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कश्मीर में सीआरपीएफ में पहली महिला आईजी बनीं चारू सिन्हा

आतंकवाद से लंबे समय से जूझ रहे कश्मीर में पहली बार महिला आईपीएस अधिकारी को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल श्रीनगर सेक्टर के महानिरीक्षक (आईजी) के पद पर नियुक्त किया गया है। जहां उनकी तैनाती की गई है, वो इलाका जम्मू-कश्मीर में सबसे ज़्यादा आतंक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
आईपीएस अधिकारी चारू सिन्हा को अप्रैल 2018 में सीआरपीएफ बिहार सेक्टर की आईजी नियुक्त किया गया था। इससे पहले वह तेलंगाना पुलिस में निदेशक एसीबी के पद पर तैनात थीं।
सीआरपीएफ-श्रीनगर सेक्टर ब्रेन निशात क्षेत्र में है। इसने 2005 में काम करना शुरू कर दिया था। सीआरपीएफ के श्रीनगर सेक्टर में प्रदेश के तीन जिले बडगाम, गांदरबल और श्रीनगर आते हैं, जिनमे बडगाम सर्वाधिक आतंकवाद प्रभावित इलाकों में से एक है। साथ ही लद्दाख भी सीआरपीएफ के इसी सेक्टर में आता है। इसमें दो रेंज, 22 कार्यकारी इकाइयां और तीन महिला कंपनियां शामिल हैं। इन इलाकों में आतंकियों के खिलाफ होने वाले सभी ऑपरेशन में चारू सिन्हा हेड करेंगी।
1996 बैच की तेलंगाना कैडर की तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी चारू सिन्हा इससे पहले बतौर आईजी, सीआरपीएफ बिहार में काम कर चुकी हैं। इस दौरान उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ बेहतरीन तरीके से अपनी ड्यूटी निभाई। उनके नेतृत्व में कई  नक्सल विरोधी अभियान चलाए गए। बाद में उन्हें सीआरपीएफ, जम्मू में बतौर आईजी स्थानांतरित कर दिया गया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कफील खान को जमानत दी, एनएसए गलत, रिहा होंगे

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी (एनआरसी) आंदोलन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के आरोपी जेल में बंद डॉ. कफील खान को हाईकोर्ट से जमानत मिल गयी है और उन्हें रिहा करने के आदेश दिए गए हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कफील पर यूपी सरकार के लगाए गए एनएसए को भी गलत बताते हुए इसे हटा दिया है। यही नहीं अदालत ने उन्हें जेल में डालने को भी गलत बताया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कफील को जेल में डालना भी बुरा था। अदालत ने उन्हें तुरंत रिहा करने के भी आदेश दिए हैं। उन्हें कथित रूप से सीएए के विरोध के बीच 13 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में जनवरी में मुंबई से गिरफ्तार किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने कफील खान की मां नुजहत परवीन की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर यह फैसला मंगलवार को दिया। याद रहे 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से कफील खान की मां की अर्ज़ी पर 15 दिन में फैसला लेने को कहा है। कफील अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के दौरान भड़काऊ बयान देने के आरोप में एनएसए के तहत जेल में बंद हैं। उनके ऊपर तीन बार एनएसए बढ़ाया गया है।

बता दें कफील की पत्नी ने ट्विटर पर अपने पति की रिहाई को लेकर 4 अगस्त को एक मुहिम चलाई थी, जिसे लोगों का काफी समर्थन मिला था। कफील की पत्नी ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कफील के समर्थन में गुहार भी लगाई थी।

दूरदराज क्षेत्र के डॉक्टरों को पीजी दाखिले में विशेष आरक्षण दे सकते हैं राज्य : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में दूरदराज के इलाकों में काम करने वाले डॉक्टरों को पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए विशेष आरक्षण देने को मंजूरी दे दी। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसले में कहा कि राज्यों के पास आरक्षण संबंधी विशेष प्रावधान बनाने के लिए विधायी अधिकार है।
संविधान पीठ ने कहा, भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) का नियम मनमाना व असंवैधानिक है। एमसीआई संवैधानिक संस्था है और आरक्षण संबंधी प्रावधान बनाने का उसे कोई अधिकार नहीं है, जबकि राज्य सरकार संविधान और राज्य सूची के तहत ऐसा करने को अधिकृत है। ऐसे में एमसीआई राज्यों की ओर से तय आरक्षण पर पाबंदी नहीं लगा सकती है।
शीर्ष अदालत ने कहा, अगर कोई प्रदेश ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में सेवा करने वाले डॉक्टरों के लिए आरक्षण तय करते हैं, तो वह विधायी अधिकार है। पीठ ने यह फैसला तमिलनाडु मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन तथा अन्य की याचिका पर दिया।

अर्थव्यवस्था का बैठा भट्ठा ; माइनस 23.9 फीसदी पहुंची जीडीपी दर, 40 साल में सबसे कमजोर

पांच ट्रिलियन इकॉनमी हासिल करने के दावों के बीच देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सोमवार शाम बहुत चिंताजनक खबर आई है। इससे जाहिर होता है कि आने वाले दिन बहुत मुश्किल भरे हो सकते हैं। कोरोना से पहले ही अर्थव्यवस्था को लेकर चिंताएं जताई जा रही थीं और कोविड-19 के बाद तो यह रसातल में पहुंचती दिख रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने चालू माली साल (वर्ष 2020-21) की पहली तिमाही (क्यू1) के जो जीडीपी आंकड़े कुछ देर पहले जारी किये हैं उनसे जाहिर होता है कि इस वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर माइनस 23.9 फीसदी रही है।

जो आंकड़े सामने आये हैं वे अभी तक के अनुमानों से भी बहुत खराब हैं। देश में पहली बार जीडीपी की डर माइनस में गयी है। यह पिछले 40 सालों का अर्थव्यवस्था का सबसे कमजोर आंकड़ा है। इससे यह भी जाहिर होता है कि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में आने वाले दिन बहुत चिंता वाले हो सकते हैं। अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक होटल इंडस्ट्री पर सबसे बड़ी मार पड़ी है।

एनएसओ के आंकड़े बताते हैं कि इस साल की पहली तिमाही में विकास दर माइनस 23.9 फीसदी रही है। यह पिछले 40 साल में अब तक की सबसे खराब जीडीपी दर है। यदि इसी तिमाही में पिछले साल की बात करें तो उस समय यह दर उससे कहीं कम है। रेटिंग एजेंसियां पहले से इसकी आशंका जाता रही थीं लेकिन यह उनके अनुमानों से भी कम है।

याद रहे साल 2019-20 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर 3.1 फीसदी थी। एनएसओ के मुताबिक जीवीए में 22.8 फीसदी की गिरावट आई है। वैसे तो अर्थव्यवस्था को लेकर आर्थिक जानकार पहले से गहरी चिंता जता रहे थे, लेकिन आंकड़ों को देखने से लगता है कि कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण औद्योगिक उत्पादन में बड़ी कमी आई है। रोजगार के आंकड़ों में भी खासी  गिरावट देखने को मिली है।

वैसे तो जुलाई से अनलॉक शुरू होने के बाद मजदूर, दुकानदार, कर्मचारी और अन्य काम पर लौटने शुरू हुए हैं और व्यापार को भी कुछ गति मिली है, लेकिन अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में अभी बहुत वक्त लगेगा। इस दौरान करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गयी हैं और अभी तक ऐसे संकेत नहीं मिलते हैं कि जल्दी ही वे दोबारा रोजगार पा सकेंगे।

सोमवार शाम जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 40 साल में देश की जीडीपी अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है। आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में जीडीपी की दर माइनस में चली गयी है। एनएसओ के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जुलाई की तिमाही के दौरान भारत का राजकोषीय घाटा 8.21 लाख करोड़ रुपये रहा। इस अवधि में 2019-20 में यह 5.47 लाख करोड़ रुपये था।

आंकड़ों के मुताबिक पहली तिमाही में कुल राजकोषीय घाटा बजट अनुमान के 103.1 फीसदी तक पहुंच गया है। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक इस तिमाही में 8 कोर इंडस्ट्रीज का कम्बाइंड इंडेक्स 119.9 रहा। इसमें पिछले साल के मुकाबले 9.6 एएसडी की कमी आई है। मंत्रालय के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 के क्यू1 में इन आठ कोर इंडस्ट्रीज की विकास दर माइनस 20.5 फीसदी रही।

एनएसओ के आंकड़े बताते हैं कि होटल और पर्यटन क्षेत्र की कमर टूट गयी है। माली साल 2020-21 की पहली तिमाही में होटल इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट – 47 फीसदी रही। एनएसओ के मुताबिक, पहली तिमाही में इंडस्ट्रियल सेक्टर में जीडीपी विकास दर  माइनस 38.1 फीसदी रही। सर्विसेज सेक्टर में आर्थिक विकीस की दर – 20.6 फीसदी दर्ज की गई। निर्माण क्षेत्र में जीडीपी की दर माइनस 39.3 फीसदी रही। कृषि ही एक ऐसा क्षत्र रहा है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद की दर कुछ सकारात्मक 3.4 फीसदी  रहा।

