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व्यवसायीकरण की ओर शिक्षा

किसी भी देश की तरक्की में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। कहा भी गया है कि शिक्षित राष्ट्र, समृद्ध राष्ट्र। लेकिन अगर हम भारत की बात करें, तो यहाँ की दोहरी शिक्षा नीति ने लोगों के दो वर्ग बनाने में बड़ी भूमिका निभायी है। यह दो वर्ग हैं- गरीब वर्ग और अमीर वर्ग। वैसे तो हमारे देश में सम्पन्नता के आधार पर और भी वर्ग बने हुए हैं; लेकिन शिक्षा के लिहाज़ से कहा जा सकता है कि यहाँ अच्छे स्तर की शिक्षा अमीरों के लिए है और निम्न स्तर की शिक्षा गरीबों के लिए है।

यही वजह है कि गरीब और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों के बच्चे या तो बहुत पढ़-लिख नहीं पाते और अगर पढ़-लिख जाते हैं, तो उनकी पढ़ाई का स्तर वो नहीं होता, जो उन्हें एक हाई क्लास जीवन दे सके। वहीं उच्च मध्यम वर्गीय और अमीर परिवारों के बच्चे उच्च स्तर तक अच्छी शिक्षा पाते हैं; फलस्वरूप उन्हें बेहतर से बेहतर नौकरियाँ मिलती हैं, जिसमें उनका मासिक पैकेज कम-से-कम इतना होता है, जो निम्न मध्य वर्ग या गरीब के बच्चे का अच्छे से अच्छा सालाना पैकेज भी नहीं होता। इस तरह दोहरी शिक्षा गरीबी-अमीरी की खाई को लगातार बढ़ाने का काम कर रही है, जिसके लिए सरकारों समेत कई लोग दोषी हैं। इसी तरह सरकारी स्कूलों में स्थायी अध्यापकों की कमी से शिक्षा की नींव कमज़ोर होती जा रही है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों के शिक्षा नीति निर्माताओं को कानूनी और अन्य अड़चनें दूर करके सबसे पहले हर स्तर पर शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की भर्ती का काम प्राथमिकता के साथ पूरा करना होगा, न कि निजीकरण की बात सोचनी होगी।

वैसे भी आज प्राइमरी स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में अध्यापकों की काफी कमी है, जिसके चलते पढ़ाई से लेकर समूची शिक्षण व्यवस्था पर कई सवाल उठते हैं। सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को मिल रही अधकचरा शिक्षा उन्हें वह ज्ञान और कौशल नहीं दे पाती, जिसके दम पर वे अपना अच्छा भविष्य बना सकें।

दूरस्थ शिक्षा का अनियंत्रित विस्तार

शिक्षा की सुविधाएँ बढ़ाने के लिए दूरस्थ शिक्षा प्रणाली शुरू की गयी, ताकि दूर-दराज़ के विद्यार्थियों और नौकरीपेशा लोग भी सरलता से शिक्षा प्राप्त कर सकें। दूरस्थ शिक्षा का भी जिस तरह अनियंत्रित विस्तार हुआ है, उससे शिक्षा की गुणवत्ता को ठेस पहुँच रही है। इसी तरह बिना आवश्यक व्यवस्था के सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाती रही है; लेकिन मात्र कुलपति नियुक्त कर देने और एक कार्यालय बना देने से विश्वविद्यालय नहीं बनता है।

अत्यधिक घातक साबित होगा शिक्षा का निजीकरण

दरअसल अधिकांश सरकारी शिक्षा केंद्र निरंतर उपेक्षा के कारण शिक्षा व्यवस्था एक चक्रव्यूह में फँसी हुई है; जिसका मोटा फायदा गैर-सरकारी शिक्षण संस्थानों को मिल रहा है। शिक्षा माफिया सरकारों की मिलीभगत से सरकारी शिक्षा व्यवस्था में मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है, जिससे शिक्षा का निजीकरण विस्तार पाता जा रहा है। अब केंद्र सरकार ने सरकारी स्कूलों के निजीकरण की मंशा बना ली है। वैसे तो यह बात उड़ती-उड़ती 2016-17 में ही सामने आने लगी थी, लेकिन उसके दो-ढाई साल बाद लोकसभा चुनाव होने के चलते शायद इस कदम पर चर्चा भी नहीं की गयी। 2019 में लोकसभा चुनावों में जीत के बाद फिर से यह मुद्दा उठा, लेकिन तब एनआरसी, सीएए और दिल्ली विधानसभा चुनाव आदि के चलते में मामला दबा रहा। और अब खुलकर स्कूलों के निजीकरण का विषय चर्चा में है। अर्थात् अब यह लगभग साफ ही लग रहा है कि सरकार सरकारी शिक्षण संस्थानों को भी फिजूल खर्च का बोझ जैसा समझकर उसका निजीकरण करने की जुगत में है। ज़ाहिर है कि अगर सरकारी स्कूलों का निजीकरण हुआ, तो इन स्कूलों के अधिकांश मालिक चंद प्रतिष्ठित अमीर लोग और राजनीतिक रूप से रसूखदार लोग इनका अधिग्रहण करेंगे, जैसा कि प्राइवेट शिक्षण संस्थानों पर उनका कब्ज़ा है। फिर वही होगा रेलवे की तरह, सरकार खुद कह देगी कि शिक्षा शुल्क (फीस) पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है और इतना कहते ही रसूखदार लोगों के हाथ में आये स्कूलों में अनाप-शनाप फीस वसूली जाएगी। शिक्षा को इस बाज़ारीकरण से बचाने के लिए सरकार को शिक्षा के निजीकरण की नीति पर ध्यान देना होगा।

गरीब बच्चों से छिन जाएगी शिक्षा

पूरे देश में सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में गरीबों के बच्चे पढऩे जाते हैं। देश की शिक्षा व्यवस्था पहले ही व्यावहारिक सोच से पैदा हुई समस्याओं से जूझ रही है; क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर काफी गिरता जा रहा है। कहीं पढ़ाने के लिए अध्यापक नहीं हैं, तो कहीं पढऩे का सही स्थान। व्यवस्थाओं का अभाव तो सरकारी स्कूल काफी समय से झेलते आ रहे हैं। उस पर अगर बचे-खुचे सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में सौंप दिया, तो व्यापारिक सोच वाले स्कूलों के मालिक मनमाने तरीके से फीस वसूलेंगे और उन्हें कोई रोक नहीं सकेगा। पब्लिक स्कूलों में वसूली जा रही अनाप-शनाप फीस पर रोक न लग पाना इसका सबसे सही उदाहरण माना जा सकता है। ऐसा ही तब होगा, जब सरकारी स्कूलों पर शिक्षा माफिया का कब्ज़ा होगा और ऐसा होने पर गरीबों के बच्चे ही नहीं, निम्न-मध्यम वर्ग के लोगों के बच्चे भी शिक्षा से वंचित रहने लगेंगे। शिक्षा माफिया जिस तरह इस क्षेत्र पर लगातार अधिकार जमाते जा रहे हैं, वैसे-वैसे सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को कमज़ोर किया जा रहा है। निजी तौर पर शिक्षा का बाज़ारीकरण करने वाले माफिया दाखिले से लेकर परीक्षा परिणाम तक मिली छूट का फायदा उठाकर शिक्षा के क्षेत्र में वर्ग-भेद और विषमताएँ पैदा करने से संकोच नहीं करेंगे।

तो पूरे देश में होगा स्कूलों का निजीकरण?

