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श्रीनगर के बटमालू में 3 आतंकी ढेर

कश्मीर में गुरूवार को एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 3 आतंकियों को ढेर कर दिया। इस दौरान एक महिला की भी मौत हो गयी जबकि 2 जवान घायल हुए हैं।

जानकारी के मुताबिक मुठभेड़ श्रीनगर के बाटमालू इलाके में हुई। आतंकियों की तरफ से हुई फायरिंग में सीआरपीएफ के 2 जवान भी घायल हुए हैं जबकि एक महिला की जान चली गयी। सुरक्षा बलों को आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिलने पर उन्होंने तड़के ढाई बजे खोज अभियान शुरू किया।  इसी दौरान आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी।

सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच चली इस मुठभेड़ में तीन आतंकी मारे गए। पुलिस और सीआरपीएफ के जवान अभी भी इलाके में हैं ताकि आतंकियों पर नकेल कसी जा सके। और आतंकियों की तलाश वहां की जा रही है। याद रहे इससे पहले 5 सितंबर को भी सुरक्षाबलों ने बारामूला में 3 आतंकी ढेर किये थे।

इस बीच जम्मू संभाग के राजौरी, पूंछ जिले के बालाकोट और मेंढर में पाकिस्तान लगातार  संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है। आज सुबह पौने सात बजे के करीब भी उसने ऐसा ही किया। जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान ने बिना उकसावे के छोटे हथियारों से गोलीबारी की और मोर्टार दागे।

राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी की गई और मोर्टार दागे गए। इसमें भारतीय सेना के 16 कोर में तैनात जवान नाइक अनीश थॉमस शहीद हो गए। इसके अलावा एक अधिकारी सहित दो अन्य घायल हो गए। सेना के अधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तानी की ओर से गोलीबारी सुंदरबनी सेक्टर में हुई। इसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: स्वतंत्र भारत के सबसे परिवर्तनकारी नेतृत्व

विश्व के सबसे अधिक जनसमर्थन वाले प्रधानमंत्री, महात्मा गांधी और सरदार पटेल की भूमि गुजरात के लाल, नरेंद्र मोदी अपनी पुस्तक ‘पुष्पांजलि ज्योतिपुंज’ में लिखते हैं कि “संसार में उन्हीं मनुष्यों का जन्म धन्य है, जो परोपकार और सेवा के लिए अपने जीवन का कुछ भाग अथवा संपूर्ण जीवन समर्पित कर पाते हैं”। अपनी रचना में उन्होंने ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ को जीवन का मूलमंत्र माननेवाले तपस्वी मनीषियों का पुण्य-स्मरण करते हुए जन्म से मरण तक आद्योपांत व्यक्ति के सामाजिक और राष्ट्र के प्रति दायित्व का बोध कराया है। सच तो यह है कि उन्होंने इस बोध के साथ स्वयं के जीवन को भी आलोकित किया है …………जिया है। नरेंद्र मोदी का जीवन दर्शन और जीवन दृश्य महात्मा गांधी के सदृश श्रेष्ठतम है।  गांधीजी के मानवता, समानता और समावेशी विकास के सिद्धांतों पर चलकर उन्होंने भारत के अबतक के सबसे जनप्रिय प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त किया है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में जन सेवा और राष्ट्र धर्म का उन्होंने जो अनुपम आदर्श स्थापित किया है, भारत के सुनहरे भविष्य के लिए अभिनंदनीय है।

जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह के बाद चौथे सबसे अधिक समयावधि तक और सबसे अधिक समयावधि तक गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है। ऊर्जावान, समर्पित एवं दृढ़ निश्चयी नरेन्द्र मोदी 138 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं और आशाओं के द्योतक हैं। नव भारत के निर्माण की नींव रखने वाले नरेन्द्र मोदी करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों का चेहरा हैं। 26 मई 2014 से, जबसे उन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला है, देश को  विकास उस शिखर पर ले जाने के लिए अग्रसर हैं, जहां हर देशवासी अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा कर सके। पंडित दीन दयाल उपाध्याय के दर्शन से प्रेरणा लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के अंतिम पायदान पर खड़े एक-एक व्यक्ति के पूर्ण विकास को 24/7 समर्पित हैं। आज 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 वर्ष के हो गए। भारतीय जनता पार्टी इस दिवस को ‘सेवा दिवस’ और 14 सितम्बर से 20 सितम्बर तक ‘सेवा सप्ताह’ के रूप में मनाती है। उन्होंने स्वयं कहा है कि ‘मैं देश का प्रधानमंत्री नहीं बल्कि देश का प्रधान सेवक हूं’।

17 सितम्बर 1950 को दामोदरदास मोदी और हीराबा के घर जन्मे नरेंद्र मोदी का बचपन राष्ट्र सेवा की एक ऐसी विनम्र शुरुआत, जो यात्रा अध्ययन और आध्यात्मिकता के जीवंत केंद्र गुजरात के मेहसाणा जिले के वड़नगर की गलियों से शुरू होती है। 17 वर्ष की आयु में सामान्यतः बच्चे अपने भविष्य के बारे में और बचपन के इस आखिरी पड़ाव का आनंद लेने के बारे में सोचते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए यह अवस्था पूर्णत: अलग थी। उस आयु में उन्होंने एक असाधारण निर्णय लिया, जिसने उनका जीवन बदल दिया। उन्होंने घर छोड़ने और देश भर में भ्रमण करने का निर्णय कर लिया। स्वामी विवेकानंद की भांति उन्होंने भारत के विशाल भू-भाग में यात्राएं कीं और देश के विभिन्न भागों की विभिन्न संस्कृतियों को अनुभव किया। यह उनके लिए आध्यात्मिक जागृति का समय था और देश के जन-जन की समस्यायों से अवगत होने का भी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक होते हुए उन्हें संगठन कौशल और सेवा धर्म के मर्म और महत्व को समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपने व्यस्त दिनचर्या के बीच उन्होंने राजनीति विज्ञान में अपनी डिग्री पूर्ण की। शिक्षा और अध्ययन को उन्होंने सदैव महत्वपूर्ण माना। प्रधानमंत्री के रूप में उनकी वाणी और उनकी नीति में इसकी स्पष्ट झलक मिलती है।

7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 12 वर्षों में गुजरात में हुए अभूतपूर्व एवं समग्र विकास के आधार पर न केवल भारतीय जनता पार्टी, यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और नीतिगत पंगुता से त्रस्त पूरे देश ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के एकमात्र विकल्प के रूप में स्वीकार्यता दिलाई। 26  मई 2014 को उनके नेतृत्व में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत मिला और वे देश के 15वें प्रधानमंत्री बने। ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘एक भारत श्रेष्ठ’ के मूलमंत्र से उन्होंने देश का जो अभूतपूर्व सर्वांगीण विकास किया , इससे उन्होंने जन-जन के ह्रदय में अपनी जगह बनाई। जनता-जनार्दन के आशीर्वाद से 2019 के आम चुनाव में उन्हें ऐतिहासिक समर्थन मिला और 30 मई 2019 को दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।

एक प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की अंतर्दृष्टि, संवेदना, कर्मठता, राष्ट्रदर्शन व सामाजिक सरोकार स्वतंत्र भारत के अबतक के इतिहास में अद्वितीय है। उनकी विचारशैली और उनकी कर्तव्यपरायणता अतुलनीय है। वे केवल जनप्रिय नहीं है, वे जन-जन के प्रिय हैं। उनका चिंतन राष्ट्र चिंतन है, उनका ध्येय राष्ट्र है। वे जन सेवा की पराकाष्ठा के प्रतिमान हैं, तो राष्ट्र धर्म के मान हैं। उनके नेतृत्त्व लक्ष्य में मानवता और राष्ट्र रक्षा समान रूप से भाषित और परिभाषित है। तपस्या, त्याग, सेवा और साहस का नाम है नरेंद्र मोदी।

मई 2014 से लेकर आज सितंबर 2020 के छह साल साढ़े तीन महीने के अपने रिकॉर्ड प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में उन्होंने जन सेवा और राष्ट्र धर्म के जो मानक स्थापित किये हैं, भारतीय राष्ट्र के बेहतर भविष्य के लिए शुभंकर साबित होने वाला है। 14 अप्रैल को उन्होंने कोरोना वायरस को लेकर राष्ट्र को संबोधित करते हुए यजुर्वेद के एक श्लोक का उल्लेख किया था -‘वयं राष्ट्रे जागृत्य‘, अर्थात  हम सभी अपने राष्ट्र को शाश्वत और जागृत रखेंगे। आज यह पूरे राष्ट्र का,जन-जीवन का संकल्प बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिक और राष्ट्र के प्रति सेवा धर्म का जो कर्तव्यपथ तैयार किया है, सम्पूर्ण भारत उनके समक्ष करवद्ध खड़ा है। लेकिन यह राह कम चुनौतयों से भरा नहीं रहा है। व्यक्तिगत जीवन हो या राजनीतिक जीवन, पूर्व के सभी प्रधानमंत्रियों की तुलना में इनका जीवन अधिक कठिनाईयों भरा रहा है। लेकिन नव भारत के निर्माण की नींव रखने वाले नरेंद्र मोदी हर परीक्षा में शत-प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण होते रहे हैं । आज कोरोना महामारी के दौर में अपेक्षाकृत कम चिकित्सा सुविधा होने के बावजूद नरेंद्र के नेतृत्व में भारत विश्व में कहीं बेहतर ढंग से इस महामारी से लड़ रहा है।

