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क़ब्रें तक बिक रही हैं!

– इस्लामिक तरीक़े से मुर्दा दफ़नाने के लिए भारत के कई क़ब्रिस्तानों में बिकती है क़ब्रों की ज़मीन !

इंट्रो- हिन्दुस्तान में कई धर्मों के लोग रहते हैं और उनके रीति-रिवाज़ भी अपने-अपने धर्मों के हिसाब से होते हैं। इन्हीं रीति-रिवाज़ों में से एक रिवाज़ इंसानों के मरने के बाद उनके अंतिम क्रिया-कर्म का है, जिसके तौर-तरीक़े सबके अपने-अपने हैं। जैसे हिन्दुओं में शवदाह होता है, वैसे ही मुसलमानों और ईसाइयों में मुर्दे ज़मीन में दफ़नाये जाते हैं। लेकिन भारत के कई शहरों में अब मुर्दे दफ़नाने के लिए लोग पहले से ही क़ब्र की ज़मीन ख़रीदकर बुक कर रहे हैं। दिल्ली के ऐतिहासिक मेहंदियान क़ब्रिस्तान में मुर्दों को दफ़्न करने के लिए क़ब्र की ज़मीन रियल एस्टेट की तरह बेची और ख़रीदी जाती है। इस क़ब्रिस्तान के अलावा दूसरे कई क़ब्रिस्तानों में भी यह सौदा होता है और हज़ारों से लेकर लाखों रुपये तक में क़ब्रों की खुलेआम अग्रिम बुकिंग होती है। कई परिवारों के लोग घर में किसी की मौत से पहले ही कुछ प्रमुख क़ब्रिस्तानों में जगह बुक करने के लिए होड़ करते हैं, जिससे मौत के बाद भी उन्हें सम्मान मिल सके। पढ़िए, तहलका एसआईटी की ख़ास पड़ताल पर आधारित यह रिपोर्ट :-

फ्लैट, कार और विवाह के लिए हॉल बुक करना आम बात है। लेकिन कुछ लोग अब अपने प्रियजनों के लिए क़ब्र भी बुक कर लेते हैं, ताकि मरने के बाद उन्हें दफ़्न करने के लिए हमेशा के लिए एक अच्छी जगह मिल सके। यह प्रवृत्ति, जो पहले खाड़ी देशों में प्रचलित थी; अब भारत में मुसलमानों और ईसाइयों में भी फैल रही है। विडंबना यह है कि अब शान्ति से आराम करने के लिए भी योजना बनाने की आवश्यकता होती है, जिसकी क़ीमत भी चुकानी पड़ती है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रज़ीउद्दीन अहमद अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के पास दो बेडरूम वाले फ्लैट में रहते हैं। आसमान छूती संपत्ति दरों ने उन्हें उसी घर में रहने के लिए मजबूर कर दिया है, जिसमें वह बड़े हुए थे; लेकिन मृत्यु के बाद की योजना बनाते हुए उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि उनके परिवार के लिए पर्याप्त जगह हो। 52 वर्षीय इस व्यवसायी ने 48,000 रुपये में 12 क़ब्रों की जगह क़ब्रिस्तान में बुक करायी है, ताकि उनके मरने के बाद परिवार के सदस्यों को दफ़नाने के लिए जगह ढूँढने में परेशानी न हो। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, क़रीब एक दशक पहले क़ब्रों की जगह बुक करा चुके अहमद का कहना है कि ‘कौन किसी अजनबी के बग़ल में दफ़्न होना चाहेगा? हम सब एक साथ रहेंगे।’

अहमद के चचेरे भाई शफ़ीक़ रहमान ने अपने दादा के नाम पर 88 क़ब्रें बुक करायी हैं। अहमद के अनुसार, ज़्यादा-से-ज़्यादा क़ब्रों का मालिक होना स्टेटस सिंबल माना जाता है। अहमद एक बड़े परिवार से आता है। दिल्ली के एक अन्य व्यवसायी अखमल जमाल ने दिल्ली के मेहंदियान क़ब्रिस्तान में 58 क़ब्रें बुक करायी हैं। कुछ क़ब्रिस्तान क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग की अनुमति देते हैं, जिसकी दरें 5,000 रुपये से शुरू होकर स्थान के आधार पर लाखों रुपये तक होती हैं; बिलकुल संपत्ति ख़रीदने की तरह। क़ब्र जितनी जल्दी बुक की जाती है, छूट उतनी ही अधिक मिलती है।

‘आप अपने मृतकों को पहले से क़ब्र बुक किये बिना इस क़ब्रिस्तान (मेहंदियान क़ब्रिस्तान) में दफ़्न नहीं कर सकते। एक बार क़ब्र बुक हो जाने के बाद कोई भी अन्य व्यक्ति उस स्थान का उपयोग मुर्दा दफ़्न के लिए नहीं कर सकता। ऐसे भी उदाहरण हैं, जहाँ लोगों ने 10 साल पहले ही क़ब्रें बुक करा ली थीं। इस क़ब्रिस्तान में थोक बुकिंग भी की जा सकती है। यहाँ कई क़ब्रगाहों को एक लाख रुपये में बेचा गया है।’ -मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्र खोदने वाले मुश्ताक़ ने क़ब्र लेने के इच्छुक ग्राहक बनकर पड़ताल करने गये ‘तहलका’ रिपोर्टर को ग्राहक समझकर बताया।

‘मैं इस क़ब्रिस्तान में रहता हूँ और पिछले 10-12 वर्षों से पक्की क़ब्रें तैयार कर रहा हूँ। यहाँ अग्रिम बुकिंग अनिवार्य है। क़ब्र की क़ीमत उसके स्थान पर निर्भर करती है। सभी पसंदीदा प्लॉट या तो बिक चुके हैं या बुक हो चुके हैं। अब उपलब्ध एकमात्र क़ब्र की ज़मीन की क़ीमत 30,000 रुपये है।’ -राजमिस्त्री पप्पू ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।

‘अग्रिम बुकिंग के लिए हम पूरे 30,000 रुपये पहले ही ले लेते हैं। जगह बुक कर लेते हैं और भुगतान के एवज़ में रसीद जारी कर देते हैं। जब भी परिवार के लोग मुर्दे को लेकर आते हैं, तो वे हमें अग्रिम भुगतान की पर्ची दिखाते हैं और मुर्दे को दफ़नाने के लिए अपनी बुक की हुई जगह ले लेते हैं। अगर कोई इस बात का सुबूत लेकर आता है कि 20-22 साल पहले उसके परिवार के किसी सदस्य को यहाँ दफ़नाया गया था, तो हम उसी क़ब्र को दोबारा खोदकर उसमें मुर्दे को दफ़ना देते हैं।’ -मेहंदियान क़ब्रिस्तान के देखभालकर्ता और ठेकेदार मोहम्मद चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।

मेहंदियान एक मुस्लिम क़ब्रिस्तान है, जिसे वीआईपी क़ब्रिस्तान के रूप में जाना जाता है। यह नई दिल्ली में दिल्ली गेट के पास लोक नायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल के पीछे स्थित एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान है, जो देश के सबसे प्रमुख क़ब्रिस्तानों में से एक है। लेखिका और इतिहासकार राणा सफ़वी ने अपनी पुस्तक ‘द फॉरगॉटन सिटीज़ ऑफ़ दिल्ली’ में इस परिसर के बारे में लिखा है। उन्होंने बताया है कि क़ब्रिस्तान-ए-मेहंदियान कभी एक विशाल क्षेत्र था, जहाँ कई फ़क़ीरों और आम लोगों की क़ब्रें थीं। मेहंदियान का इतिहास अद्भुत है। 18वीं शताब्दी के अंत में जब प्रसिद्ध इस्लामिक उलेमा (विद्वान), इतिहासकार और दार्शनिक शाह वलीउल्लाह देहलवी का इंतिक़ाल हुआ, तो उन्हें यहीं दफ़नाया गया था।

औरंगज़ेब के इंतिक़ाल से चार साल पहले मुगल वंश के अंत के समय पैदा हुए शाह वलीउल्लाह देहलवी को भारत का सबसे महान् इस्लामिक उलेमा माना जाता है। इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर बिन अल ख़त्ताब (रज़ि.), जो अपने पिता की ओर से ख़लीफ़ा परिवार के दावेदार हुए; उनके पूरे परिवार को इसी क़ब्रिस्तान में उनके साथ दफ़नाया गया था। आज भी लोगों को उनकी क़ब्र के सामने घंटों बैठकर इबादत (प्रार्थना) और मराक़बह (ध्यान) करते देखा जा सकता है।

नामी उर्दू शायरों में से एक मोमिन ख़ान ‘मोमिन’ को भी इसी परिसर में दफ़नाया गया है। यहाँ बनी अन्य प्रमुख क़ब्रों में स्वतंत्रता सेनानी और इस्लामिक उलेमा मौलाना हिफ़्ज़ुर रहमान सोहरवी, पुरानी और अब बंद हो चुकी उर्दू फ़िल्म पत्रिका ‘शमा’ के पूर्व संपादक यूनुस देहलवी और भाजपा सदस्य सिकंदर बख़्त की क़ब्रें शामिल हैं। पूरे परिसर में क़ब्रों के अलावा शाह वलीउल्लाह देहलवी की दरगाह और एक मदरसा है। शाह वलीउल्लाह के पिता शाह अब्दुर रहीम द्वारा मेहंदियान परिसर में स्थापित मदरसा-ए-रहीमिया भारत के सबसे बड़े मदरसों (शैक्षिक केंद्रों) में से एक है।

मेहंदियान में कई प्रमुख क़ब्रों में से मोना अहमद, जिन्हें भारत की सबसे प्रतिष्ठित ट्रांसजेंडर माना जाता है; और उनके गुरु चमन की क़ब्रें एक छोटे से कमरे में एक साथ स्थित हैं। इन क़ब्रों की चमकदार नीली दीवारों पर क़ुरआन की आयतें लिखी हुई हैं। बैंगनी दीवार पर मोना की एक बड़ी फीकी पेंटिंग लगी हुई है, जिसमें वह एक लंबी सफ़ेद पोशाक में हैं। सन् 2017 में उनका इंतिक़ाल हो गया था। लेकिन देखभाल करने के लिए उनके भतीजे जहाँआरा अभी भी वहाँ रहते हैं। मेहंदियान भारत के सबसे ऐतिहासिक और प्रमुख मुस्लिम क़ब्रिस्तानों में से एक है, क्योंकि इसमें कई इस्लामिक उलेमाओं, स्वतंत्रता सेनानियों, उर्दू कवियों, पत्रकारों, राजनेताओं की क़ब्रें और सबसे बढ़कर शाह वलीउल्लाह देहलवी की दरगाह है। यहाँ बहुत-से क़ाबिल-ए-एहतराम (पूजनीय) लोग दफ़्न हैं, इसलिए ऐसा माना जाता है कि किसी पाक (पवित्र) आदमी के पास रहने (दफ़्न होने) से रूह (आत्मा) को जन्नत (स्वर्ग) जाने में मदद मिलती है; क्योंकि फ़क़ीर पड़ोसी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह आस-पास दफ़्न लोगों के लिए ईश्वर से क्षमा माँगें। इसी विश्वास की वजह से मज़हबी (धार्मिक) हस्तियों के पास वाली क़ब्रों की क़ीमत भी ज़्यादा होती है।

