Home Blog Page 831

जाँच के दावे, बचाव के रास्ते

दुनिया की सबसे खतरनाक और खौफनाक बीमारी बन चुके कोरोना वायरस का इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है। इसका तोड़ या इलाज तो फिलहाल नहीं मिला है, लेकिन डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने इस वायरस की आसान जाँच के दावे करने शुरू कर दिये हैं। हालाँकि, दुनिया भर में इस वायरस से निपटने के लिए की गयी खोजों में भी अभी एक ही नतीजा सामने आ रहा है और वह है कोरोना वायरस की चपेट में आने से खुद को बचाना। इसी बीच भारत में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और अखिल भारतीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् (एआईसीटीई) ने कोराना वायरस पर विभिन्न रिसर्च और प्रयोगात्मक सफलता के बाद कुछ खोजों और जाँच के साधन ईजाद करने का दावा किया है। खोजकर्ताओं ने दावा किया है कि खोज के ज़रिये ईजाद किये गये सभी साधन आसानी से उपलब्ध हैं। एआईसीटीई की मानें, तो मुम्बई के एक स्टार्टअप संस्था अभया इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी एलएलपी ने एक डिवाइस बनायी है, जो महज़ 5 मिनट में कोरोना वायरस के लक्षणों की 90 फीसदी सही जानकारी दे सकती है। यह डिवाइस हृदय की गति (दिल की धडक़न) और फेफड़ों में पाये जाने वाले तरल पदार्थ की जाँच करती है।

अभया इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी एलएलपी स्टार्टअप ने कहा है कि इस डिवाइस में हार्टबीट नाम का एक छोटा-सा उपकरण है, जो छाती पर लगाया जाता है। यह डिवाइस धडक़नों की गिनती और फेफड़ों में मौज़ूद तरल पदार्थ का आकलन करता है। इसका डाटा मोबाइल एप के ज़रिये प्राप्त किया जाता है। एप मरीज़ तथा डॉक्टर के पास होता है। इसके ज़रिये डॉक्टर दूर बैठकर भी जाँच रिपोर्ट प्राप्त कर सकता है।

ऑक्सीजन सप्लाई के लिए बनी नयी डिवाइस

कहते हैं कि कभी-कभी कुछ ढूँढो और कुछ मिल जाता है। इसी तरह इस बार जब कोरोना की दवा और पीडि़तों के इलाज में ज़रूरी चीज़ों की खोज की जा रही है, एक ऐसी डिवाइस की खोज सामने आयी है, जो ऑक्सीजन सिलेंडर की तरह मरीज़ को ऑक्सीजन देने के काम आयेगी। यह डिवाइस सेना के लिए रोबोट बनाने वाले पुणे के स्टार्टअप कॉम्बेट रोबोटिक्स इंडिया ने बनायी है। वेंटिलेटर की तरह ऑक्सीजन देने वाली अंबू एयर नाम की इस डिवाइस से कोरोना पीडि़तों को ऑक्सीजन सप्लाई की जाने की उम्मीद जगी है। एमएचआरडी के मुताबिक, इस खोज के बारे में सभी जानकारियाँ डीएसटी और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट बोर्ड से साझा की गयी हैं। पुणे की इस कम्पनी ने कहा है कि इस डिवाइस को ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री में उपयोग होने वाले पाट्र्स की मदद से बनाया गया है। इस डिवाइस की खासियत यह है कि यह बिजली और बैटरी दोनों से चलती है।

बीएचयू का 100 फीसदी सही जाँच का दावा

इधर, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस की 100 फीसदी जाँच का दावा किया है। यह जाँच का दावा बीएचयू में शोध-छात्राओं द्वारा रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज पॉलीमर चेन रिएक्शन (आरटी- पीसीआर) नाम की एक तकनीक विकसित किये जाने के बाद किया गया है। शोध छात्राओं की मदद से इसे डिपार्टमेंट ऑफ मॉलीकुलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स की प्रो. गीता राय ने तैयार किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक के ज़रिये एक से चार घंटे के अन्दर जाँच रिपोर्ट आ जाती है। इस तकनीक से कोरोना वायरस के प्रोटीन की जाँच की जाती है। दावे में कहा गया है कि आरटी-पीसीआर केवल ऐसे प्रोटीन सिक्वेंस को पकड़ती है, जो सिर्फ कोविड-19 (कोरोना वायरस) में मौज़ूद है, इसलिए इसका 100 फीसदी सही परिणाम आयेगा। प्रो. गीता राय ने तकनीक का पेटेंट फाइल कर दिया है। भारतीय पेटेंट कार्यालय के मुताबिक, देश में इस सिद्धांत पर आधारित अब तक ऐसी कोई किट नहीं बनी है, जो कि ऐसे प्रोटीन सिक्वेंस की जाँच कर सके। सूत्रों की मानें, तो प्रो. गीता राय ने जल्द-से-जल्द कोरोना पीडि़तों की जाँच में तेज़ी लाने और राहत पहुँचाने के मद्देनज़र सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) और इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च ऑफ इंडिया (आईसीएमआर) को इस तकनीक का प्रस्ताव भेज दिया है। बताया जा रहा है कि इस तकनीक से कोरोना वायरस की जाँच आसान और सस्ती होगी। प्रो. गीता राय के मुताबिक, इस तकनीक के माध्यम से आसानी से अस्पतालों में उपलब्ध जाँच मशीनों के ज़रिये कोरोना वायरस की जाँच की जा सकती है।

न जाने कौन है पीडि़त? इसलिए दूर रहना ही एक मात्र रास्ता!

हाल ही में एक मेडिकल स्टोर पर दवा विक्रेता में कोरोना वायरस संदिग्ध पाया गया। समय पर पता चलते ही उस दवा विक्रेता को चिकित्सकों की निगरानी में भेज दिया गया। मेडिकल को भी सील कर दिया गया। हालाँकि, वह दवा विक्रेता निगेटिव निकला और उसे छोड़ दिया गया, मेडिकल भी अब खुल रहा है। दरअसल, कोरोना वायरस के पीडि़त का पता शुरू के पाँच-छ: दिन तक नहीं चल पाता। ऐसे में खौफ यही रहता है कि अगर कोई किसी कोरोना वायरस पीडि़त के सम्पर्क में गलती से भी आ गया, तो उसे तो वायरस होगा ही, उसके भी सम्पर्क में आने वालों को हो जाएगा।

अत: दूसरे के सम्पर्क से आने से बचाव ही खुद को और अपने सम्बन्धियों को बचाने का सबसे बढिय़ा रास्ता है। भारत में लॉकडाउन इसी के मद्देनज़र किया गया है। लेकिन अफसोस कुछ लोग मजबूरी में, तो कुछ लोग जानबूझकर इसका पालन नहीं कर रहे हैं। जानबूझकर लॉकडाउन तोडऩे के कई बड़े उदाहरण हमारे सामने आये। लॉकडाउन तोडऩे की इन घटनाओं ने न केवल कोरोना पीडि़तों की संख्या बढ़ायी, बल्कि बाकी लोगों में खौफ भी पैदा किया। इसके उदाहरणों में कनिका कपूर की पार्टी, मध्य प्रदेश में सरकार गठन के दौरान इकट्ठे लोग, निजामुद्दीन मरकज में इकट्ठे लोग और अपने घर जाने के लिए सडक़ों पर उतरे भूखे और मजबूर लोगों की भीड़ को लिया जा सकता है।

प्रकृति का बदला!

दुनिया में गहरी निराशा और कयामत जैसे हालात के बीच एक सुखद घटना भी हुई है। लॉकडाउन ने प्रकृति को खुद को फिर से सँवारने का अवसर दिया है। धरती और आसमान के बीच प्रदूषण से बनने वाले धुएँ और धुन्ध की परत कहीं गुम हो चुकी है और नीला आसमान फिर से चमकने लगा है। समुद्री जीवन मानो फिर से जीवंत हो उठा है। पक्षियों का कलरव प्रकृति में नया रंग भरने लगा है और जंगली जीव भी बिना भय के विचरण करने लगे हैं। उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरें बताती हैं कि प्रकृति पुन: जीवंत होने के संकेत दे रही है। कोविड-19 आँखें खोलने वाली घटना है, जो यह संकेत देती है कि यदि हम मानव अपना लालच त्याग दें, तो माँ स्वरूप पृथ्वी कैसे अपना शृंगार कर सकती है, जो कि हमारे लिए ही हितकारी है।

अब यह दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है कि पशु व्यापार ने संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ा दिया है। हाल के वर्षों में इबोला, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मेर्स), रिफ्ट वैली बुखार, गम्भीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (सार्स), वेस्ट नाइल वायरस और ज़ीका वायरस सभी जानवरों से मनुष्यों तक पहुँचे। ये पशु जनित रोग हैं। माना जाता है कि यह संक्रमण (कोरोना वायरस) भी चीन के वुहान में उस बाज़ार से निकला, जहाँ जानवरों का व्यापार किया जाता है। यह सच्चाई सामने आने लगी है कि यह वायरस जानवरों में था और उनका मांस, खासतौर से कच्चा मांस खाने से मनुष्यों में पहुँच गया। यूँ तो कई जानवरों और अन्य वन प्रजातियों में खतरनाक वायरस हैं, लेकिन जैव विविधता इन्हें जंगलों तक सीमित और मानव परिवेश से दूर रखने का मार्ग खोलती है।

भेडिय़ों के पिल्लों से लेकर चूहों, लोमडिय़ों से लेकर ऊदबिलाव और बिल्ली, घोड़ों से लेकर सूअर तथा चमगादड़ जैसी वन्य प्रजातियों के व्यापार के चलते मानव में यह वायरस प्रविष्ट हुआ है। वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि निपाह और हेंड्रा जैसे घातक विषाणु चमगादड़ से सूअर, घोड़े और फिर इंसान में पहुँचे हैं। कोविड-19 ने फिर एक बार चेतावनी दी है कि यदि हमने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया और भोजन के लिए वन्य प्राणियों को मारा, तो हमें ऐसे ही भयंकर नतीजों के लिए तैयार रहना चाहिए। मौज़ूदा महामारी ने बड़ी संख्या में मानव जीवन का नुकसान के साथ-साथ ही आर्थिक तबाही भी की है। संकेत साफ हैं कि हमें वनों और वन्यजीवों से छेड़छाड़ बन्द कर देनी होगी। हालाँकि, कोरोना नामक महामारी किसी को नहीं छोड़ रही, परन्तु यह भी एक तथ्य है कि गरीब इससे सबसे अधिक पीडि़त हुए हैं। किसान, श्रमिक और व्यवसाय सभी गम्भीर त्रासदी की चपेट में हैं, लेकिन हम उन अदृश्य हाथों को भूल गये हैं, जो कपड़े इस्त्री करते हैं; सीमांत दुकानदार हैं; कोने पर पान आदि बेचने वाले हैं; मोची, दर्जी, नाई, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, माली हैं; रिक्शा, कैब और ऑटो रिक्शा चालक हैं; सेविकाएँ (मेड्स) हैं; ऐसे व्यक्ति जो हमें चलती बसों, ट्रेनों और गलियों में गाकर मनोरंजन या दूसरी सेवाएँ प्रदान करते हैंं। करोड़ों हाथ, जो पुरुष और महिलाओं के रूप में अर्थ-व्यवस्था के सबसे निचले स्तर के मज़बूत पहिये हैं; गायब हो गये हैं। ये सब सरकारों और किसी सहायता समूह की मदद के बिना हैं। यह वो वर्ग है, जो रोज़ कमाता है और गुज़ारा करता है। आज यही वर्ग वास्तविक संकट में है। लेकिन हमने इन लोगों द्वारा अपने बच्चों, महिलाओं या बीमार परिजनों के लिए भीख माँगने का कोई उदाहरण नहीं देखा। आइए, इन लोगों को खयाल रखें, जो सच में हमारे शहरी जीवन की गाड़ी के वास्तविक पहिये हैं।

डॉक्टरों-नर्सों का सम्मान करना सीखें

दुनिया में कोरोना महामारी का प्रकोप किस कदर जारी है कि काफी कोशिशों के बावजूद इस वैश्विक महामारी से संक्रमित मरीज़ों व मरने वालों की संख्या में हर पल वृद्धि हो रही है। अमेरिका जो कि विश्व में सुपर पॉवर कहलाता है, वहाँ के हालात डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं। हालात यह हैं कि वे डॉक्टर और नर्सें तक कोरोना वायरस नामक महामारी की चपेट से नहीं बच पा रहे हैं, जो पूरी सुरक्षा और सावधानी के साथ इससे संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे हैं। हालाँकि ये डॉक्टर और नर्सें दिन-रात कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज करने में जुटे हुए हैं। लेकिन दु:खद कि कई डॉक्टरों, नर्सों की इस दौरान कोरोना वायरस की चपेट में आने से मौत भी हो गयी है। इस खतरनाक वायरस का इलाज ढूँढने की कोशिशें जारी हैं, पर कोई ठोस इलाज अभी तक नहीं मिला है।

