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किस्से सितारों के

रेमो से क्यों खफा हैं वरुण?

कोरियोगाफर और डायरेक्टर रेमो डिसूजा इन दिनों थोड़े तनाव में चल रहे हैं। उनकी नयी फिल्म स्ट्रीट डांसर-3 डी को दर्शकों ने एक दिन भी थियेटर में टिकने नहीं दिया। ज़ाहिर है इसके बाद से ही उनके घटिया निर्देशन पर ढेरों सवाल उठाये जा रहे हैं। फिल्म के हीरो वरुण धवन ने तो एकदम उनके मुँह पर यह बात कह दी है। वरुण के बारे में अब यह कहा जा रहा है कि उन्होंने इसकी स्क्रिप्ट पढ़ते ही इस पर अपना असन्तोष व्यक्त किया था। सिर्फ वरुण ही नहीं, इस फिल्म की यूनिट के कई लोगों का तो यहां तक कहना है कि इतनी सडै़ली स्क्रिप्ट पर भला कोई फिल्म बनाता है! तब रेमो ने वरुण के सुझावों पर कोई ज़्यादा ध्यान नहीं था, पर अब रेमो खुले तौर मान रहे हैं कि वरुण के सुझाव काफी ताॢकक थे। पर इसके बाद भी वह वरुण को मना नहीं पा रहे हैं। उनका गुस्सा है कि शान्त नहीं हो पा रहा है। उन्होंने तो यहाँ तक कह डाला है कि वह रेमो के साथ आगे हरगिज़ काम नहीं करेंगे। वैसे रेमो के इस निर्णय के पीछे उनके पिता और बॉक्स आफिस के चतुर खिलाड़ी डेविड धवन का हाथ बताया जा रहा है। वह इस बात को अच्छी तरह से समझ गये हैं कि वरुण को पटा कर रेमो सिर्फ अपनी फिल्मी नैया पार लगाना चाहते हैं।

असल में बतौर निर्देशक एबीसीडी के बाद से ही रेमो पिट रहे हैं। इसके बाद एबीसीडी-2, फ्लाइंग जट, रेस-3 जैसी फिल्मों ने उन्हें बहुत पीछे कर दिया है। जहाँ तक वरुण का सवाल है, एबीसीडी-2 और स्ट्रीट डांसर की विफलता के बाद पिता की सलाह उन्हें बहुत सटीक लगी है। उनके करीबियों ने उन्हें यह सलाह दी है कि उन्हें लगातार फ्लाप फिल्में स्टारडम की दौड़ में पीछे कर सकते हैं। दूसरी ओर रेस-2 की विफलता ने यह साबित कर दिया था कि रेमो के पास सलमान, अनिल कपूर, वरुण धवन जैसे सितारों को सँभालना की ज़रा भी योग्यता नहीं है। यही वजह है कि वरुण ही नहीं, सलमान, टाइगर जैसे सितारे उनके काम करने से बिदकने लगे हैं। सलमान तो उनसे मिलना भी नहीं चाहते हैं। यही वजह है कि इन दिनों अपनी अगली फिल्म डांसिंग डैड की कास्टिंग करना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। ऐसे में वरुण का उनसे यों रूठना उनके लिए परेशानी का नया सबक बन सकता है।

दिशाहीन दिशा

अभिनेत्री दिशा पाटनी की नयी फिल्म मलंग भी दर्शकों को कुछ ज़्यादा प्रभावित नहीं कर पायी। पर हमेशा की तरह इसमें भी उनके बोल्ड लुक की खूब तारीफ हो रही है। वैसे इन दिनों दिशा अपने निजी सम्बन्धों को लेकर भी काफी बोल्ड हुई हैं। पर आलोचक मानते हैं कि इन सब वजहों से दिशा करियर के मामले में काफी दिशाहीन हो गयी हैं। जहाँ तक उनके निजी रिश्तों का सवाल है, सभी जानते हैं दिशा और टाइगर प्रेमी-प्रेमिका के तौर पर मशहूर हैं। पर किसी भी हाल में दोनों इस विषय पर मुँह नहीं खोलना चाहते हैं। इसी बीच यह खबर आयी थी कि फिल्म मलंग की शूटिंग के दौरान अभिनेता आदित्य राय कपूर के व्यक्तित्व ने उनका मन मोह लिया है। इस खबर को एक झटके में खारिज किया जा सकता था, पर हुआ यूँ कि एक खास मौके पर टाइगर का नाम आने पर दिशा ने मुँह बिचका कर जवाब दे दिया। मीडिया ने उनसे टाइगर श्राफ के साथ उनके रिश्तों को लेकर सवाल पूछा था। इस पर दिशा ने थोड़ मुँह बनाकर कहा- ‘ कैसा रिश्ता..’ उनकी भाव-भंगिमा ऐसी थी, मानो यह कहना चाहती हो, कौन टाइगर…? उनसे मेरा क्या नाता…? दूसरी और आदित्य के बारे में पूछे गये सवाल पर वह गद्गद हो उठती हैं। अति घनिष्ठ होकर उसके साथ तस्वीरें भी खिंचवा रही हैं। वैसे इसमें टाइगर का कोई दोष नहीं दिखता। टाइगर ने तो कभी भी इस रिश्ते को कुबूल नहीं किया है। चलो अब दिशा-आदित्य के रिश्ते को ही कुबूल कर लेते हैं, जिसे अपने ताज़ातरीन बातचीत में खुद दिशा ने भी कुबूल किया है।

