक टकराव भी आतंकवादियों के फलने-फूलने का बड़ा कारण रहा है। यह आरोप रहे हैं कि कुछ देश अपने निजी हितों के लिए दूसरे देशों के खिलाफ आतंकवादियों का इस्तेमाल करते हैं।

क्या है जैविक युद्ध?

जैविक युद्ध (बायोलॉजिकल वारफेयर) के मायने हैं- विषाणु युद्ध। यानी इसमें हथियार गोला-बारूद नहीं, बल्कि विषाणु (वायरस) होंगे। जैविक युद्ध के तहत तबाही के लिए जीवाणु, विषाणु या फफँूद जैसे जैविक तत्त्वों को ही हथियार बनाया जाता है। जैविक युद्ध में घातक विषैले या संक्रमणकारी तत्त्वों का उपयोग किया जाता है। जैविक हथियार रोग पैदा करने वाले एजेंट होते हैं। इनमें बैक्टीरिया, वायरस, रिकेट्सिया, कवक, विषाक्त पदार्थ शामिल हैं। बेसिलस एन्थ्रेसिस बैक्टीरिया, जो एंथ्रेक्स का कारण बनता है; जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले सबसे घातक एजेंटों में गिना जाता रहा है। एंथ्रेक्स का इस्तेमाल जैविक हथियार के रूप में लगभग एक सदी तक पाउडर, स्प्रे, भोजन और पानी के साथ किया गया है। अदृश्य, संक्रामक, गन्धहीन और स्वादहीन बीजाणु एंथ्रेक्स को एक लचीला जैव हथियार बनाते हैं।

कोरोना ने प्रदूषण करवा दिया कम

भले कोरोना ने दुनिया भर में दहशत भर दी। इस वायरस के कुछ सकारात्मक पहलू भी सामने आये हैं। पहले यह कि चीन में वायु प्रदूषण काफी हद तक कम हो गया है। कुछ समय पहले तक हर देश वायु प्रदूषण से जंग लड़ रहा था। चीन में तो बढ़ता वायु प्रदूषण एक भीषण समस्या बन चुका है। हर साल 10 लाख से अधिक लोगों को वहाँ वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। चीन की अर्थ-व्यवस्था को प्रदूषण से 267 बिलियन युआन (करीब 26,700 करोड़ रुपये) का नुकसान उठाना पड़ रहा था। वायु प्रदूषण से जंग के लिए चीन ने विश्व का सबसे बड़ा एयर प्यूरीफायर टॉवर लगाया। प्लास्टिक को प्रतिबन्धित किया। उद्योगों पर लगाम लगायी। लेकिन नतीजा ज़्यादा उत्साह वाला नहीं रहा। मगर हैरानी की बात है कि आज अंतरिक्ष में चीन के आसमान के ऊपर हमेशा बादलों के रूप में प्रदूषण का धुआँ बहुत कम दिख रहा है। उधर, इटली के वेनिस शहर में एक अप्रत्याशित प्रभाव दिखा है। वहाँ आमतौर पर बादल वाली नहरें पानी के क्रिस्टल में तब्दील हो गयी हैं, जिसमें नीचे मछली तैरते हुए भी साफ दिखती है। ट्रैफिक कम होने से नहरों का रंग-रूप बदल गया है। यही नहीं, बड़ी नदियों में डॉलफिन, जो पहले किनारों पर बहुत काम दिखती थीं; अब दिखने लगी हैं। हो सकता है कि भारत में भी राजधानी दिल्ली जैसे शहरों में ट्रैफिक घटने से प्रदूषण के आँकड़े बेहतर हों। नदियों में प्रदूषण कम हो और ध्वनि प्रदूषण भी कम हो।

खतरे के साये में भारत

करीब 130 करोड़ की आबादी वाले भारत में इस तरह की महामारी का सबसे ज़्यादा खतरा है। देश में अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। और गरीबी का आलम यह है कि एक-एक कमरे के घर में 10-10 लोग रहते हैं। बस्तियाँ इस तरह की महामारी के लिए सबसे ज़्यादा संवेदनशील स्थान हैं। वहाँ सफाई से लेकर जन सुविधाएँ तक न के बराबर हैं। सेल्फ चेकिंग किट से लेकर आईसोलेशन वाले कमरे भी बहुत कम हैं। ऊपर से भ्रष्ट तंत्र और अराजक तत्त्व महामारी की हालत में भी पैसे के लिए लोगों को लूटने से पीछे नहीं हटते। भारत में शुरू में कोरोना का असर न के बराबर था, लेकिन मार्च के दूसरे पखवाड़े अचानक स्थितियाँ खराब होने लगीं। सच यह है कि फरवरी के अन्त तक भारत में कोरोना से मुकाबले की तैयारियाँ सिर्फ बैठकों तक सीमित थीं। अंतर्राष्ट्रीय हवाई उड़ानों पर पर बहुत देरी से पाबन्दी लगायी गयी, जिसके चलते बड़ी संख्या में विदेशी भी उन देशों से भारत आये, जहाँ कोरोना के बहुत मामले हैं। एयरपोट्र्स पर ऐहतियाती उपाय बहुत देरी से शुरू हुए। एयरपोर्ट पर क्या हालत है, यह गायक कनिका कपूर के उदहारण से साबित हो जाता है। उन्हें इंग्लैंड से वापस आने के बाद एयरपोर्ट पर जाँच के दौरान पॉजिटिव पाया गया, लेकिन वे सीधे अपने घर चली गयीं और तीन पार्टियों में शामिल होकर कितने ही लोगों के लिए खतरा बन गयीं। महामारी से बचने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से किसी बड़े बजट की कोई घोषणा मार्च के आिखर तक नहीं की गयी। घर पर रहने और लॉकडाउन के फैसले हुए, लेकिन इसे लेकर कोई योजना रखी गयी कि जो लोग दिन में कमाकर रात को खाना खाते हैं, उनका क्या होगा? बस्तियों, जो भारत की दृष्टि से सबसे संवेदनशील स्थान हैं; में जागरूकता को लेकर कुछ नहीं किया गया। भारत में कोरोना वायरस के मामले में सबसे ज़्यादा संवेदनशील महाराष्ट्र बना हुआ है, जहाँ सबसे ज़्यादा मामले सामने आये हैं। इसके अलावा केरल, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, हरियाणा, गुजरात, लद्दाख, पंजाब, चंडीगढ़, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार से भी मामले सामने आये हैं। देश भर में लॉकडाउन की स्थिति है।

पहली बार जनता कफ्र्यू!

कोरोना वायरस को लेकर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च की शाम राष्ट्र को सम्बोधित किया। मोदी ने कहा कि इस वायरस से पूरी मानवजाति संकट में है और सावधानी ही बचने का सबसे बड़ा उपाय है। अपने सम्बोधन में मोदी ने जनता से अपील की कि आने वाले कुछ सप्ताह तक घर से न निकलें, बहुत ज़रूरी होने पर ही बाहर निकलें। मोदी ने 22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक सभी देशवासियों को जनता कफ्र्यू करने के लिए कहा। लोगों ने इसका पालन भी किया। शायद देश में पहली बार इस तरह का कफ्र्यू लगा है। मोदी ने कहा कि जबकि इस बीमारी की कोई दवा नहीं है, तो इस स्थिति में हमारा खुद का स्वस्थ बने रहना बहुत आवश्यक है। इस बीमारी से बचने और खुद के स्वस्थ बने रहने के लिए अनिवार्य है- संयम। कहा कि आज हमें ये संकल्प लेना होगा कि हम स्वयं संक्रमित होने से बचेंगे और दूसरों को भी संक्रमित होने से बचाएँगे। उन्होंने कहा कि जब बड़े-बड़े और विकसित देशों में हम कोरोना महामारी का व्यापक प्रभाव देख रहे हैं, तो भारत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, ये मानना गलत है। शुरुआती कुछ दिनों के बाद अचानक बीमारी का जैसे विस्फोट हुआ है। इन देशों में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है। भारत सरकार इस स्थिति पर, कोरोना के फैलाव के इस ट्रैक रिकॉर्ड पर पूरी तरह नज़र रखे हुए है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अभी तक विज्ञान कोरोना महामारी से बचने के लिए कोई निश्चित उपाय नहीं सुझा सका है और न ही इसकी कोई वैक्सीन बन पायी है। ऐसी स्थिति में चिन्ता बढऩी बहुत स्वाभाविक है। मैं आप सभी देशवासियों से कुछ माँगने आया हूँ। मुझे आपके आने वाले कुछ सप्ताह चाहिए। आपका आने वाला कुछ समय चाहिए। मोदी ने कहा कि साथियों, आपसे मैंने जो भी माँगा है; मुझे कभी देशवासियों ने निराश नहीं किया है। यह आपके आशीर्वाद की ताकत है कि हमारे प्रयास सफल होते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना से निश्चिंत हो जाने की यह सोच सही नहीं है। इसलिए प्रत्येक भारतवासी का सजग रहना, सतर्क रहना बहुत आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना वैश्विक महामारी का डटकर मुकाबला किया है; आवश्यक सावधानियाँ बरती हैं। लेकिन बीते कुछ दिनों से ऐसा भी लग रहा है, जैसे हम संकट से बचे हुए हैं। सब कुछ ठीक है। आमतौर पर कभी जब कोई प्राकृतिक संकट आता है, तो वो कुछ देशों या राज्यों तक ही सीमित रहता है। लेकिन इस बार यह संकट ऐसा है, जिसने विश्व भर में पूरी मानवजाति को संकट में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व इस समय संकट के बहुत बड़े गम्भीर दौर से गुज़र रहा है। इसलिए मेरा सभी देशवासियों से यह आग्रह है कि आने वाले कुछ सप्ताह तक, जब बहुत ज़रूरी हो तभी अपने घर से बाहर निकलें। जितना सम्भव हो सके, आप अपना काम- चाहे बिजनेस से जुड़ा हो, कार्यालय से जुड़ा हो; अपने घर से ही करें।

कोरोना वायरस को लेकर चीन पर केस दर्ज

चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस का मसला अब अदालत में पहुँच गया है। हज़ारों लोगों की जान ले चुके इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर आशंकाओं के बीच इस बाबत अमेरिका के टेक्सास की कम्पनी बज फोटोज, वकील लैरी क्लेमैन और संस्था फ्रीडम वॉच ने कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर चीन के खिलाफ 200 खरब डॉलर (20 ट्रिलियन डॉलर) यानी लगभग 14,260 खरब रुपये का मुकदमा दायर कर दिया है। मुकदमे में चीन पर दुनिया के 3.34 लाख लोगों को वायरस से संक्रमित करने का आरोप लगाया गया है। दावा किया गया है कि चीन के वुहान शहर में वुहान वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट ने यह जैविक हथियार तैयार किया है। जिसमें चीन सरकार, चीन की सेना, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के डायरेक्टर शी झेनग्ली और चीन के सेना में मेजर जनरल छेन वेई की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। गौरतलब है कि वायरस के फैलने से अमेरिका में भी बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। अब केलमेन ने टेक्सास के उत्तरी डिस्ट्रिक्ट की अदालत में मुकदमा दायर करते हुए आरोप लगाया गया है कि वायरस को चीन ने युद्ध के जैविक हथियार के रूप में तैयार किया है। याचिका में कहा गया है कि चीन इसे आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी कानून, अंतर्राष्ट्रीय कानून, समझौतों और मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है। केलमेन ने कहा कि इसे एक प्रभावी और विनाशकारी जैविक युद्ध हथियार के रूप में बड़े पैमाने पर आबादी को मारने के लिए डिज़ाइन किया गया है। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस खतरनाक वायरस को फैलाने के लिए चीन को ज़िम्मेदार बताते हुए कहा था कि चीन के कोरोना वायरस पर जानकारी छिपाने की कीमत आज पूरी दुनिया चुका रही है।

