आगरा के शाही खानसामों ने ईजाद की थी मुगलई बिरयानी जो ड्राई फ्रूट्स और गोश्त के पीसेज से महकती थी। मुगल छावनियों में बड़े बड़े देगचो या पतीलों में मद्दी आंच में रात भर पकती रहती थी।
बृज खंडेलवाल द्वारा
बिरयानी: चावल और मसालों का बादशाही अफसाना
“जहाँ बिरयानी की खुशबू पहुंच जाए, वहाँ भूख खुद चलकर आ जाती है।”
आजकल आगरा की गलियों में जो महकती बिरयानी की खुशबू तैर रही है, वह किसी इत्तेफाक़ का नतीजा नहीं, बल्कि एक लंबा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सफर है। वाटर वर्क्स क्रॉसिंग हो या छीपी टोला, पीर कल्याणी हो या दीवानी का चौराहा—हर गली, हर नुक्कड़ पर बिरयानी का ताज पहने स्टॉल सजे हैं। युवा हों या बुज़ुर्ग, अमीर हों या ग़रीब—हर कोई इस जादुई व्यंजन का दीवाना है।
शाही रसोई से ठेले तक का सफर: कहते हैं, आगरा के शाही खानसामों ने ही सबसे पहले बिरयानी को भारतीय अंदाज़ में ढाला। मुगल छावनियों में बड़े-बड़े देगचों में बिरयानी को धीमी आँच (दम) पर पूरी रात पकाया जाता था, जिसमें गोश्त, केसर, मेवे और खुशबूदार चावल का संगम होता था। यह शाही पकवान न सिर्फ पेट भरता था, बल्कि दिल को भी तसल्ली देता था।
एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, मुमताज महल ने जब देखा कि सैनिकों का आहार संतुलित नहीं है, तो उन्होंने अपने शाही बावर्चियों को आदेश दिया कि एक ऐसा भोजन तैयार करें जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषण से भरपूर हो। और फिर जन्म हुआ – बिरयानी का!
बिरयानी जितनी लज़ीज़ है, उतनी ही विविधता से भरपूर भी। हर क्षेत्र ने इसे अपनाया और अपने-अपने रंग-ढंग से संवारा। हैदराबादी बिरयानी: निज़ामों की रसोई से निकली यह बिरयानी कच्चे मांस और चावल को एक साथ दम पर पकाने की कला है। इसमें केसर, जावित्री, दालचीनी जैसे मसालों की जादूगरी देखने को मिलती है। लखनवी (अवधी) बिरयानी: “दम पुख्त” शैली में बनी इस बिरयानी में नफासत और नज़ाकत का अद्भुत मेल होता है। मीट का रस चावलों में समा जाता है। कोलकाता बिरयानी: जब नवाब वाजिद अली शाह को निर्वासित किया गया, तब मटन की जगह आलू और अंडे ने बिरयानी में जगह पाई – और यह आज तक लोगों की पसंद बनी हुई है। थालास्सेरी बिरयानी (केरल): इसमें खास किस्म का खयमा चावल, मालाबार मसाले, काजू और किशमिश का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। डिंडीगुल बिरयानी (तमिलनाडु): तीखे मसाले, सीरगा सांबा चावल और दमदार स्वाद इसे खास बनाते हैं।
आगरा और ब्रज क्षेत्र में अब वेज बिरयानी ने भी झंडे गाड़ दिए हैं। कभी जो व्यंजन पूरी तरह मांसाहारी माना जाता था, वह अब पनीर, सोया, मशरूम और कटहल (जैकफ्रूट) के साथ नये अवतार में लोगों के दिलों में जगह बना रहा है।
मथुरा-वृंदावन जैसे तीर्थ स्थलों में, जहाँ पहले पारंपरिक शुद्ध शाकाहारी भोजन की ही कल्पना की जाती थी, वहाँ अब वेज बिरयानी के खोमचे दिखाई देने लगे हैं। यह कोई मामूली बदलाव नहीं, बल्कि भारत की पाक परंपरा में एक नया अध्याय है।
बिरयानी अब न सिर्फ स्टॉल और ढाबों तक सीमित है, बल्कि स्विगी, जोमैटो और डंज़ो जैसे ऐप्स के ज़रिए हर घर तक पहुँच चुकी है। बड़े-बड़े फूड व्लॉगर्स इसे चखने के लिए शहरों के कोने-कोने में घूमते हैं। यू-ट्यूब चैनल्स पर “10 बेस्ट बिरयानी स्पॉट्स” जैसी वीडियो की भरमार है। बिरयानी अब “इंस्टाग्रामेबल डिश” बन चुकी है।
एक हालिया सर्वे के अनुसार, भारत में हर मिनट 95 प्लेट बिरयानी ऑर्डर होती हैं। पिछले पाँच वर्षों में बिरयानी की मांग 75% तक बढ़ी है। यह आँकड़े गवाही देते हैं कि बिरयानी महज़ खाना नहीं, एक जज़्बा बन चुकी है।
बिरयानी अब दुबई, न्यूयॉर्क, लंदन और सिंगापुर जैसे शहरों में भारतीय रेस्तरां की जान बन चुकी है। जहाँ भी प्रवासी भारतीय हैं, वहाँ बिरयानी की मांग है। कुछ तो इसे “डिप्लोमैटिक डिश” भी कहने लगे हैं – जो भारत की नर्म छवि को विदेशों में प्रचारित करता है।
बिरयानी के इस बेइंतिहा शौक को देख कर इतना तो साफ है कि यह महज स्वाद नहीं, बल्कि एक जज़्बात है। यह चावल और मसालों की मोहब्बत है, जो ज़ुबान से शुरू होकर दिल तक पहुँचती है।
आज जब खानपान में तकरार और तंगनज़री बढ़ रही है, बिरयानी हमें याद दिलाती है कि विविधता में ही सौंदर्य है – और यही है भारत की असली पहचान।
चटोकरे पूछ रहे हैं, समोसे कचौड़ी ज्यादा पौष्टिक हैं या बिरयानी?
भारत के सड़क किनारे ठेलों से लेकर पाँच सितारा होटल्स तक, बिरयानी ने अपना जादू बिखेर दिया है। एक समय था जब अंडे की ठेलों, आलू चाट, भल्ले और गोलगप्पों का बोलबाला था। फिर मैगी और मोमो ने युवाओं के दिलों पर राज किया। लेकिन आज हर शहर, हर गली में बिरयानी की खुशबू फैली हुई है। हैदराबाद से लेकर वृंदावन तक, मटन बिरयानी से लेकर वेज बिरयानी तक – यह व्यंजन भारत की पाक संस्कृति का नया चेहरा बन चुका है।
बिरयानी शब्द की उत्पत्ति फारसी शब्द बिरियन (भूनना) या बिरिंज (चावल) से हुई है । कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह व्यंजन ईरान से मध्य एशिया होते हुए भारत पहुँचा, जहाँ मुगलों ने इसे नया स्वाद और तकनीक दी। बिरयानी के आगे खिचड़ी, पोंगल, पुलाव, सतरंगी फ्लेवर्स के चावल, सब चमक खो रहे हैं। कई रेस्तरां में स्पाइसी चटनी और रायते और प्याज के छल्ले मसाला मारकर, परोसे जाते हैं।
जानकार भोजन प्रेमी बताते हैं कि भारत में बिरयानी ने क्षेत्रीय स्वादों को अपनाकर अलग-अलग रूप ले लिए हैं। मैसूर में एक रेस्टोरेंट में किलो के हिसाब से बाल्टी में मिलती है नॉन वेज बिरयानी। श्री महादेवन बताते हैं कि दक्षिणी बिरयानी मसालों के फ्लेवर्स से महकती है जो दूर से कद्रदानों को आकर्षित कर लेती है।
आगरा, जहां बिरयानी का उदय हुआ, आजकल वेज बिरयानी में परचम लहरा रहा है। अभी हलवाइयों ने पहल नहीं की है, पर कुछ समय बाद भगत बिरयानी भी मिलने लगे, इस व्यंजन की राइजिंग पॉपुलैरिटी को देखते हुए, तो अचरज नहीं होगा।
नई दिल्ली: जिसे देश का सबसे गरिमामयी और सुरक्षित संस्थान माना जाता है, वहीं की महिला सांसदों को अपने ही सहयोगियों से यौन उत्पीड़न, मानसिक प्रताड़ना और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इंटर-पार्लियामेंटरी यूनियन (आईपीयू) की ताज़ा रिपोर्ट ने इस गंभीर सच्चाई को उजागर कर पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आईपीयू द्वारा एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 42 देशों में कराए गए इस सर्वेक्षण में सामने आया कि महिला सांसद और महिला स्टाफ सदस्यों को न सिर्फ मानसिक और यौन हिंसा सहनी पड़ रही है, बल्कि कई मामलों में उन्हें शारीरिक उत्पीड़न और सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का भी शिकार होना पड़ा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 76% महिला सांसदों और 63% महिला स्टाफ ने मानसिक उत्पीड़न की शिकायत की। 25% महिला सांसदों और 36% महिला कर्मचारियों को यौन हिंसा का सामना करना पड़ा। 24% महिला सांसदों और 27% कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा।13% महिला सांसदों और 5% कर्मचारियों ने शारीरिक हिंसा की घटनाएं बताईं।
40% महिला सांसदों ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे कार्यस्थल पर खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।
85% मामलों में उत्पीड़न करने वाले उनके ही पुरुष सहयोगी या पार्टी के सदस्य पाए गए।
संसद भवन में महिलाएं सिर्फ कानून नहीं बना रहीं, बल्कि खुद को सुरक्षित रखने की भी लड़ाई लड़ रही हैं। रिपोर्ट में दर्ज शिकायतें बताती हैं कि महिला सांसदों को घूरने, छूने, अश्लील इशारे करने और अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा — वो भी उन्हीं लोगों से जो देश की संसद में जनता की आवाज़ बनकर बैठे हैं।
संसद परिसर में ही पुरुष सांसदों द्वारा महिला सांसदों के साथ गलत व्यवहार किया जाता है।
कुछ महिला सांसदों ने स्वीकार किया कि बहस के दौरान उनके विचारों को नजरअंदाज किया गया, उन्हें बार-बार टोका गया और नीचा दिखाया गया।
85% महिला सांसदों ने बताया कि जब उन्होंने किसी मुद्दे पर आवाज उठाई, तो उन्हें ही टारगेट किया गया।
ऑस्ट्रेलिया, फिजी, भारत, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड और नेपाल जैसे देशों की संसदों ने महिला सांसदों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए हैं। भारत में 77 महिला सांसदों में से 47 ने माना कि उन्हें मानसिक या कार्यस्थल उत्पीड़न का अनुभव हुआ है।
भारत, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फिलीपींस जैसे देशों की महिला सांसदों ने सर्वेक्षण में हिस्सा लिया। ज़्यादातर ने माना कि महिलाओं को अब भी संसद जैसे पवित्र मंच पर समान और सुरक्षित वातावरण नहीं मिल पा रहा है।
नई दिल्ली: संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत तीखे राजनीतिक गर्मी के साथ हुई। पहले ही दिन लोकसभा में विपक्षी दलों ने ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम आतंकी हमला, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता संबंधी दावे और बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा की मांग को लेकर जोरदार हंगामा किया। इसके चलते दिनभर लोकसभा की कार्यवाही बार-बार बाधित होती रही।
सरकार ने विपक्ष की मांग को स्वीकार करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विस्तृत बहस कराने पर सहमति जताई है। अगले सप्ताह इस मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में कुल 25 घंटे की चर्चा निर्धारित की गई है—जिसमें लोकसभा में 16 घंटे और राज्यसभा में 9 घंटे का समय तय किया गया है। यह फैसला राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार को लगातार घेरने की कोशिश कर रहा है।
लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी सांसदों ने तख्तियां लहराकर और नारेबाज़ी करते हुए सरकार से जवाब मांगना शुरू कर दिया। हंगामे के चलते पहले कार्यवाही को दोपहर 12 बजे तक स्थगित किया गया। इसके बाद दोपहर 2 बजे कार्यवाही दोबारा शुरू हुई, लेकिन विरोध प्रदर्शन नहीं थमा, जिससे सदन की कार्यवाही दोपहर 4 बजे तक पुनः स्थगित कर दी गई।