ज़िन्दगी बचाने वाले भी सुरक्षित नहीं

चीन में इस वायरस के बारे में बताने वाले डॉक्टर की मौत हो गयी थी। इटली में भी करीब 100 डॉक्टर व नर्सों की कोरोना से मौत हो गयी और करीब 12 हज़ार स्वास्थ्यकर्मी कोरोना से संक्रमित हो गये हैं। स्पेन में करीब 15 हज़ार स्वास्थ्यकर्मियों पर कोरोना वायरस ने हमला बोल दिया है। अमेरिका में भी स्वास्थ्यकर्मी कोरोना की चपेट में हैं। भारत में भी डॉक्टर और चिकित्साकर्मी कोरोना की चपेट में आ रहे हैं, यहाँ भी मौतें हुई हैं। कई अस्पताल के डॉक्टरों व नर्सों को क्वारंटाइन में भेजना पड़ा है।

सेवा की भावना दे रही हिम्मत

दुनिया भर के डॉक्टर, नर्स कोरोना इलाज के दौरान पीपीई की कमी का सामना करते हुए भी कोरोना संक्रमितों के इलाज में अपनी सेवा जारी रखे हुए हैं। डॉक्टरों और नर्सों को शायद यह हिम्मत उनके पेशे में सिखायी गयी सेवा की भावना से ही मिल रही है। ऐसे में हमें न केवल उनका सम्मान करना चाहिए, बल्कि उनकी मदद भी करनी चाहिए। लेकिन डॉक्टरों-नर्सों के प्रति कोरोना संक्रमितों की बदसलूकी और समाज का अछूत नज़रिये ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यह गलत है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि स्वास्थ्य आपातकाल की इस घड़ी में डॉक्टरों, नर्सों की ज़रूरत सबसे अधिक है और पूरा विश्व पहले से ही डॉक्टरों, नर्सों की कमी से जूझ रहा है।

डॉक्टरों से दुव्र्यवहार ठीक नहीं

भारत आबादी में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है और कोरोना महामारी का सामना कर रहा है। यहाँ समाज के द्वारा डॉक्टरों, नर्सों के प्रति दुव्र्यवहार, अछूत रवैया या उनसे दूरी बनाने वाली खबरें चिन्ताजनक हैं। यूँ तो इसकी शुरुआत दिल्ली व अन्य राज्यों की इस खबर से हुई थी कि कई मकान मालिक किराये पर रहने वाले डॉक्टरों को घर खाली करने को मजबूर कर रहे हैं। मकान मालिकों को आशंका थी कि डॉक्टर के ज़रिये कोरोना वायरस उनके घर में न आ जाए।

गुरुद्वारे की पहल सराहनीय

जब मकान मालिकों द्वारा डॉक्टरों को निकालने की बात सामने आयी, तो दिल्ली में दिल्ली गुरुद्वारा प्रबधंक कमेटी और पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रंबधक कमेटी ने सराहनीय पहल की। इन कमेटियों ने गुरुद्वारा प्रांगण में बने आवासों में डॉक्टरों के रहने के लिए व्यवस्था करने का ऐलान कर दिया।

आधी-अधूरी सी सरकारी पहल

डॉक्टरों और चिकित्साकॢमयों को घरों से निकालने की खबर पर सरकार थोड़ी सख्त हुई। राज्य सरकारों ने मकान मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को भी कहा, कहीं-कहीं कार्रवाई हुई भी; लेकिन कोई खास नतीजा नहीं निकला। हाल ही में बिहार के बेगूसराय में एक महिला नर्स जब अस्पताल से घर लौटी, तो मोहल्ले वालों ने उसे घेर लिया और उसके वहाँ रहने का विरोध किया। उन्होंने बताया कि अब वह अपनी नर्स सहकर्मियों के साथ ठहरी हुई हैं और ड्यटी पर आती हैं। बिहार के ही नांलदा मेडिकल कॉलेज में केवल कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज हो रहा है। वहाँ काम करने वाली एक महिला नर्स ने बताया कि उसका अपना मकान है, लिहाज़ा उन्हें कोई दिक्कत नहीं हो रही है। लेकिन उसकी कई सहकर्मी, जो किराये पर रहती थीं; उनसे मकान मालिकों ने यह कहकर घर खाली करवा लिये कि जब कोरोना खत्म हो जाए, तब लौट आना। उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद के एमजीएम अस्पताल में क्वारंटाइन में रखे गये 13 कोरोना संदिग्धों पर महिला मेडिकल स्टाफ के साथ अश्लील हरकतें करने के आरोप लगने वाली खबरें भी सामने आयीं। इस अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने पुलिस को दी गयी शिकायत में उन 13 लोगों पर वार्ड के अन्दर अश्लील गाने सुनने, महिला कर्मचारियों से बीड़ी-सिगरेट माँगने, नर्स व अन्य महिला मेडिकल स्टाफ को देखकर फब्तियाँ कसने का भी आरोप लगाया है। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उस वार्ड में पुरुष स्वास्थ्य कर्मियों को तैनात करने का आदेश जारी किया। पुलिस ने भी ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। हालाँकि सरकारों की यह पहल आधी-अधूरी महसूस होती है। क्योंकि डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा से लेकर उनको सुरक्षित रखने तक की ज़िम्मेदारी सरकारों की है।

विदेशियों का सम्मानजनक नज़रिया

डॉक्टरों-नर्सों से अभद्रता को लेकर एनडीटीवी के प्राइम टाइम कार्यक्रम में रवीश कुमार ने इंग्लैड की डॉक्टर वीणा झा से बातचीत की। डॉक्टर वीणा ने बताया कि वहाँ के लोगों का डॉक्टरों, नर्सों के प्रति व्यवहार अच्छा है। सरकार भी उनका ध्यान रख रही है, जैसे कि सुपर मार्केट में सामान लाने के लिए डॉक्टरों को लाइन में नहीं लगना पड़ता। उन्हें तुरन्त सामान दे दिया जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्यकर्मियों पर हो रहे हमलों की निन्दा की है और दुनिया को स्वस्थ रखने में डॉक्टरों, नर्सों के योगदान के महत्त्व को समझने की लोगों से अपील की है।

आखिर नर्सों का क्यों नहीं होता सम्मान?

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाता है। इसका मकसद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाना है। इस बार 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कोरोना महामारी के संकट के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नर्सों व मिडवाइफ की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए टेग लाइन दी- ‘स्पोर्ट द नर्सेस एंड मिडवाइफ’। यह कड़ुवी हकीकत है कि नर्सों व मिडवाइफ के काम को कमतर आँका जाता है और उन्हें उतना सम्मान नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। जबकि स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों और मिडवाइफ की अहम भूमिका होती है। मरीज़ों की देखभाल करने में यह पहले और अकेले अहम् बिन्दु हैं। ज़्यादातर स्थितियों में इन्हें फ्रंटलाइन स्टाफ के तौर पर काम करना होता है। क्योंकि किसी भी स्वास्थ्य व्यवस्था में ज़्यादातर इन्हें ही मरीज़ों के सम्पर्क में रहना होता है और उनकी देखभाल में अधिक समय लगाना पड़ता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की बेहतर पहल

स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों को अहम कड़ी के रूप में स्वीकारते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में विश्व में इनकी स्थिति पर द स्टेट ऑफ द वल्डर्स नॄसग 2020 रिपोर्ट जारी की है। यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है। यह भी बता दें कि 2020 में विश्व प्रसिद्ध फ्लोरेंस नाइटिगेल के जन्म के 200 साल पूरे हो रहे हैं। उन्हें आधुनिक नॄसग आन्दोलन की जन्मदाता के तौर पर जाना जाता है। उनकी याद में विश्व स्वास्थ्य संगठन 2020 को अंतर्राष्ट्रीय नर्स व मिडवाइफ वर्ष के तौर पर मना रहा है।

नर्सों की कमी चिन्ताजनक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘दुनिया भर में 60 लाख नर्सों की कमी है। अगर विश्व को 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को हासिल करना है, तो नर्सों व मिडवाइफ की भर्ती बढ़ाने, उन्हें प्रशिक्षण और ढाँचागत सुविधाएँ देने, उनके वेतन में वृद्धि करने और उन्हें सुरक्षित माहौल देने के लिए राष्ट्रों को निवेश करना होगा। नर्सें व मिडवाइफ स्वास्थ्य तंत्र की मज़बूत कड़ी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2020 में हम हर राष्ट्र से नर्सों व मिडवाइफ पर निवेश करने का आह्वान किया है। गौरतलब हैं कि 2015 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्थायी विकास लक्ष्य यानी एसडीजी को 2030 तक हासिल करने के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी। 2030 तक सभी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच हो, इसके लिए ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार वाली सूची में नर्सों की संख्या में इजाफे वाला बिन्दु भी अहम् है। अगर 2030 तक सभी देशों में नर्सों की कमी को दूर करना है, तो इसके लिए हर साल ग्रेजुएट नर्सों की दर को औसतन 8 फीसदी बढ़ाना होगा। दुनिया भर में 27.9 मिलियन नर्सें हैं, जिसमें 19.3 मिलियन पेशेवर नर्स हैं। 2030 तक विश्व को 5.9 मिलियन और नर्सों की ज़रूरत होगी। 80 फीसदी नर्सें विश्व की 50 फीसदी आबादी की सेवा में रहती हैं। विकसित मुल्कों में नर्सों की तादाद विकासशील मुल्कों की तुलना में बेहतर है। अफ्रीका में नर्सों की बहुत कमी है। भारत में 3.07 पंजीकृत नर्सें हैं। यूँ तो भारत से बड़ी संख्या में नर्सों का पलायन अमेरिका, इंग्लेड, कनाडा, आस्ट्रेलिया, खाड़ी के मुल्कों में होता है, लेकिन यहाँ नर्सों की भारी कमी है। नर्सों की कमी से स्वास्थ्य सेवा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मरीज़ों की देखभाल सही से नहीं हो पाती, सेवाओं की क्षमता, स्वास्थ्य गुणवत्ता प्रभावित होती है। अंतत: इसका बोझ पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर पड़ता है और रोगी को पूर्ण स्वस्थ करने वाला नतीजा भी हासिल नहीं हो पाता। नर्सों पर अधिक कार्यभार रहता है, जिसका असर उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। अब देखना यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा नर्सों व मिडवाइफ के लिए की गयी सिफारिशों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कितनी तव्ज्जोह देता है। अगर दुनिया के राष्ट्र 2020 में इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाते हैं, तो यह फ्लोरेंस नाइटिंगेल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

कोविड-19 : समाचार पत्रों की मुसीबत और संघर्ष

इन दिनों समाचार पत्रों को अपने पाठक सूचकांक को बनाये रखने के लिए एक कठिन दौर का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि कोरोना वायरस के भय से भारत में 21 दिन का लॉकडाउन ने समाचार पत्रों (अखबारों) के पाठकों की संख्या घटायी है। क्योंकि यह अफवाह थी कि अखबार का कागज़ भी  कोरोना वायरस को आप तक पहुँचा सकता है। कई प्रकाशकों को इस स्थिति ने अपने अखबार का प्रसार कम करने को मजबूर कर दिया। हॉकर भी डरे, फुटपाथ या दुकानों में पत्र-पत्रिका बेचने वालों को घर बैठना पड़ा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में अखबार पहुँचने की समस्या आने लगी है। हालाँकि सभी पत्रकारिता संस्थान खुल रहे हैं, पर प्रकाशन का काम काफी कम हुआ है। क्योंकि खपत ही कम हो गयी।

ममता बनर्जी ने दिखायी अक्लमंदी

अखबारों से कोरोना वायरस फैलने की अफवाह को समझते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अक्लमंदी दिखाते हुए इस व्यवसाय को उभारे रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। जब उन्हें यह पता चला कि हॉकर्स यूनियन अखबारों को नहीं उठा रही, तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिये लोगों से कहा- ‘मुझे जानकारी मिली है कि कई हॉकर अखबार नहीं उठा रहे हैं। मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि इस आपातकालीन स्थिति में समाचार पत्रों को छूट दी गयी है।’ अगले दिन मुख्यमंत्री ने फिर कहा कि आप सभी सही खबरों के लिए अखबार पढ़ें। उनका संदेश मीडिया के लिए संजीवनी जैसा था। जब यह संदेश हॉकरों और आम लोगों तक पहुँचा, तो हॉकर भी अपने काम पर वापस आने लगे और पाठक भी अखबार से फिर जुडऩे लगे, जिससे अखबारों का नियमित प्रकाशन जारी रहा। अब अखबार को लेकर वहाँ स्थिति लगभग सामान्य है, अन्यथा एक स्थिति तो यह आयी थी कि कुछ छोटे अखबारों ने प्रकाशन बन्द कर दिया था। एक बड़े अखबार ने भी दो दिन तक प्रकाशन नहीं किया था।