दुनिया में कोरोना वायरस के बढ़ते मामले बहुत बड़ी चिंता का कारण हैं।

टेडरोस अडानोम गेबरेइसस,

डब्ल्यूएचओ प्रमुख

चीन के डॉक्टर ने सबसे पहले दी थी चेतावनी

कोरोना का कहर सामने आने के बाद चीन में डॉक्टर सी. उर्फ ली वेनलियान्ग (34) किसी हीरो की तरह उभरे थे। उन्होंने सबसे पहले कोरोना वायरस और उसके गम्भीर खतरों को पहचाना। कई लोगों को संक्रमित होने से भी बचाया था। कोरोना वायरस को दुनिया के सामने लाने इस चीनी डॉक्टर ली वेनलियान्ग की मौत पर सवाल उठे हैं। चीन के सरकारी मीडिया और फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने उनकी मौत की खबर दी थी। सवाल यह उठे हैं कि क्या ली वेनलियांग किसी साज़िश का शिकार हुए हैं? या फिर उनकी जान भी उसी वायरस ने ले ली, जिसके खतरों को लेकर उन्होंने दुनिया को जागरूक किया! चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा था कि डॉक्टर वेनलियान्ग की मृत्यु कोरोना वायरस से हुई। उन्हें कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद 12 जनवरी को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था, क्योंकि वो एक मरीज़ के सम्पर्क में आये थे। जब चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस की खबरें छिपाने की चर्चा तेज़ हुई थी, उस समय डॉक्टर वेनलियान्ग ने अस्पताल से वीडियो पोस्ट करके कोरोना वायरस को लेकर लोगों को चेताया था। कहा जाता है कि इसके बाद चीन के स्वास्थ्य विभाग ने वेनलियान्ग से पूछताछ की थी। वुहान पुलिस के वेनलियान्ग को अफवाह फैलाने के आरोप के साथ नोटिस जारी करने की जानकारी सामने आयी थी। वेनलियान्ग ने 30 दिसंबर, 2019 को साथी डॉक्टरों के एक चैट ग्रुप में अपने साथी डॉक्टरों को संदेश भेजा था और कोरोना वायरस के खतरे के बारे में बताया था। इतना ही नहीं ली वेनलियान्ग ने अपने साथी डॉक्टरों को चेतावनी दी थी कि वो इस वायरस से बचने के लिए खास तरह के कपड़े पहनें। नलियान्ग ने बताया था कि टेस्ट में साफ हुआ है कि लोगों की जान लेने वाला ये वायरस कोरोना समूह का है। इसी समूह के सीवियर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम यानी सार्स वायरस भी हैं, जिसकी वजह से 2003 में चीन और पूरी दुनिया में 800 लोगों की मौत हुई थी। वेनलियान्ग ने अपने दोस्तों को कहा कि वे अपने परिजनों को निजी तौर पर इससे सतर्क रहने को कहें। उनका ये मैसेज कुछ देर में ही वायरल हो गया था। यह कहा जाता है कि वेनलियांग ने सबसे पहले चीन की सरकार को इस वायरस से आगाह किया था, लेकिन चीन की सरकार ने डॉक्टर की चेतावनी को संजीदगी से नहीं लिया, जिसका नतीजा खतरनाक हुआ। लांसेट मेडिकल जर्नल में चीनी शोधकर्ताओं के छपे एक शोध में कहा गया है कि कोरोना कोविड-19 से संक्रमण का पहला मामला पिछले साल पहली दिसंबर को ही सामने आ गया था। इसके कुछ दिन बाद तीन और लोगों में कोरोना के लक्षण दिखे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कोरोना वायरस से पैदा हुए रोग को लेकर अभी भी यह आशंका खारिज नहीं की जा सकती कि ये बीमारी किसी जानवर से मनुष्य में पहुँची।

कोरोना : थ्योरीज

  1. चीन के वुहान में कथित रूप से सरकारी प्रयोगशाला से यह वायरस किसी लापरवाही के कारण लीक हो गया। इस प्रयोगशाला को लेकर कहा जाता है कि वहाँ चीनी वैज्ञानिक गुप्त रूप से वारफेयर (युद्ध की तैयारी) के कार्यक्रमों पर काम करते हैं। जियोपॉलिटिकल एंड इंटरनेशनल रिलेशंस पर ग्रेट गेम इंडिया पत्रिका में टायलर डरडेन की खोजपूर्ण रिपोर्ट में दावा किया गया कि क्या चीन ने कनाडा से कोरोना वायरस को एक हथियार बनाने के लिए चुराया है? चीन ने आज तक खुले रूप से कभी इस रिपोर्ट के दावे का खंडन नहीं किया।
  2. चीन ने शुरू से यह कहा है कि कोरोना इंसानों में चमगादड़ या इस तरह की किसी प्रजाति से आया। शोधकर्ता प्रामाणिक तौर पर नहीं कह पाये हैं कि यह वायरस किस जानवर से इंसानों में आया है? पिछले हफ्ते एक चीनी टीम ने सुझाव दिया कि यह साँप से आया हो सकता है। लेकिन सवाल है कि वुहान शहर, जहाँ चीन की प्रयोगशाला है; में ही यह घटना क्यों हुई?
  3. चीन क्यों दूसरे देशों को विशेषज्ञों को वुहान में जाँच के लिए नहीं आने दे रहा। क्या उसे डर है कि उसने इसकी इजाज़त दी, तो उसके किसी गुप्त कार्यक्रम की पोल खुल सकती है?
  4. चीन और उसके समर्थक देश दावा करते हैं कि कोरोना चीन के खिलाफ एक षड्यंत्र है। क्योंकि कुछ ताकतें (अमेरिका और अन्य) उसकी आर्थिक शक्ति से चिन्तित हैं और वे उसे ऐसी मात देना चाहती हैं, ताकि चीन की आर्थिकी तबाह हो जाये और वह कंगाल बन जाये। उनकी इस थ्योरी के पीछे तर्क है कि कोरोना चीन, पाकिस्तान आदि में पहुँचा, लेकिन सके पड़ोसी देश अफगानिस्तान में नहीं पहुँचा; जहाँ अमेरिका के सैनिक हैं। तो क्या है जंग भविष्य में कभी किसी विश्व युद्ध का रास्ता भी खोल सकती है?

देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन

देश में जिस स्तर की सुविधाएँ हैं, उसमें इससे बेहतर और कोई रास्ता देश की सरकार और जनता के पास था भी नहीं। वैसे भी अन्य देशों के अनुभव बता रहे हैं कि जहाँ-जहाँ पूरा लॉकडाउन किया गया, वहाँ कोरोना के इस खतरनाक वायरस को रोकने में बेहतर मदद मिली है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी ने 24 मार्च की आधी रात से 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया, तो इसे वर्तमान परिस्थिति में सब बेहतर उपाय माना गया। हालाँकि, सच यह भी है कि देश में कोरोना की महामारी के खतरे को लेकर जिन योजनाओं और घोषणाओं की फरवरी में ही कर देने की ज़रूरत थी, वो मार्च की आिखर में जाकर आयीं। कह सकते हैं कि देर आये, दुरुस्त आये। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी तक ने सरकार को फरवरी में ही चेताया था कि कोरोना बड़ी मुसीबत बनने जा रहा है, लिहाज़ा सरकार को तत्काल ठोस कदम उठाने चाहिए। लेकिन लगता है कि सरकार ने कुछ ज़्यादा ही लम्बा इंतज़ार किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 19 मार्च को राष्ट्र को पहली बार सम्बोधित किया, जिसमें जनता कफ्र्यू का आग्रह किया। हालाँकि, उनके ताली-थाली-घंटी बजाओ वाले आह्वान पर सोशल मीडिया में आलोचना भी हुई कि मोदी को इसकी जगह बड़े उपायों और मदद का ऐलान करना चाहिए था। बहुत-सी जगह दिखा कि लोग बड़े समूहों में सड़कों पर उतरकर ताली-थाली-घंटे-घंटी बजाने पहुँच गये, जो बीमारी को बुलावा देने जैसा था। बहुत-से लोगों को यह भी लगता है कि तानी-थाली बजाने का नारा राजनीतिक नारों जैसा था। राज्यों में भी सरकारों ने लॉकडाउन के ऐलान बहुत पहले से कर दिये। राजस्थान से इसकी पहल हुई। कफ्र्यू की पहली घोषणा पंजाब में कैप्टेन अमङ्क्षरदर सरकार ने की। आकार के लिए यह तय करना बहुत ज़रूरी है कि इन 21 दिनों में जनता को ज़रूरी चीज़ें मिलती रहें। दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे सब्ज़ियाँ और दूसरी चीज़ें दोगुने से भी ज़्यादा मूल्य पर बेची जा रही हैं। कोई इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है, न इसे रोका जा रहा है। यह भी नहीं बताया जा रहा है कि कोरोना के अलावा दूसरे रोगियों को इमरजेंसी में अस्पताल पहुँचाने का क्या इंतज़ाम होगा? भाषणों में कुछ भी कहना बहुत आसान होता है, मगर उसे ज़मीनी स्तर पर लागू करना बहुत मुश्किल होता है। बहुत से लोग नहीं जानते कि प्रधानमंत्री ने अपनी 24 मार्च की घोषणा में कहा क्या? प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए भारत में 24 मार्च की रात 12 बजे से 14 अप्रैल तक कुल तीन सप्ताह यानी 21 दिन का देशव्यापी लॉकडाउन रहेगा। मोदी ने कोरोना वायरस संकट पर राष्ट्र को अपने सम्बोधन में कहा कि ये जनता कफ्र्यू से ज़्यादा कड़ा होगा और लोगों को समझ लेना चाहिए कि कोरोना जैसे संकट से लडऩे और जीतने के लिए कफ्र्यू जैसा कदम ही ज़रूरी है। पीएम मोदी ने कहा कि इस दौरान ज़रूरी सेवाओं को नहीं रोका जाएगा और खाने-पीने या दवा की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी।

मोदी ने कहा कि ‘जान है, तो जहान है’ कहावत नहीं है; इसे समझना है। 21 दिन का लॉकडाउन लम्बा समय है। लेकिन देश के लोगों की रक्षा के लिए गाँव और शहर की रक्षा के लिए यह कदम उठाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। दुनिया भर के डॉक्टरों का कहना है कि इस वायरस के संक्रमण चक्र को रोकने के लिए कम-से-कम 21 दिन का समय चाहिए और हमें इस 21 दिन के लॉकडाउन से विजयी होकर बाहर आना है। पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन के ऐलान से पहले मोदी ने 22 मार्च के जनता कफ्र्यू को सफल बनाने के लिए देश के लोगों को शुक्रिया कहा। उन्होंने कहा कि भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया कि संकट के समय मानवता की रक्षा के लिए भारतीय कैसे एकजुट होकर संकल्प लेते हैं और उसे पूरा करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के दूसरे देशों में इस बीमारी का सबक यही है कि केवल आपसी दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) अर्थात् घर में बन्द रहने से ही इस बीमारी को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि घर की दहलीज़ एक लक्ष्मण रेखा है और ज़िन्दा रहने के लिए इसे नहीं लाँघना है।

कोरोना का आपातकाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र को अपने सम्बोधन में कोरोना वायरस का अपने स्तर पर सामना करने के लिए आपसी दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) बनाये रखने पर ज़ोर देने के साथ-साथ घर से काम (डब्ल्यूएफएच) का सुझाव दे चुके हैं। प्रधानमंत्री के इस सम्बोधन से स्पष्ट है कि प्रत्येक नागरिक को इस वायरस से लडऩे के लिए सुरक्षित जगह में रहना है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने जनता कफ्र्यू और कोविड-19 इकोनॉमिक रिस्पॉन्स टास्क फोर्स के रूप में दो और बिन्दु सामने रखे, जो भविष्य की किसी भी चुनौती के लिए तैयार रहने के साफ संकेत हैं।

इस पखवाड़े के ‘तहलका’ के अंक में विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की आवरण कथा हमारे संकल्प, धैर्य और एक वृहद् सामाजिक लक्ष्य के लिए आपसी दूरी के संदेश के साथ है; ताकि प्रकोप से बचाव के सकारात्मक नतीजे सामने आ सकें। कई राज्यों ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए लॉकडाउन (बन्द) किया है और समूह बनाने पर प्रतिबन्ध लगाया है। ऐसे में इकोनॉमिक रिस्पॉन्स टास्क फोर्स की बहुत ज़रूरत है। क्योंकि कोरोना वायरस ने न केवल यात्रा, पर्यटन, विनिर्माण क्षेत्र को प्रभावित किया है, बल्कि शेयर बाज़ार की भी कमर तोड़ दी है।

