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भारत को चाहिए फिर एक चाणक्य

वर्तमान समय में जब भूटान, पाकिस्तान के बाद नेपाल और फिर चीन ने भारत से सीमा विवाद किया है। चीन, जापान और रूस के अलावा वियतनाम और चीनी ताइपे तिब्बत को आज से 200 साल पहले का चीनी साम्राज्य का हिस्सा मानकर वर्तमान समय में सीमा साम्रज्य को बढ़ाने की बात कर रहा है। चीनी सैनिकों द्वारा हमारी सीमा में घुसपैठ की कोशिश के दौरान हमारे ही सैनिकों को शहीद कर देने के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमा का दौरा किया, लेकिन चीन अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आयेगा, ऐसा लगता  है। इन मामलों को लेकर अमेरिका ने विश्व चौधरी के रूप में अपनी सैन्य शक्ति को अलर्ट कर रखा है। वहीं भारत अपने पड़ोसी देशों से दो देशों का मामला बताते हुए किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता से इन्कार करता हुआ आ रहा है। परन्तु दुनिया भर में इस तरह की समस्या देने वाला देश आज विवादित विषय पर अपनी प्रतिक्रिया देने से भी बचता नज़र आ रहा है। प्राचीन सोने की चिडिय़ा कहा जाने वाला देश अखण्ड आर्यावर्त के इंडिया बनने तक का सफर भी बहुत दिलचस्प रहा है। इतिहास पर गौर करें तो भारत पर आक्रमण की कई खूँरेज़ घटनाएँ सामने आती हैं। परन्तु कहीं पर इसके वर्तमान पड़ोसी देशों का ज़िक्र नहीं किया गया है। भारत के इर्द-गिर्द चीन, तिब्बत, मंगोलिया फारस और यूनान का ज़िक्र कुछ जगहों पर मिलता भी है। परन्तु अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, मालदीव या बांग्लादेश का ज़िक्र प्राचीन इतिहास में नहीं मिलता, जो हमारे साथ सीमा विवाद का प्रश्न किसी तीसरे के कहने पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाने की कोशिश करते हैं।

इस बारे में हमारे देश के बुद्धिजीवियों- कवियों, लेखकों और इतिहासकारों ने कभी कुछ नहीं लिखा। न ही पत्रकारों ने इस बारे में कुछ भी लिखा, न पढऩे की कोशिश की और न ही जनता को अपने गौरवशाली इतिहास की याद दिलाने में मदद की। परन्तु छोटे-से यूरोपीय देश ब्रिटेन को कैसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र द ग्रेट ब्रिटेन कहकर उसका महिमामण्डन में कोई कसर नहीं छोड़ी। तभी आज की वर्तमान पीढ़ी को भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति का या तो थोड़ा-बहुत ही ज्ञान है या ज्ञान है ही नहीं, जिससे उन्हें देश पर फख्र का भी अहसास नहीं होता। पिछले 300 साल में जो देश अर्श से फर्श पर आ गया, इस सच को हम झुठला नहीं सकते। 5000 साल से मिटाने की दुनिया भर की कोशिशें के बाद भी यह कहना पड़ता है कि कुछ तो बात रही होगी कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। बताते हैं कि आज दुनिया को आँख दिखाने वाला मुल्क चीन कभी भारत में शिक्षा-दीक्षा लेने आया करता था; जिसका ज़िक्र भी प्राचीनकाल में चीनी यात्रियों ने समय-समय पर किया है। प्राचीन काल में भारत के बौद्ध तीर्थ स्थलों की यात्रा करने वाले चीनी यात्री फाहियान और ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों से भी वर्तमान बिहार राज्य और ऐतिहासिक पाटलिपुत्र के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

तब दुनिया भर में नेपाल को भी नहीं जाना जाता था और आज नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली का कहना है कि बिहार का कुछ भू-भाग नेपाल का है और नेपाल में ही अयोध्या थी। जो भी हो ओली के दावे पर भारत के बुद्धिजीवी वर्ग की खामोशी आश्चर्यजनक है। चीनी यात्रियों में से एक ने ईसा पूर्व की पाटलिपुत्र को याद करते हुए सातवीं शताब्दी में कहा था कि फाहियान लिखता है कि पाटलिपुत्र में मौर्यों का राजप्रासाद वर्तमान में अभी भी है। दर्शक को ऐसा आभास होता था कि मानो इसका निर्माण देवताओं ने स्वयं किया है। इसकी दीवारों और द्वारों में पत्थर चुनकर लगाये गये थे। इसमें जैसी सुन्दर नक्काशी और पच्चीकारी की गयी थी, वैसी विश्व के किसी मानव से सम्भव नहीं थी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, फाहियान गुप्त शासकों के समय भारत आया था। उसके यात्रा विवरण से पाटलिपुत्र नगर की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। सम्राट अशोक के संन्यास के बाद चीनी यात्री ह्वेनसांग लिखता है कि पाटलिपुत्र की हालत खराब होती जा रही है।

दरअसल आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के काल में भारतवर्ष एक सूत्र में बाँधा और इस काल में भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की। आचार्य चाणक्य ने उन दिनों एक नारा दिया- उतिष्ठ भारत: मतलब उठो भारत। आज हम सभी भारतीयों को उसी नारे के साथ जोश में उठना होगा और बिखरते तथा सीमावर्ती देशों द्वारा डराये जा रहे भारत को फिर से अखण्ड और विकसित भारत बनाना होगा। सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 269-232) प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिन्दुसार का पुत्र और चंद्रगुप्त का पौत्र था, जिसका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है। जब अशोक को राजगद्दी मिली, तब उन्होंने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए 260 ई.पू. में कलिंगवासियों पर आक्रमण किया तथा उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया। युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से सम्राट अशोक की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुँचा और सम्राट शोकाकुल रहने लगे। अंतत: वह प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध धर्म अपनाकर भिक्षु बन गये। जहाँ तक प्राचीन भारतवर्ष का सम्बन्ध है, तो इसकी सीमाएँ हिन्दुकुश से लेकर आज के अरुणाचल, कश्मीर से कन्याकुमारी तक, पूर्व में अरुणाचल से लेकर इंडोनेशिया तक और पश्चिम में हिन्दुकुश से लेकर अरब की खाड़ी तक फैली थीं। लेकिन समय और संघर्ष के चलते अब भारत इंडिया बन चुका है। कैसे और क्यों? वह बड़ा और सवाल है।

लेकिन दुर्भाग्य कि हम भारतीयों को अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा दी कि पहले हम अपना इतिहास भूले और अब चीन के आगे ही नतमस्तक होते जा रहे हैं। तभी तो आज भूटान और नेपाल जैसे देश भी दिल्ली को आँख दिखा रहे हैं। क्योंकि अंग्रेजों ने गोली और अत्याचार से ज़्यादा प्रहार हमारी संस्कृति और हमारी सोच पर किया। मैकाले की शिक्षा पद्धति से हमारे देश के युवाओं का भविष्य नष्ट किया गया। क्योंकि उन्हें पता था कि अगर भारत को जीतना है, तो भारतीय जनमानस को ही अंग्रेजी शिक्षा के जाल में फँसाकर काली चमड़ी में अंग्रेजी बोलने वाले लोगों से ही भारत को कमज़ोर कर सकते हैं। क्योंकि जहाँ विश्व विजेता सिकंदर हार गया था, वहीं पृथ्वीराज चौहान को हराने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गोरी की मदद की थी।