पीठासीन सभापति संध्या राय ने विपक्षी सदस्यों से सदन की गरिमा बनाए रखने और सहयोग देने की अपील करते हुए कहा कि “सरकार सभी विषयों पर चर्चा के लिए पूरी तरह तैयार है। लोकतंत्र में संवाद जरूरी है, शोर नहीं।
सत्र की शुरुआत गंभीर और संवेदनशील माहौल में हुई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पहलगाम आतंकी हमले और अहमदाबाद विमान हादसे में जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके साथ ही हालिया प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए नागरिकों को भी याद किया गया। सदन में कुछ पल का मौन रखकर दिवंगत आत्माओं के प्रति शोक प्रकट किया गया।
पीठासीन सभापति जगदंबिका पाल ने सदन को जानकारी दी कि कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की बैठक बुलाई गई है, जहां सर्वदलीय सहमति से तय किया जाएगा कि किन विषयों पर किस रूप में और कितने समय तक चर्चा की जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि “सरकार विपक्ष द्वारा उठाए गए हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है।”
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में विपक्ष को आश्वस्त करते हुए कहा, “मैं सभी माननीय सदस्यों को यह विश्वास दिलाता हूं कि वे रक्षा संबंधी किसी भी विषय पर, चाहे वह जितनी भी लंबी चर्चा हो, सरकार पूरी गंभीरता से भाग लेगी। लोकसभा अध्यक्ष जो भी निर्णय लेंगे, हम उसके अनुसार पूरी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे।
उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ माह पूर्व ही भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिये थे; मगर भ्रष्टाचारियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। अधिकांश ग्रामीण कहते हैं कि उनका कोई भी कार्य बिना घूस के नहीं होता है। इसके अतिरिक्त जो कार्य ग्रामीण विकास के लिए किये जाते हैं, उनमें भी भ्रष्टाचार चरम पर रहता है। गाँवों के कई कार्य तो काग़ज़ों में ही हो जाते हैं; मगर धरातल पर कुछ नहीं होता।
अधिवक्ता संतोष कहते हैं कि छोटे पदाधिकारी भ्रष्टाचार तभी करते हैं, जब उन्हें ऊपर से भ्रष्टाचार करने का संकेत मिलता है। भ्रष्टाचार की काली कमायी ऊपर तक इकट्ठी होकर जाती है, जिसके चलते भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती है। अगर भ्रष्टाचार की पोल खुल जाए, तो निचले पदों पर कार्य करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों को निलंबित करके इतिश्री कर ली जाती है; मगर किसी बड़े भ्रष्टाचारी के विरुद्ध एक रिपोर्ट तक थाने में दर्ज नहीं होती।
ग्राम पंचायत के भ्रष्टाचार की निकट से देखने वाले एक ग्राम पंचायत सदस्य नाम प्रकाशित न करने की विनती करते हुए कहते हैं कि ग्राम पंचायतों में ईमानदारी अब सतयुग की गाथा जैसी लगती है। ग्राम पंचायतों में जो ईमानदार सदस्य अथवा पदाधिकारी हैं, उनको कोई नहीं पूछता एवं उन्हें आगे भी नहीं बढ़ने दिया जाता है। खड़ंजे पड़ने, नालियाँ बनने, किसी ग्रामीण को सब्सिडी मिलने का कार्य तक में भ्रष्टाचार होता है। मगर ग्राम पंचायत के एक सदस्य वीरेंद्र कहते हैं कि पंचायतों में कोई भ्रष्टाचार व्याप्त नहीं है। कुछ लोग ग्रामीणों का काम कराने के बदले चाय पानी की माँग कर देते हैं, जिसके कारण सब बदनाम हैं। वीरेंद्र के पड़ोसी ने बताया कि वीरेंद्र झूठ बोल रहा है। उसके पास ग्राम पंचायत सदस्य बनने से पहले ऐसे ठाटबाट नहीं थे, जैसे अब हैं। एक पूर्व प्रधान नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर कहते हैं कि ईमानदारी से कार्य करने वालों को चुनाव तक नहीं जीतने दिये जाते हैं। वह कहते हैं कि ईमानदारी दिखाएगा भी कोई क्यों? चुनाव बिना पैसे के जीत नहीं सकते। आजकल ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ने के लिए पहले तो टिकट नहीं मिलता। अगर कोई निर्दलीय लड़ भी ले, तो भी उसे चुनाव लड़ने के लिए कम-से-कम चार-छ: लाख रुपये चाहिए। चुनावों में प्रतिद्वंद्व इतना बढ़ गया है कि ग्राम पंचायत के सदस्य का चुनाव जीतने के लिए लोग दो से तीन लाख रुपये तक उड़ा देते हैं। ग्राम प्रधान बनने के लिए लोग 10 से 20 लाख का बजट रखकर चलते हैं। चुनाव ही ईमानदारी से नहीं होते, तो काम ईमानदारी से कैसे होंगे। जो व्यक्ति चुनाव जीतकर आता है, वह अगले चुनाव को जीतने के लिए चुनावी व्यय के लिए दोगुनी धनराशि इकट्ठी करता है एवं अपने जीवन स्तर को उच्चस्तरीय बनाने में लगा रहते है। उसे ग्रामीण विकास की चिन्ता से अधिक अधिकारियों से अच्छे सम्बन्ध रखने की रहती है; क्योंकि वही ग्रामीण विकास के लिए योजनाओं का बजट पास करते हैं। अंदर की बात बताऊँ, ग्रामीण विकास में होने वाले भ्रष्टाचार का पैसा मंत्रियों तक जाता है।
पूर्व ग्राम प्रधान का यह बयान सिद्ध करता है कि भ्रष्टाचार की कड़ियाँ ऊपर तक जुड़ी हुई हैं। उत्तर प्रदेश में जल जीवन योजना के तहत बनी हुई टंकियों के एक एक करके गिरने से बड़ा इसका प्रमाण और क्या हो सकता है। मगर ग्राम पंचायतों में व्याप्त भ्रष्टाचार शासन तक व्याप्त है, ऐसा कहना कठिन है; क्योंकि शासन ने ही अनेक बार ग्राम पंचायतों में व्याप्त भ्रष्टाचार को पकड़ा है। मगर इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ग्राम पंचायतों में विकास की कोई भी योजना आती है, तो उसका बंदरबाँट पहले ही आरंभ हो जाता है। भ्रष्टाचार का हाल यह है कि ग्रामीण स्तरीय सुविधाओं को भी तरस रहे हैं।
भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी
आरोप प्रत्यारोप को छोड़ भी दें; मगर उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार के अनेक मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें घूस लेना, विकास कार्यों में गड़बड़ी एवं वित्तीय अनियमितताएँ देखी गयी हैं। ग्राम पंचायतों में होने वाले भ्रष्टाचार में अधिकांश सदस्यों से लेकर ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम प्रधान एवं सरपंच ही भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं हैं। बीते वर्षों में भ्रष्टाचार के सामने आये अनेक मामलों से पता चला है कि ग्राम पंचायतों के विकास का दारोमदार सँभालने वाले पंचायत राज विभाग में भी भ्रष्टाचार चरम पर है। बीते वर्ष शासन ने पाया कि फ़तेहपुर सीकरी की 13 ग्राम पंचायतों के सचिवों ने घर बैठकर 24.63 लाख रुपये का भुगतान कर लिया। शासन की तत्परता के चलते पंचायती राज निदेशालय ने आईपी एड्रेस ट्रेस करके इस भ्रष्टाचार को पकड़ा एवं प्रशासन को भ्रष्ट सचिवों के विरुद्ध कार्रवाई के आदेश दिये। जनपद के कुल 15 विकास खंडों में से आठ विकास खंडों में यह भ्रष्टाचार हुआ।
बीते कुछ ही वर्षों में शासन ने ग्राम पंचायतों के कई भ्रष्टाचार पकड़े हैं। भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि हैंपपंपों खड़ंजों गाँवों में बनने वाली सीमेंट की सड़कों पानी की टंकियों स्वच्छ भारत योजना के तहत बनने वाले शौचालयों प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनने वाले घरों के लिए दी गयी सब्सिडी ग्रामीणों को मिलने वाले ऋणों क्रेडिट कार्डों, मनरेगा एवं दूसरी अन्य योजनाओं में भ्रष्टाचार होने के अनेक उदाहरण अब तक सामने आ चुके हैं। स्थिति यह है कि ग्राम पंचायतों चुने गये सदस्यों प्रधानों सचिवों से लेकर ब्लॉक स्तर तक बैठे सदस्य एवं अधिकारी तक घूस लिये बिना किसी का कोई कार्य नहीं करते हैं।
लखीमपुर खीरी में बीते दिनों जल जीवन योजना के तहत बनी टंकी गिरी थी। इससे पूर्व वहाँ डीपीआरओ के निरीक्षण में बिजुआ ब्लॉक के कंजा गाँव के अधिकांश हैंडपंप बंद मिले, जबकि शासन से इन हैंडपंपों को ठीक करने के लिए धनराशि मिल चुकी थी। मनरेगा के तहत भी भ्रष्टाचार चरम पर है। मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों के लिए ग्रामीण श्रमिकों की संख्या एनएमएमएस एप पर डालनी होती है। ग्राम पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधि इस एप पर श्रमिकों की संख्या अधिक दिखाकर सरकार से प्राप्त धनराशि निकाल लेते हैं; मगर कार्य पर कम श्रमिकों को लगाते हैं। कोटरा में बीते दिनों ऐसा ही पाया गया। वहाँ एप पर 36 श्रमिकों की उपस्थिति दिखायी गयी थी, जाँच में कार्य करते हुए मात्र 19 श्रमिक मिले। चारागाह में भी तालाब खुदाई के लिए 40 श्रमिक एप पर दिखाये गये थे; मगर जाँच हुई, तो मात्र नौ श्रमिक ही मिले।
कम ही मामलों में कार्रवाई
शासन ने बीते वर्षों में अनेक भ्रष्ट अधिकारियों एवं चुने हुए ग्रामीण प्रतिनिधियों के विरुद्ध कार्रवाई की है; मगर कुछ दिनों बाद कई जाँचें ठंडे बस्ते में चली जाती हैं एवं भ्रष्टाचारी बच जाते हैं। यह बताने की आवश्यकता नहीं लगती है कि यह सब कैसे होता है? भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई कितनी कड़ी होती है, इसका पता इस बात से ही चल जाता है कि अभी तक किसी भी बड़े भ्रष्टाचारी को जेल नहीं हुई है। निलंबन बस्ता छीने जाने एवं आर्थिक दंड के मामले भी कम ही देखने को मिलते हैं।
बीते वित्त वर्ष में पूरे प्रदेश में ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार की कितनी शिकायतें दर्ज हुईं, इसका ब्योरा ग्राम पंचायत विभाग अथवा सरकार ने जारी नहीं किया है; मगर ऐसा अनुमान है कि प्रतिदिन हज़ारों शिकायतें आती हैं। अनुमानित रूप से कह सकते हैं कि एक वर्ष में शासन के पास लाखों शिकायतें दर्ज होती हैं। मगर शिकायतों की अपेक्षा कार्रवाई का अनुपात देखें, तो वह बहुत कम है। बीते वर्ष संभल जनपद की 23 ग्राम पंचायतों में 1.75 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार पाया गया। हरदोई जनपद की भी एक ही ग्राम पंचायत में 12.57 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितताएँ सामने आयीं। ऐसे अनेक मामले उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जनपद में व्याप्त पाये गये हैं। अकेले विकास खंड बड़ोखर ख़ुर्द में हुए लाखों रुपये के भ्रष्टाचार से अनुमान लगाया जा सकता है कि पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार की स्थिति क्या होगी? सपा कार्यकर्ता दिनेश कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार की ज़ीरो टॉलरेंस नीति के ढोल पीटे जाते हैं; मगर भ्रष्टाचार चरम पर है।
आदेश की अवहेलना