प्रधानमंत्री के रूप में विश्व में त्याग और मानवता के अनुपम उदाहरण हैं नरेंद्र मोदी। मानवता की सेवा में अबतक 103 करोड़ रुपये अपने व्यक्तिगत फंड से दे चुके हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान मिले सभी उपहारों की नीलामी कर मिले 89.96 करोड़ रुपये को कन्या केलवनी फंड में दिया था। 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने से पहले उन्होंने गुजरात सरकार के कर्मचारियों की बेटियों की पढ़ाई के लिए अपने निजी बचत के 21 लाख रूपये दे दिये। 2015 में मिले उपहारों की नीलामी से 8.35 करोड़ रुपये जुटाए गए थे, जो नमामि गंगे मिशन को समर्पित किया। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ मेले में स्वच्छता कर्मचारियों के कल्याण के लिए बनाए गए फंड में अपने निजी बचत से 21 लाख रुपये दिए। 2019 में ही साउथ कोरिया में सियोल पीस प्राइज़ में मिली 1.3 करोड़ की राशि को स्वच्छ गंगा मिशन को को समर्पित किया। हाल ही में प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उनको मिली स्मृति चिन्हों की नीलामी में 3.40 करोड़ रुपये एकत्र किए गए, उस राशि को भी  नमामि गंगे योजना के लिए उन्होंने समर्पित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में पीएम केयर्स फंड के लिए 2.25 लाख रुपये दिए थे।

कोरोना महामारी से लड़ने के लिए जब पीएम केयर्स फंड की स्थापना की गई थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरुआती फंड के तहत 2.25 लाख रुपये का योगदान दिया। पीएम केयर्स फंड में जमा राशि से भारत आज प्रभावी रूप से विश्व में सबसे बेहतर तरीके से कोरोना से लड़ाई लड़ रहा है। पीएम केयर्स फंड को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विरोधियों द्वारा कीचड़ भी उछाले गए, लेकिन न्यायपालिका के निर्णय से विरोधियों के ही मुंह काले हुए। जब कोरोना महामारी काल में विरोधी बाज नहीं आये, जाहिर है इस तरह के कुत्सित प्रयास होते रहे हैं, होते रहेंगे। पीएम केयर्स फंड का उपयोग कोरोना से और भविष्य में इस प्रकार की गंभीर चुनौतियों का शीघ्रता और तत्परता से निपटने के लिए चिकित्सीय ढांचागत सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। भारत का यह सशक्त होता सामर्थ्य, नरेंद्र मोदी की जन और राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पण तथा उनके नेतृत्व में 138 करोड़ जन आस्था का परिणाम है।

जन आस्था और राष्ट्र धर्म  के प्रहरी नरेंद्र मोदी। आज भारत दशकों नहीं, सदियों के बदलते इतिहास का साक्षी बन रहा है। 500 वर्षों के जनांदोलन और न्यायालयी निर्णय के बाद अयोध्या में भगवान् राम के मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में न्यायालयी आदेश पर सरकार ने मंदिर निर्माण ट्रस्ट का गठन किया गया। 5 अगस्त को भारतीय जन आस्था के केंद्र और राष्ट्र की सांस्कृतिक नगरी अयोध्या में भगवान् श्री राम के मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन के अवसर पर पधारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा ‘राम काज किन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम‘। उन्होंने न केवल राष्ट्र को पूरे  विश्व को साफ़ संदेश दिया कि जन आस्था के सम्मान और राष्ट्र धर्म के निर्वाह में  की परवाह नहीं करते। उन्होंने जोर देकर कहा कि भगवान श्रीराम का संदेश, हमारी हजारों सालों की परंपरा का संदेश, कैसे पूरे विश्व तक निरंतर पहुंचे, कैसे हमारे ज्ञान, हमारी जीवन-दृष्टि से विश्व परिचित हो, ये हम सबकी, हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ियों की जिम्मेदारी है। उन्होंने विश्वास जताया कि श्रीराम के नाम की तरह ही अयोध्या में बनने वाला ये भव्य राममंदिर भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का द्योतक होगा, और वहां निर्मित होने वाला राममंदिर अनंतकाल तक पूरी मानवता को प्रेरणा देगा। नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन के अवसर पर कहा कि श्रीराम का मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा। हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा, राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा। ये मंदिर करोड़ों-करोड़ों लोगों की सामूहिक शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। आज भारत, भारत की संस्कृति, भारत की परंपरा,जन आस्था, राष्ट्र धर्म और भारत भूमि की गौरव गाथाएं गौरवान्वित है। गौरवान्वित है अपने उस प्रहरी पर जिसका नाम है नरेंद्र मोदी। हम इतिहास के इस गौरवमयी क्षण के साक्षी हैं, हम भाग्यशाली हैं। जन आस्था और राष्ट्र धर्म के प्रहरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5000 वर्ष के भारतीय इतिहास के श्रेष्ठ्तम जनसेवकों व राष्ट्र रक्षकों  में जाने जाएंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्र भारत के सबसे परिवर्तनकारी नेतृत्व हैं, जिनकी   लोकप्रियता और पराक्रम जहां जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को पीछे छोड़ दिया है, वहीं आर्थिक सुधारों में  पी.वी. नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी की सफलता से आगे निकल चुके हैं। उन्होंने भारतीयों में अभूतपूर्व आकांक्षा जगाई है। उनके नेतृत्व में, भारत ने सबसे बड़ा सत्ता परिवर्तन देखा, जिसमें भारतीय जनता पार्टी का उदय सत्ताधारी दल के रूप में एक नई राजनीतिक सोच तथा शैली के रूप में हुआ, जिसने कांग्रेस की छह दशकों की श्रेष्ठता को अप्रासंगिक बना दिया। नरेंद्र मोदी के परिवर्तनकारी एवं प्रभावी नेतृत्व में आधुनिक, डिजिटल,  भ्रष्टाचार-मुक्त, जवाबदेह  और विश्वसनीय सरकार का आविर्भाव हुआ है तथा जनता को भी अभूतपूर्व रूप से भागीदार बना दिया है। जहां अप्रासंगिक पुरातन  प्रणालियों और नियमों को समाप्त कर दिया गया है, वहीं स्वच्छ भारत अभियान, कल्याणकारी योजनाओं और सड़कों तथा बंदरगाहों के निर्माण के लक्ष्य निश्चित किए। सैकड़ों योजनाओं और अभियानों के माध्यम से एक नए भारत का निर्माण हो रहा है। सबके साथ और विश्वास से सबका विकास हो रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि एक कविहृदय साहित्यकार भी हैं। अपने व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उन्होंने दर्जनभर पुस्तकें लिखी हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने गुजराती भाषा में 67 कविताएं लिखी थीं। उनकी इन कविताओं के माध्यम से उनके दर्शन,उनके विचार और उनकी दृष्टि का सहजता के साथ अंदाजा लगाया जा सकता है। उनका हिन्दी में एक कविता संग्रह है ‘साक्षी भाव’ जिसमें जगतजननी मां से संवाद रूप में व्यक्त उनके मनोभावों का संकलन है, जिसमें उनकी अंतर्दृष्टि, संवेदना, कर्मठता, राष्ट्रदर्शन व सामाजिक सरोकार स्पष्ट झलकते हैं। उनकी श्रेष्ठतम रचनाओं में शामिल है ‘पुष्पांजलि ज्योतिपुंज’ जिसमें लिखा है कि संसार में उन्हीं मनुष्यों का जन्म धन्य है, जो परोपकार और सेवा के लिए अपने जीवन का कुछ भाग अथवा संपूर्ण जीवन समर्पित कर पाते हैं। इस पुस्तक में उन्होंने व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी समाज के प्रति दायित्व का बोध कराया है, तथा राष्ट्र सर्वोपरि को जीवन का मूलमंत्र माननेवाले ऐसे ही तपस्वी मनीषियों का पुण्य-स्मरण भी किया है। ‘सोशल हॉर्मोनी’ नामक पुस्तक में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज और सामाजिक समरसता के प्रति भावनाओं के प्रबल प्रवाह को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया है। इस पुस्तक में उनकी समाज के प्रति अद्वितीय दृष्टि और दृष्टिकोण की स्पष्टता है। जहां वे ‘एग्जाम वॉरियर्स’ नामक अपने पुस्तक में अपने बचपन के कई उदाहरणों के माध्यम से बच्चों को परीक्षा के तनाव से निकलने की युक्ति बताई गई, वहीं ‘कनवीनिएंट एक्शन’ में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और समाज को सचेत करते हैं और साथ ही इससे निपटने के लिए वैश्विक अभियान में शामिल होने की प्रेरणा भी देते हैं। अद्भुत हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच में, उनके चिंतन केंद्र में, राजनीति और सत्ता से परे जो मानव दृष्टि है, वैश्विक दृष्टि है, जो कवि ह्रदय है, जो शिक्षक है, समाजशास्त्री है, जो अर्थशास्त्री, जो समस्याओं के निवारक हैं, उसपर चर्चा-परिचर्चा और शोध होनी चाहिए। यह भारतीय राष्ट्र के लिए हितकारी है, विश्व समुदाय के लिए हितकारी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। देश का प्रधान सेवक। राजनीतिक दर्शन का मूलमंत्र अंत्योदय। प्रत्येक निर्णय में आंखों के समक्ष वंचित, गरीब, मजदूर, किसान। भारत के बचपन की चिंता, भारत के युवा की चिंता। भारत के वयस्क की चिंता, भारत के वृद्ध की चिंता। बालिका की चिंता, महिला की चिंता। व्यवसाय की चिंता, व्यवसायी की चिंता। शहर की चिंता, गांव की चिंता। 138 करोड़ भारतीयों की चिंता। जन-जन की चिंता। ‘अन्नदाता सुखी भवः’ की सर्वोच्च प्राथमिकता। भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शी,  नीति आधारित प्रशासन। शीघ्र निर्णय के मूल सिद्धांत। प्रत्येक परिवार को पक्का घर। चौबीस घंटे बिजली।पीने का पानी। गांव-गांव सड़क,  इंटरनेट। सबका पोषण, सबका स्वास्थ्य। सबको शिक्षा।  सबको रोजगार। एक राष्ट्र, एक कर। एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड। एक भारत, श्रेष्ठ भारत। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, फिट इंडिया, स्वच्छ इंडिया, टीम इंडिया के सामूहिक प्रयत्नों से न्यू इंडिया का निर्माण। आस्था के केंद्रों का पुनर्जीवन। राष्ट्रीयता और भारतीयता के प्रतीकों को सम्मान। सीमाओं की रक्षा। ‘राष्ट्ररक्षासमं पुण्यं, राष्ट्ररक्षासमं व्रतम्, राष्ट्ररक्षासमं यज्ञो, दृष्टो नैव च नैव च’ का संकल्प। विश्व नेतृत्व का चरित्र। कोरोना महामारी काल में न केवल भारत , बल्कि पूरे विश्व ने उनकी भक्ति और शक्ति को देखा है। लोगों को उनमें नर और नारायण दोनों के दर्शन हुए हैं। महामारी से कराह रहे विश्व के देशों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की न केवल सराहना की है, समर्थन भी किया है, अनुकरण भी किया है। भारत के अबतक के सबसे लोकप्रिय एवं यशस्वी प्रधानमंत्री,  इतिहास पुरुष नरेंद्र मोदी ने एक ऐसे भविष्य के भारत की नींव रखी  है, विश्व में अपनी सनातन श्रेष्ठता को तो पुनः प्राप्त करेगा ही, विश्व का सफल नेतृत्व भी करेगा। नरेंद्र मोदी जी! जीवेम शतम्! जीवेम शतम्!

