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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पार्टी ने राज्य के गरीब और आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा का लिया संकल्प

रांची : झामुमो का दो दिवसीय केंद्रीय महाधिवेशन की शुरुआत सोमवार को रांची में हुई।  मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई में पार्टी ने राज्य के गरीब और आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा का संकल्प लिया।

झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई में पार्टी ने राज्य के गरीब और आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा का संकल्प लिया। महाधिवेशन में पार्टी की108पन्नों की सांगठनिक रिपोर्ट पेश की गई।

महाधिवेशन में यह भी तय हुआ कि पार्टी पंचायत से लेकर लोकसभा तक हर स्तर पर भाजपा की असमानता और लोकतंत्र विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ेगी। झारखंड मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा वक्फ कानून हमलोग राज्य में लागू नहीं होने देंगे। झामुमो ने आदिवासी और मूलवासी समुदाय के भूमि अधिकारों की बात दोहराई। पार्टी ने‘जल,जंगल,जमीन’पर समुदाय के अधिकार को फिर से रेखांकित किया और भूमि वापसी अधिनियम बनाने,जंगल में रहने वालों को स्थायी पट्टा देने और परिसीमन के विरोध का ऐलान किया। पार्टी ने कहा कि प्रस्तावित परिसीमन की आड़ में जनजातियों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को कम करने की साजिश रची जा रही है।

राज्यसभा सांसद डॉ. सरफराज अहमद ने कहा वक्फ संशोधन अधिनियम पर विरोध जताते हुए महाधिवेशन में कहा गया कि इससे अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन हो रहा है।  भूमि राज्य का विषय है,लेकिन केंद्र ने वक्फ संशोधन से पहले राज्य से सलाह नहीं ली। धर्म और जाति के नाम पर वातावरण बनाया जा रहा है। झारखंड में इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए।

मुर्शिदाबाद हिंसा पर योगी आदित्यनाथ का हमला,”दंगाइयों का इलाज सिर्फ डंडा है”

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा पर तीखा बयान देते हुए कहा है कि देश में अशांति फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “लातों के भूत बातों से नहीं मानते, दंगाइयों का इलाज केवल डंडे से ही संभव है।” हरदोई में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई और राज्य सरकार की चुप्पी पर भी सवाल खड़े किए।

सीएम योगी ने कहा, “पूरा मुर्शिदाबाद पिछले एक हफ्ते से जल रहा है। लोग भय में जी रहे हैं, लेकिन सरकार चुप है। वहां के मुख्यमंत्री मौन साधे हुए हैं। दंगाइयों को ‘शांति दूत’ कहा जा रहा है। ये कैसी राजनीति है?”

उन्होंने आगे कहा, “बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उसका समर्थन यहां बैठे कुछ लोग कर रहे हैं। अगर किसी को बांग्लादेश इतना पसंद है तो वह भारत में बोझ बनने की बजाय वहीं चला जाए। देश की मिट्टी को अपमानित करने वालों के लिए यहां कोई जगह नहीं होनी चाहिए।”

सीएम योगी ने समाजवादी पार्टी पर भी निशाना साधा और कहा, “जब देश में दंगे होते हैं, ये लोग मौन हो जाते हैं। न तो किसी हिंसा की निंदा करते हैं और न ही पीड़ितों के पक्ष में खड़े होते हैं। इनकी राजनीति केवल तुष्टिकरण की है।”

योगी आदित्यनाथ ने 2017 से पहले के उत्तर प्रदेश का भी हवाला दिया, जब प्रदेश में अक्सर दंगे हुआ करते थे। उन्होंने कहा, “हमने यूपी में कानून का राज स्थापित किया है। आज कोई दंगा नहीं कर सकता, क्योंकि उन्हें पता है कि योगी का डंडा तैयार है।”

मुख्यमंत्री ने पश्चिम बंगाल हाईकोर्ट का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “मैं धन्यवाद दूंगा माननीय उच्च न्यायालय को, जिन्होंने राज्य में केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश देकर वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की पहल की।”