इसलिए यह लड़ाई कोरोना वायरस को फैलने से रोकने और भविष्य सुरक्षित करने के लिए है। यदि एकाध महीने में यह महामारी नियंत्रण में आती है, तो पहले से ही बहुत खराब जीडीपी में सुधार किया जा सकेगा और नुकसान से बचा जा सकेगा। अन्यथा यह केंद्र सरकार की आर्थिक परेशानियों को बढ़ा सकता है। तथ्य यह है कि वर्तमान में दुनिया भर की सरकारें एक अभूतपूर्व संकट में हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा संकट में मज़दूर, दैनिक वेतन भोगी और स्टार्टअप वर्ग हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह कम-से-कम इस वर्ग की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर सम्भव सहायता प्रदान करे; चाहे यह वर्ग शहरों में हो या गाँवों में। भारतीय रिजर्व बैंक को भी वस्तुओं की महँगाई और शेयर बाज़ार में मंदी को रोकने के लिए कदम उठाना होगा। कोरोना वायरस ने दुनिया के अधिकांश देशों में लाखों लोगों को प्रभावित किया है और बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायरस को महामारी घोषित किया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्रमुख ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस से बचने के रास्ते कम होते जा रहे हैं। इटली, ईरान और अमेरिका में जिस तरह कोरोना ने मौत का जाल फैलाया है, उससे सबक लेकर भारत ने इस चुनौती को गम्भीरता से लिया है। चीन ने भी महामारी पर अंकुश लगाने के लिए आपसी दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) को अपनाया है। भारत ने वायरस के इस खतरे की जड़ को पकड़ा है और घर से काम और आपसी दूरी की अवधारणा को अपनी आक्रामक कार्रवाई में शामिल किया है; ताकि इस खतरनाक वायरस को फैलने से रोका जा सके। विदेश से लौटने वाले लोगों को तुरन्त एकांत (क्वारनटाइन) में रखने का काम किया गया है। एक तथ्य यह भी है कि संक्रमित लोगों का पता लगाने के लिए महज़ तापमान देखना (थर्मल स्क्रीनिंग) पूर्ण प्रामाणिक तरीका नहीं हो सकता। हममें से किसी भी स्वस्थ व्यक्ति कोकिसी भी संक्रमित व्यक्ति से हर कीमत पर दूरी बनाये रखनी है, एक-दूसरे को छूने से बचना है और साफ-सफाई  रखनी है। क्योंकि इस बीमारी से बचने के लिए अपनी तरफ से आपसी दूरी बनाने से बेहतर तरीका और कोई नहीं हो सकता। समय कोरोना के खिलाफ आक्रामक होने का है, डर जाने का नहीं!

मध्य प्रदेश : सत्ता सुख के साथ शिवराज के सामने चुनौतियाँ भी

इधर देश, दुनिया में फैली कोरोना महामारी के भारत में दस्तक देने से चिन्ता में डूबा था, उधर मध्य प्रदेश में सरकार गिराने-बनाने का खेल चल रहा था। खेल चला और सरकार गिरी भी, और बनी भी। करीब 15 महीने बाद जनादेश से बनी सरकार की जगह अचानक एक नयी सरकार बन गयी। तीन बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान फिर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हो गये और कमलनाथ सरकार की विदाई हो गयी।

शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री बनने के अगले दिन 112 विधायकों के समर्थन से बहुमत भी साबित कर दिया। कुल 107 विधायकों वाली भाजपा में समाजवादी पार्टी, बसपा और निर्दलीय मिलाकर पाँच अतिरिक्त विधायक भी पहुँच गये। यह सारा खेल कमलनाथ सरकार गिराने तक सीमित नहीं था, बल्कि राज्यसभा चुनाव भी बाकायदा नज़र में रखे गये थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने ऐसे समय में साधा, जब राज्यसभा के चुनाव भी थे। यह कहा जाता है कि सिंधिया को खुद को राज्यसभा टिकट को लेकर आशंका थी या उन्हें लगता था कि कमलनाथ उन्हें दिग्विजय सिंह के बाद दूसरी प्राथमिकता वाली सीट पर चुनाव लड़वाएँगे। लेकिन इससे भी क्या होता। कांग्रेस के पास दो सीटें आसानी से जीतने लायक विधायक थे। सिंधिया राज्य सभा में जाते ही। कमलनाथ तो तीसरी सीट के लिए भी भाजपा विधायकों से समर्थन की बात कह रहे थे। लेकिन सिंधिया को जाना था, सो वह गये ही। अब वह भाजपा में हैं। पार्टी उन्हें राज्य सभा का टिकट दे चुकी है। जीत भी जाएँगे। लेकिन क्या भाजपा के मध्य प्रदेश के नेता उन्हें इतनी आसानी से स्वीकार कर लेंगे? यही बड़ा सवाल है।

लोकतंत्र के खतरे की घंटी

मध्य प्रदेश में राजनीति का यह ड्रामा देश के लोकतंत्र के लिए खतरे की एक और घंटी है। कथित बागी 22 विधायकों को जिस तरह भाजपा रातोंरात हवाई जहाज़ में उड़ाकर भोपाल से बेंगलूरु ले गयी, उससे ज़ाहिर होता है कि भाजपा ने यह सारा काम बहुत सोच-विचार करके किया। कमलनाथ ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखकर बाकायदा पूरी तफ्सील से बताया कि कैसे उनके (कांग्रेस) विधायकों को बेंगलूरु ले जाया गया। लेकिन इससे होना क्या है? शिवराज ने सरकार तो बना ली, लेकिन उनका आने वाला रास्ता इतना आसान नहीं है। उनके सामने बहुत-सी चुनौतियाँ रहेंगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि 22 कांग्रेस विधायकों के बागी हो जाने के बाद दिये इस्तीफों से खाली हुई सीटों पर अब उन्हें उपचुनाव का सामना करना होगा। दो सीटें पहले से ही खाली हैं। लिहाज़ा 24 सीटों पर उपचुनाव होना है। यह उपचुनाव अगले छ: महीने में करवाने ज़रूरी हैं। कांग्रेस से गये 22 विधायकों को सिंधिया का समर्थक बताया जाता है और उन सभी को अब उपचुनाव में उतरना होगा। यह शिवराज सिंह के लिए ही नहीं, बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए भी बड़ी चुनौती होगी। महज़ 15 महीने पहले विधानसभा चुनाव में लोगों ने शिवराज सिंह को ही नकारकर कांग्रेस को सत्ता सौंपी थी। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे। हालाँकि, सिंधिया भी इस पद के दावेदार थे।

शिवराज के सामने चुनौती

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने अब दोहरी चुनौती है। पहले से भाजपा में बैठे उनके विरोधियों की कतार में एक और ताकतवर नेता- ज्योतिरादित्य सिंधिया भी आ खड़े हुए हैं। लिहाज़ा सरकार चलाने के लिए उन्हें एक से ज़्यादा विरोधी गुटों को साधना होगा। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, प्रभात झा, राकेश सिंह, राजेंद्र शुक्ल और गोपाल भार्गव जैसे दिग्गज नेता उनके सामने हैं। अब सिंधिया एक अलग ध्रुव के रूप में आ जुड़े हैं। इसके साथ ही उपचुनावों की चुनौती का भी उन्हें मुकाबला करना होगा।

उपचुनावों पर रहेगी नज़र

भाजपा के लिए 24 सीटों के उपचुनाव बहुत अहम रहेंगे। सिंधिया को अपने सभी लोगों को टिकट दिलवाना होगा, ऐसे में भाजपा के जो लोग आज तक उनके इलाकों में पार्टी के लिए काम करते रहे, उनका क्या होगा? यदि टिकट न मिलने से वे बागी हो गये तो भाजपा क्या करेगी? कांग्रेस इन उपचुनावों में पूरी ताकत झोंकेगी। भाजपा में थोड़ी सी भी गड़बड़ हुई तो शिवराज को लेने-के-देने पड़ जाएँगे। भाजपा को कमसे कम 10 सीटें जितनी पड़ेंगी। नहीं तो सरकार के लिए ही खतरा पैदा हो सकता है।

कोविड-19 से हो रहा बड़ा नुकसान

कोरोना वायरस (कोविड-19) से वैश्विक स्तर पर दहशत का माहौल बना हुआ है। अब तक 168 देशों को यह अपनी गिरफ्त में ले चुका है, जिसमें बढ़ोतरी की सम्भावना बनी हुई है। चीन में मरने वालों की संख्या कम हो गयी है, लेकिन दूसरे देशों में संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या लगभग एक लाख पहुँच चुकी है। बड़ी संख्या में चिकित्सा कर्मचारी भी इसके गिरफ्त में आ चुके हैं। चीन के विभिन्न इलाकों में भारतीय मूल के लगभग हज़ारों लोग अभी भी फँसे हुए हैं। पहले भारत में इससे संक्रमित मरीज़ों की संख्या न्यून थी, लेकिन अब इसमें इज़ाफा हो रहा है। अभी तक यहाँ 606 से अधिक संक्रमित मरीज़ों की पहचान की गयी है।

वैश्विक स्तर पर अर्थ-व्यवस्था में मंदी

कोरोना के कारण चीन के साथ-साथ दूसरे देशों की अर्थ-व्यवस्थाओं को भी नुकसान पहुँचा है, जिसमें भारत भी शामिल है। विश्व बैंक ने कोरोना की वजह से वैश्विक वृद्धि दर में एक फीसदी गिरावट आने की आशंका जतायी है। कंसल्टेंसी ऑक्सफोर्ड इकनॉमिक्स के मुताबिक भी कोरोना के कारण वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 0.2 फीसदी की कम वृद्धि होगी। इसकी वजह से दुनिया की दो बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं चीन और अमेरिका के कारोबार में सुस्ती गहरा रही है। सिंगापुर ने भी कोरोना वायरस के प्रतिकूल प्रभावों को देखते हुए वर्ष 2020 के लिए अपने विकास दर के अनुमान को कम कर दिया है।

ओईसीडी का सुस्ती का आकलन

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार विश्व के केंद्रीय बैंकों को आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। इस साल वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में महज़ 2.4 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, जो 2009 के बाद सबसे कम है। ओईसीडी का कहना है कि 2021 में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 3.3 फीसदी की दर से वृद्धि हो सकती है। कोरोना वायरस ने उल्लेखनीय रूप से वैश्विक विकास दर की रफ्तार को रोकने का काम किया है।

चीन की अर्थ-व्यवस्था में मंदी

कंसल्टेंसी ऑक्सफोर्ड इकनॉमिक्स के मुताबिक, कोरोना अगर महामारी का रूप लेती है, तो वर्ष 2020 की पहली तिमाही में चीन की अर्थ-व्यवस्था पिछले साल के मुकाबले 4 फीसदी कम की दर से आगे बढ़ेगी। इस एजेंसी के अनुसार, वर्ष 2020 में चीन की अर्थ-व्यवस्था 5.6 फीसदी के औसत दर से आगे बढ़ेगी। चीन का शेयर बाज़ार भी इससे प्रभावित हुआ है। कोरोना की वजह से कई बड़ी कम्पनियाँ, जैसे- फर्नीचर कम्पनी आइकिया, स्टारबक्स आदि ने अस्थायी रूप से अपना कारोबार चीन में बन्द कर दिया है। कई एयरलाइंसों ने चीन की अपनी सभी उड़ानों को रद्द कर दिया है। होटल, ग्राहकों का एडवांस पैसा वापस लौटा रहे हैं।

चीन के सामान से परहेज़

कोरोना के कारण चीन के निर्माताओं को देश के अंदर और बाहर दोनों जगह नुकसान उठाना पड़ रहा है। विदेशों में भी लोग चीन में बना सामान खरीदने से परहेज़ कर रहे हैं।

