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रफाल विमानों के लिए पक्षियों का खतरा

हरियाणा के अंबाला स्थित एयरबेस में देश के पहले पाँच रफाल लड़ाकू विमानों के आगमन के साथ भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के महानिदेशक, निरीक्षण और सुरक्षा शाखा ने राज्य सरकार से अंबाला एयरबेस के आसपास कचरे के ढेर की जाँच करने के लिए कहा है। इस कचरे के ऊपर काली चील और कबूतर जैसे पक्षियों के झुण्ड मँडराते रहते हैं और इस तरह वायुयानों के लिए गम्भीर खतरा पैदा हो जाता है।

अंबाला में 29 जुलाई को शामिल रफाल विमानों की सुरक्षा को वायुसेना की सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए आईएएफ के निरीक्षण और सुरक्षा शाखा के महानिदेशक एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह ने हाल में हरियाणा के मुख्य सचिव शेषनी अरोड़ा को पत्र लिखा है। अंबाला में एयरबेस के आसपास पक्षियों की उपस्थिति बहुत अधिक है और टकराने की स्थिति में पक्षी से विमान को बहुत गम्भीर नुकसान पहुँच सकता है।

उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि हवाई क्षेत्र में पक्षियों की गतिविधि आसपास के क्षेत्र में कचरे की मौज़ूदगी के कारण है। पत्र में उन्होंने कहा कि इसे कम करने के लिए कई उपायों की सिफारिश की गयी है और अंबाला स्थित एयरफोर्स स्टेशन के एयर ऑफिसर कमांडिंग ने 24 जनवरी, 2019, 10 जुलाई, 2019 और 24 जनवरी, 2020 को एरोड्रम पर्यावरण प्रबन्धन समिति की बैठकों के माध्यम से अंबाला नगर निगम के संयुक्त आयुक्त और अतिरिक्त नगर आयुक्त से इस सिलसिले में मुलाकात की थी। पत्र में कहा गया है कि इससे यह ज़ाहिर होता है कि यह आवश्यक है कि लड़ाकू विमानों की सुरक्षा के लिए बड़े और छोटे पक्षियों को हवाई क्षेत्र से दूर रखा जाए। ऐसे में आईएएफ ने अंबाला हवाई क्षेत्र के आसपास 10 किलोमीटर के एरोड्रम क्षेत्र में चील जैसे बड़े पक्षियों की गतिविधि को कम करने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन (एसडब्ल्यूएम) योजना को तत्काल लागू करने को कहा है। पत्र में आगे कहा गया है कि इसमें कचरा फैलाने के लिए ज़ुर्माना, कचरा संग्रहण में सुधार और उपयुक्त एसडब्ल्यूएम संयंत्र स्थापित करना शामिल होगा। साथ ही एयरफील्ड के आसपास कबूतर प्रजनन गतिविधि पर प्रतिबन्ध और नियंत्रण की माँग की गयी है। नागरिक प्रशासन से मदद की माँग करते हुए एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह ने आगे लिखा है कि यह आवश्यक है कि लड़ाकू विमान की सुरक्षा और वायुसेना की इस विशिष्ट आवश्यकता को पूरा करने के लिए बड़े और छोटे पक्षियों को हवाई क्षेत्र से दूर रखा जाए। एयर मार्शल ने हरियाणा सरकार से स्पष्ट रूप से इस बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पत्ति को बचाने के लिए प्रक्रिया को तेज़ करने के अंबाला के स्थानीय अधिकारियों को निर्देश देने के लिए हस्तक्षेप की माँग की है।

कार्य प्रगति पर है

हरियाणा सरकार ने इस मामले को सबसे ज़रूरी और समयबद्ध मानते हुए शहरी स्थानीय निकाय विभाग को अलर्ट किया है और इसे तुरन्त कार्रवाई करने के लिए कहा है। यहाँ तक कि मुख्य सचिव ने कार्रवाई के लिए शहरी स्थानीय निकाय विभाग को आईएएफ का पत्र भी भेज दिया है। स्थानीय नगर निगम ने उन व्यक्तियों को नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है, जो अंबाला आईएएफ स्टेशन के आसपास के क्षेत्रों में कबूतरों का प्रजनन कर रहे हैं और उन्हें अपने पक्षियों को एयरबेस क्षेत्र से 10 किलोमीटर दूर ले जाने के लिए कहा है। हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज, जो शहरी स्थानीय निकाय विभाग का ज़िम्मा भी सँभाल रहे हैं; ने कहा कि उन्होंने सम्बन्धित विभाग से कहा है कि वह इस मसले को गम्भीरता से लें और तेज़ी से कार्य करें; क्योंकि यह राष्ट्रीय महत्त्व का मामला है।

उन्होंने कहा कि चूँकि अंबाला में अभी तक अपना ठोस कचरा प्रबन्धन संयंत्र नहीं है, इसलिए मैंने विभाग को इसके लिए तत्काल निविदाएँ जारी करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा शहरी निकाय विभाग को कबूतरों के प्रजनन को प्रभावी ढंग से जाँचने के लिए सख्त निर्देश जारी किये गये हैं और अधिकारियों ने कुछ लोगों को नोटिस भी भेजे हैं। साथ ही ज़िला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि अंबाला छावनी में पडऩे वाले एयरबेस के आसपास के क्षेत्र में कबूतर प्रजनन के व्यवसाय में शामिल छ: परिवारों को शिफ्ट करने का भी निर्णय किया गया है। यह भी पता चला है कि अभी भी अंबाला छावनी के साथ-साथ अंबाला शहर में बड़ी संख्या में लोग हैं, जो कबूतर प्रजनन के व्यवसाय से जुड़े हैं। इसके अलावा फाइट फ्लाइंग और प्राइवेट ड्रोन उड़ान पर प्रतिबन्ध को एयरबेस क्षेत्र से तीन किलोमीटर से बढ़ाकर चार किलोमीटर करने का भी फैसला किया गया था।

बता दें कि यद्यपि अंबाला का अपना एसडब्ल्यूएम प्लांट एयरबेस से लगभग 10 किलोमीटर दूर पाटवी गाँव में स्थापित किया गया था, यह पिछले कई साल से उपयोग में नहीं था।

पक्षी टकराने की घटनाएँ

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, फाइटर जेट की 10 फीसदी दुर्घटनाएँ सिर्फ पक्षी टकराने (बर्ड हिट) से ही होती हैं। भारतीय वायुसेना पक्षी-रोधक राडार और जनशक्ति की कमी के अलावा बहुत ही महत्त्वपूर्ण हवाई ठिकानों के आसपास कचरा जमा होने को समस्या का मुख्य कारण मानती है। अंबाला में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान को गम्भीर नुकसान पहुँचाने वाले पक्षी टकराने के उदाहरण दुर्लभ भी नहीं हैं।

उदहारण : जून, 2019 में आईएएफ के जगुआर फाइटर जेट को अंबाला एयरबेस से रुटीन उड़ान भरते समय पक्षी की चपेट में आने के बाद अपना पेलोड गिराना पड़ा था। एयरफील्ड और शहर के बलदेव नगर के आवासीय इलाके के पास ऑफ-लोडेड फ्यूल टैंक और प्रैक्टिस बम, हालाँकि काफी होते हुए भी; से किसी नुकसान की सूचना नहीं मिली थी। अप्रैल, 2019 की शुरुआत में भी जगुआर फाइटर जेट पायलट को अंबाला ज़िले के रोलन गाँव में खाली खेतों में तब दो ईंधन-ड्रॉप टैंकों को नीचे गिराना पड़ा था, जब विमान के एक इंजन को कुछ पक्षियों से टकराने के बाद नुकसान हुआ था। ईंधन टैंक या अन्य भार को तुरन्त हटाने का कदम जेट के वज़न को कम करने के लिए किया जाता है, ताकि आपातकालीन लैंडिंग के लिए इसे सक्षम किया जा सके।

इसी तरह अन्य हवाई ठिकानों पर भी पक्षी टकराने (बर्ड हिट) के मामले नये नहीं हैं। हाल में पड़ोसी राज्य राजस्थान के जोधपुर में भी सुखोई एसयू-30 एमकेआई को पक्षी टकराने से बड़ा नुकसान हुआ था। यह पता चला है कि अकेले जोधपुर में पिछले पाँच साल में 50 से अधिक पक्षी टकराने से जुड़े मामले दर्ज किये गये हैं। ग्वालियर एयरबेस, असम में तेजपुर एयरबेस और पश्चिम बंगाल में हासिमारा एयरबेस में भी लड़ाकू विमानों को कथित तौर पर पक्षी टकराने से नुकसान होने की रिपोट्र्स मिली हैं। आईएएफ पक्षियों को डराने के लिए बंदूकों और पटाखों का उपयोग करता है। हालाँकि यह एक असफल-सुरक्षित तरीका नहीं हो सकता है। भारत सरकार के पास वायुसेना और नौसेना के लिए बर्ड-डिटेक्शन राडार खरीदने की भी योजना है।

अंबाला एयरबेस का महत्त्व

अंबाला भारतीय वायुसेना के अग्रिम पंक्ति के ठिकानों में से एक है, जिसने कारगिल संघर्ष के दौरान सक्रिय भूमिका निभायी थी। लड़ाकू विमान मिराज 2000 को यहाँ तैनात किया गया था। एयरबेस में अन्य लड़ाकू विमान भी हैं, जैसे कि जगुआर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट और आवश्यकता के अनुसार, अलग-अलग समय पर मिग-21 बाइसन्स। देश में छ: वायु कमांडों में से अंबाला एयरबेस पश्चिमी वायु कमान में आता है और चीन और पाकिस्तान से सीमाओं पर खतरों से निपटने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हवाई अड्डों में से एक है।

इस एयरबेस की रणनीतिक लोकेशन के कारण ही बहु-भूमिका वाले रफाल लड़ाकू विमान अंबाला में रखे गये हैं। यह जगह भारत-पाकिस्तान सीमा के सबसे पास है और आपात स्थिति में तत्काल उड़ान भरने और पाकिस्तान के भीतर गहरे लक्ष्यों पर हमला करने के लिए निकटतम दूरी पर है। यही नहीं, अंबाला स्थित वायु सेना हवाई अड्डा चीन के साथ उत्तरी सीमाओं पर किये जाने वाले किसी भी हवाई हमले के लिए भी एक आदर्श प्रारम्भिक केंद्र भी है।

रक्षा बेड़े में शामिल हुआ राफेल

बता दें कि 10 सितंबर को राफेल विमान आधिकारिक रूप से वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गया है। इस दौरान अंबाला एयरबेस में आयोजित कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली भी शामिल हुईं।

हिन्दू-धर्म को समझना (7) – हिन्दू-दर्शन में माया : एक भ्रामक वास्तविकता या वास्तविकता के रूप में एक इंद्रियग्राह्य भ्रम

श्रुति-स्मृति द्वारा संचालित एक अखण्ड शृंखला (जब ज्ञान को सुनने और उसे पुनरावृत्ति से स्मृति में सहेजकर रखा जाता है) के माध्यम से पवित्र गूढ़ गुरु-शिष्य परम्परा (ज्ञान का गुरु से शिष्य तक प्रवाह) को एक ऋषि से दूसरे द्रष्टा तक बहने वाले दिव्य ज्ञान से आगे बढ़ाया गया।

महर्षि वेद व्यास ने इसे भोज-पत्र (एक विशेष प्रकार के सूखे पत्ते, जो समय के आवेग और वातावरण की अनिश्चितताओं को सहन कर गये) पर अपरिवर्तनीय प्राचीन ज्ञान की सच्चाई को उजागर करने के लिए लिखा। इससे ईश्वरीय ज्ञान को संरक्षित करने के लिए श्रुति-स्मृति मार्ग को छोडक़र सनातन विचार के परम्परागत हिन्दू ज्ञान, परम्पराओं और अवधारणाओं को उजागर किया गया। इस विशाल में से एक, अनंत ज्ञान का भण्डार, अब प्रलेखित, संहिताबद्ध और भावी पीढिय़ों के लिए दर्ज, कई सिद्धांतों, अवधारणाओं और पवित्र पुरुषों द्वारा उनके स्पष्टीकरण के असंख्य तरीकों से, एक विरोधाभास, जिसे लोकप्रिय रूप से माया के रूप में जाना जाता है; का अलग-अलग कथित धर्म-गुरुओं द्वारा कल्पना से परे तरीकों से चर्चा और दार्शनिक विश्लेषण किया गया है।

