गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के नेटवर्क ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मौजूदगी का दावा किया है। कनाडा में रविवार देर रात तीन अलग-अलग जगहों पर हुई फायरिंग की जिम्मेदारी बिश्नोई गैंग ने सोशल मीडिया पर ली है। गैंग की ओर से किए गए पोस्ट में लिखा गया है कि “2 नंबर के धंधे” यानी अवैध कारोबार करने वालों से वसूली की जाती है, मेहनत करने वालों से नहीं।
गैंग की ओर से पुर्तगाल में रहने वाले फतेह पुर्तगाल ने इन घटनाओं की जिम्मेदारी ली है। उसने सोशल मीडिया पर फायरिंग का एक वीडियो भी साझा किया, जिसमें एक शूटर अत्याधुनिक हथियार से गोलियां चलाता नजर आ रहा है। यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। कनाडाई पुलिस ने सभी घटनास्थलों को सील कर जांच शुरू कर दी है। शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, फायरिंग में किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। हालांकि, पुलिस इसे संगठित अपराध से जुड़ी बड़ी साजिश के रूप में देख रही है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही कनाडा सरकार ने लॉरेंस बिश्नोई गैंग को आतंकी संगठन घोषित किया था। इसके बाद से ही गैंग सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी “मौजूदगी” दिखाने की कोशिश कर रहा है।
खुद को ‘फतेह पुर्तगाल’ बताने वाले व्यक्ति ने पोस्ट में जिन तीन स्थानों का जिक्र किया है, वे हैं — Theshi Enterprise (1254, 110 Ave), House No. 2817 (144 St) और 13049, 76 Ave Unit No.104। दावा किया गया है कि ये सभी स्थान ‘नवी तेसी’ नामक व्यक्ति के स्वामित्व में हैं, जिसने कथित रूप से “लॉरेंस बिश्नोई गैंग” का नाम लेकर कलाकारों से अवैध वसूली की थी। पोस्ट में चेतावनी देते हुए लिखा गया कि, “हम मेहनत करने वालों से दुश्मनी नहीं रखते, लेकिन जो हमारे लोगों को परेशान करते हैं या गलत तरीके से पैसा वसूलते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अगर किसी ने गलत खबर फैलाई, तो उसके परिणामों की जिम्मेदारी उसी की होगी।” पुलिस इन
मुसलमानों को ऋण देने से परहेज करते हैं बैंक और एनबीएफसी!
इंट्रो- तहलका की इस बार की पड़ताल में शिकायतों और स्टिंग से पता चला है कि देश के बहुत से बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के द्वारा मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुसलमानों को कर्ज (ऋण) देने से इनकार किया जाता है, खासकर मस्जिद के आसपास। इसके साथ ही ऋण लेने वाले मुसलमानों से बलपूर्वक ऋण की वसूली भी की जाती है। तहलका की इस पड़ताल से पता चलता है कि किस प्रकार बैंक और एनबीएफसी ऋण उपलब्ध कराने में मुस्लिम बहुल इलाकों के साथ भेदभाव करते हैं, जिससे पक्षपात, भ्रष्टाचार और जबरन वसूली की घटनाओं का खुलासा होता है। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :- 9 मार्च, 2005 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन करने के लिए अधिसूचना जारी की। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति ने 17 नवंबर, 2006 को तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी। सरकार ने 30 नवंबर को न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की। अपनी अनेक सिफारिशों में सच्चर समिति ने पाया कि कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को बैंकों द्वारा नकारात्मक या रेड जोन के रूप में चिह्नित किया गया था, जहां उन्हें पुनर्भुगतान में चूक का उच्च जोखिम महसूस हुआ, जिसके चलते वे मुसलमानों को ऋण देना नहीं चाहते थे। चिंता की बात यह है कि रिपोर्ट पेश होने के 19 साल बाद इस प्रथा में बदलाव आने की जगह यह भेदभाव और बढ़ा है। आज भी बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले मुसलमानों को ऋण देने से हिचकिचाती हैं।
वास्तव में कई लोगों का मानना है कि 2014 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से देश की स्थिति बदल गई है। सरकार के कई अन्य अंगों की तरह वित्तीय संस्थाएं भी मुस्लिम मुद्दों के प्रति उदासीन दिखाई देती हैं और अक्सर अब और मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं की हिंदुत्ववादी नीति पर चलती हैं। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार, वर्तमान मोदी सरकार के तहत मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए ऋण तक पहुंच में यूपीए के वर्षों की तुलना में कोई वास्तविक अंतर नहीं आया है, जब सच्चर समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। सच्चाई का पता लगाने के लिए तहलका ने बैंकों, एनबीएफसी और डायरेक्ट सेलिंग एजेंटों (डीएसए) में जाकर पड़ताल की, जो इन संस्थानों और ग्राहकों के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करते हैं।
‘मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद शाहीन बाग, ओखला विहार, जाफराबाद, मुस्तफाबाद और दिल्ली के अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले मुसलमानों के लिए बैंकों और एनबीएफसी की इनकार दर 100 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इससे पहले पिछली सरकार के कार्यकाल में यह इनकार दर 25 प्रतिशत थी। उन्हीं बैंकों और एनबीएफसी को दिल्ली के हिंदू बहुल इलाकों में हिंदुओं को ऋण देने में कोई समस्या नहीं है।’ -एक शीर्ष वित्तीय परामर्श कंपनी (डीएसए) के प्रबंधक शाहरुख मलिक ने तहलका के अंडरकवर रिपोर्टर को बताया। ‘यदि कोई व्यक्ति मस्जिद और मंदिर के सामने मकान खरीदना चाहता है, तो बैंक और एनबीएफसी मस्जिद के पास वाले मकान को ऋण नहीं देंगे। लेकिन वे मंदिर के पास वाले मकान को ऋण दे देंगे; चाहे मकान पंजीकृत संपत्ति हो या नहीं। यदि वह मुस्लिम बहुल क्षेत्र में है, तो कोई ऋण नहीं दिया जाएगा। वजह बताई गई है ईएमआई। अगर कोई मुसलमान ईएमआई नहीं चुका पाता और बैंक की वसूली टीम वसूली के लिए जाती है, तो हो सकता है कि टीम को मुस्लिम बहुल इलाके से भगा दिया जाए।’ -शाहरुख ने बताया।
‘यदि आप जीएसटी का भुगतान नहीं कर रहे हैं; लेकिन अपना रिटर्न दाखिल कर रहे हैं, तो भी मैं आपके लिए ऋण राशि स्वीकृत करवा सकता हूं। जीएसटी फाइल मत करो, बस मुझे दो साल का आईटीआर दे दो। मैं आपके लिए बैंक या एनबीएफसी से 1.5-2 करोड़ रुपए के बीच ऋण की व्यवस्था करा दूंगा।’ -शाहरुख ने तहलका रिपोर्टर से आगे कहा। ‘मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ऋण प्राप्त करना कठिन है, क्योंकि यदि आवेदक ईएमआई का भुगतान करने में विफल रहता है, तो वसूली कठिन हो जाती है। लोग एकजुट होकर रिकवरी टीम से लड़ते हैं। उन्हें इस बात का डर नहीं है कि समाज क्या कहेगा। दूसरी ओर हिंदू बहुल क्षेत्रों में ऋण आसानी से उपलब्ध हो जाता है, क्योंकि हिंदू समुदाय का कोई व्यक्ति यदि ऋण नहीं चुकाता है, तो उससे वसूली आसान होती है।’ -एक शीर्ष एनबीएफसी के प्रत्यक्ष बिक्री प्रबंधक अनुज पांडे ने कहा।