कैसा हो, यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना की जाए? उत्तर प्रदेश में ऐसा ही होता है। अपनी ज़ीरो टॉलरेंस नीति को लाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अनेक बार भ्रष्टारियों अपराधियों एवं माफ़ियाओं को चेतावनी दे चुके हैं; मगर उनकी चेतावनी के उपरांत भ्रष्टाचार एवं अपराध में बढ़ोतरी ही हुई है। माफ़ियाओं का हाल यह है कि बीते दिनों मेरठ के एक माफ़िया ने सरेआम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गाली देते हुए उसका कुछ भी बिगाड़ लेने तक की चुनौती दे डाली। सेवानिवृत्त अध्यापक बलवंत सिंह कहते हैं कि अगर मुख्यमंत्री के आदेशों का पालन नहीं होता है, उनकी चेतावनी का किसी पर कोई असर नहीं होता है, तो इसका सीधा अर्थ यह है कि उनके आदेश एवं चेतावनियाँ मात्र जनता को शान्त करने के लिए हैं। अन्यथा ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री कोई आदेश दे अथवा चेतावनी दे, उसका कोई प्रभाव न हो। उत्तर प्रदेश में तो प्रभाव भी उलटा हो रहा है। भ्रष्टाचार भी बढ़ रहा है अपराध भी बढ़ रहे हैं एवं माफ़िया भी लूट मचा रहे हैं। अगर वास्तव में भ्रष्टाचारियों, अपराधियों एवं माफ़ियाओं के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होती, तो उत्तर प्रदेश में वास्तव में राम राज्य होता।
ग्राम पंचायतों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अधिकांश ग्रामीण मौन साध लेते हैं। उन्हें डर रहता है कि अगर उन्होंने कुछ कहा, तो उनके कार्य ग्राम पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधि एवं अधिकारी नहीं करेंगे। मगर कुछ ग्रामीण ऐसे हैं, जो इसकी परवाह नहीं करते वे भ्रष्टाचार की शिकायतें करते रहते हैं, जिससे भ्रष्टाचार की परतें खुलती रहती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि ग्राम पंचायतों में होने वाले भ्रष्टाचार पर संज्ञान लें एवं भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने के आदेश दें। भ्रष्टाचार की शिकायतों एवं कार्रवाई का अनुपात देखकर भी लंबित पड़े एवं ठंडे बस्ते में डाल दिये गये मामलों में कार्रवाई की जा सकती है।
अंजलि भाटिया नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र से ठीक पहले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया ब्लॉक’ ने साझा रणनीति तैयार करने के लिए कमर कस ली है। शुक्रवार, 19 जुलाई को दिल्ली स्थित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास 10, राजाजी मार्ग पर विपक्ष के दिग्गज नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है। बैठक में संसद सत्र के दौरान उठाए जाने वाले अहम मुद्दों और सरकार को घेरे जाने की रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा। इस बैठक में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट), वाम दलों सहित इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों के शीर्ष नेता शामिल होंगे। हालांकि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की भागीदारी को लेकर स्थिति अब भी स्पष्ट नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, बैठक में कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के भी शामिल होने की संभावना है। यह बैठक न केवल आगामी सत्र की तैयारी के लिहाज से अहम मानी जा रही है, बल्कि इंडिया गठबंधन की आंतरिक एकजुटता की परीक्षा के रूप में भी देखी जा रही है। जबकि आम आदमी पार्टी और टीएमसी के पिछले दौर की बैठकों से दूरी बनाने के चलते विपक्ष की एकता को लेकर भी सवाल उठे हैं। सूत्रों ने बताया कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी या पार्टी सांसद अभिषेक बनर्जी वर्चुअल रूप से बैठक में शामिल हो सकते हैं। टीएमसी की ओर से एक वार्षिक पार्टी कार्यक्रम का हवाला देते हुए बैठक में फिजिकल तौर पर शामिल न हो पाने की बात कही गई है। बैठक में कई ज्वलंत राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की संभावना है, जिनमें बिहार की विवादास्पद मतदाता सूची, पहलगाम आतंकी हमला, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की अचानक समाप्ति, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विवादित बयान, भारत की विदेश और व्यापार नीति, चुनाव आयोग की निष्पक्षता, महिलाओं पर अत्याचार, बालासोर आत्मदाह कांड, एयर इंडिया दुर्घटना और गुजरात में पुल ढहने की घटनाएं प्रमुख हैं। सूत्रों के अनुसार, विपक्षी दल संसद में इन मुद्दों को संगठित और प्रभावी ढंग से उठाने के लिए साझा रणनीति तैयार करेंगे। कांग्रेस की कोशिश है कि क्षेत्रीय मुद्दों को भी राष्ट्रीय मंच पर उठाकर विपक्ष की आवाज को और धार दी जाए। वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने संकेत दिया है कि विपक्ष केंद्र की विदेश और व्यापार नीति को लेकर सरकार से जवाब मांगेगा। वहीं, शिवसेना सांसद संजय राउत ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और मतदाता सूची में गड़बड़ियों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में मतदाता सूची में गंभीर अनियमितताएं हैं, जिन्हें संसद में उठाया जाएगा।
संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा। सरकार ने रविवार 20 जून को एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई है
राजस्थान में नक़ली खाद की फैक्ट्रियाँ पकड़े जाने के बाद उत्तर प्रदेश के हापुड़ में नक़ली खाद के हज़ारों बोरे पकड़े गये हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पड़ने वाले हापुड़ में 24 से 26 जून तक हुई छापेमारी में दो गोदाम पकड़े गये, जिनमें 10 बड़ी खाद कम्पनियों के नाम के 40,000 से ज़्यादा बोरे मिले। ये बोरे असली बोरों की तरह ही छपे हुए थे, जिन पर सब्सिडी समेत खाद का भाव और प्रधानमंत्री मोदी की फोटो भी छपी थी। इन बोरों पर प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना लिखा हुआ मिला। हापुड़ पुलिस ने छापेमारी के बाद ख़ुलासा किया कि नक़ली बोरों का एक गोदाम 24 को पकड़ा गया, उसके बाद दूसरा गोदाम 26 जून को पकड़ा गया। इन गोदामों में 10 से ज़्यादा नामचीन कम्पनियों के नाम से छपे नक़ली खाद के 40,000 से ज़्यादा ख़ाली बोरे मिले। इन बोरों को उत्तर प्रदेश रोडवेज बसों में लादकर दूसरे ज़िलों में पहुँचाया जाता था।
ये नक़ली बोरे ऐसे थे कि इनकी पहचान करना मुश्किल है कि ये असली हैं या नक़ली। पुलिस ने बताया कि ये बोरे दिल्ली में छपते थे और हापुड़ से जगह-जगह नक़ली खाद बनाने वालों को बेचे जाते थे। पुलिस को जिन गोदामों से नक़ली बोरे बरामद हुए, उन क़दमों का मालिक पीयूष बंसल फ़रार है; लेकिन दोनों गोदानों के देखरेख करने वले हनी गुप्ता को पुलिस ने गिरफ़्तार करके पूछताछ की है।
हनी गुप्ता ने पुलिस को बताया कि बोरों का ऑर्डर मिलने पर वह रोडवेज बसों में उन्हें रख देता था, जो 30 रुपये प्रति बोरा के हिसाब से बिकते थे।
खाद के ये नक़ली बोरे हर दिन 500 से 1000 तक दूसरे ज़िलों में भेजे जा रहे थे। एक बंडल में 100 से 500 तक बोरे बाँधकर हनी गुप्ता भेजता था। उसे एक बंडल की ढुलाई के 50 रुपये मिलते थे, जिससे वो 300 रुपये तक रोज़ कमा लेता था और गोदामों की निगरानी में उसे अलग रुपये मिलते थे। हनी गुप्ता ने पुलिस को बताया कि ये बोरे मुज़फ़्फ़रनगर, मुरादाबाद, आगरा, बरेली, शाहजहाँपुर और दूसरे ज़िलों को जाने वाली बसों में रखकर भेजे जाते थे। इन नक़ली बोरों पर यूरिया खाद का असली सरकारी भाव 2177.35 रुपये लिखी थी, जिस पर केंद्र सरकार की सब्सिडी 477.35 रुपये लिखी हुई थी, जिसके बाद एक बोरी का बाज़ार भाव 1,700 रुपये लिखा हुआ था। इन बोरों को बनाने वाली कम्पनी का नाम चंबल फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड लिखा था। बहुत बोरों पर इफको भी लिखा था, जिस पर सब्सिडी के बाद 1350 रुपये भाव था।
इस मामले में हापुड़ पुलिस जाँच कर रही है, जिससे नक़ली खाद बनाने वाले पकड़ में आ सकें। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार को इस दिशा में कड़ाई से जाँच करने की ज़रूरत है, जिससे नक्काल पकड़े जा सकें और किसानों को ठगी से बचाया जा सके। हापुड़ पुलिस यह मान रही है कि नक़ली खाद बनाने वाला पूरा गैंग होगा। पुलिस अभी पीयूष बंसल को गिरफ़्तार नहीं कर सकी है। आगे भी कोई ऐसी कार्रवाई नहीं हो रही है, जिससे नक़ली खाद और नक़ली बोरे बनाने वाले पकड़े जा सकें। इससे यह तो तय है कि नक़ली खाद बनाने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में सरकार और पुलिस रुचि नहीं ले रही है। नक़ली खाद के बिकने का एक सुराग़ मिलने के बाद यह कहना चाहिए कि नक़ली खाद की बिक्री किसानों को धोखा देकर ख़ूब की जा रही है। लेकिन इस बीच खाद की कमी दिखाकर कालाबाज़ारी भी ख़ूब हो रही है। धान की पौध रोपने का समय चल रहा है और किसानों को खाद नहीं मिल पा रही है। धन की फ़सल में उर्वरक खादों की माँग बढ़ जाती है और हर साल नक्काल अपनी नक़ली खाद महँगे भाव में खपाने में कामयाब होते हैं, तो खाद विक्रेता किसानों को खाद 30 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तक महँगी बेचते हैं। इसके अलावा दुकानदार किसानों को खाद के बोरे के साथ कीटनाशक और दूसरी दवाएँ जबरन किसानों को बेच रहे हैं। दुकानदार किसानों को खाद का बोरा तभी दे रहे हैं, जब किसान उसके भाव ज़्यादा देने के अलावा दुकानदार की शर्त मानकर कीटनाशक या घास मारने वाली दवा ख़रीद रहे हैं। किसान मजबूर होकर खाद को एमआरपी से ज़्यादा पर ख़रीदने को मजबूर होते हैं।
पहले से ही महँगी हो रही उर्वरक खादों की कालाबाज़ारी और ज़्यादा भाव में बेचे जाने में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सबसे ऊपर हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कालाबाज़ारी का यह खेल हर साल किया जाता है, जिससे मजबूर किसानों को लूटा जा सके। उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में खाद की भारी कमी है। मध्य प्रदेश के खरगोन के ज़िले में स्थित मध्य प्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ पर खाद लेने के लिए किसान रात को ही लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं और भूखे-प्यासे रहकर शाम तक लगे रहते हैं, फिर भी बहुत किसानों को उर्वरक खाद नहीं मिल पाती। अगर सरकारी संस्थाओं का यह हाल है, तो दुकानदारों को कालाबाज़ारी करने से कौन रोकेगा?