माया क्या है? इसकी पहेली को समझाने के लिए सबसे लोकप्रिय और बहुत व्यापक रूप से सुनायी गयी एक कहानी, ऋषि नारद (आकाशीय एवररिंग नारायण भगत से सम्बन्धित है; जिन्हें कुछ हास्य कहानियों में बुद्धिमान और शरारती दोनों के रूप में वर्णित किया गया है। लेकिन आमतौर पर भगवान श्री विष्णु के श्री नारायण के रूप में समर्पित भजनों के माध्यम से शुद्ध उच्चीकृत आत्मा के रूप में दर्शाया गया है। यह दिलचस्प कहानी योगेश्वर श्रीकृष्ण ने ऋषि नारद के साथ क्या किया? इसका सम्बन्ध माया के बारे में उनके उस सवाल के जवाब में है।

देवर्षि नारद ने सदा जिज्ञासु और हमेशा-हमेशा चलने वाले दिव्य वरदान के रूप में एक बार योगेश्वर श्रीकृष्ण से पूछा- ‘भगवान! मैंने आपकी माया के बारे में बहुत सुना है; लेकिन कभी देखी नहीं है। कृपया मुझे माया दिखाएँ।’ भगवान श्रीकृष्ण ने ऋषि नारद को अपने साथ रेगिस्तान की ओर एक यात्रा करने के लिए कहा। कई मील चलने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने ऋषि से कहा कि वह उनकी प्यास बुझाने के लिए पानी लाएँ। ऋषि नारद पास के एक गाँव में गये और एक दरवाज़े पर दस्तक दी, जिसे एक खूबसूरत युवती ने खोला। उसे देखते ही नारद भूल गये कि उनका वह भगवान, जिनके लिए वह हर समय प्रार्थना करते हैं, पानी के लिए रेगिस्तान में इंतज़ार कर रहे हैं। वह खूबसूरत युवती से बातें करने लगे। उन्होंने पूरे दिन और रात को बात की, और अगले दिन वापस उस सुन्दर युवती के पिता से उसका हाथ माँगने के लिए गये।

ऋषि और खूबसूरत युवती की शादी हुई और उनके बच्चे हुए। अपने ससुर की मृत्यु के बाद उन्हें अपनी सारी सम्पत्ति विरासत में मिली और बहुत समृद्ध जीवन जीया। इस तरह से 12 साल बीत गये। एक दिन पश्चिम दिशा से एक बड़ा तूफान आया, जिसके कारण बाढ़ आ गयी और नदी किनारे के गाँव बह गये। हताशा में नारद ऋषि ने अपने तीन बच्चों और पत्नी को पकड़ लिया और अत्यधिक अशांत पानी से बचाने की कोशिश की। लेकिन एक के बाद एक उसने अपने बच्चों पर अपनी पकड़ खो दी और आखिर में उसकी पत्नी भी बह गयी। वह तैरकर नदी के तट तक पहुँचे और वहाँ पहुँचकर गिर गये। फिर निराशा में रोये कि उनका सब खो गया। तभी उनके पीछे से एक कोमल आवाज़ आयी- ‘हे वत्स! पानी कहाँ है? आप मेरे लिए पानी लाने गये थे, और मैं आधे घंटे से आपका इंतज़ार कर रहा हूँ।’ नारद ऋषि यह मान ही नहीं सकते थे कि पिछले 12 साल की जो यादें उनके दिमाग में भरी थीं, वे मुश्किल से आधे घंटे में ही हुईं। भगवान कृष्ण मुस्कुराये और कहा- ‘यह सब माया है। सभी इंसान इस तरह अपना जीवन बिताते हैं; लेकिन बहुत कम लोगों के पास यह अनुभव होता है, जो अब आपके पास है। अब आपको कभी नहीं भूलना चाहिए कि माया क्या है?’

यदि पास के गाँव में जा रहे हैं, यदि देवर्षि नारद जैसे विद्वान ऋषि ब्रह्माण्ड के भगवान के लिए अपनी आजीवन भक्ति को भूल सकते हैं और दूसरे जीवन का सपना देखते हुए गहरी नींद में गिर सकते हैं, तो कोई भी कम ज्ञानी व्यक्ति आसानी से सांसारिक सुख और कुछ ही समय में सभी प्रकार की कल्पनाएँ बनाने का शिकार हो सकता है। इस रूपक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण हमें अपने सपनों से ही नहीं जगाते हैं, बल्कि हमें नश्वरता देते हैं कि हम अपनी दिवास्वप्नों को जाने दें। जैसा कि देवर्षि नारद ने सीखा था। उन्होंने माया के विषय पर किताबें पढ़ी होंगी, और उन्होंने बड़े-बड़े आचार्यों को इस पर बातचीत करते हुए सुना भी होगा, लेकिन वे तब भी सपने देखते रहे; क्योंकि वह अपने भ्रमों के जाल में फँसे थे।

उसे खुद को उस हिस्से के साथ सम्पर्क बनाने और सम्पर्क बनाने की ज़रूरत थी, जो चीज़ों का अनुभव कर सके। कृष्ण जानते थे कि क्या चाहिए? उन्होंने समझा कि नारद को ऐसी परिस्थितियों में रखा जाना चाहिए, जो ध्यान के बल को सक्रिय करने में मदद करें। इसलिए नारद को माया के बारे में पढ़ाने की पेशकश करने के बजाय, उन्होंने उसे अपने लिए अनुभव करने के लिए भेज दिया।

एक अन्य रहस्यमय उदाहरण फिर से योगेश्वर श्रीकृष्ण के साथ जुड़ा हुआ है, जब लोकप्रिय धारणा के अनुसार माना जाता है कि उन्होंने गीता की पवित्र पुस्तक के सभी 18 अध्यायों का खुलासा किया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस सारे दिव्य ज्ञान में 700 श्लोक शामिल थे, जो बहुत ही विद्वान व्यक्ति के लिए अकेले पढऩे में कम से कम कुछ घंटे लगाते थे; सुनने, बात करने और फिर दिव्य संदेश पर अभिनय करने के लिए नहीं।

जब दोनों पक्षों की सेनाएँ युद्ध गर्जना के बीच हाथियों और घोड़ों पर सवार होती थीं और वे सभी तरह के हथियारों और पैदल सैनिकों से लैस होकर एक अर्धचंद्राकार में आक्रामक मुद्रा धारण करती थीं, तो इस स्थिति कैसे अनुभवहीन, अनिर्णय से घिरा और भयभीत जिज्ञासु योद्धा कैसे दैवी ज्ञान के इस लम्बे वर्णन को सुन सकता है।

इस कहानी के अनुसार, भगवान ने स्वयं अर्जुन को योद्धा के रूप में अपना विराट रूप दिखाया, जिससे उन्हें अपने कर्तव्य का एहसास हुआ या जिसे उनका स्वधर्म कहा गया। यदि किसी ने भी पूरी श्रद्धा के साथ ऋषि नारद की कहानी सुनी या पढ़ी है, तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि सम्पूर्ण दिव्य ज्ञान स्वयं भगवान द्वारा अवगत कराया गया था और साधक अर्जुन ने तुरन्त अपने परिचित समय के पैमाने पर जाना। यह फिर से माया का एक बहुत ही आकर्षक, अभी तक परिचित, गूढ़ उदाहरण है- सनातन हिन्दू दर्शन का शाश्वत् विरोधाभास। माया की अवधारणा में गहराई से उतरना यहीं नहीं रुकता।

नयी मुसीबत में फँसे सिंधिया

कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो कि अब राज्यसभा सांसद हैं, एक नयी मुसीबत में फँस गये हैं। दरअसल उन पर 100 बीघा सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने का आरोप है। इस ज़मीन की कीमत करीब 600 करोड़ रुपये बतायी जाती है। इस ज़मीन को लेकर उन पर चल रहे मुकदमे की हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई थी। इस ज़मीन को लेकर जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता ग्वालियर के सामाजिक कार्यकर्ता ऋषभ भदौरिया हैं। हाई कोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार से जवाब देने को कहा है।

बता दें कि इससे छह महीने पहले भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ ज़मीन से जुड़े दो मामलों में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने जाँच की थी। बाद में सिंधिया के एक ज़िम्मेदार अधिकारी ने बताया कि दोनों मामलों को सुबूतों के अभाव में खत्म कर दिया गया है। सवाल यह उठता है कि दोनों मामले उनके भाजपा में शामिल होने के बाद ही समाप्त कैसे हो गये?

वैसे मध्य प्रदेश के राजनीतिक जानकारों की मानें, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ज़मीन हथियाने के अब तक कई आरोप लग चुके हैं। उन पर ईओडब्ल्यू की जाँच तक चले जिन दो मामलों को खत्म करने की बात उनके ज़िम्मेदार अधिकारी ने कही, उनमें एक मामले का शिकायतकर्ता सुरेंद्र श्रीवास्तव नाम का एक शख्स था।

इस मामले में आवेदक का आरोप था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके परिजनों ने 2009 में ग्वालियर के महलगाँव की सर्वे नम्बर-916 की ज़मीन खरीदकर रजिस्ट्री में हेरफेर कराकर उसकी 6000 वर्ग फीट ज़मीन कम कर दी। वहीं दूसरे मामले में सिंधिया देवस्थान के चेयरमेन और ट्रस्टियों द्वारा राजस्व विभाग के अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर सर्वे नम्बर-1217 की सरकारी ज़मीन के फर्ज़ी दस्तावेज़ तैयार करके बेचने का आरोप लगाया गया है। इसके अलावा उन पर शिवपुरी के पास आदिवासियों की करीब 700 बीघा ज़मीन हड़पने का भी आरोप लगा था। सिंधिया पर यह आरोप जून-जुलाई, 2019 में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य प्रभात झा ने लगाया। तब सिंधिया कांग्रेस में थे। प्रभात झा ने उस समय कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस ज़मीन पर कब्ज़ा जमाया, उस ज़मीन के सरकारी कागज़ हैं। उन्होंने तब के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से आग्रह किया था कि वह इस मामले की जाँच करवाएँ।

अब इस 100 बीघा सरकारी ज़मीन मामले में मध्य प्रदेश के राजनीतिक जानकारों ने बताया है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यह ज़मीन 100 रुपये के आसपास में ली थी। हालाँकि इसके सुबूत नहीं मिल सके हैं, पर आरोप यही है। मगर यह बात सही है कि ज़मीन सरकारी है। बताया जा रहा है कि यह ज़मीन ज्योतिरादित्य सिंधिया चेरिटेबल और कमलराजा चेरिटेबल ट्रस्ट के नाम से ली गयी है। इस ज़मीन पर फिलहाल सुनवाई हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ 3 अगस्त को याचिकाकर्ता ने माँग की कि इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष भी सुना जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता के वकीलों डी.पी. सिंह और अवधेश सिंह तोमर ने दलील दी कि देश की आज़ाद के वक्त तत्कालीन रियासतों का विलय किया गया था, तब केंद्र सरकार ने रियासतों के राजाओं के साथ एक प्रतिज्ञा पत्र तैयार कराया था कि कौन-सी सम्पत्तियाँ राजा के पास रहेंगी और कौन-सी सरकारी हो जाएँगी। इसी सिलसिले में 30 अक्टूबर 1948 को केंद्र सरकार व तत्कालीन सिंधिया राजघराने के बीच एक प्रतिज्ञा पत्र तैयार हुआ था। इसलिए 22 सर्वे नम्बरों की 100 बीघा ज़मीन ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलराजा ट्रस्टों के नाम की गयी थी, उसका उल्लेख केंद्र सरकार और ग्वालियर की पूर्ववर्ती सिंधिया रियासत के बीच हुए करार में है या नहीं? यह बात केंद्र सरकार ही बता सकती है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के आधार पर ही पता चलेगा कि यह ज़मीन किसकी है?