वैसे तो आरबीआई ही नहीं अन्य कई रेटिंग एजंसियां जीडीपी में बड़ी गिरावट की आशंका पहले ही जता चुकी थीं, हालांकि, आंकड़े उनके अनुमानों से बुरे आये हैं। आरबीआई ने चालू माली साल में जीडीपी विकास दर नेगेटिव रहने की आशंका जताई थी। उद्योग मंडल फिक्की ने जुलाई में कहा था कि चालू वित्त वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था 4.5 फीसदी नीचे जाएगी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज सुबह ही मोदी सरकार यह आरोप लगाया था कि अर्थवयवस्था को खराब तरीके से संभाला जा रहा है। एक वीडियो जारी कर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाया कि भाजपा की सरकार ने देश के असंगठित अर्थव्यवस्था पर आक्रमण किया है और यह गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है।

गांधी ने वीडियो सीरीज के इस हिस्से में कहा – ”यदि हम 2008 की मंदी को देखें तो जब पूरी दुनिया खासकर अमेरिका, यूरोप, जापान में भारी मंदी थी। वहां बैंक बंद हो रहे थे, कंपनियां बंद हो रही थीं, लेकिन हिंदुस्तान को कुछ नहीं हुआ। इसकी वजह यह थी कि यहां की असंगठित क्षेत्र मजबूत था। उस समय यूपीए की सरकार थी।” तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अपनी बातचीत का उल्लेख करते हुए गांधी ने कहा – ”मनमोहन सिंह जी ने बताया था कि जिस दिन तक हिंदुस्तान की असंठित अर्थव्यवस्था मजबूत रहेगी, उस दिन तक मंदी इसे छू भी नहीं सकती है।”

कुल मिलकर आज जारी आंकड़ों ने देश में चिंता पैदा की है। निश्चित ही अभी तक खराब आर्थिक स्थिति से मन करती रही मोदी सरकार के लिए आने वाले दिन बहुत चुनौती भरे हो सकते हैं।

प्रणब मुखर्जी का निधन

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया है।  वे 84 साल के थे। वे 2012 से 2017 तक देश के राष्ट्रपति रहे।

वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वे पिछले कुछ दिन से कोमा में थे लेकिन वेंटिलेटर सपोर्ट में होने के बावजूद आज शाम उनका निधन हो गया। उनकी ब्रेन कैंसर की सर्जरी हुई थी साथ ही उन्हें टेस्ट में कोरोना पॉजिटव भी पाया गया था।

प्रशांत भूषण बोले, जुर्माना भरेंगे ; लेकिन फैसले को चुनौती देने की भी बात कही  

वरिष्ठ वकील और सामजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मिली सजा को लेकर सोमवार शाम कहा कि वे फैसला मान रहे हैं,  लेकिन उनके पास अपने कानूनी अधिकारों के इस्तेमाल का विकल्प खुला है। उन्होंने कहा कि वे न्यायपालिका का सम्मान करते हैं और एक रूपये का जुर्माना खुशी-खुशी भरेंगे।

सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने आज ही उनको यह सजा सुनाई है। प्रशांत भूषण ने दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा – ”मैं यह फैसला मान रहा हूं लेकिन अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए चुनौती जरूर दूंगा। मुझे दोषी करार देने और सजा देने दोनों फैसलों को चुनौती दूंगा। हर भारतीय मजबूत न्यायपालिका चाहता है, न्यायपालिका कमजोर हो तो देश और लोकतंत्र कमजोर होता है।”

भूषण ने कहा – ”मैं देश की जनता का धन्यवाद करना चाहता हूं कि जिन्होंने मेरे समर्थन में अभियान चलाया। मैंने पहले ही कहा था कि जो भी सजा मिलेगी उसे स्वीकार करूंगा, मुझे जेल जाने से दिक्कत नहीं है। याद रहे आज ही सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि अगर प्रशांत भूषण एक रुपया जमा नहीं करते हैं तो उनको तीन महीने की जेल हो सकती है और तीन साल तक प्रैक्टिस करने पर पाबंदी लगाई जा सकती है। आदेश के मुताबिक, प्रशांत भूषण को जुर्माने का एक रुपया 15 सितंबर तक जमा करना है।

प्रेस कांफ्रेंस में वरिष्ठ वकील भूषण ने कहा कि वो खुशी-खुशी जुर्माना भरने के लिए तैयार हैं। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा – ”एक जिम्मेदार नागरिक की तरह जुर्माना भरूंगा। मैं सुप्रीम कोर्ट के  आदेश का पालन करूँगा। मेरे हृदय में सुप्रीम कोर्ट के लिए पूरा सम्मान है।”

उन्होंने आज फिर कहा कि उनके ट्वीट्स का मकसद सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करना नहीं था, ये मुद्दा उनके या सुप्रीम कोर्ट और किसी जज के खिलाफ नहीं था। उन्होंने कहा कि इस दौरान जिन लोगों ने मुझे समर्थन दिया, मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूं। भूषण ने कहा – ”इस मामले के कारण एक बार फिर लोगों का ध्यान अभिव्यक्ति के अधिकार की ओर गया है। इस मामले में ये ऐतिहासिक साबित हुआ।  उम्मीद है कि सत्य की जीत होगी।” प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ योगेंद्र यादव भी थे।

घृणा का औज़ार अनसोशल मीडिया

दुनिया के जाने-माने अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के फेसबुक की निष्पक्षता पर सवाल उठाने और भारत की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के नेताओं और कुछ समूहों की हेट स्पीच (नफरतों) वाली पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई करने में जान-बूझकर कोताही बरतने के आरोपों के बाद देश की राजनीति में तूफान उठ खड़ा हुआ है।

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में लगाये गये आरोपों को भले भाजपा ने नकार दिया है और फेसबुक ने भी किसी पार्टी विशेष के पक्ष में होने से साफ मना किया है, लेकिन सवाल तो निश्चित रूप से उठेंगे ही, क्योंकि यह एक बड़ा मुद्दा है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि सोशल मीडिया पर देश को धार्मिक आधार पर बाँटने वाले संदेशों की भरमार दिखती है और इसका विपरीत असर कई बार देखने को मिला है। भारत में चुनाव या अन्य कुछ खास अवसरों पर तो इस तरह के संदेशों की बाढ़-सी आ जाती है। इसे देखते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि इस तरह के संदेश खास मकसद से चलाये जाते हैं। फेसबुक की निष्‍पक्षता पर द वॉल स्‍ट्रीट जर्नल द्वारा सवाल उठाते ही फेसबुक ने भाजपा नेताओं टी. राजा सिंह और आनंद हेगड़े की कुछ पोस्‍ट हटा दीं। इसके बाद सवाल उठने लगे कि यदि ये पोस्ट विवादित थीं, तो इन्हें हटाने में इतनी देरी क्यों की गयी? निश्चित ही वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट से सोशल मीडिया कम्पनियों का स्याह पक्ष उजागर हुआ है।

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में कुछ संदेशों का हवाला देते हुए यहाँ तक आरोप लगाया गया है कि एक रणनीति के तहत इन पोस्ट को जल्द नहीं हटाया गया। अखबार ने भाजपा पर भी निशाना साधा है, जिसके बाद से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल उसे घेरने लगे हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी ने सीधे मोदी सरकार पर हमला किया है। उन्होंने कहा है कि पक्षपात, झूठी खबरों और नफरतों के ज़रिये हम किसी को कठिन संघर्ष से हासिल हुए लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में फेसबुक और व्हाट्स एप पर भाजपा और आरएसएस का नियंत्रण है। वहीं कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने फेसबुक के सीईओ मार्क एलिअॅट जुकरबर्ग को ईमेल लिखकर उनसे इस पूरे विवाद की उच्चस्तरीय जाँच की माँग की।

इसके जवाब में भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने तीन साल पुराने कैंब्रिज एनालिटिका डेटा स्कैंडल का ज़िक्र करते हुए ट्वीट कर कहा- कांग्रेस फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका के साथ डेटा का इस्तेमाल करते हुए रंगे हाथों पकड़ी गयी थी। अब हमारे ऊपर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। हारे हुए जो लोग खुद अपनी पार्टी में लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते हैं, वे शिकायत करते रहते हैं कि पूरा विश्व भाजपा और आरएसएस ने नियंत्रित कर रखा है। सच यह है कि आज सूचनाओं तक पहुँच और अभिव्यक्ति की आज़ादी का लोकतांत्रिकरण हुआ है। अब यह आपके परिवार (राहुल गाँधी) के सेवकों से नियंत्रित नहीं होता है। यही कारण है कि आपको दर्द होता है।

वैसे एक सच यह है कि शायद कोई भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि भारत में घृणा फैलाने वाला एक बड़ा सोशल मीडिया नेटवर्क काम कर रहा है। इसके पीछे कौन है? यह जाँच का विषय है।