इस तीखे बयान से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि योगी आदित्यनाथ दंगाइयों और देशद्रोही मानसिकता वालों के खिलाफ किसी भी तरह की नरमी बरतने के पक्ष में नहीं हैं। उनका यह रुख उनके समर्थकों के बीच खूब सराहा जा रहा है, वहीं विपक्षी दल इसे राजनीति से प्रेरित बयान बता रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने हिसार-अयोध्या फ्लाइट को दिखाई हरी झंडी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिसार को पहले एयरपोर्ट की सौगात दी। उन्होंने एयरपोर्ट से हिसार-अयोध्या फ्लाइट को हरी झंडी दिखाई और बटन दबाकर नए टर्मिनल का शिलान्यास भी किया। हरियाणावासियों को इस शुभ दिन की बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “यह शुरुआत हरियाणा के विकास को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएगी।”

पीएम मोदी ने कहा, आज हरियाणा से अयोध्या धाम के लिए फ्लाइट शुरू हुई है। यानी अब श्रीकृष्ण जी की पावन भूमि हरियाणा, श्रीराम जी की भूमि से सीधी जुड़ गई है। बहुत जल्द यहां से दूसरे शहरों के लिए भी उड़ानें शुरू होंगी। आज हिसार एयरपोर्ट की नई टर्मिनल बिल्डिंग का शिलान्यास भी हुआ है। यह शुरुआत हरियाणा के विकास को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएगी। हरियाणा के लोगों को इस नई शुरुआत के लिए ढेर सारी बधाई देता हूं। मेरा आपसे वादा रहा है कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज में उड़ेगा।

प्रधानमंत्री ने एक आंकड़े की जुबानी आम लोगों की हवाई यात्रा की कहानी सुनाई। उन्होंने कहा, बीते दस सालों में करोड़ों भारतीयों ने जीवन में पहली बार हवाई सफर किया है। हमने वहां भी नए एयरपोर्ट बनाए, जहां कभी अच्छे रेलवे स्टेशन तक नहीं थे। 2014 से पहले देश में 74 एयरपोर्ट थे, 70 साल में 74। आज देश में एयरपोर्ट की संख्या 150 के पार हो गई है।

पीएम मोदी ने अंबेडकर जयंती के खास अवसर पर लोगों को बधाई देते हुए कहा, आज का दिन हम सभी के लिए, पूरे देश के लिए और खासकर दलित, पीड़ित, वंचित, शोषित के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है। उनके जीवन में ये दूसरी दिवाली है। आज संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती है। उनका जीवन, उनका संघर्ष, उनका संदेश हमारी सरकार की 11 साल की यात्रा का प्रेरणा स्तंभ बना है। हर दिन, हर फैसला, हर नीति, बाबा साहेब अंबेडकर को समर्पित है।

इससे पहले पीएम मोदी ने हिसार से अपने पुराने रिश्ते का जिक्र किया। बोले, “खाटे जवान, खाटे खिलाड़ी, और थारा भाईचारा जो है हरियाणा की पहचान। हिसार से मेरी इतनी यादें जुड़ी हुई हैं। जब भाजपा ने मुझे हरियाणा की जिम्मेदारी दी थी, तो यहां अनेक साथियों के साथ मैंने लंबे समय तक काम किया। इन सभी साथियों के परिश्रम ने बीजेपी की हरियाणा में नींव को मजबूत किया है।

फ्लाइट लैंड करते ही पायलट की हालत बिगड़ी, कुछ देर बाद माैत

एयर इंडिया के फ्लाइट के पायलट की संदिग्ध परिस्थितियों में माैत हो गई। पायलट ने अभी फ्लाइट लैंड करवाई ही थी कि कुछ देर बाद ही वह उल्टियां करने लगा। पायलट को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर्स ने उसे मृत घोषित कर दिया। पायलट का नाम अरमान है।