डिप्रेस हो गये हैं ईशान

अब यह बात किसी से छिपी नहीं है, बड़े भाई शाहिद कपूर की तुलना में भाई ईशान खट्टर ज़रा भी अपना दमखम नहीं दिखा पा रहे हैं। अपनी पिछली दोनों फिल्मों में उन्हें बहुत पिटा हुआ बताया गया। अब इस साल के मध्य तक उनकी दो फिल्में खाली-पीली और सूटेबल बॉय रिलीज होगी। ज़ाहिर है उम्मीदें अब भी बाकी है। मगर फिर भी ईशान इन दिनों ड्रिप्रेशन में हैं। वजह, उनकी प्रिय दोस्त जाह्नवी कपूर उन्हें कुछ ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रही हैं। लिहाज़ा उनका मन बेहद बेचैन है। ऐसे में वह कभी अपने जिम का, तो कभी अपने डांस क्लास का समय बदल रहे हैं। यही नहीं, उन्होंने अपने एक पूर्व दोस्त अक्षत रंजन के साथ काफी घनिष्ठ तस्वीरें भी सोशल मीडिया में शेयर की हैं। असल में ईशान स्वभाव से बहुत अस्थिर हो उठे हैं। जाह्नवी से लगातार मिलने की कोशिश कर रहे हैं। किसी तरह से प्लान बनाकर एक ही पार्टी में जाने की कोशिश कर रहे हैं। क्यों अचानक जाह्नवी ने उनसे मुँह फेर लिया है? इस बारे में ज़्यादा कुछ पता नहीं चल रहा है। कोई बता रहा है कि दोनों का रिश्ता बहुत एकतरफा हो गया था। दूसरी खबर है कि अभिनेत्री अनन्या पांडे के साथ ईशान की दोस्ती जाह्नवी को कुछ ज़्यादा पसन्द नहीं थी। गौरतलब है कि ईशान और अनन्या इन दिनों फिल्म खाली-पीली में एक साथ काम कर रहे हैं। इस दौरान दोनों की बढ़ती आत्मीयता को देखते हुए जाह्नवी काफी शीतल हो गयी हैं। न जाने ये मिलेनियल स्टार किड किस तरह का लव गेम खेलते हैं। फिलहाल तो इस लव गेम ने ईशान की नींद हराम कर दी है। पर इससे ईशान के डिस्प्रेस होने की बात समझ में नहीं आती है। इन सब बातों को कैसे सुलझाया जाता है, इसकी शिक्षा तो उन्हें अपने बड़े भाई शाहिद से लेना चाहिए।

सुखी लाला मुम्बई के होकर रह गये

कन्हैयालाल ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। सम्पन्न परिवार के कन्हैयालाल अभिनेता होने के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी थे। नाटक लिखने का भी शौक था। चौथी कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पाठ्य पुस्तकों से उनका जो नाता टूटा, तो वह फिर कभी जुड़ नहीं पाया। लिहाज़ा अपने पुश्तैनी जनरल मर्चेंट की दुकान का थोड़ा बहुत काम सँभालना शुरू किया। इसमें मन नहीं रमा तो आटे की चक्की का काम अनिच्छा से सँभाल लिया। असल में बचपन से ही नाटकों के प्रति गहरे लगाव के चलते ही उनका मन किसी भी काम में नहीं लगता था। यह वह दौर था, जब अभिनय के करियर को बहुत सम्मानजनक दर्जा नहीं मिला हुआ था। लेकिन उनके बाल-हठ के आगे परिवार वालों को झुकना पड़ा और उन्हें आगाहश्र कश्मीरी के नाटक आंख के नशे में तबले वाले की अहम् भूमिका मिल गयी। उन्हें लगा जैसे उन्होंने बहुत बड़ कमाल कर दिया। बस वे नाटकों में अच्छे-खासे व्यस्त हो गये। नाटकों के मंचन के सिलसिले में उन्हें मुम्बई आना पड़ा और फिर वे पूरी तरह से मुम्बई के हो कर रह गये। यहाँ उन्होंने स्वयं का लिखा अपना नाटक 15 अगस्त के बाद का मंचन किया। इस नाटक की वजह से उन्हें जो तारीफ मिली, उसने उन्हें फिल्मों का रास्ता दिखा दिया। फिल्मों में उन्हें छोटी-मोटी भूमिकाएँ मिलने लगीं। पहली बार फिल्म औरत में निभाये गये अपने रोल की वजह से उन्होंने अपने इर्द-गिर्द प्रशंसकों की भीड इकट्ठी कर ली।

मौके नहीं गँवाना चाहते विकी

दिग्गज स्टंट डायरेक्टर श्याम कौशल के बेटे अभिनेता विकी कौशल इन दिनों फिल्मी चर्चा के ध्रुवतारे हैं। वह खुद भी मानते हैं कि मीडिया इन दिनों उनकी हर बात को नोटिस कर रहा है। इधर नयी फिल्म- ‘भूत पार्ट-वन : द हांटेड शिप’ के प्रमोशन में मशगूल विकी के मुताबिक, एक वक्त में एक से ज़्यादा फिल्मों में व्यस्त रहने से कई बातें थोड़ी बिगड़ जाती हैं। वह कहते हैं- ‘इस समय मैं पूरी तरह से अपनी नयी फिल्म भूत को लेकर क्रेजी हूँ। यह एक हॉरर फिल्म है। हॉरर फिल्म का मुख्य आकर्ज़ण उसका रहस्य होता है। मुझे लगता है इस फिल्म के राइटर-डायरेक्टर भानुप्रताप सिंह ने बहुत अच्छी तरह से सँभाला। वह नये हैं, पर उनके काम करने के तरीके से मैं बहुत ज़्यादा खुश हूँ। वैसे भी मैं शुरू से ही बिल्कुल अलग-थलग फिल्मों में काम करना चाहता हूँ। इसके बाद की मेरी अगली फिल्मों से भी आपको इसका पता चल जाएगा।’

उनकी इस बात की सच्चाई पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं। भूत के बाद वह अपनी अगली फिल्म सरदार उधम सिंह की बाकी की शूटिंग तेज़ी से पूरी करेंगे। यह फिल्म सम्भवत: 2 अक्टूबर को रिलीज़ होगी। इसके बाद करण जौहर की तख्त और फिर मेघना गुलज़ार की मानेक शाह के फ्लोर पर जाने की बारी है। विकी बताते हैं- ‘मैं किसी भी फिल्म के विषय और अपने िकरदार को लेकर ज़्यादा चिन्तित रहता हूँ। यही वजह थी कि उरी के ठीक बाद मैंने सुजीत सरकार की फिल्म सरदार उधम सिंह को झट से साइन कर लिया था। मौका था, तो इसके कुछ महत्त्वपूर्ण दृश्यों की शूटिंग भी मैंने कर डाली। मैं बहुत सोच-समझकर अपने डायरेक्टर का चयन कर रहा हूँ, जिसमें सुजीत दा जैसे वरिष्ठ और अनुभवी निर्देशकों के साथ भूत के भानुप्रताप जैसे नये निर्देशक भी शामिल हैं। तख्त में करण जौहर के साथ काम करने को भी मैं अहम मानता हूँ।’