दरअसल भाजपा पर गाहे-बगाहे यह आरोप लगते रहे हैं कि उसके समर्थक ऐसे संदेश फैलाने में सबसे आगे हैं। निश्चित ही अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट से भाजपा की छवि को धक्का लगा है। इससे फेसबुक की निष्पक्षता पर भी सवाल उठे हैं; भले उसने सफाई दी है कि हम किसी की भी राजनीतिक हस्ती / पार्टी की सम्बद्धता के बिना नफरत फैलाने वाले भाषणों और संदेशों को प्रतिबन्धित करते हैं। इसके लिए नियमित ऑडिट किये जाते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संदेशों का अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो साफ हो जाता है कि व्हाट्स एप या अन्य जगह इस तरह के संदेश बहुत ही सुनियोजित तरीके से फैलाये जाते हैं। इनकी भाषा तो बहुत ही कटु और घृणा फैलाने वाली होती है, ये समाज को बाँटने में भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ दिया जाए, तो जिस पैमाने पर ये संदेश भारत में सोशल मीडिया प्लैटफॉम्र्स पर फैलाये जाते हैं, उससे तो यही लगता है कि इन्हें भेजने वालों को कानून का डर और देश की फिक्र नहीं है।

यहाँ यह गौरतलब है कि भारत के लिए फेसबुक पॉलिसी डायरेक्टर अंखी दास ने दिल्ली पुलिस में पाँच लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी है। इस शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया है कि अपने राजनीतिक झुकावों की वजह से इन लोगों (शिकायत में आरोपियों) ने उन्हें धमकाया है। बता दें कि वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारत में फेसबुक की पॉलिसी डायरेक्टर अंखी दास ने भाजपा नेता टी. राजा सिंह के खिलाफ फेसबुक के नफरती बयानों पर नियमों को लागू करने का विरोध किया था। उन्हें डर था कि इससे कम्पनी के सम्बन्ध भाजपा से बिगड़ सकते हैं और इससे भारत में फेसबुक के बिजनेस पर असर पड़ सकता है। याद रहे टी. राजा तेलंगाना से भाजपा विधायक हैं। राजा पर पहले भी भड़काऊ बयानबाज़ी के आरोप लगते रहे हैं।

सब कुछ साफ होने पर भी फेसबुक प्रवक्ता ने कहा है कि हेट स्पीच और उग्र कंटेंट पर प्रतिबन्ध नीति का प्रयोग हम वैश्विक तौर पर बिना किसी भेदभाव के करते हैं। हम जानते हैं कि अभी इस दिशा में और काम किया जाना है, इसलिए हम इसे लेकर रेगुलर ऑडिट करवाने की सोच रहे हैं; ताकि फेयरनेस बनी रहे। हम पार्टियों की राजनीतिक हैसियत नहीं देखते।

हालाँकि कांग्रेस का आरोप है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सोशल मीडिया के दिग्गज प्लेटफॉर्म फेसबुक के बीच साठगाँठ है। पार्टी का कहना है कि सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और सांसदों के साथ फेसबुक एजीक्यूटिव अंखी दास का कनेक्शन उजागर हुआ है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मीडिया से बातचीत में जुलाई, 2012 के एक मेमो का हवाला दिया है। उनके मुताबिक, यह एक बन्द दरवाज़े की बैठक में मध्यस्थ नियमों के सन्दर्भ में फेसबुक में तत्कालीन पब्लिक पॉलिसी ग्लोबल वाइस प्रेसिडेंट मार्ने लेविने का लिखा था। इसमें कहा गया है कि तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और संसद के विपक्षी सदस्यों को इन नियमों पर चर्चा करनी थी।

खेड़ा का आरोप है कि आंतरिक ईमेल से पता चलता है कि जब संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) सत्ता में थी, तब भाजपा और फेसबुक के बीच एक सम्बन्ध था। उन्होंने कहा कि इसी मेमो में गोपनीयता कानून का उल्लेख किया गया था, जिसे सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति ए.पी. शाह की अध्यक्षता में ग्रुप ऑफ एक्सपट्र्स ऑन प्राइवेसी द्वारा तैयार किया गया था। कांग्रेस नेता ने मेमो के हवाले से कहा कि अंखी दास सरकार द्वारा नियुक्त समिति के सदस्यों के साथ सम्पर्क में थीं। समिति के सदस्य डीपीए की संरचनाओं और शक्तियों के बारे में बहुत स्पष्ट नहीं थे। खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस को यूपीए सरकार पर गर्व है, जिसने लॉबिस्टों (संगठन बनाने वालों) के साथ सम्बन्ध नहीं रखे, जैसा कि ईमेल में कहा गया है।

कांग्रेस नेता खेड़ा ने कहा कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट के पास था, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने मीडिया में इसे जीवित रखा और भाजपा के राजीव चंद्रशेखर सहित कुछ लोगों द्वारा जनहित याचिका दायर की गयी। उन्होंने कहा कि फेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी प्रमुख अंखी दास ने 2014 के लोकसभा परिणाम घोषित होने के एक दिन बाद 17 मई, 2014 को एक लेख लिखा था।

खेड़ा ने अंखी दास के लेख के हवाले से कहा कि भारत के 2014 के चुनावों को कई कारणों से याद किया जाएगा; लेकिन विशेष रूप से यह सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स के कारण याद किया जाएगा। जो कि 2011 से सरकारी सेंसरशिप के साथ जुड़े हैं और महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अभियान उपकरण के साथ ही राजनीतिक अभिव्यक्ति और आयोजन के लिए मुफ्त में एक माध्यम बन गये। हमने 4 मार्च को इलेक्शन ट्रैकर लॉन्च किया और इसमें भाजपा लगातार पूरे अभियान में नम्बर एक पार्टी रही और नरेंद्र मोदी पूरे अभियान में नम्बर एक नेता रहे। भाजपा इन सब आरोपों को कांग्रेस की भड़ास बताकर खारिज कर रही है। उसका कहना है कि जनता ने कांग्रेस को ज़मीन दिखा दी, इसलिए वह भाजपा पर गलत आरोपबाज़ी कर रही है। भाजपा ने इस पूरे मामले में कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी के साथ ही विजयामूर्ति और कविता के.के. जैसे अन्य लोगों के अलावा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के फेसबुक से कथित पिछले जुड़ाव का हवाला दिया है। भाजपा के सूचना प्रौद्योगिकी सेल के प्रमुख अमित मालवीय के मुताबिक, फेसबुक की सार्वजनिक नीति टीम में शामिल विजया मूर्ति ने पिछले दिनों कांग्रेस के लिए काम किया था। मालवीय का दावा है कि मूर्ति ने युवा कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी चुनावी परियोजना में काम किया था। जनवरी, 2012 और अप्रैल, 2015 के बीच उनकी लिंक्ड इन प्रोफाइल के अनुसार, वह एक सामाजिक-राजनीतिक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) से भी जुड़ी रहीं।

मालवीय का यह भी आरोप है कि कविता के.के., जिनकी लिंक्ड इन प्रोफाइल से पता चलता है कि वह सोशल मीडिया की दिग्गज कम्पनी के लिए काम कर रही हैं और वह अतीत में तृणमूल कांग्रेस के सांसद के लिए भी काम कर चुकी हैं। कविता के लिंक्ड इन प्रोफाइल में सन् 2015 से सन् 2017 के बीच टीएमसी नेता डेरेक ओ. ब्रॉयन के लिए प्रिंसिपल पॉलिसी एसोसिएट के रूप में काम करने का उल्लेख है। मनीष तिवारी इन आरोपों को गलत बता चुके हैं। हालाँकि मालवीय का दावा है कि उन्होंने अतीत में अटलांटिक काउंसिल के लिए काम किया था।

भाजपा के आईटी सेल प्रमुख का यह भी आरोप है कि तिवारी को अटलांटिक काउंसिल का एक प्रतिष्ठत सीनियर फेलो नियुक्त किया गया था, जिसे बदले में फेसबुक से राजनीतिक प्रचार करने का काम सौंपा गया था। आप इसे पसन्द कीजिए या मत कीजिए; मगर यह एक तथ्य (फैक्ट) है। उनका दावा है कि 2019 के आम चुनाव में भाजपा की मूल विचारधारा वाले 700 फेसबुक पेज हटा दिये गये थे। उन्होंने कहा कि इन पेजों पर लाखों समर्थक भी जुड़े थे; लेकिन उन्हें हटा दिया गया।

कांग्रेस फेसबुक पर घृणा सामग्री मामले की संसदीय जाँच की माँग कर रही है। पार्टी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल फेसबुक के सीईओ मार्क एलिअॅट जुकरबर्ग को ईमेल पत्र भेजकर आग्रह किया है कि इस पूरे मामले की फेसबुक मुख्यालय की तरफ से उच्चस्तरीय जाँच करायी जाए। ईमेल में कांग्रेस ने कहा  है कि इस पूरे मामले की फेसबुक मुख्यालय की तरफ से उच्चस्तरीय जाँच करायी जाए और जाँच पूरी होने तक उसकी भारतीय शाखा के संचालन की ज़िम्मेदारी नयी टीम को सौपीं जाए, ताकि जाँच प्रक्रिया प्रभावित न हो सके।