चीन पर निर्भरता

चीन आज कम्प्यूटर, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री का बादशाह है। वह वैश्विक स्तर पर इनके कलपुर्ज़ों का विभिन्न देशों में निर्यात करता है। चीन में ऑटोमोबाइल, मोबाइल और कम्प्यूटर के कलपुर्जों का बड़ी मात्रा में निर्माण किया जाता है। दक्षिण कोरिया की कम्पनी हुँडई ने भी अपने कार उत्पादन को अस्थायी रूप से बन्द कर दिया है, जिसका कारण चीन से कार के कलपुर्जों का आयात का फिलवक्त बन्द होना है।

तेल की कीमतें स्थिर रखने की कोशिश

चीन में कारोबारी गतिविधियों में अयी गिरावट के कारण तेल की माँग में भी कमी आयी है। एक अनुमान के मुताबिक, विगत 15 दिनों में कच्चे तेल की माँग में 15 फीसदी की गिरावट आयी है। इसलिए, तेल निर्यात करने वाले देशों के समूह तेल उत्पादन में कटौती करने की योजना बना रहे हैं, ताकि कच्चे तेल की गिरती कीमतों को रोका जा सके।

भारत का चीन के साथ कारोबार

अभी, चीन से भारत आयात किये जाने वाले उत्पादों में इलेक्ट्रॉनिक्स का 20.6 फीसदी, मशीनरी का 13.4 फीसदी, ऑर्गेनिक केमिकल्स का 8.6 फीसदी और प्लास्टिक उत्पादों का 2.7 फीसदी योगदान है। जबकि भारत से चीन निर्यात किये जाने वाले उत्पादों में ऑर्गेनिक केमिकल्स का 3.2 फीसदी और कॉटन का 1.8 फीसदी का योगदान है। भारत चीन से इलेक्ट्रिकल मशीनरी, मैकेनिकल उपकरण, ऑर्गेनिक केमिकल, प्लास्टिक और ऑप्टिकल सर्जिकल उपकरणों का ज़्यादा आयात करता है; जो भारत के कुल आयात का 28 फीसदी है। भारत चीन से सबसे ज़्यादा यानी 40 फीसदी ऑर्गेनिक केमिकल्स का आयात करता है। लेकिन वह इससे बने उत्पादों का चीन निर्यात भी करता है। कोरोना से विनिर्माण, परिवहन, मशीनरी विनिर्माण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत इन वस्तुओं का चीन से 73 अरब डॉलर का आयात करता है; जबकि भारत का कुल आयात 507 अरब डॉलर का है। भारत चीन को अपने कुल निर्यात का महज़ 5 फीसदी ही निर्यात करता है। भारत ने वित्त वर्ष 2019-20 में अप्रैल से दिसंबर के दौरान चीन से 3,65,377 करोड़ रुपये का आयात किया था; जबकि समान अवधि में 91,983 करोड़ रुपये का निर्यात किया था। इस प्रकार वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल से दिसंबर के दौरान भारत को चीन के साथ कुल 2,73,394 करोड़ रुपये का व्यापार घाटा हुआ था।

सरकार और केंद्रीय बैंक की पहल

स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना से प्रभावित क्षेत्रों के प्रभारियों को सतर्क रहने का निर्देश दिया है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा है कि ज़रूरी वस्तुओं की कालाबाज़ारी पर नियंत्रण रखने की हर सम्भव कोशिश की जाए और कारोबारी ज़रूरी वस्तुओं की कृत्रिम संकट पैदा करने से बाज़ आएँ। भारतीय रिजर्व बैंक भी भारत में कोरोना के बढ़ते प्रभावों पर लगातार नज़र रखे हुए है।

निष्कर्ष

कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस की वजह से भारत का चीन के साथ होने वाले आयात और निर्यात दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन आयात पर प्रभाव ज़्यादा पड़ सकता है। क्योंकि भारत चीन से निर्यात की जगह आयात ज़्यादा करता है। भारत में भले ही चीन के सामान के बहिष्कार की बात कही जाती है, लेकिन भारत के बहुत सारे उद्योग कच्चे माल एवं कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भर हैं। चीन से आयात बन्द होने पर भारत के कई उद्योग बन्द हो सकते हैं।

भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव

भारत में कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्र कम्प्यूटर, खिलौने, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल और फार्मा हैं। इन उद्योगों के लिए कच्चे माल या कलपुर्जों का फिलहाल भारत में चीन से आयात बन्द है। कम्प्यूटर, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, ऑटोमोबाइल, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे अनेक उद्योगों की अधिकांश फैक्ट्रियाँ कोरोना वायरस के कारण चीन में अस्थायी रूप से बन्द हो चुकी हैं। कुछ उत्पादों, जैसे- मोबाइल और खिलौने के स्टॉक भारत में खत्म होने वाले हैं, जिनकी वजह से इन उत्पादों की भारत में कालाबाज़ारी की जा रही है। ऑटोमोबाइल उद्योग पर कोरोना वायरस का नकारात्मक प्रभाव पडऩे के कारण देश में

1 अप्रैल, 2020 से लागू होने वाली बीएस-6 पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की सम्भावना है। पर्यटन उद्योग भी चरमरा गया है। इतना ही नहीं, कोरोना की वजह से चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में वृद्धि दर में और भी गिरावट आने की सम्भावना बढ़ गयी है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में भारत का विकास दर 4.7 फीसदी दर्ज की गयी थी, जो 6 साल में सबसे कम है। चालू वित्त वर्ष में आर्थिक सर्वेक्षण में विकास दर के 5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, लेकिन संशोधित अनुमान के मुताबिक यह 4.7 फीसदी रह सकता है।

मदद की दरकार, कुछ करो सरकार

कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि देश-दुनिया में एक दिन ऐसा भी आयेगा कि एक वायरस इतनी दहशत फैला देगा। एक ऐसी छूत की बीमारी फैलेगी, जो चन्द दिनों में हज़ारों ज़िन्दगियाँ निगल लेगी और लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लेगी। इस दिनों पूरी दुनिया का जीना मुहाल है। सब घरों में कैद हैं। प्रधानमंत्री की पहले एक सप्ताह की और फिर 21 दिन की जनता कफ्र्यू की अपील और भय से लोग घरों में कैद हैं।

पूरे भारत में यही हाल है। मगर अगर राज्यों की बात करें, तो कुछ राज्य सरकारें लोगों की सुरक्षा और दैनिक आवश्यकताओं पर ध्यान दे रही हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री घंटा तो बजाने आ गये, मगर लोगों की मदद के उनके हाथ अभी तक नहीं उठे हैं। उत्तर प्रदेश के शहरों और गाँवों में लोगों के बीच एक ही चर्चा है कि बचाव के तौर पर वे डॉक्टरों और सरकार द्वारा बताये नियमों का पालन करें, जिससे वे सुरक्षित रह सकें। ‘तहलका’ के विशेष संवाददाता ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड में लोगों की अपनी-अपनी समस्याएँ और सरकारी सुविधाएँ-असुविधाएँ देखीं। उत्तर प्रदेश के लोगों ने बताया कि अभी उत्तर प्रदेश सरकार लोगों को कोई सुविधा नहीं दे रही है। अस्पतालों में कोरोना से निपटने के लिए पूरे संसाधन नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 22 मार्च को घंटा तो बजाया, पर अस्पतालों की दशा वही है। इस पर उन्हें ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर कोई किसी बहुत ज़रूरी काम से भी बाहर निकल रहा है, तो भी पुलिस बिना कुछ पूछे, परेशान व्यक्ति की समस्या का समाधान किये बिना ही उस पर लाठियाँ भाँजने लगती है। गाँवों में कोरोना का प्रकोप नहीं है, लेकिन भय ज़्यादा है। शहरों में कुछेक मामले सामने आये हैं, लेकिन कोरोना के भय के चलते दूसरी बीमारियों से पीडि़त मरीज़ घरों में मर रहे हैं। उनके बारे में सरकार को सोचना चाहिए। अस्पतालों में भी डॉक्टरों की सुरक्षा तक के पूरे इंतज़ाम नहीं हैं।

वहीं मध्य प्रदेश में नयी सरकार सत्ता की खुशी में इतनी मस्त है कि उसे जनता से कोई सरोकार ही जैसे नहीं रह गया है। मध्य प्रदेश में पुलिस अपने तरीके से हालात सँभाले हुए है। शिवराज सरकार को जश्न मनाने से फुरसत नहीं है। अगर दिल्ली की बात करें, तो यहाँ कोरोना से 25 मार्च तक सिर्फ एक मौत की पुष्टि हुई थी।  लेकिन यहाँ दिल्ली सरकार ने बेघरों के साथ-साथ अन्य लोगों को भी दोनों वक्त के फ्री खाने का इंतज़ाम किया है। राशनकार्ड धारकों को डेढ़ गुना राशन बिना फ्री में देने का फैसला किया है और कोरोना से निपटने के लिए 50 करोड़ का आपात बजट भी पास किया है। केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी जनता की मदद को हाथ आगे बढ़ाया है। बताते चलें कि दिल्ली में कोरोना का पहला मामला जनवरी में आ गया था, तब दिल्ली विधानसभा चुनाव के शोर में  और शाहीन बाग के धरने के कारण किसी का कोई ध्यान कोरोना जैसी घातक बीमारी पर नहीं गया। तहलका ने उस समय भी कोरोना जैसी महामारी की ओर सरकार और लोगों का ध्यान खींचा था। लेकिन सियासतदाँ सत्ता के लालच में अपनी सियासी रोटियाँ सेंक रहे थे और इसे हल्के में ले रहे थे। उन्हें लगता था कि डॉक्टर इसे आसानी से सँभाल लेंगे। पर इस बार मामला जब यह महामारी भयानक रूप से फैलनी शुरू हुई, तब सरकारों में खलबली मची और प्रधानमंत्री तक को जनता कफ्र्यू की अपील करनी पड़ी। दु:खद यह भी है कि विदेशों में जहाँ सरकारों और उद्योगपतियों ने मदद के पिटारे जनता के लिए खोल दिये हैं, वहीं भारत में केंद्र सरकार से लेकर कई राज्यों की सरकारें और बड़े-बड़े उद्योगपति जनता से मुँह फेरे बैठे हैं। कुछ छोटे उद्योगपति और व्यापारी अपने स्तर पर जनता की मदद को आगे आ रहे हैं। सभी समुदाय के सहृदयी लोग आम लोगों की मदद कर रहे हैं। क्या केवल चंद लोगों की मदद से हम यह जंग जीत सकते हैं? क्या आज भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों और केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश सरकार की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?

दिल्ली में एक ओर सरकार लोगों को जागरूक कर रही है, तो वहीं दिल्ली पुलिस भी ऐसी हर सम्भव कोशिश कर रही है, जिससे दिल्ली के लोग इस जानलेवा महामारी कोरोना से बचे रह सकें। कोविड-19 के कहर से रक्षा के लिए पुलिस के जवान, डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी और मीडियाकर्मी दिन-रात एक किये हुए हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टर स्वास्थ्यकर्मी लगातार स्वास्थ्य सेवाएँ दे रहे हैं। वह भी तब, जब डॉक्टरों और स्वास्थ्यकॢमयों को अच्छी तरह मालूम है कि संक्रमित मरीज़ों का इलाज करते समय वे भी कोरोना की चपेट में आकर प्राण गँवा सकते हैं। इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आईसीएमआर द्वारा गठित नेशनल टास्क फोर्स फॉर कोविड-19 ने दावा किया है कि कोरोना से बचाव के लिए हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कारगर साबित हो सकती है। आईसीएमआर के डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि इस बीमारी से बचाव के तौर पर इलाज के साथ-साथ जागरूकता और साफ-सफाई के साथ-साथ आपसी दूरी बनाये रखना बहुत ज़रूरी है।

एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना का कहर कब तक थमेगा, यह अलग बात है। अभी सभी को साफ-सफाई रखने, एक-दूसरे की मदद करने और आपसी दूरी बनाकर रहने की ज़रूरत है; ताकि यह छुआछूत की बीमारी न फैल सके अन्यथा काफी घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। एम्स के डॉक्टर आलोक कुमार ने बताया कि कोरोना पर अभी तक उपलब्ध इलाज के साथ-साथ साफ-सफाई के ज़रिये जल्दी काबू पाया जा सकता है। कालरा अस्पताल के डॉ. आर.एन. कालरा ने बताया कि कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए मुँह पर मास्क लगाकर रखें और सेंनेटाइजर्स का उपयोग करें। साबुन से बार-बार हाथ धोयें। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डॉ. विवेका कुमार ने बताया कि खाँसी सर्दी और बुखार हो, तो नज़रअंदाज़ न करें। क्योंकि ज़रा-सी लापरवाही काफी घातक हो सकती है।