मीर कासिम, जिसके कारण मैकाले ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के लिए भारतीय शिक्षा पद्धति पर घातक प्रहार किया। लेकिन उसके इस प्रयास को तत्कालीन समाज ने बुरी तरह से नकार दिया था। कोलकाता में स्थापित भारत का पहले कॉन्वेंट स्कूल को बन्द करना पड़ा। परन्तु समय का चक्र ऐसा घूमा कि मैकाले द्वारा अपने पिता को लिखे गये पत्र की हर एक बात सच हुई। दुर्भाग्य की बात है कि 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजी शासन व्यवस्था से आज़ादी मिलने के बाद भी आज तक हम गुलाम ही बने हुए हैं। पहले ईस्ट इंडिया कम्पनी के गुलाम रहे, तो आज बहुराष्ट्रीय (मल्टीनेशनल) कम्पनियों के गुलाम हैं। तब हम बाज़ार और उत्पादक देश थे और आज हम उपभोक्ता देश बने, जिसके पीछे मैकाले और आज़ादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू का भी योगदान रहा, जिन्होंने जाने-अनजाने वहीं किया, जो अंग्रेजी शासन व्यवस्था उनके माध्यम से भारत की जनता के खिलाफ करवाना चाहती थी। परिणामस्वरूप आज़ादी की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) और वर्तमान जीडीपी की तुलना की जा सकती है। रही सही कसर अब पूरी हो रही है। अर्थ-व्यवस्था चरमराती जा रही है। प्राचीन भारत से ही अंग्रेजी शासन व्यवस्था से पूर्व तक भारत में गुरुकुल की शुरुआती शिक्षा के बाद ऋषिकुल में जीवन और जीविका को लेकर पढ़ाई होती थी। आज कॉम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड में भी इतने विभाग नहीं है, जितने भारत में उस समय पढ़ाये जाते थे। भारतीय विद्यार्थियों को जिन विधाओं (विद्याओं) में निपुण किया जाता था, वे इस प्रकार हैं- अग्नि विद्या, वायु विद्या, जल विद्या, अंतरिक्ष विद्या, पृथ्वी विद्या, सूर्य विद्या, चन्द्र व लोक विद्या, मेघ विद्या, पदार्थ विद्युत विद्या, सौर ऊर्जा विद्या, दिन-रात्रि विद्या, सृष्टि विद्या, खगोल विद्या, भूगोल विद्या, काल विद्या, भूगर्भ विद्या, रत्न व धातु विद्या, आकर्षण विद्या, प्रकाश विद्या, तार विद्या, विमान विद्या, जलयान विद्या, अग्नेय अस्त्र विद्या, जीव-जन्तु विज्ञान विद्या और यज्ञ विद्या। वैज्ञानिक तो अब इन विद्याओं की अब बात करते हैं। इसके अलावा भारत में व्यावसायिक और तकनीकी विषयों में वाणिज्य, कृषि, पशु पालन, पक्षी पालन, पशु प्रशिक्षण, यान यन्त्रकार, रथकार, रत्नकार, स्वर्णकार, वस्त्रकार, कुम्भकार, लोहकार, तक्षक रंगसाज, खटवाकर रज्जुकर, वास्तुकार, पाक विद्या, सारथ्य, नदी प्रबन्धक, सूचिकार, गौशाला प्रबन्धक, उद्यान पाल, वन पाल, नापित आदि विधाएँ गुरुकुल और ऋषिकुल में सिखायी जाती थीं; लेकिन भारत के दुश्मनों ने साज़िश करके गुरुकुलों को नष्ट कर दिया। आज़ादी के बाद भारत की सरकार ने भी गुरुकुल शिक्षा पद्धति के स्थान पर कॉन्वेंट स्कूलों और मदरसों की शिक्षा प्रणाली को जारी रखा।

वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक रवि आनंद के मुताबिक, अभी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और अन्य बोर्ड ने परीक्षा परिणाम जारी किया, जिसमें सभी बच्चों ने अच्छे अंक भी प्राप्त किये, परन्तु ये अंक उन्हें भविष्य के लिए आशावान नहीं बनाते। क्योंकि उनके परिणाम से उनकी आजीविका का निर्धारण नहीं हो पाता। एक हिसाब से मैकाले की शिक्षा पद्धति ने हमें बेरोज़गार बनाया। सरकार या शासन व्यवस्था पर भी यह युवा पीढ़ी बोझ ही बनती जा रही है; तभी तो वर्तमान समय की सरकार स्किल इंडिया की बात करने पर मजबूर हुई है। लेकिन आज छात्रों को मार्कशीट (अंकतालिका) बेचकर भी रोज़गार प्राप्त नहीं होगा। हमारी संस्कृति को अवैज्ञानिक बताने वाले लोगों को भी हमने जो ज्ञान दिया था, उन्हें अब मानना पड़ा। उज्जैन, जिसे पृथ्वी का केंद्र माना जाता है, इसका एक उदाहरण है। जो सनातन धर्म में हज़ारों वर्षों से मानते आ रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं। यहाँ करीब 2000 साल से अधिक पहले, तब और अब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी, तो उनका मध्य भाग भी उज्जैन ही निकला।

बहरहाल आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं। सूर्य और अंतरिक्ष की जानकारी के लिए। इन्हीं जैसे अनेक ज्ञान के विषयों को नष्ट करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया गया। पर भारतीय संस्कृति में नकारात्मक सोच को नज़रअंदाज़ कर सकारात्मक सोच को प्रश्रय दिया जाता है। तभी तो नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगने वाले बिख्तयार खिलजी के नाम पर नालंदा में ही एक शहर बसा है। नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाले को भी हमने न केवल सम्मान दिया, बल्कि आज भी उनके द्वारा स्थापित शहर को भी संजोये हुए हैं। क्योंकि भारतीय संस्कृति में ज्ञान को बहुत महत्त्व दिया जाता है।

बिख्तयार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर विश्व का नुकसान किया; क्योंकि वह केवल अपने देश और अपने धर्म से प्यार करता था। लेकिन हम न तो अपनी संस्कृति और न ही अपने देश से ही प्यार करते हैं। यही कारण है कि हम कोरोना-काल में भी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवित करने के स्थान पर उस चिकित्सा पद्धति पर भरोसा कर रहे हैं, जिसमें रोगों का सही इलाज कभी हुआ ही नहीं है।  इसीलिए मेरा मानना है कि भारत को दोबारा अखण्ड, शक्तिशाली और समृद्ध बनाने के लिए फिर से एक और चाणक्य की ज़रूरत है, जो दोबारा किसी न्यायप्रिय चंद्रगुप्त मौर्य को सत्ता में स्थापित कर सके।

इस बार कैसे मनाना है स्वतंत्रता दिवस

लॉकडाउन अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और कोरोना वायरस का डर सभी के मन में समाया हुआ है। इस बार के कई त्योहार फीके-फीके निकल गये। लेकिन स्वतंत्रता दिवस सभी देशवासियों के लिए एक खास त्योहार है, जिसे आज़ादी के जश्न के रूप में हम सभी मनाते हैं। लगता है कि इस बार के स्वतंत्रता दिवस पर फीकापन रहेगा। लेकिन स्वतंत्रता दिवस मनाना हमारी परम्परा का हिस्सा भी है और खुशी का दिन भी, इसलिए मनाना ज़रूरी है। यही वजह है कि इस बार भी इसे हम सबको मनाना है; लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए। सुरक्षा व्यवस्था के साथ-साथ कोरोना से सुरक्षा के मद्देनज़र गृह मंत्रालय नेये दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिनका पालन करते हुए हम सबको यह त्योहार मनाना है।

हर साल 15 अगस्त को मनाये जाने वाले इस राष्ट्रीय पर्व को मनाने को लेकर गृह मंत्रालय ने क्या-क्या नियम तैयार किये हैं, उन्हें जानना सभी भारतवासियों के लिए बहुत ज़रूरी है। कई तरह के लगे प्रतिबन्ध इस बार गृह मंत्रालय ने महामारी कोरोना वायरस को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्रता दिवस के लाल िकले के कार्यक्रम में कई तरह के प्रतिबन्ध लगाने के साथ-साथ आगंतुकों और पुलिस-प्रशासन के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं।

गृह मंत्रालय ने स्वतंत्रता दिवस मनाने के दौरान सोशल डिस्टेंसिग रखने, हर आदमी को सैनिटाइज करने, सभी स्थानों को सैनिटाइज करने, सभी को मास्क पहनने और ज़्यादा संख्या में लाल िकले पर लोगों के न आने तथा कहीं पर भी अधिक भीड़ इकट्ठी न करने के आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये हैं। गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पुलिस-प्रशासन को कहा गया है कि कोविड-19 से सम्बन्धित सभी दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। साथ ही लोगों से अपील की है कि वे सभी नियमों का पालन स्वयं से करें।

कब क्या कार्यक्रम

गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में यह भी बताया गया है कि 15 अगस्त को कब, क्या होगा? मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार,15 अगस्त की सुबह 9 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय ध्वज फहरायेंगे। इसके बाद राष्ट्रगान होगा। इसके बाद उन्हें सलामी दी जाएगी।

तदोपरांत प्रधानमंत्री भाषण देंगे और इसके बाद गुब्बारों को आसमान में छोड़ा जाएगा। परेड पर झलकियों की प्रस्तुति भी होगी; लेकिन एहतियात के साथ। परेड मैदान में आने वाले हर व्यक्ति की थर्मल चेकिंग होगी। हर व्यक्ति को गृह मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। इसके लिए गृह मंत्रालय ने तकनीक के इस्तेमाल के निर्देश दिये हैं।

खास बात यह है कि इस बार ध्वजारोहण समारोह में कोरोना योद्धाओं विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया है।

राष्ट्रपति भवन में भी एहतियात

15 अगस्त की दोपहर को राष्ट्रपति भवन में एट होम कार्यक्रम के दौरान भी एहतियात बरतने के दिशा-निर्देश गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गये हैं। राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के निर्देश दिये गये हैं। कुछ सूत्रों का कहना है कि इस बार राष्ट्रपति भवन में भी खास लोगों को भी बुलाया जाएगा। यहाँ भी जगह को सैनिटाइज किया जाएगा।