सन् 2017 में मध्य प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों के निजीकरण की योजना तैयार की थी, जिसका वहाँ के अध्यापकों, समाजसेवियों और विपक्ष ने जमकर विरोध किया था। अब केंद्र सरकार भी पूरे देश में सरकारी स्कूलों के निजीकरण की तैयारी में है। भाजपा सरकार तो वैसे भी हर सरकारी विभाग को निजीकरण की ओर ले जा रही है। लेकिन शिक्षा के निजीकरण के मामले में नीति आयोग भी सरकार के साथ है। नीति आयोग ने हाल ही में जारी की एक रिपोर्ट में यह सिफारिश की है। इसमें उसने अपने तीन साल के कार्य एजेंडा में दलील दी है कि खराब शैक्षणिक स्तर वाले सरकारी स्कूलों को निजी हाथों को सौंप दिया जाना चाहिए, जिसमें सार्वजनिक-निजी भागीदारी हो। रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी स्कूलों के निजीकरण में पीपीपी मॉडल की सम्भावना भी तलाशी जा सकती है। इसके तहत निजी क्षेत्र सरकारी स्कूलों को अपनाएँ और प्रति बच्चे के आधार पर उन्हें सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित किया जाए। नीति आयोग ने कहा है कि निजीकरण से उन स्कूलों की समस्या का समाधान होगा, जो काफी खोखले हो गये हैं और उनकी हालत ठीक करने के लिए काफी खर्च होगा।

रिपोर्ट के अनुसार, समय के साथ सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ी है, मगर इनमें प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या घटी है; जबकि निजी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2010-2014 में 13,500 सरकारी स्कूल बढ़े, जबकि इनमें प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या में 1.13 करोड़ की कमी आयी। वहीं निजी स्कूलों में प्रवेश लेने वालों की संख्या में 1.85 करोड़ बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि साल 2014-15 में लगभग 3.7 लाख (36 फीसदी) सरकारी स्कूलों में 50-50 से भी कम छात्र थे। इससे साफ है कि सरकारी स्कूलों की स्थिति खराब हुई है।

सरकारी स्कूलों में सुधार क्यों नहीं करती सरकार

इस मामले में हमने कई अध्यापकों से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन सभी कुछ भी कहने से बचते नज़र आये। नाम न बताने की शर्त पर एक प्रोफेसर ने कहा कि शिक्षा को लेकर सरकार की नीयत में खोंट दिखता है, अन्यथा सरकार सरकारी स्कूलों की चरमराती शिक्षा व्यवस्था को सुधारकर अच्छा कर सकती है। उन्होंने कहा कि जिस देश में बड़े-बड़े अधिकारी, बड़े-बड़े विद्वान, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े गणितज्ञ और बड़े-बड़े खगोल शास्त्री, भू-विज्ञानी सरकारी स्कूलों में शिक्षा हासिल करके निकले हैं, उस देश की शिक्षा व्यवस्था कैसे चौपट हो सकती है? इसके पीछे का सीधा-सा कारण है- लालच का। यह लालच शिक्षा माफिया सरकार और सरकारी लोगों को मलाई खिलाकर बढ़ा रहे हैं। प्रोफेसर कहते हैं कि क्या आज केंद्र सरकार को दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में हो रहे सुधारों से सीख नहीं लेनी चाहिए? सभी जानते हैं कि प्राइवेट स्कूलों में गरीबों के बच्चे किसी हाल में नहीं पढ़ सकते, तो फिर यह तो गरीब बच्चों के हाथ से किताबें छीनने की साज़िश ही हुई न! उन्होंने कहा कि आज भी देश में लाखों गरीबों के पास दो वक्त की रोटी का साधन भी नहीं, तो फिर वे अपने बच्चों को कैसे पढ़ा सकते हैं? इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस सरकार ने आँगनबाड़ी केंद्र खोले थे और स्कूलों में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था की थी; ताकि गरीबों के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सकें। प्रोफेसर ने दावे के साथ कहा कि उस समय सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या तेज़ी से बढ़ी थी; लेकिन मौज़ूदा दौर में स्कूलों में बच्चों को कहीं पानी के साथ रूखी रोटी दी जा रही है, तो कहीं नमक के साथ! क्या ऐसे ही शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त होगी?

हवेली से मिली करोड़ों की चंदन की लकड़ी

मुखबरी के दम पर पुलिस छापेमारी में उत्तर प्रदेश के अमरोहा में चंदन तस्करी के बड़े गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। अमरोहा के लोगों की मानें तो चंदन की लकड़ी की यह तस्करी काफी समय से हो रही थी, जिसका अड्डा यहाँ की मशहूर अनवरी हवेली थी। मौके पर पकड़ी गयी चंदन की लकड़ी की कीमत 50 करोड़ से अधिक बतायी जा रही है। हालाँकि बाद में मौखिक रूप से यह भी कहा गया कि लकड़ी की कीमत एक अरब रुपये के आस-पास है। इतनी बड़ी रकम की चंदन की लकड़ी की बरामदगी का चर्चा अब अमरोहा और आसपास के इलाकों में जमकर हो रहा है। शहर के मोहल्ला हाशमी नगर स्थित दो मंज़िला अनवरी हवेली में की गयी इस छापेमारी को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच और अमरोहा पुलिस ने बड़े गोपनीय तरीके से अंजाम दिया।

अमरोहा पुलिस का कहना है कि 9 अगस्त की शाम को दिल्ली क्राइम ब्रांच की एक टीम अमरोहा पहुँची और अमरोहा में हो रही चंदन की अवैध तस्करी के बारे में बताया। उसके बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम में शामिल इंस्पेक्टर पंकज अरोड़ा, एसआई लक्ष्मण सिंह तथा नौ अन्य पुलिसकर्मियों और अमरोहा पुलिस की एक ज्वाइंट ऑपेरशन टीम ने हवेली में छापेमारी की और दो गोदामों से 145 कुंतल लाल चंदन, सफेद चंदन और खैर की लकड़ी बरामद की, जिसकी बाज़ार में करीब 50 करोड़ कीमत है। इस मामले में मौके पर से अभी तक छ: आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें सभी की भूमिका क्रेता-विक्रेता की थी। वहीं चंदन तस्करी का मास्टर माइंड और उसका बेटा अभी फरार है। पुलिस दोनों की तलाश कर रही है। क्राइम ब्रांच ने इस मामले में कहा है कि क्राइम ब्रांच को 30 जुलाई को सूचना मिली थी कि दिल्ली के गढ़ी मेंदू गाँव का भोले कश्यप नाम का आदमी चंदन की लकड़ी की अवैध तस्करी करता है। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने छापा मारा, जिसमें 1797 किलो लाल चंदन की लकड़ी बरामद की और चंदन लकड़ी की तस्करी करने वाले भोले कश्यप को गिरफ्तार किया गया। कड़ी पूछताछ में भोले कश्यप ने अपने दो साथियों कौशिक कुमार गोदारा और इसरार को गिरफ्तार कर लिया गया है। पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि कश्यप चंदन खरीदता था, जबकि इसरार आंध्र प्रदेश से कादिर नाम के एक शख्स से अवैध तरीके से चंदन की लकड़ी लाता था। इसरार ने पूछताछ में बताया कि वह और उसके साथी चंदन की लकड़ी अमरोहा में शाकिर नाम के शख्स को सप्लाई करते हैं। वहीं अमरोहा पुलिस ने अब तक तीन आरोपियों अरशद अली अंसारी, महमूद आलम अंसारी और मोहम्मद सलमान को गिरफ्तार किया है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि यह हवेली कमर अहमद नाम के एक शख्स की है। पकड़े गये तस्करों में से एक कमर अहमद का दामाद है। यही कमर अहमद और उसका बेटा शाकिर चंदन की लकड़ी की तस्करी के मास्टर माइंड हैं और पूरे गिरोह के मुखिया भी। फिलहाल दोनों ही फरार हैं और पुलिस उनकी तलाश कर रही है। पुलिस ने चंदन की तस्करी करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है। पुलिस के मुताबिक, पाँच लोगों को नामज़द किया गया है।