बता दें कि सोशल मीडिया पर पोस्ट इन फेक और नफरत भरे संदेशों पर अभी भी देश की बड़ी आबादी सहज ही भरोसा कर लेती है; कुछ तो अज्ञानतावश और कुछ भावनाओं में बह जाने के कारण। एक सर्वे में बताया गया था कि भारत में व्हाट्स एप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किये गये धार्मिक व राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों वाले अधिकतर संदेश झूठे होते हैं और उनका मकसद लोगों में नफरत फैलाना होता है। देश में कई ऐसे मामले हो चुके हैं, जिनमें सोशल मीडिया पोस्ट्स के आधार पर ही किसी की हत्या कर दी गयी। यह देश के सियासतदानों के आचरण और प्रशासकों की रणनीति पर भी गम्भीर सवाल उठाता है। आम आदमी के हित को ताक पर रखकर इस तरह का झूठा प्रचार देश को कहाँ ले जाएगा? इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

यह हैरानी की बात है कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत में साइबर कानून होने के बावजूद फर्ज़ी खबरों को लेकर कुछ होता नहीं है। साइबर कानून जानकारों का कहना है कि भारत में आईटी एक्ट है, जिसके तहत इस तरह के प्रावधान हैं, लेकिन यह कानून बहुत स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा ज़्यादातर राज्यों की पुलिस या अन्य जाँच एजेंसियों को आईटी एक्ट के बारे में बहुत कम जानकारी है। यही वजह है कि देश में अब भी साइबर क्राइम के ज़्यादातर मामले आईटी एक्ट की जगह आईपीसी के तहत दर्ज किये जाते हैं।

पुलिस के अलावा भारत में ज़्यादातर सोशल मीडिया यूजर्स को भी आईटी एक्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में लोग बिना सोचे-समझे किसी भी वायरल पोस्ट को फारवर्ड कर देते हैं। इसके अलावा फेसबुक, व्हाट्स एप और गूगल जैसे ज़्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व सर्च इंजन का भारत में न तो सर्वर है और न ही कोई ऑफिस। इस वजह से ये सेवा प्रदाता न तो भारतीय कानूनों को मानने के लिए बाध्य हैं और न ही सरकार के निर्देशों का गम्भीरता से पालन करते हैं। ऐसे बहुत से मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स ने पुलिस समेत अन्य जाँच एजेंसियों को गम्भीर अपराध के मामलों में  भी जानकारी देने से इन्कार कर दिया है।

सर्वोच न्यायालय सरकार को फर्ज़ी खबरों को लेकर निर्देश देते हुए सख्त टिप्पणी कर चुका है। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें ऐसी गाइड लाइन की ज़रूरत है, जिससे ऑनलाइन अपराध करने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी पोस्ट करने वालों को ट्रैक किया जा सके। सरकार यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि उसके पास सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की कोई तकनीक नहीं है। मामले में जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और यूजर्स के लिए सख्त दिशा-निर्देशों की ज़रूरत है। हाल यह है कि हमारी निजता तक सुरक्षित नहीं है। लोग सोशल मीडिया पर एके 47 तक खरीद सकते हैं। ऐसे में कई बार लगता है कि हमें स्मार्टफोन छोड़, फिर से फीचर फोन का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए।

सोशल मीडिया कम्पनियों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाज़ार है। ऐसे में इस बाज़ार का दुरुपयोग भी हो सकता है और इनका किसी राजनीतिक दल के पक्ष में या खिलाफ इस्तेमाल देश के हितों को नुकसान कर सकता है। देखा जाए तो द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने जो आरोप लगाये हैं, यदि उनमें सच्चाई है, तो इसे देश के लोकतंत्र के लिए एक गम्भीर खतरा माना जाएगा। निश्चित ही इन आरोपों का सच सामने आना ज़रूरी है। देश के राजनीतिक दलों ही नहीं, जनता को भी इन सवालों को गम्भीरता से लेना होगा।

इन कम्पनियों के लिए यह कमाई का बड़ा ज़रिया है। लेकिन हमें यह देखना कि कहीं यह कम्पनियाँ हमारे देश के लोकतंत्र की कीमत पर तो यह कमायी नहीं कर रहीं। सरकार के भी सभी सम्बन्धित विभागों को इस मामले में पूरी तत्परता से सक्रिय होकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सोशल मीडिया कम्पनियाँ भारत में सामाजिक टकराव को अपनी आमदनी का ज़रिया न बनायेँ और कोई भी राजनीतिक दल जनमत को तोडऩे-मरोडऩे में औज़ार न बने।

जवाब माँगने पर गर्माया मामला

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट सामने के बाद वरिष्ठ कांग्रेस नेता और लोकसभा की सूचना प्रौद्योगिकी मामले की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने समिति इस सोशल मीडिया कम्पनी (फेसबुक) से इस विषय पर 2 सितंबर तक जवाब माँगा है। इसके बाद भाजपा उन पर हमलावर हो गयी। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को ईमेल लिखकर उन्हें समिति के अध्यक्ष पद से हटाने की माँग की है। बिरला को लिखे पत्र में नियमों का हवाला देते हुए दुबे ने उनसे आग्रह किया है कि वे थरूर के स्थान पर किसी दूसरे सदस्य को समिति का अध्यक्ष नियुक्त करें। भाजपा के कुछ नेताओं के नफरत वाले बयानों को कथित तौर पर नज़रअंदाज़ करने के आरोपों का सामना कर रहे फेसबुक को सूचना प्रौद्योगिकी सम्बन्धी संसद की स्थायी समिति ने उसके मंच के कथित दुरुपयोग के मुद्दे पर चर्चा के लिए आगामी 2 सितंबर को तलब किया है। बैठक के एजेंडे के मुताबिक, उपरोक्त विषय पर फेसबुक के प्रतिनिधियों की राय माँगी जाएगी। समिति के तलब किये जाने के मुद्दे पर फेसबुक की ओर से यह रिपोर्ट फाइल किये जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी थी।

देश में यह मसला अब गम्भीर राजनीतिक जंग में तब्दील हो गया है। थरूर के फैसले के बाद भाजपा उनके पीछे पड़ गयी है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का आरोप है कि जब से थरूर समिति के अध्यक्ष बने हैं, तबसे वह इसके कामकाज को गैर-पेशेवर तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं और अफवाह फैलाने का अपना राजनीतिक कार्यक्रम चला रहे हैं और भाजपा को बदनाम कर रहे हैं। बिरला को जो पत्र दुबे ने लिखा है, उसमें नियमों का हवाला देते हुए उनसे आग्रह किया है कि वह थरूर के स्थान पर किसी दूसरे सदस्य को समिति का अध्यक्ष नियुक्त करें। दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को सौंपे गये नोटिस में अपने इस रुख को दोहराया है कि समिति के सदस्यों के साथ विचार-विमर्श किये बिना किसी इकाई या संगठन को तलब करने का थरूर को कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने दावा किया कि थरूर ने समिति की किसी बैठक में इस विषय से जुड़े एजेंडे के बारे में सदस्यों को सूचित नहीं किया तथा ऐसे में यह स्पष्ट रूप से विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है।

उधर शशि थरूर ने लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में दुबे की ओर से ट्विटर पर की गयी उस टिप्पणी पर आपत्ति जतायी है, जिसमें भाजपा सांसद ने कहा था कि स्थायी समिति के प्रमुख के पास इसके सदस्यों के साथ एजेंडे के बारे में विचार-विमर्श किये बिना कुछ करने का अधिकार नहीं है। थरूर का कहना है कि निशिकांत दुबे की अपमानजनक टिप्पणी से न सिर्फ सांसद और समिति के प्रमुख के तौर पर मेरे पद और उस संस्था का अपमान हुआ है, जो हमारे देश की जनता की आकांक्षा का प्रतिबिंब है। थरूर ने बिरला से आग्रह किया कि दुबे के खिलाफ कार्यवाही आरम्भ करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये जाएँ। थरूर का कहना है कि वह इस मामले में सख्त कार्रवाई की उम्मीद करते हैं, ताकि आगे से ऐसी घटना नहीं हो।

भारत में इंटरनेट यूजर्स

भारत दुनिया भर में इंटरनेट यूजर्स ऊपर की संख्या के मामले में बहुत ऊपर है। भारत की करीब एक अरब 38 करोड़ 74 लाख की आबादी का बड़ा वर्ग इंटरनेट इस्तेमाल करता है। ऐसे में किसी भी तरह के संदेश बड़ी आबादी तक पहुँचते हैं। दुर्भाग्य से नकारात्मक और धार्मिक उन्माद वाले संदेशों को फैलने में देर नहीं लगती।

आँकड़ों के मुताबिक, भारत में जनवरी, 2020 में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की कुल संख्या 687.6 मिलियन (68.76 करोड़) थी। पिछले एक साल, यानी 2019 की तुलना में भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या में 128 मिलियन (23 फीसदी) की वृद्धि हुई। जनवरी, 2020 में यह आँकड़ा कुल आबादी का 50 फीसदी था। भारत का बहुत बड़ा तबका सोशल मीडिया पर एक्टिव है। भारत में जनवरी, 2020 में 1.06 बिलियन (106 करोड़) मोबाइल कनेक्शन थे, जो यहाँ लोगों के सोशल मीडिया तक पहुँच का सबसे बड़ा ज़रिया हैं। भारत में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में कम फेसबुक इस्तेमाल करती हैं।

