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लाल चंदन के बीज से सम्भव है स्तन कैंसर का इलाज

कैंसर का नाम सुनते ही सभी के हाथ-पाँव फूल जाते हैं। लेकिन दूसरी बीमारियों की तरह ही शुरू की लापरवाही ही कैंसर का सबसे बड़ा कारण होती है। महिलाओं में लगातार बढ़ता स्तन कैंसर इसका एक बड़ा उदाहरण है। हाल ही में अनुग्रह नारायण कॉलेज पटना (बिहार) में हुए एक शोध में पहली और अनोखी जानकारी सामने आयी है कि लाल चंदन के बीज से स्तन कैंसर का इलाज सम्भव है। इस जानकारी के सामने आने के बाद इस पर और तथ्यपूर्ण शोध किये जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अगर लाल चंदन के बीजों से स्तन कैंसर का सही इलाज सम्भव हो सका, तो स्तन कैंसर की असहनीय पीड़ा से गुज़रने वाली लाखों महिलाओं को काफी राहत मिलेगी। इतना ही नहीं स्तन कैंसर से होने वाली मौतों में भी कमी लायी जा सकेगी। 22 अगस्त, 2020 को सेज जर्नल ऑफ ब्रेस्ट कैंसर : बेसिक एंड क्लिनिकल रिसर्च (यूएसए) में प्रकाशित की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुग्रह नारायण कॉलेज, पटना के पीएचडी के छात्र विवेक अखौरी ने महावीर कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र में स्तन कैंसर पर शोध में पाया कि इस घातक बीमारी को लाल चंदन के बीज से ठीक किया जा सकता है।

इस बात का पता लगाने के लिए शोध छात्र विवेक अखौरी ने कार्सिनोजेन रासायनिक डीएमबीए के ज़रिये चाल्र्स फोस्टर चूहों में स्तन कैंसर मॉडल विकसित किया और स्तन कैंसर (ट्यूमर) विकसित होने के बाद संक्रमित चूहों का इलाज लाल चंदन के बीजों से पाँच सप्ताह तक किया। इस प्रयोग से पता चला कि चूहों में विकसित किये गये स्तन ट्यूमर तेज़ी से ठीक हुए हैं। शुरू से ही इन ट्यूमर्स की संख्या और मात्रा में अचम्भित करने वाली कमी देखी गयी और धीरे-धीरे यह बिल्कुल समाप्त हो गये। माना जा रहा है कि अगर यह प्रयोग स्तन कैंसर से जूझ रही महिलाओं को ठीक करने में कामयाब रहा, तो शोध छात्र की यह बहुत बड़ी कामयाबी और भारत के लिए गर्व की बात होगी; क्योंकि लाल चंदन के बीज के माध्यम से स्तन कैंसर ठीक करने का यह दुनिया में किया गया पहला अध्ययन है। इस अध्ययन टीम में महावीर कैंसर संस्थान के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार और गाइड डॉ. मनोरमा कुमारी भी शामिल थीं। अध्ययन में टीम के मुताबिक, झारखंड से लाल चंदन के बीज इकट्ठे करके लाये गये थे, जिन्हें शोध में स्तन कैंसर रोधी के रूप में प्रयोग करने पर चौंकाने वाले परिणाम सामने आये।

स्तन कैंसर क्या है?

स्तनों की कोशिकाओं में पनपने वाले एक प्रकार के ट्यूमर को स्तन कैंसर कहते हैं। यह महिलाओं में अधिकतर पनपता है, जिसका पता शुरू में नहीं चल पाता; क्योंकि महिलाएँ स्तनों में हल्का-फुल्का दर्द या मरोड़ समझकर इसे इग्नोर करती रहती हैं, जब यह काफी बड़ा हो जाता है और स्तनों को छूने पर गाँठ साफ नज़र आने लगती है, तब इसके प्रति वे सजग होती हैं। लेकिन तब तक यह शरीर के बाकी हिस्सों और अन्य ऊतकों को प्रभावित करने लगता है। वैसे स्तन कैंसर पुरुषों में भी होता है, लेकिन बहुत कम। दरअसल, महिलाओं के स्तनों में विशेष ग्रंथियाँ होती हैं, जो दूध बनाती हैं। दूध बनने के लिए स्तन संरचना में 15-20 खण्ड होते हैं, जो छोटे-छोटे अनेक उपखण्डों में बँटे होते हैं। इनमें लसीका वाहिकाएँ दूध को स्तन से काख के लिम्फ नोड्स की तरफ ले जाती हैं। लिम्फ नोड्स का आकार बीन्स की तरह होता है, इनमें संक्रमण से लडऩे वाली प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाएँ होती हैं। लेकिन दूध रुकने, जमने से इन्हीं लसीका प्रणाली के माध्यम से स्तन कैंसर पनपता है। इसके अलावा स्तनों को मरोडऩा, वंशानुगत कारक, प्रजनन के गलत तरीके, उच्च कैलोरी लेने, अनियमित तौर पर वज़न बढऩे, खानपान में अनियमितता बरतने, एस्ट्रोजन के लिए लम्बे समय तक सम्पर्क और कुछ पर्यावरणीय कारक स्तन कैंसर के विकास में योगदान करते हैं। वैसे स्तन कैंसर अधिकतर उन महिलाओं में पनपता है, जो अपने बच्चों को दूध पिलाने से बचती हैं।

अपना निजी अस्पताल चलाने वाली डॉ. मीनाक्षी शर्मा के बताती हैं कि स्तन कैंसर के लक्षणों की पहचान महिलाएँ खुद कर सकती हैं। यदि उन्हें इसके लक्षण महसूस हों या पता लग जाए कि उनमें स्तन कैंसर पनप रहा है या उसके लक्षण पनप रहे हैं, तो तुरन्त डॉ. से सम्पर्क करें और शुरुआती दौर में ही इसका इलाज करा लें। इससे न केवल पैसा कम खर्च होगा, बल्कि इलाज भी आसानी से हो जाएगा। डॉ. मीनाक्षी शर्मा कहती हैं कि महिलाएँ अगर जीवनचर्या में छोटी-छोटी सावधानियाँ बरतें, तो कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है। मसलन, अधिक कोलेस्ट्रॉल वाले खाने से बचें, धूम्रपान न करें, अधिक गर्भनिरोध दवाओं का सेवन न करें और जब माँ बनें तो बच्चे को स्तनपान ज़रूर कराएँ। इसके अलावा अगर कभी स्तन कैंसर के लक्षण सामने आते हैं या यह हो जाता है, तो डर और शर्मिंदगी न दिखाते हुए तुरन्त घर में इसका ज़िक्र करें और स्तन कैंसर के किसी विशेषज्ञ डॉ. से सम्पर्क करें।