अरमान की उम्र 28 साल थी और हाल ही में उसकी शादी हुई थी। साथी कर्मचारियों ने बताया कि लैंडिंग के बाद पायलट ने कॉकपिट में उल्टी की थी और फिर एयरलाइन के डिस्पैच ऑफिस में कार्डियक अरेस्ट से उसकी मौत हो गई। Air India Express ने अपने बयान में कहा, “हम अपने एक बेहद कुशल और सम्मानित सहकर्मी को खोने के कारण गहरे शोक में हैं. यह हमारे लिए एक अत्यंत दुखद क्षण है, हमारी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं।

ओलंपिक में 128 साल बाद क्रिकेट की वापसी

लॉज एंजिल्स में होने वाले ओलंपिक 2028 में क्रिकेट खेल को भी शामिल किया जाएगा। पुरुष और महिला दोनों कैटगरी में 6-6 टीमें हिस्सा लेंगी, जिनमें गोल्ड मेडल जीतने के लिए टक्कर होगी। हर टीम 15 सदस्यीय स्क्वाड का चयन कर सकती है क्योंकि पुरुष और महिलाओं दोनों में 90–90 खिलाड़ियों का कोटा आवंटित किया गया है। खेलों के महाकुंभ ओलंपिक में क्रिकेट का खेल टी20 फॉर्मेट में खेला जाएगा। 128 साल बाद ओलंपिक में क्रिकेट की वापसी है। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के अंतर्गत 12 फुल मेंबर नेशन हैं, जबकि 90 से अधिक देश एसोसिएट मेंबर के रूप में T20 क्रिकेट खेलते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका के मेजबान होने के नाते खेलों में सीधे क्वालिफिकेशन पाने की संभावना के साथ, बची हुई टीमों में से सिर्फ 5 टीमें ही खेलों में जगह बना पाएंगी। अगर अमेरिका की टीम मेजबान होने के नाते सीधे क्वालीफाई करती है तो ओलंपिक खेल 2028 के क्रिकेट टूर्नामेंट में क्वालीफिकेशन के लिए पांच स्थान खाली रह जाएंगे। ऐसे में रैंकिंग के आधार पर टीमों का क्वालीफिकेशन हुआ तो पाकिस्तान का पत्ता साफ हो सकता है। मेंस टी20 रैकिंग में फिलहाल भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज दुनिया कि टॉप-5 टीम हैं। पाकिस्तान 7वें और साउथ अफ्रीका छठे स्थान पर है। वूमेंस टी20 टीम रैकिंग में भारत, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका पहले पांच स्थानों पर हैं

मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया

मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया जा रहा है। उसके भारत में कदम रखने से पहले लोगों की प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। 26/11 अटैक के एक हीरो ने कहा, ‘भारत को उसे आतंकी कसाब की तरह खास जेल, बिरयानी या और सुविधाएं देने की कोई जरूरत नहीं है। ये बात मोहम्मद तौफीक ने बोली है।

मुंबई में एक ‘चाय वाले’ हैं, जिन्हें ‘छोटू’ उर्फ मोहम्मद तौफीक के नाम से जाना जाता है। उन्हें मुंबई आतंकी हमले 26/11 के हीरो के तौर पर पहचान मिली है। मोहम्मद तौफीक ने हमलों में कई लोगों की जान बचाई थी।

मोहम्मद तौफीक ने कहा कि भारत को तहव्वुर राणा को जेल में खास सेल, बिरयानी और वैसी सुविधाएं देने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने मांग की कि आतंकवादियों से निपटने के लिए अलग कानून होने चाहिए। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उन्हें 2-3 महीने में फांसी हो जाए। बता दें राणा पर 2008 के मुंबई आतंकी हमलों में शामिल होने का आरोप है। हमले में सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए थे। अब भारत में तहव्वुर पर मुकदमा चलाया जाएगा।