‘बैंक मुस्लिम ग्राहकों को सीधे तौर पर यह नहीं बताएंगे कि वे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ऋण नहीं देते हैं। इसके बजाय वे तकनीकी या कानूनी मुद्दों जैसे बहाने बनाते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि वे मुस्लिम बहुल इलाकों में ऋण देना ही नहीं चाहते।’ -अनुज ने तहलका रिपोर्टर के सामने खुलासा किया। ‘मस्जिद के ठीक सामने स्थित मकान पर कोई ऋण नहीं दिया जाएगा, क्योंकि यदि कल आवेदक उस मकान को मस्जिद को दे देता है, तो ऋण राशि की वसूली मुश्किल हो जाएगी। दूसरी ओर मंदिरों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है। यही कारण है कि बैंक मंदिरों के सामने स्थित मकानों पर ऋण जारी करते हैं।’ -अनुज ने आगे बताया। ‘बैंकों द्वारा ऐसा कोई लिखित नियम नहीं है कि वे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ऋण नहीं देंगे। लेकिन वे ऐसे क्षेत्रों को नकारात्मक घोषित करते हैं, क्योंकि उस क्षेत्र में ऋण चूक के कई मामले होते हैं, जहां वसूली कठिन होती है। बैंक और एनबीएफसी मंदिरों और गुरुद्वारों के पास की संपत्तियों को वित्तपोषित करेंगे, लेकिन मस्जिदों के पास नहीं।’ -आयुष चौहान ने तहलका रिपोर्टर को बताया। ‘मैंने अपना ऋण स्वीकृत करवाने के लिए डीएसए को रिश्वत दी, क्योंकि मैंने जो घर खरीदा था वह मस्जिद के बहुत नजदीक था। बैंक और एनबीएफसी मस्जिद के 500 मीटर के दायरे में स्थित संपत्तियों पर ऋण नहीं देते हैं। यही स्थिति मंदिरों और गुरुद्वारों के साथ भी है। मुसलमानों की तरह हिंदुओं को भी उनके बहुल क्षेत्रों में बैंक ऋण देने में आनाकानी करते हैं।’ -देश के एक शीर्ष निजी बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर लियाकत अली ने कहा। तहलका रिपोर्टर ने शाहरुख मलिक से दिल्ली के राजेंद्र प्लेस स्थित उनके कार्यालय में मुलाकात की। शाहरुख दक्षिण भारत स्थित एक शीर्ष वित्तीय परामर्श फर्म में काम करते हैं, जिसके देश भर में कई कार्यालय हैं, जहां वे लोगों को सलाह देते हैं और उनके लिए बैंकों और एनबीएफसी से ऋण की व्यवस्था करते हैं। उन्होंने तहलका रिपोर्टर को, जो उनके पास घर का ऋण लेने के लिए एक काल्पनिक ग्राहक के रूप में गए थे; बताया कि दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ऋण प्राप्त करना असंभव है, क्योंकि यदि उधारकर्ता ऋण नहीं चुकाता है तो वसूली मुश्किल हो जाती है।
शाहरुख के अनुसार, उचित रजिस्ट्री वाली संपत्तियों को भी सिर्फ इसलिए ऋण देने से मना कर दिया जाता है, क्योंकि वे मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थित हैं। शाहरुख ने दावा किया कि हिंदू बहुल क्षेत्रों में ऐसी कोई बाधा नहीं आती है और वहां ऋण बिना किसी कठिनाई के स्वीकृत हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बैंकों द्वारा ऋण देने से इनकार करने की दर पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान 25 प्रतिशत से बढ़कर मोदी सरकार के तहत 100 प्रतिशत हो गई है।
निम्नलिखित बातचीत में शाहरुख ने स्पष्ट रूप से बताया कि संपत्तियों की वैध रजिस्ट्री होने के बावजूद बैंक और एनबीएफसी दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में ऋण देने से साफ इनकार कर देते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अतीत के विपरीत अब इस तरह के मामले पूरी तरह बढ़ गए हैं। इससे यह धारणा सामने आती है कि मुसलमानों को जोखिमपूर्ण ऋणधारक माना जाता है, भले ही उनमें से कई ऋण चुकाने में ईमानदार भी हैं, जबकि हिंदुओं को इस तरह के व्यापक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता है। टिप्पणी में अस्वीकृतियों की बढ़ती संख्या को सीधे तौर पर मोदी सरकार के कार्यकाल से जोड़ा गया है।
शाहरुख : टोटल मुस्लिम होते हैं ना जहां, वहां (लोन) देते ही नहीं।
रिपोर्टर : कोई बैंक नहीं देता, ,,,प्राइवेट, सरकारी, कोई नहीं?
शाहरुख : ओखला में तुम रजिस्ट्री चालू करवा दो, …देंगे ही नहीं।
रिपोर्टर : चाहे रजिस्ट्री हो, तब भी नहीं? शाहरुख : हां।
रिपोर्टर : वजह?
शाहरुख : वजह यहां टोटल मुस्लिम हैं।
रिपोर्टर : मुस्लिम क्या ईएमआई नहीं दे सकता?
शाहरुख : देते हैं, ..बहुत लोग देते हैं।
रिपोर्टर : उसमें क्या दिक्कत है?
शाहरुख : मगर देंगे नहीं ना। अगर कभी ईएमआई नहीं दी और कोई पैसे लेने गया, तो उसको नष्ट कर दिया…। रिपोर्टर : ये हिंदू के इलाके में नहीं होता क्या? …हिंदू डोमिनेटेड?
शाहरुख : न।
रिपोर्टर :वहां कर देते हैं लोन? शाहरुख : हां।
रिपोर्टर : इतना बुरा माहौल हो गया है? …ये अभी हुआ है, …मोदी (गवर्नमेंट) के आने के बाद?
शाहरुख : पहले 20-25 परसेंट था, ,,,अब 100 परसेंट हो गया है।
इस बातचीत में शाहरुख ने तहलका रिपोर्टर को मस्जिद के पास मकान न खरीदने की सलाह दी और कहा कि इससे ऋण मिलना मुश्किल हो जाएगा। शाहरुख ने यह भी कहा कि यदि घर मंदिर के पास हो, तो ऋण प्राप्त करना अधिक आसान होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बैंक और एनबीएफसी किस प्रकार संपत्तियों के साथ अलग-अलग व्यवहार करते हैं, जो इस बात पर निर्भर करता है कि वे मस्जिद या मंदिर के पास स्थित हैं। उनका कहना है कि मंदिरों के पास तो आसानी से ऋण दे दिया जाता है, लेकिन मस्जिदों के पास ऋण देने से मना कर दिया जाता है।
रिपोर्टर : अच्छा ये बताओ, मस्जिद के पास लोन नहीं है क्या? मस्जिद और मंदिर के पास?
शाहरुख : मंदिर के पास होगा, मस्जित के पास नहीं होगा।
रिपोर्टर : मंदिर के पास हो जाएगा?
शाहरुख : हां।
रिपोर्टर : मस्जिद के पास नहीं, क्यूं?
शाहरुख : मुस्लिम इश्यू।
रिपोर्टर : ये पहले से था या अभी हुआ?
शाहरुख : अब ज्यादा क्रेज हो गया है, मोदी (गवर्नमेंट) के बाद ज्यादा हो गया है।
इसके बाद शाहरुख ने रिपोर्टर को एक ग्राहक के बारे में बताया, जिसके लिए उन्होंने एक एनबीएफसी से ऋण की व्यवस्था करने में कामयाबी हासिल की, जबकि उस ऋण लेने वाले ने जो घर खरीदा था वह एक मस्जिद के बहुत करीब था। शाहरुख ने कहा कि बैंकों और एनबीएफसी के पास मुस्लिम बहुल इलाकों या मस्जिदों के पास रहने वाले मुसलमानों को वित्त पोषण करने के खिलाफ कोई लिखित नियम नहीं है। उन्होंने बताया कि मस्जिद के बहुत नजदीक स्थित संपत्तियों- कभी-कभी तो 50 मीटर के भीतर भी, को स्वतः ही अस्वीकार कर दिया जाता है, जबकि मंदिरों के निकट ऋण लेने पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं होता। शाहरुख : रमेश पार्क में भी तो है इनका, बस एक छोटी सी बात है; …मस्जिद के पास कर लिया तो इससे बड़ी क्या चीज होगी। मस्जिद से कम से कम 200-300 मीटर दूर होना चाहिए घर और उसका 50 मीटर भी नहीं है।
रिपोर्टर : पर आपने लोन करवा दिया?
