भाईचारे को मिटाना मुमकिन नहीं

आजकल डॉ. कफील खान को रिहाई दिलाने के लिए बहुत-से लोग, जिनमें काफी संख्या में हिन्दू हैं; आगे आ रहे हैं। सभी के द्वारा एकजुट होकर आवाज़ उठाने और अच्छाई के साथ खड़े होने का नतीजा यह हुआ है कि डॉ. कफील खान को क्लीन चिट मिल गयी; लेकिन फिर उन पर रासुका लगा दी गयी। दूसरी तरफ हिन्दुओं की मौत के बाद कोरोना वायरस के संक्रमण के डर के चलते बहुत-से हिन्दू उनकी अरथी को काँधा तक नहीं दे रहे हैं। ऐसे में अनेक मुस्लिम उनका अन्तिम संस्कार तक कर रहे हैं। यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब लोगों को मज़हब और जातिवाद के नाम पर तोडऩे, लड़ाने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। मज़हब की दीवारों को और ऊँचा उठाने की कोशिशों के बीच इस तरह की भाईचारे और इंसानियत की मिसालें दिल को बेहद सुकून देती हैं। यही हमारी सभ्यता है, यही भारतीय एकता और भाईचारे की असली बुनियाद है और यही इंसानियत है, जिसकी सीख दुनिया का हर मज़हब देता है। आज अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले इंसानों को खतरा है। यही वजह है कि कोई किसी की मदद नहीं करना चाह रहा है; लेकिन फिर भी इंसानियत के आगे हैवानियत हार रही है। उसे डर है कि इंसानियत और मज़बूत हो गयी, तो उसकी सत्ता छिन जाएगी, उसके ऐश-ओ-आराम पर ग्रहण लग जाएगा। अगर सभी अच्छे लोग इस बात को समझ लें और इंसानियत के दुश्मनों को समय-समय पर मुँहतोड़ जवाब देते रहें, तो वह दिन दूर नहीं जब वाकई बुरे लोगों की सत्ताएँ छिन जाएँगी और उनके ऐश-ओ-आराम पर ग्रहण लग जाएगा। क्योंकि यह सब हमारी आपसी फूट में ही निहित है, उनकी सत्ताएँ भी और उनके ऐश-ओ-आराम का ज़रिया भी।

दु:ख इस बात का होता है कि जब आज तक सभी ने उन सीखों को ही अपनाया है, जो अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर ले जाती हैं और उस पर तमाम परेशानियों के बावजूद चलने का हौसला देती हैं। उन्हीं किताबों को मज़हबी किताब / धर्म-ग्रन्थ माना है, जिनमें नेकी, अच्छाई, इंसानियत, प्यार, दरियादिली और ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता बताया गया है। इस सबके बाद भी हम लोग बुराई के रास्ते पर क्यों चल पड़ते हैं? अगर कोई गलत रास्ता कभी भी सही माना जाता, तो उसे कहीं, किसी मज़हब में तो मान्यता दी ही जाती? पर ऐसा नहीं किया गया; क्योंकि गलत कभी सही नहीं हो सकता और सही कभी गलत नहीं हो सकता। लेकिन इसके बावजूद हमने गलत को चुनने में ज़रा भी देर नहीं की। आज हम सही गलत के जिस दो-राहे पर खड़े हैं, वहाँ से गलत रास्ता ही सहज मालूम होता है। सिर्फ इसलिए, क्योंकि वह ऐश-ओ-आराम के संसाधन जुटाने का सरल रास्ता बन चुका है। लेकिन यह सरल रास्ता अंतत: गड्ढे में ही डालेगा, इस बात को भी हमें भली-भाँति समझ लेना चाहिए।

हर आदमी इस बात को मानता है कि बुरे काम का बुरा ही फल मिलेगा और ईश्वर उसका दण्ड ज़रूर देगा; फिर भी कुछ लोग क्षणभंगुर सुख के लिए गलत रास्ते पर चलने लगते हैं। यहाँ तक कि दूसरों को भी गलत रास्ते पर धकेलने का प्रयास करते हैं और जो लोग गलत रास्ता नहीं अपनाते, उनके उनके साथ बेरहमी से पेश आते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं। लोग यह भी मानते और जानते हैं कि बुरा कर्म कभी-न-कभी दु:खदायी साबित होगा। इसके बावजूद गलत रास्ते पर चलते हैं। ऐसे लोग अगर सत्ता में आ जाएँ, तो आम लोगों का जीना मुश्किल हो जाता है। आज के हालात कुछ ऐसे ही हो चुके हैं। अच्छाई पर बुराई की जीत इस तरह हो चुकी है कि सही लोगों पर ज़ुल्म-ही-ज़ुल्म हो रहे हैं। गरीबों और किसानों की दुर्दशा हो रही है। यहाँ तक कि लोग आत्महत्या करने को भी मजबूर हो रहे हैं। कहीं लोगों को पुलिस पीट रही है, तो कहीं आपराधिक प्रवृत्ति के लोग। कहीं जाति, धर्म के नाम पर दबंग गरीबों की हत्याएँ कर रहे हैं। महिलाएँ, यहाँ तक कि बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं। कुल मिलाकर यह सब इसलिए किया-कराया जा रहा है, ताकि लोग दबंगों का वर्चस्व स्वीकार कर लें और मज़हब के नाम पर आपस में नफरत करें और एक-दूसरे के दुश्मन बने रहें; लड़ते-मरते रहें। यह वैमनस्य, भेदभाव फैलाने के लिए किया जा रहा है, ताकि गलत लोग हमेशा सत्ता में बने रहें।

गलत लोगों की यह चाल आम लोगों को समझनी होगी। उन्हें यह भी समझना होगा कि वे किस तरह से प्रताडि़त किये जाने के साथ-साथ हर तरह से लूटे भी जा रहे हैं। उनमें इसलिए भेदभाव की खाई में धकेला जा रहा है, ताकि वे बिखरे रहें और किसी पर अत्याचार होने पर उसके समर्थन में खड़े न हो सकें। अत्याचारियों का विरोध करने की हिम्मत न कर सकें। अधिकतर लोग इस चाल को नहीं समझते और या तो डरे-सहमे रहते हैं या फिर बुरे लोगों के बहकावे में आकर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं और ज़रूरत पडऩे पर एक-दूसरे की मदद नहीं करते। कुछ लोग जो इस बात को समझते हैं, वे दुश्मनी की आग लगाने वालों के झाँसे में नहीं आ रहे और इंसानियत के बचाव में हर तरह की कोशिश कर रहे हैं। अनेक लोग इंसानियत को बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा चुके हैं और अनेक अपनी जान भी कुर्बान कर चुके हैं। इसके बाद भी इंसानियत पर हैवानियत भारी पड़ती दिख रही है। अत्याचार दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। दरअसल सीधे-सरल-सामान्य लोगों मेें एकता का अभाव ही उनके साथ अत्याचार का सबसे बड़ा कारण है। आज भी अपराधियों से सैकड़ों गुना ज़्यादा है, लेकिन डर और आपसी फूट इंसानियत की हार का सबसे बड़ा कारण है।

लेकिन अखण्ड भारत की बुनियाद ही भाईचारे और इंसानियत के आधार पर पड़ी है, इसलिए अलग-अलग मज़हबों को मानने वालों के बीच कड़ुवाहट भले ही घोल दी जाए, लेकिन हमेशा के लिए दीवार उठा पाना आसान नहीं है। लोगों के बीच सदियों से चले आ रहे भाईचारे के रिश्ते को खत्म करना इतना आसान भी नहीं है।