इस अपील पर हाई कोर्ट ने वकीलों से पूछा कि किसी पक्षकार को बनाने के लिए जवाब की ज़रूरत क्या है? लेकिन याचिकाकर्ता ने दोबारा अपनी माँग दोहरायी और कोर्ट को यह भी बताया कि ग्वालियर शहर के सिटी सेंटर, महलगाँव ओहदपुर, सिरोल की सरकारी ज़मीन को राजस्व अधिकारियों ने इन दोनों ट्रस्टों के नाम किया है। तब हाई कोर्ट ने इस रिपोर्ट को पेश करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार की ओर से हाई कोर्ट में मौज़ूद वकील से कहा, जिस पर उन्होंने इसके के लिए समय माँगा।

सिंधिया ने फँसने पर स्कूल निर्माण की कही बात

जानकार कहते हैं कि इस ज़मीन के विवाद में फँसने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया अब ज़मीन पर स्कूल निर्माण की बात कह रहे हैं। याचिकाकर्ता और कुछ अन्य लोगों की मानें, तो राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा पहले इस ज़मीन का उपयोग निजी हित में किये जाने की कोशिशें की गयीं; लेकिन जब मामला अदालत में पहुँचा, तो उन्होंने इस पर स्कूल निर्माण का राग अलापना शुरू कर दिया। लोगों का कहना है कि अगर सिंधिया को इस ज़मीन पर स्कूल ही बनवाना था, तो अब तक निर्माण शुरू क्यों नहीं किया गया और यह बात उन्होंने अदालत में मुकदमा दर्ज होने से पहले क्यों नहीं कही। हालाँकि इस मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बहुत कुछ बोलने से परहेज़ किया है; लेकिन उन्हें बताना चाहिए कि यदि वह इस सरकारी ज़मीन पर वाकई स्कूल बनाना चाहते हैं और अगर भविष्य में ऐसा हुआ, तो क्या इस स्कूल में गरीबों के बच्चे पढ़ सकेंगे?

यह सवाल इसलिए भी बहुत ज़रूरी है, क्योंकि स्कूल तो ट्रस्टों के ज़रिये ही बनेगा और देश भर का रिकॉर्ड है कि ट्रस्टों के नाम पर सस्ते दामों में सरकारी ज़मीनों को लेने वाले ट्रस्टों या समाजसेवी संगठनों या संस्थाओं ने इनका इस्तेमाल व्यापारिक तरीके से किया है और जमकर पैसा कमाया है। ट्रस्टों के नाम पर बने कई स्कूल तो ऐसे हैं, जिनमें गरीबों के बच्चे मिलेंगे ही नहीं। अगर कोई एकाध गरीब का बच्चा वहाँ पढ़ भी रहा है, तो उसके साथ एक जैसा और सही व्यवहार नहीं होता।

मध्य प्रदेश सरकार की बढ़ रही मुुुश्किल

इन दिनों मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार काफी मुश्किलों का सामना कर रही है। इसके तीन-चार कारण हैं। एक यह कि कोरोना की रोकथाम को लेकर शिवराज सरकार को कोई खास सफलता नहीं मिल सकी है। दूसरा यह कि जबसे मध्य प्रदेश में कांग्रेस की मध्यावर्ती सरकार गिरने के बाद शिवराज की सरकार बनी है, तबसे किसानों की आत्महत्याएँ, प्रशासन के द्वारा ही किसानों की खेती की ज़मीन को जबरन छीनने की कोशिश और उनकी पिटाई, जिसमें कई किसानों ने आत्महत्या की कोशिश तक की; किसानों के प्रदर्शन भी बढ़ गये। और अब बेरोज़गार युवाओं ने रोज़गार की माँग को लेकर प्रदर्शन करके मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार की नाक में दम कर दिया है। जगह-जगह प्रदर्शन के चलते इन बेरोज़गारों को पुलिस ने हिरासत में भी लिया; लेकिन इससे बेरोज़गारों के प्रदर्शन और सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी में कोई कमी नहीं आयी। अब आलम यह है कि बेरोज़गारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। शिवराज सरकार की अगली सबसे बड़ी समस्या है विधानसभा के उप चुनाव में उसकी जीत का संकट। विदित हो कि कांग्रेस के विधायकों को तोडऩे के बाद शिवराज सिंह चौहान ने सरकार तो बना ली, लेकिन 27 सीटों पर उप चुनाव होने थे, जो अभी तक नहीं हुए हैं।

हालाँकि यह उप चुनाव सीटें खाली होने के छ: महीने के अन्दर होने थे; लेकिन कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन की वजह से अभी तक नहीं हुए हैं, जबकि शिवराज सरकार के गठन को छ: महीने हो गये हैं। मुश्किल यह है कि मध्य प्रदेश की जनता में अधिकतर लोग शिवराज सरकार के काम से असंतुष्ट नज़र आ रहे हैं, और इस बात को खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अच्छी तरह समझ रहे हैं। उप चुनाव सितंबर में ही होने की बात भी अब फीकी पड़ती नज़र आ रही है; क्योंकि अभी तक इनकी तारीख तय नहीं हुई है। वहीं चुनाव आयोग ने इस उप चुनाव को लेकर कानून मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा है, जिसमें मध्य प्रदेश में उप चुनाव टालने को लेकर कहा गया है। विपक्ष यानी कांग्रेस का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव नहीं कराना चाहते, क्योंकि वह जानते हैं कि भाजपा को हार का सामना करना पड़ सकता है, जिसके आसार भी नज़र आ रहे हैं। वहीं सट्टा बाज़ार के सूत्रों के मुताबिक, उप चुनावों में भाजपा की हार होने पर ज़्यादा चर्चा है।

हालाँकि सट्टा बाज़ार की जानकारियों को प्रमाणित नहीं कहा जा सकता है, मगर इन खबरों को काफी पक्के तौर पर माना जाता है। ऐसे में शिवराज सरकार द्वारा प्रदेश की सत्ता में बने रहने पर प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं। राजनीति के जानकार पवन सिंह कहते हैं कि मामा (शिवराज सिंह चौहान) ने मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बना तो ली है, लेकिन अब उन्हें जन-समर्थन उस तादाद में नहीं मिल रहा है, जितना कि पहले मिला करता था। ऐसे में अगर उप चुनाव हुए, तो शिवराज सरकार के मध्य-काल में ही गिर जाने की आशंका है। लोग अब भी कांग्रेस को ही अच्छा मान रहे हैं और उप चुनाव में कांग्रेस को ही ज़्यादा सीटें दे सकते हैं। सुनने में यह भी आया है कि उप चुनाव के मद्देनज़र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लोगों को तरह-तरह के प्रलोभन दे रहे हैं।

राज्यसभा के 24 फीसदी सदस्यों के खिलाफ हैं आपराधिक मामले

जब नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स ने एक सूची जारी करके खुलासा किया कि 2019 के लोक सभा चुनाव में जीतने वाले कुल 539 विजेता में से 233 लोकसभा सदस्यों ने चुनाव के दौरान खुद के खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये थे, तो इस जानकारी ने कई की भौंहें चढ़ा दीं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि घोषित आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवार के लिए लोकसभा में जीतने की सम्भावना 15.5 फीसदी थी, जबकि स्वच्छ पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के लिए यह केवल 4.7 फीसदी थी।

विडम्बना यह है कि बात जब राज्यसभा की आती है, तो कहानी अलग नहीं है। कुल 229 राज्यसभा सांसदों का विश्लेषण किया गया, तो ज़ाहिर हुआ कि इनमें से 54 अर्थात् (24 फीसदी) राज्यसभा सदस्यों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये हैं। राज्यसभा की 233 सीटें हैं, जिनमें से तीन सीटें खाली हैं। नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) ने 230 राज्यसभा सदस्यों में से 229 के शपथ पत्रों का विश्लेषण किया। एक सांसद का विश्लेषण नहीं किया गया है; क्योंकि उसका हलफनामा अनुपलब्ध था।

एडीआर के पास उपलब्ध आँकड़ों से पता चलता है कि विश्लेषण किये गये 229 राज्यसभा सदस्यों में से 54 अर्थात् (24 फीसदी) राज्यसभा सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये हैं। साथ ही 28 अर्थात् (12 फीसदी) राज्यसभा सदस्यों ने गम्भीर आपराधिक मामले घोषित किये हैं। लोकसभा की बात देखें, तो लोकसभा चुनाव-2019 में विश्लेषण किये गये 539 विजेता उम्मीदवारों में से, 233 अर्थात् (43 फीसदी) सदस्यों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये हैं। इनमें से 19 सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से सम्बन्धित मामलों की घोषणा की है। इनमें से तीन ने बलात्कार (आईपीसी की धारा-376) से सम्बन्धित हैं; जबकि छ: ने अपहरण से सम्बन्धित मामलों की घोषणा की है। हलफनामे में, जेडीयू के 16 विजेता उम्मीदवारों में से 13

(81 फीसदी), आईएनसी के 51 विजेताओं में से 29 (57 फीसदी), डीएमके से 23 विजेताओं में से 10 (43 फीसदी), एआईटीसी के मैदान में उतरे 22 विजेताओं में से 9 (41 फीसदी) और भाजपा के 301 विजेताओं में से 116 (39 फीसदी) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये हैं। राजनीतिक दलों में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसदों का फीसदी सबसे अधिक है। केरल में इडुक्की निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस सांसद डीन कुरीकोकोस ने अपने खिलाफ 204 आपराधिक मामले घोषित किये हैं। इनमें दोषपूर्ण हत्या, घर पर अत्याचार, डकैती, आपराधिक धमकी आदि से सम्बन्धित मामले शामिल हैं। गम्भीर आपराधिक मामलों की बात आने पर यह आँकड़ा कहीं अधिक भयावह है। लगभग 159 (29 फीसदी) विजेताओं ने इस बार बलात्कार, हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध आदि से सम्बन्धित मामलों सहित गम्भीर आपराधिक मामलों की घोषणा की है।

हत्या और हत्या के मामलों की कोशिश

उम्मीदवारों की शपथ पत्र के आधार पर संकलित एडीआर और इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट से पता चलता है कि महाराष्ट्र से एक राज्यसभा सांसद, भोंसले श्रीमंत उदयनराजे प्रतापसिंह महाराज (भाजपा) ने हत्या (आईपीसी धारा-302) से सम्बन्धित मामलों की घोषणा की है। चार राज्यसभा सांसदों ने हत्या के प्रयास – भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की धारा-307 – से सम्बन्धित मामलों की घोषणा की है।

महिलाओं के खिलाफ अपराध

चार राज्यसभा सदस्यों ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से सम्बन्धित मामलों की घोषणा की है। चार सांसदों में से एक, राज्यसभा सदस्य राजस्थान के के.सी. वेणुगोपाल (कांग्रेस) ने बलात्कार (भादंसं की धारा-376) से सम्बन्धित मामला घोषित किया है। जब आपराधिक मामलों के साथ राज्यसभा सदस्यों की पार्टीवार भागीदारी की बात आती है, तो भाजपा के 77 राज्यसभा सांसदों में से 14 (18 फीसदी), कांग्रेस के 40 राज्यसभा सदस्यों में से 8 (20 फीसदी), टीएमसी के 13 में से 2 (15 फीसदी) बीजद के 9 राज्यसभा सांसदों में से 3 (33 फीसदी), वाईएसआरसीपी के 6 राज्यसभा सदस्यों में से 3 (50 फीसदी) और सपा के 8 राज्यसभा सांसदों में से 2 (25 फीसदी) ने अपने हलफनामों में खुद के खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये हैं।

गम्भीर आपराधिक मामलों के साथ पार्टी के राज्यसभा सांसदों का डेटा दर्शाता है कि भाजपा के 77 राज्यसभा सांसदों में से 5 (6 फीसदी), कांग्रेस के 40 राज्यसभा सांसदों में से 6 (15 फीसदी), टीएमसी के 13 राज्यसभा सदस्यों में से 1 (8 फीसदी), बीजेडी के 9 राज्यसभा सदस्यों में से 1 (11 फीसदी), वाईएसआरसीपी के 6 राज्यसभा सदस्यों में से 3 (50 फीसदी) और आरजेडी के 5 राज्यसभा सांसदों में से 3 (60 फीसदी) ने खुद के खिलाफ गम्भीर अपराधी मामलों को अपने हलफनामों में घोषित किया है।