उत्तर प्रदेश में खाद की कालाबाज़ारी पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कालाबाज़ारी करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई के निर्देश दिये हैं। इससे यह तय होता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कालाबाज़ारी की बात को मान लिया है। लेकिन उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही अब भी खाद की कमी को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा तब है, जब कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ख़ुद लखनऊ के ज़िला कृषि अधिकारी के साथ मिलकर बख़्शी का तालाब स्थित एक यूरिया खाद के गोदाम मैसर्स किसान खाद भंडार पर गये और खाद के भाव पूछे। दुकानदार ने उन्हें 266.50 रुपये वाले खाद के बोरे के भाव उन्हें भी ज़्यादा बताये। तब कृषि मंत्री ने दुकानदार के ख़िलाफ़ कार्रवाई के आदेश दिये, जिसके बाद उसका खाद का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया।
इतने पर भी कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में खाद की कोई कमी नहीं है। कृषि मंत्री ने कहा है कि राज्य में 15 लाख मीट्रिक टन यूरिया, 3.14 लाख मीट्रिक टन एसएसपी, 2.91 लाख मीट्रिक टन एनपीके, 2.90 लाख मीट्रिक टन डीएपी, 0.77 लाख मीट्रिक टन एमओपी उपलब्ध है, जिसका स्टॉक अभी केंद्र से खाद मिलने पर बढ़ जाएगा। लेकिन उन्होंने कालाबाज़ारी करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की साफ़ चेतावनी दी है। कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने किसानों से कहा है कि महँगे भाव में यूरिया को बेचा जाना किसानों के साथ धोखा है। उन्होंने कहा कि यह उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 और आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है। उन्होंने कृषि अधिकारियों को आदेश दिये हैं कि वे राज्य में खाद की कालाबाज़ारी को रोकने के लिए इसकी जाँच करें और रिपोर्ट सरकार को भेजें। आदेश दिया गया है कि कृषि विभाग ने सभी ज़िला कृषि अधिकारियों से हर दिन खाद की बिक्री और मौज़ूदा स्टॉक का ब्योरा माँगा जा रहा है। फील्ड में उतारे गये अधिकारी गोपनीय तरीक़े से ज़िलों में जाँच कर रहे हैं। जाँच रिपोर्ट के आधार पर गड़बड़ी करने वाले खाद विक्रेताओं और ज़िले के लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई होगी।
कृषि अधिकारी कह रहे हैं कि राज्यों से सटे उत्तर प्रदेश के ज़िलों में विशेष चौकसी की जा रही है, जिससे नक़ली खाद राज्य में न आ सके। लेकिन राज्य के अंदर ही बनने वाली नक़ली उर्वरक खादों को लेकर कोई कुछ नहीं कह रहा है। कई ज़िलों में खाद की समस्या है और नक़ली खाद का किसानों को डर सता रहा है। रबी की फ़सलों के सीजन में सरकार के पास भी नक़ली खादों के बिकने और खाद की कालाबाज़ारी की शिकायतें मिली थीं।
दूसरे राज्यों से लगने वाली उत्तर प्रदेश की सीमाएँ सहारनपुर, पीलीभीत, आगरा, मथुरा, महोबा, गाजीपुर, ललितपुर, बांदा, सोनभद्र, श्राबस्ती, चित्रकूट, बलिया, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, लखीमपुर खीरी ज़िलों से मिलती हैं। इन राज्यों में पुलिस निगरानी बढ़ायी गयी है; लेकिन हापुड़ में पकड़े गये नक़ली खाद के बोरों की जाँच को आगे बढ़ाते हुए नक़ली खाद बनाने वाले अभी नहीं पकड़े गये हैं। कई ज़िलों के किसान शिकायत कर रहे हैं कि उनके पास के सहकारी समितियों में खाद की बहुत कमी है। इसके चलते उन्हें ज़्यादा पैसे देकर दुकानों और दलालों से खाद ख़रीदनी पड़ रही है। सहकारी समितियों से सही और असली खाद मिलने का किसानों को भरोसा रहता है; लेकिन किसानों को हर फ़सल की बुवाई के समय खाद की कमी दिखाकर लूटा जाता है। कृषि मंत्रालय ने ज़िलों में निजी कम्पनियों की रैंक से 40 फ़ीसदी खाद सहकारी समितियों के गोदामों पर भेजने का निर्देश दिया है। लेकिन किसानों को कब तक खाद बिना परेशानी के उचित भाव में मिलेगी, इसके बारे में अभी कुछ पता नहीं है।
कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही की तरह ही कृषि निदेशक डॉ. जितेंद्र सिंह तोमर भी कह रहे हैं कि राज्य में उर्वरक खादों की कोई कमी नहीं है। वह कह रहे हैं कि राज्य में लगभग 27 लाख मीट्रिक टन खाद उपलब्ध है। कृषि निदेशक ने यह भी कहा है कि अगर कोई भी खाद विक्रेता उर्वरक के बोरे के साथ किसानों को जबरन दूसरे उत्पाद बेचता है, तो उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करायी जाएगी। उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट लिखे जाने तक खाद वितरण में अनियमितता और कालाबाज़ारी करने वाले 26 लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हो चुकी थी। लगभग 600 फुटकर खाद विक्रेताओं को नोटिस जारी हो चुके थे। बलरामपुर के ज़िला कृषि अधिकारी और एक दूसरे अधिकारी को निलंबित किया जा चुका था।
कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने उर्वरक खादों की आपूर्ति के लिए राज्य की 26 फर्टिलाइजर कम्पनियों के साथ समीक्षा बैठक की। इस बैठक में तय किया गया कि निजी कम्पनियों की 25 प्रतिशत यूरिया का वितरण उत्तर प्रदेश को-ऑपरेटिव फेडरेशन करेगी। खाद की आपूर्ति सही हो और किसानों को नक़ली खाद बनाने वाले नक्कालों से बचाया जाए, तो यह किसानों के अलावा कृषि संरक्षण के हित में भी उठाया गया क़दम होगा।
इधर भारत का ड्रैगन कैप्सूल ग्रेस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से अपनी दिलचस्प अंतरिक्ष यात्रा करके लौट आया है और उधर चिली के एक पहाड़ पर स्थित दुनिया के सबसे बड़े टेलीस्कोप ने काम करना शुरू कर दिया है। इधर भारत ने ठाना है कि वह अपना स्पेस स्टेशन बनाएगा। इस पर काम भी हो रहा है। इसरो के मुताबिक, साल 2035 तक क़रीब 52 टन का भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा, जो धरती से क़रीब 400 किलोमीटर दूरी पर चक्कर लगाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक ऐसा राकेट बना रहा है, जो पृथ्वी की लोअर आर्बिट में 75,000 किलोग्राम तक के सैटेलाइट लॉन्च कर सकेगा। वहीं चिली में बने टेलीस्कोप का नाम ग्रैन टेलीस्कोपियो कैनेरियास रखा गया है, जो दुनिया के सबसे बड़े ऑप्टिकल से बना है।
यह टेलीस्कोप ऑब्जर्वेटरी अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन और यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के पैसे से बना है। कई साल की मेहनत के बाद बीते 23 जून, 2025 को इस सबसे बड़े टेलीस्कोप के दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल कैमरे ने ब्रह्मांड की पहली बार सबसे दूर की ख़ूबसूरत और रहस्यमयी तस्वीरें खींचीं, जिन्हें वैज्ञानिकों ने जारी किया है। इन तस्वीरों में रंग-बिरंगे नेबुला, ग्रह, उपग्रह, तारे और ब्रह्मांड में बसी ट्राइफेड और लैगून नेबुला के साथ-साथ वर्गों क्लस्टर की आकाशगंगाओं की तस्वीरें शामिल हैं। नये एस्टेरॉयड व अन्य खगोलीय पिंडों की खोज करना है। यह कैमरा वेरा सी. रुबिन ऑब्जर्वेटरी में लगाया गया है, जहाँ से ब्रह्मांड में दक्षिणी ध्रुव का अगले 10 साल तक वैज्ञानिक अध्ययन करेंगे। पिछले क़रीब चार-पाँच वर्षों से क़रीब दुनिया के सबसे बड़े 16 देशों के वैज्ञानिक संगठन यूरोपीय सदन ऑब्जर्वेटरी के सैकड़ों वैज्ञानिक और इंजीनियर हज़ारों सहयोगियों के साथ इस टेलीस्कोप को बनाने में लगे हुए हैं और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वो चिली के पहाड़ों और रेगिस्तान में रह रहे हैं। इस टेलीस्कोप को अभी पूरी तरह से काम करने में तीन साल और लगेंगे।
वैज्ञानिकों ने इसे साल 2028 तक पूरी तरह और ज़्यादा बेहतर तरीक़े से काम करने लायक बनाने की योजना बनायी है। उनका मानना है कि इस टेलीस्कोप से ब्रह्मांड की खोज में बहुत आसानी होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस टेलीस्कोप और इसमें लगे कैमरे से ज़मीन पर रहते हुए ब्रह्मांड में होने वाली अजीब-ओ-ग़रीब गतिविधियों का अध्ययन किया जा सकेगा। हैरानी की बात है कि वैज्ञानिकों ने यह टेलीस्कोप को किसी लैब में नहीं बनाया, बल्कि चिली के एक बड़े पहाड़ को काटकर उसी पर वहीं बनाया गया है। इस टेलीस्कोप का सिर्फ़ प्राइमरी लैंस ही 39.3 मीटर चौड़ा है, जो कि एक फुटबॉल ग्राउंड के बराबर होता है। यह लैंस किसी एक काँच से नहीं, बल्कि 798 हेक्सागोनल टुकड़ों से बनाया गया है। इस लैंस की पावर इतनी ज़्यादा है कि इसके ज़रिये हज़ारों बड़े-बड़े ग्रहों के समूह को आसानी से एक साथ ऐसे देखा जा सकता है, जैसे वो सब नजदीक ही हों। इस टेलीस्कोप की देखने की क्षमता इतनी ज़्यादा है कि यह इंसान की आँखों की तुलना में 100 मिलियन गुना प्रकाश एकत्र करके हब्बल टेलीस्कोप की तुलना में 16 गुना ज़्यादा स्पष्ट तस्वीर लेने में सक्षम है। इसके अलावा इस टेलीस्कोप की प्रकाश-एकत्रण क्षमता इस हब्बल टेलीस्कोप से 250 गुना ज़्यादा होगी। यह टेलीस्कोप 80 मीटर ऊँचा और 50 मीटर चौड़ा है यानी यह टेलीस्कोप एक गगनचुंबी इमारत जैसा है, जिसे कैमरे और लैंसों को ब्रह्मांड के किसी भी कोने की तरफ़ घुमाकर उसे साफ़-साफ़ देखा जा सकेगा।
अभी तक वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के सौरमंडल वाले हिस्से में ही अपनी उपलब्धियाँ हासिल की हैं; लेकिन वैज्ञानिक सौरमंडल के अंदर-बाहर भी झाँकना चाहते हैं, जहाँ पर किसी भी हाल में इंसानों और वैज्ञानिकों द्वारा बनाये गये सेटेलाइट्स, यानों और अन्य मशीनों को पहुँचना मुमकिन नहीं हो सका है। हालाँकि ऐसी कोशिशें वैज्ञानिकों ने लगातार की हैं, जिनमें अभी तक कोई कामयाबी हासिल नहीं हो सकी है। इसलिए वैज्ञानिकों ने अब बड़े-बड़े टेलीस्कोप बनाने शुरू किये हैं, जिससे उनके ज़रिये ब्रह्मांड की गतिविधियों का पता लगाया जा सके और यह समझा जा सके कि इंसानों का ब्रह्मांड में पहुँचने का रास्ता कैसे निकल सकता है। वैज्ञानिकों की कोशिश है कि प्राचीन किताबों में लिखे गये रहस्यों से पर्दा उठाने के साथ-साथ वे उस रहस्यमयी दुनिया की खोज भी कर सकें, जहाँ इंसान धरती की तरह रह सकें। इस कड़ी में वैज्ञानिकों ने अब तक के दुनिया के सबसे बड़े टेलीस्कोप का निर्माण कर लिया है, जो ब्रह्मांड में वहाँ भी देख सकता है, जहाँ वैज्ञानिकों के बनाये हुए यान और सेटेलाइट भी नहीं पहुँच पाते। वैज्ञानिक इस ऑब्जर्वेटरी टेलीस्कोप कैमरे से कम-से-कम 20 अरब आकाशगंगाओं की तस्वीरें लेना चाहते हैं। अब तक दुनिया में अनगिनत टेलीस्कोप बन चुके हैं; लेकिन ब्रह्मांड में झाँकने के लिए बने टेलीस्कोप बहुत कम हैं। हालाँकि टेलीस्कोप का सही इतिहास किसी को नहीं मालूम; क्योंकि इंसान ने दूर की चीज़ें देखने के लिए तारों, ग्रहों और उपग्रहों की गणना के लिए टेलीस्कोप का उपयोग प्राचीन-काल में भी किया होगा, जिसका सुबूत भारत में ब्रह्मांड की सटीक गणना से मिलता है। दिल्ली का जंतर-मंतर आज भी ब्रह्मांड की गणना का जीता-जागता सुबूत है।
फिर भी अब तक बने टेलीस्कोपों में रेडियो टेलीस्कोप, ग्रैन टेलीस्कोपियो कलारियास, केक टेलीस्कोप, ऑप्टिकल टेलीस्कोप, बीटीए-6 टेलीस्कोप, हुकर टेलीस्कोप, लेविथान टेलीस्कोप, हेल टेलीस्कोप, ग्रेगोरियन रिफ्लेक्टर टेलीस्कोप, क्रिस्टियान ह्यूजेन्स टेलीस्कोप, जेम्स वेब टेलीस्कोप, बेरिलियम टेलीस्कोप, हबल टेलीस्कोप, हॉबी-एबर्ली टेलीस्कोप, हर्शेल टेलीस्कोप, ग्रेट डोरमेट रिफ्रैक्टर टेलीस्कोप, रॉसे टेलीस्कोप आदि प्रमुख रहे हैं। लेकिन अब जो टेलीस्कोप बना है, वो भविष्य की उन इंसानी पीढ़ियों के लिए एक खिड़की होगी, जो शायद कभी इस ज़मीन से अलग ब्रह्मांड की दूसरी दुनिया में जाकर बसने में मदद करेगी। यह टेलीस्कोप विज्ञान और कला के साथ-साथ इंसानों की तरक़्क़ी का एक ऐसा जीता-जागता उदाहरण है, जो हमें आसमान में सैर करने का हौसला देता है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों की मिलीजुली मेहनत यह बताती है कि इंसान एकजुट होकर बड़े-से-बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। क़रीब 16 देशों के वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे बड़े टेलीस्कोप को बनाकर यह साबित कर दिया है कि मिलजुलकर काम करने से ही दुनिया का भला हो सकता है। यह विशालकाय टेलीस्कोप वैज्ञानिकों की प्रयोगशाला से ज़्यादा लोगों के उज्जवल भविष्य की खोज के लिए काम करेगा। इसे चिली के अटाकामा रेगिस्तान में इसलिए बनाया गया है, जिससे टेलीस्कोप को सबसे साफ़ और स्थिर जगह मिल सके और उससे सबसे सूखे और खुले आसमान के पार जाकर ब्रह्मांड में बनी आकाशगंगाओं को साफ़-साफ़ देखा जा सके। इसलिए इस टेलीस्कोप को अटाकामा की सबसे ऊँचे क़रीब 3,000 मीटर ऊँचे सेरो अमेज़न पहाड़ पर बनाया गया है। इस पहाड़ पर हवा पतली और प्रदूषण रहित है। इस पहाड़ को टेलीस्कोप बनाने लायक बनाने के लिए सबसे पहले समतल किया गया, जिसके लिए बम ब्लास्ट करके पहले पहाड़ के ऊपरी हिस्से को तोड़ा गया और फिर बड़ी-बड़ी मशीनें से उसे ऊपर से समतल किया गया। टेलीस्कोप का वजन क़रीब 5,000 टन है, जिसकी देखरेख और संचालन के लिए वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक बड़ी टीम अब इसी टेलीस्कोप के पास ज़िन्दगी बिताएगी।