इसके साथ ही वह अपने महिला मित्रों की वजह से भी खूब चर्चा में हैं। इन दिनों कैटरीना कैफ के साथ उनकी आत्मीयता को खूब हाइप किया जा रहा है। कई मौकों पर उन्हें साथ देखा जा रहा है। सलमान खान के प्रशंसकों को यह बात थोड़ी नागवार गुज़र रही है। ज़ाहिर है विकी ऐसे किसी सवाल का जवाब देने से बचते हैं। उनका वक्तव्य होता है- ‘मैंने कभी इस बात से इन्कार नहीं किया कि कैट मेरी अच्छी दोस्त हैं। पर मीडिया है कि हमारी दोस्ती को अपने ढंग से पेश कर रहा है। मैं कहाँ तक अपनी सफाई दूँ। वैसे भी इस समय मेरा सारा ध्यान अपनी फिल्मों पर है। मुझे बहुत अच्छे मौके मिल रहे हैं। मैं उन्हें हरगिज़ मिस नहीं करना चाहता हूँ।’

124 साल में पहली बार टले ओलंपिक खेल

कोरोना वायरस के भय से न केवल कामकाज पर, बल्कि खेलों पर भी असर हुआ है। इस खतरनाक वायरस के चलते कई अंतर्राष्ट्रीय खेल टल गये हैं। इनमें कुछ प्रमुख भी थे।

आईओसी ने कोरोना वायरस के चलते ओलंपिक खेलों को एक साल के टाला है। अब यह बात इतिहास में दर्ज हो गयी है कि ओलंपिक खेलों को 124 साल बाद टाला गया है। इससे पहले 1940 में जब जापान के टोक्यो को पहली बार ओलंपिक खेलों की मेज़बानी मिली थी, तब  चीन से युद्ध की वजह से उन्हें रद्द करना पड़ा था। बताया जा रहा है कि 124 साल के इतिहास में तीन बार ओलंपिक खेलों को रद्द किया जा चुका है; लेकिन टाला पहली बार गया है। इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध के चलते 2016 में बर्लिन में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों को रद्द करना पड़ा था। वहीं, 1940 में  टोक्यो में आयोजित होने वाले 1944 में लंदन में होने वाले ओलंपिक खेलों को रद्द करना पड़ा था।

अमेरिका के यूजीन में सन् 2021 में 6 से 15 अगस्त होने वाली वल्र्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप को टाला जा चुका है। यह चैंपियनशिप अब सन् 2022 में होगी। यह फैसला टोक्यो ओलंपिक टलने और उनकी नयी तारीख आने के बाद लिया गया है। बता दें कि टोक्यो गेम्स इसी साल 23 जुलाई से 8 अगस्त तक होने थे, जो कि सन् 2021 तक टाल दिये गये हैं।

वल्र्ड एथलेटिक्स ने ओलंपिक की नयी तारीखों का स्वागत किया है। उसने कहा है कि इससे खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग और स्पर्धा के लिए पर्याप्त समय भी मिल जाएगा। वल्र्ड एथलेटिक्स ने साथ ही कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन से इस बारे में चर्चा करने को कहा है। बता दें कि बॄमघम में सन् 2022 में 27 जुलाई से 7 अगस्त तक कॉमनवेल्थ गेम्स भी होने हैं।

भारत को झटका

इधर, फेडरेशन (सीजीएफ) ने भारत को बड़ा झटका दिया है। दरअसल, सीजीएफ ने सन् 2022 में बॄमघम के कॉमनवेल्थ गेम्स में कॉमनवेल्थ गेम्स में शामिल होने के लिए भारत के खिलाडिय़ों की संख्या को सीमित कर दिया है। यहाँ तक कि सीजीएफ ने इन खेलों के निर्धारित कार्यक्रम में भारत का ज़िक्र शूटिंग और तीरंदाज़ी में किया ही नहीं है। सीजीएफ ने पैरास्पोट्र्स समेत 31 खेलों में खिलाडिय़ों की भागीदारी सुनिश्चित की है, जिसमें शूटिंग और तीरंदाज़ी जैसे भारत के खास खेलों में भारत का ज़िक्र ही नहीं है। सीजीएफ ने 15 खेलों में भारतीय दल की भागीदारी का कोटा मात्र 109 निर्धारित किया है। सीजीएफ ने यह भी तय किया है कि इन खेलों में 45,00 से अधिक खिलाड़ी भाग नहीं ले सकेंगे।

टोक्यो में सम्भव मैराथन और रेस वॉक

कोरोना के चलते ओलंपिक गेम्स के टलने के बीच कुछ खेलों के स्थान भी लगभग तय ही माने जा रहे हैं। मैराथन और रेस वॉक का आयोजन टोक्यो (जापान) में हो सकता है। बताया जा रहा है कि इन खेलों की तैयारी पर जापान अब तक करीब 12.6 अरब डॉलर खर्च कर चुका है। इन खेलों का कुल अनुमानित खर्च करीब 25 अरब डॉलर है। इन खेलों में 11 हज़ार से अधिक खिलाड़ी भाग ले सकते हैं।

इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं

दुनिया में ऐसा कोई धर्म नहीं, जो मानव सेवा की सीख न देता हो। कहा भी गया है कि नर सेवा ही नारायण सेवा है। यही बात हमारे कई संतों ने भी समझायी है। लेकिन मेरा मानना है कि इस दुनिया को भले ही एक ही ईश्वर ने बनाया है; भले ही एक ही धरती पर अरबों लोग रहते हैं; भले ही सबकी मूलभूत ज़रूरतें एक जैसी हैं; भले ही सब एक ही तरह पैदा होते और एक ही तरह मरते हैं; लेकिन दुनिया के सभी लोग न तो कभी भी एक मत हुए हैं और न कभी एकमत हो सकेंगे। क्योंकि हर किसी के जीने के अपने-अपने तरीके हैं। हर किसी का अपना विचार है। हर किसी ने अपने हिसाब से ईश्वर के स्वरूप का बखान किया है और अपने-अपने मतानुसार चन्द किताबों में से किसी एक या कुछ को चुना है, जिन्हें धर्म-ग्रन्थ का नाम दे दिया है। लेकिन दु:ख इस बात का होता है कि हमने इन धर्म-ग्रन्थों की आड़ लेकर मज़हबी दीवारें खड़ी कर दी हैं और असल झगड़े की जड़ यही है।