जब हम आपराधिक मामलों वाले राज्य वार राज्यसभा सदस्यों की बात करते हैं, तो उत्तर प्रदेश के 30 राज्यसभा सदस्यों में से 6 (20 फीसदी), महाराष्ट्र के 19 राज्यसभा सांसदों में से 8 (42 फीसदी), तमिलनाड के 18 में से 4 (22 फीसदी), पश्चिम बंगाल के 16 राज्यसभा सांसदों में से 2 (13 फीसदी) और बिहार के 15 राज्यसभा सदस्यों में से 8 (53 फीसदी) ने अपने हलफनामों में खुद के खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये हैं।

अमीर सांसद

एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि 86 राज्यसभा सदस्यों के पास 10 करोड़ रुपये से अधिक की सम्पत्ति है, जबकि 36 के पास पाँच-पाँच करोड़ रुपये से अधिक की सम्पत्ति है। वास्तव में 229 में से राज्यसभा सांसदों का विश्लेषण किया जाए तो 203 (89 फीसदी) करोड़पति हैं। प्रमुख दलों में भाजपा के 77 राज्यसभा सदस्यों में से 69 (90 फीसदी), कांग्रेस के 40 राज्यसभा सांसदों में से 37 (93 फीसदी), एआईएडीएमके के 9 (100 फीसदी) राज्यसभा सदस्य और टीएमसी के 13 में से 9 (69 फीसदी) राज्यसभा सदस्य करोड़पति हैं।

प्रमुख दलों में 77 भाजपा राज्यसभा सांसदों की प्रति सांसद औसत सम्पत्ति 27.74 करोड़ रुपये है; 40 कांग्रेस राज्यसभा सांसदों के पास औसत सम्पत्ति 38.96 करोड़ रुपये है। वहीं 13 टीएमसी राज्यसभा सांसदों के पास औसत सम्पत्ति 3.46 करोड़ रुपये और 9 एआईएडीएमके राज्यसभा सांसदों के पास 12.40 करोड़ रुपये हैं। सबसे ज़्यादा सम्पत्ति वाले शीर्ष तीन राज्यसभा सांसद महेंद्र प्रसाद (जेडीयू, बिहार), अल्ला अयोध्या रामी रेड्डी (वाईएसआरसीपी आंध्र प्रदेश) और जया अमिताभ हैं।

राज्यसभा के 24 (10 फीसदी) सांसदों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता 8वीं और 12वीं पास के बीच की घोषित की है, जबकि 200 (87 फीसदी) राज्यसभा सांसदों ने स्नातक या उससे ऊपर की शैक्षिक योग्यता होने की घोषणा की है।

कुल 5 राज्यसभा सांसद डिप्लोमा धारक हैं। चार (2 फीसदी) राज्यसभा सांसदों ने अपनी उम्र 31 से 40 साल के बीच बतायी है, जबकि 117 (51 फीसदी) राज्यसभा सांसदों ने अपनी उम्र 41 से 60 साल के बीच बतायी है। राज्यसभा सांसद 105 (46 फीसदी) हैं, जिन्होंने अपनी आयु 61 से 80 वर्ष के बीच होने की घोषणा की है। तीन राज्यसभा सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी आयु 80 वर्ष से अधिक होने की घोषणा की है। कुल 229 राज्यसभा सदस्यों में से केवल 22 (10 फीसदी) राज्यसभा सदस्य ही महिलाएँ हैं।

कोरोना-काल में बढ़ी बेरोज़गारी में नये अवसर, नये रोज़गार

कोरोना काल में पूरी दुनिया में लगे लॉकडाउन ने बहुतों के रोज़गार छीन लिए, रोज़ी-रोटी की समस्या पैदा कर दी, कितनों का जीने का हौसला छीन लिया। लेकिन कहते हैं कि परिस्थितियों का मुकाबला करके जीने का नाम ही ज़िन्दगी है। यानी इंसान वही है, जो हर परिस्थिति में जीने का रास्ता निकाल ले। इस बात को शायद ही सदियों तक भुलाया जा सके कि दुनिया भर के 92 फीसदी लोगों पर कोरोना वायरस के संक्रमण का बेहद खराब असर पड़ा है। 92 फीसदी इसलिए, क्योंकि दुनिया के 8 फीसदी लोग, जो सबसे ज़्यादा ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीते हैं, उन्हें इस महामारी से कोई नुकसान नहीं हुआ है। यह वो अमीर लोग हैं, जो अथाह सम्पत्तियों के मालिक हैं। कोरोना वायरस की महामारी ने जिन 92 फीसदी को प्रभावित किया, उनमें करोड़ों लोग धन हानि से जूझ गये। लाखों लोगों की मौत हो गयी और लाखों लोग अभी भी रोज़ी-रोटी की िकल्लत से जूझ रहे हैं। अगर तरह की कम्पनियाँ बन्द हो गयीं, जिससे लोगों के रोज़गार तो गये ही, लाखों लोगों की नौकरी भी चली गयी। इसके अलावा कई काम-धन्धों पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी गयी, उदाहरण के तौर पर रेस्टोरेंट और बहुत-से होटल तक बन्द कर दिये गये। लेकिन वहीं कुछ लोगों ने इस परेशानी वाले दौर में भी कुछ रोज़गार करने शुरू कर दिये हैं। इन रोज़गारों में मास्क बनाना, सैनेटाइज बनाना और घर से खाना बनाकर ऑनलाइन सप्लाई करना आदि शामिल हैं।

लॉकडाउन में स्वरोज़गार करने वाले कुछ लोगों से हमने बात की, तो पता चला कि इन लोगों ने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए कम सही, लेकिन पैसा कमाया और अपना घर चलाते रहे। दिल्ली में रहने वाली चेतना कपूर ने बताया कि वह इस कोरोना महामारी में मास्क बनाती हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि वह अकेले की रोज़ी-रोटी के लिए ही यह काम नहीं करतीं, बल्कि एक दर्ज़न से अधिक महिलाओं को भी उन्होंने इस काम से जोड़ा है। इसके लिए उन्होंने उन्हें ट्रेनिंग देकर रोज़गार का रास्ता तैयार किया है। चेतना कपूर ने बताया कि आज इस लॉकडाउन और बेरोज़गारी के दौर में भी, जो महिलाएँ घर में बैठी रहती थीं, वे इस खाली समय में पाँच से छ: हज़ार रुपये तक महीने में कमा रही है। चेतना कपूर ने बताया कि वह खुद इस काम से 15-20 हज़ार रुपये महीने कमा लेती हैं। इसके अलावा वह प्रीमिक्स बनाना सिखाती हैं। चेतना कपूर के अनुसार, यह एक हेल्दी और पाँच से 10 मिनट में आसानी से बन जाता है। प्रीमिक्स कई तरह का होता है। लॉकडाउन में जब बाहर के खाने के शौकीनों को घर में तुरन्त बाहर के स्वाद जैसा खाना चाहिए, तो वह प्रीमिक्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। चेतना कपूर के अनुसार, कोरोना-काल में प्रीमिक्स की बिक्री में काफी उछाल आया है। खाने के प्रोडक्ट को कैसे बेचें, इस सवाल के जवाब में चेतना कपूर कहती हैं कि ऑनलाइन खाना बेचने वाली कम्पनियों के ज़रिये अपने घर में बनाकर खाने की सप्लाई की जा सकती है।

चेतना कपूर का कहना है कि लॉकडाउन में उन्होंने न केवल अपना घर चलाने के लिए पैसे कमाये, बल्कि घरों में बेकार बैठी अनेक महिलाओं के लिए भी रोज़गार का ज़रिया तैयार किया। यह पूछने पर कि क्या मास्क के साथ-साथ घर में सैनेटाइजर भी बना सकते हैं? उन्होंने कहा कि बना सकते हैं, लेकिन उसके लिए लाइसेंस लेना बहुत ज़रूरी है।

इस बारे में गली-गली सब्ज़ी बेचने वाले ब्रजपाल उर्फ राजा ने बताया कि कोरोना महामारी से पहले उनका बेल्डिंग का काम था। लेकिन जैसे ही लॉकडाउन लगा, उनका काम एकदम चौपट हो गया। घर चलाने की समस्या ने उन्हें दूसरा काम करने पर मजबूर किया। लेकिन उनके आगे दो समस्याएँ थीं, एक यह कि वह क्या करें? जिससे घर का खर्च चलता रहे और दूसरा यह कि उस काम के लिए उनकी जेब में बजट है या नहीं? तब उनके दिमाग में सब्ज़ी बेचने का विचार आया और उन्होंने 1200 रुपये का एक पुराना ठेला खरीदा तथा उस पर मण्डी से 600 रुपये की सब्ज़ी लाकर गली-गली बेचने लगे। शुरू में उन्हें थोड़ी झिझक भी हुई और आमदनी भी कम हुई; पर बाद में उनका यह काम भी खूब चलने लगा। आज वह इस काम से ठीकठाक कमा रहे हैं।

ब्रजपाल उर्फ राजा के काम बदलने में प्रधानमंत्री के महामारी में अवसर ढूँढने की बात काफी फिट बैठती है। अवसर का मतलब बहुत-से लोगों ने भले ही जो निकाला हो, पर अवसर का मतलब यह भी होता है कि चाहे जैसी परिस्थिति हो, इंसान को जीना सीखना चाहिए।

रोज़गार बढऩे से उबरेगी अर्थ-व्यवस्था

आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि देश की अर्थ-व्यवस्था को सुधारने के लिए उद्योगों को फिर से शुरू करना होगा, जिन्हें चलाने के लिए पूँजी के साथ-साथ लॉकडाउन में अपने-अपने घरों को लौट चुके श्रमिकों को वापस बुलाना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए दिल्ली मॉडल की तरह रोज़गार मुहैया कराने होंगे। पिछले दिनों दिल्ली सरकार की पहल पर लाखों लोगों को नौकरियाँ मिली हैं। ऐसी ही पहल देश के हर राज्य में की जानी चाहिए, ताकि लोगों के पास पैसे की आवक हो और लोग उसे खर्च करें और बाज़ारों खरीदारी बढ़े। क्योंकि खरीदारी होने पर ही माँग बढ़ेगी और उत्पादक नये उत्पादन के लिए अग्रसर होंगे।

अपनानी होंगी नयी व्यवस्थाएँ

विशेषज्ञों की राय है कि आज जब लाखों लोग बेरोज़गार हो रहे हैं, ऐसे में नये रोज़गारों की तलाश करनी होगी। उनका कहना है कि इस समय उद्योग-धन्धों की पूरी संरचना और उसमें काम करने के लिए निमंत्रित रोज़गार को नये सिरे से तैयार करने की ज़रूरत है। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन ने कहा है कि कोविड-19 जैसी महामारी के असर और चौथी औद्योगिक क्रान्ति के चलते हो रहे बदलावों से लगभग 50 फीसदी लोगों की आजीविका पर प्रभाव पड़ा है। यानी बहुत बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हुए हैं। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इस समय देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती नये तरीके से पूरे व्यावसायिक ढाँचे को खड़ा करना है। इसके लिए कारोबारियों को नयी व्यवस्थाएँ अपनाने के लिए तैयार रहना होगा और सरकार को उनकी मदद करनी होगी। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर बनने का आह्वान पर शहरों और गाँवों में बहुत लोगों ने इस पहल को सकारात्मक तरीके से लिया है और नये रोज़गार की खोज भी की है; जिसका उदाहरण शहरों में चेतना कपूर और ब्रजपाल उर्फ राजा जैसे लोग हैं, तो वहीं गाँवों में मास्क आदि बनाकर रोज़ी-रोटी चलाने वाली महिलाएँ हैं। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत समूह बनाकर स्वरोज़गार कर रही हैं। गुरु नानक स्वयं सहायता समूह की मदद से भी अनेक महिलाएँ आज रोज़गार पा रही हैं। इस मामले में खादी ग्रामोद्योग भी काफी समय से पहल कर रहा है; लोग उसकी मदद से भी स्वरोज़गार कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि स्वरोज़गार की ट्रेनिंग मिलती है और उसके बाद स्वरोज़गार करने के लिए लोन भी मिल जाता है। ऐसे कई समूह और ट्रेनिंग सेंटर देश में काफी समय से चल रहे हैं, जिनको प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। ऐसे समूहों और ट्रेनिंग सेंटरों को अगर सरकार प्रोत्साहित करेगी, तो देश में स्वरोज़गार करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि होगी, जिससे लोगों को काफी राहत मिलेगी और अर्थ-व्यवस्था मज़बूत होगी।