विदेशों तक है सप्लाई

पुलिस को पूछताछ में पता चला है कि उपरोक्त तस्कर चंदन की लकड़ी की जापान और चीन जैसे देशों तक सप्लाई करते थे। इस तरह से औने-पौने दामों में अवैध तरीके से खरीदकर चंदन की लकड़ी से सभी तस्कर जमकर पैसा कमाते थे। इस मामले में पुलिस लगातार छापेमारी और पूछताछ कर रही है, ताकि गिरोह के दूर-दूर तक के सदस्यों को दबोचा जा सके।

बड़े पैमाने पर होती है चंदन की तस्करी

देश में काफी समय से बड़े पैमाने पर चंदन की लकड़ी की तस्करी होती रही है। चंदन तस्कर वीरप्पन का नाम कौन नहीं जानता है। वह एक कुख्यात बदमाश और बड़े स्तर का चंदन तस्कर था, जिसे बड़ी मुश्किल से सेना ने मार गिराया था। इसके अलावा चंदन की तस्करी के और भी बहुत-से वाकये हैं, जिनमें कई बार तो वन संरक्षकों की मिली-भगत का भी पर्दाफाश हुआ है।

अनेक रोगों की दवा है नींबू

शक्तिवर्धक : उबलते हुए एक गिलास पानी में एक नींबू निचोडक़र पीते रहने से शरीर के अंग-अंग में नयी शक्ति का अनुभव होने लगता है। इससे आँखों की रोशनी तेज़ होती है। मानसिक दुर्बलता, सिर दर्द दूर होता है और अधिक काम करने पर अधिक तथा जल्दी थकावट नहीं होती। इसे बिना शक्कर और बिना नमक मिलाये हल्के-हल्के घूँट लेकर पीना चाहिए।

रक्त और आयु वर्धक : जिन लोगों के शरीर में रक्त यानी खून की कमी हो, उन्हें और टमाटर के रस का उपयोग लाभ पहुँचाता है। वैसे कुछ लोग कहते हैं कि हर रोज़ नींबू का उपयोग करने से आयु बढ़ती है। हालाँकि यह भी कहा गया कि नींबू का अधिक उपयोग नुकसानदायक भी होता है। वैसे यह बात तो हम पहले ही बता चुके हैं कि ज़रूरत से ज़्यादा तो अमृत भी नुकसानदायक हो सकता है।

पाचन तंत्र में फायदेमंद : अगर किसी का भोजन नहीं पचता है और पेट में हमेशा गैस रहती है या भोजन के बाद अथवा सोते समय पेट फूल जाता है; रात को नींद नहीं आती, तो हर रोज़ एक गिलास गर्म पानी में नींबू का रस मिलाकर पीने से काफी फायदा मिलता है। ऐसा करने से विषैले पदार्थ मल-मूत्र द्वारा शरीर से निकल जाते हैं और पाचन शक्ति पुन: सही होने लगती है। अगर किसी को अपच की समस्या हो, तो उसे नींबू के टुकड़े पर नमक डालकर गर्म करके चूसने से आराम मिलता है। इसके अलावा नींबू और अदरक की चटनी का सेवन करने से भूख खुलती है। इसमें हरे धनिये की पत्तियाँ मिलाने से इसका और अधिक फायदा मिलता है। अगर किसी के पेट में दर्द हो, तो 12 ग्राम नींबू का रस, 6 ग्राम अदरक का रस को 6 ग्राम शहद में मिलाकर पी लेने से पेट दर्द में आराम मिलता है। अगर घर में अदरक और शहद न हो तो नींबू के रस में काला नमक और काली मिर्च और जीरे का पाउडर मिलाकर पेट का दर्द ठीक होता है; बशर्ते पेट दर्द का कारण कोई बड़ी बीमारी या किसी अंग के खराब होना न हो। ऐसा करने से पेट के कीड़े भी मरते हैं।

हिचकी : बार-बार हिचकी आने पर एक-एक चम्मच नींबू के रस और शहद में स्वादानुसार काला नमक मिलाकर पीने से हिचकियाँ बन्द हो जाती हैं।

खाँसी : नींबू में नमक, काली मिर्च और शक्कर भरकर गर्म करके चूसने से लाभ होता है। यह नुस्खा श्वास लेने में हो रही परेशानी में भी काम करता है; बशर्ते रोगी को साँस या दमा का रोग न हो।

बवासीर : नींबू के रस को स्वच्छ महीन कपड़े से छानकर उसमें जैतून का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर दो ग्राम की मात्रा में गिलसरीन सिरिंज द्वारा रात को गुदा में प्रवेश कराते रहने से बवासीर की जलन और दर्द दूर होते हैं और मस्से छोटे हो जाते हैं।

ज्वर : ज्वर यानी बुखार, जिसमें रोगी को बार-बार प्यास लगे; होने पर उबलते पानी में नींबू निचोडक़र पिलाने से शरीर का तापमान गिर जाता है और ज्वर हल्का हो जाता है।

सुशांत की मौत के रहस्य से उठेगा परदा?

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले में हर दिन नये-नये मोड़ आते जा रहे हैं। बता दें कि बीते 14 जून को सुशांत सिंह राजपूत अपने बांद्रा स्थित फ्लैट पर मृत मिले थे, जिसे आत्महत्या माना गया था। इसके चलते सुशांत के शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया था। लेकिन सुशांत सिंह राजपूत के परिजनों और प्रशंसकों ने उनकी मौत को हत्या कहा था। इसी के चलते महाराष्ट्र पुलिस को जाँच करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसमें सुशांत की करीबी महिला मित्र, जिससे उनकी शादी भी होने वाली थी; से महाराष्ट्र पुलिस ने पूछताछ की थी। हालाँकि पुलिस ने पूछताछ तो सुशांत के करीबी सभी लोगों से की थी; लेकिन रिया चक्रवर्ती की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध नज़र आने लगी थी। यह अलग बात है कि उनके खिलाफ कोई ठोस सुबूत नहीं मिला है, इसलिए उन पर सुशांत की मौत से सम्बन्धित कोई सीधा आरोप भी नहीं लगा। लेकिन रिया का बीच में गायब रहना उनकी भूमिका को संदेह के घेरे में लाता दिखा। हालाँकि वह 10 जून को सुप्रीम कोर्ट पहुँचीं और उन्होंने कहा कि उन्हें गलत तरीके से फँसाने की कोशिश की जा रही है; सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ बिना सुबूतों के एफआईआर दर्ज करना गलत है।