प्रभात झा

(भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद )  

कोरोना काल में लापरवाही घातक

कोरोना काल में जरा सी लापराही घातक हो सकती  है यें जानकारी कालरा अस्पताल के हार्ट रोग स्पेशलिस्ट डाँ आर एन कालरा और मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डाँ विवेका कुमार ने दी। डाँक्टरों का कहना है कि दिल्ली में इस समय कोरोना का कहर तेजी से फैल रहा है जिसकी चपेट में लोग आ रहे है।

कोरोना का डर मधुमेह रोगी और उच्चरक्तचाप से पीड़ित रोगियों  के साथ –साथ हार्ट रोगियों को ज्यादा होता है। इस लिये हार्ट में दर्द और बैचेनी हो तो उसे नजरअंदाज ना करें क्योंकि कोरोना के डर के कारण ज्यादात्तर लोग अस्पतालों में जाने से बच रहे है। कई बार ऐसा होता है कि लोग ये सोचते है कि मेडिकल स्टोर से मेडिसन खरीदकर ही काम चला लेते है लेकिन उसका कोई लाभ नहीं होता है। कोरोना शरीर के हर अंग पर हमला कर रहा है । जो सभी के लिये घातक है। ऐसे में बचाव के तौर पर मास्क का प्रयोग करें । बाहर के खाने से बचें और नियमित एक्सरसाइज करें । बुखार होने पर जांच करवायें और उपचार भी करवायें जिससे कोरोना को रोका जा सकें।

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला 30 सितंबर को

करीब 28 साल पहले अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की भारी भरकम भीड़ ने कानून व्यवस्था को धता बताते हुए बाबरी ढांचे को ढहा दिया था। इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती, कल्याण सिंह समेत कई बड़े नेता आरोपी हैं। लखनऊ की विशेष अदालत इस मामले पर 30 सितंबर को फैसला सुनाएगी। सभी को फैसले के वक्त अदालत में मौजूद रहना होगा।
बाबरी मस्जिद ढहाने के मामले में 6 दिसंबर 1992 को थाना राम जन्मभूमि में एफआईआर दर्ज की गई थी। मामले में 49 लोगों को आरोपी बनाया गया। इनमें बाला साहेब ठाकरे, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णुहरि डालमिया समेत 17 आरोपियों की मौत हो चुकी है। आरोपियों में विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, राम विलास वेदांती, साक्षी महाराज, विहिप नेता चंपत राय, महंत नृत्य गोपाल दास भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट को 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया था। 1 सितंबर को विशेष जज एसके यादव ने मामले में सुनवाई पूरी की। इसके बाद जज ने फैसला लिखना शुरू किया। जज ने कहा, मामले में 30 सितंबर को फैसला सुनाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस को अपराध कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे के विध्वंस को अपराध कहा था। कोर्ट  के मुताबिक, इस घटना ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को हिलाकर रख दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने वीआईपी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप को बहाल करने की सीबीआई की याचिका को स्वीकार कर लिया था। साथ ही अदातल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 फरवरी 2001 के फैसले में आडवाणी और अन्य के खिलाफ साजिश रचने के आरोप को हटा देने को गलत बताया था। अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने रायबरेली में चल रहे मामले को सीबीआई की विशेष अदालत में स्थानांतरित कर दिया था।
ये हैं ज़िंदा बचे आरोपी
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुधीर कक्कड़, सतीश प्रधान, राम चंद्र खत्री, संतोष दुबे, ओम प्रकाश पांडे, कल्याण सिंह, उमा भारती, राम विलास वेदांती, विनय कटियार, प्रकाश शारना, गांधी यादव, जय भान सिंह, लल्लू सिंह, कमलेश त्रिपाठी, बृजभूषण सिंह, रामजी गुप्ता, महंत नृत्य गोपाल दास, चंपत राय, साक्षी महाराज, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, धर्मदास, जय भगवान गोयल, अमरनाथ गोयल, साध्वी ऋतंभरा, पवन पांडे, विजय बहादुर सिंह, आरएम श्रीवास्तव और धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।

जमाखोरी के खिलाफ कार्रवाई करें सरकार

देश में एक ओर जनता कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है । वहीं शासन और प्रशासन की अनदेखी के चलते अब जमाखोरी होने से खाद्य सामानों के दाम बढ़ने लगे है। दिल्ली के व्यापारियों का कहना है कि सरकार का दायित्व होता है कि वह बाजारों में बढ़ रही दलाली प्रथा पर नजर रखें। पर ऐसा ना होने के कारण कोरोना काल में अमीर व्यापारी चांदी काट रहे है और गरीबों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। आलम ये है कि बाजारों में जाने पर ऐसा लगता है, जैसे कोई धनी धौरी ही ना हो अपनी , व्यापारी मनमर्जी से काम और दाम तय कर रहे हो।

तहलका संवाददाता को छोटे व्यापारियों ने बताया कि देश में जब सियासत अपने तरीके से काम करें , जनता और व्यापारियों की तकलीफों को ना समझें तो वहुत सी धांधली ऐसी होने लगती है जिससे आम लोगों के साथ खासकर गरीबों को काफी परेशान करती है। जैसे एक ही बाजार में एक की वस्तु के दामों में काफी अंतर का होना है। सब्जी मंडियों में आलू और प्याज को दामों में जो ऊछाल है, उसकी मुख्य वजह है , जमा खोरी । कोरोना काल में जरूर जनता आर्थिक तंगी और तामाम परेशानियों से जूझ रही है । पर दलालों का बोलबाला है और वे कोरोना काल को अवसर के तौर पर देख रहे है और अपनी जेबे भर रहे है।

तहलका संवाददाता को रिटायर्ड अधिकारी मोती लाल ने बताया कि आज वो जनता पिस रही है, जिनका सियासत से कोई लेना देना नहीं है और सियासी घात और प्रतिघात का कोई असर नहीं होता है। वे आज दो कारणों से दुखी है एक तो कोरोना का बढ़ता कहर और बढ़ती महंगाई जिसके लिये वे सरकार को दोषी मानते है। उनका कहना है अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में और समस्या बढ़ सकती है। क्योंकि आज शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ –साथ आर्थिक मोर्चे पर देश आज लाचार नज़र आ रहा है। सरकार ने अगर जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई ना की तो ये कोरोना महामारी की तरह देश की गरीब जनता को ठसना शुरू कर देगीं।

योशिहिदे सुगा जापान के नए पीएम बने, जापानी संसद डायट के दोनों सदनों ने बहुमत से चुना उन्हें नेता