डॉ. मीनाक्षी कहती हैं कि अगर पहले स्टेज में ही स्तन कैंसर का पता चल जाए, तो 80 फीसदी से अधिक और दूसरे स्टेज में पता चल जाने पर 60 से 70 फीसदी महिलाएँ ठीक हो सकती हैं। लेकिन तीसरे और चौथे स्टेज में कैंसर का पता चलने पर इसका इलाज मुश्किल हो जाता है।

लक्षण

स्तन कैंसर के पाँच प्रमुख लक्षण होते हैं। इन पाँच लक्षणों की जानकारी होने पर कोई भी महिला आसानी से पता लगा सकती है कि उसे स्तन कैंसर है या नहीं। ये लक्षण निम्न प्रकार है :-

गाँठ पडऩा : किसी भी महिला में स्तन कैंसर का यह सबसे शुरुआती लक्षण होता है। इसमें स्तन के अन्दर गाँठ बननी शुरू हो जाती है।

सूजन आ जाना : अनेक बार स्तनों में सूजन आ जाती है, जिसे महिलाएँ हल्के में ले लेती हैं। वे समझती हैं कि सूजन तो गर्म सेंक या किसी तेल की मालिश से ठीक हो जाएगी, लेकिन यह उनकी भूल होती है। इसलिए यदि स्तनों में सूजन के साथ तनाव या दर्द रहता है, तो तुरन्त डॉ. को दिखाना चाहिए।

लगातार दर्द रहना : यदि किसी महिला के स्तनों में लगातार दर्द रहता है, तो यह स्तन कैंसर का लक्षण है। इसलिए इसका घरेलू उपचार करने से बचें और डॉ. से संपर्क करें।

लगातार खुजली होना : अगर किसी महिला के स्तनों, खासकर निप्पलों पर लगातार खुजली होती है और वह किसी ऊपरी दवा के लगाने पर नहीं जाती है, तो यह स्तन कैंसर का लक्षण भी हो सकता है। ऐसी महिलाएँ बच्चों को तब तक स्तनपान न कराएँ जब तक उन्हें इस बीमारी का सही से पता न चल जाए या डॉ. बच्चे को स्तनपान कराने को न कह दे।

खून आना : अगर किसी के स्तनों में दूध की जगह खून आने लगता है, तो यह कैंसर का ही लक्षण है। ऐसा होने पर तुरन्त डॉ. से सम्पर्क करें; क्योंकि यह कैंसर की चौथी स्टेज हो सकती है, जो कि काफी घातक है।

असामान्य वृद्धि : अक्सर देखा जाता है कि बहुत-सी महिलाओं के स्तन बहुत तेज़ी से असामान्य तौर पर बढ़ते हैं। अगर किसी महिला के स्तन के आकार में असामान्य रूप से बढ़ते हैं, तो इसे नज़रअंदाज़ करना महँगा पड़ सकता है; क्योंकि यह भी स्तन कैंसर का ही लक्षण है।

स्तनों का सख्त होना : यदि किसी महिला के स्तन सख्त होते जाते हैं या सामान्य से ज़्यादा सख्त हैं, तो यह भी स्तन कैंसर का ही लक्षण है।

लगातार तरल पदार्थ का आना : बहुत-सी महिलाओं के स्तनों से दूध की जगह खारा या गंधयुक्त पानी आता है, यह मटमैला सा होता है। अधिकतर महिलाएँ इसे सामान्य क्रिया समझती हैं, पर ऐसा होने पर इस तरह की लापरवाही काफी भारी पड़ सकती है; क्योंकि ऐसा होना स्तन कैंसर का ही लक्षण है।

मृत्यु दर और पीडि़तों की संख्या

वैश्विक कैंसर संगठन ग्लोबोकॉन (जीएलओबीओसीएएन) की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं में स्तन कैंसर की वजह से मृत्यु काफी मौतें होती हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं में कैंसर के सभी नये मामलों में करीब 27.7 फीसदी (1,62,468) मौतें होती हैं। वहीं वर्ष 2018 में करीब 23.45 फीसदी (87,090) महिलाओं की कैंसर से मौत हुई थी। हालाँकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्तन कैंसर का अब निदान किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 2018 में भारत में करीब 1,62,468 नये मामले कैंसर के दर्ज हुए, जबकि स्तन कैंसर से इस साल करीब 87,090 मौतें हुईं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया में सबसे ज़्यादा स्तन कैंसर भारतीय महिलाओं में पाया जाता है।

हाल ही में महावीर कैंसर संस्थान, पटना की एक रिपोर्ट में सामने आया कि वहाँ कैंसर के कुल मामलों में से करीब 23.5 फीसदी मामले स्तन कैंसर के हैं। चिन्ता में डालने वाली बात यह है कि भारत में हर साल तीन फीसदी की औसत से स्तन कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं।

इलाज

ज़्यादातर महिलाएँ स्तन कैंसर को एक लाइलाज समस्या समझती हैं; लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए स्तन कैंसर का उपचार इन तरीकों से किया जा सकता है :-

अमूमन देखा जाता है कि स्तन कैंसर का नाम सुनकर महिलाएँ बुरी तरह से घबरा जाती हैं। इसका कारण यह भी है कि वे समझती हैं कि उनके स्तनों का ऑप्रेशन होगा। इतना ही नहीं, वे इलाज कराने के नाम से शर्माती भी हैं। लेकिन यह अन्य शारीरिक बीमारियों की तरह ही है, इसलिए इसके इलाज कराने या स्तन कैंसर के लक्षण महसूस होने या स्तन कैंसर होने पर न तो शर्माना चाहिए और न ही इलाज से घबराना चाहिए। आजकल स्तन कैंसर ऑप्रेशन की प्रक्रिया से तभी ठीक किया जाता है, जब वह आखरी या खतरनाक स्टेज पर हो। अन्यथा अनेक प्रकार की थेरेपी और दवाओं से इसका इलाज हो सकता है। इन थेरेपी में हार्मोनल थेरेपी तथा कीमोथेरेपी आदि प्रमुख हैं। लेकिन कीमोथेरेपी काफी कष्टदायक होती है, जिसका बुरा असर भी पड़ सकता है। थेरेपी तभी करानी चाहिए, जब स्तन कैंसर शुरुआती अवस्था में हो या डॉ. इसके लिए कहे। थेरेपी के अलावा डॉक्टरों ने इसकी दवा भी ईजाद कर ली है, जिससे यह ठीक हो सकता है। कीमोथेरेपी कैंसर का उपचार करने का सबसे आम तरीका है। वास्तव में कीमोथेरेपी एक तरह की दवाई होती है, जो कैंसर के सेल्स को समाप्त करने करती है। कीमोथेरेपी के कारण ट्यूमर सिकुड़ जाता है और कैंसर का बढऩा कुछ समय के लिए रुक जाता है।