सात अप्रैल को संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने तहव्वुर राणा की भारत में उसके प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया। राणा ने 20 मार्च, 2025 को मुख्य न्यायाधीश रॉबर्ट्स के समक्ष एक आपातकालीन आवेदन दायर किया, जिसमें उसके प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग की गई। सात अप्रैल को जारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया, ‘मुख्य न्यायाधीश को संबोधित और न्यायालय को संदर्भित स्थगन के लिए आवेदन अस्वीकार किया जाता है।

26 नवंबर 2008 को हुआ था आतंकी हमला
मुंबई अपराध शाखा के अनुसार, राणा के खिलाफ आपराधिक साजिश का मामला नवंबर 2008 के घातक हमलों के बाद दिल्ली में एनआईए द्वारा दर्ज किया गया था, जिसमें 160 से अधिक लोग मारे गए थे।

ग्रामीण स्वास्थ्य की रीढ़, सम्मान की प्यासी आशा वालंटियर्स

आशा बन रही निराशा!

बृज खंडेलवाल द्वारा

पिछले माह केंद्रीय स्वास्थ मंत्री जेपी नड्डा ने राज्य सभा में आशा वालंटियर्स के महत्वपूर्ण योगदान को सराहते हुए वायदा किया कि उनका मंत्रालय वेतन सुधार की मांगों पर विचार करेगा और ज्यादा सहूलियतें मुहैया कराएगा।

सालों से ये वायदे हो रहे हैं, मगर एक्शन नहीं हो रहा है। लगभग दो दशकों से, भारत की ‘आशा’ कार्यकर्ताएँ ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ की हड्डी बनी हुई हैं, एक ऐसी फौज जो चुपचाप मगर दृढ़ता से दूरदराज के गाँवों और औपचारिक चिकित्सा सेवाओं के बीच एक सेतु का काम कर रही है।

2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत शुरू हुई, दस लाख महिलाओं की यह सेना, माँ और बच्चे की सेहत में ज़बरदस्त सुधार ला रही है, परिवार नियोजन, टीका करन व अन्य सरकारी हेल्थ स्कीम्स आशा वालंटियर्स के जरिए ही लोगों तक पहुंचती हैं।

लेकिन अफसोस,  कि आशा ताइयां कम तनख्वाह, बिना नौकरी की सुरक्षा और कम सम्मान के साथ मुश्किल हालात में काम कर रही हैं। कोविड-19 महामारी ने इनके ज़रूरी रोल को उजागर किया, जब उन्होंने घर-घर जाकर स्क्रीनिंग और टीकाकरण अभियान चलाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली, पर कभी-कभार मिलने वाली तारीफ से आगे, इन फ्रंटलाइन वॉरियर्स को सिस्टम की अनदेखी का सामना करना पड़ता है।

अगर भारत यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज हासिल करने के बारे में गंभीर है, तो उसे ‘आशा’ कार्यक्रम में फौरन सुधार करना चाहिए, अपने सबसे ज़रूरी हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए सही तनख्वाह, बेहतर काम करने के हालात और सम्मान तय करना चाहिए।

एक रिटायर्ड आशा वॉलंटियर ने बताया कि ऑफिशियली “वॉलंटियर” के तौर पर मानी जाने वाली ‘आशा’ वर्कर्स को औपचारिक नौकरी के फायदे नहीं मिलते, कोई फिक्स तनख्वाह, पेंशन, हेल्थ इंश्योरेंस या मैटरनिटी लीव नहीं। उनके परफॉरमेंस पर आधारित इंसेंटिव से उनकी कमाई औसतन ₹5,000 से ₹10,000 प्रति माह होती है, जो गुज़ारे के लिए बहुत कम है, भुगतान में अक्सर देरी होती है, जिससे कई लोगों को एक्स्ट्रा काम करना पड़ता है।