समाचार पत्र सुरक्षित : डब्ल्यूएचओ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दावा किया है कि अखबार अभी भी किसी के स्पर्श करने के लिहाज़ से सुरक्षित हैं। प्रिंट मीडिया आउटलेट में उपयोग किये जाने वाले कागज़ात अत्यधिक स्वचालित मिलों में उत्पादित किये जाते हैं और इस प्रक्रिया को शायद ही मानव हाथों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, किसी  संक्रमित व्यक्ति के वाणिज्यिक वस्तुओं को दूषित करने की सम्भावना कम है। फिर भी शुरुआत में फैली एक अफवाह के बाद प्रिंट संस्करणों के प्रकाशन के निलंबन की खबरें पूरी दुनिया से आनी शुरू हो गयी थीं। भारत जैसे देश में यह स्थिति बहुत दुरूह थी, क्योंकि दुनिया के इस सबसे बड़ा लोकतंत्र में करीब 82,000 से अधिक अखबार पंजीकृत हैं और लाखों लोगों का रोज़गार इससे चलता है।

सोनिया गाँधी के विज्ञापन प्रतिबन्ध के सुझाव की निंदा

इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी (आईएनएस) ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के सरकार और पीएसयू के मीडिया को दिये जाने वाले विज्ञापनों पर दो साल तक प्रतिबन्ध लगाने के सुझाव की निन्दा की है। आईएनएस के सदस्यों के समस्त समुदाय की ओर से सोसायटी के अध्यक्ष शैलेश गुप्ता ने एक बयान में इस पर असहमति जताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के सुझाव की निंदा की है। आईएनएस प्रमुख ने कहा कि सोनिया गाँधी का प्रस्ताव वित्तीय सेंसरशिप जैसा है। वे जीवंत और स्वतंत्र प्रेस के हित में यह सुझाव वापस लें। आईएनएस के बयान में कहा गया है कि जहाँ तक इस सरकारी खर्च का सम्बन्ध है, यह बहुत छोटी राशि है। लेकिन यह अखबार उद्योग के लिए एक बड़ी राशि है, जो किसी भी जीवंत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। क्योंकि वह अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रिंट एकमात्र उद्योग है, जिसमें एक वेतन बोर्ड है और सरकार यह तय करती है कि कर्मचारियों को कितना भुगतान किया जाना चाहिए। यह एकमात्र उद्योग है, जहाँ बाज़ार की ताकतें वेतन का फैसला नहीं करती हैं। लिहाज़ा सरकार की इस उद्योग के प्रति एक ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि अभी तो यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मंदी और डिजिटल विस्तार के चलते पहले ही विज्ञापन और प्रसार राजस्व में गिरावट आयी हुई है। सम्पूर्ण लॉकडाउन के कारण उद्योगों और व्यापार केंद्रों के बन्द होने से हमें पहले ही गम्भीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। आईएनएस का यह बयान न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के उस बयान के एक दिन बाद आया है, जिसमें उसने (एनबीए ने) भी सोनिया गाँधी के सुझाव की कड़ी निंदा की थी और उनसे अपना बयान वापस लेने के लिए कहा था। याद रहे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में गाँधी ने कोविड-19 से लडऩे के लिए कई सुझाव दिये थे, जिसमें टेलीविजन, प्रिंट और आन लाइन जैसे मीडिया संस्थानों को सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विज्ञापनों पर दो साल के लिए प्रतिबन्ध लगाने का सुझाव भी शामिल था। सोनिया गाँधी का यह बयान ऐसे समय में आया, जब मीडिया संस्थान संकट से गुज़र रहे हैं। वैसे भी भारत में एक अखबार लागत से काफी कम कीमत पर बेचा जाता है। ऐसे में विज्ञापन से ही कोई अखबार/पत्रिका ज़िन्दा रह सकती है।

कोरोना वायरस : कितने तैयार हैं हम

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के डॉक्टरों ने अप्रैल के पहले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने पीपीई, मास्क और कोरोना से निबटने के अन्य संसाधनों की कमी का ज़िक्र किया। देश की 130 करोड़ की आबादी है और कोरोना के इस शोर के बीच यह भी एक चौंकाने वाला तथ्य है कि भारत के अस्पतालों में एक लाख व्यक्तियों के लिए सिर्फ 3.69 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। सबसे चौंकाने वाला सच यह है कि यह रिपोर्ट फाइल किये जाने तक भारत में कोरोना की जाँच के लिए महज़ 10 फीसदी संदिग्धों के ही टेस्ट हो पाये हैं। भारत में चिन्ता की बात यह है कि यहाँ सक्रमितों की बड़ी संख्या अब सामने आने लगी है।

इन सब तथ्यों के बीच बहुत-से विशेषज्ञ इस चिन्ता में हैं कि आने वाले 20-25 दिन में भारत में कोरोना के पॉजिटिव मामलों की संख्या बढ़ सकती है। स्टेज तीन की स्थिति से बचने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिन के लॉकडाउन का जो फैसला किया, उसका आपसी दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के स्तर तक तो नतीजा अच्छा रहा, लेकिन देश में 10 अप्रैल तक टेस्ट/स्क्रीनिंग का औसत बहुत कम था, जो संकेत करता है कि जैसे-जैसे टेस्ट सुविधाएँ उपलब्ध होंगी और टेस्ट की संख्या बढ़ेगी, कोरोना पॉजिटिव के ज़्यादा मामले सामने आते दिखेंगे।

वेंटिलेटर भले बहुत आपात स्थिति (आईसीयू) में ही ज़रूरत में आते हैं, लेकिन दुनिया ने देखा कि अमेरिका जैसे विकसित दश में भी जब कोरोना के मामले अचानक आसमान छूने लगे, उसकी स्वास्थ्य सुविधा चरमराती दिखी। उसके पास वेंटिलेटर की संख्या भले भारत के मुकाबले कहीं बेहतर (एक लाख व्यक्ति के लिए औसतन 48 वेंटिलेटर) स्थिति में थी, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं थी। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि भारत को कितने सुधार की ज़रूरत है।

यह साफ है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई अभी और लम्बी चलनी है। एकदम स्थितियाँ बेहतर हो जाएँगी, इसकी सम्भावना ज़्यादा नहीं दिखती। ऐसे में सरकार कोरोना के हॉट स्पॉट क्षेत्रों में लॉकडाउन को आगे बढ़ायेगी ही। ऐसा क्षेत्र विस्तृत हो सकता है।

जानकार कह रहे हैं कि भारत में कम-से-कम अप्रैल अन्त या मई मध्य या और आगे तक बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत रहेगी और लॉकडाउन अभी लम्बे समय तक चल सकता है। कुछ देशों में कोरोना का दबाव घटने के बाद उसका दूसरा अटैक देखने को मिला है। भारत में तो अभी हज़ारों-हज़ार लोगों का टेस्ट ही नहीं हुआ है और यह भी मालूम नहीं है कि इनमें से संक्रमित लोगों ने और कितने लोगों को संक्रमित कर दिया है। इनमें से बहुत से कोरोना से माइल्ड प्रभावित हो सकते हैं और दो हफ्ते में खुद ही स्वस्थ हो सकते हैं, लेकिन जिनका वायरल लोड ज़्यादा है, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की ज़रूरत रहेगी। भारत में एक अनुमान के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय फ्लाइट्स बन्द होने (15 मार्च) से पहले हज़ारों की संख्या में एनआरआई, विदेशी और अन्य जन भारत आये हैं। इनमें से ज़्यादातर का कोरोना टेस्ट हुआ ही नहीं है।

आशंका है कि इनमें से जो कोरोना से पीडि़त थे, उन्होंने बड़ी संख्या में अन्य को भी संक्रमित किया है। भारत में घरेलू उड़ानें भी 24 मार्च को जाकर बन्द हुई थीं और इस दौरान बड़ी संख्या में लोग देश के दूसरे हिस्सों में गये। उस समय तक एयरपोट्र्स पर स्क्रीनिंग बुखार चेक करने तक ही सीमित थी। विशेषज्ञों का कहना है कि विदेश से आने वालों में बहुत में भारत पहुँच जाने के कुछ दिन बाद कोरोना के लक्षण दिखे।

इस पर सर गंगा राम अस्पताल में फेफड़ों के सर्जन अरविंद कुमार कहते हैं कि भारत कोरोना वायरस संक्रमण प्रसार के तीसरे चरण में है, जिसमें संक्रमण समुदाय के स्तर पर फैलता है। अरविंद कहते हैं- ‘अब हम तीसरे चरण में हैं, जो बहुत बड़ा है। सिर्फ सैकड़ों-हज़ारों लोगों का संक्रमित होना ही समुदाय के स्तर पर संक्रमण नहीं है। कई ऐसे लोगों के संक्रमित होने के मामले भी आये हैं, जिन्होंने न तो देश-विदेश यात्रा की, न किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आये हैं। लिहाज़ा बहुत सावधानी की बहुत ज़रूरत है।’

भारत के कमोवेश सभी विशेषज्ञों का मानना है कि भारत पर से खतरा अभी नहीं टला है। उनके मुताबिक मामले की सम्पूर्णता की जानकारी के लिए बड़े पैमाने पर जाँच करने की ज़रूरत है। सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) के निदेशक और फेलो रमणन लक्ष्मीनारायण कहते हैं कि यदि हम चाहते हैं कि सही तस्वीर दिखे, तो हमें तेज़ी से जाँच का दायरा बढ़ाना होगा।

यहाँ यह गौर करने लायक बात है कि भारत में संक्रमितों की संख्या घट नहीं रही, बल्कि मामले बढ़ रहे हैं। इसका सबसे कारण यह है कि देश में अब संदिधों के टेस्ट में तेज़ी लायी जा रही है। टेस्ट किट भी बेहतर उपलब्ध होनी शुरू हुई हैं, जो कुछ घंटे में ही रिपोर्ट दे देती हैं। जैसे-जैसे इन तत्काल नतीजे वाली किट की उपलब्धता बढ़ेगी, कोरोना पीडि़तों की संख्या में भी इज़ाफा होगा।

यह देखा गया है कि मार्च के आिखर के बाद कोरोना से देश में मौतों में बहुत इज़ाफा हुआ है। यदि तुलना की जाये, तो दुनिया के कुछ ज़्यादा कोरोना प्रभावित देशों में संक्रमित लोगों की संख्या और हुई मौतों के औसत में भारत में औसत ज़्यादा है। ऐसे में खतरे को समझने की ज़रूरत है।

दक्षिण कोरिया से हमें सबक लेना होगा। वहाँ मामले सामने आते ही लोगों को आइसोलेट करने का काम शुरू हो गया। बहुत काम लोगों को पता होगा कि वहाँ शुरू में ही हर रोज़ करीब 15,000 लोगों के टेस्ट किये जाने लगे। एक महीने से काम समय में ही यह संख्या साढ़े चार लाख के पार पहुँच गयी। इसका लाभ यह हुआ कि बड़ी संख्या में लोगों को मरने से बचा लिया गया। इसके विपरीत अमेरिका और ब्रिटेन में ऐसा नहीं हुआ, जहाँ मरने वालों की संख्या हम सबके सामने है।

भारत को लेकर भी यही चिन्ता जतायी जा रही है। ज़्यादातर विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि भारत में दूध, सब्ज़ी और फलों का जो वितरण रेहडिय़ों आदि में भारत के कई सूबों में होता है, उससे भी लापरवाही होने पर संक्रमण फैलने का खतरा है। लिहाज़ा विशेषज्ञ लगातार लोगों को सलाह दे रहे हैं कि दूध के पैकेट, सब्ज़ियों और फलों के साथ-साथ हाथों को अच्छी तरह धोना बहुत ज़रूरी है और यह सामान खरीदते हुए हाथों में ग्लब्स पहनना और चेहरे पर मास्क लगाकर रखना भी आवश्यक है। साथ ही खरीदारी के दौरान एक-दूसरे से डिस्टेंस बनाकर रखना भी ज़रूरी है। हाथ साबुन से धोना ही बेहतर बताया गया है।

सर्जन अरविंद कुमार कहते हैं कि हम दूसरे देशों में मरने वालों की भारत के साथ तुलना तो नहीं कर सकते, लेकिन यह सच है कि भारत में मामले और मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। उनके मुताबिक, अभी हमारे यहाँ संख्या बढ़ रही है, वह भी लॉकडाउन के दौरान। हमें बहुत ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है। बहुत से जानकार भारत में लॉकडाउन को खत्म करने के पक्ष में कतई नहीं हैं। उनका कहना है कि इससे पिछले एक महीने में जो हासिल किया है, वह बर्बाद हो सकता है। उनके मुताबिक, घरों में रहना कोरोना के फैलने से बचने और इससे संक्रमित होने से बचने का सबसे बेहतर उपाय है। जानकार कह रहे हैं कि भारत में लॉकडाउन में भी भारतीयों ने कुछ स्तर तक लापरबाही बरती है। लेकिन लॉकडाउन के नतीजे अच्छे रहे हैं। ज़्यादा अनुपात में लोग घरों में रहे हैं।