कोविड वॉरियर्स को समर्पित थीम

गृह मंत्रालय के सूत्रों की मानें, तो इस बार के स्वतंत्रता दिवस की थीम कोविड वॉरियर्स (कोरोना योद्धा) को समर्पित होगी। यह इसलिए किया जाएगा, ताकि लोगों के मन में कोरोना योद्धाओं के प्रति सम्मान पैदा हो और कोरोना योद्धाओं गौरवान्वित महसूस कर सकें। सम्भावना है कि इस बार कोरोना योद्धाओं के बारे में राष्ट्रपति कुछ बोलें। सूत्रों की मानें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोविड-19 से निपटने के लिए देशवासियों के सहयोग और कोरोना योद्धाओं के त्याग पर भी अपने विचार व्यक्त करेंगे।

राज्यों को दिशा-निर्देश

गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित राज्यों को स्वतंत्रता दिवस को लेकर दिशा-निर्देश भेज दिये गये हैं।

साथ ही राज्य सरकारों को सलाह दी गयी है कि वे स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मियों को सम्मान देने के लिए कार्यक्रम में आमंत्रित करें। सलाह में कहा गया है कि राज्य सरकारें ऐसे लोगों को भी कार्यक्रम में बुला सकती हैं, जिन्होंने कोरोना संक्रमण से जूझकर जीत हासिल की है अर्थात् जो संक्रमण के बाद पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं।

दिशा-निर्देशों में यह भी बताया गया है कि ज़िला स्तर, ब्लॉक स्तर पर किस तरह बेहतर तरीके से स्वतंत्रता दिवस मनाया जा सकता है।

समस्याएँ

सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरे नियमों के पालन में समस्याएँ भी आने की सम्भावना है; क्योंकि बहुत-से लोग इस बात से मतलब नहीं रखते कि सरकार क्या कह रही है और उनकी सुरक्षा किसमें है? रोड पर चलने वाले बाइकर्स आज भी हुड़दंग मचाते हैं। ऐसे में बहुत सम्भावना है कि कहीं-कहीं लोग अधिक संख्या में इकट्ठे हो जाएँ और कहीं रैली भी निकालें। इसके अलावा भी कई समस्याएँ हैं, जो इस प्रकार हैं :-

स्कूलों-कॉलेजों में मनाया जाएगा स्वतंत्रता दिवस?

इस बार स्कूल और कॉलेज सभी बन्द हैं। इसलिए इस बार हर साल की तरह स्कूलों और कॉलेजों में तिरंगा फहराया जा सकेगा या नहीं यह कहना बहुत मुश्किल है। अगर कहीं किसी स्कूल या कॉलेज में राष्ट्रीय ध्वज फहराया भी गया, तो वहाँ अधिक अध्यापक और बच्चे नहीं होंगे। क्योंकि आजकल घर से ही ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है। सम्भव है कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें स्कूल या कॉलेज आने की अनुमति ही न हो।

नहीं निकलेंगी रैलियाँ

हर साल स्वतंत्रता दिवस पर रैलियाँ, झाँकियाँ निकलती थीं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। क्योंकि कहीं पर भी भीड़ इकट्ठी करने, रैली और झाँकी निकालने की अनुमति इस बार किसी को नहीं दी जाएगी। इसके लिए पुलिस-प्रशासन मुस्तैद रहेगा और नियमों का उल्लंघन करने वालों या इसकी कोशिश करने वालों से सख्ती से निपटेगा।

कार्यक्रम भी नहीं होंगे

स्वतंत्रा दिवस के अवसर पर हर साल देश भक्ति के ओतप्रोत कार्यक्रम होते थे, जो इस बार नहीं होंगे या न के बराबर होंगे। क्योंकि कार्यक्रम हमेशा भीड़ में कई कलाकारों द्वारा आयोजित किये जाते हैं, जो इस बार सम्भव नहीं होंगे; अन्यथा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो सकेगा। यही वजह है कि नुक्कड़ नाटक, देशभक्ति गीतों पर नृत्य, कवि सम्मेलनों और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों पर इस बार रोक रहेगी।

उत्साह की रहेगी कमी

पूरे देश में हर साल स्वतंत्रता दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाता है; लेकिन इस बार लोगों में उत्साह की कमी देखने को मिलेगी। इसका कारण भी कोरोना वायरस है। अधिकतर लोग कोरोना महामारी से डरे हुए हैं और भीड़-भाड़ से बचकर रहने में ही भलाई समझते हैं। यही वजह है कि लोगों में इस बार आज़ादी का पर्व मनाने में वो उत्साह नहीं दिखेगा।

गाँवों में सुविधाओं की कमी

गृह मंत्रालय ने सैनिटाइज करने, मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने के दिशा-निर्देश तो जारी कर दिये, लेकिन गाँवों में तो सैनिटाइजर और मास्क का बहुत अभाव है। आर्थिक तंगी के चलते अधिकतर ग्रामीण लोग इन चीज़ों को नहीं खरीद पाये हैं। ऐसे में उनके लिए घरों में रहना ही सबसे अच्छा उपाय है, जिसका वे पहले से ही कर रहे हैं।

टीवी देखेंगे अधिकतर लोग

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर टीवी पर परेड देखने वालों की अच्छी-खासी संख्या रहती है; लेकिन इस बार इस संख्या में बढ़ोतरी होगी। क्योंकि अधिकतर लोग घरों में ही रहेंगे।

क्या करें?

ऐसे में जब देश में खुलकर, एक जगह इकट्ठे होकर देशवासी जश्न नहीं मना सकते, फिर ऐसे में क्या करें? इसके लिए कुछ निम्नलिखित काम कर सकते हैं :-

घर पर ही मनाएँ खुशी

लोगों को चाहिए कि वे घर पर रहकर ही स्वतंत्रता दिवस की खुशी मनाएँ। वे लोग ही किसी कार्यक्रम में जाएँ, जिनको निमंत्रण हो। घर पर ही पकवान बनाकर खाएँ, मिठाई खाएँ और खुशी मनाएँ। यह सुरक्षा और गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के लिहाज़ से भी सही होगा और आप बेवजह पुलिस के डण्डों से भी बचे रहेंगे।

राष्ट्रगान के सम्मान में हों खड़े

राष्ट्रगान सभी देशवासियों के लिए राष्ट्र के सम्मान में सर्वोपरि है। इसलिए जब टीवी पर राष्ट्रगान हो, सभी का फर्ज़ है कि वे अपने घर में ही देश के सम्मान में खड़े हो जाएँ। यदि कोई टीवी पर राष्ट्रगान का प्रसारण नहीं देख सके, तो भी उसे घर में ही तिरंगा फहराकर राष्ट्रगान गाना चाहिए और तिरंगे को सलामी देनी चाहिए।

किसानों के मसीहाई घरानों की क्षीण होती राजनीतिक विरासत

मेरा खेत चूहे खा जाते थे। फसल बर्बाद कर रहे थे। इसलिए मैंने खेत ही बेच दिया, अब भूखे मरेंगे सारे…! तो क्या इस सोच मात्र से किसानों का भला हो सकता है? मेरा मानना है कि नहीं हो सकता। क्योंकि मात्र 70 साल में ही बाज़ी पलटती दिख रही है और हम जहाँ से चले थे वापस उसी जगह पहुँचते दिख रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पहुँचने का रास्ता दूसरा चुना गया है। अत: इसके परिणाम भी अधिक गम्भीर होंगे। ऐसा प्रतीत होता है, 1947 में जब देश आज़ाद हुआ, तो नयी-नवेली सरकार और उसके सिपहसालार देश की तमाम रियासतों को आज़ाद भारत का हिस्सा बनाने के लिए अति उत्साहित और छटपटाहट में थे। सर्वविदित है कि तकरीबन 562 रियासतों को भारत में मिलाने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति अपनाकर अपनी कोशिश जारी रखे हुए थे। क्योंकि देश की अधिकाधिक सम्पत्ति इन्हीं रियासतों के पास थी। हालाँकि कुछ रियासतों ने नाक-भौंह भी सिकोड़े और तमाम नखरे भी दिखाये, मगर कूटनीति और रणनीति से इन्हें आज़ाद भारत का हिस्सा बनाकर भारत के नाम से एक स्वतंत्र लोकतंत्र की स्थापना की गयी। नतीजतन देश की सारी सम्पदा सिमट कर गणतांत्रिक पद्धति वाले सम्प्रभुता प्राप्त भारत के पास आ गयी। उसके बाद धीरे-धीरे रेलों, बैंकों और कारखानों आदि का राष्ट्रीयकरण किया गया और एक शक्तिशाली भारत का निर्माण हुआ। आज मात्र 70 साल बाद समय और विचार ने करवट ली और फासीवादी ताकतें पूँजीवादी व्यवस्था के कन्धे पर सवार हो राजनीतिक परिवर्तन पर उतारू है।