सोचिए,  ‘आशा’ कार्यकर्ता लगभग 30 काम एक साथ करती हैं, टीकाकरण अभियान से लेकर मातृ स्वास्थ्य परामर्श तक, अक्सर हफ्ते में 20+ घंटे काम करती हैं। कई लोग बिना ट्रांसपोर्ट अलाउंस, पीपीई किट या बेसिक मेडिकल सप्लाई के हर दिन कई मील पैदल चलते हैं। उन्हें कभी भी हटाया जा सकता है, जिससे वे फाइनेंशियली कमज़ोर हो जाती हैं, कई लोगों ने सहायक नर्स दाइयों (एएनएम) और मेडिकल ऑफिसर्स से खराब बर्ताव की शिकायत की है, जिसमें बहुत कम कंस्ट्रक्टिव सुपरविज़न है। महिला ‘आशा’ वर्कर्स को घरेलू झगड़ों का सामना करना पड़ता है, कुछ को तो उनके काम के लिए तलाक की धमकी भी दी जाती है, ऊँची जाति के परिवार अक्सर उन्हें एंट्री देने से मना कर देते हैं, जिससे हेल्थ सर्विस में रुकावट आती है।

अनियमित अपस्किलिंग प्रोग्राम्स की वजह से मेंटल हेल्थ, डिजीज मॉनिटरिंग और इमरजेंसी केयर में नॉलेज की कमी बनी हुई है। इन मुश्किलों के बावजूद, ‘आशा’ कार्यकर्ताओं ने माँ और बच्चे की मृत्यु दर में कमी, टीकाकरण दरों में बढ़ोतरी, टीबी और एचआईवी के बारे में जागरूकता में सुधार, मानसिक स्वास्थ्य सहायता देने और हेल्थ रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण जैसे क्षेत्रों में ज़रूरी रोल निभाया है। उनका गहरा कम्युनिटी ट्रस्ट लास्ट माइल हेल्थकेयर डिलीवरी को सुनिश्चित करता है, चाहे महामारी हो, बाढ़ हो या रेगुलर मैटरनिटी केयर, फिर भी, उनके बलिदानों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

आशा कार्यकर्ताओं को पावरफुल बनाने के लिए, एक्सपर्ट्स ने ढेरों सुझाव ऑलरेडी सरकार को दे रखे हैं।  इंसेंटिव-बेस्ड पेमेंट्स को फिक्स तनख्वाह (कम से कम ₹15,000/माह) + परफॉरमेंस बोनस के साथ बदलना, पेंशन, हेल्थ इंश्योरेंस और मैटरनिटी बेनिफिट्स देना, ट्रांसपोर्ट अलाउंस, स्मार्टफोन, पीपीई किट और हेल्थ सेंटर्स पर आराम करने की जगह देना, देरी और भ्रष्टाचार से बचने के लिए पेमेंट्स को आसान बनाना, मेंटल हेल्थ, एनसीडी और इमरजेंसी रिस्पांस में रेगुलर स्किल डेवलपमेंट करना, ‘आशा’ को असिस्टेंट नर्स या पब्लिक हेल्थ वर्कर के रूप में सर्टिफाई करने के लिए मेडिकल कॉलेजों के साथ ब्रिज कोर्स करना, ऊँची हेल्थ सर्विस रोल में प्रमोशन के क्लियर रास्ते बनाना, जाति और लिंग के आधार पर रुकावटों के लिए सख्त भेदभाव विरोधी नीतियाँ बनाना, घरेलू झगड़ों को कम करने के लिए फैमिली सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम चलाना, और मुख्य मेडिकल ड्यूटीज पर ध्यान देने के लिए नॉन-हेल्थ कामों को कम करना ज़रूरी है। ₹49,269 करोड़ के बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर सेस फंड को आंशिक रूप से ‘आशा’ वेलफेयर को सपोर्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही बेहतर तनख्वाह स्ट्रक्चर का ट्रायल शुरू कर दिया है, इन मॉडलों को नेशनल लेवल पर लागू किया जाना चाहिए।