बता दें कि हाल ही में आरोप लगे थे कि सुशांत की मौत के बाद रिया चक्रवर्ती ने मुम्बई पुलिस के एक अधिकारी से मोबाइल फोन पर चार बार बात की थी। जैसा कि सब जानते हैं कि सुशांत की मौत से छ: दिन पहले 8 जून को उनकी सेक्रेटरी दिशा सालियान की मौत हो गयी थी। क्योंकि उनकी मौत मलाड के जन कल्याण नगर में 14वीं मंज़िल से गिरकर हुई थी, इसलिए कयास लगाये गये कि दिशा ने कूदकर खुदकुशी कर ली। लेकिन यहाँ भी एक नया मोड़ आया, वह यह कि जब दिशा सालियान की मौत हुई, उसके तुरन्त बाद रिया चक्रवर्ती ने सुशांत का फोन नम्बर ब्लैक लिस्ट में डाल दिया था और सुशांत को धमकियाँ देनी शुरू कर दी थीं। पटना में सुशांत के पिता द्वारा दर्ज करायी गयी रिपोर्ट में उन्होंने आरोप लगाया था कि दिशा की मौत के दिन ही रिया चक्रवर्ती सुशांत के घर से सारा सामान लेकर चली गयी थी और सुशांत का नम्बर ब्लॉक कर दिया था।

अगर दूसरे पहलू को देखें, तो जब पटना पुलिस जाँच के लिए मुम्बई गयी, तब महाराष्ट्र पुलिस और वहाँ की सरकार पर उसे जाँच में सहयोग न करने के आरोप लगे। खबरें तो यहाँ तक आयीं कि तथाकथित लोगों द्वारा, जो भीड़ के रूप में थे; पटना पुलिस का रास्ता रोकने के प्रयास भी किये गये। इधर, सुशांत की 11 पन्ने की डायरी जाँच टीम को मिली है। साथ ही यह भी बात सामने आ रही है कि सुशांत की एक और गर्ल फ्रेंड थी, जिसके फ्लैट की वह ईएमआई भरते थे।

सीबीआई जाँच में अड़ंगा

अब कयास लगाये जा रहे हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई जाँच में लगाया अड़ंगा लगाने की कोशिश कर रही है। दरअसल महाराष्ट्र सरकार की मंत्री और मुम्बई की मेयर किशोरी पेडणेकर ने सुशांत मामले में जाँच के लिए मुम्बई आने वाली सीबीआई की टीम को बिना सरकार की परमीशन मुम्बई में कदम रखने पर 14 दिन के क्वारंटीन में भेजने का ऐलान कर दिया है।इस पर महाराष्ट्र का विपक्षी दल ठाकरे सरकार को घेर लिया है। इसके लिए हाल ही में बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने आनन-फानन में कोरोना को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि दूसरे प्रदेशों से हवाई जहाज़ से आने वाले लोगों को अनिवार्य रूप से 14 दिनों के क्वारंटीन में रखा जाएगा। बीएमसी ने गत 3 अगस्त को ये दिशा-निर्देश जारी किये गये थे, जिनमें साफ कहा गया था कि अगर कोई अधिकारी भी सुशांत मामले में जाँच के लिए आता है, तो उसे भी भी जाँच के लिए एनओसी (नो ओवजेक्शन सर्टिफिकेट) यानी अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होगा,जिसके लिए मुम्बई आने और उसकी खास ज़रूरत को बताना होगा।

पटना सिटी एस.पी. को भी किया था क्वारंटीन

बता दें कि पटना सिटी के एस.पी. विनय तिवारी ने बिहार पहुँचकर आरोप लगाये थे कि मुम्बई पुलिस ने उन्हें क्वारंटीन करके जाँच को प्रभावित किया था। वहीं बिहार पुलिस ने मुम्बई पुलिस पर जाँच में सहयोग न करने का आरोप भी लगाया था। इसे लेकर बिहार पुलिस के डी.जी.पी. ने सुशांत मौत मामले की जाँच के लिए मुम्बई गये बिहार के एक आईपीएस अधिकारी को लौटने की अनुमति नहीं दिये जाने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी। बता दें कि सुशांत मामले की जाँच के लिए मुम्बई पहुँचे बिहार के आईपीएस अधिकारी पटना सिटी के एस.पी. विनय तिवारी को अब क्वारंटीन से छोड़ दिया गया है।

क्यों है रिया पर संदेह?

दो महीने बाद भी सुशांत सिंह राजपूत की मौत की गुत्थी सुलझ नहीं पायी है। लेकिन इस बीच रिया की भूमिका संदिग्ध होती नज़र आ रही है। क्योंकि अनेक जाँचों में कई ऐसे खुलासे हुए हैं, जिनके चलते सुशांत से उनके सम्बन्धों और लड़ाई-झगड़े को लेकर कई चौंकाने वाले राज़ खुले हैं। बहरहाल अब यह मामला सीबीआई के हाथों में है; यह अलग बात है कि महाराष्ट्र सरकार चाहती कि इस मामले की सीबीआई जाँच की कोई ज़रूरत नहीं; क्योंकि मुम्बई पुलिस सही तरीके से जाँच कर रही है। लेकिन सीबीआई ने रिया चक्रवर्ती, उनके भाई और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा-306, 341, 342, 420, 406 और 506 के तहत मामला दर्ज किया है। इसके बाद रिया ने सीबीआई जाँच को अवैध बताना शुरू कर दिया है।

रिया ने कहा है कि जब तक सर्वोच्च न्यायालय अपना फैसला नहीं सुनाता, तब तक सीबीआई को इस मामले से दूर ही रहना चाहिए। रिया ने तो यहाँ तक कहा है कि सुशांत की मौत मुम्बई में ही हुई थी, इसलिए इस मामले की जाँच मुम्बई पुलिस को ही करनी थी। लेकिन बिहार पुलिस ने मामले को सीबीआई को सौंप दिया, जिसका अधिकार सीबीआई को नहीं है। मज़े की बात यह है कि पहले खुद रिया ने ही देश के गृह मंत्री अमित शाह से सीबीआई जाँच की माँग की थी। सवाल यह है कि अगर रिया निर्दोष हैं, तो फिर वह अब सीबीआई जाँच को अब गलत क्यों ठहराना चाहती हैं?

मुम्बई पुलिस का जवाब

इधर, मुम्बई पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय में सुशांत मौत मामले में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। मुम्बई पुलिस ने अपने जवाब में कहा है कि सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में अब तक मुम्बई पुलिस ने 56 लोगों के बयान दर्ज किये हैं और हर तरह से मौत के सम्भावित कारणों और परिस्थितियों की जाँच कर रही है। जवाब में आगे कहा गया है कि अब तक इस मामले में मुम्बई पुलिस की तरफ से निष्पक्ष, उचित और पेशेवर तरीके से जाँच की गयी है और आगे भी की जाएगी। साथ ही उसने कोर्ट से माँग की है कि इस मामले में मौज़ूदा तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए एफआईआर को ज़ीरो एफआईआर के तौर पर बांद्रा पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। मुम्बई पुलिस ने यह भी कहा है कि सीबीआई को बिहार सरकार की सिफारिश पर सुशांत सिंह मामले में एफआईआरदर्ज नहीं करनी चाहिए थी।

21 बार बदला कम्पनी का पता

इधर, सुशांत के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) भी सम्पत्ति मामलों की जाँच कर रहा है। जाँच में ई.डी. की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सुशांत की एक कम्पनी का आई.पी. एड्रेस उनकी मौत से पहले एक साल में 18 बार बदला गया था, जबकि उनकी मौत के बाद इसे तीन बार बदला गया। यानी कुल मिलाकर करीब एक साल दो-ढाई महीने में कम्पनी का आई.पी. एड्रेस 21 बार बदला गया। इतना ही नहीं कम्पनी का डोमेन भी बदला गया था। इस तरह रिया चक्रवर्ती कई तरह से जाल में फँसती नज़र आ रही हैं। अब देखना यह है कि इस मामले की गुत्थी सुलझती है या नहीं? अगर सुशांत सिंह के परिजनों का  आरोप या संदेह सही बैठता है, तो उन्हें न्याय मिल पाता है या नहीं?