दरअसल, अब हम इन धर्म-ग्रन्थों की पूजा करते हैं। इनमें क्या सही और क्या गलत बताया गया है? इससे हमारा कोई सरोकार नहीं! मतलब हमें इंसान बनाने की सीख देने वाले धर्म-ग्रन्थों की बात हम नहीं मानते। आिखर क्यों? क्या हम इन धर्म-ग्रन्थों की पूजा करके या इन्हें सीने से चिपकाकर फिरते रहने से इंसान बन सकते हैं? यह ठीक वैसे ही नहीं होगा, जैसे किसी पागल को राजसी वस्त्र पहना दिये जाएँ और उसे राजा समझ लिया जाए।

याद रखिए, अगर आज हम सभी जीव-जन्तुओं में श्रेष्ठ हैं, तो उसका कारण हमारी बुद्धि, हमारा ज्ञान है। अगर ईश्वर ने हमें बुद्धि नहीं दी होती, तो हम भी एक जानवर के सिवाय कुछ नहीं होते। हालाँकि, यह पशुता ही है कि हम एक-दूसरे से नफरत करते हैं। झगड़ा करते हैं। वह भी किस बात पर? या तो जातिवाद को लेकर, या गरीबी-अमीरी का भेद करके या मज़हबों की आड़ लेकर; जिसका कारण बनते हैं- अलग-अलग धर्मों के नाम पर बनाये गये मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे, स्पूत, सिनेसाँग और मज़ार आदि। ये धर्म-स्थल झगड़े का उतना बड़ा कारण नहीं हैं, लेकिन हम एक-दूसरे के धर्म और धर्म-स्थल को तुच्छ और अपने धर्म का विरोधी मानते हैं। जबकि हम यह भूल जाते हैं कि सभी धर्म-स्थल उस एक ही परमात्मा, उस एक ही ईश्वर की उपासना का साधन मात्र हैं। वही ईश्वर, जिसे हमने अपनी-अपनी भाषा में अलग-अलग नामों से जाना और माना है। सभी धर्मों ने भी यही कहा है कि ईश्वर एक है और उसके अलावा कोई दूसरी शक्ति पूरे ब्रह्माण्ड में हीं है। मगर हमारे मन की आँखों पर तो परदा पड़ा हुआ है। यही वजह है कि हम भटके-लड़ते फिर रहे हैं। कई लोग तो अपने ही धर्म के लोगों से भेदभाव करते हैं। कहीं यह भेदभाव सम्पत्ति के अन्तर से पनपता है, तो कहीं-कहीं जातिवाद के नाम पर पनपता है। कभी सोचा है कि अगर हम जितना समय, पैसा, दिमाग मज़हबी भेदभाव बढ़ाने, एक-दूसरे को नीचा दिखाने, एक-दूसरे को गिराने में लगाते हैं, अगर उतना सबकुछ हम एक-दूसरे की भलाई में, एक-दूसरे मदद करने में, प्रकृति के उत्थान में लगाएँ, तो मानव जातिके साथ-साथ समस्त प्राणियों का भला होगा। सभी खुशहाल होंगे। सबका जीवन सरल, सुगम और सफल हो जाएगा।

आज के दौर में जब हर साल कोई-न-कोई नयी बीमारी पैदा हो रही है, क्या हमें अस्पताल बनाने की ज़रूरत नहीं है? क्या हमें डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और शिक्षाविद् पीढिय़ाँ तैयार करने की ज़रूरत नहीं है? आज कोरोना के भय से न केवल पूरी दुनिया के लोग घरों में कैद हैं, बल्कि हमें धाॢमक स्थलों को भी बन्द करना पड़ा। आज अगर इस महामारी से कोई लड़ रहा है, तो वे हैं डॉक्टर। आज अगर कोई धर्म-स्थल मानवसेवा कर पा रहा है, तो वो हैं अस्पताल। क्या हमने कभी विचार किया है कि ये धर्म-स्थल हमारी भावनाओं को संतुष्ट करने, शान्ति प्रदान करने और ईश्वर को याद करने के संसाधन मात्र हैं। ईश्वर ने तो हमें खुद के साथ-साथ निर्बलों की रक्षा और मदद करने का भी आदेश दिया है। अगर आपने किसी भी धर्म-ग्रन्थ को कभी पढ़ा हो, तो इस बात को ज़रूर पढ़ा होगा कि ईश्वर ने हम इंसानों को कर्म करने के लिए पैदा किया है। अगर हम कर्म नहीं करेंगे, तो हमारा जीवन नरक बन जाएगा। इसी तरह अगर हम खुद की रक्षा नहीं करेंगे, तो हम मर जाएँगे। हम पर न केवल जीव-जन्तु हमला कर देंगे, बल्कि अनेक बीमारियाँ हमें तड़पा-तड़पाकर मार देंगी। हमारी भलाई केवल अपनी मदद और अपनी स्वयं की रक्षा करने में ही नहीं है, बल्कि दुनिया भर की मुसीबतों से मिलकर लडऩे में भी है। हमारी ज़िन्दगी का मोल और महत्त्व भी तभी है, जब हम एकजुट होकर आगे बढ़ें। एक-दूसरे की मदद करें। एक-दूसरे के काम आएँ। इसीलिए कहा भी गया है कि दुनिया में इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं। इतिहास गवाह है कि जहाँ-जहाँ और जब-जब लोग स्वार्थ, घृणा और लोभ में आकर एक-दूसरे के बैरी हुए हैं; एक-दूसरे से नफरत करने पर आमादा हुए हैं; तब-तब मानव जाति का विनाश हुआ है या समूल नाश हुआ है।

मानव जाति अगर आज सुरक्षित रह सकी है या पूरी दुनिया पर शासन कर सकी है, तो उसके पीछे की वजह एक साथ मिलकर मोहब्बत से रहना ही है। इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि जब मानव जंगलों में भटकता था, तब भी उसने जंगली जानवरों से बचने और भोजन की व्यवस्था के लिए समूह में रहना शुरू किया था। बाद में वह बस्तियों में रहने रहा और इस तरह आज मनुष्य विजयी है। मगर एक हारा हुए विजेता की तरह। क्योंकि अब मनुष्य आपस में लडक़र मरने पर आमादा है। मेरा एक शे’र है-