श्रमिकों के मन से निकालना होगा डर

आज हालात ये हैं कि हर कोई कोरोना वायरस महामारी से बुरी तरह डरा हुआ है। ऐसे में सरकार को लॉकडाउन के समय शहरों से अपने-अपने घरों को लौट चुके श्रमिकों के मन से डर निकालना होगा। साथ ही उन्हें आश्वासन देना होगा कि अब उन्हें लॉकडाउन के दौरान की तरह परेशानी नहीं उठानी होगी और न ही उनके साथ किसी तरह का दुव्र्यवहार होगा। जैसा कि विदित है कि लॉकडाउन के दौरान रोज़गार छिन जाने पर घर लौट रहे श्रमिकों पर अनेक जगह पुलिस वालों ने दुव्र्यवहार किया था। इसके अलावा लोगों को आश्वस्त करना होगा कि उन्हें शहर लौटने पर रोज़गार मिलेगा। हालाँकि यह करना आसान और पूरी तरह सुरक्षित नहीं है; लेकिन इसका बेहतर तरीका यह हो सकता है कि किसी संस्थान को जितने लोग चाहिए, वह उतने ही लोगों को अपने भरोसे और सुरक्षा के पूर्ण आश्वासन के साथ बुलाये तथा उन्हें रोज़गार दे। ऐसे करने से न केवल श्रमिकों का दोबारा भरोसा कायम होगा, बल्कि उनके मन का डर भी निकलेगा और धीरे-धीरे अर्थ-व्यवस्था पटरी पर लौटने लगेगी।

महिला सशक्तिकरण की तरफ हरियाणा

2018 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने जब महिलाओं के साथ हुए यौन हिंसा के आँकड़े प्रस्तुत किये थे, तो उन आँकड़ों में महिलाओं के यौन शोषण को लेकर हरियाणा राज्य की स्थिती बहुत दयनीय बतायी गयी थी। सन् 2011 की जनगणना में हरियाणा का लिंगानुपात भी देश के लिंगानुपात से काफी कम था, जिससे यह बात सामने आयी थी कि हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या बड़े पैमाने पर होता है। लेकिन हरियाणा अपनी इस छवि को पीछे छोड़ते हुए एक नयी छवि गढऩे जा रहा है; जहाँ महिलाओं को पुरुषों से कतई कम नहीं समझा जाएगा। हरियाणा सरकार, पुरुषों और महिला उम्मीदवारों के लिए पंचायत चुनावों में 50-50 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए एक विधेयक लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत प्रत्येक कार्यकाल की समाप्ति के बाद महिला और पुरुष उम्मीदवारों के बीच सीटों की अदला-बदली की जाएगी। यह व्यवस्था 2021 में होने वाले पंचायत चुनावों से शुरू होगी।

पिछले दिनों हरियाणा के उप मुख्यमंत्री सीएम दुष्यंत चौटाला ने इसकी घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि भाजपा-जजपा विधायक दल इस पर सहमति जता चुके हैं। यह गठबन्धन सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम का भी हिस्सा है। जल्द ही कैबिनेट बैठक में मंज़ूरी के लिए इसका एजेंडा लाया जाएगा। इस पर काम शुरू कर दिया गया है। कैबिनेट मंज़ूरी के बाद सरकार विधानसभा के अगले सत्र में विधेयक पारित कराकर 50 फीसदी आरक्षण का कानून बना देगी। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को यह आरक्षण मिलने से ग्रामीण विकास तेज़ी से हो सकेगा।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार महिला जनप्रतिनिधियों की हौसला बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वाली 100 महिला प्रतिनिधियों को स्कूटी देने जा रही है। इनमें 10 ज़िला परिषद् सदस्य, 20 ब्लॉक समिति सदस्य, 40 वार्ड सदस्य व 30 सरपंच शामिल होंगी। रक्षाबन्धन के मौके पर खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी इसका ऐलान किया। ज्ञात हो कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और जजपा ने अलग-अलग चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हुए महिलाओं की पंचायती राज व्यवस्था में भागीदारी बढ़ाने का दावा किया था।

20 राज्यों में पहले से ही है 50 फीसदी महिला आरक्षण

महिलाओं के 50 फीसदी आरक्षण देने पर गौर करें तो देश में फिलहाल 20 राज्य पहले ही पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दे चुके हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु जैसे बड़े प्रदेश शामिल हैं। हालाँकि इन राज्यों में लॉटरी द्वारा महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाती हैं; जबकि हरियाणा में प्रत्येक कार्यकाल की समाप्ति के बाद महिला और पुरुष उम्मीदवारों के बीच सीटों की अदला-बदली की जाएगी। हरियाणा इस प्रकार की विधि को अपनाने वाला देश का पहला राज्य होगा।

जनप्रतिनिधियों के शैक्षणिक-योग्यता की शर्त

हरियाणा देश का पहला राज्य है, जिसने पंचायत चुनाव के लिए शैक्षणिक योग्यता की शर्त लगायी थी। चाहे महिला हो या पुरुष सभी के लिए शैक्षणिक योग्यता की सीमा निर्धारित है। इसका विरोध भी हुआ था और मामला अदालत में पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर अपनी मुहर लगायी थी। इससे पंचायतों के विकास कार्य में काफी तेज़ी आयी है।

देश में हैं 14 लाख से ज़्यादा महिला सरपंच

केंद्रीय मंत्री नरेद्र सिंह तोमर ने 2019 में संसद में दिये गये एक वक्तव्य में कहा था कि देश में 2 लाख 53 हज़ार 380 ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें करीब 31 लाख जनप्रतिनिधि हैं। इनमें महिलाओं की संख्या 14.39 लाख है, यह जनप्रतिनिधियों का करीब 46 फीसदी है।

हरियाणा में महिलाओं की भागीदारी

हरियाणा में महिलाओं के प्रति लोगों के नज़रिये में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन लचीलापन आया है। यही कारण रहा है कि हरियाणा की महिलाओं ने राष्ट्रीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अपना परचम लहराया है। पिछले आँकड़े देखें, तो सिनेमा में सफलता, अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीतने, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने, विश्व सुंदरी का ताज जीतने से लेकर हर क्षेत्र में हरियाणा की लड़कियों ने एक नया इतिहास लिखा है। विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर, दंगल गर्ल गीता और बबीता फोगाट, ओलंपिक कांस्य जीतने वाली पहलवान साक्षी मलिक, माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही संतोष यादव, अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी सायना नेहवाल, पूर्व मिस इंडिया और बालीवुड अभिनेत्री जुही चावला, परिणीति चोपड़ा और मल्लिका सहरावत, अंतरिक्ष मिशन पर जाने वाली कल्पना चावला या स्व. राजनेता सुषमा स्वराज जैसी दिग्गज हरियाणा की महिलाओं ने अपने उपलब्धियों से राज्य में बहुत समय से स्थापित रुढि़वादी मानसिकताओं को तोडऩे में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का हरियाणा सरकार का हालिया फैसला निश्चित ही महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक असाधारण कदम साबित होगा। ऐसे कई अध्ययन मौज़ूद हैं, जो यह दर्शाते हैं कि सरकार द्वारा दिये गये आरक्षण ने सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में काफी सुधार किया है। स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी की सबसे अच्छी बात यह है कि स्थानीय शासन में मौज़ूद महिलाएँ संवेदनशील वर्गों खासतौर पर महिलाओं और बच्चों की ज़रूरतों और हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करती हैं।

मन की बात में डिसलाइक और मोदी का डर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रसिद्ध कार्यक्रम मन की बात को सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब पर लाइक ज़्यादा डिसलाइक मिलने की खबर तो सभी ने सुनी होगी। लेकिन इससे भाजपा और प्रधानमंत्री खुद बहुत ज़्यादा डर सकते हैं, यह बात शायद ही किसी ने सोची होगी। यह डर इस हद तक प्रधानमंत्री के मन में घर कर गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने मन की बात वाले वीडियो में डिसलाइक और कमेंट का ऑप्शन ही बन्द कर दिया है। विदित हो कि प्रधानमंत्री ने इसी 30 अगस्त को अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के ज़रिये देश को सम्बोधित किया था। लेकिन उनके इस कार्यक्रम को तकरीबन दोगुने से अधिक डिसलाइक मिले। इससे परेशान होकर पीएमओ ने यूट्यूब पर इस वीडियो में डिसलाइक और कमेंट का ऑप्शन ही बन्द कर दिया है।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी के नाम से बने यूट्यूब अकाउंट ‘हृड्डह्म्द्गठ्ठस्रह्म्ड्ड रूशस्रद्ब’ पर ‘प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी मन की बात विद नेशन’ शीर्षक से उनके वीडियो अपलोड होते हैं। इसमें रेडियो के ज़रिये हर महीने के आखिर में प्रसारित होने वाले उनके प्रसिद्ध कार्यक्रम मन की बात का वीडियो भी अपलोड होता है, जिसे अब तक काफी पसन्द किया जाता रहा है। लेकिन अगस्त महीने वाले मन की बात कार्यक्रम को दोगुने से अधिक डिसलाइक मिलने पर हडक़म्प मच गया।

इस वीडियो को पहले ही दिन तकरीबन 35 हज़ार लाइक मिले, तो 90 हज़ार लोगों ने इसे डिस्लाइक कर दिया। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि साढ़े छ: लाख से अधिक व्यूज के बावजूद लाइक और डिसलाइक कम ही मिले। प्रधानमंत्री के इस वाले मन की बात कार्यक्रम के डिसलाइक ऑप्शन के बन्द होने से पहले तक के आँकड़ों को देखने पर पता चलता है कि यूट्यूब पर लाइक करने वाले से करीब दो गुना अधिक लोगों ने इस वीडियो को डिसलाइक किया। इसके अलावा निगेटिव कमेंट की भी भरमार इस वीडियो में है। बता दें कि इस बार के मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देसी खिलौने बनाने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया था। उन्होंने कहा था- ‘अब सभी के लिए लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने का समय है। आइए हम अपने युवाओं के लिए कुछ नये प्रकार के अच्छी क्वालिटी वाले खिलौने बनाते हैं। उन्होंने कहा कि खिलौना वो हो, जिसकी मौज़ूदगी में बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी।’

पार्टी के चैनल पर मिले सबसे ज़्यादा डिसलाइक

हैरत की बात यह है कि प्रधानमंत्री के यूट्यूब चैनल पर ही नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा के चैनल पर अपलोड मन की बात कार्यक्रम को भी लोगों ने बहुत अधिक नापसंद किया है। यहाँ पर तो इस कार्यक्रम को प्रधानमंत्री के यूट्यूब चैनल से भी ज़्यादा तकरीबन आठ गुना डिसलाइक मिले हैं।

इसी दौरान भाजपा के यूट्यूब चैनल पर नज़र डाली गयी, तो पता चला कि मन की बात कार्यक्रम को यहाँ 1,312,602 व्यूज मिले, जिसमें 52 हज़ार लाइक, तो इससे तकरीबन आठ गुना ज़्यादा 392 हज़ार डिसलाइक मिले।

क्या विदेशियों को भी पसंद नहीं मोदी

यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि भाजपा का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम को यूट्यूब पर 98 फीसदी विदेशियों के डिसलाइक मिले हैं। भारतीयों में डिसलाइक का बटन दबाने वाले केवल दो फीसदी ही हैं। हालाँकि भाजपा का यह भी कहना है कि इसके पीछे कांग्रेस का हाथ है। भाजपा का कहना है कि यह जेईई और नीट परीक्षा के खिलाफ कांग्रेस के कैंपेन का हिस्सा है। वहीं कांग्रेस ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि इसके लिए प्रधानमंत्री खुद ज़िम्मेदार हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल मोदी सरकार से परीक्षा को एक बार फिर टालने की माँग कर रहे हैं।