शाहरुख : हां। रिपोर्टर : तभी तो आपके पास भेजा है, …अच्छा ये बैंक का रिटिन (लिखित) रूल है या कोई रूल नहीं है?
शाहरुख : नहीं, राइटिंग में नहीं है, मुंह जुबानी, ….मगर आप कुछ कर भी नहीं सकते। ये उनकी पॉलिसी है, ,,,दें या नहीं दें आपको। ओके, तो नहीं किया न उन्होंने, …वो तो कह देगा मैंने चेक किया था मिल ही नहीं रहा, पैसे देने चाहिए, नहीं दिए…। रिपोर्टर : और मंदिर के पास दे देंगे?
इस बातचीत में शाहरुख ने हमें आश्वासन दिया कि अगर हम जीएसटी का भुगतान नहीं भी कर रहे हैं, तो भी वह हमारे लिए ऋण की व्यवस्था कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि औपचारिक जीएसटी फाइलिंग के बिना भी ऋण की व्यवस्था कैसे की जा सकती है। उन्होंने बताया कि केवल दो साल के आईटीआर से 1.5-2 करोड़ रुपए का ऋण दिलाया जा सकता है। रिपोर्टर : मतलप, बिना जीएसटी के, बिना आईटीआर के आप करा दोगे?
शाहरुख : हां।
रिपोर्टर : बिना जीएसटी के कितना हो जाएगा अमाउंट?
शाहरुख : आईटीआर दे देना दो साल की…।
रिपोर्टर : आपने अलग-अलग चीजें बताई हैं, बिना जीएसटी, बिना आईटीआर…?
शाहरुख : अगर आईटीआर है, तो जीएसटी नहीं चाहिए, …फिर तो आप ले लो 1.5-2 करोड़।
रिपोर्टर : बिना जीएसटी फाइल करे तो आप, ले लें 2 करोड़, …करवा दोगे? आईटीआर के साथ? ठीक है।
शाहरुख ने दिल्ली के एक अनधिकृत क्षेत्र में मकान खरीदने के लिए तहलका रिपोर्टर के लिए ऋण की व्यवस्था करने के लिए दो प्रतिशत कमीशन की मांग की। शाहरुख ने कहा कि ऐसे क्षेत्रों में कोई भी बैंक हमें ऋण नहीं देगा; वे (ऋणदाता) हमें (ऋण लेने के इच्छुक व्यक्ति को) कई बार बैंक के चक्कर लगाने को कहेंगे, लेकिन अंत में नहीं कह देंगे। शाहरुख के अनुसार, एक डीएसए के रूप में वह कहीं भी निश्चित कीमत पर ऋण की व्यवस्था कर सकते हैं। शाहरुख के बाद तहलका रिपोर्टर ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक शीर्ष एनबीएफसी में डायरेक्ट सेल्स मैनेजर अनुज पांडे से मुलाकात की। अनुज के सामने भी रिपोर्टर ने ऋण लेने की इच्छा जाहिर की, जो कि एक फर्जी सौदा थी। रिपोर्टर ने अनुज से कहा कि हमें दिल्ली में घर खरीदने के लिए होम लोन की जरूरत है। अनुज ने रिपोर्टर को बताया कि कोई भी बैंक या एनबीएफसी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में ऋण नहीं देगा, क्योंकि वहां वसूली मुश्किल है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति ऋण नहीं चुका पाता है, तो प्रायः पूरा समुदाय उसके समर्थन में आ जाता है, बिना यह सोचे कि इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हिंदुओं के मामले में ऐसा नहीं है, यही कारण है कि उन्हें ऋण आसानी से उपलब्ध हो जाता है। रिपोर्टर : अच्छा, दूसरा ये बताइए, मुस्लिम एरिया में हो जाएगा लोन?
अनुज : पूरा मुस्लिम एरिया नहीं चाहिए। थोड़ा हिंदू भी होना चाहिए।
रिपोर्टर : जैसे जामा मस्जिद हो गया, जामिया, शाहीन बाग हो गया…?
अनुज : बहुत मुश्किल है।
रिपोर्टर : कोई नहीं करेगा? …एनबीएफसी?
अनुज : एनबीएफसी में हैं बहुत, जो कर सकते हैं।
रिपोर्टर : ऐसा क्यूं? अनुज : रिकवरी नहीं हो पाती। …चेक बाउंस हो जाता है, …वहां लड़ाई-झगड़ा का महौल ज्यादा हो जाता है। रिपोर्टर : अच्छा, हो चुका है पहले?
अनुज : हां, अब मान लो जहां ज्यादा जनसंख्या में हैं, वहां रिकवरी वाले 4-5 जाएंगे ना! …हमनारे में क्या है, चलो देना है। थोड़ा समाज के डर से, इज्जत से, कुछ न कुछ दबाव पड़ जाता है। आदमी दे ही देता है पैसा। उनमें क्या है, लड़ाई-झगड़ा कर लेंगे।
रिपोर्टर : उनको समाज का डर नहीं है?
अनुज : टेंशन फ्री हैं।
रिपोर्टर : अगर हिंदू डोमिनेटेड एरिया हो, उसमें हो जाएगा?
अनुज : हां, हिंदू में तो कर देंगे हम, उसमें कोई दिक्कत नहीं है।
शाहरुख की तरह अनुज ने भी रिपोर्टर को बताया कि मस्जिद के पास बने घर के लिए कोई होम लोन नहीं मिलेगा, क्योंकि अगर भविष्य में वह घर मस्जिद को बेच दिया गया, तो बैंक के लिए अपना लोन वसूलना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि मंदिर के पास स्थित मकानों के लिए गृह ऋण उपलब्ध है, लेकिन मस्जिद के पास स्थित मकानों के लिए नहीं। इसी प्रकार मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को ऋण मिलने की संभावना कम है, जबकि हिंदू बहुल क्षेत्रों में ऐसी कोई समस्या नहीं है। अनुज के अनुसार, हिंदू बहुल क्षेत्रों में ऋण देना बैंक के लिए कोई मुद्दा नहीं है।
रिपोर्टर : मैंने ये भी सुना है मंदिर के मस्जिद के पास लोन नहीं होता?
अनुज : नहीं, मस्जिद के पास तो मैक्सिमम लोन नहीं होता, मंदिर के पास एक बार को हो जाता है। मस्जिद में दिक्कत थोड़ी ज्यादा आ जाती है। कल को मस्जिद बड़ा दिए, …आप लोन भरना बंद कर दोगे, तो हम कुछ कर भी नहीं सकते। कल को मस्जिद बड़ी कर रहे हो, कहेगा भाई ये दे दो अपना पैसा ले लो, ….आप पैसा लेकर अलग हो गए, उसने मस्जिद बड़ा कर दिया, …मस्जिद पहले छोटी थी, अब बड़ी हो गई, फिर क्या होगा? इसलिए हम लोग नहीं करते। मंदिर का क्या है, हम लोग जमीन दे दें तब भी पैसा देने वाला कोई नहीं है…। रिपोर्टर : मतलब, मंदिर के पास घर पर लोन कर दोगे, मस्जिद पर नहीं करोगे?
अनुज : हां, नहीं करेंगे।
रिपोर्टर : और मुस्लिम डोमिनेटेड में भी नहीं होगा, ..हिंदू में हो जाएगा?
अनुज : हिंदू में हो जाएगा। …हिंदू जहां ज्यादा हैं, वहां दिक्कत नहीं है।
अनुज ने बताया कि बैंकों को मुसलमानों से कोई समस्या नहीं है; समस्या मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की है। यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति मिश्रित आबादी वाले क्षेत्र में घर खरीदता है, तो उसे आसानी से ऋण मिल सकता है। लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बैंक सीधे तौर पर नहीं कहने के बजाय ऋण देने से बचने के लिए झूठी कानूनी या तकनीकी बाधाएं पैदा करते हैं। अनुज : मुस्लिम बहुमत में दिक्कत है, वहीं कस्टमर अगर शकरपुर में खरीद रहा है तो दे देंगे।
रिपोर्टर : हां, तो पहले ही एक्सपीरिएंस खराब रहा होगा ना आपका?