भारत में कानून का प्रावधान

ऐसा नहीं है कि भारत में घृणा फैलाने या फर्ज़ी वाले संदेशों को लेकर कानून नहीं हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सभी नागरिकों को जहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी है, वहीं इस आज़ादी के दुरुपयोग करने पर सख्त कानून भी हैं। भारत की संसद में साइबर क्राइम को रोकने के लिए सन् 2000 में इनफॉर्मेशन एक्ट यानी आईटी एक्ट बनाया गया था। इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी यानी आईटी एक्ट-2000 की धारा-67 में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपत्तिजनक पोस्ट करता है या फिर शेयर करता है, तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके समाज में नफरत फैलाने या किसी की भावना आहत करने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईटी की धारा-67 के तहत कार्रवाई की जाती है। इस धारा-67 में कहा गया है कि अगर कोई पहली बार सोशल मीडिया पर ऐसा करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल की जेल हो सकती है। साथ ही 5 लाख रुपये का ज़ुर्माना भी देना पड़ सकता है। इतना ही नहीं, अगर ऐसा अपराध फिर दोहराया जाता है, तो मामले के दोषी को 5 साल की जेल हो सकती है और 10 लाख रुपये तक का ज़ुर्माना देना पड़ सकता है। वैसे इसके बावजूद सोशल मीडिया में घृणा भरे मैसेज भरे रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इस तरह के संदेशों फैलाव में बड़ा रोल निभाया है। अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमा किसी कानून का उल्लंघन नहीं करने और दूसरे को आहत या नुकसान नहीं पहुँचाने की शर्त के साथ है; लेकिन इसके बावजूद काफी कुछ गलत हो रहा है। कानून कहता है कि अगर आप फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर किसी भी तरह का आपत्तिजनक, भड़काऊ या नफरत पैदा करने वाली पोस्ट या वीडियो या फिर तस्वीर शेयर करते हैं, तो आपको जेल के साथ-साथ ज़ुर्माना भी भरना पड़ सकता है। कानून के मुताबिक, जो धर्म, नस्ल, भाषा, निवास स्थान या फिर जन्म स्थान के आधार पर समाज में नफरत फैलाने और सौहार्द बिगाडऩे की कोशिश करते हैं, उनके खिलाफ आईपीसी की धारा-153(ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है। कानून के कुछ जानकार कहते हैं कि आज देश में राजनीतिक दल भी नफरत फैलाने वाले संदेशों को बढ़ावा देते हैं।

विदेशों में है सख्त कानून

भारत में सोशल मीडिया पर फर्ज़ी खबरों, घृणास्पद संदेशों पर लगाम कसने के लिए भारत में कवायद तो खूब हुई है, लेकिन इसका ज़्यादा असर हुआ नहीं है। जबकि दूसरे देशों में इसके लिए सख्त कानून हैं। रूस में मार्च, 2019 से कानून बन चुका है कि अगर वहाँ किसी प्रकाशन (समाचार पत्र) / व्यक्ति / संस्था / कम्पनी द्वारा देश की या किसी की छवि खराब करने वाली कोई भी फर्ज़ी खबर या सूचना फैलायी जाती है, तो ऐसा करने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और सज़ा तथा ज़ुर्माना दोनों लागू होंगे। इसी तरह जर्मनी में नेटवर्क इफोर्समेंट एक्ट या नेट्जडीजी कानून सभी कम्पनियों और दो लाख से ज़्यादा रजिस्टर्ड सोशल मीडिया यूजर्स पर लागू होता है। इसके तहत कम्पनियों को कंटेंट सम्बन्धी शिकायतों का रिव्यू करना आवश्यक है। रिव्यू में कंटेंट गलत या गैर-कानूनी होने पर उसे 24 घंटे के भीतर हटाना होगा अन्यथा दोषी व्यक्ति पर 50 लाख यूरो (38.83 करोड़ रुपये) और किसी निगम अथवा संगठन पर 5 करोड़ यूरो (388.37 करोड़ रुपये) तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है। यह कानून उन लोगों पर भी लागू होता है, जो इंटरनेट पर नफरत भरे भाषण वायरल करते हैं। अप्रैल, 2019 में यूरोपीयन संघ की परिषद् ने भी सोशल मीडिया, इंटरनेट सेवा प्रदाता कम्पनियों और सर्च इंजनों पर लगाम कसने के लिए कॉपीराइट कानून में बदलाव करके ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को उसके यूजर्स द्वारा किये जा रहे पोस्ट के प्रति ज़िम्मेदार बनाने वाले कानून को मंज़ूरी प्रदान की थी। ऑस्ट्रेलिया ने फर्ज़ी खबरें रोकने के लिए एंटी-फेक न्यूज लॉ बनाया है, जिसके तहत फर्ज़ी खबरें फैलाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से उसके सालाना टर्न ओवर का 10 फीसदी ज़ुर्माना वसूले जाने के साथ-साथ उसे तीन साल की सज़ा हो सकती है। सोशल मीडिया कम्पनी के आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले, हत्या, दुष्कर्म और अन्य गम्भीर प्रकृति के अपराधों से सम्बन्धित पोस्ट हटाने में असफल होती है, तब उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। और पोस्ट डालने वाले व्यक्ति पर 1,68,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (80.58 लाख रुपये) और किसी निगम या संगठन पर 8,40,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (4.029 करोड़ रुपये) तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है। सन् 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के दखल का आरोप लगने के बाद फ्रांस में अक्टूबर, 2018 में दो एंटी-फेक न्यूज कानून बनाये गये, जिनके तहत उम्मीदवारों और राजनीतिक पार्टियों को फर्ज़ी खबरों के खिलाफ कोर्ट की शरण में जाने की अनुमति है। चीन ने फर्ज़ी खबरों को रोकने के लिए पहले से ही कई सोशल मीडिया साइट और इंटरनेट सेवाओं जैसे ट्वीटर, गूगल और व्हाट्स एप आदि को प्रतिबन्धित कर रखा है। चीन के पास हज़ारों की संख्या में साइबर पुलिस कर्मी हैं, जो सोशल मीडिया पोस्ट पर नज़र रखते हैं। मलेशिया में फर्ज़ी खबरें रोकने के लिए सबसे सख्त कानून है। मलेशिया में फर्ज़ी खबरें फैलाने पर 5,00,000 मलेशियन रिंगित (84.57 लाख रुपये) का ज़ुर्माना या छ: साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान है। सिंगापुर में जनता में भय फैलाने, माहौल खराब करने वाले या किसी भी तरह की फर्ज़ी खबरें फैलाने वाले के लिए 10 साल जेल की सज़ा का प्रावधान है। फर्ज़ी खबरें रोकने में नाकाम रहने वाली सोशल मीडिया साइट्स पर 10 लाख सिंगापुर डॉलर (5.13 करोड़ रुपये) का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।

पक्षपात, झूठी खबरों और नफरत-भरी बातों को हम कठिन संघर्ष से हासिल हुए लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने खुलासा किया है कि फेसबुक इस तरह के झूठ और नफरत फैलाने का काम करती आयी है और उस पर सभी भारतीयों को सवाल उठाना चाहिए। भारत में फेसबुक और वॉट्स एप पर भाजपा और आरएसएस का नियंत्रण है।

राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता

द वॉल स्ट्रीट जर्नल में जो खबर छपी है, वह फेसबुक का विषय है। फेसबुक अपना तय करे, उनकी अपनी पॉलिसी है; उनका अपना सिस्टम है। भाजपा के समर्थन में लिखे गये 700 से अधिक पोस्ट फेसबुक ने हटा दिये। अगर पब्लिक प्लेटफॉर्म है, तो लोगों को अपनी बात रखने का अधिकार है। इस कड़ुवे सच को हमें समझना चाहिए। कुछ लोग समझते हैं कि पब्लिक प्लेटफॉर्म पर उनकी मोनोपॉली होनी चाहिए, भले ही उनका राजनीतिक वजूद खत्म हो गया है। सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ‘आर-पार की लड़ाई होगी, देशवासी प्रधानमंत्री को डण्डे मारेंगे’ जैसे घृणा भरे भाषण याद रखें। इसके बारे में क्या कहा जाए? देश की जनता उसका जवाब देगी।

रविशंकर प्रसाद कानून मंत्री, भारत 

फेसबुक हमेशा से एक खुला, पारदर्शी और गैर-पक्षपातपूर्ण मंच रहा है, जहाँ लोग खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त कर सकते हैं। हमारे ऊपर पूर्वाग्रह का आरोप लगाया गया है कि हम अपनी नीतियों को पक्षपातपूर्ण तरीके से लागू करते हैं। हम पूर्वाग्रह के आरोपों को गम्भीरता से लेते हैं और घृणा व कट्टरता की निंदा करते हैं। फेसबुक के पास सामग्रियों को लेकर एक निष्पक्ष दृष्टिकोण है और वह अपने सामुदायिक मानकों पर दृढ़ता से अमल करती है। हम किसी की राजनीतिक स्थिति, पार्टी सम्बद्धता या धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वास की परवाह किये बिना विश्व स्तर पर इन नीतियों को लागू करते हैं।