‘ज़मीं बाँटी, खुदा बाँटा, ज़ुबाँ-मज़हब सभी बाँटे

मगर इंसान खुद ही बँट गया ये ही हकीकत है’

बांद्रा में जुटे मजदूरों पर लाठीचार्ज, घर भेजे जाने की कर रहे थे मांग

ऐसे वक्त में जब पूरा महाराष्ट्र कोरोना को लेकर बुरी तरह प्रभावित है आज मुंबई उपनगर के बांद्रा स्टेशन के बाहर जामा मस्जिद के पास अचानक हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हो गए जिसके चलते पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।

ऐसा ही नजारा मुंबई ठाणे से सटे मुंब्रा में भी दिखाई दिया। इस बात की खबर फैलते ही मुंबई और आसपास के इलाकों में तनाव फैल गया है, कई इलाकों में कई घंटों से जाम लगा है।

रहने और खाने की दिक्कत के चलते घर लौटना चाहते हैं प्रवासी मजदूर

दरअसल, मजदूरों को आज लॉकडाउन ख़त्म होने की उम्मीद थी। जिसके चलते वह मुंबई उपनगर के बांद्रा स्टेशन पर इक्कठा हो गए थे। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन को तीन मई तक बढ़ाने की पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा घोषणा करने के कुछ ही घंटे बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर यहां मंगलवार को सड़क पर आ गए थे और मांग कर रहे थे कि उन्हें उनके गांव जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था की जाए। ये सभी प्रवासी मजदूर दिहाड़ी हैं।

कोरोना वायरस प्रसार को रोकने के लिए पिछले महीने लॉकडाउन लागू होने के बाद से दिहाड़ी मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। इससे उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि अधिकारियों और एनजीओ ने उनके खाने पीने की व्यवस्था की है, लेकिन उनमें से अधिकतर मजदूर पाबंदियों के चलते पैदा हो रही दिक्कतों की वजह से अपने ‘देस’ वापस जाना चाहते हैं। इनमें ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूर शामिल हैं । इतनी बड़ी भीड़ एक साथ जमा होने के बाद भीड़ को हटाने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। हालांकि कुछ लोगों का दावा है कि लोकल लीडरान और पुलिस हस्तक्षेप के बाद वे वहां से चले गए।

पुलिस और सरकार सवाल के घेरे में!

बांद्रा को हॉटस्पॉट घोषित किया जा चुका है। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में यहां पर लोगों का जुटना चिंताजनक तो है ही साथ साथ भीड़ का जुटना महाराष्ट्र सरकार और पुलिस की प्रशासनिक कार्यक्षमता पर भी सवाल खड़ा करता है। सवाल यह भी है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में लोगों के जुटने की जानकारी जुटाने में पुलिस नाकामयाब क्यों हो गई?

सवाल तो यह भी है कि आखिर लोगों के सामने ऐसी क्या मजबूरी हुई कि वो इतनी बड़ी संख्या में एक जगह इकट्ठा हो गए? क्या सरकार और प्रशासन इनके लिए भोजन का प्रबंध करने में नाकामयाब रही है? सबसे ज्यादा प्रभावित मुंबई में इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हुई?

आदित्य ठाकरे ने पल्ला झाड़ा! पीएम मोदी पर साधा निशाना।

इस मामले में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे ने ट्वीट कर कहा, ‘जिस दिन से ट्रेनों को बंद किया गया है, उसी दिन से राज्य ने ट्रेनों को 24 घंटे और चलाने का अनुरोध किया था ताकि प्रवासी मजदूर घर वापस जा सकें। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जी ने भी इस मुद्दे को पीएम मोदी के साथ हुए वीडियो कॉन्फ्रेंस में उठाया था और साथ ही साथ प्रवासी मजदूरों के लिए एक रोडमैप बनाने का अनुरोध किया था।’

महाराष्ट्र सरकार में सहयोगी के तौर पर जुड़ी एनसीपी के सीनियर लीडर नवाब मलिक ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह पूरी तरह से कर रही है। वह इन लोगों के खाने-पीने का पूरी तरह बंदोबस्त कर रही है। यह अलग बात है कि यह लोग झूठे मैसेज और अफवाहों के चलते गलतफहमी का शिकार बन गए। मुंबई में 20 से 40 लाख मजदूर हैं जिन्हें जाने की इजाजत नहीं दी गई है ।वे यही रहेंगे सरकार उनका ध्यान रख रही है।

विपक्ष ने घेरा महाराष्ट्र सरकार को

वहीं पर विपक्ष ने आज महाराष्ट्र सरकार को घेरने की कोई कसर नहीं छोड़ी। बीजेपी नेता किरीट सोमैया और पूर्व एजुकेशन मिनिस्टर विनोद तावड़े ने इसे सरकार की बड़ी नाकामयाबी बताया।

किरीट सोमैया कहते हैं यदि सरकार उन्हें समय पर राशन व रहने की व्यवस्था करें इस तरह से नहीं करेंगे। सबसे बड़ा सवाल पुलिस की नाकामयाबी का है जब इतने लोग स्टेशन के बाहर जमा हो रहे थे तो वहां की लोकल पुलिस क्या कर रही थी?

एक पूर्व एमएलए जीशान सिद्दीकी बताते हैं कि ये लोग जिन घरों में रहते हैं वो इतने छोटे हैं कि उसमें रहना मुश्किल है। एक छोटे से कमरे में 8 से 10 लोग रह रहे हैं। वह किस तरह की सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे ?उन्हें यह लगता है यहां रहने से बेहतर है अपने गांव में चले जाए ।कम से कम उन्हें इतनी जगह तो मिलेगी और अपने परिवार के साथ तो रहेंगे। हालात यह है कि 1 दिन के भोजन के बाद उन्हें दूसरे दिन के भोजन के लिए तरसना पड़ता है।न नौकरी है न ही पैसे का कोई दूसरा जरिया। इसलिए वह चाहते हैं कि उन्हें पैदल जाना पड़े अपने गांव चले जाएंगे।