अनुज : हां, इसलिए पहले ही रिजेक्ट मार देते हैं, बोल देते हैं नहीं हो पाएगा। ..कुछ भी बता देंगे, …लीगल में दिक्कत है, टेक्निकल वजह से नहीं हो पाएगा…।
रिपोर्टर : मतलब, बहाना लगा देंगे?
अनुज : हां, बहाना लगा देंगे।
अनुज के बाद तहलका रिपोर्टर ने नोएडा के डीएसए आयुष चौहान से मुलाकात की, जिनके सामने रिपोर्टर ने यही झूठा सौदा पेश किया कि हमें दिल्ली में होम लोन की जरूरत है। आयुष ने भी रिपोर्टर को यही बताया कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ऋण प्राप्त करना कठिन है, जबकि मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में ऋण आसानी से मिल जाता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बैंकों को अपना ऋण वसूलने में कठिनाई होती है और वे आमतौर पर बहुत कम राशि का ऋण देते हैं। रिपोर्टर : थोड़े बहुत में क्या-क्या, जैसे?
आयुष : थोड़े बहुत डोमिनेटेड में, जैसे आपकी कम्युनिटी है, हमारी कम्युनिटी है, या किसी की भी कम्युनिटी है, उसमें क्या होता है 100 परसेंट होते हैं।
रिपोर्टर : मतलब हिंदू-मुस्लिम मिक्स होगा, उसमें हो जाएगा?
आयुष : मिक्स थोड़ा-बहुत।
रिपोर्टर : टोटल मुस्लिम होगा, तो लोन नहीं होगा, ऐसा क्यूं? आयुष : होता है लोन, मगर कम होता है। थोड़ा बहुत अमाउंट पर हो जाता है, ज्यादा बड़े अमाउंट पर नहीं होता।
रिपोर्टर : ऐसे क्यूं? रीजन, वजह?
आयुष : रीजन ये होता है कि रिकवरी नहीं हो पाती।
आयुष चौहान के अनुसार, ऐसा कोई लिखित नियम नहीं है कि बैंक मुस्लिम बहुल इलाकों में ऋण नहीं देंगे। हालांकि उन्होंने भी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को नकारात्मक के रूप में चिह्नित किया है, जिसका कारण उन्होंने ऋण चूक के कई मामले होना बताया, जहां वसूली मुश्किल है। आयुष ने कहा कि बैंक और एनबीएफसी मंदिरों और गुरुद्वारों के पास की संपत्तियों के लिए ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन मस्जिदों के पास की संपत्तियों के लिए नहीं। निम्नलिखित बातचीत में आयुष ने रिपोर्टर से दिल्ली के एक अनधिकृत क्षेत्र में घर के लिए ऋण स्वीकृत कराने के लिए दो प्रतिशत कमीशन की मांग की, जहां अधिकांश प्रमुख बैंक ऋण देने से इनकार करते हैं। उन्होंने बताया कि इसमें बैंक के प्रतिनिधि की भूमिका भी शामिल है, जो सभी औपचारिकताओं का प्रबंधन करता है। इस बातचीत से यह उजागर होता है कि ऋण प्रणाली में किस प्रकार अतिरिक्त लागतें शामिल की जाती हैं। रिपोर्टर : मुझे कितना देना होगा आयुष भाई आपको?
आयुष : मोटा-मोटा दो परसेंट का खर्चा है, यहां से बंदा वहां लाएगा सारी चीजें करेगा। रिपोर्टर : लोन वाला, बैंक का ही बंदा होगा?
आयुष : हां।
रिपोर्टर : मतलब, जो टोटल लोन होगा, जैसे 20 लाख, उसका दो परसेंट 40 के (हजार) हो गया?
आयुष : हां।
एक एनबीएफसी प्रतिनिधि, एक वित्तीय सलाहकार और एक डीएसए से मिलने के बाद तहलका रिपोर्टर ने दिल्ली में भारत के शीर्ष निजी बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर लियाकत अली से मुलाकात की। लियाकत ने तहलका रिपोर्टर से बातचीत में कबूल किया कि उसने खुद एनबीएफसी के माध्यम से अपने घर के लिए ऋण स्वीकृत कराने के लिए एक डीएसए को रिश्वत के रूप में पांच प्रतिशत कमीशन दिया था। उनके अनुसार, उन्हें रिश्वत देने के लिए मजबूर किया गया, क्योंकि उन्होंने जो घर खरीदा था वह एक मस्जिद के नजदीक था और कोई भी बैंक या एनबीएफसी मस्जिद के इतने नजदीक स्थित संपत्तियों के लिए ऋण नहीं देता है। रिपोर्टर : मैंने तुमसे कहा था कोई जुगाड़ वाला बताओ?
लियाकत : सर! वो दिया तो था, …बहुत बढ़िया है, मेरा उसने कराया था, मस्जिद की वजह से मुझे 5 परसेंट देना पड़ गया था। मेरा हो नहीं रथा था।
रिपोर्टर : मस्जिद क्या?
लियाकत : मस्जिद जस्ट सामने है मेरे, 500 मीटर में अगर मस्जिद होगा, तो एनबीएफसी लोन नहीं देगा।
रिपोर्टर : कौन सा बैंक लोन नहीं देता?
लियाकत : एनबीएफसी बैंक तो वैसे ही नहीं करता।
रिपोर्टर : क्यूं?
लियाकत : कहते हैं रिकवरी में दिक्कत आती है।
रिपोर्टर : मंदिर-मस्जिद पास में हो अगर, 500 मीटर पर?
लियाकत : मंदिर-मस्जिद या वो क्या बोलते हैं, गुरुद्वारा जहां पर 90 परसेंट जैसे माइनॉरिटी होती है ना, हिंदू है ये,,, मुस्लिम है या सिख है, वहां लोन नहीं करते। रिपोर्टर : किस बैंक से करा दिया लोन?
लियाकत : बैंक से नहीं सर! एनबीएफसी से हुआ था। XXXX हाउसिंग करके है एक।
रिपोर्टर : कितना पैसा लिया इसने?
लियाकत : 5 परसेंट लिया था।
रिपोर्टर : टोटल का?
लियाकत : 5 बोला था सर! लेकिन दिया मैंने चार।
इस बातचीत में रिपोर्टर ने यह सवाल उठाया कि क्या मुसलमानों को ऋण प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है? और मुसलमानों को उनके बहुल क्षेत्रों में ऋण क्यों नहीं मिल रहा है? तो लियाकत ने कहा कि मुसलमान बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। दिल्ली के कुछ मुस्लिम इलाकों में तो व्यक्तिगत ऋण मिलना भी मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि बैंक मुस्लिमों की तुलना में हिंदू बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं को अधिक आसानी से ऋण प्रदान करते हैं. हालांकि उन्होंने बताया कि कुछ क्षेत्रों में हिंदुओं को ऋण प्राप्त करने में कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्टर : अच्छा, मुस्लिम को लोन नहीं हो रहा?
लियाकत : थोड़ा तो दिक्कत हो जाती है।
रिपोर्टर : मोदी सरकार में?
लियाकत : नहीं, ऐसी बात नहीं है।
रिपोर्टर : वो तो कह रहा था, …शाहरुख।
लियाकत : सर! वो एनबीएफसी की बात कर रहा था, बैंक ये चीज नहीं सोचेगा, एनबीएफसी कर रहा है।
रिपोर्टर : एनबीएफसी लोन नहीं दे रहा?
लियाकत : हां, एनबीएफसी लोन नहीं दे रहा मुस्लिम को। …वो एनपीए ज्यादा करते हैं।
लियाकत (आगे…) : ये जाकिर नगर में लोन लेना ज्यादा मुश्किल हो जाता है।
रिपोर्टर :ऐसी तो बहुत सारी जगह हैं?
लियाकत : जामिया ओखला में पर्सनल लोन देना मुश्किल हो जाता है। …एनपीए हो जाता है।
रिपोर्टर : और हिंदू एरिया में हो जाता है?
लियाकत : हां, मिल जाता है। कुछ नेगेटिव एरिया हिंदू एरिया में भी नहीं मिलेगा। जैसे बुराड़ी।
रिपोर्टर : वो ये कह रहा था पहले 25 परसेंट था, अब 75 परसेंट लोन नहीं मिलता, ऐसा क्यूं?