सूत्रों का कहना है कि शाह वलीउल्लाह देहलवी के पैरों की तरफ़ बनी एक क़ब्र 1,80,000 रुपये में बेची गयी थी। कई मुसलमानों के लिए ऐसी महान् हस्तियों के साथ इस क़ब्रिस्तान में दफ़्न होना गर्व की बात है। मुसलमानों में यहाँ दफ़्न होने या अपने परिजनों को दफ़्न करने की होड़ को देखते हुए कुछ लोगों ने मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग कराने का पैसा लेकर हालात का फ़ायदा उठाना शुरू कर दिया है।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने इस बारे में पड़ताल के लिए नक़ली ग्राहक बनकर मेहंदियान क़ब्रिस्तान का दौरा किया। क़ब्रिस्तान के दाख़िली दरवाज़े (एंट्री गेट – प्रवेश द्वार) के बायीं ओर उन्हें अली-मोहम्मद शेर-ए-मेवात फाउंडेशन बोर्ड का कार्यालय दिखायी दिया, जो सन् 2018 में पंजीकृत हुआ था। इसमें बोर्ड के पदाधिकारियों के नाम लिखे हुए हैं। दाख़िली दरवाज़े पर एक चाय विक्रेता ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को मोहम्मद चाँद नामक एक व्यक्ति के पास पहुँचाया, जिसने ख़ुद को क़ब्रिस्तान का रखवाला (देखरेख करने वाला) बताया। रिपोर्टर ने चाँद से कहा कि हम मेहंदियान में दो क़ब्रें पहले से बुक करना चाहते हैं। चाँद पहले तो उलझन में दिखा; लेकिन जब उसे बताया गया कि यह अग्रिम बुकिंग के लिए है; मुर्दे को तत्काल दफ़नाने के लिए नहीं। तब वह रिपोर्टर को एक ग्राहक समझकर संभावित भूखंड (क़ब्र के लिए जगह) दिखाने के लिए ले गया, जहाँ भविष्य में मुर्दा दफ़नाने के लिए उसने रिपोर्टर को क़ब्र की जगह दिखायी, जिसे पैसे देकर लिया जा सकता है।

रिपोर्टर : जगह के लिए आये थे।

चाँद : जगह मतलब?

रिपोर्टर : क़ब्र की जगह।

चाँद : इंतिक़ाल हुआ है?

रिपोर्टर : इंतिकाल नहीं, मतलब वो एडवांस में चाह रहे हैं; ..कब्र की।

क़ब्रों के लिए जगह दिखाते समय ‘तहलका’ रिपोर्टर ने चाँद से पूछा कि क्या उन्हें शाह वलीउल्लाह की दरगाह के अंदर दफ़नाने के लिए जगह मिल सकती है? जो किसी भी मुसलमान के लिए सबसे सम्मानजनक बात है। इसके जवाब में चाँद कहता है- नहीं।

चाँद : यहाँ मिल जाएगी।

रिपोर्टर : अंदर हज़रत के यहाँ नहीं मिल जाएगी?

चाँद : नहीं।

रिपोर्टर : आपका नाम?

चाँद : मोहम्मद चांद।

रिपोर्टर : आप अलीगढ़ से हैं, कौन-सी जगह से…।

चाँद : जमालपुर।

जब हम क़ब्र को पहले से बुक करने के लिए सही भूखंड (ज़मीन के टुकड़े) का चयन करने के लिए क़ब्रिस्तान का दौरा कर रहे थे, तो हमने दो भूखंड देखे। जब दो भूखंडों के बारे में पूछा गया, तो चाँद ने कहा कि वे पहले ही बिक चुके हैं; लेकिन उनके परिवार से कोई भी अभी तक नहीं आया है।

रिपोर्टर : (कुछ ख़ाली दिख रही जगहों की तरफ़ इशारा करते हुए) …ये जो जगह हैं, सब बिकी हुई हैं?

चाँद : ये सब बिकी हुई हैं।

रिपोर्टर : (एक दूसरी जगह की तरफ़ इशारा करते हुए) …ये भी बिकी हुई है?

चाँद : हाँ; अभी तक यहाँ कोई आया नहीं है।

रिपोर्टर : एडवांस में?

फिर चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को क़ब्रों के लिए एक और भूखंड (ज़मीन का टुकड़ा) दिखाया और आश्वास्त करते हुए कहा कि वह जो भूखंड उन्हें दिखा रहा है, उसमें तीन-चार क़ब्रें बन सकती हैं।

रिपोर्टर : अच्छा एक ये जगह है.?

चाँद : (एक क़ब्र के बराबर में जगह की तरफ़ इशारा करते हुए) ये क़ब्र है; इसके बराबर में एक ये जगह है।

रिपोर्टर : अच्छा; एक जगह ये है (एक और जगह की तरफ़ इशारा करते हुए)। …तो ये तो एक ही हुई ना!

चाँद : और हो जाएगी (क़ब्र के लिए दूसरी जगह का इंतज़ाम कराने का आश्वासन देते हुए)।

रिपोर्टर : तीन-चार हो जाएँगी?

चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि पुरानी दिल्ली के मुस्लिम उलेमा और अमीर लोग बड़ी संख्या में इस क़ब्रिस्तान में दफ़्न हैं।

रिपोर्टर : तो इस क़ब्रिस्तान में बड़े लोग दफ़्न होंगे? ..एमपी, एमएलए?

चाँद : उलेमा ज़्यादा हैं। …पुरानी दिल्ली के पैसे वाले लोग भी हैं।

अब चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वह इस क़ब्रिस्तान को चलाने वाली मेवात फाउंडेशन कमेटी में नहीं हैं, बल्कि वह इस क़ब्रिस्तान का केयरटेकर है और वह क़ब्रों से मुर्दों को बदलने का काम भी करता है।

रिपोर्टर : कमेटी मेंबर हैं आप?

चाँद : नहीं; हम तो केयरटेकर हैं। ..कहाँ क्या करना है? कौन-सी मय्यत को चेंज करना है। (इशारा करते हुए)…इधर से निकालकर, इधर करना है..।

रिपोर्टर : अच्छा; मय्यत भी चेंज हो जाती है?

अब चाँद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को क़ब्र की अग्रिम बुकिंग की दर (क़ीमत) बतायी। उसने कहा कि वह एक क़ब्र के लिए 36,000 रुपये लेगा। चाहे वो जगह दरगाह के अंदर हो या बाहर। उसने ग्राहक बने रिपोर्टर से कहा कि यदि आप क़ब्र की स्थायी संरचना (पक्की क़ब्र) बनाएँगे, तो दर अलग होगी।

चाँद : दो जगह और हैं, वो भी देख लो।

रिपोर्टर : उसका क्या रेट होगा?

चाँद : रेट सब सेम है।

रिपोर्टर : अंदर, बाहर सब क्या है?

चाँद : 30 प्लस हैं।

रिपोर्टर : (आश्चर्य से) …हैं जी!

चाँद : 36,000। …खुदाई है, पत्थर, बॉक्स बनवाना…।

रिपोर्टर : 30,000 क़ब्र का और 6,000 ऊपर का, मिस्त्री-विस्त्री का। ..36,000 की एक क़ब्र?

चाँद : दफ़नाने तक; …उसके बाद कुछ करवाएँगे अलग से, तो उसका अलग चार्ज होगा।

रिपोर्टर : पक्का करवाएँगे…।

चाँद : जो भी करवाएँगे।

जब रिपोर्टर ने यह पूछा कि यदि आज हम एक निश्चित क़ीमत पर क़ब्र बुक करते हैं और मुर्दा तीन-चार साल बाद आता है, तो क्या क़ब्र का भाव बढ़ जाएगा या वही रहेगा? इसके जवाब में चाँद ने कहा कि वह क़ब्र की अग्रिम बुकिंग की रसीद (पर्ची) जारी करेगा। क़ब्र की क़ीमत वही रहेगी; लेकिन वो रसीद मुर्दे को दफ़नाने से पहले हमें (बुकिंग करने वाले को) दिखानी होगी।

रिपोर्टर : अच्छा; अगर हमने आज बुकिंग करवा ली और इंतिकाल हुआ तीन-चार साल बाद, तो क़ीमत बढ़ती है?

चाँद : हाँ, बदलेगी क्यों नहीं; बदलेगी।

रिपोर्टर : तो वो किस हिसाब से होगी?

चाँद : नहीं; आपको वो मतलब नहीं है। …आपके पास तो पर्ची होगी।

रिपोर्टर : आप स्लिप दे देंगे एडवांस बुकिंग की; …और आगे जो क़ीमत बदलेगी. वो भी हमको देनी होगी?

चाँद : नहीं; उसकी कोई ज़रूरत नहीं है। …हमने आपको आज एक चीज़ एक रेट पे दे दी…आगे जो भी रेट बढ़ेगा 10-5 हज़ार उससे हमें क्या; …आपने कोई बिजनेस करने के लिए थोड़ी ले रखी है।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने चाँद से पूछा कि क्या मैं कुछ टोकन मनी का भुगतान करने (बयाना देने) के बाद क़ब्र की अग्रिम बुकिंग की रसीद प्राप्त कर सकता हूँ? तो इसके जवाब में चाँद ने रिपोर्टर को बताया कि अग्रिम बुकिंग की रसीद पूरी रक़म चुकाने के बाद ही दी जाती है, या कम-से-कम हमें (ग्राहक बने रिपोर्टर को) उसे (चाँद को) 10,000 रुपये का एडवांस भुगतान करना होगा।

रिपोर्टर : तो अभी मैं कोई टोकन दे जाऊँ, रसीद काट दो आप?

चाँद : रसीद जब पूरा पैसा आता है, तब देते हैं।

रिपोर्टर : अब मैं आपको 1,000-2,000 दे दूँगा?

चाँद : कम-से-कम 10,000 तो देना होगा।

रिपोर्टर : तो रसीद कट जाएगी?