इस टेलीस्कोप को बनाने के लिए अटाकामा की इतनी ऊँची और उबड़ खाबड़ पहाड़ियों पर भारी-भारी मशीनें और टेलीस्कोप में लगने वाली सामग्री ले जाकर इतनी सटीक इंजीनियरिंग को ब्रह्मांड के अध्ययन करने लायक दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा टेलीस्कोप बनाना अपने आप में एक चुनौती थी; लेकिन वैज्ञानिकों ने इसके सफलतापूर्वक बनाकर यह साबित कर दिया कि विज्ञान विकास के नये आयाम गढ़ रहा है। वैज्ञानिकों ने यह चमत्कार पहली बार किया है कि किसी ऊँचे पहाड़ पर पहाड़ जैसी टेलीस्कोप मशीन खड़ी कर दी, जो अच्छी तरह काम भी कर रही है। इस टेलीस्कोप को बनाने में वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और टेक्नीशियनों के अलावा हज़ारों कर्मचारियों और मज़दूरों का भी बड़ा योगदान रहा है। दावा किया जा रहा है कि इस टेलीस्कोप का हर हिस्सा किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह टेलीस्कोप धरती से ही ब्रह्मांड में लाखों किलोमीटर दूर की गतिविधियों की एक अच्छे डिजिटल फ़िल्म कैमरे से 10 गुना ज़्यादा स्पष्ट बिलकुल नासा के हबल स्पेस टेलीस्कोप की तरह तस्वीर लेने में सक्षम है।
टेलीस्कोप की एडाप्टिव ऑप्टिक्स टेक्नोलॉजी से वायुमंडल की हलचल को रियल टाइम में ठीक किया जा सकता है, जिससे ब्रह्मांड की बिलकुल साफ़ एचडी तस्वीर दिखेगी; लेकिन इस टेलीस्कोप का मक़सद सिर्फ़ ब्रह्मांड की अकल्पनीय तस्वीरें लेना ही नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड के सबसे रहस्यों को सुलझाकर उन अनसुलझे सवालों के जवाब खोजना है, जो सदियों से लोगों को हैरान किये हुए हैं। जैसे कि ब्रह्मांड कितना बड़ा है? ब्रह्मांड में क्या होता है? ब्लैक होल्स कैसे बनते-बिगड़ते हैं? क्या ब्रह्मांड में और भी सौर मंडल हैं? क्या ब्रह्मांड में कहीं और भी ज़िन्दगी जीने के संसाधन हैं? क्या ब्रह्मांड में आग, हवा और पानी जैसे तत्त्व और कहीं भी मौज़ूद हैं? अगर किसी ग्रह पर ज़िन्दगी के लक्षण होंगे, तो शायद पहली झलक इस टेलीस्कोप के ज़रिये देखी जा सके। ब्रह्मांड एक ऐसा रहस्य है, जिसे कोई पूरा नहीं समझ पाया। लेकिन वैज्ञानिक इसे समझने की कोशिशों में लगातार लगे हैं। हालाँकि वैज्ञानिक अभी तक ज़मीन के ही सभी रहस्यों को नहीं समझ सके हैं। लेकिन लंबे समय से ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज में भी उन्हें काफ़ी सफलता मिल चुकी है। वैज्ञानिक जैसे-जैसे नये-नये ज़्यादा उपयोगी उपकरण बनाते जा रहे हैं, वैसे-वैसे ब्रह्मांड के रहस्यों से पर्दा उठता जा रहा है। वैज्ञानिकों की ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने की कोशिशों के पीछे इंसानी ज़िन्दगी को बेहतर-से-बेहतर और सुविधाजनक बनाने का मक़सद है। आज एक तरफ़ जहाँ चंद बड़े लोग अपने फ़ायदे के लिए इंसानों की हत्या करने पर आमादा हैं, वहीं वैज्ञानिक ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजकर मौत को भी रोकना चाहते हैं। हालाँकि इसकी कि
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फ़ैसला लेते हुए कर्मचारियों की भर्ती में पहले एससी यानी अनुसूचित जाति, एसटी यानी अनुसूचित जनजाति वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया और जब ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण देने की माँग उठी, तो अब उसने ओबीसी वर्ग के लिए भी आरक्षण लागू कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के साथ ही शारीरिक अक्षम पानी दिव्यांगों, पूर्व सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान अपने यहाँ कर्मचारियों की भर्तियों में रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्टाफ की भर्तियों में आरक्षण लागू करने के इस फ़ैसले को पहली बार अमल में लाया है, जिससे आरक्षण पाने वाले वर्गों में ख़ुशी की लहर है।
बहरहाल, यह आरक्षण सिर्फ़ कर्मचारियों की नयी भर्तियों में ही लागू नहीं होगा, बल्कि उनके प्रमोशन में भी लागू होगा। हालाँकि कुछ वर्ग सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले की दबी ज़ुबान से आलोचना कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में एससी, एसटी वर्गों के लिए आरक्षण लागू होने के बाद ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की माँग सुप्रीम कोर्ट के वकील बलराज सिंह मलिक ने पीआईएल डालकर की थी, जो कि संयोजक, सुप्रीम कोर्ट वकील / अधिवक्ता मंच एवं पूर्व मानद चेयर प्रोफेसर (न्याय और सामंजस्यपूर्ण समाज के लिए विधि चेयर) की ओर से डाली गयी थी। लेकिन इस ओपन पिटीशन / पीआईएल पर सुनवाई से पहले ही संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी वर्ग के लिए भी आरक्षण लागू कर दिया।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के वकील बलराज सिंह मलिक ने अपनी पीआईएल / पिटीशन में सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई एवं अन्य सभी जजों को लिखा कि माननीय मुख्य न्यायाधीश और सम्मानित न्यायाधीश महोदय, हम हस्ताक्षरकर्ता आपके समक्ष यह खुला पत्र प्रस्तुत करते हुए 23 जून, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए ग़ैर-न्यायिक कर्मचारी पदों पर सीधी भर्ती और पदोन्नति में औपचारिक आरक्षण नीति लागू करने के ऐतिहासिक निर्णय के लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। माननीय मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई के नेतृत्व में लागू यह ऐतिहासिक नीति, सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को बनाये रखने और भारत के संविधान में निहित समानता के सिद्धांत को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम है। हम विनम्रतापूर्वक आपके समक्ष अनुरोध करते हैं कि संवैधानिक प्रावधानों और सरकारी नीतियों के अनुरूप, सर्वोच्च न्यायालय में रोज़गार में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए समान सकारात्मक कार्रवाई लागू की जाए।
उन्होंने पीआईएल में भारत का संविधान के अनुच्छेद-15(4) का हवाला देते हुए लिखा कि इस अनुच्छेद के तहत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों, जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय शामिल हैं, के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद-16(4) राज्य सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व न रखने वाले किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए सार्वजनिक रोज़गार में आरक्षण सक्षम बनाता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में एससी, एसटी कर्मचारियों के लिए आरक्षण नीति को अपनाना, जिसमें रजिस्ट्रार, वरिष्ठ निजी सहायक, सहायक लाइब्रेरियन, जूनियर कोर्ट सहायक और चैंबर अटेंडेंट जैसे पद शामिल हैं, समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए एक प्रशंसनीय मिसाल कायम करता है।
माननीय मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि यदि सभी सरकारी संस्थान और कई उच्च न्यायालय पहले से ही एससी और एसटी के लिए आरक्षण लागू कर रहे हैं, तो सर्वोच्च न्यायालय को अपवाद क्यों होना चाहिए? उन्होंने पीआईएल में निवेदन किया कि सर्वोच्च न्यायालय में रोज़गार में बीसी और ओबीसी समुदायों के लिए आरक्षण का विस्तार करने से इस संस्थान की वास्तविक समानता के प्रति प्रतिबद्धता और मजबूत होगी। उन्होंने इसके लिए इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के फ़ैसले का उदाहरण भी दिया, जिसके तहत सार्वजनिक रोज़गार में ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण की संवैधानिकता को बरक़रार रखा, जिसमें सामाजिक पिछड़ापन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को प्रमुख मानदंड बताया गया। इसके अलावा उन्होंने दूसरे कई उदाहरण दिये, जिसमें 01 अगस्त, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय, जिसमें एससी, एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देने का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि सरकारी नीतियों में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के परिपत्रों में उल्लिखित केंद्रीय सरकार की सेवाओं में ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण अनिवार्य करने का ज़िक्र किया। इसके अलावा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण नीति के कार्यान्वयन की माँग की और मॉडल रोस्टर प्रणाली के हिसाब से भर्ती और पदोन्नति में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने वाली प्रक्रिया अपनाने की अपील की। साथ ही क्रीमी लेयर का बहिष्कार किया।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी आरक्षण को अपने 75 सालों के इतिहास में पहली बार लागू किया है। 23 जून 2025 से लागू हुई इस आरक्षण नीति के मुताबिक एससी, एसटी वर्गों लोगों की सीधी कर्मचारी भर्ती और प्रमोशन आदि में क्रमश: 15 फ़ीसदी और 7.5 फ़ीसदी आरक्षण मिलेगा, जो कि दूसरी सरकारी नौकरियों में भी लागू है। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों और कर्मचारियों की सीधी भर्ती में एससी, एसटी वर्गों के लोगों को 200 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली के तहत ये आरक्षण मिलेगा। इसी प्रकार से ओबीसी वर्ग के लोगों को भी कर्मचारी भर्ती और प्रमोशन में 27 फ़ीसदी आरक्षण भी मिलेगा, जो कि 04 जुलाई से लागू हो चुका है। सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने 02 जुलाई, 1997 को ही आदेश जारी कर दिया था; लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इसे 28 साल बाद लागू करने का ऐलान हुआ है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों, पूर्व सैनिकों, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों भी आरक्षण देने का प्रावधान किया है।
एससी, एसटी, ओबीसी, दिव्यांगों, पूर्व सैनिकों, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को अपने आंतरिक प्रशासन में संवैधानिक आधार पर सामान अवसर देकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण क़दम उठाया है, जो कि राज्यों को आरक्षण नीति लागू रखने के लिए एक मिसाल के तौर पर माना जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई ने संविधान के अनुच्छेद-146(2) में दी गयी अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए भारत में लागू आरक्षण को संवैधानिक सर्वोच्च न्यायालय अधिकारी एवं सेवा नियम-1961 में संशोधन करके लागू किया है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने नियम-4(ए) को पूरी तरह से नये नियम से बदल दिया है। सुप्रीम कोर्ट में सीधी भर्ती में अलग-अलग पदों पर लागू इस आरक्षण से इन वर्गों के युवाओं को राहत मिलेगी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने अपने यहाँ ओबीसी के आरक्षण को लागू करने में 28 साल लगा दिये। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये इस आरक्षण को केंद्र सरकार की तरफ़ से समय-समय पर जारी किये गये नियमों, आदेशों और अधिसूचनाओं के हिसाब से ही लागू किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में कर्मचारियों के पदों पर भर्ती में वर्तमान वेतनमान के साथ केंद्र सरकार की आरक्षण नीति के मुताबिक ही भर्ती प्रक्रिया को अपनाया जाएगा।
हालाँकि इस आरक्षण नीति में सीजेआई संशोधन और बदलाव कर सकते हैं या अपवाद कर सकते हैं। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ऐसा नहीं करेगा और इसकी कोई संभावना भी नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ निजी सहायक, सहायक लाइब्रेरियन, जूनियर कोर्ट सहायक, जूनियर कोर्ट सहायक सह जूनियर प्रोग्रामर, जूनियर कोर्ट अटेंडेंट और चैंबर अटेंडेंट (आर) पदों पर आरक्षण मिलने वाले सभी वर्गों के लोगों की भर्तियाँ की जाएँगी।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस आरक्षण नीति को लागू करने के बावजूद देश के कई ऐसे राज्य हैं, जहाँ आरक्षण ठीक से लागू नहीं किया गया। मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही हुआ है, जहाँ ओबीसी वर्ग के लोगों को सरकारी भर्तियों में पूरा 27 फ़ीसदी आरक्षण न देकर महज़ 14 फ़ीसदी आरक्षण ही दिया गया है। इसी को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की न सिर्फ़ फटकार लगायी है, बल्कि ओबीसी वर्ग को 13 फ़ीसदी आरक्षण न देने पर भी जवाब माँगा है।
दरअसल, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई कर रहा था। जब 14 अगस्त 2019 को मध्य प्रदेश की कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में आरक्षण का क़ानून पारित करते हुए इस अध्यादेश की जगह एक्ट लागू कर दिया, तो इसके समर्थन में 35, जबकि विरोध में 63 याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल हुई थीं। अक्टूबर, 2019 में कमलनाथ के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा था। बीच में ही भाजपा ने कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से सत्ता छीनकर आरक्षण क़ानून की इस एक्ट को जारी रखा। 18 दिसंबर 2024 को इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में हुई; लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो गया। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के तहत ओबीसी वर्ग की भर्तियों में पूरा 27 फ़ीसदी आरक्षण लागू न करने को लेकर मोहन यादव के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार से जवाब तलब कर लिया।