अजीत मोहन

फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट/

मैनेजिंग डायरेक्टर

पोस्ट की जा रही सामग्री में यहाँ तक कि मेरी तस्वीरें भी शामिल हैं और मुझे जान से मारने की और शारीरिक नुकसान पहुँचाने की धमकी दी जा रही है और मुझे अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा का डर है। एक खबर के आधार पर सामग्री में मेरी छवि भी धूमिल की गयी है और मुझे अपशब्द कहे जा रहे हैं, साइबर धौंस दी जा रही है और मुझ पर ऑनलाइन फब्तियाँ कसी जा रही हैं। कई लोग मुझे धमकी दे रहे हैं, अश्लील टिप्पणी कर रहे हैं और ऑनलाइन पोस्ट के ज़रिये बदनाम कर रहे हैं। खबर आने के बाद से मुझे धमकियाँ दे रहे हैं।

अंखी दास

फेसबुक की पब्लिक पॉलिसी, भारत,

दक्षिण और मध्य एशिया निदेशक

फेसबुक पर बवाल

डिजिटल मीडिया के दिग्गज प्लेटफॉर्म फेसबुक के भारत में 340 मिलियन (34 करोड़) से अधिक और व्हाट्स एप के 400 मिलियन (40 करोड़) उपयोगकर्ता हैं। मगर यह वैश्विक दिग्गज कम्पनी फेसबुक तब सवालों के घेरे में आ गयी, जब अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया कि फेसबुक ने भारत में अपने व्यापारिक हित बचाने के लिए सत्तारूढ़ दल के एक विधायक के घृणा और उन्माद फैलाने वाले संदेशों को लेकर नरमी दिखायी है। क्योंकि भारत फेसबुक के लिए एक बड़ा बाज़ार है और लॉकडाउन के दौरान 22 अप्रैल, 2020 को इसने घोषणा की थी कि उसका इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए रिलायंस जियो में 9.99 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 5.7 बिलियन डॉलर (43,574 करोड़ रुपये) का निवेश करने का इरादा है।

अब कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता वाली सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी संसदीय समिति ने फेसबुक के प्रतिनिधियों को 2 सितंबर को तलब किया है। इधर, सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति के दो सदस्यों केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौर और भाजपा के ही नेता निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष इस बात को लेकर आपत्ति जतायी कि थरूर ने पैनल के सदस्यों के साथ चर्चा किये बिना समिति के समक्ष फेसबुक को बुलाने के अपने इरादे को ट्वीट करके नियम तोड़ा है। फेसबुक के प्रतिनिधियों के अलावा समिति ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रतिनिधियों को भी नागरिकों की सुरक्षा के अधिकारों और सामाजिक/ऑनलाइन समाचार मीडिया प्लेटफार्मों के दुरुपयोग को रोकने और डिजिटल स्पेस में महिला सुरक्षा पर विशेष ज़ोर देने जैसे विषय पर चर्चा करने के लिए 2 सितंबर को मौज़ूद रहने के लिए कहा है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब यह सुनिश्चित करने के लिए कि फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म राजनीतिक तटस्थता बनाये रखते हैं, सरकार और विपक्ष को राष्ट्रीय हित में एकजुट होना चाहिए था; लेकिन दोनों ने एक-दूसरे के विपरीत पक्ष लिया है। फेसबुक एक मीडिया कम्पनी है और यह कानून के दायरे में आती है। उसे एक मीडिया कम्पनी की तरह ही मानने और उसके मामले में कानून के शासन को लागू करने की आवश्यकता है। द वॉल स्ट्रीट जर्नल (डब्ल्यूएसजे) की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि कथित तौर पर कंटेंट का ध्रुवीकरण करके, बेहद सफल कम्पनी ने नैतिकता और सामग्री की तटस्थता के मुकाबले व्यावसायिक हितों को तरजीह दी है। फेसबुक के सह संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क एलिअॅट जुकरबर्ग ने यह स्पष्टीकरण दिया है कि भारतीय नागरिकों के सामाजिक सरोकारों को फेसबुक के कथित व्यावसायिक हितों के लिए क्यों खारिज कर दिया गया? जो एक क्रूर एकाधिकार है और भारतीय डिजिटल मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र में फैला है। पारम्परिक भारतीय मीडिया ने हमेशा नियामक उपायों और नैतिक प्रतिबद्धताओं के कारण अपने प्लेटफार्मों को नफरत से दूर रखा है। हालाँकि यहाँ फेसबुक सिर्फ भारत में पैसा कमाने के लिए गलत हो गया।

रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक जैसी एक डिजिटल मीडिया कम्पनी, जो व्हाट्स एप और इंस्टाग्राम की भी मालिक है; ने घृणास्पद सामग्री के प्रति आँखें मूँद लीं, जिससे भारत जैसे अच्छे लोकतंत्र में सौहार्द और सामंजस्य के लिए खतरा पैदा हो गया। यह दूसरों की तरह एक डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म है और इसे भारत के अन्य मीडिया हाउसों की तरह नियामक दायित्वों के तहत आना चाहिए। फेसबुक में दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी के विचारों को प्लेटफॉर्म देने की क्षमता है और यह निगरानी के तहत आती है। लिहाज़ा उसे जीवंत लोकतंत्र की खातिर अवश्य ही कानून के सामने तलब किया जाना चाहिए।

ऑडियो क्लिप से पढ़ रहे ग्रामीण बच्चे

टुपलाल दास की स्पष्ट हिन्दी में आवाज़ सुनायी देती है। अपने दर्शकों का अभिवादन करने के बाद वह खुद का परिचय बिहार के जमुई ज़िले में स्थित संथाली युवा क्लब लाहंती के सदस्य के रूप में देते हैं। दो मिनट से अधिक समय तक चलने वाले एक ऑडियो संदेश में वह स्कूल के छात्रों को समझाते हैं कि हाथ धोना अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने की कुंजी है; खासकर कोरोना के समय में। एक अन्य ऑडियो में दास भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के बारे में बात करते हैं।

इस तरह के छोटे सार्थक ऑडियो क्लिप छात्रों को स्कूल बन्द होने के दौरान लैपटॉप, इंटरनेट और स्मार्ट फोन जैसे सीखने के संसाधनों के अभाव में जमुई के चकाई ब्लॉक के गाँवों में पढ़ाई से जुड़े रहने में मदद कर रहे हैं। लाहंती के सदस्यों द्वारा रिकॉर्ड किये गये, इन ऑडियोज को एक समुदाय आधारित रेडियो पहल चिराग वाणी के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। चकाई निवासी दास चार महीने पहले ही लाहंती में शामिल हुए थे।

ऑडियो क्लिप, जो ज़्यादातर प्राथमिक विद्यालय संथाली के छात्रों को लाभान्वित कर रहे हैं; के बारे में दास कहते हैं कि शिक्षा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत जर्जर स्थिति में है और अक्सर शिक्षक छात्रों के साथ उचित तरीके से नहीं जुड़ते हैं। दास कहते हैं- ‘संथाली छात्रों को स्कूलों में उनके समुदाय की परम्परा, इतिहास और संस्कृति के बारे में नहीं पढ़ाया जाता है। मैं उन्हें बहुमूल्य जानकारी देने और ऑडियो संदेशों को दिलचस्प बनाने की पूरी कोशिश करता हूँ।’

चिराग वाणी की अवधारणा सुनने के माध्यम से सीखने पर आधारित है। अधिकांश उपयोगकर्ता पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं। यह गैर-स्मार्ट फोन उपयोगकर्ताओं के लिए मिस्ड कॉल आधारित तकनीक है, जिसमें स्किप और फीडबैक जैसे विकल्प हैं।

संथाली और हिन्दी दोनों में प्रसारित होने वाली ऑडियो क्लिप को सुनने के लिए किसी भी बेसिक फोन से 9278702369 नम्बर पर मिस्ड कॉल देना होता है। रोज़ाना सुबह 10:00 से 12:00 बजे तक का समय शिक्षा को समर्पित होता है।

आईवीआरएस तकनीक का उपयोग

जैसा कि संथाल बच्चों को स्कूलों में हिन्दी सीखने और घर में अपनी मातृभाषा संथाली बोलने के लिए मजबूर किया जाता है; कई बार कक्षाओं में संचार का अंतराल उत्पन्न होता है। ऐसी स्थितियों में शिक्षक यह समझने में विफल रहते हैं कि छात्र क्या संदेश देना चाहते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए चकाई में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था सिंचन फाउंडेशन ने तालाबन्दी की घोषणा से पहले दो घंटे के लिए अतिरिक्त स्कूली कक्षाओं को व्यवस्थित करने में मदद की। इसके हिस्से के रूप में कुछ लाहंती क्लब के सदस्य संथाली बच्चों की भाषा की बाधा को दूर करने में मदद करते थे। चकाई के ज़बरदाहा और गोविंदपुर गाँवों में इन कक्षाओं को सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के पूरे सहयोग के साथ आयोजित किया जाता है और इनका मुख्य लक्ष्य प्राथमिक छात्र होते हैं।