आठ साल बाद जापान के नए प्रधानमंत्री के रूप में योशिहिदे सुगा (71) का चुनाव हो गया है। जापानी संसद ने बुधवार को सुगा को नया नेता चुना। किसान परिवार के सुगा को उनके पूर्ववर्ती आबे और उनकी नीतियों का समर्थक माना जाता है। अभी तक सुगा मुख्य केबिनेट सचिव के पद पर थे और उन्हें शक्तिशाली सरकारी सलाहकार माना जाता था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुगा को जापानी संसद डायट के दोनों सदनों में पार्टी के सदस्यों और स्थानीय प्रतिनिधियों की एक साझी बैठक में चुना गया। बैठक में उपस्थित 394 डायट सदस्यों ने मत दिया। देश के 47 प्रीफेक्चरल चैप्टर में से प्रत्येक के तीन प्रतिनिधियों ने कुल 141 वोट दिए।

इस चुनाव में सुगा के अलावा, दो अन्य उम्मीदवारों में पूर्व रक्षा मंत्री शीगेरू इशिबा (63) और एलडीपी के नीति प्रमुख फुमियो किशिदा (63) थे। सामान्य परिस्थितियों में एलडीपी के शीर्ष नेता को पार्टी से संबंधित डायट सदस्यों और रैंक-फाइल सदस्यों की तरफ से चुना जाता है। हालांकि, कोरोना महामारी और आबे के कार्यकाल के बीच इस्तीफा देने के कारण एलडीपी ने प्रक्रिया को सरल बनाने का फैसला किया गया था।

सुगा अपने दम पर राजनीति में शीर्ष स्तर पर पहुंचे हैं। बता दें शिंजु आबे खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हए इस महीने के शुरू में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

जापान के मुख्य केबिनेट सचिव योशिहिदे सुगा को सोमवार को सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) का नया नेता चुना गया था।

याद रहे सुगा का प्रधानमंत्री बनना सोमवार को ही तय हो गया था जब जापान की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने उन्हें नेता चुन लिया था। इसके लिए सुगा को आंतरिक चुनाव में 534 में से 377 वोट मिले थे। उन्होंने अपने दो प्रतिद्वंदियों पूर्व रक्षा मंत्री शिगेरु इशिबा और पूर्व विदेश मंत्री फुमियो किशिदा को पीछे छोड़ा था।

भारत में कोविड-19 का कुल आंकड़ा 50 लाख के पार, 82,066 की मौत

देश में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 50 लाख के पार निकल गयी है। देश में अब तक 82,066 संक्रमित लोगों की मौत हो चुकी है। तेजी से बढ़ोतरी के संकेत पिछले करीब एक महीने से मिल रहे थे जब से टेस्ट की संख्या में तेजी आई है। बहुत से जानकार कह चुके हैं कि भारत के कुल मामलों की आने वाले समय में संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो सकती है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के सुबह जारी 24 घंटे के आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संक्रमितों की संख्या 50 लाख के पार पहुंच गई है। पिछले 24 घंटे में देशभर में संक्रमण के 90,123 नए मामले सामने आये हैं। इस दौरान रेकॉर्ड 1,290 संक्रमित लोगों की मौत हो गई है। टेस्ट में भी अब काफी तेजी आ चुकी है। आईसीएमआर के मुताबिक कोविड -19 के लिए 5,94,29,115 नमूनों का परीक्षण 15 सितंबर तक किया गया है। इनमें से 11,16,842 नमूनों का कल परीक्षण किया गया।

बता दें कि करीब 11 दिन पहले ही कोरोना संक्रमितों की संख्या 40 लाख तक पहुंची थी। पिछले 11 दिन में ये आंकड़ा 10 लाख बढ़ गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में कोरोना के एक्टिव केस से ज्यादा ठीक होने वालों की संख्या है। मंत्रालय के अनुसार, देश में फिलहाल, कोरोना वायरस के 9,95,933 एक्टिव केस हैं। कुल मामलों में से 39,42,361 संक्रमित लोग ठीक हो चुके हैं।

देश में कोरोना से अब तक 82,066 संक्रमित लोगों की मौत चुकी है। इसी के साथ देश में कोरोना वायरस के कुल 50,20,360 मामले हो गए हैं। महामारी से सबसे अधिक प्रभावित महाराष्ट्र है जहां कोरोना वायरस के 2,92,174 एक्टिव केस हैं। कर्नाटक में 98,555 सक्रिय मामले हैं, आंध्र प्रदेश में 92,353, उत्तर प्रदेश में 67,335 और दिल्ली में 29,735 मामले हैं।

पिछले एक महीने से भी ज़्यादा समय से दुनिया में रोज़ाना संक्रमण के सबसे ज़्यादा मामले अपने देश में ही सामने आ रहे हैं। इस दौरान अनलॉक की प्रक्रिया भी जारी है। दुनिया के 17 फीसदी मामले अब भारत में हैं। इससे अधिक अब अमेरिका में ही 67,64,598 मरीज हैं।
हालांकि, राहत की बात यह है कि ठीक होने वालों में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है। ब्राजील दूसरे व अमेरिका तीसरे नंबर पर है।
मंत्री का दावा, 40 लाख लोग निगरानी में
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने मंगलवार को राज्यसभा में बताया कि देश में संक्रमितों के संपर्कों का पता लगाने को 40 लाख लोगों को निगरानी में रखा है। उन्होंने दावा किया कि लॉकडाउन के चलते संक्रमण बेकाबू होने से रोक लिया गया, लेकिन बाद में मामले बढ़ गए। वहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय यह लगातार दावा कर रहा है कि कोरोना से मृत्यु दर 1.64 फीसदी है और स्थिति नियंत्रण में है, पर मरीजों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। यह बेहद चिंता का सबब है, क्योंकि अपने सभी पड़ोसी देशों में कोरोना के मामले कम होने लगे हैं और मरने वालों का आंकड़ा भी नियंत्रण में है।

राजस्थान में चंबल नदी में पलटी नाव ; कई डूबे, 7 शव निकाले

राजस्थान के कोटा और बूंदी जिले की सीमा पर बुधवार को चंबल नदी में एक नाव पलट जाने से कई लोगों की मौत हो गयी है जबकि कुछ तैर कर किनारे पहुँच गए। नाव में 50 के करीब लोग सवार थे। अभी तक 7 शव निकाले जा चुके हैं जबकि कुछ लोग अभी लापता बताये गए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हादसे पर शोक जताया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक जिले के सीमा पर स्थित गाँव गोठड़ा कला के पास बहने वाली चंबल नदी में नाव अचानक पलट गई। इसमें करीब 50 लोग सवार बताये गए हैं। नाव में मनुष्यों के अलावा लोगों का सामान और वाहन भी थे। नाव से यह लोग कमलेश्वर धाम जा रहे थे कि अचानक नाव पलट गई।  इससे इसमें सवार लोग, जिनमें महिलाएं बच्चे भी थे, नदी में गिर गए। कुछ लोगों ने नदी को तैर कर पार लिया जिससे उनकी जान बच गयी।

राजस्थान के कोटा जिले में चंबल नदी को पार करते वक्त एक नाव डूबने से 30 लोग डूब गए। इसमें से 7 लोगों के शव निकाले जा चुके है, जबकि कुछ लोग अभी लापता बताए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट करके कहा है कि कोटा में थाना खातोली क्षेत्र में चम्बल ढिबरी के पास नाव पलट जाने की घटना बेहद दुखद और  दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि लापत लोगों का तत्काल पता लगाया जाए ताकि उनकी जान बचाई जा सके।

गहलोत ने हादसे का शिकार लोगों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना जताई है। सीएम ने कोटा  प्रशासन से बात कर घटना की जानकारी ली है। तत्परता से राहत और बचाव के साथ लापता लोगों को शीघ्र ढूंढने के निर्देश दिए हैं। स्थानीय पुलिस और प्रशासन घटनास्थल पर मौजूद है। प्रभावित परिवारों को मुख्यमंत्री सहायता कोष से मदद के लिए निर्देश दिए हैं।

यूएई, बहरीन ने इजराइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये, ट्रंप ने बताया इसे ऐतिहासिक

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन ने इजराइल के साथ प्रस्तावित ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस समझौते के सूत्रधार हैं। समझौता दसतावेजों पर हस्ताक्षर वाशिंगटन में व्हाइट हाउस में हुए। समझौते के समय यूएई और बहरीन के सरकारी प्रतिनिधियों के अलावा इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू भी मौजूद रहे। रिपोर्ट्स के मुताबिक इजराइल सेना ने कहा जब समझौते पर हस्ताक्षर हो रहे थे ठीक उसी वक्त गज़ा पट्टी से इजरायल की तरफ़ दो रॉकेट फेंके गए।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझौते के बाद एक ट्वीट में कहा – ‘यह नए मध्य पूर्व की शुरुआत है। इससे दुनिया के एक अहम हिस्से में अब शांति स्थापित की जा सकेगी।’ ट्रंप ने समझौते पर हस्ताक्षर होने के समय का एक वीडियो भी शेयर किया है और कहा – ‘दशकों के विभाजन और संघर्ष के बाद आज हमने एक नए मिडिल ईस्ट की शुरुआत की है। इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के लोगों को बधाई। भगवान आप सबका भला करे।’