लियाकत : सर! एनपीए ज्यादा करते हैं हम लोग।
जब लियाकत से पूछा गया कि वह कैसे दावा कर सकते हैं कि मुसलमान एनपीए के लिए जाने जाते हैं? तो लियाकत ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि उनकी मुलाकात एक मुस्लिम व्यक्ति से हुई, जिसने ऋण लिया था। लियाकत ने बताया कि उस आदमी ने मेरे सामने कबूल किया कि उसने कर्ज नहीं चुकाया है और जब बैंक की रिकवरी टीम पैसे वसूलने आई, तो उसे इलाके से भगा दिया गया। जब उससे पूछा गया कि क्या ये टीमें बाहुबलियों का इस्तेमाल करती हैं? तो उसने हाँ में सिर हिलाया। रिपोर्टर : तुम्हें कैसे पता मुस्लिम ज्यादा डिफाल्ट करते हैं?
लियाकत : अरे सर! हम मिलते रहे हैं, …हम जाते रहते हैं। विजिट करते रहते हैं। एक बंदे ने बताया था, हमने भगा दिया जब रिकवरी टीम आई थी। …इसलिए दिक्कत हो गई।
रिपोर्टर : रिकवरी टीम में तो गुंडे होते हैं?
लियाकत : हां।
लियाकत ने तहलका रिपोर्टर से बातचीत में बैंक वसूली एजेंटों की भूमिका की बात स्वीकार की। उन्होंने कहा कि वे गुंडे और दबंग लोग हैं, जो ऋण वसूलने के लिए अपमानजनक तरीके अपनाते हैं, जिससे ग्राहक अवसाद में चले जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बैंक ऋण वसूली में कानून के नियमों और निष्पक्ष आचरण का पालन किया जाना चाहिए तथा वसूली एजेंटों द्वारा बाहुबल या आक्रामक रणनीति के प्रयोग पर सख्ती से रोक लगाई गई है। 2024 में एक अवसर पर सुप्रीम कोर्ट ने बैंक रिकवरी एजेंटों को गुंडा गिरोह तक कह दिया था। लियाकत : एक आया था रिकवरी लाला बंदा, वो रिटारयर्ड था पुलिस से। …वो कह रहा था, भाई कोई पैसे न दे, तो हम बेझिझक घर में घुस जाते हैं। अगर कोई पैसे नहीं दे रहा है, लड़ाई में आ गया है, तो हम बिना लड़े पीछे नहीं हटते।
रिपोर्टर : वो क्या करते हैं जाकर?
लियाकत : गाली-गलोज, घर में जाकर कहना, आस-पड़ोस में कहना, फोर्स करेंगे इतना, ….डिप्रेशन में डाल देंगे।
रिपोर्टर : अच्छा जी!
तहलका की पड़ताल में बैंक अधिकारियों, एनबीएफसी प्रतिनिधियों, वित्तीय सलाहकारों और डीएसए ने स्वीकार किया कि यूपीए सरकार के समय से ही दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में ऋण प्राप्त करना बेहद मुश्किल, ज्यादातर असंभव रहा है और यह प्रवृत्ति मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भी जारी है। बढ़ती चूक और खराब वसूली संभावनाओं के कारण सरकार, निजी बैंकों और एनबीएफसी द्वारा इन क्षेत्रों को नकारात्मक घोषित किया गया है। ऋण मामलों से संबंधित लोगों ने कहा कि वित्तीय संस्थाओं को मिश्रित इलाकों में रहने वाले या अपने समुदाय के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों से बाहर रहने वाले मुसलमानों को ऋण देने में कोई समस्या नहीं आती है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जहां मंदिरों या गुरुद्वारों के पास की संपत्तियों पर आसानी से ऋण मिल जाता है, वहीं मस्जिदों के पास की संपत्तियों को ऋण देने वाली संस्थाओं से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। एक बैंक प्रतिनिधि ने तो यह भी स्वीकार किया कि बैंक और एनबीएफसी कुछ हिंदू बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं को ऋण देने से बचते हैं। पड़ताल के दौरान ऋण स्वीकृत करने में भ्रष्टाचार का भी मामला सामने आया। एक रिलेशनशिप मैनेजर (आरएम) ने खुलासा किया कि उसे एक मस्जिद के पास स्थित घर के लिए एनबीएफसी से ऋण स्वीकृत कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ी थी। दो अन्य प्रतिनिधियों ने दिल्ली के अनाधिकृत क्षेत्रों में, जहां प्रमुख भारतीय बैंक काम नहीं करते हैं; गृह ऋण (होम लोन) स्वीकृत कराने के लिए रिपोर्टर से खुलेआम कमीशन की मांग की। इस पड़ताल में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का भी खुलासा हुआ, जिसमें एक आरएम ने बताया कि वसूली दल अक्सर गुंडों की तरह काम करते हैं। घरों में घुस जाते हैं और ऋण लेने वालों को डराते-धमकाते हैं और उनके परिवार को अवसाद में धकेल देते हैं। इस तरह के खुलासे न केवल भेदभाव को उजागर करते हैं, बल्कि भ्रष्टाचार और अभद्रता के साथ जबरदस्ती ऋण वसूली की प्रक्रिया को भी उजागर करते हैं, जो ऋण देने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को लगातार प्रभावित कर रही है।
क्या हमारे बेडरूम अब ख़ून से सने जंग के मैदान बन रहे हैं? कभी बीवियाँ ईंटों से शौहर का सर कुचल देती हैं, तो कहीं आशिक लाश को सीमेंट के ड्रम में छिपा देता है। हिंदुस्तान की नई मोहब्बत अब धोखे और दरिंदगी की स्क्रिप्ट बन चुकी है। हर मुस्कुराते सेल्फी वाले जोड़े के पीछे छिपी हो सकती है कोई सीक्रेट चैट, कोई भषड़ भरा ग़ुस्सा, या कोई पहले से लिखा हुआ क़त्ल का प्लान। जैसे-जैसे एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे बढ़ रहा है एक नया क्राइम ऑफ़ पैशन — जहाँ प्यार मरता नहीं, मार देता है।
एक जागरूक समाज सेविका बताती हैं, ” सोशल मीडिया पर जो गंदा खेल चल रहा है उससे परिवारों में विघटन हो रहा है और स्त्री पुरुष भटक रहे हैं। कुछ लोग सोशल मीडिया को दोस्ती और अवैध संबंधों के लिए प्रयोग कर रहे हैं बड़े स्तर पर। पकड़े जाने पर केवल फेसबुक और व्हाट्सएप चैट का नाम लेते हैं।”
सोशल एक्टिविस्ट विद्या जी के मुताबिक, “चमकती-दमकती मॉडर्न रिलेशनशिप्स के नीचे एक तूफ़ान मचल रहा है। जो शुरुआत में ख़्वाहिश होती है, वो अक्सर लाश पर ख़त्म होती है। मुल्कभर में पति या पत्नी को उनके सीक्रेट पार्टनर द्वारा मारे जाने की कहानियाँ यह खौफ़नाक हक़ीक़त से वाकिफ करा रही हैं— इश्क़ और पागलपन के बीच की लकीर ग़ायब हो रही है। आज़ादी अगर बे-लगाम हो जाए, तो इज़्ज़त और रिश्ते दोनों तबाह हो जाते हैं। क्या हम असल में क़ल्चरल आज़ादी देख रहे हैं या शादी की नैतिक बुनियाद का बिखराव?”