डेटा उपभोग से ग्रामीण क्षेत्र के विकास को मिलेगी गति

वर्ष 2011 में राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के रूप में शुरू की गयी योजना को वर्ष 2014 में भारतनेट के नाम से पहचान मिली, लेकिन बाद में किसी वजह से इस योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। हालाँकि इस योजना को सफल बनाने के लिए दूरसंचार मंत्रालय ने भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क (बीबीएनएल) नाम से एक कम्पनी का गठन सन् 2012 में किया था, जिसका काम भारतनेट योजना के प्रबन्धन, स्थापना और परिचालन का काम देखना था। उस समय इस योजना का लक्ष्य था देशभर की 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को एक-दूसरे से जोडऩा।

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस योजना का विस्तार करके ग्रामीणों को सबल बनाना चाहते हैं। लिहाज़ा, उन्होंने 15 अगस्त को लाल िकले के प्राचीर से 6 लाख गाँवों को 1,000 दिनों के अन्दर ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोडऩे की बात भी कही थी। इसका यह अर्थ हुआ कि इस अवधि में ऑप्टिकल फाइबर के ज़रिये ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मुहैया करायी जाएगी। इसके तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत को कम-से-कम 100 मेगाबाइट प्रति सेकेंड का बैंडविड्थ उपलब्ध कराया जाएगा। ऐसा करने से हरेक पंचायत में ऑनलाइन सेवाओं को शुरू करना आसान हो जाएगा। ई-गवर्नेंस, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा, ई-बैंकिंग, ई-स्वास्थ्य सेवाओं आदि की सुविधाएँ प्रत्येक ग्रामीण को मिल सकेंगी। इस योजना की मदद से एक देश, एक राशन कार्ड योजना को भी लागू किया जा सकेगा।

आज ग्रामीण क्षेत्रों में कमोबेश बिजली की उपलब्धता है। इसलिए इस योजना को अमलीजामा पहनाना आसान है। कोरोना महामारी के कारण शिक्षा की दशा और दिशा दोनों में आमूलचूल परिवर्तन आया है। गाँव के बच्चे भी आज ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं। कोरोना महामारी के समाप्त होने बाद भी गाँव के स्कूलों में ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क की मदद से स्मार्ट क्लास शुरू किया जा सकता है।

गौरतलब है कि इस योजना के दूसरे चरण को अमलीजामा पहनाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनवरी, 2020 में ही सिफारिश की थी। इस योजना का कुल बजट 42,068 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 18,792 करोड़ रुपये को दूसरे चरण में खर्च किया जाएगा। फिलहाल 8 राज्यों ने इस योजना को अपने यहाँ लागू करने का फैसला किया है, जबकि मुश्किल भौगोलिक क्षेत्रों वाले राज्य अपने यहाँ उपग्रह-आधारित मॉडल को लागू करेंगे।

राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क पैनल की सन् 2015 में आयी रिपोर्ट के आधार पर दूसरे चरण की योजना बनायी गयी है, जिसे सरकार, निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक उपक्रम मिलकर मूर्त रूप देंगे। कनेक्टिविटी मुहैया कराने के लिए इस योजना के तहत ऑप्टिकल फाइबर, रेडियो एवं उपग्रह जैसे माध्यमों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा अंतिम चरण की कनेक्टिविटी सुनिचित करने के लिए वाई-फाई तकनीक का सहारा लिया जाएगा, ताकि घर एवं दफ्तर हर जगह इंटरनेट की सुविधा सुचारू रूप से मिलती रहे। माना जा रहा है कि इस योजना को मूर्त रूप देने से डेटा की माँग बढ़ेगी, जिससे दूरसंचार क्षेत्र को सीधे तौर पर फायदा होगा। यह ग्रामीण क्षेत्र में कृषि आधारित उद्योगों के विकास में भी सहायक होगी; क्योंकि इससे किसानों व उद्योग मालिकों के बीच संवाद कायम करना आसान हो जाएगा। कंप्यूटर की मदद से गाँवों में काम करना भी आसान हो जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक, डेटा खपत में उछाल आने से भारत विकास के पथ पर दो से तीन साल आगे बढ़ सकता है। हालाँकि कोरोना महामारी के कारण भी ग्रामीण क्षेत्रों में डेटा की खपत दोगुने से भी ज़्यादा बढ़ी है।

बढ़त का यह दौर आगे भी कायम रहने वाला है। सन् 2025 तक भारत का कुल डेटा उपभोग दोगुना होने और प्रति उपभोक्ता मासिक उपभोग 25 जीबी होने का अनुमान है। यह ज़रूरी भी है। आज डिजिटल ढाँचे को विकसित करने के लिए निवेश करना उतना ही ज़रूरी है, जितना भौतिक ढाँचे का विकसित करना। इससे निजी क्षेत्र को भी फायदा होगा। डिजिटलीकरण की तरफ ग्रामीणों का रुझान बढऩे से वे अपने कारोबार को बढ़ा सकेंगे। इससे ई-शिक्षा, ई-स्वास्थ्य और ई-गवर्नेंस जैसे आवश्यक सुविधाओं तक ग्रामीणों की पहुँच को भी सम्भव बनाया जा सकेगा। ग्रामीण भारत के सूचना एवं शिक्षा सम्पन्न होने से ग्रामीणों के लिए रोज़गार एवं उद्यमशीलता के अधिक अवसर पैदा होंगे, जिससे ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि सम्भव हो सकेगी। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, मई 2020 तक देश भर में ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या 68.37 करोड़ थी। सरकारी दूरसंचार कम्पनी बीएसएनएल समेत पाँच बड़े सेवा प्रदाताओं का बाज़ार के 98.93 फीसदी हिस्से पर कब्ज़ा है। भारत के पास ऑप्टिकल फाइबर के विनिर्माण की पर्याप्त घरेलू क्षमता है; लेकिन भारतीय कम्पनियाँ 4जी उपकरणों के लिए विदेशी कम्पनियों पर निर्भर हैं। हालाँकि भारतीय कम्पनियों को विश्वास है कि वे आगामी दो साल में 4जी उपकरणों के उत्पादन की क्षमता को हासिल कर सकते हैं। ग्रामीण भारत का एक बड़ा हिस्सा विगत 70 साल से बुनियादी दूरसंचार सुविधाओं से महरूम है। अगर सरकार अगले 1,000 दिनों में इस योजना को पूरा करना चाहती है, तो उसे कनेक्टिविटी के लिए घरेलू स्तर पर निर्मित मौज़ूदा 2जी या 3जी तकनीकों का उपयोग करना होगा। इससे सरकार के मेक इन इंडिया संकल्प को भी मज़बूती मिलेगी। इस दिशा में आगे बढऩे के लिए यह आवश्यक भी है, क्योंकि फिलहाल भारत 4जी उपकरणों का निर्माण करने में सक्षम नहीं है।