नाम अनेक, पर ईश्वर एक

दुनिया भर में सदियों से अनेक संतों ने इस बात की पुष्टि की है कि ईश्वर एक है। बड़े-बड़े विद्वानों ने भी इस बात को माना है कि ईश्वर एक ही है, भले ही उसके नाम असंख्यों क्यों न हों। दरअसल जिस अलौकिक शक्ति, जिस परम् सत्ता की इंसान ने सदियों से खोज की है और जो खोज आज तक पूरी नहीं हो सकी है; वह यह है कि आिखर इतनी बड़ी सृष्टि और पूरे ब्रह्माण्ड को कौन चला रहा है? और इसी प्रश्न के उत्तर के लिए इंसान को धर्म-ग्रन्थों यानी मज़हबी किताबों की ओर झाँकने की आवश्यकता पड़ती रही है, जिनमें एक स्वर में कहा गया है कि ईश्वर एक है।

अमूमन लोग भी यह बात मानते हैं कि ईश्वर एक ही है। बावजूद इसके आपस में मज़हब के नाम पर और उस एक ईश्वर के अनेक नामों के चक्कर में पडक़र आपस में ही मरने-मारने पर आमादा रहते हैं; वह भी चन्द सियासतदानों और चन्द मज़हब के ठेकेदारों के बहकावे में आकर। सबका अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग वाला हिसाब है; पर सच को मानते हुए भी उसे स्वीकार करने वाले लोग न के बराबर ही हैं। यही वजह है कि हर समय कहीं-न-कहीं मज़हब के नाम पर, ईश्वर के नाम पर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। आजकल के सोशल मीडिया पर तो यह मुद्दा और भी गरमाया रहता है। लोग न तो एक-दूसरे के मज़हब को बुरा-भला कहने में संकोच करते हैं और न ही एक-दूसरे से गाली-गलौज करने में उन्हें कोई शर्म महसूस होती है। तथाकथित धर्माचार्य भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करते। उन्हें अपने ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी से ही लगाव है। दिखावे की सन्तई, अपने-अपने मज़हब के हिसाब से पूजा-पाठ / इबादत उनके जीवन को अपने-अपने गढ़ों में सम्मान और ऐश-ओ-इशरत की ज़िन्दगी दिलाने के लिए पर्याप्त हैं। वे जान-बूझकर लोगों को आडम्बर के इस खोल से बाहर आने देना नहीं चाहते। क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा करने से उनकी ऐश भरी ज़िन्दगी नरक समान हो जाएगी। लोग सच जानने के बाद उनके इशारे पर नहीं नाचेंगे। हमेशा देखा गया है कि जो लोग, खासतौर पर सन्त सच की बात करते हैं; एकता, भाईचारे, समानता, इंसानयित, मुहब्बत की बात करते हैं; उनके साथ अन्याय होता है। उन्हें प्रताडऩा सहनी पड़ती है और उनके खिलाफ तथाकथित धर्म के ठेकेदारों के साथ-साथ निरंकुश सत्ताएँ हाथ धोकर पड़ जाती हैं।

इसलिए ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी की चाह रखने वाले सन्तों को समझना होगा कि अगर फूलों भरा बिस्तर और ऐश-ओ-आराम वाली ज़िन्दगी ही इतनी पसन्द थी, तो फिर सन्तई का चोला ओढ़ा ही क्यों? क्यों बने पण्डित, मुल्ला, पादरी आदि? यदि सन्तों की राह इतनी आसान होती, तो उनके कदमों में बड़े-बड़े शहंशाहों के सिर न झुके होते। दुनिया भर में सन्तों का इतना मान-सम्मान नहीं होता। बड़े-बड़े आततायियों की तलवारें सन्तों के सामने आते ही गिर न पड़ी होतीं। इतिहास ऐसे िकस्सों से भरा पड़ा है, जिनमें सन्तों के तेज़, उनकी अलौकिक शक्ति और उनकी दिव्यता के कारनामे आज के आधुनिक युग में भी लोगों को आश्चर्यचकित कर देते हैं। यह िकस्से-कारनामे केवल किताबों या किंवदंतियों में ही नहीं हैं, बल्कि हकीकत में इनके प्रमाण भी हैं। आज तक न जाने कितने वैज्ञानिक, कितने पुरातत्त्वविद्, कितने इतिहासकार इन प्रमाणों और आश्चर्यजनक कारनामों की जाँच-परख कर चुके हैं और इनमें छिपे रहस्यों पर से परदा उठाने की कोशिशों में लगे  हैं; पर रहस्यों पर से परदा आज तक नहीं उठा सके। इस जाँच-परख के बाद अनेक लोग तो खुद भी सन्त हो गये और ईश्वर की खोज में लग गये।

आज भले ही बहुत-से लोगों को पैसा कमाने का लालच सन्तई की तरफ ले आया हो, पर वास्तव में ऐसे लोग असली सन्त नहीं होते। वैसे तो सन्त बनने की पहली शर्त यही होती है कि सन्त को दुनियादारी से दूर रहना चाहिए, अगर यह सम्भव न हो और उसे समाज में रहना पड़े, तो भी उसे समाज से विलग जीवन बिताना चाहिए। अगर कोई सन्त ऐसा नहीं करता है, तो ऐसे व्यक्ति को सन्त कहना भी पाप है। ऐसे लोग मान-सम्मान के लायक भी नहीं होते। क्योंकि ये वही लोग होते हैं, जो अपनी देह पर काम को बोझ न डालने के चक्कर में सन्तई का चोला ओढ़ते हैं और लोगों को आपस में बाँटने का काम करते हैं, ताकि इनका धन्धा-पानी चलता रहे। पुण्य-भूमि भारत के भोले-भाले लोग इन्हें इसलिए सम्मान देते हैं, क्योंकि हमारी परम्परा में सन्तों को ईश्वर की ओर ले जाने वाले मार्ग को प्रशस्त करने वाला शुद्ध-आत्मिक शक्ति का वाहक माना गया है। कोई नहीं जानता कि मरने के बाद वह कहाँ जाता है? उसका क्या होगा? और उसकी आत्मा किस रूप में जन्म लेगी? न कोई यह जानता है कि जन्म लेने से पहले वह क्या था? और तो और, किसी को अपने शरीर की असंख्य गतिविधियों के बारे में भी नहीं पता होता, जो हर दिन, हर पल उसके अन्दर होती रहती हैं; तो फिर उस अनन्त के बारे में कैसे जान सकता है, जिसने ऐसा अनन्त ब्रह्माण्ड बनाया है, जिसमें इंसान की हैसियत एक तिनके बराबर भी नहीं है। न जाने कब यह मिट्टी से बना शरीर ढेर हो जाए? या कब इस नश्वर शरीर के जीते-जागते अपना और दुनियादारी का ज्ञान तक न रहे। इसलिए तो कहा गया है कि हमारे पास जो कुछ है, सब उसी ईश्वर का दिया हुआ है और अन्त में उसी में मिल जाना है।

सबको उसी एक परमात्मा / उसी एक अल्लाह ने पैदा किया है और एक ही तरह से पैदा किया है। फिर यह भेद कैसा? आपसी विवाद कैसा? यह मार-काट कैसी? दूसरों पर अत्याचार क्यों? भोग-विलास की लिप्सा क्यों? धन और ऐश-ओ-आराम की अनन्त इच्छा क्यों? ईश्वर को और उसकी परम् सत्ता को बाँटने की मूर्खता भरी चेष्टा क्यों? एक-दूसरे से नफरत क्यों? ईश्वर के नाम ही तो अनेक हैं, मगर वह है तो एक ही!