तो क्या मान लिया जाए कि यह राजनीति देश को लाभ और मुनाफे की विशुद्ध वैचारिक सोच के साथ देश को फिर 1947 के पीछे ले जाना चाहती है। यानी राष्ट्र की सम्पत्ति पुन: रियासतों के पास चली जायेगी और नए रजवाड़े होंगे कुछ पूँजीपति घराने और कुछ बड़े राजनेता। किसानों से उनके संसाधन छीनने की प्रक्रिया को व्यवस्थागत ढंग से निजीकरण के नाम पर आगे बढ़ाया जा रहा है? आज़ादी के पहले और आज़ादी के बाद किसानों के हक-हुकूक का प्रतिनिधित्व करने में अग्रणी रहने वाली जाट जाति आज नेपथ्य में जा चुकी है।

जानकारों का मानना है कि किसान जातियों की एकता को पहले आरक्षण के नाम पर बाँटा और तोड़ दिया गया; फलस्वरूप वो आपस में ही उलझने लगी हैं। जैसा कि आपने जाट आरक्षण आन्दोलन, गुर्जर, कापू, पटेल एवं मराठा समाज आरक्षण अठन्दोलन आदि के समय देखा होगा। इसके अलावा इसका सबसे बड़ा कारण एक विशेष समाज के लोगों को किसानों के मसीहाई परिवारों के पीछे चलने की आदत इस कदर हो चुकी है कि हरियाणा में दीनबन्धु सर छोटूराम की विरासत को सँभालने वाले उनके वंशज आज उस विचारधारा को मानने वाले राजनीतिक दल के साथ हैं, जिसका दीनबन्धु छोटूराम ताउम्र विरोध करते रहे। ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश में किसानों के मसीहा कहे जाने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के वंशज से कुछ उम्मीद बँधी थी कि चौधरी चरण सिंह की क्षीण होती विरासत को बढ़ाने और सँभालने का काम उनके वंशजों की भरपूर कोशिश के बावजूद वें राजनीतिक पैतरबाज़ी में उलझकर रह गये। रही सही कसर 2013 के दंगों ने पूरी कर दी; जिसमें उनके दल को सर्वाधिक नुकसान झेलना पड़ा।

नतीजा ये हुआ कि दल की एक मात्र पारम्परिक सीट छपरौली पर जीतने के बाबजूद कब्ज़ा बरकरार नहीं रख पाये। कभी किसानों का सबसे बड़ा राजनीतिक दल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चन्द ज़िलों तक सिमटने बाद आज जाट समुदाय और किसानों से दूर हो गया है। आज की तमाम समस्याओं जैसे गन्ने का भुगतान, महँगाई, डीज़ल में लगी हुई आग पर किसानों के लोकप्रिय रहे इस दल को उचित विचार और आत्ममंथन करने की आवश्यकता है।

इतिहास गवाह है कि हरियाणा की सियासत में करीब चार दशक तक किसानी की बात करने वाले चौधरी देवीलाल, चौधरी बंसीलाल और चौधरी भजनलाल के इर्द-गिर्द ही सिमटी रही है। हरियाणा के ये तीनों लाल प्रदेश की सत्ता के सिंहासन पर काबिज़ होने के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति के भी बड़े चेहरे रहे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, हरियाणा के मौज़ूदा राजनीतिक माहौल में तीनों लालों के उत्तराधिकारियों अपना सियासी वजूद बचाये रखने के लिए लाले पड़े हुए हैं। ज़ाहिर है कि इन तीनों लालों के नाम से हरियाणा की पहचान होती रही है। हालाँकि हरियाणा की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले तीनों लाल तो अब दुनिया में नहीं रहे; लेकिन इनके वारिस अपने-अपने घरानों की राजनीति को कायम रखने के लिए आपसी कलह और जद्दोजहद में फँसे हुए हैं।

हरियाणा में आज़ादी के बाद के सबसे बड़े किसान नेता और जगत ताऊ कहलाये जाने वाले चौधरी देवीलाल के पड़पौते दुष्यंत चौटाला, जो ताऊ देवीलाल की पार्टी को दो दलों में बाँटकर चुनाव में जीत हासिल करने के बाद में देवीलाल जिस राजनीतिक दल की विचारधारा के विरुद्ध रहे; उसी सत्ताधारी दल के साथ चले गये। जिसके विरुद्ध वह चुनाव लडक़र जीतकर आये, उसी के साथ चले जाना ही आज उनकी राजनीतिक रणनीति है। हालाँकि उनके कुछ हितेषियों को उनका पार्टी के सिद्धांतों और मूल आधार को दरकिनार कर सत्ता की चाशनी में लिपटना कदापि उचित प्रतीत नहीं होता। हालाँकि दूसरी ओर दुष्यंत चौटाला के पक्षकारों को उसमें रणनीतिकार नज़र आता है। उनके मुताबिक दुष्यंत का यह फैसला एक सोची-समझी रणनीति का ही एक हिस्सा है; जो आने वाले समय में उनके राजनीतिक जनाधार और उनके राजनीतिक कद को बढ़ाने के लिए उचित कदम साबित होगा।

हरियाणा के निर्माता, विकास पुरुष, इंदिरा गाँधी के करीबी और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री रहे चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी और उनकी पुत्री श्रुति चौधरी आज उनकी विरासत को सँभालने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं; परन्तु वह अपने निजी स्वार्थों के चलते इतने बड़े राजनीतिक परिवार की राजनीतिक विरासत को सँभाल नहीं सकीं। उन्होंने विरासत को आगे बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन आज बंसीलाल की विरासत केवल भिवानी तक सिमट कर रह गयी है। हालाँकि कई लोग दबी ज़ुबान में यहाँ तक कह रहे हैं कि भिवानी को पिछड़ेपन की ओर जाने का कारण माँ-बेटी का स्थानीय लोगों से सम्पर्क नहीं होना है।

केंद्रीय कृषि मंत्री और तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल और उनके लाडलों की कहानी किसी से छुपी हुई नहीं है कि किस प्रकार उन्होंने भजनलाल की राजनीतिक विरासत को तहस-नहस करने का काम किया। हालाँकि इसका ज़िम्मेदार उनके बड़े पुत्र चंद्र मोहन को अधिक माना जाता है, जो एक महिला के चक्कर में पडक़र चाँद मियाँ तक बन गये थे; जबकि चंद्रमोहन पिता की विरासत के कारण हरियाणा के डिप्टी सीएम भी रह चुके हैं। आज भजनलाल की राजनीतिक विरासत कुलदीप बिश्नोई सँभाल रहे हैं; जो सिमटकर दो विधानसभा क्षेत्र तक रह गयी है। कुलदीप बिश्नोई अपने पिता भजनलाल की सीट आदमपुर से मौज़ूदा विधायक हैं और उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई हांसी से विधायक हैं। अन्त में इसी कड़ी में स्वतन्त्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठतम सदस्य रणबीर सिंह हुड्डा के पुत्र एवं दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भुपेन्द्र सिंह हुड्डा ने दी हुई पिता की विरासत को न केवल सँभाला, बल्कि उसका विस्तार करने में भी वह कामयाब रहे। लेकिन पिछले कुछ साल में राजनीतिक घटनाक्रम ऐसे बने कि हरियाणा की सियासत में बड़े बदलाव हुए। आज वह भी बैकफुट पर दिखायी पड़ते हैं। उनके क्षेत्र के कई लोग उन पर अपने बेटे दीपेन्द्र हुड्डा को प्रमोट करने का आरोप भी लगाते हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र के रामवीर सांगवान आरोप लगाते हुए बताते हैं कि इन्होंने स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने हेतु गठित समिति का सदस्य होने के बावजूद समाज या किसानों को कोई विशेष लाभ पहुँचाने की ज़हमत नहीं उठायी।

राजस्थान में भी स्वतंत्रता आंदोलन के साथ उभरे किसान नेताओं की तिकड़ी बलदेवराम मिर्धा, परसराम मदेरणा और कुम्भाराम आर्य ने शुरुआत में किसान राजनीति को आगे बढ़ाते हुए किसानों के हित में बहुत-से कानून पारित करवाये व नीतिगत फैसले बिना इनकी सहमति से नहीं हो पाते थे। सामाजिक कुरीतियों, अशिक्षा से लेकर रजवाड़ी सामंतवाद से आमजन को मुक्ति दिलवाने में अहम योगदान दिया। नाथूराम मिर्धा सीनियर थे; मगर जूनियर बलदेवराम मिर्धा को मंत्री बनाकर पहला संदेश किसान नेताओं को दिया गया था कि कांग्रेस सरकार में कद नहीं, बल्कि यह देखा जाएगा कि किसको मुख्यमंत्री की कुर्सी से कैसे दूर किया जाएगा। हालाँकि बाद में कुम्भाराम आर्य के साथ भी यही किया गया और 1998 में परसराम मदेरणा के साथ भी दोहराया गया।