सरकारी स्कूल के शिक्षक मनोज कुमार बर्नवाल ने कहा कि तालाबन्दी से पहले लाहंती क्लब स्कूल समाप्त होने के बाद कुछ समर्पित सदस्यों की मदद से छात्रों को संथाली सिखाने के लिए कक्षा लगाता है। वह कहते हैं- ‘यह सबसे ज़्यादा मददगार है। क्योंकि बच्चे माता-पिता के साथ घर पर संथाली बोलते हैं।’ मनोज कहते हैं कि भले उनका स्कूल संथाली क्षेत्र में है, लेकिन शिक्षक भाषा नहीं जानते हैं। सिंचन के संस्थापक गौतम बिष्ट ने बताया कि कई संथाली बच्चे हिन्दी के साथ संघर्ष करते हैं। कभी-कभी शिक्षक यह समझने में असफल रहते हैं कि छात्र क्या संदेश देना चाहते हैं। उदाहरण के लिए वॉशरूम जाने की अनुमति जैसी कुछ बुनियादी बातें। उन्होंने कहा कि छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों की मदद के लिए संथाली से हिन्दी और संथाली से अंग्रेजी शब्दकोश तैयार किये गये हैं। बिष्ट ने कहा कि हमने अतिरिक्त कक्षाओं के तहत चकाई के चार गाँवों में 180 छात्रों को शामिल किया।

हालाँकि कोरोना वायरस के कारण स्कूल बन्द होने के बाद इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सिस्टम (आईवीआरएस) तकनीक को ऑडियो क्लिप की मदद से छात्रों को पढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया और पहल के लिए लाहंती क्लब के सदस्यों को इससे जोड़ा गया। बिष्ट के अनुसार, संथाल शिक्षाशास्त्र रचनात्मक रूप से शिक्षण के लिए कविताओं, कहानियों, चुटकुलों, वार्तालाप, नृत्य, संगीत, गीत और दीवार चित्रों का उपयोग करता है। उनके मुताबिक, शुरुआत में हमने इतिहास को चुना; क्योंकि यह मूल रूप से कहानी है और इसे आसानी से ऑडियो क्लिप के माध्यम से सुनाया जा सकता है। अब इसमें भूगोल, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान के पाठों को शामिल किया गया है। हर हफ्ते छ: ऑडियो रिकॉर्ड किये जाते हैं। हम प्रत्येक ऑडियो के अन्त में प्रतिक्रिया भी माँगते हैं।

आईवीआरएस सिस्टम में प्रति सप्ताह लगभग 800 कॉल आती हैं। कक्षा 6 का छात्र समेल बेसरा नियमित रूप से इन क्लिपों को सुनता है। फितकोरिया गाँव के कक्षा 8 के छात्र पंकज किस्कू ने कहा कि यह क्लिप कई महत्त्वपूर्ण चीज़ों की जानकारी देती है, जो स्कूलों में नहीं पढ़ायी जाती हैं। कक्षा 4 की छात्रा काजल हांसदा को हिन्दी की कहानियों को संथाली में सुनना बहुत पसन्द है; जबकि कक्षा 3 की छात्रा अनीता मरांडी को समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले पर बनाया गया एक ऑडियो बहुत प्यारा लगा।  लाहंती की सदस्य कुसुम हांसदा ने कहा- ‘कोई भी किसी भी समय कॉल कर सकता है और निर्धारित छात्र समय के अलावा भी इन ऑडियो को सुन सकता है।’

तालाबन्दी के दौरान बच्चों को सीखने में मदद करने वाले सिंचन के सह-संस्थापक शुवाजीत चक्रवर्ती ने कहा कि ग्रामीण छात्रों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है; क्योंकि उनके पास पाठ (कक्षा) के सम्पर्क में रहने के लिए सीमित विकल्प हैं। इसलिए इस संकट की घड़ी में वे ऑडियो क्लिप की मदद लेना चाहते हैं। हम एक मॉडल विकसित कर रहे हैं, जो भविष्य में यदि सरकार चाहे तो वह इसका उपयोग कर सकती है। हमारा सपना इस मॉडल को अन्य संथाल बहुल क्षेत्रों के साथ-साथ झारखण्ड में संथाल परगना में भी पहुँचाना है। लेकिन हम उचित मूल्यांकन के बिना तुरन्त विस्तार नहीं कर रहे हैं। चकाई के अलावा पश्चिम बंगाल के समर्पित सदस्य, फेसबुक पर लाहंती से जुड़कर ऑडियो क्लिप भी रिकॉर्ड कर रहे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं सिलीगुड़ी से बीटेक के छात्र बिश्वजीत हेम्ब्रोम। हेम्ब्रोम ने वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन पर एक ऑडियो बनाया है। वह बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ सार्थक योगदान देने के लिए खुद को सम्मानित महसूस करते हैं।

एडिसन के द्वारा आइजैक न्यूटन और अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों पर बनाये ऑडियो की छात्रों ने सराहना की है। उन्होंने इतिहास पर ऑडियो संदेश मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और सिंधु घाटी सभ्यता को भी छुआ है। बच्चों को सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू जैसे प्रमुख संथाल नेताओं के बारे में भी बताया जाता है; जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संथाल विद्रोह में भाग लिया था। इसके अलावा उन्हें फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू जैसी महिला नेताओं के बारे में भी बताया गया है। एक ऑडियो रिकॉर्ड करने के लिए लाहंती क्लब के सदस्य प्रेम बेसरा को तीन दिन तक का समय लगता है। इस तरह की पहल यह सुनिश्चित करती है कि संथाल छात्र आगे बढ़ें और समाज में आगे रहें। उन्होंने कहा कि जैसा कि मैंने खुद हिन्दी के खराब ज्ञान के कारण स्कूल में भाषा की बाधा का सामना किया; मैं समस्या को अच्छी तरह समझता हूँ।

कविता मरांडी, जिन्होंने ज़्यादातर इतिहास के पाठ रिकॉर्ड किये हैं और संथाली में हिन्दी कहानियाँ सुनायी हैं; ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में छात्र स्मार्ट फोन और इंटरनेट के माध्यम से सीख रहे हैं। लेकिन गाँवों में आर्थिक तंगी के कारण ज़्यादातर लोगों के पास इन सुविधाओं का अभाव है। इसलिए ये बच्चे ऑडियो पढ़ाई में रुचि लेते हैं, जब कक्षाएँ आयोजित नहीं की जाती हैं।

उन्होंने कहा कि हमें ध्यान से अपने विषयों को चुनना होगा; क्योंकि पाठ्य पुस्तकों में कई अध्याय होते हैं। यह भी सुनिश्चित करना है कि बच्चे ऊब न जाएँ; क्योंकि यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। रिकॉर्डिंग से पहले मैं विषय को पढ़ती हूँ, संथाली में अपना ऑडियो संदेश लिखती हूँ। फिर मैं इसे दिलचस्प तरीके से बताने के तरीकों के बारे में सोचती हूँ। मैंने अपने फोन पर रिकॉर्डिंग के दौरान बीच-बीच में गाने और संवाद भी डाले हैं।

मरांडी ने 10-15 ऑडियो क्लिप बनायी हैं; जो प्रसारण होने से पहले बिष्ट को भेजी जाती हैं। हांसदा अक्सर रिकॉर्डिंग करते समय अपनी खूबसूरत आवाज़ में गाती हैं और अब तक 25 से अधिक क्लिप बना चुकी हैं। एक ऑडियो में वह महात्मा गाँधी और संथाली में स्वतंत्रता संग्राम के बारे में बात करती हैं और गीत के साथ शुरुआत करती हैं। मोबाइल वाणी, बाल अधिकार और लिंग की निदेशक स्योनी चटर्जी बताती हैं कि मोबाइल वाणी द्वारा चलाये जाने वाले चिराग वाणी के माध्यम से ग्रामीण भारत के लिए एक आवाज़-आधारित सामाजिक नेटवर्किंग है, जो रिकॉर्ड के साथ-साथ सुन सकता है। यह दो तरफा एक संचार प्रणाली है।

बिष्ट कहते हैं कि हालाँकि कॉल करने वाले एक टोल-फ्री नम्बर का उपयोग करते हैं, जिसमें मिस्ड कॉल सिस्टम भी तैयार किया गया है। क्योंकि गाँवों में ज़्यादातर लोगों को यह गलत धारणा है कि उनसे बाद में इस (टोल फ्री ) कॉल के पैसे वसूले जाएँगे। जबकि जून तक ऑडियो सुनने में पाँच मिनट का औसत समय लगा था, अब यह समय सात मिनट है। उधर चक्रवर्ती ने बताया कि करीब 400 छात्र नियमित रूप से चिराग वाणी के माध्यम से कक्षाओं में भाग ले रहे हैं। इसके अलावा आईवीआरएस सर्वर हमें बताता है कि लगभग 4,000 बच्चों और उनके माता-पिता ने इस मंच पर कॉल की थी।