राष्ट्रपति ने ट्रंप मंगलवार को कार्यक्रम में शामिल होने के व्हाइट हाउस पहुंचे लोगों को संबोधित भी किया। ट्रम्प ने कहा – ‘आज दोपहर हम यहां इतिहास बदलने आए हैं। इजराइल, यूएई और बहरीन अब एक दूसरे के यहां दूतावास बनाएंगे। राजदूत नियुक्त करेंगे और सहयोगी देशों के तौर पर काम करेंगे। वो अब दोस्त हैं।’

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंज़ामिन नेतन्याहू ने इस समझौते का स्वागत करते हुए कहा – ‘आज इतिहास के करवट का दिन है। ये शांति की नई सुबह लेकर आएगा।’ याद रहे हाल में राष्ट्रपति ट्रंप को ऐतिहासिक समझौते के लिए नोबेल पुरूस्कार के लिए भी नामित किया गया है। उधर तुर्की, ईरान और फिलीस्तीन बहरीन और इजराइल के शांति समझौते पर भड़क उठे हैं। तीनों ने इस समझौते पर कड़ा ऐतराज जताया है।

अब यूएई और बहरीन, इजराइल की 1948 में स्थापना के बाद उसे मान्यता देने वाले क्रमशः तीसरे और चौथे अरब देश बन गए हैं। पिछले महीने संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई भी इजराइल के साथ अपने रिश्ते सामान्य करने पर सहमत हुआ था। संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में ओमान भी ऐसा कर सकता है। इस बीच फिलीस्तीन के लोगों ने अरब देशों से अपील की है जब तक फिलीस्तीन और इजराइल के बीच विवाद का हल नहीं निकल जाता, उन्हें इंतज़ार करना चाहिए। फिलीस्तीन के नेता महमूद अब्बास ने कहा – ‘मध्य पूर्व में शांति तभी आ सकती है जब इजराइल वहां क़ब्ज़ा की गई जगहों से पीछे हट जाएगा।’

समझौते के बाद ट्रम्प का ट्वीट –
Donald J. Trump
@realDonaldTrump
After decades of division and conflict, we mark the dawn of a new Middle East. Congratulations to the people of Israel, the people of the United Arab Emirates, and the people of the Kingdom of Bahrain. God Bless You All!

अनर्थ व्यवस्था

देश की आर्थिक स्थिति पटरी से उतर रही है, इसके संकेत पिछले साल 27 अगस्त को ही मिल गये थे; जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने केंद्र सरकार को 24.8 अरब डॉलर यानी लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपये लाभांश और सरप्लस पूँजी के तौर पर देने का फैसला किया था। तब बहुत-से आर्थिक जानकारों ने अर्थ-व्यवस्था को लेकर सवाल उठाये थे और यह भी कहा था कि केंद्रीय बैंक आरबीआई अपनी कार्यकारी स्वायत्तता खो रहा है। अब ठीक एक साल बाद, जब जीडीपी की पिछले 40 साल की सबसे कमज़ोर और निराश करने वाली -23.9 की विकास दर सामने आयी है; तो चिन्ता बढ़ गयी है। यह चिन्ता इसलिए भी और गम्भीर है कि सीमा पर चीन के साथ तनाव गम्भीर होता जा रहा है, और युद्ध के काले बादल मँडराते दिख रहे हैं। इसका निवेश, खासकर विदेशी निवेश पर विपरीत असर पडऩे की आशंका है; जो विशेषज्ञ पहले से ही जता रहे हैं। ऐसे हालात में कमज़ोर अर्थ-व्यवस्था अनेक संकटों का एक बहुत बड़ा कारण बन सकती है। बेशक भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी से खस्ताहाल हुई भारतीय अर्थ-व्यवस्था और जीडीपी अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र चुकी है और अगस्त के दौरान कई सेक्टरों में कारोबार बढऩे के संकेत मिले हैं।

पहले से खराब हो रही अर्थ-व्यवस्था पर कोविड-19 ने और कहर ढाया है। केंद्र सरकार पैसा जोडऩे के लिए जिस तेज़ी से निजीकरण के रास्ते पर जा रही है, उससे भी संकेत मिलते हैं कि आर्थिक हालत पर नियंत्रण के लिए सरकार को क्या-क्या करना पड़ रहा है। ये रिपोट्र्स हैं कि काफी कुछ निजी क्षेत्र में देने के बाद अब केंद्र सरकार अपने स्वामित्व वाली कई कम्पनियों के निजीकरण की तैयारी कर रही है। केंद्र सरकार ने 18 क्षेत्रों, जिनमें पेट्रोलियम, बैंकिंग, रक्षा उपकरण, बीमा, इस्पात जैसे महत्त्वपूर्व क्षेत्र शामिल हैं; को निजी हाथों में देने की कोशिश की है।

राजनीतिक रूप से भी यह केंद्र सरकार के लिए बहुत संकट की घड़ी है। गिरती अर्थ-व्यवस्था को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी लगातार सरकार पर हमला कर रहे हैं। उनके लगातार इस विषय पर बोलने से जनता का भी ध्यान इस तरफ जा रहा है। कई आर्थिक विशेषज्ञ भी इस हालत को गम्भीर बता रहे हैं। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का तो कहना है कि देश की जीडीपी के आँकड़ों से सभी को अलर्ट हो जाना चाहिए। उनके मुताबिक, जब इनफॉर्मल सेक्टर के आँकड़े जोड़े जाएँ, तो अर्थ-व्यवस्था -23.9 फीसदी से भी नीचे चली जाएगी, जिससे स्थिति और भी बदतर हो सकती है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीडीपी की कमज़ोर दर को कोरोना वायरस के कारण उपजी समस्या बताया है। हालाँकि रघुराम राजन कहते हैं कि भारतीय अर्थ-व्यवस्था को दुनिया में कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित अमेरिका और इटली से भी कहीं ज़्यादा नुकसान हुआ है।

ब्रिकवर्क रेटिंग्स ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि भारत सरकार की वित्तीय हालत काफी नाज़ुक है। रिपोर्ट के अनुसार, आयकर और जीएसटी संग्रह में इस साल ज़बरदस्त गिरावट आयी है। कोविड-19 महामारी और उसकी रोकथाम के उद्देश्य से लागू की गयी तालाबन्दी ने आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है और राजस्व को ज़बरदस्त नुकसान पहुँचा है। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ा है। ब्रिकवर्क रेटिंग्स के मुताबिक, लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीने के राजस्व संग्रह में झलकता है।

भारत के महालेखा नियंत्रक (सीजीए) के आँकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार का राजस्व संग्रह चालू माली साल की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले बहुत कम रहा। आयकर (व्यक्तिगत और कम्पनी कर) से प्राप्त राजस्व जून तिमाही में 30.5 फीसदी और वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) लगभग 34 फीसदी कम रहा। आँकड़ों के मुताबिक, इससे राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में बजटीय लक्ष्य का 83.2 फीसदी पर पहुँच गया।

हाल में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 4 सितंबर की के.वी. कामथ समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक की है। इससे भारतीय अर्थ-व्यवस्था के बहुत-से चिन्ताजनक पहलू सामने आते हैं। कोरोना वायरस महामारी से सबसे ज़्यादा मुश्किल वाले 26 सेक्टर के बारे में कामथ समिति ने कर्ज़दारों के कर्ज़ की री-स्ट्रक्चरिंग (पुनर्संरचना) को लेकर कई सुझाव दिये हैं। हालाँकि इसमें जो सबसे चिन्ताजनक पहलू है, वह यह है कि इसमें कोरोना-काल में भी अच्छा बिजनेस करती रहे केमिकल सेक्टर्स और फार्मा में अच्छी ग्रोथ के बावजूद इन सेक्टर्स को भी री-स्ट्रक्चरिंग के दायरे में रखा है। ज़ाहिर है कि कामथ समिति ने कमोवेश सभी सेक्टर्स को नहीं छोड़ा है। कई विशेषज्ञों के मुताबिक, कामथ समिति ने यदि सभी सेक्टर्स को शामिल किया है, तो साफ है कि अर्थ-व्यवस्था की हालत ज़्यादा खराब है।

रिजर्ब बैंक ने समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार किया है। कामथ समिति ने जिन 26 सेक्टर की री-स्ट्रक्चरिंग की बात की है, उनमें ऑटो, एविएशन, रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन, पॉवर, हॉस्पिटलिटी आदि शामिल हैं। समिति का कहना है कि कर्ज़दारों के लिए कोई समाधान को अन्तिम रूप देने से पहले बैंकों को इन 26 सेक्टर के वित्तीय पैरामीटर का खास ध्यान रखना होगा। रिजर्व बैंक ने कहा है कि उसने समिति के सुझावों को व्यापक रूप से स्वीकार किया है।