बहरहाल, आरक्षण की माँग हर वर्ग करता है; लेकिन सभी वर्गों को आरक्षण आज तक नहीं मिल सका है। मसलन, कुछ ही साल पहले केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्ण ग़रीबों को एससी, एसटी और ओबीसी से ज़्यादा संपत्ति होने पर भी 10 फ़ीसदी अतिरिक्त आरक्षण दे दिया, जिसे ईडब्ल्यूएस कहते हैं। लेकिन वहीं जाट समुदाय से लेकर सिखों, जैनों, बौद्धों, सिंधियों, मारवाड़ियों, मुसलमानों आदि के लिए आज भी कोई आरक्षण नीति नहीं बनायी गयी है।
इसी प्रकार से अरुणाचल प्रदेश में अनुसूचित जातियों के लिए पंचायत सीटों में आरक्षण नहीं मिलता है। लेकिन जाति या वर्ग के आधार पर आरक्षण से बचने के लिए कुछ राज्यों की सरकारों ने अपने ही राज्य के नागरिकों को ज़्यादा आरक्षण देना शुरू कर दिया है। मसलन, कर्नाटक सरकार ने अपने राज्य के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की कोशिशें कीं। हरियाणा सरकार ने तो 75 फ़ीसदी आरक्षण का क़ानून बनाया था; लेकिन पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक क़रार देते हुए रद्द कर दिया था। हालाँकि झारखण्ड सरकार ने अपने राज्य के लोगों को आरक्षण देने के लिए आरक्षण संशोधन विधेयक पारित करके 77 फ़ीसदी आरक्षण लागू कर दिया। इसी प्रकार से आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और दूसरे कई राज्यों में वहाँ की सरकारों ने स्थानीय लोगों को रोज़गार में प्राथमिकता देने की कोशिशें की हैं।
भारत में न्याय में अक्सर ज़्यादा समय लगना और सुनवाई में देरी होना आम बात होने के चलते ज़मानत क़ानूनों में सुधार की माँग ज़ोर पकड़ रही है। देश की जेलों में बंद दो-तिहाई से ज़्यादा क़ैदी विचाराधीन हैं, जिनमें से कई को तो सलाख़ों के पीछे रखा भी नहीं जाना चाहिए। उनकी निरंतर हिरासत का कारण आमतौर पर उनके कथित अपराधों की गंभीरता नहीं, बल्कि पुरानी क़ानूनी प्रणाली और सामाजिक असमानताएँ हैं। इस समस्या में एक प्रमुख रास्ता ज़मानत प्रणाली है। लेकिन इस व्यवस्था का कुछ मामलों में बेईमान तत्त्वों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए एक व्यापक ज़मानत अधिनियम पारित करने की तत्काल आवश्यकता है। ऐसा अधिनियम, जो स्पष्ट सिद्धांत निर्धारित करे, असंगतता को दूर करे और जेल नहीं, ज़मानत के संवैधानिक वादे को बेहतर ढंग से क़ायम रख सके।
‘तहलका’ के विशेष जाँच दल ने इस बार अपनी पड़ताल के दौरान ज़मानत को लेकर चौंकाने वाले तथ्य उजागर किये, जिससे पता चला कि देश में ज़मानत एक व्यवसाय बन गया है। हमारी आवरण कथा- ‘फ़र्ज़ी ज़मानत बॉन्ड माफ़िया’ में हम प्रणाली की भ्रष्ट कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाल रहे हैं, जहाँ फ़र्ज़ी गारंटर, बिचौलिये और संदिग्ध क़ानूनी पेशेवर लाभ के लिए ज़मानत प्रक्रिया में हेरफेर करते हैं। प्रभारित दरें स्थान और मामले के प्रकार जैसे कारकों पर निर्भर करती हैं। इससे वास्तविक और धोखाधड़ी वाली प्रथाओं के बीच का अंतर धुँधला हो जाता है, जिसमें बिचौलिये अपने लाभ के लिए दोनों पक्षों का शोषण करते हैं। न केवल वित्तीय लाभ के लिए फ़र्ज़ी ज़मानतें करायी जा रही हैं, बल्कि मानक ज़मानत प्रणाली का भी व्यवसायीकरण कर दिया गया है। रेलवे में बड़े पैमाने पर हुए ज़मानत बांड घोटाले की सीबीआई द्वारा हाल ही में की गयी जाँच से इस अवैध बाज़ार की जड़ें जमा लेने की प्रकृति और अधिक स्पष्ट हो गयी है।
मूलत: ज़मानत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियुक्त व्यक्ति मुक़दमे के लिए वापस आये, न कि उसका अपराध सिद्ध होने से पहले उसे दंडित किया जाना। ज़मानत देने से इनकार करना एक दुर्लभ अपवाद होना चाहिए, जो केवल उन मामलों के लिए आरक्षित होना चाहिए, जहाँ अभियुक्त के भागने का ख़तरा हो या साक्ष्यों के साथ हस्तक्षेप कर सकता हो या गवाहों के लिए ख़तरा पैदा कर सकता हो। जब कोई मामला मुख्यत: दस्तावेज़ी साक्ष्य पर आधारित हो, तो प्रक्रियागत देरी के कारण अभियुक्त को हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए। हालाँकि ज़मानत सम्बन्धी निर्णयों में विसंगतियाँ एक सतत् समस्या बनी हुई है। किसी को ज़मानत दी जाए या नहीं, और कब दी जाए; यह अक्सर मामले के गुण-दोष पर कम, जबकि न्यायिक विवेक या अभियोजन पक्ष के विरोध पर अधिक निर्भर करता है। मजिस्ट्रेटों द्वारा रिमांड को मंज़ूरी देने की प्रवृत्ति के कारण स्थिति और भी ख़राब हो जाती है; विशेषकर तब, जब पुलिस द्वारा स्वत: ही अनुरोध किया जाता है।
यह जानना उत्साहवर्धक है कि पिछले सप्ताह ही भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर स्मारक विधि व्याख्यान के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला था कि ‘ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है।’ लेकिन इसके मूलभूत सिद्धांत को हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर नज़रअंदाज़ किया गया है। यदि इसका पालन किया जाता, तो भारत की जेलों में 3.75 लाख विचाराधीन क़ैदी नहीं होते, जो कुल क़ैदियों का 74.2 प्रतिशत हैं। न्यायाधीश गवई ने अधिक सहानुभूति की आवश्यकता पर बल दिया; क्योंकि विचाराधीन क़ैदियों में से अधिकांश हाशिये के समुदायों से आते हैं। इस बीच 12 जून की दुर्घटना के बारे में भारत के विमान दुर्घटना जाँच ब्यूरो (एएआईबी) की रिपोर्ट ने महत्त्वपूर्ण इंजन ईंधन कट-ऑफ स्विच की स्थिति पर नये सवाल उठाये हैं। कुछ अच्छी ख़बरें भी हैं। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर क़दम रखने वाले पहले भारतीय बनकर इतिहास रचने वाले अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला वापस लौट आये हैं। ग्रुप कैप्टन शुक्ला अंतरिक्ष में जाने वाले केवल दूसरे भारतीय हैं। एक्सिओम-4 की यात्रा अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा द्वारा सन् 1984 में रूसी सोयुज टी-11 से उड़ान भरने के 41 वर्ष बाद हुई है।
– फ़र्ज़ी गवाहों और फ़र्ज़ी बॉन्ड के दम पर ज़मानत ले रहे लोग
इंट्रो– भारतीय न्यायिक व्यवस्था क़ानूनी रूप से सुचारू होती है; लेकिन क़ानून साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर आगे बढ़ता है। लेकिन फ़र्ज़ी साक्ष्यों और फ़र्ज़ी गवाहों के चलते कई फ़ैसले ग़लत हो जाते हैं। भारत में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं, जहाँ अपराधी बेगुनाह साबित हो जाते हैं और बेगुनाहों को सज़ा हो जाती है। ऐसा इसलिए हो पाता है, क्योंकि पैसे के दम पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ और फ़र्ज़ी गवाह आसानी से मिल जाते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल से पता चला है कि किस तरह फ़र्ज़ी गारंटर और बिचौलिये क़ानूनी ख़ामियों और न्यायिक प्रक्रियाओं का फ़ायदा उठाकर ज़मानत प्रक्रिया को काले बाज़ार में बदल रहे हैं। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह विशेष रिपोर्ट :-
‘मुझे दो दिन का समय दो। दो दिन में मैं आपके आरोपियों की फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए फ़र्ज़ी काग़ज़ात का इंतज़ाम कर दूँगा। एक बार जब वह बाहर आ जाता है, तो वह अदालत की तारीख़ों को छोड़ सकता है और जहाँ चाहे ग़ायब हो सकता है।’ -फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए फ़र्ज़ी गारंटर का इंतज़ाम करने वाले दलाल मुनाज़िर ने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर से कहा, जो उससे ग्राहक बनकर मिले थे।
‘एक बार जब हमने आपसे फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए पैसे ले लिए, तो आपको और चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है। आपका काम हो जाएगा। और इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आरोपी ज़मानत मिलने के बाद भाग जाता है।’ -मुनाज़िर ने संवाददाता को आश्वस्त करते हुए कहा।
‘हम चार फ़र्ज़ी गारंटरों के लिए 30,000 रुपये लेंगे। इसमें से आपको आज 4,000 रुपये देने होंगे। यह गारंटर को टोकन मनी के रूप में दिया जाएगा। शेष 26,000 रुपये आप ज़मानत के दिन दे सकते हैं।’ -मुनाज़िर ने स्पष्ट किया।
‘अपने वकील से कहें कि वह न्यायालय में यह बात न फैलने दें कि ज़मानत देने वाले गारंटर फ़र्ज़ी हैं। हालाँकि मैं आपके मामले की ज़िम्मेदारी ख़ुद नहीं ले सकता। मेरा एक दोस्त है- मुनाज़िर, जो यह काम पूरा कर देगा। उसके पास इसके लिए सही लोग हैं।’ -मुनाज़िर के सहयोगी सूरज चंद ने बताया, जो ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर के साथ बैठक में उनके साथ था।
‘ज़मानती गारंटर बनना एक तेज़ी से बढ़ता व्यवसाय बन गया है। मैं कई मामलों में पैसे के बदले गारंटर के रूप में खड़ा हुआ हूँ। यह राशि हर मामले में अलग-अलग होती है। एक बार मैंने 30,000 रुपये लिये थे। कभी-कभी 5,000 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक लेता हूँ। राजस्थान में दरें बहुत अधिक हैं। वहाँ लोग प्रति ज़मानत 15,000 से 20,000 रुपये तक लेते हैं। झारखण्ड में लगभग 10,000 रुपये लेते हैं।’ -इरशाद अहमद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।
ज़मानत से तात्पर्य किसी अपराध के लिए गिरफ़्तार किये गये व्यक्ति को या तो स्वयं की पहचान पर या बाद में अदालत में उपस्थित होने पर गारंटी के आधार पर, जो आमतौर पर मुचलका- रुपये देकर ली गयी प्रतिभूति न्यायालय में जमा करके या संपत्ति की गारंटी देने के बाद मिलती है। ज़मानत हिरासत से अस्थायी रिहाई है। यह दोषी या निर्दोष होने का निर्धारण नहीं है। यह एक वादा है, जो अक्सर धन के साथ दिया जाता है कि अभियुक्त न्यायालय की सभी निर्धारित सुनवाइयों में उपस्थित रहेगा। कई मामलों में अभियुक्त को एक ज़मानतदार पेश करना आवश्यक होता है; एक ऐसा व्यक्ति, जो यह सुनिश्चित करने के लिए गारंटर के रूप में कार्य करता है कि अभियुक्त ज़मानत की शर्तों का पालन करे। इसे ज़मानत बॉन्ड के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन कुछ मामलों में ये गारंटर फ़र्ज़ी निकल रहे हैं। आरोपी के अनुरोध पर ये दलाल न्यायालयों में फ़र्ज़ी दस्तावेज़ पेश करते हैं। रिहा होने के बाद आरोपी अक्सर फ़रार हो जाता है और भविष्य में अदालत की तारीख़ों पर कभी पेश नहीं होता। इसके बाद पुलिस को गारंटरों का पता लगाने में भी कठिनाई होती है; क्योंकि उनके दस्तावेज़ भी फ़र्ज़ी होते हैं।
हेरफेर करके रिहाई के इस तरीक़े को फ़र्ज़ी ज़मानत के रूप में जाना जाता है और यह भारत में एक बड़े घोटाले का रूप ले चुका है। फ़र्ज़ी ज़मानतें आमतौर पर 20,000 रुपये या उससे कम की ज़मानत राशि वाले मामलों में होती हैं, जहाँ गारंटर का पुलिस सत्यापन अनिवार्य नहीं होता है। इसके विपरीत, 20,000 रुपये से अधिक की ज़मानत के लिए गारंटर की साख का पुलिस सत्यापन आवश्यक होता है, जिससे ऐसे मामलों में फ़र्ज़ी ज़मानत प्राप्त करना कठिन हो जाता है। भारत में फ़र्ज़ी ज़मानत माफ़िया की व्यापक उपस्थिति को देखते हुए ‘तहलका’ ने एक लम्बे समय से लंबित पड़ताल करने का निर्णय लिया, जो पहले कभी नहीं की गयी है। ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर ने एक फ़र्ज़ी ग्राहक बनकर एक बिचौलिये के माध्यम से उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में कुछ ऐसी ज़मानत कराने वाले दलालों से संपर्क किया। एक ऑपरेटर के अनुसार, वह अमरोहा स्थित एक वकील के माध्यम से दो गारंटरों की व्यवस्था कर सका, जो नियमित रूप से न्यायालय से ज़मानत चाहने वालों को गारंटी देने के लिए इस कार्य करने वालों को न्यायालय में भेजता है।
यह बिचौलिया मुनाज़िर (जो अपने पहले नाम से जाना जाता है) और सूरज चंद को अमरोहा से उत्तर प्रदेश के ग़ज़रौला में एक रेस्तरां में ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलाने के लिए लाया। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मुनाज़िर और सूरज को एक झूठा विवरण दिया कि मुरादाबाद ज़िले के एक गाँव से हमारे ड्राइवर को चोरी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है, और उन्हें (रिपोर्टर को) उसकी रिहाई के लिए एक फ़र्ज़ी ज़मानतदार की ज़रूरत है। मुनाज़िर ने हमें विश्वास दिलाया कि वह फ़र्ज़ी दस्तावेज़ और फ़र्ज़ी गारंटर का इंतज़ाम कर सकता है; लेकिन इसके लिए उसे दो दिन का समय चाहिए। उसने यह भी गारंटी दी कि ज़मानत मिलने के बाद हमारा ड्राइवर ग़ायब हो सकता है और उसे भविष्य में अदालती सुनवाई में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने जो फ़र्ज़ी मामला प्रस्तुत किया था, उसमें 20,000 रुपये की काल्पनिक ज़मानत शामिल थी; जो ज़मानत क़ानूनी तौर पर गारंटर के पुलिस सत्यापन की आवश्यकता को दरकिनार करने के लिए पर्याप्त थी।
रिपोर्टर : हमें करवानी है फ़र्ज़ी ज़मानत।
मुनाज़िर : तो हमें दो दिन का टाइम दे दो।
रिपोर्टर : दो दिन में क्या करोगे?