इसका एक दूसरा फायदा यह भी है कि चूँकि देश में अभी अस्पतालों की संख्या कोरोना के मरीजों का बड़ा बोझ सहने की स्थिति में नहीं है, घर पर रहकर लोग बड़ा योगदान दे सकते हैं। इनमें से बहुत ऐसे होंगे जो कोरोना से हलके (माइल्ड) प्रभावित होंगे और खुद ही स्वस्थ हो जाएँगे। हाँ, ज़्यादा आशंका होने पर लोगों को तुरन्त सम्बन्धित नम्बरों पर जानकारी देने की सलाह दी जा रही है। अब ज़्यादातर विशेषज्ञ कोरोना जाँच में तेज़ी लाने पर ज़ोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा नहीं होने पर भीतर ही भीतर कोरोना संक्रमितों की बड़ी संख्या बन जाएगी, जो बाद में एक विस्फोट के रूप में भारत में सामने आने का खतरा पैदा हो जाएगा। डॉक्टर डांग लैब के संस्थापक निदेशक डॉक्टर नवीन डांग का इस मसले पर कहना है कि अगर जाँच में तेज़ी नहीं लायी गयी, तो लॉकडाउन का पूरा उद्देश्य ही बर्बाद हो जाएगा।

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यदि भारत में अब लॉकडाउन या अन्य प्रतिबन्धों को हटाया जाता है, तो यह भयंकर भूल हो सकती है। इसका कारण यह है कि मामले अभी बढ़ रहे हैं, ऐसे में अगर लॉकडाउन हटता है तो संक्रमित लोगों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होने का खतरा पैदा हो जाएगा।

हिमाचल के कांगड़ा के पालमपुर सिविल अस्पताल में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (बीएमओ) डॉ. केएल कपूर कहते हैं कि कोविड-19 महामारी के मामले में हमने देश में संक्रमितों की संख्या को लॉकडाउन के दूसरे हिस्से में बढ़ते देखा है। इसका भले कोई कारण हो, इस समय लॉकडाउन को तोडऩा नुकसानदेह हो सकता है। यह तभी हटना चाहिए, जब संक्रमित लोगों की संख्या में कमी आनी शुरू हो जाए; जो कि अभी फिलहाल नहीं है। उनके मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लॉकडाउन की घोषणा से संक्रमण फैलने से रोकने में बहुत मदद मिली है; और यदि इसे हटाया जाता है, तो इससे जो हासिल हुआ है, वो हम खो देंगे। गौरतलब है कि हिमाचल में कोरोना से मौत का पहला मामला कांगड़ा ज़िले में ही आया था।

भारत में वेंटिलेटर की संख्या की स्थिति निश्चित ही बेहद चिन्ताजनक है। सरकार भी इससे वािकफ दिखती है। लिहाज़ा वो वेंटिलेटर की अपनी क्षमता बढ़ाने की कोशिश कर रही है। रेलवे के स्वामित्व वाली इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) ने मशीनों को रिवर्स इंजीनियर करने का प्रयास किया है और निजी क्षेत्र के कार निर्माता भी अनुभव न होने के बावजूद वेंटिलेटर बनाने में जुट गये हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार ने समुदाय स्तर तक कोरोना के फैलने की तैयारि‍याँ शुरू कर दी हैं। भारत में महिंद्रा, मारुति, रिलायंस जैसी कम्पनियाँ वेंटिलेटर का उत्पादन शुरू कर चुकी हैं, ताकि आपात स्थिति में कमी को किसी हद तक पूरा किया जा सके। जानकारों के मुताबिक, कार कम्पनियों के पास उत्पादन के लिए ज़रूरी कई संसाधन पर्याप्त मात्रा में हैं। इन कार कम्पनियों ने उन कम्पनियों से समझौता किया है, जो पहले से वेंटिलेटर का निर्माण कर रही थीं।

हालाँकि, वेंटिलेटर को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और हृदय रोग विशेषज्ञ के.के. अग्रवाल कहते हैं कि अभी तक के भारत के रिकॉर्ड के मुताबिक, कोरोना के सिर्फ 20 फीसदी मरीज़ ही गम्भीर अवस्था में पहुँचे हैं। इनमें बुजुर्ग ज़्यादा हैं या अन्य कारणों से कमज़ोर लोग रोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। इन 20 फीसदी में भी सिर्फ 3 से 5 फीसदी को ही वेंटीलेटर की ज़रूरत पड़ती है। हालाँकि वे कहते हैं कि अगर कोरोना का संक्रमण भारत में कम्युनिटी स्तर तक फैलता है, तो मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ सकती है और तब ज़्यादा वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ेगी। लेडी हाॄडग कॉलेज और हॉस्पिटल के निदेशक एन.एन. माथुर का कहना है कि इटली और स्पेन के मुकाबले भारत में आईसीयू में भर्ती या वेंटिलेटर पर रखे गये मरीज़ों की संख्या फिलहाल तो न के बराबर है। भारत में महामारी अभी सामुदायिक संक्रमण स्तर पर नहीं है और देश में तमाम तरह के वायरस का लम्बा इतिहास होने के कारण सम्भवत: हमारा शरीर इससे लडऩे में ज़्यादा मज़बूत है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों के लिए निजी सुरक्षा उपकरण अभी की तादाद के हिसाब से तो पर्याप्त हैं, लेकिन आँकड़ों में तेज़ी से इज़ाफा होगा तो संकट पैदा हो सकता है।

चीन की पीपीई किट

खतरे के बढ़ते दायरे के बीच भारत भी तैयारी कर रहा है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक भारत के पास कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज में स्वास्थ्यकर्मियों के इस्तेमाल में आने वाले निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) की संख्या 387473 हो गयी थी। इससे टेस्ट का दायर बढ़ेगा और संक्रमित लोगों के सामने आने और उनके इलाज सम्भावना बढ़ गयी है। अप्रैल के पहले हफ्ते भारत को चीन से 1.7 लाख पीपीई किट मिलीं। स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि देश में भी निर्मित 20 हज़ार पीपीई की आपूर्ति के बाद इन्हें राज्यों को भेजने का काम शुरू हो चुका है। देश में 10 अप्रैल तक इन पीपीई की उपलब्धता 387473 थी। मंत्रालय के मुताबिक, देश में ही बने दो लाख एन95 मास्क भी अस्पतालों को मुहैया कराये गये हैं और उपलब्धता के बाद इनकी संख्या बढ़ायी जा रही है। अन्य स्रोतों से मिले इस श्रेणी के 20 लाख मास्क पहले ही अस्पतालों को भेजे जा चुके हैं।

वेंटिलेटर की उपलब्धता

भारत निश्चित ही वेंटिलेटर की उपलब्धता के मामले में बहुत पीछे है। एक लाख आबादी पर अमेरिका में 48 जनों, जर्मनी में 34, इटली में 12.5, फ्रांस में 12, स्पेन में 9, ब्रिटेन में 7 जबकि भारत में महज 3.69 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। संख्या की बात करें तो भारत में मार्च की आिखर तक 48 हज़ार, जर्मनी में 25 हज़ार, अमेरिका में 1.60 लाख, ब्रिटेन में सिर्फ 9 हज़ार, फ्रांस में 5 हज़ार वेंटिलेटर उपलब्ध थे। इस समय यूरोप और अमेरिका में 9.60 लाख वेंटिलेटर की माँग है। भारत में फिलहाल कुछ निजी कम्पनियाँ वेंटिलेटर बनाने में जुट गयी हैं। सामान्य वेंटिलेटर की कीमत भारत  डेढ़ लाख रुपये बैठती है।

चिन्ता की बात

भारत में सबसे बड़ी चिन्ता डॉक्टरों का बड़े पैमाने पर कोरोना से संक्रमित होना है। यह रिपोर्ट फाइल किये जाने के समय तक देश भर में करीब 90 डॉक्टर कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो कैंसर अस्पतालों में काम कर रहे हैं।  इनके अलावा नर्सिंग और पैरा मेडिकल के भी संक्रमण की चपेट में आने के काफी मामले सामने आये हैं। लिहाज़ा यह ज़रूरी हो गया है चिकित्सा जगत के इन हीरो को उचित उपकरण और रक्षा कवच उपलब्ध करवाये जाएं।

शव का अंतिम संस्कार

भारत में कोरोना से पीडि़त की मौत के बाद दाह संस्कार के मामले में भी बहुत खराब स्थितियाँ देखने को मिली हैं। कई गाँवों से यह खबरें आयी हैं कि वहाँ ग्रामीणों ने कोरोना मरीज़ का दाह संस्कार वहाँ के समशान घाट पर करने देने की इजाज़त नहीं दी। इसमें कोइ दो राय नहीं कि कोरोना संक्रमित की मौत के बाद उसके दाह संस्कार में बहुत ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है। अस्पताल में भी जब डॉक्टर कोरोना संक्रमित की जाँच करते हैं तो उनके पास पूरे संसाधन होते हैं। ऐसे में सुझाव है कि बहुत सावधानी से अंतिम संस्कार किया जाये। बहुत लोग वहाँ न जुटें। और जो शव दाह के लिए गये हैं वे हाथ, मुँह आदि को कवर रखें। हाँ, स्थानीय लोगों को इसमें सहयोग करना चाहिए, विरोध नहीं, क्योंकि शव का अंतिम संस्कार तो किया ही जाना है।

प्रमादी संवत्सर का प्रमाद और कोरोना का कहर

25 मार्च से नव संवत्सर 2077 शुरू हो गया है। ज्योतिष के अनुसार यह प्रमादी संवत्सर है। प्रमाद का मतलब होता है- संकट, विपत्ति, उन्माद, नशा… आदि-आदि। प्रमाद के ये सभी अर्थ आज के समय की समीक्षा करने पर बिल्कुल सच साबित होते दिखाई देते हैं। प्रमाद तो हर किसी में होता है, अगर वह संन्यासी न हो तो। यह प्रमाद स्वाभाविक है। और जहाँ प्रमाद होता है, वहाँ नशा यानी घमंड भी होता है, हम सब आधुनिक होने के साथ-साथ इसी घमण्ड के चलते प्रकृति से खिलवाड़ करने लगे हैं और उसी का नतीजा है- संकट-विपत्ति, जो आज नोवल कोरोना वायरस कोविद-19 के रूप में कहर बनकर मानव जाति पर टूट पड़ी है। वैसे उन्माद हो या प्रमाद, मानवता और मानव-दोनों के लिए हानिकारक हैं। लेकिन अगर इंसान चैतन्य हो जाए, तो शायद इससे बच सकता है; जैसे आजकल हम कोरोना वायरस से लडऩे के लिए चैतन्य अवस्था में आ गये हैं और घरों में कैद हो गये हैं। चेतनता से ज्ञान के चक्षु खुलते हैं और प्रज्ञा की रश्मियाँ बलवती होने लगती हैं। जीवन में हर व्यक्ति को, यहाँ तक कि बुरे से बुरे व्यक्ति को कम-से-कम एक बार प्रकृति यह मौका ज़रूर देती है। लेकिन कभी-कभी यह ज्ञान बुढ़ापे में मिलता है। लेकिन कहा गया है कि जीवन की साँझ होने से एक सेकेंड पहले तक भी अगर यह चेतना जाग गयी, तो प्रायश्चित हो सकता है। यह समय भी हमारे प्रायश्चित का ही है। ज़रूरी नहीं कि हमने कोई बड़ा पाप किया हो, जिसकी सज़ा हमें प्रकृति देने पर आमादा है, लेकिन यह तो तय है कि जाने-अनजाने हमने कई ऐसी भूलें तो ज़रूर की हैं, जिसके चलते हमें आज हमें एक महामारी का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ हमारे कुछ ग्रन्थ, कुछ भविष्यवक्ता याद आते हैं, जो हमें बहुत पहले से प्रकृति से छेड़छाड़ के नतीजों से आगाह कर चुके हैं। लेकिन अब यह संयम और धैर्यपूर्वक निष्ठा से चलने का समय है। ज़रूरी है कि हम सब  प्रकृति के संकेतों और वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और संन्यासियों की राय को धारण करते हुए आगे बढ़ेें। मनमानी न करें।

अभी तो ईसवी सन् 2020 यानी विक्रमी संवत् 2077 की शुरुआत भर है। इससे आगे का समय और भी संकट वाला हो सकता है। इसके संकेत हमें मिल चुके हैं। यद्यपि इसके संकेत और सन्दर्भ काल-वेत्ताओं, भविष्य-वक्ताओं, ज्योतिषाचार्यों, पहले के संतों और भारतीय पञ्चाङगविदों ने बहुते पहले ही कर दिये थे। पर हम नहीं जागे।