चाँद : इस टाइम तो वो भी नहीं कटेगी। …ऑफ़िस बंद हो गया अब। …सुबह 8:00 बजे से 1:00 बजे तक होता है।

अब चाँद ने रिपोर्टर को बताया कि उन्हें अपनी क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग के लिए अपना आधार कार्ड देना होगा।

रिपोर्टर : तो चाँद साहब! हमें भी डॉक्युमेंट्स (दस्तावेज़: देने पड़ेंगे क्या? …हम जो एडवांस बुकिंग करवा रहे हैं क़ब्र की, उसके लिए डॉक्यूमेंट्स देने पड़ेंगे?

चाँद : हाँ।

रिपोर्टर : क्या-क्या?

चाँद : आधार की फोटो कॉपी।

जब ‘तहलका’ रिपोर्टर की चाँद से बातचीत चल रही थी, तभी दो आदमी आये और अपनी क़ब्र की अग्रिम बुकिंग के लिए 30,000 रुपये दिये।

रिपोर्टर : ये भी एडवांस बुकिंग हैं, जो दे गये हैं अभी पैसे?

चाँद : जी हाँ।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने 72,000 रुपये में दो क़ब्रें बुक करने को कहा। रिपोर्टर ने जब पैसों में कुछ छूट माँगी, तो चाँद ने मना कर दिया। इस बार वह रिपोर्टर को फिर से क़ब्र बुक करने के लिए एक और जगह ज़मीन दिखाने शाह वलीउल्लाह दरगाह के पास ले गया; जो दफ़नाने के लिए एक प्रतिष्ठित स्थान है; जिसके लिए उसने पहले मना कर दिया था।

रिपोर्टर : कुछ कम नहीं होगा 72 हज़ार में?

चाँद : नहीं, चलिए हम आपको एक और जगह दिखाते हैं; …शायद वो आपको पसंद आ जाए।

रिपोर्टर : कल मैं आ जाता हूँ सुबह, क्योंकि अभी तो रसीद मिलेगी नहीं।

चाँद : कल ही लेना।

रिपोर्टर : दो क़ब्रों का 72 हज़ार हो गया हमारा?

चाँद : हाँ।

यह पहली बार नहीं है कि चाँद को क़ब्र की अग्रिम बुकिंग करते हुए कैमरे में क़ैद किया गया हो। 2020 में कोरोना-काल के दौरान भी हमने उनके साथ एक सौदा किया था और मेहंदियान क़ब्रिस्तान में 30,000 रुपये में अग्रिम क़ब्र बुक कराने गये थे और उसे पैसे दिये बिना ही वहाँ से चले गये। उस सौदे में भी चाँद ने हमें (तहलका रिपोर्टर को) पूरे 30,000 रुपये देने के बाद ही क़ब्र के लिए जगह देने का वादा किया था। उसने उस समय भी कहा था कि वह भुगतान के एवज़ में रसीद जारी करेगा, जिसे हमें मुर्दा दफ़्न करने के समय दिखाना होगा। इस बातचीत में ‘तहलका’ रिपोर्टर न केवल फ़र्ज़ी ग्राहक बनकर क़ब्र की एडवांस बुकिंग करवाने के लिए वहाँ गये, बल्कि चाँद से फ़र्ज़ी तौर पर यह भी कहा कि परिवार में किसी की मौत हो गयी है और वह उसे दफ़नाने के लिए मेहंदियान क़ब्रिस्तान आये हैं।

रिपोर्टर : एक इनके रिश्तेदार हैं, उनकी ख़्वाहिश यही है कि वो मेहंदियान में ही दफ़्न हों, तो उसके लिए कोई एडवांस देना पड़ेगा जगह के लिए?

चाँद : पूरा पैसा देना पड़ेगा।

रिपोर्टर : चाहे उनका कभी भी इंतिक़ाल हो?

चाँद : हाँ; उसके लिए हम आपको एक पर्ची देंगे, वो आप लेकर जाना, उसको सँभालकर रखना। जब भी ज़रूरत हो, आ जाना।

रिपोर्टर : और वो क़ब्र की जगह एडवांस में बुक हो जाएगी?

चाँद : उस टाइम पर जब भी आपको ज़रूरत पड़ेगी, तो लेबर चार्ज दो-ढाई हज़ार रुपया देना होगा।

रिपोर्टर : अच्छा; उसका हमें कितना एडवांस देना होगा?

चाँद : वही, 30 हज़ार।

रिपोर्टर : ठीक है।

उस बातचीत में रिपोर्टर के लिए क़ब्र आवंटित करने से पहले चाँद ने उनसे पूछा कि क्या उनके किसी रिश्तेदार को 20-22 साल पहले मेहंदियान क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया था? उस स्थिति में उनके अनुसार, उन्होंने हमारे (रिपोर्टर के) रिश्तेदार की क़ब्र खोदी होगी और दूसरे मृतकों को वहीं दफ़ना दिया होगा। लेकिन रिपोर्टर ने अपने रिश्तेदार के वहाँ दफ़्न होने की बात से मना कर दिया।

रिपोर्टर : वो मय्यत को लेकर आना था।

चाँद : कहाँ से?

रिपोर्टर : शंकरपुर कैंसर से मौत हुई है, घर पर। … डॉक्टर से इलाज चल रहा था। …एक-दो साल पहले डॉक्टर ने जवाब दे दिया था।

चाँद : लेडीज हैं जेंट्स? (महिला हैं पुरुष?)

रिपोर्टर : जेंट्स।

चाँद : जगह देख लीजिए यहाँ।

रिपोर्टर : अंदर नहीं मिल सकती?

चाँद : किसी की है, क्या आपके दादा-परदादा की?

रिपोर्टर : ना। …क्या अंदर नहीं मिल पाएगी जगह?

चाँद : अगर होती, आपके किसी दादा-परदादा की 20-22 साल पहले, तो उसको ख़ुदवा देते।

रिपोर्टर : कितना ख़र्चा होगा चाँद भाई!

चाँद : 30,000 रुपये। (एक जगह की तरफ़ इशारा करते हुए) …यही सबसे अच्छी जगह है।

अब क़ब्रिस्तान में हमारी मुलाक़ात मुश्ताक़ से हुई, जो पिछले 20-22 वर्षों से क़ब्रिस्तान में क़ब्र खोदने का काम कर रहा है। मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्रों की एडवांस बुकिंग कितनी खुलेआम और बड़े पैमाने पर चल रही है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुश्ताक़ ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि क़ब्र की अग्रिम बुकिंग के बिना हम (रिपोर्टर या कोई भी) अपने मृतकों को क़ब्रिस्तान में दफ़्न नहीं कर सकते। उसने रिपोर्टर को क़ब्र की अग्रिम बुकिंग के लिए चाँद से संपर्क करने को कहा।

मुश्ताक़ : चाँद नाम है, ठेकेदार है यहाँ का।

रिपोर्टर : क़ब्र वो ही ख़ुदवाते हैं?

मुश्ताक़ : हाँ।

रिपोर्टर : ये मेंहदियान क़ब्रिस्तान है ना?

मुश्ताक़ : हाँ।

रिपोर्टर : कुछ क्या एडवांस वग़ैरह?

मुश्ताक़ : ये तो वो ही बताएँगे। …आपकी जगह यहाँ पहले से है?

रिपोर्टर : नहीं; हमारी नहीं है। …पहले जगह लेनी पड़ती है क्या?

मुश्ताक़ : हाँ। यहाँ सरकारी नहीं है।

रिपोर्टर : प्राइवेट है ये?

मुश्ताक़ : हाँ। …तो यहाँ जगह आपको लेना पड़ेगा।

रिपोर्टर : अच्छा; क़ब्र की एडवांस बुकिंग करवानी पड़ेगी? …कितना एडवांस देना होगा?

मुश्ताक़ : (एक आते हुए लड़के की तरफ़ इशारा करते हुए) …लड़का आ रहा है, ये बताएगा।

मुश्ताक़ के अनुसार, शाह वलीउल्लाह दरगाह के अंदर क़ब्र के लिए ज़मीन महँगी है। उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वहाँ जगह लेने के लिए उन्हें एक लाख रुपये ख़र्च करने होंगे; वह भी अभी जगह उपलब्ध नहीं है।

रिपोर्टर : अंदर वाली जगह कितने की है, एक लाख की थी?

मुश्ताक़ : नहीं; …थी, अब ख़त्म हो गयी।

मुश्ताक़ ने बताया कि एक बार जब हम (रिपोर्टर) क़ब्र पहले से बुक कर लेंगे, तो कोई भी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने 10 साल पहले ही क़ब्र बुक करा ली थी।

मुश्ताक़ : एक बार जगह मोल ले लोगे, तो हमेशा तुम्हारी हो जाएगी; कोई और नहीं आएगा।

रिपोर्टर : मतलब कि एडवांस बुकिंग करवानी पड़ती है, तब दफ़्न होगा।

मुश्ताक़ : हाँ।

रिपोर्टर : मतलब, एक साल पहले भी करा सकते हैं लोग एडवांस?

मुश्ताक़ : 10-10 साल पहले भी करा लेते हैं लोग।

रिपोर्टर : आप क्या करते हो?

मुश्ताक़ : क़ब्र खोदते हैं।

रिपोर्टर : कितने साल हो गये?

मुश्ताक़ : 20-22 साल।

रिपोर्टर : कितना पैसा मिलता है आपको?

मुश्ताक़ : 400 रुपये।

रिपोर्टर : एक क़ब्र का?

इस सवाल का जवाब न देकर मुश्ताक़ ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि लोग क़ब्रों की थोक बुकिंग करा रहे हैं।

रिपोर्टर : (कुछ ख़ुदी हुई क़ब्रों की तरफ़ इशारा करते हुए) …ये जो आगे वाली क़ब्रें हैं, ये आपने खोदी हैं?

मुश्ताक़ : हाँ।

रिपोर्टर : ये सारी एडवांस बुकिंग वाली हैं?

मुश्ताक़ : सारी नहीं। अब जैसे तुम आये हो, …अब जैसे तुम आ गये हो यहाँ; तो हम…., तीन की ले लो, चार की ले लो जगह।

रिपोर्टर : बिना जगह लिये दफ़ना नहीं सकते?

मुश्ताक़ : हाँ।

इसके बाद मुश्ताक़ ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को पप्पू नाम के एक और आदमी से मिलवाया। पप्पू पिछले 10-12 वर्षों से इस क़ब्रिस्तान में राजमिस्त्री का काम कर रहा है और पक्की क़ब्रें तैयार कर रहा है। उसने भी रिपोर्टर से 30,000 रुपये की अग्रिम धनराशि देकर क़ब्र बुक करने को कहा।

रिपोर्टर : कबसे कर रहे हो आप ये काम?

पप्पू : 10-12 साल हो गये। …मेरा है मिस्त्री का काम। …क़ब्र को पक्का बनाते हैं।

रिपोर्टर : आप यहाँ रहते हो क़ब्रिस्तान में?

पप्पू : हाँ।

रिपोर्टर : आप मुझे टोटल ख़र्चा बता दो?