मुनाज़िर : दो दिन में फ़र्ज़ी काग़ज़ दे दूँगा और हमारे यहाँ पर ज़मानत करवाके ड्राइवर कहीं भी भागे, कहीं भी जाए, …आओ, मत आओ।
रिपोर्टर : ड्राइवर कहीं भी ज़मानत करवाकर भाग जाए?
मुनाज़िर : कहीं भी रहो, आओ, न आओ; …ज़मानत हो जाएगी।
जब मुनाज़िर से ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पूछा कि उसे ज़मानत के लिए दो दिन क्यों चाहिए? जबकि ज़मानत उसी दिन के लिए निर्धारित है; तो मुनाज़िर ने कहा कि उसे गारंटर की व्यवस्था करने के लिए समय चाहिए। उसने कहा कि ज़मानत के तौर पर वह फ़र्ज़ी गारंटरों की ज़मीन के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ पेश करेंगे। उसने कहा कि जिस वकील के माध्यम से वे लोग हमसे (रिपोर्टर से) मिलने आये हैं। यदि उन्होंने (वकील) उन्हें पहले ही बता दिया होता कि यह एक फ़र्ज़ी ज़मानत का मामला है; तो वे उसी दिन फ़र्ज़ी गारंटर का इंतज़ाम कर देते। मुनाज़िर ने दावा किया कि सम्बन्धित वकील ने उन्हें पहले कभी सूचित नहीं किया, जिसके कारण देरी हुई।
रिपोर्टर : दो दिन क्यूँ माँग रहे हो, …ज़मानत तो आज है?
मुनाज़िर : अरे, ऐसे न होगा; …टाइम तो लगेगा।
रिपोर्टर : फ़र्ज़ी काग़ज़ में क्या लगाओगे आप?
मुनाज़िर : यही, …ज़मीन की मेरी।
रिपोर्टर : है आपके पास?
मुनाज़िर : मेरे पास नहीं है औरों के पास है। मुझे अगर बता देते आज सवेरे, मैं आज ही करवा देता।
रिपोर्टर : वकील साहब ने तो इसलिए भेजा है, इरशाद से तो 10 दिन से बात हो रही है मेरी।
मुनाज़िर : वकील साहब ने ये बात न बतायी मेरे से।
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने आगे बढ़ने से पहले अंतिम आश्वासन के लिए मुनाज़िर से पूछा कि क्या काम आसानी से और बिना किसी परेशानी के हो जाएगा? मुनाज़िर ने विश्वास के साथ वादा किया कि सब कुछ बिना किसी बाधा के पूरा हो जाएगा।
मुनाज़िर : काम पूरा होगा।
रिपोर्टर : पक्का, ज़िम्मेदारी ले लूँ?
मुनाज़िर : हाँ।
रिपोर्टर : मुझे एक चीज़ बता दो, …आपको मैं अच्छा लगा और मुझे आप; …एक बात बताओ, ईमानदारी से- काम हो जाएगा? कहीं अटकेगा तो नहीं?
मुनाज़िर : कहीं नहीं अटकेगा।
‘तहलका’ रिपोर्टर की आशंकाओं को दूर करने के लिए मुनाज़िर ने उन्हें बताया कि वह पहले भी फ़र्ज़ी ज़मानत के मामलों में शामिल रहा है। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि उनका (रिपोर्टर का) काम बिना किसी समस्या के हो जाएगा।
रिपोर्टर : ये बताओ, जो आप फ़र्ज़ी ज़मानत करवाओगे हमारे बंदे की, उसमें ऐसा तो नहीं आगे कोई परेशानी हो?
मुनाज़िर : है जाएगो (हो जाएगा)।
रिपोर्टर : आप करा चुके हो पहले?
मुनाज़िर : हाँ।
जब रिपोर्टर ने कहा कि उन्हें नक़ली गारंटरों की ज़रूरत है, तो मुनाज़िर ने उन्हें (रिपोर्टर को) सलाह दी कि बातचीत के दौरान वह (रिपोर्टर) बार-बार फ़र्ज़ी शब्द का इस्तेमाल न करें। मुनाज़िर ने कहा कि आपका (रिपोर्टर का) ध्यान अपने मुवक्किल की ज़मानत सुनिश्चित करने पर होना चाहिए और अपनी सुरक्षा के लिए उन्हें बार-बार फ़र्ज़ी शब्द का प्रयोग करने से बचना चाहिए।
रिपोर्टर : ये तो एक बोल रहे हैं, मुझे दो चाहिए थे फ़र्ज़ी।
मुनाज़िर : तुम फ़र्ज़ी का नाम ही मत लो, चार दिला देंगे ज़मानती। फ़र्ज़ी का नाम मत लो, तुमने बात खोल दी बस।
रिपोर्टर : अरे, मैं आपसे तो बात कर सकता हूँ?
मुनाज़िर : हमने कह दिया ना! ओरिजनल देंगे, फ़र्ज़ी हो फ़र्ज़ी।
रिपोर्टर : होगा वो फ़र्ज़ी?
मुनाज़िर : तुम फ़र्ज़ी का नाम ही मत लो, …आपको अपनी ज़मानत से मतलब।
रिपोर्टर : आपसे तो मैं बात कर सकता हूँ?
बातचीत आगे बढ़ी, तो मुनाज़िर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा कि चूँकि वह फ़र्ज़ी ज़मानत के लिए पैसे ले रहा है, इसलिए वह यह सुनिश्चित करेगा कि काम हो जाए। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि यदि आरोपी ज़मानत मिलने के बाद फ़रार भी हो जाए, तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
मुनाज़िर : जब पैसे हम भरपूर ले रहे हैं, तो तुम्हें उससे क्या टेंशन? …तुम पर कोई टेंशन न आने देंगे।
रिपोर्टर : कैसी टेंशन?
मुनाज़िर : कैसी भी, …तुम्हें तो हम ज़मानत कराके देंगे। चाहे मुल्ज़िम भाग जाए।
अब मुनाज़िर ने फ़र्ज़ी ज़मानत की व्यवस्था करने के लिए वसूले जाने वाले पैसे के बारे में बात की। वह चार गारंटर की व्यवस्था करने के लिए 30,000 रुपये की माँग करता है। इसमें से उसने 4,000 रुपये पहले और बाक़ी 26,000 रुपये ज़मानत के समय देने की माँग की। मुनाज़िर के अनुसार, अग्रिम भुगतान के रूप में गारंटरों को 4,000 रुपये दिये जाएँगे।
मुनाज़िर : एक तो 30,000 मान के चलो।
रिपोर्टर : 30 के (हज़ार)? …काम हो जाना चाहिए?
मुनाज़िर : कोई करे, हो जाएगा।
रिपोर्टर : हो जाएगा, पक्का? …आपकी हमारी बात पक्की है? …अच्छा, पैसे एडवांस लोगे, कैसे लोगे? ये बता देना।
मुनाज़िर : पैसे जब ज़मानत पर जाएँगे, पूरे 30 हज़ार। …आज 4,000 दे दो।
रिपोर्टर : अच्छा! और बाक़ी 26,000?
मुनाज़िर : उस दिन ज़मानत के बाद।
रिपोर्टर : बस देख लेना, ऐसा न हो हम पर कोई बात आए?
मुनाज़िर : न आएगी।
रिपोर्टर : अगर ड्राइवर भाग गया हमारा, तो हम पर बात न आए। …वो आप देख लेना।
मुनाज़िर : हाँ।
रिपोर्टर : आप क्या कह रहे हो, कोर्ट में जब आप आओगे?
मुनाज़िर : अब हम ज़मानतियों से बात करेंगे, तुमने ख़र्चा दे दिया। …हम उन्हें जाकर थमाएँगे।
रिपोर्टर : ये उनको दे दोगे 500 रुपये?
मुनाज़िर : ना! ये तो मेरे हैं, आने-जाने के। …उन्हें जाकर देंगे पैसे कि ये रखो।
रिपोर्टर : अच्छा, 4,000 रुपये उनको दोगे?
अब मुनाज़िर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत में क़ुबूल किया कि वह नियमित रूप से ज़मानत के मामलों में गारंटर के रूप में पेश होता है। यही वजह है कि अमरोहा के एक वकील ने उसे एक बिचौलिये के माध्यम से हमसे (तहलका रिपोर्टर से) मिलने के लिए भेजा था। उसने बताया कि वह गारंटर के रूप में प्रत्येक ज़मानत के लिए 1,000 से 4,000 रुपये तक कमाता है।
रिपोर्टर : अच्छा; आप ज़मानत कराते रहते हो, इसलिए वकील साहब ने आपको बुलाया है। …कितने मिल जाते हैं एक ज़मानत पर आपको?
मुनाज़िर : अरे, इसका तो कुछ आँकड़ा ही न है।
रिपोर्टर : फिर भी?
मुनाज़िर : तीन भी, चार भी, दो भी…।
रिपोर्टर : लाख?
मुनाज़िर : लाख मिल जाए, तो क्या बात है।
मुनाज़िर के एक सहयोगी सूरज चंद, जो उसके साथ ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलने आया था; ने ख़ुद हमारा (रिपोर्टर का बताया हुआ फ़र्ज़ी ज़मानत का काल्पनिक) काम करने से इनकार कर दिया। लेकिन उसने मुनाज़िर को इस काम के लिए उपयुक्त व्यक्ति बताया। सूरज के अनुसार, मुनाज़िर बिना किसी कठिनाई के फ़र्ज़ी ज़मानत करवा लेता है; क्योंकि वह इस काम में शामिल लोगों को जानता है। सूरज ने रिपोर्टर को यह भी सलाह दी कि वह (रिपोर्टर) अपने वकील से कहें कि वह सतर्क रहें और अदालत में गारंटरों के फ़र्ज़ी होने का संदेह न जताएँ।
सूरज : वकील से कह देना, बोले न कि हम नक़ली ज़मानत कर रहे हैं; कोर्ट में किसी से। बस ये करा दें, चार आदमी भेज देंगे।
रिपोर्टर : करा देंगे नक़ली ज़मानत?