परसराम मदेरणा का 80 के दशक बाद कद इतना बड़ा था कि वह सात-सात मंत्रालय सँभालते थे। मतलब मुख्यमंत्री भले ही न हो मगर ताकत मुख्यमंत्री से कम नहीं थी। परसराम मदेरणा के जीते जी उनके पुत्र महिपाल मदेरणा विधायक चुने गये और जल संसाधन मंत्री भी बने। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में एकमात्र मंत्री थे; जो हर फैसला अपनी मर्जी से लेते थे और उन्हें कैबिनेट का समर्थन मिलता था। जबकि एक सेक्स स्कैंडल और हत्या के आरोपों के बाद इस्तीफा देना पड़ा। उन्हें सीबीआई जाँच का सामना करना पड़ा और आज जेल में हैं। परसराम मदेरणा की पोती सुश्री दिव्या मदेरणा फिलहाल ओसियां से विधायक है। कुम्भाराम आर्य की विरासत परिवार की आपसी खींचतान में ही फँसी रह गयी। मिर्धा परिवार में नाथूराम मिर्धा व रामनिवास मिर्धा तक केंद्रीय राजनीति में दमखम रखते थे। मगर रामनिवास मिर्धा के देहांत के बाद केंद्रीय राजनीति में नाथूराम मिर्धा की पोती, जिसका विवाह हरियाणा के उद्योगपत्ति से हुआ; एक बार सांसद भी चुनी गयी थी। मगर लगातार दो हार के बाद खालीपन ही नज़र आ रहा है। स्थानीय लोगों का यह भी आरोप है कि ज्योति मिर्धा जीतने के बाद क्षेत्र में सक्रिय रहने के बजाय दिल्ली में जाकर बैठ जाती है। राज्य की राजनीति में हरेंद्र मिर्धा ने जद्दोजहद की मगर खुद को स्थापित नहीं कर पाये। कुछ समय तक किसान राजनीति का नेतृत्व शीशराम ओला ने सँभालने का प्रयास किया था। उसके बाद तो धीरे-धीरे किसान राजनीति अवसान की तरफ बढ़ती गयी। जो पहली पंक्ति के किसान नेताओं ने संघर्ष किया उस तरह का संघर्ष उनके परिवार के लोग नहीं कर पायें और जो नये तैयार हुए, वे विचारहीन और दिशाहीन राजनीति कर रहे हैं। कुल मिलाकर मसीहाई परिवारों व नये दिशाहीन नेताओं के बीच किसान राजनीति दम तोड़ती नज़र आ रही है।

बहरहाल इस देश में अब मुफ्त इलाज के खैराती अस्पताल, धर्मशाला या प्याऊ आदि नहीं बनने वाले जैसा कि रियासतों के दौर में होता था। ये तो हर कदम पर अपना कारोबार करने वाले काले अंग्रेज साबित होंगे और ये तथाकथित मसीहाई परिवार इनके मुखौटे मात्र। अन्त में यही कहना चाहूँगा कि किसान-कमेरे जितनी जल्दी इन मसीहाई परिवारों के विषय में उचित फैसला लेंगे, उतनी जल्दी ही अपने संसाधनों का कब्ज़ा अपने पास रख पाएँगे। अत: आज ज़रूरत है किसान समाज को चौधरी चरणसिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, देवीलाल, कर्पूरी ठाकुर, जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर सरीखे जननेताओं की जो पुन: आम देशवासियों के मन में मेरी माटी और मेरा वतन की वही पुरानी स्वाभिमान की अलख जला दें। यह निश्चित है कि इन महापुरुषों और जननेताओं के समरूप विकल्प का आविर्भाव आम लोगों के बीच से ही होगा और यह दिख भी रहा है कि आज आम जनता विशेषत: किसान समाज ऐसे मसीहा या नेता की तलाश में टकटकी लगाये हुए है। इतिहास गवाह है, जब भी देश में किंकर्तव्यविमूढ़ की असहाय स्थिति बनी है। तब-तब धरती से जुड़े मसीहा का आम लोगों के बीच से ही उदय हुआ है। लोकतंत्र में सत्ता संतुलन और देशहित के लिए कदाचित यह ज़रूरी भी है कि गाँव और किसानों के देश में ग्रामीण जनता की भावनाएँ और उपस्थिति साधु-सन्तों एवं विद्वानों की प्राचीन भूमि पर अपना वजूद बनाये रखें।

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक सम्पादक है।)

पहली प्राथमिकता हो स्वास्थ्य

आयुर्वेद में कहा गया है कि स्वस्थ्य जीवन ही सुखी जीवन है। लेकिन आजकल अधिकतर लोग अस्वस्थ हैं। इसके कई कारण हैं, जिनमें अनियमित दिनचर्या, खान-पान का बिगडऩा और दूषित भोजन तथा पानी का बहुतायत में इस्तेमाल है। वैसे तो हर आदमी चाहता है कि वह स्वस्थ रहे, लेकिन अधिकतर लोग अपनी ही देखभाल में लापरवाही करते हैं। कोरोना वायरस के प्रकोप के डर से लोगों ने थोड़ी-बहुत सावधानी बरतनी शुरू कर दी है, अन्यथा हालात यह थे कि अधिकतर लोग स्वास्थ्य सम्बन्धी दिशा-निर्देशों पर ध्यान तक नहीं देते थे। सवाल यह है कि मिलावट और प्रदूषित खाद्य पदार्थों के इस युग में आिखर क्या किया जाए? जिससे आदमी का स्वास्थ्य सही रह सके। आयुर्वेद में इसके लिए दिनचर्या कैसी हो के अलावा आहार के नियम बताये गये हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं :-

नियमित व्यायाम

आज की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में अधिकतर लोग व्यायाम नहीं करते। जो लोग शारीरिक मेहनत करते हैं, उनका तो व्यायाम मेहनत करने से ही हो जाता है। लेकिन जिनके पास केवल बैठकर काम करने का ज़रिया है, उन्हें प्रतिदिन कम-से-कम एक-दो घंटे शारीरिक क्षमता के अनुसार व्यायाम करना ही चाहिए। कोई व्यायाम अगर न कर सके, तो कम-से-कम सुबह की सैर और शारीरिक क्षमता के अनुसार योग की क्रियाएँ ज़रूर करें।

आहार-विचार

आयुर्वेद में संतुलित खान-पान को आहार-विचार कहा गया है। आहार-विचार का मतलब है कि विचार करके ही आहार लें। अक्सर देखा जाता है कि लोग कुछ भी और कभी भी खाने लग जाते हैं। मसलन जब जिस चीज़ का मन हुआ, उसे खा लिया। कोई भी यह विचार नहीं करता कि उस चीज़ में शुद्धता है कि नहीं? उसे कितनी मात्रा में खाना चाहिए? और कब खाना चाहिए? जैसे आर्युवेद में कहा गया है कि सुबह को दही के साथ कम तला या बिना तला और कम नमक-मिर्च का या बिल्कुल सादा या कच्ची सब्ज़ियों-फलों का नाश्ता करना चाहिए। दोपहर में भोजन करना चाहिए और उसके साथ या उसके बाद दो चुटकी अजबाइन का प्रयोग करना चाहिए और अगर सम्भव हो तो भोजन के उपरांत छाछ (मट्ठा) ज़रूर पीना चाहिए। अगर छाछ पीना पसन्द नहीं है, तो रायता पी लें। शाम को सूर्यास्त से पहले भोजन करें और रात को सोते समय दूध पीएँ। लेकिन आजकल लोग रात को दही खा लेते हैं, रात छाछ या रायता भी पी लेते हैं, जो कि काफी नुकसान करता है। इसके अलावा एक दिन यानी 24 घंटे में कम-से-कम तीन-चार लीटर पानी पीना ही चाहिए और खाना खाने के तुरन्त बाद कभी भी पानी नहीं पीना चाहिए।

साफ-सफाई

कोरोना वायरस ने हम सबको यह तो सिखा ही दिया कि गन्दगी और प्रकृति से छेड़छाड़ कितनी महँगी पड़ सकती है। इसलिए शरीर के साथ-साथ अपने घर और घर तथा दफ्तर के आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा प्रकृति से किसी तरह की छेड़छाड़ अंतत: हम सबको ही नुकसानदायक साबित होगी। साथ ही पौधरोपड़ पर भी हमें ध्यान देना होगा।