पप्पू : टोटल यहाँ का 30,000 आ जाएगा, …और वैसे आप जाइए चाँद भाई बैठे हुए हैं। उनसे बात कर लीजिए, (मोबाइल) नंबर दे रहा हूँ।

रिपोर्टर : क्या हैं वो?

पप्पू : यहाँ के मेन ही समझो।

रिपोर्टर : ये मेवात फाउंडेशन किसकी है?

पप्पू : उन्हीं की है।

मेहंदियान क़ब्रिस्तान में क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर डॉ. मक़सूद उल हसन क़ासमी कहते हैं- ‘मेहंदियान क़ब्रिस्तान में चल रही यह धाँधली बहुत-ही चौंकाने वाली प्रथा है। इसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए। पूरी जगह पर अवैध क़ब्ज़ाधारियों ने क़ब्ज़ा कर रखा है और इसे उनसे मुक्त कराया जाना चाहिए।’

‘मेहंदियान भारत का एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान है, जहाँ प्रसिद्ध इस्लामिक उलेमा शाह वलीउल्लाह देहलवी की दरगाह स्थित है। हर मुसलमान को इंतिक़ाल के बाद वहाँ दफ़्न होने पर फ़ख़्र (गर्व) होता है। क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग से एकत्र किया गया पैसा कहाँ जा रहा है? इसकी जाँच होनी चाहिए।’ -डॉ. क़ासमी कहते हैं।

उन्होंने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि भारत में सभी क़ब्रिस्तान वक़्फ़ बोर्ड के अंतर्गत आते हैं और मेहंदियान क़ब्रिस्तान भी वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति है। उन्होंने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड के पदाधिकारियों को मेहंदियान में इस अग्रिम बुकिंग प्रथा पर तुरंत रोक लगानी चाहिए। एक अन्य इस्लामिक स्कॉलर ख़ालिद सलीम ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग अवैध है और मेहंदियान क़ब्रिस्तान वास्तव में वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति है।

सलीम ने बताया कि अली मोहम्मद शेर-ए-मेवात फाउंडेशन की शुरुआत इस्लामिक नेता अली मोहम्मद ने की थी, जो हरियाणा के मेवात से आये थे और दिल्ली के मेहंदियान में बस गये थे। उन्होंने बताया कि वह राजनीतिक रूप से जुड़े हुए व्यक्ति थे और इंदिरा गाँधी सहित उस समय के कांग्रेस नेताओं के साथ उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे। उन्होंने कहा कि इसी फाउंडेशन के बैनर तले उन्होंने भूमि पर नियंत्रण हासिल किया था।

मुस्लिम क़ब्रिस्तानों की तो बात ही क्या करें, ईसाई क़ब्रिस्तानों को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। क़ब्रों की बढ़ती संख्या और क़ब्रिस्तानों में कम पड़ती जगह के कारण माँग बढ़ रही है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, मरने वालों को दफ़नाने के लिए जगह की तेज़ी से कमी पड़ती जा रही है। मुर्दों को दफ़्न करना सचमुच एक गंभीर मामला बन गया है, ख़ासकर ग़रीबों के लिए। कई शहरों से क़ब्रों की अग्रिम बुकिंग की ख़बरें आ रही हैं, फिर भी इस प्रथा को रोकने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, टीडीपी नेता मोहम्मद अहमद ने हैदराबाद में वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारियों को ऐसे अवैध सौदों के बारे में सूचित किया; लेकिन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इसके अलावा इस तरह के गंभीर सौदों में धोखाधड़ी के आरोप भी बड़े पैमाने पर लग रहे हैं। एक व्यक्ति ने दावा किया कि उसके पिता ने एक क़ब्र बुक करायी थी; लेकिन जब उनका इंतिक़ाल हुआ, तो पता चला कि क़ब्रिस्तान के देखभालकर्ता ने उस जगह को किसी और को बेच दिया है। इससे भी ग़लत यह रहा कि उसने हमें पैसे वापस करने से भी इनकार कर दिया। सूत्रों से यह भी पता चला है कि जब 2004 में भाजपा नेता सिकंदर बख़्त का इंतिक़ाल हुआ, तो उन्हें एक ऐसी क़ब्र में दफ़नाया गया, जिसकी बुकिंग पहले ही 75,000 रुपये में हो चुकी थी। बाद में यह राशि पहले वाले मूल ख़रीदार को वापस कर दी गयी।

अब जबकि सरकार यह सुनिश्चित करने पर ज़ोर दे रही है कि वक़्फ़ संशोधन विधेयक-2024 संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाए, तो उम्मीद है कि मुस्लिम क़ब्रिस्तानों के बारे में ‘तहलका’ की यह पड़ताल, जहाँ वक़्फ़ संपत्ति होने के बावजूद क़ब्रें पहले ही बेच दी जाती हैं; अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करेगी और इस तरह की ग़ैर-क़ानूनी चलन के ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई करेगी।

लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया।
विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए किरेन रिजिजू ने कहा, “ऑनलाइन, ज्ञापन, अनुरोध और सुझाव के रूप में कुल 97,27,772 याचिकाएं प्राप्त हुई हैं। 284 डेलिगेशन ने कमेटी के सामने अपनी बात रखी और सुझाव दिए। सरकार ने उन सभी पर ध्यानपूर्वक विचार किया है, चाहे वे जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के माध्यम से हों या सीधे दिए गए ज्ञापन। इतिहास में पहले कभी किसी विधेयक को इतनी बड़ी संख्या में याचिकाएं नहीं मिली हैं।

कई लीगल एक्सपर्ट, कम्युनिटी लीडर्स, धार्मिक लीडर्स और अन्य लोगों ने कमेटी के सामने अपने सुझाव रखे। पिछली बार जब हमने बिल पेश किया था, तब भी कई बातें बताई थी। मुझे उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि जो इसका विरोध कर रहे थे, उनके हृदय में बदलाव होगा और वे बिल का समर्थन करेंगे। मैं मन की बात कहना चाहता हूं, किसी की बात को कोई बदगुमां न समझे कि जमीं का दर्द कभी आसमां न समझे।”

किरेन रिजिजू ने आगे कहा, “साल 2013 में यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड को ऐसा अधिकार दिया कि वक्फ बोर्ड के आदेश को किसी सिविल अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। अगर यूपीए सरकार सत्ता में होती तो संसद इमारत, एयरपोर्ट समेत पता नहीं कितनी इमारतों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता। साल 2013 में मुझे इस बात पर बहुत आश्चर्य हुआ कि इसे कैसे जबरन पारित किया गया। 2013 में वक्फ अधिनियम में प्रावधान जोड़े जाने के बाद, दिल्ली में 1977 से एक मामला चल रहा था, जिसमें सीजीओ कॉम्प्लेक्स और संसद भवन सहित कई संपत्तियां शामिल थीं। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इन पर वक्फ संपत्ति होने का दावा किया था। मामला अदालत में था, लेकिन उस समय यूपीए सरकार ने सारी जमीन को डीनोटिफाई करके वक्फ बोर्ड को सौंप दिया। अगर हमने आज यह संशोधन पेश नहीं किया होता, तो हम जिस संसद भवन में बैठे हैं, उस पर भी वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा सकता था।”

उन्होंने कहा, “किसी ने कहा कि ये प्रावधान गैर संवैधानिक हैं। किसी ने कहा कि गैर-कानूनी हैं। यह नया विषय नहीं है। आजादी से पहले पहली बार बिल पास किया गया था। इससे पहले वक्फ को इनवैलिडेट (अवैध करार) किया गया था। 1923 में मुसलमान वक्फ एक्ट लाया गया था। ट्रांसपेरेंसी और अकाउंटेबिलिटी का आधार देते हुए एक्ट पारित किया गया था।” उन्होंने कहा, “1995 में पहली बार वक्फ ट्रिब्यूनल का प्रावधान किया गया था। इससे वक्फ बोर्ड द्वारा लिए गए किसी भी फैसले से असंतुष्ट व्यक्ति वक्फ ट्रिब्यूनल में उसे चुनौती दे सकता था। यह पहली बार था जब ऐसी व्यवस्था स्थापित की गई थी। उस समय यह भी तय किया गया था कि अगर किसी वक्फ संपत्ति से 5 लाख रुपए से ज्यादा की आय होती है, तो सरकार उसकी निगरानी के लिए एक कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करेगी। यह व्यवस्था भी 1995 में ही शुरू की गई थी। आज यह मुद्दा इतना तूल क्यों पकड़ रहा है?”

विधेयक को सदन में पेश करते ही विपक्षी दलों ने विरोध शुरू कर दिया। कांग्रेस ने विधेयक के खिलाफ अपनी आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि उन्हें विधेयक की प्रति देर से प्राप्त हुई, जिसके कारण उन्हें समीक्षा के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। कांग्रेस के नेताओं ने चर्चा के दौरान कहा कि सरकार ने इस महत्वपूर्ण विधेयक को जल्दबाजी में पेश किया है और विपक्ष को इस पर चर्चा के लिए उचित अवसर नहीं दिया गया। विधेयक पेश होने के बाद सदन में हंगामे की स्थिति देखी गई, क्योंकि विपक्षी सांसदों ने अपनी नाराजगी जाहिर की। लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कांग्रेस पार्टी की ओर से चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि जेपीसी ने आवश्यक विचार-विमर्श नहीं किया। शुरू से ही सरकार का इरादा एक ऐसा कानून पेश करने का रहा है जो असंवैधानिक, अल्पसंख्यक विरोधी और राष्ट्रीय सद्भाव को बाधित करने वाला है।

इस सत्र में पारित हो पाएगा वक़्फ़ विधेयक?

वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक को मार्च महीने की शुरुआत में लोकसभा में पेश किया जाना था; लेकिन वह सरकार की राजनीतिक मजबूरियों के कारण अटकता नज़र आ रहा है। जनता दल (यू) और तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) जैसे सहयोगी दल कम-से-कम बिहार विधानसभा चुनाव तक विधेयक को पारित नहीं होने देना चाहते, इसलिए सरकार ने लोकसभा में बहुमत होने के बावजूद संशोधित रूप में इसे पेश करने में देरी की है। ऐसा लगता है कि सरकार विपक्ष और सहयोगी दलों के साथ टकराव का एक और दौर नहीं चाहती।

हालाँकि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसदीय पैनल द्वारा हाल ही में सुझाये गये बदलावों को शामिल करते हुए वक़्फ़ संशोधन विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों को मंज़ूरी दे दी है, जिससे इस पर चर्चा और पारित होने का रास्ता साफ़ हो गया है। इसे 10 मार्च के बाद कभी भी पेश किया जाना था। लेकिन अब बजट सत्र 03 अप्रैल को समापन की ओर बढ़ रहा है तथा रमज़ान का महीना शुरू होने और जल्द ही ईद पड़ने के कारण सरकार अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला कोई और क़दम उठाने के लिए इच्छुक नहीं है।

भाजपा द्वारा मुसलमानों को 32 लाख ‘सौग़ात-ए-मोदी’ किट वितरित करने के साथ, संदेश स्पष्ट है- कोई भी वक़्फ़ विधेयक कम-से-कम इस बजट सत्र में पेश होने पर भी पारित नहीं होगा। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा लोकसभा में पेश किये जाने के बाद अगस्त 2024 में विधेयक को जेपीसी के पास भेजा गया था। संसदीय पैनल ने बहुमत के साथ रिपोर्ट को अपना लिया, जबकि पैनल में विपक्षी दलों के सभी 11 सांसदों ने रिपोर्ट पर आपत्ति जतायी थी। उन्होंने असहमति नोट भी पेश किये थे। पैनल द्वारा इस महीने की शुरुआत में संसद के दोनों सदनों में 655 पृष्ठों की रिपोर्ट पेश की गयी थी।

न्यायमूर्ति के घर में नक़दी का अजीब मामला

विलियम शेक्सपियर ने ‘जूलियस सीज़र’ में लिखा था कि ‘सीज़र की पत्नी को संदेह से परे होना चाहिए।’ यह पंक्ति इस अपेक्षा को रेखांकित करती है कि अधिकार के पदों पर बैठे लोगों को अनुचित कार्यों की थोड़ी-सी झलक से भी दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत न्यायपालिका में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जहाँ विश्वास और निष्ठा न्याय की नींव तैयार करते हैं। हालाँकि हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के एक स्टोर रूम में कथित रूप से बेहिसाब नक़दी मिलने से गंभीर चिन्ता पैदा हो गयी है। सर्वोच्च न्यायालय ने पारदर्शी और त्वरित जाँच के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन की सदस्यता वाली एक जाँच समिति बनायी है।

न्यायमूर्ति वर्मा, जिन्हें अक्टूबर, 2014 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया था और अक्टूबर, 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था; 2031 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। अगर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया जाता है, तो उस स्थिति में उनका कार्यकाल 2034 तक बढ़ जाएगा। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रस्तुत जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराकर एक अभूतपूर्व क़दम उठाया है। रिपोर्ट के निष्कर्ष कि ‘पूरे मामले की गहन जाँच की आवश्यकता है’ ने जाँच को और भी तीव्र कर दिया है। इसके अलावा अभी भी सुलगते हुए स्टोर रूम में जले हुए नोटों के ढेर को इकट्ठा करते हुए एक फायर फाइटर की छोटी वीडियो रिकॉर्डिंग इस मामले में रहस्य का तत्त्व जोड़ती है।

इस विवाद के मूल में न्यायपालिका की विश्वसनीयता और निष्ठा निहित है। न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा है कि न तो वह और न ही उनके परिवार के सदस्य नक़दी रखने के लिए ज़िम्मेदार हैं। इससे गंभीर प्रश्न उठता है कि क्या पैसा उनकी जानकारी के बिना वहाँ रखा गया था? अगर ऐसा है, तो क्या यह न्यायमूर्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने और उन्हें फँसाने की एक बड़ी साज़िश का हिस्सा है? अगर इसमें कोई गड़बड़ी शामिल है, तो इसे किसने अंजाम दिया?

न्याय के संरक्षक होने के नाते न्यायपालिका को किसी भी प्रकार की अस्पष्टता नहीं रहने देनी चाहिए। न्यायपालिका से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं का यह पहला मामला नहीं है। मार्च, 2025 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति निर्मल यादव को एक अन्य न्यायाधीश के आवास पर मिले 15 लाख रुपये से जुड़े 17 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया गया। इसी तरह सन् 2019 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों ने गंभीर चिन्ता पैदा कर दी थी, जब उन्होंने अपने स्वयं के मामले की कार्यवाही में भाग लिया था, जिसके कारण आंतरिक समिति ने आरोपों को ख़ारिज कर दिया था। इसी तरह सन् 2020 में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी द्वारा न्यायमूर्ति एन.वी. रमना के ख़िलाफ़ लगाये गये आरोपों को एक आंतरिक जाँच के माध्यम से निपटाया गया था, जिसके निष्कर्षों का कभी ख़ुलासा नहीं किया गया।

इस मामले में खुलेपन के महत्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अंतत: न्यायपालिका को उच्चतम नैतिक मानदंडों को क़ायम रखना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय न केवल हो, बल्कि न्याय होता हुआ दिखे भी। इस मामले का परिणाम भारतीय न्यायिक प्रणाली की ईमानदारी, निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए एक महत्त्वपूर्ण लिटमस टेस्ट के रूप में काम करेगा।

धर्म और सियासत की आग में सुलग रहा महाराष्ट्र

के. रवि (दादा)

महाराष्ट्र में नफ़रत और दंगों की साज़िशें चारों तरफ़ आग की तरह फैली दिख रही हैं। औरंगज़ेब पर बहस से लेकर नागपुर में हुई हिंसा ने हर मराठी मानुष को झकझोर कर रख दिया है। नागपुर से औरंगज़ेब की क़ब्र हटाने की कोशिश हुई, तो हिंसा भड़क गयी। यह हिंसा नागपुर में 17 मार्च, 2025 को विश्व हिन्दू परिषद् के लोगों के द्वारा औरंगज़ेब का पुतला फूँकने पर शुरू हुई। बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ और आगजनी में दज़र्नों लोग घायल हुए। तीन डीसीपी रैंक के पुलिस अधिकारी और 34 पुलिसकर्मी इस हिंसा में घायल हुए और इरफ़ान अंसारी नाम के एक आदमी की मौत हो गयी। मुस्लिम समाज का आरोप है कि विश्व हिन्दू परिषद् के लोगों ने हरी चादर और उनकी धार्मिक किताब को भी जलाया। इस हिंसा में हिंसक भीड़ ने 40 से अधिक कारें और दूसरे चार पहिया वाहन, 20 के क़रीब दोपहिया वाहन और दो क्रेनें जला दीं और सबसे दु:ख की बात है कि कई लोगों के घर जला दिये। पुलिस ने बड़ी मुश्किल से अपनी जान पर खेलकर हिंसा को रोका और नागपुर शहर के अलावा आसपास कर्फ्यू लगा दिया था, जो 23 मार्च 2025 को दिन में 3:00 बजे के बाद हटा लिया था। अब नागपुर में शान्ति है।

पुलिस सुराग ढूँढ रही है कि इस हिंसा के बांग्लादेश से कनेक्शन हैं और क़रीब सवा सौ से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इससे पहले औरंगज़ेब की क़ब्र को तोड़ने की कोशिश के दौरान पुलिस ने छत्रपति संभाजी राजे शौर्य प्रतिष्ठान के अध्यक्ष बलराजे अवारे पाटिल और उनके कई साथियों को हिरासत में लिया था; लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। अब मक़बरे पर पुलिस तैनात है। अधिकारी कह रहे हैं कि औरंगज़ेब की क़ब्र एक संरक्षित स्मारक है और राज्य सरकार इसकी सुरक्षा कर रही है। पर सवाल यह है कि धर्म के नाम पर ऐसे विवाद खड़े करने वालों को महाराष्ट्र सरकार क्यों नहीं रोक पा रही है? सुनने में यह भी आया है कि विश्व हिन्दू परिषद् ने गढ़े मुर्दे उखाड़ने की इस सीरीज में हुमायूँ के मक़बरे का भी जाँच अपने नज़रिये से करनी शुरू कर दी है। विश्व हिन्दू परिषद् कह रहा है कि कुछ और मक़बरों की भी जाँच की जाएगी, जिनकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी। विश्व हिन्दू परिषद् कोई जाँच की सरकारी संस्था नहीं है, पर वो अपने नज़रिये से जाँच में लगी हुई है। हमारे भारत में हिंसा भड़काने और हिंसा करने को अपराध माना जाता है और इसके लिए क़ानून में बाक़ायदा कड़ी सज़ा का प्रावधान है। पर इस तरह की घटनाओं के पीछे जब राजनीतिक लोगों का हाथ हो, तो ऐसे लोगों को सज़ा नहीं मिल पाती और वे हिंसा की आग लगाकर ग़ायब हो जाते हैं।

दूसरी तरफ़ मशहूर कमेडियन कुणाल कामरा को लेकर बवाल मचा हुआ है। एकनाथ शिंदे गुट के शिवसेना नेता संजय निरुपम से लेकर तमाम नेता कुणाल को धमकी दे रहे हैं और अपने कार्यकर्ताओं से उन्हें पीटने का खुला ऐलान कर चुके हैं। दरअसल जैसा कि अक्सर देखा जाता है कि कॉमेडियन, कवि और वेंगचित्रकार भी अपने नेताओं की अक्सर टाँग खिंचाई करते रहते हैं। कुणाल कामरा ने भी महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर मज़ाक़ के मूड में तंज़ कस दिया, जिससे उनके ख़िलाफ़ तीन एफआईआर हुईं। मुंबई पुलिस के सूत्रों से पता चला है कि पुलिस ने कुणाल कामरा से पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि मैंने होशोहवास में बयान दिया है और मुझे इसका कोई पछतावा नहीं है। एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के कार्यकर्ता कुणाल कामरा पर भड़के गये और उनके सेट पर उन्होंने तोड़फोड़ कर दी। इस घटना के बाद कुणाल कामरा ने दूसरे भाजपा नेताओं पर भी पैरोडी शुरू कर दीं, जो काफ़ी वायरल हो रही हैं। आदमी से लेकर फ़िल्म इंडस्ट्री के बहुत-से लोग उनके बचाव में उतर पड़े हैं। शिवसेना (यूबीटी) के नेता कुणाल कामरा के बचाव में उतर आये हैं। शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कुणाल की गायी पैरोडी को अपने सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर पोस्ट करके लिखा है- ‘कुणाल की कमाल!’ जय महाराष्ट्र!’