आज देश में इंटरनेट कनेक्टिविटी के अलावा दूसरों कारणों से भी लोग इंटरनेट का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। स्मार्टफोन की कमी, देश के दूर-दराज इलाकों में मोबाइल टॉवर का नहीं होना, देश में ब्रांडबैंड की सीमित उपलब्धता आदि ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से मौज़ूदा समय में देश में शत-प्रतिशत डिजिटलाइजेशन के सपने को मूर्त रूप देना सपना बना हुआ है।

अंतर्राष्ट्रीय संस्था मैरी मीकर ने इंटरनेट के इस्तेमाल पर 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार भारत में चीन के बाद सबसे अधिक इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका मामले में तीसरे स्थान पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में लगभग 3.8 अरब लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। अप्रैल, 2020 के आँकड़ों के अनुसार, चीन में 85 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं, जबकि अमेरिका में यह संख्या लगभग 30 करोड़ है। ऑनलाइन बाज़ार का इस्तेमाल करने के मामले में भी भारत का स्थान दूसरा है। पहले स्थान पर चीन काबिज़ है। यह स्थिति तब है, जब भारत में इंटरनेट की पहुँच लगभग 40 फीसदी आबादी के बीच है। चीन में इंटरनेट की पहुँच 61 फीसदी आबादी के बीच है, जबकि अमेरिका में यह 88 फीसदी आबादी के बीच है। भारत के महानगरों में इंटरनेट की पहुँच 65 फीसदी आबादी के बीच है, जबकि इंटरनेट के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या कुल आबादी का लगभग 33 फीसदी ही है। सक्रिय इंटरनेट उपभोक्ता उसे कहते हैं, जो एक महीने में कम-से-कम एक बार इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।

आज दुनिया में इंटरनेट के कुल उपभोक्ताओं में भारत की हिस्सेदारी 12 फीसदी है, जिसका एक बड़ा कारण रिलायंस जियो द्वारा उपभोक्ताओं को पहले मुफ्त और बाद में सस्ती दर पर मोबाइल डेटा उपलब्ध कराना है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया एंड नीलसन द्वारा नवंबर, 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 23 करोड़ इंटरनेट के सक्रिय उपभोक्ता थे, जबकि शहरों में इंटरनेट के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 21 करोड़ है। इस प्रकार इंटरनेट के सक्रिय शहरी उपभोक्ताओं की तुलना में ग्रामीण लोग इंटरनेट का 10 फीसदी अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं।

भारत की कुल आबादी के मुकाबले इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है; लेकिन विगत 5 वर्षों से इस संख्या में तेज़ी आ रही है, जिसका कारण चीन की मोबाइल कम्पनियों द्वारा कम कीमत पर भारत में स्मार्ट मोबाइल हैंडसेट बेचना है। फिर भी गरीबी और निरक्षरता की वजह से भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है। दिसंबर, 2019 के अन्त तक भारत में लगभग 50 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन था; लेकिन इनमें से कुछ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कभी-कभार या कभी भी नहीं कर रहे थे।

कहा जा सकता है कि देश में समावेशी विकास का रास्ता तभी प्रशस्त हो सकता है, जब ग्रामीण क्षेत्र को सभी सुविधाओं से युक्त किया जाएगा। इंसान तभी प्रगति कर सकता है, जब उसके शरीर का हर अंग स्वस्थ हो। इसी तरह भारत भी तभी विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है, जब ग्रामीण क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाया जाए। बदले परिवेश में डिजिटलीकरण समय की माँग है। कोरोना महामारी ने डिजिटलीकरण की महत्ता को अभूतपूर्व तरीके से बढ़ाया है। इस संकट के दौर में सोशल डिस्टेंस की संकल्पना का अनुपालन महत्त्वपूर्ण हो गया है। आज लोग बैंकिंग लेन-देन, खरीदारी, डॉक्टर से सलाह-मशविरा आदि वाइस या वीडियो कॉल के ज़रिये कर रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 1000 दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों को ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोडऩे की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। अगर इस योजना को अमलीजामा पहनाने में सरकार कामयाब होती है, तो ग्रामीण क्षेत्र में विकास के दरवाज़े पूरी तरह से खुल जाएँगे और ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने में सरकार को आसानी होगी।

हम सब भाई-भाई हैं

एक बहुत पुरानी कहावत है- ‘अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग’, यह कहावत अपने आप में जीवन की वह सच्चाई छिपाये हुए है, जिसे दुनिया भर के करोड़ों लोग देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर एक ही है और यह सभी जानते हैं; लेकिन इतने पर भी उसे बाँटकर ही देखते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब लोग उस एक महाशक्ति के अलग-अलग नामों पर इस कदर लड़कर मरने-मारने पर आमादा हो जाते हैं, जैसे कोई दो लोग ज़मीन के किसी टुकड़े के लिए एक-दूसरे के खून का प्यासे हो जाते हैं। चालाक लोग इसी का फायदा उठाते हैं और दोनों तरफ (अलग-अलग मज़हबों) के लोगों को मूर्ख बनाकर उन पर शासन करते हैं।

लेकिन कुछ मानवता के शुभचिन्तक ऐसे भी हैं, जो एकता के हामी होते हैं। ऐसे लोग अपने मज़हब के अनुसार हिसाब से सभी उसूलों का पूरी तरह पालन करते हैं। वे न तो किसी दूसरे के मज़हब पर कीचड़ उछालते हैं और न ही किसी को मज़हबी झगड़ों में उलझाते हैं। ऐसे ही एक सन्त थे- स्वामी विनोदानंद जी। स्वामी विनोदानंद जी हँसमुख, मृदुभाषी और सत्य कहने वाले आर्य समाज से जुड़े सन्त थे। उनकी पूरी गृहस्थी थी, लेकिन तहसील से किसी औहदे से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया और आर्य समाज के प्रचारक बनकर गाँव-गाँव जाकर समाज सुधार का काम करने लगे थे। उनके प्रवचन इतने अच्छे और मानवतावादी होते थे कि उन्हें सुनने के लिए हर मज़हब के लोग आया करते थे। वे बिना किसी मज़हब की बुराई किये, बिना किसी को उसके मज़हब से दूर किये उसके मन में बस जाते थे। उनके प्रवचनों का लोगों पर इस कदर असर होने लगा कि सनातनी (हिन्दू) और मुस्लिम दोनों मज़हबों के अनेक लोगों ने मांस खाना, नशा करना तक छोड़ दिया।