वहीं दिल्ली के तमाम व्यापारियों ने कारोना वायरस के निपटने में सहयोग के लिए कारोबार बन्द करके यह संदेश दिया है कि इस विपदा की घड़ी में वे निजी नफा-नुकसान देखे बिना देशहित में कन्धे से कन्धा मिलाकर चलेंगे। व्यापारी नेता प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि कोराना को हराने में दिल्ली के सभी व्यापारी सरकार के साथ हैं और घर में ही रहेंगे। अब बात करते हैं मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड की, जहाँ पर इस बीमारी से बचाव के लिए लोग पूरा एहतिहात बरत रहे हैं। हालाँकि, यहाँ पर कोरोना के सम्भावित मरीज़ों की चर्चा तो रही है, पर कोरोना पॉजिटिव मामले सामने नहीं आये हैं। फिर भी लोगों में एक दशहत और भय का माहौल है। यहाँ पर लोग मीडिया और सोशल मीडिया पर जानकारी हासिल कर सुरक्षित रहने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा यहाँ लोग घरेलू उपचार के तौर पर लोवान और गुग्गल घरों में जलाकर रख रहे हैं। एक-दूसरे दूरी बनाकर रहने की प्रधानमंत्री की सलाह भी मान रहे हैं। मास्क भी लगाकर रह रहे हैं। यहाँ पर बहुत ही कम लोगों का विदेशों में आना-जाना हैं। शायद यही वजह है कि यहाँ कोरोना दस्तक नहीं दे पाया है। लेकिन कोरोना के असर से बुन्देलखंड जैसा पिछड़ा क्षेत्र अब और पिछड़ गया है; क्योंकि यातायात बन्द होने के कारण लोगों का रोज़गार ठप पड़ा है। यहां के मशहूर पर्यटन स्थल खजुराहो पर अब पर्यटक नहीं आ रहे हैं। विदित हो कि खजुराहो से यहाँ के अधिकतर लोगों का रोज़गार जुड़ा है। बुन्देलखण्ड निवासी रतन पटेल ने बताया कि विदेशों से लोगों का आवागवन पूरी तरह से ठप्प हो गया है। इसके कारण यहाँ पर मार्केट में सन्नााटा पसरा है।

यही हाल मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ ज़िले के ओरछा का है। यहाँ रामलला के मंदिर में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन अब मंदिर बन्द है और श्रद्धालु भी नहीं आ रहे हैं। इसके कारण यहाँ के छोटे-बड़े व्यापारियों, नौकरी करने वालों की परेशानी बढऩे लगी है। मंदिर के पुजारी पंडित दीनदयाल पांडेय ने बताया कि अब तक के इतिहास में ओरछा में कभी ऐसा नहीं देखा गया। भगवान सब सही करेंगे। वह कहते हैं कि अगर मानवजाति  अब भी नहीं सुधरी, तो और भयानक हालात पैदा होंगे और इस सबके लिए मानव ही ज़िम्मेदार होगा। मदिर के पास पूजन-साम्रगी विक्रेता रमण तिवारी ने बताया कि कोरोना के डर से नवरात्रि में भी घरों से निकलने से लोग घबरा रहे हैं। ऐसा ही रहा, तो उनका छोटा-सा कारोबार भी ठप हो जाएगा। चित्रकूट का भी यही हाल है। यहाँ पर हर अमावस्या को 50 हज़ार से अधिक लोग कामदगिरी पहाड़ की परिक्रमा लगाने जाते हैं। हर लोग पर्यटक भी यहाँ खूब आते थे। पर अब कोरोना के भय से कोई नहीं जा रहा है, जिससे यहाँ के लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट मँडराने लगा है। यहाँ के छोटे-बड़े दुकानदारों ने नवरात्रि की तैयारी के मद्देनज़र थोक में नारियल और पूजन साम्रगी खरीदकर रख ली थी, लेकिन अब उसे खरीदने वाले लोग नहीं हैं, जिससे ये दुकानदार परेशान हैं। रवीन्द्र गुप्ता कहते हैं कि कभी किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसी बीमारी आयेगी, जो  ज़िन्दगी की रफ्तार रोक देगी।

दु:खद है कि प्राकृतिक आपदाओं की मार और पिछड़ेपन से उभरने के लिए बुन्देलखण्डवासी काफी मेहनत कर रहे थे; सरकार भी साथ लगी थी, लेकिन इस महामारी ने एक बार फिर बुन्देलखण्ड की आॢथकी को करारी चोट पहुँचायी है।

करोड़ों लोगों के पास नहीं बुनियादी सुविधाएँ

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को हराने के लिए दुनिया भर में क्या करें? क्या नहीं? के बारे में सरकारी विज्ञापन लगातार अखबारों में छप रहे हैं, टीवी पर प्रसारित हो रहे हैं और लोगों के बीच जागरूकता फैलाने बाबत सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। डाक्टर्स भी बार-बार लोगों को कोविड-19 (कोरोना वायरस) की रोकथाम के बारे में महत्त्वपूर्ण टिप्स दे रहे हैं। कोरोना से बचाव के संदर्भ में अधिक ज़ोर 20 सेंकेड वाले हैंडवॉश यानी हाथ धोने पर दिया जा रहा है। इसमें उचित तरीके से हाथ धोना भी बताया जा रहा है। हाथ धोने के लिए साबुन या सेनेटाइजर या एल्कोहल युक्त स्क्रब का इस्तेमाल करें। टीवी पर महान् क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदलुकर को हैंडवॉश करते हुए दिखाया जा रहा है, ताकि आम लोग सचिन से प्रेरित होकर कोरोना वायरस को हराने के लिए बार-बार हाथ धोने की आदत डाल लें। लेकिन हैंडवॉश की एक अन्य तस्वीर भी है। इन्हीं दिनों मुझे मुल्क की राजधानी दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय बस्ती में अपने घर से थोड़ी दूरी पर स्थित मदर डेयरी के आऊटलेट के बाहर तीन बच्चे दिखाई दिये। वे आने-जाने वालों से पैसे माँग रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि वे कहाँ रहते हैं? स्कूल जाते हैं या नहीं? उनके माता-पिता क्या करते हैं? उनके कपड़े व बदन साफ नहीं थे। उनसे पूछा कि आजकल वे कितनी बार हाथ धोते हैं और साबुन के साथ धोते हैं या नहीं? उनके जबाव साफ बता रहे थे कि न तो बार-बार हाथ धो रहे हैं और न ही साबुन का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके पास घरों में पानी तक की बुनियादी सुविधा नहीं है। ऐसे बच्चे, लोग दुनिया के उन करोड़ों लोगों में शमिल हैं, जो इस पहुँच से बाहर हैं।

बाल अधिकारों को बढ़ावा देने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ ने हाल ही में इस नाज़ुक समय में राष्ट्र सरकारों का ध्यान ऐसे करोड़ों लोगों की ओर दिलाया है, जो इस अहम सुविधा से वंचित हैं। कोविड-19 का मुकाबला करने में हैंडवॉश सरीखा सुराक्षात्मक उपाय अहम भूमिका निभाता है। लेकिन नवीनतम आँकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में पाँच में से तीन लोगों के पास ही हाथ धोने वाली बुनियादी सुविधाएँ हैं। यानी 40 फीसदी लोग इस सुविधा से वंचित हैं। यूनिसेफ के कार्यक्रम निदेशक संजय विजिसकेरा का कहना है कि साबुन से हाथ धोना सबसे सस्ते व सबसे प्रभावशाली उपायों में से एक है। साबुन से हाथ धोकर आप खुद को और दूसरों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा सकते हैं। लेकिन अभी तक अरबों लोगों की इस सबसे बुनियादी उपाय तक पहुँच नहीं है। विश्व की 40 फीसदी आबादी अर्थात् 3 अरब लोगों के पास घरों में पानी व साबुन से हाथ धोने की सुविधा नहीं है। सबसे कम विकसित देशों में करीब तीन-चौथाई लोगों के घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाएँ नहीं हैं। 47 फीसदी स्कूलों में पानी व साबुन से हाथ धोने की सुविधा नहीं है। इस सुविधा के नहीं होने से विश्व भर के एक-तिहाई स्कूलों में 900 मिलियन स्कूली बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। और सबसे कम विकसित देशों के आधे स्कूलों में तो बच्चों के लिए हाथ धोने तक की जगह नहीं है। 16 फीसदी स्वास्थ्य देखभाल सेवा केंद्रों में यानी छ: में से एक केंद्र में प्रयोग में लाने लायक शौचालय नहीं था। देखभाल केंद्रों में, जहाँ मरीज़ों का इलाज होता है; वहाँ किसी भी जगह पर हाथ धोने की सुविधा नहीं थी। शहरी आबादी पर विशेष रुप से वायरल श्वसन संक्रमण का खतरा बना रहता है। यह जनसंख्या घनत्व और भीड़-भाड़ वाले इलाकों, जैसे- बाज़ार, सार्वजनिक परिवहन या पूजा स्थलों पर अक्सर जमा होने वाली जनता के कारण होता है। जो लोग शहरी गरीब बस्तियों में, जो कि सबसे खराब अनौपचारिक बस्तियाँ हैं; खासकर वहाँ की आबादी अधिक जोखिम में है।

भारत में 20 फीसदी शहरी लोग यानी 9.1 करोड़ लोगों के घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाओं की कमी है। भारत की आर्थिक राजधानी व मायानगरी मुम्बई की बात करें, तो स्लम में रहने वाले लोगों ने हाथ धोने वाले व्हटसअप वीडियो तो देखे हैं, मगर उनका अगला सवाल साफ पानी तक पहुँच की कमी वाला होता है। यहाँ रहने वाले लोग प्लास्टिक के बड़े-बड़े ड्रमों में पानी भरते हैं और यह पानी पाइप के ज़रिये उनकी बस्ती तक पहुँचता है। मगर पानी किस दिन और कितनी देर तक आएगा? यह सुनिश्चित नहीं है। यही हाल दिल्ली का है। यहाँ कई इलाकों में केवल एक घंटे तक पानी आता है। लोग इस पानी का इस्तेमाल बहुत ही ज़रूरी कार्यों, जैसे- खाना बनाने और पीने आदि में करते हैं। उनका कहना है कि वे बार-बार साबुन से हाथ धोने का खर्च वहन नहीं कर सकते। भारत में करीब 66 फीसदी आबादी गाँवों में रहती है। कई अध्ययन बताते हैं कि ग्रामीण भारत में हर चौथा व्यक्ति बच्चों को खिलाने से पहले हाथ नहीं धोता। गरीबी और अन्य कई कारणों से घरों में पानी व साबुन से वंचित होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। भारत के कई बड़े शहर, जिसमें बेंगलूरु भी शमिल है; पानी की कमी से जूझ रहा है। वहाँ पानी का गम्भीर संकट है। चेन्नई भी ऐसे हालात से गुज़र रहा है। भारत विश्व का ऐसा मुल्क है, जो सबसे अधिक भूजल का इस्तेमाल करता है। यहाँ पाइपलाइन से पानी की बर्बादी के आँकड़े भी चिन्ता का विषय हैं और पानी की रिसकालिंग (रिसाव रोकने) को लेकर भी उत्साहजनक माहौल नज़र नहीं आता।