आईसीएमआर की स्टडी में बड़ा खुलासा हुआ, चमगादड़ के सैंपल में कोरोना मिला

भारत में चमगादड़ों के सैंपल में कोरोना पाया गया है। सात राज्यों में इसे लेकर आईसीएमआर ने परीक्षण किया था जिससे यह बड़ा खुलासा हुआ है।

आईसीएमआर ने इसे लेकर जो अध्ययन किया था उसमें यह बात सामने आई है। पहले भी यह आशंका जताई जाती रही है कि मानव में कोरोना का विषाणु चमगादड़ से आया है। चीन में इसे लेकर यह कहा गया था जहाँ जानवरों का व्यापार बड़े पैमाने पर होता है। इसे बाद आईसीएमआर ने इसे लेकर अध्ययन किया।

यह अध्ययन आईसीएमआर ने भारत के सात राज्यों में किया। उनके सैंपल लिए गए और उनका अध्ययन किया गया। अब आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने कहा है कि चमगादड़ के इस सैंपल में कोरोना के वायरस (विषाणु) मिले हैं।

आज जबकि कोरोना ने दुनिया भर में तबाही मचा राखी है, इसे बहुत बड़ी खोज कहा जाएगा। वो भी तक जब चीन पर यह आरोप लग रहे हैं कि कोरोना परिवार का कोविड-१९ वायरस उसके वारफेयर कार्यक्रम का हिस्सा है। ऐसे में आईसीएमआर का खुलासा दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए बहुत अहम है।

लॉकडाउन का समय बढ़ाये जाने से कई लोगों में आक्रोश

कोरोना वायरस के कहर को देखते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज अपने संबोधन में साफ कर दिया है कि लॉक डाउन आगामी 3 मई तक जारी रहेगा और 15 अप्रैल से एक सप्ताह तक विशेष सख्ती के साथ नजर रखी जाएगी। ताकि कोरोना वायरस के मामलों को रोका जा सके। प्रधानमंत्री के संबोधन को लेकर पूरे देश को इंतजार था और उम्मीद थी कि लॉक डाउन में राहत के साथ कुछ विशेष छूट अपने घर गांव में आने- जाने को मिल सकती है। पर ऐसा नहीं हो सका। इसके कारण कुछ लोगों को सरकार की नीतियों को लेकर काफी आक्रोश भी है।
तहलका संवाददाता को दिल्ली के व्यापारियों, दिहाड़ी मजदूरों और छात्रों ने बताया कि सरकार अब कोरोना वायरस के नाम पर ज्यादा सख्ती कर रही है। जिसके कारण लोगों में काफी हीन भावना और तनाव वाली स्थिति पैदा हो रही है। अब बात करते हैं दिल्ली के व्यापारियों का लक्ष्मी नगर मेें इलेक्ट्रॉनिक की दुकान चलाने वाले सुरेश ने बताया कि गर्मी के मौसम में ही फ्रिज और ए सी की बिक्री होती है। होली के बाद से दुकान में ग्राहक अपने घरों में ए सी और फ्रिज खरीदकर ले जाते रहे हैं। पर अब तो कोरोना वायरस के कहर के बाद से ही 22 मार्च से उनकी दुकान पूरी तरह से बंद है। उन्होंने अपनी दुकान में जनवरी और फरवरी में काफी इलेक्ट्रॉनिक सामान को जमा कर रखा था, जो वो सालों से करते आ रहे थे। पर इस बार कोरोना वायरस का सितम लोगों को काफी परेशान कर रहा है। सुरेश ने सरकार से अपील की है कि कोरोना वायरस के साथ साथ व्यापारियों के लिये कोई रास्ता निकाले अन्यथा सब बर्बाद हो जाएगा। क्योंकि गर्मी निकल जाने पर कोई फ्रिज और ए सी नहीं खरीदता है। दरियागंज के व्यापारी विजय जैन और सदर बाजार व्यापार संघ के अध्यक्ष राकेश यादव ने बताया कि अब तक के इतिहास में व्यापार में ऐसा घोर अंधकार उन्होंने कभी नहीं देखा है। अगर सरकार व्यापारियों के हित को नजरअंदाज किया और लॉक डाउन बढाते गये तो वो दिन दूर नहीं है, जब व्यापारी सड़कों पर होगा। राकेश यादव का कहना है कि कोई ऐसी नीति सरकार बनाती की लॉक डाउन के दौरान भी व्यापार भी चलता रहता। पर ऐसा नहीं होने से व्यापारियों में काफी हताशा है। उन्होंने बताया कि व्यापारी बाजार का पैसा भी अपने कारोबार में लगाता है। अगर बाजार का पैसा ही व्यापार में लाभ नहीं दे पाया, तो निश्चित ही व्यापारी काफी संकट में आ जाएगा।
दिहाड़ी मजदूर जो आज कल घर में बैठकर इंतजार कर रहे है कि लॉक डाउन खुले और वे अपने घर गांव में जाएं। पर आज प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद वे काफी निराशा में है कि अब क्या किया जाये? दिहाड़ी मजदूर धनी सिंह और सुखदेव ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के रहने वाले है। परिवार सहित दिल्ली में कही भी मकान में चुनाई का काम करते आ रहे हैं और वे दिल्ली में करीब दो साल से बड़े मजे से अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है, तबसे उनको काम के साथ दाम की दिक्कत काफी हो रही है। मजदूर धनी सिंह  का कहना है कि सरकार मजदूरों को घर गांवों में पहुंचाने का इंतजाम करे, अन्यथा वे पैदल ही सही पर दिल्ली को छोड़कर अपने गांवों में चले जाएंगे। क्योंकि गांव में खेती का काम नहीं हो पा रहा है। उन्होंने सरकार पर तानाशाही होने का आरोप लगाते हुए कहा है कि कोरोना वायरस से तो वो बच सकते हैं। पर आर्थिक तंगी के कारण उनको काफी दिक्कत हो सकती है।
छात्रों की अपनी भी अलग पीड़ा है। छात्र राघव पांडेय और अभिषेक गुप्ता का कहना है कि वे सीए फाइनल की परीक्षा को देने होली के बाद दिल्ली आये थे, क्योंकि सीए फाइनल की परीक्षा हर साल मई के पहले सप्ताह में शुरू हो जाती है। पर इस बार तो परीक्षा के होने और न होने को लेकर असंमजस में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में स्पष्ट कर दिया है कि 3 मई तक लॉकडाउन रहेगा । ऐसे में तो आगे भी लॉकडाउन को आगे भी बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि अब देश में जिस गति से कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं। उससे तो यहीं लगता है कि कोरोना वायरस का कहर अभी हाल में रुकने वाला नहीं है। बताते चले राघव पांडेय और अभिषेक गुप्ता दोनो बिहार के गोपाल गंज के रहने वाले है। दोनों छात्रों ने बताया कि उन्होंने बिहार सरकार से अपील की है कि बिहार के छात्रों को बिहार बुलाने के लिये कोई समाधान निकाले जिससे छात्र बिना परेशानी के अपने घर गांव आ सकें। एमबीए की पढ़ाई करने वाले वाले आर के पारासर ने बताया कि सरकार भी गरीबों के साथ अजीब मजाक करती है। कहती है कि कोई मकान मालिक अभी लॉक डाउन के दौरान किरायेदारोें से किराये न मांगे, पर कहीं ऐसा होता है। खासकर दिल्ली जैसे शहर में जहां पर मकान मालिकों का रोजी-रोटी का जरिया ही किराये पर मकान देना है। आरके पारासर का कहना है कि 10 अप्रैल को उनके मकान मालिक ने किराया मांग लिया था, क्योंकि किराया देने की तारीख ही हर महीने को 10 तारीख होती है।