ये शायद सन् 1995 या 96 की बात है। स्वामी विनोदानंद एक गाँव में प्रवचन देने पहुँचे। उनके प्रवचन लोगों को इतने अच्छे लगे कि उन्हें सुनने के लिए सभी मज़हबों के लोग आने लगे, धीरे-धीरे दूसरे गाँवों के लोग भी उनके प्रवचन सुनने आने लगे। हाल यह हो गया कि वे जिस मैदान प्रवचन देते थे, वहाँ खड़े होने तक को जगह नहीं बचती। एक दिन उन्होंने यह बात गाँव के लोगों से कही कि किसी बड़ी जगह पर उनके प्रवचन की व्यवस्था हो जाए, तो बहुत अच्छा हो। गाँव के लोगों ने दो ही जगह ऐसी बतायीं, जहाँ पर्याप्त जगह थी। एक मन्दिर का रामलीला मैदान, जो मन्दिर समिति के सुपुर्द था और दूसरी उर्स मेले की जगह, जो मस्जिद समिति के हवाले थी। स्वामी विनोदानंद को तो जगह चाहिए थी, सो उन्होंने गाँव के ही कुछ भले लोगों से मन्दिर या मस्जिद के दायरे में आने वाली दोनों जगहों में से कहीं भी प्रवचन करने की मंशा जता दी। तय हुआ कि कुछ लोग उन्हें लेकर मन्दिर की व्यवस्थापक मण्डली (समिति) के पास जाएँगे। अगले दिन दोपहर के भोजन के बाद स्वामी विनोदानंद गाँव के ही चार-छ: लोगों के साथ मन्दिर में पहुँच गये। सभी ने मन्दिर समिति के सामने स्वामी जी के प्रवचन वाली बात रखी, समिति के सभी सदस्य उत्सुक थे कि मन्दिर के रामलीला मैदान से धर्म का प्रचार-प्रसार होगा। पर मन्दिर के पुजारी, जिन्हें अधिकतर लोग पण्डित जी कहा करते थे; इस योजना से सहमत नहीं थे, सो उन्होंने साफ शब्दों में मनाही कर दी। उनकी दलील थी कि स्वामी जी हिन्दू धर्म के विरोध में बोलते हैं और उनके प्रवचन में मुस्लिम भी आते हैं, जो हिन्दू धर्म के खिलाफ है। स्वामी विनोदानंद जी ने उन लोगों से कुछ नहीं कहा और वहाँ से अपने साथ गये लोगों को लेकर मस्जिद के इमाम के पास पहुँचे। इमाम ने कहा- ‘स्वामी जी! बाकी हमें कोई ऐतराज़ नहीं, लेकिन यह हमारे मज़हब में नहीं है। न ही कुरआन इसकी इजाज़त देता है। मैं अल्लाह की नज़रों में गुनहगार नहीं बनना चाहता, इसलिए मुझे मुआफ कीजिए। दोनों जगहों से खाली हाथ लौटे स्वामी विनोदानंद ने शाम को प्रवचन में लोगों से इस विषय पर चर्चा छेड़ दी। उन्होंने कहा कि आप ही बताएँ, जिन जगहों पर आप सभी ग्रामवासियों का हक उतना ही है, जितना कि मन्दिर के पुजारी और मस्जिद के इमाम का; तो क्या आप लोग वहाँ प्रवचन के लिए उन लोगों से प्रार्थना नहीं कर सकते। सभी गाँव वालों ने एक आवाज़ में उन्हें इसके लिए समर्थन दिया। वहीं यह तय हुआ कि कल दोनों मज़हबों के लोग पण्डित जी और इमाम साहिब को बैठक में बुलाएँगे।

अगले दिन बैठक शुरू हुई। स्वामी जी ने पण्डित जी से पूछा- ‘पण्डित जी! आपको जिस बात से एतराज़ है, वह मैं जानता हूँ। मुझे आपसे कोई शिकायत भी नहीं; लेकिन मैं आपसे दो सवाल पूछूँगा, कृपया जवाब दें।’ उन्होंने पण्डित जी से पूछा- ‘आपकी नज़र में इंसान को किसने बनाया? और उसका धर्म क्या है?’ पण्डित जी बोले- ‘इंसान को ईश्वर ने बनाया और उसका धर्म ईश्वर का भजन करना है।’ स्वामी जी ने पूछा- ‘रामलीला मैदान में जब रामलीला होती है, तो उसी मंच पर आखरी दिन के बाद नाच-गाने का कार्यक्रम होता है। क्या आप इसे ही धर्म मानते हैं?’ इसका पण्डित जी के पास कोई उत्तर नहीं था। इसके बाद स्वामी जी ने मस्जिद के इमाम से पूछा- ‘इमाम साहिब! उर्स के मैदान में आप साल भर खेती करते हैं और उसका अनाज आपके घर में जाता है। क्या अल्लाह या कुरआन इस नेक काम की आपको इजाज़त देता है?’ इमाम साहिब के पास भी इसका कोई उत्तर नहीं था। स्वामी जी ने कहा कि मैं तो ये दोनों ही काम करने के लिए आपसे जगह नहीं माँग रहा हूँ, और न हमेशा के लिए माँग रहा हूँ। मैं लोगों में जागरूकता फैलाने, उन्हें सद्मार्ग पर लाने और उनके जीवन में ऊर्जा भरने का काम करता हूँ। मुझे आपके मज़हबों को बिगड़ाने में आनन्द नहीं आता; मुझे लोगों को सुधारने में परम् आनन्द की अनुभूति होती है। उन्होंने कहा कि ईश्वर तो एक ही है और वह सभी का मालिक है। इस नाते हम सभी भाई-भाई हुए; फिर कैसा भेदभाव? इसके बाद कुछ देर सभी मौन रहे। बाद में पण्डित जी और इमाम साहिब स्वामी जी से गुज़ारिश करने लगे कि वे उनके यहाँ प्रवचन दें और उनके प्रवचन वे लोग भी सुनेंगे।

परिवार की मंजूरी बगैर आधी रात को जला दिया पीड़िता का शव, देशभर में गुस्सा

यूपी के हाथरस में दलित युवती के साथ गैंगरेप, अमानुषिकता और उसके बाद उसके शव को बिना परिवार के लोगों की मंजूरी के आधी रात में जला देने की घटना से देश भर में गुस्सा पैदा हो गया है। परिजनों ने इसे अन्याय की इंतिहा बताते हुए इसे जुल्म करार दिया है। गैंगरेप की शिकार इस दलित युवती की कल दिल्ली के अस्पताल में मौत हो गयी थी। हाथरस में इस घटना के बाद तनाव है और लगातार लोग, जिनमें कांग्रेस के नेता भी शामिल हैं, विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी कल हाथरस पीड़ित परिवार से मिलने जा रही हैं जबकि राहुल गांधी ने इस घटना पर प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाते हुए इसे ‘जंगलराज’ करार दिया है।

सीएम योगी ने घटना से जनता में उपजी नाराजगी को भांपते हुए मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलने को कहा है जबकि घटना की जांच के लिए एसआईटी का गठन भी किया गया है। उधर परिवार में मातम का माहौल है। परिजनों ही नहीं, पूरी इलाके में जबरदस्त गुस्सा है। कुछ परिजनों ने आशंका जाहिर की है कि उन्हें तो यह भी आशंका है कि जलाया गया शव उनकी ही बेटी का ही था भी या नहीं। बता दें यह शव तेल डालकर जलाया गया, जो रीति रिवाजों के भी विपरीत है।