सब सहारा अफ्रीका में शहरी इलाकों में 63 फीसदी लोग यानी 258 मिलियन (2,580 लाख) लोगों के पास हाथ धोने की सुविधा नहीं है। उदाहरण के लिए 47 फीसदी शहरी दक्षिण अफ्रीकी यानी 18 मिलियन (180 लाख) लोगों के पास घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाएँ तक नहीं हैं; जबकि सबसे अमीर शहरी निवासियों के पास हाथ धोने वाली सुविधाओं तक पहुँच की सम्भावना 12 गुना से भी अधिक है। जिन लोगों के पास पैसा है, वे गरीब लोगों की तुलना में हैंडवॉश, निजी, सामुदायिक हाईजीन पर खर्च करके अपना बचाव बेहतर ढंग से कर सकते हैं। मध्य व दक्षिण एशिया में शहरी इलाकों के 22 फीसदी लोग अर्थात् 153 मिलियन लोगों के पास हाथ धोने की सुविधा की कमी है। करीब 50 फीसदी बंाग्लादेशी अर्थात् 29 मिलियन (290 लाख) लोगों के पास घरों में हाथ धोने की मूलभूत सुविधाओं की कमी है।

पूर्व एशिया में 28 फीसदी शहरी इंडोनेशियाई अर्थात् 41 मिलियन (410 लाख) और 15 फीसदी शहरी फिलीपींस अर्थात् 7 मिलियन  (70 लाख) लोगों के पास घरों में मूलभूत हाथ धोने वाली सुविधाएँ नहीं हैं। गौर करने वाली बात यह है कि विश्व के बहुत-से हिस्सों में बच्चों, अभिभावकों, अध्यापकों, स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं की और समुदाय के अन्य सदस्यों के घरों, स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों, स्कूलों व दूसरी जगहों पर लोगों की हाथ धोने वाली बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच नहीं है। एक बात अहम है कि हाथ धोना स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को संक्रमण से बचाने के लिए और स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में कोविड-19 व अन्य संक्रमणों के प्रसार की रोकथाम में भी अहम है। कोरोना वायरस से लडऩे के लिए साबुन से हाथ धोना अहम है। लेकिन दुनिया के तीन अरब लोगों के पास घरों में पानी और साबुन से हाथ धोने वाली मूलभूत सुविधाएँ नहीं है। यह सब राष्ट्र सरकारों के सामने कोरोना को हराने के रास्ते में एक बहुत बड़ी चुनौती है।

अलग-थलग रहकर व्यक्ति कैसे करेगा विकास

कोरोना (कोविड-19) का आतंक चारों ओर है। लगातार इस तरह के संदेश मिल रहे हैं, जिनमें अपने-अपने घरों के भीतर रहने के लिए कहा जा रहा है। समाज के भीतर दहशत का माहौल है। कयास लगाये जा रहे हैं कि क्या यही प्रलय या कयामत का दिन होने वाला है? क्योंकि सब कुछ धीमे-धीमे ठहरता जा रहा है और चारों ओर से विनाश और तबाही की खबरें आ रही हैं। धाॢमक स्थल बन्द कर दिये गये हैं और लोगों की आवाजाही रोक दी गयी है। ग्लोबल विलेज का विचार एक तरह से धराशायी हो गया है। बाज़ार बन्द है। सोशल डिस्टेन्सिंग पहले ही बहुत अधिक थी, अब और ज़्यादा हो गयी है। छोटे-छोटे समूह में भी मेल-मिलाप बन्द किया गया है। जीवन ठहर गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। मीडिया भी दंगों और साम्प्रदायिकता के उन्माद से निकलकर विश्व स्वास्थ्य पर बातचीत कर रही है।

आज हम सबको कुछ गम्भीर बातों पर आज विचार करने की ज़रूरत है। सबसे पहले यह समझने की ज़रूरत है कि एक सूक्ष्म से दिखने वाले वायरस ने किस तरह सर्वशक्तिशाली मनुष्य को ठहरकर सोचने के लिए मजबूर कर दिया? मनुष्य जीवधारियों में सबसे ज़्यादा बुद्धिमान और सुविधा-सम्पन्न है। जिन रहस्यों को कभी ईश्वर की शक्ति कहकर रहस्य के आवरण में ही रखा जाता था, मनुष्य ने उसे ढूँढने का अनथक प्रयास किया और अंतत: अधिकांश रहस्यों का सूत्र ढूँढ ही लिया। यहाँ तक कि उन एन्जाइम्स को भी ढूँढ लेने का दावा भी किया जा रहा है, जिससे बच्चे के भीतर के गुणसूत्र माता-पिता से विकसित होते हैं! मनुष्य की क्षमताएँ अनन्त हैं और अनन्त है उसकी ऊर्जा। परन्तु अनेक सुविधाओं को जुटाते हुए उसने प्रकृति का दोहन किया, संसाधन जुटाये और प्रकृति के हर अंश पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया। पर मनुष्य भूल गया कि प्रकृति से छेड़छाड़ करने की भी कोई सीमा तो ज़रूर होगी! और उस सीमा के बाद प्रकृति जब विद्रोह करेगी, तो उसके परिणाम भयंकर होंगे। विज्ञान ने हमारा सबसे अधिक भला किया; पर अब कुछ ठहरकर जीवन शैली के बदलाव पर बात करने की ज़रूरत है। हमने प्रकृति प्रदत्त चीज़ों पर लगातार अपना अधिकार करके सिर्फ और सिर्फ अपनी सुविधाओं के लिए उसका विनाश किया। आज प्रकृति हाँफ रही है… और यदि अब भी हम नहीं रुके, तो अपना विनाश खुद कर बैठेंगे!

कामायनी को इन दिनों फिर से पढऩे बैठी। कामायनी की पहली पंक्ति है- ‘हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह! एक पुरुष भीगे नैनो से, देख रहा था प्रलय प्रवाह!!’

हमारे मन में सवाल पैदा होता है कि इस पुरुष के नेत्र भीगे क्यों हैं? और प्रलय का प्रवाह क्यों और कैसे है? यह मनु है- प्रसाद जी की कल्पना का आदि-पुरुष! वह याद करता है कि समस्त देवता जब इतने विलासी हो गये कि प्रकृति पर ही अपना कब्ज़ा मान बैठे… ‘प्रकृति रही दुर्जेय पराजित, हम सब थे भूले मद में! भोले थे हाँ तिरते केवल, बस विलासिता के नद में!!’

और ऐसे भाव के साथ देवता यह मान बैठे कि प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट करके वे अनंतकाल तक अजर-अमर-अविनाशी हो सकते हैं। पर प्रकृति शब्द में ही उसका मूल भाव छिपा है, जो प्राकृत हो; जिसे बदलने का प्रयास न किया जाए। देवताओं ने उसे बदला, अपने आनन्द के लिए उसका उपभोग किया और स्वयं को अजर-अमर घोषित कर दिया। प्रकृति ने शीघ्र ही इसका उत्तर दिया और अमरता के इस दम्भ को समाप्त कर दिया… ‘अरे, अमरता के चमकीले पुतलों तेरे वे जयनाद! काँप रहे हैं आज प्रतिध्वनि बनकर मानो दीन-विषाद!!’

और तब प्रसाद कामायनी के दो सूत्र देते हैं- पहला, प्रकृति रही दुर्जेय पराजित, हम सब थे भूले मद में, और दूसरा सबसे अन्त में कि समरसता में ही सबका विकास सम्भव है। आज कामायनी को फिर से पढऩे की गहरी ज़रूरत महसूस हो रही है। मनुष्य के कर्मों का ही परिणाम अंतत: उसे विनाश की ओर ले जाता है। चीन से जिस वायरस के फैलने की शुरुआत हुई, उसका प्रसार अब कई देशों तक हो चुका है। मीडिया रिपोट्र्स पर जाएँ, तो जिन देशों में यह महामारी फैली है, वहाँ की खबरें दहशत से भरी हैं। गैर-ज़रूरी चीज़ों से लेकर ज़रूरी चीज़ों की आवाजाही पर रोक लगने की स्थिति उत्पन्न हो रही है। परन्तु अब इस सबके आगे ठहरकर सोचने की ज़रूरत है। कोरोना पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूँगी। क्योंकि मैं उसकी विशेषज्ञ नहीं हूँ। यहाँ मेरा उद्देश्य सिर्फ एक बार ठहरकर विचार करने और जीवन में शान्ति-संतोष के महत्त्व की ओर ध्यान दिलाने का है।

लगभग सारी व्यवस्थाएँ चौपट होने की स्थिति है। स्कूल, कॉलेज बन्द हैं। अस्पतालों में डॉक्टर लगातार हमारी मदद के लिए तैनात हैं। लगभग सभी जगहों में घर से काम करने की कोशिश हो रही है। सरकारें सजग हैं और अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाने की कोशिश कर रही हैं। पर क्या एक इंसान होने के नाते अपने भीतर झाँककर देखने और अपनी जीवन-शैली में बदलाव लाने की हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?

कुछ सवाल अपने आपसे कीजिए

हम जिस तरह से लगातार सुविधाजीवी होते जा रहे हैं, क्या सचमुच हमें इतनी ज़्यादा सुविधाओं की ज़रूरत है? क्या हम कुछ समय इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी से निकलकर थोड़ा आत्मचिन्तन, आत्म परीक्षण कर सकते हैं? क्या यह ज़रूरी नहीं है? क्या हम इस कठिन समय का सदुपयोग घर में रहकर कुछ किताबें पढऩे, योग करने, बच्चों से बातचीत करने में लगा सकते हैं? क्या हम अपने घर के भीतर स्वास्थ्य जागरूकता अभियान की तरह अपने बच्चों, बूढ़ों और सभी घर के आस-पास के सदस्यों को स्वास्थ्य नियमों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित कर सकते हैं?

क्या हम कुछ देर इस प्रकृति का शुक्रिया अदा कर सकते हैं, जिसका शोषण करने में हमने कोई कोर-कसर नहीं रखी, पर उसने हमें सभी सुख-सुविधाएँ दीं? क्या हम कुछ समय तक नशे की आदतों को रोक सकते हैं, क्या हम कुछ समय तक खुद को धर्मों और उसकी उप-श्रेणियों में बाँटने की जगह केवल इंसान समझकर व्यवहार कर सकते हैं? क्या कुछ समय हम ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की प्रार्थना के लिए निकल सकते हैं? आप ईश्वरवादी, अनीश्वरवादी कुछ भी हो सकते हैं। पर क्या आप मानवता में विश्वास की प्रार्थना कर सकते हैं? इन सवालों के जवाब कुछ के हाँ में होंगे, तो कुछ के नहीं में भी होंगे। आज एक सूक्ष्म-से दिखने वाले वायरस ने उस मनुष्य को ज़मीन पर लाकर खड़ा कर दिया है, जो स्वयं को परमाणु का आविष्कारक और पूरी मानवता को नष्ट करने वाली शक्ति मानता रहा है…। हम जिस समय और समाज के सन्धि स्थल पर खड़े हैं, वहाँ यह जानना ज़रूरी है कि जव एक सूक्ष्म से भी सूक्ष्म अणु ने हमारे इस सुविधाजीवी जीवन को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है। तो झूठे गर्व और अहंकार के लिए जगह कहाँ है? हम एक-दूसरे से घृणा करते हैं; एक-दूसरे को कुछ रुपयों के लिए मार देना चाहते हैं; आज इतनी सुविधाओं के होने के बाद भी पहला संकट मनुष्य को जीवित रहने का है। मैं, केवल मैं; आज का सत्य नहीं हो सकता…।

जीवन का यह मोह मानवता का मोह बन जाए, तो शायद इस वायरस की ओर से आने वाली यह एक बड़ी सीख होगी। स्वस्थ रहने और स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करने की आदत भी हमारे साथ रह जाए, तो यह हमारे जीवन की एक बड़ी शिक्षा होगी। कभी सोचते हैं हम कि ऐसा क्या हुआ कि सबसे ताकतवर, सबसे दम्भी, सबसे विवेकशील, सबसे अहंकारी प्रजाति-मनुष्य इसकी चपेट में आ गया, जबकि पशु-पक्षी नहीं! पशु-पक्षी हमसे अपने जीवन की गुहार लगते रहे, पर हम त्याज्य-स्वीकार्य में भेद नहीं कर सके! उचित-अनुचित का सारा विवेक हमने छोड़ दिया। क्योंकि हम तो ठीक कामायनी के देवताओं की तरह अजर-अमर होने का दम्भ पाले बैठे हैं! अब वह समय हमारे द्वार पर खड़ा दस्तक दे रहा है। जब ठहरना होगा, सोचना होगा; फिर से अपनी आदतों, जीवन-शैली को नज़दीक से देखकर बदलना होगा। पता नहीं इसकी चपेट में कौन आएगा और कौन बचेगा? पर जो रह जाएँगे, क्या वे फिर सब कुछ भूलकर दौडऩा शुरू कर देंगे? या सोचेंगे कि जिस धरती, जिस प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया, उसके प्रति हमारी भी कोई ज़िम्मेदारी है! ध्यान रखिए, यह पार्टी का दौर नहीं है; यह आपात स्थिति है। सरकारें, जो सूचनाएँ भेज रही हैं, उस पर बहुत ध्यान देकर सुनने की ज़रूरत है। जिससे समझदारी से उसे लागू किया जा सके या लागू करने में अपनी भूमिका निभायी जा सके।