आज जब कोरोना नाम की महामारी चरम पर है और इसे लेकर आशंकाओं, सूचनाओं और अफवाहों का बाज़ार गर्म है, तब हमें नारद संहिता की ओर देखने की ज़रूरत है। नारद संहिता में एक श्लोक इस प्रकार है- ‘भूपावहो महारोगो मध्यस्याद्र्धवृष्टय / दु:खिनो जन्त्वसर्वेऽसंवत्सरे परिधाविनी।’ अर्थात्- परिधावी नामक संवत्सर में राजाओं में युद्ध होगा, महामारी फैलेगी, बेमौसम असामान्य वर्षा होगी और सभी जीव-जन्तु दु:खी होंगे। आज इस श्लोक की ये चारों भविष्यवाणियाँ सत्य ही तो साबित हो रही हैं। पिछले समय में परिधावी संवत्सर रहा है, जिसमें कई देशों में युद्ध के हालात रहे हैं। अब प्रमादी संवत्सर शुरू होने से पहले से ही बेमौसम विकट बारिश होनी शुरू हो गयी, जो कहीं-कहीं अभी तक भी हो रही है। कोरोना वायरस नाम की महामारी फैल गयी, जिसका कोई तोड़ नज़र नहीं आ रहा और सभी जीव दु:खी हैं। खासतौर पर इंसान भुखमरी, बेरोज़गारी, आर्थिक संकट और महामारी की चपेट में हैं। इस महामारी और बुरे समय के सम्बन्ध में पुराकाल की पुस्तकों में भी उल्लेख मिलता है। इन किताबों में से कई में कहा गया है कि एक महामारी का प्रकोप सवंत्सर 2076 के अन्त में सूर्यग्रहण से होगा।

बृहद्संहिता में उल्लेख मिलता है- ‘शनिश्चर भूमिप्तो, स्कृद रोगे प्रपीडिते जन:’ अर्थात्- जिस संवत्सर के अधिपति शनि महाराज होते हैं, उस वर्ष में महामारियों के प्रकोप से लोग पीडि़त रहते हैं और मरते हैं। आज नोवल कोरोना वायरस के प्रकोप से यही तो हो रहा है। ऐसी ही भविष्यवाणी बृहद् संहिता में भी की गयी है। गीता में भी मनुष्य के विनाश के कई संकेत दिये गये हैं।

अब बात करते हैं नास्त्रेदमस की। नास्त्रेदमस ने अपनी पुस्तक में एक जगह पर लिखा है- एक समय ऐसा आयेगा, जब रास्तों में सूअर की तरह के मुँह वाले लोग दिखाई देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि सन् 2020 में तीसरा विश्वयुद्ध होगा। कई जगह कुछ भविष्यवक्ताओं ने जैविक हथियारों वाले युद्ध के संकेत दिये हैं। अगर आपने महाभारत पढ़ी या देखी हो, तो आपने उसके युद्ध की तबाही तो ज़रूर समझी होगी। बताया जाता है कि महाभारत का युद्ध दुनिया का सबसे बड़ा और भीषण नरसंहार वाला युद्ध था। जानते हैं क्यों? क्योंकि वह जैविक हथियारों वाला युद्ध था। आग्नेस्त्र, ब्रह्मास्त्र, नागपाश और न जाने कैसे-कैसे तबाही मचा देने वाले अस्त्रों का ज़िक्र आया है, जिनके प्रकटीकरण मात्र से लोग मौत के मुँह में समाने लगते थे। इसके अलावा दिखाई देने वाले शस्त्र भी उन दिनों महामारक और संघारक हुआ करते थे। आज के शस्त्रों में तलवार, खंज़र, बन्दूक, रायफल, तोप, टैंक, मिसाइल और बम हैं। जबकि अस्त्र- परमाणु हथियार और जैविक हथियार हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि कोरोना वायरस भी एक जैविक हथियार ही है, जिसे चीन ने ईज़ाद किया है। जो भी यह आज बीमारी के रूप में फैलकर सभी को डराने और चपेट में लेकर मौत के मुँह में पहुँचाने के लिए पर्याप्त है।

खैर, अब बात करते हैं भविष्यवक्ता सिल्विया ब्रॉउन की। सिल्विया ब्रॉउन ने बहुत पहले ही दावा किया था कि वे आत्माओं से बात कर सकती हैं। जब उन्होंने यह कहा था, तब उनका मखौल उड़ाया गया था। लेकिन, आज सिल्विया ब्रॉउन की इस महामारी के बारे में की गयी भविष्यवाणी सच साबित हुई। उन्होंने अपने उपन्यास ‘द आइज़ ऑफ डार्कनेस’ में एक महामारी के बारे में जो भी कहा था, आज साबित हो गया कि वह कोविड-19 के बारे में ही कहा था। 1981 में प्रकाशित उनका यह उपन्यास एक महामारी की ओर संकेत करता है। जिसमें बताये गये लक्षण और समय इस महामारी से मिलते हैं। यह उपन्यास उन्होंने कॉन्सिपिरेसी थ्योरी में लिखा था। दूसरे हैं, अमेरिकी लेखक डीन कून्त्ज़। डीन ने अपने एक उपन्यास में इस हत्यारे वायरस को सीधे-सीधे वुहान-400 कहा है। विचार कीजिए, उन्होंने सदियों पहले उस शहर का नाम तक बता दिया, जहाँ से कोरोना वायरस फैला।

अगर हम फिल्मों की बात करें, तो कई हॉलीवुड और कुछ बॉलीवुड फिल्मों में जैविक युद्ध के संकेत दिये गये हैं। कई ऐसी महामारियों को भी इन फिल्मों में दिखाया गया है, जो छूने मात्र से एक इंसान से दूसरे में फैलती दिखती हैं और महामारी की चपेट में आये लोगों का अन्त भी मौत के अलावा दूसरा नहीं दिखता। फिल्मों में मनुष्यों को छिपने पर मजबूर होने के दृश्य भी दिखाये गये हैं। कुल मिलाकर आज पूरी दुनिया घरों में दुबकी बैठी है। लोगों को यही भय है कि वे इस बीमारी से कैसे बचे रह सकते हैं। फिल्मों में कई महामारियों के जो लक्षण दिये गये हैं, वो भी कोरोना वायरस में मौज़ूद हैं। ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम इस महामारी से खुद भी बचें, दूसरों को भी बचाएँ; ताकि मानव जाति सुरक्षित रह सके।

घर बैठे काम से बढ़े साइबर हमले के खतरे

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में लॉकडाउन की स्थिति हैं। ऐसे में कई लोग घर से अपनी-अपनी कम्पनियों का काम कर रहे हैं। मेरे पड़ोस की दीक्षा नाम की एक लडक़ी एक डाटा एंट्री कराने वाली कम्पनी में नौकरी करती है। वह आजकल घर से ही अपने मोबाइल से कम्पनी का काम करती है। शायद आपको पता हो कि जब आप मोबाइल या लैपटॉप या कम्प्यूटर पर ऐसे काम करते हैं, तो न केवल कम्पनी पर, बल्कि आपके बैंक अकाउंट, ईमेल आईडी, सोशल एक्टिविटीज और आपकी निजी ई-सम्पत्ति पर भी साइबर क्रिमिनल्स की नज़र रहती है।

मतलब यह है कि घरों में रहकर कोरोना से भले ही लोग सुरक्षित हों, लेकिन संस्थानों के सिस्टम पर साइबर हमले के खतरे बढ़ गये हैं। माना जा रहा है कि इससे कम्पनियों के डाटा पर खतरा मँडरा रहा है। क्योंकि कम्पनियों के निजी आँकड़ों को उनके कर्मचारी अपने घर से मोबाइल या लैपटॉप या कम्प्यूटर से एक्सेस कर रहे हैं। ऐसे में ज़ाहिर है कि ऑफिस में मौज़ूद रहने वाले फायरवॉल अथवा सिक्योरिटी सिस्टम घरों में न के बराबर ही होते हैं, जिसके न होने पर साइबर क्रिमिनल्स को डाटा उड़ाने में आसानी हो जाती है।

दरअसल, अगर आपका मोबाइल, लैपटॉप और कम्प्यूटर हैक हो जाता है, तो डाटा करप्ट होने की सम्भावना ज़्यादा रहती है, जिसके चलते कई बार बड़ा नुकसान भी हो जाता है। यह नुकसान कर्मचारी की मेहनत और कम्पनी की सिक्योरिटी का होता है। हालाँकि, साइबर हमले से हुए नुकसान की भरपाई के लिए एसबीआई साइबर डिफेंस बीमा भी मुहैया कराती है, लेकिन क्यों न हम साइबर हमले से बचने के उपायों का इस्तेमाल करें, ताकि इससे बचा जा सके।

जहाँ तक हो सके ऑफलाइन करें काम

साइबर हमला हमेशा ऑनलाइन काम करने पर ही होता है। ऐसे में समझदारी इसी में है कि हम जहाँ तक सम्भव हो सके ऑफलाइन काम करें। ऑफलाइन (इंटरनेट और नेटवॄकग से बिना जुड़े) काम करने से आप किसी भी साइबर क्रिमिनल की पहुँच से दूर और सुरक्षित रहते हैं। इतना ही नहीं, इससे आपके इंटरनेट की भी बचत होती है।

काम भर को रहें ऑनलाइन

साइबर क्राइम का शिकार होने से बचने का यह भी एक बहुत अच्छा और सुरक्षित तरीका होता है कि आप जब ऑनलाइन काम की ज़रूरत हो, तभी अपना इंटरनेट ऑन करें। साथ ही जितनी जल्दी सम्भव हो सके ऑनलाइन काम निपटाने का प्रयास करे, क्योंकि हमेशा इंटरनेट ऑन रखने से साइबर हमले का खतरा बढ़ जाता है। यदि आप अपने डाटा सुरक्षा का बन्दोबस्त कर चुके हैं, तब तो आप जितना चाहें ऑनलाइन रह सकते हैं। वैसे यह बात आजकल शायद सभी जानते हैं कि क्रिमिनल बहुत ही शातिर दिमाग के होते हैं और अच्छी-अच्छी सिक्योरिटी पिन तोडऩे में माहिर होते हैं। ऐसे में सतर्कता और सावधानी में ही आपकी भलाई है।

हैकिंग के दौरान सिस्टम कर दें बन्द

करीब तीन महीने पहले को मेरे एक दोस्त छत्रपाल सिंह का मोबाइल अचानक हैक होने लगा। सभी एप्स ने, यहाँ तक कि कॉलिंग सिस्टम ने काम करना बन्द कर दिया। उस समय उसका इंटरनेट ऑन था। उसने सोचा कि शायद नेटवॄकग समस्या हो; यही सोचकर वह मोबाइल को एक्टिव करने की कोशिश में लगा रहा। छत्रपाल ने बताया कि चार-पाँच मिनट में मेरे फेसबुक अकाउंट पर अपडेट का अलर्ट आया, जिसे मैंने बिना सोचे अपडेट कर दिया। उसके बाद मेरा फेसबुक अकाउंट मेरी मोबाइल स्क्रीन से गायब हो गया। व्हाट्सअप एप ने भी काम करना बन्द कर दिया और मोबाइल ने भी। जब मैंने फेसबुक एप डिलीट करके दोबारा डाउनलोड करके उस पर खुद को सर्च कर एक्टिवेट होने का प्रयास किया, तो मेरा वह फेसबुक अकाउंट नहीं मिला, बल्कि बिना नया अकाउंट बनाये एक नया अकाउंट बन गया। अब मुझे समझते देर नहीं लगी कि मेरे मोबाइल के साथ-साथ मेरी सोशल साइट्स हैक हो चुकी हैं।

छत्रपाल कहते हैं कि मैंने मोबाइल को स्विच ऑफ कर दिया। करीब 10 मिनट बाद खोला पर हैकर के चंगुल से आज़ाद न हो सका। करीब 20-22 घंटे बाद मैं अपना फेसबुक अकाउंट दोबारा एक्टिबेट कर पाया। जब मेरा फेसबुक अकाउंट एक्टिवेट हुआ, तो उसमें एक नयी प्रोफाइल एक्टिवेट थी, जिसे इससे पहले न तो मैंने कभी देखा और अपने से जोड़ा। खैर, छत्रपाल सिंह फेसबुक एडमिन को उसकी ऑनलाइन शिकायत कर दी। जैसा कि आप भी जानते हैं कि आजकल हमारे एन्ड्रायड मोबाइल फोन में हमारी कितनी कीमती जानकारियाँ, डाटा आदि रहता है। ऐसे में हैकिंग को समझने की यह देरी भी महँगी पड़ सकती है।

कहने का मतलब यह है कि छत्रपाल सिंह ने मोबाइल स्विच ऑफ करने में काफी देर कर दी, जिससे उसकी निजी जानकारी चोरी भले ही हुई हो अथवा नहीं, लेकिन साइबर क्रिमिनल तक पहुँच ज़रूर गयी होगी, जिसका भविष्य में कभी भी उसे नुकसान हो सकता है।

सिस्टम हैक होने पर बदल लें पासवर्ड

वैसे तो अपने सिस्टम, डाटा और निजी जानकारी की सुरक्षा के सभी एहतियात बरतें, लेकिन अगर कभी आपका मोबाइल या लैपटॉप या कम्प्यूटर हैक हो जाता है, तो तसल्ली से काम लें और ऊपर बताये गये नियमों का पालन करते हुए पहले सिस्टम को अपने कन्ट्रोल में लें। उसके बाद सबसे पहला काम अपने पासवर्ड बदलने का करें। यदि आप हैकिंग का शिकार हो जाते हैं, तो अपनी सभी साइट्स का पासवर्ड बदल लें। खासतौर पर अगर आप ऑनलाइन बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं, तो उसका पासवर्ड तुरन्त बदलें।

कैसा हो पासवर्ड?