गैंगरेप और उसके बाद उसके साथ हुई अमानुषिकता को लेकर पूरे देश में पहले से गुस्सा था और  जब यह खबर सोशल मीडिया में वायरल हुई कि दिल्ली से परिजनों को बताये बिना लड़की के शव को ले जाया गया है और आधी रात को बिना परिवार के लोगों की मंजूरी और उपस्तिथि के शव को तेल डालकर जला दिया गया, तो लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर चला गया है।

बहुत सी तस्वीरें आई हैं जिनमें एक तरफ चिता जल रही है और सामने पुलिस वाले खड़े होकर ठहाके लगा रहे हैं। इससे पहले मंगलवार देर रात पुलिस की सुरक्षा के बीच युवती के शव को हाथरस के गांव ले जाया गया। वहां बड़ी संख्या में भीड़ थी जिसने पुलिस का जबरदस्त विरोध किया। पुलिस ने युवती के परिजनों और गांव वालों की शव देने की मांग को नकार दिया और बाद में जबरन खुद ही अंतिम संस्कार कर दिया। किसी परिजन को पास नहीं आने दिया गया और न अपनी बेटी का चेहरा देखने दिया गया।

इस बीच कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने इस मामले को लेकर लखनऊ, हाथरस से लेकर दिल्ली तक विरोध प्रदर्शन किया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी कल हाथरस परिवार से मिलने आ रही हैं। प्रियंका ने कल परिवार के लोगों से फोन पर बातचीत कर उन्हें सांत्वना दी थी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे शर्मनाक करार दिया है। राहुल गांधी ने ट्वीट में कहा – ‘भारत की एक बेटी का रेप-कत्ल किया जाता है, तथ्य दबाए जाते हैं और अन्त में उसके परिवार से अंतिम संस्कार का हक भी छीन लिया जाता है, ये अपमानजनक और अन्यायपूर्ण है’।

आज यूपी सरकार के मंत्री का गाँव आने पर लोगों ने जबरदस्त विरोध किया। मामले की गंभीरता को समझते हुए आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात की। बसपा प्रमुख मायावती ने भी घटना पर गुस्सा जताया है और मामले की सुनवाई फ़ास्ट ट्रक कोर्ट में करवाने की मांग की है।

हाथरस घटना पर राहुल गांधी का ट्वीट –

Rahul Gandhi
@RahulGandhi
भारत की एक बेटी का रेप-क़त्ल किया जाता है, तथ्य दबाए जाते हैं और अन्त में उसके परिवार से अंतिम संस्कार का हक़ भी छीन लिया जाता है।
ये अपमानजनक और अन्यायपूर्ण है।

आडवाणी, जोशी ने बाबरी फैसले का स्वागत किया ; जिलानी ने कहा इसके खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे

बाबरी विध्वंस मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के आज के फैसले का जहां  लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि नेताओं ने स्वागत किया है, वहीं बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा है कि वे कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और हाईकोर्ट जाएंगे।

बता दें लखनऊ में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने आज आडवाणी, जोशी और उमा भारती सहित सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। मौके पर जो नेता मौजूद थे वो कारसेवकों से संयमित व्यवहार बरतने की अपील कर रहे थे, और ढांचा बाहर के लोगों ने तोड़ा। फैसले के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के घर पहुंचे। आडवाणी ने इस मौके पर कहा कि आज जो निर्णय आया है वह अत्यंत महत्वपूर्ण है वो हम सबके लिए बहुत खुशी का विषय है।

आडवाणी ने कहा – ‘इस फैसले से हमारा और भाजपा दोनों का रामजन्मभूमि आंदोलन के प्रति नजरिया प्रमाणित हुआ है। मैंने घर से बाहर निकल कर जय श्रीराम के नारे को बुलंद किया। उधर एक अन्य बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी ने फैसले को  ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा – ‘इससे देश की न्याय व्यवस्था में और भरोसा मजबूत हुआ है। अभियोजन पक्ष की दलीलें पूरी तरह खारिज हुई हैं जिसके बारे में हम पहले भी कहा करते थे’।

इस बीच यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा – ‘अदालत के फैसले से साफ है कि देर जरूर हुई। लेकिन सत्य की जीत हुई है। कांग्रेस ने सभी 32 लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर कर उन्हें बदनाम करने के साजिश की थी’।

हाई कोर्ट जाएंगे :  जिलानी

उधर बाबरी मामले में 32 आरोपियों को बरी करने पर बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा है कि वे कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और हाईकोर्ट जाएंगे। ‘हम सीबीआई से भी अपील करेंगे, हम अकेले भी कोर्ट जा सकते हैं क्योंकि हम पीड़ित हैं’।

जिलानी के मुताबिक उनके पास विकल्प है। जिलानी ने कहा – ‘राम मंदिर का फैसला हम देख चुके हैं और बाबरी केस का फैसला भी देख लिया। दोनों से हम संतुष्ट नहीं हैं। अभी तक हम फैसले का इंतजार कर रहे थे। जो भी पक्ष संतुष्ट नहीं है, वह हाईकोर्ट का रुख करेगा’।

इस बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी फैसले की निंदा की है। उन्होंने कहा कि इतने नेताओं के ब्यान सामने हैं जिसमें वे बाबरी मस्जिद गिराने की बात कर रहे हैं और उमा भारती ने तो ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ जैसा नारा घटनास्थल पर लगाया था, उन्हें कैसे झुठलाया जा सकता है।

बाबरी मस्जिद विध्वंस : सभी आरोपी बरी

बाबरी मस्जिद ढांचे के 6 दिसंबर, 1992 को विध्वंश के मामले में 28 साल बाद आखिर बुधवार को लखनऊ में विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए इस मामले के मुख्य आरोपियों लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा यह काम सुनियोजित नहीं था।

जोशी, आडवाणी और उमा भारती ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए फैसला सुना। कोर्ट के बाहर अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था की गयी थी। करीब 28 साल पुराने इस आपराधिक मुक़दमे की सुनवाई कर रहे विशेष जज सुरेंद्र कुमार यादव आज ही सेवानिवृत हो जाएंगे। अगर उन्हें विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के जज की जिम्मेदारी न मिली होती तो वे पिछले साल सितंबर के महीने में ही रिटायर हो गए होते। पांच साल पहले 5 अगस्त को उन्हें इस मुक़दमे में विशेष न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने आदेश जारी कर सभी आरोपियों को फैसले के दिन कोर्ट में मौजूद रहने को कहा था, हालांकि, तीनों बड़े आरोपी आडवाणी,  जोशी और उमा भारती उपस्थित नहीं रहे।

फैसले के मद्देनजर अयोध्या और लखनऊ में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।