 ‘आशा’ कार्यकर्ता “वॉलंटियर” नहीं हैं, वे ज़रूरी हेल्थ सर्विस प्रोफेशनल हैं। अगर भारत वाकई अपनी रूरल हेल्थ सिस्टम को वैल्यू देता है, तो यह दिखावटी सेवा से आगे बढ़ने और उन्हें वह सम्मान, तनख्वाह और सपोर्ट देने का वक्त है जिसकी वे हकदार हैं। उनकी लगातार सर्विस ने लाखों लोगों की जान बचाई है, अब, सिस्टम को उन्हें थकान और अनदेखी से बचाना चाहिए, ‘आशा’ कार्यकर्ताओं को

 पावरफुल बनाएँ, वरना रूरल हेल्थ सर्विस को टूटते हुए देखें, अभी एक्शन लेने का वक्त है।

नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही प्राइवेट स्कूलों द्वारा सालाना लूट प्रारंभ

राष्ट्रीय उगाही उत्सव, पापा से फादर परेशां

बृज खंडेलवाल द्वारा

“जिन दिनों हम St पीटर में पढ़ते थे, हम पांच भाई जो अलग अलग क्लासों में थे, एक ही किताब से पढ़ लेते थे, वर्षों रेडिएंट रीडर, रेन की ग्रामर, इतिहास और भूगोल आदि विषयों की किताबें बदली नहीं गईं, हॉस्पिटल रोड पर सेकंड हैंड किताबें मिल जाती थीं। यूनिफॉर्म भी बस एक, खाकी, जूते भी एक काले डेली पोलिश करके चमकाते थे, अब तो बस हर साल का यही रोना, धंधे के चक्कर में सब कुछ बदल जाता है,” ये वेदना थी 1950 के दशक के पढ़े ताऊ जी प्रेम नाथ की।

स्थानीय पेरेंट्स के संगठनों ने आवाज जरूर उठाई है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। साथ में ये धौंस, सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ाते।

नई क्लास के लिए प्रमोट हुए बच्चों के लिए नया शैक्षणिक सत्र आमतौर पर उम्मीद और प्रगति का समय होता है, लेकिन भारत में यह अभिभावकों के लिए एक सोची-समझी लूट का सीजन बन गया है। आगरा इस संगठित शोषण का एक स्पष्ट उदाहरण है, जहां निजी स्कूल शिक्षा के नाम पर भारी रकम वसूलने की कला में माहिर हो गए हैं। यह केवल स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि पूरे देश में फैला एक गंभीर संकट है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।

रिटायर्ड शिक्षक सीमा कहती हैं, “आगरा सहित कई शहरों में हर साल यह लूटपाट जबरन किताबें, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म और जूते तयशुदा दुकानों से ऊंचे दामों पर खरीदवाने से शुरू होती है। यह अनैतिक प्रथा स्कूलों और प्रकाशकों के भ्रष्ट गठजोड़ का नतीजा है। प्रकाशक अक्सर स्कूलों को 50% से अधिक की छूट देते हैं, लेकिन यह लाभ अभिभावकों तक नहीं पहुंचता। इसके बजाय, स्कूल इस मार्जिन को अपनी कमाई का जरिया बना लेते हैं, जिससे शिक्षा एक मुनाफाखोर उद्योग बन गई है।”

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की हालिया रिपोर्टों में दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में भी ऐसे ही शोषण के मामलों का खुलासा हुआ है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह समस्या पूरे देश में फैली हुई है।

“कस्टम स्कूल किट” और अनिवार्य लोगो प्रिंटेड आइटम्स, बैग, बेल्ट, टाई, यूनिफॉर्म, स्पोर्ट्स शोज एंड टी शर्ट्स, ने अभिभावकों की आर्थिक परेशानी और बढ़ा दी है। इन किटों में महंगे और गैर-जरूरी सामान शामिल होते हैं, जिन्हें एकरूपता और गुणवत्ता नियंत्रण के नाम पर थोपा जाता है। हकीकत में, यह केवल एक और पैसा कमाने की चाल है, जिससे मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवारों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ता है, गुप्ताजी ने बताया।

ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन (AIPA) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि इन जबरन वसूली की वजह से वार्षिक शिक्षा खर्च औसतन 30% तक बढ़ जाता है, जिससे कई परिवारों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुश्किल हो जाती है।

यूनिफॉर्म और जूते, जिन्हें स्कूलों द्वारा विशेष दुकानों से खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है, शोषण का एक और जरिया हैं। ये दुकानदार स्कूलों के साथ सांठगांठ करके कम गुणवत्ता वाले उत्पाद ऊंची कीमतों पर बेचते हैं। पारदर्शिता और निगरानी की कमी के कारण यह लूटपाट बेरोकटोक जारी है। कई अभिभावकों ने शिकायत की है कि इन दुकानों से खरीदी गई वस्तुएं टिकाऊ नहीं होतीं और उनकी गुणवत्ता भी खराब होती है।

सामाजिक कार्यकर्ता जगन प्रसाद कहते हैं कि “इस शोषण को रोकने में प्रशासन की निष्क्रियता एक बड़ी बाधा है। आगरा के ज़िलाधिकारी और अन्य सरकारी अधिकारी इस पर कार्रवाई करने में विफल रहे हैं, जिससे स्कूलों को खुली छूट मिल गई है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और राज्य शिक्षा बोर्डों ने ऐसे शोषण के खिलाफ दिशानिर्देश जारी किए हैं, लेकिन उनका पालन सख्ती से नहीं किया जाता। NCPCR ने कड़ी निगरानी और दंड की सिफारिश की है, लेकिन क्रियान्वयन की गति धीमी है।”

इस आर्थिक शोषण का असर केवल पैसों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अभिभावकों में डर और लाचारी की भावना पैदा करता है। वे डर के कारण आवाज उठाने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें अपने बच्चों के साथ भेदभाव का डर सताता है। इस डर के कारण स्कूल बिना किसी जवाबदेही के मनमानी करते रहते हैं, अभिभावक तिवारीजी पीड़ा व्यक्त करते हैं।

विभिन्न माता-पिता संघों की रिपोर्ट से पता चला है कि ज्यादातर अभिभावक खुद को असहाय महसूस करते हैं और इन संस्थागत शोषण के सामने झुकने के लिए मजबूर होते हैं।

इस देशव्यापी उगाही रैकेट को खत्म करने के लिए  सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूल अभिभावकों को किसी विशेष विक्रेता से सामान खरीदने के लिए बाध्य न करें। स्कूलों को एक पारदर्शी सूची जारी करनी चाहिए जिससे अभिभावकों को स्वतंत्र रूप से खरीदारी करने का विकल्प मिले।

शिक्षाविद डॉ विद्या चौधरी कहती हैं कि स्कूलों और विक्रेताओं के बीच होने वाले वित्तीय लेन-देन की अनिवार्य रूप से जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए। स्कूलों का नियमित ऑडिट होना चाहिए और दोषी पाए जाने वाले संस्थानों पर कड़ी सजा दी जानी चाहिए।

कुछ पेरेंट्स चाहते हैं कि  शिकायत दर्ज कराने के लिए गुमनाम हेल्पलाइन और ऑनलाइन पोर्टल बनाए जाने चाहिए। अभिभावक संघों को अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें।

बिहार के शिक्षा शास्त्री डॉ अजय कुमार सिंह के मुताबिक ” प्रकाशकों द्वारा स्कूलों को दी जाने वाली छूट का पूरा लाभ अभिभावकों को मिलना चाहिए, और इसके लिए स्पष्ट दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध कराया जाना चाहिए।”

इससे भी ज्यादा जरूरी है  शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक राष्ट्रीय निकाय स्थापित किया जाना चाहिए, जो निजी स्कूलों के कार्यों की निगरानी और नियंत्रण करे।