सूरज : नक़ली हो या असली हो, …करा देंगे। मैं गारंटी नहीं लूँगा, मगर मुझे पता है ये करा देंगे (मुनाज़िर की तरफ़ इशारा करते हुए)।
रिपोर्टर : क्या नाम है इनका?
सूरज : मुनाज़िर, इनके (मुनाज़िर के) हैं कई चेले। …मुझे पता है, ये करा देंगे।
रिपोर्टर : नक़ली ज़मानत वाले?
सूरज : नक़ली वाले नहीं हैं, वो हैं तो असली वाले। लेकिन वो इनसे नहीं बताएँगे। ये काम करेंगे असली; …अब वो नक़ली हो जाए, ये बात अलग।
यह सिर्फ़ फ़र्ज़ी ज़मानत ही नहीं है, जिसका इस्तेमाल पैसा कमाने के लिए किया जा रहा है। यहाँ तक कि सामान्य ज़मानत भी आय का स्रोत बन गयी है। कुल मिलाकर ज़मानत एक बड़ा व्यवसाय बन गया है। इन लोगों ने बताया कि हमारे दिल्ली निवासी बिचौलिये इरशाद अहमद (बदला हुआ नाम) इससे अच्छी कमायी कर रहे हैं। इरशाद, जो पहले भी गारंटर के रूप में काम कर चुका है; ज़मानत के व्यवसाय को वास्तविक बताता है। उसने गंभीर ग़ैर-ज़मानती अपराधों में आरोपियों का समर्थन करने की बात स्वीकार की। जब उससे जोखिम के बारे में पूछा गया, तो उसने इसे यह कहते हुए टाल दिया कि एक बार ज़मानत मिल गयी, तो बाक़ी सब न्यायालय की चिन्ता है; भले ही आरोपी ग़ायब हो जाए।
रिपोर्टर : तो ये तो अच्छा बिजनेस है, ज़मानत वाला?
इरशाद : जेनुइन (असली) भी है। जेनुइन आदमी ने जेनुइन तरीक़े से कर दिया।
रिपोर्टर : जेनुइन कर तो दिया, मगर रिस्क भी तो है भाई! …भाई! आपने कितनी ज़मानत दे दी होगी आज तक जेनुइन वाली।
इरशाद : दो दी हैं।
रिपोर्टर : कौन-कौन से केस थे?
इरशाद : मैंने दी है, …23 था, 352 था।
रिपोर्टर : ये क्या होता है?
इरशाद : 23 मारपीट करना और 352 घर में घुसकर मारना। …147, 148, …188 सरकारी कर्मचारी पर हाथ उठाना।
रिपोर्टर : ये सब बेलेबल (ज़मानती) हैं?
इरशाद : ना; …नॉन बेलेबल (ग़ैर-ज़मानती) हैं।
रिपोर्टर : इनकी ज़मानत दी है तुमने? …क्या ये रिस्क नहीं है?
इरशाद : जब कोर्ट ने ज़मानत दे दी, तो केस चलता रहेगा।
रिपोर्टर : जैसे घर वाले ज़मानत नहीं देते हैं; …कल को भाग गया, तो क्या होगा?
इरशाद : मैं तो कोर्ट के पास 25,000 जमा। …वारंट आएगी, पुलिस आएगी वारंट लेकर। …क्या होगा? बोल देंगे, मिल नहीं रहा मुल्ज़िम? ख़तम कहानी।
जब इरशाद से पूछा गया कि बाहर से गारंटर की इतनी अधिक माँग क्यों है? और आरोपी के परिवार के सदस्य गारंटर के रूप में आगे क्यों नहीं आ रहे हैं? तो उसने बताया कि परिवारों के पास अक्सर ज़मानत के रूप में प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ या संपत्ति का अभाव होता है। यही कारण है कि बाहरी लोग गारंटर के रूप में आगे आते हैं और इसके लिए पैसे लेते हैं। उसने विस्तार से बताया कि किस प्रकार मामले के आधार पर सावधि जमा, या यहाँ तक कि बाइक को भी ज़मानत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
रिपोर्टर : मुझे ये बताओ, एक चीज़; …जो मुल्ज़िम होता है, उसके घर वाले नहीं होते, जो ज़मानत देंगे?
इरशाद : होते हैं।
रिपोर्टर : तो वो ज़मानत क्यूँ नहीं देते। बाहर ज़रूरत क्यूँ होती है?
इरशाद : उनके डाक्यूमेंट्स नहीं हैं। प्रॉपर्टी नहीं है। कोर्ट जो है, रजिस्टर्ड प्रॉपर्टी माँगता है।
रिपोर्टर : हर ज़मानत पर? …चाहे छोटा केस (मुक़दमा) हो या बड़ा?
इरशाद : अब जैसे छोटा केस है, हमने अमाउंट फिक्स कर दिया (रक़म तय कर दी) कोर्ट को 20,000 का, तो मोटरसाइकिल तक चल जाती है। …और मॉडल अगर ऊपर है, तो 50,000 तक की भी चल जाती है।
रिपोर्टर : मर्डर और रेप केस में कितना होता है?
इरशाद : 50के (हज़ार) भी है, लाख भी है।
रिपोर्टर : मतलब, लाख रुपीज की कोई चीज़ होनी चाहिए, वो गिरवी रखनी पड़ेगी कोर्ट में?
इरशाद : वो कोर्ट में रख लेंगे, …एफडी जो है, मुहर लगाकर अपने पास रख लेंगे।
रिपोर्टर : वो एफडी आप तुड़वा नहीं सकते? …जब तक केस चलेगा?
इरशाद : न, …जो पैसा बढ़ेगा, वो आप पर ही बढ़ेगा।
रिपोर्टर : जैसे मेरी 10 लाख की एफडी है और ज़मानत है एक लाख की, उसको मैने रखवा दिया; …उसमें एक लाख ही तो ख़तम होगा, पूरा 10 लाख थोड़ी ख़तम हो जाएगा?
इरशाद : हाँ।
रिपोर्टर : नौ तो निकल सकता हूँ मैं? …ऐसी बात थोड़ी है कि घर वालों के पास कुछ होगा ही नहीं?
इरशाद : बहुतों पर नहीं है।
रिपोर्टर : भाई है, बीवी है, ससुर, साला, किसी के नाम तो कुछ होगा?
इरशाद : दिल्ली में किसके नाम रजिस्ट्री है?
रिपोर्टर : जो ठीक-ठाक रह रहे हैं, उन सबके पास है।
इरशाद : उनके पास एक ही तो है, अब अगर दो आदमी फँस जाते हैं। …अब मेरा केस हुआ था, जब पाँच ज़मानती चाहिए थे…।
रिपोर्टर : आपका केस था?
इरशाद : एक बार झगड़ा हुआ था, मार-पीट हुई थी। कोई रिश्तेदार भी तैयार नहीं था।
रिपोर्टर : क्यूँ?
इरशाद : डरते हैं लोग। हमारा ये हो जाएगा, वो हो जाएगा।
रिपोर्टर : जबकि प्रॉपर्टी थी सबके नाम?
इरशाद : हाँ; इसलिए मैंने मजबूरी में एफडी करायी 25,000 की, …ज़मानत से पहले।
Handcuffed Man Being Released
भारत में फ़र्ज़ी और सामान्य ज़मानत एक बड़ा कारोबार बन गया है। हम अक्सर भारतीय मीडिया में फ़र्ज़ी ज़मानत कारोबार में लिप्त गिरोहों के पकड़े जाने की ख़बरें पढ़ते हैं। रेलवे में कई वर्षों से चल रहे करोड़ों रुपये के ज़मानत बॉन्ड घोटाले की ख़बरें हैं, जिसमें सीबीआई ने कई गिरफ़्तारियाँ की हैं। ‘तहलका’ की पड़ताल में शामिल तीनों किरदारों- मुनाज़िर, सूरज और इरशाद ने स्वीकार किया कि वे ज़मानत का प्रबंध करके पैसा कमाते हैं। इरशाद के अनुसार, उसने प्रत्येक ज़मानत के लिए 10,000 रुपये से लेकर 15,000, …30,000 रुपये तक की रक़म वसूली है। मुनाज़िर ने भी इस काम के लिए अपनी दर बतायी है। इरशाद ने दावा किया है कि ज़मानत राशि के मामले में राजस्थान अधिक महँगा है; क्योंकि वहाँ वकीलों को गारंटर खोजने में संघर्ष करना पड़ता है। उसने बताया है कि राजस्थान में एक गारंटर प्रति ज़मानत 15,000 से 20,000 रुपये तक लेता है, जबकि झारखण्ड में यह दर सस्ती है; लगभग 10,000 रुपये।
जब मुनाज़िर और सूरज बिचौलिये इरशाद के माध्यम से ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलने आये, तो उन्होंने यह आभास दिया कि जिस ज़मानत की बात हो रही है, वह असली है। उन्होंने कहा कि अभियुक्तों को अदालत की तारीख़ों पर नियमित रूप से उपस्थित होना चाहिए, अन्यथा उन्हें गारंटर के रूप में परिणाम भुगतने होंगे। लेकिन जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उन्हें बताया कि उनका मामला फ़र्ज़ी ज़मानत का है और आरोपी का अदालत में पेश होने का कोई इरादा नहीं है, तो मुनाज़िर चार फ़र्ज़ी गारंटरों की व्यवस्था करके मदद करने के लिए तैयार हो गया।
सूरज ने स्वयं इसमें सीधे तौर पर शामिल होने से इनकार कर दिया; लेकिन रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि उसका (सूरज का) सहयोगी मुनाज़िर इस मामले को सँभाल लेगा। मुनाज़िर ने चार फ़र्ज़ी गारंटरों की व्यवस्था करने के लिए 30,000 रुपये की माँग की। उसने बताया कि जिस वकील के माध्यम से वे (मुनाज़िर और सूरज) हमसे (रिपोर्टर से) मिलने आये हैं, अगर उन्होंने (वकील ने) पहले ही उन्हें बता दिया होता कि ज़मानत फ़र्ज़ी है, तो वे ज़मानतदारों को साथ लेकर आते। मुनाज़िर ने कहा कि उसे ज़मानतियों का इंतज़ाम करने में दो दिन लगेंगे। इरशाद के अनुसार, अक्सर वकीलों को ज़मानत हासिल करने के लिए गारंटर की ज़रूरत होती है; चाहे वह नकली हो या असली। वास्तव में अमरोहा के एक फ़ौजदारी वकील के माध्यम से इरशाद ने मुनाज़िर और सूरज, दोनों को हमारी फ़र्ज़ी ज़मानत याचिका के लिए तैयार किया था; लेकिन इससे पता चलता है कि यह ज़मानत कराने का काम उनके समूह का एक नियमित अभ्यास बन गया है।
पड़ताल के दौरान ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर और दलालों के बीच थोड़ी बहस हुई। ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलने आये दो लोगों में से मुनाज़िर को विशेष रूप से रिपोर्टर के इरादों पर संदेह हुआ। उन्हें (दलालों) संदेह था कि उनकी रिकॉर्डिंग की जा रही है। बातचीत के दौरान एक समय मुनाज़िर ने रिपोर्टर का मोबाइल फोन उठाया, जो टेबल पर रखा हुआ था और उसे हटाने के लिए कहा; यह कहते हुए कि फोन ऑडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं। यहाँ तक कि वीडियो में क़ैद होने से बचने के लिए उन्होंने कुछ मिनटों तक अपने चेहरे को गर्दन के चारों ओर से कपड़े के टुकड़े से ढक रखा था। बाद में जब रिपोर्टर ने उन्हें आश्वस्त किया कि कोई रिकॉर्डिंग नहीं हो रही है, तो दोनों ने निश्चिंत होकर बातचीत पुन: शुरू की। इसके बाद उन्होंने (दलालों ने) रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि फ़र्ज़ी ज़मानत का प्रबंध उनके माध्यम से किया जाएगा। हालाँकि अगले दिन जब रिपोर्टर दिल्ली लौटे, तो बिचौलिया इरशाद को दोनों की ओर से धमकी भरा फोन आया। उन्होंने इरशाद पर आरोप लगाया कि वह उनकी रिकॉर्डिंग के लिए एक मीडियाकर्मी को लेकर आये थे; लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वे (दोनों दलाल) डरे हुए नहीं हैं और वे (दोनों दलाल) जो चाहें, कर सकते हैं।