कुणाल कामरा पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से लेकर कई भाजपा के नेता भी भड़के हुए हैं। कोई उन्हें ग़द्दार कह रहा है, तो कोई मुँह काला करके पीटने की खुली धमकी दे रहा है। इस पर भी पुलिस कार्रवाई करे, तो देश में महाराष्ट्र पुलिस की निष्पक्ष कार्रवाई का एक अच्छा संदेश जा सकता है। कुणाल कामरा को भी अपना काम करना चाहिए, उन्हें राजनीति से क्या लेना। इस बारे में सबसे अच्छी बात महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कही है। उन्होंने कहा है कि किसी के बीच वैचारिक मतभेद हो सकते है, पर ऐसा कुछ नहीं करें जिससे पुलिस का काम बढ़ जाए। इसका ध्यान हर किसी को एक ज़िम्मेदार नागरिक की तरह रखना चाहिए और सब कुछ संविधान के दायरे में रहकर करना चाहिए।

साहिबगंज में भीषण रेल हादसा: दो मालगाड़ियों की टक्कर, 2 लोगों की मौत

झारखंड: साहिबगंज जिला के बरहेट स्थित एनटीपीसी फाटक के पास आज सुबह दो मालगाड़ियों के बीच भीषण टक्कर हो गई। इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई, जबकि चार अन्य घायल हो गए। फायर ब्रिगेड के कर्मी रवि ने बताया कि यह घटना सुबह करीब 3:30 बजे हुई। उस समय एक मालगाड़ी पटरी पर खड़ी थी, तभी दूसरी तरफ से आ रही दूसरी मालगाड़ी ने उससे जोरदार टक्कर मार दी। इस टक्कर के कारण इंजन और कोयले से लदी बोगियों में आग लग गई, जिसे बुझाने का काम अभी भी जारी है। इसके अलावा, दो इंजन पटरी से उतर गए और एक इंजन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया।

चार लोग घायल हुए

फायर ब्रिगेड के अनुसार, इंजन में सवार सात कर्मचारियों में से दो की मौत हो गई, जबकि चार घायल हो गए। एक कर्मचारी अभी भी इंजन में फंसा हुआ है, जिसे निकालने का प्रयास किया जा रहा है। सभी घायलों को बरहेट सदर अस्पताल ले जाया गया है, जहां कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है। घटना की सूचना मिलते ही रेल प्रशासन और बरहेट पुलिस मौके पर पहुंच गई है और जांच में जुटी हुई है। बता दें कि इससे पहले भी एनटीपीसी की रेल पटरी पर दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। कुछ समय पहले कुछ अपराधियों ने बम विस्फोट कर पटरी उड़ा दी थी, जिससे कोयले से लदी एक गाड़ी पटरी से उतर गई थी।

क्या भ्रष्टाचार में लिप्त है न्यायपालिका?

– न्याय के पदों पर आसीन भ्रष्टाचारियों को भी मिलना चाहिए कठोर दंड

संविधान की सर्वशक्तिमान पीठ न्यायपालिका एक ऐसी संवैधानिक संस्था है, जहाँ से हर पीड़ित न्याय की आशा रखता है; मगर कुछ भ्रष्ट न्यायाधीशों ने न्यायपालिका की इस छवि को धूमिल कर दिया है। अगर न्यायालयों पर से उठ रहे आमजन के विश्वास के लिए न्याय के पदों पर आसीन कुछ न्यायाधीश उत्तरदायी हों, तो उन्हें कठोर दंड भी मिलना चाहिए। मगर भारत में संवैधानिक पदों पर विराजमान व्यक्तियों को दंड मिलना सपने में मिले धन का वास्तविक रूप से हाथ में होने के बराबर हो चला है। जबकि भारत में राजनीतिक एवं संवैधानिक पदों पर ही सबसे अधिक धाँधली भ्रष्टाचार एवं अनाचार होने की घटनाएँ सामने आती हैं। अभी वर्तमान में मार्च के महीने में ही दो अन्यायकारी एवं भ्रष्ट न्यायाधीशों की ऐसी ही करतूतों ने पूरे देश को झकझोरकर रख दिया है। इनमें एक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ने एक दुष्कर्म के प्रयास करने वाले आरोपी पर दुष्कर्म के प्रयास का मुक़दमा चलाने से मना कर दिया। उधर देश की राजधानी दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के आवास पर भ्रष्टाचार करके कमाये गये रुपयों के अकूत भंडार के उजागर होने ने न्याय के पदों पर विराजमान न्यायाधीशों की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगा दिये हैं।

इस बारे में अधिवक्ता प्रवीण सिंह कहते हैं कि ऐसे न्यायाधीशों के कारण पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता है; क्योंकि न्याय के पदों पर बैठे ऐसे भ्रष्ट लोग उन्हीं लोगों के पक्ष में फ़ैसले सुनाते हैं, जो अन्यायी एवं झूठे होते हैं। ऐसे न्यायाधीशों के कारण ही न्यायालयों में मुक़दमे वर्षों तक चलते रहते हैं। अधिवक्ता तो झूठ एवं सही दोनों पक्षों के होते ही हैं अब तो न्यायाधीश भी दोनों प्रकार के होते हैं। अधिकांश भ्रष्टाचारी न्यायाधीश चंद पैसों के लालच में ग़लत फ़ैसले सुना देते हैं, यह विकट चिन्ता का विषय है। अधिवक्ता संजय कहते हैं कि न्यायालयों की विधायी प्रक्रिया में राजनीति ने सबसे अधिक ध्वस्त किया है। राजनीति ने स्वहित के लिए इसका दुरुपयोग करके न्यायाधीशों की मूल न्याय की भावना को भ्रष्ट बनाने से लेकर डराने तक की स्थितियों में अन्यायकारी फ़ैसले सुनाने को बढ़ावा दिया है। आज भी न्यायाधीशों पर अनेक मुक़दमों में सरकारी दबाव रहते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ भी राजनीतिक मनपसंद बन चुकी हैं। कई न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में सरकारों की घुसपैठ के उदाहरण देखे जा सकते हैं।

न्यायाधीशों के अन्यायपूर्ण निर्णयों पर उनके विरुद्ध महाभियोग लाया जा सकता है। निचले न्यायालयों के न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग सर्वोच्च न्यायालय ला सकता है; मगर सभी भ्रष्ट एवं अनुचित निर्णय देने वाले न्यायाधीशों के विरुद्ध संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। मगर न्यायाधीश को दंड मिलने अथवा पद से हटाये जाने का अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के हाथ में होता है, जो महाभियोग पर अंतिम हस्ताक्षर करके सहमति देते हैं। वर्ष 2024 के अंतिम महीने में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव के द्वारा विश्व हिन्दू परिषद् के एक कार्यक्रम में अल्पसंख्यकों को लेकर विवादित बयान देने पर उनके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर महाभियोग प्रस्ताव लाने की माँग की गयी थी। अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने एक मुक़दमे में अत्यधिक अन्यायपूर्ण निर्णय सुनाकर संकट मोल ले लिया है।

न्यायमूर्ति के घर में करोड़ों रुपये

भारत की राजधानी दिल्ली के उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के आवास में 14 मार्च को आग लगने के उपरांत अकूत मात्रा में मिलीं 5-5 सौ के रुपयों की गड्डियाँ एवं जले हुए सैकड़ों करोड़ रुपये न्यायमूर्ति के भ्रष्ट होने की गवाही दे रहे हैं। इन पूरे देश में अब इस बात की चर्चा है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा एक भ्रष्ट न्यायमूर्ति हैं। मगर राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते इतने बड़े भ्रष्टाचार के उपरांत भी उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय पदस्थ करने की योजना बनायी जा रही है। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास में मिले रुपये कितने थे, इसका कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया है; मगर कुछ अपुष्ट सूत्रों के अनुसार जले हुए रुपये ही लगभग 15 करोड़ थे। इसके अतिरिक्त आरोप यह भी है कि बिना जले रुपये भी बड़ी संख्या में थे; मगर वो कहाँ गये? किसी को नहीं पता। हालाँकि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने अपने आवास पर करोड़ों रुपये मिलने की जानकारी से स्पष्ट अनभिज्ञता जतायी है।

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा वर्ष 2021 में ही इलाहाबाद से स्थानांतरित होकर दिल्ली उच्च न्यायालय आये थे। अक्टूबर, 2014 में ही उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय में नियुक्ति मिली थी, जिसके बाद अक्टूबर, 2021 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था। अब उनके आवास में भारी संख्या में रुपये मिलने पर उनका एक बार फिर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरण कर दिया गया है। उनके ऊपर कथित रूप से भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद उनका स्थानांतरण करने की जगह उन पर महाभियोग लगाकर उन्हें दंडित करने की माँग उठी थी; मगर केंद्र सरकार ने उनके स्थानांतरण को स्वीकार कर लिया। अब 56 वर्षीय न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा सन् 2031 में सेवानिवृत्त होंगे। अगर उन्हें पदोन्नत किया गया, तो उनका कार्यकाल तीन वर्ष और बढ़ जाएगा, अर्थात् वह सन् 2034 में सेवानिवृत्त होंगे। हालाँकि उनके आवास पर रुपये मिलने की जाँच होगी, जिसमें निष्पक्षता की दरकार है। मगर यह जाँच ईडी अथवा सीबीआई नहीं अथवा आयकर विभाग के जाँच दल नहीं करेंगे, वरन् सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक समिति करेगी, जिसमें तीन पूर्व न्यायमूर्ति सम्मिलित हैं।

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा वहीं हैं, जिन्होंने कुछ महीने पहले ही सेवानिवृत्त हुए पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के साथ मिलकर गंगा एवं दूसरी नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को कृत्रिम तालाब बनाकर विसर्जित करने आदेश दिया था। इसके अतिरिक्त न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने उत्तर प्रदेश के चर्चित भू-माफ़िया एवं अनेक अपराधों में लिप्त रहे अतीक अहमद को लेकर कई कड़े आदेश दिये थे। बाद में अन्य अपराधियों ने अतीक अहमद की 15 अप्रैल, 2023 को एक अस्पताल के परिसर में हत्या कर दी थी।

इसके अतिरिक्त साक्ष्यों के अभावों के उपरांत भी न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी जमानत याचिका ख़ारिज कर दी थी। अब उन्हीं न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर अकूत संख्या में रुपये मिलने से उन पर भ्रष्ट होने का कलंक लग गया है एवं उनके विरुद्ध महाभियोग की माँग देश भर में हो रही है। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे कथित रूप से भ्रष्ट न्यायमूर्ति का स्थानांतरण वापस इलाहाबाद उच्च न्यायालय में करने का प्रस्ताव रखा है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि न्यायमूर्ति के स्थानांतरण का प्रस्ताव आंतरिक जाँच प्रक्रिया से अलग है। इस मामले में पहली जाँच पूरी हो गयी है। जाँच की रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना तक पहुँच गयी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के विरुद्ध सीबीआई अथवा ईडी द्वारा जाँच की माँग की है। न्यामूर्ति यशवंत वर्मा पर एफआईआर मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि न्यायमूर्ति के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बिना कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। उनके इस बयान से अब ये रहे हैं कि केंद्र सरकार न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को बचा रही है। अगर यह मामला किसी ऐसे न्यायाधीश पर होता, जो किसी मामले में केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुका होता, तो उस न्यायाधीश के विरुद्ध अब तक कड़ी कार्रवाई हो गयी होती।

यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि सन् 2020 में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी द्वारा न्यायमूर्ति एन.वी. रमना के ख़िलाफ़ लगाये गये आरोपों को भी एक आंतरिक जाँच के माध्यम से निपटा दिया गया था, जिसके निष्कर्षों का कभी ख़ुलासा नहीं किया गया। अभी मार्च, 2025 में भी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायमूर्ति निर्मल यादव और एक अन्य न्यायामूर्ति को 17 वर्ष पुराने 15 लाख रुपये से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया गया।

अश्लील हरकत जुर्म नहीं

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा के विरुद्ध पूरे उत्तर प्रदेश में कार्रवाई की माँग हो रही है। न्याय के लिए लड़ने वाले सभी अधिवक्ता एवं न्याय चाहने वाले सभी सामान्य व्यक्ति न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा के विरुद्ध कार्रवाई चाहते हैं। इसका कारण न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा एक 11 वर्षीय किशोरी के साथ दुष्कर्म की भावना से हुई छेड़छाड़ को अपराध नहीं मानना है।

सूत्रों की मानें, तो कासगंज जनपद के पटियाली थाना क्षेत्र में एक 11 वर्षीय किशोरी के निजी अंगों को छूने, किशोरी का बार-बार नाड़ा तोड़ने एवं किशोरी को पुलिया के नीचे घसीटने के आरोप में दो युवकों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हुई। जनपदीय न्यायालय ने दोनों आरोपियों को दुष्कर्म का प्रयास करने के आरोप में दोषी ठहराते हुए उनके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा-376 एवं पॉक्सो अधिनियम की धारा-18 के तहत आरोपियों को समन किया था। मगर आरोपियों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपने बचाव के लिए याचिका दायर कर दी। 17 मार्च को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने आदेश में जनपदीय न्यायालय को एक समन में संशोधन करने को कहा था। उन्होंने जनपदीय न्यायालय को आदेश दिया कि वह समन में दुष्कर्म के प्रयास के आरोप को हटाकर केवल छेड़छाड़ अथवा हमला करने की धाराओं में समन जारी करे। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा कि पीड़िता के निजी अंगों को छूना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ना एवं उसे खींचकर भागने का प्रयास करना दुष्कर्म अथवा दुष्कर्म का प्रयास करने के अपराध के अंतर्गत नहीं आएगा। इसे यौन उत्पीड़न अवश्य कहा जाएगा; मगर ये दुष्कर्म अथवा दुष्कर्म का प्रयास नहीं है। न्यायमूर्ति ने जनपदीय न्यायालय को आदेश दिया कि आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा-354 बी (कपड़े उतारने के मन से हमला अथवा आपराधिक बल प्रयोग करना) के मामूली आरोप के साथ पॉक्सो अधिनियम की धारा-9/10 (गंभीर यौन हमला) के अंतर्गत मुक़दमा चलाया जाए।

अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुँच चुका है, जहाँ से पीड़ित किशोरी एवं उसके परिवार को न्याय की आशा है। याचिका में माँग की गयी है कि सर्वोच्च न्यायालय केंद्र सरकार अथवा उच्च न्यायालय न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा को निर्देश दें कि वह अपने विवादित आदेश को वापस लें एवं भविष्य में ऐसी विवादित टिप्पणियाँ करने पर भी प्रतिबंध लगाने के निर्देश जारी करें। याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सर्वोच्च न्यायालय से इस मामले में स्वत: संज्ञान लेने की माँग करते हुए कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत कम मामलों में न्यायमूर्तियों की खिंचाई की है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियांक क़ानूनगो कहते हैं कि उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति का आदेश अन्यायपूर्ण है। इस मामले में राज्य सरकार से तुरंत अपील करे एवं न्यायमूर्ति को उनकी प्रतिबद्धता याद दिलाये। पीड़िता केवल 11 साल की है। पॉक्सो अधिनियम की धारा-29 एवं 30 के तहत आरोपियों को निर्दोष सिद्ध करना उनका बचाव करने जैसा है। क़ानूनगो कहते हैं कि यह आश्चर्यजनक बात है कि जबरन कपड़े उतारने को भी दुष्कर्म का प्रयास नहीं माना गया। इतनी छोटी बच्ची से दुष्कर्म के प्रयास की परिभाषा समझाने समझाने का न्यायमूर्ति का प्रयास अन्याय से कम नहीं है। इस तरह के न्यायालयों के निर्णय अपराधियों को अपराध करने के लिए उकसाते हैं। इसलिए राज्य सरकार को इस मामले में तुरंत अपील करनी चाहिए।

राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा सांसद रेखा शर्मा कहती हैं कि यदि न्यायाधीश संवेदनशील नहीं होंगे, तो महिलाओं एवं बच्चों को न्याय कैसे मिलेगा? कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं कि क्या यह उस 11 साल की बच्ची के लिए न्याय है? भारत महिलाओं के लिए दुनिया के सबसे असुरक्षित देशों में से एक है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा कहते हैं कि न्यायाधीश की टिप्पणी भयावह और शर्मनाक है। इलाहाबाद न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा के आदेश को लेकर उनके विरुद्ध प्रदेश ही नहीं देश भर में प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। लोग उन्हें ऐसे आदेश के लिए दंडित करने की माँग कर रहे हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने उनके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। न्यायमूर्ति का राजनीतिक विरोध भी बड़े पैमाने पर हो रहा है।

महाभियोग एवं बचाव

देश में अन्यायकारी आदेश एवं निर्णय पहले भी कई न्यायाधीशों ने दिये हैं; मगर उनमें से अनेक को इसका दंड मिला है, तो अनेक राजनीतिक पहुँच एवं नेताओं के हितों में निर्णय देने के चलते राजनीतिक लाभ वाले पदों पर नियुक्त किये गये हैं। न्यायकारी आदेश देने वाले कई न्यायाधीशों की हत्याएँ भी देश में हुई हैं। गुजरात के जज लोया की हत्या इसका सबसे सटीक उदाहरण है।

वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार एवं पद के दुरुपयोग के आरोपों पर सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति पीडी दिनाकरन के विरुद्ध महाभियोग लाने की तैयारी हो ही रही थी कि उन्होंने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था। राज्यसभा के 75 सदस्यों ने न्यायमूर्ति पी.डी. दिनाकरन के विरुद्ध महाभियोग चलाने की माँग की थी।

वर्ष 2017 में आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सी.वी. नागार्जुन रेड्डी के विरुद्ध भी महाभियोग का प्रस्ताव राज्यसभा के तत्कालीन सभापति पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने रद्द कर दिया था। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस.के. गंगले के विरुद्ध वर्ष 2018 में महाभियोग की कार्रवाई हुई थी; मगर उनके विरुद्ध भी कुछ नहीं हो सका। इसके अतिरिक्त पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति निर्मल यादव को भी भ्रष्टाचार के आरोपों से वर्ष 2008 में बरी कर दिया गया था। मगर वहीं वर्ष 2015 में गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध अपशब्द बोलने पर महाभियोग लाकर जेल भेज दिया गया था। बाद में जेल से उन्होंने अपने शब्द वापस लेकर क्षमा माँगी थी।

बिहार चुनाव से पहले तेज हुई ईडी की कार्रवाई, तेजस्वी यादव निशाने पर

पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव मुश्किल से कुछ महीनों की दूरी पर हैं और इसी बीच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अचानक सक्रिय हो गया है। हाल ही में नौकरी के बदले जमीन घोटाले में लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को समन भेजा गया और पूछताछ की गई।

लालू यादव ही मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वाले इकलौते मंत्री नहीं थे। पी. चिदंबरम और ए. राजा जैसे कई अन्य लोग भी ऐसे मामलों में शामिल थे, लेकिन ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे लालू और उनका परिवार दूसरों की तुलना में अधिक भ्रष्ट हैं। सवाल यह भी उठता है कि ईडी की यह कार्रवाई चुनाव से ठीक पहले ही क्यों तेज हुई?

नौकरी के बदले जमीन घोटाला: यह मामला लालू यादव के रेलवे मंत्री रहने के दौरान 2004 से 2009 के बीच का है। आरोप है कि रेलवे में नौकरी देने के बदले उम्मीदवारों के परिवारों से उनकी जमीन यादव परिवार के नाम करवाई गई। इससे यादव परिवार ने एक विशाल भूमि बैंक बना लिया। इतना ही नहीं, उनके बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी ने पटना के प्रमुख इलाकों में मॉल निर्माण की शुरुआत भी की, जो विवादास्पद तरीके से प्राप्त भूमि पर बनाया जा रहा था।

ईडी की अचानक सक्रियता और तेजस्वी पर फोकस: यह घोटाला काफी पहले का है और नरेंद्र मोदी सरकार पिछले 11 वर्षों से सत्ता में है। बावजूद इसके, ईडी और अन्य जांच एजेंसियां इतने वर्षों तक धीमी रहीं और अब चुनाव से कुछ महीनों पहले अचानक बेहद सक्रिय हो गई हैं। लालू परिवार पर कार्रवाई का असली मकसद तेजस्वी यादव को घेरना है, जिन्हें बिहार में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना जाता है।

ईडी ने हाल ही में तेजस्वी यादव से दक्षिण दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी स्थित उनके भव्य घर को लेकर सवाल किए। यह बंगला 2008 में मात्र चार लाख रुपये में खरीदा गया था, जबकि इसका बाजार मूल्य दो साल पहले ₹150 करोड़ आंका गया था। सवाल यह है कि इतनी महंगी संपत्ति इतनी कम कीमत में कैसे खरीदी गई?