फैसले से पहले आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, महंत नृत्यगोपाल दास सहित छह आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी 26 अभियुक्त अदालत पहुँच गए थे।  विशेष जज को इसकी सूचना दे दी गई। फैसला सुनने के लिए विनय कटियार, साध्वी ऋतम्भरा, पवन पांडेय, रामजी गुप्ता, राम विलास वेदांती अदालत में उपस्थित रहे।

कोर्ट में कुल 16 कुर्सियां लगाई गई थीं। बाकी लोग कोविड-19 के प्रोटोकॉल के कारण बाहर ही बैठे। जोशी, आडवाणी और उमा भारती ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए फैसला सुना।

आडवाणी और जोशी अधिक उम्र और खराब स्वास्थ्य की वजह से नहीं आ पाए जबकि उमा भारती कोरोना संक्रमित होने के बाद ऋषिकेश एम्स में भर्ती हैं। फैसले से  पहले रामविलास वेदांती ने कहा – ‘हमको विश्वास है कि मंदिर था, मंदिर है और मंदिर रहेगा। हमने मस्जिद तोड़वाई। हम रामलला के लिए जेल जाने और फांसी चढ़ने को भी तैयार हैं।’

लखनऊ में विशेष सीबीआई कोर्ट के आसपास फोर्स तैनात की गयी है। कोर्ट के चारों तरफ बैरिकेडिंग लगाई गई है और हर आने-जाने वाले से पूछताछ की गयी। लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत के बाहर करीब 2 हजार पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई गई है। इसके अलावा प्रदेश के 25 संवेदनशील जिलों में सुरक्षा व्‍यवस्‍था तगड़ी कर की गई है।

कौन-कौन हैं आरोपी

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी के विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने फैसला सुनाया। मामले में कुल 49 आरोपी थे जिसमें से 17 की मौत हो चुकी है। बाकी बचे सभी 32 मुख्य आरोपियों पर फ़ैसला आया।

इस मामले में मुख्य आरोपियों में बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार, राम विलास वेदांती, ब्रज भूषण शरण सिंह आदि शामिल हैं। इनके अलावा महंत नृत्य गोपाल दास, चम्पत राय, साध्वी ऋतम्भरा, महंत धरमदास भी मुख्य आरोपियों में थे।

पांच आरोपियों एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सतीश प्रधान, उमा भारती और नृत्य गोपाल दास इनके आने की संभावना बेहद कम है। क्योंकि इनकी उम्र ज्यादा है और इनके न आने को लेकर सुबह स्थिति साफ हो जाएगी। अगर ये नहीं आएंगे तो इनके वकील कोर्ट की कार्यवाही शुरु होते ही व्यक्तिगत रुप से मौजूद नहीं रहने का आवेदन कोर्ट में डालेंगे।

जिन आरोपियों का निधन हो चुका है उनमें बाल ठाकरे, अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, महंत अवैद्यनाथ, महंत परमहंस दास, महामंडलेश्वर जगदीश मुनि, बैकुंठ लाल शर्मा प्रेम, डॉ सतीश नागर , मोरेश्वर साल्वे (शिवसेना नेता), डीवी रे (तत्कालीन एसपी), विनोद कुमार वत्स (हरियाणा निवासी), रामनारायण दास, हरगोबिंद सिंह, लक्ष्मी नारायण दास महात्यागी, रमेश प्रताप सिंह और विजयराजे सिंधिया शामिल हैं।

एक लोकसभा और 56 विधानसभा सीटों पर 3-7 नवंबर को मतदान

बिहार विधानसभा के चुनाव की तारीखों के बाद मंगलवार को चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, गुजरात आदि राज्यों में उपचुनावों की तारीखों का भी ऐलान कर दिया। एक लोकसभा और 56 विधानसभा सीटों पर 3 और 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। नतीजा 10 नवंबर को ही घोषत होगा।

आयोग के मुताबिक 54 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को वोट डाले जाएंगे जबकि बिहार की एक लोकसभा और मणिपुर में दो विधानसभा सीटों पर 7 नवंबर को मतदान होगा। छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, नागालैंड, ओडिशा, तेलंगाना और यूपी में 3 नवंबर को वोट डाले जाएंगे।

बिहार में वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट के लिए 7 नवंबर को वोटिंग होगी। चुनाव आयोग ने कहा कि बिहार के एक लोकसभा सीट के अलावा मणिपुर में दो विधानसभा सीटों के लिए भी वोट 7 नवंबर को डाले जाएंगे। आयोग ने हालांकि, असम, केरल, तमिलनाडु, और पश्चिम बंगाल में उपचुनाव के लिए तारीखों का ऐलान नहीं किया है। इन राज्यों के मुख्य सचिवों और मुख्य निर्वाचन अधिकारियों ने चुनाव कराने में कुछ दिक्कतों की बात कही थी।

बिहार के चुनाव घोषित करते हुए ही आयोग ने साफ़ कर दिया था कि इस बार मतदान के समय को एक घंटे के लिए बढ़ाया गया है। वोटिंग सुबह सात बजे से शाम छह बजे तक होगी। कोरोना संक्रमित और संभावति लोग आखिरी समय में वोट डालेंगे। मतदान केंद्रों पर मास्क, हैंड सैनिटाइजर और दस्तानों की व्यवस्था की जाएगी।

रिया जमानत मामले में मुंबई की अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा

बॉलीवुड से जुड़े ड्रग्स मामले में अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके भाई शोविक की जमानत याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला मंगलवार को सुरक्षित रखा है। एक बेंच ने कहा कि जल्द फैसला देने की कोशिश की जाएगी।

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध हालत में मौत की जांच के दौरान ड्रग्स मामला सामने आने के बाद अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती, उनके भाई शोविक और तीन अन्य को एनसीबी ने गिरफ्तार किया था। उनकी जमानत याचिका पर आज बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हुई। जस्टिस सारंग वी कोतवाल की एकल बेंच ने अब इन सभी की जमानत के मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

इससे पहले एनसीबी और रिया के वकील ने काफी देर तक दलीलें रखीं। बता दें  एनसीबी ने सोमवार को अदालत में पेश हलफनामे में कहा था कि रिया और शौविक ‘नामचीन हस्तियों और ड्रग्स पैडलर से जुड़े मादक पदार्थों के सक्रिय समूह के सदस्य हैं’। एनसीबी ने कहा कि दोनों ने ड्रग्स की खरीद-फरोख्त को बढ़ावा दिया और वित्तीय मदद पहुंचाई। हालांकि, रिया ड्रग्स लेने से साफ़ मना कर चुकी हैं।

याद रहे ड्रग्स मामले में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर, सारा अली खान और रकुल प्रीत समेत कई अन्य से पूछताछ हो चुकी है। अब तक करीब 20 लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ अभिनेताओं को लेकर भी एनसीबी छानबीन में जुटी है।

