एनसीआरबी के आँकड़ों से जानें महिलाओं पर अत्याचार की हकीकत

हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आँकड़ों से हाथरस में 19 वर्षीय दलित की युवती के साथ हैवानियत की हकीकत को समझा जा सकता है। एनसीआरबी के 2019 के आँकड़ों के मुताबिक, देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध सात फीसदी और बढ़ गये हैं। आँकड़ों के मुताबिक, 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किये गये यानी हर 16 मिनट में भारत में कहीं न कहीं एक महिला से

दुष्कर्म हुआ। रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह है कि 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ किये गये अपराधों में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये 4500 आरोपियों में से 60 फीसदी 18-30 आयु वर्ग के थे। यौन अपराध से जुड़े मामलों में ही रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 2019 में 528 बच्चे लापता हुए, जिनमें 226 लडक़े और 302 लड़कियाँ थीं। इनमें 356 नाबालिगों- 167 लडक़ों और 189 लड़कियों का पुलिस आज तक पता नहीं लगा सकी।

सन् 2019 में देश में हर दिन 88 दुष्कर्म के मामले दर्ज किये गये। पिछले साल दुष्कर्म के कुल 32,033 मामलों में से 11 फीसदी दलित समुदाय की पीडि़ता थीं। आँकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं को नीचा दिखाने के लिए हमले या छेड़छाड़ के मामले 21.8 फीसदी थे। 2018 में 58.8 की तुलना में 2019 में प्रति लाख महिलाओं की आबादी का अपराध दर 62.4 हो गया। नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा दुष्कर्म के मामले सामने आते हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दलित समुदायों के खिलाफ उत्पीडऩ में यौन हिंसा में लगातार वृद्धि देखी गयी है। उत्तर प्रदेश में दुष्कर्म के मामलों में से 18 फीसदी पीडि़त दलित महिलाएँ हैं, जबकि राजस्थान में 9 फीसदी पीडि़त महिलाएँ दलित हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर में भी एक वर्ष में 3.5 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी है। एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ दर्ज अपराध के मामले 59,853 हैं, जो देश के कुल मामलों का 14.7 फीसदी हैं। राजथान में 41,550 केस दर्ज हुए, जो देश के आँकड़ों का 10.2 फीसदी हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 37,144 यानी 9.2 फीसदी मामले दर्ज किये गये।

असम में महिलाओं के खिलाफ अपराध की उच्चतम दर 177.8 (प्रति लाख जनसंख्या) दर्ज की गयी। इसके बाद राजस्थान (110.4) और हरियाणा (108.5) का स्थान रहा। दुष्कर्म के मामले में राजस्थान में 5,997 मामलों के साथ सबसे ऊपर रहा, इसके बाद उत्तर प्रदेश (3,065) और मध्य प्रदेश में 2,485 मामले दर्ज किये गये। भारत में 2018 में 3,78,236 मामलों की तुलना में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किये गये।

सन् 2018 में अपराध दर दर्ज 21.2 (प्रति लाख जनसंख्या) से बढक़र 2019 में 22.8 हो गयी है। 2019 के दौरान अनुसूचित जाति की महिलाओं के खिलाफ सामान्य मारपीट के 28.9 फीसदी (13,273 मामलों) मामले दर्ज हुए, जो जातिगत अत्याचार के सबसे ज़्यादा हैं। इसके बाद अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत 9.0 फीसदी (4,129 मामले) केस हुए और 7.6 फीसदी (3,486 मामले) केस दुष्कर्म के दर्ज किये गये। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के खिलाफ सबसे ज़्यादा 11,829 मामले दर्ज किये गये, जो देश भर का 25.8 फीसदी हैं।  इसके बाद दूसरे नंबर पर राजस्थान में (6,794 यानी 14.8 फीसदी मामले) और तीसरे नंबर पर बिहार में (6,544 यानी 14.2 फीसदी मामले) दर्ज किये गये। ऐसे मामलों की दर राजस्थान में सबसे अधिक 55.6 (प्रति लाख जनसंख्या) थी, उसके बाद मध्य प्रदेश (46.7) और बिहार (39.5) थी। राजस्थान में भी दलित महिलाओं (554) के खिलाफ सबसे ज़्यादा दुष्कर्म के मामले दर्ज हुए, उसके बाद उत्तर प्रदेश (537) और मध्य प्रदेश (510) का नंबर आता है। दलित महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म की दर केरल में सबसे अधिक 4.6 (प्रति लाख जनसंख्या) थी, उसके बाद मध्य प्रदेश (4.5) और राजस्थान (4.5) दर्ज की गयी। देश में महिलाओं के खिलाफ तमाम कानून और प्रावधान है, पर सब नाकाफी साबित हुए।

वर्मा समिति ने की थी कम्युनिटी पुलिसिंग की वकालत

दिसंबर, 2012 में दिल्ली के निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीडऩ के अपराधियों पर त्वरित मुकदमे और सज़ा दिलाये जाने के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया गया। समिति ने 23 जनवरी, 2013 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों के प्रबंधन में कई सुझाव और सुधार की बात कही। सुझावों में शामिल था कि एक रेप क्राइसिस सेल की स्थापना की जाए। यौन हमले के सम्बन्ध में प्राथमिकी किये जाने पर सेल को तुरन्त सूचित किया जाना चाहिए। सेल को पीडि़त को कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिए। सभी पुलिस स्टेशनों में प्रवेश द्वार और पूछताछ कक्ष में सीसीटीवी होने चाहिए। शिकायतकर्ता को ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने की सुविधा मिलनी चाहिए। अपराध के क्षेत्राधिकार के बावजूद यौन अपराध के पीडि़तों की सहायता के लिए पुलिस अधिकारियों को बाध्य होना चाहिए। पीडि़तों की मदद करने वालों को गलत नहीं माना जाना चाहिए। पुलिस को यौन अपराधों से निपटने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ायी जाए। स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण प्रदान करके सामुदायिक पुलिसिंग विकसित की जानी चाहिए। इसके अलावा समिति ने जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 में संशोधन की सिफारिश की थी।