फेसबुक के दुरुपयोग पर सियासी घमासान

पिछले दिनों जिस प्रकार देश में फेसबुक और व्हाट्स एप को लेकर सियासी खेल खेला गया, उसका पटाक्षेप हो गया है। इसके चलते फेसबुक अब सियासी रण का मुद्दा बना हुआ है। दरअसल अब राजनीतिक लोग इस कदर निजी स्वार्थ में फँसते जा रहे हैं कि वे जनमामस को मिलने वाले अधिकारों को दरकिनार करने पर आमादा हैं। आज देश में सत्ता का बेहिसाब फायदा न उठाकर विकास की राजनीति करने वाले कम ही हैं। एक दौर था, जब नेता लोगों से मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान करते थे, जिससे वे लोगों के बीच लोकप्रिय भी होते थे। लेकिन अब अधिकतर नेता नयी तकनीक के माध्यम से एक-दूसरे के खिलाफ साज़िशें कर रहे हैं। राजनीतिक रोटियाँ सेंकने और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर सामने वाले को नीचा दिखाने में लगे हैं।

फेसबुक पर उठे ताज़ा विवाद इसी का नतीजा है। तहलका संवाददाता ने इस मसले पर कई नेताओं से बात की, तो उन्होंने एक-दूसरे दल पर आरोप-प्रत्यारोप लगा अपना-अपना पल्ला झाड़ लिया। दरअसल फेसबुक को लेकर विवाद अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक खबर छपने के बाद शुरू हुआ। अखबार ने खुलासा किया है कि भाजपा के कुछ नेताओं ने फेसबुक और व्हाट्स एप का इस्तेमाल अपने फायदे और हिंसा भड़काने के लिए किया है; जो फेसबुक नियमों का सरासर उल्लघंन है। अखबार की रिपोर्ट में इस बात का साफ दावा किया गया है कि तेलगांना के विधायक टी. राजा सिंह की नफरत फैलाने वाली पोस्ट पर फेसबुक ने कोई कार्यवाई इसलिए नहीं की, क्योंकि कम्पनी के व्यापारिक हित जुड़े हैं और ऐसा करना उसे काफी नुकसान पहुँचा सकता था। ऐसे में कांग्रेस का चिन्तित और सत्ता पक्ष पर हमलावर होना स्वाभाविक है। वैसे गौर करें तो इसका सम्बन्ध देश के हर नागरिक से जुड़ा है; क्योंकि फेसबुक और व्हाट्स एप की पहुँच तकरीबन हर नागरिक तक है। फेसबुक एक ऐसा खुला मंच है, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी और सूचनाओं से जुड़ा है। लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी का पैरोकार माना जाने वाला सोशल मीडिया का यह मंच आज तमाम सवालों में घिरा है। इस समय भारत में लगभम 34 करोड़ फेसबुक और 40 करोड़ व्हाट्स एप उपभोक्ता जुड़े हुए हैं।

इसलिए फेसबुक के लिए भारत एक बड़ा बाज़ार है और उसकी यहाँ से मोटी कमायी होती है। इस लिहाज़ से सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो इस बात पर भी नज़र रखे कि सोशल मीडिया चलाने वाली कम्पनियाँ किस तरह से कितनी कमायी कर रही हैं? उसका लेखा-जोखा भी पूरे देश की नज़र में होना चाहिए। फेसबुक पर उठे विवाद पर कानून के जानकार एडवोकेट पीयूष जैन का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद-19 यदि हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है, तो हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अनुच्छेद-19 (2) हमें आज़ादी के साथ बंदिशों में रखते हुए हमारी ज़िम्मेदारियाँ भी तय करता है। लेकिन आज की सियासत में बहुत-से लोग न तो उत्तरदायित्व समझते हैं और न ही उनका निर्वहन कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों द्वारा कोरोना-काल में ध्यान भटकाने का काम किया जा रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ट्वीट करके भाजपा तथा आरएसएस पर आरोप लगाये हैं कि भारत में फेसबुक और व्हाट्स एप के ज़रिये फर्ज़ी खबरें और नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगाया है कि पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध पर उन्होंने झूठ बोला है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हर किसी को भारतीय सेना की क्षमता और शौर्य पर विश्वास है, सिर्फ प्रधानमंत्री को छोड़कर; उनकी कायरता ने चीन को हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की अनुमति दी है। मगर वह किसी को लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। उन्होंने इस मामले पर लोगों से सवाल उठाने की भी अपील की है। वहीं, कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग को पत्र लिखकर मामले की उच्चस्तर पर जाँच कराने की माँग की है। इतना ही नहीं कांग्रेस ने भारत और दक्षिण एवं मध्य एशिया में फेसबुक के लिए लोकनीति की निदेशक अंखी दास के खिलाफ भी मोर्चा खोला है। कांग्रेस के युवा नेता अमरीश रंजन का कहना है कि फेसबुक के माध्यम से जो देश में भाईचारे और आपसी सौहार्द को खत्म करने का काम किया जा रहा है, उसे कांग्रेस बर्दास्त नहीं करेगी।

कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा ने कहा कि फेसबुक को कुछ कहने पर केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद क्यों भड़क जाते हैं? जबकि उन्हें इसका जवाब देना चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके। वहीं भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद का कहना है कि राहुल गाँधी लूजर (ढीले) हैं। जो लोग अपनी ही पार्टी के लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते, वो अब भाजपा और आरएसएस पर पूरी दुनिया को कंट्रोल करने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले डाटा को हथियार बनाने के लिए राहुल गाँधी को कैंब्रिज एनालिटिका और फेसबुक के साथ गठजोड़ करते हुए पकड़ा गया था, और आज वह भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं। वहीं अंखी दास ने दिल्ली पुलिस की साइबर सेल में कुछ लोगों पर उन्हें जान से मारने की धमकी देने और उनकी फोटो वायरल करने का मामला दर्ज कराया है। बता दें कि फेसबुक को संसदीय समिति के सामने बुलाने पर सांसदों के टकराव की स्थिति  है। कांग्रेस के सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली सूचना प्रौद्योगिकी मामलों की संसद की स्थायी समिति द्वारा फेसबुक से जवाब माँगने पर सियासी घमासान मच गया है। समिति के कुछ सदस्यों के विरोध पर कांग्रेस का कहना है कि क्या ये सदस्य फेसबुक को बचाना चाहते हैं। शशि थरूर का कहना है कि यह विषय संसदीय स्थायी समिति के अधिकार क्षेत्र में है। हमारी संसदीय समिति सामान्य मामलों में नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और ऑनलाइन न्यूज मीडिया प्लेटफॉर्म के दुरुप्रयोग पर विचार करेगी, ताकि सत्य सामने आ सके।

इधर इस विवाद में आम आदमी पार्टी ने कड़ा रुख अपनाते हुए फेसबुक को समन भेजने का फैसला लिया है। पार्टी विधायक राघव चड्ढा का कहना है कि फेसबुक अधिकारियों के खिलाफ बहुत सारी शिकायतें मिल रही हैं। फिर भी फेसबुक जान-बूझकर भड़काऊ पोस्ट के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। दिल्ली विधानसभा की शान्ति एवं सद्भाव समिति ने भी मामले पर तत्काल संज्ञान लेते हुए फेसबुक अधिकारियों को समन भेजने का फैसला लिया है। इसी सम्बन्ध में फेसबुक के ज़िम्मेदारों, खासकर फेसबुक की वरिष्ठ अधिकारी अंखी दास की समिति के समक्ष मौज़ूदगी सुनिश्चित करने को कहा गया है।

हेट स्पीच को लेकर उठे विवाद पर फेसबुक ने सफाई देते हुए कहा है कि दुनिया भर में हमारी नीतियाँ एक जैसी हैं। हम किसी की भी राजनीतिक हैसियत या पार्टी के जुड़ाव को देखे बिना नफरत और हिंसा फैलाने वाले भाषणों, खबरों पर अंकुश लगाते हैं। मानते हैं कि इस दिशा में अभी और भी कुछ करने की ज़रूरत है।

इधर, इस विवाद पर साइबर विशेषज्ञ आर.के. राज का कहना है कि जब एक रहस्य खुलता है, तो अनेक रहस्यों का उदय होता है। ऐसा ही फेसबुक और व्हाट्स एप के विवाद में हुआ है। वैसे डाटा को एकत्रित करने का खेल पुराना है। कभी-कभार इस मामले में आवाज़ तो उठती रही है। पर यह मामला राजनीतिक पक्षधरता से जुड़ा है; इसलिए इतना हो-हल्ला मचा है और मामले में गम्भीरता दिखायी जा रही है। राज का कहना है कि फेसबुक, व्हाट्स एप और ट्विटर जैसे प्रभावशाली सूचना माध्यमों पर भी हमें हर पल पैनी नज़र रखनी होगी, ताकि फेसबुक जैसी कोई घटना लोकतांत्रित प्रक्रिया को प्रभावित न कर पाये और भारतीय समाज को कोई नुकसान न हो पाये। सोशल मीडिया (फेसबुक) से जुड़ा एक चिन्ताजनक मुद्दा फर्ज़ी खबरों का जाल भी है; जिसकी वजह से देश में कई जगहों पर हिंसा तक भड़की है। ऐसे में इस समय फर्ज़ी खबरों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है; न कि फेसबुक को सियासी हथियार बनाने की। वैसे भी फेसबुक की विश्वनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। वहीं कई देशों में सत्तारूढ़ दलों की ओर से फेसबुक तरफदारी करने और उसे राजनीतिक फायदा पहुँचाने के आरोप भी लगते रहे हैं।