जब हम अपने किसी अकाउंट का पासवर्ड बनाते हैं, तो हम अपने या अपने किसी परिचित या अपनी पसन्द की किसी चीज़ के इर्दगिर्द रहकर पासवर्ड तैयार करते हैं। जबकि हमें इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए। यदि हम ऐसे पासवर्ड बनाते भी हैं, तो उनके कोडवर्ड को कठिन तरीके से इस्तेमाल करें। इसके अलावा अपने पासवर्ड में ऐसे नाम शामिल करें, जिन नामों पर जल्दी किसी का ध्यान न जाता हो। जैसे किसी अजीब या लोगों के ज़ेहन से उतरी हुई चीज़ का नाम… वगैरह-वगैरह।

समय-समय पर बदलते रहें पासवर्ड

यह बात आपको पहले भी शायद किसी ने बतायी हो कि समय-समय पर अपने सभी अकाउंट्स के पासवर्ड बदलते रहें। यह ज़रूरी भी है। क्योंकि, पासवर्ड बदलते रहने से हैकिंग के खतरे कम हो जाते हैं।

पब्लिक वाई-फाई के इस्तेमाल में है जोखिम

आजकल सरकारों ने कई सार्वजनिक स्थानों पर वाई-फाई सिग्नल लगा दिये हैं। इन जगहों पर आप अपना मोबाइल कनेक्ट करके मुफ्त इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी जगहों पर अधिकतर समय भीड़भाड़ रहती है। इसलिए हम ऐसी जगहों को पब्लिक वाई-फाई एरिया भी कह सकते हैं। लेकिन इन जगहों पर साइबर क्रिमिनल की खासी नज़र रहती है। ऐसे में मुफ्त इंटरनेट के चक्कर में सार्वजनिक वाई-फाई सेवा का इस्तेमाल करना आपको महँगा पड़ सकता है।

मैसेज और ईमेल के ज़रिये होते हैं हमले

आजकल हमारी ईमेल आईडी पर तरह-तरह के प्रलोभन वाली ईमेल आती हैं। इन मेल से आपको सावधान रहना चाहिए और इन मेल को रिपोर्ट स्पैम में शिकायत मोड पर डालकर डिलीट कर देना चाहिए। क्योंकि साइबर अपराधी अक्सर ई-मेल के माध्यम से आपके निजी डाटा और जानकारियों पर फिशिंग हमले करते हैं। मोबाइल पर आने वाले कई मैसेज से भी आप साइबर क्रिमिनल का शिकार हो सकते हैं। इसलिए सावधान रहें।

कीमती डाटा है, तो कराएँ बीमा

आप कितने भी चतुर क्यों न हो, कोई बड़ी बात नहीं कि कब साइबर हैकर आपको शिकार बना लें। क्योंकि हैकर्स काफी एक्सपर्ट होते हैं। आप सोचिए, जब कड़ी साइबर निगरानी में रहने वाले बैंक अकाउंट से भी कई बार अचानक पैसा उड़ जाता है, तो हम-आप कैसे बचे रह सकते हैं? हमारे पास तो सुरक्षा के उतने इंतज़ाम भी नहीं होते। इसका एक कारण यह भी है कि सुरक्षा जितनी मज़बूत की जाती है, हैकर्स उसमें सेंध लगाने के उतने ही नये-नये तरीके ईज़ाद कर लेते हैं। इसीलिए अगर आपके पास कीमती डाटा है, कीमती ई-सम्पत्ति है या अच्छा-खासा बैंक बैलेंस है, तो साइबर बीमा (इंश्योरेंस) करा लेने में ही भलाई है। ऐसा करने से आपकी आईडेंटिटी, डाटा, आईटी, निजी जानकारी की चोरी, मालवेयर अटैक, साइबर एक्सटोर्शन आदि कवर हो जाते हैं, जो हैकिंग से हुए नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। ऐसे नुकसानों से बचने के लिए आप कानूनी खर्च, डेटा या कम्प्यूटर प्रोग्राम रि-इन्स्टॉल करवाने के खर्च पर भी बीमा करा सकते हैं।

सुरक्षा डिवाइस या सॉफ्टवेयर का करें इस्तेमाल

आजकल बाज़ार में कई तरह की सुरक्षा डिवाइस मिल जाती हैं, उन्हें लगा लें। हालाँकि, अच्छी क्वालिटी की सुरक्षा डिवाइस काफी महँगी भी आती हैं। ऐसे में आप अच्छी कम्पनी के साफ्टवेयर लगवाकर खुद को सुरक्षित कर सकते हैं। इस तरह के सॉफ्टवेयर भी आपको खरीदने पड़ते हैं। कुछ सॉफ्टवेयर मुफ्त में डाउनलोड किये जा सकते हैं, लेकिन ये सुरक्षित नहीं होते, बल्कि कई सॉफ्टवेयर डाउनलोड करना साइबर क्रिमिनल को बुलावा देने जैसा साबित हो सकता है। इसलिए आप पर्सनल डिवाइस पर एप में कीमती और संवेदनशील डाटा स्टोर करते समय आप सिक्युरिटी टूल का इस्तेमाल करें। यह सुरक्षा टूल साइबर क्राइम का पता लगाने में सक्षम होते हैं। यदि आप घर पर काम करते हैं, तो फायरवॉल और एनक्रिप्शन का उपयोग कर सकते हैं।

अर्थ-व्यवस्था को मंदी से उबारने में बैंकों की भूमिका

कोरोना वायरस की वजह से भारतीय अर्थ-व्यवस्था धीरे-धीरे महामंदी की ओर बढ़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत के विकास अनुमान को कम करके 5.2 फीसदी कर दिया है, जो पहले 5.7 फीसदी था।

एक और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी कोरोना वायरस के अर्थ-व्यवस्था पर पडऩे वाले नकारात्मक असर को देखते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत की आॢथक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 5.3 फीसदी कर दिया है, जो पहले 6.6 फीसदी था। मूडीज ने मार्च 2020 में समाप्त हो रहे वित्त वर्ष के लिए भी विकास दर के अनुमान को 5.8 फीसदी से घटाकर 4.9 फीसदी कर दिया है। एक अन्य रेटिंग एजेंसी फिच ने भी वित्त वर्ष 2019-20 के लिए भारत के विकास दर के 4.6 फीसदी पर रहने की सम्भावना जतायी है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए विकास दर के 5.6 फीसदी और 2021-22 के लिए 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। देशी ब्रोकरेज कम्पनी यूबीएस सिक्योरिटीज ने भी देशव्यापी लॉकडाउन और महामारी की व्यापकता को देखते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत के विकास दर को 5.1 फीसदी से घटाकर 4 फीसदी कर दिया है, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 के लिये भारत के विकास दर को 4.8 फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान जताया है।

अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव

कोरोना वायरस की वजह से भारत की घरेलू माँग बुरी तरह से प्रभावित हुई है। आपूर्ति शृंखला बाधित है। सेवा, एमएसएमई और रियल एस्टेट क्षेत्र की हालात खस्ताहाल हैं। अंतर्राजीय और अंतर्राष्ट्रीय कारोबार ठप पड़ चुका है। सेवा क्षेत्र से जुड़े नाई, ब्यूटी पार्लर, पेशेवर, किराना एवं जेनरल स्टोर्स, मेडिकल स्टोर्स, रिक्शा, ऑटो रिक्शा, कैब ड्राइवर, बढ़ई, लोहार, बिजली मिस्त्री, होटल व रेस्तरां, सिक्योरिटी गाड्र्स आदि बेरोज़गार हो गये हैं। एक अनुमान के मुताबिक, लगभग 400 मिलियन लोगों को घर बैठना पड़ा है. देश की करीब 75 मिलियन सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमी (एमएसएमई) लगभग 180 मिलियन लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराते हैं, लेकिन आज की तारीख में उनके पास काम नहीं है। भारत में रियल एस्टेट सबसे अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है, लेकिन निर्माण गतिविधियों के ठप्प पडऩे के कारण निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों के लिए रोज़ी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।

रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, भारत में खुदरा क्षेत्र में लगभग 60 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ है, जिनमें से तकरीबन 40 फीसदी यानी 24 लाख लोगों की नौकरी आगामी महीनों में जा सकती है। देश भर के सभी मॉलस, सुपर मार्केट्स और अन्य खुदरा दुकानों को 15 अप्रैल तक के लिए बन्द कर दिया गया है। आवश्यक वस्तुओं को छोडक़र अन्य सभी प्रकार के उत्पादों का उत्पादन बन्द है। सूचना और प्रोद्योगिकी समेत दूसरे क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर कामगारों की नौकरी जाने का खतरा बना हुआ है। हालाँकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कम्पनियों से अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं काटने और उनकी छँटनी नहीं करने के लिए कहा है। लेकिन भारी नुकसान की वजह से कारोबारी शायद ही प्रधानमंत्री की बात को अमल में लायें; क्योंकि अनिश्चितता के माहौल में कामगारों को नौकरी से धीरे-धीरे निकाला जाने लगा है। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, आगामी 6 महीनों में खुदरा क्षेत्र की कमाई में 90 फीसदी तक की कमी आ सकती है। भारत में 5 लाख से भी ज़्यादा स्टोरस, जैसे- वी-मार्ट, शॉपर्स स्टॉप, फ्यूचर ग्रुप, एवेन्यू सुपरमार्ट्स आदि हैं, जो कोरोना वायरस के कारण बन्द हैं। खुदरा क्षेत्र के अलावा एमएसएमई क्षेत्र, कोर्पोरेट्स, पेशवरों आदि की आय में भी भारी गिरावट आने का अंदेशा है।

राहत देने की पहल

कोरोना वायरस से निपटने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 26 मार्च को 1.7 लाख करोड़ रुपये प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत देने की घोषणा की है। सरकार की कोशिश है कि 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान कोई भूख से नहीं मरे। इस योजना के तहत डॉक्टर, पारामेडिकल कर्मचारियों आदि का 50 लाख का बीमा किया जाएगा; क्योंकि यह वर्ग अपनी जान को जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचा रहा है। लगभग 80 करोड़ गरीब लोगों को अगले तीन महीनों तक 5 किलो गेहूँ या चावल और दाल मुफ्त देने का प्रस्ताव है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 2,000 रुपये की िकस्त 8.7 करोड़ किसानों के खाते में अप्रैल के पहले पखवाड़े में अंतरित की जायेगी. मनरेगा के तहत दी जा रही मज़दूरी को 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये प्रतिदिन किया गया है, ताकि मज़दूरों को आॢथक परेशानी का कम सामना करना पड़े। बुजुर्ग, गरीब विधवा और गरीब दिव्यांग को आगामी 3 महीनों तक 1,000 रुपये दिये जाएँगे। उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को अगले तीन महीनों तक मुफ्त में गैस सिलेंडर देने का प्रस्ताव है। 20 करोड़ महिला जनधन खाताधारकों के खातों में अगले तीन महीनों तक हर महीने 500 रुपये जमा किये जाएँगे, ताकि वे मुश्किल वक्त का सामना कर सकें। कर्मचारी अपने भविष्य निधि खाते से 75 फीसदी या 3 महीनों के वेतन के बराबर पैसों की निकासी कर सकेंगे, जिसे उन्हें वापिस नहीं जमा करना होगा। इससे एक बड़े वर्ग को आॢथक मदद मिलेगी। महिलाओं द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह को अब 20 लाख रुपये तक ऋण बिना संपाॢश्वक प्रतिभूति के रूप में दिया जायेगा, जिससे स्व-रोज़गार का दायरा बढ़ेगा। 15,000 रुपये तक मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों या कामगारों का भविष्य निधि अंशदान अगले तीन महीनों तक सरकार देगी। निर्माण क्षेत्र से जुड़े 3.5 करोड़ पंजीकृत कामगारों को आॢथक मदद देने के लिए 31,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसके पहले 24 मार्च को भी सरकार ने एटीएम शुल्क एवं खातों के न्यूनतम बैलेंस को खत्म कर और आयकर व जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की अवधि बढ़ाकर लोगों के घाव पर कुछ मरहम लगाया था।