महेंद्र सिंह धोनी और सुरेश रैना ने किया अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा

शानदार करियर के बाद पूर्व भारतीय कप्तान एमएस धोनी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। शनिवार को स्वतंत्रता दिवस की संध्या को उन्होंने इसका ऐलान किया। उनके साथ पूर्व बल्लेबाज सुरेश रैना ने भी संन्यास की घोषणा की है।
इस तरह आज के का दिन भारत के क्रिकेट प्रेमियों के लिए बुरी खबर लेकर आया है।   धोनी के रिटायरमेंट की घोषणा के कुछ देर बाद ही सुरेश रैना ने भी संन्यास की  घोषणा कर दी। रैना ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपने एक पोस्ट में इसकी जानकारी दी। पोस्ट में सुरेश रैना ने धोनी के साथ अपनी एक तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा – ‘आपके साथ खेलना एक बहुत खूबसूरत अनुभव था माही। मैं गर्व के साथ आपके इस सफर में साथी बनने जा रहा हूं। शुक्रिया इंडिया। जय हिंद !’
अपनी कप्तानी, ‘फिनिशिंग’  और हेलीकॉप्टर शॉट के हुनर से महानतम क्रिकेटरों में शामिल दो बार के विश्व कप विजेता कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने शनिवार को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा। इस तरह पिछले एक साल से उनके भविष्य को लेकर लग रही अटकलों पर विराम लग गया है। कैप्टेन कूल कहलाने वाले धोनी की कप्तानी की शैली लाजवाब थी। धोनी के फैसले से क्रिकेट के एक युग का अंत हो गया है।
धोनी ने अपने इंस्टाग्राम पर लिखा – ‘अब तक आपके प्यार और सहयोग के लिए धन्यवाद। शाम सात बजकर 29 मिनट से मुझे रिटायर्ड समझिए।’ धोनी ने आखिरी बार वनडे वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला था। उसके बाद से उनके रिटायरमेंट की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन वह मौन थे। अब जब आईपीएल के लिए वह चेन्नै कैंप में शामिल होने पहुंचे तो उन्होंने अपने फैसले का ऐलान कर दिया।
माही ने दिसंबर 2014 में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। बीते कई दिनों से इस विकेटकीपर बल्लेबाज के संन्यास को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं। धोनी ने वर्ल्ड कप के बाद दो महीने का ब्रेक लिया था। वह वेस्ट इंडीज दौरे पर टीम के साथ नहीं थे और भारतीय सेना के साथ काम करने चले गए थे। धोनी ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ टी20 सीरीज में भी नहीं खेलने का फैसला किया।
वर्ल्ड कप 2019 के बाद इस साल आईपीएल से क्रिकेट मैदान पर वापसी करने वाले थे, लेकिन 29 मार्च से शुरू होने वाले इस टूर्नमेंट पर वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने ब्रेक लगा दिया और यह टूर्नमेंट अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। अब इस टूर्नमेंट के सितंबर नवंबर में आयोजित होगा।
धोनी भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे कामयाब कप्तानों में हैं। उनकी कप्तानी में ही भारत ने पहले वर्ल्ड टी20 का खिताब जीता था। 2007 में युवा टीम के साथ धोनी ने यह करिश्मा किया था। इसके बाद श्रीलंका के खिलाफ वानखेड़े स्टेडियम में 2 अप्रैल 2011 को उनकी कप्तानी में भारत ने करीब 28 साल बाद वर्ल्ड कप (50 ओवर) की ट्रोफी पर कब्जा किया था। फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ लगाया गया वह विजयी छक्का भला कौन भूल सकता है।
धोनी ने इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कहा है, लेकिन वह आईपीएल खेलते रहेंगे।  कुछ दिन पहले ही चेन्‍नई सुपर किंग्‍स के सीईओ ने कहा था कि धोनी आईपीएल 2020 और 2021 आईपीएल खेलते रहेंगे और जहां तक होगा 2022 में भी नजर आएंगे।
एमएस धोनी ने 2004 में बांग्‍लादेश के खिलाफ वनडे मैच से इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा था। उन्‍होंने 2014 में टेस्‍ट क्रिकेट से संन्‍यास लिया था। धोनी ने भारत की तरफ से 90 टेस्‍ट, 350 वनडे और 98 टी20 मैच खेले। कुल 350 वनडे मैचों में उन्‍होंने 10 हजार 773 रन बनाए, जिसमें उनका सर्वश्रेष्‍ठ नाबाद 183 रहा। उन्‍होंने वनडे क्रिकेट में 10 शतक और 73 अर्धशतक जड़े, जबकि 98 टी20 मैचों में उन्होंने 1617 रन बनाए और दो अर्धशतक जड़े। धोनी ने आखिरी इंटरनेशनल मैच पिछले साल 9 से 10 जुलाई को न्‍यूजीलैंड के खिलाफ वर्ल्‍ड का सेमीफाइनल खेला था।
उधर रैना को टेस्ट मैच में तो ज्यादा मौका नहीं मिला। लेकिन वनडे इंटरनैशनल क्रिकेट में खूब जलवा बिखेरा। टेस्ट में रैना ने 19 मैचों में 26.18 की औसत से 768 रन बनाए। वनडे में रैना ने 226 मैच खेले और 35.31 की औसत से 5,615 रन बनाए। वनडे में रैना ने 5 शतक और 36 अर्धशतक लगाए। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में भी रैना का शानदार ट्रैक रेकॉर्ड रहा है। 109 फर्स्ट क्लास मैचों में उन्होंने 42.15 की औसत से 6871 रन बनाए। 109 मैचों में उन्होंने 14 शतक और 45 अर्धशतक भी लगाए।

कोरोना से पीड़ित पूर्व क्रिकेटर और यूपी   सरकार में मंत्री चेतन चौहान वेंटिलेटर पर

पूर्व भारतीय क्रिकेट ओपनर और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री चेतन चौहान की हालत गंभीर बताई गयी है। कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें 14 जुलाई को अस्पताल में भर्ती किया गया था। वे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती हैं और वेंटिलेटर पर हैं।
जानकारी के मुताबिक अर्जुन अवार्ड विजेता चौहान के अंगों ने काम करना बंद कर दिया है। वह वेंटिलेटर पर हैं और उनकी हालत नाजुक बताई गयी है। पिछले महीने कोरोना टेस्ट में उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। इसके बाद उन्हें संजय गांधी पीजीआई अस्पताल, लखनऊ में भर्ती कराया गया था। हालांकि, उनकी हालत में सुधार नहीं आने के कारण उन्हें गुरूग्राम में मेदांता अस्पताल शिफ्ट कर लिया गया।
चेतन चौहान भारतीय क्रिकेट टीम में लंबे समय तक ओपनर रहे।  वे 40 टेस्ट मैचों में  महान सुनील गावस्कर के ओपनिंग जोड़ीदार रहे। इसके बाद वे दिल्ली क्रिकेट संघ (डीडीसीए) और अन्य जिला क्रिकेट संघ में अध्यक्ष से लेकर अन्य पदाधिकारी रहे। वे 2001 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारतीय टीम के प्रशासनिक मैनेजर भी थे।
बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए थे। वे सांसद भी रहे हैं। वे 1991 में अमरोहा से भाजपा की टिकट पर जीते थे। साल 1998 में एक बार फिर जीते। आजकल वे उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक शनिवार सुबह चेतन की किडनी ने काम करना बंद कर दिया और इसके बाद उनके दूसरे अंगों ने भी काम करना बंद कर दिया है। फिलहाल वे वह लाइफ सपोर्ट पर हैं।