बॉम्बे हाई कोर्ट में मंगलवार को एनसीबी की तरफ से अपील करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कोर्ट से कहा कि उस बैकड्रॉप को ध्यान में रखना होगा, जिसके तहत एनडीपीएस अधिनियम सामाजिक स्थिति और लेजिस्लेटिव मंशा के संबंध में बनाया गया है। उधर रिया के वकील ने अदालत में अपनी मुवक्किल के पक्ष में दलीलें रखीं।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने साझा कि पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने नेशनल मीडिया सेंटर में पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की। उन्होंने बताया पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान व उत्तर प्रदेश इन पांच राज्यों के साथ मिलकर प्रदूषण को कम करने व लोगों की प्रदूषण से होने वाली तकलीफों को कैसे कम किया जाए इसकी योजना 2016 में बनाई थी, जिसमें कई बैठके हो चुकी है व इस साल की बैठक 1 अक्टूबर को होगी। यह मीटिंग वर्चुअल होगी, जिसमें सभी पांच राज्यों दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश के पर्यावरण मंत्री, पर्यावरण सचिव, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष व संबंधित राज्यों के अधिकारीयों के साथ-साथ कॉर्पोरेशन सिटीस व डीडीए, एनडीए ऐजेंसीयों के प्रमुख इस मीटींग में सभी उपस्थित रहेंगे।

1 अक्टूबर को होने वाली मीटींग में प्रकाश जावडेकर ने बताया की सभी ऐजेंसीयों को हमनें 2016 शॉर्ट टर्म, मिड टर्म और लौंग टर्म प्लान बनाने की अनुमति प्रदान की थी। उनके द्वारा पिछले दो सालों में किए गए काम का रिव्यू 1 अक्टूबर को होने वाली मीटींग मे किया जाएगा, जिससे सभी राज्यों और ऐजेंसीयों को पता चलेगा कि उन्होंने क्या किया और आगे क्या करना है।

वर्ष 2016 में नेशनल एअर क्वालिटी इंडेक्स पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लौंच किया गया था। इससे पहले यह प्रदूषण की गिनती एअर क्वालिटी इंडेक्स की रूप में नहीं होती थी।

इस साल कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, प्रीसिंपल सेक्रेटरी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, एडवाइजर पी.के.सिन्हा की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, पर्यावरण सचिव की एक बैठक, और सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) ने चार बैठके की है।

इन बैठकों में केंद्र सरकार द्वारा प्रमुख मुद्दा प्रदूषण नियंत्रण था जिसमें प्रदूषण नियंत्रण करने के लिए बदरपुर पॉवर प्लांट बंद किया गया और एनसीआर में जो पॉवर प्लांट इमपेक्ट करते है उन्हें भी बंद किया गया जिसमें सोनीपत का पॉवर प्लांट भी शामिल है।

मोदी सरकार ने 15 साल से लंबित पेरीफेरल एक्सप्रेसवे का काम किया जिसमें 8000 ट्रक जिनका दिल्ली में किसी भी प्रकार का काम नहीं होता था और वे केवल दिल्ली से गुज़रते थे दूसरे राज्यों मे जाने के लिए जिससे दिल्ली में प्रदूषण होता था इन सभी ट्रको पर भी रोक लगाई गई है। इसके साथ-साथ प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए BS- 6 वाहन व तेल भी लाए गए थे जिससे प्रदूषण में कमी भी आई है। देश में आज 3 लाख इलैक्टीक वाहन आ गए है। दिल्ली में इनकी संख्या ज्यादा है। इसके साथ ही इलैक्ट्रीक ई-रिक्शा और ई-टू-विलर सबसे ज्यादा आए है। जिससे प्रदूषण को रोकने में मदद मिली है।

वर्ष 2016 में कंस्ट्रक्शन और डेमोलिशन के रूल भी लाए गए जिसमें भवन निर्माण और तोड़ते समय उड़ने वाली धूल को ढक कर कार्य किया जाए जिससे धूल बाहर तक ना उड़े व भवन के तोड़ने पर निकलने वाला रोड़ा केवल फैक्ट्रीयों में भेजा जाए ।

3000 ईंट बट्टों का झिक-झैक टैक्नोलोजी से एक काम ऐसा किया है जिससे ईंट-भट्टों के प्रदूषण में कमी आई है। 3000 उद्योगों को पाईप एंड नेचुरल गैस दिया जा रहा है। जिसके कारण प्रदूषण में कमी आई है। हाउसिंग मिनिस्ट्री ने नगर निगम को इन क्षेत्रों में 400 करोड़ से अधिक योजना मंजूर की है जिसके माध्यम से और अधिक स्वीपर्स लगेंगे और धूल का निपटारा होगा।

टीएमसी सांसद नुसरत के दुर्गा बनने से देवबंदी उलमा खफा

पहली बार नहीं है कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद नुसरत जहां धार्मिक क्रियाकलापों के चलते विवादों में आई हों। इससे पहले भी वे अपने नाम के चक्कर में उलमा और कट्टरपंथियों के गुस्से का सामना कर चुकी हैं। अब एक बार फिर उनके दुर्गा का रूप धारण किए जाने और उसकी फोटो व वीडियो सोशल मीडिया में शेयर करने से देवबंद के उलमा ने नाराजगी जताई है।

देवबंद के उलमा का कहना है कि नुसरत जहां के दुर्गा का रूप धारण करने जैसा कार्य उन्हें शोभा नहीं देता, इसलिए उन्हें अल्लाह से तौबा करनी चाहिए।

जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के संरक्षक और मशहूर आलिम-ए-दीन मौलाना कारी इसहाक गोरा ने कहा इस्लाम में किसी की जाती जिंदगी में दखल देने की इजाजत नहीं है। नुसरत जहां के कार्यों को लेकर लोग ऐतराज कर रहे हैं।

उलमा का कहना है कि इस्लाम में कुछ ऐसी पाबंदियां हैं, जिन्हें मुसलमान नहीं कर सकता। मदरसा जामिया शेख उल हिंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती असद कासमी ने कहा, इस्लाम में दूसरे धर्म में जिन परंपराओं की मनाही है, नुसरत लगातार उनका अनुपालन कर रही हैं।

दरअसल, इंस्टाग्राम पर सांसद नुसरत जहां ने दुर्गा रूप धारण की तस्वीरें शेयर की थीं। इसके बाद से सोशल मीडिया पर ही उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाया गया, साथ ही जान से मारने तक की धमकी दी गई। सागर हुसैन नामक इंस्टाग्राम यूजर ने नुसरत जहां से बंगाली में सवाल करते हुए पूछा, तुम मुस्लिम होने के बावजूद हिंदुओं का समर्थन क्यों करती हो? वहीं नुसरत के हाथ में त्रिशूल की ओर इशारा करते हुए, एम अनवर ने लिखा, जब तुम मुस्लिम हो तो तुम्हारे हाथ में यह कैसे हो सकता है?