क्या प्रधानमंत्री की गरिमा हुई है धूमिल

ऐसा माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं, तबसे प्रधानमंत्री पद की गरिमा धूमिल हुई है। कई बार यह बात सामने आयी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद करने वाले लोग काफी हैं; लेकिन उन पर तंज करने वालों की भी कमी नहीं रही है। उन्हें अब तक कई ऐसे नाम लोगों ने दिये हैं, जो एक प्रधानमंत्री की गरिमा का धूमिल करते महसूस होते हैं। इतना ही नहीं, देश में जब प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य चेहरे की बात होती है, तो राहुल गाँधी उनको टक्कर देते दिखते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक राजनीति के जानकार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी छवि खराब करने के लिए खुद ज़िम्मेदार हैं; वरना 2014 में ही नहीं, बल्कि 2019 में भी लोगों ने उन्हें बड़ी उम्मीद के साथ भारी बहुमत दिया था।

बजरी माफिया का खूनी शिकंजा

संगठित अपराध और हिंसक गतिविधियों के चलते खनन माफिया ने पूरे राज्य को निजी जागीर के रूप में बन्धक बना लिया है। माफिया की दहशतगर्दी का इससे बड़ा सुबूत और क्या होगा कि जहाँ कहीं भी उन्हें रोका गया, उन्होंने खून की नदियाँ बहाने में एक पल की भी देर नहीं की। अलवर में बार्डर होमगार्ड की नृशंस हत्या और जालोर में पिता, पुत्र, पुत्री को ट्रेक्टर-ट्राली से कुचलने की हाहाकारी घटनाएँ प्रतीकात्मक रूप से एक भयावह सच्चाई को उजागर कर रही थी कि राज्य की बागडोर अब माफिया सरदारों के हाथों में पहुँच गयी है। अलवर में खनन माफिया के दुस्साहस की पराकाष्ठा थी कि पहले तो रोके जाने पर हेामगार्डों को ट्रेक्टर-ट्राली चढ़ाकर एक गार्ड की हत्या कर दी। फिर बजरी माफिया के गुण्डे पत्थर बरसाकर भाग निकले। जालोर के खायला कस्बे में अवैध बजरी ले जा रहे ट्रेक्टर ने रोक-टोक किये जाने पर एक परिवार को ही कुचल दिया। पिछले पाँच साल में माफिया के बढ़ते शिकंजे में कितने लोग जान गँवा चुके हैं। इसके आँकड़े ही चौंका देते हैं।

जल, जंगल और पर्वतों को खोखला करने वाले गिरोहबंद बेखौफ खिलाडिय़ों की दस्तक को क्या अनसुना किया जा रहा है? सरकार इस मामले में सफाई देते हुए नहीं थकती कि पिछले तीन साल में बजरी माफिया से 100 करोड़ का ज़ुर्माना वसूला जा चुका है। लेकिन साथ ही बुझे मन से प्रशासन भी अपराधीकरण को भी स्वीकार करता है कि माफिया के हौसले बुलंद है। इस मामले में सरकार द्वारा तैयार करवाई गयी एक रिपोर्ट अवैध खनन की मोटी तस्वीर तो बयाँ करती है, लेकिन रिपोर्ट में इस खेल को रोकने की कोशिशों की स्पष्ट तस्वीर का ज़िक्र तक नहीं है। खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया यह कहकर अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते हुए नज़र आते हैं कि ‘यह कैंसर तो हमें पिछली भाजपा सरकार ने दिया है। हमें तो इसे जबरन भोगना पड़ रहा है।

भाया यह कहते हुए अपनी परवशता जताते हैं कि इस कैंसर का इलाज आसान नहीं है। हालाँकि उन्होंने माफिया को नेस्तोनबूद करने के लिए यह कहते हुए नयी नीति लाने का ज़िक्र भी किया कि एक सीमा तक खनन में वैधता निर्धारित कर दी जाए, ताकि यह खेल थम सके। लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि इस तरह के बयान तो खनन मंत्री की लफ्फाज़ी के सिवाय कुछ नहीं है। सवाल है कि ज़मीनी स्तर पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? सूत्र तो यहाँ तक कहते हैं कि पूरा खेल राजनीतिक संरक्षण और विभागीय अफसरों की मिलीभगत पर टिका है। भाजपा नेता इसका पूरा दोष सन् 2013 के दौरान सत्ता में रही कांग्रेस सरकार पर मढ़ते हैं कि यह नौबत तो तत्कालीन गहलोत सरकार की नीतियों का नतीजा है। खनन कारोबारी कुछ और ही पीड़ा बयाँ करते हैं। उनका कथन सरकार की मंशा को ही कटघरे में खड़ा करता है कि अवैध खनन रोकने के लिए बनाये गये 80 चैक पोस्ट हटाने का क्या मतलब था? खनन महकमे के भविष्य को लेकर दो धारणाएँ हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इस मंत्रालय को ही समाप्त कर देना चाहिए। इसके कलुषित इतिहास को देखते हुए इससे बड़ा कोई विकल्प नहीं हो सकता।

बजरी खनन के अवैध खेल को लेकर मंत्रीजी का तर्क है कि इस बाबत तो केंद्र सरकार ही कोई नीति बनाए, तो बेहतर होगा। लेकिन सवाल है कि बजरी खनन के लाल बाग में मज़े करने वाला माफिया क्या किसी भी नीति को सफल होने देगा? परजीवी िकस्म का माफिया क्यों नयी पाबंदियों को चलने देगा? विशेषज्ञों का कहना है कि बजरी माफिया पर शिकंजा कसने की ताकत ही जब छीज रही हो, तो कैसा भी कोई कानून क्या कर लेगा?

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने बजरी माफिया के बुलंद होसलों पर राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए जवाब तलबी की कि ‘अवैध बजरी खनन रोकने के लिए क्या किया? चार हफ्ते में बताए सरकार।’ बीती फरवरी में जारी किये गये इस आदेश को 6 महीने गुज़र चुके हैं। लेकिन सरकार ने क्या किया? 100 करोड़ का ज़ुर्माना वसूला और 30 हज़ार वाहनों को ज़ब्त किया। किन्तु बजरी खनन तो नहीं थमा। बजरी माफिया कितना ताकतवर है? इसकी तफतीश करें तो, तस्करी के तार मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश हरियाणा-दिल्ली तथा गुजरात और महाराष्ट्र तक जुड़े हैं। अरावली के खत्म होते पहाड़ों की तस्वीर पर हैरानी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि ‘क्या इन पहाड़ों को हनुमान जी उठा ले गये?’

सूत्रों का कहना है कि बजरी माफिया को बेकाबू करने के नाम पर अब तक समितियाँ बनती रही हैं और बैठकें होती रही हैं। लेकिन समितियाँ में शामिल अफसर बजरी माफिया की आहटों को सुनने तक को तैयार नहीं है। बजरी माफिया के हौसले बुलंद हैं और वो पूरी गिरोहबन्दी के साथ सरकारी फौज पाटे से दो-दो हाथ करने को तैयार लगता है। इस मुहाने पर खान महकमा क्या कर रहा है? कोई खबर नहीं है। हैरत की बात है कि पिछली भाजपा सरकार की मुखिया वसुंधरा राजे ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाते हुए रेत खनन पर लगाये गये प्रतिबन्ध में कुछ रियायतें देने की याचिका लगायी थी। लेकिन विद्वान न्यायाधीश लाकोर ने दोहराया कि ‘पारिस्थितिकी पर खनन के प्रभाव तथा रेत की फिर से भरायी की दर के वैज्ञानिक आकलन के बाद ही खनन की अनुमति दी जाए।’ लेकिन यह आदेश खनन और निर्माण क्षेत्र में सक्रिय परिवारों को प्रभावित करने वाला साबित हुआ। नतीजतन रेत और बजरी के दाम आसमान छूने लगे। यहाँसर्वोच्च न्यायालय के 2012 में दिये गये आदेशों का ज़िक्र करना भी प्रासंगिक होगा। इसमें कहा गया था कि ‘बालू रेत के खनन से जुड़ी एक नीति बनायी जाए, जिसमें पर्यावरण की मंज़ूरी, उसकी निगरानी और लीज से जुड़े अन्य ज़रूरी प्रावधान भी शामिल किये जाए। खनन का अधिकार इसी नीति के तहत दिया जाए। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी के बावजूद सरकार ढीली-ढाली ही बनी रही। अलबत्ता

सरकारी अफसर इस मामले में लीपापोती ही करते रहे कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन करने का पूरा प्रयास कर रही है। लेकिन सरकार चाहे जो नीति बना ले, फायदों की कोई-न-कोई सूरत तो बजरी माफिया अपने लिए निकाल ही लेता है। दरअसल यह पूरा खेल ज़िद और पूर्वाग्रहों में फँस गया है। जब प्रदेश में कांग्रेस सत्तारूढ़ होती है, तो पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर तोहमतें जड़ती है। जब भाजपा सरकार में होती है, तो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर जमकर कीचड़ उछाला जाता है। विवादों और तजुर्बों को लेकर कोई मुहिम चलायी जाए, ऐसा कभी नहीं होता। लेकिन इस जंग में कोई मुनाफे के सूत्र खोजने में कामयाब होता है, तो वो है बजरी माफिया। चेजा पत्थर जैसी चीज़ की भी अचानक माँग बढ़ जाना इसकी अनूठी मिसाल है। आसलपुर पर खनन विभाग जयपुर के क्षेत्राधिकार की 40 खदानें (38.47 हेक्टेयर) स्वीकृत हैं। सभी खदानें सन् 1999 से सन् 2008 के बीच में स्वीकृत की गयी हैं। इन खदानों में करीब 12 से अधिक अवैध खनन के गड्ढे वर्तमान में मौज़ूद है। पूरी 40 खानों में कुल खनन क्षेत्रफल की गणना की जाए तो अब तक लगभग सवा करोड़ लाख टन चेजा पत्थर का खनन किया गया है। जबकि विभागीय रवन्ना रिकॉर्ड के अनुसार, उत्तर क्षेत्र से आसलपुर क्षेत्र की खदानों से केवल 70 लाख टन चेजा पत्थर ही खनन किया गया है। शेष 52 लाख करोड़ टन का अवैध खनन है। सन् 2010 तक यहाँ से 11 लाख टन चेजा पत्थर का खनन हुआ। सन् 2009 के बाद खनन की रफ्तार बढ़ी। इसका एक कारण फ्रंट कॉरिडोर और मेट्रो का काम भी प्रदेश में होना रहा। चेजा पत्थर की डिमांड बढ़ी, तो अवैध खनन में भी रफ्तार बढ़ी है। क्या यह सुराग सरकार को चौंकाते नहीं कि बनास नदी की बजरी की माँग महाराष्ट्र तक है। उदयपुर से बजरी की तस्करी गुजरात के कई ज़िलों में होती है। बनास की बजरी सबसे उच्च गुणवत्ता वाली मानी जाती है। हरियाणा में बनास की बजरी सबसे ज़्यादा जाती है। इसकी खबर जन-जन को है; लेकिन कोई बेखबर है, तो खनन मंत्री और उनके महकमे का पूरा लाव-लश्कर! खनन माफिया ने तो भारत-पाक सीमा क्षेत्र को भी नहीं छोड़ा। बॉर्डर की करीब एक दर्ज़न चौकियाँ माफिया की कारगुजारी की चपेट में हैं। नतीजतन सुरक्षा बलों का इन चौकियों तक पहुँचना मुश्किल हो रहा है। इसकी वजह इस क्षेत्र में जिप्सम (हरसौंठ) का अकूत भण्डार है।

जिप्सम निकालने में जुटे माफिया ने बॉर्डर पर पहुँचने वाली सभी सडक़ों को तहस-नहस कर दिया है। सीमावर्ती क्षेत्र में सफेद सोने के नाम से विख्यात बेशकीमती जिप्सम का भण्डार है। हालात ये हैं कि बीएसएफ और सेना के वाहनों को बॉर्डर तक पहुँचने में दोगुना ज़्यादा समय लगता है। कई स्थानों पर तो सडक़ के अवशेष तक नहीं बचे हैं। खाजूवाला से बिज्जू के बीच जिप्सम का बड़े पैमाने पर खनन होता है। यहाँ पर सीमावर्ती सडक़ों से ओवरलोड दर्ज़नों ट्रक रोज़ाना गुज़रते हैं। जबकि यहाँ सडक़ का निर्माण सीमा चौकियों पर सेना के आवागमन के लिए किया गया था। ग्रामीण बताते हैं कि जिप्सम माफिया पुलिस और खनन विभाग के दस्तों की पकड़ में नहीं आये, इसलिए सडक़ को जान-बूझकर तोड़ देते हैं। इनके पास खुदाई करने वाली बड़ी मशीनें हैं। माफिया और अपराधी नहीं चाहते कि यहाँ ज़्यादा लोग आबाद हों। खेती-बाड़ी करना और आवागमन सुगम होने पर माफिया के मंसूबे पूरे नहीं होंगे। ऐसे में माफिया गाँवों तक आवागमन के रास्तों को निशाना बनाते हैं। उन्हें यह भी भ्रम या कहें कि घमण्ड है कि उनका कोई क्या कर लेगा? यह भ्रम या घमण्ड किन लोगों के दम पर है? यह बात बहुत-से लोग जानते हैं; मगर कहे कौन?