मंदी से उबारने में बैंकों की भूमिका

कोरोना वायरस के साथ लड़ाई में बैंक अहम् भूमिका निभा रहे हैं। देशव्यापी लॉकडाउन होने के बावजूद बैंककर्मी आम लोगों की वित्तीय जरुरतों को पूरा करने के लिए बैंक जा रहे हैं। जबकि उनके संक्रमित होने का खतरा बहुत ही ज़्यादा है; क्योंकि करेंसी या पासबुक में कोरोना वायरस चिपके हुए रह सकते हैं। फिर भी कुछ राज्यों, जैसे- बिहार और उत्तर प्रदेश में पहले की तरह बैंकिंग कामकाज किये जा रहे हैं। बैंकिंग अवधि में बैंककर्मियों को कोई राहत नहीं दी गयी है। भारतीय स्टेट बैंक समेत कई बैंक शाखा के 5 किलोमीटर के दायरे में घर-घर जाकर बैंकिंग सेवा उपलब्ध करा रहे हैं। कोरोना वायरस से जंग जीतने के बाद अर्थ-व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की मुख्य ज़िम्मेदारी बैंकों की होगी। कोरोना वायरस के कारण भारतीय अर्थ-व्यवस्था को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुँचा है। आॢथक गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ चुकी है।

कारोबार तथा लोगों की मुक्त आवाजाही पर निर्भर क्षेत्र जैसे, यात्री विमानन, नौवहन, होटल, रेस्तरां आदि बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता के कारण वाहन व दवा उद्योग, मोबाइल, इलेक्ट्रोनिक्स व कम्प्यूटर बनाने वाली कम्पनियाँ भी प्रभावित हुई हैं। इन सभी क्षेत्रों के पुनर्वास के लिए कारोबारियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने की ज़रूरत है। अधिकांश कामगारों और कारोबारियों का कामकाज बन्द होने या रोज़गार छीन जाने के कारण वे आॢथक रूप से कमज़ोर हो गये हैं। ऐसे लोगों के लिए फिलवक्त बैंकों से लिये गये ऋण की िकस्त एवं ब्याज देना संभव नहीं है। इसलिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने 27 मार्च 2020 को मौद्रिक समीक्षा के दौरान सभी मियादी ऋणों पर िकस्त एवं ब्याज चुकाने को 3 महीनों के लिए टाल दिया है। अर्थात् वैसे कर्ज़दार जो ऋण की िकस्त और ब्याज देने में असमर्थ हैं, वे 3 महीनों के बाद िकस्त और ब्याज दे सकते हैं। इसमें पर्सनल लोन भी शामिल है। सनद रहे, 3 महीनों तक िकस्त और ब्याज नहीं चुकाने पर भी ऋण खाते गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) नहीं होंगे। इसी तरह वॄकग कैपिटल के ऋण की ब्याज अदायगी में भी 3 महीनों की राहत दी गयी है। गौरतलब है कि इस तरह के ऋण मुख्य तौर पर कारोबारी अपने कारोबार को चलाने के लिए लेते हैं। रिजर्व बैंक द्वारा घोषित की गयी राहत का फायदा क्रेडिट कार्ड ग्राहकों को भी मिलेगा। क्रेडिट कार्ड ग्राहक भी खर्च राशि का भुगतान 3 महीनों के बाद कर सकेंगे। माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक की इस व्यवस्था से आम आदमी, कारोबारी और बैंक तीनों को सीधे तौर पर फायदा मिलेगा। अगर रिजर्व बैंक यह व्यवस्था नहीं करता, तो बड़ी संख्या में ऋण खाते एनपीए में तब्दील हो जाते, जिससे बैंक और अर्थ-व्यवस्था दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता साथ ही साथ बैंक के कर्ज़दार चूककर्ता बन जाते और बकाया की वसूली के लिए उनके खिलाफ बैंक को कानूनी कार्रवाई करनी पड़ती। ज्ञात हो कि रिजर्व बैंक ने इन प्रावधानों को आवश्यक रूप से लागू नहीं किया है। इससे मानना या नहीं मानना बैंकों पर निर्भर करेगा। वैसे, अनेक बैंकों ने इन प्रावधानों को अमलीजामा पहना दिया है।

बैंक आमतौर पर बचत और मियादी जमा के माध्यम से पूँजी इकट्ठी करते हैं, लेकिन मौज़ूदा समय में बैंकों को और भी ज़्यादा सस्ती पूँजी की आवश्यकता है। कारोबारियों को सस्ती दर पर ऋण मिल सके के लिए केंद्रीय बैंक ने रेपो दर को 75 बेसिस पॉइंट कम किया है साथ ही साथ संवाधिक तरलता अनुपात यानी सीआरआर को भी 4 फीसदी से घटाकर 3 फीसदी कर दिया है. इससे बैंकिंग प्रणाली में 3.74 लाख करोड़ रुपये आने का अनुमान है। यह पूँजी बैंकों को सस्ती दर पर मिल रही है। इसलिए, बैंक मियादी जमा (फिक्स डिपॉजिट) के ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं; क्योंकि अभी मियादी जमा पर ज़्यादा ब्याज देने से बैंकों को नुकसान हो रहा है। बैंक को जमा और ऋण के बीच के स्प्रेड से मुनाफा होता है। ऋण पर मिलने वाले ब्याज से बैंकों की आय होती है, जबकि जमा पर ग्राहकों को ब्याज देने से खर्च। इस प्रकार ऋण पर जमा के मुकाबले ज़्यादा ब्याज दर होने से ही बैंक को मुनाफा हो सकता है। चूँकि बैंक ऋण के ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं, इसलिए नफा और नुकसान के बीच संतुलन बनाये रखने के लिए उन्हें जमा ब्याज दरों में कटौती करनी पड़ेगी। सुकन्या जमा योजना के तहत ब्याज दर का निर्धारण केंद्र सरकार करती है। अभी सरकार राजस्व की कमी से जूझ रही है, इसलिए उसे कल्याणकारी जमा योजनाओं में ज़्यादा ब्याज देना सम्भव नहीं है।

फिलहाल, बैंकों के पास सस्ती पूँजी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, इसलिए वे आसानी से आमजन और कारोबारियों को सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। भारतीय स्टेट बैंक समेत कई बैंकों ने विविध ऋणों के ब्याज दरों में कटौती की है। ऋण सस्ती दर पर मिलने से क्रेडिट ग्रोथ और आॢथक गतिविधियों, दोनों में तेज़ी आने का अनुमान है। इसके अलावा कोरोना वायरस से प्रभावित कम्पनियों के नये मामलों को ऋण शोधन एवं दिवालिया संहिता के तहत राष्ट्रीय कम्पनी विधि न्यायाधिकरण में नहीं लाना होगा, ताकि स्थिति के सामान्य होने पर कम्पनियाँ अपने कारोबार को जारी रख सकें। ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए बैंकों द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ज़रूरतमंद लोगों को अधिक-से-अधिक संख्या में ऋण देना होगा; क्योंकि कोरोना वायरस के कारण लाखों लोगों को अपना रोज़गार गँवाना पड़ा है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत महिलाओं द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह को 20 लाख रुपये का ऋण बैंकों द्वारा बड़े पैमाने पर वितरित करनी होगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आत्मनिर्भर बनकर दूसरों को भी रोज़गार मुहैया करा सकें। बैंक दूसरी योजनाओं के माध्यम से भी लोगों को वित्तीय सहायता दे सकते हैं। आॢथक गतिविधियों में तेज़ी लाने के लिए सभी के द्वारा आय अर्जित करना ज़रूरी है। जब लोगों की आय बढ़ेगी तभी माँग और खपत में तेज़ी आयेगी, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी होगी और अर्थतंत्र का पहिया सुचारू रूप से घूमता रहेगा।

निष्कर्र्र्ष

पहले से ही मंदी के दौर से गुज़र रही भारतीय अर्थ-व्यवस्था की कमर कोरोना वायरस ने पूरी तरह से तोड़ दी है। आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ चुकी हैं। लाखों की संख्या में लोगों का रोज़गार जाने की आशंका है. असंगठित क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो चुका है। मज़दूरों एवं कामगारों के लिए भूखों मरने वाली स्थिति है। ऐसे में सरकार द्वारा 1.70 लाख करोड़ रुपये की मदद से कमज़ोर तबके के लोगों की राहत मिलेगी। हालाँकि अर्थ-व्यवस्था को फिर से गुलाबी बनाने के लिए सरकार द्वारा कारोबारियों को भी राहत पैकेज देना होगा। इसके आलावा बड़ी संख्या में रोज़गार सृजित करने और आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लाने के लिए बैंकों को सस्ती दर पर आमजन और कारोबारियों को कर्ज़ भी उपलब्ध कराना होगा।

इस तरह तो अनाज के पड़ जाएँगे लाले

कोरोना वायरस का इलाज न मिलने से दुनिया भर के साथ-साथ भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। जैसा कि सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की अर्थ-व्यवस्था का मुख्य साधन आज भी खेती-बाड़ी है। हमारे देश में कृषि से प्राप्त आय पर न केवल 70 प्रतिशत लोग निर्भर हैं, बल्कि कृषि उत्पादों से सरकार को भी अच्छी-खासी आय होती है। लेकिन इस बार मौसम की मार पडऩे के बाद कोरोना वायरस के डर से किये गये लॉकडाउन ने बची हुई फसलों को काटने का भी मौका किसानों को नहीं दिया। इन दिनों रबी की कई फसलें खेतों में पकी खड़ी हैं और खेतों में ही झडऩे की स्थिति में हैं। इन फसलों में गेहूँ तो प्रमुख है ही, साथ ही सरसों, चना, मसूर, अलसी, अरहर आदि हैं। इतना ही नहीं इस मौसम की सब्ज़ियाँ और फल भी खेतों में खराब हो रहे हैं।

हालाँकि 27 मार्च को लॉकडाउन के नियमों में तब्दीली करके सरकार ने दैनिक उपयोग की वस्तुओं, खासतौर पर खाद्यान्नों के रास्ते खोल दिये, लेकिन अनेक अनाज, सब्ज़ी और फल मण्डियाँ बन्द सी पड़ी हैं और फसलें खेतों में सड़-झड़ रही हैं। इससे न केवल किसानों को बड़ा नुकसान हो रहा है, बल्कि देश के सामने खाद्यान्न संकट भी खड़ा हो रहा है। अगर यही हाल रहा, तो खाद्यान्न निर्यात करना तो दूर, देशवासियों को भी अन्न, फल, सब्ज़ियों के लिए तरसना पड़ेगा।

यहाँ अगर हम रबी की फसलों, खासकर भोजन का सबसे ज़रूरी माध्यम गेहूँ की बात करें, तो यह चिन्ता का विषय बन जाता है। क्योंकि मार्च के आिखरी सप्ताह में ही गेहूँ की अधिकतर फसल कटने को तैयार हो गयी थी। अप्रैल आते-आते तो देश के हर भाग में गेहूँ की फसल कटने लगती है। लेकिन इस बार 80 फीसदी गेहूँ की फसल खेतों में ही है। कुछ छोटे-मोटे किसानों ने भले ही गेहूँ की कटाई करके फसल उठा ली हो, लेकिन 80 फीसदी गेहूँ अब भी खेतों में ही है, जिसमें अधिकतर गेहूँ कटने को खड़ा है। बड़े किसानों को यह चिन्ता खाये जा रही है कि आिखर उनकी फसल कैसे कटेगी? क्योंकि बड़े खेतों को हाथों से काट पाना आसान नहीं होता है, इसलिए बड़े खेतों से गेहूँ और धान की फसल उठाने के लिए हार्वेस्टर, थ्रेसिंग मशीनों और ट्रैक्टर आदि की मदद लेनी पड़ती है। ऐसे में न तो देश भर के दूर-दराज़ के क्षेत्रों में मशीनें गेहूँ की कटाई के लिए जा पा रही हैं और न ही उनके चालक घरों से निकल पा रहे हैं।

दरअसल अधिकतर हार्वेस्टर और थ्रेसिंग मशीनें पंजाब में हैं। इतना ही नहीं गेहूँ कटाई की इन आधुनिक मशीनों, खासकर हार्वेस्टर के अधिकतर चालक भी पंजाब में ही मिलते हैं। हालाँकि थोड़े-थोड़े पंजाबी लोग (सिख) हर राज्य में बसे हुए हैं। लेकिन उनकी संख्या इतनी कम है कि न तो उनके पास मौज़ूद संसाधन उस जगह की फसलों की कटाई के लिए के पर्याप्त हो पाते हैं और न वे खुद इतना अधिक काम कर सकते हैं, क्योंकि इन सिखों के पास अपनी ही खेती-बाड़ी बहुत होती है। ऐसे में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र तक पंजाब से गेहूँ कटाई की मशीनें और उनके चालक जाते हैं।

इधर, लेबी (सरकारी गेहूँ खरीद के केंद्र) भी बन्द है। ऐसे में जिन छोटे किसानों ने गेहूँ उठा लिए हैं, उन्हें उसके सही दाम नहीं मिल रहे हैं। क्योंकि हर साल 1 अप्रैल से सरकारी अनाज गोदामों के ज़रिये लेबी खोल दी जाती थीं, जहाँ किसान खुद आकर सरकारी मूल्य पर अपना अनाज बेच दिया करते थे। इन दिनों सरकार गेहूँ की प्रमुखता से खरीदारी करती है। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते न तो अधिकतर गेहूँ ही कट पाया है और जिन छोटे किसानों ने गेहूँ उठा लिया है, उन्हें पैसे की ज़रूरत के चलते उसे किसी भी हाल में बेचना पड़ रहा है, जिसका फायदा गाँवों से गेहूँ खरीदने वाले छोटे व्यापारी उठा रहे हैं। किसानों ने बताया कि सरकार ने गेहूँ की कीमत 1,9 25 रुपये निर्धारित की है, लेकिन सरकारी खरीदारी न होने के कारण गाँवों में छोटे खरीदारों और दलालों का आना-जाना शुरू हो गया है। ये लोग 1,600 रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों से गेहूँ खरीद रहे हैं। मजबूरी में किसान इन लोगों के हाथों गेहूँ बेचने को लाचार हैं।