मीडिया को आवश्यक सेवा मानें और सम​र्थन दें सरकारें : यूनेस्को

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने फेक न्यूज को रोकने के लिए सभी सरकारों को समाचार मीडिया को आवश्यक सेवा के तौर पर मान्यता व समर्थन देने को कहा है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में संचार और सूचना संबंधी नीतियों व रणनीतियों के निदेशक गाइ बर्जर ने कहा कि मुश्किल से ही ऐसा कोई इलाका बचा होगा, जहां कोरोना संकट के संबंध में गलत सूचनाएं नहीं पहुंची होंगी।

गलत सूचनाएं कोरोना वायरस की उत्पत्ति से लेकर,  चाव उपाय व इलाज से लेकर सरकारों, कंपनियों, हस्तियों और अन्य द्वारा उठाए जा रहे कदमों तक से जुड़ी हुई हैं। इनसे निपटना भी बेहद जरूरी है। फेक न्यूज सोशल मीडिया व अन्य माध्यम से इस हद तक फैल रही हैं कि कुछ समालोचक इसे ‘गलत सूचनाओं की महामारी’ तक की संज्ञा दे रहे हैं।

बर्जर ने कहा कि यूनेस्को की दुनियाभर की सरकारों से अपील है कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध न लगाएं, जो स्वतंत्र प्रेस की आवश्यक भूमिका को नुकसान पहुंचा सकता है। बल्कि पत्रकारिता को गलत सूचनाओं के खिलाफ एक ताकत के रूप में पहचानें। जब वह ऐसी प्रमाणित सूचनाएं व राय प्रकाशित-प्रसारित करें जो सत्ता में मौजूद लोगों को नागवार गुजरती हो। सरकारें मीडिया को इस वक्त आवश्यक सेवा के तौर पर पहचानें और उनको मान्यता देने के साथ ही सहयोग दें।

उन्होंने कहा, सरकारों को अफवाहें रोकने के क्रम में ज्यादा पारदर्शी होना चाहिए। साथ ही सूचना के अधिकार, कानून और नीतियों के तहत ज्यादा डाटा सामने रखें। इस संकट में लोगों की जानकारी का एक-दूसरे तक पहुंचना बेहद जरूरी है। इसके लिए पेशेवर पत्रकारिता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

लॉक डाउन-२ : फ्लाइट्स, ट्रेन, मेट्रो भी ३ मई तक बंद

आज घोषित लॉक डाउन की १९ दिन की और अवधि यानी ३ मई तक देश में सभी अंतर्राष्टीय, घरेलू उड़ानें, सभी ट्रेनें और मेट्रो भी बंद रहेंगे। पीएम ने आज सुबह ही लॉक डाउन को बढ़ाने का ऐलान किया है। इस बीच कांग्रेस ने लॉक डाउन ३ मई तक बढ़ाने का स्वागत किया है लेकिन गरीबों और मजदूरों के लिए पैकेज जारी करने की मांग की है।

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने मोदी के देश के नाम संबोधन के बाद कहा कि सभी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स ३ मई तक बंद रहेंगी। मंत्रालय ने कहा कि सभी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स भी ३ मई की रात ११.५९ बजे तक बंद रहेंगी। इससे पहले सभी उड़ानें १४ अप्रैल तक के लिए बंद थी, लेकिन अब लॉकडाउन पार्ट-२ के ऐलान के बाद फ्लाइट भी बंद रहेंगी।

उधर रेलवे का बयान है कि सभी पैसेंजर ट्रेन लॉकडाउन जारी रहने तक ही बंद रहेंगी यानी ३ मई तक कोई भी पैसेंजर ट्रेन नहीं चलेगी। मेट्रो सेवा भी पहले की तरह ही बंद रहेगी। बसों को लेकर हालांकि, अभी कोई जानकारी नहीं है। वैसे वर्तमान परिस्थिति में बसों के चलने की संभावना कतई नहीं है। परिवहन खोलने को लेकर मुख्यमंत्रियों ने भी आना किया था।

उधर रबी की फसल कटाई का वक्त है लिहाजा किसानों के लिए दिक्क्तें हैं। न  मजदूर मिल पा रहे हैं न ही मशीनों की आवाजाही है। पीएम ने आज जरूर कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर प्रयास कर रही हैं कि किसानों को कम से कम दिक्कत हो लेकिन इसका कोइ रास्ता नहीं सुझाया गया है।