पहले के लोग कैसे जीते थे लम्बा और स्वस्थ जीवन

आजकल हर आदमी में कोई-न-कोई रोग घर किये हुए है। पहले से बीमारियाँ भी अधिक हो गयी हैं। लेकिन पहले के लोग 100 साल या उससे भी अधिक जीते थे और वो भी स्वस्थ रूप से। ऐसा नहीं है कि पहले लोग बीमार नहीं पड़ते थे, लेकिन हर आदमी बीमार नहीं होता था। इसका कारण पहले के लोगों का आयुर्वेद में दिये गये दिशा-निर्देशों का पालन करना था। इसके अलावा पहले किसी घर में खाना बनता था, तो पूरा मोहल्ला महक जाता था, लेकिन अब अपने ही घर में क्या बन रहा है? किसी को पता नहीं चलता। क्योंकि पहले जैविक अनाज और सब्ज़ियाँ होती थीं, वहीं अब कृत्रिम खादों और दवाओं के प्रयोग से हर खाद्यान ने अपने स्वाद के साथ-साथ अधिकतर पोषक तत्त्वों को खो दिया है। यही वजह है कि आजकल के भोजन में न तो उतना स्वाद है और न उतनी ताकत। इसके अलावा जंक फूड, विशेषकर चाइनीज जंक फूड खाकर भी लोग सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं।

सलमान बने किसान

कोरोना वायरस के चलते देश भर में हुए लॉकडाउन से जहाँ लोगों का रोज़गार छिन गया और वे खाली हो गये, वहीं कुछ लोग अपने आपको व्यस्त रखने के लिए कुछ न कुछ करते दिखे। इनमें कुछ बड़े नामों में सलमान खान का नाम शामिल है। वे इन दिनों बिल्कुल भी खाली नहीं बैठे। उन्होंने लॉकडाउन शुरू होने के दौरान पहले प्रवासी मज़दूरों की मदद करने का काम किया और उसके बाद अपने पनवेल स्थित फार्महाउस में एक आम आदमी की तरह साफ-सफाई की। साफ-सफाई से पहले उन्होंने इसी फार्महाउस पर अपने गाने रिलीज किये थे, जिससे वह काफी चर्चा में रहे थे। इन गानों में सलमान खान द्वारा निर्देशित और खुद की आवाज़ में गाया हुआ रोमांटिक गाना ‘तेरे बिना’ रिलीज हुआ था, जिसमें उनकी को-स्टार जैकलीन फर्नांडीज हैं। इस गाने के बोल शब्बीर अहमद ने लिखे और अजय भाटिया ने कम्पोज किया।

दरअसल इस लॉकडाउन में सलमान अपना अधिकतर समय पलवेल स्थित अपने इस फार्महाउस पर ही बिता रहे हैं। गानों की शूटिंग के बाद निसर्ग चक्रवात आने से उनके फार्महाउस पर तमाम गन्दगी हो गयी थी, जिसे उन्होंने पर्यावरण दिवस के अवसर पर अपनी महिला दोस्त लूलिया वंतुर के साथ बिल्कुल आम आदमी की तरह ही साफ किया और इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया। इस बहाने बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान ने स्वच्छ भारत अभियान को भी बढ़ावा दिया। सलमान ने फार्महाउस परिसर में गिरी हुई पत्तियों, घास को झाड़ू लगाकर उठाया और गीली सडक़ पर भी झाड़ू लगायी। इस दौरान सलमान के कर्मचारी भी काफी खुश थे; क्योंकि उनके साथ सलमान ने बड़े प्यार से उन्हीं की तरह सफाई का हर काम किया। अपनी सफाई की वीडियो सोशल मीडिया पर डालते हुए सलमान ने लिखा- हैशटैगस्वच्छभारत, हैशटैगवल्र्डइन्वारॉन्मेंटडे।

सफाई के बाद खेती

इतना ही नहीं उन्होंने फार्महाउस और उसके आसपास सफाई के बाद वहीं मौज़ूद अपनी ज़मीन पर खुद से खेती भी की। सलमान खान पनवेल में अपने खेतों में धान की रोपाई की। इससे पहले उन्होंने ट्रैक्टर से जुताई, गुड़ाई और कंधैर (खेत में पानी भरकर मिट्टी को धान की पौध रोपने लायक गीला) किया। इसमें उन्होंने ट्रैक्टर भी चलाया और कंधैर करने में दूसरे चालक की मदद भी की। इतना ही नहीं उन्होंने बाकायदा धान की पौध उखाड़ी और उसे रोपा भी। हालाँकि वह किसान नहीं हैं और इससे पहले शायद ही उन्होंने खेती-बाड़ी का काम कभी किया हो, क्योंकि इससे पहले साफ-सफाई की उनकी तस्वीरें और वीडियोज तो वायरल हुई थीं; लेकिन खेती करने की नहीं। हाल के एक वीडियो में वह खेती में हर काम करते दिखे, जिसमें उनकी महिला मित्र लूलिया वंतुर भी हैं। इस वीडियो को सलमान ने इंस्टाग्राम पर शेयर किया, जो अब सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है, जिसमें वह धान की बुआई करते हुए नज़र आ रहे हैं। इस वीडियो में सलमान खान के साथ लूलिया वंतुर भी बराबर काम करती दिखीं। उनका भी इतने गहरे से साफ-सफाई और खासकर खेती करने का यह पहला ही अनुभव रहा होगा। इस वीडियो पर सलमान के प्रशंसक उनकी खूब तारीफ कर रहे हैं। सलमान खान के इंस्टाग्राम अकाउंट पर इस वीडियो को लगभग 20 लाख से भी ज़्यादा बार देखा जा चुका है। धान की पौध की रोपाई के बाद सलमान खान अपने पम्पसेट (ज़मीन से पानी खींचने वाले इंजन) के पानी में हाथ धोकर फ्री महसूस करते दिख रहे हैं। इस वीडियो को पोस्ट करने के बाद उन्होंने लिखा है- धान की बुआई पूरी हुई। सलमान खान के इस वीडियो पर बॉलीवुड, हॉलीवुड स्टार और नेता भी लाइक कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री कर चुके हैं तारीफ

2014 में गांधी जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाये गये स्वच्छ भारत अभियान में जब उन्होंने सडक़ पर झाड़ू लगायी, उसके बाद अनेक नेता-अभिनेता और बड़े लोग हाथ में झाड़ू थामे दिखे। इस दौरान प्रधानमंत्री ने सफाई अभियान का हिस्सा बनने के लिए नौ लोगों का चयन किया था, जिसमें सलमान खान भी शामिल थे। सलमान प्रधानमंत्री की इस मुहिम का हिस्सा बने और मुम्बई के कारजात इलाके में खुशी-खुशी साफ-सफाई की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी अपने ट्वीटर अकाउंट पर सराहना भी की।

युवाओं और किसानों में खेती के प्रति जगेगा लगाव

सलमान खान ने साफ-सफाई के बाद खेती करके यह दिखा दिया है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। उन्होंने आजकल खेती से दूर हो रहे युवाओं और खेती में घाटे से टूट चुके किसानों को यह संदेश भी दिया है कि खेती-बाड़ी कोई छोटा या घिनौना काम नहीं है और हर किसी को इससे प्यार करना चाहिए। कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने भी सलमान के वीडियो पर टिप्पणी की है कि सलमान खान ने भले ही यह वीडियो अपने आनन्द के लिए बनाया हो, लेकिन इससे देश के नौजवानों में खेती के प्रति नया उत्साह ज़रूर ज़ाहिर होगा। किसी ने लिखा है कि आप वास्तव में हीरो हैं। एक टिप्पणी में किसी ने जय जवान, जय किसान लिखा है। सवाल यह है कि क्या वाकई देश के किसान और खेती से मुँह मोड़ रहे युवा इससे प्रेरणा लेंगे और खेती-बाड़ी को अपनी रोज़ी-रोटी का ज़रिया बनाएँगे। वैसे तो इन दिनों सोशल मीडिया पर अनेक खबरें आ रही हैं, जिनमें दिखाया जा रहा है कि लॉकडाउन के बाद पढ़े-लिखे युवा भी मनरेगा में मज़दूरी करने को मजबूर हुए हैं। वहीं अनेक युवा खेती में लगे भी हैं।

काम का काम, नाम का नाम

बॉलीवुड हस्ती हो या कोई और प्रसिद्ध व्यक्ति, हर किसी की इच्छा रहती है कि वह प्रसिद्धि के चरम पर रहे। यही वजह है कि नेता, अभिनेता और यहाँ तक कि छोटे-बड़े कलाकार भी लगातार कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। सलमान खान ने भी इस खाली समय का जमकर सदुपयोग किया। इससे उनका काम भी हो गया और वह चर्चा में रहकर खूब वाह-वाही भी लूट रहे हैं।