आज का हिंदुस्तान एक नए साये से जूझ रहा है — अवैध रिश्तों से उपजे राक्षसी जुर्मों का सिलसिला। पटना से लेकर मुंबई, मेरठ से जयपुर तक — हर जगह किसी न किसी प्रेमी-प्रेमिका की साज़िश उजागर हो रही है। घर की दीवारों के भीतर छिपा प्यार अब ख़ूनी अंजाम तक पहुँच रहा है। सवाल उठता है — क्या बढ़ती यौन उदारता इस हिंसक सिलसिले को हवा दे रही है, पूछती हैं सोशल एक्टिविस्ट पद्मिनी अय्यर।
उदाहरण देखिए — बिहार के वैशाली में प्रियंका देवी ने मार्च 2025 में अपने शौहर मिथिलेश पासवान का सिर ईंट से कुचल दिया, गला रेत दिया और फिर उसकी मर्दानगी काट डाली। मेरठ में मुस्कान और उसके आशिक साहिल ने सौरभ राजपूत का क़त्ल कर उसकी लाश सीमेंट के ड्रम में ठूंस दी। जयपुर में गोपाली देवी और दीनदयाल ने धन्नालाल को आयरन रॉड से पीट-पीटकर मारा और जंगल में जलाने की कोशिश की। औरैया की प्रगति यादव ने शादी के कुछ ही हफ़्तों बाद अपने प्रेमी अनुराग के साथ सुपारी देकर दिलीप को मरवा दिया। मुंबई में रंजू चौहान ने अपने प्रेमी शाहरुख़ की मदद से अपने पति को सोते वक्त गला घोंट कर मार डाला।
हर वारदात में हैरान करने वाली बेरहमी है। हरियाणा की रविना राव और सुरेश राघव ने अपने शौहर की लाश नहर में फेंकी, जबकि मेघालय में हनीमून के दौरान सोनम रघुवंशी ने अपने पति राजा को मरवाने का इलज़ाम झेला। दक्षिण भारत में ट्यूटर से इश्क़ करने वाली बीवी ने ज़हर देकर पति का काम तमाम कर दिया। कत्ल की कहानियों में अब इश्क़ और इंतेक़ाम एक ही सिक्के के दो रुख़ बन चुके हैं।
एनसीआरबी के आंकड़े भी यही कहते हैं — अवैध रिश्ते अब 6-10% हत्याओं के पीछे की वजह हैं। 2020 में ऐसे लगभग 1,740 केस थे, जो 2021 में बढ़कर 3,000 से ऊपर पहुँच गए। 2022 में “लव अफेयर” से जुड़े 2,031 मर्डर हुए — 3.9% की बढ़ोतरी। और 2025 के शुरुआती डेटा बताते हैं कि ये ट्रेंड और तेज़ी पकड़ रहा है।
क्या इसका कारण “ओपन सेक्स कल्चर” है? कुछ हद तक हाँ। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार (adultery) को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, जिससे डेटिंग ऐप्स और मोबाइल आज़ादी ने रिश्तों में नई आज़ादी दी — लेकिन बेकाबू भी बना दिया। मेट्रो शहरों में ग्लोबल लाइफस्टाइल और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता ने परंपरागत रिश्तों से टकराव पैदा किया।
कभी जिस समाज में औरतें घरेलू हिंसा की शिकार मानी जाती थीं, अब वही आँकड़े बताते हैं कि कई बार वही “प्लानर” या “कातिल” भी बन रही हैं। इस ट्रेंड को केवल “मोबाइल और मॉडर्निटी” से नहीं समझा जा सकता। समाज अब ऐसे मोड़ पर है जहाँ प्यार “कमिटमेंट” नहीं, “कंज़्यूमर प्रोडक्ट” बन चुका है। जब तक दिलचस्पी बरकरार है, रिश्ता चलता है; जैसे ही इमोशनल इन्वेस्टमेंट खत्म होता है, रिश्ता हिंसा या धोखे में बदल जाता है।
मोहब्बत सिर्फ़ जिस्म की आज़ादी का सवाल नहीं, ज़िम्मेदारी का भी है। जब रिश्ते संवेदनशीलता खो देते हैं तो जुनून ज़हर बन जाता है। डिजिटल युग की यह मोहब्बत केवल “स्वाइप और चैट” की नहीं रह गई — यह अब वजूद, शक और नियंत्रण की जंग बन चुकी है। आख़िर में सवाल यही है — क्या आज़ादी सिर्फ़ जिस्म की होनी चाहिए, या ज़िम्मेदारी की भी? प्यार अगर तमीज़ खो दे तो जुनून ज़हर बन जाता है। हिंदुस्तान को अब मोहब्बत और मर्ज़ी के बीच की लकीर पर फिर से सोचने की ज़रूरत है — वरना इश्क़ आजादी की नहीं, इंतक़ाम की दास्तां लिखेगा।
नयी दिल्ली: सन्मार्ग मीडिया ग्रुप के मुख्य प्रबंध निदेशक विवेक गुप्ता को इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। बृहस्पतिवार को राजधानी दिल्ली में हुई आईएनएस की 86 वीं वार्षिक महासभा में विवेक गुप्ता को चुना गया। सदस्यों ने वीडियो कॉफ्रेंस के जरिए हुए चुनाव में वर्ष 2025 -2026 के लिए गुप्ता को चुना।आईएनएस के अध्यक्ष पद पर 32 साल बाद पूर्वी भारत के मीडिया हॉऊस से किसी को चुना गया है। इससे पहले विवेक गुप्ता आईएनएस के डिप्टी प्रेजिडेंट , उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। विवेक गुप्ता सन्मार्ग समूह के मुख्य संपादक होने के साथ साथ एक राजनेता और समाज सेवी भी हैं।
आईएनएस द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार लोकमत समूह के करण राजेंद्र दर्डा को उप अध्यक्ष , अमर उजाला समूह के तन्मय माहेश्वरी को वाईस प्रेजीडेंट और गृहशोभिका के अनंत नाथ को मानद कोषाध्यक्ष चुना गया है। इसके अलावा 41 सदस्यों की कार्यकारिणी भी निर्वाचित की गयी ।
सदस्य सूची (नाम व संगठन)
1. श्री एस. बालासुब्रमणियन अदित्यन – (डेली थांथि)
2. श्री गिरीश अग्रवाल – (दैनिक भास्कर, भोपाल)
3. श्री समयित बल – (दैनिक भास्कर, जयपुर)
4. श्री समुद्र भट्टाचार्य – (दैनिक भास्कर, चंडीगढ़)
5. श्री होर्मुस्जी एन. कामा – (दैनिक भास्कर, अहमदाबाद)
6. श्री गौरव चोपड़ा – (बॉम्बे समाचार)
7. श्री विजय कुमार चोपड़ा – (पंजाब केसरी)
8. डॉ. विजय जवाहरलाल डार्डा – (लोकमत समाचार, नागपुर)
9. श्री विवेक गोयनका – (द इंडियन एक्सप्रेस, मुंबई)
10.श्री महेंद्र मोहन गुप्ता – (दैनिक जागरण)
11.श्री प्रदीप गुप्ता – (डेटाक्वेस्ट)
12.श्री संजय गुप्ता – (दैनिक जागरण, वाराणसी)
13.श्री शैलेश गुप्ता – (मिड-डे)
14.श्री शिवेंद्र गुप्ता – (बिज़नेस स्टैंडर्ड)
15.श्री योगेश पी. जाधव – (पुढारी)
16.श्री राजेश जैन – (न्यू इंडिया हेराल्ड)
17.सुश्री सर्विंदर कौर – (अजीत)
18.श्री विलास ए. मराठे – (दैनिक हिंदुस्थान, अमरावती)
19.श्री हर्षा मैथ्यू – (वनिता)
20.श्री ध्रुब मुखर्जी – (आनंदबाजार पत्रिका)
21.श्री पी. वी. निधीश – (बालभूमि)
22.श्री प्रताप जी. पवार – (सकाळ)
23.श्री राहुल राजखेवा – (द सेंटिनल)
24.श्री आर. एम. आर. रमेश – (दीनकरण)
25.श्री अतिदेब सरकार – (द टेलीग्राफ)