अक्षय ऊर्जा से दूर होगा अँधेरा

देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कम्पनी एनटीपीसी के बिजली उत्पादन के नज़रिये में हाल ही में परिवर्तन आया है। सन् 2012 में अक्षय ऊर्जा के कारोबार में आयी एनटीपीसी ने अगस्त, 2020 में निवेशकों के लिए तैयार किये ये प्रस्तुतिकरण बुकलेट के पहले पन्ने पर वर्षों से प्रकाशित की जा रही बड़े तापीय विद्युत संयंत्रों की तस्वीरों के स्थान पर एक नन्हें पौधे की तस्वीर छापी है और उसके नीचे जेनरेटिंग्रोथ फॉर जेनरेशन लिखा है; जो इस बात का प्रतीक है कि अब एनटीपीसी का ज़ोर पारम्परिक ऊर्जा के उत्पादन की जगह अक्षय ऊर्जा के उत्पादन पर रहेगा और वह अक्षय ऊर्जा की मदद से 62 मेगावॉट की उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 130 मेगावॉट करेगी।

हालाँकि इस बदलाव का एक बड़ा कारण वैश्विक स्तर पर बिजली परियोजनाओं के लिए धन मुहैया कराने वाले कर्ज़दाताओं का रुझान पारम्परिक ऊर्जा की तरफ होना है। इसी वजह से ऊर्जा क्षेत्र की कम्पनियाँ मौज़ूदा समय में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन पर ज़ोर दे रही हैं। वैश्विक कर्ज़दाता कार्बन उत्सर्जन की अधिकता, नियामकीय स्तर पर जोखिम और आर्थिक नुकसान के खतरे को देखते हुए कोयला आधारित सभी ताप बिजली परियोजनाओं में निवेश करने से परहेज़ कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर वैश्विक कर्ज़दाताओं में से एक ब्लैकरॉक ने कोल इंडिया, एनटीपीसी और अडाणी एंटरप्राइजेज में बड़ी राशि निवेश कर रखी है; लेकिन अब यह सिर्फ अक्षय ऊर्जा पर आधारित परियोजनाओं में निवेश करना चाहता है। अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी, इकोनॉमिक्स ऐंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के अनुसार, लगभग 20 सॉवरिन फंड, परिसम्पत्ति प्रबन्धकों और पेंशन फंड ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में निवेश नहीं करने की बात कही है। विदेशी बैंक भी कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं के लिए पूँजी मुहैया कराने से मना कर रहे हैं, जिससे अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को शुरू करने या मौज़ूदा परियोजनाओं को गति देने में तेज़ी आ रही है।

ऊर्जा क्षेत्र की सभी कम्पनियाँ कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। उदाहरण के तौर पर जेएसडब्ल्यू एनर्जी और टाटा पॉवर ताप विद्युत क्षमता में इज़ाफा करने की जगह अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाना चाहती हैं। जेएसडब्ल्यू एनर्जी आगामी पाँच वर्षों में 10 मेगावॉट क्षमता वाली कम्पनी बन सकती है, जिसमें अक्षय ऊर्जा का योगदान 100 फीसदी होगा। जेएसडब्ल्यू एनर्जी ने शून्य कार्बन उत्सर्जन का भी लक्ष्य रखा है, जिसे वह 2050 तक हासिल करना चाहती है।

टाटा पॉवर भी वर्ष 2025 तक कुल बिजली उत्पादन में 60 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा से पूरा करना चाहती है और वर्ष 2030 तक वह इसे बढ़ाकर 75 फीसदी करना चाहती है। कम्पनी की योजना वर्ष 2050 तक अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादक बनने की है। अडाणी एंटरप्राइजेज ऊर्जा क्षेत्र के लिए आवंटित राशि में से 70 फीसदी से अधिक राशि अक्षय ऊर्जा की क्षमता को विकसित करने में खर्च करेगी। अडाणी समूह ने वर्ष 2025 तक 25 मेगावॉट क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है। सेंबकॉर्प एनर्जी इंडिया लिमिटेड (एसईआईएल) ने भी अक्षय ऊर्जा की मदद से 800 मेगावॉट बिजली उत्पादन करना शुरू किया है। इसकी अल्प हिस्सेदारी भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) की पवन ऊर्जा परियोजनाओं में भी है।

मौज़ूदा सरकार भी अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में इज़ाफा करना चाहती है। इसके लिए मेक इन इंडिया के लिए चिह्नित क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र को भी शामिल किया गया है। स्टार्ट अप इंडिया की संकल्पना मेक इन इंडिया से जुड़ी हुई है। स्टार्ट अप इंडिया के तहत ऐसे उद्यमियों, जो मेक इन इंडिया अभियान से जुड़े हैं; की मदद की जाती है। क्योंकि किसी नये उद्योग को शुरू करने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं की मदद से कोई भी आत्मनिर्भर बन सकता है। जब देश का हर युवा आत्मनिर्भर होगा, तो स्वाभाविक रूप से अर्थ-व्यवस्था मज़बूत होगी और देश में खुशहाली आयेगी।

ऊर्जा एवं अक्षय ऊर्जा का महत्त्व

हमारे जीवन में ऊर्जा का महत्त्व अतुलनीय है। इसके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। सदियों से मानव अपनी आवश्यकता के लिए ऊष्मा, प्रकाश आदि को ऊर्जा के स्रोत के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। ऊर्जा की कमी की वजह से हमारा देश दूसरे देशों से पिछड़ता जा रहा है। ऊर्जा की बदौलत ही औद्योगिक विकास में बढ़ोतरी, रोज़गार में इज़ाफा, ग्रामीण पिछड़ेपन को दूर करने में मदद, अर्थ-व्यवस्था में मज़बूती, विकास दर में तेज़ी आदि सम्भव है। वर्तमान में ऊर्जा का मुख्य स्रोत कोयला है; लेकिन इसकी उपलब्धता सीमित है। इसलिए अक्षय ऊर्जा की खोज की गयी। अक्षय का अर्थ होता है- असीमित। अर्थात् जिसका उत्पादन हमेशा किया जा सके। हमारे देश में अक्षय ऊर्जा के स्रोत मसलन, सूर्य की रोशनी, नदी, पवन, ज्वार-भाटा आदि हैं। यह सस्ती भी है और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचाती है। ऊर्जा के स्रोत को दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले वर्ग में वो स्रोत आते हैं, जो कभी खत्म नहीं होंगे। इस वर्ग में सौर और वायु ऊर्जा, जल ऊर्जा, जैव ईंधन आदि को रखा जाता है। दूसरे वर्ग में वो स्रोत आते हैं, जिनके भण्डार सीमित हैं। प्राकृतिक गैस, कोयला, पेट्रोलियम आदि ऊर्जा के स्रोत को इस श्रेणी में रखा जाता है। परमाणु ऊर्जा का वर्गीकरण भी इस श्रेणी में किया जा सकता है; क्योंकि यूरेनियम की मदद से ही परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है और यूरेनियम का भण्डार सीमित है। भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र को व्यापक और प्रभावी बनाने के लिए नवीन एवं अक्षय ऊर्जा के नाम से एक स्वतंत्र मंत्रालय बनाया गया है। भारत विश्व का पहला देश है, जहाँ अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए एक अलग मंत्रालय है।

बजट में अक्षय ऊर्जा को तरजीह

वित्त वर्ष 2020-21 में ऊर्जा व अक्षय ऊर्जा के लिए 22,000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि सरकार अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने के प्रति कितनी गम्भीर है। इतना ही नहीं, अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तेज़ी लाने के लिए सरकार अक्षय ऊर्जा के उत्पादकों को आर्थिक मदद, कर में छूट, सब्सिडी आदि भी मुहैया करा रही है।

अक्षय ऊर्जा के कारोबारी

अक्षय ऊर्जा का सबसे अधिक उत्पादन पवन एवं सौर ऊर्जा के ज़रिये होता है। भारत में पवन ऊर्जा की शुरुआत सन् 1990 में हुई थी। लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में बहुत तेज़ी से प्रगति हुई है। आज भारत के पवन ऊर्जा उद्योग की तुलना विश्व के प्रमुख पवन ऊर्जा उत्पादक अमेरिका और डेनमार्क से की जाती है। भारत में पवन ऊर्जा उत्पादित करने वाले राज्यों में तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश आदि हैं। भारत के बड़े पवन ऊर्जा पार्कों में तमिलनाडू का मुपेंडल, राजस्थान का जैसलमेर, महाराष्ट्र का ब्रहमनवेल, ढालाँव, चकाला, वासपेट आदि हैं। इस क्षेत्र में मुख्य कारोबारी सूजलन एनर्जी, परख एग्रो इंडस्ट्री, मुपेंडल विंड, रिन्यू पॉवर आदि हैं। पवन ऊर्जा के मुकाबले सौर ऊर्जा का उत्पादन भारत में अभी भी शैशवावस्था में है, जबकि इस क्षेत्र में विकास की सम्भावना पवन ऊर्जा से अधिक है।

तकनीक की कमी एवं जानकारी के अभाव में भारत अभी ज़्यादा मात्रा में सौर ऊर्जा नहीं उत्पादित कर पा रहा है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत सन् 2000 के बाद से ज़्यादा सक्रिय हुआ है। भारत में सौर ऊर्जा की अपार सम्भावनाएँ हैं; खासकर रेगिस्तानी इलाकों में। भारत के सौर ऊर्जा कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र का भी समर्थन मिला हुआ है। सौर ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में भारत द्वारा ऋण देने के कार्यक्रम को भी संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम का समर्थन हासिल है। भारत के इस कार्यक्रम को एनर्जी ग्लोब वल्र्ड पुरस्कार मिल चुका है। भारत चाहता है कि सौर ऊर्जा मौज़ूदा बिजली से सस्ती हो। इस लक्ष्य को अनुसंधान की मदद से हासिल किया जा सकता है। भारत के प्रमुख सौर ऊर्जा उत्पादकों में वेलस्पून एनर्जी, मीठापुर सोलर पॉवर प्लांट, अडानी पॉवर, चंरका सोलर पार्क आदि शामिल हैं।

उत्पादन की रफ्तार

अक्टूबर, 2019 तक भारत में अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 83 मेगावॉट की थी, जिसे वर्ष 2022 तक बढ़ाकर 175 मेगावॉट करने का लक्ष्य है। एक आकलन के अनुसार, वर्ष 2030 में देश में स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में से 55 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा का हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के जलवायु सम्मेलन में कहा था कि वर्ष 2030 तक भारत 450 मेगावॉट बिजली का उत्पादन अक्षय ऊर्जा की मदद से कर सकता है।

कार्बन उत्सर्जन कम करने का प्रयास

कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए भारत में अक्षय ऊर्जा की मदद से माइक्रो ग्रिड की स्थापना की जा रही है साथ ही साथ मौज़ूदा ग्रिड को आधुनिक भी बनाया जा रहा है। साथ ही अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश तेज़ी से की जा रही है।

किफायती ऊर्जा

ऊर्जा के सीमित संसाधन व आयात की ऊँची लागत के मद्देनज़र अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में नवोन्मेष और शोध पर ज़ोर दिया जा रहा है। ऐसा करने से बिजली उत्पादन की लागत को कम किया जा सकता है। आज विकास में सबसे अहम भूमिका ऊर्जा की है। सौर ऊर्जा घर से बिजली की लागत में उल्लेखनीय कमी लायी जा सकती है। शोध और अनुसंधान से इसे और भी कम किया जा सकता है।