हाल ही में अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव विजू कृष्णन ने कहा कि गेहूँ को मंडियों में ले जाने को लेकर समस्या है। लॉकडाउन में कृषि गतिविधियों को छूट देने की बात महज़ कहने भर की है, सच तो यह है कि किसानों को काफी मुश्किल आ रही है। उन्होंने कहा कि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिसमें कोई भी फसल खेत से सीधे मण्डी में पहुँच सके।

खेतों में खड़ी गेहूँ की फसल और कटाई की स्थिति जानने के लिए तहलका के विशेष संवाददाता ने किसानों से बातचीत की।  उत्र प्रदेश के बुन्देलखण्ड के किसानों ने कहा कि पता नहीं इस महामारी से कब छुटकारा मिलेगा? एक ओर तो सरकार कह रही है कि किसानों और गरीबों को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी। अब इससे ज़्यादा परेशानी भी क्या होगी कि खेतों में फसल खड़ी है और उसे उठा तक नहीं पा रहे हैं। सरकार को सोचना चाहिए कि यह कोई एक दिन की मेहनत नहीं है, पूरे छ: महीने की मेहनत है। इसमें लगायी हुई लागत का बड़ा हिस्सा कर्ज़ का है। फसल ही नहीं बचेगी, तो कैसे गुज़ारा होगा। क्या किसानों पर कर्ज़ का बोझ और नहीं बढ़ जाएगा? छोटे किसान, जिनके पास 2-4, 10-20 बीघा खेती है, किसी तरह गेहूँ काटकर उठा भी लेंगे, लेकिन जिनके पास बड़ी खेती है, वे क्या करें? बड़े किसान ते हार्वेस्टर के सहारे ही बैठे हैं। किसानों का जीवन ही कृषि पर निर्भर है।

झाँसी ज़िले के धवाकर गाँव के निवासी चन्द्रपाल सिंह का कहना है कि सरकार ने कोरोना वायरस को लेकर जो सख्ती बरती है, उससे किसी किसान को आपत्ति नहीं है। लेकिन सरकार और पुलिस को तो किसानों की समस्या का खयाल भी रखना चाहिए, ताकि खेतों में खड़ी पकी फसल किसानों के घर तक तो आ जाती। गेहूँ काटने के लिए मशीनें खेतों में नहीं पहुँच पा रही हैं। ऐसे में बड़े किसान क्या करें? अगर दो सप्ताह और ऐसा ही रहा, तो छोटे किसानों का नुकसान तो होगा ही, हर बड़े किसान का लाखों का नुकसान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पहले ही बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ दी है, ऊपर से यह लॉकडाउन। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से अपील की है कि वह किसानों की समस्या को जानने के लिए ऐसे अधिकारियों को ज़िम्मेदारी सौपे, जो किसानों की समस्याओं का समाधान हो सकें। क्योंकि जिन किसानों ने थोड़ा-बहुत गेहूँ उठा लिया है, वे बाज़ार बन्द होने के कारण मण्डी में उसे बेच नहीं पा रहे हैं और लेबी भी नहीं खुली हैं। उन्होंने बताया कि इतना ही नहीं किसानों को गेहूँ भरने के लिए वारदाना (बोरियाँ) भी नहीं मिल रहा है। उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले के सुदामा पुरी गाँव के चिंतामन का कहना है कि किसानों को सुनवाई किसी भी पार्टी की सरकार कभी भी नहीं हुई। ऐसा ही हाल इन दिनों है। कोरोना वायरस के चलते किये गये लॉकडाउन से किसानों को न तो मज़दूर मिल पा रहे हैं और न ही फसल कटाई के लिए आवश्यक मशीनें, जिसकी वजह से गेहूँ की फसल पूरी तरह बर्बादी की कगार पर है।  उन्होंने कहा कि कुछ बड़े किसानों को छोड़ दें, तो बाकी के अधिकतर किसान मज़दूरों से या खुद गेहूँ की फसल समय से कटवाकर, उसकी थ्रेसिंग कराकर उठा लेते थे। इस बार न तो पर्याप्त मशीनें मिल रही हैं और न ही मज़दूर। इस बार महामारी के कारण मज़दूर घर से नहीं निकल पा रहे हैं, वहीं कुछ शहरों में ही फँसे हैं। सरकार को एक ठोस नीति के तहत अन्नदाता की समस्या को समझते हुए कोई ठोस पहल करनी चाहिए, ताकि कम-से-कम गेहूँ की फसल कटकर घरों और मण्डियों तक पहुँच सके। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो किसानों के सामने विकट आॢथक संकट खड़ा हो जाएगा।

किसान जनक और बब्लू पाल कहते हैं कि सरकारी खरीदारी बन्द है। किसानों के पास तो पहले ही तंगी रहती है। वे फसल कटते ही बाज़ार में बेचने को मजबूर रहते हैं। इस बार हम जैसे कुछेक छोटे किसानों ने गेहूँ जैसे-तैसे उठा लिया, लेकिन अब लेबी न खुलने की वजह से छोटे  खरीदारी गाँवों में आकर सस्ते दाम में गेहूँ खरीद रहे हैं। जबकि गेहूँ की खरीदारी जब सरकार करती है, तब ये लोग भी थोड़े-बहुत कम दाम करके अनाज खरीदते हैं। लेबी बन्द होने का ये लोग फायदा उठा रहे हैं और किसान हमेशा की तरह लुट रहे हैं।

किसान नेता रामबाबू का कहना है कि सरकार ने अगर इसी तरह खरीदारी में और किसानों को फसल की कटाई करने के लिए छूट देने में देरी की, तो फसल खेत में ही खड़ी-पड़ी रह जाएगी। उस पर अगर बारिश हो गयी, तो किसानों की सारी की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। महिला किसान रामवती और सुन्दरी ने बताया कि बुन्देलखण्ड में चैत्र महीना आते ही फसल की कटाई होने लगती है। लेकिन इस बार ऐसी विपदा आ पड़ी है कि कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें? उन्होंने बताया कि खेती के साथ वह सब्ज़ियाँ भी उगाती हैं, जिन्हें पास के शहरों में ले जाकर बेचती हैं। इस बार न तो वाहन चल रहे हैं और न लोगों को बाहर जाने दिया जा रहा, जिसके चलते वह सब्ज़ी गाँव में ही  औने-पौने दामों में बेच रही हैं।

मज़दूर गयादीन कांछी ने बताया कि उनका पूरा परिवार दिल्ली में मज़दूरी करने यही सोचकर गया था कि मार्च के आिखरी सप्ताह तक अपनी फसल काटने के लिए वह परिवार सहित घर चला जायेगा और फसल काट-बेचकर फिर दिल्ली चला आयेगा। लेकिन अचानक हुए लॉकडाउन वह परिवार को लेकर घर नहीं पहुँच पा रहा है। ऐसे में उसकी पकी फसल खेतों में ही झड़ रही है। गयादीन कांछी ने सरकार से माँग की है कि वह कोरोना वायरस की जाँच करवाकर उसे और उसके परिजनों को दिल्ली से उनके गाँव जाने दे, अन्यथा उसका बड़ा नुकसान हो जाएगा, जिसकी भरपाई साल-दो साल तक नहीं हो सकेगी। गयादीन ने कहा कि अगर ऐसा हुआ, तो वह और उसका परिवार आॢथक तंगी से जूझने लगेगा।

कृषि मंत्री दे चुके हैं राहत का आश्वासन

इधर, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों को राहत देने का आश्वासन दे चुके हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान किसानों को मंडी जाकर अपनी फसल उत्पाद बेचने की मौज़ूदा व्यवस्था में राहत देने का फैसला किया है। फेसबुक पर जारी एक वीडियो के ज़रिये कृषि मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि वे ऐसी पहल करें, जिससे अगले तीन महीने किसान अपनी फसल उत्पाद बेचने के लिए मण्डियों तक लाने की जगह अपने-अपने गोदामों से सीधे बेच सकें। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को फसल बेचने में किसी भी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने किसानों से भी कहा कि इसके लिए वे इनाम प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि सरकार की इस पहल से किसानों को अपनी फसल बेचने में कोई परेशानी नहीं होगी।

इतना ही नहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-नाम) प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने के लिए तीन नयी सुविधाएँ भी लॉन्च कीं। इस दौरान कृषि मंत्री ने कहा कि कि कोरोना वायरस के संक्रमण के इस दौर में इसकी आवश्यकता है। इससे किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए खुद थोक मण्डियों मजबूर होकर आना नहीं पड़ेगा। वे अपनी कृषि उपज को वेयरहाउस में रखकर वहीं से बेच सकेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि एफपीओ अपने संग्रह से उत्पाद को लाये बिना व्यापार कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ई-नाम प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने के लिए लॉजिस्टिक मॉड्यूल के नये संस्करण को भी जारी किया गया है, जिससे देश भर के पौने चार लाख ट्रक जुड़ सकेंगे।

कृषि मंत्री तोमर द्वारा लॉन्च किये गये तीन सॉफ्टवेयर मॉड्यूल हैं- (1) ई-नाम में गोदामों से व्यापार की सुविधा के लिए वेयरहाउस आधारित ट्रेडिंग मॉड्यूल, (2) एफपीओ का ट्रेडिंग मॉड्यूल, जहाँ एफपीओ अपने संग्रह से उत्पाद को लाये बिना व्यापार कर सकते हैं और (3) इस जंक्शन पर अंतर्मण्डी तथा अंतर्राज्यीय व्यापार की सुविधा के साथ लॉजिस्टिक मॉड्यूल का नया संस्करण, जिससे पौने चार लाख ट्रक जुड़े रहेंगे। कृषि मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में 14 अप्रैल, 2016 को ई-नाम पोर्टल शुरू किया गया था, जिसे अपडेट करके काफी सुविधाजनक बनाया गया है। उन्होंने कहा कि ई-नाम पोर्टल पर 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में पहले से ही मौज़ूद 585 मंडियों को एकीकृत किया गया है। जल्द ही 415 मंडियों को भी ई-नाम से जोड़ा जाएगा, जिससे ई-नाम पोर्टल पर कुल 1000 मंडियाँ हो जाएँगी।

फसलों को कब तक उठाना है ज़रूरी

मौसम के हिसाब से तो अधिकतर रबी की फसलें अब तक खेतों से कटकर घरों या गोदामों तक पहुँच जानी चाहिए थीं। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते काफी देरी हो रही है। ऐसे में सभी पकी फसलों, खासकर गेहूँ, चना, मसूर, सरसों, अरहर को जल्द-से-जल्द काटकर उठाने में ही फायदा है, अन्यथा किसानों के हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। क्योंकि रबी की अधिकतर फसलें पकने के बाद स्वत: ही खेतों में झडऩे लगती हैं। तापमान और फसलों की कटाई के मौसम के हिसाब से देखें, तो अगर 20-21 अप्रैल तक गेहूँ की फसल काटकर नहीं उठायी गयी, तो उपज का बड़ा हिस्सा किसानों के हाथ में नहीं आयेगा, क्योंकि इस समय तक फसल खेत में ही झडऩे लगेगी। बल्कि सरसों, मसूर और अरहर अगर खेतों में खड़ी है, तो वह झडऩे भी लगी होगी। ऐसे में अगर ये फसलें 20-21 अप्रैल के बाद भी खेतों में खड़ी रहती हैं, तो किसानों को नुकसान होने के साथ-साथ लोगों को खाद्यान्न की भी किल्लत भी उठानी पड़ेगी।

किसान इन बातों का रखें ध्यान

कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने के खतरों के मद्देनज़र सरकार ने किसानों अपील की है कि वे कोरोना वायरस से बचाव के सभी तरीके अपनाकर ही फसलों की कटाई करें और इन्हीं सुरक्षा नियमों का पालन करते हुए उन्हें बेचें, ताकि इस महामारी का फैलने से रोका जा सके।

हम बताना चाहते हैं कि फसल काटने से पहले और फसल काटने के बाद या बीच में खाना खाने से पहले सभी किसान और मज़दूर अपने हाथों को अच्छी तरह धो लें। फसल काटने के औज़ार एक-दूसरे से साझा न करें और कटाई करते समय दूरी बनाये रखें। चेहरे को मास्क या कपड़े से ढँककर रखें। कृषि संयंत्रों एवं उपकरणों की नियमित सफाई करते रहें। इसके साथ ही जब फसल बेच रहे हों, तब उचित दूरी और सफाई का विशेष ध्यान रखें।