26.श्री अमम एस. शाह – (गुजरात समाचार, बड़ौदा एवं सूरत)
– पहली बार सीबीएसई बोर्ड ने छात्रों की तैयारी के लिए पांच महीने पहले संभावित बोर्ड परीक्षाओं की डेटशीट जारी की
– दसवीं कक्षा में छात्रों को दो बार परीक्षा का मौका, मुख्य विषयों के बीच तैयारी के लिए छात्रों को पर्याप्त समय मिलेगा
नयी दिल्ली: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने पहली बार वर्ष 2026 में आयोजित होने वाली 10वीं की पहले सत्र की और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं की संभावित सूची पांच महीने पहले जारी कर दी है। दसवीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा 17 फरवरी से शुरू होगी। दोनों बोर्ड परीक्षाओं में करीब 45 लाख छात्र शामिल होंगे। बोर्ड परीक्षा 204 विषयों में भारत समेत 26 देशों में आयोजित की जाएगी। सीबीएसई बोर्ड 17 फरवरी से 15 जुलाई तक चार परीक्षाओं को आयोजित करेगा। इसमें पहले दसवीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा, उसके बाद स्पोर्ट्स कोटे वाले (जो छात्र बोर्ड परीक्षाओं के दौरान प्रतियोगिता में बिजी होंगे) छात्रों, उसके बाद दसवीं बोर्ड की दूसरे सत्र की परीक्षा और चौथी कंपार्टमेंट यानी अनुपूरक परीक्षा परीक्षा होगी।
सीबीएसई के परीक्षा नियंत्रक संयम भारद्वाज ने बताया, पहली बार बोर्ड परीक्षाओं की संभावित सूची जारी की गई है। इसका मकसद, छात्रों को परीक्षा की अचानक डेट शीट आने से होने वाले तनाव से बचाना और बोर्ड परीक्षाओं के साथ जेईई, नीट, सीयूईटी यूजी समेत अन्य दाखिला परीक्षाओं के लिए पर्याप्त समय देना है। क्योंकि विभिन्न प्रदेश शिक्षा बोर्ड और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी भी इसी डेटशीट के आधार पर आगे बोर्ड और विभिन्न दाखिला प्रवेश परीक्षाओं का शेड्यूल बनाएगी। छात्रों, अभिभावकों के साथ स्कूल प्रबंधन को भी बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी का पूरा मौका मिलेगा। इससे छात्रों को बड़ी राहत मिलेगी। सीबीएसई बोर्ड के तहत ही सीबीएसई से मान्यता प्राप्त निजी व सरकारी स्कूलों, केंद्रीय विद्यालय संगठन और नवोदय विद्यालयों के स्कूलों की भी परीक्षा होगी।
परीक्षा के 10 दिन बाद मूल्यांकन शुरू तो 12 दिन में पूरा होगा:
सीबीएसई ने बोर्ड परीक्षा के 10 दिन बाद मूल्यांकन प्रक्रिया शुरू करने का फैसला लिया है। यानी उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन प्रत्येक विषय की परीक्षा के लगभग 10 दिन बाद शुरू होगा और 12 दिनों में पूरा कर लिया जाएगा। उदाहरण के तौर पर 12वीं कक्षा में फिजिक्स विषय की परीक्षा 20 फरवरी को तय है। ऐसे में इस विषय की उत्तर पुस्तिकाओं को मूल्यांकन का काम 3 मार्च से शुरू होकर 15 मार्च तक पूरा हो जाएगा।
दसवीं के दूसरे सत्र की परीक्षा 15 मई से:
सीबीएसई बोर्ड पहली बार दसवीं बोर्ड की साल में दो बार परीक्षा आयोजित करने जा रहा है। इसके तहत दसवीं बोर्ड के पहले सत्र की परीक्षा 17 फरवरी से शुरू होकर 9 मार्च को समाप्त हो जाएगी। जबकि दूसरे सत्र की परीक्षा 15 मई से शुरू होकर एक जून तक चलेगी। वहीं, 12वीं बोर्ड की परीक्षा 17 फरवरी से शुरू होकर 9 अप्रैल तक चलेगी।
भारतीय चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर और पंजाब में राज्यसभा के लिए उपचुनावों की घोषणा की है। आयोग ने बताया कि जम्मू-कश्मीर की 4 राज्यसभा सीटों और पंजाब की एक सीट पर उपचुनाव के लिए 24 अक्टूबर को मतदान होगा। चुनाव आयोग ने कहा कि मतगणना भी उसी दिन होगी।
चुनाव आयोग की ओर से जारी कार्यक्रम के अनुसार, जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा की चार सीटों के लिए अधिसूचना 6 अक्टूबर को जारी की जाएगी। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तिथि 13 अक्टूबर होगी, जबकि नामांकन 16 अक्टूबर तक वापस लिए जा सकेंगे। यही प्रक्रिया पंजाब की एक राज्यसभा सीट के लिए होगी। आयोग ने जानकारी दी कि राज्यसभा सीटों के लिए उपचुनाव में वोटिंग 24 अक्टूबर को सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक जारी रहेगी। उसी दिन 5 बजे वोटों की गिनती शुरू होगी।
जम्मू-कश्मीर में पिछले करीब 4 साल से राज्यसभा की सीटें खाली हैं। गुलाम नबी आजाद, शमशेर सिंह मन्हास, नजीर अहमद लावे और फयाज अहमद मीर, इन चार राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल फरवरी 2021 में समाप्त हुआ था। इन सीटों के लिए चुनाव पहले नहीं हो सके थे, क्योंकि जम्मू-कश्मीर अक्टूबर 2024 तक राष्ट्रपति शासन के अधीन था। अब जबकि केंद्र शासित प्रदेश में एक निर्वाचित विधानसभा है, चुनाव आयोग ने राज्यसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा की है। जम्मू-कश्मीर में पिछला राज्यसभा चुनाव फरवरी 2015 में हुआ था, जब यह एक पूर्ण राज्य था। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। अब पहली बार केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर में राज्यसभा के लिए चुनाव होंगे।
2015 के राज्यसभा चुनाव में भाजपा-पीडीपी गठबंधन ने 3 सीटें और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने एक सीट जीती थी। हालांकि, सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर से खाली राज्यसभा सीटों का मुद्दा लगातार उठाती रही है।
पंजाब की राज्यसभा की सीट जुलाई में सांसद संजीव अरोड़ा के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। अरोड़ा अब पंजाब सरकार में मंत्री हैं। वे उपचुनाव में पिछले दिनों लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीते थे।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से कड़े सवाल किए। अदालत ने पूछा कि जब सरकार ने इस मामले को गंभीर अपराध की श्रेणी में माना है, तो फिर अब तक राजोआणा को फांसी क्यों नहीं दी गई?