रिजर्व बैंक का कहना है कि समिति ने वित्तीय पैरामीटर के बारे में सुझाव दिया है, जैसे कर्ज़-इक्विटी अनुपात, नकदी की स्थिति, डेट सर्विस एबिलिटी (ईएमआई चुकाने की क्षमता) आदि। समिति ने 26 सेक्टर की सिफारिश की है, जिनका ध्यान कर्ज़ देने वाली संस्थाओं को किसी कर्ज़दार के लिए समाधान योजना को अन्तिम रूप देने से पहले ध्यान रखा जा सकता है। बता दें आरबीआई ने रेजोल्युशन फ्रेमवर्क फॉर कोविड-19 रिलेटेड स्ट्रेस के तहत ज़रूरी वित्तीय पैरामीटर के बारे में सुझाव देने के लिए 7 अगस्त को कामथ समिति गठित की थी। कामथ आईसीआईसीआई बैंक के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं। समिति में दिवाकर गुप्ता, टी.एन. मनोहरन, अश्विन पारेख, सुनील मेहता (सदस्य सचिव) शामिल थे।

अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि यह ध्यान रखना होगा कि किसी कम्पनी की कुल देनदारी कितनी है? कुल कर्ज़ या अर्निंग बिफोर इंट्रेस्ट (ब्याज से पहले की कमायी), टैक्सेस (कर), डेप्रिसिएशन एंड अमॉर्टाइजेशन (ईबीआईडीटीए) यानी मूल्यह्रास तथा परिशोधन और डेब्ट सर्विस कवरेज रेशो (कर्ज़ सेवा आवृत्ति क्षेत्र अनुपात) कितना है? आरबीआई ने मार्च से अगस्त तक बैंकों को लोन की री-स्ट्रक्चरिंग और उन्हें एनपीए घोषित करने से बचने की छूट दी थी।

कुछ जानकारों का कहना है कि कामथ कमेटी की रिपोर्ट में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलू हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि 26 सेक्टर को री-स्ट्रक्चरिंग के दायरे में रखने से कमोवेश पूरी इंडस्ट्री ही नहीं, जीडीपी को भी री-स्ट्रक्चरिंग की ज़रूरत है। हालाँकि कुछ आर्थिक जानकार यह भी कहते हैं कि अगर री-स्ट्रक्चरिंग होगी, तो बैंकों के एनपीए कम होंगे; जिससे जनता को राहत मिलेगी। लेकिन यह देखना ज़रूरी होगा कि री-स्ट्रक्चरिंग किस स्तर तक होगी। यह कब और कैसे होगा? यह भी अभी भविष्य के गर्त में है। यह देखने की बात होगी कि री-स्ट्रक्चरिंग जब होगी, तो कितनी कम्पनियाँ इसमें शामिल की जाएँगी? साथ ही बैंक का स्ट्रक्चर क्या होगा? जानकारों के मुताबिक, इन के लिए अभी वक्त है और यह भी देखना दिलचस्प होगा कि कितने सेक्टर्स को इसका लाभ मिलता है?

तमाम चिन्ताओं के बीच भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम का दावा है कि भारत में अर्थ-व्यवस्था का बुरा दौर खत्म हो चुका है। उनके मुताबिक, अगस्त में तालाबन्दी के अनलॉक चरण के शुरू होने के बाद कई सेक्टरों में कारोबार बढऩे के साफ संकेत हैं। सुब्रमण्यम के मुताबिक, इस अगस्त का कारोबार पिछले साल अगस्त के लगभग बराबर ही चल रहा है। कई सेक्टर अप्रैल की स्थिति से बेहतर हो रहे हैं, जिसमें कोयला, तेल, गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और बिजली आदि शामिल हैं। उन्हें भरोसा है कि जल्द ही अर्थ-व्यवस्था पटरी पर लौट आयेगी।

सुब्रमण्यम का मानना है कि अर्थ-व्यवस्था की यह खराब स्थिति कोरोना वायरस की वजह से हुई है; लेकिन सरकार इससे जल्द ही उभर जाएगी। उनके मुताबिक, भारत की जीडीपी विकास दर मई में -23.9 फीसदी थी, जो जून में सुधरकर -15 फीसदी और जुलाई में और सुधरकर -12.9 फीसदी पर आ गयी। उनके मुताबिक, यह इस बात का संकेत है कि अनलॉक के बाद हालात बदले हैं और बेहतर समय आ रहा है।

हालाँकि आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि भारत में कोविड-19 महामारी आज की तारीख में तेज़ी से बढ़ रही है। लिहाज़ा ऐसे खर्च, जिनके लिए आपको फैसले करने पड़ते हैं; विशेष रूप से रेस्त्रां जैसी जगहों पर जहाँ काफी लोगों से सम्पर्क हो सकता है, तो इससे जुड़ी नौकरियाँ वायरस के खत्म होने तक कम रहेंगी। ऐसे में सरकार की ओर से दी जाने वाली राहत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। हालाँकि उनका कहना है कि मोदी नीत केंद्र सरकार आर्थिक पैकेज देने से शायद इसलिए हिचक रही है; क्योंकि वह सम्भवता भविष्य में पैकेज देने के लिए पैसे रख रही है। रघुराम राजन का साफ मानना है कि जब तक वायरस पर नियंत्रण नहीं हो जाता है, तब तक भारत में विवेकाधीन खर्च की स्थिति कमज़ोर रहेगी। राजन केंद्र सरकार की अब तक दी राहत को भी नाकाफी बताते हैं। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को लगता है कि सरकार भविष्य में प्रोत्साहन पैकेज देने के लिए वर्तमान में संसाधनों को बचाने की रणनीति अपना रही है। उनके मुताबिक, यह आत्मघाती है। वह कहते हैं कि सरकारी अधिकारी सोच रहे हैं कि वायरस पर काबू पाये जाने के बाद राहत पैकेज देंगे; लेकिन ऐसा करके वह स्थिति की गम्भीरता को कम आँक रहे हैं। राजन के मुताबिक, इस रणनीति से बाद में अर्थ-व्यवस्था का बहुत ज़्यादा नुकसान हो चुका होगा।

वरिष्ठ अर्थशास्त्री रथिन रॉय कह चुके हैं कि ऐसा मानना कि ब्याज दरों में कटौती से अर्थ-व्यवस्था विकास के रास्ते पर लौट रही है; गलत होगा। उनके मुताबिक, यह तरीका काम नहीं कर रहा है। रॉय आरबीआई की मौद्रिक नीति के बयानों से भी सहमत नहीं हैं। याद रहे आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास दो चरणों में ब्याज दरों में 1.15 फीसदी की कमी कर चुके हैं। कई आर्थिक जानकार आर्थिक पैकेज और आरबीआई की ब्याज दरों में कटौती को लेकर सवाल खड़े कर चुके हैं।

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा कहते हैं कि अर्थ-व्यवस्था खराब ज़रूर हुई है, लेकिन यह कोरोना वायरस और उसके कारण लोगों के जीवन को ध्यान में रखते हुए लगायी पाबन्दियों के कारण हुआ है। लेकिन अब इन पाबन्दियों में काफी ढील दी गयी है। वह अर्थ-व्यवस्था को लेकर विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री की निंदा से पूरी तरह असहमत हैं। उनके मुताबिक, प्रधानमंत्री ने आपूर्ति पर पूरा ध्यान दिया और आर्थिक पैकेज के कारण बाज़ार में नकदी बढ़ी। अर्थात् लोगों और व्यवसायों को कर्ज़ देने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के पास पर्याप्त नकदी आयी। उनके मुताबिक, लोगों के खाते में पैसे भी डाले गये, जिसके सकारात्मक नतीजे निकले। बाज़ार खुलने से धीरे-धीरे अर्थ-व्यवस्था पटरी पर आ जाएगी।

कुएँ में जीडीपी

देश में अर्थ-व्यवस्था को लेकर आर्थिक विशेषज्ञ पिछले एक साल से सरकार को चेता रहे थे। हालाँकि सरकार का बार-बार कहना रहा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है और सब कुछ सही चल रहा है। ज़ाहिर है कि सरकार राजनीतिक नुकसान के डर से सही आँकड़ों को छिपाती रही। हाल में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने चालू माली साल (वर्ष 2020-21) की पहली तिमाही (क्यू1) के जो जीडीपी आँकड़े जारी किये हैं, उनसे ज़ाहिर होता है कि इस वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर माइनस 23.9 फीसदी रही है।

निश्चित ही पाँच ट्रिलियन अर्थ-व्यवस्था हासिल करने के दावों के लिए यह स्थिति बहुत बड़ा झटका है। इन आँकड़ों से ज़ाहिर होता है कि आने वाले दिन बहुत मुश्किल भरे हो सकते हैं। कोरोना वायरस से पहले ही अर्थ-व्यवस्था को लेकर चिन्ताएँ जतायी जा रही थीं और कोविड-19 के बाद तो यह रसातल में पहुँचती दिख रही है। जो आँकड़े सामने आये हैं, वो अभी तक के अनुमानों से भी बहुत खराब हैं। इस समय जीडीपी की दर माइनस (घाटे) में जाने का अर्थ है देश गरीबी की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, जिस पर तत्काल काबू पाना होगा। यह पिछले 40 साल का अर्थ-व्यवस्था का सबसे कमज़ोर आँकड़ा है। इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि अर्थ-व्यवस्था के क्षेत्र में आने वाले दिन बहुत चिन्ता वाले हो सकते हैं। अभी तक के आँकड़ों के मुताबिक, होटल इंडस्ट्री पर सबसे बड़ी मार पड़ी है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आँकड़े बताते हैं कि यदि इसी तिमाही में पिछले साल की बात करें, तो उस समय यह दर उससे कहीं कम है। रेटिंग एजेंसियाँ पहले से इसकी आशंका जता रही थीं; लेकिन यह उनके अनुमानों से भी खराब स्थिति है। बता दें वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर 3.1 फीसदी थी। एनएसओ के मुताबिक, जीवीए में 22.8 फीसदी की गिरावट आयी है। वैसे तो अर्थ-व्यवस्था को लेकर आर्थिक जानकार पहले से गहरी चिन्ता जता रहे थे, लेकिन आँकड़ों को देखने से लगता है कि कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण औद्योगिक उत्पादन में बड़ी कमी आयी है। रोज़गार के आँकड़ों में भी खासी गिरावट देखने को मिली है।