कल्पना कीजिए कि यदि यह वायरस हवा के ज़रिये फैला होता,  तो शायद हवा से आने वाले वायरस से बचने के लिए हमारे पास कोई रास्ता नहीं होता! हवा, पानी और भोजन हमारे जीने के लिए अनिवार्य साधन हैं। अब यदि यही इस हद तक दूषित हो जाएँ, तो क्या हमारा बचाव हो सकेगा? इस कल्पना की आज बहुत अनिवार्यता है। क्योंकि कभी गंगा को साफ करने के नाम पर, तो कभी हवा-पानी के प्रदूषण को दूर करने के नाम पर भ्रष्टाचार किया गया; और आज इसके परिणाम हम सब भुगत रहे हैं। दूसरी कल्पना कीजिए कि आपकी मुंडेर पर चिडिय़ा आये और दाने खा सके! क्या यह कल्पना मुमकिन है? मध्यकाल की प्रार्थना थी- ‘साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय; मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।’

अब सोशल आइसोलेशन का समय आ गया है। कौन-सी प्रगति कर रहे हैं हम? और कहाँ जाकर थमेंगे हमारे कदम? अब अतिथि नहीं आते; कौए किसी के आने का संदेसा नहीं लाते। जिस जगह मैं बैठकर यह लिख रही हूँ, इस क्षेत्र में छोटी चिडिय़ा,जिसे गौरेया कहते हैं; नजर नहीं आती। सूर्य निकलता है, पर हल्की धुन्ध उसे घेरे नज़र आती है। पूरा शहर एक धुएँ में घिरा दिखता है। वृद्ध लोग अब बाहर नहीं जा सकते; क्योंकि उनके जीवन पर अधिक खतरा है। धाॢमक उन्माद से लेकर हिंसा के उन्मादी व्यवहार के बीच अब कुछ मानवीय होने की उम्मीद ही हमें जिलाये रख सकती है। इसके लिए चलिए कुछ देर रुकते हैं; ठहरते हैं। अपने-अपने घरों के भीतर रहकर बच्चों से बातें करते हैं। बूढ़ों के पास बैठते हैं। फोन पर आस-पास के हाल-चाल लेते हैं। वह जो बूढ़ी काकी पीछे गाँव में हैं, उसे चिट्ठी लिखते हैं; या फोन पर ही बतियाते हैं। आइए, कुछ देर रुकते है। कुछ देर रुकेंगे, तो बेहतर चल सकेंगे…!

किसान फिर हुए बर्बाद

पूरे उत्तर भारत में बेमौसम बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है। होली से तकरीबन दो सप्ताह पहले शुरू हुई बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा ने होली आते-आते किसानों की, खासतौर से मझोले और छोटे किसानों की कमर तोड़कर रख दी। इस बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा ने इस बार होली का रंग इस कदर फीका कर दिया कि अधिकतर किसानों ने होली ही नहीं मनायी। बेमौसम की बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा से रबी फसलों- गेहूँ, सरसों, जौ, चना, मक्का, तिलहन, दलहन, केला, पोस्त और मौसमी सब्ज़ियों को भारी नुकसान पहुँचा है। इस बारिश और ओलावृष्टि से खासतौर से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र सहित उत्तर भारत के अन्य हिस्सों के किसानों पर मार पड़ी है। अपनी उजड़ी फसलों को देख तकरीबन सभी किसान रुआँसे हैं और मदद के लिए सरकार की तरफ देख रहे हैं। ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी कुछ स्थानों पर बारिश और ओलावृष्टि हुई है। छत्तीसगढ़ और बिहार के कुछ इलाकों में बारिश हुई है।

उत्तर प्रदेश का हाल-बेहाल

उत्तर प्रदेश में भारी बारिश, ओलावृष्टि के साथ-साथ तेज़ हवा ने रबी की सभी फसलों को ज़मीन पर लिटा दिया। यहाँ फसलों को बुरी तरह क्षति पहुँची है, जबकि सरकार ने किसानों से कोई खास हमदर्दी नहीं जतायी है। इस बारिश से कई कच्चे मकान गिरने के अलावा ओलावृष्टि से किसानों की मौतें भी हुई हैं। होली से पहले ओलावृष्टि से सुलतानपुर के आदमपुर गाँव के एक किसान की मौत हो गयी। वह फसल देखने गया था। इतना ही नहीं, फिरोजाबाद में आकाशीय बिजली गिरने से दो घर गिर गये और एक घर में आग लग गयी, जिससे उसमें रखा सामान खाक हो गया। ये सभी घर किसानों के थे। इस बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा से बरेली, शाहजहाँपुर, पीलीभीत, बदायूँ, चंदोसी, रामपुर, मुरादाबाद, फैज़ाबाद, बलरामपुर, हाथरस, इटावा, सोरों, एटा, मथुरा, हाथरस, गढ़, हापुड़, गाज़ियाबाद, नोएडा के अलावा उत्तराखंड के कई इलाकों में फसलें गिर गयी हैं। इस तबाही से अधिकतर किसान, खासतौर मझोले और छोटे किसान बर्बाद हुए हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि प्रौद्योगिकी आकलन एवं स्थानान्तरण केंद्र के अनुसार, देश के अनेक राज्यों में बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवा से रबी फसलों को भारी नुकसान हुआ है। वातावरण में नमी बढऩे से कीटों के प्रकोप का खतरा बढ़ गया है। तेज़ हवा और बारिश से गेहूँ, सरसों, चना, जौ, पन्ना, पोस्त और दलहनों की फसल गिर गयी है। इस बार उपज घटने के साथ-साथ कटाई में परेशानी होगी, जिसमें अधिक मेहनत की ज़रूरत पड़ेगी। गेहूँ की बालियाँ निकली हुई हैं, लेकिन उनमें दाना ठीस से नहीं पड़ा है। ऐसे में गेहूँ का दाना पूरी तरह विकसित नहीं हो सकेगा। इसी तरह नमी के कारण दलहन की फसलों, खासकर मटर, चना में फली छेदक कीड़े लग जाएँगे, जिससे भारी नुकसान होगा।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बार किसानों को भारी नुकसान हुआ है। भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) ने हाल ही में रिपोर्ट जारी कर कहा है कि बेमौसम की भारी बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवाओं ने गेहूँ के अलावा रबी की खड़ी फसलों को गिरा दिया है। इस बार पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। हरियाणा सरकार का कहना है कि गेहूँ से ज़्यादा नुकसान सरसों की फसल का हुआ है। वहीं कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सरसों और चना की फसलों का ज़्यादा नुकसान हुआ है। स्काइमेट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बारिश और बर्फबारी हुई है।

किसान संगठनों ने माँगा मुआवज़ा

उधर, किसान संगठनों ने अपने-अपने राज्यों की सरकारों से फसल नुकसान के मुआवज़े की माँग की है। उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों ने राज्य सरकार से किसानों को मुआवज़ा देने की माँग की है। हरियाणा के किसान संगठनों ने राज्य सरकार से प्रदेश में ओलावृष्टि और बरसात से हुए नुकसान की गिरदावरी करवाकर किसानों को मुआवज़ा देने की माँग की है। पंजाब के किसान संगठनों ने भी वहाँ के किसानों को मुआवज़ा देने की माँग की है।

नुकसान की जाँच के आदेश

कृषि विभाग ने राज्यवार फसलों के नुकसान की जाँच का आदेश दिया है। एक अनुमान के अनुसार, तो 65 से 70 फीसदी खेती खराब हुई है। इसमें पहली फरवरी के आिखरी सप्ताह में बारिश में ही तकरीबन 37935.23 हेक्टेयर खेती प्रभावित हो चुकी थी। जो फसलें बची हुई थीं, होली तक हुई बारिश ने बर्बाद कर दीं। कृषि विभाग की मानें, तो गेहूँ, मक्का, तिलहन-दलहन व केला की  60 से 70 फीसदी फसल उजड़ गयी है।

कर्ज़ लेकर फसल उगाने वाले परेशान

बरेली में किसानों से बात करने पर पता चला कि अधिकतर किसानों ने खाद, दवाएँ और यहाँ तक कि बीज भी कर्ज़ पर लिये थे। यह किसान फसल होने पर अपना कर्ज़ चुकाते हैं। लेकिन इस बार फसलों का नुकसान होने पर तकरीबन सभी किसान परेशान हैं। रामपाल गंगवार नाम के एक किसान ने बताया कि उन्होंने तीन बीघा अपने और चार बीघा बटाई के खेत में गेहूँ बोया था। कर्ज़ के खाद-पानी से लेकर उसके पूरे घर ने जी-तोड़ मेहनत की थी। बारिश ने उसकी सारी फसल खराब कर दी। उसे चिन्ता है कि वह कर्ज़ कैसे उतारेंगे और क्या बच्चों को खिलाएँगे? रामपाल ने बताया कि उन पर करीब 20 हज़ार रुपये का कर्ज़ है, इतने रुपये का तो गेहूँ निकलने की भी उम्मीद नहीं है। अब तो सरकार ही मदद कर सकती है और कोई रास्ता नहीं है।

दूसरे एक किसान मोहन लाल तो बात करते-करते रो पड़े। उन्होंने बताया कि वे हर बार बड़ी मेहनत से खेती करते हैं, दिन-रात उसकी रखवाली करते हैं, इस बार बर्बाद हो गये। वे कहते हैं कि थोड़ा-बहुत नुकसान तो हर किसान हर बार सहन करता है, लेकिन इस बार तो सभी बर्बाद हो गये। मोहन लाल यह कहते-कहते रो पड़े कि उनका तो पूरा परिवार इसी खेती से पलता है।

देवकी नंदन नाम के एक किसान की भी कुछ ऐसी ही दशा है। देवकी नंदन का एक पैर कमज़ोर है और वह बिना मज़दूरों के सहयोग के खेती नहीं कर पाते।

भारतीय कृषि बीमा कम्पनी करती है फसल बीमा

प्राकृतिक आपदा से फसल नष्ट होने पर फसल बीमा के तहत नुकसान का मुआवज़ा मिलता है। भारत सरकार द्वारा शुरू की गयी फसल बीमा योजना के अंतर्गत भारतीय कृषि बीमा कम्पनी (एआईसी) को इस योजना की ज़िम्मेदारी दी गयी है। इसके अंगर्गत प्राकृतिक आपदा, जैसे- बारिश, ओलावृष्टि, आँधी-तूफान, आग, कीड़े और अचानक लगे किसी रोग से फसल बर्बाद होने पर सरकार द्वारा अधिसूचित फसल के नुकसान की भरपाई करने का प्रावधान है। फसल बीमा योजना  के लिए नजदीकी बैंक में जाकर या ऑनलाइन द्धह्लह्लश्च://श्चद्वद्घड्ढ4.द्दश1.द्बठ्ठ/ लिंक पर जाकर फार्म भरकर बीमा कवर लिया जा सकता है। पीएमएफबीवाई में किसान की एक फोटो, आईडी और एडरेस प्रूफ, जिसमें पैन कार्ड (आईडी प्रूफ), वोटर आईडी, आधार कार्ड,  ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आधार कार्ड की कॉपी के अलावा अगर अपना खेत है, तो खसरा नम्बर या खाता नम्बर के कागज़ जमा करने होंगे। इसके अलावा फसल बुआई का सुबूत पटवारी, प्रधान, सरपंच द्वारा लिखित रूप में देना होगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मुआवज़े की आस

दो हेक्टेयर ज़मीन के मालिक रामसेवक गंगवार बताते हैं कि उन्होंने फसल बीमा करा रखा है, लेकिन फसल के नुकसान का पैसा ले पाना कम टेढ़ी खीर नहीं है। अफसर पहले तो काफी मिन्नतों के बाद भी फसल देखने आना नहीं चाहते, अगर आ भी जाएँ, तो अपनी मर्ज़ी से नुकसान का अनुमान लगाते हैं। उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं कि किसान का वास्तव में कितना नुकसान हुआ है? मझोले किसान देवेंद्र बताते हैं कि छोटी खेती में किसान के पास फसल बोने के लिए भी पैसे नहीं होते साहब, वह जुताई-बुवाई में ही चित हो जाता है। ऐसे में बीमा कौन करा पाएगा? हम जैसे किसानों को तो सरकार से मुआवज़े के अलावा कोई और उम्मीद नहीं है। मुआवज़ा मिलने के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि अभी तक तो ठीक से मुआवज़ा कभी नहीं मिला, जो मिलता है, उसमें दलाली भी खूब होती है। इस बार योगी सरकार है, उम्मीद तो है कि योगी जी नुकसान के हिसाब से कुछ अच्छा करेंगे।

कैसे मिलता है फसल बीमा का मुआवज़ा?