देश में बढ़ रहे कोविड-19 के मामले, लॉकडाउन बढ़ते ही बिफरे लोग

देश में 14 अप्रैल तक कोरोना वायरस (कोविड-19) के 10 हज़ार 360 से अधिक मामलों की पुष्टि हो चुकी है। सरकारी सूत्रों की मानें, तो यह संख्या 10383 है। समस्या यह है कि अभी देश में नये मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसी के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन पीरियड 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री के लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा के बाद लोग ग़ुस्सा निकालने लगे हैं। हालाँकि कुछ लोगों का कहना है कि कोरोना पीड़ितों की संख्या काफ़ी ज्यादा है और देश को इस बड़े संकट से इसी तरह बचाया जा सकता है, इसीलिए सरकार को लॉकडाउन का समय बढ़ाना पड़ा। वहीं कुछ लोग सरकार द्वारा कोई ठोस क़दम न उठाये जाने पर प्रधानमंत्री से सवाल पूछ रहे हैं। विदित हो कि 14 अप्रैल की सुबह प्रधानमंत्री कार्यालय के ट्वीटर अकाउंट पर उन्होंने ट्वीट किया- ‘सभी का यही सुझाव है कि लॉकडाउन का बढ़ाया जाए। कई राज्य तो पहले से ही लॉकडाउन को बढ़ाने का फ़ैसला कर चुके हैं। साथियो, सारे सुझावों को ध्यान में रखते हुए ये तय किया गया है कि भारत में लॉकडाउन को अब 3 मई तक और बढ़ाना पड़ेगा : पीएम’ इसके बाद उनका दूसरा ट्वीट आया, जिसमें लिखा- ‘यानी 3 मई तक हम सभी को, हर देशवासी को लॉकडाउन का उसी तरह पालन करना है, जैसे हम करते आ रहे हैं : पीएम’  इस मामले में कई राजनीतिज्ञों और कलाकारों ने प्रधानमंत्री पर टिप्पणी करनी शुरू कर दी है। कुछ ने प्रधानमंत्री पर सरकार की नाकामी छिपाने का आरोप लगाया है, तो कई ने उनके इस निर्णय का स्वागत किया है। वहीं सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर निंदा और बहस हो रही है। यूँ तो प्रधानमंत्री के देश से मुख़ातिब होने से पहले ही कुछ लोगों ने टिप्णियाँ शुरू कर दी थीं। उनके ख़ास प्रशंसक अनुपम ख़ैर ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर लिखा कि मुझे नहीं लगता हम में से किसी ने भी अपने जीवनकाल में कभी भी सुबह के 10 बजने का इतनी बेसब्री से इंतज़ार किया होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या बोलेंगे 99 प्रतिशत लोगों को इसका अंदाज़ा है। लेकिन देश के प्रधान सेवक हमें सांत्वना देंगे और थोड़ी ऊर्जा भी। ये भी हम सब जानते हैं। अनुपम खैर का यह ट्वीट प्रधानमंत्री पर तंज जैसा लगता है। हालाँकि, सही भी है। क्योंकि, प्रधानमंत्री ने वाक़ई हमें सांत्वना दी और थोड़ा-सा हौंसला बढ़ाया यानी ऊर्जा दी। बाक़ी कुछ भी नहीं।

महाराष्ट्र 121 और उत्तर प्रदेश में 110 नये मामले

इधर कोरोना वायरस के पीड़ितों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 14 अप्रैल की दोपहर तक देश भर में 1200 से अधिक नये मामले सामने आ चुके हैं और 20 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। महाराष्ट्र में नये मामलों की संख्या सबसे अधिक है। 14 अप्रैल की दोपहर तक कुल 121 नये मामलों की पुष्टि के साथ यहाँ कुल कोरोना वायरस पीड़ित मरीज़ों की संख्या 2455 पर पहुँच चुकी है। वहीं उत्तर प्रदेश में 110 नये मामले सामने आये हैं। इस समय महाराष्ट्र सबसे ज़्यादा संवेदनशील राज्य है। अकेले मुम्बई में 24 घंटे में 92 नये मामलों की पुष्टि हुई है। इनमें नवी मुम्बई में 13, ठाणे में 10, वसाई विरार में 3 और रायगढ़ में एक मामले की पुष्टि हुई है। वहीं, उत्तर प्रदेश में 2634 कोविड-19 से पीड़ित संग्दिधों की जाँच की गयी, जिसमें 110 मरीज पॉजिटिव मिले। इसी के साथ उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमित लोगों की संख्या 650 से अधिक हो चुकी है।
दिल्ली में भी कोरोना वायरस के संग्धिग्धों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है। 13 अप्रैल तक यहाँ कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 1510 हो गयी थी। सोमवार यानी 13 अप्रैल को देश की राजधानी में 356 नये मामले सामने आये थे। दिल्ली में अब तक 28 मौते हो चुकी हैं। वहीं 30 लोग ठीक भी हुए हैं। यहाँ अभी जाँच जारी है। दिल्ली सरकार सड़कों पर सैनिटाइजर का छिड़काव भी करा रही है।
अगर दुनिया की बात करे, तो अभी तक कुल 19 लाख 20 हज़ार 918 मामलों की दुनिया भर में पुष्टि की जा चुकी है। इनमें से 4 लाख 53 हज़ार 289 लोग ठीक हो चुके हैं और एक लाख 19 हज़ार 686 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है।

पीएम मोदी ने कोरोनावायरस को हराने के लिए देशवासियों से सात संकल्प लेने की अपील की

पीएम मोदी ने कोरोनावायरस को हराने के लिए देशवासियों से सात संकल्प लेने के की अपील की है पीएम मोदी ने कहा कि ये संकल्प भारत से कोरोनावायरस को खत्म कर देगा।

पीएम मोदी के सात संकल्प:

1. अपने घर के बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें- विशेषकर ऐसे व्यक्ति जिन्हें पुरानी बीमारी हो, उन्हें कोरोना से बहुत बचाकर रखना है।

2. लॉकडाउन और सोशल डिस्टन्सिंग की लक्ष्मण रेखा का पूरी तरह पालन करें , घर में बने फेसकवर या मास्क का अनिवार्य रूप से उपयोग करें।

3. अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए, आयुष मंत्रालय द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें, गर्म पानी, काढ़ा, इनका निरंतर सेवन करें।

4. कोरोनावायरस संक्रमण फैलने को रोकने के लिए आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करें।

5. जितना हो सके गरीब परिवार की देखरेख करें, उनकी भोजन की आवश्यक्ता पूरी करें।

6.आप अपने व्यवसाय, अपने उद्योग में अपने साथ काम करे लोगों के प्रति संवेदना रखें, किसी को नौकरी से न निकालें।

7. कोरोना वारियर्स (डॉक्टर, पुलिस और सफाईकर्मी) का सम्मान करें, उनका आदर करें।