वैसे तो जुलाई से अनलॉक शुरू होने के बाद मज़दूर, दुकानदार, कर्मचारी और अन्य काम पर लौटने शुरू हुए हैं और व्यापार को भी कुछ गति मिली है। लेकिन अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर आने में अभी बहुत वक्त लगेगा। लॉकडाउन के दौरान करोड़ों लोगों की नौकरियाँ चली गयीं और अभी तक ऐसे संकेत नहीं मिल रहे कि बेरोज़गार हुए लोग दोबारा जल्दी रोज़गार पा सकेंगे। एनएसओ के आँकड़ों के मुताबिक, अप्रैल से जुलाई की तिमाही के दौरान भारत का राजकोषीय घाटा 8.21 लाख करोड़ रुपये रहा। इस अवधि में वर्ष 2019-20 में यह 5.47 लाख करोड़ रुपये था।

यह हैरानी की बात कोरोना वायरस का सबसे पहला और बड़ा संकट झेलने वाले और वर्तमान में सीमा पर भारत के साथ तनाव में उलझे चीन की अर्थ-व्यवस्था दुनिया के अन्य देशों में गम्भीर समस्या के बावजूद प्लस (3.2 फीसदी) में रही है। उसके अलावा वियतनाम ही ऐसा देश है, जहाँ जीडीपी प्लस (0.4 फीसदी) रही है।

बहुत-से आर्थिक जानकार कहते हैं कि तालाबन्दी के दौरान उपजी विपरीत परिस्थितियों में अधिकतर लोगों की जेबों में पैसे नहीं डाले गये, जिसके कारण माँग में बढ़ोतरी नहीं आ सकी। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी इसी मुद्दे को बहुत ज़ोर से उठाते रहे हैं। उनकी बार-बार माँग रही कि जनता की जेब में पैसे नहीं डाले गये, तो स्थिति चिन्ताजनक बन जाएगी; और ऐसा ही हुआ भी है। जानकारों का कहना है कि मई में आम लोगों के बैंक खातों में अगले छ: महीने के लिए हर महीने 10-10 हज़ार रुपये डाले जाने चाहिए थे। छोटे किसानों और महिलाओं को मनरेगा और दूसरी योजनाओं के ज़रिये रोज़गार दिये गये और नकदी भी; लेकिन माँग बढ़ाने के लिए मध्य वर्ग और अच्छे वेतन प्राप्त करने वालों को आर्थिक मदद नहीं दी गयी।

इस दौरान लाखों की संख्या में कर्मचारियों को या तो नौकरी से हाथ धोना पड़ा या उन्हें उनकी कम्पनियों ने काटकर वेतन दिया। हो सकता है कि केंद्र सरकार भविष्य में एक और आर्थिक पैकेज की घोषणा करे; लेकिन इन महीनों में जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना कठिन है। सरकार के बीच ही पैकेज को लेकर दुविधा है। अनलॉक के दूसरे महीने में भी लोगों के पास पैसे नहीं हैं और जिनके पास कुछ जमा पूँजी है भी, वे उसे खर्च करने से गुरेज़ कर रहे हैं। इसका कारण उनके सामने कई अनसुलझे डर हैं।

कोरोना वायरस के मामले जिस तेज़ी से बढ़ रहे हैं, इसके चलते बहुत-से लोग अभी घरों से नहीं निकल रहे हैं। ज़ाहिर है कि बाहर निकलकर जो पैसा वे खर्च कर सकते थे, वो नहीं खर्च रहे। इसका विपरीत असर व्यवसायों पर पड़ा है। इसी के कारण बहुत-से लोगों को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा है, या उनके वेतन में कटौती की गयी है। आँकड़ों के मुताबिक, अप्रैल से जून के बीच निजी खपत महज़ 26.7 फीसदी रही। इसलिए रघुराम राजन जैसे आर्थिक विशेषज्ञ और कांग्रेस नेता राहुल गाँधी लगातार लोगों की जेब में पैसा डालने पर ज़ोर दे रहे हैं। यह सभी लोग कुछ उत्पादों में जीएसटी की दर घटाने और आर्थिक सुधार की कोशिश पर ज़ोर दे रहे हैं। वैसे केंद्र सरकार के निजीकरण को भी एक उपाय के तौर पर देखा जा रहा; लेकिन बहुत-से जानकार इसे आत्मघाती कदम बता रहे हैं।

बाकी तिमाहियों में भी कम उम्मीद : इकोरैप

सितंबर के शुरू में स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च रिपोर्ट ‘इकोरैप’ भी सामने आयी है। इसमें 2020-21 के माली साल के दौरान भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 10.9 फीसदी तक की गिरावट की बात कही गयी है। इसके मायने हैं कि अगली चार तिमाहियों में भी देश की आर्थिक हालत लचर बनी रहेगी। यदि एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट पर नज़र डालें, तो उसने पहले के मुकाबले ज़्यादा गिरावट का अनुमान लगाया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून 2020 में देश की अर्थ-व्यवस्था माइनस 23.9 फीसदी तक नीचे चली गयी है। वित्त वर्ष 2019-20 की समान तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 5.2 फीसदी रही थी। इससे पहले एसबीआई-इकोरैप में वास्तविक जीडीपी में 6.8 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया था, यानी देश के सबसे बड़े कर्ज़दाता ने इस बार पहले के मुकाबले 4.1 फीसदी ज़्यादा तक की गिरावट का अनुमान लगाया है। बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2020 में जीडीपी की वृद्धि दर 3.1 फीसदी रही थी। एसबीआई-इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया है कि एसबीआई के शुरुआती अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 की चारों तिमाहियों में वास्तविक जीडीपी में गिरावट आयेगी। पूरे वित्त वर्ष में जीडीपी में 10.9 फीसदी की गिरावट आयेगी। रिपोर्ट के मुताबिक, चालू माली साल की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी में 12 से 15 फीसदी की गिरावट आ सकती है; जबकि तीसरी तिमाही में यह शून्‍य से 5-10 फीसदी (-5 फीसदी से -10 फीसदी) नीचे रहेगी। रिपोर्ट के मुताबिक, इसी तरह चौथी तिमाही में वास्तविक जीडीपी में दो से पाँच फीसदी की गिरावट आयेगी। इकोरैप में कहा गया है कि कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लगाया गया, जिससे जीडीपी में गिरावट आयी। यह गिरावट बाज़ार और बैंक के अपने पहले के अनुमान से ज़्यादा है। बैंक ने जैसा अनुमान लगाया था, ठीक वैसे ही पर्सनल फाइनल कंज्‍यूमर एक्‍सपेंसेस में (पीएफसीई) की वृद्धि में ज़ोरदार गिरावट आयी। कोविड-19 की वजह से ज़्यादातर आवश्यक वस्तुओं का इस्तेमाल घटा और क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं होने से निवेश माँग नहीं सुधर रही है। ऐसे में कुल जीडीपी अनुमान में निजी उपभोग व्यय का हिस्सा ऊँचा रहेगा। ज़ाहिर है कि इकोरैप की यह रिपोर्ट अर्थ-व्यवस्था के लिहाज़ से कोई सुखद संकेत नहीं करती है।

कामथ समिति की रिपोर्ट में मुश्किल सेक्टर

  1. पॉवर, 2. कंस्ट्रक्शन, 3. आयरन एंड स्टील मैन्युफैक्चरिंग, 4. सडक़, 5. रियल एस्टेट, 6. ट्रेडिंग-होलसेल, 7. टेक्सटाइल, 8. केमिकल्स, 9. कंज्यूमर ड्यूरेबल्स/एफएमसीजी, 10. नॉन-फेरस मेटल्स, 11. फार्मास्यूटिकल्स मैन्युफक्चरिंग, 12. लॉजिस्टिक्स, 13. जेम्स ऐंड ज्वैलरी, 14. सीमेंट, 15. ऑटो कम्पोनेंट, 16. होटल, रेस्टोरेंट, टूरिज्म, 17. माइनिंग, 18. प्लास्टिंग प्रोडक्ट्स मैन्युफैक्चरिंग, 19. ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग, 20. ऑटो डीलरशिप, 21. एविएशन, 22. शुगर, 23. पोर्ट ऐंड पोर्ट सर्विसेज, 24. शिपिंग, 25. बिल्डिंग मटीरियल्स और 26. कॉरपोरेट रिटेल आउटलेट्स।

वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में लुढक़ा भारत

ग्लोबल इकोनामिक फ्रीडम इंडेक्स (वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रा सूचकांक) 2020 के 10 सितंबर को जारी किये आँकड़ों में भारत 26 स्थान नीचे लुढक़कर कमज़ोर 105वें स्थान पर जा पहुँचा है। कनाडा की एक संस्था हर साल यह रिपोर्ट जारी करती है, जिसमें किसी देश में कारोबार के वातावरण के खुलेपन का पता चलता है। यह रिपोर्ट फ्रेजर इंस्टीट्यूट तैयार करता है। पिछले साल भारत इस रिपोर्ट में 79वें स्थान पर था। यह रिपोर्ट 162 देशों और अधिकार क्षेत्रों में आर्थिक स्वतंत्रता को आँका गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक साल में सरकार के आकार, न्यायिक प्रणाली और सम्पत्ति के अधिकार, वैश्विक स्तर पर व्यापार की स्वतंत्रता, वित्त, श्रम और व्यवसाय के विनियमन जैसी कसौटियों पर भारत की स्थिति खराब हुई है। 10 अंक के पैमाने पर सरकार के आकार के मामले में भारत को एक साल पहले के 8.22 के मुकाबले 7.16 अंक, कानूनी प्रणाली के मामले में 5.17 की जगह 5.06, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की स्वतंत्रता के मामले में 6.08 की जगह 5.71 और वित्त, श्रम और व्यवसाय के विनियमन के मामले में 6.63 की जगह 6.53 अंक मिले हैं। सूची में प्रथम 10 देशों में न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, मॉरीशस, जॉर्जिया, कनाडा और आयरलैंड शामिल हैं। जापान को सूची में 20वाँ, जर्मनी को 21वाँ, इटली को 51वाँ, फ्रांस को 58वाँ, रूस को 89वाँ और ब्राजील को 105वाँ स्थान मिला है। बता दें कि जो देश प्राप्तांक 10 के जितने करीब होता है, स्वतंत्रा उसी अनुपात में अधिक मानी जाती है। यह रिपोर्ट भारत में दिल्ली की गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर सिविल सोसायटी ने 10 अगस्त को जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आर्थिक स्वतंत्रा बढऩे की सम्भावनाएँ अगली पीढ़ी के सुधारों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के खुलेपन पर निर्भर करेंगी। रिपोर्ट में व्यक्तिगत पसन्द का स्तर, बाज़ार में प्रवेश की योग्यता, निजी सम्पत्ति की सुरक्षा, कानून का शासन सहित अन्य मानकों को देखा जाता है। इसके लिए विभिन्न देशों की नीतियों और संस्थानों का विश्लेषण किया जाता है। जिन देशों को सबसे नीचे स्थान मिला है, उनमें अफ्रीकी देश, कांगो, जिम्बाब्वे, अल्जीरिया, ईरान, सूडान, वेनेजुएला आदि शामिल हैं।

केंद्र सरकार ने युवाओं का भविष्य कुचल दिया : राहुल गाँधी

कोरोना वायरस महामारी के शुरू से ही कांग्रेस नेता राहुल गाँधी केंद्र सरकार की तैयारियों और फैसलों के कटु आलोचक रहे हैं। वह बार-बार कह चुके हैं कि जब तक सरकार आम आदमी की जेब में पैसा नहीं डालती, स्थिति सही नहीं हो सकती। वह केंद्र सरकार पर हमले के लिए कांग्रेस की स्पीकअप मुहिम के तहत वीडियो सीरीज भी चला रहे हैं। राहुल केंद्र सरकार को भारत की गिरती अर्थ-व्यवस्था को लेकर ज़िम्मेदार बता रहे हैं। उन्होंने एक वीडियो में कहा है कि केंद्र सरकार ने देश के युवाओं के भविष्य को कुचल दिया है। राहुल कोरोना वायरस के चलते किये गये केंद्र सरकार के लॉकडाउन को गलत बता रहे हैं। उन्होंने कहा है कि भारत की सुस्त अर्थ-व्यवस्था के चलते जीडीपी गिर गयी। तमाम युवा बेरोज़गार हो गये। गाँधी का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार की नीतियों से करोड़ों की नौकरियों चली गयीं। जीडीपी में ऐतिहासिक गिरावट आयी है। इसने भारत के युवाओं के भविष्य को कुचल दिया है। आइए, सरकार को उनकी आवाज़ सुनाते हैं। वीडियो में राहुल कहते हैं कि कोरोना वायरस महामारी में बिना सोचे समझे किये गये लॉकडाउन से बड़ा नुकसान हुआ है। जीडीपी में 23.9 फीसदी गिरावट दर्ज हुई है। लाखों की नौकरियाँ चली गयी हैं। मध्यम और छोटे व्यापार तबाह हो गये हैं। केंद्र सरकार गरीब परिवारों और बेरोज़गारों को तुरन्त न्याय दे। राहुल गाँधी लॉकडाउन को असंगठित वर्ग के लिए मृत्युदण्ड के बराबर बता चुके हैं। उन्होंने देश की खराब आर्थिक हालत पर हमला बोलते हुए एक अन्य वीडियो में कहा कि बिना किसी तैयारी के लॉकडाउन लगाने से भारतीय अर्थ-व्यवस्था को गहरा धक्का पहुँचा है और यह मोदी शासित केंद्र सरकार का असंगठित क्षेत्र पर तीसरा बड़ा हमला है। राहुल के मुताबिक, छोटे, सूक्ष्म और मझौले क्षेत्र में काम करने वाले लोग रोज़ कमाने-खाने वाले हैं। जब आपने बिना किसी तैयारी के लॉकडाउन की घोषणा की, तो ये गरीबों पर हमला था।

अगर आप अर्थ-व्यवस्था को एक मरीज़ की तरह देखें, तो उसे लगातार इलाज की ज़रूरत है। राहत के बिना लोग खाना छोड़ देंगे। वह बच्चों को स्कूल से निकाल देंगे और उन्हें काम करने या भीख माँगने के लिए भेज देंगे। कर्ज़ लेने के लिए अपना सोना गिरवी रख देंगे; ईएमआई और मकान का किराया बढ़ते जाएँगे। इसी तरह राहत के अभाव में छोटी और मझोली कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पाएँगी, उनका कर्ज़ बढ़ता जाएगा, और अन्त में वो बन्द हो जाएँगी। इस तरह जब तक कोरोना वायरस पर काबू होगा, तब तक अर्थ-व्यवस्था बर्बाद हो जाएगी। यह धारणा गलत है कि सरकार राहत और प्रोत्साहन, दोनों पर खर्च नहीं कर सकती है। संसाधनों को बढ़ाने और चतुराई के साथ खर्च करने की ज़रूरत है। ऑटो जैसे कुछ सेक्टर्स में माँग में तेज़ी वी-शेप्ड रिकवरी का प्रमाण नहीं हैं।’

रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर, आरबीआई 

‘जब कोरोना वायरस आया था और लॉकडाउन लगाने की बात चल रही थी। उस वक्त पश्चिमी देश लोगों की जान और अर्थ-व्यवस्था को लेकर असमंजस की स्थिति में थे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साफ कहना था कि जान है, तो जहान है। इसलिए प्रधानमंत्री ने देश में लॉकडाउन लगाने में कोई देरी नहीं की, जिसके कारण कोरोना वायरस का कहर भारत में वैसा नहीं दिखा जैसा अमेरिका और कई पश्चिमी देशों में देखने को मिला। अर्थ-व्यवस्था को सँभालने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कई उपाय किये हैं। अर्थ-व्यवस्था के लिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज और किसानों के लिए एक लाख करोड़ से अधिक की आर्थिक सहायता की घोषणा की गयी है। प्रधानमंत्री ने अर्थ-व्यवस्था में जान फूँकने के लिए एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव लाया। साथ ही किसानों को उनकी खाद्यान्न का उचित मूल्य मिले इसके लिए मण्डियों की व्यवस्था में भी सुधार किया गया। रेहड़ी और फड़ वालों के लिए भी प्रधानमंत्री मोदी ने मुआवज़े की घोषणा की। लोकल के लिए वोकल होने का नारा अर्थ-व्यवस्था को मज़बूती देने की ही कवायद है।

जेपी नड्डा, भाजपा अध्यक्ष

 

अर्थ-व्यवस्था का ग्राफ/एशिया

* चीन    +3.2 फीसदी

* वियतनाम        +0.4 फीसदी

* ताइवान           -0.6 फीसदी

* दक्षिण कोरिया  -2.9 फीसदी

* इंडोनेशिया      -5.3 फीसदी

* अमेरिका         -9.5 फीसदी

* जापान -9.9 फीसदी

* थाईलैंड           -12.2 फीसदी

* सिंगापुर           -13.2 फीसदी

* मलेशिया         -17.1 फीसदी

* भारत  -23.9 फीसदी

प्रमुख देश/दुनिया

* इंग्लैंड -21.7 फीसदी

* इटली  -17.7 फीसदी

* फ्रांस   -18.9 फीसदी

* कनाडा            -13 फीसदी

* जर्मनी -11.3 फीसदी

* जापान -9.9 फीसदी

(विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध जानकारी के आधार पर)