देश भर में स्वतंत्रता दिवस की धूम, पीएम ने कहा किसी भी राष्ट्र की आजादी का स्रोत उसका सामर्थ्य होता है

देश आज स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा है। मुख्य कार्यक्रम दिल्ली में लाल किले पर हुआ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों से लेकर सुरक्षा तक के मुद्दों का अपने भाषण में जिक्र किया। पीएम ने भाषण की शुरुआत क्रांतिकारी महर्षि अरविंद घोष की जयंती पर उनको याद करके की। उन्होंने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया।
सीमा पर तनाव को लेकर बिना किसी देश का नाम लिए मोदी ने कहा कि एलओसी से लेकर एलएसी तक, देश की संप्रभुता पर जिस किसी ने आंख उठाई है, देश ने, देश की सेना ने उसको उसी भाषा में जवाब दिया है। भारत की संप्रभुता का सम्मान हमारे लिए सर्वोच्च है। इस संकल्प के लिए हमारे वीर जवान क्या कर सकते हैं, देश क्या कर सकता है, ये लद्दाख में दुनिया ने देखा है।
पीएम ने कहा कि भारत के उज्जवल भविष्य को कोरोना ने रोका हुआ है। मोदी ने कहा – ‘कोरोना योद्धाओं ने सेवा परमो धर्म: मंत्र को जीत कर दिखाया है, उन्हें मैं नमन करता हूं। अपने जीवन की परवाह किए बिना हमारे डॉक्टर्स, नर्सें, पैरामेडिकल स्टाफ, एंबुलेंस कर्मी, सफाई कर्मचारी, पुलिसकर्मी, सेवाकर्मी, अनेकों लोग, चौबीसों घंटे लगातार काम कर रहे हैं।’
मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ के साथ ‘मेक फॉर वर्ल्ड’ का दिया नारा दिया। कहा कौन सोच सकता था कि कभी देश में गरीबों के जनधन खातों में हजारों-लाखों करोड़ रुपए सीधे ट्रांसफर हो पाएंगे? कौन सोच सकता था कि किसानों की भलाई के लिए एपीएमसी एक्ट में इतने बड़े बदलाव हो जाएंगे। देश में लाखों चुनौती हैं तो करोड़ों समाधान भी हैं। कोरोना काल में दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत का रुख कर रही हैं। भारत में सुधारों के दौर को दुनिया देख रही है। एफडीआई में देश ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
उन्होंने कहा – ‘हमारे यहां कहा गया है कि सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं, श्रममूलं च वैभवम्।  किसी समाज, किसी भी राष्ट्र की आजादी का स्रोत उसका सामर्थ्य होता है, और उसके वैभव का, उन्नति-प्रगति का स्रोत उसकी श्रम शक्ति होती है। वन नेशन, वन राशन, वन टैक्स देश की सच्चाई बनी है।
पीएम ने कहा कि अगले साल हम अपनी आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर जाएंगे। एक बहुत बड़ा पर्व हमारे सामने है। कोरोना महामारी के बीच 130 करोड़ भारतीयों ने आत्मनिर्भर भारत बनाने का संकल्प लिया है। हमें पूरा भरोसा है कि भारत इस सपने को चरितार्थ करके रहेगा। मुझे अपने देश के सामर्थ्य पर विश्वास है।
मोदी ने कहा कि आज ‘आत्मनिर्भर भारत’ शब्द मंत्र बन गया है। स्किल डेवलपमेंट से भारत आत्मनिर्भर बनेगा। आत्मनिर्भर भारत का सपना जरूर पूरा होगा। अब देश में एन-95 मास्क बन रहा है, देश में वेंटिलेटर भी बन रहा है।
कृषि की बात करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर बना है। देश ने आत्मनिर्भरता का संकल्प लिया है। आत्मनिर्भर भारत का मतलब सिर्फ आयात कम करना ही नहीं, हमारी क्षमता, हमारी क्रिएटिविटी, हमारी स्किल्स को बढ़ाना भी है।
युवाओं का कौशल बढ़ाना है। देश में बने सामान की दुनिया में वाहवाही करानी है।
आजाद भारत की मानसिकता ‘वोकल फॉर लोकल’ होना चाहिए। देशवासियों को ‘वोकल फॉर लोकल’ बनाने का संकल्प लेना होगा।
उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत की अहम प्राथमिकता- आत्मनिर्भर कृषि और आत्मनिर्भर किसान हैं। किसानों को सभी बंधनों से मुक्त करना होगा। अन्नदाता की आमदनी दोगुनी करनी है। किसान अपनी शर्तों पर अनाज बेच सकते हैं। सात करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर दिए गए, राशनकार्ड हो या न हो, 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अन्न की व्यवस्था की गई, बैंक खातों में करीब-करीब 90 हजार करोड़ रुपए सीधे ट्रांसफर किए गए। कुछ वर्ष पहले तक ये सब कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि दिल्ली से पैसा निकलेगा और गरीब के हाथ में सीधे पैसा पहुंच जाएगा।
मोदी ने कहा तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को आजादी मिली। सरकारी योजनाओं से महिलाओं को लाभ मिला। अब युद्ध क्षेत्र में महिलाओं की भी तैनाती की जा रही है। हमारा अनुभव कहता है कि भारत में महिलाशक्ति को जब भी अवसर मिले, उन्होंने देश का नाम रोशन किया, देश को मजबूती दी है।
कोरोना पर कहा – ‘जब कोरोना शुरू हुआ था तब हमारे देश में कोरोना टेस्टिंग के लिए सिर्फ एक लैब थी। आज देश में 1,400 से ज्यादा लैब हैं। आज से ‘नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन’ का शुभारंभ किया जा रहा है। यह मिशन, भारत के हेल्थ सेक्टर में नई क्रांति लेकर आएगा। हर भारतीय को हेल्थ आईडी दी जाएगी। आईडी में हर बीमारी, हर जांच की जानकारी होगी। इससे अस्पताल में पर्ची बनाने समेत सभी परेशानी खत्म।’ पीएम ने कहा कि भारत में तीन-तीन कोरोना वैक्सीन पर काम हो रहा है। हर भारतीय तक वैक्सीन पहुंचाने की रूप-रेखा तैयार है।
उन्होंने कहा कि ये एक साल जम्मू कश्मीर की एक नई विकास यात्रा का साल है। ये एक साल जम्मू कश्मीर में महिलाओं, दलितों को मिले अधिकारों का साल है। ये जम्मू कश्मीर में शरणार्थियों के गरिमापूर्ण जीवन का भी एक साल है। लोकतंत्र की सच्ची ताकत स्थानीय इकाइयों में है। हम सभी के लिए गर्व की बात है कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय इकाइयों के जनप्रतिनिधि सक्रियता और संवेदनशीलता के साथ विकास के नए युग को आगे बढ़ा रहे हैं।
बीते वर्ष लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाकर, वहां के लोगों की बरसों पुरानी मांग को पूरा किया गया है। हिमालय की ऊंचाइयों में बसा लद्दाख आज विकास की नई ऊंचाइयों को छूने के लिए आगे बढ़ रहा है।
पड़ौस की बात करते हुए कहा – ‘हमारे पड़ोसी देशों के साथ, चाहे वो हमसे जमीन से जुड़े हों या समंदर से, अपने संबंधों को हम सुरक्षा, विकास और विश्वास की साझेदारी के साथ जोड़ रहे हैं। आज पड़ोसी सिर्फ वो ही नहीं हैं जिनसे हमारी भौगोलिक सीमाएं मिलती हैं बल्कि वे भी हैं जिनसे हमारे दिल मिलते हैं।’