प्रशंसकों को फिल्म राधे का इंतज़ार

सलमान खान के दुनिया भर में लाखों प्रशंसक हैं। लॉकडाउन से पहले सलमान की फिल्म राधे पूरी हुई थी, जिसके इस साल की बीती ईद पर रिलीज होने की चर्चा थी; लेकिन लॉकडाउन के चलते वह रिलीज नहीं हो सकी। अब उनके प्रशंसकों को इस फिल्म के आने का बेसब्री से इंतज़ार है। सलमान की यह फिल्म दिशा पटानी के साथ है।

भाईचारे को मिटाना मुमकिन नहीं

आजकल डॉ. कफील खान को रिहाई दिलाने के लिए बहुत-से लोग, जिनमें काफी संख्या में हिन्दू हैं; आगे आ रहे हैं। सभी के द्वारा एकजुट होकर आवाज़ उठाने और अच्छाई के साथ खड़े होने का नतीजा यह हुआ है कि डॉ. कफील खान को क्लीन चिट मिल गयी; लेकिन फिर उन पर रासुका लगा दी गयी। दूसरी तरफ हिन्दुओं की मौत के बाद कोरोना वायरस के संक्रमण के डर के चलते बहुत-से हिन्दू उनकी अरथी को काँधा तक नहीं दे रहे हैं। ऐसे में अनेक मुस्लिम उनका अन्तिम संस्कार तक कर रहे हैं। यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब लोगों को मज़हब और जातिवाद के नाम पर तोडऩे, लड़ाने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। मज़हब की दीवारों को और ऊँचा उठाने की कोशिशों के बीच इस तरह की भाईचारे और इंसानियत की मिसालें दिल को बेहद सुकून देती हैं। यही हमारी सभ्यता है, यही भारतीय एकता और भाईचारे की असली बुनियाद है और यही इंसानियत है, जिसकी सीख दुनिया का हर मज़हब देता है। आज अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले इंसानों को खतरा है। यही वजह है कि कोई किसी की मदद नहीं करना चाह रहा है; लेकिन फिर भी इंसानियत के आगे हैवानियत हार रही है। उसे डर है कि इंसानियत और मज़बूत हो गयी, तो उसकी सत्ता छिन जाएगी, उसके ऐश-ओ-आराम पर ग्रहण लग जाएगा। अगर सभी अच्छे लोग इस बात को समझ लें और इंसानियत के दुश्मनों को समय-समय पर मुँहतोड़ जवाब देते रहें, तो वह दिन दूर नहीं जब वाकई बुरे लोगों की सत्ताएँ छिन जाएँगी और उनके ऐश-ओ-आराम पर ग्रहण लग जाएगा। क्योंकि यह सब हमारी आपसी फूट में ही निहित है, उनकी सत्ताएँ भी और उनके ऐश-ओ-आराम का ज़रिया भी।

दु:ख इस बात का होता है कि जब आज तक सभी ने उन सीखों को ही अपनाया है, जो अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर ले जाती हैं और उस पर तमाम परेशानियों के बावजूद चलने का हौसला देती हैं। उन्हीं किताबों को मज़हबी किताब / धर्म-ग्रन्थ माना है, जिनमें नेकी, अच्छाई, इंसानियत, प्यार, दरियादिली और ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता बताया गया है। इस सबके बाद भी हम लोग बुराई के रास्ते पर क्यों चल पड़ते हैं? अगर कोई गलत रास्ता कभी भी सही माना जाता, तो उसे कहीं, किसी मज़हब में तो मान्यता दी ही जाती? पर ऐसा नहीं किया गया; क्योंकि गलत कभी सही नहीं हो सकता और सही कभी गलत नहीं हो सकता। लेकिन इसके बावजूद हमने गलत को चुनने में ज़रा भी देर नहीं की। आज हम सही गलत के जिस दो-राहे पर खड़े हैं, वहाँ से गलत रास्ता ही सहज मालूम होता है। सिर्फ इसलिए, क्योंकि वह ऐश-ओ-आराम के संसाधन जुटाने का सरल रास्ता बन चुका है। लेकिन यह सरल रास्ता अंतत: गड्ढे में ही डालेगा, इस बात को भी हमें भली-भाँति समझ लेना चाहिए।

हर आदमी इस बात को मानता है कि बुरे काम का बुरा ही फल मिलेगा और ईश्वर उसका दण्ड ज़रूर देगा; फिर भी कुछ लोग क्षणभंगुर सुख के लिए गलत रास्ते पर चलने लगते हैं। यहाँ तक कि दूसरों को भी गलत रास्ते पर धकेलने का प्रयास करते हैं और जो लोग गलत रास्ता नहीं अपनाते, उनके उनके साथ बेरहमी से पेश आते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं। लोग यह भी मानते और जानते हैं कि बुरा कर्म कभी-न-कभी दु:खदायी साबित होगा। इसके बावजूद गलत रास्ते पर चलते हैं। ऐसे लोग अगर सत्ता में आ जाएँ, तो आम लोगों का जीना मुश्किल हो जाता है। आज के हालात कुछ ऐसे ही हो चुके हैं। अच्छाई पर बुराई की जीत इस तरह हो चुकी है कि सही लोगों पर ज़ुल्म-ही-ज़ुल्म हो रहे हैं। गरीबों और किसानों की दुर्दशा हो रही है। यहाँ तक कि लोग आत्महत्या करने को भी मजबूर हो रहे हैं। कहीं लोगों को पुलिस पीट रही है, तो कहीं आपराधिक प्रवृत्ति के लोग। कहीं जाति, धर्म के नाम पर दबंग गरीबों की हत्याएँ कर रहे हैं। महिलाएँ, यहाँ तक कि बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं। कुल मिलाकर यह सब इसलिए किया-कराया जा रहा है, ताकि लोग दबंगों का वर्चस्व स्वीकार कर लें और मज़हब के नाम पर आपस में नफरत करें और एक-दूसरे के दुश्मन बने रहें; लड़ते-मरते रहें। यह वैमनस्य, भेदभाव फैलाने के लिए किया जा रहा है, ताकि गलत लोग हमेशा सत्ता में बने रहें।

गलत लोगों की यह चाल आम लोगों को समझनी होगी। उन्हें यह भी समझना होगा कि वे किस तरह से प्रताडि़त किये जाने के साथ-साथ हर तरह से लूटे भी जा रहे हैं। उनमें इसलिए भेदभाव की खाई में धकेला जा रहा है, ताकि वे बिखरे रहें और किसी पर अत्याचार होने पर उसके समर्थन में खड़े न हो सकें। अत्याचारियों का विरोध करने की हिम्मत न कर सकें। अधिकतर लोग इस चाल को नहीं समझते और या तो डरे-सहमे रहते हैं या फिर बुरे लोगों के बहकावे में आकर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं और ज़रूरत पडऩे पर एक-दूसरे की मदद नहीं करते। कुछ लोग जो इस बात को समझते हैं, वे दुश्मनी की आग लगाने वालों के झाँसे में नहीं आ रहे और इंसानियत के बचाव में हर तरह की कोशिश कर रहे हैं। अनेक लोग इंसानियत को बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा चुके हैं और अनेक अपनी जान भी कुर्बान कर चुके हैं। इसके बाद भी इंसानियत पर हैवानियत भारी पड़ती दिख रही है। अत्याचार दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। दरअसल सीधे-सरल-सामान्य लोगों मेें एकता का अभाव ही उनके साथ अत्याचार का सबसे बड़ा कारण है। आज भी अपराधियों से सैकड़ों गुना ज़्यादा है, लेकिन डर और आपसी फूट इंसानियत की हार का सबसे बड़ा कारण है।

लेकिन अखण्ड भारत की बुनियाद ही भाईचारे और इंसानियत के आधार पर पड़ी है, इसलिए अलग-अलग मज़हबों को मानने वालों के बीच कड़ुवाहट भले ही घोल दी जाए, लेकिन हमेशा के लिए दीवार उठा पाना आसान नहीं है। लोगों के बीच सदियों से चले आ रहे भाईचारे के रिश्ते को खत्म करना इतना आसान भी नहीं है।