उत्पादन की सम्भावनाएँ

हमारे देश में प्रकृति प्रदत्त बहुत सारी सौगातें हैं। तालाब में सौर पैनल लाया जा सकता है। नदी के पानी से ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है। हवा से भी ऊर्जा बनायी जा सकती है। सौर और पवन ऊर्जा के ज़रिये हाइब्रिड बिजली उत्पादित की जा सकती है।

महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में पवन निर्बाध रूप में बहता है। पवन की तेज़ गति पवन ऊर्जा के उत्पादन के लिए मुफीद मानी जाती है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के ग्रामीण इलाकों में बहुत ही अच्छा काम हो रहा है। देश के अनेक राज्यों में घर-घर में सौर ऊर्जा-घर देखे जा सकते हैं। भले ही पवन ऊर्जा का उत्पादन पूरे देश में सम्भव नहीं है, लेकिन सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ऊर्जा उत्पादन की अपार सम्भावनाएँ हैं। आज देश के दूर-दराज़ के गाँवों में भी छोटे सौर ऊर्जा घरों से ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। अपशिष्ट से भी घर-घर में ऊर्जा उत्पादित किया जा सकता है। इसमें सबसे प्रचलित जैव ईंधन है। वैसे इस संदर्भ में शहरी, औद्योगिक और बायोमेडिकल अपशिष्ट से भी ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में जल एवं ज्वार-भाटा से भी ऊर्जा बनाया जाता है; लेकिन भारत में इसकी सम्भावना सीमित है।

फायदे

अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कौशल को विकसित करने, कारोबार शुरू करने, वस्तु, उत्पाद, उपकरण आदि के निर्माण की असीम सम्भावनाएँ हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इस क्षेत्र में स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और मेक इन इंडिया की संकल्पना को व्यापक फलक में आकार मिलेगा, जिससे भारत और भारतीय आत्मनिर्भर बन सकें। अक्षय ऊर्जा की मदद से कारोबार को कम पूँजी में शुरू किया जा सकता है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ खेती-किसानी मॉनसून पर निर्भर है। लेकिन सौर ऊर्जा की मदद से सिंचाई कार्य किया जा सकता है। बिजली की उपलब्धता से छोटे-मोटे उद्योग-धन्धे भी शुरू किये जा सकते हैं। बड़े उद्योगों में भी काम-काज इसकी मदद से निर्बाध गति से चल सकता है। आज दक्षिण भारत सहित देश के अनेक हिस्सों में सौर ऊर्जा घर की मदद से बिजली उत्पादन किया जा रहा है।

निष्कर्ष

हम प्रकृति से प्रेम करते हैं। हम नदी को माँ मानते हैं। पवन को देवता मानते हैं। प्रकृति से जुड़ाव हमारे स्वभाव में है। समाज के कमज़ोर तबके के लोग भी चाहते हैं कि उनके बच्चों को शिक्षा मिले; लेकिन बिजली नहीं होने के कारण उनकी पढ़ाई-लिखाई बाधित रहती है। ऐसे में अक्षय ऊर्जा की मदद से स्थिति में सकारत्मक बदलाव आ रहे हैं। हालाँकि इस दिशा में बहुत-से कार्य किये जाने की ज़रूरत है, ताकि भारत और भारतीयों का भविष्य उज्ज्वल बन सके। आज हम मेगावॉट में बिजली उत्पादन की बात कर रहे हैं, जो निश्चित रूप से अक्षय ऊर्जा की वजह से ही सम्भव हुआ है।

पैमाना कुछ तो सवाल हैं

उस सुबह सूरज के उगने के साथ मैं उतरी थी सीढिय़ों से। दबे पाँव। सामने थोड़ी ही दूर पर चाँदी-सी चमकती चौड़ी सडक़ थी। पहली और आखरी बार मैंने उस घर को विदा कहा। मेरे माँ-बाप को किसी ज़रूरी काम से गाँव जाना पड़ा। उन्होंने उसकी हिफाज़त में मुझे वहाँ छोड़ा। ‘आप तो टीवी में काम करते हैं! क्या मेरी कहानी सबको बताएँगे? क्या उसको सज़ा मिलेगी? लेकिन मेरे माँ-बाप ट्यूशन करते हैं। उनके और मेरे पास रुपये नहीं हैं। मेरी कहानी में धुआँ उड़ाने वाली पार्टी नहीं है। आपके अलावा अभी कोई और जानता नहीं। कोई नेता या पार्टियाँ नहीं हैं। हत्या या आत्महत्या का एंगल भी नहीं है। पर मैं सुन्दर हूँ…, सब कहते हैं। क्या मेरी भी कहानी टीवी पर आएगी? क्या मिल सकेगी उसे सज़ा?’

आज तकरीबन तीन महीने से भी ज़्यादा समय से तमाम टीवी चैनेल और अखबारों की खास खबर बालीवुड अभिनेता की हत्या-आत्महत्या की गुत्थी में उलझी है। मामले की पेचीदगी इतनी कि खूब व्याख्या हुई, जिसमें विभिन्न पार्टियों के राजनेता शामिल रहे। उनके कोरस गान पर दो राज्यों के मुख्यमंत्री भी उलझे। आिखर मामले की जाँच सीबीआई को सौंप दी गयी। दूसरी दो जाँच एजेंसियाँ भी इस पूरे मामले की पड़ताल करने में जुट गयीं। भारतीय मीडिया इस पूरे मामले की तहकीकात में जुटा रहा। जाँच जारी है और राजनीतिक तकरार बढ़ चुकी है।

मुम्बई के पूर्व कमिश्नर और अनुभवी पुलिस अधिकारी जूलियस रिबेरो इस कांड मामले की जाँच में सीबीआई, आईबी और नारकोटिक्स महकमों की जाँच में शामिल होने पर कुछ नहीं कहते। लेकिन मुम्बई पुलिस की पड़ताल को वे उचित मानते हैं। मीडिया ट्रायल पर हँसते हुए कहते हैं कि उन्हें भी जाँच के दायरे मेें लाना चाहिए। सभी टीवी चैनेल और अखबार, जो इस जाँच के काम में अतिरिक्त उत्साह दिखा रहे हैं; उनकी भूमिका जाँची जाए और सुशांत सिंह राजपूत मामले में जो कहानियाँ विभिन्न भाषाई चैनेलों ने प्रसारित की हैं, उनकी पड़ताल गहराई से हो, तो काफी कुछ सामने आए। मीडिया का क्या धर्म है और उसका पालन क्यों ज़रूरी है? यह भी फिर और साफ होगा।

देश की प्रेस कॉन्सिल ऑफ इंडिया ने पहले ही इस पूरे मामले की खबरें टीवी पर और अखबारों को देने वालों को नसीहत दी है कि वे इस पूरे मामले में ज़्यादा उत्साह से रिपोटिंग न करें। लेकिन इस संस्था को मीडिया खास महत्त्व नहीं देता। देश के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भी कोई हिदायत जारी नहीं की है।

दरअसल बालीवुड का यह कांड एक ऐसा चटपटा मसाला है, जो टीवी से दर्शकों को दूर नहीं जाने देता। एक हिट व्यावसायिक फिल्म के लिए ज़रूरी है- रोमांस, हत्या-आत्महत्या की पहेली, मादक ड्रग का कारोबार, नायक के परिवार में कलह, फिर इस मामले की जाँच-पड़ताल में दो बड़े राज्यों के नेताओं में तकरार, अदालत का पूरे मामले को सीबीआई के हवाले करना, मीडिया की मामले की पेचीदगियों को बड़े ही सनसनीखेज़ तरीके से पेश करने की बेसब्र ललक में पूरे संवेदनशील मामले को अत्यंत रोमांचक बना दिया है। तथ्यों की उचित पड़ताल न होने से भाषाई टीवी और अखबारों की अपनी तटस्थता पर सवालिया निशान लग रहे हैं।

देश के एक अखबार में समाचार ब्यूरो सँभालने वाले वी.पी. डोभाल कहते हैं कि आमतौर पर अपराध की बीट देखने वाले संवाददाता से यह अपेक्षा रहती है कि उसने पूरे वाकये को निगरानी (सर्विलॉन्स), पारस्परिक सह-सम्बन्ध (को-रिलेशन) और सम्प्रेषण (ट्रांसमिशन) के लिहाज़ से जाँचा-परखा है या नहीं। यदि ऐसा नहीं है, तो पत्रकार को गलत खबर देने के आरोप में सज़ा दी जा सकती है। संविधान निर्माताओं ने मीडिया की ताकत का अनुमान करते हुए ही धारा-19 और उसके तहत कई व्यवस्थाएँ दी हैं। अपराधी को अपनी बात कहने का मौका मिले और संचार माध्यम ‘ट्रायल ऑफ मीडिया’ ईमानदारी से करे, तो उनके सुझाये मुद्दों को सरकारी जाँच एजेंसियाँ जाँच के दायरे में ले लेती हैं। ज़रूरत यह है कि पूरे मामले को स्कैंडल का रूप लेने से बचाना। न्याय में दखल नहीं, बल्कि जाँच के काम में निष्पक्षता ज़्यादा ज़रूरी है। यानी न्यायपालिका बिना किसी बाधा के वह स्थिति बना पाये कि यह अहसास हो कि हाँ, न्याय वाकई हुआ। हर आरोपी को सही न्याय पाने का अधिकार है। उसे प्रभावित करने पर मानहािन भी सम्भव है। मीडिया ने पहले भी कुछ महत्त्वपूर्ण आपराधिक कांडों में बेहताशा दिलचस्पी ली। ऐसे मामलों में प्रियदर्शनी मट्टू, जेसिका लाल, नीतीश कटारा, विजाल जोशी, आरुषि तलवार आदि प्रमुख हैं। मीडिया को हमेशा सूचना देने का ही काम करना चाहिए और सूचना देने वाले पुख्ता होने चाहिए। ‘मीडिया ट्रायल’ का मतलब यही होता है कि पूरे मामले की उचित तरीके से छानबीन हो। अपराधी होने का जिन पर आरोप है, वे भी अपनी बात कह सकें; उनकी ठीक से सुनवाई हो। हाल-फिलहाल जिस तरह से भारतीय टीवी चैनेल और अखबारों में एक युवा अभिनेता की मौत की छानबीन का मुद्दा मीडिया में कवर हो रहा है। उसमें उलझाव ज़्यादा है। विभिन्न चैनेल में पधारे विशेषज्ञ जब अपनी राय देते हैं, तो लगता नहीं कि उनकी राय के पीछे भी कहीं कोई आधार (कोई घटना) है। वे वही कहते हैं, जो मीडिया से मिली खबर और उनका अनुभव होता है। फिर इस मामले में सूचना का ही हैं। जो प्रमाण कतई नहीं, सिर्फ सूचना स्रोत हैं। आधार हवाट्स एप संदेश, टेलिफोन रिकॉर्ड और पूरे मामले में नित्य-प्रति उपलब्ध वीडियो रिकार्डिंग। निष्पक्ष जाँच-एजंसियाँ भी यही कहती हैं। इससे इन्कार करती हैं; लेकिन तहकीकात जारी है।

सवाल उठता है कि क्या जाँच एजेंसियों, अपने सवाल या अनुमान जाँच के दौरान संवाददाताओं को देती हैं। क्या यह उचित है? क्या मीडिया विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली ऐसी तमाम असामयिक हादसों पर फोकस करता रहा है और क्या आगे भी करेगा। देश विभिन्न मोर्चों मसलन स्वास्थ्य, सीमाई तनाव, आर्थिक बदहाली और प्राकृतिक विपदाओं से खासा जूझ रहा है। लेकिन इन घटनाओं को वह प्रमुखता मीडिया में नहीं मिली, जो देश की प्रगति के लिहाज़ से भी ज़रूरी हैं। शायद टीवी चैनल और अखबारों को अपनी रेटिंग-रेवेन्यू के लिहाज़ से यह ज़रूरी नहीं जान पड़ा। लेकिन अब उस लडक़ी को क्या जवाब दिया जाए, जिसे जवाब चाहिए। देखिए वही लडक़ी जो खुद को सुन्दर बता रही थी। कार के बंद शीशे से इशारे में टाटा करती निकल गयी।