गहलोत ने विश्वास मत जीता, सीएम बोले देश में लोकतंत्र खतरे में

राजस्थान विधानसभा में अशोक गहलोत सरकार ने विश्वास जीत लिया है। शुक्रवार को उन्होंने ध्वनिमत से विश्वास मत जीत लिया। पायलट सहित सभी सरकार समर्थक उपस्थित 123 विधायकों ने हाथ खड़े करके सरकार का समर्थन किया। विधानसभा को 21 अगत्स्य तक के लिए स्थगित कर दिया गया है, जिसमें अब कोरोना को लेकर चर्चा की जानी है। इस अंतराल में विधायक भी अपने घर-परिवार के बीच जा सकेंगे, जो इतने दिन से बाड़ेबंदी में थे।

सरकार की तरफ से सुबह विश्वास मत पेश किया गया था। विश्वास मत पर चर्चा ख़त्म करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विपक्षी भाजपा पर जमकर निशाना साधा और उसपर सीधे-सीधे उनकी सरकार गिराने के षडयंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया। गहलोत ने कहा पूरे देश में लोकतंत्र खतरे में है।

मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने भाषण में विपक्षी भाजपा पर जबरदस्त हमला किया। उन्होंने कहा कि भाजपा ने सरकार गिराने की साजिश की। उन्होंने कहा कि पूरे देश में लोकतंत्र खतरे में है। सरकार बची तो आपपको धक्का लगा। आपने सरकार गिराने की साजिश की। उन्होंने भाजपा से कहा कि आपने गोआ में क्या किया, मणिपुर में क्या किया, मध्य प्रदेश में क्या किया ? आज पूरे देश में लोकतंत्र खतरे में है।

भाजपा की तरफ से सदन में यह कहने कि भाजपा का इस सारे घटनाक्रम में कोई रोल नहीं था, गहलोत ने कहा यह तो वहीं बात हुई कि सो चूहे खाकर बिल्ली हज़ को चली। गहलोत ने बार-बार भाजपा और उसकी आलाकमान का नाम लेते हुए कहा वह सरकार गिराने के षड्यंत्र में शामिल थे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बहुत आश्चर्य की बात है कि जनता का इतना विशाल बहुमत मिलने के बावजूद, भाजपा राज्यों में चुनी सरकारें गिराने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे लोकतंत्र को पूरे देश में खतरा पैदा हुआ। गहलोत ने विपक्ष को मुखातिब होते हुए कहा – ‘आपको तो लोकतंत्र को बचने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन आप इससे उलट कर रहे हैं’।

गहलोत ने सदन में विपक्ष के सदस्यों से कहा कि हो सकता है आपमें से कुछ को आलाकमान ने इस षड्यंत्र के बारे में नहीं बताया हो। मैं भी मानता हूं कि आप सभी ऐसा नहीं (सरकार गिराना) चाहते हों। आज सदन में सरकार समर्थक 123 विधायक उपस्थित थे जबकि दो स्वास्थ्य कारणों से नहीं आ सके।

इससे पहले आज सुबह 11 बजे सत्र के शुरू होते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा में विश्वास मत प्रस्ताव रख दिया। सत्र शुरू होने से पहले कांग्रेस ने विधायकों को व्हिप जारी किया। भाजपा भी अविश्वास मत प्रस्ताव लाने की तैयारी में थी, लेकिन गहलोत ने पहले ही चाल चल दी जिससे भाजपा ने अविश्वास प्रस्ताव लाने का इरादा टाल दिया।

सचिन पायलट ने अपनी सीट बदलने पर कहा, विधानसभा के ‘बार्डर’ पर मैं सबसे मजबूत योद्धा, सरकार बचाने के लिए ढाल बनकर खड़ा हूं  

भले सचिन पायलट सारी नाराजगी दूर कर गांधी परिवार के कहने पर कांग्रेस की मुख्यधारा में लौट आये हों, कुछ चीजों को लेकर उनकी नाराजगी उनके शब्दों में जरूर झलकती है। इनमें से एक विधानसभा में उनकी सीट बदलना भी शामिल है। लेकिन पायलट ने बहुत चतुराई से आज विश्वास मत पर बोलते हुए अपनी सीट बदलने को परिभाषित किया और कहा कि जहां उन्हें नई सीट मिली है, उसके आगे विपक्ष की कतार शुरू हो जाती है। अर्थात, यह बार्डर है और बार्डर पर ‘सबसे ताकतवर योद्धा’ को ही भेजा जाता है। इस बीच दोपहर कार्यवाही शुरू होते ही सरकार की तरफ से संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने विश्वास मत पेश किया।

सुबह ही कांग्रेस ने विश्वास मत के लिए स्पीकर सीपी जोशी के समक्ष नोटिस दे दिया था। इस समय इस पर बहस चल रही है। सरकार की तरफ से जहां और विधायकों ने अपनी बात कही, वहीं सबसे दिलचस्प सचिन पायलट का अचानक हुआ संबोधन रहा। पायलट ने भाजपा के सदन में उप-नेता राजेंद्र राठौड़ को उनके भाषण के बीच में रोक लिया, और फिर कुछ बातें कहीं।

पायलट ने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा – ‘मैं पहले आगे (सीएम के पास) बैठता था। अब मुझे स्पीकर साहब और चीफ व्हिप की तरफ से यहां पीछे सीट दी गयी है, जो विपक्षी भाजपा के पास बार्डर पर है। मुझे यहां इसलिए बिठाया गया है, क्योंकि बार्डर पर सबसे ताकतवर योद्धा को भेजा जाता है। इस सरहद पर कितनी भी गोलीबारी हो, मैं कवच और भाला लेकर सरकार को बचाने के लिए खड़ा हूं।’

उनके इतना कहने पर कांग्रेस सदस्यों, ख़ासकर उनके समर्थक विधायकों ने जमकर तालियां बजाईं।

इसी बीच विधानसभा में सचिन पायलट के सीट में परिवर्तन देखने को मिला। जिसे लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी।

समय के साथ सभी बातों का खुलासा होगा- पायलट
पायलट ने कहा कि ‘समय के साथ सभी बातों का खुलासा होगा। जो कुछ कहना-सुनना था, वह कह दिया। हमें जिस डॉक्टर के पास अपना मर्ज बताना था बता दिया। सदन में आए हैं तो कहने-सुनने की बातों को छोड़ना होगा। इस सरहद पर कितनी भी गोलीबारी हो, ढाल बनकर रहूंगा।’

उनके अज्ञातवास के दौरान उन्हें लेकर उठी बातों पर भी पायलट ने सफाई दी। पूर्व उप मुख्यमंत्री और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पायलट ने कहा – ‘समय के साथ सभी बातों का खुलासा होगा। जो कुछ कहना-सुनना था, वह कह दिया। हमें जिस डॉक्टर के पास अपना मर्ज बताना था, बता दिया। सदन में आए हैं तो कहने-सुनने की बातों को छोड़ना होगा।’

इससे पहले ठीक एक बजे सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू पर गहलोत सरकार में कानून और संसदीय कार्य मंत्री शांति कुमार धारीवाल ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया। इसके बाद सदन में धारीवाल ने कहा – ‘राजस्थान में न तो किसी शाह की चली, न तानाशाह की’। हालांकि, प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने केंद्रीय मंत्री अमित शाह का नाम लेने पर आपत्ति जताई। इसके बाद अन्य सदस्यों ने अपना मत जारी रखा।