दिल्ली में न्यूज़ एंकर फांसी के फंदे से लटकी मिली

देश की राजधानी दिल्ली में लॉकडाउन के बाद बेरोज़गारी के साइड इफेक्ट नज़र आने लगे हैं। हर फील्ड से लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है या फिर उनकी सैलरी में कटौती कर दी गई है। काम का बोझ भी बढ़ा दिया गया है, भले ही वर्क फ्रॉम होम ही क्यों न कर रहे हों।
टीवी न्यूज़ एंकर प्रियंका जुनेजा ने शुक्रवार को अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। हालांकि मौके से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है। इस घटना के बाद से पूरी मीडिया इंडस्ट्री में सनसनी फैल गई है। जानकारी मिलने के बाद पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर जांच शुरू कर दी है। परिजन समेत उनके साथी भी समझ ही नहीं पा रहे कि यह सुसाइड क्यों किया गया? क्या वजह थी?
शुरुआती जानकारी के मुताबिक, पुलिस को प्रियंका जुनेजा के पास से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है, जिससे यह साबित हो सके कि यह आत्महत्या है? अब यह मामला और पेचीदा हो गया है। हालांकि पुलिस ने परिजनों व रिश्तेदारों, दोस्तों से पूछताछ शुरू कर दी है।
मामला पूर्वी दिल्ली के वेलकम इलाके का है। यहीं प्रियंका जुनेजा रहा करती थीं, बता दें कि प्रियंका कई चैनल में काम कर चुकी हैं। बताया गया है कि मौजूदा वक्त में वह हरियाणा के एक यूट्यूब चैनल में एंकर थीं। फिलवक्त वह काम और भविष्य को लेकर परेशान थीं। आखिरी एफबी पोस्ट जुनेजा ने मध्य जून में पोस्ट की थी। लॉकडाउन बहुतों को परर्षण कर दिया है, पर आत्महत्य या खुद को नुकसान पहुंचा कोई हल नहीं है। बल्कि इससे परिजनों समेत कइयों को तकलीफ होती है।
शुरुआती जांच में पता चला है प्रियंका अपनी नौकरी को लेकर काफी परेशान थी। वहीं पुलिस ने जांच करना शुरू कर दिया है, दोषियों पर सख्त कार्यवाई का आश्वासन दिया है. वहीं प्रियंका जुनेजा की मौत के बाद से ही सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्दांजलि अर्पित कर रहे हैं।

गहलोत का भाजपा पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप, कांग्रेस विधायक जैसलमेर शिफ्ट किये

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शुक्रवार को भाजपा पर कांग्रेस विधायकों को खरीदने के लिए ”मुंह मांगी कीमत” की ऑफर का आरोप लगाते हुए अपने समर्थक तमाम विधायकों को जयपुर से जैसलमेर शिफ्ट कर दिया है। यह सभी विधायक चार्टेड प्लेन से भेजे गए। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इनके साथ गए हैं। राज्यपाल ने 14 अगस्त को विधानसभा का सत्र बुलाया है, लिहाजा संभावना यही है कि यह विधायक तब तक वहीं रहेंगे।

सीएम गहलोत ने आज भाजपा पर सीधा हमला किया और आरोप लगाया कि ”उसने पहले विधायकों को 10 फिर 20 करोड़ का ऑफर दिया था और अब मुंह मांगी कीमत देने का ऑफर किया है। गहलोत ने कहा – ”भाजपा किसी भी कीमत पर कांग्रेस की सरकार गिराना चाहती है। हमारे विधायक एकजुट हैं और भाजपा का यह मंसूबा किसी भी सूरत में सफल नहीं होने देंगे।”

कांग्रेस सभी विधायकों को जैसलमेर ले गयी है या नहीं, यह साफ़ नहीं क्योंकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनके साथ सभी विधायक नहीं गए हैं। अभी तक यह विधायक जयपुर के फेयरमोंट होटल में रुके हुए थे। विधायकों को चार्टर प्लेन से जैसलमेल ले जाया गया है।

इस बीच सीएम अशोक गहलोत ने एक ट्वीट में कहा – ”भाजपा ने टीडीपी के चार सांसदों का राज्यसभा के अंदर रातोंरात मर्जर करवा दिया। वो मर्जर तो सही है और राजस्थान में बीएसपी के छह विधायक मर्जर कर गए, कांग्रेस में वो मर्जर गलत है। तो फिर भाजपा का चाल-चरित्र-चेहरा कहां गया, मैं पूछना चाहता हूं? राज्यसभा में मर्जर हो वो सही है और यहां मर्जर हो वो गलत है?”

गहलोत  लगाया कि ”बहनजी को भाजपा ने आगे कर रखा है और उन्हीं के इशारे पर वो बयानबाजी कर रही हैं। भाजपा जिस प्रकार से सीबीआई-ईडी-इनकम टैक्स का दुरुपयोग कर रही है। सबको ही डरा रही है, धमका रही है, राजस्थान में क्या हो रहा है, सबको मालूम है। ऐसा तमाशा कभी देखा नहीं। वे उनसे डर रही हैं और मजबूरी में बयान दे रही हैं।”

सीएम गहलोत का ट्वीट –

@ashokgehlot51
BJP ने TDP के 4 MPs को राज्यसभा के अंदर रातों रात मर्जर करवा दिया, वो मर्जर तो सही है और राजस्थान में 6 विधायक मर्जर कर गए कांग्रेस में वो मर्जर गलत है, तो फिर BJP का चाल-चरित्र-चेहरा कहां गया, मैं पूछना चाहता हूं? राज्यसभा में मर्जर हो वो सही है और यहां मर्जर हो वो गलत है?

महबूबा मुफ्ती की पीएसए के तहत हिरासत तीन महीने और बढ़ाई गयी, सज्जाद लोन को सरकार ने रिहा किया

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती पर जन सुरक्षा क़ानून (पीएसए) तीन और महीने के लिए बढ़ा दिया गया। उन्हें एक साल पहले 5 अगस्त को तब नजरबंद किया गया था, जब मोदी सरकार ने संसद के जरिये सूबे को दो भागों में बांट कर वहां धारा 370 के तहत राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था। बाद में पीएसए भी लगा दिया गया था। उधर एक और नेता सज्जाद लोन को आज रिहा कर दिया गया।

याद रहे महबूबा मुफ्ती की ही तरह दो और पूर्व मुख्यमंत्रियों  फारूक अब्दुला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को भी नजरबंद कर दिया गया था। उनपर भी पीएसए  लगा दिया गया था। महबूबा पर पीएसए तीसरी बार  लगाया गया है।

हालांकि, कुछ महीने पहले अब्दुल्ला सीनियर और जूनियर दोनों को तो रिहा कर दिया गया था, लेकिन महबूबा को जेल में ही रखा गया था। अब्दुल्ला की रिहाई  कुछ हलकों में इसे राजस्थान में सचिन पायलट की कांग्रेस से बगावत से जोड़ कर भी देखा गया था, हालांकि उमर के अभी तक के बयानों से साफ़ है कि ऐसा कुछ नहीं है। सचिन उमर अब्दुल्ला के जीजा हैं।

अब कुछ देर पहले जारी जम्मू कश्मीर सरकार के प्रशासिक आदेश के मुताबिक महबूबा मुफ्ती की पीएसए की अवधि तीन महीने और बढ़ा दी गयी है। यह आश्चर्य जताया जा रहा है कि अब्दुल्ला परिवार की रिहाई के बावजूद मुफ्ती को क्यों जेल में  रखा जा रहा है। उधर एक और नेता सज्जाद लोन को आज रिहा कर दिया गया।

जहरीली शराब ने 21 की जान ली, एक की आंखों की रोशनी

पंजाब के अमृतसर और तरनतारन में शुक्रवार को जहरीली शराब पीने से मरने वालों का आंकड़ा 21 तक पहुंच गया। पंजाब की विभिन्न जगहों पर जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हुई है। इन मौतों के बाद पुलिस व प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इस बारे में सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी दी है। उन्होंने मामले की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं।
अकेले तरनतारन जिले में शुक्रवार को सात लोगों की मौत हो गई। इससे पहले शनिवार को भी जिले के गांव रटौल में जहरीली शराब पीने से तीन लोगों की मौत हो गई थी और एक व्यक्ति की आंखों की रोशनी चली गई।
पीड़ित परिवारों ने भी पुलिस को सूचित किए बिना ही शवों का अंतिम संस्कार कर दिया था। अब उन्होंने पुलिस को शिकायत देकर नशा तस्करों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। मृतकों की पहचान रौनक सिंह (48), जोगिंदर सिंह (50) और सुरजीत सिंह (27) के रूप में हुई थी।
तरनतारन के डीएसपी सुच्चा सिंह बल्ल ने कहा कि गांव रटौल के किसी भी व्यक्ति ने इस घटना की सूचना पुलिस को नहीं दी। अब शिकायत मिली है, कार्रवाई जरूर की जाएगी। उन्होंने बता कि पुलिस ने एक माह में अवैध शराब का कारोबार करने वाले सात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।
वहीं, डीसी कुलवंत सिंह धूरी ने कहा कि जांच के लिए एसडीएम रजनीश अरोड़ा की जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें आदेश दिया है कि ग्रामीणों के बयान दर्ज करके रिपोर्ट दें।