लालू का अतीत और भाजपा की रणनीति: लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें 14 साल की सजा सुनाई गई थी। फिलहाल वह जमानत पर बाहर हैं। हालांकि, अब उनकी राजनीतिक पकड़ पहले जैसी मजबूत नहीं रही। भाजपा को इस बात का डर है कि अगर तेजस्वी मुख्यमंत्री बन जाते हैं, तो बिहार में राजद की पकड़ फिर से मजबूत हो सकती है।

भाजपा का यह अभियान दिल्ली की राजनीति से मेल खाता है, जहां आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में फंसाया गया। उनके कुछ करीबी सहयोगियों को जेल भेजा गया और चुनाव से पहले ही उनकी छवि खराब कर दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी दिल्ली के चुनावों में हार गई और भाजपा ने 25 साल बाद राजधानी में वापसी की। अब वही रणनीति बिहार में अपनाई जा रही है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई या राजनीतिक रणनीति? बिहार में भाजपा के लिए यह सुनहरा मौका है क्योंकि मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता घट रही है और उनकी सेहत को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं। अगर तेजस्वी यादव को चुनाव से पहले गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन चुनावों से ठीक पहले विपक्षी नेताओं को चुन-चुनकर निशाना बनाना लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है। यह न केवल बिहार बल्कि अन्य विपक्षी शासित राज्यों के लिए भी चेतावनी की घंटी है।

केरल, गुजरात और अंडमान द्वीप समूह में अपतटीय खनन निविदाओं को रद्द करने का अनुरोध करते हुए राहुल ने प्रधानमंत्री को एक पत्र सौंपा

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली , 31 मार्च
समुद्री जीवन के लिए खतरे की ओर इशारा करते हुए राहुल गांधी  ने केरल, गुजरात और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के तटों पर अपतटीय खनन के लिए जारी किए गए टेंडरों को रद्द करने की मांग की है. राहुल गाँधी  ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा
 ठेकेदारों के लिए अपतटीय खनन ब्लॉकों को खोलना चिंताजनक है.तटीय समुदाय पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन किए बिना अपतटीय खनन के लिए निविदाएं जारी करने के तरीके के खिलाफ विरोध कर रहे हैं।  केरल, गुजरात और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तटों पर अपतटीय खनन की अनुमति देने के केंद्र सरकार के फैसले की कड़ी निंदा करते हैं. और साथ ही  सरकार से अनुरोध करते ही की  इस फैसले को तुरंत  वापस लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि केरल में 11 लाख से अधिक लोग मछली पकड़ने पर निर्भर हैं और यह उनका पारंपरिक व्यवसाय है. ग्रेट निकोबार विश्व स्तर पर विविध पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए जाना जाता है और यह वन्यजीवों की कई स्थानिक प्रजातियों का घर है. उन्होंने कहा कि लाखों मछुआरों ने अपनी आजीविका और जीवन शैली पर इसके प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है।
राहुल ने  कहा कि अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 पर कड़ी आपत्ति जताई गई. उन्होंने कहा कि अध्ययनों से इसके प्रतिकूल प्रभावों की ओर संकेत मिलता है, जिसमें समुद्री जीवन के लिए खतरा, मछली भंडार में कमी शामिल है. गांधी ने कहा कि 13 ब्लॉकों में से तीन ब्लॉक कोल्लम के तट पर खनन निर्माण रेत के लिए हैं जो एक महत्वपूर्ण मछली प्रजनन आवास है.
तीन ब्लॉक ग्रेट निकोबार द्वीप समूह के तट पर पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के लिए हैं जो एक समुद्री जैव विविधता हॉटस्पॉट है.केरल विश्वविद्यालय के जलीय जीव विज्ञान और मत्स्य पालन विभाग की समुद्री निगरानी प्रयोगशाला (एमएमएल) के चल रहे सर्वेक्षण में पाया गया है कि अपतटीय खनन से मछली पालन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, खासकर कोल्लम में।राहुल ने कहा यह चिंताजनक है कि सरकार वैज्ञानिक मूल्यांकन के बिना जानबूझकर गतिविधियों को हरी झंडी दे रही है, ऑर्डर साथ ही
 हितधारकों के साथ किसी भी परामर्श या तटीय समुदायों पर दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का आकलन किए बिना टेंडर जारी किए गए  .

बूढ़े होते भारत की एक खामोश टीस, दादा दादियों के हाथ में देश की कमान

उम्रदराज होना, बाल सफेद होना, कोई अभिशाप नहीं, तजुर्बे से मिला विशेषाधिकार है। आजकल युवा वर्ग बुजुर्गों को गरिया रहा है, बेघर कर रहा है, अमानवीय व्यवहार कर रहा है ये भूलकर कि जो पैदा हुआ है वो स्वर्गवासी होने से पहले इस दयनीय अवस्था से गुजरेगा।

बृज खंडेलवाल द्वारा

भारत की घड़ी उल्टी चल रही है, देश बूढ़ा हो रहा है । समाज अतीत में भविष्य खोज रहा है। जल्दी प्रधान मंत्री 75 साल के हो जाएंगे। श्री भागवत जी, सोनिया जी, खड़गे, नीतीश, ममता, नायडू, स्टालिन, विजयन, लालू, पवार, सब सत्तर पार। धीरे धीरे राजनीति में  रिटायर्ड लोगों का कुनवा बढ़ता जा रहा है।

और ये कोई अच्छी बात नहीं। हम एक जनसांख्यिकीय भूकंप देख रहे हैं, सफेद बालों का एक खामोश तूफ़ान, जो हम सब को अपनी चपेट में लेने वाला है। 2050 तक, ज़रा कल्पना कीजिए: 34 करोड़, नाना नानी और दादा-दादी। आबादी स्थिर हो चुकी है, अब जन संख्या का ग्राफ गिरेगा, भारत में आगे जाकर युवा और सिक्सटी प्लस अधेड़ों की आबादी लगभग बराबर हो सकती है।

प्रॉब्लम ये है कि हमने लंबी उम्र में तो महारत हासिल कर ली है, लेकिन गरिमा के साथ बूढ़ा होने की कला सीखने में बिलकुल नाकाम रहे हैं। यानी बुद्धों की सुख, सुविधा, चैन से जीवन यापन के मौकों से वंचित कर रखा है।

ज़रा इन दृश्यों की कल्पना कीजिए: झुर्रियों वाले हाथ फटे हुए रुपयों को पकड़े हुए, जो मुश्किल से बासी रोटी के लिए काफ़ी हैं। वीरान घरों से झाँकती अकेली आँखें, डॉक्टर के स्पर्श की निराशाजनक गुहार, एक ऐसी सुविधा जिसकी वे क्षमता नहीं रखते। हमारे हलचल भरे शहर, जीवंत होने से दूर, भूले हुए, त्यागे गए बुजुर्ग आत्माओं से परेशान हैं, जो एक ऐसे समाज में सांत्वना का एक टुकड़ा खोज रहे हैं जिसने अपनी पीठ फेर ली है।

प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं “सरकार की बड़ी-बड़ी योजनाएँ? कागज़ी शेर, भ्रष्टाचार से भरी और नौकरशाही की लाल फीताशाही से दम घुटती हुई। वे चाँद का वादा करते हैं, धूल देते हैं। पारंपरिक समर्थन प्रणाली, जो कभी हमारी संस्कृति की नींव थी, अब ढह रही हैं, हमारे बुजुर्गों को अकेलेपन के समुद्र में फँसा रही हैं, वे काँपते डर के साथ अपनी जीवन का अंतिम अध्याय देख रहे हैं। उस भूमि में जो कभी अपने बुजुर्गों की पूजा करती थी।एक तरफ ढलती शाम, दूसरी और जवानी का जुनून। हम झुर्रियों से डरी हुई एक संस्कृति हैं, शाश्वत युवाओं के भूत का पीछा कर रहे हैं। एंटी-एजिंग सर्कस, एक अरबों डॉलर का अजीबोगरीब व्यवसाय जो साँप का तेल और भ्रम बेचता है।”

ज़रा इसके बारे में सोचिए: 2021 में 60 अरब डॉलर, 2030 तक दोगुना होने का अनुमान, ये सब क्रीमों और दवाओं के लिए जो चमत्कारों का वादा करते हैं, लेकिन खाली जेबें और झूठी उम्मीद देते हैं। शेर की अयाल वाले मशरूम, मस्तिष्क बूस्टर के रूप में प्रचारित, एक राजा के फिरौती की कीमत है, हालाँकि विज्ञान मकड़ी के जाले की तरह कमज़ोर है। क्रायोथेरेपी, जहाँ लोग खुद को पॉप्सिकल की तरह जमाते हैं, और “युवा रक्त आधान”, जहाँ वे 8,000 डॉलर प्रति पॉप अपने आप को किशोर प्लाज्मा का इंजेक्शन लगाते हैं, क्या क्या नहीं हो रहा है उम्र की रफ्तार थामने के लिए।

सोशल एक्टिविस्ट मुक्त गुप्ता बताती हैं, “ब्रायन जे जैसे टेक अरबपति,   रक्त परिवर्तन के एक अजीबोगरीब कॉकटेल पर सालाना 20 लाख डॉलर खर्च करते हैं, इस पागलपन के पोस्टर बॉय हैं। सिलिकॉन वैली के अभिजात वर्ग, जीन-संपादन और स्टेम सेल कल्पनाओं के साथ अमरता का पीछा करते हुए, अपनी किस्मत और अपने शरीर के साथ एक खतरनाक खेल खेल रहे हैं।”

यह सिर्फ़ मूर्खतापूर्ण ही नहीं, यह एक बेहद  खतरनाक खेल  है। “विशेषज्ञ” साँप के ज़हर के चेहरे और प्लेसेंटा क्रीम बेचते हैं, क्लीनिक “युवाओं का फव्वारा” इंजेक्शन पेश करते हैं जो कौन जानता है कि किस चीज़ से भरे होते हैं, और बायोहैकिंग गुरु बर्फ स्नान और इन्फ्रारेड सौना की इंजील का प्रचार करते हैं। यहाँ तक कि फ़िलर्स और बोटोक्स जैसी मुख्यधारा की कॉस्मेटिक प्रक्रियाएँ, हालाँकि आजकल नॉर्मल हैं, फिर भी खतरे बहुत हैं।  लोग कुछ साल उम्र कम करने के चक्कर में आफत मोल ले रहे हैं। 2022 में अकेले अमेरिका में 11 मिलियन प्रक्रियाएँ – हमारे सामूहिक पागलपन का प्रमाण।

लेकिन यहाँ सच्चाई क्या है: उम्र अपरिहार्य है। कोई औषधि, कोई प्रक्रिया, कोई अरबपति का बायोहैकिंग समय को नहीं रोक सकता। एक हारी हुई लड़ाई लड़ने के बजाय, हमें उस ज्ञान और सुंदरता को अपनाना चाहिए जो उम्र के साथ आती है। जापान “बुजुर्गों के सम्मान का दिन” मनाता है, और मूल अमेरिकी परंपराएँ अपने बुजुर्गों का सम्मान करती हैं। अध्ययन बताते हैं कि खुशी 50 के बाद चरम पर होती है, जब हम अंततः सतही चीज़ों को छोड़ देते हैं और उस पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो मायने रखता है।

साँप के तेल पर पैसा फेंकने के बजाय, हमें स्वस्थ जीवन में निवेश करना चाहिए: अच्छा भोजन, व्यायाम और मानसिक रूप से एक्टिव। बाल काले करके अमिताभ बच्चन बनने का ढोंग क्यों?

बूढ़ा होना एक विशेषाधिकार है, एक सम्मान का प्रतीक। आइए डर फैलाने और झूठे वादों को त्यागें।  अपनी गरिमा को पुनः प्राप्त करें, और सफेद तूफ़ान का सम्मान करें, इसे नज़रअंदाज़ न करें। भारत को एक ऐसी जहां बनाएँ जहाँ बूढ़ा होना संकट न हो, बल्कि एक उत्सव हो।