नया शैक्षणिक सत्र उम्मीद और अवसरों का प्रतीक होना चाहिए, न कि आर्थिक संकट का कारण। सरकार, शिक्षा बोर्ड और स्कूल प्रशासन को मिलकर इस समस्या का समाधान करना होगा, सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता गुप्ता कहती हैं। साथ ही सरकारी स्कूलों का स्तर भी सुधारना होगा। समतावादी सोच के आधार पर गरीब अमीर स्कूल्स के बीच भेदभाव समाप्त होना चाहिए। फीसों पर भी नियंत्रण होना चाहिए।

मौजूदा स्थिति एक राष्ट्रीय कलंक है, जो शिक्षा के मौलिक अधिकार को कमजोर कर रही है। अब समय आ गया है कि इस शोषणकारी व्यवस्था को खत्म किया जाए और शिक्षा की गरिमा को बहाल किया जाए।

सरकार ने बढ़ाई एक्साइज ड्यूटी, बढ़ेंगी पेट्रोल-डीजल की कीमतें

वाहनचालकों के लिए अहम खबर सामने आ रही है। खबर यह है कि पेट्रोल डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होना तय है क्योंकि सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने का ऐलान किया है। सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ाया है। इससे पेट्रोल-डीजल के दाम 2 रुपए बढ़ जाएंगे।

दिल्ली में अभी पेट्रोल 94 रुपए, डीजल 87 रुपए लीटर बिक रहा है। नए दाम रात 12 बजे से लागू होंगे। अभी सरकार पेट्रोल पर 19.90 रुपए लीटर और डीजल पर 15.80 रुपए लीटर वसूल रही है। इस बढ़ोतरी के बाद पेट्रोल पर 21.90 रुपए लीटर और डीजल पर 17.80 रुपए लीटर एक्साइज ड्यूटी लगेगी। पेट्रोल-डीजल की बढ़ी हुई कीमत से दूसरी चीजें भी महंगी हो सकती हैं।

कॉमेडियन कुणाल कामरा ने किया बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख

मुंबई: मशहूर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कराने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया है। यह एफआईआर मुंबई के खार पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी, जिसमें कामरा पर महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। कामरा की ओर से यह याचिका सीनियर वकील नवरोज सेरवाई और वकील अश्विन थूल द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस सारंग कोतवाल और एसएम मोदक की पीठ के समक्ष पेश की जाएगी।

यह विवाद पिछले महीने उस समय शुरू हुआ जब कुणाल कामरा ने अपने एक स्टैंड-अप शो के दौरान एकनाथ शिंदे के राजनीतिक करियर पर व्यंग्य किया। उन्होंने एक बॉलीवुड गाने की पैरोडी तैयार कर शिंदे द्वारा 2022 में उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत और महा विकास आघाड़ी सरकार गिराने की घटना पर कटाक्ष किया था।

कामरा ने 23 मार्च 2025 को इस शो का वीडियो अपने यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पोस्ट किया, जो देखते ही देखते वायरल हो गया। इसके अगले ही दिन, यानी 24 मार्च को, शिंदे गुट के शिवसैनिकों ने खार इलाके में स्थित हैबिटेट कॉमेडी क्लब और होटल यूनिकॉन्टिनेंटल में जमकर तोड़फोड़ की, जहां यह शो रिकॉर्ड किया गया था।

शिवसेना कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कामरा ने एकनाथ शिंदे का अपमान किया है और उनकी गिरफ्तारी की मांग की। इस मामले में खार पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 356(2) (मानहानि) के तहत केस दर्ज किया गया और कुणाल कामरा को तीन बार समन जारी किए गए। हालांकि, कामरा 5 अप्रैल को पूछताछ के लिए पेश नहीं हुए। इस मामले में केवल मुंबई ही नहीं, बल्कि जलगांव के मेयर, नासिक के एक होटल व्यवसायी और एक व्यापारी ने भी कामरा के खिलाफ अलग-अलग शिकायतें दर्ज करवाई हैं।