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एनवी अंजारिया और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई के दौरान केंद्र से कहा – “आपने अब तक उसे फांसी क्यों नहीं दी? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? कम से कम हमने तो फांसी पर रोक नहीं लगाई।” अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि वह इस बारे में जल्द जवाब देंगे। अदालत ने मामले की सुनवाई 15 अक्टूबर तक के लिए टालते हुए स्पष्ट किया कि अगली तारीख पर केंद्र का यह तर्क स्वीकार नहीं होगा कि उसे और समय चाहिए।
राजोआणा की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि वह 29 साल से जेल में बंद है और 15 साल से फांसी की सजा काट रहा है। उन्होंने कहा कि पिछली बार कोर्ट ने यह आधार नहीं माना कि दया याचिका राजोआणा ने नहीं बल्कि गुरुद्वारा समिति ने दायर की थी। रोहतगी ने कहा कि प्रावधानों के मुताबिक याचिका कौन दायर करता है, इससे फर्क नहीं पड़ता। मामला इतने लंबे समय से लंबित है और ढाई साल बीत जाने के बाद भी केंद्र ने कोई फैसला नहीं लिया। अदालत को बताया गया कि जनवरी 2024 में चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अगुवाई वाली विशेष बेंच ने केंद्र को आखिरी मौका देते हुए निर्देश दिया था कि वह दया याचिका पर निर्णय ले। आदेश में कहा गया था कि यदि केंद्र विफल रहता है तो अदालत स्वयं अंतिम फैसला करेगी।
गौरतलब है कि 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ सचिवालय परिसर में हुए आत्मघाती बम धमाके में तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 16 अन्य लोगों की मौत हुई थी। राजोआणा इस साजिश का हिस्सा पाए गए थे। 27 जुलाई 2007 को सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें IPC की धारा 302, 307, 120-बी और विस्फोटक अधिनियम की धाराओं के तहत दोषी ठहराकर फांसी की सजा सुनाई थी।
झारखंड के गुमला जिले में बुधवार सुबह सुरक्षा बलों और पुलिस के साथ मुठभेड़ में तीन नक्सली मारे गए हैं। इनमें पांच-पांच लाख के इनामी लालू लोहरा और छोटू उरांव के अलावा सुजीत उरांव शामिल हैं। तीनों प्रतिबंधित नक्सली संगठन झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) से जुड़े थे। यह मुठभेड़ बिशुनपुर थाना क्षेत्र के केचकी जंगल में हुई।
गुमला पुलिस ने तीन नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि की है। मारे गए नक्सलियों में लोहरदगा निवासी लालू लोहरा जेजेएमपी का सब-जोनल कमांडर था। उसके पास से एके-47 राइफल बरामद हुई है। दूसरा नक्सली छोटू उरांव लातेहार का रहने वाला था और वह भी नक्सली संगठन में सब-जोनल कमांडर था। इन दोनों पर पांच-पांच लाख रुपए के इनाम थे।
वहीं, तीसरा नक्सली सुजीत उरांव, लोहरदगा का रहने वाला था और संगठन में कैडर के रूप में सक्रिय था। मारे गए नक्सलियों के पास से एके 47 सहित कई हथियारों की बरामदगी हुई है। मुठभेड़ के बाद इलाके में सर्च ऑपरेशन जारी है। सितंबर महीने में सुरक्षा बलों और पुलिस के साथ नक्सलियों की मुठभेड़ की यह चौथी घटना है, जिसमें आठ नक्सली मारे गए हैं।
15 सितंबर को हजारीबाग जिले के गोरहर थाना क्षेत्र में एक करोड़ के इनामी माओवादी नक्सली सहदेव सोरन उर्फ प्रवेश, 25 लाख के इनामी और भाकपा माओवादी संगठन की झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी का सदस्य रघुनाथ हेंब्रम और 10 लाख के इनामी वीर सेन गंझू मारे गए थे।
14 सितंबर को पलामू के मनातू जंगल में सुरक्षाबलों और प्रतिबंधित संगठन टीएसपीसी (तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी) के बीच मुठभेड़ में 5 लाख का इनामी नक्सली मुखदेव यादव मारा गया था। 7 सितंबर को पश्चिमी सिंहभूम जिले के गोइलकेरा थाना क्षेत्र के बुर्जुवा पहाड़ी पर पुलिस ने 10 लाख के इनामी नक्सली अमित हांसदा उर्फ अपटन को ढेर किया था। इस वर्ष अब तक कुल 32 नक्सली मारे गए हैं।
झारखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में औसतन हर महीने तीन नक्सली मुठभेड़ों में मारे जा रहे हैं। फिलहाल राज्य में 100 से 150 माओवादी सक्रिय हैं। पुलिस की मोस्ट वांटेड सूची में भाकपा माओवादी के 13 बड़े नक्सली शामिल हैं। इनमें मिसिर बेसरा, पतिराम मांझी और असीम मंडल पर एक-एक करोड़ का इनाम है।
इनके अलावा, अनमोल, मोछु, अजय महतो, अगेन अंगरिया, अश्विन, पिंटू लोहरा, चंदन लोहरा, जयकांत और रापा मुंडा भी सूची में हैं। इस वर्ष नक्सलियों के खिलाफ सबसे बड़ी मुठभेड़ 21 अप्रैल को बोकारो जिले के लुगु पहाड़ पर हुई थी, जब एक करोड़ के इनामी प्रयाग मांझी उर्फ विवेक सहित आठ माओवादी मारे गए थे। झारखंड पुलिस और केंद्रीय बल मार्च 2026 तक राज्य को ‘नक्सल मुक्त’ बनाने के लक्ष्य के तहत अभियान चला रहे हैं।
नयी दिल्ली: विवादित एक्ट्रेस पूनम पांडे अब रामलीला में मंदोदरी की भूमिका नहीं निभाएंगी। दिल्ली की बड़ी और प्रसिद्ध लव कुश रामलीला कमेटी ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन करके ये जानकारी दी । पूनम पांडे रावण की पत्नी मंदोदरी का चरित्र निभाने वाली थी विश्व हिंदू परिषद ,भारतीय जनता पार्टी , साधु संत समाज ने रामलीला में पूनम पांडे को भूमिका दिए जाने पर कड़ा विरोध जताया और लव कुश रामलीला आयोजकों से अनुरोध किया किया कि पूनम पांडे जैसी विवादास्पद अभिनेत्री को रामलीला में भूमिका देना समाज में गलत संदेश देगा। विश्व हिंदु परिषद ने लव कुश रामलीला कमेटी के फैसले का स्वागत किया है। दिल्ली प्रांत विहिप के मंत्री सुरेंद्र गुप्ता ने कहा कि ये फैसला समाज की सांस्कृतिक मर्यादा और धार्मिक परंपराओं की रक्षा की दिशा में एक सराहनीय कदम है।
पूनम पांडे दरअसल अपनी न्यूड और सेमी न्यूड तस्वीरों के कारण 2010 से चर्चा में रही हैं मॉडलिंग से फिल्मों की दुनिया में आयी पूनम पांडे ने 2011 में बयान दिया था कि यदि भारत क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतता है तो वे पूरी तरह निर्वस्त्र हो जाएंगी। हालांकि बीसीसीआई ने उनको ये अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद अगले साल 2012 में पूनम पांडे ने कोलकाता नाइट राईडर्स के लिए न्यूड पोज दिया था । पूनम ने 2017 में अपना एक ऐप शुरू किया था जिसको प्ले स्टोर में आपत्तिजनक कंटेंट होने के कारण हटा दिया था ।इसी तरह इस्टांग्राम पर भी उन्होंने सेक्स टेप शुरू किया था वो भी इंस्टाग्राम ने हटा दिया था।
लव कुश रामलीला में मंदोदरी की भूमिका की जानकारी पूनम पांडे स्वयं एक वीडियो के माध्यम से दी थी। जिस पर समाज , धार्मिक संस्थाओं साधु संतों और राजनीतिक दलों ने कड़ा विरोध जताया। शुरू में लव कुश रामलीला कमेटी ने पूनम पांडे को बनाए रखने के बयान दिए लेकिन कड़े विरोध के कारण उनको झुकना पड़ा।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र के अवसर पर अमेरिका के न्यूयॉर्क में भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए कई अहम मुद्दों पर चर्चा की।
बैठक में व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स और महत्वपूर्ण खनिज जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद को लेकर नाराजगी जताते हुए भारतीय वस्तुओं पर भारी शुल्क लगा दिए थे, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव उत्पन्न हो गया था।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बैठक को रचनात्मक बताया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “न्यूयॉर्क में मार्को रुबियो से मुलाकात अच्छी रही। हमने द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में प्रगति के लिए निरंतर संपर्क की अहमियत पर सहमति जताई।”
वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी X पर अपनी प्रतिक्रिया साझा करते हुए कहा, “UNGA में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। हमने व्यापार, ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स और महत्वपूर्ण खनिज जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की, ताकि दोनों देशों के लिए समृद्धि बढ़ाई जा सके।”
अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि भारत, अमेरिका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोनों देश रक्षा, व्यापार और तकनीकी क्षेत्रों में अपने संबंधों को और अधिक गहरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। बयान में यह भी कहा गया कि अमेरिका और भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला बनाए रखने के लिए क्वाड जैसे मंचों के माध्यम से मिलकर कार्य करेंगे।
यह मुलाकात इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि यह दोनों नेताओं की पहली आमने-सामने बातचीत है, जो हालिया व्यापारिक तनाव के बाद हुई है। इससे पहले जुलाई 2025 में वॉशिंगटन में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान उनकी मुलाकात हुई थी।
संयुक्त राष्ट्र महासभा का 80वां सत्र 9 सितंबर 2025 को शुरू हुआ था और उच्चस्तरीय आम चर्चा 23 सितंबर से आरंभ हुई है। इस अवसर पर विश्व नेताओं के बीच कई द्विपक्षीय बैठकें हो रही हैं, जिनमें यह भारत-अमेरिका वार्ता भी शामिल है।