भारत सरकार द्वारा 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएमबीवाई) की शुरुआत की जा चुकी है। इस योजना के शुरू होने से लेकर आज तक लोगों में कई भ्रांतियां हैं। कुछ लोगों को यह भी भ्रम है कि उन्हें फसल का नुकसान होने पर इसका लाभ मिल जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है। इसका लाभ लेने के लिए किसानों को एक प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। इसके लिए खरीफ की फसल का 2 फीसदी, रबी का फसल के लिए 1.5 फीसदी, वाणिज्यिक और बागवानी की फसलों के लिए 5 फीसदी प्रीमियम अदा करना होता है। जबकि छोटे और मझोले किसान तो फसल उगाने तक के लिए कर्ज़ के सहारे होते हैं, ऐसे में बीमा कराने के बारे में तो वे सोचते तक नहीं। इस बीमे के ज़रिये मुआवज़ा तब मिलता है, जब कोई फसल किसी प्राकृतिक आपदा के कारण खराब हो जाए।

बुन्देलखण्ड के किसान परेशान

बे-मौसम बारिश से बुन्देलखण्ड के किसानों का हाल बेहाल है। यहाँ के किसानों का कहना है कि होली के त्योहार के बाद हर किसान यह उम्मीद करने लगता है कि उनकी फसल पक गयी है; बस कटाई के बाद वह बाज़ार मेें बेंचकर अपनी मेहनत की कमाई से सरकारी-गैर सरकारी कर्ज़ चुकायेगा और अपने काम-काज, जैसे बच्चों की पढ़ाई, शादी वगैरह करेगा; कपड़े बनवायेगा। पर इस बार 7 मार्च और 13-14 मार्च को हुई बारिश से उनकी फसल पूरी तरह से चौपट हो गयी। इस बेमौसम बारिश ने किसानों की फसलें चौपट कर दीं और अब उनके सामने आर्थिक संकट अलावा सरकारी कर्ज़ चुकाना भी विकट चुनौती बना हुआ है। इस बारे में तहलका के विशेष संवाददाता ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड के किसानों की समस्याओं को करीब से जाना। किसानों ने बताया कि बुन्देलखण्ड के किसानों की दुदर्शा कभी सूखे की वजह से होती रहती है, तो कभी बे-मौसम बारिश की वजह से। उन्होंने कहा कि सन् 2016 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। तब किसानों को लगा था कि किसानों के दिन फिरेंगे और किसान खुशहाल होंगे। लेकिन  किसानों की आय में कोई इज़ाफा नहीं हुआ। ऊपर से किसानों के सिर पर कुदरत का कहर भी किसी-न-किसी रूप में मुसीबत बनकर टूटता रहता है। हालाँकि, केंद्र सरकार किसानों के लिए काम भी कर रही है; ताकि किसानों को आर्थिक तंगी का सामना न करना पड़े। सरकार ने पहल भी की है और उसका लाभ मिल रहा है। लेकिन बे-मौसम बारिश से हुई किसानों की जो फसलें चौपट हुई हैं, उनका सरकार को तुरन्त मुआवज़ा देना चाहिए और किसानों का कर्ज़ भी माफ करना चाहिए, ताकि किसान सुकून से जीवन-यापन कर सकें।

अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले झाँसी, जालौन, महोबा, हमीरपुर और बाँदा ज़िले की। यहाँ के किसानों का कहना है कि 13 मार्च को बारिश के साथ ओले गिरने से उनकी फसलें पूरी तरह से नष्ट हो गयीं। किसानों का कहना है कि इस बार सर्दी का सितम अभी तक चल रहा है। जो कुछ फसल बची हुई है, वह सर्दी के कारण पक नहीं पा रही है। इसके कारण उनको काफी नुकसान हो रहा है। झाँसी ज़िले के किसान प्रकाश चन्द्र का कहना है कि सराकार को किसानों के लिए अलग से आयोग बनाना चाहिए, ताकि आयोग बिना देरी किये किसानों की समस्याओं का समाधान कर सके। क्योंकि बुन्देलखण्ड के किसान भुखमरी के कगार पर हैं। बाँदा ज़िले के किसान राजेश शुक्ला ने बताया कि यह अजीब और दु:खद है कि जैसे ही किसान खेतों पर गेहँू, मटर, चना और खड़ी दलहन की फसलों को काटने की तैयारी कर रहे थे, बारिस के साथ ओले भी गिरने लगे। अब स्थिति यह है कि ओले, बारिश के कारण जो फसलें नहीं कट सकीं या कटी फसलें खेत में पड़ी रह गयीं, वो अब खेतों में ही सडऩे लगी हैं। यहाँ के किसानों ने ज़िलाधिकारी हीरा लाल को एक ज्ञापन देकर नुकसान के मुआवज़े की माँग की है। किसानों का कहना है कि नुकसान के लिए सरकार कोई ठोस पहल करे, ताकि किसानों को राहत मिल सके। राजेश शुक्ला ने बताया कि नरैनी, करतल, बदौसा और मटौध में तो छोटे किसानों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट बना हुआ है। महोबा ज़िले के चरखारी, ऐंचाना और कबरई के किसानों ने बताया कि अब तक मार्च के महीने में अच्छी-खासी गर्मी पडऩे लगती थी, जिससे किसानों की फसल कटकर बाज़ारों में आ जाती थी। लेकिन इस बार सर्दी खत्म होने से पहले बारिश भी हो गयी, जिससे गर्मी पड़ ही नहीं रही है, तो फसलें कैसे पकें? किसान राहुल ने बताया कि बुन्देलखण्ड में किसानों को किसी-न-किसी रूप में परेशानी का सामना करना ही पड़ता है। जैसे इस बार किसानों को लग रहा था कि खेती में की गयी मेहनत का फल उनको अच्छा मिलेगा, लेकिन 12 और 13 मार्च को हुई बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। सारी मेहनत बेकार हो गयी। अब यहाँ के किसानों को सरकार से उम्मीद है कि वह किसानों को सही मुआवज़ा दे; ताकि किसान अपना जीवनयापन कर सकें। जालौन के किसान डब्बू और प्रमोद का कहना है कि यहाँ के किसानों ने आत्महत्या तक की है। कभी सूखे की वजह से, तो कभी बे-मौसम बारिश और अन्य आपदा से फसल बर्बाद होने के चलते। क्योंकि किसान बुआई के समय साहूकार से और बैंक से कर्ज़ लेता है और फसल खराब होने पर कर्ज़ समय पर लौटा नहीं पाता है; जिसके चलते आत्महत्या तक कर लेता है। डब्बू किसान का कहना है कि मटर और गेहूँ की फसल आने वाली थी। पर बारिश और ओले पडऩे से सब बर्बाद हो गयी। हमीरपुर के किसान अनुपम कहते हैं कि किसानों की िकस्मत में तो साफ लिखा है कि मेहनत करो और खुद खाने के लिए जूझो।  सरकार कहती है कि किसानों के नुकसान की भरपाई की जाएगी। लेकिन भरपाई के नाम पर न के बराबर पैसा दिया जाता है। ऐसे में किसान फटेहाल और लाचार-सा भटकता फिरता है। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों का हाल इसलिए बेहाल है, क्योंकि उनकी चार से छ: बीघा या उससे भी कम खेती होती है। ऐसे में छोटे किसान सरकार और साहूकार से कर्ज़ लेकर जो लगात लगाते हैं, वह भी कई बार नहीं निकल पाती है और वे कई परेशानियों से जूझते रहते हैं।

यही हाल मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर और दतिया ज़िलों का है। यहाँ भी 13 और 14 मार्च को हुई बारिश ने किसानों को रोने को मजबूर कर दिया। टीकमगढ़ के मजना, बम्हौरी, बड़ागाँव, पलेरा के किसान धीरज, दीपक और विनोद ने बताया कि उनकी खती 19 बीघा है। उन्होंने सरकार से तो कर्ज़ नहीं लिया है, पर अब फसल नष्ट हो गयी है, तो सरकार से कर्ज़ लेना होगा। क्योंकि घर चलाना मुश्किल होगा। उन्होंने बताया कि यहाँ के किसान पलायन तक करते हैं, क्योंकि किसानों को सरकार और पैसे वाले लोग मज़दूर जैसा मानते हैं। उनको किसानों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में किसान भगवान भरोसे खेती करते रहते हैं और किसानी करते-करते उनका जीवन तमाम हो जाता है। छतरपुर और दतिया के किसान अनूप और राधेश्याम का कहना है कि किसानों को वोट बैंक की तरह सरकार और राजनीतिक पार्टियाँ इस्तेमाल करती हैं। सियासतदाँ चुनाव के दौरान तो किसानों की हित की बात करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद थोड़ी-बहुत राहत बमुश्किल देते हैं। उन्होंने बताया कि इस समय सही मायने में सरकार को किसानों की आॢथक मदद की ज़रूरत है, ताकि किसान अपना दैनिक जीवनयापन कर सकें। क्योंकि एक ओर तो फसल नष्ट हो गयी है, दूसरा कर्ज़ ले रखा है, जिसे चुकाना सम्भव नहीं है, ब्याज अलग बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि उस पर मध्य प्रदेश में सरकार गिरने से किसानों और मुसीबत में आ गये हैं। क्योंकि इस समय कुछ विधायक नयी सरकार बनाने में लगे हैं, तो कुछ सरकार गिरने का रोना रो रहे हैं। ऐसे में किसान किसके पास जाएँ? अधिकारी सुनते नहीं हैं। इसलिए किसान अधिकारियों के पास जाने से बचते हैं।

टीकमगढ़ के किसान नेता घनश्याम शर्मा ने बताया कि बुन्देलखण्ड में किसानों, खासकर छोटे किसानों का भविष्य कभी उज्ज्वल नहीं रहा है। क्योंकि सरकारें तो बस ऐलान करती हैं कि 2021 में यह होगा, 2022 वो होगा। पर होता कुछ नहीं है। मुआवज़ा तो देना दूर, किसानों की समस्याएँ तक सुनने वाला कोई नहीं है। बैंक वालों से साठगाँठ न हो, तो उन्हें कर्ज़ तक नहीं मिलता है। साहूकारों का एक गिरोह है। भाजपा की सराकर हो या कांग्रेस की हो, दोनों सरकारों के जनप्रतिनिधियों के सरक्षण साहूकारों पर रहता है और ये लोग किसानों में महँगी ब्याज दर पर कर्ज़ देते हैं। किसान मजबूरी में साहूकारों से कर्ज़ लेता है। कर्ज़ न चुका पाने की स्थिति में साहूकार किसानों से उनका खेत ले लेते हैं। बाद में किसान अपने ही खेत में साहूकार की मज़दूरी करने को मजबूर होता है। घनश्याम शर्मा ने बताया कि ऐसा नहीं कि शासन-प्रशासन को कुछ पता नहीं है; सब कुछ पता है। लेकिन किसानों की सुनवाई कहीं नहीं है।